इतिहास ‘उनकी कहानी है’
परिचय
पश्चिम देशों में बहुत से लोग यह मानकर चलते हैं कि इतिहास उद्देश्यहीन है। क्रोध और शोर से भरा हुआ, बिल्कुल निरर्थक ( जैसेकि शेक्सपियर ने अपने नाटक मैकबेथ में दर्शाया है)। बहुत से पूर्वीय धर्म इतिहास को परिपत्र या अवास्तविक मानते हैं।
इन सब रायों की तुलना में, नया विधान इतिहास को पराकाष्ठा पर जाता हुआ देखता है। बुनियादी संघर्ष, भलाई और बुराई के बीच है, अंत में भलाई और परमेश्वर की विजय होगी।
परमेश्वर का राज्य कभी भी विफल नहीं होगा। परमेश्वर अपने उद्देश्यों पर कार्य कर रहे हैं, जैसाकि इतिहास में लिखा है। यीशु मसीह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैं। इतिहास की सारी पंक्तियाँ यीशु की ओर संकेत करती हैं। जैसा कि किसी ने कहा है,”इतिहास की चूल बेथलेहम के अस्तबल के द्वार पर है”।
इतिहास, “उनकी कहानी है”. जब आप लोग समाचार सुनते हैं और ऐतिहासिक पुस्तकें पढ़ते हैं, आपको इसका विवरण मिलता है। जब आप बाइबल पढ़ते हैं, तब आपको एक बड़ी छवि मिलती है। विशेष रूप से प्रकाशितवाक्य की पुस्तक उन सब बातों को प्रकट करता है जो इतिहास के परदे के पीछे हुईं हैं।
परमेश्वर इतिहास के “परम प्रधान प्रभु हैं”। लेकिन हम सिर्फ रोबोट (यन्त्र मानव) नहीं हैं। हम बिसात पर रखे हुए मोहरों की तरह नहीं चलाये जाते, पर हमें अपनी भूमिका अदा करनी है। परमेश्वर हमें अपनी योजना में शामिल करते हैं। वह अपने उद्देश्यों को अपने लोगों की सहकारिता से पूरा करते हैं।
भजन संहिता 143:1-12
दाऊद का एक स्तुति गीत।
143हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन।
मेरी विनती को सुन और फिर तू मेरी प्रार्थना का उत्तर दे।
मुझको दिखा दे कि तू सचमुच भला और खरा है।
2 तू मुझ पर अपने दास पर मुकदमा मत चला।
क्योंकि कोई भी जीवित व्यक्ति तेरे सामने नेक नहीं ठहर सकता।
3 किन्तु मेरे शत्रु मेरे पीछे पड़े हैं।
उन्होंने मेरा जीवन चकनाचूर कर धूल में मिलाया।
वे मुझे अंधेरी कब्र में ढकेल रहे हैं।
उन व्यक्तियों की तरह जो बहुत पहले मर चुके हैं।
4 मैं निराश हो रहा हूँ।
मेरा साहस छूट रहा है।
5 किन्तु मुझे वे बातें याद हैं, जो बहुत पहले घटी थी।
हे यहोवा, मैं उन अनेक अद्भुत कामों का बखान कर रहा हूँ।
जिनको तूने किया था।
6 हे यहोवा, मैं अपना हाथ उठाकर के तेरी विनती करता हूँ।
मैं तेरी सहायता कि बाट जोह रहा हूँ जैसे सूखी वर्षा कि बाट जोहती है।
7 हे यहोवा, मुझे शीघ्र उत्तर दे।
मेरा साहस छूट गया:
मुझसे मुख मत मोड़।
मुझको मरने मत दे और वैसा मत होने दे, जैसा कोई मरा व्यक्ति कब्र में लेटा हो।
8 हे यहोवा, इस भोर के फूटते ही मुझे अपना सच्चा प्रेम दिखा।
मैं तेरे भरोसे हूँ।
मुझको वे बाते दिखा
जिनको मुझे करना चाहिये।
9 हे यहोवा, मेरे शत्रुओं से रक्षा पाने को मैं तेरे शरण में आता हूँ।
तू मुझको बचा ले।
10 दिखा मुझे जो तू मुझसे करवाना चाहता है।
तू मेरा परमेश्वर है।
11 हे यहोवा, मुझे जीवित रहने दे,
ताकि लोग तेरे नाम का गुण गायें।
मुझे दिखा कि सचमुच तू भला है,
और मुझे मेरे शत्रुओं से बचा ले।
12 हे यहोवा, मुझ पर अपना प्रेम प्रकट कर।
और उन शत्रुओं को हरा दे,
जो मेरी हत्या का यत्न कर रहे हैं।
क्योंकि मैं तेरा सेवक हूँ।
समीक्षा
इतिहास के परमेश्वर के द्वारा मार्गदर्शित होइए
हमें परमेश्वर के निर्देश की आवश्यक्ता है। हम में इतिहास की घटनाओं को हमेशा के लिए बदलने की सामर्थ्य है, लेकिन हमें बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दाऊद दु:खी था, वह एक काल कोठरी में था। “मेरी आत्मा भीतर से व्याकुल हो रही है, मेरा मन विकल है, (व. 4)। आप खुद को ऐसी परिस्थिति से कैसे निकालेंगे?
- अच्छी बातों को याद रखिए
दाऊद ने सकरात्मक सोचने का चुनाव किया: “मुझे प्राचीन काल के दिन स्मरण आते हैं; मैं तेरे सब अद्भुत कामों पर ध्यान करता हूँ और तेरे हाथों के कार्यों को सोचता हूँ” (व. 5)।
- आराधना करिए
मुश्किल क्षणों में आराधना करना रेगिस्तान में मरु उद्यान के सामान होती है। दाऊद कहता है कि, “मैं तेरी ओर अपने हाथ फैलाये हुए हूँ, क्योंकि सूखी भूमि की नाईं में तेरा प्यासा हूँ” (व. 6)।
- परमेश्वर को मदद के लिए पुकारिए
दाऊद प्रार्थना करता है, “हे परमेश्वर, फुर्ती कर के मेरी सुन ले; क्योंकि मेरे प्राण निकलने पर हैं; मुझसे अपना मुँह न छिपा” (व. 7)।
- परमेश्वत का निर्देश सुनिए
सालों साल मैंने इस पद के साथ यह लिखा है, “जिस राह में मुझे चलना है, वह मुझे बता दे’ (व. 8)। उन क्षेत्रों की सूची जिसमें मुझे हताशपूर्ण स्तिथि में परमेश्वर की अगुवाई की ज़रुरत थी। और मैं यह कह सकता हूँ कि जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ कि किस तरह से परमेश्वर ने मेरी अगुवाई की है, तो मैं बहुत प्रोत्साहित हो जाता हूँ।
प्रार्थना
प्रकाशित वाक्य 6:1-17
मेमने का पुस्तक खोलना
6मैंने देखा कि मेमने ने सात मुहरों में से एक को खोला तभी उन चार प्राणियों में से एक को मैंने मेघ गर्जना जैसे स्वर में कहते सुना, “आ!” 2 जब मैंने दृष्टि उठाई तो पाया कि मेरे सामने एक सफेद घोड़ा था। घोड़े का सवार धनुष लिए हुए था। उसे विजय मुकुट पहनाया गया और वह विजय पाने के लिए विजय प्राप्त करता हुआ बाहर चला गया।
3 जब मेमने ने दूसरी मुहर तोड़ी तो मैंने दूसरे प्राणी को कहते सुना, “आ!” इस पर अग्रि के समान लाल रंग का 4 एक और घोड़ा बाहर आया। इस पर बैठे सवार को धरती से शांति छीन लेने और लोगों से परस्पर हत्याएँ करवाने को उकसाने का अधिकार दिया गया था। उसे एक लम्बी तलवार दे दी गयी।
5 मेमने ने जब तीसरी मुहर तोड़ी तो मैंने तीसरे प्राणी को कहते सुना, “आ!” जब मैंने दृष्टि उठायी तो वहाँ मेरे सामने एक काला घोड़ा खड़ा था। उस पर बैठे सवार के हाथ में एक तराजू थी। 6 तभी मैंने उन चारों प्राणियों के बीच से एक शब्द सा आते सुना, जो कह रहा था, “एक दिन की मज़दूरी के बदले एक दिन के खाने का गेहूँ और एक दिन की मज़दूरी के बदले तीन दिन तक खाने का जौ। किन्तु जैतून के तेल और मदिरा को क्षति मत पहुँचा।”
7 फिर मेमने ने जब चौथी मुहर खोली तो चौथे प्राणी को मैंने कहते सुना, “आ!” 8 फिर जब मैंने दृष्टि उठायी तो मेरे सामने मरियल सा पीले हरे से रंग का एक घोड़ा उपस्थित था। उस पर बैठे सवार का नाम था “मृत्यु” और उसके पीछे सटा हुआ चल रहा था प्रेत लोक। धरती के एक चौथाई भाग पर उन्हें यह अधिकार दिया गया कि युद्धों, अकालों, महामारियों तथा धरती के हिंसक पशुओं के द्वारा वे लोगों को मार डालें।
9 फिर उस मेमने ने जब पाँचवी मुहर तोड़ी तो मैंने वेदी के नीचे उन आत्माओं को देखा जिनकी परमेश्वर के सुसन्देश के प्रति आत्मा के तथा जिस साक्षी को उन्होंने दिया था, उसके कारण हत्याएँ कर दी गयीं थीं। 10 ऊँचे स्वर में पुकारते हुए उन्होंने कहा, “हे पवित्र एवम् सच्चे प्रभु! हमारी हत्याएँ करने के लिए धरती के लोगों का न्याय करने को और उन्हें दण्ड देने के लिए तू कब तक प्रतीक्षा करता रहेगा?” 11 उनमें से हर एक को सफेद चोगा प्रदान किया गया तथा उनसे कहा गया कि वे थोड़ी देर उस समय तक, प्रतीक्षा और करें जब तक कि उनके उन साथी सेवकों और बंधुओं की संख्या पूरी नहीं हो जाती जिनकी वैसे ही हत्या की जाने वाली है, जैसे तुम्हारी की गयी थी।
12 फिर जब मेमने ने छठी मुहर तोड़ी तो मैंने देखा कि वहाँ एक बड़ा भूचाल आया हुआ है। सूरज ऐसे काला पड़ गया है जैसे किसी शोक मनाते हुए व्यक्ति के वस्त्र होते हैं तथा पूरा चाँद, लहू के जैसा लाल हो गया है। 13 आकाश के तारे धरती पर ऐसे गिर गये थे जैसे किसी तेज आँधी द्वारा झकझोरे जाने पर अंजीर के पेड़ से कच्ची अंजीर गिरती है। 14 आकाश फट पड़ा था और एक पुस्तक के समान सिकुड़ कर लिपट गया था। सभी पर्वत और द्वीप अपने-अपने स्थानों से डिग गये थे।
15 संसार के सम्राट, शासक, सेनानायक, धनी शक्तिशाली और सभी लोग तथा सभी स्वतन्त्र एवम् दास लोगों ने पहाड़ों पर चट्टानों के बीच और गुफाओं में अपने आपको छिपा लिया था। 16 वे पहाड़ों और चट्टानों से कह रहे थे, “हम पर गिर पड़ो और वह जो सिंहासन पर विराजमान है तथा उस मेमने के क्रोध के सामने से हमें छिपा लो। 17 उनके क्रोध का भयंकर दिन आ पहुँचा है। ऐसा कौन है जो इसे झेल सकता है?”
समीक्षा
इतिहास के पर्दे के पीछे देखिए
आज पूरे विश्व में हो रही भयानक चीज़ें देखने और इतिहास को पढ़ने के बावजूद आपके पास महान आशा है। सुसमाचार यीशु पर केंद्रित है, यीशु परमेश्वर के मेमने इतिहास की मुहरों को खोलते हैं (व. 1)। यीशु हम पर वह सब प्रकट करते हैं जो कुछ परदों के पीछे हो रहा है, जिसके बारे में हम पढ़ते और सुनते हैं।
- पूरे विश्व में सुसमाचार का प्रचार
पहले घुड़सवार को देखा उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकला कि और भी जय प्राप्त करें’ (व. 2)।
ऐसा लगता है स्वयं यीशु के बारे में है, जिसने मृत्यु को हरा दिया, पूरे विश्व का अभिषिक्त राजा जो शुभ समाचार का प्रचार पूरे राष्ट्रों में करता है।
- युद्ध और सैन्य शक्ति
‘फिर एक और घोड़ा निकला, जो लाल रंग का था; उसके सवार को यह अधिकार दिया गया, कि पृथ्वी पर से मेल उठा ले, ताकि लोग एक दूसरे को वध करें; और उसे एक बड़ी तलवार दी गई’(व. 4)।
पूरा इतिहास हिंसा और युद्ध से भरा हुआ है, क्योंकि लोगों ने सिर्फ एक दूसरे पर हावी होने और शासन करने को तलाशा।
- अन्याय और असमानता
और तीसरे सवार के हाथ में काला ताराज़ू था (व. 5)।
कीमतें बढ़ गईं (व. 6)। चारों ओर आर्थिक उत्पात था। आज भी हमें देखने को मिलता है कि, कुछ लोग बहुत ही भयानक आर्थिक दरिद्रता में जी रहे हैं, पर कुछ लोग सुख विलास का जीवन जी रहे हैं (व. 6)। ये लोग दरिद्रों की ज़रूरतों से बिल्कुल अप्रभावित रहते हैं।
- मृत्यु का अभिशाप
और चौथे सवार का नाम ‘मृत्यु’ था और अधोलोक उसके पीछे था (व. 8)।
जब हम इस विश्व का इतिहास पढ़ते हैं,तो यह पता चलता है कि वे सिर्फ हिंसा (तलवार से वध), भूखमरी (अकाल), बीमारी (महामारी) और बहुत सी बीमारी आक्समिक मृत्यु के कारण रहे हैं, (जैसे पृथ्वी के जंगली जानवर) (व. 8ब)।
- सतायी हुई कलीसिया
मसीही लोगों पर सताव आज भी जारी है। बहुत से मसीही लोग हर रोज़ गुप्त पुलिस, सतर्कता समिती दल, राज्य का दबाव और भेद भाव के डर में जीते हैं। और वे अपने यीशु पर विश्वास रखने के कारण कष्ट झेल रहे हैं।
- अंत की शुरुवात
यीशु ने बिल्कुल ऐसी ही गड़बड़ी की भविष्यवाणी की थी जिनका वर्णन यहाँ किया गया है - यह सब बातें विपत्तियों का आरम्भ होंगी (मत्ती 24:8) और इनमें सामाजिक और राजनैतिक विप्लव के साथ साथ प्राकृतिक आपदा भी होंगी।
यह 6 मुहरें इतिहास की सामान्य दृष्टि से हमें यीशु मसीह के पहले और दूसरे आगमन के बीच के समय को दर्शाती हैं।
प्रार्थना
मलाकी 1:1-2:16
1परमेश्वर का संदेश। यह सन्देश यहोवा का है। इस सन्देश को मलाकी ने इस्राएल को दिया।
परमेश्वर इस्राएल से प्रेम करता है
2 यहोवा ने कहा, “लोगों, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।”
किन्तु तुमने कहा, “कैसे पता चले कि तू हमसे प्रेम करता है”
यहोवा ने कहा, “एसाव याकूब का भाई था। ठीक किन्तु मैंने याकूब को चुना। 3 और मैंने एसाव को स्वीकार नहीं किया। मैंने एसाव के पहाड़ी प्रदेश को नष्ट किया। एसाव का देश नष्ट किया गया और अब वहाँ केवल जंगली कुत्ते रहते हैं।”
4 संभव है एदोम के लोग कहे, “हम नष्ट किये गये। किन्तु हम अपने नगरों को पुन: बनाएंगे।”
किन्तु सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “यदि वे उन नगरों को पुन: बनाते हैं तो मैं उन्हें पुन: नष्ट करुँगा!” इसलिए लोग एदोम को बुरा देश कहते हैं। लोग कहते हैं कि यहोवा उन लोगों से सदा के लिए घृणा करता है।
5 लोगों, तुमने यह सब देखा और कहा, “इस्राइल के बाहर भी यहोवा महान है।”
ये याजक परमेश्वर को सम्मान नहीं देते
6 सर्वशक्तिमान यहोवा ने कहा, “बच्चे अपने पिता का सम्मान करते हैं। सेवक अपने स्वामियों का सम्मान करते हैं। मैं तुम्हारा पिता हूँ, अत: तुम मेरा सम्मान क्यों नहीं करते? मैं तुम्हारा स्वामी हूँ, अत: तुम मेरा सम्मान क्यों नहीं करते याजकों, तुम मेरे नाम का सम्मान नहीं करते।”
“किन्तु तुम कहते हो, ‘हमने क्या किया है, जो प्रकट करता है कि हम तेरे नाम का सम्मान नहीं करते?’
7 यहोवा ने कहा, “तुम मेरी वेदी पर अशुद्ध रोटी लाते हो!”
“किन्तु तुम कहते हो, ‘वह रोटी अशुद्ध कैसे हैं?’
यहोवा ने कहा, “तुम मेरी वेदी का सम्मान नहीं करते। 8 तुम अन्धे जानवर बलि के लिए लाते हो और यह गलत है।तुम बलि के लिए रोगी और विकलांग जानवर लाते हो। यह गलत हैं! तुम अपने शासक को उन रोगी जानवरों को भेंट देने का प्रयत्न करो। क्या वह उन जानवरों को भेंट के रुप में स्वीकार करेगा नहीं! वह उन जानवरों को स्वीकार नहीं करेगा!” सर्वशक्तिमान यहोवा यह सब कहता है!
9 “याजकों, तुम्हें यहोवा से हमारे लिए अच्छा बने रहने की प्रार्थना करनी चाहिये। किन्तु वह तुम्हारी नहीं सुनेगा और यह सारा दोष तुम्हारा है।” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा।
10 “निश्चय ही, तुम लोगों में से कोई याजक तो मंदिर के द्वारों को बन्द करता और आग ठीक —ठीक जलाता। सो मैं तुम लोगों से प्रसन्न नहीं हूँ। मैं तुम्हारी भेंट स्वीकार नहीं करुँगा।” सर्वशक्तिमान यहोवा यह सब कहता है।
11 “संसार में सर्वत्र लोग मेरे नाम का सम्मान करते हैं। संसार में सर्वत्र लोग मेरे लिये अच्छी भेंट लाते हैं। वे अच्छी सुगन्धि मेरी भेंट के रप में जलाते हैं। क्यों क्योंकि मेरा नाम उन सभी लोगों के लिये महत्वपूर्ण है।” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा।
12 “किन्तु लोगों, तुम यह प्रकट करते हो कि तुम मेरे नाम का सम्मान नहीं करते।तुम कहते हो कि यहोवा की मेज (वेदी) पवित्र नहीं है 13 और तुम उस मेज से भोजन लेना पसन्द नहीं करते। तुम भोजन को सूंघते हो और उसे खाने से इन्कार करते हो। तुम कहते हो कि यह बुरा है। किन्तु यह सत्य नहीं है। तुम रोगी, विकलांग और चोट खाये जानवर मेरे लिये लाते हो। तुम रोगी जानवरों को मुझे बलि के रूप में भेंट करने का प्रयत्न करते हो। किन्तु मैं तुमसे उन रोगी जानवरों को स्वीकार नहीं करुँगा।” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा। 14 “कुछ लोगों के पास अच्छे नर— जानवर हैं, जिसे वे बलि के रूप में दे सकते हैं। किन्तु वे उन अच्छे जानवरों को मुझे नहीं देते। कुछ लोग मेरे पास अच्छे जानवर लाते हैं।वे उन स्वस्थ जानवरों को मुझे देने की प्रतिज्ञा करते हैं। किन्तु वे गुप्त रूप से उन अच्छे जानवरों को बदल देते हैं और मुझे रोगी जानवर देते हैं। उन लोगों के साथ बुरा घटेगा! मैं महान राजा हूँ। तुम्हें मेरा सम्मान करना चाहिये! संसार में सर्वत्र लोग मेरा सम्मान करते हैं!” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा!
याजकों के लिये नियम
2“याजकों, यह नियम तुम्हारे लिये हैं! मेरी सूनो! जो मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दो। मेरे नाम का सम्मान करो! 2 यदि तुम मेरे नाम का सम्मान नहीं करते तो तुम्हारे साथ बुरा घटित होगा। तुम आशीर्वाद दोगे, किन्तु वे अभिशाप बनेंगे। मैं बुरा घटित कराऊँगा क्योंकि तुम मेरे नाम का सम्मान नहीं करते!” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा!
3 “देखो, मैं तुम्हारे वंशजों को दण्ड दूँगा। याजकों, तुम पवित्र दिनों को मुझे बलि—भेंट करते हो। तुम गोबर और मरे जानवरों की अंतड़ियों को लेते हो और उन भागों को फेंक देते हो। किन्तु मैं उस गोबर को तुम्हारे चेहरों पर मलूंगा और तुम इसके साथ फेंक दिये जाओगे! 4 तब तुम समझोगे कि मैं तुम्हें यह आदेश क्यों दे रहा हूँ मैं तुमको ये बातें इसलिये बता रहा हूँ कि लेवी के साथ मेरी वाचा चलती रहेगी।” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा।
5 यहोवा ने कहा, “मैंने यह वाचा लेवी के साथ की। मैंने उसे शान्तिपूर्ण जीवन देने की प्रतिज्ञा की और मैंने उसे वह दिया। लेवी ने मुझे सम्मान दिया। उसने मेरे नाम को सम्मान दिया। 6 लेवी ने सच्ची शिक्षा दी।लेवी ने झूठे उपदेश नहीं दिये! लेवी ईमानदार और शान्तिप्रिय व्यक्ति था। लेवी ने मेरा अनुसरण किया और अनेक व्यक्तियों को पाप कर्मों से बचाया। 7 याजक को परमेश्वर के उपदेशों को जानना चाहिए। लोगों को याजक के पास जाने योग्य होना चाहिये और परमेश्वर की शिक्षा को सीखना चाहिये। याजक के लोगों के लिये परमेश्वर का दूत होना चाहिये।
8 यहोवा ने कहा, “याजकों, तुमने मेरा अनुसरण करना छोड़ दिया! तुमने शिक्षाओं का उपयोग लोगों से बुरा काम कराने के लिये किया। तुमने लेवी के साथ किये गये वाचा को भ्रष्ट किया!” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा! 9 “तुम उस तरह नहीं रहे जैसा रहने को मैंने कहा! तुमने हमारी शिक्षाओं को स्वीकार नहीं किया हैं! अत: मैं तुम्हें महत्वहीन बनाऊँगा, लोग तुम्हारा सम्मान नहीं करेंगे!”
यहूदा परमेश्वर के प्रति सच्चा नहीं रहा
10 हम सब का एक ही पिता (परमेश्वर) है। उसी परमेश्वर ने हम सभी को बनाया! अत: लोग अपने भाईयों को क्यों ठगते हैं वे लोग प्रकट करते हैं कि वे उस वाचा का सम्मान नहीं करते। वे उस वाचा का सम्मान नहीं करते जिसे हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर के साथ किया। 11 यहूदा के लोगों ने अन्य लोगों को ठगा। यरूशलेम और इस्राएल के लोगों ने भयंकर काम किये! यहूदा के निवासियों ने यहोवा के पवित्र मंदिर का सम्मान नहीं किया। परमेश्वर उस स्थान से प्रेम करता है। यहूदा के लोगों ने उन विदेशी स्त्रियों से विवाह किए जो झूठे देवों की पूजा किया करती थी! 12 यहोवा उन लोगों को यहूदा के परिवार से दूर कर देगा। वे लोग यहोवा के पास भेंट ला सकते हैं, किन्तु उससे कोई सहायता नहीं मिलेगी। 13 तुम रो सकते हो और यहोवा की वेदी को आंसुओं से ढक सकते हो, किन्तु यहोवा तुम्हारी भेंट स्वीकार नहीं करेगा। यहोवा उन चीज़ों से प्रसन्न नहीं होगा, जिन्हें तुम उसके पास लाओगे।
14 तुम पूछते हो, “हमारी भेंट यहोवा द्वारा स्वीकार क्यों नहीं की जातीं” क्यों क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे किये बुरे कामों को देखा, वब तुम्हारे विरुद्ध साक्षी है। उसने देखा कि तुम अपनी पत्नी को ठगते हो। तुम उस स्त्री के साथ तबसे विवाहित हो जबसे तुम जवान हुए थे। वह तुम्हारी प्रेयसी थी। तब तुमने परस्पर प्रतिज्ञा की और वह तुम्हारी पत्नी हो गई। किन्तु तुमने उसे ठगा। 15 परमेश्वर चाहता है कि पति और पत्नी एक शरीर और एक आत्मा हो जायें। क्यों जिससे उनके बच्चे पवित्र हों। अत: उस आध्यात्मिक एकता की रक्षा करो। अपनी पत्नी को न ठगो। वह तुम्हारी पत्नी तब से है जब से तुम युवक हुए।
16 इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, “मैं विवाह—विच्छेद से घृणा करता हूँ। मैं पुरूषों के क्रूर कामों से घृणा करता हूँ। अत: अपनी आत्मिक एकता की सुरक्षा करो। अपनी पत्नी को धोखा मत दो।”
समीक्षा
इतिहास में परमेश्वर के प्रेम को देखिए
‘इतिहास को देखिए’...(व. 2) परमेश्वर अपने भविष्यवक्ता मलाकी के द्वारा कहते हैं, (सी. 450 बीसी) जिसके नाम का मतलब है 'मेरा दूत’। अगर आप जानना चाहते हैं कि परमेश्वर आपसे कितना प्रेम करते हैं, तो इतिहास देखिये। हम लोगों के लिए इतिहास के परमेश्वर का सन्देश यह है कि, “मैं तुमसे प्रेम करता हूँ” (व. 2)। अच्छी तरह से देखने पर तुम पाओगे कि मैंने कितनी ईमानदारी से तुमसे प्रेम किया है बल्कि तुम्हे और भी प्रेम की चाह होगी (व. 5)।
पृष्ठभूमि यह है कि मंदिर के पुनःनिर्माण के बाद भी, तुच्छ, मैली और अशुद्ध आराधना हो रही है। परमेश्वर की आराधना को पहला दर्जा नहीं दिया जाता’ (वव. 6-7)। और उदारता से देने की कमी है औऱ गृहस्थ जीवन विफल हो रहा है।
परमेश्वर के लोगों के अगुवों के लिए इस पुस्तक के वचन बहुत ही चुनौतीपूर्ण हैं (व. 6)।
भविष्यवक्ताओं की तरह याजक भी परमेश्वर के लोगों के अगुवे थे। जिनके माध्यम से परमेश्वर बात करते थे। “क्योंकि याजक को चाहिये था कि वे अपने होठों से ज्ञान की रक्षा करें, और लोग उसके मुँह से व्यवस्था सुनें, क्योंकि वे सेनाओं के यहोवा का दूत है” (2:7)।
हम सबके लिए यह चुनौती है:
- एक मन के दृढ़ संकल्प से परमेश्वर के नाम का आदर देखिए।
“मन लगाकर मेरे नाम का आदर करो” (व. 2)।
- जीवन और शांति को प्राप्त करिए
परमेश्वर ‘जीवन और शांति’ देने का वायदा करते हैं (व. 5)। यह सबसे महानतम अशीषें हैं जो आप प्राप्त कर सकते हैं।
- परमेश्वर की आराधना श्रद्धा और आदर से करिए
परमेश्वर कि असाधारण उदारता और करुणा के लिए हमारी प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए: “मेरी जो वाचा उनके साथ बंधी थी, वो जीवन और शांति की थी, और मैंने यह इसलिए उसको दिया कि वह भय मानता रहे...” (व. 5)।
- सच्चाई की शिक्षा दीजिए:
“उसको मेरी सच्ची व्यवस्था याद थी, और उसके मुंह से कुटिल बात न निकलती थी...” (व. 6)।
- धार्मिक जीवन जीयें:
वह शांति और सीधाई से मेरे संग संग चलता था, और बहुतों को अधर्म से लौटा ले आया था (व. 6ब)। ईसाई अगुवे पवित्र जीवन जी के एक आदर्श बने।
- ऐसा जीवन जीयें जिससे दूसरों को परमेश्वर के साथ सम्बन्ध बनाने में मदद मिले।
“......और वह बहुतों को अधर्म से लौटा ले आएं”(6बी)।
फिर मलाकी रिश्तों की और केंद्रित होता है। उसने उनकी निंदा की जिन्होंने गैर विश्वासियीं से विवाह किया था (व. 11)। और बाइबल के एक लेख में (2 कुरंथियों 6:14) इस बात की निंदा की गई है, लेकिन हमें यह बहुत चुनौतीपूर्ण लग सकता है। मलाकी के मानसिक चित्र जिनका वह उपयोग करते हैं उससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि यह एक अच्छा विचार नहीं है। उसने “विदेशी देवी की बेटी” के रूप में गैर विश्वासियों का वर्णन किया है (मलाकी 2:11), यह पद विशेष रूप से उनके प्रतिस्पर्धी धार्मिक विचारों को दर्शाता है।
हम सब के पास धार्मिक विचार और विश्वास है, चाहें वह यह विश्वास हो कि परमेश्वर हैं ही नहीं. अपने आप को अविश्वासियों को समर्पित करने से, अंत में यह हमें परमेश्वर से दूर कर सकता है।
परमेश्वर चाहते हैं कि बच्चों की देखभाल एवं वैवाहिक संबंध की सुरक्षा की जाए: “क्या परमेश्वर ने उन्हें एक नहीं किया? दोनों, शरीर और आत्मा से उनके हैं। और एक क्यों? क्योंकि परमेश्वर एक धार्मिक संतान की खोज में थे। इसलिए तुम अपनी आत्मा के विषय में चौकस रहो, और तुम में से कोई अपनी जवानी की स्त्री से विश्वासघात न करें। क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यह कहता है, कि मैं स्त्री त्याग से घृणा करता हूँ, और उस से भी जो अपने वस्त्र को उपद्रव से ढाँकता है। इसलिए तुम अपनी आत्मा के विषय में चौकस रहो और विश्वासघात मत करो, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।“(वव. 15-16 )
ये शब्द हमे कठोर लगते हैं, पर वास्तव में ये हमारे लिए अनुस्मरक हैं कि परमेश्वर हम से कितना प्रेम करते हैं और शादी के बंधन को कितना महत्व देते हैं। यह इसलिए है क्योंकि शादी एक बहुत ही सुन्दर मिलाप है और परमेश्वर उन चीज़ों के विरुद्ध में है जो इसे खोखला करती हैं।
विश्वासघात हमारे हृदयों से शुरू होता है: “इसलिए तुम अपनी आत्मा के विषय में चौकस रहो और विश्वासघात मत करो” (व. 16)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
भजन संहिता 143:8
“अपनी करुणा की बात मुझे शीघ्र सुना, क्योंकि मैंने तुझी पर भरोसा रखा है। जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझको बता दे, क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूँ।”
मेरा दिन बहुत अच्छा जाता है जब मैं सुबह सुबह बाइबल पढ़ती हूँ और मैं परमेश्वर के स्थायी प्रेम से उत्साहित होती हूँ। परमेश्वर के साथ इन क्षणों को न बिताना ऐसा लगता है जैसे बिना कोट पहने बाहर निकल जाना - जैसे कि कोई महत्वपूर्ण चीज़ गुम हो गई हो।
दिन का वचन
भजन संहिता – 143:8
“अपनी करूणा की बात मुझे शीघ्र सुना, क्योंकि मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है। जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे, क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं॥ “
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संदर्भ
विलियम शेक्सपियर, द ट्रेजडी ऑफ मॅक्बेथ, एक्ट V, दृश्य 5
पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।