युद्ध और आशीषें
परिचय
मैं कभी भी उस बात को नहीं भूल सकता जिसे मैंने 30 साल पहले सुना था. वक्ता ने यह कहकर शुरू किया था कि मसीही जीवन ‘युद्ध और आशीष हैं, युद्ध और आशीष, युद्ध और आशीष, युद्ध और आशीष, युद्ध और आशीष, युद्ध और आशीष, युद्ध और आशीष..... युद्ध और आशीष....’
उस समय मैंने सोचा ‘वह ऐसा क्यों कह रहे हैं? क्या कभी खत्म नहीं होगा?’ लेकिन वह इसे एक यादगार और गंभीर मुद्दा बना रहे थे. जब हम युद्ध में होते हैं तो यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि यह कभी खत्म नहीं होगा. जब हम आशीष के समय में होते हैं, तो कभी कभी हम उम्मीद करते हैं कि यह सदा चलता ही रहेगा. लेकिन जीवन ऐसा नहीं है. यहाँ युद्ध और आशीषें हैं.
रिक वारेन कहते हैं कि वह सोचा करते थे कि मसीही जीवन युद्ध और आशीषों का एक सिलसिला है, जबकि अब वह सोचते हैं कि जीवन जैसे दो पटरियों पर है. जीवन में किसी भी समय पर सामान्य तौर पर आशीषें हैं, लेकिन हमें युद्ध का सामना भी करना पड़ता है.
उसने एक बहुत बड़ी आशीष का उदाहरण दिया जो उन्हें परपस ड्रिवेन लाइफ के प्रकाशन द्वारा मिली, जो अब तक की सबसे तेज बिकनेवाली क्रिश्चियन किताब है. इस किताब ने उसे अत्यधिक प्रभाव दिया. लेकिन उसी समय उसने देखा कि उनकी पत्नी को कैंसर हो गया है. उनके जीवन की एक पटरी पर महान आशीष थी; और दूसरी पटरी पर उसे विशाल युद्ध का सामना कर पड़ रहा था.
नीतिवचन 1:1-7
1दाऊद के पुत्र और इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन। यह शब्द इसलिये लिखे गये हैं, 2 ताकि मनुष्य बुद्धि को पाये, अनुशासन को ग्रहण करे, जिनसे समझ भरी बातों का ज्ञान हो, 3 ताकि मनुष्य विवेकशील, अनुशासित जीवन पाये, और धर्म—पूर्ण, न्याय—पूर्ण, पक्षपातरहित कार्य करे, 4 सरल सीधे जन को विवेक और ज्ञान तथा युवकों को अच्छे बुरे का भेद सिखा (बता) पायें। 5 बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ावें और समझदार व्यक्ति दिशा निर्देश पायें, 6 ताकि मनुष्य नीतिवचन, ज्ञानी के दृष्टाँतों को और पहेली भरी बातों को समझ सकें।
7 यहोवा का भय मानना ज्ञान का आदि है किन्तु मूर्ख जन तो बुद्धि और अनुशासन को तुच्छ मानते हैं।
समीक्षा
युद्ध में परिचालन करना सीखें
नीतिवचन की पुस्तक का उद्देश्य आरंभ में ही बताया गया है: ‘ये बुद्धि के वचन हैं..... जिन्हें अच्छे से और सही से जीने के लिए लिखा गया है...... जीने के लिए एक नियम पुस्तिका, यह सीखने के लिए कि क्या न्यायोचित है और क्या सही है’ (वव. 1-3 एमएसजी). यह हरएक के लिए ‘अनुभवी’ और ‘अनुभवहीन’ लोगों के लिए व्यवहारिक बुद्धि प्रदान करता है (वव. 4-6, एमएसजी).
यह जीवन आपको बताता है कि सामान्य रूप से जीवन कैसे कार्य करता है. सामान्य रूप से कहा जाए, तो लोग भक्तिमय, नैतिक और कठिन परिश्रम करनेवाले हैं जो प्रतिफल और आशीषों को पैदा करते हैं, लेकिन धरती पर इसकी कोई गारंटी नहीं है. नीतिवचन क्रमादेश और बुद्धिपूर्ण सुझाव हैं जिन्हें पूरे जीवन के अनुभव से सीखा गया है.
ये आपको ‘बुद्धि और अनुशासन’ प्राप्त करने में मदद करते हैं (वव. 2,7) – जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू जो रातों रात उत्पन्न नहीं होते.
इस पुस्तक का उद्देश्य ‘आपकी विद्या को सही तरीके से निर्देशित करने में’ आपको सक्षम बनाना है (व. 5, एमपी). बुद्धि जीवन के युद्ध और आशीषों के ‘परिचालन की एक कला है’ और आप खुद को चाहें किसी भी स्थिति में क्यों न पाएं उसमें कुशलतापूर्वक जीने की एक कला है. जैसा कि जॉयस मेयर कहती हैं, ‘बुद्धि’, ‘वह करने का फैसला करना है जिससे आप बाद में खुश रह सकें’.
बुद्धि का आरंभ ‘परमेश्वर के भय’ से होता है, जो कि ‘बुद्धि का मूल है’ (व. 7अ). प्रभु के ‘भय’ को ‘आदर’ के रूप में कहा जा सकता है. इसका मतलब है प्रभु का परमेश्वर के रूप में आदर और सम्मान करना. जीवन के बारे में सबसे महत्वपूर्ण सीख जो आप सीख सकते हैं, वह ‘परमेश्वर से आरंभ’ होती है (व. 7अ, एमएसजी).
प्रार्थना
मत्ती 4:1-22
यीशु की परीक्षा
4फिर आत्मा यीशु को जंगल में ले गई ताकि शैतान के द्वारा उसे परखा जा सके। 2 चालीस दिन और चालीस रात भूखा रहने के बाद जब उसे भूख बहुत सताने लगी 3 तो उसे परखने वाला उसके पास आया और बोला, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो इन पत्थरों से कहो कि ये रोटियाँ बन जायें।”
4 यीशु ने उत्तर दिया, “शास्त्र में लिखा है,
‘मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं जीता
बल्कि वह प्रत्येक उस शब्द से जीता है जो परमेश्वर के मुख से निकालता है।’”
5 फिर शैतान उसे यरूशलेम के पवित्र नगर में ले गया। वहाँ मन्दिर की सबसे ऊँची बुर्ज पर खड़ा करके 6 उसने उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो नीचे कूद पड़ क्योंकि शास्त्र में लिखा है:
‘वह तेरी देखभाल के लिये अपने दूतों को आज्ञा देगा
और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे
ताकि तेरे पैरों में कोई पत्थर तक न लगे।’”
7 यीशु ने उत्तर दिया, “किन्तु शास्त्र यह भी कहता है,
‘अपने प्रभु परमेश्वर को परीक्षा में मत डाल।’”
8 फिर शैतान यीशु को एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया। और उसे संसार के सभी राज्य और उनका वैभव दिखाया। 9 शैतान ने तब उससे कहा, “ये सभी वस्तुएँ मैं तुझे दे दूँगा यदि तू मेरे आगे झुके और मेरी उपासना करे।”
10 फिर यीशु ने उससे कहा, “शैतान, दूर हो! शास्त्र कहता है:
‘अपने प्रभु परमेश्वर की उपासना कर
और केवल उसी की सेवा कर!’”
11 फिर शैतान उसे छोड़ कर चला गया और स्वर्गदूत आकर उसकी देखभाल करने लगे।
यीशु के कार्य का आरम्भ
12 यीशु ने जब सुना कि यूहन्ना पकड़ा जा चुका है तो वह गलील लौट आया। 13 परन्तु वह नासरत में नहीं ठहरा और जाकर कफरनहूम में, जो जबूलून और ली के क्षेत्र में गलील की झील के पास था, रहने लगा। 14 यह इसलिए हुआ कि परमेश्वर ने भविष्यवक्ता यशायाह के द्वारा जो कहा, वह पूरा हो:
15 “जबूलून और नपताली के देश
सागर के रास्ते पर, यर्दन नदी के पश्चिम में,
ग़ैर यहूदियों के देश गलील में।
16 जो लोग अँधेरे में जी रहे थे
उन्होंने एक महान ज्योति देखी
और जो मृत्यु की छाया के देश में रहते थे उन पर,
ज्योति के प्रभात का एक प्रकाश फैला।”
17 उस समय से यीशु ने सुसंदेश का प्रचार शुरू कर दिया: “मन फिराओ! क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है।”
यीशु द्वारा शिष्यों का चुना जाना
18 जब यीशु गलील की झील के पास से जा रहा था उसने दो भाईयों को देखा शमौन (जो पतरस कहलाया) और उसका भाई अंद्रियास। वे झील में अपने जाल डाल रहे थे। वे मछुआरे थे। 19 यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, मैं तुम्हें सिखाऊँगा कि लोगों के लिये मछलियाँ पकड़ने के बजाय मनुष्य रूपी मछलियाँ कैसे पकड़ी जाती हैं।” 20 उन्होंने तुरंत अपने जाल छोड़ दिये और उसके पीछे हो लिये।
21 फिर वह वहाँ से आगे चल पड़ा और उसने देखा कि जब्दी का बेटा याकूब और उसका भाई यूहन्ना अपने पिता के साथ नाव में बैठे अपने जालों की मरम्मत कर रहे हैं। यीशु ने उन्हें बुलाया। 22 और वे तत्काल नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे चल दिये।
समीक्षा
सीखें कि यीशु ने युद्ध और आशीषों से कैसे निपटा था
यीशु की सेवकाई उनके बपतिस्मा पर पवित्र आत्मा की आशीष से आरंभ होती है, लेकिन जैसा कि पवित्र आत्मा के महान अनुभव के बाद अक्सर होता है, इसके तुरंत बाद युद्ध आता है.
‘तब उस समय आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इबलीस से उसकी परीक्षा हो’ (4:1, एमएसजी). परीक्षा वचनों शब्दों से शुरू होती है, ‘यदि तू परमेश्वर का पुत्र है......’ (वव. 3,6). शैतान यीशु की परीक्षा ले रहा था उनकी पहचान को चुनौती देने के लिए और इस तरह से उनके पिता की परीक्षा करने के लिए. कभी कभी शैतान हमारे पास आकर कहता है, ‘यदि तुम मसीही हो, तो आप दूसरों से बेहतर हैं.’ या, ‘जब परमेश्वर हरचीज को क्षमा करते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप चाहें कैसे जीते हैं’. यीशु के उदाहरण द्वारा प्रतिक्रिया करें.
यीशु ने तीन शक्तिशाली परीक्षाओं का सामना किया:
1. शीघ्र संतुष्टी (आर्थिक)
कुछ चीजें हैं जो तुरंत मान ली जाती हैं लेकिन बाद में आपको खालीपन महसूस होता है.
यीशु ने चालीस दिन और चालीस रात तक उपवास किया था. ‘जिसने उन्हें अत्यधिक भूख की स्थिति में पहुँचा दिया, जिसका फायदा शैतान ने पहली परीक्षा में उठाया’ (वव. 2ब-3अ, एमएसजी). वह यीशु से कहता है, ‘यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियां बन जाएं’ (व.3ब).
यीशु ने उत्तर दिया, ‘लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परंतु हरएक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा’ (व.4). भौतिक चीजें पूरी तरह से कभी संतुष्टी नहीं दे सकतीं.
एक गंभीर आत्मिक भूख है जिसे केवल ‘उस वचन से संतुष्ट किया जा सकता है जो परमेश्वर के मुख से निकलता है’ (व.4). हमें नियमित शारीरिक भोजन के बजाय नियमित आत्मिक भोजन की ज्यादा जरूरत है.
2. परमेश्वर की परीक्षा लेना (धार्मिक)
अगला, शैतान ने यीशु के समक्ष चुनौती रखी कि वह खुद को मंदिर के कंगुरे से गिरा दे. अन्य बातों की तरह, कुछ नाटकीय करना भी एक परीक्षा है (हाँलाकि यह फलदायी नहीं है) ध्यान आकर्षित करने के लिए.
शैतान ने यीशु को भजन संहिता 91 के उद्धरण से प्रेरित किया, लेकिन यह वचन इस विषय से बाहर. यीशु ने उस वचन से जवाब दिया जो कि इस संदर्भ में है.
3. गलत अर्थ (राजनीतिक)
तीसरा, शैतान ने यीशु को दुनिया का सारा राज्य दिखाया और उन्हें प्रस्तावित किया, ‘यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा’ (मत्ती 4:8-9). यह परीक्षा खुद को परमेश्वर से असंतुष्ट करने के लिए है और अंतिम लक्ष्य को पाने के लिए गलत अर्थों द्वारा विवेकहीन (अनैतिक) धोखेबाजी के कार्यक्रम में शामिल करना है. यीशु ने जवाब दिया: ‘हे शैतान, दूर हो जा!’ उसने इसका पुष्टिकरण व्यवस्थाविवरण के तीन उद्धरण से किया: ‘तू अपने प्रभु परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना कर’ (व. 10).
हरएक परीक्षा के लिए यीशु ने व्यवस्थाविवरण के 6- अध्यायों 8 वचनों से उत्तर दिया. शायद उस समय वह इन अध्यायों का अध्ययन कर रहे थे. जब आप बाइबल का अध्ययन करेंगे तो यह परमेश्वर के चरित्र को और आपके प्रति उनके प्रेम को प्रकट करता है और उनके साथ आपके संबंध को और भी गहरा करता है. यह शैतान के झूठ से आपको बचाता है और लालसा आने पर इसका विरोध करने के लिए आपको तैयार करता है और आपकी मदद करता है.
इन युद्ध के अंत में, ‘यीशु ने स्वर्गदूतों के आशीष का आनंद उठाया जो आकर यीशु की जरूरतों को पूरा करने लगे’ (व. 1.1, एमएसजी). आशीष का समय ज्यादा देर तक नहीं चलता. यीशु ने सुना कि युहन्ना कैद में है (व. 12). अपने प्रचार के लिए अपने चचेरे भाई को पता लगाना यीशु के लिए कष्टदायक रहा होगा.
यीशु भयभीत नहीं हुए. वह भी उसी संदेश का प्रचार करने लगे जिसकी वजह से युहन्ना को कैद हुई थी: ‘मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है’ (व. 17). युद्ध के समय में वह निडर और साहसी थे.
जीवन का मतलब आक्रमण के समय सिर्फ रक्षात्मक रहना नहीं है; हमें आगे कदम रखना भी जरूरी है. यीशु एक मिशन पर थे. अपने पहले शिष्यों को बुलाते हुए वह अपने दल को बनाने लगे, ‘यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम्हें मनुष्यों को पकड़नेवाला बनाऊँगा,” वे तुरंत जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिये’ (वव 19020 एमएसजी). ये रोमांचक समय था. यीशु की सेवकाई की शुरुवात महान आशीष का समय था.
प्रार्थना
उत्पत्ति 7:1-9:17
जल प्रलय आरम्भ होता है
7तब यहोवा ने नूह से कहा, “मैंने देखा है कि इस समय के पापी लोगों में तुम्हीं एक अच्छे व्यक्ति हो। इसलिए तुम अपने परिवार को इकट्ठा करो और तुम सभी जहाज में चले जाओ। 2 हर एक शुद्ध जानवर के सात जोड़े, (सात नर तथा सात मादा) साथ में ले लो और पृथ्वी के दूसरे अशुद्ध जानवरों के एक—एक जोड़े (एक नर और एक मादा) लाओ। इन सभी जानवरों को अपने साथ जहाज़ में ले जाओ। 3 हवा में उड़ने वाले सभी पक्षियों के सात जोड़े (सात नर और सात मादा) लाओ। इससे ये सभी जानवर पृथ्वी पर जीवित रहेंगे, जब दूसरे जानवर नष्ट हो जायेंगे। 4 अब से सातवें दिन मैं पृथ्वी पर बहुत भारी वर्षा भेजूँगा। यह वर्षा चालीस दिन और चालीस रात होती रहेगी। पृथ्वी के सभी जीवित प्राणी नष्ट हो जायेंगे। मेरी बनाई सभी चीज़े खत्म हो जायेंगें।” 5 नूह ने उन सभी बातों को माना जो यहोवा ने आज्ञा दी।
6 वर्षा आने के समय नूह छः सौ वर्ष का था। 7 नूह और उसका परिवार बाढ़ के जल से बचने के लिए जहाज़ में चला गया। नूह की पत्नी, उसके पुत्र और उनकी पत्नियाँ उसके साथ थीं। 8 पृथ्वी के सभी शुद्ध जानवर एवं अन्य जानवर, पक्षी और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जीव 9 नूह के साथ जहाज में चढ़े। इन जानवरों के नर और मादा जोड़े परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जहाज में चढ़े। 10 सात दिन बद बाढ़ प्रारम्भ हुई। धरती पर वर्षा होने लगी।
11-13 दूसरे महीने के सातवें दिन, जब नूह छः सौ वर्ष का था, जमीन के नीचे के सभी सोते खुल पड़े और ज़मीन से पानी बहना शुरु हो गया। उसी दिन पृथ्वी पर भारी वर्षा होने लगी। ऐसा लगा मानो आकाश की खिड़कियाँ खुल पड़ी हों। चालीस दिन और चालीस रात तक वर्षा पृथ्वी पर होती रही। ठीक उसी दिन नूह, उसकी पत्नी, उसके पुत्र शेम, हाम और येपेत और उनकी पत्नियाँ जहाज़ पर चढ़े। 14 वे लोग और पृथ्वी के हर एक प्रकार के जानवर जहाज़ में थे। हर प्रकार के मवेशी, पृथ्वी पर रेंगने वाले हर प्रकार के जीव और हर प्रकार के पक्षी जहाज़ में थे। 15 ये सभी जानवर नूह के साथ जहाज़ में चढ़े। हर जाति के जीवित जानवरों के ये जोड़े थे। 16 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सभी जानवर जहाज़ में चढ़े। उनके अन्दर जाने के बाद यहोवा ने दरवाज़ा बन्द कर दिया।
17 चालीस दिन तक पृथ्वी पर जल प्रलय होता रहा। जल बढ़ना शुरु हुआ और उसने जहाज को जमीन से ऊपर उठा दिया। 18 जल बढ़ता रहा और जहाज़ पृथ्वी से बहुत ऊपर तैरता रहा। 19 जल इतना ऊँचा उठा कि ऊँचे—से—ऊँचे पहाड़ भी पानी में डूब गए। 20 जल पहाड़ों के ऊपर बढ़ता रहा। सबसे ऊँचे पहाड़ से तेरह हाथ ऊँचा था।
21-22 पृथ्वी के सभी जीव मारे गए। हर एक स्त्री और पुरुष मर गए। सभी पक्षि और सभी तरह के जानवर मर गए। 23 इस तरह परमेश्वर ने पृथ्वी के सभी जीवित हर एक मनुष्य, हर एक जानवर, हर एक रेंगने वाले जीव और हर एक पक्षी को नष्ट कर दिया। वे सभी पृथ्वी से खत्म हो गए। केवल नूह, उसके साथ जहाज में चढ़े लोगों और जानवरों का जीवन बचा रहा। 24 और जल एक सौ पचास दिन तक पृथ्वी को डुबाए रहा।
जल प्रलय खत्म होता है
8लेकिन परमेश्वर नूह को नहीं भूला। परमेश्वर ने नूह और जहाज़ में उसके साथ रहने वाले सभी पशुओं और जानवरों को याद रखा। परमेश्वर ने पृथ्वी पर आँधी चलाई और सारा जल गायब होने लगा।
2 आकाश से वर्षा रूक गई और पृथ्वी के नीचे से पानी का बहना भी रूक गया। 3 पृथ्वी को डुबाने वाला पानी बराबर घटता चला गया। एक सौ पचास दिन बाद पानी इतना उतर गया कि जहाज फिर से भूमि पर आ गया। 4 जहाज अरारात के पहाड़ों में से एक पर आ टिका। यह सातवें महीने का सत्तरहवाँ दिन था। 5 जल उतरता गया और दसवें महीने के पहले दिन पहाड़ों की चोटियाँ जल के ऊपर दिखाई देने लगीं।
6 जहाज में बनी खिड़की को नूह ने चालीस दिन बाद खोला। 7 नूह ने एक कौवे को बाहर उड़ाया। कौवा उड़ कर तब तक फिरता रहा जब तक कि पृथ्वी पूरी तरह से न सूख गयी। 8 नूह ने एक फाख्ता भी बाहर भेजी। वह जानना चाहता था कि पृथ्वी का पानी कम हुआ है या नहीं।
9 फ़ाख्ते को कहीं बैठने की जगह नहीं मिली क्योंकि अभी तक पानी पृथ्वी पर फैला हुआ था। इसलिए वह नूह के पास जहाज़ पर वापस लौट आयी। नूह ने अपना हाथ बढ़ा कर फ़ाख्ते को वापस जहाज़ के अन्दर ले लिया।
10 सात दिन बाद नूह ने फिर फ़ाख्ते को भेजा। 11 उस दिन दोपहर बाद फ़ाख्ता नूह के पास आयी। फ़ाख्ते के मुँह में एक ताजी जैतून की पत्ती थी। यह चिन्ह नूह को यह बताने के लिए था कि अब पानी पृथ्वी पर धीरे—धीरे कम हो रहा है। 12 नूह ने सात दिन बाद फिर फ़ाख्ते को भेजा। किन्तु इस समय फ़ाख्ता लौटी ही नहीं।
13 उसके बाद नूह ने जहाज़ का दरवाजा खोला नूह ने देखा और पाया कि भूमि सूखी है। यह वर्ष के पहले महीने का पहला दिन था। नूह छः सौ एक वर्ष का था। 14 दूसरे महीने के सत्ताइसवें दिन तक भूमि पूरी तरह सूख गयी।
15 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, 16 “जहाज़ को छोड़ो। तुम, तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे पुत्र और उनकी पत्नियाँ सभी अब बाहर निकलो। 17 हर एक जीवित प्राणी, सभी पक्षियों, जानवरों तथा पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी को जहाज़ के बाहर लाओ। ये जानवर अनेक जानवर उत्पन्न करेंगे और पृथ्वी को फिर भर देंगे।”
18 अतः नूह अपने पुत्रों, अपनी पत्नी, अपने पुत्रों की पत्नियों के साथ जहाज़ से बाहर आया। 19 सभी जानवरों, सभी रेंगने वाले जीवों और सभी पक्षियों ने जहाज़ को छोड़ दिया। सभी जानवर जहाज़ से नर और मादा के जोड़े में बाहर आए।
20 तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई। उसने कुछ शुद्ध पक्षियों और कुछ शुद्ध जानवर को लिया और उनको वेदी पर परमेश्वर को भेंट के रूप में जलाया।
21 यहोवा इन बलियों की सुगन्ध पाकर खुश हुआ। यहोवा ने मन—ही—मन कहा, “मैं फिर कभी मनुष्य के कारण पृथ्वी को शाप नहीं दूँगा। मानव छोटी आयु से ही बुरी बातें सोचने लगता है। इसलिए जैसा मैंने अभी किया है इस तरह मैं अब कभी भी सारे प्राणियों को सजा नहीं दूँगा। 22 जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक इस पर फसल उगाने और फ़सल काटने का समय सदैव रहेगा। पृथ्वी पर गरमी और जाड़ा तथा दिन औ रात सदा होते रहेंगे।”
नया आरम्भ
9परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी और उनसे कहा, “बहुत से बच्चे पैदा करो और अपने लोगों से पृथ्वी को भर दो। 2 पृथ्वी के सभी जानवर तुम्हारे डर से काँपेंगे और आकाश का हर एक पक्षी भी तुम्हारा आदर करेगा और तुमसे डरेगा। पृथ्वी पर रेंगने वाला हर एक जीव और समुद्र की हर एक मछली तुम लोगों का आदर करेगी और तुम लोगों से डरेगी। तुम इन सभी के ऊपर शासन करोगे। 3 बीते समय में तुमको मैंने हर पेड़—पौधे खाने को दिए थे। अब हर एक जानवर भी तुम्हारा भोजन होगा। मैं पृथ्वी की सभी चीजें तुमको देता हूँ—अब ये तुम्हारी हैं। 4 मैं तुम्हें एक आज्ञा देता हूँ कि तुम किसी जानवर को तब तक न खाना जब तक कि उसमें जीवन (खून) है। 5 मैं तुम्हारे जीवन बदले में तुम्हारा खून मागूँगा। अर्थात् मैं उस जानवर का जीवन मागूँगा जो किसी व्यक्ति को मारेगा और मैं हर एक ऐसे व्यक्ति का जीवन मागूँगा जो दूसरे व्यक्ति की ज़िन्दगी नष्ट करेगा।”
6 “परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया है।
इसलिए जो कोई किसी व्यक्ति का खून बहाएगा, उसका खून वयक्ति द्वारा ही बहाया जाएगा।”
7 “नूह तुम्हें और तुम्हारे पुत्रों के अनेक बच्चे हों और धरती को लोगों से भर दो।”
8 तब परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से कहा, 9 “अब मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को वचन देता हूँ। 10 मैं यह वचन तुम्हारे साथ जहाज़ से बाहर आने वाले सभी पक्षियों, सभी पशुओं तथा सभी जानवरों को देता हूँ। मैं यह वचन पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों को देता हूँ।” 11 मैं तुमको वचन देता हूँ, “जल की बाढ़ से पृथ्वी का सारा जीवन नष्ट हो गया था। किन्तु अब यह कभी नहीं होगा। अब बाढ़ फिर कभी पृथ्वी के जीवन को नष्ट नहीं करेगी।”
12 और परमेश्वर ने कहा, “यह प्रमाणित करने के लिए कि मैंने तुमको वचन दिया है कि मैं तुमको कुछ दूँगा। यह प्रमाण बतायेगा कि मैंने तुम से और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों से एक वाचा बाँधी है। यह वाचा भविष्य में सदा बनी रहेगी जिसका प्रमाण यह है 13 कि मैंने बादलों में मेघधनुष बनाया है। यह मेघधनुष मेरे और पृथ्वी के बीच हुए वाचा का प्रमाण है। 14 जब मैं पृथ्वी के ऊपर बादलों को लाऊँगा तो तुम बादलों में मेघधनुष को देखोगे। 15 जब मैं इस मेघधनुष को देखूँगा तब मैं तुम्हारे, पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों और अपने बीच हुई वाचा को याद करूँगा। यह वाचा इस बात की है कि बाढ़ फिर कभी पृथ्वी के प्राणियों को नष्ट नहीं करेगी। 16 जब मैं ध्यान से बादलों में मेघधनुष को देखूँगा तब मैं उस स्थायी वाचा को याद करूँगा। मैं अपने और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों के बीच हुई वाचा को याद करूँगा।”
17 इस तरह यहोवा ने नूह से कहा, “वह मेघधनुष मेरे और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों के बीच हुई वाचा का प्रमाण है।”
समीक्षा
सीखें दूसरों ने युद्ध और आशीषों को कैसे जीता है
मसीही सकारात्मक लोग होने चाहिये. हम इस पद्यांश में देखते हैं कि, जब हम पूरी बाइबल पढ़ लेते हैं, तो ये आशीषें युद्ध को महत्वपूर्ण साबित करती हैं. चार बड़े विषयों में से जो इस पद्यांश से गुजरता है (और संपूर्ण बाइबल में से) उसमे से केवल एक ही नकारात्मक है (पतन जो युद्ध का कारण होता है). बाकी के सभी तीन सकारात्मक आशीष के बारे में है.
1. सृष्टि
मनुष्य को परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है (9:6ब). सभी मानव जीवन के बारे में उत्कृष्टता और प्रतिष्ठा है. इसलिए दूसरे व्यक्ति का जीवन लेने का परिणाम बहुत गंभीर होता है (वव. 5,6). सभी मनुष्यों के साथ आदर और सम्मान से पेश आएं.
2. पतन
नूह ने प्रमुख युद्ध – बाढ़ और लगभग सारी मानव जाति के विनाश का सामना किया! चालीस दिन और चालीस रात तक बरसात होती रही (7:4) (यीशु की परीक्षा जितना समय). पाप की गंभीरता के कारण परमेश्वर का दंड आया: ‘यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही है’ (8:21).
3. मुक्ति (छुटकारा)
बाढ़ के युद्ध के बावजूद, नूह ने परमेश्वा के प्रेम की आशीष का आनंद उठाया. जबकि नूह और उसके साथ जो भी नाव में थे वे बच गए (7:23). नये नियम के लेन्स द्वारा हम देखते हैं कि नाव मसीह में बपतिस्मा पाने का एक प्रतीक है (1पतरस 3:18 से आगे देखें). जो नाव में थे वे सुरक्षित थे. जो मसीह में हैं वे सुरक्षित हैं.
परमेश्वर ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी. उन्होंने कहा ‘फूलो-फलो, और बढ़कर पृथ्वी में भर जाओ. (उत्पत्ति 9:1 एमएसजी).
4. महिमा
परमेश्वर ने उनसे वाचा बांधी (व. 9). तुम जब भी इंद्र धनुष देखोगे (व.13) यह तुम्हारे साथ परमेश्वर की वाचा की याद दिलाएगा, जिसने अंत में क्रूस तक पहुँचने में मदद की – नये नियम का लहू. यह ‘अनंत के साथ सदा रहने वाली वाचा है (व. 16).
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
उत्पत्ति 7:8
नूह काफी बूढ़ा हो चुका था (600 साल का!) जब उसने जीवन का काम करना शुरु किया. आप चाहें कितने भी बूढ़े क्यों न हो – अब भी देरी नहीं हुई है.
दिन का वचन
भजन संहिता – 1:6
" लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परंतु हरएक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा "

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संदर्भ
जॉयस मेयर, 100 वेज़ टू सिम्पलीफाइ योर लाइफ, (फेथवर्ड्स, 1987) पन्ना 152
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।