पहली चीज़ों को पहले रखें
परिचय
हमारी शादी के थोड़े ही दिनों मे, मैं और पिपा शादी के बारे में सप्ताहांत पर गए। उस सप्ताहांत के दौरान प्राथमिकताओं पर एक सत्र था। हमें पाँच कार्ड्स दिये गए – हर एक में कुछ शब्द लिखे थे - 'काम', 'परमेश्वर', 'सेविकाई', 'पति/पत्नी', और 'बच्चे'। हमें इन्हें प्राथमिकताओं के अनुसार क्रम में रखने के लिए कहा गया। अंतर्दृष्टि से, मैं देख सकता हूँ, मैंने उन्हें बिल्कुल गलत क्रम में रखा था।
मैंने 'परमेश्वर' को पहले रखा (कम से कम मैंने वह तो सही किया था - लेकिन यह तो साफ ज़ाहिर था) इसके बाद सेविकाई, पत्नी, काम, और अंत में बच्चे (उस समय हमारे कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं लगे!)।
जब लीडर्स हमें सप्ताहांत की इन प्राथमिकताओं में से ले गए, तो मुझे यह स्पष्ट हो गया कि मेरा क्रम इस तरह से होना चाहिये था: पहले परमेश्वर, फिर मेरी पत्नी (प्रमुख रूप से मेरी बुलाहट), हमारे बच्चे, मेरा काम (मेरी प्राथमिक सेविकाई), और अंत में मेरी सेविकाई – जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, पर इसे मुझे अपने जीवन की प्राथमिक ज़िम्मेदारियों को बदलने नहीं देना चाहिये। जैसा कि दार्शनिक गोथे लिखते हैं, 'जो चीज़ें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं, उन्हें उन चीज़ों की दया पर नहीं रखना चाहिये जो सबसे कम ज़रूरी हैं।'
पहली चीज़ों को पहले रखें। जो चीज़ें परमेश्वर के लिए ज़्यादा मायने रखती हैं हमें उन्हें अपने जीवन में पहले स्थान पर रखना चाहिये।
भजन संहिता 22:12-21
12 मैं उन लोगों से घिरा हूँ,
जो शक्तिशाली साँड़ों जैसे मुझे घेरे हुए हैं।
13 वे उन सिंहो जैसे हैं, जो किसी जन्तु को चीर रहे हों
और दहाड़ते हो और उनके मुख विकराल खुले हुए हो।
14 मेरी शक्ति
धरती पर बिखरे जल सी लुप्त हो गई।
मेरी हड्डियाँ अलग हो गई हैं।
मेरा साहस खत्म हो चुका है।
15 मेरा मुख सूखे ठीकर सा है।
मेरी जीभ मेरे अपने ही तालू से चिपक रही है।
तूने मुझे मृत्यु की धूल में मिला दिया है।
16 मैं चारों तरफ कुतों से घिर हूँ,
दुष्ट जनों के उस समूह ने मुझे फँसाया है।
उन्होंने मेरे मेरे हाथों और पैरों को सिंह के समान भेदा है।
17 मुझको अपनी हड्डियाँ दिखाई देती हैं।
ये लोग मुझे घूर रहे हैं।
ये मुझको हानि पहुँचाने को ताकते रहते हैं।
18 वे मेरे कपड़े आपस में बाँट रहे हैं।
मेरे वस्त्रों के लिये वे पासे फेंक रहे हैं।
19 हे यहोवा, तू मुझको मत त्याग।
तू मेरा बल हैं, मेरी सहायता कर। अब तू देर मत लगा।
20 हे यहोवा, मेरे प्राण तलवार से बचा ले।
उन कुत्तों से तू मेरे मूल्यवान जीवन की रक्षा कर।
21 मुझे सिंह के मुँह से बचा ले
और साँड़ के सींगो से मेरी रक्षा कर।
समीक्षा
संबंध की प्राथमिकता
परमेश्वर के साथ आपका संबंध आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिये। इस भजन में हम भजन लिखने वाले की पहली प्राथमिकता (और भविष्यसूचक ढंग से यीशु की पहली प्राथमिकता) देखते हैं जो कि परमेश्वर के साथ संबंध बनाना था।
वह मार्ग जिसके द्वारा परमेश्वर के साथ हमारा संबंध फिर से स्थापित हुआ है वह क्रूस है। जैसा कि भजन के पहले भाग में लिखा है, हम भी यीशु की मृत्यु की भविष्यवाणियों को देखते हैं जो नये नियम में पूरी हुई।
हालाँकि यह भजन, प्रथम - व्यक्ति एकवचन में लिखा गया है जिसे क्रूस पर लटकाया जाना था, वह भी रोमियों द्वारा सूली पर चढ़ाये जाने के आविष्कार से सैकड़ों वर्ष पहले। यह यीशु के सताए जाने के बारे में एक असाधारण सटीक भविष्यवाणी है – जिसमे सूली पर चढ़ाने की क्रूरता का वर्णन किया गया है।
- ‘मेरी सब हडि्डयों के जोड़ उखड़ गए…. मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई’ (पद - 14अ, 15ब, यूहन्ना 19:28)।
- ‘वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं’ (भजन संहिता 22:16क; यूहन्ना 19:37)।
- ‘कुकर्मियों की मण्डली मेरी चारों ओर मुझे घेरे हुए है;….. मैं अपनी सब हडि्डयां गिन सकता हूँ; (भजन संहिता 22:16ब-17ब, लूका23:17,35)।
- 'वे मेरे वस्त्र आपस में बांटते हैं, और मेरे पहिरावे पर चिट्ठी डालते हैं' (भजन संहिता 22:18; यूहन्ना 19:23-24)।
जैसा कि हमने कल देखा, क्रूस पर यीशु का दु:ख उठाना, सूली पर चढ़ाए जाने के दहशत से भी कहीं ज़्यादा था। उन्होंने हमारे पाप उठा लिये और हमारे बदले परमेश्वर के परित्याग को सहा (भजन संहिता 22:1)। यीशु आपके लिए मरे ताकि परमेश्वर के साथ आपका संबंध फिर से स्थापित हो जाए।
प्रार्थना
मरकुस 1:29-2:17
यीशु द्वारा अनेक व्यक्तियों का चंगा किया जाना
29 फिर वे आराधनालय से निकल कर याकूब और यूहन्ना के साथ सीधे शमौन और अन्द्रियास के घर पहुँचे। 30 शमौन की सास ज्वर से पीड़ित थी इसलिए उन्होंने यीशु को तत्काल उसके बारे में बताया। 31 यीशु उसके पास गया और हाथ पकड़ कर उसे उठाया। तुरंत उसका ज्वर उतर गया और वह उनकी सेवा करने लगी।
32 सूरज डूबने के बाद जब शाम हुई तो वहाँ के लोग सभी रोगियों और दुष्टात्माओं से पीड़ित लोगों को उसके पास लाये। 33 सारा नगर उसके द्वार पर उमड़ पड़ा। 34 उसने तरह तरह के रोगों से पीड़ित बहुत से लोगों को चंगा किया और बहुत से लोगों को दुष्टात्माओं से छुटकारा दिलाया। क्योंकि वे उसे जानती थीं इसलिये उसने उन्हें बोलने नहीं दिया।
लोगों को सुसमाचार सुनाने की तैयारी
35 अँधेरा रहते, सुबह सवेरे वह घर छोड़ कर किसी एकांत स्थान पर चला गया जहाँ उसने प्रार्थना की। 36 किन्तु शमौन और उसके साथी उसे ढूँढने निकले 37 और उसे पा कर बोले, “हर व्यक्ति तेरी खोज में है।”
38 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “हमें दूसरे नगरों में जाना ही चाहिये ताकि वहाँ भी उपदेश दिया जा सके क्योंकि मैं इसी के लिए आया हूँ।” 39 इस तरह वह गलील में सब कहीं उनकी आराधनालयों में उपदेश देता और दुष्टात्माओं को निकालता गया।
कोढ़ से छुटकारा
40 फिर एक कोढ़ी उसके पास आया। उसने उसके सामने झुक कर उससे विनती की और कहा, “यदि तू चाहे, तो तू मुझे ठीक कर सकता है।”
41 उसे उस पर गुस्सा आया और उसने अपना हाथ फैला कर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम अच्छे हो जाओ!” 42 और उसे तत्काल कोढ़ से छुटकारा मिल गया। वह पूरी तरह शुद्ध हो गया।
43 यीशु ने उसे कड़ी चेतावनी दी और तुरन्त भेज दिया। 44 यीशु ने उससे कहा, “देख इसके बारे में तू किसी को कुछ नहीं बताना। किन्तु याजक के पास जा और उसे अपने आप को दिखा। और मूसा के नियम के अनुसार अपने ठीक होने की भेंट अर्पित कर ताकि हर किसी को तेरे ठीक होने की साक्षी मिले।” 45 परन्तु वह बाहर जाकर खुले तौर पर इस बारे में लोगों से बातचीत करके इसका प्रचार करने लगा। इससे यीशु फिर कभी नगर में खुले तौर पर नहीं जा सका। वह एकांत स्थानों में रहने लगा किन्तु लोग हर कहीं से उसके पास आते रहे।
लकवे के मारे का चंगा किया जाना
2कुछ दिनों बाद यीशु वापस कफरनहूम आया तो यह समाचार फैल गया कि वह घर में है। 2 फिर वहाँ इतने लोग इकट्ठे हुए कि दरवाजे के बाहर भी तिल धरने तक को जगह न बची। जब यीशु लोगों को उपदेश दे रहा था 3 तो कुछ लोग लकवे के मारे को चार आदमियों से उठवाकर वहाँ लाये। 4 किन्तु भीड़ के कारण वे उसे यीशु के पास नहीं ले जा सके। इसलिये जहाँ यीशु था उसके ऊपर की छत का कुछ भाग उन्होंने हटाया और जब वे खोद कर छत में एक खुला सूराख बना चुके तो उन्होंने जिस बिस्तर पर लकवे का मारा लेटा हुआ था उसे नीचे लटका दिया। 5 उनके इतने गहरे विश्वास को देख कर यीशु ने लकवे के मारे से कहा, “हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।”
6 उस समय वहाँ कुछ धर्मशास्त्री भी बैठे थे। वे अपने अपने मन में सोच रहे थे, 7 “यह व्यक्ति इस तरह बात क्यों करता है? यह तो परमेश्वर का अपमान करता है। परमेश्वर के सिवा, और कौन पापों को क्षमा कर सकता है?”
8 यीशु ने अपनी आत्मा में तुरंत यह जान लिया कि वे मन ही मन क्या सोच रहे हैं। वह उनसे बोला, “तुम अपने मन में ये बातें क्यों सोच रहे हो? 9 सरल क्या है: इस लकवे के मारे से यह कहना कि तेरे पाप क्षमा हुए या यह कहना कि उठ, अपना बिस्तर उठा और चल दे? 10 किन्तु मैं तुम्हें प्रमाणित करूँगा कि इस पृथ्वी पर मनुष्य के पुत्र को यह अधिकार है कि वह पापों को क्षमा करे।” फिर यीशु ने उस लकवे के मारे से कहा, 11 “मैं तुझ से कहता हूँ, खड़ा हो, अपना बिस्तर उठा और अपने घर जा।”
12 सो वह खड़ा हुआ, तुरंत अपना बिस्तर उठाया और उन सब के देखते ही देखते बाहर चला गया। यह देखकर वे अचरज में पड़ गये। उन्होंने परमेश्वर की प्रशंसा की और बोले, “हमने ऐसा कभी नहीं देखीं!”
लेवी (मत्ती) यीशु के पीछे चलने लगा
13 एक बार फिर यीशु झील के किनारे गया तो समूची भीड़ उसके पीछे हो ली। यीशु ने उन्हें उपदेश दिया। 14 चलते हुए उसने हलफई के बेटे लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देख कर उससे कहा, “मेरे पीछे आ” सो लेवी खड़ा हुआ और उसके पीछे हो लिया।
15 इसके बाद जब यीशु अपने शिष्यों समेत उसके घर भोजन कर रहा था तो बहुत से कर वसूलने वाले और पापी लोग भी उसके साथ भोजन कर रहे थे। (इनमें बहुत से वे लोग थे जो उसके पीछे पीछे चले आये थे।) 16 जब फरीसियों के कुछ धर्मशास्त्रियों ने यह देखा कि यीशु पापीयों और कर वसूलने वालों के साथ भोजन कर रहा है तो उन्होंने उसके अनुयायिओं से कहा, “यीशु कर वसूलने वालों और पापीयों के साथ भोजन क्यों करता है?”
17 यीशु ने यह सुनकर उनसे कहा, “चंगे-भले लोगों को वैद्य की आवश्यकता नहीं होती, रोगियों को ही वैद्य की आवश्यकता होती है। मैं धर्मियों को नहीं बल्कि पापीयों को बुलाने आया हूँ।”
समीक्षा
यीशु की प्राथमिकताएं
मैं यीशु से प्यार करता हूँ। वह पूरी तरह से अद्भुत और आश्चर्यजनक रूप से आकर्षक हैं। उन्होंने लोगों से प्यार किया: वह उनके लिए ‘तरस’ से भर गया (1:41)। लोगों ने उनसे प्रेम किया: ‘और चारों ओर से लोग उसके पास आते रहे’ (पद - 45)। हर कोई यीशु को देखना चाहता था: ‘सब लोग तुझे ढूंढ रहे हैं’ (पद - 37)।
वे यीशु को देखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे (2:4)। ' और सारी भीड़ उसके पास आई' (पद - 13)। जब उन्होंने कहा ‘मेरे पीछे हो लो’, तो वे उनके पीछे हो लिये (पद - 14)। ‘तो लोग सब बीमारों को और उन्हें जिन में दुष्टात्माएं थीं उसके पास लाए….. और उस ने बहुतों को चंगा किया’ (1:32-34), जिसमे शमौन की सास भी शामिल थी (पद - 30-31)। वह चुंगी लेने वाले और पापियों से प्यार करते थे और उनके साथ भोजन भी किया (पद - 15)। वह हमारे लिए यानि ‘पापियों’ के लिए आए (पद - 17)।
आप लोगों की प्राथमिकताओं को बता सकते हैं कि वे अपना समय कैसे बिताते हैं। इस लेखांश में हम देखते हैं कि यीशु ने अपना समय कैसे बिताया:
1. परमेश्वर से प्रार्थना करने में
ज़्यादातर लोग सुबह जल्दी नहीं उठते जब तक कि उन्हें कोई महत्त्वपूर्ण काम न हो। यीशु की पहली प्राथमिकता अपने परमेश्वर पिता से संबंध बनाए रखना था: ‘भोर को दिन निकलने से बहुत पहिले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहां प्रार्थना करने लगा’ (पद - 35)। यह हमें सुबह जल्दी उठने की, और एकांत जगह चुनकर प्रार्थना करने की (एम.एस.जी.) चुनौती देता है।
व्यक्तिगत रूप से मैंने पाया है कि, नियमित रूप से सुबह जल्दी उठने का उपाय यही है कि रात को जल्दी सोया जाए!
2. राज्य का प्रचार करना
यीशु ने कहा, ‘आओ; हम और कहीं आस पास की बस्तियों में जाएं, कि मैं वहां भी प्रचार करूं, क्योंकि मैं इसीलिये निकला हूँ’ (पद - 38)। उन्होंने परमेश्वर के राज्य के बारे में और लोगों को मन फिराने तथा सुसमाचार पर विश्वास करने के बारे में प्रचार किया (पद - 14-15)। यह सारा संदेश क्षमा पाने के बारे में था (2:5,10) और यह खासकर ‘पापियों’ के लिए शुभ समाचार था (पद - 17) जिसे हर एक को सुनना ज़रूरी है। यीशु के लिए, चंगाई की तुलना में क्षमा पाना अधिक प्राथमिकता पर था।
3. शक्तिशाली सुसमाचार का प्रचार
यीशु तरस से भर गए (1:41)। लोगों से प्यार करने के कारण वह क्षमा प्राप्ति का सुसमाचार पहले लाना चाहते थे। लेकिन ये सिर्फ शब्द नहीं थे। उन्होंने चंगाई भी की (पद - 40-42; 2:8-12) और दुष्टात्माओं को भगाया (1:39)। लकवे के मारे को ठीक करने के द्वारा यीशु ने प्रदर्शित किया कि उनके पास पापों को क्षमा करने का अधिकार और सामर्थ है (2:9-11)।
यीशु की प्राथमिकताएं स्पष्ट थीं। सबसे पहले परमेश्वर और दूसरे स्थान पर लोग। और बाकी की सब चीज़ें, इन दिनों चीज़ों को कार्य में लाने के बारे में थीं।
प्रार्थना
निर्गमन 19:1-20:26
इस्राएल के साथ परमेश्वर का साक्षीपत्र
19मिस्र से अपनी यात्रा करने के तीसरे महीने में इस्राएल के लोग सीनै मरुभूमि में पहुँचे। 2 लोगों ने रपीदीम को छोड़ दिया था और वे सीनै मरुभूमि में आ पहुँचे थे। इस्राएल के लोगों ने मरुभूमि में पर्वत के निकट डेरा डाला। 3 तब मूसा पर्वत के ऊपर परमेश्वर के पास गया। जब मूसा पर्वत पर था तभी पर्वत से परमेश्वर ने उससे कहा, “ये बातें इस्राएल के लोगों अर्थात् याकूब के बड़े परिवार से कहो, 4 ‘तुम लोगों ने देखा कि मैं अपने शत्रुओं के साथ क्या कर सकता हूँ। तुम लोगों ने देखा कि मैंने मिस्र के लोगों के साथ क्या किया। तुम ने देखा कि मैंने तुम को मिस्र से बाहर एक उकाब की तरह पंखों पर बैठाकर निकाला। और यहाँ अपने समीप लाया। 5 इसलिए अब मैं कहता हूँ तुम लोग मेरा आदेश मानो। मेरे साक्षीपत्र का पालन करो। यदि तुम मेरे आदेश मानोगे तो तुम मेरे विशेष लोग बनोगे। समस्त संसार मेरा है। 6 तुम एक विशेष लोग और याजकों का राज्य बनोगे।’ मूसा, जो बातें मैंने बताई हैं उन्हें इस्राएल के लोगों से अवश्य कह देना।”
7 इसलिए मूसा पर्वत से नीचे आया और लोगों के बुज़ुर्गों (नेताओं) को एक साथ बुलाया। मूसा ने बुज़ुर्गों से वह बातें कहीं जिन्हें कहने का आदेश यहोवा ने उसे दिया था। 8 फिर सभी लोग एक साथ बोले, “हम लोग यहोवा की कही हर बात मानेंगे।”
तब मूसा परमेश्वर के पास पर्वत पर लौट आया। मूसा ने कहा कि लोग उसके आदेश का पालन करेंगे। 9 और यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं घने बादल में तुम्हारे पास आऊँगा। मैं तुमसे बात करूँगा। सभी लोग मुझे तुमसे बातें करते हुए सुनेंगे। मैं यह इसलिए करूँगा जिससे लोग उन बातों में सदा विश्वास करेंगे जो तुमने उनसे कहीं।”
तब मूसा ने परमेश्वर को वे सभी बातें बताईं जो लोगों ने कही थीं।
10 यहोवा ने मूसा से कहा, “आज और कल तुम लोगों को विशेष सभा के लिए अवश्य तैयार करो। लोगों को अपने वस्त्र धो लेने चहिए। 11 और तीसरे दिन मेरे लिए तैयार रहना चाहिए। तीसरे दिन मैं (यहोवा) सीनै पर्वत पर नीचे आऊँगा और सभी लोग मुझ (यहोवा) को देखेंगे। 12-13 किन्तु उन लोगों से अवश्य कह देना कि वे पर्वत से दूर ही रूकें। एक रेखा खींचना और उसे लोगों को पार न करने देना। यदि कोई व्यक्ति या जानवर पर्वत को छूएगा तो उसे अवश्य मार दिया जाएगा। वह पत्थरों से मारा जाएगा या बाणों से बेधा जाएगा। किन्तु किसी व्यक्ति को उसे छूने नहीं दिया जाएगा। लोगों को तुरही बजने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसी समय उन्हें पर्वत पर जाने दिया जाएगा।”
14 सो मूसा पर्वत से नीचे उतरा। वह लोगों के समीप गया और विशेष बैठक के लिए उन्हें तैयार किया। लोगों ने अपने वस्त्र धोए।
15 तब मूसा ने लोगों से कहा, “परमेश्वर से मिलने के लिए तीन दिन में तैयार हो जाओ। उस समय तक कोई भी पुरुष स्त्री से सम्पर्क न करे।”
16 तीसरे दिन पर्वत पर बिजली की चमक और मेघ की गरज हुई। एक घना बादल पर्वत पर उतरा और तुरही की तेज ध्वनि हुई। डेरे के सभी लोग डर गए। 17 तब मूसा लोगों को पर्वत की तलहटी पर परमेश्वर से मिलने के लिए डेरे के बाहर ले गया। 18 सीनै पर्वत धुएँ से ढका था। पर्वत से धुआँ इस प्रकार उठा जैसे किसी भट्टी से उठता है। यह इसलिए हुआ कि यहोवा आग में पर्वत पर उतरे और साथ ही सारा पर्वत भी काँपने लगा। 19 तुरही की ध्वनि तीव्र से तीव्रतर होती चली गई। जब भी मूसा ने परमेश्वर से बात की, मेघ की गरज में परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया।
20 इस प्रकार यहोवा सीनै पर्वत पर उतरा। यहोवा स्वर्ग से पर्वत की चोटी पर उतरा। तब यहोवा ने मूसा को अपने साथ पर्वत की चोटी पर आने को कहा। इसलिए मूसा पर्वत पर चढ़ा।
21 यहोवा ने मूसा से कहा, “जाओ और लोगों को चेतावनी दो कि वे मेरे पास न आएं न ही मुझे देखें। यदि वे ऐसा करेंगे तो वे मर जाएंगे और इस तरह बहुत सी मौतें हो जाएंगी। 22 उन याजकों से भी कहो जो मेरे पास आएंगे कि वे इस विशेष, मिलन के लिए स्वयं को तैयार करें। यदि वे ऐसा नहीं करते तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”
23 मूसा ने यहोवा से कहा, “किन्तु लोग पर्वत पर नहीं आ सकते। तूने स्वयं ही हम से एक रेखा खींचकर पर्वत को पवित्र समझने और उसे पार न करने के लिए कहा था।”
24 यहोवा ने उससे कहा, “लोगों के पास जाओ और हारून को लाओ। उसे अपने साथ वापस लाओ। किन्तु याजकों और लोगों को मत आने दो। यदि वे मेरे पास आएंगे तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”
25 इसलिए मूसा लोगों के पास गया और उनसे ये बातें कहीं।
दस आदेश
20तब परमेश्वर ने ये बातें कहीं,
2 “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं तुम्हें मिस्र देश से बाहर लाया। मैंने तुम्हें दासता से मुक्त किया। इसलिए तुम्हें निश्चय ही इन आदेशों का पालन करना चाहिए।
3 “तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।
4 “तुम्हें कोई भी मूर्ति नहीं बनानी चाहिए। किसी भी उस चीज़ की आकृति मत बनाओ जो ऊपर आकाश में या नीचे धरती पर अथवा धरती के नीचे पानी में हो। 5 किसी भी प्रकार की मूर्ति की पूजा मत करो, उसके आगे मत झुको। क्यों? क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मेरे लोग जो दूसरे देवताओं की पूजा करते हैं मैं उनसे घृणा करता हूँ। यदि कोई व्यक्ति मेरे विरुद्ध पाप करता है तो मैं उसका शत्रु हो जाता हूँ। मैं उस व्यक्ति की सन्तानों की तीसरी और चौथी पीढ़ी तक को दण्ड दूँगा। 6 किन्तु मैं उन व्यक्तियों पर बहुत कृपालू रहूँगा जो मुझसे प्रेम करेंगे और मेरे आदेशों को मानेंगे। मैं उनके परिवारों के प्रति सहस्रों पीढ़ी तक कृपालु रहूँगा।
7 “तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के नाम का उपयोग तुम्हें गलत ढंग से नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति यहोवा के नाम का उपयोग गलत ढंग से करता है तो वह अपराधी है और यहोवा उसे निरपराध नहीं मानेगा।
8 “सब्त को एक विशेष दिन के रूप में मानने का ध्यान रखना। 9 सप्ताह में तुम छः दिन अपना कार्य कर सकते हो। 10 किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की प्रतिष्ठा में आराम का दिन है। इसलिए उस दिन कोई व्यक्ति चाहे तुम, या तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ, तुम्हारे दास और दासियाँ, पशु तथा तुम्हारे नगर में रहने वाले सभी विदेशी काम नहीं करेंगे।” 11 क्यों? क्योंकि यहोवा ने छ: दिन काम किया और आकाश, धरती, सागर और उनकी हर चीज़ें बनाईं। और सातवें दिन परमेश्वर ने आराम किया। इस प्रकार यहोवा ने शनिवार को वरदान दिया कि उसे आराम के पवित्र दिन के रूप में मनाया जाएगा। यहोवा ने उसे बहुत ही विशेष दिन के रूप में स्थापित किया।
12 “अपने माता और अपने पिता का आदर करो। यह इसलिए करो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा जिस धरती को तुम्हें दे रहा है, उसमें तुम दीर्घ जीवन बिता सको”
13 “तुम्हें किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करनी चाहिए”
14 “तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए”
15 “तुम्हें चोरी नहीं करनी चाहिए”
16 “तुम्हें अपने पड़ोसियों के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए।”
17 “दूसरे लोगों की चीज़ों को लेने की इच्छा तुम्हें नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने पड़ोसी का घर, उसकी पत्नी, उसके सेवक और सेविकाओं, उसकी गायों, उसके गधों को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। तुम्हें किसी की भी चीज़ को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।”
लोगों का परमेश्वर से डरना
18 घाटी में लोगों ने इस पूरे समय गर्जन सुनी और पर्वत पर बिजली की चमक देखी। उन्होंने तुरही की ध्वनि सुनी और पर्वत से उठते धूएँ को देखा। लोग डरे और भय से काँप उठे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे और देखते रहे। 19 तब लोगों ने मूसा से कहा, “यदि तुम हम लोगों से कुछ कहना चाहोगे तो हम लोग सुनेंगे। किन्तु परमेश्वर को हम लोगों से बात न करने दो। यदि यह होगा तो हम लोग मर जाएंगे।”
20 तब मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत! यहोवा यह प्रमाणित करने आया है कि वह तुमसे प्रेम करता है।”
21 लोग उस समय उठकर पर्वत से दूर चले आए जबकि मूसा उस गहरे बादल में गया जहाँ यहोवा था। 22 तब यहोवा ने मूसा से इस्राएलियों को बताने के लिए ये बातें कहीं: “तुम लोगों ने देखा कि मैंने तुमसे आकाश से बातें की। 23 इसलिए तुम लोग मेरे विरोध में सोने या चाँदी की मूर्तियाँ न बनाना। तुम्हें इन झूठे देवताओं की मूर्तियाँ कदापि नहीं बनानी हैं।”
24 “मेरे लिए एक विशेष वेदी बनाओ। इस वेदी को बनाने के लिए धूलि का उपयोग करो। इस वेदी पर बलि के रूप में होमबलि तथा मेलबलि चढ़ाओ। इस काम के लिए अपनी भेड़ों और गाय, बकरियों का उपयोग करो। उन सभी स्थानों पर यही करो जहाँ मैं अपने को याद करने के लिए कह रहा हूँ। तब मैं आऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। 25 यदि तुम लोग वेदी को बनाने के लिए चट्टानों का उपयोग करो तो तुम लोग उन चट्टानों का उपयोग न करो जिन्हें तुम लोगों ने अपने किसी लोहे के औज़ारों से चिकना किया है। यदि तुम लोग चट्टानों पर किसी औज़ारो का उपयोग करोगे तो मैं वेदी को स्वीकार नहीं करूँगा। 26 तुम लोग वेदी तक पहुँचाने वाली सीढ़ियाँ भी न बनाना। यदि सीढ़ियाँ होंगी तो जब लोग ऊपर वेदी को देखेंगे तो वे तुम्हारे वस्त्रों के भीतर नीचे से तुम्हारी नग्नता को भी देख सकेंगे।”
समीक्षा
प्रेम की प्राथमिकता
हालाँकि परमेश्वर आपको उनके साथ घनिष्ठ संबंध रखने के लिए बुलाते हैं, फिर भी उनकी पवित्रता और सामर्थ के आश्चर्य को मत भूलिये। परमेश्वर आपसे बहुत प्यार करते हैं इसलिए वह आपको ज़्यादा कमतर नहीं होने देते जितना कि आप हो सकते हैं। वह चाहते हैं कि हम उनसे पवित्रता सीखें।
निर्गमन 19 से लेकर गिनतियों 10:10 तक इस्राएली उसी स्थान पर रूके रहे यह सीखते हुए कि परमेश्वर के जन कैसे बना जाए। उन्होंने परमेश्वर की पवित्रता और सामर्थ से शुरूवात की। वे उस पर्वत को नहीं छू सके जहाँ परमेश्वर की उपस्थिति बनी हुई थी। फिर वह उन्हें दस आज्ञाओं के द्वारा उनकी प्राथमिकताओं के बारे में बताते हैं:
1. परमेश्वर आप से प्रेम करते हैं
यह संदर्भ 20:2 में है: ‘ मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात मिस्र देश से निकाल लाया है।’ और परमेश्वर कहते हैं ‘जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हज़ारों पर करूणा किया करता ’ (पद - 6)। हम पहले के लेखांश में उनके प्यार की तस्वीर देखते हैं। परमेश्वर कहते हैं, ‘तुम को मानो उकाब पक्षी के पंखों पर चढ़ाकर अपने पास ले आया हूँ’ (19:4)। वह कहते हैं, ‘सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे…. और तुम मेरे ठहरोगे’ (पद - 5-6)। हमारा प्रेम, परमेश्वर के प्यार की प्रतिक्रिया है।
दस आज्ञाओं का संदर्भ आपके लिए परमेश्वर का प्रेम है। कुछ लोग इस सच्चाई से चूक जाते हैं और उन्हें सिर्फ नियमों के संग्रह के रूप में देखते हैं। परमेश्वर इन आज्ञाओं को हमारे लिए अपने प्रेम के प्रदर्शन के रूप में देते हैं। और हमें उनके प्रति प्रेम प्रदर्शित करने के लिए इनका पालन करना चाहिये।
2. परमेश्वर से प्रेम करना
पहली चार आज्ञाएं इस बारे में हैं कि हम प्रेम करने के द्वारा परमेश्वर के प्यार के प्रति किस तरह से प्रतिक्रिया करते हैं: ‘हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं क्योंकि पहले उन्होंने हम से प्रेम किया’ (1यूहन्ना 4:19)। हमारा प्यार विशिष्ट (निर्गमन 20:3-4), आदरपूर्ण (पद - 7) और उनके साथ अलग समय बिताने के द्वारा प्रदर्शित होना चाहिये (पद - 10)।
3. दूसरों से प्रेम करना
आखिरी छ: आज्ञाएं दूसरों के लिए, हमारे प्रेम के बारे में हैं – हमारा परिवार (पद - 12), हमारे पति/पत्नियाँ (पद - 14) और हमारे पड़ोसी: ‘कोई हत्या नहीं, कोई व्यभिचार नहीं, कोई चोरी नहीं। अपने पड़ोसी के बारे में झूठ न बोलें। अपने पड़ोसी या दास की पत्नी की कोई लालसा न करें’ (पद - 13-17, एम.एस.जी.)। यीशु ने इसे इस तरह से सारांशित किया है ‘तू अपने प्रभु परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख’ - यह पहली और सबसे बड़ी आज्ञा है। और दूसरी इस तरह है: ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख’ सारे नियम और सारे भविष्यवक्ता इन दो आज्ञाओं पर केन्द्रित हैं (मत्ती 22:37-40)।
दस आज्ञाएं एक सीढ़ी के रूप में नहीं दी गई हैं जिस पर चढ़कर आपको परमेश्वर की उपस्थिति में जाना हैं। बजाय इसके, ये उन लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया जीवन का ढाँचा है जो परमेश्वर के अनुग्रह और छुटकारे को पहले से जानते हैं। ये आपकी आज़ादी को सीमित करने के लिए नहीं हैं, बल्कि इसे सुरक्षित करने के लिए हैं। ये आपको परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध में आज़ादी से रहने का आनंद देते हैं, यह आपको यह दर्शाते हुए कि पवित्र जीवन कैसे जीया जाए जैसे कि परमेश्वर पवित्र हैं। परमेश्वर के लिए आपका प्यार बाहर बहता है और यह आपके लिए परमेश्वर के प्यार के प्रति आपकी प्रतिक्रिया है।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
मरकुस 1:35
मैं ‘सुबह जल्दी’ शब्द से बहुत ही प्रभावित हुई हूँ। मैं सुबह जल्दी उठने में अच्छी नहीं हूँ, बल्कि ‘जब तक अंधेरा रहता है’ तब तक भी नहीं। गरम बिस्तर में थोड़ी देर और रहने की इच्छा होती है और मैं इसका विरोध नहीं कर पाती। लेकिन, मैंने यह एहसास किया है कि निर्विघ्न शांति के लिए यह सबसे अच्छा समय है। यदि यीशु प्रार्थना करने के लिए सुबह जल्दी उठ जाते थे, तो मुझे कम से कम इसकी कोशिश तो करनी चाहिये।
दिन का वचन
मरकुस – 1:35
"और भोर को दिन निकलने से बहुत पहिले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहां प्रार्थना करने लगा।"

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संदर्भ
नोट्स
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।