दिन 338

डर पर जय पाने के चार तरीके

बुद्धि भजन संहिता 138:1-8
नए करार 1 यूहन्ना 4:7-21
जूना करार दानिय्येल 11:2-35

परिचय

"परमेश्वर आपसे बिना शर्त के, पूरे हृदय से और निरंतर प्रेम करते हैं।" ये स्वर्गीय एलेक्स बुचनन के शब्द थे, पास्टर्स के पास्टर के रूप में जिनका वर्णन किया गया। वह आधे अंधे थे और एक सदमे ने उनके चेहरे के एक तरफ को प्रभावित किया था। मुझे याद है मैंने उन्हें परमेश्वर के प्रेम के बारे में कहते हुए सुना और वह निरंतर वचनों को दोहरा रहे थे, "परमेश्वर आपसे बिना शर्त के, पूरे हृदय से और निरंतर प्रेम करते हैं।"

जब वह बात कर चुके तब मेरे पास आये और कहा, "क्या आप विश्वास करते हैं कि परमेश्वर आपको स्वीकार करते हैं:" मैंने कहा, "असल में, मैं इस बात के साथ संघर्ष करता हूँ क्योंकि मैं अपने विषय में चीजों को जानता हूँ, इसका अर्थ है कि मुझे यह मानने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर मुझे स्वीकार करते हैं।" उन्होंने जवाब दिया, "हम सभी इसके साथ संघर्ष करते हैं। लेकिन परमेश्वर चाहते हैं कि आप जाने कि वह आपको स्वीकार करते हैं। वह चाहते हैं कि आप जाने कि वह आपसे बिना शर्त के, पूरे हृदय से और निरंतर प्रेम करते हैं।"

यदि मुझसे कहा जाये कि एक शब्द में बताओ कि बाईबल किस विषय में है – शब्द "यीशु" के अलावा – मैं शब्द "प्रेम" को चुनूंगा। आज के नये नियम के लेखांश में दो बार यूहन्ना लिखते हैं, "परमेश्वर प्रेम हैं" (1यूहन्ना 4:8,16)। शब्द "प्रेम" का इस्तेमाल हमारे समाज में व्यापक रूप से किया गया है। बाईबल में कहीं भी यह नहीं कहा गया, "प्रेम परमेश्वर है।" दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हैं जो परिभाषित करते हैं कि प्रेम क्या है, नाकि इसका उलटाः "परमेश्वर प्रेम हैं।"

यहाँ पर विश्व की सबसे बड़ी इच्छा का उत्तर है। लोग प्रेम को खोज रहे हैं। उनका हृदय प्रेम को खोज रहा है। जब आप सच में अपने लिए परमेश्वर के प्रेम को जानते हैं, तब आपका जीवन बदलता है। जैसा कि हम आज के लिए नये नियम के लेखांश में देखेंगे, परमेश्वर का प्रेम आपके जीवन में डर पर जय पाने के लिए चार पूंजी का महत्वपूर्ण भाग हैः "प्रेम में कोई डर नहीं है। लेकिन सिद्ध प्रेम डर को दूर करता है" (व.18)।

बुद्धि

भजन संहिता 138:1-8

दाऊद का एक पद।

138हे परमेश्वर, मैं अपने पूर्ण मन से तेरे गीत गाता हूँ।
 मैं सभी देवों के सामने मैं तेरे पद गाऊँगा।
2 हे परमेश्वर, मैं तेरे पवित्र मन्दिर की और दण्डवत करुँगा।
 मैं तेरे नाम, तेरा सत्य प्रेम, और तेरी भक्ति बखानूँगा।
 तू अपने वचन की शक्ति के लिये प्रसिद्ध है। अब तो उसे तूने और भी महान बना दिया।
3 हे परमेश्वर, मैंने तुझे सहायता पाने को पुकारा।
 तूने मुझे उत्तर दिया! तूने मुझे बल दिया।

4 हे यहोवा, मेरी यह इच्छा है कि धरती के सभी राजा तेरा गुण गायें।
 जो बातें तूने कहीं हैं उन्होंने सुनीं हैं।
5 मैं तो यह चाहता हूँ, कि वे सभी राजा
 यहोवा की महान महिमा का न करें।
6 परमेश्वर महान है,
 किन्तु वह दीन जन का ध्यान रखता है।
 परमेश्वर को अहंकारी लोगों के कामों का पता है
 किन्तु वह उनसे दूर रहता है।
7 हे परमेश्वर, यदि मैं संकट में पडूँ तो मुझको जीवित रख।
 यदि मेरे शत्रु मुझ पर कभी क्रोध करे तो उन से मुझे बचा ले।
8 हे यहोवा, वे वस्तुएँ जिनको मुझे देने का वचन दिया है मुझे दे।
 हे यहोवा, तेरा सच्चा प्रेम सदा ही बना रहता है।
 हे यहोवा, तूने हमको रचा है सो तू हमको मत बिसरा।

समीक्षा

परमेश्वर का धन्यवाद दीजिए उनके प्रेम के लिए

भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं, " मैं पूरे मन से तेरा धन्यवाद करूँगा...तेरी करुणा और सच्चाई के कारण तेरे नाम का धन्यवाद करूँगा" (वव.1-2, एम.एस.जी)।

हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देने में परमेश्वर प्रेमी और वफादार हैं: " जिस दिन मैंने पुकारा, उसी दिन तू ने मेरी सुन ली, और मुझ में बल देकर साहस बन्धाया" (व.3)।

इस जीवन में हम बहुत सी "परेशानियों" (व.7ब) का सामना करते हैं – बीमारी, विरोध, प्रलोभन, थकान, जाँच और प्रहार। परमेश्वर अपने प्रेम और वफादारी में, हमें सुरक्षित रखते हैं। " चाहे मैं संकट के बीच में रहूँ तब भी तू मुझे जिलाएगा" (व.7अ)।

मैं सोचता हूँ कि वचन 8 संपूर्ण बाईबल में सबसे अधिक उत्साहित करने वाला वचन हैः"यहोवा मेरे लिये सब कुछ पूरा करेगा" (व.8अ)। परमेश्वर के पास, अपने प्रेम और वफादारी में, आपके जीवन के लिए एक उद्देश्य है और वह उस उद्देश्य को पूरा करेंगे।

मनुष्य का प्रेम क्षणिक हो सकता है, लेकिन "हे परमेश्वर, आपका प्रेम सर्वदा बना रहता है" (व.8ब)। जैसे परमेश्वर का प्रेम और वफादारी साथ-साथ जाते हैं, वैसे ही एक दूसरे के लिए हमारा प्रेम होना चाहिए – विवाह में, और हमारे सभी दूसरे संबंधों में।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरे प्रति आपके अद्भुत प्रेम और वफादारी के लिए आपका धन्यवाद। आपका धन्यवाद कि आप मेरे लिए अपने उद्देश्य को पूरा करने का वायदा करते हैं। प्रेम और वफादारी का एक जीवन जीने में मेरी सहायता कीजिए।
नए करार

1 यूहन्ना 4:7-21

प्रेम परमेश्वर से मिलता है

7 हे प्यारे मित्रों, हम परस्पर प्रेम करें। क्योंकि प्रेम परमेश्वर से मिलता है और हर कोई जो प्रेम करता है, वह परमेश्वर की सन्तान बन गया है और परमेश्वर को जानता है। 8 वह जो प्रेम नहीं करता है, परमेश्वर को नहीं जाना पाया है। क्योंकि परमेश्वर ही प्रेम है। 9 परमेश्वर ने अपना प्रेम इस प्रकार दर्शाया है: उसने अपने एकमात्र पुत्र को इस संसार में भेजा जिससे कि हम उसके पुत्र के द्वारा जीवन प्राप्त कर सकें। 10 सच्चा प्रेम इसमें नहीं है कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया है, बल्कि इसमें है कि एक ऐसे बलिदान के रूप में जो हमारे पापों को धारण कर लेता है, उसने अपने पुत्र को भेज कर हमारे प्रति अपना प्रेम दर्शाया है।

11 हे प्रिय मित्रो, यदि परमेश्वर ने इस प्रकार हम पर अपना प्रेम दिखाया है तो हमें भी एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए। 12 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा है किन्तु यदि हम आपस में प्रेम करते हैं तो परमेश्वर हममें निवास करता है और उसका प्रेम हमारे भीतर सम्पूर्ण हो जाता है।

13 इस प्रकार हम जान सकते है कि हम परमेश्वर में ही निवास करते हैं और वह हमारे भीतर रहता है। क्योंकि उसने अपनी आत्मा का कुछ अंश हमें दिया है। 14 इसे हमने देखा है और हम इसके साक्षी हैं कि परम पिता ने जगत के उद्धारकर्त्ता के रूप में अपने पुत्र को भेजा है। 15 यदि कोई यह मानता है कि, “यीशु परमेश्वर का पुत्र है,” तो परमेश्वर उसमें निवास करता है और वह परमेश्वर में रहने लगता है। 16 इसलिए हम जानते हैं कि हमने अपना विश्वास उस प्रेम पर टिकाया है जो परमेश्वर में हमारे लिए है।

परमेश्वर प्रेम है और जो प्रेम में स्थित रहता है, वह परमेश्वर में स्थित रहता है और परमेश्वर उसमें स्थित रहता है। 17 हमारे विषय में इसी रूप में प्रेम सिद्ध हुआ है ताकि न्याय के दिन हमें विश्वास बना रहे। हमारा यह विश्वास इसलिए बना हुआ है कि हम इस जगत में जो जीवन जी रहे है, वह मसीह के जीवन जैसा है। 18 प्रेम में कोई भय नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण प्रेम तो भय को भगा देता है। भय का संबन्ध तो दण्ड से है। सो जिसमें भय है, उसके प्रेम को अभी पूर्णता नहीं मिली है।

19 हम प्रेम करते हैं क्योंकि पहले परमेश्वर ने हमें प्रेम किया है। 20 यदि कोई कहता है, “मैं परमेश्वर को प्रेम करता हूँ,” और अपने भाई से घृणा करता है तो वह झूठा है। क्योंकि अपने उस भाई को, जिसे उसने देखा है, जब वह प्रेम नहीं करता, तो परमेश्वर को जिसे उसने देखा ही नहीं है, वह प्रेम नहीं कर सकता। 21 मसीह से हमें यह आदेश मिला है। वह जो परमेश्वर को प्रेम करता है, उसे अपने भाई से भी प्रेम करना चाहिए।

समीक्षा

परमेश्वर के प्रेम में जीएं

" इसी से प्रेम हम में सिध्द हुआ कि हमें न्याय के दिन हियाव हो; क्योंकि जैसा वह है वैसे ही संसार में हम भी हैं" (व.17, एम.एस.जी)।

इस छोटे लेखांश में शब्द "प्रेम, " "प्रेम करना" और "प्रेम किया" सत्ताईस बार दिखाई देता है। यह नये नियम का केंद्र है। यह बाईबल का केंद्र है। यह परमेश्वर का केंद्र है।

प्रेम डर का इलाज हैः"सिद्ध प्रेम डर को दूर करता है" (व.18)। या, "सिद्ध प्रेम डर को दरवाजे से बाहर करता है और आंतक के हर चिह्न को दूर करता है" (व.18, ए.एम.पी)। प्रेम भय का विपरीत है। वे तेल और पानी की तरह है। प्रेम सभी को चाहिए। डर से सभी छुटकारा पाना चाहते हैं। हम इस लेखांश में अपने जीवन से डर पर जय पाने के चार तरीकों को देखते हैं।

  1. परमेश्वर के प्रेम को समझिए

" प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, पर इस में है कि उन्होंने हमसे प्रेम किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिये अपने पुत्र को भेजा ... इसी से प्रेम हम में सिध्द हुआ कि हमें न्याय के दिन हियाव हो ... प्रेम में भय नहीं होता, वरन् सिध्द प्रेम भय को दूर कर देता है; क्योंकि भय का सम्बन्ध दण्ड से होता है, और जो भय करता है वह प्रेम में सिध्द नहीं हुआ" (वव.10,17-18)।

डर विश्व में आया जब आदम और हव्वा ने पाप किया। वे परमेश्वर से छिप गए। जब परमेश्वर ने पूछा, "तू कहाँ है:" उसने कहा, "मैं तेरा शब्द बारी में सुनकर डर गया, इसलिये छिप गया।" (उत्पत्ति 3:10)। आदम डर गया था कि परमेश्वर उसे दंड देंगे।

डर की सबसे बड़ी जड़ है दंड - यह भावना कि परमेश्वर आपके विरूद्ध हैं। लेकिन परमेश्वर ने " हमारे पापों के प्रायश्चित के लिये अपने पुत्र को भेजा" (1यूहन्ना 4:10)। यीशु ने हमारे दंड को लिया। परमेश्वर चाहते हैं कि आप उनके सामने निर्भीक रहे।

  1. परमेश्वर के प्रेम को अनुभव कीजिए

"हम जानते हैं कि हम उनमें बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उन्होंने अपनी आत्मा में से हमें दिया है ... परमेश्वर प्रेम हैं, और जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्वर में बना रहता है, और परमेश्वर उसमें बने रहते हैं" (वव.13,16)।

आप सच में जीना शुरु कर देते हैं जब आप जानते हैं कि परमेश्वर आपसे बिना किसी शर्त के प्रेम करते हैं। पवित्र आत्मा हमें हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का अनुभव कराते हैं। जब पीपा छोटी लड़की थी, जब कभी वह डर जाती थी, उनके पिता उसे हाथों में उठा लेते थे और गीत गाते थे, "डैडी ने तुम्हें पकड़ लिया है।" यह पवित्र आत्मा का कार्य है –परमेश्वर हमें अपने हाथों में उठा लेते हैं और हमारे लिए अपने प्रेम के प्रति आश्वस्त करते हैं।

  1. परमेश्वर के प्रेम में विश्वास करिए

"परमेश्वर प्रेम हैं, और जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्वर में बना रहता है, और परमेश्वर उसमें बने रहते हैं" (व.16)। "निर्भर" रहने के लिए ग्रीक शब्द वही शब्द है जो विश्वास के लिए इस्तेमाल किया गया है। यहाँ तक कि जब हम परमेश्वर के प्रेम को जानते हैं और इसका अनुभव भी किया है, हमें सिर्फ निरंतर विश्वास करने की आवश्यकता है।

वस्तु का स्थायित्व इस भाव का इस्तेमाल बालक की समझने की योग्यता के लिए मनोवैज्ञानिक करते हैं, कि वह वस्तु अब भी अस्तित्व में है परंतु वे अब दिखाई नहीं देती हैं।

चार महीने तक के बच्चो में यह विश्वास करने की क्षमता नहीं है कि कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं है यदि वे इसे देख नहीं सकते हैं। यदि आप एक खिलौना छिपा देते हैं तो उनके लिए यह अस्तित्व में नहीं है। वे ऐसे एक स्तर में पहुँचते हैं जहाँ पर यदि आप एक खिलौना छिपा देते हैं, तो वे निरंतर इसे ढूँढ़ते रहेंगे। वे समझते हैं कि वस्तुएँ अस्तित्व में हैं यहाँ तक कि जब आप उन्हें देख नहीं पाते हैं।

यह मसीह वयस्कता का एक चिह्न हैः जब हम परमेश्वर के प्रेम में निरंतर विश्वास करते हैं, यहाँ तक कि जब हम इसे नहीं देखते हैं या महसूस करते हैं। हम याद रखते हैं और स्मरण करते हैं। जैसा कि हम सूरज में विश्वास करते हैं यहाँ तक कि जब यह नहीं चमकता है, हम निरंतर परमेश्वर के प्रेम में विश्वास करते हैं परंतु अंधकारमय समय में हम उनके प्रेम का अनुभव नहीं करते हैं।

  1. परमेश्वर का सिद्ध प्रेम

"परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्वर हम में बने रहते हैं और उनका प्रेम हम में सिध्द हो गया है" (व.12)। "सिद्ध प्रेम सारे भय को दूर करता है" (व.18)।

जितना अधिक आप उनसे प्रेम करते हैं और एक दूसरे से प्रेम करने के द्वारा उस वास्तविकता को दर्शाते हैं – उतना ही कम आप डर के शिकार होते हैं। प्रेम की संस्कृति को विकसित करिए – प्रेम को देते हुए और ग्रहण करते हुए। यह स्पर्धा और कानाफूसी के विपरीत है। जितना अधिक प्रेम आप दूसरों को देते हैं – उतना ही डर गायब हो जाता है।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझसे बिना शर्त के, पूरे हृदय से और निरंतर प्रेम करते हैं। आपका धन्यवाद कि सिद्ध प्रेम सारे डर को दूर करता हैं।
जूना करार

दानिय्येल 11:2-35

2 “अब देख, दानिय्येल मैं, तुझे सच्ची बात बताता हूँ। फारस में तीन राजाओं का शासन और होगा। यह इसके बाद एक चौथा राजा आयेगा। यह चौथा राजा अपने पहले के फारस के अन्य राजाओं से कहीं अधिक धनवान होगा। वह चौथा राजा शक्ति पाने के लिये अपने धन का प्रयोग करेगा। वह हर किसी को यूनान के विरोध में कर देगा। 3 इसके बाद एक बहुत अधिक शक्तिशाली राजा आयेगा, वह बड़ी शक्ति के साथ शासन करेगा। वह जो चाहेगा वही करेगा। 4 राजा के आने के बाद उसके राज्य के टुकड़े हो जायेंगे। उसका राज्य संसार में चार भागों में बंट जायेगा। उसका राज्य उसके पुत्र—पोतों के बीच नहीं बटेगा। जो शक्ति उसमें थी, वह उसके राज्य में नहीं रहेगी। ऐसा क्यों होगा ऐसा इसलिये होगा कि उसका राज्य उखाड़ दिया जायेगा और उसे अन्य लोगों को दे दिया जायेगा।

5 “दक्षिण का राजा शक्तिशाली हो जायेगा। किन्तु इसके बाद उसका एक सेनापति उससे भी अधिक शक्तिशाली हो जाएगा। वह सेना नायक शासन करने लगेगा और बहुत बलशाली हो जायेगा।

6 “फिर कुछ वर्षों बाद एक समझौता होगा और दक्षिणी राजा की पुत्री उत्तरी राजा से ब्याही जायेगी। वह शांति स्थापना के लिये ऐसा करागी। किन्तु वह और दक्षिणी राजा पर्याप्त शक्तिशाली नही होंगे। फिर लोग उसके और उस व्यक्ति के जो उसे उस देश में लाया था, विरूद्ध हो जायेंगे और वे लोग उसके बच्चे के और उस स्त्री के हिमायती व्यक्ति के भी विरूद्ध हो जायेंगे।

7 “किन्तु उस स्त्री के परिवार का एक व्यक्ति दक्षिणी राजा के स्थान को ले लेने के लिये आयेगा। वह उत्तर के राजा की सेनाओं पर आक्रमण करेगा। वह राजा के सुदृढ़ किले में प्रवेश करेगा। वह युद्ध करेगा और विजयी होगा। 8 वह उनके देवताओं की मूर्तियों को ले लेगा। वह उनके धातु के बने मूर्तियों तथा उनकी चाँदी—सोने की बहुमूल्य वस्तुओं पर कब्जा कर लेगा। वह उन वस्तुओं को वहाँ से मिस्र ले जायेगा। फिर कुछ वर्षों तक वह उत्तर के राजा को तंग नहीं करेगा। 9 उत्तर का राजा दक्षिण के राज्य पर हमला करेगा। किन्तु पराजित होगा और फिर अपने देश को लौट जायेगा।

10 “उत्तर के राजा के पुत्रों ने युद्ध की तैयारियाँ करेंगे। वे एक विशाल सेना जुटायेंगे। वह सेना एक शक्तिशाली बाढ़ की तरह बड़ी तेज़ी से धरती पर आगे बढ़ती चली जायेगी। वह सेना दक्षिण के राजा के सुदृढ़ दुर्ग तक सारे रास्ते युद्ध करती जायेगी। 11 फिर दक्षिण का राजा क्रोध से तिलमिला उठेगा। उत्तर के राजा से युद्ध करने के लिये वह बाहर निकल आयेगा। उत्तर का राजा यद्यपि एक बहुत बड़ी सेना जुटायेगा किन्तु युद्ध में हार जायेगा। 12 उत्तर की सेना पराजित हो जायेगी, और उन सैनिकों को कहीं ले जाया जायेगा। दक्षिणी राजा को बहुत अभिमान हो जायेगा और वह उत्तरी सेना के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार देगा। किन्तु वह इसी प्रकार से सफलता नहीं प्राप्त करता रहेगा। 13 उत्तर का राजा एक और सेना जुटायेगा। यह सेना पहली सेना से अधिक बड़ी होगी। कई वर्षो बाद वह आक्रमण करेगा। वह सेना बुहत विशाल होगी और उसके पास बहुत से हथियार होंगे। वह सेना युद्ध को तैयार होगी।

14 “उन दिनों बहुत से लोग दक्षिण के राजा के विरोध में हो जायेंगे। कुछ तुम्हारे अपने ही ऐसे लोग, जिन्हें युद्ध प्रिय है, दक्षिण के राजा के विरूद्ध बगावत करेंगे। वे जीतेंगे तो नहीं किन्तु ऐसा करते हुए वे उस दर्शन को सत्य सिद्ध करेगे। 15 फिर इसके बाद उत्तर का राजा आयेगा और वह नगर परकोटे पर ढ़लवाँ चबूतरे बना कर उस सुदृढ़ नगर पर कब्जा कर लेगा। दक्षिण के राजा की सेना युद्ध का उत्तर नही दे पायेगी। यहाँ तक कि दक्षिणी सेना के सर्वात्तम सैनिक भी इतने शक्तिशाली नही होंगे कि वे उत्तर की सेना को रोक पायें।

16 “उत्तर का राजा जैसा चाहेगा, वैसा करेगा। उसे कोई भी रोक नहीं पायेगा। इस सुन्दर धरती पर वह नियन्त्रण करके शक्ति पालेगा। उसे इस प्रदेश को नष्ट करने की शक्ति प्राप्त हो जायेगी। 17 फिर उत्तर का राजा दक्षिण के राजा से युद्ध करने के लिये अपनी सारी शक्ति का उपयोग करने का निश्चय करेगा। वह दक्षिण के राजा के साथ एक सन्धि करेगा। उत्तर का राजा दक्षिण के राजा से अपनी एक पुत्री का विवाह कर देगा। उत्तर का राजा ऐसा इसलिये करेगा कि वह दक्षिण के राजा को हरा सके। किन्तु उसकी वे योजनाएँ फलीभूत नहीं होंगी। इन योजनाओं से उसे कोई सहायता नहीं मिलेगी।

18 “इसके बाद उत्तर का राजा भूमध्य—सागर के तट से लगते हुए देशों पर अपना ध्यान लगायेगा। वह उन देशों में से बहुत से देशों को जीत लेगा। किन्तु फिर एक सेनापति उत्तर के राजा के उस अहंकार और उस बगावत का अंत कर देगा । वह सेनापति उस उत्तर के राजा को लज्जित करेगा।

19 “ऐसा घटने के बाद उत्तर का वह राजा स्वयं अपने देश के सुदृढ़ किलों की ओर लौट जायेगा। किन्तु वह दुर्बल हो चुका होगा और उसका पतन हो जायेगा। फिर उसका पता भी नहीं चलेगा।

20 “उत्तर के उस राजा के बाद एक नया शासक आयेगा। वह शासका किसी कर वसूलने वाले को भेजेगा। वह शासक ऐसा इसलिये करेगा कि वह सम्पन्नता के साथ जीवन बिताने के लिये पर्याप्त धन जुटा सके। किन्तु थोड़े ही वर्षो में उस शासक का अंत हो जायेगा। किन्तु वह युद्ध में नही मारा जायेगा।

21 “उस शासक के बाद एक बहुत क्रूर एवं घृणा योग्य व्यक्ति आयेगा। उस व्यक्ति को राज परिवार का वंशज होने का गौरव प्राप्त नहीं होगा। वह चालाकी से राजा बनेगा। जब लोग अपने को सुरक्षित समझे हुए होंगे, वह तभी राज्य पर आक्रमण करेगा और उस पर कब्जा कर लेगा। 22 वह विशाल शक्तिशाली सेनाओं को हरा देगा। वह समझौते के मुखिया के साथ सन्धि करने पर भी उसे पराजीत करेगा। 23 बहुत से राष्ट्र उस क्रूर एवं घृणा योग्य राजा के साथ सन्धि करेंगे किन्तु वह उनसे मिथ्यापूर्ण चालाकी बरतेगा। वह अत्यधिक शक्ति प्राप्त कर लेगा किन्तु बहुत थोड़े से लोग ही उसके समर्थक होंगे।

24 “जब उस प्रदेश के सर्वाधिक धनी क्षेत्र अपने को सुरक्षित अनुभव कर रहे होंगे, वह क्रूर एवं घृणापूर्ण शासक उन पर आक्रमण कर देगा। वह ठीक समय पर आक्रमण करेगा और वहाँ सफलता प्राप्त करेगा जहाँ उसके पूर्वजों को भी सफलता नहीं मिली थी। वह जिने देशों को पराजित करेगा उनकी सम्पत्ति छीन कर अपने पिछलगुओं को देगा। वह सुदृढ़ नगरों को पराजित करने की योजनाएँ रचेगा। वह सफलता तो पायेगा किन्तु बहुत थोड़े से समय के लिए।

25 “उस क्रूर एवं घृणा योग्य राजा के पास एक विशाल सेना होगी। वह उस सेना का उपयोग अपनी शक्ति और अपने साहस के प्रदर्शन के लिये करेगा और इससे वह दक्षिण के राजा पर आक्रमण करेगा। सो दक्षिण का राजा भी एक बहुत बड़ी और शक्तिशाली सेना जुटायेगा और युद्ध के लिये कूच करेगा किन्तु वे लोग जो उससे विरोध रखते हैं, छिपे—छिपे योजनाएँ रचेंगे और दक्षिणी राजा को पराजित कर दिया जायेगा। 26 वे ही लोग जो दक्षिणी राजा के अच्छे मित्र समझे जाते रहे। उसे पराजित करने का जतन करेंगे। उसकी सेना पराजित कर दी जायेगी। युद्ध में उसके बहुत से सैनिक मारे जोयेंगे। 27 उन दोनों राजाओं का मन इसी बात में लगेगा कि एक दूसरे को हानि पहुँचायी जाये। वे एक ही मेज़ पर बैठ कर एक दूसरे से झुठ बोलेंगे किन्तु इससे उन दोनों में से किसी का भी भला नहीं होगा, क्योंकि परमेश्वर ने उनका अंत आने का समय निर्धारित कर दिया है।

28 “बहुत सी धन दौलत के साथ, वह उत्तर का राजा अपने देश लौट जायेगा। फिर उस पवित्र वाचा के प्रति वह बुरे कर्म करने का निर्णय लेगा। वह अपनी योजनानुसार काम करेगा और फिर अपने देश लौट जायेगा।

29 “फिर उत्तर का राजा ठीक समय पर दक्षिण के राजा पर हमला कर देगा किन्तु इस बार वह पहले की तरह कामयाब नहीं होगा। 30 पश्चिम से जहाज़ आयेंगे और उत्तर के राजा के विरूद्ध युद्ध करेंगे। वह उन जहाज़ो को आते देखकर डर जायेगा। फिर वापस लौटकर पवित्र वाचा पर वह अपना क्रोध उतारेगा। वह लौट कर, जिन लोगों ने पवित्र वाचा पर चलना छोड़ दिया था, उनकी सहायता करेगा। 31 फिर उत्तर का वह राजा यरूशलेम के मन्दिर को अशुद्ध करने के लिये अपनी सेना भेजेगा। वे लोगों को दैनिक बलि समर्पित करने से रोकेंगे। इसके बाद वे वहाँ कुछ ऐसा भयानक घृणित वस्तु स्थापित करेंगे जो सचमुच विनाशक होगा। वे ऐसा भयानक काम शुरू करेंगे जो विनाश को जन्म देता है।

32 “वह उत्तरी राजा झूठी और चिकनी चुपड़ी बातों से उन यहूदियों को छलेगा जो पवित्र वाचा का पालन करना छोड़ चुके हैं। वे यहूदी और बुरे पाप करने लगेंगे किन्तु वे यहूदी, जो परमेश्वर को जानते हैं, और उसका अनुसरण करते हैं, और अधिक सुदृढ़ हो जायेंगे। वे पलट कर युद्ध करेंगे!

33 “वे यहूदी जो विवेकपूर्ण है जो कुछ घट रहा होगा, दूसरे यहूदियों को उसे समझने में सहायता देंगे। किन्तु जो विवेकपूर्ण होंगे,उन्हें तो मृत्यु दण्ड तक झेलना होगा। कुछ समय तक उनमें से कुछ यहूदियों को तलवार के घाट उतारा जायेगा और कुछ को आग में फेंक दिया जायेगा। अथवा बन्दी गृहों में डाल दिया जायेगा। उनमें से कुछ यहूदियों के घर बार और धन दौलत छीन लिये जायेंगे। 34 जब वे यहूदी दण्ड भोग रहे होंगे तो उन्हें थोड़ी सी सहायता मिलेगी। किन्तु उन यहूदियों में, जो उन विवेकपूर्ण यहोदियों का साथ देंगे, बहुत से केवल दिखावे के होंगे। 35 कुछ विवेकपूर्ण यहोदी मार दिये जायेंगे।ऐसा इसलिये होगा कि वे और अधिक सुदृढ़ बनें, स्वच्छ बनें और अंत समय के आने तक निर्दोष रहें। फिर ठीक समय पर अंत होने का समय आ जायेगा।”

समीक्षा

परमेश्वर के प्रेम में दृढ़ खड़े रहिए

जो अपने परमेश्वर को जानते हैं (व.32) वे प्रेम के लोग हैं। प्रेम कमजोर नहीं है। जो लोग सच में परमेश्वर को जानते हैं वे बुरे लीडर्स का सामना करते हैं। डेट्रिक बोनहोफर ऐसे एक व्यक्ति थे जो परमेश्वर को जानते थे और दृढ़तापूर्वक उन्होंने अडोल्फ हिटलर का सामना किया, प्रार्थना करते हुए, "मुझे परमेश्वर और मनुष्यों के लिए ऐसा प्रेम दो, जो सारी नफरत और कड़वाहट को बाहर निकाल दे।" सालों से बहुत से लोग जिन्होंने अपने परमेश्वर को जाना है, वे दृढ़ता से खड़े रहे हैं और बुराई का सामना किया है।

एक बार फिर यह भविष्यवाणी विभिन्न स्तरों में परिपूर्ण होती है। शीघ्र ऐतिहासिक परिपूर्णता विभिन्न राजाओं और शासकों के संबंध में है, जिन्होंने 530-150 बीसी के बीच राज्य किया, जिनमें से बहुत से बुरे और अपने कामों में भक्तिहीन थे।

किंतु, यहाँ पर एक लंबे समय की परिपूर्णता भी है। जैसा कि हमने कल देखा, यीशु ने घृणित वस्तु का उल्लेख किया जो विनाश लाती है (9:27;11:31; मत्ती 24:15)। वह शायद से एडी 70 में यरूशलेम के विनाश के बारे में बोल रहे थे, जो अंत समय की परछाई था।

इन सभी बुराई के बीच में, "जो लोग अपने परमेश्वर को जानते हैं वे दृढ़ता से बुराई का सामना करेंगे" (दानिय्येल 11:32)। जैसा कि आर.एस.व्ही. इसे बताता है, "जो साहसी रूप से परमेश्वर के प्रति ईमानदार बने रहते हैं वे मजबूत खड़े रहेंगे" (व.32ब)। यह आगे कहता है, " लोगों के सिखाने वाले बुध्दिमान जन बहुतों को समझाएँगे ... और सिखाने वालों में से कितने गिरेंगे, और इसलिये गिरने पाएँगे कि जाँचे जाएँ, और निर्मल और उजले किए जाएँ" (वव.33,35, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि प्रेम करने वाले लोग बनें जो अपने परमेश्वर को जानते हैं और दृढ़ता से खड़े रहे, हमारे डरों पर जय पाये, बुराई का सामना करें और कार्य करें।

पिप्पा भी कहते है

1 यूहन्ना 4:18

" प्रेम में कोई भय नहीं। लेकिन सिद्ध प्रेम भय को दूर करता है..."

हजारों बार मैंने इस वचन से शांति पायी है।

दिन का वचन

भजन संहिता – 138:8

“यहोवा मेरे लिये सब कुछ पूरा करेगा; हे यहोवा तेरी करुणा सदा की है। तू अपने हाथों के कार्यों को त्याग न दे।"

reader

App

Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.

reader

Email

Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.

Podcast

Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.

reader

Website

Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.

संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट ऊ 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी", बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइडऍ बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट ऊ 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट ऊ 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

Bible in One Year

  • Bible in One Year

This website stores data such as cookies to enable necessary site functionality and analytics. Find out more