दिन 270

परमेश्वर को प्रसन्न करने के सात तरीके

बुद्धि भजन संहिता 113:1-9
नए करार इफिसियों 5:8-33
जूना करार यशायाह 65:17-66:24

परिचय

आप परमेश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। यह अद्भुत है जब आप सच में इसके बारे में सोचते हैं मनुष्य – दिखने में बहुत मामूली, जब हम ब्रह्मांड के आकार और पैमाने को देखते हैं जो परमेश्वर ने सृजा है –उनके पास परमेश्वर को प्रसन्न करने की योग्यता है। परमेश्वर को ’अप्रसन्न“ करना भी संभव है (यशायाह 66:4क)। पौलुस प्रेरित ने लिखा,’पता लगाओ कि परमेश्वर को क्या भाता है“ (इफीसियो 5:10), या जैसा कि मैसेज अनुवाद इसे बताता है,’पता लगाओ कि मसीह को क्या भायेगा, और फिर इसे करो।“

बुद्धि

भजन संहिता 113:1-9

113यहोवा की प्रशंसा करो!
 हे यहोवा के सेवकों यहोवा की स्तुति करो, उसका गुणगान करो!
 यहोवा के नाम की प्रशंसा करो!
2 यहोवा का नाम आज और सदा सदा के लिये और अधिक धन्य हो।
 यह मेरी कामना है।
3 मेरी यह कामना है, यहोवा के नाम का गुण पूरब से जहाँ सूरज उगता है,
 पश्चिम तक उस स्थान में जहाँ सूरज डूबता है गाया जाये।

4 यहोवा सभी राष्ट्रों से महान है।
 उसकी महिमा आकाशों तक उठती है।
5 हमारे परमेश्वर के समान कोई भी व्यक्ति नहीं है।
 परमेश्वर ऊँचे अम्बर में विराजता है।
6 ताकि परमेश्वर अम्बर
 और नीचे धरती को देख पाये।

7 परमेश्वर दीनों को धूल से उठाता है।
 परमेश्वर भिखारियों को कूड़े के घूरे से उठाता है।
8 परमेश्वर उन्हें महत्वपूर्ण बनाता है।
 परमेश्वर उन लोगों को महत्वपूर्ण मुखिया बनाता है।
9 चाहै कोई निपूती बाँझ स्त्री हो, परमेश्वर उसे बच्चे दे देगा
 और उसको प्रसन्न करेगा।

 यहोवा का गुणगान करो!

समीक्षा

1. परमेश्वर की स्तुति करो

स्तुति करना परमेश्वर के लिए उचित प्रतिक्रिया है। परमेश्वर हमारी स्तुति के योग्य हैं। हम अपने बच्चों को धन्यवादित होना सीखाते हैं –हमारे लिए नहीं बल्कि उनके लिए। हम खुश होते हैं जब वे धन्यवाद देते हैं। परमेश्वर हमें उनकी स्तुति करना सीखाते हैं क्योंकि यह उनके प्रति सही उत्तर है, और यह हमारे लिए अच्छा है। धन्यवाद देना, मानवीय उदारता के लिए एक उचित उत्तर है। निरंतर स्तुति परमेश्वर की उदारता के प्रति उचित उत्तर है।

भजनसंहिता के लेखक बार-बार दोहराते हैं कि हमें ’परमेश्वर की स्तुति“ करनी चाहिए (व.1)। सर्वदा उनकी स्तुति करोः’ उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है“ (व.3)। जीवन भर उनकी स्तुति करो,’अब और कल और हमेशा“ (व.2, एम.एस.जी)। पीड़ितो के लिए उनके प्रेम के लिए विशेषत: उनकी स्तुति करोः गरीब, जरुरतमंद और बाँझ (वव.7-9)।

प्रार्थना

हालेलुयाह! परमेश्वर की स्तुति हो...
नए करार

इफिसियों 5:8-33

8 यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि एक समय था जब तुम अंधकार से भरे थे किन्तु अब तुम प्रभु के अनुयायी के रूप में ज्योति से परिपूर्ण हो। इसलिए प्रकाश पुत्रों का सा आचरण करो। 9 हर प्रकार के धार्मिकता, नेकी और सत्य में ज्योति का प्रतिफलन दिखायी देता है। 10 हर समय यह जानने का जतन करते रहो कि परमेश्वर को क्या भाता है। 11 ऐसे काम जो अधंकारपूर्ण है, उन बेकार के कामों में हिस्सा मत बटाओ बल्कि उनका भाँडा-फोड़ करो। 12 क्योंकि ऐसे काम जिन्हें वे गुपचुप करते हैं, उनके बारे में की गयी चर्चा तक लज्जा की बात है। 13 ज्योति जब प्रकाशित होती है तो सब कुछ दृश्यमान हो जाता है 14 और जो कुछ दृश्यमान हो जाता है, वह स्वयं ज्योति ही बन जाता है। इसीलिए हमारा भजन कहता है:

“अरे जाग, हे सोने वाले!
मृतकों में से जी उठ बैठ,
तेरे ही सिर स्वयं मसीह प्रकाशित होगा।”

15 इसलिए सावधानी के साथ देखते रहो कि तुम कैसा जीवन जी रहे हो। विवेकहीन का सा आचरण मत करो, बल्कि बुद्धिमान का सा आचरण करो। 16 जो हर अवसर का अच्छे कर्म करने के लिये पूरा-पूरा उपयोग करते हैं, क्योंकि ये दिन बुरे हैं 17 इसलिए मूर्ख मत बनो बल्कि यह जानो कि प्रभु की इच्छा क्या है। 18 मदिरा पान करके मतवाले मत बने रहो क्योंकि इससे कामुकता पैदा होती है। इसके विपरीत आत्मा से परिपूर्ण हो जाओ। 19 आपस में भजनों, स्तुतियों और आध्यात्मिक गीतों का, परस्पर आदानप्रदान करते रहो। अपने मन में प्रभु के लिए गीत गाते उसकी स्तुति करते रहो। 20 हर किसी बात के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम पर हमारे परमपिता परमेश्वर का सदा धन्यवाद करो।

पत्नी और पति

21 मसीह के प्रति सम्मान के कारण एक दूसरे को समर्पित हो जाओ।

22 हे पत्नियो, अपने-अपने पतियों के प्रति ऐसे समर्पित रहो, जैसे तुम प्रभु को समर्पित होती हो। 23 क्योंकि अपनी पत्नी के ऊपर उसका पति ही प्रमुख है। वैसे ही जैसे हमारी कलीसिया का सिर मसीह है। वह स्वयं ही इस देह का उद्धार करता है। 24 जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियों को सब बातों में अपने अपने पतियों के प्रति समर्पित रहना चाहिए।

25 हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम करो। वैसे ही जैसे मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आपको उसके लिये बलि दे दिया। 26 ताकि वह उसे प्रभु की सेवा में जल में स्नान करा के पवित्र कर हमारी घोषणा के साथ परमेश्वर को अर्पित कर दे। 27 इस प्रकार वह कलीसिया को एक ऐसी चमचमाती दुल्हन के रूप में स्वयं के लिए प्रस्तुत कर सकता है जो निष्कलंक हो, झुरियों से रहित हो या जिसमें ऐसी और कोई कमी न हो। बल्कि वह पवित्र हो और सर्वथा निर्दोष हो।

28 पतियों को अपनी-अपनी पत्नियों से उसी प्रकार प्रेम करना चाहिए जैसे वे स्वयं अपनी देहों से करते हैं। जो अपनी पत्नी से प्रेम करता है, वह स्वयं अपने आप से ही प्रेम करता है। 29 कोई अपनी देह से तो कभी घृणा नहीं करता, बल्कि वह उसे पालता-पोसता है और उसका ध्यान रखता है। वैसे ही जैसे मसीह अपनी कलीसिया का 30 क्योंकि हम भी तो उसकी देह के अंग ही हैं। 31 शास्त्र कहता है: “इसीलिए एक पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से बंध जाता है और दोनों एक देह हो जाते हैं।” 32 यह रहस्यपूर्ण सत्य बहुत महत्वपूर्ण है और मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह मसीह और कलीसिया पर भी लागू होता है। 33 सो कुछ भी हो, तुममें से हर एक को अपनी पत्नी से वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे तुम स्वयं अपने आपको करते हो। और एक पत्नी को भी अपने पति का डर मानते हुए उसका आदर करना चाहिए।

समीक्षा

2. प्रकाश में जीओ (इफीसियो 5:8-14)

मसीहों के रूप में, हम ऐसे एक समुदाय बनने के लिए बुलाए गए हैं जिनका व्यवहार दूसरों के लिए प्रकाश की तरह चमकता है, उस मार्ग को प्रकाशमान करते हुए जिस पर चलने के लिए परमेश्वर ने जीवन दिया है।

पौलुस ने लिखा कि आप ’परमेश्वर में प्रकाश“ हैं (व.8)। इसलिए, आपको ’प्रकाश की संतान“ के रूप में जीना चाहिए (व.8)। प्रकाश अच्छे फल को उत्पन्न करता हैः भलाई (दूसरों के प्रति उदारता), सत्यनिष्ठा (परमेश्वर और मनुष्य के प्रति सही करना) और सच्चाई। इन तरीको से आप परमेश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं (व.10)।

प्रकाश बुराई को दिखा देता है। बुराई से छुटकारा पाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है इसे प्रकाश में ले आना। बुराई अंधकार में फैलती है, लेकिन जब इसे प्रकाश में ला दिया जाता है, तब इसकी सामर्थ खत्म हो जाती है।

परमेश्वर से माँगिये कि आपके हृदय में पवित्र आत्मा के प्रकाश को चमकाएँ। यदि पवित्र आत्मा अंधकार के एक क्षेत्र को दिखाते हैं, तो घोषणा और पश्चाताप के द्वारा इससे निपटिये। जब आप ऐसा करते हैं, तब बुराई की सामर्थ टूट जाएगी।

3. हर अवसर का लाभ लीजिए (इफीसियो 5:15-17)

समय हमारी सबसे मूल्यवान संपत्ति है। आप बहुत सा पैसा पा सकते हैं लेकिन आप बहुत सा समय नहीं पा सकते हैं।

पौलुस ने लिखा,’ इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुध्दियों के समान नहीं पर बुध्दिमानों के समान चलो। अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं“ (वव.15-16)। एक मूर्ख की तरह, अपना जीवन व्यर्थ मत गँवाओ। जीवन छोटा है – वर्तमान समय में जीओ और हर दिन का लाभ लो।

4. आत्मा से भर जाओ (इफीसियो 5:18-20)

पौलुस निंदा करने (’दाखरस से मतवाले बनना, जो व्यभिचार की ओर ले जाता है“) इसकी तुलना पवित्र आत्मा से ’भरने“ के साथ करता है (व.18):’परमेश्वर की आत्मा से पीओ, उनके जल की बड़ी घूंट“ (व.18, एम.एस.जी)। इन वचनो में, वह ’भरना“ का इस्तेमाल वर्तमान काल में करते हैं, हमें चिताते हुए कि निरंतर आत्मा से भरते रहो।

आत्मा से भरे होने से ’भजन, कीर्तन और आत्मिक गीत“ गाया जाता है (व.19)। ’शराब वाले गीतों“ के बजाय (व.19, एम.एस.जी)। इससे हम अपने हृदय में प्रभु यीशु की आराधना करते हैं और परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं – कुड़कड़ाने और शिकायत करने के विपरीत। आत्मा से भरे समुदाय की विशेषता यह है कि वे परमेश्वर के आभारी रहते हैं सारी चीजों में, सारे स्थानों में और सारे समय में। यह आपसी समर्पण लाता है, जैसा कि हम अगले भाग में देखते हैं।

5. प्रेम और सम्मान के साथ एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो (इफीसियो 5:21-33)

जॉन पॉल गेटी, जो कभी पृथ्वी पर सबसे अमीर आदमी थे, जिनका तीन बार विवाह हुआ था, उन्होंने कहा,’एक खुश विवाहित जीवन के लिए मैं अपनी सारी संपत्ति दे दूँगा।“ आपसी सम्मान विवाह में खुशी की पूँजी है। वचन 21-33 में मुख्य शब्द ’आदर,“’प्रेम“ और ’समर्पण“ है। इस भाग का शीर्षक है कि ’मसीह के प्रति आदर के कारण“ (व.21, एम.एस.जी), हमें ’एक दूसरे के प्रति समर्पित रहना है“ (व.21)।

समर्पण के लिए इस्तेमाल किया गया शब्द ’आज्ञापालन“ (6:1) के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द से अलग है। समर्पण है प्रेम में झुकना। यह एक सुंदर विशेषता है और यह इस शीर्षक से स्पष्ट है,’एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो“ (5:21), कि पौलुस आपसी समर्पण की आशा करते हैं। प्रथम शताब्दी संस्कृति में यह शिक्षा एक क्रांतिकारी विचार ठहरती।

सम्मान, दो लोगों के बीच में अच्छे संबंध की पूँजी है। हम लड़ाई में नहीं हैं। जैसा कि पोप बेनडिक्ट इसे बताते हैं,’मसीह में, प्रतिस्पर्धा, शत्रुता और हिंसा पर जय पाया जा सकता है और जय पाया जा चुका है। विवाह में सम्मान ऐसी चीज है जो दूसरे को उठाती है और उन्हें आदर देती है और उनके आत्मविश्वास और महत्व को बढ़ाती है।“

लेखांश का संपूर्ण जोर प्रेम पर है। यद्यपि यह विशेष रूप से पति की ओर दर्शाया गया हे, यह बताना बेतुका सा होगा कि प्रेम आपसी नहीं है। पौलुस कह रहे हैं कि प्रेम और समर्पण दोंनो आपसी हैं। प्रेम निस्वार्थ है; इस तरह से एक पति समर्पण करता है।

इस प्रकार का प्रेम शुद्ध करता है (वव.26-27)। यह हमें पवित्र बनाता है। यह हमें यीशु की तरह बनाता है। यह संवेदनशील है (वव.28-30)। और यह यौन संबंधी एकता के द्वारा विवाह में बंद है (व.31)। यौन संबंधी एकता के विषय में यह नये नियम का संदर्भ है। यह यौन-संबंध और विवाह का सबसे सुंदर और सबसे रोमांचक नजरिया है। जैसा कि रॉबर्ट स्पॅमॅन ने कहा,’विवाह का सार यह है कि दो जीवन, दो संपूर्ण आत्मकथा, इस तरह से एक दूसरे से बंधे होते हैं कि वे एक इतिहास बन जाते हैं।“

इसके अतिरिक्त, ये वचन संग्रह करके रखने योग्य बहुमूल्य मोती है क्योंकि वे आने वाले मेमने के विवाह की दावत और मसीह और उनके चर्च के बीच एकता की परिपूर्णता को बताते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, आज मुझे पवित्र आत्मा से भर दीजिए ताकि मैं इस तरह से चलूं कि आपको प्रसन्न करुँ और हर दिन के हर घंटे का सही इस्तेमाल करूँ। हमारे सभी संबंधों में हमारी सहायता कीजिए कि एक दूसरे के प्रति समर्पित होऊं और एक दूसरे का सम्मान और एक दूसरे से प्रेम करुं और आपको प्रसन्न करुं।
जूना करार

यशायाह 65:17-66:24

एक नया समय आ रहा है

17 “देखो, मैं एक नये स्वर्ग और नयी धरती की रचना करूँगा।
 लोग मेरे लोगों की पिछली बात याद नहीं रखेंगे।
 उनमें से कोई बात याद में नहीं रहेगी।
18 मेरे लोग दु:खी नहीं रहेंगे।
 नहीं, वे आनन्द में रहेंगे और वे सदा खुश रहेंगे।
 मैं जो बातें रचूँगा, वे उनसे प्रसन्न रहेंगे।
 मैं ऐसा यरूशलेम रचूँगा जो आनन्द से परिपूर्ण होगा और
 मैं उनको एक प्रसन्न जाति बनाऊँगा।

19 “फिर मैं यरूशलेम से प्रसन्न रहूँगा।
 मैं अपने लोगों से प्रसन्न रहूँगा और उस नगरी में फिर कभी विलाप और कोई दु:ख नहीं होगा।
20 उस नगरी में कोई बच्चा ऐसा नहीं होगा जो पैदा होने के बाद कुछ ही दिन जियेगा।
 उस नगरी का कोई भी व्यक्ति अपनी अल्प आयु में नहीं मरेगा।
 हर पैदा हुआ बच्चा लम्बी उम्र जियेगा
 और उस नगरी का प्रत्येक बूढ़ा व्यक्ति एक लम्बे समय तक जीता रहेगा।
 वहाँ सौ साल का व्यक्ति भी जवान कहलायेगा।
 किन्तु कोई भी ऐसा व्यक्ति जो सौ साल से पहले मरेगा उसे अभिशप्त कहा जायेगा।

21 “देखो, उस नगरी में यदि कोई व्यक्ति अपना घर बनायेगा तो वह व्यक्ति अपने घर में बसेगा।
 यदि कोई व्यक्ति वहाँ अंगूर का बाग लगायेगा तो वह अपने बाग के अँगूर खायेगा।
22 वहाँ ऐसा नहीं होगा कि कोई अपना घर बनाये और कोई दूसरा उसमें निवास करे।
 ऐसा भी नहीं होगा कि बाग कोई दूसरा लगाये और उस बाग का फल कोई और खाये।
 मेरे लोग इतना जियेंगे जितना ये वृक्ष जीते हैं।
 ऐसे व्यक्ति जिन्हें मैंने चुना है, उन सभी वस्तुओं का आनन्द लेंगे जिन्हें उन्होंने बनाया है।
23 फिर लोग व्यर्थ का परिश्रम नहीं करेंगे।
 लोग ऐसे उन बच्चों को नहीं जन्म देंगे जिनके लिये वे मन में डरेंगे कि वे किसी अचानक विपत्ति का शिकार न हों।
 मेरे सभी लोग यहोवा की आशीष पायेंगे।
 मेरे लोग और उनकी संताने आर्शीवाद पायेंगे।
24 मुझे उन सभी वस्तुओं का पता हो जायेगा जिनकी आवश्यकता उन्हें होगी, इससे पहले की वे उन्हें मुझसे माँगे।
 इससे पहले कि वे मुझ से सहायता की प्रार्थना पूरी कर पायेंगे, मैं उनको मदद दूँगा।
25 भेड़िये और मेमनें एक साथ चरते फिरेंगे।
 सिंह भी मवेशियों के जैसे ही भूसा चरेंगे
 और भुजंगों का भोजन बस मिट्टी ही होगी।
 मेरे पवित्र पर्वत पर कोई किसी को भी हानि नहीं पहुँचायेगा और न ही उन्हें नष्ट करेगा।”
 यह यहोवा ने कहा है।

परमेश्वर सभी जातियों का न्याय करेगा

66यहोवा यह कहता है,
“आकाश मेरा सिंहासन है।
 धरती मेरे पाँव की चौकी बनी है।
 सो क्या तू यह सोचता है कि तू मेरे लिये भवन बना सकता है नहीं, तू नहीं बना सकता।
 क्या तू मुझको विश्रामस्थल दे सकता है नहीं, तू नहीं दे सकता।
2 मैंने स्वयं ही ये सारी वस्तुएँ रची हैं।
 ये सारी वस्तुएँ यहाँ टिकी हैं क्योंकि उन्हें मैंने बनाया है।
 यहोवा ने ये बातें कहीं थी।
 मुझे बता कि मैं कैसे लोगों की चिन्ता किया करता हूँ मुझको दीन हीन लोगों की चिंता है।
 ये ही वे लोग हैं जो बहुत दु:खी रहते हैं।
 ऐसे ही लोगों की मैं चिंता किया करता हूँ जो मेरे वचनो का पालन किया करते हैं।
3 मुझे बलि के रूप में अर्पित करने को कुछ लोग बैल का वध किया करते हैं
 किन्तु वे लोगों से मारपीट भी करते हैं।
 मुझे अर्पित करने को ये भेड़ों को मारते हैं
 किन्तु ये कुत्तों की गर्दन भी तोड़ते हैं
 और सुअरों का लहू ये मुझ पर चढ़ाते हैं।
 ऐसे लोगों को धूप के जलाने की याद बनी रहा करती हैं
 किन्तु वे व्यर्थ की अपनी प्रतिमाओं से प्रेम करते हैं।
 ऐसे ये लोग अपनी मनचीती राहों पर चला करते हैं, मेरी राहों पर नहीं।
 वे पूरी तरह से अपने घिनौने मूर्ति के प्रेम में डूबे हैं।
4 इसलिये मैंने यह निश्चय किया है कि मैं उनकी जूती उन्हीं के सिर करूँगा।
 मेरा यह मतलब है कि मैं उनको दण्ड दूँगा उन वस्तुओं को काम में लाते हुये जिनसे वे बहुत डरते हैं।
 मैंने उन लोगों को पुकारा था किन्तु उन्होंने नहीं सुना।
 मैंने उनसे बोला था
 किन्तु उन्होंने सुना ही नहीं।
 इसलिये अब मैं भी उनके साथ ऐसा ही करूँगा।
 वे लोग उन सभी बुरे कामों को करते रहे हैं जिनको मैंने बुरा बताया था।
 उन्होंने ऐसे काम करने को चुने जो मुझको नहीं भाते थे।”

5 हे लोगों, यहोवा का भय विस्मय मानने वालों
 और यहोवा के आदेशों का अनुसरण करने वालों,
 उन बातों को सुनो।
 यहोवा कहता है, “तुमसे तुम्हारे भाईयों ने घृणा की क्योंकि तुम मेरे पीछे चला करते थे,
 वे तुम्हारे विरूद्ध हो गये।
 तुम्हारे बंधु कहा करते थे: ‘जब यहोवा सम्मानित होगा
 हम तुम्हारे पीछे हो लेंगे।
 फिर तुम्हारे साथ में हम भी खुश हो जायेंगे।’
 ऐसे उन लोगों को दण्ड दिया जायेगा।”

दण्ड और नयी जाति

6 सुनो तो, नगर और मन्दिर से एक ऊँची आवाज़ सुनाई दे रही है। यहोवा द्वारा अपने विरोधियों को, जो दण्ड दिया जा रहा है। वह आवाज उसी की है। यहोवा उन्हें वही दण्ड दे रहा है जो उन्हें मिलना चाहिये।

7-8 “ऐसा तो नहीं हुआ करता कि प्रसव पीड़ा से पहले ही कोई स्त्री बच्चा जनती हो। ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि किसी स्त्री ने किसी पीड़ा का अनुभव करने से पहले ही अपने पुत्र को पैदा हुआ देखा हो। ऐसा कभी नहीं हुआ। इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति ने एक दिन में कोई नया संसार आरम्भ होते हुए नहीं देखा। किसी भी व्यक्ति ने किसी ऐसी नयी जाति का नाम कभी नहीं सुना होगा जो एक ही दिन में आरम्भ हो गयी हो। धरती को बच्चा जनने के दर्द जैसी पीड़ा निश्चय ही पहले सहनी होगी। इस प्रसव पीड़ा के बाद ही वह धरती अपनी संतानों—एक नयी जाति को जन्म देगी। 9 जब मैं किसी स्त्री को बच्चा जनने की पीड़ा देता हूँ तो वह बच्चे को जन्म दे देती है।”

तुम्हारा यहोवा कहता है, “मैं तुम्हें बच्चा जनने की पीड़ा में डालकर तुम्हारा गर्भद्वार बंद नहीं कर देता। मैं तुम्हें इसी तरह इन विपत्तियों में बिना एक नयी जाति प्रदान किये, नहीं डालूँगा।”

10 हे यरूशलेम, प्रसन्न रहो! हे लोगों, यरूशलेम के प्रेमियों, तुम निश्चय ही प्रसन्न रहो!
यरूशलेम के संग दु:ख की बातें घटी थी इसलिये तुममें से कुछ लोग भी दु:खी हैं।
किन्तु अब तुमको चाहिये कि तुम बहुत—बहुत प्रसन्न हो जाओ।
11 क्यों क्योंकि अब तुम को दया ऐसे मिलेगी जैसे
छाती से दूध मिल जाया करता है।
तुम यरूशलेम के वैभव का सच्चा आनन्द पाओगे।
12 यहोवा कहता है, “देखो, मैं तुम्हें शांति दूंगा।
यह शांति तुम तक ऐसे पहुँचेगी जैसे कोई महानदी बहती हुई पहुँच जाती है।
सब धरती के राष्ट्रों की धन—दौलत बहती हुई तुम तक पहुँच जायेगी।
यह धन—दौलत ऐसे बहते हुये आयेगी जैसे कोई बाढ़ की धारा।
तुम नन्हें बच्चों से होवोगे, तुम दूध पीओगे, तुम को उठा लिया जायेगा
और गोद में थाम लिये जायेगा, तुम्हें घुटनों पर उछाला जायेगा।
13 मैं तुमको दुलारूँगा जैसे माँ अपने बच्चे को दुलारती है।
तुम यरूशलेम के भीतर चैन पाओगे।”

14 तुम वे वस्तुएँ देखोगे जिनमें तुम्हें सचमुच रस आता है।
तुम स्वतंत्र हो कर घास से बढ़ोगे।
यहोवा की शक्ति को उसके लोग देखेंगे,
किन्तु यहोवा के शत्रु उसका क्रोध देखेंगे।
15 देखो, अग्नि के साथ यहोवा आ रहा है।
धूल के बादलों के साथ यहोवा की सेनाएँ आ रही हैं।
यहोवा अपने क्रोध से उन व्यक्तियों को दण्ड देगा।
यहोवा जब क्रोधित होगा तो उन व्यक्तियों को दण्ड देने के लिये आग की लपटों का प्रयोग करेगा।
16 यहोवा लोगों का न्याय करेगा और फिर आग और अपनी तलवार से वह अपराधी लोगों को नष्ट कर डालेगा।
यहोवा उन बहुत से लोगों को नष्ट कर देगा।
वह अपनी तलवार से लाशों के अम्बार लगा देगा।

17 यहोवा का कहना है, “वे लोग जो अपने बगीचों को पूजने के लिए स्नान करके पवित्र होते हैं और एक दूसरे के पीछे परिक्रमा करते हैं, वे जो सुअर का माँस खाते हैं और चूहे जैसे घिनौने जीव जन्तुओं को खाते हैं, इन सभी लोगों का नाश होगा।

18 “बुरे विचारों में पड़े हुए वे लोग बुरे काम किया करते हैं। इसलिए उन्हें दण्ड देने को मैं आ रहा हूँ। मैं सभी जातियों और सभी लोगों को इकट्ठा करूँगा। परस्पर एकत्र हुए सभी लोग मेरी शक्ति को देखेंगे। 19 कुछ लोगों पर मैं एक चिन्ह लगा दूँगा, मैं उनकी रक्षा करूँगा। इन रक्षा किये लोगों में से कुछ लोगों को मैं तर्शीश लिव्या और लूदी के लोगों के पास भेजूँगा। (इन देशों के लोग धनुर्धारी हुआ करते हैं।) तुबाल, यूनान और सभी दूर देशों में मैं उन्हें भेजूँगा। दूर देशों के उन लोगों ने मेरे उपदेश कभी नहीं सुने। उन लोगों ने मेरी महिमा का दर्शन भी नहीं किया है। सो वे बचाए गए लोग उन जातियों को मेरी महिमा के बारे में बतायेंगे। 20 वे तुम्हारे सभी भाइयों और बहनों को सभी देशों से यहाँ ले आयेंगे। तुम्हारे भाइयों और बहनों को वे मेरे पवित्र पर्वत पर यरूशलेम में ले आयेंगे। तुम्हारे भाई बहन यहाँ घोड़ों, खच्चरों, ऊँटों, रथों और पालकियों में बैठ कर आयेंगे। तुम्हारे वे भाई—बहन यहाँ उसी प्रकार से उपहार के रूप में लाये जायेंगे जैसे इस्राएल के लोग शुद्ध थालों में रख कर यहोवा के मन्दिर में अपने उपहार लाते हैं। 21 इन लोगों में से कुछ लोगों को मैं याजकों और लेवियों के रूप में चुन लूँगा। ये बातें यहोवा ने बताई थीं।

नये आकाश और नयी धरती

22 “मैं एक नये संसार की रचना करूँगा। ये नये आकाश और नयी धरती सदा—सदा टिके रहेंगे और उसी प्रकार तुम्हारे नाम और तुम्हारे वंशज भी सदा मेरे साथ रहेंगे। 23 हर सब्त के दिन और महीने के पहले दिन वे सभी लोग मेरी उपासना के लिये आया करेंगे।

24 “ये लोग मेरी पवित्र नगरी में होंगे और यदि कभी वे नगर से बाहर जायेंगे, तो उन्हें उन लोगों की लाशें दिखाई देंगी जिन्होंने मेरे विरूद्ध पाप किये हैं। उन लाशों में कीड़े पड़े हुए होंगे और वे कीड़े कभी नहीं मरेंगे। उन देहों को आग जला डालेगी और वह आग कभी समाप्त नहीं होगी।”

समीक्षा

6. दीन बनो (यशायाह 66:2ब)

’ मैं उसी की ओर दृष्टि करूँगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो“ (व.2ब)। ’लेकिन मैं कुछ खोज रहा हूँ एक व्यक्ति जो सरल और सीधा है, जो मैं कहता हूँ सम्मान के साथ उसे उत्तर देता हूँ“ (व.2ब, एम.एस.जी)।

यह परमेश्वर को प्रसन्न करने का दूसरा तरीका है। उनके वचन के नियमित अध्ययन और इसके प्रति समर्पण के द्वारा, परमेश्वर हमें दीन और चालाक बनाए रखते हैं। घमंड से भरना आसान बात है, जब कि हम परमेश्वर और उनके वचन के सामने अपने घुटनों पर जाकर, अपने आपको उनकी सच्चाई के प्रकाश में नहीं देख लेते।

7. ऐसे एक विश्व की बाट जोहे जहाँ पर हर चीज परमेश्वर को प्रसन्न करती हो (शायाह 65:17-66:24)

यशायाह लोगों को उत्साहित करते हैं:’ इसलिये जो मैं उत्पन्न करने पर हूँ, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो“ (65:18)। परमेश्वर वायदा करते हैं कि वह ’नया स्वर्ग और नई पृथ्वी“ बनायेंगे (व.17)।

यह नया स्वर्ग और नई पृथ्वी आखिरकार ऐसा एक स्थान होगी, जहाँ पर हर वस्तु परमेश्वर को प्रसन्न करती है, जहाँ पर वह ’(अपने) लोगों में आनंद मना सकते हैं“ (व.19)। इन अंतिम अध्यायों में, यशायाह एक महिमामयी दर्शन को दिखाते हैं कि यह नई सृष्टि कैसी होगी।

यह लेखांश आने वाले न्याय के विषय में भी चेतावनी देता है, क्योंकि जो कुछ परमेश्वर को अप्रसन्न करता है, वह इस नई सृष्टि से बाहर निकाल दी गई है (66:4ब)।

नई सृष्टि का चित्र, जो यें अध्याय हमें देते हैं, तब आनंद और प्रसन्नता का एक चित्र होगा (65:18-19अ); एक स्थान जहाँ पर कोई कष्ट नहीं और ’ उसमें फिर रोने या चिल्लाने का शब्द न सुनाई पड़ेगा“ (व.19ब, प्रकाशितवाक्य 21:4 भी देखें)।

यशायाह वायदा करते हैं कि हर कोई अपनी पूर्ण संभव्यत: तक पहुँच जाएगा (यशायाह 65:20)। लेकिन नया नियम और भी आगे जाता है, इसमें यीशु अनंत जीवन का वायदा करते हैं। तब दफनाने की विधी, अंत्येष्टि का प्रबंध करने वाले या समाधियों की जरुरत नहीं पड़ेगी। परमेश्वर के लोगो को अमरता दी जाएगी (1कुरिंथियो 15:53)।

यशायाह ऐसे एक समय की बाट जोहते हैं जब सारी गतिविधी एक आशीष होगी (यशायाह 65:21-23अ)। फिर कोई काम व्यर्थ नहीं होगा। फिर कोई परिश्रम या संघर्ष नहीं होगा। इसके बजाय, सृष्टि के ऊपर नियम का सुधार होगा, जो हमें मूल रूप से सौंपा गया था (उत्पत्ति 1:26; प्रकाशितवाक्य 22:5 देखें)।

परमेश्वर के साथ एक नजदीकी संबंध होगा (यशायाह 65:23ब-24), कोई संघर्ष नहीं या उत्तरहीन प्रार्थना नहीं। आपके पास परमेश्वर और यीशु का एक मजबूत दर्शन होगा।

वहाँ पर मेल और शांति होगी (व.25)। सारे संबंध सुधर जाएँगे – पशु जगत भी। हमारे सभी संबंध में एकता और घनिष्ठता होगी। प्रकृति सुधर जाएगी, स्थिरता, सुरक्षा और शांति का एक स्थान बन जाएगी। परमेश्वर का राज्य पूरी तरह से स्थापित होगा। मार्टिन लूथर ने लिखा,’विश्व के सभी आनंद और धन के लिए मैं स्वर्ग के एक क्षण को नहीं छ़ोड़ूंगा, यहाँ तक कि यदि वे हजारों सालो तक भी बने रहे तब भी।“

प्रार्थना

परमेश्वर, होने दीजिए कि नये स्वर्ग और नई पृथ्वी का यह अद्भुत वायदा मुझे मेरी इस इच्छा में प्रेरणा दे कि अब उस मार्ग में जीऊँ जो आपको भाता है।

पिप्पा भी कहते है

इफीसियो 5:15-16

’ इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुध्दियों के समान नहीं पर बुध्दिमानों के समान चलो। अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं।“

क्या मैंने आज हर अवसर का लाभ लिया? मैं नहीं जानती!

दिन का वचन

भजन संहिता 130:3

“हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?“

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संदर्भ

रॉबर्ट स्पेमॅन, पर्सन्स द डिफरेंस बिडविन ’समवन“ एण्ड ’समथिंग“ (ऑक्सफर्ड स्टडिज इन थिओलॉजिकल एथिक्तस,) (ऑक्सफर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, 2007) पी. 227

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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