दिन 226

अच्छाई के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कैसे करें

बुद्धि भजन संहिता 96:1-13
नए करार 1 कुरिन्थियों 9:1-18
जूना करार सभोपदेशक 9:13-12:14

परिचय

इतिहास बहुत से तरीको से प्रभाव की एक कहानी है। लीडरशिप प्रभाव के विषय में है। हर कोई किसी दूसरे को प्रभावित करता है। इसलिए, हर एक व्यक्ति एक लीडर है। समाज शास्त्र का अध्ययन करने वाले बताते हैं कि यहाँ तक कि सबसे अंतर्मुखी व्यक्ति अपने जीवनकाल में 10000 लोगों को प्रभावित करेगा। हम सभी हर तरीके से एक दूसरे को प्रभावित करते हैं –दोपहर के भोजन में क्या बनाना है और कौन सी फिल्म देखनी है, सच्चाई और नैतिकता के महत्वपूर्ण मामलें

जैसे ही मैं अपने जीवन के भूतकाल में देखता हूँ, मैं बहुत से लोगों के द्वारा प्रभावित हुआ हूँ– मेरे माता-पिता, शिक्षक, मित्र और परिवार। जैसे कि मैं दूसरो के द्वारा प्रभावित हुआ, अपरिहार्य रूप से जो मैं करता हूँ और कहता हूँ, वह दूसरों को अच्छे या बुरे के लिए प्रभावित करेगा।

जैसा कि अफ्रीकन नीतिवचन इसे कहता है,”यदि आप सोचते हैं कि एक अंतर पैदा करने के लिए आप बहुत छोटे हैं, तो आपने मच्छरों के साथ एक रात नहीं बितायी है।” एक परेशान करने वाले तरीके से मच्छर एक अंतर पैदा करते हैं, लेकिन सिद्धांत समान है। एक व्यक्ति बड़े अन्याय को रोक सकता है। एक व्यक्ति सच्चाई की आवाज बन सकता है। एक व्यक्ति की दयालुता एक जीवन को बचा सकती है। हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है।

कैसे आप अपने प्रभाव को बढ़ा सकते हैं और भलाई के लिए उस प्रभाव का इस्तेमाल कर सकते हैं?

बुद्धि

भजन संहिता 96:1-13

96उन नये कामों के लिये जिन्हें यहोवा ने किया है नया गीत गाओ।
 अरे ओ समूचे जगत यहोवा के लिये गीत गा।
2 यहोवा के लिये गाओ! उसके नाम को धन्य कहो!
 उसके सुसमाचार को सुनाओ! उन अद्भुत बातों का बखान करो जिन्हें परमेश्वर ने किया है।
3 अन्य लोगों को बताओ कि परमेश्वर सचमुच ही अद्भुत है।
 सब कहीं के लोगों में उन अद्भुत बातों का जिन्हें परमेश्वर करता है बखान करो।

4 यहोवा महान है और प्रशंसा योग्य है।
 वह किसी भी अधिक “देवताओं” से डरने योग्य है।
5 अन्य जातियों के सभी “देवता” केवल मूर्तियाँ हैं,
 किन्तु यहोवा ने आकाशों को बनाया।
6 उसके सम्मुख सुन्दर महिमा दीप्त है।
 परमेश्वर के पवित्र मन्दिर सामर्थ्य और सौन्दर्य हैं।

7 अरे! ओ वंशों, और हे जातियों यहोवा के लिये महिमा
 और प्रशंसा के गीत गाओ।
8 यहोवा के नाम के गुणगान करो।
 अपनी भेटे उठाओ और मन्दिर में जाओ।
9 यहोवा का उसके भव्य, मन्दिर में उपासना करो।
 अरे ओ पृथ्वी के मनुष्यों, यहोवा की उपासना करो।
10 राष्ट्रों को बता दो कि यहोवा राजा है!
 सो इससे जगत का नाश नहीं होगा।
 यहोवा मनुष्यों पर न्याय से शासन करेगा।

11 अरे आकाश, प्रसन्न हो!
 हे धरती, आनन्द मना! हे सागर, और उसमें कि सब वस्तुओं आनन्द से ललकारो।
12 अरे ओ खेतों और उसमें उगने वाली हर वस्तु आनन्दित हो जाओ!
 हे वन के वृक्षो गाओ और आनन्द मनाओ!
13 आनन्दित हो जाओ क्योंकि यहोवा आ रहा है,
 यहोवा जगत का शासन (न्याय) करने आ रहा है,
 वह खरेपन से न्याय करेगा।

समीक्षा

सभी की भलाई के लिए

परमेश्वर ने इस्राएल को चुना। एक विशेष तरीके से उन्होंने इस्राएल के लोगों को आशीष दी। उनका उद्देश्य यह नहीं था कि वे दूसरों से अधिक अभिमानी और वरिष्ठ महसूस करें। इसके बजाय, वह संपूर्ण विश्व के लिए एक आशीष बनें (उत्पत्ति 12:3)। एक आशीष बनने के लिए वह आशीषित किए गए थे। संपूर्ण देश की भलाई के लिए वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए बुलाए गए थे।

अब, परमेश्वर ने हमें, इस चर्च को चुना है, ताकि सभी लोगों के लिए एक आशीष बने। आप एक आशीष बनने के लिए आशीषित किए गए हैं।

इस भजन में एक बहुमुखी केंद्र है। यह सभी को परमेश्वर के आश्चर्यकर्म और आशीषों का वर्णन करता है। आप इनके द्वारा आशीष देने के लिए बुलाए गए हैं:

  1. आराधना

यह ध्यान देना एक दिलचस्प बात है कि आराधना को रचनात्मक होना चाहिए और इसमें नई चीजें जोड़नी चाहिएः”यहोवा के लिये एक नया गीत गाइए” (भजनसंहिता 96:1, एम.एस.जी)।

  1. गवाही

”उनके नाम को धन्य कहिए; दिन प्रतिदिन उनके किए हुए उध्दार का शुभसमाचार सुनाते रहिए। अन्य जातियों में उनकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उनके आश्चर्यकर्मों का वर्णन करिए...”

इस संदेश को ले जाइए, परमेश्वर राज्य करते हैं (वव.2, 10अ, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए, कभी भी अंदर देखने वाले या स्वयं में लिप्त न बने,होने दीजिए कि एक व्यक्ति के रूप में और एक समुदाय के रूप में जो कुछ हम करते हैं, वह बाहर केंद्रित हो ताकि मैं विश्व में आशीष को लाऊँ – प्रतिदिन आपके उद्धार की घोषणा करते हुए।
नए करार

1 कुरिन्थियों 9:1-18

पौलुस भी दूसरे प्रेरितों जैसा ही है

9क्या मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ? क्या मैं भी एक प्रेरित नहीं हूँ? क्या मैंने हमारे प्रभु यीशु मसीह के दर्शन नहीं किये हैं? क्या तुम लोग प्रभु में मेरे ही कर्म का परिणाम नहीं हो? 2 चाहे दूसरों के लिये मैं प्रेरित न भी होऊँ — तो भी मैं तुम्हारे लियेतो प्रेरित हूँ ही। क्योंकि तुम एक ऐसी मुहर के समान हो जो प्रभु में मेरे प्रेरित होने को प्रमाणित करती है।

3 वे लोग जो मेरी जाँच करना चाहते हैं, उनके प्रति आत्मरक्षा में मेरा उत्तर यह है: 4 क्या मुझे खाने पीने का अधिकार नहीं है? 5 क्या मुझे यह अधिकार नहीं कि मैं अपनी विश्वासिनी पत्नी को अपने साथ ले जाऊँ? जैसा कि दूसरे प्रेरित, प्रभु के बन्धु और पतरस ने किया है। 6 अथवा क्या बरनाबास और मुझे ही अपनी आजीविका कमाने के लिये कोई काम करना चाहिए? 7 सेना में ऐसा कौन होगा जो अपने ही खर्च पर एक सिपाही के रूप में काम करे। अथवा कौन हौगा जो अंगूर की बगीया लगाकर भी उसका फल न चखे? या कोई ऐसा है जो भेड़ों के रेवड़ की देखभाल तो करता हो पर उनका थोड़ा बहुत भी दूध न पीता हो?

8 क्या मैं मानवीय चिन्तन के रूप में ही ऐसा कह रहा हूँ? आखिरकार क्या व्यवस्था का विधान भी ऐसा ही नहीं कहता? 9 मूसा की व्यवस्था के विधान में लिखा है, “खलिहान में बैल का मुँह मत बाँधो।” परमेश्वर क्या केवल बैलों के बारे में बता रहा है? 10 नहीं! निश्चित रूप से वह इसे क्या हमारे लिये नहीं बता रहा? हाँ, यह हमारे लिये ही लिखा गया था। क्योंकि खेत जोतने वाला किसी आशा से ही खेत जोतने और खलिहान में भूसे से अनाज अलग करने वाला फसल का कुछ भाग पाने की आशा तो रखेगा ही। 11 फिर यदि हमने तुम्हारे हित के लिये आध्यात्मिकता के बीज बोये हैं तो हम तुमसे भौतिक वस्तुओं की फसल काटना चाहते हैं, यह क्या कोई बहुत बड़ी बात है? 12 यदि दूसरे लोग तुमसे भौतिक वस्तुएँ पाने का अधिकार रखते हैं तो हमारा तो तुम पर क्या और भी अधिक अधिकार नहीं है? किन्तु हमने इस अधिकार का उपयोग नहीं किया है। बल्कि हम तो सब कुछ सहते रहे हैं ताकि हम मसीह सुसमाचार के मार्ग में कोई बाधा न डाल दें। 13 क्या तुम नहीं जानते कि जो लोग मन्दिर में काम करते हैं, वे अपना भोजन मन्दिर से ही पाते हैं। और जो नियमित रूप से वेदी की सेवा करते हैं, वेदी के चढ़ावे में उनका हिस्सा होता है? 14 इसी प्रकार प्रभु ने व्यवस्था दी है कि सुसमाचार के प्रचारकों की आजीविका सुसमाचार के प्रचार से ही होनी चाहिये।

15 किन्तु इन अधिकारों में से मैंने एक का भी कभी प्रयोग नहीं किया। और ये बातें मैंने इसलिए लिखी भी नहीं हैं कि ऐसा कुछ मेरे विषय में किया जाये। बजाय इसके कि कोई मुझ से उस बात को ही छीन ले जिसका मुझे गर्व है। इस से तो मैं मर जाना ही ठीक समझूँगा। 16 इसलिए यदि मैं सुसमाचार का प्रचार करता हूँ तो इसमें मुझे गर्व करने का कोई हेतु नहीं है क्योंकि मेरा तो यह कर्तव्य है। और यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ तो मेरे लिए यह कितना बुरा होगा। 17 फिर यदि यह मैं अपनी इच्छा से करता हूँ तो मैं इसका फल पाने योग्य हूँ, किन्तु यदि अपनी इच्छा से नहीं बल्कि किसी नियुक्ति के कारण यह काम मुझे सौंपा गया है 18 तो फिर मेरा प्रतिफल काहे का। इसलिए जब मैं सुसमाचार का प्रचार करूँ तो बिना कोई मूल्य लिये ही उसे करूँ। ताकि सुसमाचार के प्रचार में जो कुछ पाने का मेरा अधिकार है, मैं उसका पूरा उपयोग न करूँ।

समीक्षा

अच्छे समाचार को फैलाने के लिए

पौलुस गहराई से अपने प्रभाव के प्रति सचेत हैं, एक मसीह के रूप में और विशेष रूप से, एक प्रेरित के रूप में। वह पूरी तरह से दृढ़ संकल्पित हैं कि अच्छाई के लिए अपने प्रभाव को बढ़ाए और “हर उस वस्तु को दूर करें जो मसीह के सुसमाचार में बाधा डालती है” (व.12ब)।

ऐसा लगता है कि अविवाहित रहने के लिए अपनी बुलाहट को वह एक तरीके के रूप में देखते हैं, जिससे वह अपने प्रभाव को बढ़ा सकते हैं। वह नहीं बता रहे हैं कि विवाह के साथ कुछ गलत बात है। ऐसा दिखाई देता है कि दूसरे प्रेरित,”प्रभु के भाई और कैफा (पतरस)” सभी विवाहित थे (व.5)।

अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दूसरा तरीका जो वह खोजते हैं, वह है दूसरी नौकरी करना; जीविका जीने के लिए काम करना। वह यह बताने में उत्साहित हैं कि उन्हें यह करने की आवश्यकता नहीं हैः” प्रभु ने भी ठहराया कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उनकी जीविका सुसमाचार से हो” (व.14)। या जैसा कि यूजन पीटरसन अनुवाद करते हैं,”जो संदेश को फैलाते हैं, उनकी मदद वे लोग करें जो संदेश पर विश्वास करते हैं” (व.14, एम.एस.जी)। दूसरे शब्दों में, मसीहों के रूप में, हमें आर्थिक रूप से उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो पूरे समय सुसमाचार का प्रचार करते हैं।

पौलुस कहते हैं कि यद्यपि उनके पास यह अधिकार था, उन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया। “ परन्तु हम यह अधिकार काम में नहीं लाए; परन्तु सब कुछ सहते हैं कि हमारे द्वारा मसीह के सुसमाचार में कुछ रुकावट न हो” (व.12ब, एम.एस.जी)।

पौलुस पूरी तरह से सुसमाचार का प्रचार करने के विषय में उत्साही हैं। वह नहीं चाहते हैं कि कोई भी चीज इसके अधिकतम प्रभाव में रुकावट डाले। इसलिए, वह अपने किसी अधिकार का इस्तेमाल नहीं करते हैं – उनका मिशन सर्वोच्च है (व.15अ)। वह “प्रचार करने के लिए विवश हैं” (व.16अ)। वह लिखते हैं,”हाय मुझ पर यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करुँ” (व.16ब)। वह सरलतापूर्वक एक बाध्यता को बताते हैं जो वह महसूस करते हैं।

वह सबसे अधिक यह चाहते हैं कि लोग “मुक्त रूप से” सुसमाचार को सुन पायें (व.18)। मुक्त रूप से सुसमाचार का प्रचार करने के अवसर से वंचित रहने के बजाय, वह मरना पसंद करेंगेः” क्योंकि इससे तो मेरा मरना ही भला है कि कोई मेरे घमण्ड को व्यर्थ ठहराए” (व.15)।

यही कारण है कि क्यों हम निर्धारित करते हैं कि अल्फा करने के लिए किसी को भी दाम चुकाना न पड़े। और, यही कारण है कि हमें हर उस प्रयास को रोकना है जो हमें मेहमानों से पैसे लेने के लिए राजी करने की कोशिश करती है, जैसे ही वे अल्फा समाप्त करते हैं। हम नहीं चाहते हैं कि लोग सुसमाचार सुनने की सुविधा के लिए सीधे या किसी माध्यम से दाम चुकायें। पौलुस कहते हैं,”मैं इसके बजाय मरना पसंद करुँगा...” (व.15ब)।

मुझे याद है जब बिली ग्राहम 1989 में लंदन में सुसमाचार प्रचार करने के लिए आये। एक बार यह सलाह दी गई कि टिकट व्यर्थ न जाएँ, इसके लिए इसे एक मामूली कीमत 1 रूपये में बेचा जाये। सलाह को अस्वीकार कर दिया गया। बिली ग्राहम ने दृढ़ संकल्प लिया था कि वह हमेशा मुक्त रूप से सुसमाचार का प्रचार करेंगे।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हम हमेशा पौलुस प्रेरित के उदाहरण पर चले और सुसमाचार के प्रभाव को अत्यधिक बढ़ाये इसे मुक्त रूप से उपलब्ध करने के द्वारा और मसीह के सुसमाचार में रुकावट डालने वाली हर चीज को दूर करने के द्वारा।
जूना करार

सभोपदेशक 9:13-12:14

विवेक की शक्ति

13 इस जीवन में मैंने एक व्यक्ति को एक विवेकपूर्ण कार्य करते देखा है और मुझे यह बहत महत्वपूर्ण लगा है। 14 एक छोटा सा नगर हुआ करता था। उसमें थोड़े से लोग रहा करते थे। एक बहुत बड़े राजा ने उसके विरूद्ध युद्ध किया और नगर के चारों ओर अपनी सेना लगा दी। 15 उसी नगर में एक बुद्धिमान पुरुष रहता था। वह बहुत निर्धन था। किन्तु उसने उस नगर को बचाने के लिये अपनी बुद्धि का उपयोग किया। जब नगर की विपत्ती टल गयी और सब कुछ समाप्त हो गया तो लोगों ने उस गरीब व्यक्ति को भुला दिया। 16 किन्तु मेरा कहना है कि बल से बुद्धि श्रेष्ठ है। यद्यापि लोग उस गरीब व्यक्ति की बुद्धि के बारे में भूल गये और जो कुछ उसने कहा था, उस पर भी उन लोगों ने कान देना बन्द कर दिया। किन्तु मेरा तो अभी भी यही विश्वास है कि बुद्धि ही श्रेष्ठ होती है।

17 धीरे से बोले गये, विवेकी के थोड़े से शब्द अधिक उत्तम होते हैं,
अपेक्षाकृत उन ऐसे शब्दों को जिन्हें मूर्ख शासक ऊँची आवाज में बोलता है।
18 बुद्धि, उन भोलों से और ऐसी तलवारों से उत्तम है जो युद्ध में काम आते हैं।
बुद्धिहीन व्यक्ति, बहुत सी उत्तम बातें नष्ट कर सकता है।

10कुछ मरी हुई मक्खियाँ सर्वोत्तम सुगंध तक को दुर्गधिंत कर सकती हैं। इसी प्रकार छोटी सी मूर्खता से समूची बुद्धि और प्रतिष्ठा नष्ट हो सकती है।

2 बुद्धिमान के विचार उसे उचित मार्ग पर ले चलाते हैं। किन्तु मूर्ख के विचार उसे बुरे रास्ते पर ले जाते हैं। 3 मूर्ख जब रास्ते में चलता हुआ होता है तो उसके चलने मात्र से उसकी मूर्खता व्यक्त होती है। जिससे हर व्यक्ति देख लेता है कि वह मूर्ख है।

4 तुम्हारा अधिकारी तुमसे रूष्ट है, बस इसी कारण से अपना काम कभी मत छोड़ो। यदि तुम शांत और सहायक बने रहो तो तुम बड़ी से बड़ी गलातियों को सुधार सकते हो।

5 और देखो यह बात कुछ अलग ही है जिसे मैंने इस जीवन में देखा है। यह बात न्यायोचित भी नहीं है। यह वैसी भूल है जैसी शासक किया करते हैं। 6 मूर्ख व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पद दे दिये जाते हैं और सम्पन्न व्यक्ति ऐसे कामों को प्राप्त करते हैं जिनका कोई महत्व नहीं होता। 7 मैंने ऐसे व्यक्ति देखे हैं जिन्हें दास होना चाहिये था। किन्तु वह घोड़ों पर चढ़े रहते हैं। जबकि वे व्यक्ति जिन्हें शासक होना चाहिये था, दासों के समान उनके आगे पीछे घूमते रहते हैं।

हर काम के अपने खतरे हैं

8 वह व्यक्ति जो कोई गढ़ा खोदता है उसमें गिर भी सकता है। वह व्यक्ति जो किसी दीवार को गिराता है, उसे साँप डस भी सकता है। 9 एक व्यक्ति जो बड़े—बड़े पत्थरों को धकेलता है, उनसे चोट भी खा सकता है और वह व्यक्ति जो पेड़ो को काटता है, उसके लिये यह खतरा भी बना रहता है कि पेड़ उसके ऊपर ही न गिर जाये।

10 किन्तु बुद्धि के कारण हर काम आसान हो जाता है। भोंटे, बेधार चाकू से काटना बहुत कठिन होता है किन्तु यदि वह अपना चाकू पैना कर ले तो काम आसान हो जाता है। बुद्धि इसी प्रकार की है।

11 कोई व्यक्ति यह जानता है कि साँपों को वश में कैसे किया जाता है किन्तु जब वह व्यक्ति आस पास नहीं है और साँप किसी को काट लेता है तो वह बुद्धि बेकार हो जाती है। बुद्धि इसी प्रकार की है।

12 बुद्धिमान के शब्द प्रशंसा दिलाते हैं।
किन्तु मूर्ख के शब्दों से विनाश होता है।

13 एक मूर्ख व्यक्ति मूर्खतापूर्ण बातें कहकर ही शुरूआत करता है। और अंत में वह पागलपन से भरी हुई स्वयं को ही हानि पहुँचाने वाली बातें कहता है। 14 एक मूर्ख व्यक्ति हर समय जो उसे करना होता है, उसी की बातें करता रहता है। किन्तु भविष्य में क्या होगा यह तो कोई नहीं जानता। भविष्य में क्या होने जा रहा है, यह तो कोई बता नहीं सकता।

15 मूर्ख इतना चतुर नहीं कि अपने घर का मार्ग पा जाये।
इसलिये उसको तो जीवन भर कठोर काम करना है।

कर्म का मूल्य

16 किसी देश के लिये बहुत बुरा है कि उसका राजा किसी बच्छे जैसा हो और किसी देश के लिये यह बहुत बुरा है कि उसके अधिकारी अपना सारा समय खाने में ही गुजारते हों। 17 किन्तु किसी देश के लिये यह बहुत अच्छा है कि उसका राजा किसी उत्तम वंश का हो। किसी देश के लिये यह बहुत उत्तम है कि उसके अधिकारी अपने खाने और पीने पर नियन्त्रण रखते हैं। वे अधिकारी बलशाली होने के लिये खाते पीते हैं न कि मतवाले हो जाने के लिये।

18 यदि कोई व्यक्ति काम करने में बहुत सुस्त है,
तो उसका घर टपकना शुरू कर देगा और उसके घर की छत गिरने लगेगी।

19 लोग भोजन का आनन्द लेते हैं और दाखमधु जीवन को और अधिक खुशियों से भर देती हैं। किन्तु धन के चक्कर में सभी पड़े रहते हैं।

निन्दा पूर्ण बातें

20 राजा के विषय में बुरी बातें मत करो। उसके बारे में बुरी बातें सोचो तक मत। सम्पन्न व्यक्तियों के विषय में भी बुरी बातें मत करो। चाहे तुम अपने घर में अकेले ही क्यों न हो। क्योंकि हो सकता है कि कोई एक छोटी सी चिड़ियाँ उड़कर तुमने जो कुछ कहा है, वह हर बात उन्हें बता दे।

निर्भीक होकर भविष्य का सामना करो

11तुम जहाँ भी जाओ, वहाँ उत्तम कार्य करो। थोड़े समय बाद तुम्हारे उत्तम कार्य वापस लौट कर तुम्हारे पास आएंगे।

2 जो कुछ तुम्हारे पास है उसका कुछ भाग सात आठ लोगों को दे दो। तुम जान ही नहीं सकते कि इस धरती पर कब क्या बुरा घट जाए?

3 कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में तुम निश्चित हो सकते हो। जैसे बादल वर्षा से भरे हैं तो वे धरती पर पानी बरसाएंगे ही। यदि कोई पेड़ गिरता है चाहे दाहिनी तरफ गिरे, या बायीं तरफगिरता है। वह वहीं पड़ा रहेगा जहाँ वह गिरा है।

4 किन्तु कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनके बारे में तुम निश्चित नहीं हो सकते। फिर भी तुम्हें एक अवसर तो लेना ही चाहिये। जैसे यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह से उत्तम मौसम का इंतजार करता रहता है तो वह अपने बीज बो ही नहीं सकता है और इसी तरह कोई व्यक्ति इस बात से डरता रहता है कि हर बादल बरसेगा ही तो वह अपनी फसल कभी नहीं काट सकेगा।

5 हवा का रूख कहाँ होगा तुम नहीं जान सकते। तुम नहीं जानते कि माँ के गर्भ में बच्चा प्राण कैसे पाता है? इसी प्रकार तुम यह भी नहीं जान सकते कि परमेश्वर क्या करेगा? सब कुछ को घटित करने वाला तो वही है।

6 इसलिये सुबह होते ही रूपाई शुरू कर दो और दिन ढले तक काम मत रोको। क्योंकि तुम नहीं जानते कि कौन सी बात तुम्हें धनवान बना देगी। हो सकता है तुम जो कुछ करो सब में सफल हो।

7 जीवित रहना उत्तम है। सूर्य का प्रकाश देखना अच्छा है। 8 तुम्हें अपने जीवन के हर दिन का आनन्द उठाना चाहिये! तुम चाहे कितनी ही लम्बी आयु पाओ। पर याद रखना कि तुम्हें मरना है और तुम जितने समय तक जिए हो उससे कहीं अधिक समय तक तुम्हें मृत रहना है और मर जाने के बाद तो तुम कुछ कर नहीं सकते।

युवावस्था में ही परमेश्वर की सेवा करो

9 सो हे युवकों! जब तक तुम जवान हो, आनन्द मनाओ। प्रसन्न रहो! और जो तुम्हारा मन चाहे, वही करो। जो तुम्हारी इच्छा हो वह करो। किन्तु याद रखो तुम्हारे प्रत्येक कार्य के लिये परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेगा। 10 क्रोध को स्वयं पर काबू मत पाने दो और अपने शरीर को भी कष्ट मत दो। तुम अधिक समय तक जवान नहीं बने रहोगे।

बुढ़ापे की समस्याएँ

12बचपन से ही अपने बनाने वाले का स्मरण करो। इससे पहले कि बुढ़ापे के बुरे दिन तुम्हें आ घेरें। पहले इसके कि तुम्हें यह कहना पड़े कि “हाय, में जीवन का रस नहीं ले सका।”

2 बचपन से ही अपने बनाने वाले का स्मरण कर। जब तुम बुढ़े होगे तो सूर्य चन्द्रमा और सितारों की रोशनी तुम्हें अंधेरी लगेगीं। तुम्हारा जीवन विपत्तयों से भर जाएगा। ये विपत्तियाँ उन बादलों की तरह ही होंगीं जो आकाश में वर्षा करते हैं और फिर कभी नहीं छँटते।

3 उस समय तुम्हारी बलशाली भुजाएँ निर्बल हो जायेंगी। तुम्हारे सुदृढ़ पैर कमजोर हो जाएँगे और तुम अपना खाना तक चबा नहीं सकोगे। आँखों से साफ दिखाई तक नहीं देगा। 4 तुम बहरे हो जाओगे। बाजार का शोर भी तुम सुन नहीं पाओगे। चलती चक्की भी तुम्हें बहुत शांत दिखाई देगी। तुम बड़ी मुश्किल से लोगों को गाते सुन पाओगे। तुम्हें अच्छी नींद तो आएगी ही नहीं। जिससे चिड़ियाँ की चहचहाहट भोर के तड़के तुम्हें जगा देगी।

5 चढ़ाई वाले स्थानों से तुम डरने लगोगे। रास्ते की हर छोटी से छोटी वस्तु से तुम डरने लगोगे कि तुम कहीं उस पर लड़खड़ा न जाओ। तुम्हारे बाल बादाम के फूलों के जैसे सफेद हो जायेंगे। तुम जब चलोगे तो उस प्रकार घिसटते चलोगे जैसे कोई टिड्डा हो। तुम इतने बूढ़े हो जाओगे कि तुम्हारी भूख जाती रहेगी। फिर तुम्हें अपने नए घर यानि कब्र में नित्य निवास के लिये जाना होगा और तुम्हारी मुर्दनी में शामिल लोगों की भीड़ से गलियाँ भर जायेंगी।

मृत्यु

6 अभी जब तू युवा है, अपने बनानेवाले को याद रख।
इसके पहले कि चाँदी की जीवन डोर टूट जाये और सोने का पात्र टूटकर बिखर जाये।
इसके पहले कि तेरा जीवन बेकार हो जाये जैसे किसी कुएँ पर पात्र टूट पड़ा हो।
इसके पहले कि तेरा जीवन बेकार हो जाये ऐसे, जैसे टूटा पत्थर जो किसी को ढकता है और उसी में टूटकर गिर जाता है।
7 तेरी देह मिट्टी से उपजी है और,
जब मृत्यु होगे तो तेरी वह देह वापस मिट्टी हो जायेगी।
किन्तु यह प्राण तेरे प्राण परमेश्वर से आया है
और जब तू मरेगा, तेरा यह प्राण तेरा वापस परमेश्वर के पास जायेगा।

8 सब कुछ बेकार है, उपदेशक कहता है कि सब कुछ व्यर्थ है!

निष्कर्ष

9 उपदेशक बहुत बुद्धिमान था। वह लोगों को शिक्षा देने में अपनी बुद्धि का प्रयोग किया करता था। उपदेशक ने बड़ी सावधानी के साथ अध्ययन किया और अनेक सूक्तियों को व्यवस्थित किया। 10 उपदेशक ने उचित शब्दों के वचन के लिये कठिन परिश्रम किया और उसने उन शिक्षाओं को लिखा जो सच्ची है और जिन पर भरोसा किया जा सकता है।

11 विवेकी पुरुषों के वचन उन नुकीली छड़ियों के जैसे होते हैं जिनका उपयोग पशुओं को उचित मार्ग पर चलाने के लिये किया जाता है। ये उपदेशक उन मज़बूत खूँटों के समान होते हैं जो कभी टूटते नहीं। जीवन का उचित मार्ग दिखाने के लिये तुम इन उपदेशकों पर विश्वास कर सकते हो। वे सभी विवेक पूर्ण शिक्षायें उसी गड़रिये (परमेश्वर) से आतीं है। 12 सो पुत्र! एक चेतावनी और लोग तो सदा पुस्तकें लिखते ही रहते हैं। बहुत ज्यादा अध्ययन तुझे बहुत थका देगा।

13-14 इस सब कुछ को सुन लेने के बाद अब एक अन्तिम बात यह बतानी है कि परमेश्वर का आदर करो और उसके आदेशों पर चलो क्योंकि यह नियम हर व्यक्ति पर लागू होता है। क्योंकि लोग जो करते हैं, उसे यहाँ तक कि उनकी छिपी से छिपी बातों को भी परमेश्वर जानता है। वह उनकी सभी अच्छी बातों और बुरी बातों के विषय में जानता है। मनुष्य जो कुछ भी करते हैं उस प्रत्येक कर्म का वह न्याय करेगा।

समीक्षा

अच्छे बीजों को बोने के लिए

सुलैमान प्रभाव की सामर्थ को अच्छी तरह से जानते हैं। यह प्रभाव अच्छाई या बुराई के लिए हो सकता है।

एक बुद्धिमान व्यक्ति एक शहर को बचा सकता है (9:13-18अ)। दूसरी ओर,”एक पापी बहुत अच्छाई को नष्ट करता है” (व.18ब)। हिटलर, स्टेलिन और पोल पॉट इस सिद्धांत के स्पष्ट उदाहरण हैं। एक मनुष्य बुराई के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकता है और बड़ी हानि पहुँचा सकता है।

लेकिन, प्रभाव को इनकी तरह अत्याचारी होने की आवश्यकता नहीं है ताकि बुरा प्रभाव डाले। “ मरी हुई मक्खियों के कारण गन्धी का तेल सड़ने और बसाने लगता है; और थोड़ी सी मूर्खता बुध्दि और प्रतिष्ठा को घटा देती है” (10:1, एम.एस.जी)। यदि एक मर मक्खी बुरा प्रभाव बना सकती है, एक कम प्रभाव वाला मनुष्य बुराई या अच्छाई के लिए एक प्रभाव बना सकता है। हम सभी मरहम में मक्खी बन सकते हैं!

लेखक इस बारे में बहुत कुछ बताते हैं कि एक अच्छा प्रभाव कैसे बनना है, इसके बजाय कि बुरा प्रभाव कैसे बनना हैः

  1. अपने शब्दों पर ध्यान दें

सुलैमान हमें याद दिलाते हैं कि “बुद्धिमान के मुंह से वचन अनुग्रही होते हैं” (व.12अ)। शांति से गुस्सैल शब्दों को उत्तर दीजिए (व.4)।

कानाफूसी करना और लीडर्स की निंदा करने से दूर रहे। सावधान रहिये कि आप क्या कहते या सोचते हैं। “ राजा को मन में भी शाप न देना, न धनवान को अपने शयन की कोठरी में शाप देना; क्योंकि कोई आकाश का पक्षी तेरी वाणी को ले जाएगा, और कोई उड़नाला जन्तु उस बात को प्रकट कर देगा “ (व.20)।

  1. खतरा मोल लीजिए।

अच्छाई के लिए अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए आपको खतरा मोल लेने की आवश्यकता है। “उदार बनियेः” दान देने में निवेश कीजिए। दान उच्च रूप से प्रतिफल देता है। अपनी अच्छाई को जमा मत करिए; उन्हें आस-पास फैलाइए। दूसरों के लिए एक आशीष बनिए” (11:1-2, एम.एस.जी)। दूसरे शब्दों में, वह कहते हैं,”कुछ भी साहसिक कार्य नहीं, कुछ लाभ नहीं।” प्रेम करना है खतरा लेना कि बदले में प्रेम नहीं किया जाएगा। कोशिश करना असफलता का खतरा मोल लेना है। लेकिन खतरा अवश्य ही लिया जाना चाहिए, क्योंकि जीवन में सबसे बड़ा खतरा है, कुछ खतरा न लेना।

यदि हम अति सावधान हैं तो कभी भी कुछ प्राप्त नहीं करेंगे। “ जो वायु को ताकता रहेगा वह बीज बोने न पाएगा, और जो बादलों को देखता रहेगा वह लवने न पाएगा” (व.4)। हम इस सिद्धांत को चर्च को रोपने में लगा सकते हैं। इसमें खतरा और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होगी। हमें जीते ना जा सकने वाले अवरोधों से नहीं डरना चाहिए। हमें “हवा” और “बादलों” के कारण हार नहीं माननी चाहिए।

  1. अपने प्रयासों को फैलाईये

अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, आपको अपने जीवन में विभिन्न अवसरों को लगातार बदलने की आवश्यकता हैः “ भोर को अपना बीज बो, और साँझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सफल होगा” (व.6)।

अपने सभी अंडो को एक टोकरी में मत रखिये। चारों ओर से आगे बढ़िये और हर अवसर का लाभ लीजिए। यही कारण है कि एक चर्च के रूप में हम हर दिशा में बीजों को बोने की कोशिश करते हैं – आराधना, प्रार्थना, लीडरशिप, चेला बनना, सिद्धांतवादी प्रशिक्षण, सामाजिक बदलाव, सुसमाचार प्रचार, बंदीगृह, गरीबों और पीड़ीतो के लिए कार्य के द्वारा।

  1. अपने अवसरों को लीजिए

जीवन थोड़े समय का है। आपके अवसर सीमित हैं: “ यदि मनुष्य बहुत वर्ष जीवित रहे, तो उन सभी में आनन्दित रहें... हे जवान, अपनी जवानी में आनन्द कर “ (वव.8अ,9, एम.एस.जी)।

पुस्तक अंत में इसकी सभी खोज और प्रश्न के निष्कर्ष के साथ समाप्त होती है। जीवन का अर्थ, परमेश्वर के साथ आपके संबंध में शामिल है। उनका सम्मान कीजिए और उनकी आज्ञाओं को मानिये। हर व्यक्ति के लिए यह पूर्ण कर्तव्य है (12:13ब)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि आपका सम्मान करुँ और आपकी आज्ञाओं को मानूं। मेरी सहायता कीजिए कि अच्छाई के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करुँ और नाकि बुराई के लिए। मेरी सहायता कीजिए कि हर अवसर का लाभ लूँ जिसे आपने मेरे सामने रखा है।

पिप्पा भी कहते है

सभोपदेशक 12:12

“ बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं होता, और बहुत पढ़ना देह को थका देता है”।

यह एक भविष्यवाणी का कथन है! क्या सुलैमान जानते थे कि सालों से हर विषय पर कितनी पुस्तकें लिखी जाएँगी? बहुत सी सुंदर, उत्साहित करने वाली पुस्तकें हैं लेकिन बहुत सी दूसरी भी हैं। बहुत सालों पहले मुझे थोड़ी सहानुभूति महसूस हुई जब वह हमारे एक बच्चे की सहायता कर रही थी घर पर किताब को पढ़ने में। उन्होंने कहा,”मुझे किताबें पसंद नहीं। उनमें शब्द होते हैं!”

दिन का वचन

सभोपदेशक 11:10

“अपने मन से खेद और अपनी देह से दु:ख दूर कर, क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ हैं।”

reader

App

Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.

reader

Email

Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.

Podcast

Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.

reader

Website

Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.

संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

Bible in One Year

  • Bible in One Year

This website stores data such as cookies to enable necessary site functionality and analytics. Find out more