कोई लापरवाह जीवन नहीं
परिचय
मुझे खेल-कूद पसंद है। मैं विशेष रूप से इसमें अच्छा नहीं रहा हूँ, लेकिन मैं इसका बहुत आनंद लेता हूँ। जिनके साथ मैं स्क्वॉश खेलता हूँ, उनमें से कोई भी उच्चतम स्तर तक नहीं खेलते हैं; यह सब बहुत ही मित्रतापूर्ण और आरामदायक है और फिर भी, हम सभी बहुत प्रतिस्पर्धात्मक होते हैं! यहाँ तक कि जिस स्तर पर हम खेलते हैं उसमें “कठिन प्रशिक्षण” की आवश्यकता है। मुझे नियमित रूप से प्रशिक्षण और खेलने की आवश्यकता है। यही कारण है कि मैं सावधान रहने की कोशिश करता हूँ कि मैं क्या खाता हूँ और मैं कितना सोता हूँ।
पौलुस प्रेरित लिखते हैं,” क्या तुम नहीं जानते कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो को जीतो। हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम रखता है; वे तो एक मुरझाने वाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं जो मुरझाने का नहीं” (1कुरिंथियो 9:24-25, एम.एस.जी)।
यदि खेल जगत में स्पर्धा करने वाले कठोर प्रशिक्षण से गुजरते हैं ताकि कुछ उपलब्धि प्राप्त कर लें जो “लंबे समय तक बनी नहीं रहेगी”, तो हमें हमारे नैतिक और आत्मिक जीवन में कितना अधिक “कठोर प्रशिक्षण” से गुजरने की आवश्यकता है, ताकि “वह मुकुट पाएं जो सर्वदा बना रहता है” (व.25)।
पौलुस लिखते हैं,” इसलिये मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूँ, परन्तु लक्ष्यहीन नहीं; मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूँ, परन्तु उस के समान नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है” (व.26, एम.एस.जी)। परमेश्वर की आराधना करना और सेवा करना, पौलुस के जीवन का लक्ष्य और अभिलाषा है। वह अपनी सर्वश्रेष्ठ योग्यता के साथ इसे करना चाहते हैं। वह इसे सबकुछ दे देना चाहते हैं जो उनके पास है। वह सोना जीतने के लिए जा रहे हैं।
आराधना और सेवा बहुत ही करीबी रूप से जुड़े हुए हैं (दोनों के लिए ग्रीक शब्द लेट्रेयो का इस्तेमाल किया गया है)। सभी मनुष्य आराधक हैं। आप या तो एकमात्र सच्चे परमेश्वर की आराधना करते हैं, या किसी व्यक्ति या किसी वस्तु की। सभी मनुष्य सेवक हैं – परमेश्वर के लिए, अपने आपके लिए या किसी व्यक्ति या किसी वस्तु के लिए।
आज के लेखांश में, हम एकमात्र परमेश्वर की आराधना और सेवा की महत्ता को देखते हैं, हमारे पूरे हृदय से और अस्तित्व से –वह सब देना जो हमारे पास है – कोई लापरवाह जीवन नहीं।
भजन संहिता 97:1-12
97यहोवा शासनकरता है, और धरती प्रसन्न हैं।
और सभी दूर के देश प्रसन्न हैं
2 यहोवा को काले गहरे बादल घेरे हुए हैं।
नेकी और न्याय उसके राज्य को दूढ़ किये हैं।
3 यहोवा के सामने आग चला करती है,
और वह उसके बैरियों का नाश करती है।
4 उसकी बिजली गगन में काँधा करती है।
लोग उसे देखते हैं और भयभीत रहते हैं।
5 यहोवा के सामने पहाड़ ऐसे पिघल जाते हैं, जैसे मोम पिघल जाती है।
वे धरती के स्वामी के सामने पिघल जाते हैं।
6 अम्बर उसकी नेकी का बखान करते हैं।
हर कोई परमेश्वर की महिमा देख ले।
7 लोग उनकी मूर्तियों की पूजा करते हैं।
वे अपने “देवताओं” की डींग हाँकते हैं।
लेकिन वे लोग लज्जित होंगे।
उनके “देवता” यहोवा के सामने झुकेंगे और उपासना करेंगे।
8 हे सिय्योन, सुन और प्रसन्न हो!
यहूदा के नगरों, प्रसन्न हो!
क्यों? क्योंकि यहोवा विवेकपूर्ण न्याय करता है।
9 हे सर्वोच्च यहोवा, सचमुच तू ही धरती पर शासन करता हैं।
तू दूसरे “देवताओं” से अधिक उत्तम है।
10 जो लोग यहोवा से प्रेम रखते हैं, वे पाप से घृणा करते हैं।
इसलिए परमेश्वर अपने अनुयायियों की रक्षा करता है। परमेश्वर अपने अनुयायियों को दुष्ट लोगों से बचाता है।
11 ज्योति और आनन्द
सज्जनों पर चमकते हैं।
12 हे सज्जनों परमेश्वर में प्रसन्न रहो!
उसके पवित्र नाम का आदर करते रहो!
समीक्षा
आप आराधना और सेवा क्यों करते हैं?
परमेश्वर उनके ब्रह्मांड के अधिकारी हैं। “परमेश्वर राज्य करते हैं” (व.1)। यदि परमेश्वर राज्य नहीं करते, तो जीवन का कोई अर्थ नहीं होता – लेकिन वह राज्य करते हैं और वह आनंद मनाने का कारण हैं (व.1)।
भजनसंहिता के लेखक सृष्टि की सभी रचना को आराधना करने के लिए कहते हैं,”अपने घुटनों पर...उनकी आराधना कीजिए” (व.7, एम.एस.जी)।
वह परमेश्वर की स्तुति करते हैं – पहला, वह कौन हैं, और दूसरा, उन्होंने क्या किया है। परमेश्वर कौन हैं, इस वजह से वह सुरक्षा, छुटकारा, मार्गदर्शन और अपने लोगों के लिए आनंद को लाते हैं (वव.10-12)।
- परमेश्वर आपके रक्षक हैं
वह आपके जीवन की रक्षा करते हैं:”जो उनसे प्रेम करते हैं, उन्हें वह सुरक्षित रखते हैं” (व.10ब, एम.एस.जी)।
- परमेश्वर आपको छुड़ाने वाले हैं
वह आपको दुष्ट के हाथों से छुड़ाते हैं (व.10क)। वह आपको उसके चुंगुल से छुड़ाते हैं (व.10क, एम.एस.जी)।
- परमेश्वर आपके मार्गदर्शक हैं
वह आप पर प्रकाश चमकाते हैं। वह मार्गदर्शित करते और मनाते हैं,वह आपकी आँखो को खोलते हैं (व.11अ)।
- परमेश्वर आपका आनंद हैं
वह आनंद देते हैं ताकि आप उनमें आनंद मनायें और उनके पवित्र नाम की स्तुती करें (वव.11ब,12) -” सत्यनिष्ठ के लिये ज्योति, और सीधे मन वालों के लिये आनन्द बोया गया है” (व.11,ए.एम.पी)।
वह आगे कहते हैं,” हे सत्यनिष्ठों, यहोवा के कारण आनन्दित हो; और जिस पवित्र नाम से उनका स्मरण होता है, उनका धन्यवाद करो” (व.12, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
1 कुरिन्थियों 9:19-10:13
19 यद्यपि मैं किसी भी व्यक्ति के बन्धन में नहीं हूँ, फिर भी मैंने स्वयं को आप सब का सेवक बना लिया है। ताकि मैं अधिकतर लोगों को जीत सकूँ। 20 यहूदियों के लिये मैं एक यहूदी जैसा बना, ताकि मैं यहूदियों को जीत सकूँ। जो लोग व्यवस्था के विधान के अधीन हैं, उनके लिये मैं एक ऐसा व्यक्ति बना जो व्यवस्था के विधान के अधीन जैसा है। यद्यपि मैं स्वयं व्यवस्था के विधान के अधीन नहीं हूँ। यह मैंने इसलिए किया कि मैं व्यवस्था के विधान के अधीनों को जीत सकूँ। 21 मैं एक ऐसा व्यक्ति भी बना जो व्यवस्था के विधान को नहीं मानता। यद्यपि मैं परमेश्वर की व्यवस्था से रहित नहीं हूँ बल्कि मसीह की व्यवस्था के अधीन हूँ। ताकि मैं जो व्यवस्था के विधान को नहीं मानते हैं उन्हें जीत सकूँ। 22 जो दुर्बल हैं, उनके लिये मैं दुर्बल बना ताकि मैं दुर्बलों को जीत सकूँ। हर किसी के लिये मैं हर किसी के जैसा बना ताकि हर सम्भव उपाय से उनका उद्धार कर सकूँ। 23 यह सब कुछ मैं सुसमाचार के लिये करता हूँ ताकि इसके वरदानों में मेरा भी कुछ भाग हो।
24 क्या तुम लोग यह नहीं जानते कि खेल के मैदान में दौड़ते तो सभी धावक हैं किन्तु पुरस्कार किसी एक को ही मिलता है। एसे दौड़ो कि जीत तुम्हारी ही हो! 25 किसी खेल प्रतियोगिता में प्रत्येक प्रतियोगी को हर प्रकार का आत्मसंयम करना होता है। वे एक नाशमान जयमाल से सम्मानित होने के लिये ऐसा करते हैं किन्तु हम तो एक अविनाशी मुकुट को पाने के लिये यह करते हैं। 26 इस प्रकार मैं उस व्यक्ति के समान दौड़ता हूँ जिसके सामने एक लक्ष्य है। मैं हवा में मुक्के नहीं मारता। 27 बल्कि मैं तो अपने शरीर को कठोर अनुशासन में तपा कर, उसे अपने वश में करता हूँ। ताकि कहीं ऐसा न हो जाय कि दूसरों को उपदेश देने के बाद परमेश्वर के द्वारा मैं ही व्यर्थ ठहरा दिया जाऊँ!
यहूदियों जैसे मत बनो
10हे भाईयों, मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि हमारे सभी पूर्वज बादल की छत्र छाया में सुरक्षा पूर्वक लाल सागर पार कर गए थे। 2 उन सब को बादल के नीचे, समुद्र के बीच मूसा के अनुयायियों के रूप में बपतिस्मा दिया गया था। 3 उन सभी ने समान आध्यात्मिक भोजन खाया था। 4 और समान आध्यात्मिक जल पिया था क्योंकि वे अपने साथ चल रही उस आध्यात्मिक चट्टान से ही जल ग्रहण कर रहे थे। और वह चट्टान थी मसीह। 5 किन्तु उनमें से अधिकांश लोगों से परमेश्वर प्रसन्न नहीं था, इसीलिए वे मरुभूमि में मारे गये।
6 ये बातें ऐसे घटीं कि हमारे लिये उदाहरण सिद्ध हों और हम बुरी बातों की कामना न करें जैसे उन्होंने की थी। 7 मूर्ति-पूजक मत बनो, जैसे कि उनमें से कुछ थे। शास्त्र कहता है: “व्यक्ति खाने पीने के लिये बैठा और परस्पर आनन्द मनाने के लिए उठा।” 8 सो आओ हम कभी व्यभिचार न करें जैसे उनमें से कुछ किया करते थे। इसी नाते उनमें से 23,000 व्यक्ति एक ही दिन मर गए। 9 आओ हम मसीह की परीक्षा न लें, जैसे कि उनमें से कुछ ने ली थी। परिणामस्वरूप साँपों के काटने से वे मर गए। 10 शिकवा शिकायत मत करो जैसे कि उनमें से कुछ किया करते थे और इसी कारण विनाश के स्वर्गदूत द्वारा मार डाले गए।
11 ये बातें उनके साथ ऐसे घटीं कि उदाहरण रहे। और उन्हें लिख दिया गया कि हमारे लिए जिन पर युगों का अन्त उतरा हुआ है, चेतावनी रहे। 12 इसलिए जो यह सोचता है कि वह दृढ़ता के साथ खड़ा है, उसे सावधान रहना चाहिये कि वह गिर न पड़े। 13 तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े हो, जो मनुष्यों के लिये सामान्य नहीं है। परमेश्वर विश्वसनीय है। वह तुम्हारी सहन शक्ति से अधिक तुम्हें परीक्षा में नहीं पड़ने देगा। परीक्षा के साथ साथ उससे बचने का मार्ग भी वह तुम्हें देगा ताकि तुम परीक्षा को उत्तीर्ण कर सको।
समीक्षा
आप किसकी आराधना और सेवा करते हैं?
जब तक परमेश्वर का प्रेम हमारे दृष्टिकोण को न बदले, हममें से बहुत से अपने आपके दास हैं (और हमारे शरीर की भूख के)। पौलुस इसके विपरीत हैं। यीशु मसीह के कारण, पौलुस ने अपने शरीर को अपना दास और अपने आपको “सभी का एक दास बनाया” (9:19अ)।
पौलुस कहते हैं,” मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना कि किसी न किसी रीति से कईयों का उध्दार कराउँ” (व.22ब)। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह पाखंडी हैं या अपने शरीर में असुविधाजक या स्वयं बनने में सक्षम नहीं। नाही इसका यह अर्थ है कि श्रोताओं को अच्छा लगने के लिए वह सुसमाचार के संदेश को बदलते हैं। वह सुसमाचार का प्रचार करने के विषय में जोशीले थे और उनका उद्देश्य था कि “जितने संभव हो सकें उतनों को जीत लें” (व.19ब)।
जैसा कि प्रोफेसर गॉर्डन फी लिखते हैं,”जबकि (पौलुस) उन मामलों में सैद्धांतिक है जो सुसमाचार को प्रभावित करती है, चाहे सिद्धांतवादी या बर्ताव, सुसमाचार की बचाने वाली सामर्थ के लिए यही चिंता, उन्हें विवश करती है सभी लोगों के लिए वह सब बने, उन मामलों में जो महत्वपूर्ण नहीं।”
पौलुस लिखते हैं,”मैंने उनके विश्व में प्रवेश किया और उनके नजरिये से चीजों का अनुभव करने की कोशिश की” (व.22, एम.एस.जी)। इसका व्यापक प्रभाव है, शायद से उन क्षेत्रों के कहीं ऊपर जो संत पौलुस के दिमाग में थे। तुच्छ उदाहरण को लेते हैं, शायद से यह आपके पहने हुए कपड़ो को प्रभावित करें, ताकि जिन लोगों से आप बातें कर रहे हैं नाराज न हो और आपके साथ पहचाने जा सकें।
जबकि पौलुस सभी के लिए एक दास बनने के लिए तैयार थे, वह अपने शरीर की भूख के द्वारा दास बनने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने जीवन को एक दौड़ के रूप में देखा (व.24), अपने आपको एक धावक के रूप में देखते हुए, जिसे “कठोर प्रशिक्षण” से गुजरने की आवश्यकता है (व.25)। एक धावक की तरह उन्हें अपने शरीर के साथ क्रूर होना पड़ा। इसे अपना दास बनाने के लिए ताकि, दूसरो को प्रचार करने के बाद, वह स्वयं “ईनाम के लिए अयोग्य” ना बनाए जाएं (व.27)। आत्म संयम महत्वपूर्ण है। अपने शरीर, दिमाग, मुँह और भावनाओं को नियंत्रित करिए।
पौलुस जानते थे कि आस-पास बहुत से प्रलोभन थे। वह अपने लोगों के इतिहास से इसे देख सकते थे -” परन्तु परमेश्वर उनमें से बहुतों से प्रसन्न नहीं हुए, इसलिये वे जंगल में ढेर हो गए” (10:5, एम.एस.जी)।
उन्होंने “बुरी चीजों पर” मन लगाया (व.6)। उन्होंने “व्यभिचार किया” (व.8, एम.एस.जी)। उन्होंने परमेश्वर की परीक्षा ली (व.9)। वे कुड़कुड़ाये (व.10)। “ और न तुम कुड़कुड़ाओं, जिस रीति से उनमें से कितने कुड़कुड़ाए और नष्ट करने वाले के द्वारा नष्ट किए गए “ (व.10, एम.एस.जी)।
“ परन्तु ये सब बातें, जो उन पर पड़ीं, दृष्टान्त की रीति पर थीं; और वे हमारी चेतावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गई हैं। इसलिये जो समझता है, “मैं स्थिर हूँ,” वह चौकस रहे कि कहीं गिर न पड़े” (वव.11-12, एम.एस.जी)।
आपकी परीक्षा होगी जैसे कि उनकी हुई थी। फिर भी वह कहते हैं,” तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़ो, जो मनुष्य के सहने से बाहर है। परमेश्वर सच्चे हैं और वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में नहीं पड़ने देंगे, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेंगे कि तुम सह सको” (व.13, एम.एस.जी)।
अपने आपसे यें दो प्रश्न पूछियेः
मैं कैसे यह सुनिश्चित कर सकता हूँ कि मैं अपनी इच्छाओं का दास न बनूँ?
कैसे मैं उन सभी की सेवा कर सकता हूँ जिनसे मैं मिलता हूँ?
प्रार्थना
2 इतिहास 2:1-5:1
सुलैमान मन्दिर बनाने की योजना बनाता है
2सुलैमान ने यहोवा के नाम की प्रतिष्ठा के लिये एक मन्दिर और अपने लिये एक राजमहल बनाने का निश्चय किया। 2 सुलैमान ने चीज़े लाने के लिये सत्तर हज़ार व्यक्तियों को चुना और पहाड़ी प्रदेश में पत्थर खोदने के लिये अस्सी हज़ार व्यक्तियों को चुना और उसने तीन हज़ार छः सौ व्यक्ति मज़दूरों की निगरानी के लिये चुने।
3 तब सुलैमान ने हूराम को संदेश भेजा। हूराम सोर नगर का राजा था। सुलैमान ने संदेश दिया था,
“मुझे वैसे ही सहायता दो जैसे तुमने मेरे पिता दाऊद को सहायता दी थी। तुमने देवदार के पेड़ों से उनको लकड़ी भेजी थी जिससे वे अपने रहने के लिये महल बना सके थे। 4 मैं अपने यहोवा परमेश्वर के नाम का सम्मान करने के लिये एक मन्दिर बनाऊँगा। मैं यह मन्दिर यहोवा को अर्पित करूँगा जिसमें हमारे लोग उसकी उपासना कर सकेंगे। मैं उसको इस कार्य के लिये अर्पित करूँगा कि उसमें इस्राएलीं जाति के स्थायी धर्मप्रथा के अनुसार हमारे यहोवा परमेश्वर के पवित्र विश्राम दिवसों और नवचन्द्र तथा निर्धारित पर्वों पर सवेरे और शाम सुगन्धित धूप द्रव्य जलाये जायें, भेंट की रोटियाँ अर्पित की जायें और अग्निबलि चढ़ायी जाये।
5 “जो मन्दिर मैं बनाऊँगा वह महान होगा, क्योंकि हमारा परमेश्वर सभी देवताओं से बड़ा है। 6 किन्तु कोई भी व्यक्ति सही अर्थ में हमारे परमेश्वर के लिये भवन नहीं बना सकता। स्वर्ग हाँ, उच्चतम स्वर्ग भी परमेश्वर को अपने भीतर नहीं रख सकता! मैं परमेश्वर के लिये मन्दिर नहीं बना सकता। मैं केवल एक स्थान परमेश्वर के सामने सुगन्धि जलाने के लिये बना सकता हूँ।
7 “अब, मेरे पास सोना, चाँदी, काँसा और लोहे के काम करने में एक कुशल व्यक्ति को भेजो। उस व्यक्ति को इसका ज्ञान होना चाहिए कि बैंगनी, लाल, और नीले कपड़ों का उपयोग कैसे किया जाता है। उस व्यक्ति को यहाँ यहूदा और यरूशलेम में मेरे कुशल कारीगरों के साथ नक्काशी करनी होगी। मेरे पिता दाऊद ने इन कुशल कारीगरों को चुना था। 8 मेरे पास लबानोन देश से देवदार, चीड़ और चन्दन और सनोवर की लकड़ियाँ भी भेजो। मैं जानता हूँ कि तुम्हारे सेवक लबानोन से पेड़ों को काटने में अनुभवी हैं। मेरे सेवक तुम्हारे सेवकों की सहायता करेंगे। 9 क्योंकि मुझे प्रचुर मात्रा में इमारती लकड़ी चाहिये। जो मन्दिर मैं बनवाने जा रहा हूँ वह विशाल और अद्भुत होगा। 10 मैंने एक लाख पच्चीस हज़ार बुशल गेहूँ भोजन के लिये, एक लाख पच्चीस हजार बुशल जौ, एक लाख पन्द्रह हजार गैलन दाखमधु और एक लाख पन्द्रह हज़ार गैलन तेल तुम्हारे उन सेवकों के लिये दिया है जो इमारती लकड़ी के लिये पेड़ों को काटते हैं।”
11 तब सोर के राजा हूराम ने सुलैमान को उत्तर दिया। उसने सुलैमान को एक पत्र भेजा। पत्र में यह कहा गया थाः
“सुलैमान, यहोवा अपने लोगों से प्रेम करता है। यही कारण है कि उसने तुमको उनका राजा चुना।” 12 हूराम ने यह भी कहा, “इस्राएल के यहोवा, परमेश्वर की प्रशंसा करो! उसने धरती और आकाश बनाया। उसने राजा दाऊद को बुद्धिमान पुत्र दिया। सुलैमान, तुम्हें बुद्धि और समझ है। तुम एक मन्दिर यहोवा के लिये बना रहे हो। तुम अपने लिये भी एक राजमहल बना रहे हो। 13 मैं तुम्हारे पास एक कुशल कारीगर भेंजूँगा। उसे विभिन्न प्रकार की बहुत सी कलाओं की जानकारी है। उसका नाम हूराम— अबी है। 14 उसकी माँ दान के परिवार समूह की थी और उसका पिता सोर नगर का था। हूराम—अबी सोना, चाँदी, काँसा, लोहा, पत्थर और लकड़ी के काम में कुशल है। हूराम—अबी बैंगनी, नीले, तथा लाल कपड़ों और बहुमूल्य मलमल को काम में लाने में भी कुशल है और हूराम—अबी नक्काशी के काम में भी कुशल है। हर किसी योजना को, जिसे तुम दिखाओगे, समझने में वह कुशल है। वह तुम्हारे कुशल कारीगरों की सहायता करेगा और वह तुम्हारे पिता राजा दाऊद के कुशल कारीगरों की सहायता करेगा।
15 “तुमने गेहूँ, जौ, तेल और दाखमधु भेजने का जो वचन दिया था, कृपया उसे मेरे सेवकों के पास भेज दो 16 और हम लोग लबानोन देश में लकड़ी काटेंगे। हम लोग उतनी लकड़ी काटेंगे जितनी तुम्हें आवश्यकता है। हम लोग समुद्र में लकड़ी के लट्ठों के बेड़े का उपयोग जापा नगर तक लकड़ी पहुँचाने के लिये करेंगे। तब तुम लकड़ी को यरूशलेम ले जा सकते हो।”
17 तब सुलैमान ने इस्राएल में रहने वाले सभी बाहरी लोगों को गिनवाया। (यह उस समय के बाद हुआ जब दाऊद ने लोगों को गिना था।) दाऊद, सुलैमान का पिता था। उन्हें एक लाख तिरपन हजार बाहरी लोग देश में मिले। 18 सुलैमामन ने सत्तर हज़ार बाहरी लोगों को चीज़ें ढोने के लिये चुना। सुलैमान ने अस्सी हजार बाहरी लोगों को पर्वतों में पत्थर काटने के लिए चुना और सुलैमान ने तीन हज़ार छः सौ बाहरी लोगों को काम पर लगाये रखने के लिए निरीक्षक रखा।
सुलैमान मन्दिर बनाता है
3सुलैमान ने यहोवा का मन्दिर मोरिय्याह पर्वत पर यरूशलेम में बनाना आरम्भ किया। पर्वत मोरिय्याह वह स्थान है जहाँ यहोवा ने सुलैमान के पिता दाऊद को दर्शन दिया था। सुलैमान ने उसी स्थान पर मन्दिर बनाया जिसे दाऊद तैयार कर चुका था। यह स्थान उस खलिहान में था जो ओर्नान का था। ओर्नान यबूसी लोगों में से एक था। 2 सुलैमान ने इस्राएल में अपने शासन के चौथे वर्ष के दूसरे महीने में मन्दिर बनाना आरम्भ किया।
3 सुलैमान ने परमेश्वर के मन्दिर की नींव के निर्माण के लिये जिस माप का उपयोग किया, वह यह हैः नींव साठ हाथ लम्बी और बीस हाथ चौड़ी थी। सुलैमान ने प्राचीन हाथ की माप का ही उपयोग तब किया जब उसने मन्दिर को नापा। 4 मन्दिर के सामने का द्वार मण्डप बीस हाथ लम्बा और बीस हाथ ऊँचा था। सुलैमान ने द्वार मण्डप के भीतरी भाग को शुद्ध सोने से मढ़वाया 5 सुलैमान ने बड़े कमरों की दीवार पर सनोवर लकड़ी की बनी चौकोर सिल्लियाँ रखीं। तब उसने सनोवर की सिल्लियों को शुद्ध सोने से मढ़ा और उसने शुद्ध सोने पर खजूर के चित्र और जंजीरें बनाईं। 6 सुलैमान ने मन्दिर की सुन्दरता के लिये उसमें बहुमूल्य रत्न लगाए। जिस सोने का उपयोग सुलैमान ने किया वह पर्वैम से आया था। 7 सुलैमान ने मन्दिर के भीतरी भवन को सोने से मढ़ दिया। सुलैमान ने छत की कड़ियाँ, चौखटों, दीवारों और दरवाजों पर सोना मढ़वाया। सुलैमान ने दीवारों पर करूब (स्वर्गदूतों) को खुदवाया।
8 तब सुलैमान ने सर्वाधिक पवित्र स्थान बनाया। सर्वाधिक पवित्र स्थान बीस हाथ लम्बा और बीस हाथ चौड़ा था। यह उतना ही चौड़ा था जितना पूरा मन्दिर था। सुलैमान ने सर्वाधिक पवित्र स्थान की दीवारों पर सोना मढ़वाया। सोने का वजन लगभग बीस हज़ार चार सौ किलोग्राम था। 9 सोने की कीलों का वजन पाँच सौ पच्हत्तर ग्राम था सुलैमान ने ऊपरी कमरों को सोने से मढ़ दिया। 10 सुलैमान ने दो करूब(स्वर्गदूतों) सर्वाधिक पवित्र स्थान पर रखने के लिये बनाये। कारीगरों ने करूब स्वर्गदूतों को सोने से मढ़ दिया। 11 करूब(स्वर्गदूतों) का हर एक पंख पाँच हाथ लम्बा था। पंखों की पूरी लम्बाई बीस हाथ थी। पहले करूब (स्वर्गदूत) का एक पंख कमरे की एक ओर की दीवार को छूता था। दूसरा पंख दूसरे करूब (स्वर्गदूत) के पंख को छूता था। 12 दूसरे करूब (स्वर्गदूत) का दूसरा पंख कमरे की दूसरी ओर की दूसरी दीवार को छूता था। 13 करूब (स्वर्गदूत) के पंख सब मिलाकर बीस हाथ फैले थे। करूब (स्वर्गदूत) भीतर पवित्र स्थान की ओर देखते हुए खड़े थे।
14 उसने नीले, बैंगनी, लाल और कीमती कपड़ों तथा बहुमूल्य सूती वस्त्रों से मध्यवर्ती पर्दे को बनवाया। परदे पर करूबों के चित्र काढ़ दिए।
15 सुलैमान ने मन्दिर के सामने दो स्तम्भ खड़े किये। स्तम्भ पैंतिस हाथ ऊँचे थे। दोनों स्तम्भों का शीर्ष भाग दो पाँच हाथ लम्बा था। 16 सुलैमान ने जंजीरों के हार बनाए। उसने जंजीरों को स्तम्भों के शीर्ष पर रखा। सुलैमान ने सौ अनार बनाए और उन्हें जंजीरों से लटकाया। 17 तब सुलैमान ने मन्दिर के सामने स्तम्भ खड़े किये। एक स्तम्भ दायीं ओर था। दूसरा स्तम्भ बायीं ओर खड़ा था। सुलैमान ने दायीं ओर के स्तम्भ का नाम “याकीन” और सुलैमान ने बायीं ओर के स्तम्भ का नाम “बोअज़” रखा।
मन्दिर की सज्जा
4सुलैमान ने वेदी बनाने के लिये काँसे का उपयोग किया। वह काँसे की वेदी बीस हाथ लम्बी, बीस हाथ चौड़ी और दस हाथ ऊँची थी। 2 तब सुलैमान ने पिघले काँसे का उपयोग एक विशाल हौज बनाने के लिये किया। विशाल हौज गोल था और एक सिरे से दूसरे सिरे तक इसकी नाप दस हाथ थी और यह पाँच हाथ ऊँचा और दस हाथ घेरे वाला था। 3 विशाल काँसे के तालाब के सिरे के नीचे और चारों ओर तीस हाथ की बैलों की आकृतियाँ ढाली गईं थीं। जब तालाब बनाया गया तब उस पर दो पंक्तियों में बैल बनाए गए। 4 वह विशाल काँसे का तालाब बारह बैलों की विशाल प्रतिमा पर स्थित था। तीन बैल उत्तर की ओर देखते थे। तीन बैल पश्चिम की ओर देखते थे।तीन बैल दक्षिण की ओर देखते थे। तीन बैल पूर्व की ओर देखते थे। विशाल काँसे का तालाब इन बैलों के ऊपर था। सभी बैल अपने पिछले भागों को एक दूसरे के साथ तथा केन्द्र के साथ मिलाए हुए खड़े थे। 5 विशाल काँसे का तालाब आठ सेंटीमीटर मोटा था। विशाल तालाब का सिरा एक प्याले के सिरे की तरह था। सिरा खिली हुई लिली की तरह था। इसमें छियासठ हज़ार लीटर आ सकता था।
6 सुलैमान ने दस चिलमचियाँ बनाईं। उसने विशास काँसे के तालाब की दायीं ओर पाँच चिलमचियाँ रखीं और सुलैमान ने काँसे के विशाल तालाब की बायीं ओर पाँच चिलमचियाँ रखीं। इन दस चिलमचियों का उपयोग होमबलि के लिए चढ़ाई जाने वाली चीज़ों को धोने के लिये होना था। किन्तु विशाल तालाब का उपयोग बलि चढ़ाने के पहले याजकों के नहाने के लिये होना था।
7 सुलैमान ने निर्देश के अनुसार सोने के दस दीपाधार बनाए और उनको मन्दिर में रख दियाः पाँच दाहिनी ओर और पाँच बायीं ओर। 8 सुलैमान ने दस मेज़ें बनाईं और उन्हें मन्दिर में रखा। मन्दिर में पाँच मेज़े दायीं थीं और पाँच मेज़ें बायीं। सुलैमान ने सौ चिलमचियाँ बनाने के लिये सोने का उपयोग किया। 9 सुलैमान ने एक याजकों का आँगन, महाप्रांगन, और उसके लिये द्वार बनाए। उसने आँगन में खुलने वाले दरवाज़ों को मढ़ने के लिये काँसे का उपयोग किया। 10 तब उसने विशाल काँसे के तालाब को मन्दिर के दक्षिण पूर्व की ओर दायीं ओर रखा।
11 हूराम ने बर्तन, बेल्चे और कटोरों को बनाया। तब हूराम ने परमेश्वर के मन्दिर में सुलैमान के लिये अपने काम खतम किये। 12 हूराम ने दोनों स्तम्भों और दोनों स्तम्भों के शीर्षभाग के विशाल दोनों कटोरों को बनाया था। हूराम ने दोनों स्तम्भों के शीर्ष भाग के विशाल दोनों कटोरों को ढ़कने के लिये सज्जाओं के जाल भी बनाए थे। 13 हूराम ने चार सौ अनार दोनों सज्जा जालों के लिये बनाए। हर एक जाल के लिये अनारों की दो पक्तियाँ थीं। दोनों स्तम्भों के शीर्षभाग पर के विशाल कटोरे जाल से ढके थे। 14 हूराम ने आधार दण्ड और उनके ऊपर के प्यालों को भी बनाया। 15 हूराम ने एक विशाल काँसे का तालाब और तालाब के नीचे बारह बैल बनाए। 16 हूराम ने बर्तन, बेल्चे, काँटे और सभी चीज़ें राजा सुलैमान के यहोवा के मन्दिर के लिये बनाईं। ये चीज़ें कलई चढ़े काँसे की बनी थीं। 17 राजा सुलैमान ने पहले इन चीज़ों को मिट्टी के साँचे में ढाला। ये साँचे सुक्कोत और सरेदा नगरों के बीच यरदन घाटी में बने थे। 18 सुलैमान ने ये इतनी अधिक मात्रा में बनाईं कि किसी व्यक्ति ने उपयोग में लाए गए काँसे को तोलने का प्रयत्न नहीं किया।
19 सुलैमान ने परमेश्वर के मन्दिर के लिये भी चीज़ें बनाईं। सुलैमान ने सुनहली वेदी बनाई। उसने वे मेज़ें बनाईं जिन पर उपस्थिति की रोटियाँ रखी जाती थीं। 20 सुलैमान ने दीपाधार और उनके दीपक शुद्ध सोने के बनाए। बनी हुई योजना के अनुसार दीपकों को पवित्र स्थान के सामने भीतर जलना था। 21 सुलैमान ने फूलों, दीपकों और चिमटे को बनाने के लिये शुद्ध सोने का उपयोग किया। 22 सुलैमान ने सलाईयाँ, प्याले, कढ़ाईयाँ और धूपदान बनाने के लिये शुद्ध सोने का उपयोग किया। सुलैमान ने मन्दिर के दरवाजों, सर्वाधिक पवित्र स्थान और मुख्य विशाल कक्ष के भीतरी दरवाजों को बनाने के लिये शुद्ध सोने का उपयोग किया।
5तब सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर के लिये किये गए सभी काम पूरे कर लिए। सुलैमान उन सभी चीज़ों को लाया जो उसके पिता दाऊद ने मन्दिर के लिये दीं थीं। सुलैमान सोने चाँदी की बनी हुई वस्तुएँ तथा और सभी सामान लाया। सुलैमान ने उन सभी चीज़ों को परमेश्वर के मन्दिर के कोषागार में रखा।
समीक्षा
आप कैसे आराधना और सेवा करते हैं?
एक चीज जो मैं हिलसाँग चर्च के विषय में पसंद करता हूँ और सराहता हूँ, वह है आराधना में वे जो श्रेष्ठता का उदाहरण रखते हैं। वह अपने संगीत की हर बारीकी पर बहुत ध्यान देते हैं, कर्मचारियों को भर्ती करने और उनके प्रशिक्षण पर, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी आराधना में श्रेष्ठता हो।
मुझे आराधना की भिन्नता पसंद है जो चर्च के विभन्न भागों में पायी जाती है। आखिरकार, अंदाज महत्वपूर्ण नहीं है। हमारी आराधना को श्रेष्ठ होना चाहिए। यह हमारी उच्चतम प्राथमिकता होनी चाहिए, हमारे स्त्रोतों का इस्तेमाल करने में क्योंकि हम परमेश्वर के सम्मान के लिए इसे करते हैं।
जैसा कि सुलैमान ने “परमेश्वर के सम्मान में आराधना के घर” को बनाना शुरु किया (2:1, एम.एस.जी), वह कहते हैं,” जो भवन मैं बनाने पर हूँ, वह महान होगा; क्योंकि हमारे परमेश्वर सब देवताओं में महान हैं... जो भवन मैं बनाना चाहता हूँ, वह बड़ा और अचम्भे के योग्य होगा” (वव.5-9, एम.एस.जी)।
श्रेष्ठता को प्राप्त करने में बहुत सी सामग्री, समय और प्रयास लगा। इसमें हर बारीकी पर असाधारण ध्यान की आवश्यकता पड़ी (अध्याय 2-4)। छोटी सी जानकारी भी परमेश्वर की सेवा में उच्चतम गुणवत्ता की होनी चाहिए।
यही कारण है कि उन्होंने बहुत सारा सोना इस्तेमाल किया (4:21-22)। खेल-कूद स्पर्धा में जीतने वाले सोने के मेडल को पाते हैं क्योंकि सोना सर्वश्रेष्ठ का प्रतीक है। इसलिए, जब हम परमेश्वर की आराधना और सेवा करते हैं, हमें अवश्य ही अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए।
जैसा कि पौलुस कुलुस्सियों से कहते हैं,” जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो; ...तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो” (कुलुस्सियो 3:23-24)।
प्रचारक, चार्ल्स स्पर्जन, एक बार घर में एक सफाई करने वाले से बात कर रहे थे, जो हाल ही में एक मसीह बनी थी। स्पर्जन ने उससे पूछा कि यीशु ने क्या अंतर पैदा किया है। उसने जवाब दिया,”श्रीमान, अब मैं पायदानों के नीचे सफाई करती हूँ।” वह जानती थी कि उसके काम में अब वह यीशु की सेवा और आराधना कर रही थी।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
1कुरिंथियो 10:12
“ इसलिये जो समझता है, “मैं स्थिर हूँ,” वह चौकस रहे कि कहीं गिर न पड़े”
सामान्य रूप से जब चीजें अच्छी तरह से हो रही होती हैं तब ही कुछ गलत हो जाता है या मैं कुछ असफलताओं को जानती हूँ। हमें “सावधानी से” जीवन जीना चाहिए, एक डरावने नियंत्रित तरीके से नहीं, बल्कि एक आशावादी वास्तविक तरीके से।
दिन का वचन
1कुरिंथियो 10:13
“तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको॥”
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संदर्भ
गॉर्डन डी.फी, कुरिंथियों के लिए पहली पत्री (विलियम बी येर्डमन पब्लिशिंग क, 1987) पी.431
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।