दिन 212

वाद-विवाद, झगड़ा और लड़ाई से कैसे बचें

बुद्धि नीतिवचन 18:17-19:2
नए करार रोमियों 14:1-18
जूना करार 1 इतिहास 9:1-10:14

परिचय

ई.यू के ब्रिटेन सदस्यत्व पर हाल ही में हुए जनमत संग्रह से 52-48 विभाजन हुए। कैम्पेन क्रोध और कटुता से भरा हुआ था, देश में फूट पड़ गई, और मुख्य राजनैतिक दल जल्द ही लड़ने लगे और अलग हो गए। यह एक उदाहरण है जो हम विश्वभर में देखते हैं। हर समाचार में वाद-विवाद, लड़ाई और झगड़े की कहानियां होती हैं।

जब पाप विश्व में आया, तब वाद-विवाद लड़ाई और झगड़े शुरु हुए। आदम ने हव्वा पर दोष लगाया। कैन ने अपने भाई की हत्या की। तब से विश्व का इतिहास सभी प्रकार के लड़ाई-झगड़े रहे हैं।

जब लोग परमेश्वर से भटक जाते हैं, तब वे एक दूसरे से लड़ना शुरु करते हैं। हम हर जगह संबंधों को टूटते हुए देखते हैं: टूटे हुए विवाह, टूटे घर, काम पर टूटे संबंध, लोगों में लड़ाई और देशों में लड़ाईयाँ। दुखद रूप से, चर्च प्रतिरक्षित नहीं हैं। शुरुवात से ही वहाँ पर वाद-विवाद, लड़ाई और झगड़े रहे हैं।

हम लड़ाई से कैसे निपटे?

बुद्धि

नीतिवचन 18:17-19:2

17 पहले जो बोलता है ठीक ही लगता है
 किन्तु बस तब तक ही जब तक दूसरा उससे प्रश्न नहीं करता है।

18 यदि दो शक्तिशाली आपस में झगड़ते हों,
 उत्तम हैं कि उनके झगड़े को पासे फेंक कर निपटाना।

19 किसी दृढ़ नगर को जीत लेने से भी रूठे हुए बन्धु को मनाना कठिन है,
 और आपसी झगड़े होते ऐसे जैसे गढ़ी के मुंदे द्वार होते हैं।

20 मनुष्य का पेट उसके मुख के फल से ही भरता है,
 उसके होठों की खेती का प्रतिफल उसे मिला है।

21 वाणी जीवन, मृत्यु की शक्ति रखती है,
 और जो वाणी से प्रेम रखते है, वे उसका फल खाते हैं।

22 जिसको पत्नी मिली है, वह उत्तम पदार्थ पाया है।
 उसको यहोवा का अनुग्रह मिलता है।

23 गरीब जन तो दया की मांग करता है,
 किन्तु धनी जन तो कठोर उत्तर देता है।

24 कुछ मित्र ऐसे होते हैं जिनका साथ मन को भाता है
 किन्तु अपना घनिष्ठ मित्र भाई से भी उत्तम हो सकता है।

19वह गरीब श्रेष्ठ है, जो निष्कलंक रहता;
 न कि वह मूर्ख जिसकी कुटिलतापूर्ण वाणी है।

2 ज्ञान रहित उत्साह रखना अच्छा नहीं है
 इससे उतावली में गलती हो जाती है।

समीक्षा

वाद-विवाद से दूर रहें

नीतिवचन की पुस्तक प्रायोगिक सलाह से भरी हुई है कि कैसे वाद-विवाद से दूर रहना है।

  1. दोनों पक्षों को सुनिये

सामान्य रूप से वाद-विवाद में दो पक्ष होते हैं, और हमेशा दोनों पक्ष सुनने योग्य होते हैं। फिर से जाँचने का अधिकार महत्वपूर्ण है, किसी भी कानून व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान के साथ। 'मुकदमें में जो पहले बोलता, वही सच्चा जान पड़ता है, परंतु बाद में दूसरे पक्ष वाला आकर उसे जाँच लेता है' (18:17, एम.एस.जी.)।

  1. पवित्र आत्मा की मदद मांगो

हमें परमेश्वर के मार्गदर्शन की आवश्यकता है विशेषरूप से जब हम 'कठिन निर्णयों' का सामना करते हैं (व.18, एम.एस.जी.)। पुराने नियम में, 'पर्ची डालना' लड़ाई से निपटने का एक तरीका था। किंतु, पवित्र आत्मा के ऊँडेले जाने से वाद-विवाद पर परमेश्वर के मार्गदर्शन को ग्रहण करने का बेहतर तरीका है (1कुरिंथियो 6:1-6 देखें)।

  1. अनावश्यक ठोकर खिलाने के कार्य से दूर रहें

अपने भाईयों और बहनों को ठोकर खिलाने से बचने के लिए वह सब करो जो आप कर सकते हैं:'चिढ़े हुए भाई को मनाना दृढ़ नगर के ले लेने से कठिन होता है' (नीतिवचन 18:19)। गंभीर झगड़े मित्रों के बीच में अवरोध का निर्माण करते हैं। इन दीवारों को खड़ा करना आसान है और इसे गिराना बहुत कठिन।

  1. सावधानीपूर्वक अपने शब्दों का चुनाव कीजिए

आपके शब्द एक जीवन देने वाले बल हो सकते हैं, महान तृप्ति ला सकते हैं और फूट को चंगा कर सकते हैं:'मनुष्य का पेट मुंह की बातों के फल से भरता है; और बोलने से जो कुछ प्राप्त होता है उससे वह तृप्त होता है' (व.20, एम.एस.जी.)।

फिर भी आपके वचन एक विनाश करने वाले बल हो सकते हैं: वचन नष्ट करते, वचन जीवन देते हैं; वे या तो जहर हैं या फल हैं – आप चुनते हैं (व.21, एम.एस.जी.)। जो आप कहते हैं उससे आप बहुत अच्छा या बहुत बुरा कर सकते हैं।

  1. सावधानीपूर्वक अपने साथियों का चुनाव करें

लेखक कहते हैं, 'जिसने स्त्री ब्याह ली, उसने उत्तम पदार्थ पाया, और यहोवा का अनुग्रह उस पर हुआ है' (व.22, एम.एस.जी)।

मेरे अनुभव में यह निश्चित ही सच है कि पीपा की बुद्धि, सलाह और सहभागिता ने अक्सर मेरी सहायता की है इस क्षेत्र में परेशानी में न पडूँ। एक अच्छे पति या पत्नी अक्सर शांति लाते हैं।

चाहे हम विवाहित हो या नहीं, हमें सच में घनिष्ठ मित्रों की आवश्यकता है। इस नीतिवचन का दूसरा भाग हमें याद दिलाता है कि यद्यपी मित्र आते और जाते हैं, 'ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है' (व.24ब)। हमें अपने जीवन में ऐसे मित्रों की आवश्यकता है। निश्चित ही, यीशु ऐसे मित्र हैं जो एक भाई या बहन से अधिक मिले रहते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, होने दीजिए कि जो वचन मैं बोलता हूँ वह मेरे आस-पास के लोगों के लिए जीवन का एक स्त्रोत हो।
नए करार

रोमियों 14:1-18

दूसरों में दोष मत निकाल

14जिसका विश्वास दुर्बल है, उसका भी स्वागत करो किन्तु मतभेदों पर झगड़ा करने के लिए नहीं। 2 कोई मानता है कि वह सब कुछ खा सकता है, किन्तु कोई दुर्बल व्यक्ति बस साग-पात ही खाता है। 3 तो वह जो हर तरह का खाना खाता है, उसे उस व्यक्ति को हीन नहीं समझना चाहिए जो कुछ वस्तुएँ नहीं खाता। वैसे ही वह जो कुछ वस्तुएँ नहीं खाता है, उसे सब कुछ खाने वाले को बुरा नहीं कहना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर ने उसे अपना लिया है। 4 तू किसी दूसरे घर के दास पर दोष लगाने वाला कौन होता है? उसका अनुमोदन या उसे अनुचित ठहराना स्वामी पर ही निर्भर करता है। वह अवलम्बित रहेगा क्योंकि उसे प्रभु ने अवलम्बित होकर टिके रहने की शक्ति दी।

5 और फिर कोई किसी एक दिन को सब दिनों से श्रेष्ठ मानता है और दूसरा उसे सब दिनों के बराबर मानता है तो हर किसी को पूरी तरह अपनी बुद्धि की बात माननी चाहिए। 6 जो किसी विशेष दिन को मनाता है वह उसे प्रभु को आदर देने के लिए ही मनाता है। और जो सब कुछ खाता है वह भी प्रभु को आदर देने के लिये ही खाता है। क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है। और जो किन्ही वस्तुओं को नहीं खाता, वह भी ऐसा इसलिए करता है क्योंकि वह भी प्रभु को आदर देना चाहता है। वह भी परमेश्वर को ही धन्यवाद देता है।

7 हम में से कोई भी न तो अपने लिए जीता है, और न अपने लिये मरता है। 8 हम जीते हैं तो प्रभु के लिए और यदि मरते है तो भी प्रभु के लिए। सो चाहे हम जियें चाहे मरें हम है तो प्रभु के ही। 9 इसलिए मसीह मरा; और इसलिए जी उठा ताकि वह, वे जो अब मर चुके हैं और वे जो अभी जीवित हैं, दोनों का प्रभु हो सके।

10 सो तू अपने विश्वास में सशक्त भाईपर दोष क्यों लगाता है? या तू अपने विश्वास में निर्बल भाई को हीन क्यों मानता है? हम सभी को परमेश्वर के न्याय के सिंहासन के आगे खड़ा होना है। 11 शास्त्र में लिखा है:

“प्रभु ने कहा है, ‘मेरे जीवन की शपथ’
‘हर किसी को मेरे सामने घुटने टेकने होंगे;
और हर जुबान परमेश्वर को पहचानेगी।’”

12 सो हममें से हर एक को परमेश्वर के आगे अपना लेखा-जोखा देना होगा।

पाप के लिए प्रेरित मत कर

13 सो हम आपस में दोष लगाना बंद करें और यह निश्चय करें कि अपने भाई के रास्ते में हम कोई अड़चन खड़ी नहीं करेंगे और न ही उसे पाप के लिये उकसायेंगे। 14 प्रभु यीशु में आस्थावान होने के कारण मैं मानता हूँ कि अपने आप में कोई भोजन अपवित्र नहीं है। वह केवल उसके लिए अपवित्र हैं, जो उसे अपवित्र मानता हैं, उसके लिए उसका खाना अनुचित है।

15 यदि तेरे भाई को तेरे भोजन से ठेस पहुँचती है तो तू वास्तव में प्यार का व्यवहार नहीं कर रहा। तो तू अपने भोजन से उसे ठेस मत पहुँचा क्योंकि मसीह ने उस तक के लिए भी अपने प्राण तजे। 16 सो जो तेरे लिए अच्छा है उसे निन्दनीय मत बनने दे। 17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य बस खाना-पीना नहीं है बल्कि वह तो धार्मिकता है, शांति है और पवित्र आत्मा से प्राप्त आनन्द है। 18 जो मसीह की इस तरह सेवा करता है, उससे परमेश्वर प्रसन्न रहता है और लोग उसे सम्मान देते हैं।

समीक्षा

लड़ाई से निपटे

यह लेखांश उन कुछ लड़ाईयों के प्रति बहुत ही महत्वपूर्ण है जो अभी ग्लोबल चर्च में रहे हैं। यदि केवल चर्च ने पिछले 2000 वर्षों में पौलुस के निर्देशों को माना होता। जैसा कि जॉन स्कॉट लिखते हैं, इन वचनों में पौलुस का उद्देश्य था 'कि रूढ़िवादी मसीहों (अधिकतर यहूदी) और उदार दिमाग वाले मसीहों (मुख्य रूप से अन्यजाति) को मसीह सहभागी में मित्रभाव से साथ-साथ रखे।'

कुछ मामले थे जिस पर पौलुस मृत्यु तक लड़ने के लिए तैयार थे – सुसमाचार का सत्य (कि मसीह हमारे लिए मरे, वव.9,15)। यीशु का जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान (व.9) और मसीह का प्रभुत्व (व.9) ऐसे यीशु जिनके साथ समझौता नहीं किया जा सकता है।

किंतु, दूसरी ऐसी चीजें हैं जो इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं। वे 'विवादास्पद मामले' हैं (व.1)। वे द्वितीय क्षेत्र हैं। वह विभिन्न उदाहरण देते हैं जैसे कि शाकाहारी होना या एक दिन को दूसरे से अधिक पवित्र समझना।

आज कुछ मसीह शराब से परहेज करते हैं। दूसरे नहीं करते हैं। कुछ मसीह शांतिवादी हैं। कुछ दूसरे नही हैं। और ऐसे बहुत से दूसरे मामले हैं जहाँ पर मसीह जूनूनी रूप से लड़ाई वाले मामलों के विषय में अलग हो चुके हैं। हम इन लड़ाई के साथ कैसे निपटते हैं?

  1. विभिन्न मत वालों का स्वागत कीजिए

वह लिखते हैं 'स्वीकार करे' (शब्द का अर्थ है 'स्वागत करे') जिनका 'विश्वास कमजोर है' (व.1अ)। खुली बाँहों के साथ उन साथी विश्वासियों का स्वागत करो जो चीजों को उस तरह से नहीं देखते हैं जैसे हम देखते हैं...आखिरकार, हम न्याय के स्थान में परमेश्वर के सामने घुटनों पर होंगे' (वव.1,10, एम.एस.जी)।

  1. दोष लगाने में शीघ्रता मत करो

' जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो, परन्तु उसकी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं' (व.1ब, एम.एस.जी)।

वह आगे कहते हैं, ' तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है?' (व.4); ' तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है?' (व.10); ' अत: आगे से हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ, पर तुम यह ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे' (व.13, ए.एम.पी.)। हमें अवश्य ही लोगों को अपने से अलग नहीं रखने देना चाहिए और इसके लिए उन पर दोष नहीं लगाना चाहिए।

यह मामले का समाधान है। इस लेखांश में चार बार पौलुस कहते हैं कि हमें एक – दूसरे पर दोष नहीं लगाना चाहिए।

  1. दूसरों को तुच्छ मत समझो

हमें 'अवश्य ही दूसरों को तुच्छ नहीं समझना चाहिए' (व.3अ) जिनके विचार हमसे अलग हैं। परमेश्वर ने उनका स्वागत किया है (व.3अ)। हमें भी करना चाहिए।

  1. वह करो जो आपको सही लगता है

' हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले' (व.5)। हर कोई विवेक के दृढ़ विश्वास पर चलने के लिए मुक्त है (व.5, एम.एस.जी)। ' जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है' (व.6, एम.एस.जी)। सिर्फ इसलिए कि इन मामलों में असहमत होने के लिए हम शायद से सहमत हो जाएँ, यह बात इसे महत्वहीन नही बनाती है। हमें सावधानी बरतने की आवश्यकता है कि हर स्थिति में वह करे जो हम सोचते हैं कि सही है।

  1. दूसरों के अभिप्रायों के विषय में सर्वश्रेष्ठ सोचिये

' जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है। जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है' (व.6)।

दूसरों को संदेह का लाभ दो और मान लो कि वह परमेश्वर की नजरो में जो सही है, वह करना चाहते हैं (वव.7-8)।

  1. दूसरों के विवेक के विषय में संवदेनशील रहे

पौलुस कहते हैं, ' तुम यह ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे' (व.13)। उदाहरण के लिए, यदि कोई सोचता है कि शराब पीना गलत है, तो उनके सामने शराब पीना सही नहीं होगा। हम उन्हें उदास नहीं करना चाहते हैं (व.15)।

  1. एक दूसरे की सहायता करें और उत्साहित करें

' इसलिये हम उन बातों में लगे रहें जिनसे मेल – मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो' (व.19, एम.एस.जी)।

  1. हमेशा प्रेम में कार्य करें

' यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता' (व.15)। ' भला तो यह है कि तू न मांस खाए और न दाखरस पीए, न और कुछ ऐसा करे जिससे तेरा भाई ठोकर खाए' (व.21, एम.एस.जी.)।

विवादास्पद मामले महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उतने महत्वपूर्ण नहीं जितने वह चीजें हैं जो हम एकत्व में रखते हैं: ' क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना – पीना नहीं, परन्तु सत्यनिष्ठा और मेल मिलाप और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा में होता है' (व.17)। इसी से अंतर पड़ता है। आओ हम विवादास्पद मामलों के विषय में वाद-विवाद में न पड़े, जो चर्च में फूट डालते हैं और चर्च के बाहरवालों को अंदर आने से रोक देते हैं।

पुरातन पंथ के लेखक रूपर्टस मेल्डेनियस के वचनों पर ध्यान दो, 'एकता, महतवपूर्ण है; स्वतंत्रता, इतनी महत्वपूर्ण नहीं; सबकुछ में प्रेम जरुरी है।'

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं चर्च में एक नये एकत्व के लिए प्रार्थना करता हूँ। हमारी सहायता कीजिए कि आज और हर दिन इस बात पर ध्यान दें कि परमेश्वर का राज्य किस बारे में हैः सत्यनिष्ठा, शांति और पवित्र आत्मा में आनंद।
जूना करार

1 इतिहास 9:1-10:14

9इस्रएल के लोगों के नाम उनके परिवार के इतिहास में अंकित थे। वे परिवार इस्राएल के राजाओं के इतिहास में रखे गए थे।

यरूशलेम के लोग

यहूदा के लोग बन्दी बनाए गए थे और बाबेल को जाने को विवश किये गये थे। वे उस स्थान पर इसलिये ले जाए गए, क्योंकि वे परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं थे। 2 सबसे पहले लौट कर आने वाले और अपने नगरों और अपमने प्रदेश में रहने वाले लोगों में कुछ इस्राएली, याजक, लेवीवंशी और मन्दिर में सेवा करने वाले सेवक थे।

3 यरूशलेम में रहने वाले यहूदा, बिन्यामीन, एप्रैमी और मनश्शे के परिवार समूह के लोग ये हैं:

4 ऊतै अम्मीहूद का पुत्र था। अम्मीहूद ओम्री का पुत्र था। ओम्री इम्री का पुत्र था। इम्री बानी का पुत्र था। बानी पेरेस का वंशज था। पेरेस यहूदा का पुत्र था।

5 शिलोई लोग जो यरूशलेम में रहते थे, ये थेः असायाह, सबसे बड़ा पुत्र था और असायाह के पुत्र थे।

6 जेरह लोग, जो यरूशलेम में रहते थे, ये थेः यूएल और उसके सम्बन्धी, वे सब मिलाकर छः सौ नब्बे थे।

7 बिन्यामीन के परिवार समूह से जो लोग यरूशलेम में थे, वे ये हैं सल्लू मशुल्लाम का पुत्र था। मशुल्लाम होदव्याह का पुत्र था। होदव्याह हस्सनूआ का पुत्र था। 8 यिब्रिय्याह यरोहाम का पुत्र था। एला उज्जी का पुत्र था। उज्जी मिक्री का पुत्र था। मशुल्लाम शपत्याह का पुत्र था। शपत्याह रूएल का पुत्र था। रुएल यीब्निय्याह का पुत्र था। 9 बिन्यामीन का परिवार इतिहास बताता है कि यरूशलेम में उनके नौ सौ छप्पन व्यक्ति रहते थे। वे सभी व्यक्ति अपने परिवारों के प्रमुख थे।

10 ये वे याजक हैं जो यरूशलेम में रहते थेः यदायाह, यहोयारीब, याकीन और अजर्याह! 11 अजर्याह हिलकिय्याह का पुत्र था। हिलकिय्याह मशुल्लाम का पुत्र था। मशुल्लाम सादोक का पुत्र था। सादोक मरायोत का पुत्र था। मरायोत अहीतूब परमेश्वर के मन्दिर के लिये विशेष उत्तरदायी अधिकारी था। 12 वहाँ यरोहाम का पुत्र अदायाह भी था। यरोहाम पशहूर का पुत्र था। पशहूर मल्कियाह का पुत्र था और वहाँ अदोएल का पुत्र मासै था। अदोएल जहजेश का पुत्र था। जेरा मशुल्लाम का पुत्र था। मशुल्लाम मशिल्लीत का पुत्र था। मशिल्लीत इम्मेर का पुत्र था।

13 वहाँ एक हजार सात सौ साठ याजक थे। वे अपने परिवारों के प्रमुख थे। वे परमेश्वर के मन्दिर में सेवा करने के कार्य के लिये उत्तरदायी थे।

14 लेवी के परिवार समूह से जो लोग यरूशलेम में रहते थे, वे ये हैः हश्शूब का पुत्र शमायाह। हश्शूब अज्रीकाम का पुत्र था। अज्रीकाम हशव्याह का पुत्र था। हशव्याह मरारी का वंशज था। 15 यरूशलेम में बकबक्कर, हेरेश, गालाल और मत्तन्याह भी रहे थे। मत्तन्याह मीका का पुत्र था। मीका जिक्री का पुत्र था। जिक्री आसाप का पुत्र था। 16 ओबाद्याह शमायाह का पुत्र था। शमायाह गालाल का पुत्र था। गालाल यदूतून का पुत्र था और आसा का पुत्र बेरेक्याह यरूशलेम में रहता था। आसा एल्काना का पुत्र था। अल्काना तोपा लोगों के पास एक छोटे नगर में रहता था।

17 ये वे द्वारपाल हैं जो यरूशलेम में रहते थेः शल्लूम, अक्कूब, तल्मोन, अहीमान और उनके सम्बन्धी। शल्लूम उनका प्रमुख था। 18 अब ये व्यक्ति पूर्व की ओर राजा के द्वार के ठीक बाद में खड़े रहते हैं। वे द्वारपाल लेवी परिवार समूह से थे। 19 शल्लूम कोरे का पुत्र था। कोरे एब्यासाप का पुत्र था। एब्यासाप कोरह का पुत्र था। शल्लूम और उसके भाई द्वारपाल थे। वे कोरे परिवार से थे। उन्हें पवित्र तम्बू के द्वार की रक्षा करने का कार्य करना था। वे इसे वैसे ही करते थे जैसे इनके पूर्वजों ने इनके पहले किया था। उनेक पूर्वजों का यह कार्य था कि वे पवित्र तम्बू के द्वार की रक्षा करें। 20 अतीत में, पीनहास द्वारपालों का निरीक्षक था। पीनहास एलीआजर का पुत्र था। यहोवा पीनहास के साथ था। 21 जकर्याह पवित्र तम्बू के द्वार का द्वारपाल था।

22 सब मिलाकर दो सौ बारह व्यक्ति पवित्र तम्बू के द्वार की रक्षा के लिये चुने गए थे। उनके नाम उनेक परिवार इतिहास में उनके छोटे नगरों में लिखे हुए थे। दाऊद और समूएल नबी ने उन लोगों को चुना, क्यों कि उन पर विश्वास किया जा सकता था। 23 द्वारपालों और उनके वंशजों का उत्तरदायित्व यहोवा के मन्दिर, पवित्र तम्बू की रक्षा करना था। 24 वहाँ चारों तरफ द्वार थेः पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। 25 द्वारपालों के सम्बन्धियों को, जो छोटे नगर में रहते थे, समय समय पर आकर उनको सहायता करनी पड़ती थी। वे आते थे और हर बार सात दिन तक द्वारपालों की सहायता करते थे।

26 द्वारपालों के चार प्रमुख द्वारपाल वहाँ थे। वे लेवीवंशी पुरुष थे। उनका कर्तव्य परमेश्वर के मन्दिर के कमरों और खजाने की देखभाल करना था। 27 वे रात भर परमेश्वर के मन्दिर की रक्षा में खड़े रहते थे और परमेश्वर के मन्दिर को प्रतिदिन प्रातः खोलने का उनका काम था।

28 कुछ द्वारपालों का काम मन्दिर की सेवा में काम आने वाली तश्तरियों की देखभाल करना था। वे इन तश्तरियों को तब गिनते थे जब वे भीतर लाई जाती थीं। वे इन तश्तरियों को तब गिनते थे जब वह बाहर जाती थीं। 29 अन्य द्वारपाल सज्जा—सामग्री और उन विशेष तश्तरियों की देखभाल के लिये चुने जाते थे। वे आटे, दाखमधु, तेल, सुगन्धि और विशेष तेल की भी देखभाल करते थे। 30 किन्तु केवल याजक ही विशेष तेल को मिश्रित करने का काम करते थे।

31 एक मतित्याह नामक लेवीवंशी था जिसका काम भेंट में उपयोग के लिये रोटी पकाना था। मतित्याह शल्लूम का सबसे बड़ा पुत्र था। शल्लूम कोरह परिवार का था। 32 द्वारपालों में से कुछ जो कोरह परिवार के थे, प्रत्येक सब्त को मेज पर रखी जाने वाली रोटी को तैयार करने का काम करते थे।

33 वे लेवी वंशी जो गायक थे और अपने परिवारों के प्रमुख थे, मन्दिर के कमरों में ठहरते थे। उन्हें अन्य काम नहीं करने पड़ते थे क्योंकि वे मन्दिर में दिन रात काम के लिये उत्तरदायी थे।

34 ये सभी लेवीवंशी अपने परिवारों के प्रमुख थे। वे अपने परिवार के इतिहास में प्रमुख के रूप में अंकित थे। वे यरूशलेम में रहते थे।

राजा शाऊल का परिवार इतिहास

35 यीएल गिबोन का पिता था। यीएल गिबोन नगर में रहता था। यीएल की पत्नी का नाम माका था। 36 यीएल का सबसे बड़ा पुत्र अब्दोन था। अन्य पुत्र सूर, कीश, बाल, नेर, नादाब, 37 गदोर, अह्यो, जकर्याह और मिल्कोत थे। 38 मिल्कोत शिमाम का पिता था। यीएल का परिवार अपने सम्बन्धियों के साथ यरूशलेम में रहता था।

39 नेर कीश का पिता था। कीश शाऊल का पिता था और शाऊल योनातान, मल्कीश, अबीनादाब, और एशबाल का पिता था।

40 योनातान का पुत्र मरीब्बाल था। मरीब्बाल मीका का पिता था।

41 मीका के पुत्र पीतोन, मेलेक, तहरे, और अहाज थे। 42 अहाज जदा का पिता था। जदा यारा का पिता था यारा आलेमेत, अजमावेत और जिम्री का पिता था। जिम्री मोसा का पिता था। 43 मोसा बिना का पुत्र था। रपायाह बिना का पुत्र था। एलासा रपायाह का पुत्र था और आसेल एलासा का पुत्र था।

44 आसेल के छः पुत्र थे। उनके नाम थेः अज्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शार्याह, ओबद्याह, और हनाना। वे आसेल के बच्चे थे।

राजा शाऊल की मुत्यु

10पलिश्ती लोग इस्राएल के लोगों के विरुद्ध लड़े। इस्राए के लोग पलिश्तियों के सामने भाग खड़े हुए। बहुत से इस्राएली लोग गिलबो पर्वत पर मारे गए। 2 पलिश्ती लोग शाऊल और उसके पुत्रों का पीछा लगातार करते रहे। उन्होंने उनको पकड़ लिया और उन्हें मार डाला। पलिश्तियों ने शाऊल के पुत्रों योनातान, अबीनादाब और मल्कीशू को मार डाला। 3 शाऊल के चारों ओर युद्ध घमासान हो गया। धनुर्धारियों ने शाऊल पर अपने बाण छोड़े और उसे घायल कर दिया।

4 तब शाऊल ने अपने कवच वाहक से कहा, “अपनी तलवार बाहर खींचो और इसका उपयोग मुझे मारने में करो। तब वे खतनारहित जब आएंगे तो न मुझे चोट पहुँचायेंगे न ही मेरी हँसी उड़ायेंगे।”

किन्तु शाऊल का कवच वाहक भयभीत था। उसने शाऊल को मारना अस्वीकार किया। तब शाऊल ने आपनी तलवार का उपयोग स्वयं को मारने के लिये किया। वह अपनी तलवार की नोक पर गिरा। 5 कवच वाहक ने देखा कि शाऊल मर गया। तब उसने स्वयं को भी मार डाला। वह अपनी तलवार की नोक पर गिरा और मर गया। 6 इस प्रकार शाऊल और उसके तीन पुत्र मर गए। शाऊल का सारा परिवार एक साथ मर गया।

7 घाटी में रहने वाले इस्राएल के सभी लोगों ने देखा कि उनकी अपनी सेना भाग गई। उन्होंने देखा कि शाऊल और उसके पुत्र मर गए।इसलिए उन्होंने अपने नगर छोड़े और भाग गए। तब पलिश्ती उन नगरों में आए जिन्हें इस्राएलियों ने छोड़ दिया था और पलिश्ती उन नगरों में रहने लगे।

8 अगले दिन, पलिश्ती लोग शवों की बहुमूल्य वस्तुएँ लेने आए। उन्होंने शाऊल के शव और उसके पुत्रों के शवों को गिबोन पर्वत पर पाया। 9 पलिश्तियों ने शाऊल के शव से चीजें उतारीं। उन्होंने शाऊल का सिर और कवच लिया। उन्होंने अपने पूरे देश में अपने असत्य देवताओं और लोगों को सूचना देने के लिये दूत भेजे। 10 पलिश्तियों ने शाऊल के कवच को अपने असत्य देवता के मन्दिर में रखा। उन्होंने शाऊल के सिर को दोगोन के मन्दिर में लटकाया।

11 याबेश गिलाद नगर में रहने वाले सब लोगों ने वह हर एक बात सुनी जो पलिश्ती लोगों ने शाऊल के साथ की थी। 12 याबेश के सभी वीर पुरुष शाऊल और उसके पुत्रों का शव लेने गए। वे उन्हें याबेश में शाउल और उसके पुत्रों का शव लेने गए। वे उन्हे याबेश में वापस ले आए। उन वीर पूरुषों ने शाउल और उसके पुत्रों की अस्थियों को, याबेश में एक विशाल पेड़ के नीचे दफनाया। तब उन्होंने अपना दुःख प्रकट किया और सात दिन तक उपवास रखा।

13 शाऊल इसलिये मरा कि वह यहोवा के प्रति विश्वासपात्र नहीं था। शाउल ने यहोवा के आदेशों का पालन नाहीं किया। शाऊल एक माध्यम के पास गया और 14 यहोवा को छोड़कर उससे सलाह माँगी। यही कारण है कि यहोवा ने उसे मार डाला और यिशै के पुत्र दाऊद को राज्य दिया।

समीक्षा

लड़ना बंद करो

'पलिश्ती इस्रालियों से लड़े..शाऊल के साथ घमासान युद्ध होता रहा'(10:1,3)। पलिश्तियों ने शाऊल पर हमला किया और इसके कारण वह मर गए। 1शमुएल 31 में हमें इसका वर्णन मिलता है। किंतु, इतिहास के लेखक इसका एक स्पष्टीकरण देते हैं:'शाऊल आज्ञा न मानते हुए मर गए, परमेश्वर की आज्ञा न मानते हुए। उन्होंने परमेश्वर के वचनों को नही माना' (1इतिहास 10:13, एम.एस.जी)।

जैसे ही हम शमुएल की पुस्तक को देखते हैं, हम देख सकते हैं कि असली परेशानी यह थी कि शाऊल दाऊद से ईर्ष्या करने लगे थे। दाऊद ने वह सब किया जो वह कर सकते थे ताकि शाऊल के प्रति समर्पित रहे और उनके साथ अच्छे संबंध बनाए रखे। शाऊल इनमें से कुछ नहीं चाहते थे। वह दाऊद को पकड़ने के लिए उनके पीछे गए। इस आंतरिक लड़ाई ने शाऊल को कमजोर कर दिया और बाहर से प्रहार के लिए उनको खोल दिया।

आज हम देखते हैं कि कैसे परमेश्वर के लोगों के बीच में आंतरिक लड़ाईयां, हमें बाहर से प्रहार के लिए खोल देती हैं। यीशु ने प्रार्थना की कि हम एक हो ताकि विश्व विश्वास करे (यूहन्ना 17:23)।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता करे कि हम शांतीवादी बने, अंदर होने वाली लड़ाई को बंद करें और एकता को खोजने का प्रयास करें ताकि विश्व विश्वास करे।

पिप्पा भी कहते है

नीतिवचन 18:22

'जो पत्नी पाता है, वह उत्तम पदार्थ पाता है।'

और ज्यादा कहने के लिए क्या है?

दिन का वचन

नीतिवचन 18:24

“मित्रों के बढ़ाने से तो नाश होता है, परन्तु ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।“

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संदर्भ

जॉन स्कॉट, रोमियों का संदेश विश्व के लिए परमेश्वर का अच्छा समाचार, (आई.व्ही.पी. अकॅडमी, 2001) पी.357

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

नोट्स

2016 BIOY से लिया गयाः

जैसा कि जॉयस मेयर लिखती है, जो वचन आप बोलते है वे या तो जीवन लेकर जाते है या एक विनाशकारी बल, 'जॉयस मेयर, https://www.facebook.com/GodThroughTheLens/posts/478753948878590 \[last accessed, July 2015\]

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