उनकी उपस्थिति की सामर्थ
परिचय
वेलिंग्टन के डुक ने एक बार नेपोलियन के बारे में कहा, “मैं उनके बारे में कहा करता था कि खेत में उनकी उपस्थिती चालिए हजार मनुष्यों जितना अंतर पैदा करती थी।” एक मजबूत लीडर की उपस्थिती में एक शक्तिशाली प्रभाव होता है। परमेश्वर की उपस्थिति की अद्भुत सामर्थ का कितना महान प्रभाव होता है।
हम सभी के हृदय में एक गहरी आत्मिक भूख है जो केवल परमेश्वर की उपस्थिति से तृप्त की जा सकती है। आदम और हव्वा ने अपने पाप के द्वारा उनकी उपस्थिती के इस बोध को खो दिया था। इसके बाद, परमेश्वर की उपस्थिती उस तरह से पता नहीं चलती थी जैसे कि यह पहले चलती थी।
परमेश्वर पवित्र हैं। वह सर्वशक्तिमान हैं। हम उनकी उपस्थिती को हल्के में नहीं ले सकते हैं। केवल क्रूस और यीशु के पुनरुत्थान के द्वारा, परमेश्वर की उपस्थिती में एक रास्ता और आपमें रहने वाले पवित्र आत्मा का उपहार संभव हो पाया है। आज आप उनकी उपस्थिती की अद्भुत सामर्थ का अनुभव कर सकते हैं।
भजन संहिता 90:1-10
भजनसंहिता 90
परमेश्वर के भक्त मूसा की प्रार्थना।
90हे स्वामी, तू अनादि काल से हमारा घर (सुरक्षास्थल) रहा है।
2 हे परमेश्वर, तू पर्वतों से पहले, धरती से पहले था,
कि इस जगत के पहले ही परमेश्वर था।
तू सर्वदा ही परमेश्वर रहेगा।
3 तू ही इस जगत में लोगों को लाता है।
फिर से तू ही उनको धूल में बदल देता है।
4 तेरे लिये हजार वर्ष बीते हुए कल जैसे है,
व पिछली रात जैसे है।
5 तू हमारा जीवन सपने जैसा बुहार देता है और सुबह होते ही हम चले जाते है।
हम ऐसे घास जैसे है,
6 जो सुबह उगती है और
वह शाम को सूख कर मुरझा जाती है।
7 हे परमेश्वर, जब तू कुपित होता है हम नष्ट हो जाते हैं।
हम तेरे प्रकोप से घबरा गये हैं।
8 तू हमारे सब पापों को जानता है।
हे परमेश्वर, तू हमारे हर छिपे पाप को देखा करता है।
9 तेरा क्रोध हमारे जीवन को खत्म कर सकता है।
हमारे प्राण फुसफुसाहट की तरह विलीन हो जाते है।
10 हम सत्तर साल तक जीवित रह सकते हैं।
यदि हम शक्तिशाली हैं तो अस्सी साल।
हमारा जीवन परिश्रम और पीड़ा से भरा है।
अचानक हमारा जीवन समाप्त हो जाता है! हम उड़कर कहीं दूर चले जाते हैं।
समीक्षा
उनकी उपस्थिती हमारे गुप्त पापो को प्रकट करती है
मुझे याद है अल्फा के हमारे छोटे समूह में एक मनुष्य कह रहे थे कि वह “पाप” के विचार को नहीं समझ सकते थे, क्योंकि वह “एक अच्छा जीवन जीए थे और अपने जीवन में किसी भी गलत चीज के बारे में नहीं जानते थे।” कुछ सप्ताह बाद में, अल्फा के समय में, वह यीशु से मिले और पवित्र आत्मा से भर गए। उनके चेहरे से आँसू बह रहे थे। उन्होंने कहा कि वह समझते हैं कि उनका जीवन कितना पापमय था और उन्हें कितनी क्षमा मिली है।
परमेश्वर की उपस्थिती का प्रकाश हमारे हृदय के अंधकारमय स्थान को प्रकट करता है –पाप जिन्हें हम अपने आपसे भी छिपाना चाहते हैं। भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, “परमेश्वर, आप हमारे शरणस्थान हैं...आपने हमारे बुरे कामो को अपने सम्मुख और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है” (वव.1अ,8)।
जितना अधिक समय हम परमेश्वर की उपस्थिती में बिताते हैं उतना ही अधिक प्रकाश चमकता है और हमारे पाप को दिखाता है। पौलुस प्रेरित ने इस तरह से शुरुवात की अपना वर्णन “प्रेरितों में सबसे छोटे” के रूप में किया (1कुरिंथियो 15:9)। बाद में उन्होंने अपने आपको “परमेश्वर के लोगों में सबसे छोटे से भी छोटा” कहा” (इफिसियों 3:8)। अंत में, उन्होंने अपना वर्णन “सबसे बड़ा पापी” के रूप में किया (1तीमुथियुस 1:16)।
ऐसा नहीं कि वह बदतर हो गए; बात यह है कि परमेश्वर की उपस्थिती की अद्भुत सामर्थ के द्वारा, वह अपने हृदय में चमक रहे प्रकाश के प्रति अति जागरूक हो गए। यह बहुत ही नकारात्मक लग सकता है, लेकिन पौलुस के लिए यह थोड़ा विपरीत था। उनकी प्रभावित करने वाली भावना थी आभार और स्तुती क्योंकि चाहे उन्होंने कुछ भी गलत किया हो, वह जानते थे कि उन्हें क्षमा मिल गई है और परमेश्वर के साथ वह अपने निकट संबंध को जान सकते थे।
मसीहों के रूप में हम उस संबंध की बाट जोह सकते हैं जो सर्वदा बनी रहती है। परमेश्वर अनंत हैं, “अनादिकाल से अनंतकाल तक तू ही परमेश्वर है” (भजनसंहिता 90:2ब)। फिर भी हम मानवीय जीवन की भंगुरता को अच्छी तरह से जानते हैं। भजनसंहिता के लेखक हमें याद दिलाते हैं कि हम मनुष्यों के रूप में मिट्टी में लौट जाते हैं (व.3), हम नई घास के समान हैं जो शाम को सूख जाती है और मुर्झा जाती है (वव.5-6), और हमारा सामान्य जीवनकाल सत्तर या अस्सी वर्ष का है (व.10)।
परमेश्वर का अनंत स्वभाव है कि वह कौन हैं। हमारे लिए, अनंत जीवन अपने आप या प्राकृतिक नहीं है। “ क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है” (रोमियो 6:23)।
प्रार्थना
रोमियों 15:14-33
पौलुस द्वारा अपने पत्र और कामों की चर्चा
14 हे मेरे भाईयों, मुझे स्वयं तुम पर भरोसा है कि तुम नेकी से भरे हो और ज्ञान से परिपूर्ण हो। तुम एक दूसरे को शिक्षा दे सकते हो। 15 किन्तु तुम्हें फिर से याद दिलाने के लिये मैंने कुछ विषयों के बारे में साफ साफ लिखा है। मैंने परमेश्वर का जो अनुग्रह मुझे मिला है, उसके कारण यह किया है। 16 यानी मैं ग़ैर यहूदियों के लिए यीशु मसीह का सेवक बन कर परमेश्वर के सुसमाचार के लिए एक याजक के रूप में काम करूँ ताकि ग़ैर यहूदी परमेश्वर के आगे स्वीकार करने योग्य भेंट बन सकें और पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर के लिये पूरी तरह पवित्र बनें।
17 सो मसीह यीशु में एक व्यक्ति के रूप में परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा का मुझे गर्व है। 18 क्योंकि मैं बस उन्हीं बातों को कहने का साहस रखता हूँ जिन्हें मसीह ने ग़ैर यहूदियों को परमेश्वर की आज्ञा मानने का रास्ता दिखाने का काम मेरे वचनों, मेरे कर्मों, 19 आश्चर्य चिन्हों और अद्भुत कामों की शक्ति और परमेश्वर की आत्मा के सामर्थ्य से, मेरे द्वारा पूरा किया। सो यरूशलेम से लेकर इल्लुरिकुम के चारों ओर मसीह के सुसमाचार के उपदेश का काम मैंने पूरा किया। 20 मेरे मन में सदा यह अभिलाषा रही है कि मैं सुसमाचार का उपदेश वहाँ दूँ जहाँ कोई मसीह का नाम तक नहीं जानता, ताकि मैं किसी दूसरे व्यक्ति की नींव पर निर्माण न करूँ। 21 किन्तु शास्त्र कहता है:
“जिन्हें उसके बारे में नहीं वताया गया है, वे उसे देखेंगे।
और जिन्होंने सुना तक नहीं है, वे समझेगें।”
पौलुस की रोम जाने की योजना
22 मेरे ये कर्तव्य मुझे तुम्हारे पास आने से बार बार रोकते रहे हैं।
23 किन्तु क्योंकि अब इन प्रदेशों में कोई स्थान नहीं बचा है और बहुत बरसों से मैं तुमसे मिलना चाहता रहा हूँ, 24 सो मैं जब इसपानिया जाऊँगा तो आशा करता हूँ तुमसे मिलूँगा! मुझे उम्मीद है कि इसपानिया जाते हुए तुमसे भेंट होगी। तुम्हारे साथ कुछ दिन ठहरने का आनन्द लेने के बाद मुझे आशा है कि वहाँ की यात्रा के लिए मुझे तुम्हारी मदद मिलेगी।
25 किन्तु अब मैं परमेश्वर के पवित्र जनों की सेवा में यरूशलेम जा रहा हूँ। 26 क्योंकि मकिदुनिया और अखैया के कलीसिया के लोगों ने यरूशलेम में परमेश्वर के पवित्र जनों में जो दरिद्र हैं, उनके लिए कुछ देने का निश्चय किया है। 27 हाँ, उनके प्रति उनका कर्तव्य भी बनता है क्योंकि यदि ग़ैर यहूदियों ने यहूदियों के आध्यात्मिक कार्यों में हिस्सा बटाया है तो ग़ैर यहूदियों को भी उनके लिये भौतिक सुख जुटाने चाहिये। 28 सो अपना यह काम पूरा करके और इकट्ठा किये गये इस धन को सुरक्षा के साथ उनके हाथों सौंप कर मैं तुम्हारे नगर से होता हुआ इसपानिया के लिये रवाना होऊँगा 29 और मैं जानता हूँ कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा तो तुम्हारे लिए मसीह के पूरे आर्शीवादों समेत आऊँगा।
30 हे भाईयों, तुमसे मैं प्रभु यीशु मसीह की ओर से आतमा से जो प्रेम पाते हैं, उसकी साक्षी दे कर प्रार्थना करता हूँ कि तुम मेरी ओर से परमेश्वर के प्रति सच्ची प्रार्थनाओं में मेरा साथ दो 31 कि मैं यहूदियों में अविश्वासियों से बचा रहूँ और यरूशलेम के प्रति मेरी सेवा को परमेश्वर के पवित्र जन स्वीकार करें। 32 ताकि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार मैं प्रसन्नता के साथ तुम्हारे पास आकर तुम्हारे साथ आनन्द मना सकूँ। 33 सम्पूर्ण शांति का धाम परमेश्वर तुम्हारे साथ रहे। आमीन।
समीक्षा
पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा उनकी उपस्थिती आती है
परमेश्वर की उपस्थिती पूरी तरह से हमारे जीवन और दूसरों के जीवन को बदल देती है। वह हमारे वचनो और हमारे कार्यो को सामर्थ देते हैं। वह संभव चिह्न और चमत्कार करते हैं। यही आरंभिक कलीसिया की विशेषता थी। यही आज हमारे चर्च की विशेषता होनी चाहिए।
जैसे ही पौलुस रोमियों के लिए उनके महान पत्र को समाप्त करने की ओर होते हैं, तब वह अपनी व्यक्तिगत बुलाहट के विषय में बताते हैं:”कि मैं अन्य – जातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक के समान करूँ, जिससे अन्यजातियों का मानो चढ़ाया जाना, पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए” (व.16,एम.एस.जी)।
दूसरी वस्तुओं के साथ-साथ, एक याजक एक व्यक्ति है जो लोगों की ओर से परमेश्वर के पास जाते हैं और परमेश्वर की ओर से लोगों के पास जाते हैं। इस वजह से, हम सभी अब याजक हैं। आप याजकीय सेवकाई में हैं जब कभी आप परमेश्वर से एक संदेश को विश्व में लेकर जाते हैं और जब आप परमेश्वर के पास जाते हैं – मध्यस्थता करते हुए, प्रार्थना करते हुए उन लोगों के लिए जो चर्च में नहीं हैं, ताकि वे मसीह को जाने। जैसे ही वह इसे करते हैं, वे “परमेश्वर के लिए ग्रहण योग्य बलिदान बन जाते हैं, जो पवित्र आत्मा के द्वारा पवित्र की गई है” (व.16)।
पौलुस चाहते थे वहाँ पर सुसमाचार का प्रचार करें जहाँ मसीह को लोग नहीं जानते थे, ताकि वह किसी दूसरे की नींव पर घर न बना रहे हो (वव.20-21)। “अन्यजातियों को परमेश्वर की आज्ञा मानना सिखाने” के द्वारा उन्होंने यह किया (व.18)। उन्होंने “पूरी तरह से मसीह के सुसमाचार को सुनाया” (व.19)।
सुसमाचार के प्रति उनकी घोषणा पवित्र थी। यीशु की तरह, शब्दों के साथ उनका प्रचार परमेश्वर के राज्य के आगमन के प्रदर्शन के साथ-साथ जाता था। इसमें तीन चीजें शामिल थीः
- शब्द
- सुसमाचार विश्व में सबसे शक्तिशाली संदेश है। पौलुस ने सुसमाचार सुनाः”जो मैंने कहा उसके द्वारा...” (व.18)।
- काम
- सुसमाचार को पूरी तरह से सुनाने में ना केवल शब्द लेकिन कार्य शामिल हैः”जो मैंने कहा और किया उसके द्वारा” (व.18) उदाहरण के लिए, पौलुस ने गरीबों के लिए कार्य किया जैसा कि हम यहाँ पर देखते हैं। वह लिखते हैं, “गरीबों को दान दो...ताकि उनकी गरीबी दूर हो सके” (वव.26-27, एम.एस जी.)।
- आश्चर्य
- पौलुस के सुसमाचार प्रचार में पवित्र आत्मा की दैवीय सामर्थ का प्रदर्शन शामिल थाः” और चिह्नों, और अद्भुत कामों की सामर्थ से, और पवित्र आत्मा की सामर्थ से” (व.19)।
लोग उससे अधिक प्रभावित होते हैं जो वह देखते हैं इससे अधिक कि वे क्या सुनते हैं। ऐसा कहा जाता है, “आँख में कान में दो के बराबर है।” पौलुस आँख में दो (कार्य और चमत्कार) देते हैं और कान में केवल एक (वचन)।
पिंतेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा के आगमन ने परमेश्वर की उपस्थिती के एक महान अभिषेक को लाया। अब पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर अपने लोगों के बीच में उपस्थित हैं। वह अपने इकट्ठा समुदाय में उपस्थित हैं (उदाहरण के लिए, मत्ती 18:20 में)। वह आपके हृदय में उपस्थित हैं।
प्रार्थना
1 इतिहास 12:23-14:17
हेब्रोन में अन्य लोग दाऊद के साथ आते हैं
23 हेब्रोन नगर में जो लोग दाऊद के पास आए, उनकी संख्या यह है। ये व्यक्ति युद्ध के लिये तैयार थे। वे शाऊल के राज्य को, दाऊद को देने आए। यही वह बात थी जिसे यहोवा ने कहा था कि होगा। यह उसकी संख्या हैः
24 यहूदा के परिवार समूह से छः हजार आठ सौ व्यक्ति युद्ध के लिये तैयार थे। वे भाले और ढाल रखते थे।
25 शिमोन के परिवार समूह से सात हजार एक सौ व्यक्ति थे। वे युद्ध के लिये तैयार वीर सैनिक थे।
26 लेवी के परिवार समूह से चार हजार छः सौ पुरुष थे। 27 यहोयादा उस समूह में था। वह हारून के परिवार से प्रमुख था। यहोयादा के साथ तीन हजार सात सौ पुरुष थे। 28 सादोक भी उस समूह में था। वह वीर युवा सैनिक था। वह अपने परिवार से बाईस अधिकारियों के साथ आया।
29 बिन्यामीन के परिवार समूह से तीन हजार पुरुष थे। वे शाऊल के सम्बन्धी थे। उस समय तक उनके अधिकांश व्यक्ति शाऊल परिवार के भक्त रहे।
30 एप्रैम के परिवार समूह से बीस हजार आठ सौ पुरुष थे। वे वीर योद्धा थे। वे अपने परिवार के प्रसिद्ध पुरुष थे।
31 मनश्शे के आधे परिवार समूह से अट्ठारह हजार पुरुष थे। उनको नाम लेकर आने को बुलाया गया और दाऊद को राजा बनाने को कहा गया।
32 इस्साकार के परिवार से दो सौ बुद्धिमान प्रमुख थे। वे इस्राएल के लिये उचित समय पर ठीक काम करना जानते थे। उनके सम्बन्धी उनके साथ थे और उनके आदेश के पालक थे।
33 जबूलून के परिवार समूह से पचास हजार पुरुष थे। वे प्रशिक्षित सैनिक थे। वे हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र से युद्ध के लिये तैयार थे। वे दाऊद के बहुत भक्त थे।
34 नप्ताली के परिवार समूह से एक हजार अधिकारी थे। उनके साथ सैंतीस हजार व्यक्ति थे। वे व्यक्ति भाले और ढाल लेकर चलते थे।
35 दान के परिवार समूह से युद्ध के लिये तैयार अट्ठाइस हजार छः सौ पुरुष थे।
36 आशेर के परिवार समूह से युद्ध के लिये तैयार चालीस हजार प्रशिक्षित सैनिक थे।
37 यरदन नदी के पूर्व से रूबेन, गादी और मनश्शे के आधे परिवारों से एक लाख बीस हजार पुरुष थे। उन लोगों के पास हर एक प्रकार के अस्त्र शस्त्र थे।
38 वे सभी पुरुष वीर योद्धा थे। वे हेब्रोन नगर से दाऊद को सारे इस्राएल का राजा बनाने की पूरी सलाह करके आए थे। इस्राएल के अन्य लोगो ने भी सल्लाह की कि दाऊद राजा होगा। 39 उन लोगों ने दाऊद के साथ हेब्रोन में तीन दिन बिताए। उन्होंने खाया और पिया, क्योंकि उनके सम्बन्धियों ने उनके लिये भोजन बनाया था। 40 जहाँ इस्सकार, जबूलून, और नप्ताली के समूह रहते थे, उस क्षेत्र से भी उनके पड़ोसी गधे, ऊँट, खच्चर, और गायों पर भोजन लेकर आये। वे बहुत सा आटा, अंजीर—पूड़े, रेशिन, दाखमधु, तेल, गाय बैल और भेड़ें लाए। इस्राएल में लोग बहुत खुश थे।
साक्षीपत्र के सन्दूक को वापास लाना
13दाऊद ने अपनी सेना के सभी अधिकारियों से बात की। 2 तब दाऊद ने इस्राएल के सभी लोगों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे कहाः “यदि तुम लोग इसे अच्छा विचार समझते हो और यदि यह वही है जिसे यहोवा चाहता है, तो हम लोग अपने भाईयों को इस्राएल के सभी क्षेत्रों में सन्देश भेजें। हम लोग उन याजकों और लेवीवंशियों को भी सनेदश भेंजें। जो हम लोगों के भाईयों के साथ नगरों और उनके निकट के खेतों में रहते हैं। सन्देश में उनसे आने और हमारा साथ देने को कहा जाये। 3 हम लोग साक्षीपत्र के सन्दूक को यरूशलेम में अपने पास वापस लायें। हम लोगों ने साक्षीपत्र के सन्दूक की देखभाल शाऊल के शासनकाल में नहीं की।” 4 अतः इस्राएल के सभी लोगों ने दाऊद की सलाह स्वीकार की। उन सभी ने यही विचार किया कि यही करना ठीक है।
5 अतः दाऊद ने मिस्र की शीहोर नदी से हमात के प्रवेश द्वार तक के सभी इस्राएल के लोगों को इकट्ठा किया। वे किर्यत्यारीम नगर से साक्षीपत्र के सन्दूक को वापस ले जाने के लिये एक साथ आये। 6 दाऊद और इस्राएल के सभी लोग उसके साथ यहूदा के बाला को गये।(बाल किर्यत्यारीम का दूसरा नाम है।) वे वहाँ साक्षीपत्र के सन्दूक को लाने के लिये गए। वह साक्षीपत्र का सन्दूक यहोवा परमेश्वर का सन्दूक है। वह करूब (स्वर्गदूत) के ऊपर बैठता है। यही सन्दूक है जो यहोवा के नाम से पुकारी जाती है।
7 लोगों ने साक्षीपत्र के सन्दूक को अबीनादाब के घर से हटाया। उन्होंने उसे एक नयी गाड़ी में रखा। उज्जा और अह्यो गाड़ी को चला रहे थे।
8 दाऊद और इस्राएल के सभी लोग परमेश्वर के सम्मुख उत्सव मना रहे थे। वे परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे तथा गीत गा रहे थे। वे वीणा तम्बूरा, ढोल, मंजीरा और तुरही बजा रहे थे।
9 वे कीदोन की खलिहान में आए। गाड़ी खींचने वाले बैलों को ठोकर लगी और साक्षीपत्र का सन्दूक लगभग गिर गया। उज्जा ने सन्दूक को पकड़ने के लिये अपने हाथ आगे बढ़ाये। 10 यहोवा उज्जा पर बहुत अधिक क्रोधित हुआ। यहोवा ने उज्जा को मार डाला क्योंकि उसने सन्दुक को छू लिया। इस तरह उज्जा परमेश्वर के सामने वहाँ मरा। 11 परमेश्वर ने अपना क्रोध उज्जा पर दिखाया और इससे दाऊद क्रोधित हुआ। उस समय से अब तक वह स्थान “पेरेसुज्जा” कहा जाता है।
12 उस दिन दाऊद परमेश्वर से डर गया। दाऊद ने कहा, “मैं साक्षीपत्र के सन्दूक को यहाँ अपने पास नहीं ला सकता।” 13 इसलिए दाउद साक्षीपत्र के सन्दूक को आपने साथ दाऊद नगर में नहीं ले गया। उसने साक्षीपत्र के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर पर छोड़ा। ओबेदेदोम गत नगर से था। 14 साक्षीपत्र का सन्दूक ओबेदेदोम के परिवार में उसके घर में तीन महीने रहा। यहोवा ने ओबेदेदोम के परिवार और उसके यहाँ जो कुछ था, को आशीर्वाद दिया।
दाऊद का राज्य—विस्तार
14हीराम सोर नगर का राजा था। हीराम ने दाऊद को सन्देश वाहक भेजा। हीराम ने देवदारु के लट्ठे, संगतराश और बढ़ई भी दाऊद के पास भेजे। हीराम ने उन्हें दाऊद के लिये एक महल बनाने के लिये भेजा। 2 तब दाऊद समझ सका कि यहोवा ने उसे सच ही इस्राएल का राजा बनाया है। यहोवा ने दाऊद के राज्य को बहुत विस्तृत और शक्तिशाली बनाया। परमेश्वर ने यह इसलिये किया कि वह दाऊद और इस्राएल के लोगों से प्रेम करता था।
3 दाऊद ने यरूशलेम में बहुत सी स्त्रियों के साथ विवाह किया और उसके बहुत से पुत्र और पुत्रियाँ हुईं। 4 यरूशलेम में उत्पन्न हुईं दाऊद की संतानों के नाम ये हैं: शम्मू, शोबाब, नातान, सुलैमान, 5 यिभार, एलीशू, एलपेलेत, 6 नोगह, नेपेग, यापी, 7 एलीशामा, बेल्यादा, और एलीपेलेद।
दाऊद पलिश्तियों को पराजित करता है
8 पलिश्ती लोगों ने सुना कि दाऊद का अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में हुआ है। अतः सभी पलिश्ती लोग दाऊद की खोज में गए। दाऊद ने इसके बारे में सुना। तब वह पलिश्ती लोगों से लड़ने गया। 9 पलिश्तियों ने रपाईम की घाटी में रहने वाले लोगों पर आक्रमण किया और उनकी चीजें चुराईं। 10 दाऊद ने परमेश्वर से पूछा, “क्या मुझे जाना चाहिये और पलिश्ती लोगों से युद्ध करना चाहिये क्या तू मुझे उनको परास्त करने देगा?”
यहोवा ने दाऊद को उत्तर दिया, “जाओ। मैं तुम्हें पलिश्ती लोगों को हराने दूँगा।”
11 तब दाऊद और उसके लोग बालपरासीम नगर तक गए। वहाँ दाऊद और उसके लोगों ने पलिश्ती लोगों को हराया। दाऊद ने कहा, “टूटे बाँध से पानी फूट पड़ता है। उसी प्रकार, परमेश्वर मेरे शत्रुओं पर फूट पड़ा है! परमेश्वर ने यह मेरे माध्यम से किया है।” यही कारण है कि उस स्थान का नाम “बालपरासीम है।” 12 पलिश्ती लोगों ने अपनी मूर्तियों को बालपरासीम में छोड़ दिया। दाऊद ने उन मूर्तियों को जला देने का आदेश दिया।
पलिश्ती लोगों पर अन्य विज्य
13 पलिश्तियों ने रपाईम घाटी में रहने वाले लोगों पर फिर आक्रमण किया। 14 दाऊद ने फिर परमेश्वर से प्रार्थना की। परमेश्वर ने दाऊद की प्रार्थना का उत्तर दिया। परमेश्वर ने कहा, “दाऊद, जब तुम आक्रमण करो तो पलिश्ती लोगों के पीछे पहाड़ी पर मत जाओ। इसके बदले, उनके चारों ओर जाओ। वहाँ छिपो, जहाँ मोखा के पेड़ हैं। 15 एक प्रहरी को पेड़ की चोटी पर चढ़ने को कहो। जैसे ही वह पेड़ों की चोटी से उनकी चढ़ाई करने की आवाज को सुनेगा, उसी समय पलिश्तियों पर आक्रमण करो। मैं(परमेश्वर) तुम्हारे सामने आऊँगा और पलिश्ती सेना को हराऊँगा!” 16 दाऊद ने वही किया जो परमेश्वर ने करने को कहा। इसलिये दाऊद और उसकी सेना ने पलिश्ती सेना को हराया। उन्होंने पलिश्ती सैनिकों को लगातार गिबोन नगर से गेजर नगर तक मारा। 17 इस प्रकार दाऊद सभी देशों में प्रसिद्ध हो गया। यहोवा ने सभी राष्ट्रों के हृदय में उसका डर बैठा दिया।
समीक्षा
उनकी उपस्थिती में सम्मान की आवश्यकता है
कभी भी परमेश्वर की उपस्थिती को हल्के में मत लीजिए। वह अभी, और हर समय आपके साथ उपस्थित हैं, उनके आत्मा के द्वारा जो आपमें रहते हैं।
परमेश्वर ने अपने लोगों को इस असाधारण सुविधा के लिए तैयार किया। पुराने नियम में, संदूक परमेश्वर की उपस्थिती का प्रतीक था। इस लेखांश में हम देखते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण था।
दाऊद ने अपने लीडर्स से सलाह ली, “तब दाऊद ने इस्राएल की सारी मंडली से कहा, “यदि यह तुम को अच्छा लगे और हमारे परमेश्वर की इच्छा हो...हम अपने परमेश्वर के संदूक को अपने यहाँ ले आएँ।”...समस्त मंडली ने कहा कि वे ऐसा ही करेंगे...वे गए...और परमेश्वर के संदूक को ले आएँ...उसका नाम भी यही लिया जाता था।...दाऊद और सारे इस्राएली परमेश्वर के सामने तन मन से गीत गाते और वीणा, सारंगी, डफ, झाँझ और तुरहियां बजाते थे” (13:1-8)।
उसमें सोने की धूपदानी, और चारों ओर सोने से मढ़ा हुआ वाचा का सन्दूक और बाकी दूसरी चीजों के साथ वाचा की पटियाँ थीं (इब्रानियों 9:4 देखिये)। मंदिर में आराधना की संपूर्ण व्यवस्था में संदूक सबसे पवित्र वस्तु थी। यह प्राथमिक रूप से परमेश्वर की अद्भुत उपस्थिती का प्रतीक था, जिसकी महिमा का बादल इसके ऊपर छाया हुआ था (1इतिहास 13:6; निर्गमन 25:22; 1शमुएल 4:7 देखे)।
दूसरी ओर, परमेश्वर की उपस्थिती ने महान आशीष को लाया। जब परमेश्वर का संदूक तीन महीनों तक ओबेदेदोम के परिवार के साथ था, “परमेश्वर ने उसके घराने पर और जो कुछ उसका था उस पर भी आशीष दी” (1इतिहास 13:14)। दूसरी ओर, इसमें महान सम्मान की आवश्यकता थी और जो कुछ अपमानजनक था उसे दंड मिलता था (वव.9-10)।
दाऊद परमेश्वर और उनकी उपस्थिती का बहुत ही सम्मान और आदर करते थे। इसके परिणामस्वरूप, “ परमेश्वर ने उसके घराने पर और जो कुछ उसका था उस पर भी आशीष दी” (व.13)। दाऊद जानते थे कि लीडरशिप का उनका पद परमेश्वर की ओर से आया था (14:2)। वह नियमित रूप से परमेश्वर के मार्गदर्शन को खोजते थे कि उन्हें क्या करना चाहिए (वव.10,14)। “और परमेश्वर ने उन्हें उत्तर दिया” (व.14)।
इसके परिणामस्वरूप, “दाऊद का यश हर देश में फैल गया, और परमेश्वर ने सभी देशों में उनके लिए भय उत्पन्न किया” (व.17)। शब्द “डर” का अर्थ है महान सम्मान। क्योंकि दाऊद ने परमेश्वर की उपस्थिती का सम्मान किया, परमेश्वर ने उनका सम्मान किया और इस तरह से उन्हें अभिषिक्त किया कि हर कोई दाऊद का सम्मान करता था।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
भजनसंहिता 90:4-6
“क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं जैसा कल का दिन जो बीत गया, या जैसे रात का एक पहर। तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है; वे स्वप्न से ठहरते है, वे भोर को बढ़ने वाली घास के समान होते हैं। जो भोर को फूलती और बढ़ती है, और साँझ तक कटकर मुर्झा जाती है।”
पुटने वाले सेमेट्री में नीकी ने एक दफनाने की विधी संपूर्ण की। यह बड़ा, बहुत सी कब्र हैं और यह हजारों कब्रिस्तानों में से एक है। इसने मुझे फिर से चकित किया कि कितने लोग हमसे पहले चले गए हैं और जो जीवन हम जी रहे हैं वह बहुत छोटा है। पृथ्वी पर हमारा हर एक दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। मैं उनमें से एक को भी व्यर्थ नहीं गवाना चाहूँगी।
दिन का वचन
रोमियो 15:33
“शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साथ रहे। आमीन॥”

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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।