विश्वास क्या है?
परिचय
मैंने यूनिवर्सिटी में नियम का अध्ययन किया और सालों वकालत की। मैं बहुत से अपराधी मुकदमें में शामिल था जहाँ पर न्यायाधीश ने जूरी से कहा कि उन्हे एक निर्णय पर पहुँचना था – लेकिन उन्होंने तब तक प्रतिवादी को दोषी नहीं पाया जब तक वे 'संतुष्ट नहीं हुए ताकि वे सुनिश्चित महसूस करें।' ऐसा हर निर्णय विश्वास का एक कार्य था। जब अपराध हुआ तब वहाँ पर जूरी नहीं था। उन्हें सबूत पर विश्वास करना पड़ा।
विश्वास और 'सुनिश्चित होना' विरूद्धार्थी नहीं है। इब्रानियों के लेखक कहते हैं, ' अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है' (इब्रानियों 11:1)। सेंट अगस्टाईन ने लिखा, 'परमेश्वर हमसे आशा नहीं करते हैं कि बिना कारण हम अपने विश्वास को उन्हें समर्पित करें, बल्कि हमारे कारण की सीमा विश्वास को आवश्यक बनाती है।'
नीतिवचन 27:15-22
15 झगड़ालू पत्नी होती है
ऐसी जैसी दुर्दिन की निरन्तर वर्षा।
16 रोकना उसको होता है वैसा ही
जैसे कोई रोके पवन को और पकड़े मुट्ठी में तेल को।
17 जैसे धार धरता है लोहे से लोहा,
वैसी ही जन एक दूसरे की सीख से सुधरते हैं।
18 जो कोई अंजीर का पेड़ सिंचता है,
वह उसका फल खाता है। वैसे ही जो निज स्वामी की सेवा करता, वह आदर पा लेता है।
19 जैसे जल मुखड़े को प्रतिबिम्बित करता है,
वैसे ही हृदय मनुष्य को प्रतिबिम्बित करता है।
20 मृत्यु और महानाश कभी तृप्त नहीं होते
और मनुष्य की आँखें भी तृप्त नहीं होती।
21 चाँदी और सोने को भट्टी—कुठाली में परख लिया जाता है।
वैसे ही मनुष्य उस प्रशंसा से परखा जाता है जो वह पाता है।
22 तू किसी मूर्ख को चूने में पीस—चाहे जितना महीन करे
और उसे पीस कर अनाज सा बना देवे उसका चूर्ण किन्तु उसकी मूर्खता को,
कभी भी उससे तू दूर न कर पायेगा।
समीक्षा
विश्वास सच्ची संतुष्टि का रास्ता है
1965 में मिक जैगर ने गीत गाया, 'मैं संतुष्ट हूँ।' 'रोलिंग स्टोन' गीत मानवीय हृदय की चिल्लाहट को दोहराता है;' जैसे अधोलोक और विनाशलोक, वैसे ही मनुष्य की आँखें भी तृप्त नहीं होतीं' (व.20)। संतुष्टि कहाँ मिलती है:
इस लेखांश में प्रायोगिक बुद्धि का खजाना है। यह झगड़ालू होने के विरूद्ध चेतावनी देती है (वव.15-16)। यह बताता है कि कैसे मित्रता हमारी प्रभावशीलता को सुधार सकती हैः ' जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है' (व.17, एन.एल.टी.)।
विश्वास का अर्थ है परमेश्वर की सेवा करना – हमारे स्वामी की सेवा करनाः ' जो अंजीर के पेड़ की रक्षा करता है वह उसका फल खाता है, इसी रीती से जो अपने स्वामी की सेवा करता उसकी महिमा होती है' (व.18)।
लेखक कहते हैं, 'जैसे अधोलोक और विनाशलोक, वैसे ही मनुष्य की आँखें भी तृप्त नहीं होती' (व.20) या, जैसा कि मैसेज इसे बताता है, 'नरक की भूख पेटू होती है, और अभिलाषा कभी खत्म नहीं होती।' सच्ची संतुष्टि यीशु में विश्वास के द्वारा आती है, जिसने कहा, ' मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ' (यूहन्ना 10:10)।
फिर लेखक इस विषय में एक दिलचस्प बात कहते हैं कि हम कैसे प्रशंसा से निपटते हैं:' जैसे चाँदी के लिये कुठाली और सोने के लिये भट्ठी है, वैसे ही मनुष्य के लिये उसकी प्रशंसा है' (नीतिवचन 27:21)।
जब कभी जॉन विम्बर की प्रशंसा होती थी, तब वह कहा करते थे, 'मैं उत्साह को लूंगा लेकिन महिमा को दे दूंगा।' विश्वास का व्यक्ति पहचानता है कि परमेश्वर किसी भी सफलता की मुख्य वजह हैं। उन्होंने हमारा निर्माण किया, और हमें वह उपहार और अवसर दिए जो हमारे रास्ते में आते हैं।
प्रार्थना
इब्रानियों 11:1-16
विश्वास की महिमा
11विश्वास का अर्थ है, जिसकी हम आशा करते हैं, उसके लिए निश्चित होना। और विश्वास का अर्थ है कि हम चाहे किसी वस्तु को देख नहीं रहे हो किन्तु उसके अस्तित्त्व के विषय में निश्चित होना कि वह है। 2 इसी कारण प्राचीन काल के लोगों को परमेश्वर का आदर प्राप्त हुआ था।
3 विश्वास के आधार पर ही हम यह जानते हैं कि परमेश्वर के आदेश से ब्रह्माण्ड की रचना हुई थी। इसलिए जो दृश्य है, वह दृश्य से ही नहीं बना है।
4 हाबिल ने विश्वास के कारण ही परमेश्वर को कैन से उत्तम बलि चढ़ाई थी। विश्वास के कारण ही उसे एक धर्मी पुरुष के रूप में तब सम्मान मिला था जब परमेश्वर ने उसकी भेंटों की प्रशंसा की थी। और विश्वास के कारण ही वह आज भी बोलता है यद्यपि वह मर चुका है।
5 विश्वास के कारण ही हनोक को इस जीवन से ऊपर उठा लिया गया ताकि उसे मृत्यु का अनुभव न हो। परमेश्वर ने क्योंकि उसे दूर हटा दिया था इसलिए वह पाया नहीं गया। क्योंकि उसे उठाए जाने से पहले परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले के रूप में उसे सम्मान मिल चुका था। 6 और विश्वास के बिना तो परमेश्वर को प्रसन्न करना असम्भव है। क्योंकि हर एक वह जो उसके पास आता है, उसके लिए यह आवश्यक है कि वह इस बात का विश्वास करे कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वे जो उसे सच्चाई के साथ खोजते हैं, वह उन्हें उसका प्रतिफल देता है।
7 विश्वास के कारण ही नूह को जब उन बातों की चेतावनी दी गयी जो उसने देखी तक नहीं थी तो उसने पवित्र भयपूर्वक अपने परिवार को बचाने के लिए एक नाव का निर्माण किया था। अपने विश्वास से ही उसने इस संसार को दोषपूर्ण माना और उस धार्मिकता का उत्तराधिकारी बना जो विश्वास से आती है।
8 विश्वास के कारण ही, जब इब्राहीम को ऐसे स्थान पर जाने के लिए बुलाया गया था, जिसे बाद में उत्तराधिकार के रूप में उसे पाना था, यद्यपि वह यह जानता तक नहीं था कि वह कहाँ जा रहा है, फिर भी उसने आज्ञा मानी और वह चला गया। 9 विश्वास के कारण ही जिस धरती को देने का उसे वचन दिया गया था, उस पर उसने एक अनजाने परदेसी के समान अपना घर बनाकर निवास किया। वह तम्बुओं में वैसे ही रहा जैसे इसहाक और याकूब रहे थे जो उसके साथ परमेश्वर की उसी प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे। 10 वह सुदृढ़ आधार वाली उस नगरी की बाट जोह रहा था जिसका शिल्पी और निर्माणकर्ता परमेश्वर है।
11 विश्वास के कारण ही, इब्राहीम जो बूढ़ा हो चुका था और सारा जो स्वयं बाँझ थी, जिसने वचन दिया था, उसे विश्वसनीय समझकर गर्भवती हुई और इब्राहीम को पिता बना दिया। 12 और इस प्रकार इस एक ही व्यक्ति से जो मरियल सा था, आकाश के तारों जितनी असंख्य और सागर-तट के रेत-कणों जितनी अनगिनत संतानें हुई।
13 विश्वास को अपने मन में लिए हुए ये लोग मर गए। जिन वस्तुओं की प्रतिज्ञा दी गयी थी, उन्होंने वे वस्तुएँ नहीं पायीं। उन्होंने बस उन्हें दूर से ही देखा और उनका स्वागत किया तथा उन्होंने यह मान लिया कि वे इस धरती पर परदेसी और अनजाने हैं। 14 वे लोग जो ऐसी बातें कहते हैं, वे यह दिखाते हैं कि वे एक ऐसे देश की खोज में हैं जो उनका अपना है। 15 यदि वे उस देश के विषय में सोचते जिसे वे छोड़ चुके हैं तो उनके फिर से लौटने का अवसर रहता 16 किन्तु उन्हें तो स्वर्ग के एक श्रेष्ठ प्रदेश की उत्कट अभिलाषा है। इसलिए परमेश्वर को उनका परमेश्वर कहलाने में संकोच नहीं होता, क्योंकि उसने तो उनके लिए एक नगर तैयार कर रखा है।
समीक्षा
विश्वास है परमेश्वर में भरोसा
'अस्तित्व का मूलभूत तथ्य है कि परमेश्वर में यह भरोसा, यह विश्वास, हर वस्तु के अंतर्गत दृढ़ नींव है जो जीवन को जीने योग्य बनाती है। यह हमारा तथ्य है जिस पर हम देख नहीं सकते हैं। विश्वास के कार्य ने हमारे प्राचीनों को अलग खड़ा कर दिया, उन्हें भीड़ के ऊपर रख दिया' (वव.1-2, एम.एस.जी)।
यह विश्वास लगाने पर कैसा दिखता है:
1. विश्वास से समझ आती है
'विश्वास ही से हम जान जाते हैं कि सारी सृष्टि की रचना परमेश्वर के वचन के द्वारा हुई है। पर यह नहीं कि जो कुछ देखने में आता है, वह देखी हुई वस्तुओं से बना हो' (व.3)। सेंट अगस्टाईन ने कहा, 'विश्वास समझ के लिए पहला कदम है; समझ विश्वास का प्रतिफल है। इसलिए, समझने का प्रयास मत करो ताकि आप विश्वास करो, बल्कि विश्वास करो ताकि आप समझ सको।'
2. विश्वास परमेश्वर को प्रसन्न करता है
हनोक ने परमेश्वर को प्रसन्न किया। इसके परिणास्वरूप, ' विश्वास ही से हनोक उठा लिया गया कि मृत्यु को न देखे' (व.5, एम.एस.जी)। लेखक आगे समझाते हैं, ' विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है; क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए कि वह है, और वह अपने खोजने वालों को प्रतिफल देते हैं' (व.6, एम.एस.जी)।
3. विश्वास परमेश्वर के साथ घनिष्ठता को लाता है
'विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस सत्यनिष्ठा का वारिस हुआ जो विश्वास से होता है' (व.7, एम.एस.जी)।
4. विश्वास का अर्थ है परमेश्वर को 'हां' कहना
'विश्वास ही से अब्राहम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे उत्तराधिकार मिलने वाला था; और यह न जानता था कि मैं किधर जाता हूँ, तब भी निकल गया' (व.8, एम.एस.जी)। सच्चा विश्वास हमें आज्ञाकारी बनाता है।
अब्राहम उर को छोड़कर चले गए जब यह स्थान बहुत समृद्ध था (2006-1950 बी.सी)। उसने परमेश्वर की बुलाहट को सुना और 'आज्ञा मानी और चला गया' (व.8)। वह नहीं ' जानते थे कि वह कहाँ जा रहे थे' (व.8)। लेकिन वह जानते थे कि वह किसके साथ जा रहे थे। उनके विश्वास से उन्हें, उनके परिवार को, उनके देश और आपको और मुझे आशीष दी।
उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा किया, यहाँ तक कि जब प्रमाण विपरीत दिखाई देते थे। अब्राहम की एक सबसे बड़ी निराशा थी कि उनकी पत्नी को संतान उत्पन्न नहीं होती थी कि उनका वंश जारी रखे (उत्पत्ति 11)। हमने पढ़ा कि अब्राहम का परिवार ' मरा हुआ सा था' (इब्रानियों 11:12)।
अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया (रोमियों 4 देखें)। ऐसा नहीं था कि उन्हें कोई संदेह नहीं था। असल में, वह इंतजार करते करते थक गए और अपनी दासी के साथ प्रेम –संबंध स्थापित किया। धन्यवाद हो, परमेश्वर हमारी चूक, असफलताएं या गड़बड़ी के आधार पर हमारा न्याय नहीं करते हैं। उन्होंने उनके विश्वास को देखा (रोमियो 4:3,18)।
5. विश्वास इस जीवन के परे देखता है
अब्राहम ने एक लंबा दृष्टिकोण रखा। हम एक 'शीघ्र संस्कृति' में रहते हैं। सबकुछ शीघ्र तृप्ति के विषय में है। लंबे समय तक अब्राहम ने इसे खींचा। वह 'पराए देश में परदेशी के समान रहते थे' (व.9)। वह तंबू में रहते थे। तब भी वह जानते थे कि परमेश्वर ने उन्हे कहाँ बुलाया है।
विश्वास के अपने कदम के द्वारा उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा कि पीछे क्या छूट गया है। इसके बजाय, ' वह उस स्थिर नींव वाले नगर की बाट जोहता था, जिसका रचने वाला और बनाने वाला परमेश्वर हैं' (व.10)।
हाबिल के विश्वास ने भी एक अनंत प्रभाव बनायाः' उसी के द्वारा वह मरने पर भी अब तक बातें करता है' (व.4)।
लेखक अंत में कहते हैं:' सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ नहीं पाई, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया... इसीलिये परमेश्वर उनका परमेश्वर कहलाने में उनसे नहीं लजाता, क्योंकि उसने उनके लिये एक नगर तैयार किया है' (वव.13-16, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
यहेजकेल 22:23-23:49
यहेजकेल यरूशलेम के विरुद्ध बोलता है
23 यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने कहा, 24 “मनुष्य के पुत्र, यरूशलेम से बातें करो। उससे कहो कि वह पवित्र नहीं है। मैं उस देश पर क्रोधित हूँ इसलिये उस देश ने अपनी वर्षा नहीं पाई है। 25 यरूशलेम में नबी बुरे कार्यक्रम बना रहे हैं। वे उस सिंह की तरह है जो उस समय गरजता है जब वह अपने पकड़े हुए जानवर को खाता है। उन नबियों ने बहुत से जीवन नष्ट किये हैं। उन्होंने अनेक कीमती चीजें ली हैं। उन्होंने यरूशलेम में अनेक स्त्रियों को विधवा बनाया।
26 “याजकों ने सचमुच मेरे उपदेशों को हानि पहुँचाई है। वे मेरी पवित्र चीजों को ठीक—ठीक नहीं बरतते अर्थात् वे यह प्रकट नहीं करते कि वे महत्वपूर्ण हैं। वे पवित्र चीज़ों को अपवित्र चीज़ों की तरह बरतते हैं। वे शुद्ध चीज़ो को अशुद्ध चीज़ों की तरह बरतते हैं। वे लोगों को इनके विषय में शिक्षा नहीं देते। वे मेरे विशेष विश्राम के दिनों का सम्मान करने से इन्कार करते हैं। वे मुझे इस तरह लेते हैं मानों मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ।
27 “यरूशलेम में प्रमुख उन भेड़िये के समान हैं जो अपने पकड़े जानवर को खा रहा है। वे प्रमुख केवल सम्पन्न बनने के लिये आक्रमण करते हैं और लोगों को मार डालते हैं।
28 “नबी, लोगों को चेतावनी नहीं देते, वे सत्य को ढक देते हैं। वे उन कारीगरों के समान हैं जो दीवार को ठीक—ठीक दृढ़ नहीं बनाते वे केवल छेदों पर लेप कर देते हैं। उनका ध्यान केवल झूठ पर होता है। वे अपने जादू का उपयोग भविष्य जानने के लिये करते हैं, किन्तु वे केवल झूठ बोलते हैं। वे कहते हैं, ‘मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कहीं। किन्तु वे केवल झूठ बोल रहे हैं — यहोवा ने उनसे बातें नहीं की!’
29 “सामान्य जनता एक दूसरे का लाभ उठाते हैं। वे एक दूसरे को धोखा देते और चोरी करते हैं। वे गरीब और असहाय व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। वे विदेशियों को भी धोखा देते थे, मानों उनके विरुद्ध कोई नियम न हो!
30 “मैंने लोगों से कहा कि तुम लोग अपना जीवन बदलो और अपने देशों की रक्षा करो। मैंने लोगों को दीवारों को दृढ़ करने के लिये कहा। मैं चाहता था कि वे दीवारों के छेदों पर खड़े रहें और अपने नगर की रक्षा करें। किन्तु कोई व्यक्ति सहायता के लिये नहीं आया! 31 अत: मैं अपना क्रोध प्रकट करुँगा, मैंउन्हें पूरी तरह नष्ट करूँगा! मैं उन्हें उन बुरे कामों के लिये दण्डित करुँगा जिन्हें उन्होंने किये हैं। यह सब उनका दोष है!” मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कहीं।
23यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने कहा, 2 “मनुष्य के पुत्र, शोमरोन और यरूशलेम के बारें में इस कहानी को सुनो। दो बहनें थीं। वे एक ही माँ की पुत्रियाँ थीं। 3 वे मिस्र में तब वेश्यायें हो गई जब छोटी लड़कियाँ हीं थीं। मिस्र में उन्होंने प्रथम प्रेम किया और लोगों को अपने चुचुक और अपने नवोदित स्तनों को पकड़ने दिया। 4 बड़ी लड़की ओहोला नाम की थी और उसकी बहन का नाम ओहोलीबा था। वे मेरी हो गयीं ओर उनके पुत्र—पुत्रियाँ उत्पन्न हुयीं। (ओहोला वस्तुत: शोमरोन है और ओहोलीबा वस्तुत: यरूशलेम है।)
5 “तब ओहोला मेरे प्रति पतिव्रता नहीं रह गई। वह एक वेश्या की तरह रहने लगी। वह अपने प्रेमियों की चाह रखने लगी। उसने अश्शूर के सैनिकों को उनकी 6 नीली वर्दियों में देखा। वे सभी मन चाहे युवक घुड़सवार थे। वे प्रमुख और अधिकारी थे 7 और ओहोला ने अपने को उन सभी लोगों को अर्पित किया। वे सभी अश्शूर की सेना में विशिष्ट चुने सैनिक थे और उसने सभी को चाहा! वह उनकी गन्दी देवमूर्तियों के साथ गन्दी हो गई। 8 इसके अतिरिक्त उसने मिस्र से अपने प्रेम—व्यापार को भी बन्द नहीं किया। मिस्र ने उससे तब प्रेम किया जब वह किशोरी थी। मिस्र पहला प्रेमी था जिसने उसके नवजात स्तनों का स्पर्श किया। मिस्र ने उस पर अपने झूठे प्रेम की वर्षा की। 9 इसलिये मैंने उसके प्रेमियों को उसे भोगने दिया। वह अश्शूर को चाहती थी, इसलिये मैंने उसे उन्हें दे दिया! 10 उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया। उन्होंने उसके बच्चों को लिया और उन्होंने तलवार चलाई और उसे मार डाला। उन्होंने उसे दण्ड दिया और स्त्रियाँ अब तक उसकी बातें करती हैं।
11 “उसकी छोटी बहन ओहोलीबा ने इन सभी घटनाओं को घटित होते देखा। किन्तु ओहोलीबा ने अपनी बहन से भी अधिक पाप किये! वह ओहोला की तुलना में अधिक धोखेबाज़ थी। 12 यह अश्शूर के प्रमुखों और अधिकारियों को चाहती थी। वह नीली वर्दी में घोड़े पर सवार उन सैनिकों को चाहती थी। वे सभी चाहने योग्य युवक थे। 13 मैंने देखा कि वे दोनों स्त्रियाँ एक ही गलती से अपने जीवन नष्ट करने जा रही थीं।
14 “ओहोलीबा मेरे प्रति धोखेबाज बनी रही। बाबुल में उसने मनुष्यों की तस्वीरों को दीवारों पर खुदे देखा। वे कसदी लोगों की तस्वीरें उनकी लाल पोशाकों में थीं। 15 उन्होंने कमर में पेटियाँ बांध रखी थीं और उनके सिर पर लम्बी पगड़ियाँ थीं। वे सभी रथ के अधिकारियों की तरह दिखते थे। वे सभी बाबुल की जन्मभूमि में उत्पन्न पुरुष ज्ञात होते थे। 16 ओहोलीबा ने उन्हें चाहा। उसने उनको आमंत्रित करने कि लिये दूत भेजे। 17 इसलिये वे बाबुल के लोग उसकी प्रेम—शैया पर उसके साथ शारीरिक सम्बंध करने आये। उन्होंने उसका उपयोग किया और उसे इतना गन्दा कर दिया कि वह उनसे घृणा करने लगी!
18 “ओहोलीबा ने सबको दिखा दिया कि वह धोखेबाज है। उसने इतने अधिक व्यक्तियों को अपने नंगे शरीर का उपभोग करने दिया कि मुझे उससे वैसी ही घृणा हो गई जैसी उसकी बहन के प्रति हो गई थी। 19 ओहोलीबा, बार—बार मुझसे धोखेबाज करती रही और तब उसने अपने उस प्रेम—व्यापार को याद किया जो उसने किशोरावस्था में मिस्र में किया था। 20 उसने अपने प्रेमी के गधे जैसे लिंग और घोड़े के सदृश वीर्य—प्रवाह को याद किया।
21 “ओहोलीबा, तुमने अपने उन दिनों को याद किया जब तुम युवती थीं, जब तुम्हारे प्रेमी तुम्हारे चुचुक को छूते थे और तुम्हारे नवजात स्तनों को पकड़ते थे। 22 अत: ओहोलीबा, मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है: तुम अपने प्रेमियों से घृणा करने लगीं। किन्तु मैं तुम्हारे प्रेमियों को यहाँ लाऊँगा। वे तुम्हें घेर लेंगे। 23 मैं उन सभी लोगों को बाबुल से, विशेषकर कसदी लोगों को, लाऊँगा। मैं पकोद, शो और कोआ से लोगों को लाऊँगा और मैं उन सभी लोगों को अश्शूर से लाऊँगा। इस प्रकार मैं सभी प्रमुखों, और अधिकारियों को लाऊँगा। वे सभी चाहने योग्य, रथपति विशेष योग्यता के लिये चुने घुड़सवार थे। 24 उन लोगों की भीड़ तुम्हारे पास आएगी। वे अपने घोड़ों पर सवार और अपने रथों पर आएंगे। लोग बड़ी संख्या में होंगे। उनके पास उनके भाले, उनकी ढालें और उनके सिर के सुरक्षा कवच होंगे। वे तुम्हारे चारों ओर इकट्ठे होंगे। मैं उन्हें बताऊँगा कि तुमने मेरे साथ क्या किया और वे अपनी तरह से तुम्हें दण्ड देंगे। 25 मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मैं कितना ईष्यालु हूँ। वे बहुत क्रोधित होंगे और तुम्हें चोट पहुँचायेंगे। वे तुम्हारी नाक और तुम्हारे कान काट लेंगे। वे तलवार चलाएंगे और तुम्हें मार डालेंगे। तब वे तुम्हारे बच्चों को ले जाएंगे और तुम्हारा जो कुछ बचा होगा उसे जला देंगे। 26 वे तुम्हारे अच्छे वस्त्र—आभूषण ले लेंगे 27 और मिस्र के साथ हुए तुम्हारे प्रेम—व्यापार के सपने को मैं रोक दूँगा। तुम उनकी प्रतीक्षा कभी नहीं करोगी। तुम फिर कभी मिस्र को याद नहीं करोगी!’”
28 मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है, “मैं तुमको उन लोगों को दे रहा हूँ, जिससे तुम घृणा करती हो। मैं तुमको उन लोगों को दे रहा हूँ जिनसे तुम घृणा करने लगी थी 29 और वे दिखायेंगे कि वे तुमसे कितनी घृणा करते हैं! वे तुम्हारी हर एक चीज़ ले लेंगे जो तुमने कमाई है। वे तुम्हें रिक्त और नंगा छोड़ देंगे! लोग तुम्हारे पापों को स्पष्ट देखेंगे। वे समझेंगे कि तुमने एक वेश्या की तरह व्यवहार किया और बुरे सपने देखे। 30 तुमने वे बुरे काम तब किये जब तुमने मुझे उन अन्य राष्ट्रों का पीछा करने के लिये छोड़ा था। तुमने वे बुरे काम तब किये जब तुमने उनकी गन्दी देवमूर्तियों की पूजा करनी आरम्भ की। 31 तुमने अपनी बहन का अनुसरण किया और उसी की तरह रहीं। तुमने अपने आप विष का प्याला लिया और उसे अपने हाथों मे उठाये रखा। तुमने अपना दण्ड स्वयं कमाया।” 32 मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा,
“तुम अपनी बहन के विष के प्याले को पीओगी।
यह विष का प्याला लम्बा—चौड़ा है।
उस प्याले में बहुत विष (दण्ड) आता है।
लोग तुम पर हँसेंगे और व्यंग्य करेंगे।
33 तुम मदमत व्यक्ति की तरह लड़खड़ाओगी।
तुम बहुत अस्थिर हो जाओगी।
वह प्याला विनाश और विध्वंस का है।
यह उसी प्याले (दण्ड) की तरह है जिसे तुम्हारी बहन ने पीया।
34 तुम उसी प्याले में विष पीओगी।
तुम उसकी अन्तिम बूंद तक उसे पीओगी।
तुम गिलास को फेंकोगी और उसके टुकड़े कर डालोगी
और तुम पीड़ा से अपनी छाती विदीर्ण करोगी।
यह होगा क्योंकि मैं यहोवा और स्वामी हूँ
और मैंने वे बातें कहीं।
35 “इस प्रकार, मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कहीं, ‘यरूशलेम, तुम मुझे भूल गए। तुमने मुझे दूर फेंका और मुझे पीछे छोड़ दिया। इसलिये तुम्हें मुझे छोड़ने और वेश्या की तरह रहने का दण्ड भोगना चाहिए। तुम्हें अपने दुष्ट सपनों के लिये कष्ट अवश्य पाना चाहिए।’”
ओहोला और ओहोलीबा के विरुद्ध निर्णय
36 मेरा स्वामी यहोवा कहता है, “मनुष्य के पुत्र, क्या तुम ओहोला और ओहोलीबा का न्याय करोगे तब उनको उन भयंकर बातों को बताओ जो उन्होंने किये। 37 उन्होंने व्यभिचार का पाप किया है। वे हत्या करने के अपराधी हैं। उन्होंने वेश्या की तरह काम किया, उन्होंने अपनी गन्दी देवमूर्तियों के साथ रहने के लिये मुझको छोड़ा। मेरे बच्चे उनके पास थे, किन्तु उन्होंने उन्हें आग से गुजरने के लिये विवश किया। उन्होंने अपनी गन्दी देवमूर्तियों को भोजन देने के लिये यह किया। 38 उन्होंने मेरे विश्राम के दिनों और पवित्र स्थानों को ऐसे लिया मानों वे महत्वपूर्ण न हों। 39 उन्होंने अपनी देवमूर्तियों के लिये अपने बच्चों को मार डाला और तब वे मेरे पवित्र स्थान पर गए और उसे भी गन्दा बनाया। उन्होंने यह मेरे मन्दिर के भीतर किया!
40 “उन्होंने बहुत दूर के स्थानों से मनुष्यों को बुलाया है। इन व्यक्तियों को तुमने एक दूत भेजा और वे लोग तुम्हें देखने आए। तुम उनके लिये नहाई, अपनी आँखों को सजाया और अपने आभूषणों को पहना। 41 तुम सुन्दर बिस्तर पर बैठी, जिसके सामने मेज रखा था। तुमने मेरी सुगन्ध और मेरे तेल को इस मेज पर रखा।
42 “यरूशलेम में शोर ऐसा सुनाई पड़ता था मानों दावत उड़ाने वाले लोगों का हो। दावत में बहुत लोग आये। लोग जब मरुभूमि से आते थे तो पहले से पी रहे होते थे। वे स्त्रियों को बाजूबन्द और सुन्दर मुकुट देते थे। 43 तब मैंने एक स्त्री से बातें कीं, जो व्यभिचार से शिथिल हो गई थी। मैंने उससे कहा, ‘क्या वे उसके साथ व्यभिचार करते रह सकते हैं, और वह उनके साथ करती रह सकती है’ 44 किन्तु वे उसके पास वैसे ही जाते रहे जैसे वे किसी वेश्या के पास जा रहे हों। हाँ, वे उन दुष्ट स्त्रियाँ ओहोला और ओहोलीबा के पास बार—बार गए।
45 “किन्तु अच्छे लोग उनका न्याय अपराधी के रूप में करेंगे। वे उन स्त्रियों का न्याय व्यभिचार का पाप करने वालियों और हत्यारिनों के रूप में करेंगे। क्यों क्योंकि ओहोला और ओहोलीबा ने व्यभिचार का पाप किया है और उस रक्त से उनके हाथ अब भी रंगे हैं जिन्हें उन्होंने मार डाला था।”
46 मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कही, “लोगों को एक साथ इकट्ठा करो। तब उन लोगों को ओहोला और ओहोलीबा को दण्ड देने दो। लोगों का यह समूह उन दोनों स्त्रियों को दण्डित करेगा तथा इनका मज़ाक उड़ाएगा। 47 तब वह समूह उन्हें पत्थर मारेगा और उन्हें मार डालेगा। तब वह समूह अपनी तलवारों से स्त्रियों के टुकड़े करेगा। वे स्त्रियों के बच्चों को मार डालेंगे और उनके घर जला डालेंगे। 48 इस प्रकार मैं इस देश की लज्जा को धोऊँगा और सभी स्त्रियों को चेतावनी दी जाएगी कि वे वह लज्जाजनक काम न करें जो तुमने किया है। 49 वे तुम्हें उन दुष्ट कामों के लिये दण्डित करेंगे जो तुमने किया और तुम्हें अपनी गन्दी देवमूर्तियों की पूजा के लिये दण्ड मिलेगा। तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा और स्वामी हूँ।”
समीक्षा
विश्वास का अर्थ है वफादार बने रहना
आप क्या करेंगे यदि आप ऐसे एक समाज में रहते हैं जो परमेश्वर से मुंह मोड़ लेता है: आप कैसे वफादार बने रहेंगे जब आपके आस-पास के सभी लोग विश्वासहीन रहते हैं: क्या आप हार मान लेते हैं और उनके साथ शामिल हो जाते हैं: क्या आप उनका न्याय करते और उन पर दोष लगाते हैं: या परमेश्वर के लोगों के लिए कोई दूसरा तरीका है:
परमेश्वर का वचन फिर से यहेजकेल के पास आया। परमेश्वर की चिंता प्रतीकात्मक हैः' देश के साधारण लोग भी अन्धेर करते और पराया धन छीनते हैं, वे दीन दरिद्र को पीसते और न्याय की चिन्ता छोड़कर परदेशी पर अन्धेर करते हैं' (22:29, एम.एस.जी)।
वह वर्णन करते हैं कि यरूशलेम और सामरिया का पाप दो वेश्वाओं के समान हो गया जो 'अधिकाधिक व्यभिचार करती गई' (23:19);' वह मोहित होकर व्यभिचार करने में और भी अधिक बढ़ गई' (वव.11, एम.एस.जी)।
पाप और व्यसन के स्वभाव का अर्थ है कि क्योंकि यह तृप्त नहीं करता है, इसलिए इसे अधिक और अधिक करने लगते हैं। लोग परमेश्वर से प्रेम करने और उनके प्रति वफादार बने रहने के लिए बनाए गए थे। इसके बजाय उन्होंने गलत चीजों की कामना की।
बाईबल में ऐसे चकित करने वाली और स्पष्ट भाषा को देखना चकित कर देता है, लेकिन परमेश्वर इन घृणाजनक चित्रों का इस्तेमाल करते हैं ताकि लोगों को उनके पाप की पूर्ण वास्तविकता समझ में आए और यह कि यह उन्हे कितना दर्द देता है।
परेशानी की जड़ है परमेश्वर के प्रति उनका विश्वासघात। ' तू ने जो मुझे भुला दिया है और अपना मुँह मुझ से मोड़ लिया है, इसलिये तू आप ही अपने महापाप और व्यभिचार का भार उठा, परमेश्वर यहोवा का यही वचन है' (व.35)।
परमेश्वर को भूल जाना विश्वास का विपरीत है। यह भयानक परिणामों को लाता है जिसका वर्णन इस लेखांश में किया गया है।
लेकिन यहेजकेल परमेश्वर के प्रति वफादार बने रहे। वह निरंतर परमेश्वर के संदेश की घोषणा करते हैं। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को खोज रहे थे जो उनके लिए मध्यस्थता करे, और ' देश के निमित्त नाके में सामने ऐसा खड़ा हो' (व.30)। यह परमेश्वर के लोगों के लिए वफादारी का तरीका है।
मैं ऐसे बहुत से लोगों का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे सालो से बताया है कि वे नियमित रूप से हमारे लिए प्रार्थना करते हैं। हमारे चर्च में भी चौबीस घंटे के लिए प्रार्थना का कमरा है, और मैं इस बात से रोमांचित होता हूँ कि कैसे लोग प्रार्थना और मध्यस्थता के लिए उत्तेजित होते हैं।
प्रार्थना सच में एक अंतर पैदा करती है। मध्यस्थता सबसे महत्वपूर्ण चीज है जो आप कर सकते हैं। अपने जीवन में प्रार्थना और मध्यस्थता को ऊँची प्राथमिकता बनाईये।
यौन-संबंध की लालसा, घनिष्ठता के लिए लालसा, केवल परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के द्वारा तृप्त हो सकती है। यहेजकेल का लेखांश असाधारण रूप से समकालीन है आज बहुत से लोगों के साथ जिन्हें किसी प्रकार का यौन व्यसन है। प्रार्थना, विश्वास करना है कि परमेश्वर 'उन्हें प्रतिफल देते हैं जो जुझारू रूप से उन्हें खोजते हैं' (इब्रानियों 11:6), यह उत्तर का एक महत्वपूर्ण भाग है।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
नीतिवचन 27:15
' झड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना, और झगडालू पत्नी दोनों एक से हैं'
यह वचन बहुत कुछ बताता है। वचन याद दिलाता है यदि हम प्रलोभित होते हैं।
दिन का वचन
इब्रानियों 11:1
"अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।"

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संदर्भ
रोलिंग स्टोन्स '(आय काँट गेट नो सॅटिस्फॅक्शन), (डेका रिकॉर्डस, 1965), लिरिक्स बाय केथ रिचर्ड एण्ड मिक जॅगर, पब्लिशड बाय म्युजिक एण्ड रेकॉर्डस इंक.
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