अंधेरे स्थानों में शांति
परिचय
'मनुष्य, डेअरडेविल क्लिंबर और एडवेंचरर, बिअर ग्रिल से अधिक मजबूत नहीं होते हैं' सन न्यूजपेपर लिखता है। यू.के विशेष सेना बल का एक पूर्वी सदस्य, उनका टी.व्ही रोमांच श्रृंखला मनुष्य बनाम जंगल 180 से अधिक देशों में लगभग 1.2अरब दर्शकों तक पहुँच चुका है।
दूर से साहसिक या अपने आपको चुनौती न देते हुए, जैसे ही मैंने यह आत्मकथा पढ़ी, मनोदशा, पसीना और आँसू, मैं मोहित हो गया, उनके पारदर्शी भौतिक और मानसिक सहनशीलता के द्वारा मैं जकड़ लिया गया और भयभीत हो गया। वह एस.ए.एस में बच गया, पैराशूट से कूदने पर पीठ का हिस्सा टूटना, माऊंट एवेरस्ट पर चढ़ना, फ्रेंच विदेशी सेना और बहुत सी दूसरी असाधारण चुनौतीयों से वह बच निकले।
बिअर की आत्मकथा को पढ़ने के विषय में मुझे एक चीज पसंद है, वह है अपने संघर्ष, आंतरिक और बाहरी दोनों के विषय में वह खुलकर बताते हैं जो कि ताजगी देती है। वह अपनी चिंता, ऊंचाई से डर और कमजोरी के बोध के बारे में बताते हैं। इन सभी के द्वारा उनका मजबूत मसीह विश्वास चमकता है। वह लिखते हैं, 'मसीह में विश्वास मेरे जीवन में महान शशक्त करने वाली उपस्थिति रहा है, इसने मजबूती से चलने में मेरी सहायता की है जब मैं बहुत कमजोर महसूस करता था।' असाधारण चुनौतियों के बीच में, मसीह सशक्त बनाने वाली उपस्थिति है जो हमें शांति देती है।
'सिद्ध शांति' (यशायाह 26:3) मुझे एक सुंदर, शांत ग्रीष्म दिन की याद दिलाता है, जंगल में एक झील के पास बैठना, विश्व की कोई चिंता नहीं और ना कोई प्रलोभन, ना परेशानियाँ और निपटने के लिए कोई कठिनाई नहीं। ऐसी परिस्थितियों में 'सिद्ध शांति' बिल्कुल भी आश्चर्यचकित नहीं करेगी या असाधारण नहीं होगी। हाँ हमने बाईबल में पढ़ा, यह स्पष्ट है कि 'सिद्ध शांति' का यह वायदा परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है। परमेश्वर की शांति आपके पास आती है यहाँ तक कि अंधेरे स्थानों में भी – आपके बहुत ही कठिन संघर्षों और चुनौतियों के बीच में।
भजन संहिता 106:32-39
32 मरीब में लोग भड़क उठे
और उन्होंने मूसा से बुरा काम कराया।
33 उन लोगों ने मूसा को अति व्याकुल किया।
सो मूसा बिना ही विचारे बोल उठा।
34 यहोवा ने लोगों से कहा कि कनान में रह रहे अन्य लोगों को वे नष्ट करें।
किन्तु इस्राएली लोगों ने परमेश्वर की नहीं मानी।
35 इस्राएल के लोग अन्य लोगों से हिल मिल गये,
और वे भी वैसे काम करने लगे जैसे अन्य लोग किया करते थे।
36 वे अन्य लोग परमेश्वर के जनों के लिये फँदा बन गये।
परमेश्वर के लोग उन देवों को पूजने लगेजिनकी वे अन्य लोग पूजा किया करते थे।
37 यहाँ तक कि परमेश्वर के जन अपने ही बालकों की हत्या करने लगे।
और वे उन बच्चों को उन दानवों की प्रतिमा को अर्पित करने लगे।
38 परमेश्वर के लोगों ने अबोध भोले जनों की हत्या की।
उन्होंने अपने ही बच्चों को मार डाला
और उन झूठे देवों को उन्हें अर्पित किया।
39 इस तरह परमेश्वर के जन उन पापों से अशुद्ध हुए जो अन्य लोगों के थे।
वे लोग अपने परमेश्वर के अविश्वासपात्र हुए। और वे लोग वैसे काम करने लगे जैसे अन्य लोग करते थे।
समीक्षा
प्रलोभन
भूतकाल में परमेश्वर के लोगों ने जिन प्रलोभनों का सामना किया, किसी तरह से, उनसे अलग नहीं है जिनका हम आज सामना करते हैं। 'उन्होंने परमेश्वर की आत्मा के विरूद्ध बलवा किया' (व.33), ' वरन् उन्हीं जातियों से हिलमिल गए और उनके व्यवहारों को सीख लिया; और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे, और वे उनके लिये फन्दा बन गई' (वव.35-36)।
हम 'विश्व में रहने' के लिए बुलाए गए हैं, किंतु 'विश्व के बनने के लिए' बुलाए नहीं गए। यह एक कठिन चिंता है। जैसे ही आप उन लोगों के साथ हिलमिल जाते हैं जो आपके विश्वास या जीवनशैली के भागीदार नहीं हैं, तब प्रलोभन आता है कि उनके रीतिरिवाजों को अपनाए और उनकी मूर्तियों की पूजा करें। इक्कीसवीं शताब्दी की मूर्तियों में पैसा, यौन-संबंध, ताकत और सेलिब्रिटी शामिल है। हम पर उनका प्रभाव थोड़ा जटिल है।
हमें उन अच्छे उपहारों का आनंद लेने की आवश्यकता है जो परमेश्वर ने हमें दिए हैं, किसी भी दूसरी वस्तु की धुन लगाए बिना, या जीवित परमेश्वर के अलावा किसी दूसरी चीज की उपासना किए बिना।
डिओनेटस के लिए दूसरी – शताब्दी का पत्र निम्नलिखित तरीके से मसीह जीवनशैली का वर्णन करता हैः
'वे अपने ही देश में रहते हैं, लेकिन केवल परदेसियों की तरह। नागरिकों के रूप में हर वस्तु में वे भागीदार हैं, और परदेसियों की तरह हर चीज को सहते हैं। हर परदेसी भूमि उनके पिता की भूमि है, और तब भी उनके लिए हर पिता की भूमि एक परदेसी भूमि है...यह सच है कि वे 'शरीर में हैं, ' लेकिन 'शरीर के अनुसार' नहीं जीते।
'वे पृथ्वी पर अपने आपको व्यस्त बनाते हैं, लेकिन उनका नागरिकत्व स्वर्ग का है। वे स्थापित नियमों का पालन करते हैं, लेकिन उनके जीवन में वह नियम के परे जीते हैं... वे गरीब हैं तब भी बहुतों को अमीर बनाते हैं...मसीह विश्व में रहते हैं, लेकिन विश्व के नहीं हैं।'
प्रार्थना
2 कुरिन्थियों 11:16-33
पौलुस की यातनाएँ
16 मैं फिर दोहराता हूँ कि मुझे कोई मूर्ख न समझे। किन्तु यदि फिर भी तुम ऐसे समझते हो तो मुझे मूर्ख बनाकर ही स्वीकार करो। ताकि मैं भी कुछ गर्व कर सकूँ। 17 अब यह जो मैं कह रहा हूँ, वह प्रभु के अनुसार नहीं कर रहा हूँ बल्कि एक मूर्ख के रूप में गर्वपूर्ण विश्वास के साथ कह रहा हूँ। 18 क्योंकि बहुत से लोग अपने सांसारिक जीवन पर ही गर्व करते हैं। 19 फिर तो मैं भी गर्व करूँगा। और फिर तुम तो इतने समझदार हो कि मूर्खों की बातें प्रसन्नता के साथ सह लेते हो। 20 क्योंकि यदि कोई तुम्हें दास बनाये, तुम्हारा शोषण करे, तुम्हें किसी जाल में फँसाये, अपने को तुमसे बड़ा बनाये अथवा तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ मारे तो तुम उसे सह लेते हो। 21 मैं लज्जा के साथ कह रहा हूँ, हम बहुत दुर्बल रहे हैं।
यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर गर्व करने का साहस करता है तो वैसा ही साहस मैं भी करूँगा। (मैं मूर्खतापूर्वक कह रहा हूँ) 22 इब्रानी वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। इस्राएली वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। इब्राहीम की संतान वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। 23 क्या वे ही मसीह के सेवक हैं? (एक सनकी की तरह मैं यह कहता हूँ) कि मैं तो उससे भी बड़ा मसीह का दास हूँ। मैंने बहुत कठोर परिश्रम किया है। मैं बार बार जेल गया हूँ। मुझे बार बार पीटा गया है। अनेक अवसरों पर मेरा मौत से सामना हुआ है।
24 पाँच बार मैंने यहूदियों से एक कम चालीस चालीस कोड़े खाये हैं। 25 मैं तीन-तीन बार लाठियों से पीटा गया हूँ। एक बार तो मुझ पर पथराव भी किया गया। तीन बार मेरा जहाज़ डूबा। एक दिन और एक रात मैंने समुद्र के गहरे जल में बिताई। 26 मैंने भयानक नदियों, खूँखार डाकुओं स्वयं अपने लोगों, विधर्मियों, नगरों, ग्रामों, समुद्रों और दिखावटी बन्धुओं के संकटों के बीच अनेक यात्राएँ की हैं।
27 मैंने कड़ा परिश्रम करके थकावट से चूर हो कर जीवन जिया है। अनेक अवसरों पर मैं सो तक नहीं पाया हूँ। भूखा और प्यासा रहा हूँ। प्रायः मुझे खाने तक को नहीं मिल पाया है। बिना कपड़ों के ठण्ड में ठिठुरता रहा हूँ। 28 और अब और अधिक क्या कहूँ? मुझ पर सभी कलीसियाओं की चिंता का भार भी प्रतिदिन बना रहा है। 29 किसकी दुर्बलता मुझे शक्तिहीन नहीं कर देती है और किसके पाप में फँसने से मैं बेचैन नहीं होता हूँ?
30 यदि मुझे बढ़ चढ़कर बातें करनी ही हैं तो मैं उन बातों को करूँगा जो मेरी दुर्बलता की हैं। 31 परमेश्वर और प्रभु यीशु का परमपिता जो सदा ही धन्य है, जानता है कि मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा हूँ। 32 जब मैं दमिश्क में था तो महाराजा अरितास के राज्यपाल ने दमिश्क पर घेरा डाल कर मुझे बंदी कर लेने का जतन किया था। 33 किन्तु मुझे नगर की चार दीवारी की खिड़की से टोकरी में बैठा कर नीचे उतार दिया गया और मैं उसके हाथों से बच निकला।
समीक्षा
जाँच
पौलुस के विरोधी उसी जाल में फँस गए जिसके विरूद्ध भजनसंहिता 106 में चेतावनी दी गई है। उन्होंने अपने आस-पास के विश्व के रीतिरिवाजों को अपनाया और उनकी मूर्तियों की उपासना की। वे 'लोग शरीर के अनुसार घमण्ड करते हैं' (व.18)। वे अपनी उपलब्धियों पर घमंड करते हैं, वे यश, सफलताओं और दिखावटी शब्दाडंबर की संस्कृति में डूब गए हैं।
उनका घमंड करना पौलुस को अलग प्रकार के घमंड में ले जाता है। विश्व की तरह, वे अपनी शक्ति के विषय में घमंड कर रहे थे। पौलुस कहते हैं कि यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं 'अपनी निर्बलता की बातों पर घमण्ड करूँगा' (व.30)।
वह कुछ चीजों की सूची बनाते हैं जिनसे वह गुजरे थे। यह चीजों की सामान्य सूची नहीं है जिनके विषय में बहुत से लोग घमंड करेंगे। इसके बजाय, वे लगभग पूरी तरह से, ऐसी चीजों की सूची है, जिनसे बहुत से लोग बताने में भी लज्जित होंगे, उनका उत्सव मनाना तो दूर की बात है।
उनमें शामिल है बार बार कैद होना; कोड़े खाना; बार बार मृत्यु के जोखिमों में। पाँच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस कोड़े खाए। तीन बार मैं ने बेंतें खाईं; एक बार मुझ पर पथराव किया गया; तीन बार मुझ पर पथराव किया गया; तीन बार जहाज, जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात – दिन मैं ने समुद्र में काटाबार बार जागते रहने में; भूख – प्यास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में' (वव.23-27)। सूची इसकी पराकाष्ठा पर पहुँचती है जो शायद से गिरफ्तारी से भागने जैसी शर्मनाक बात लगे (वव.32-33)।
इन सबके अतिरिक्त, पौलुस उनके कठिन परिश्रम (व.23), उनकी यात्रा (व.26) के बारे में बताते हैं - 'मैंने कठिन परिश्रम किया और अक्सर सो नहीं पाया' (व.27) – सभी चर्च के लिए उनकी चिंता का दैनिक दबाव (व.28) और वह दर्द जो उन्हें होता है जब मसीह पाप करते हैं (व.29)। उनके जीवन में बहुत सारी चिंता, तनाव और चुनौतियाँ थी।
इन सभी चीजों के बावजूद, पौलुस ने अक्सर परमेश्वर की शांति के बारे में बताया है, जिसका उन्होंने अनुभव किया और प्रार्थना की कि दूसरे भी इसका अनुभव करे। परमेश्वर की 'सिद्ध शांति' का अर्थ यह नहीं कि किसी परीक्षा का सामना नहीं करना पड़ेगा। उनकी शांति के बारे में यह असाधारण बात है कि परीक्षाओं के बावजूद इसका वायदा किया गया है। मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कैसे बंदीगृह में, कोड़े खाने में, जहाज के टूट जाने में, नियमित खतरे में और इसके अलावा बहुत सी ऐसी चीजों में सिद्ध शांति का अनुभव कैसे करे। तब भी पौलुस प्रेरित ने इसका अनुभव किया है।
वह लिखते हैं, ' किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति (अर्थात् सिद्ध शांति), जो सारी समझ से परे हैं, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी' (फिलिप्पियों 4:6-7)।
जैसा कि इ.एच. बिकरस्टेथ ने लिखा, 'शांति, सिद्ध शांति, पाप के इस अंधेरे विश्व में? यीशु का लहू हमारे अंदर शांति देता है।'
प्रार्थना
यशायाह 24:1-26:21
परमेश्वर इस्राएल को दण्ड देगा
24देखो! यहोवा इस धरती को नष्ट करेगा। यहोवा भूचालों के द्वारा इस धरती को मरोड़ देगा। यहोवा लोगों को कहीं दूर जाने को विवश करेगा। 2 उस समय, हर किसी के साथ एक जैसी घटनाएँ घटेगी, साधारण मनुष्य और याजक एक जैसे हो जायेंगे। स्वामी और सेवक एक जैसे हो जायेंगे। दासियाँ और उनकी स्वामिनियाँ एक समान हो जायेंगी। मोल लेने वाले और बेचने वाले एक जैसे हो जायेंगे। कर्जा लेने वाले और कर्जा देने वाले लोग एक जैसे हो जायेंगे। धनवान और ऋणी लोग एक जैसे हो जायेंगे। 3 सभी लोगों को वहाँ से धकेल बाहर किया जायेगा। सारी धन—दौलत छीन ली जायेंगी। ऐसा इसलिये घटेगा क्योंकि यहोवा ने ऐसा ही आदेश दिया है। 4 देश उजड़ जायेगा और दु:खी होगा। दुनिया ख़ाली हो जायेगी और वह दुर्बल हो जायेगी। इस धरती के महान नेता शक्तिहीन हो जायेंगे।
5 इस धरती के लोगों ने इस धरती को गंदा कर दिया है। ऐसा कैसा हो गया लोगों ने परमेश्वर की शिक्षा के विरोध में गलत काम किये। (इसलिये ऐसा हुआ) लोगों ने परमेश्वर के नियमों का पालन नहीं किया। बहुत पहले लोगों ने परमेश्वर के साथ एक वाचा की थी। किन्तु परमेश्वर के साथ किये उस वाचा को लोगों ने तोड़ दिया। 6 इस धरती के रहने वाले लोग अपराधी हैं। इसलिये परमेश्वर ने इस धरती को नष्ट करने का निश्चय किया। उन लोगों को दण्ड दिया जायेगा और वहाँ थोड़े से लोग ही बच पायेंगे।
7 अँगूर की बेलें मुरझा रही हैं। नयी दाखमधु की कमी पड़ रही है। पहले लोग प्रसन्न थे। किन्तु अब वे ही लोग दु:खी हैं। 8 लोगों ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करना छोड़ दिया है। प्रसन्नता की सभी ध्वनियाँ रुक गयी हैं। खंजरिओं और वीणाओं का आनन्दपूर्ण संगीत समाप्त हो चुका है। 9 अब लोग जब दाखमधु पीते हैं, तो प्रसन्नता के गीत नहीं गाते। अब जब व्यक्ति दाखमधु पीते है, तब वह उसे कड़वी लगती है।
10 इस नगर का एक अच्छा सा नाम है, “गड़बड़ से भरा”, इस नगर का विनाश किया गया। लोग घरों में नहीं घुस सकते। द्वार बंद हो चुके हैं। 11 गलियों में दुकानों पर लोग अभी भी दाखमधु को पूछते हैं किन्तु समूची प्रसन्नता जा चुकी है। आनन्द तो दूर कर दिया गया है। 12 नगर के लिए बस विनाश ही बच रहा है। द्वार तक चकनाचूर हो चुके हैं।
13 फसल के समय लोग जैतून के पेड़ से जैतून को गिराया करेंगे।
किन्तु केवल कुछ ही जैतून पेड़ों पर बचेंगे।
जैसे अंगूर की फसल उतारने के बाद थोड़े से अंगूर बचे रह जाते हैं।
यह ऐसा ही इस धरती के राष्ट्रों के साथ होगा।
14 बचे हुए लोग चिल्लाने लग जायेंगे।
पश्चिम से लोग यहोवा की महानता की स्तुति करेंगे और वे, प्रसन्न होंगे।
15 वे लोग कहा करेंगे, “पूर्व के लोगों, यहोवा की प्रशंसा करो!
दूर देश के लोगों, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का गुणगान करो।”
16 इस धरती पर हर कहीं हम परमेश्वर के स्तुति गीत सुनेंगे।
इन गीतों में परमेश्वर की स्तुति होगी।
किन्तु मैं कहता हूँ, “मैं बरबाद हो रहा हूँ।
मैं जो कुछ भी देखता हूँ सब कुछ भयंकर है।
गद्दार लोग, लोगों के विरोधी हो रहे हैं,
और उन्हें चोट पहुँचा रहे हैं।”
17 मैं धरती के वासियों पर खतरा आते देखता हूँ।
मैं उनके लिये भय, गके और फँदे देख रहा हूँ।
18 लोग खतरे की सुनकर डर से काँप जायेंगे।
कुछ लोग भाग जायेंगे किन्तु वे गके
और फँदों में जा गिरेंगे और उन गकों से कुछ चढ़कर बच निकल आयेंगे।
किन्तु वे फिर दूसरे फँदों में फँसेंगे।
ऊपर आकाश की छाती फट जायेगी
जैसे बाढ़ के दरवाजे खुल गये हो।
बाढ़े आने लगेंगी और धरती की नींव डगमग हिलने लगेंगी।
19 भूचाल आयेगा
और धरती फटकर खुल जायेगी।
20 संसार के पाप बहुत भारी हैं।
उस भार से दबकर यह धरती गिर जायेगी।
यह धरती किसी झोपड़ी सी काँपेगी
और नशे में धुत्त किसी व्यक्ति की तरह धरती गिर जायेगी।
यह धरती बनी न रहेगी।
21 उस समय यहोवा सबका न्याय करेगा।
उस समय यहोवा आकाश में स्वर्ग की सेनाएँ
और धरती के राजा उस न्याय का विषय होंगे।
22 इन सबको एक साथ एकत्र किया जायेगा।
उनमें से कुछ काल कोठरी में बन्द होंगे
और कुछ कारागार में रहेंगे।
किन्तु अन्त में बहुत समय के बाद इन सबका न्याय होगा।
23 यरूशलेम में सिय्योन के पहाड़ पर यहोवा राजा के रूप में राज्य करेगा।
अग्रजों के सामने उसकी महिमा होगी।
उसकी महिमा इतनी भव्य होगी कि चाँद घबरा जायेगा,
सूरज लज्जित होगा।
परमेश्वर का एक स्तुति—गीत
25हे यहोवा, तू मेरा परमेश्वर है।
मैं तेरे नाम की स्तुति करता हूँ
और मैं तुझे सम्मान देता हूँ।
तूने अनेक अद्भुत कार्य किये हैं।
जो भी शब्द तूने बहुत पहले कहे थे वे पूरी तरह से सत्य हैं।
हर बात वैसी ही घटी जैसे तूने बतायी थी।
2 तूने नगर को नष्ट किया।
वह नगर सुदृढ़ प्राचीरों से संरक्षित था।
किन्तु अब वह मात्र पत्थरों का ढेर रह गया।
परदेसियों का महल नष्ट कर दिया गया।
अब उसका फिर से निर्माण नहीं होगा।
3 सामर्थी लोग तेरी महिमा करेंगे।
क्रूर जातियों के नगर तुझसे डरेंगे।
4 यहोवा निर्धन लोगों के लिये जो जरुरतमंद हैं, तू सुरक्षा का स्थान है।
अनेक विपत्तियाँ उनको पराजित करने को आती हैं किन्तु तू उन्हें बचाता है।
तू एक ऐसा भवन है जो उनको तूफानी वर्षा से बचाता है
और तू एक ऐसी हवा है जो उनको गर्मी से बचाती है।
विपत्तियाँ भयानक आँधी और घनघोर वर्षा जैसी आती हैं।
वर्षा दीवारों से टकराती हैं और नीचे बह जाती है किन्तु मकान में जो लोग हैं, उनको हानि नहीं पहुँचती है।
5 नारे लगाते हुए शत्रु ने ललकारा।
घोर शत्रु ने चुनौतियाँ देने को ललकारा।
किन्तु तूने हे परमेश्वर, उनको रोक लिया।
वे नारे ऐसे थे जैसे गर्मी किसी खुश्क जगह पर।
तूने उन क्रूर लोगों के विजय गीत ऐसे रोक दिये थे जैसे सघन मेघों की छाया गर्मी को दूर करती है।
अपने सेवकों के लिए परमेश्वर का भोज
6 उस समय, सर्वशक्तिमान यहोवा इस पर्वत के सभी लोगों के लिये एक भोज देगा। भोज में उत्तम भोजन और दाखमधु होगा। दावत में नर्म और उत्तम माँस होगा।
7 किन्तु अब देखो, एक ऐसा पर्दा है जो सभी जातियों और सभी व्यक्तियों को ढके है। इस पर्दे का नाम है, “मृत्यु।” 8 किन्तु मृत्यु का सदा के लिये अंत कर दिया जायेगा और मेरा स्वामी यहोवा हर आँख का हर आँसू पोंछ देगा। बीते समय में उसके सभी लोग शर्मिन्दा थे। यहोवा उन की लज्जा का इस धरती पर से हरण कर लेगा। यह सब कुछ घटेगा क्योंकि यहोवा ने कहा था, ऐसा हो।
9 उस समय लोग ऐसा कहेंगे,
“देखो यह हमारा परमेश्वर है!
यह वही है जिसकी हम बाट जोह रहे थे।
यह हमको बचाने को आया है।
हम अपने यहोवा की प्रतीक्षा करते रहे।
अत: हम खुशियाँ मनायेंगे और प्रसन्न होंगे कि यहोवा ने हमको बचाया है।”
10 इस पहाड़ पर यहोवा की शक्ति है
मोआब पराजित होगा।
यहोवा शत्रु को ऐसे कुचलेगा जैसे भूसा कुचला जाता है
जो खाद के ढेर में होता है।
11 यहोवा अपने हाथ ऐसे फैलायेगा जैसे कोई तैरता हुआ व्यक्ति फैलाता है।
तब यहोवा उन सभी वस्तुओं को एकत्र करेगा जिन पर लोगों को गर्व है।
यहोवा उन सभी सुन्दर वस्तुओं को बटोर लेगा जिन्हें उन्होंने बनाये थे
और वह उन वस्तुओं को फेंक देगा।
12 यहोवा लोगों की ऊँची दीवारों और सुरक्षा स्थानों को नष्ट कर देगा।
यहोवा उनको धरती की धूल में पटक देगा।
परमेश्वर का एक स्तुति—गीत
26उस समय, यहूदा के लोग यह गीत गायेंगे:
यहोवा हमें मुक्ति देता है।
हमारी एक सुदृढ़ नगरी है।
हमारे नगर का सुदृढ़ परकोटा और सुरक्षा है।
2 उसके द्वारों को खोलो ताकि भले लोग उसमें प्रवेश करें।
वे लोग परमेश्वर के जीवन की खरी राह का पालन करते हैं।
3 हे यहोवा, तू हमें सच्ची शांति प्रदान करता है।
तू उनको शान्ति दिया करता है,
जो तेरे भरोसे हैं और तुझ पर विश्वास रखते हैं।
4 अत: सदैव यहोवा पर विश्वास करो।
क्यों क्योंकि यहोवा याह ही तुम्हारा सदा सर्वदा के लिये शरणस्थल होगा!
5 किन्तु अभिमानी नगर को यहोवा ने झुकाया है
और वहाँ के निवासियों को उसने दण्ड दियाहै।
यहोवा ने उस ऊँचे बसी नगरी को धरती पर गिराया।
उसने इसे धूल में मिलाने गिराया है।
6 तब दीन और नम्र लोग नगरी के खण्डहरों को अपने पैर तले रौंदेंगे।
7 खरापन खरे लोगों के जीने का ढंग है।
खरे लोग उस राह पर चलते हैं जो सीधी और सच्ची होती है।
परमेश्वर, तू उस राह को चलने के लिये सुखद व सरल बनाता है।
8 किन्तु हे परमेश्वर! हम तेरे न्याय के मार्ग की बाट जोह रहे हैं।
हमारा मन तुझे और तेरे नाम को स्मरण करना चाहता है।
9 मेरा मन रात भर तेरे साथ रहना चाहता है और मेरे अन्दर की आत्मा हर नये दिन की प्रात:
में तेरे साथ रहना चाहता है।
जब धरती पर तेरा न्याय आयेगा, लोग खरा जीवन जीना सीख जायेंगे।
10 यदि तुम केवल दुष्ट पर दया दिखाते रहो तो वह कभी भी अच्छे कर्म करना नहीं सीखेगा।
दुष्ट जन चाहे भले लोगों के बीच में रहे लेकिन वह तब भी बुरे कर्म करता रहेगा।
वह दुष्ट कभी भी यहोवा की महानता नहीं देख पायेगा।
11 हे यहोवा तू उन्हें दण्ड देने को तत्पर है किन्तु वे इसे नहीं देखते।
हे यहोवा तू अपने लोगों पर अपना असीम प्रेम दिखाता है जिसे देख दुष्ट जन लज्जित हो रहे हैं।
तेरे शत्रु अपने ही पापों की आग में जलकर भस्म होंगे।
12 हे यहोवा, हमको सफलता तेरे ही कारण मिली है।
सो कृपा करके हमें शान्ति दे।
यहोवा अपने लोगों को नया जीवन देगा
13 हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है
किन्तु पहले हम पर दूसरे देवता राज करते थे।
हम दूसरे स्वामियों से जुड़े हुए थे
किन्तु अब हम यह चाहते हैं कि लोग बस एक ही नाम याद करें वह है तेरा नाम।
14 अब वे पहले स्वामी जीवित नहीं हैं।
वे भूत अब अपनी कब्रों से कभी भी नहीं उठेंगे।
तूने उन्हें नष्ट करने का निश्चय किया था
और तूने उनकी याद तक को मिटा दिया।
15 हे यहोवा, तूने जाति को बढ़ाया।
जाति को बढ़ाकर तूने महिमा पायी।
तूने प्रदेश की सीमाओं को बढ़ाया।
16 हे यहोवा, तुझे लोग दु:ख में याद करते हैं,
और जब तू उनको दण्ड दिया करता है
तब लोग तेरी मूक प्रार्थनाएँ किया करते हैं।
17 हे यहोवा, हम तेरे कारण ऐसे होते हैं
जैसे प्रसव पीड़ा को झेलती स्त्री हो
जो बच्चे को जन्म देते समय रोती—बिलखती और पीड़ा भोगती है।
18 इसी तरह हम भी गर्भवान होकर पीड़ा भोगतेहैं।
हम जन्म देते हैं किन्तु केवल वायु को।
हम संसार को नये लोग नहीं दे पाये।
हम धरती परउद्धार को नहीं ला पाये।
19 यहोवा कहता है,
मरे हुए तेरे लोग फिर से जी जायेंगे!
मेरे लोगों की देह मृत्यु से जी उठेगी।
हे मरे हुए लोगों, हे धूल में मिले हुओं,
उठो और तुम प्रसन्न हो जाओ।
वह ओस जो तुझको घेरे हुए है,
ऐसी है जैसे प्रकाश में चमकती हुई ओस।
धरती उन्हें फिर जन्म देगी जो अभी मरे हुए हैं।
न्याय: पुरस्कार या दण्ड
20 हे मेरे लोगों, तुम अपने कोठरियों में जाओ।
अपने द्वारों को बन्द करो
और थोड़े समय के लिये अपने कमरों में छिप जाओ।
तब तक छिपे रहो जब तक परमेश्वर का क्रोध शांत नहीं होता।
21 यहोवा अपने स्थान को तजेगा
और वह संसार के लोगों के पापों का न्याय करेगा।
उन लोगों के खून को धरती दिखायेगी जिनको मारा गया था।
धरती मरे हुए लोगों को और अधिक ढके नहीं रहेगी।
समीक्षा
भरोसा
यशायाह लिखते हैं, ' जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए हैं (जिसका दिमाग तुझ पर लगा हुआ है, ए.एम.पी), उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है। यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान हैं' (26:3-4)। यह सिद्ध शांति का रहस्य है। परीक्षाओं और प्रलोभनों के बावजूद यह परमेश्वर में भरोसा रखने से आती हैः'हमने उन पर भरोसा किया, और उन्होने हमें बचाया' (25:9)।
जब हम आने वाले कल के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं – परेशानियाँ, चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व जिनका हम सामना करेंगे – तब हम आसानी से चिंतित और व्याकुल हो सकते हैं। तब भी जीवन की सभी परीक्षाओं और चुनौतियों में, परमेश्वर वायदा करते हैं कि वह आपको सिद्ध शांति में रखेंगे, यदि आप अपने विचारों को परमेश्वर की ओर फेरेंगे और अपना दिमाग 'उन पर लगायेंगे', उन पर भरोसा करते हुए।
आज के लेखांश में, यशायाह विश्व के अंत को पहले ही देख लेते हैं। वहाँ पर एक विनाशकारी न्याय होगा (अध्याय 24)। तब भी यह एक विजय का दिन होगा (अध्याय 25)।
यशायाह एक स्वर्गीय दावत को पहले ही देख लेते हैः'सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशों के लोगों के लिये ऐसा भोज तैयार करेंगे जिसमें भाँति भाँति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु होगा; उत्तम से उत्तम चिकना भोजन और बहुत ही निथरा हुआ दाखमधु होगा' (25:6), ' वह मृत्यु का सदा के लिये नाश करेंगे, और प्रभु यहोवा सभी के मुख पर से आँसू पोंछ डालेंगे, और अपनी प्रजा की नामधराई सारी पृथ्वी पर से दूर करेंगे' (व.8)।
यशायाह नये स्वर्ग और नई पृथ्वी की एक झलक को पा लेते हैं जिसके बारे में प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में बताया गया है, जब परमेश्वर 'उनकी आँखो से आँसू पोछेंगे। और इसके बाद मृत्यु नहीं रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहेंगी' (प्रकाशितवाक्य 21:4)।
भविष्यवक्ता आगे कहते हैं, ' तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसने वालो, जागकर जयजयकार करो' (यशायाह 26:19)। विवादास्पद रूप से, बाईबल में यह पहला स्पष्ट उल्लेख है शरीर के पुनरुत्थान के विषय में। यह यीशु के शरीर के पुनरुत्थान के बारे में बताता है, जो कि 'मरे हुओं में से जी उठने वाले पहिलौठे हैं' (कुलुस्सियो 1:18)।
यीशु ने मृत्यु को जीत लिया है और इसके द्वारा मृत्यु के डर और इसके साथ हर दूसरे डर और चिंता को हरा दिया है। यीशु के कारण, आपका भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित है। आपको मृत्यु या किसी दूसरी चीज के विषय में चिंता करने या व्याकुल रहने की आवश्यकता नहीं है। अपने भविष्य के लिए उन पर भरोसा कीजिए, अपने विचारों को उनकी ओर फेरिये और उनके नियमित और सिद्ध शांति का अनुभव करना शुरु कर दीजिए।
परमेश्वर, ' रात के समय मैं जी से तेरी लालसा करता हूँ, मेरा सम्पूर्ण मन यत्न के साथ तुझे ढूँढ़ता है ... आप हमारे लिये शान्ति ठहरांएगे, हमने जो कुछ किया है उसे आपने ही हमारे लिये किया है ... हम केवल आपके ही नाम का गुणानुवाद करेंगे' (यशायाह 26:9,12-13)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
यशायाह 26:3
'जिसका मन आप में धीरज धरे हुए हैं, उनकी आप पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करते हैं, क्योंकि वह आप पर भरोसा रखते हैं।'
ऐसी बहुत सी चीजें है जिनके विषय में मैं चिंता कर सकती हूँ। मैं उन चीजों की सूची बनाऊँगी जो सबसे पहले मेरी दिमाग में आती है, और फिर उन्हें परमेश्वर को दे दूंगी और 'सिद्ध शांति' में गोते लगाने की कोशिश करुँगी।
दिन का वचन
यशायाह 26:3
“जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए हैं,
उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है,
क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है।“
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संदर्भ
बिअर ग्रिल, मनोदशा, पसीना और आँसू (चैनल 4, 2012)।
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
नोट्स 2011
टॉम राइट लिखते है, '( जिन शिक्षकों ने चर्च को प्रभावित किया है ) उन्होंने अपनी सराहना की, वे अपनी उपलब्धियों पर घमंड करते है, वे यश, सफलताओं और दिखावटी शब्दाडंबर की संस्कृति में डूब गए है...पौलुस (अपनी उपलब्धियों) की सूची बनाते है यह चीजों की सामान्य सूची नहीं है जिनके विषय में रोमी विश्व बताने में भी लज्जित होंगे, उनका उत्सव मनाना तो दूर की बात है। (टॉम राइट, सभी के लिए पौलुस 2कुरिंथियो, पेज 127-128)।