मसीह जीवन के पाँच टी.
परिचय
मसीह जीवन बहुमूखी है। किसी भी दिए गए समय में मैं पाता हूँ कि वहाँ पर कई विभिन्न चीजें एक ही समय में होती हैं। आज के लेखांश में हम ऐसे पाँच पहलुओं को देखते हैं, जो सभी शुरु होते हैं अंग्रेजी के अक्षर टी. से।
भजन संहिता 127:1-5
सुलैमान का मन्दिर का आरोहण गीत।
127यदि घर का निर्माता स्वयं यहोवा नहीं है,
तो घर को बनाने वाला व्यर्थ समय खोता है।
यदि नगर का रखवाला स्वयं यहोवा नहीं है,
तो रखवाले व्यर्थ समय खोते हैं।
2 यदि सुबह उठ कर तुम देर रात गए तक काम करो।
इसलिए कि तुम्हें बस खाने के लिए कमाना है,
तो तुम व्यर्थ समय खोते हो।
परमेश्वर अपने भक्तों का उनके सोते तक में ध्यान रखता है।
3 बच्चे यहोवा का उपहार है,
वे माता के शरीर से मिलने वाले फल हैं।
4 जवान के पुत्र ऐसे होते हैं
जैसे योद्धा के तरकस के बाण।
5 जो व्यक्ति बाण रुपी पुत्रों से तरकस को भरता है वह अति प्रसन्न होगा।
वह मनुष्य कभी हारेगा नहीं।
उसके पुत्र उसके शत्रुओं से सर्वजनिक स्थानों पर
उसकी रक्षा करेंगे।
समीक्षा
1. भरोसा
मसीह जीवन स्वयं-निर्भर संघर्ष के लिए नहीं है, बल्कि निर्भर रहकर भरोसा किए जाने के लिए है। भरोसे से शांति और नींद आती है।
" यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनाने वालों का परिश्रम व्यर्थ होगा। यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा। तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते और दुःख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिये व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपने प्रियों को यों ही नींद प्रदान करता है " (वव.1-2)। जैसा कि विक्टर हुगो लिखते हैं, "जब आपने अपने दिन का काम पूरा कर लिया है, तो शांति से सोने जाईये; परमेश्वर जाग रहे हैं।"
अपने जीवन, परिवार और सेवकाई के लिए अपनी योजनाओं में खो जाना आसान बात है। यह भजन अद्भुत रीति से याद दिलाता है कि आखिरकार आप पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर हैं।
यह महान शांति का एक संदेश है, लेकिन यह एक चुनौती भी है। क्या जो कुछ आप करते हैं, उसमें परमेश्वर भागीदार हैं: क्या आपके जीवन में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पर आप अकेले ही जा रहे हैं, और इसलिए "व्यर्थ में परिश्रम कर रहे हैं।"
परमेश्वर आपके जीवन के सभी क्षेत्र में शामिल होना चाहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपके काम का अनंत प्रभाव बने, तो आपको सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आप परमेश्वर के साथ पार्टनर हैं और इसे अकेले नहीं कर रहे हैं। अपने बच्चो के लिए भी परमेश्वर पर भरोसा कीजिए। बच्चे एक आशीष हैं (वव.3-5) और आपको उनके लिए और उनके भविष्य के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना है।
प्रार्थना
याकूब 1:1-27
1याकूब का, जो परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह का दास है, संतों के बारहों कुलों को नमस्कार पहुँचे जो समूचे संसार में फैले हुए हैं।
विश्वास और विवेक
2 हे मेरे भाईयों, जब कभी तुम तरह तरह की परीक्षाओं में पड़ो तो इसे बड़े आनन्द की बात समझो। 3 क्योंकि तुम यह जानते हो कि तुम्हारा विश्वास जब परीक्षा में सफल होता है तो उससे धैर्यपूर्ण सहन शक्ति उत्पन्न होती है। 4 और वह धैर्यपूर्ण सहन शक्ति एक ऐसी पूर्णता को जन्म देती है जिससे तुम ऐसे सिद्ध बन सकते हो जिनमें कोई कमी नहीं रह जाती है।
5 सो यदि तुममें से किसी में विवेक की कमी है तो वह उसे परमेश्वर से माँग सकता है। वह सभी को प्रसन्नता पूर्वक उदारता के साथ देता है। 6 बस विश्वास के साथ माँगा जाए। थोड़ा सा भी संदेह नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिसको संदेह होता है, वह सागर की उस लहर के समान है जो हवा से उठती है और थरथराती है। 7 ऐसे मनुष्य को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे प्रभु से कुछ भी मिल पायेगा। 8 ऐसे मनुष्य का मन तो दुविधा से ग्रस्त है। वह अपने सभी कर्मो में अस्थिर रहता है।
सच्चा धन
9 साधारण परिस्थितियों वाले भाई को गर्व करना चाहिए कि परमेश्वर ने उसे आत्मा का धन दिया है। 10 और धनी भाई को गर्व करना चाहिए कि परमेश्वर ने उसे नम्रता दी है। क्योंकि उसे तो घास पर खिलने वाले फूल के समान झड़ जाना है। 11 सूरज कड़कड़ाती धूप लिए उगता है और पौधों को सुखा डालता है। उनकी फूल पत्तियाँ झड़ जाती हैं और सुन्दरता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार धनी व्यक्ति भी अपनी भाग दौड़ के साथ समाप्त हो जाता है।
परमेश्वर परीक्षा नहीं लेता
12 वह व्यक्ति धन्य है जो परीक्षा में अटल रहता है क्योंकि परीक्षा में खरा उतरने के बाद वह जीवन के उस विजय मुकुट को धारण करेगा, जिसे परमेश्वर ने अपने प्रेम करने वालों को देने का वचन दिया है। 13 परीक्षा की घड़ी में किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि “परमेश्वर मेरी परीक्षा ले रहा है,” क्योंकि बुरी बातों से परमेश्वर को कोई लेना देना नहीं है। वह किसी की परीक्षा नहीं लेता। 14 हर कोई अपनी ही बुरी इच्छाओं के भ्रम में फँसकर परीक्षा में पड़ता है। 15 फिर जब वह इच्छा गर्भवती होती है तो पाप पूरा बढ़ जाता है और वह मृत्यु को जन्म देता है।
16 सो मेरे प्रिय भाइयों, धोखा मत खाओ। 17 प्रत्येक उत्तम दान और परिपूर्ण उपहार ऊपर से ही मिलते हैं। और वे उस परम पिता के द्वारा जिसने स्वर्गीय प्रकाश को जन्म दिया है, नीचे लाए जाते हैं। वह नक्षत्रों की गतिविधि से उप्तन्न छाया से कभी बदलता नहीं है। 18 सत्य के सुसंदेश के द्वारा अपनी संतान बनाने के लिए उसने हमें चुना। ताकि हम सभी प्राणियों के बीच उसकी फ़सल के पहले फल सिद्ध हों।
सुनना और उस पर चलना
19 हे मेरे प्रिय भाईयों, याद रखो, हर किसी को तत्परता के साथ सुनना चाहिए, बोलने में शीघ्रता मत करो, क्रोध करने में उतावली मत बरतो। 20 क्योंकि मनुष्य के क्रोध से परमेश्वर की धार्मिकता नहीं उपजती। 21 हर घिनौने आचरण और चारो ओर फैली दुष्टता से दूर रहो। तथा नम्रता के साथ तुम्हारे हृदयों में रोपे गए परमेश्वर के वचन को ग्रहण करो जो तुम्हारी आत्माओं को उद्धार दिला सकता है।
22 परमेश्वर की शिक्षा पर चलने वाले बनो, न कि केवल उसे सुनने वाले। यदि तुम केवल उसे सुनते भर हो तो तुम अपने आपको छल रहे हो। 23 क्योंकि यदि कोई परमेश्वर की शिक्षा को सुनता तो है और उस पर चलता नहीं है, तो वह उस पुरुष के समान ही है जो अपने भौतिक मुख को दर्पण में देखता भर है। 24 वह स्वयं को अच्छी तरह देखता है, पर जब वहाँ से चला जाता है तो तुरंत भूल जाता है कि वह कैसा दिख रहा था। 25 किन्तु जो परमेश्वर की उस सम्पूर्ण व्यवस्था को निकटता से देखता है, जिससे स्वतन्त्रता प्राप्त होती है और उसी पर आचरण भी करता रहता है, और सुन कर उसे भूले बिना अपने आचरण में उतारता रहता है, वही अपने कर्मों के लिए धन्य होगा।
भक्ति का सच्चा मार्ग
26 यदि कोई सोचता है कि वह भक्त है और अपनी जीभ पर कस कर लगाम नहीं लगाता तो वह धोखे में है। उसकी भक्ति निरर्थक है। 27 परम पिता परमेश्वर के सामने सच्ची और शुद्ध भक्ति वही है जिसमें अनाथों और विधवाओं की उनके दुःख दर्द में सुधि ली जाए और स्वयं को कोई सांसारिक कलंक न लगने दिया जाए।
समीक्षा
2. परीक्षाएँ
एक चीज जो सभी मसीहों में सामान्य बात है, वह है कि हम सभी "विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का सामना करते हैं" (व.2ब)। याकूब की पुस्तक बारह गोत्रों को लिखी गई थी जो देशो के बीच बिखर गए थे (अर्थात् हर जगह के मसीहों के लिए)।
नये नियम के एक अनोखे वचन में, याकूब कहते हैं, " जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो" (व.2)। कठिन स्थितियों में आनंद मनाओ। यह विश्व के नजरियें को उलट –पुलट कर देता है। "परीक्षाएँ" जीवन की चुनौतियाँ हैं जो आपके विश्वास को जाँचती हैं और सहनशीलता को विकसित करती हैं (वव.3-4)।
जैसा कि लाँस वॅट्सन ने लिखा, "हर तूफान एक विद्यालय है। हर परीक्षा एक जाँच है। हर अनुभव एक शिक्षा है। हर कठिनाई आपके विकास के लिए है।"
जॉयस मेयर लिखती हैं, "मैंने आखिरकार समझ लिया कि परमेश्वर चीजों को मेरे तरीके से नहीं करेंगे। उन्होंने मेरे जीवन में लोगों और स्थितियों को रखा जिसके कारण मैं यह संपूर्ण प्रक्रिया छोड़ देना चाहती थी, और वह मुझसे एक वाद-विवाद नहीं चाहते हैं। वह केवल सुनना चाहते हैं, "हाँ प्रभु। आपकी इच्छा पूरी हो।"
आपकी परीक्षाओं के बीच में आपको बुद्धि की आवश्यकता है। जैसा कि यूजन पिटरसन कहते हैं:"बुद्धि प्राथमिक रूप से सत्य को जानना नहीं है, यद्यपि निश्चित ही इसमें यह शामिल है; यह जीने का हुनर है।" याकूब कहते हैं, " यदि तुम में से किसी को बुध्दि की घटी हो तो परमेश्वर से माँगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है, और उसको दी जाएगी" (व.5)।
परेशानी से निपटने के दो तरीके हैं। एक है अकेले इसका सामना करना – जो कि स्वाभाविक तरीका है। दूसरा है परमेश्वर से दैवीय बुद्धि माँगना कि आपकी मदद करें यह जानने में कि क्या करना है।
याकूब " तुम्हारे विश्वास के परखे जाने" की बात करते हैं (व.3)। वह आगे कहते हैं, " धन्य है वह मनुष्य जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों से की है" (व.12)। यह लगभग ऐसा है जैसे याकूब कह रहे हैं कि संपूर्ण जीवन एक परीक्षा है। यदि आप परीक्षा में खड़े रहते हैं, तो आप जीवन के मुकुट को पायेंगे जिसका वायदा परमेश्वर ने उन लोगों से किया है जो उनसे प्रेम करते हैं।
परमेश्वर, कृपया मुझे बुद्धि दीजिए उन सभी निर्णयों के लिए जो मुझे लेने हैं और उन सभी परीक्षाओ के लिए जिसका मैं सामना करता हूँ।
3. प्रलोभन
किसी ने एक बार कहाः"अवसर शायद से एक बार खटखटाती है, लेकिन प्रलोभन दरवाजे पर ही खड़ा रहता है।" विलियम शेक्सपियर ने लिखा, "प्रलोभन मेरी कुहनी पर बैठा शैतान है।" प्रलोभन आता है जब हम गलत चीज को करना महसूस करते हैं। प्रलोभन अपने आपमें एक पाप नहीं है। इसके बजाय यह युद्ध की एक पुकार है।
प्रलोभन कहाँ से आता है: निश्चित ही परमेश्वर की ओर से नहीं। याकूब कहते हैं, " जब किसी की परीक्षा हो तो वह यह न कहे कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है" (व.13)।
अक्सर, बाईबल में प्रलोभन को शैतान की ओर से आते हुए देखा गया है। साँप ने आदम और हव्वा को प्रलोभित किया। शैतान ने अय्यूब पर प्रहार किया। शैतान के द्वारा यीशु की परीक्षा हुई।
किंतु, शैतान हमारी बुरी इच्छाओं पर काम करता हैः" प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है" (वव.14-15)।
पाप हमेशा एक धोखा है। याकूब लिखते हैं, " हे मेरे प्रिय भाइयो, धोखा न खाओ" (व.16)। अच्छी चीजें परमेश्वर की ओर से आती हैं:"हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिसमें न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है" (व.17)।
आपको धोखा दिया गया है जब आप सोचते हैं कि आपको उन चीजों की आवश्यकता है जो अच्छी नहीं हैं। अदन की वाटिका में यह धोखा दिया गया था कि आदम और हव्वा ने सोचा कि उन्हें बुराई और अच्छाई दोनों का अनुभव करने की आवश्यकता थी। परमेश्वर चाहते हैं कि आप केवल अच्छाई का अनुभव करें। हर बार जब आप गलत चीज को करना महसूस करते हैं और सही करना चुनते हैं, तब आप वयस्कता, सामर्थ और बुद्धि में बढ़ते हैं।
परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि हर अच्छा और सिद्ध उपहार आपकी ओर से आता है। होने दीजिए कि मैं ऐसा धोखा न खाऊँ कि गलत चीजों की इच्छा करने लगूं।
4. जीभ
आपके चरित्र की एक परीक्षा है आपकी जीभ। याकूब जीभ के विषय में बहुत कुछ बताते हैं। जीभ पर लगाम दो। अपने मुँह पर नियंत्रण रखो (व.26)।
वह लिखते हैं, " हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो, क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता। इसलिये सारी मलीनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उध्दार कर सकता है। परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं" (वव.19-21)।
परमेश्वर के वचन में आपको बदलने की सामर्थ है। आपको अपने अंदर परमेश्वर के वचन को मजबूती से जड़ पकड़ने देना है, इसे सुनना है और फिर वह करना है जो यह कहता है, बहुत बकवास करने के बजाय, परमेश्वर के वचन को सुनिये और अपने जीवन से सभी बुरी चीजों को बाहर निकाल दीजिए।
सुनिये, यद्यपि यह पर्याप्त नहीं है। " वचन पर चलने वाले बनिए, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं" (व.22)। यदि आप वह करेंगे जो यह कहता है, तो "आप आशीष पायेंगे" (व.25)। इसमें शामिल है कि " अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उनकी सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें" (व.27)।
प्रार्थना
यहेजकेल 32:1-33:20
फिरौन: एक सिंह या दैत्य
32देश—निकाले के बारहवें वर्ष के बारहवें महीने (मार्च) के प्रथम दिन यहोवा का वचन मेरे पास आया। उसने कहा, 2 “मनुष्य के पुत्र, मिस्र के राजा के विषय में यह करुणगीत गाओ। उससे कहो:
“‘तुमने सोचा था तुम शक्तिशाली युवा सिंह हो, राष्ट्रों में गर्व सहित टहलते हुए।
किन्तु सचमुच समुद्र के दैत्य जैसे हो।
तुम प्रवाह को धकेल कर रास्ता बनाते हो,
और अपने पैरों से जल को मटमैला करते हो।
तुम मिस्र की नदियों को उद्वेलित करते हो।’”
3 मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है:
“मैंने बहुत से लोगों को एक साथ इकट्ठा किया है।
अब मैं तुम्हारे ऊपर अपना जाल फेंकूँगा।
तब वे लोग तुम्हें खींच लेंगे।
4 तब मैं तुम्हें सूखी जमीन पर गिरा दूँगा।
मैं तुम्हें खेत में फेंकूँगा।
मैं सभी पक्षियों को तुम्हें खाने के लिये बुलवाऊँगा।
मैं हर जगह से जंगली जानवरों को तुम्हें खाने और पेट भरने के लिये बुलवाऊँगा।
5 मैं तुम्हारे शरीर को पर्वतों पर बिखेरूँगा।
मैं तुम्हारे शव से घाटियों को भर दूँगा।
6 मैं तुम्हारा रक्त पर्वतों पर डालूँगा
और धरती इसे सोखेगी।
नदियाँ तुमसे भर जाएंगी।
7 मैं तुमको लुप्त कर दूँगा।
मैं नभ को ढक दूँगा और नक्षत्रों को काला कर दूँगा।
मैं सूर्य को बादल से ढक दूँगा और चन्द्र नहीं चमकेगा।
8 मैं सभी चमकती ज्योतियों को नभ में
तुम्हारे ऊपर काला बनाऊँगा।
मैं तुम्हारे सारे देश में अंधेरा कर दूँगा।
9 “बहुत से लोग शोकग्रस्त और व्यग्र होंगे, जब वे सुनेंगे कि तुमको नष्ट करने के लिये मैं एक शत्रु को लाया। राष्ट्र जिन्हें तुम जानते भी नहीं, तिलमिला जायेंगे। 10 मैं बहुत से लोगों को तुम्हारे बारे में आघात पहुँचाऊँगा उनके राजा तुम्हारे बारे में उस समय बुरी तरह से भयभीत होंगे जब मैं उनके सामने अपनी तलवार चलाऊँगा। जिस दिन तुम्हारा पतन होगा उसी दिन, हर एक क्षण, राजा लोग भयभीत होंगे। हर एक राजा अपने जीवन के लिये भयभीत होगा।”
11 क्यों क्योंकि मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है: “बाबुल के राजा की तलवार तुम्हारे विरुद्ध युद्ध करने आयेगी। 12 मैं उन सैनिकों का उपयोग तुम्हारे लोगों को युद्ध में मार डालने में करुँगा। वे सैनिक राष्ट्रों में सबसे भयंकर राष्ट्र से आते हैं। वे उन चीजों को नष्ट कर देंगे जिनका गर्व मिस्र को है। मिस्र के लोग नष्ट कर दिये जायेंगे। 13 मिस्र में नदियों के सहारे बहुत से जानवर हैं। मैं इन जानवरों को भी नष्ट करूँगा! लोग भविष्य में, अपने पैरों से पानी को गंदा नहीं करेंगे। गायों के खुर भविष्य में पानी को मैला नहीं करेंगे। 14 इस प्रकार मैं मिस्र में पानी को शान्त बनाऊँगा। मैं उनकी नदियों को मन्द बहाऊँगा वे तेल की तरह बहेंगी।” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा,
15 “मैं मिस्र देश को खाली कर दूँगा। वह हर चीज से रहित होगा। मैं मिस्र में रहने वाले सभी लोगों को दण्ड दूँगा। तब वे जानेंगे कि मैं यहोवा और स्वामी हूँ!
16 “यह एक करुणगीत है जिसे लोग मिस्र के लिये गायेंगे। दूसरे राष्ट्रों में पुत्रियाँ (नगर) मिस्र के बारे में इस करुण गीत को गायेंगी। वे इसे, मिस्र और उसके सभी लोगों के बारे में करुण गीत के रूप में गायेंगी।” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा था!
मिस्र का नष्ट किया जाना
17 देश निकाले के बारहवें वर्ष में, उस महीने के पन्द्रहवें दिन, यहोवा का सन्देश मुझे मिला। उसने कहा, 18 “मनुष्य के पुत्र, मिस्र के लोगों के लिये रोओ। मिस्र और उन पुत्रियों को शक्तिशाली राष्ट्र से कब्र तक पहुँचाओ। उन्हें उस पाताल लोक में पहुँचाओ जहाँ वे उन अन्य व्यक्तियों के साथ होंगे जो उस नरक में गए।
19 “मिस्र, तुम किसी अन्य से अच्छे नहीं हो। मृत्यु के स्थान पर चले जाओ। जाओ और उन विदेशियों के साथ लेटो।
20 “मिस्र को उन सभी अन्य लोगों के साथ रहने जाना पड़ेगा जो युद्ध में मारे गए थे। शत्रु ने उसे और उसके लोगों को उठा फेंका है।
21 “मजबूत और शक्तिशाली व्यक्ति युद्ध में मारे गए। वे विदेशी मृत्यु के स्थान पर गए। उस स्थान से वे लोग मिस्र और उसके सहायकों से बातें करेंगे। वे जो युद्ध में मारे गये थे।
22-23 “अश्शूर और उसकी सारी सेना वहाँ मृत्यु के स्थान पर हैं। उनकी कब्रें नीचे गहरे नरक में हैं। वे सभी अश्शूर के सैनिक युद्ध में मारे गए। उनकी कब्रे उसकी कब्र के चारों ओर हैं। जब वे जीवित थे तब वे लोगों को भयभीत करते थे। किन्तु अब वे सभी पूर्ण शान्त हैं वे सभी युद्ध में मारे गए थे।
24 “एलाम वहाँ है और इसकी सारी सेना उसकी कब्र के चारों ओर हैं। वे सभी युद्ध में मारे गए। वे विदेशी गहरे नीचे धरती में गए। जब वे जीवित थे, वे लोगों को भयभीत करते थे। किन्तु वे अपनी लज्जा को अपने साथ उस गहरे नरक में ले गए। 25 उन्होंने एलाम और उसके सैनिकों के लिए, जो युद्ध में मारे गए हैं, बिस्तर लगा दिया है। एलाम की सारी सेना उसकी कब्र के चारों ओर हैं। ये सभी विदेशी युद्ध में मारे गए थे। जब वे जीवित थे, वे लोगों को डराते थे। किन्तु वे अपनी लज्जा को अपने साथ उस गहरे नरक में ले गए। वे उन सभी लोगों के साथ रखे गये, जो मारे गए थे।
26 “मेशेक, तूबल और उनकी सारी सेनायें वहाँ है। उनकी कब्रें इनके चारों ओर हैं। वे सभी विदेशी युद्ध में मारे गए थे। जब वे जीवित थे तब वे लोगों को भयभीत करते थे। 27 किन्तु अब वे शक्तिशाली व्यक्तियों के साथ लेटे हैं जो बहुत पहले मर चुके थे। वे अपने युद्ध के अस्त्र—शस्त्रों के साथ दफनाए गए। उनकी तलवारें उनके सिर के नीचे रखी जाएंगी। किन्तु उनके पाप उनकी हड्डियों पर हैं। क्यों क्योंकि जब वे जीवित थे, उन्होंने लोगों को डराया था।
28 “मिस्र, तुम भी नष्ट होगे। तुम उन विदेशियों के साथ लेटोगे। तुम उन अन्य सैनिकों के साथ लेटोगे जो युद्ध में मारे जा चुके हैं।
29 “एदोम भी वहीं है। उससे राजा और अन्य प्रमुख उसके साथ वहाँ हैं। वे शक्तिशाली सैनिक भी थे। किन्तु अब वे उन अन्य लोगों के साथ लेटे हैं। जो युद्ध में मारे गए थे। वे उन विदेशियों के साथ लेटे हैं। वे उन व्यक्तियों के साथ नीचे नरक में चले गए।
30 “उत्तर के सभी शासक वहाँ हैं। वहाँ सीदोन के सभी सैनिक हैं। उनकी शक्ति लोगों को डराती थी। किन्तु वे हक्के—बक्के हैं। वे विदेशी उन अन्य व्यक्तियों के साथ लेटे हैं जो युद्ध में मारे गए थे। वे अपनी लज्जा अपने साथ उस गहरे नरक में ले गए।
31 “फिरौन उन लोगों को देखेगा जो मृत्यु के स्थान पर गए। वह और उसके साथ सभी लोगों को पूर्ण शान्ति मिलेगी। हाँ, फिरौन और उसकी सेना युद्ध में मारी जाएगी।” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा था।
32 “जब फिरौन जीवित था तब मैंने लोगों को उससे भयभीत कराया। किन्तु अब वह उन विदेशियों के साथ लेटेगा। फिरौन और उसकी सेना उन अन्य सैनिकों के साथ लेटेगी जो युद्ध में मारे गए थे।” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा था।
परमेश्वर यहेजकेल को इस्राएल का पहरेदार चुनता है
33यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने कहा, 2 “मनुष्य के पुत्र, अपने लोगों से बातें करो। उनसे कहो, ‘मैं शत्रु के सैनिकों को उस देश के विरुद्ध युद्ध के लिये ला सकता हूँ। जब ऐसा होगा तो लोग एक व्यक्ति को पहरेदार के रूप में चुनेंगे। 3 यदि पहरेदार शत्रु के सैनिकों को आते देखता है, तो वह तुरही बजाता है और लोगों को सावधान करता है। 4 यदि लोग उस चेतावनी को सुनें किन्तु अनसुनी करें तो शत्रु उन्हें पकड़ेगा और उन्हें बन्दी के रूप में ले जायेगा। यह व्यक्ति अपनी मृत्यु के लिये स्वयं उत्तरदायी होगा। 5 उसने तुरही सुनी, पर चेतावनी अनसुनी की। इसलिये अपनी मृत्यु के लिये वह स्वयं दोषी है। यदि उसने चेतावनी पर ध्यान दिया होता तो उसने अपना जीवन बचा लिया होता।
6 “‘किन्तु यह हो सकता है कि पहरेदार शत्रु के सैनिकों को आता देखता है, किन्तु तुरही नहीं बजाता। उस पहरेदार ने लोगों को चेतावनी नहीं दी। शत्रु उन्हें पकड़ेगा और उन्हें बन्दी बनाकर ले जाएगा। वह व्यक्ति ले जाया जाएगा क्योंकि उसने पाप किया। किन्तु पहरेदार भी उस आदमी की मृत्यु का उत्तरदायी होगा।’
7 “अब, मनुष्य के पुत्र, मैं तुमको इस्राएल के परिवार का पहरेदार चुन रहा हूँ। यदि तुम मेरे मुख से कोई सन्देश सुनो तो तुम्हें मेरे लिये लोगों को चेतावनी देनी चाहिए। 8 मैं तुमसे कह सकता हूँ, ‘यह पापी व्यक्ति मरेगा।’ तब तुम्हें उस व्यक्ति के पास जाकर मेरे लिये उसे चेतावनी देनी चाहिए। यदि तुम उस पापी व्यक्ति को चेतावनी नहीं देते और उसे अपना जीवन बदलने को नहीं कहते, तो वह पापी व्यक्ति मरेगा, क्योंकि उसने पाप किया। किन्तु मैं तुम्हें उसकी मृत्यु का उत्तरदायी बनाऊँगा। 9 किन्तु यदि तुम उस बुरे व्यक्ति को अपना जीवन बदलने के लिये और पाप करना छोड़ने के लिये चेतावनी देते हो और यदि वह पाप करना छोड़ने से इन्कार करता है तो वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया, किन्तु तुमने अपना जीवन बचा लिया।”
परमेश्वर लोगों को नष्ट करना नहीं चाहता
10 “अत: मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के परिवार से मेरे लिये कहो। वे लोग कह सकते हैं, ‘हम लोगों ने पाप किया है और नियमों को तोड़ा है। हमारे पाप हमारी सहनशक्ति के बाहर हैं। हम उन पापों के कारण नाश हो रहे हैं। हम जीवित रहने के लिये क्या कर सकते हैं।’
11 “तुम्हें उनसे कहना चाहिए, ‘मेरा स्वामी यहोवा कहता है: मैं अपनी जीवन की शपथ खाकर विश्वास दिलाता हूँ कि मैं लोगों को मरता देख कर आनन्दित नहीं होता, पापी व्यक्तियों को भी नहीं। मैं नहीं चाहता कि वे मरें। मैं उन पापी व्यक्तियों को अपने पास लौटाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि वे अपने जीवन को बदलें जिससे वे जीवित रह सकें। अत: मेरे पास लौटो! बुरे काम करना छोड़ो! इस्राएल के परिवार, तुम्हें मरना ही क्यों चाहिए?’
12 “मनुष्य के पुत्र, अपने लोगों से कहो: ‘यदि किसी व्यक्ति ने अतीत में पुण्य किया है तो उससे उसका जीवन नहीं बचेगा। यदि वह बच जाये और पाप करना शुरु करे। यदि किसी व्यक्ति ने अतीत में पाप किया, तो वह नष्ट नहीं किया जाएगा, यदि वह पाप से दूर हट जाता है। अत: याद रखो, एक व्यक्ति द्वारा अतीत में किये गए पुण्य कर्म उसकी रक्षा नहीं करेंगे, यदि वह पाप करना आरम्भ करता है।’
13 “यह हो सकता है कि मैं किसी अच्छे व्यक्ति के लिये कहूँ कि वह जीवित रहेगा। किन्तु यह हो सकता है कि वह अच्छा व्यक्ति यह सोचना आरम्भ करे कि अतीत में उसके द्वारा किये गए अच्छे कर्म उसकी रक्षा करेंगे। अत: वह बुरे काम करना आरम्भ कर सकता है। किन्तु मैं उसके अतीत के पुण्यों को याद नहीं रखूँगा! नहीं, वह उन पापों के कारण मरेगा जिन्हें वह करना आरम्भ करता है।
14 “या यह हो सकता है कि मैं किसी पापी व्यक्ति के लिये कहूँगा कि वह मरेगा। किन्तु वह अपने जीवन को बदल सकता है। वह पाप करना छोड़ सकता है और ठीक—ठीक रहना आरम्भ कर सकता है। वह अच्छा और उचित हो सकता है। 15 वह उस गिरवीं की चीज़ को लौटा सकता है जिसे उसने ऋण में मुद्रा देते समय रखा था। वह उन चीज़ों के लिये भुगतान कर सकता है जिन्हें उसने चुराया था। वह उन नियमों का पालन कर सकता है जो जीवन देते हैं। वह बुरे काम करना छोड़ देता है। तब वह व्यक्ति निश्चय ही जीवित रहेगा। वह मरेगा नहीं। 16 मैं उसके अतीत के पापों को याद नहीं करूँगा। क्यों क्योंकि वह अब ठीक—ठीक रहता है और उचित व्यवहार रखता है। अत: वह जीवित रहेगा!
17 “किन्तु तुम्हारे लोग कहते हैं, ‘यह उचित नहीं है! यहोवा मेरा स्वामी वैसा नहीं हो सकता!’
“परन्तु वे ही लोग हैं जो उचित नहीं है! वे ही लोग है, जिन्हें बदलना चाहिए! 18 यदि अच्छा व्यक्ति पुण्य करना बन्द कर देता है और पाप करना आरम्भ करता है तो वह अपने पापों के कारण मरेगा। 19 और यदि कोई पापी पाप करना छोड़ देता है और ठीक—ठीक तथा उचित रहना आरम्भ करता है तो वह जीवित रहेगा! 20 किन्तु तुम लोग अब भी कहते हो कि मैं उचित नहीं हूँ। किन्तु मैं सत्य कह रहा हूँ। इस्राएल के परिवार, हर एक व्यक्ति के साथ न्याय, वह जो करता है, उसके अनुसार होगा!”
समीक्षा
5. फिरना
परमेश्वर चाहते हैं कि " सब मनुष्यों का उध्दार हो, और वे सत्य को भली भाँति पहचान लें" (1तीमुथियुस 2:4)।
शब्द "फिरना" या "फिरते हैं" यहेजकेल अध्याय 33 में सात बार दिखाई देता है। परमेश्वर ने यहेजकेल को एक पहरेदार के रूप में नियुक्त किया। वह इसका लेखा-जोखा देने वाला था। परमेश्वर ने उनसे कहा, " तू दुष्ट को उसके मार्ग के विषय में चिताए कि वह अपने मार्ग से फिरे" (यहेजकेल 33:9)।
यदि आप उस संदेश को बताते हैं जो परमेश्वर आपको देते हैं, तो आप परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। यहेजकेल केवल इस बात के लिए उत्तरदायी थे यदि वह चेतावनी नहीं देंगे (वव.8-9)।
यह परिवार, मित्र और उनके विषय में एक महत्वपूर्ण बात है, जिनके विषय में आप जानते हैं कि वे यीशु के अनुयायी नहीं हैं, उदाहरण के लिए, अल्फा में आए मेहमान। आपका उत्तरदायित्व है उनसे प्रेम करना, उन्हें उत्साहित करना और सुसमाचार को सुनने के लिए उन्हें अवसर प्रदान करना। यह बात बहुत ही निराश करती है जब वे सकारात्मक रूप से उत्तर नहीं देते हैं। किंतु, उनके निर्णय का भार अपने कंधो पर मत लीजिए।
यहेजकेल को जो संदेश दिया गया था बताने के लिए, वह यह थाः" जब सत्यनिष्ठ जन अपराध करे तब उसका सत्यनिष्ठ उसे बचा न सकेगा, और दुष्ट की दुष्टता भी जो हो, जब वह उस से फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा" (व.12)।
परमेश्वर कहते हैं, " मैं दुष्ट के मरने से कभी भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इससे कि दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे; हे इस्राएल के घराने, तुम अपने अपने बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्यों मरो:" (व.11, एम.एस.जी)।
परमेश्वर चाहते हैं कि हर कोई अपने पाप से मन फिराये और "एक सत्यनिष्ठ और न्याय वाला जीवन जीना शुरु कर दे –गरीबों और कुचले हुओं के प्रति उदार बने, जो चुराया गया था उसे लौटा दे, अपने चाल - चलन को सुधारते हुए जिससे दूसरों को चोट न पहुँचे..एक न्यायी और सत्यनिष्ठ जीवन जीते हुए" (वव.15-19, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
याकूब 1:27
".... अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें"
किसी ने एक बार मुझे बताया कि हमारे फेफड़ो में से प्रदूषण को निकालने में दो हफ्ते लगते हैं।
हमारे आत्मिक फेफड़ो को शुद्ध रखना और भी महत्वपूर्ण है। इसका यह अर्थ नहीं है कि आप दूषित क्षेत्रों में काम नहीं कर सकते हैं, लेकिन आपको सावधानी बरतनी है कि गंदे न हो जाएँ। हमें बहुत सारी ताजी आत्मिक हवा की आवश्यकता है।
दिन का वचन
याकूब - 1:5
"पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी।"
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संदर्भ
जॉयस मेयर, द एव्रीडे लाईफ बाईबल (फेथवर्डस, 2013) पी.2060
युजन पिटरसन, द मैसेज, "याकूब का परिचय, " (नवप्रेस 1993) पी 1669
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युजन पिटरसन कहते हैः"बुद्धि प्राथमिक रूप से सत्य को जानना नहीं है, यद्यपी निश्चित ही इसमें यह शामिल है; यह जीने का हूनर है।