परमेश्वर के निकट कैसे जाएं
परिचय
जितना अधिक मैं इसका अध्ययन करता हूँ उतना अधिक मैं इससे प्रेम करता हूँ। इब्रानियो की पुस्तक यहूदी मसीहों को संबोधित की गई है। यह इस तरह से लिखी गई है जो हमारे आधुनिक कानो को विचित्र लगती है – भाषा पुराने नियम में भिगोई गई है। यह इस महत्वपूर्ण प्रश्न को पूछती हैः आप कैसे परमेश्वर के निकट जा सकते हैं?
लेखक का उत्तर हैः यीशु के द्वारा, हमारे महायाजक। यीशु की याजकीय सेवकाई पत्र की पराकाष्ठा है। यह एकमात्र नये नियम का पत्र है जो यीशु को एक याजक कहते हैं। यीशु का याजकीय कार्य कही और भी बताया गया है, उदाहरण के लिए,यीशु की 'याजकीय प्रार्थना' (यूहन्ना 17) और पिता के साथ वकील के रूप में यीशु के बारे में यूहन्ना का वर्णन (1यूहन्ना 2:1)। लेकिन इब्रानियो की पुस्तक में इस विषय को लिया गया और समझाया गया।
भजन संहिता 119:153-160
रेश्
153 हे यहोवा, मेरी यातना देख और मुझको बचा ले,
मैं तेरे उपदेशों को भूला नहीं हूँ।
154 हे यहोवा, मेरे लिये मेरी लड़ाई लड़ और मेरी रक्षा कर।
मुझको वैसे जीने दे जैसे तूने वचन दिया।
155 दुष्ट विजयी नहीं होंगे।
क्यों क्योंकि वे तेरे विधान पर नहीं चलते हैं।
156 हे यहोवा, तू बहुत दयालु है।
तू वैसा ही कर जिसे तू अच्छा कहे, और मेरा जीवन बनाये रख।
157 मेरे बहुत से शत्रु है जो मुझे हानि पहुँचाने का जतन करते:
किन्तु मैंने तेरी वाचा का अनुसरण नहीं छोड़ा।
158 मैं उन कृतघ्नों को देख रहा हूँ।
हे यहोवा, तेरे वचन का पालन वे नहीं करते। मुझको उनसे घृणा है।
159 देख, तेरे आदेशों का पालन करने का मैं कठिन जतन करता हूँ।
हे यहोवा, तेरे सम्पूर्ण प्रेम से मेरा जीवन बनाये रख।
160 हे यहोवा, सनातन काल से तेरे सभी वचन विश्वास योग्य रहे हैं।
तेरा उत्तम विधान सदा ही अमर रहेगा।
समीक्षा
परमेश्वर के निकट जाईये यह जानते हुए कि वह प्रेमी और करुणामयी हैं
मानवता के लिए परमेश्वर का प्रेम हमेशा महान रहा है। ' हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है' (व.156)। भजनसंहिता के लेखक परमेश्वर के प्रेम को जानते थेः ' हे यहोवा, अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला' (व.159)। वह परमेश्वर को एक छुड़ाने वाले के रूप में जानते थे (व.153)। वह छुटकारा (व.154) और उद्धार (व.155) के बारे में बताते हैं।
वह जानते थे कि परमेश्वर छुड़ायेंगे, और बचायेंगे और इसी कारण वह जानते थे कि वह निर्भीकता के साथ परमेश्वर के निकट जा सकते थे। वह ये नहीं जानते थे कि परमेश्वर कैसे उन्हें बचायेंगे।
जैसे ही हम समस्त पुराने नियम को पढ़ते हैं, इस भजन को मिलाकर, नये नियम के दृष्टिकोण से, हम देख सकते हैं कि भजनसंहिता के लेखक ने जो वर्णन किया था, वह यीशु की याजकीय सेवकाई के द्वारा संभव बनाया गया है।
प्रार्थना
इब्रानियों 4:14-5:10
महान महायाजक यीशु
14 इसलिए क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु एक ऐसा महान् महायाजक है, जो स्वर्गों में से होकर गया है तो हमें अपने अंगीकृत एवं घोषित विश्वास को दृढ़ता के साथ थामे रखना चाहिए। 15 क्योंकि हमारे पास जो महायाजक है, वह ऐसा नहीं है जो हमारी दुर्बलताओं के साथ सहानुभूति न रख सके। उसे हर प्रकार से वैसे ही परखा गया है जैसे हमें फिर भी वह सर्वथा पाप रहित है। 16 तो फिर आओ, हम भरोसे के साथ अनुग्रह पाने परमेश्वर के सिंहासन की ओर बढ़ें ताकि आवश्यकता पड़ने पर हमारी सहायता के लिए हम दया और अनुग्रह को प्राप्त कर सकें।
5प्रत्येक महायाजक मनुष्यों में से ही चुना जाता है। और परमात्मा सम्बन्धी विषयों में लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसकी नियुक्ति की जाती है ताकि वह पापों के लिए भेंट या बलियाँ चढ़ाए। 2 क्योंकि वह स्वयं भी दुर्बलताओं के अधीन है, इसलिए वह ना समझों और भटके हुओं के साथ कोमल व्यवहार कर सकता है। 3 इसलिए उसे अपने पापों के लिए और वैसे ही लोगों के पापों के लिए बलियाँ चढ़ानी पड़ती हैं।
4 इस सम्मान को कोई भी अपने पर नहीं लेता। जब तक कि हारून के समान परमेश्वर की ओर से ठहराया न जाता। 5 इसी प्रकार मसीह ने भी महायाजक बनने की महिमा को स्वयं ग्रहण नहीं किया, बल्कि परमेश्वर ने उससे कहा,
“तू मेरा पुत्र है;
आज मैं तेरा पिता बना हूँ।”
6 और एक अन्य स्थान पर भी वह कहता है,
“तू एक शाश्वत याजक है,
मिलिकिसिदक के जैसा!”
7 यीशु ने इस धरती पर के जीवनकाल में जो उसे मृत्यु से बचा सकता था, ऊँचे स्वर में पुकारते हुए और रोते हुए उससे प्रार्थनाएँ तथा विनतियाँ की थीं और आदरपूर्ण समर्पण के कारण उसकी सुनी गयी। 8 यद्यपि वह उसका पुत्र था फिर भी यातनाएँ झेलते हुए उसने आज्ञा का पालन करना सीखा। 9 और एक बार सम्पूर्ण बन जाने पर उन सब के लिए जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, वह अनन्त छुटकारे का स्रोत बन गया। 10 तथा परमेश्वर के द्वारा मिलिकिसिदक की परम्परा में उसे महायाजक बनाया गया।
समीक्षा
महायाजक यीशु के द्वारा परमेश्वर के निकट जाइए
यह थोड़ा अचंभित करता है कि आप और मैं आत्मविश्वास और निर्भीकता के साथ ब्रह्मांड के निर्माता के निकट जा सकते हैं। निश्चित ही, हमें अवश्य ही आदर करना है लेकिन हमें डरने या घबराने की आवश्यकता नहीं है। यह कैसे संभव है?
जैसे ही लेखक इस पत्र के केंद्रीय विषय का परिचय देते हैं, यीशु की याजकीय सेवकाई, वह बताते हैं कि इस पत्र का मुख्य उद्देश्य है उन्हें उत्साहित करना कि 'उस विश्वास को दृढ़ता से थामे रहे जिसका हमने अंगीकार किया था' (4:14)। यीशु कौन हैं, इसके बारे में और अधिक सीखना, आपको सक्षम बनाता है ताकि आप जीवन के तूफान और प्रलोभन के सामने अपने विश्वास में दृढ़ता से खड़े रहें।
यीशु अद्वितीय हैं। महायाजक 'परमेश्वर का पुत्र' (व.14) और पूरी तरह से मनुष्य हैं। ' क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुःखी न हो सके; वरन् वह सब बातों में हमारे समान परखे तो गए, तब भी निष्पाप निकले' (व.15)।
यीशु के पास वह सारी भावनाएँ थी जो आपके पास हैं। ऐसे समय थे जब उन्होंने गलत चीज को करने जैसा महसूस किया, लेकिन हमेशा सही करना चुना। जैसे ही आप प्रार्थना में उनसे बात करते हैं, आप जान सकते हैं कि वह जानते हैं कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं।
याजक होने के लिए तीन आवश्यक योग्यताएँ थीः
मानवता ('मनुष्यों के बीच में से चुना जाना') इब्रानियो 5:1)
दया ('नम्रता से निपटने में सक्षम होना,' व.2)
दैवीय रीति से नियुक्त किया जाना ('परमेश्वर के द्वारा बुलाया जाना' व.4)
इन सभी तरीकों से, यीशु सच में भूमिका के योग्य हैं।
लेकिन यीशु यहूदा के गोत्र के थे, ना कि लेवीय, और इसलिए वह सामान्य याजकीय सेवकाई के योग्य नहीं थे, जो कि मूसा के भाई हारुन से बनाई गई थी (जो कि एक लेवीय थे)। इसलिए लेखक उनका परिचय याजक के एक नये क्रम के अनुसार देते हैं, पुराने नियम के साथ, मलिकीसेदेक के चरित्र में, जो 'सर्वशक्तिमान' का याजक था और अब्राहम के लिए जिसने सेवकाई की (उत्पत्ति 14:18-20)।
इब्रानियो की पुस्तक दिखाती है कि कैसे मलिकीसेदेक की याजकीय सेवकाई हर तरीके से हारुन से बढ़कर थी (इब्रानियो 7 देखें)। क्योंकि यीशु की याजकीय सेवकाई मलिकीसेदेक की तरह है, यह अनंत है (5:6)। इसलिए यह हर समय के लिए प्रभावी है। यह उनको प्रभावित करती है जो यीशु से पहले जीएँ, साथ ही उन लोगों को भी जो उनके बाद जी रहे हैं।
यीशु हमारे प्रतिनिधी (व.1) हैं वह आदर्श याजक और किसी भी याजक से बढ़कर हैं।
यीशु ने अनुभव प्राप्त किया उन चीजों से जिनसे उन्होंने कष्ट उठाया था (व.9)। परमेश्वर आपके रास्ते में आने वाली हर चीज का इस्तेमाल करते हैं, वह चाहे जितनी भी दर्दनाक हो, ताकि आप अनुभव प्राप्त करें। आप किसी दूसरे के फायदे के लिए अपने दर्द का इस्तेमाल करना सीख सकते हैं।
जॉयस मेयर लिखती हैं कि परमेश्वर 'हमारे भूतकाल की हर चीज का इस्तेमाल करेंगे। चाहे वह कितना भी दर्दनाक था। वह इसे अनुभव समझते हैं...मैं शर्म, आत्मग्लानि, आत्मसम्मान की कमी, आत्मविश्वास की कमी, डर, गुस्सा, कड़वाहट, तरस इत्यादि पर जय पाने में विशेषज्ञ हूँ अपने भूतकाल और दर्द के प्रति सकारात्मक बनें और समझिये कि परमेश्वर के राज्य में इन सभी का इस्तेमाल भलाई के लिए किया जा सकता है।'
हमारी तरह, यीशु ने उन चीजों से अनुभव प्राप्त किया जिनसे उन्होंने कष्ट उठाया था। किंतु, वह निष्पाप थे। इसलिए, उन्हें अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। ' अपने सब आज्ञा मानने वालों के लिये सदा काल के उध्दार का कारण हो गया' (व.9)।
' हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बाँधकर चलें कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे' (व.16)। जैसे ही आप भूतकाल के लिए क्षमा माँगते हैं – आप जान सकते हैं कि आप 'दया' ग्रहण करेंगे। जैसे ही आप भविष्य के लिए मदद को माँगते हैं आप जान सकते हैं कि आप 'सहायता के लिए अनुग्रह' को ग्रहण करेंगे, आपकी जरुरत चाहे जो भी हो और जिस किसी भी स्थिति का आप सामना कर रहे हो।
सिंहासन का चित्र उसके ऐश्वर्य और महिमा को बताने का तरीका है जो इस पर बैठते हैं – परमेश्वर। तब भी यीशु के द्वारा आप प्रार्थना में और आराधना में परमेश्वर के निकट जा सकते हैं, इससे अंतर नहीं पड़ता कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं या आपने क्या किया है।
प्रार्थना
यहेजकेल 1:1-3:27
प्रस्तावना
1मैं बूजी का पुत्र याजक यहेजकेल हूँ। मैं देश निष्कासित था। मैं उस समय बाबुल में कबार नदी पर था जब मेरे लिए स्वर्ग खुला और मैंने परमेश्वर का दर्शन किया। यह तीसवें वर्ष के चौथे महीने जुलाई का पाँचवां दिन था। (राजा यहोयाकीम के देश निष्कासन के पाँचवें वर्ष और महीने के पाँचवें दिन यहेजकेल को यहोवा का सन्देश मिला। उस स्थान पर उसके ऊपर यहोवा की शक्ति आई।)
यहोवा का रथ और उसका सिंहासन
4 मैंने (यहेजकेल) एक धूल भरी आंधी उत्तर से आती देखी। यह एक विशाल बादल था और उसमें से आग चमक रही थी। इसके चारों ओर प्रकाश जगमगा रहा था। यह आग में चमकते तप्त धातु सा दिखता था। 5 बादल के भीतर चार प्राणी थे। वे मनुष्यों की तरह दिखते थे। 6 किन्तु हर एक प्राणी के चार मुख और चार पंख थे। 7 उनके पैर सीधे थे। उनके पैर बछड़े के पैर जैसे दिखते थे और वे झलकाये हुए पीतल की तरह चमकते थे। 8 उनके पंखों के नीचे मानवी हाथ थे। वहाँ चार प्राणी थे और हर एक प्राणी के चार मुख और चार पंख थे। 9 उनके पंख एक दूसरे को छूते थे। जब वे चलते थे, मुड़ते नहीं थे। वे उसी दिशा में चलते थे जिसे देख रहे थे।
10 हर एक प्राणी के चार मुख थे। सामने की ओर उनका चेहरा मनुष्य का था। दायीं ओर सिंह का चेहरा था। बांयी ओर बैल का चेहरा था और पीछे की ओर उकाब का चेहरा था। 11 प्राणियों के पंख उनके ऊपर फैले हुये थे। वे दो पंखों से अपने पास के प्राणी के दो पंखों को स्पर्श किये थे तथा दो को अपने शरीर को ढकने के लिये उपयोग में लिया था। 12 वे प्राणी जब चलते थे तो मुड़ते नहीं थे। वे उसी दिशा में चलते थे जिसे वे देख रहे थे। वे वहीं जाते थे जहाँ आत्मा उन्हें ले जाती थी। 13 हर एक प्राणी इस प्रकार दिखता था।
उन प्राणियों के बीच के स्थान में जलती हुई कोयले की आग सी दिख रही थी। यह आग छोटे—छोटे मशालों की तरह उन प्राणियों के बीच चल रही थी। आग बड़े प्रकाश के साथ चमक रही थी और बिजली की तरह कौंध रही थी! 14 वे प्राणी बिजली की तरह तेजी से पीछे को और आगे को दौड़ते थे!
15-16 जब मैंने प्राणियों को देखा तो चार चक्र देखे! हर एक प्राणी के लिये एक चक्र था। चक्र भूमि को छू रहे थे और एक समान थे। चक्र ऐसे दिख रहे थे मानों पीली शुद्ध मणि के बने हों। वे ऐसे दिखते थे मानों एक चक्र के भीतर दूसरा चक्र हो। 17 वे चक्र किसी भी दिशा में घूम सकते थे। किन्तु वे प्राणी जब चलते थे तो घूम नहीं सकते थे।
18 उन चक्रों के घेरे ऊँचे और डरावने थे! उन चारों चक्रों के घेरे में आँखें ही आँखें थी।
19 चक्र सदा प्राणियों के साथ चलते थे। यदि प्राणी ऊपर हवा में जाते तो चक्र भी उनके साथ जाते। 20 वे वहीं जाते, जहाँ “आत्मा” उन्हें ले जाना चाहती और चक्र उनके साथ जाते थे। क्यों क्योंकि प्राणियों की “आत्मा” (शक्ति) चक्र में थी। 21 इसलिये यदि प्राणी चलते थे तो चक्र भी चलते थे। यदि प्राणी रूक जाते थे तो चक्र भी रूक जाते थे। यदि चक्र हवा में ऊपर जाते तो प्राणी उनके साथ जाते थे। क्यों क्योंकि आत्मा चक्र में थी।
22 प्राणियों के सिर के ऊपर एक आश्चर्यजनक चीज थी। यह एक उल्टे कटोरे की सी थी। कटोरा बर्फ की तरह स्वच्छ था! 23 इस कटोरे के नीचे हर एक प्राणी के सीधे पंख थे जो दूसरे प्राणी तक पहुँच रहे थे। दो पंख उसके शरीर के एक भाग को ढकते थे और अन्य दो दूसरे भाग को।
24 जब कभी वे प्राणी चलते थे, उनके पंख बड़ी तेज ध्वनि करते थे। वह ध्वनि समुद्र के गर्जन जैसी उत्पन्न होती थी। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के समीप से निकलने के वाणी के समान थी। वह किसी सेना के जन—समूह के शोर की तरह थी। जब वे प्राणी चलना बन्द करते थे तो वे अपने पंखो को अपनी बगल में समेट लेते थे।
25 उन प्राणियों ने चलना बन्द किया और अपने पंखों को समेटा और वहाँ फिर भीषण आवाज हुआ। वह आवाज उस कटोरे से हुआ जो उनके सिर के ऊपर था। 26 उस कटोरे के ऊपर वहाँ कुछ था जो एक सिंहासन की तरह दिखता था। यह नीलमणि की तरह नीला था। वहाँ कोई था जो उस सिंहासन पर बैठा एक मनुष्य की तरह दिख रहा था! 27 मैंने उसे उसकी कमर से ऊपर देखा। वह तप्त—धातु कि तरह दिखा। उसके चारों ओर ज्वाला सी फूट रही थी! मैंने उसे उसकी कमर के नीचे देखा। यह आग की तरह दिखा जो उसके चारों ओर जगमगा रही थी। 28 उसके चारों ओर चमकता प्रकाश बादलों में मेघ धनुष सा था। यह यहोवा की महिमा सा दिख रहा था। जैसे ही मैने वह देखा, मैं धरती पर गिर गया। मैंने धरती पर अपना माथा टेका। तब मैंने एक आवाज सम्बोधित करते हुए सुनी।
2उस वाणी ने कहा, “मनुष्य के पुत्र, खड़े हो जाओ और मैं तुमसे वातें करूँगा।”
2 तब आत्मा मुझे मेरे पैरों पर सीधे खड़ा कर दिया और मैंने उस को सुना जो मुझसे बातें कर रहा था। 3 उसने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस्राएल के परिवार से कुछ कहने के लिये भेज रहा हूँ।” वे लोग कई बार मेरे विरूद्ध हुए। उनके पूर्वज भी मेरे विरुद्ध हुए। उन्होंने मेरे विरुद्ध अनेक बार पाप किये और वे आज तक मेरे विरुद्ध अब भी पाप कर रहे हैं। 4 मैं तुम्हें उन लोगों से कुछ कहने के लिये भेज रहा हूँ। किन्तु वे बहुत हठी हैं। वे वड़े कठोर चित्त वाले हैं। किन्तु तुम्हें उन लोगों से बातें करनी हैं। तुम्हें कहना चाहिए, “हमारा स्वामी यहोवा ये बातें बताता है।” 5 किन्तु वे लोग तुम्हारी सुनेंगे नहीं। वे मेरे विरुद्ध पाप करना बन्द नहीं करेंगे। क्यों क्योंकि वे बहुत विद्रोही लोग हैं, वे सदा मेरे विरुद्ध हो जाते हैं! किन्तु तुम्हें वे बातें उनसे कहनी चाहिये जिससे वे समझ सकें कि उनके बीच में कोई नबी रह रहा है।
6 “मनुष्य के पुत्र उन लोगों से डरो नहीं। जो वे कहें उससे डरो मत। यह सत्य है कि वे तुम्हारे विरुद्ध हो जायेंगे और तुमको चोट पहुँचाना चाहेंगे। वे काँटे के समान होंगे। तुम ऐसा सोचोगे कि तुम बिच्छुओं के बीच रह रहे हो। किन्तु वे जो कुछ कहें उनसे डरो नहीं। वे विद्रोही लोग हैं। किन्तु उनसे डरो नहीं। 7 तुम्हें उनसे वे बातें कहनी चाहिए जो मैं कह रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि वे तुम्हारी नहीं सुनेंगे और वे मेरे विरुद्ध पाप करना बन्द नहीं करेंगे! क्यों क्योंकि वे विद्रोही लोग हैं।
8 “मनुष्य के पुत्र, तुम्हें उन बातों को सुनना चाहिये जिन्हें मैं तुमसे कहता हूँ। उन विद्रोही लोगों की तरह मेरे विरुद्ध न जाओ। अपना मुँह खोलो जो बात मैं तुमसे कहता हूँ, स्वीकार करो और उन वचनों को लोगों से कहो। इन वचनों को खा लो।”
9 तब मैंने (यहेजकेल) एक भुजा को अपनी ओर बढ़ते देखा। वह एक गोल किया हुआ लम्बा पत्र जिस पर वचन लिखे थे, पकड़े हुए थे। 10 मैंने उस गोल किये हुए पत्र को खोला और उस पर सामने और पीछे वचन लिखे थे। उसमें सभी प्रकार के करूण गीत, कथायें और चेतावनियाँ थीं।
3परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, जो तुम देखते हो उसे खा जाओ। इस गोल किये पत्र कोखा जाओ और तब जाकर इस्राएल के लोगों से ये बाते कहो।”
2 इसलिये मैंने अपना मुँह खोला और उसने गोल किये पत्र को मेरे मुँह में रखा। 3 तब परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस गोल किये पत्र को दे रहा हूँ। इसे निगल जाओ! इस गोल किये पत्र को अपने शरीर में भर जाने दो।”
इसलिये मैं गोल किये पत्र को खा गया। यह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था।
4 तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के परिवार में जाओ। मेरे कहे हुए वचन उनसे कहो। 5 मैं तुम्हें किन्हीं विदेशियों में नहीं भेज रहा हूँ जिनकी बातें तुम समझ न सको। तुम्हें दूसरी भाषा सीखनी नहीं पड़ेगी। मैं तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। 6 मैं तुम्हें कोई भिन्न देशों में नहीं भेज रहा हूँ जहाँ लोग ऐसी भाषा बोलते हैं कि तुम समझ नहीं सकते। यदि तुम उन लोगों के पास जाओगे और उनसे बातें करोगे तो वे तुम्हारी सुनेंगे। किन्तु तुम्हें उन कठिन भाषाओं को नहीं समझना है। 7 नहीं! मैं तो तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। केवल वे लोग ही कठोर चित्त वाले हैं—वे बहुत ही हठी है और इस्राएल के लोग तुम्हारी सुनने से इन्कार कर देंगे। वे मेरी सुनना नहीं चाहते! 8 किन्तु मैं तुमको उतना ही हठी बनाऊँगा जितने वे हैं। तुम्हारा चित्त ठीक उतना ही कठोर होगा जितना उनका! 9 हीरा अग्नि—चट्टान से भी अधिक कठोर होता है। उसी प्रकार तुम्हारा चित्त उनके चित्त से अधिक कठोर होगा। तुम उनसे अधिक हठी होगे अत: तुम उन लोगों से नहीं डरोगे। तुम उन लोगों से नहीं डरोगे जो सदा मेरे विरुद्ध जाते हैं।”
10 तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, तुम्हें मेरी हर एक बात, जो मैं तुमसे कहता हूँ, सुनना होगा और तुम्हें उन बातों को याद रखना होगा। 11 तब तुम अपने उन सभी लोगों के बीच जाओ जो देश—निष्कासित हैं। उनके पास जाओ और कहो, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है,’ वे मेरी नहीं सुनेंगे और वे पाप करना बन्द नहीं करेंगे। किन्तु तुम्हें ये बातें कहनी हैं।”
12 तब आत्मा ने मुझे ऊपर उठाया। तब मैंने अपने पीछे एक आवाज सुनी। यह बिजली की कड़क की तरह बहुत तेज थी। उसने कहा, “यहोवा की महिमा धन्य है!” 13 तब प्राणियों के पंख हिलने आरम्भ हुए। पंखों ने, जब एक दूसरे को छुआ, तो उन्होंने बड़ी तेज आवाज की और उनके सामने के चक्र बिजली की कड़क की तरह प्रचण्ड घोष करने लगे! 14 आत्मा ने मुझे उठाया और दूर ले गई। मैंने वह स्थान छोड़ा। मैं बहुत दुःखी था और मेरी आत्मा बहुत अशान्त थी किन्तु यहोवा की शक्ति मेरे भीतर बहुत प्रबल थी! 15 मैं इस्राएल के उन लोगों के पास गया जो तेलाबीब में रहने को विवश किये गए थे। ये लोग कबार नदी के सहारे रहते थे। मैंने वहाँ के निवासियों को अभिवादन किया। मैं वहाँ सात दिन ठहरा और उन्हें यहोवा की कही गई बातों को बताया।
16 सात दिन बाद यहोवा का सन्देश मुझे मिला। उसने कहा, 17 “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस्राएल का सन्तरी बना रहा हूँ। मैं उन बुरी घटनाओं को बताऊँगा जो उनके साथ घटित होंगी और तुम्हें इस्राएल को उन घटनाओं के बारे में चेतावनी देनी चाहिए। 18 यदि मैं कहता हूँ, ‘यह बुरा व्यक्ति मरेगा!’ तो तुम्हें यह चेतावनी उने देनी चाहिए! तुम्हें उससे कहना चाहिए कि वह अपनी जिन्दगी बदले और बुरे काम करना बन्द करे। यदि तुम उस व्यक्ति को चेतावनी नहीं दोगे तो वह मर जायेगा। वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया। किन्तु मैं तुमको भी उसकी मृत्यु के लिये उत्तरदायी बनाऊँगा! क्यों क्योंकि तुम उसके पास नहीं गए और उसके जीवन को नहीं बचाया।
19 “यह हो सकता है कि तुम किसी व्यक्ति को चेतावनी दोगे, उसे उसके जीवन को बदलने के लिये समझाओगे और बुरा काम न करने को कहोगे। यदि वह व्यक्ति तुम्हारी अनसुनी करता है तो मर जायेगा। वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया था। किन्तु तुमने उसे चेतावनी दी, अत: तुमने अपना जीवन बचा लिया।
20 “या यह हो सकता है कि कोई अच्छा व्यक्ति अच्छा बने रहना छोड़ दे। मैं उसके सामने कुछ ऐसा लाकर रख दूँ कि वह उसका पतन (पाप) करे। वह बुरे काम करना आरम्भ करेगा। इसलिये वह मरेगा। वह मरेगा, क्योंकि वह पाप कर रहा है और तुमने उसे चेतावनी नहीं दी। मैं तुम्हें उसकी मृत्यु के लिये उत्तरदायी बनाऊँगा, और लोग उसके द्वारा किये गए सभी अच्छे कार्यों को याद नहीं करेंगे।
21 “किन्तु यदि तुम उस अच्छे व्यक्ति को चेतावनी देते हो और उससे पाप करना बन्द करने को कहते हो, और यदि वह पाप करना बन्द कर देता है, तब वह नहीं मरेगा। क्यों क्योंकि तुमने उसे चेतावनी दी और उसने तुम्हारी सुनी। इस प्रकार तुमने अपना जीवन बचाया।”
22 तब यहोवा की शक्ति मेरे ऊपर आई। उसने मुझसे कहा, “उठो, और घाटी में जाओ। मैं तुमसे उस स्थान पर बात करूँगा।”
23 इसलिये मैं खड़ा हुआ और बाहर घाटी में गया। यहोवा की महिमा वहाँ प्रकट हुआ ठीक वैसा ही, जैसा मैंने उसे कबार नदी के सहारे देखा था। इसलिए मैंने धरती पर अपना सिर झुकाया। 24 किन्तु “आत्मा” आयी और उसने मुझे उठाकर मेरे पैरों पर खड़ा कर दिया। उसने मुझसे कहा, “घर जाओ और अपने को अपने घर में ताले की भीतर बंद कर लो। 25 मनुष्य के पुत्र, लोग रस्सी के साथ आएंगे और तुमको बांध देंगे। वे तुमको लोगों के बीच बाहर जाने नहीं देंगे। 26 मैं तुम्हारी जीभ को तुम्हारे तालू से चिपका दूँगा, तुम बात करने योग्य नहीं रहोगे। इसलिये कोई भी व्यक्ति उन लोगों को ऐसा नहीं मिलेगा जो उन्हें शिक्षा दे सके कि वे पाप कर रहे हैं। क्यों क्योंकि वे लोग सदा मेरे विरुद्ध जा रहे हैं। 27 किन्तु मैं तुमसे बातचीत करूँगा तब मैं तुम्हें बोलने दूँगा। किन्तु तुम्हें उनसे कहना चाहिए, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है।’ यदि कोई व्यक्ति सुनना चाहता है तो यह बहुत अच्छा है। यदि कोई व्यक्ति इसे नहीं सुनना चाहता, तो न सुने। किन्तु वे लोग सदा मेरे विरुद्ध जाते रहे।
समीक्षा
निर्भीकता के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जाइए
यह कितनी अद्भुत वस्तु बताई गई है कि हम स्वर्गीय सिंहासन के पास जा सकते हैं -'निर्भीकता के साथ' और भी महान बात है (इब्रानियो 4:16)। भविष्यवक्ता यहेजकेल (जिनके नाम का अर्थ है 'परमेश्वर मजबूत हैं') ने उनके सिंहासन की एक झलक प्राप्त कीः ' जो आकाशमण्डल उनके सिरों के ऊपर था, उसके ऊपर मानों कुछ नीलम का बना हुआ सिंहासन था; इस सिंहासन के ऊपर मनुष्य के समान कोई दिखाई देता था। उसकी कमर से लेकर ऊपर की ओर मुझे मानो झलकाया हुआ पीतल – सा दिखाई पड़ा, और उसके भीतर और चारों ओर आग – सी दिखाई पड़ती थी; फिर उस मनुष्य की कमर से लेकर नीचे की ओर भी मुझे कुछ आग – सी दिखाई पड़ती थी; और उसके चारों ओर प्रकाश था। जैसे वर्षा के दिन बादल में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही चारों ओर का प्रकाश दिखाई देता था ' (यहेजकेल 1:26-28, एम.एस.जी)।
यहेजकेल को परमेश्वर ने बुलाया (593 बी.सी में) 30 वर्ष की उम्र में (व.1)। वह एक याजक थे (व.3)। वह बेबीलोन में एक यहूदी निर्वासित व्यक्ति थे (जबकि यिर्मयाह यरूशलेम में थे)। युवा राजा यहोयाकीन उन्हें बंदी बनाकर ले गए 597 बी.सी में (2राजाओं 24:8-17)। यिर्मयाह की तरह उन्होनें लोगों को मन फिराने के लिए कहा और यरुशलेम को फिर से बसाये जाने की भविष्यवाणी की।
परमेश्वर के एक दर्शन के साथ यहेजकेल की बुलाहट की शुरुवात होती है। दर्शन में वह चार विचित्र पशुओं को देखते हैं (यहेजकेल 1:10)। हर एक परमेश्वर के चरित्र के भाग की गवाही देते हैं।
पहले वाले का चेहरा मनुष्य के समान है, दूसरा एक सिंह, जो सामर्थ और साहस को बताता है, तीसरा एक बैल है जो ऊपजाऊपन को बताता है, और चौथा एक ऊकाब, जो गति को बताता है। एक साथ मिलकर वे परमेश्वर के अद्भुत ऐश्वर्य और महानता को बताते हैं (व.10)।
इस दर्शन में, यहेजकेल को एक मनुष्य की झलक मिलती है –जिन्हें अब हम यीशु के रूप में जानते हैं (प्रकाशितवाक्य 4:1-10)।
अनुग्रह के सिंहासन के दर्शन को देखकर यहेजकेल मुँह के बल गिर जाते हैं (यहेजकेल 1:28)। यह परमेश्वर की उपस्थिति के लिए एक असामान्य उत्तर नहीं था (उदाहरण के लिए, प्रकाशितवाक्य 4:10 देखें)।
परमेश्वर उनसे बाते करते हैं (यहेजकेल 2:1)। पवित्र आत्मा यहेजकेल में प्रवेश करते हैं (व.2)। उन्हें परमेश्वर का वचन दिया गया खाने के लिए (3:1): ' अत: मैं ने उसे खा लिया; और मेरे मुँह में वह मधु के तुल्य मीठी लगी' (व.3ब)। उन्हें जाकर वह संदेश सुनाने के लिए कहा गया जो परमेश्वर ने दिया था।
उन्हें बड़े विरोध का सामना करना था लेकिन उनसे कहा गया,' तू उन से न डरना, और न उनका मुँह देखकर तेरा मन कच्चा हो' (व.9)। यह उनका उत्तरदायित्व नहीं है ' चाहे वे सुनें, या न सुनें' (व.11ब)। यहेजकेल की तरह, आपका उत्तरदायित्व है कि उस संदेश को सुनाये जो परमेश्वर आपको देते हैं।
आप दूसरों के उत्तर के लिए उत्तरदायी नहीं हैं (वव.18-21) लेकिन आप इस बात के लिए उत्तरदायी ठहराये जाएंगे कि आपने परमेश्वर की आज्ञा मानी या नहीं और वह वचन सुनाया या नहीं जो परमेश्वर ने आपको दिया है (वव.18,20)। कभी कभी आप नहीं जानते हैं कि किसी स्थिति में क्या परिणाम आयेगा, लेकिन आप परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं और उनकी आज्ञा मान सकते हैं, चाहे जो हो जाएँ।
बाद में, परमेश्वर की महिमा फिर से यहेजकेल पर प्रकट होती है और वह मुंह के बल गिर जाता है (व.23)। फिर से, आत्मा उनमें प्रवेश करते हैं (व.24)। परमेश्वर वायदा करते हैं,' परन्तु जब जब मैं तुझ से बातें करूँ, तब तब तेरे मुँह को खोलूँगा, और तू उन से ऐसा कहना, ‘प्रभु यहोवा यों कहता है' (व.27)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
इब्रानियो 4:16 एम.एस.जी
' इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बाँधकर चलें कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करें।'
यह निर्भीकता है।
दिन का वचन
इब्रानियो – 4:16
" इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे॥"
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संदर्भ
जॉयस मेयर, द एव्रीडे लाईफ बाईबल
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी', बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
जॉयस मेयर, द एव्रीडे लाईफ बाईबल, 'मैं शर्म, आत्मग्लानि, आत्मसम्मान की कमी, आत्मविश्वास की कमी, डर, गुस्सा, कड़वाहट, तरस इत्यादि पर जय पाने में विशेषज्ञ हूँ अपने भूतकाल और दर्द के प्रति सकारात्मक बने और समझिये कि परमेश्वर के राज्य में इन सभी का इस्तेमाल भलाई के लिए किया जा सकता है।'