दिन 337

निर्भीक कैसे बनें

बुद्धि भजन संहिता 137:1-9
नए करार 1 यूहन्ना 3:11-4:6
जूना करार दानिय्येल 9:20-11:1

परिचय

किसी का वर्णन "निर्भीक" के रूप में करना सामान्य रूप से यह एक प्रशंसा है। लेकिन, निर्भीकता का एक सही और एक गलत प्रकार है। गलत प्रकार की निर्भीकता है अपने आपको परमेश्वर के ऊपर और विरूद्ध महत्व देना। यह अज्ञानता है। सही प्रकार की निर्भीकता है अपने आपको मसीह में और मसीह के द्वारा महत्व देना। स्वाभाविक विश्व में निर्भीकता है आत्मनिर्भरता। आत्मिक विश्व में, यह परमेश्वर पर निर्भर रहना है। मुख्य रूप से, इसमें परमेश्वर की उपस्थिति में निर्भीकता है।

बुद्धि

भजन संहिता 137:1-9

137बाबुल की नदियों के किनारे बैठकर
 हम सिय्योन को याद करके रो पड़े।
2 हमने पास खड़े बेंत के पेड़ों पर निज वीणाएँ टाँगी।
3 बाबुल में जिन लोगों ने हमें बन्दी बनाया था, उन्होंने हमसे गाने को कहा।
 उन्होंने हमसे प्रसन्नता के गीत गाने को कहा।
 उन्होंने हमसे सिय्योन के गीत गाने को कहा।
4 किन्तु हम यहोवा के गीतों को किसी दूसरे देश में
 कैसे गा सकते हैं!
5 हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे कभी भूलूँ।
 तो मेरी कामना है कि मैं फिर कभी कोई गीत न बजा पाऊँ।
6 हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे कभी भूलूँ।
 तो मेरी कामना है कि
 मैं फिर कभी कोई गीत न गा पाऊँ।
 मैं तुझको कभी नहीं भूलूँगा।

7 हे यहोवा, याद कर एदोमियों ने उस दिन जो किया था।
 जब यरूशलेम पराजित हुआ था,
 वे चीख कर बोले थे, इसे चीर डालो
 और नींव तक इसे विध्वस्त करो।
8 अरी ओ बाबुल, तुझे उजाड़ दिया जायेगा।
 उस व्यक्ति को धन्य कहो, जो तुझे वह दण्ड देगा, जो तुझे मिलना चाहिए।
9 उस व्यक्ति को धन्य कहो जो तुझे वह क्लेश देगा जो तूने हमको दिये।
 उस व्यक्ति को धन्य कहो जो तेरे बच्चों को चट्टान पर झपट कर पछाड़ेगा।

समीक्षा

खोई हुई निर्भीकता

गुस्से के विषय में ऐसा कुछ है जो इस भजन में व्यक्त किया गया है। यह याद दिलाता है कि आप परमेश्वर के साथ सच्चे और ईमानदार बन सकते हैं, और यह कि आपको अपनी प्रार्थनाओं का निरीक्षण करने की आवश्यकता नहीं है। वह आपके अंधकारमय विचारों को भी संभाल सकते हैं।

परमेश्वर के लोगों ने परमेश्वर की उपस्थिति में उनकी निर्भीकता को खो दिया था। भजनसंहिता के लेखक बेबीलोन में हैं, यरुशलेम से दूर और परमेश्वर की उपस्थिति का मंदिर। परमेश्वर के लोगों के लिए निर्वासन के विषय में सबसे बदतर चीज थी, परमेश्वर की उपस्थिति से दूर होने का बोध" बेबीलोन की नहरों के किनारे हम लोग बैठ गए, और सिय्योन को स्मरण करके रो पड़े" (व.1)।

उनका हिंसक उत्तर और बदले की इच्छा - " जो तुझ से ऐसा ही बर्ताव करेगा जैसा तू ने हम से किया है" (वव.8-9) –अपने शत्रुओं से प्रेम करने के लिए नये नियम से यह चिल्लाहट बहुत दूर है (मत्ती 5:44)। लेकिन यह लोगों के शोक की चिल्लाहट है जो सताये गए हैं (भजनसंहिता 137:3), और परमेश्वर की उपस्थिति की इच्छा करते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं आज आपकी उपस्थिति की लालसा करता हूँ।
नए करार

1 यूहन्ना 3:11-4:6

परस्पर प्रेम से रहो

11 यह उपदेश तुमने आरम्भ से ही सुना है कि हमें परस्पर प्रेम रखना चाहिए। 12 हमें कैन के जैसा नहीं बनना चाहिए जो उस दुष्टात्मा से सम्बन्धित था और जिसने अपने भाई की हत्या कर दी थी। उसने अपने भाई को भला क्यों मार डाला? उसने इसलिए ऐसा किया कि उसके कर्म बुरे थे जबकि उसके भाई के कर्म धार्मिकता के।

13 हे भाईयों, यदि संसार तुमसे घृणा करता है, तो अचरज मत करो। 14 हमें पता है कि हम मृत्यु के पार जीवन में आ पहुँचे हैं क्योंकि हम अपने बन्धुओं से प्रेम करते हैं। जो प्रेम नहीं करता, वह मृत्यु में स्थित है। 15 प्रत्येक व्यक्ति जो अपने भाई से घृणा करता है, हत्यारा है और तुम तो जानते ही हो कि कोई हत्यारा अपनी सम्पत्ति के रूप में अनन्त जीवन को नहीं रखता।

16 मसीह ने हमारे लिए अपना जीवन त्याग दिया। इसी से हम जानते हैं कि प्रेम क्या है? हमें भी अपने भाईयों के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देने चाहिए। 17 सो जिसके पास भौतिक वैभव है, और जो अपने भाई को अभावग्रस्त देखकर भी उस पर दया नहीं करता, उसमें परमेश्वर का प्रेम है-यह कैसे कहा जा सकता है? 18 हे प्यारे बच्चों, हमारा प्रेम केवल शब्दों और बातों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि वह कर्ममय और सच्चा होना चाहिए।

19 इसी से हम जान लेंगे कि हम सत्य के हैं और परमेश्वर के आगे अपने हृदयों को आश्वस्त कर सकेंगे। 20 बुरे कामों के लिए हमारा मन जब भी हमारा निषेध करता है तो यह इसलिए होता है कि परमेश्वर हमारे मनों से बड़ा है और वह सब कुछ को जानता है।

21 हे प्यारे बच्चो, यदि कोई बुरा काम करते समय हमारा मन हमें दोषी ठहराता तो परमेश्वर के सामने हमें विश्वास बना रहता है। 22 और जो कुछ हम उससे माँगते हैं, उसे पाते हैं। क्योंकि हम उसके आदेशों पर चल रहे हैं और उन्हीं बातों को कर रहे हैं, जो उसे भाती हैं। 23 उसका आदेश है: हम उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम में विश्वास रखें तथा जैसा कि उसने हमें आदेश दिया है हम एक दूसरे से प्रेम करें। 24 जो उसके आदेशों का पालन करता है वह उसी में बना रहता है। और उसमें परमेश्वर का निवास रहता है। इस प्रकार, उस आत्मा के द्वारा जिसे परमेश्वर ने हमें दिया है, हम यह जानते हैं कि हमारे भीतर परमेश्वर निवास करता है।

झूठे उपदेशकों से सचेत रहो

4हे प्रिय मित्रों, हर आत्मा का विश्वास मत करो बल्कि सदा उन्हें परख कर देखो कि वे, क्या परमात्मा के हैं? यह मैं तुमसे इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि बहुत से झूठे नबी संसार में फैले हुए हैं। 2 परमेश्वर की आत्मा को तुम इस तरह पहचान सकते हो: हर वह आत्मा जो यह मानती है कि, “यीशु मसीह मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर आया है।” वह परमेश्वर की ओर से है। 3 और हर वह आत्मा जो यीशु को नहीं मानती, परमेश्वर की ओर से नहीं है। ऐसा व्यक्ति तो मसीह का शत्रु है, जिसके विषय में तुमने सुना है कि वह आ रहा है, बल्कि अब तो वह इस संसार में ही है।

4 हे प्यारे बच्चों, तुम परमेश्वर के हो। इसलिए तुमने मसीह के शत्रुओं पर विजय पा ली है। क्योंकि वह परमेश्वर जो तुममें है, संसार में रहने वाले शैतान से महान है। 5 वे मसीह विरोधी लोग सांसारिक है। इसलिए वे जो कुछ बोलते हैं, वह सांसारिक है और संसार ही उनकी सुनता है। 6 किन्तु हम परमेश्वर के हैं इसलिए जो परमेश्वर को जानता है, हमारी सुनता है। किन्तु जो परमेश्वर का नहीं है, हमारी नहीं सुनता। इस प्रकार से हम सत्य की आत्मा को और लोगों को भटकाने वाली आत्मा को पहचान सकते हैं।

समीक्षा

वापस आयी निर्भीकता

निर्भीकता और प्रेम साथ –साथ जाते हैं। यदि आप अपने लिए परमेश्वर के प्रेम को जानते हैं, आप उनसे प्रेम करते हैं और आप दूसरों से प्रेम करते हैं, तो आप परमेश्वर के सम्मुख और अपने साथी मनुष्यों के सम्मुख निर्भीकता के साथ जीएँगे ।

प्रेम केवल एक भावना नहीं है। इसमें कार्य शामिल हैः" हम ने प्रेम इसी से जाना कि उन्होंने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देने चाहिए। पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को कंगाल देखकर उस पर तरस खाना न चाहे, तो उसमें परमेश्वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है:" (3:16-17)।

यह महत्वपूर्ण है कि लोगों को बतायें कि परमेश्वर उनसे प्रेम करते हैं और आप उनसे प्रेम करते हैं। किंतु, शब्द काफी नहीं हैः " हे बालको, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करे" (व.18, एम.एस.जी)। उस तरह से अपना प्रेम दर्शाये जैसे यीशु ने किया – कार्य के द्वारा, विशेष रूप से गरीबों के प्रति।

यह एक बहुत ही बड़ी चुनौती है ऐसे एक विश्व में जहाँ पर हमारे बहुत से भाई और बहनें जरुरत में हैं। हमें अवश्य ही गरीबी, अन्याय और रोके जा सकने वाले रोग के बारे में कदम उठाना चाहिए। और स्थानीय कलीसिया में भी, अपना प्रेम दिखायें, केवल शब्दों से नहीं, लेकिन कार्यों और सच्चाई में भी।

परमेश्वर चाहते हैं कि आप उनके सम्मुख निर्भीक बनें (व.21)। वह चाहते हैं कि आप "परमेश्वर के सम्मुख निर्भीक और मुक्त रहे" (व.21, एम.एस.जी)।

आत्मविश्वास दंड का विपरीत है। दंड कभी परमेश्वर की ओर से नहीं आता हैः"अब जो मसीह यीशु में है उन पर कोई दंड की आज्ञा नहीं" (रोमियों 8:1)। दंड या तो शैतान से आता है – जो दोष लगाने वाला है - या हमारे हृदय से (1यूहन्ना 3:20)।

दंड - "क्षीण करने वाली स्वयं-आलोचना" (व.20, एम.एस.जी) – और पाप को मानना, जोकि पवित्र आत्मा से आता है, दोनों के बीच में एक बड़ा अंतर है (यूहन्ना 16:8)। जब पवित्र आत्मा हमें अपने पापों के विषय में बताते हैं तब यह बहुत ही निश्चित होती है। हम जानते हैं कि हमने क्या गलत किया है। इसका उद्देश्य है मन फिराने में हमारी सहायता करना, सुधारना और फिर से उठाना।

दूसरी ओर, दंड आत्मग्लानि और शर्म की अस्पष्ट भावना से बढ़कर है जो हमें अपने विषय में बुरा महसूस करवाती है - यहाँ तक कि हमारे पश्चाताप करने और क्षमा माँगने के बाद। यह परमेश्वर के सम्मुख हमारे आत्मविश्वास को चुराती है।

अद्भुत पुन:आश्वासन यह है कि " क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़े हैं, और सब कुछ जानते हैं" (1यूहन्ना 3:20, एम.एस.जी)। कोई भी सिद्ध नहीं है। लेकिन यहाँ तक कि असिद्ध प्रेम हमारे जीवन में आत्मा के कार्य का प्रमाण है। जब आप अपने हृदय की असफलताओं को पहचानते हैं, तब अत्यधिक सिद्ध मसीह जैसे प्रेम के लिए आपकी भूख ने आपके आश्वासन को हिलाना नहीं चाहिए बल्कि इसकी पुष्टि करनी चाहिए।

परमेश्वर आप पर दोष नहीं लगाते हैं, बल्कि वह आपको स्वीकार करते हैं, आपकी असफलताओं, कमजोरियों और असिद्धताओं के बावजूद। सच में, वह वायदा करते हैं कि " जो कुछ हम माँगते हैं, वह हमें उनसे मिलता है, क्योंकि हम उनकी आज्ञाओं को मानते हैं और जो उन्हे भाता है वही करते हैं" (व.22)।

उनकी आज्ञा मानने और जो उन्हें भाता है, वह करने का क्या अर्थ है: यह बहुत ही सरल है। दो चीजें आवश्यक हैः पहला, यीशु में विश्वास करना और दूसरा, एक दूसरे से प्रेम करना। यदि आप यें दो चीजें करते हैं, तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप उनमें रहते हैं और वह आपमें" इसी से, अर्थात् उस आत्मा से जो उन्होंने हमें दिया है, हम जानते हैं कि वह हम में बने रहते हैं" (व.24, एम.एस.जी)।

हम कैसे जानते हैं कि यह परमेश्वर का आत्मा है नाकि कोई दूसरा आत्मा जो हमारे अंदर रहता है: " जो आत्मा मान लेती है कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्वर की ओर से है" (4:2)।

हम बहुत सी लड़ाईयाँ लड़ेंगे। विश्व हमसे नफरत करेगा (3:13)। वहाँ पर बहुत से झूठे भविष्यवक्ता होंगेः" हर एक आत्मा की प्रतीति न करो, वरन् आत्माओं को परखो कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं" (4:1, एम.एस.जी)। लेकिन " जो तुम में है वह उस से जो संसार में है, बड़ा है" (व.4)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि मैं आपके आत्मा के द्वारा आपकी उपस्थिति को जान सकता हूँ और मैं आपके सम्मुख निर्भीक रह सकता हूँ। आज मेरी सहायता कीजिए कि उस तरह से प्रेम करुँ जैसे यीशु ने प्रेम किया –दूसरों के लिए अपना जीवन देने के लिए तैयार रहूँ।
जूना करार

दानिय्येल 9:20-11:1

सत्तर सप्ताहों के बारे में दर्शन

20 मैं परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए ये बातें कर रहा था। मैं इस्राएल के लोगों के और अपने पापों के बारे में बता रहा था। मैं परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर प्रार्थना कर रहा था। 21 मैं अभी प्रार्थना कर ही हा था कि जिब्राएल मेरे पास आया। जिब्राएल वही स्वर्गदूत था जिसे मैंने दर्शन में देखा था। जिब्राएल शीघ्रता से मेरे पास आया। वह सांझ की बलि के समय आया था। 22 मैं जिन बातों को समझना चाहता था, उन बातों को समझने में जिब्राएल ने मेरी सहायता की। जिब्राएल ने कहा, “हे दानिय्येल, मैं तुझे बुद्धि प्रदान करने और समझने में तेरी सहायता को आया हूँ। 23 जब तूने पहले प्रार्थना आरम्भ की थी, मुझे तभी आदेश दे दिया गया था और देख मैं तुझे बताने आ गया हूँ। परमेश्वर तुझे बहुत प्रेम करता है! यह आदेश तेरी समझ में आ जायेगा और तू उस दर्शन का अर्थ जान लेगा।

24 “हे दानिय्येल, परमेश्वर ने तेरी प्रजा और तेरी नगरी के लिए सत्तर सप्ताहों का समय निश्चित किया है। सत्तर सप्ताहों के समय का यह आदेश इसलिये दिया गया है कि बुरे कर्म करना छाड़ दिया जाये, पाप करना बन्द कर दिया जाये, सब लोगों को शुद्ध किया जाये, सदा—सदा बनी रहने वाली नेकी को लाया जाये, दर्शन और नबियों पर मुहर लगा दी जाये, और एक अत्यंत पवित्र स्थान को समर्पित किया जाये।

25 “दानिय्येल, तू इन बातों को समझ ले। इन बातों को जान ले! वापस आने और यरूशलेम के पुननिर्माण की आज्ञा को समय से लेकर अभिषिक्त के आने के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे। इसके बाद यरूशलेम फिर से बसाया जायेगा। यरूशलेम में लोगों के परस्पर मिलने के स्थान फिर से ब जायेंगे। नगर की रक्षा करने के लिये नगर के चारों ओर खाई भी होगी। बासठ सप्ताह तक यरूशलेम को बसाया जायेगा। किन्तु उस समय बहुत सी विपत्तियाँ आयेंगी। 26 बासठ सप्ताह बाद उस अभिषिक्त पुरूष की हत्या कर दी जायेगी। वह चला जायेगा। फिर होने वाले नेता के लोग नगर को और उस पवित्र ठांव को तहस—नहस कर देंगे। वह अंत ऐसे आयेगा जैसे बाढ़ आती है। अंत तक युद्ध होता रहेगा। उस स्थान को पूरी तरह तहस—नहस कर देने की परमेश्वर आज्ञा दे चुका है।

27 “इसके बाद वह भावी शासक बहुत से लोगों के साथ एक वाचा करेगा। वह वाचा एक सप्ताह तक चलेगा। भेंटे और बलियाँ आधे सप्ताह तक रूकी रहेंगी और फिर एक विनाश कर्त्ता आयेगा। वह भयानक विध्वंसक बातें करेगा। किन्तु परमेश्वर उस विनाश कर्ता के सम्पूर्ण विनाश की आज्ञा दे चुका है।”

हिद्देकेल नदी के किनारे दानिय्येल का दर्शन

10कुस्रू फारस का राजा था। कस्रू के शासन काल के तीसरे वर्ष दानिय्येल को इन बातों का पता चला। (दानिय्येल का ही दूसरा नाम बेलतशस्सर था) ये संकेत सच थे और ये एक बड़े युद्ध के बारे में थे। दानिय्येल उन्हें समझ गया। वे बातें एक दर्शन में उसे समझाई गई थीं।

2 दानिय्येल का कहना है, “उस समय मैं, दानिय्येल, तीन सप्ताहों तक बहुत दु:खी रहा। 3 उन तीन सप्ताहों के दौरान, मैंने कोई भी चटपटा खाना नहीं खाया। मैंने किसी भी प्रकार का माँस नहीं खाया। मैंने दाखमधु नही पी। किसी भी तरह का तेल मैंने अपने सिर में नहीं डाला। तीन सप्ताह तक मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।”

4 वर्ष के पहले महीने के अठाईसवे दिन मैं हिद्देकेल महानदी के किनारे खड़ा था। 5 वहाँ खड़े—खड़े जब मैंने ऊपर की ओर देखा तो वहाँ मैंने एक पुरूष को अपने सामने खड़ा पाया। उसने सन के कपड़े पहने हुए थे। उसकी कमर में शुद्ध सोने की बनी हुई कमर बांध थी। 6 उसका शरीर चमचमाते पत्थर के जैसी थी। उसका मुख बिजली के समान उज्जवल था! उसकी बाहें और उसके पैर चमकदार पीतल से झिलमिला रहे थे! उसकी आवाज़ इतनी ऊँची थी जैसे लोगों की भीड़ की आवाज़ होती है!

7 यह दर्शन बस मुझे, दानिय्येल को ही हुआ। जो लोग मेरे साथ थे, वे यद्यपि उस दर्शन को नहीं देख पाये किन्तु वे फिर भी डर गये थे। वे इतना डर गये कि भाग कर कहीं जा छिपे। 8 सो मैं अकेला छूट गया। मैं उस दर्शन को देख रहा था और वह दृश्य मुझे भयभीत कर डाला था। मेरी शक्ति जाती रही। मेरा मुख ऐसो पीला पड़ गया जैसे मानो वह किसी मरे हुए व्यक्ति का मुख हो। मैं बेबस था। 9 फिर दर्शन के उस व्यक्ति को मैंने बात करते सुना। मैं उसकी आवाज़ को सुन ही रहा था कि मुझे गहरी नींद ने घेर लिया। मैं धरती पर औंधे मुँह पड़ा था।

10 फिर एक हाथ ने मुझे छू लिया। ऐसा होने पर मैं अपने हाथों और अपने घुटनों के बल खड़ा हो गया। मैं डर के मारे थर थर काँप रहा था। 11 दर्शन के उस व्यक्ति ने मुझसे कहा, “दानिय्येल, तू परमेश्वर का बहुत प्यारा है। जो शब्द मैं तुझसे कहूँ उस पर तू सावधानी के साथ विचार कर। खड़ा हो। मुझे तेरे पास भेजा गया है। जब उसने ऐसा कहा तो मैं खड़ा हो गया। मैं अभी भी थर—थर काँप रहा था क्योंकि मैं डरा हुआ था। 12 इसके बाद दर्शन के उस पुरूष ने फिर बोलना आरम्भ किया। उसने कहा, “दानिय्येल, डर मत। पहले ही दिन से तूने यह निश्चय कर लिया था कि तू परमेश्वर के सामने विवेकपूर्ण और विनम्र रहेगा। परमेश्वर तेरी प्रार्थनाओं को सुनता रहा है। तू प्रार्थना करता रहा है, मैं इसलिये तेरे पास आया हूँ। 13 किन्तु फारस का युवराज (स्वर्गदूत) इक्कीस दिन तक मेरे साथ लड़ता रहा और मुझे तंग करता रहा। इसके बाद मिकाएल जो एक अत्यंत महत्वपूर्ण युवराज (स्वर्गदूत) था। मेरी सहायता के लिये मेरे पास आया क्योंकि मैं वहाँ फारस के राजा के साथ उलझा हुआ था। 14 हे दानिय्येल, अब मैं तेरे पास तुझे वह बताने को आया हूँ जो भविष्य में तेरे लोगों के साथ घटने वाला है। वह स्वप्न एक आने वाले समय के बारे में है।”

15 अभी वह व्यक्ति मुझसे बात ही कर रहा था कि मैंने धरती कि तरफ़ नीचे अपना मुँह झुका लिया।मैं बोल नहीं पा रहा था। 16 फिर किसी ने जो मनुष्य के जैसा दिखाई दे रहा था, मेरे होंठों को छुआ। मैंने अपना मुँह खोला और बोलना आरम्भ किया। मेरे सामने जो खड़ा था, उससे मैंने कहा, महोदय, मैंने दर्शन में जो देखा था, मैं उससे व्याकुल और भयभीत हूँ। मैं अपने को असहाय समझ रहा हूँ। 17 मैं तेरा दास दानिय्येल हूँ। मैं तुझसे कैसे बात कर सकता हूँ मेरी शक्ति जाती रही है। मुझसे तो सांस भी नहीं लिया जा रहा है।”

18 मनुष्य जैसे दिखते हुए उसने मुझे फिर छुआ। उसके छुते ही मुझे अच्छा लगा। 19 फिर वह बोला, “दानिय्येल, डर मत। परमेश्वर तुझे बहुत प्रेम करता है। तुझे शांति प्राप्त हो। अब तू सुदृढ़ हो जा! सुदृढ़ हो जा!”

उसने मुझसे जब बात की तो मैं और अधिक बलशाली हो गया। फिर मैंने उससे कहा, “प्रभु! आपने तो मुझे शक्ति दे दी है। अब आप बाल सकते हैं।”

20 सो उसने फिर कहा, “दानिय्येल, क्या तू जानता है, मैं तेरे पास क्यों आया हूँ फारस के युवराज (स्वर्गदूत) से युद्ध करने के लिये मुझे फिर वापस जाना है। मेरे चले जाने के बाद यूनान का युवराज(स्वर्गदूत) यहाँ आयेगा। 21 किन्तु दानिय्येल अपने जाने से पहले तुम को सबसे पहले यह बताना है कि सत्य की पुस्तक में क्या लिखा है। उन बुरे राजकुमारों(स्वर्गदूतों) के विरोध में मीकाएल स्वर्गदूत के अलावा मेरे साथ कोई नहीं खड़ा होता। मीकाएल वह राजकुमार है (स्वर्गदूत) जो तेरे लोगों पर शासन करता है।

11“मादी राजा दारा के शासन काल के पहले वर्ष मीकाएल को फारस के युवराज (स्वर्गदूत) के विरूद्ध युद्ध में सहारा देने और उसे सशक्त बनाने को मैं उठ खड़ा हुआ।

समीक्षा

दी गई निर्भीकता

यह बात मुझे उत्साहित करती है कि दानिय्येल सिद्ध नहीं था। अब तक, दानिय्येल के विषय में हमने जो कुछ पढ़ा है, वह बताता है कि वह निष्कलंक था। किंतु, यहाँ पर हम पढ़ते हैं:" इस प्रकार मैं प्रार्थना करता, और अपने इस्राएली जाति भाइयों के पाप का अंगीकार करता हुआ" (9:20, एम.एस.जी)। फिर भी, जैसे ही उन्होंने प्रार्थना करना शुरु किया एक उत्तर दिया गया और उन्हें "अति प्रिय" कहा गया (व.23;10:11): "आपसे अत्यधिक प्रेम किया गया है" (9:23, एम.एस.जी)।

दर्शन और भविष्यवाणी के, बहुत सी भविष्यवाणियों की तरह, परिपूर्णता के विभिन्न स्तर होते हैं। यहाँ पर शीघ्र ऐतिहासिक परिपूर्णता है और एक लंबे समय में होने वाली परिपूर्णता है।

लंबे समय में होने वाली परिपूर्णता यीशु की मृत्यु में थी। वह हैं जिनके कारण " उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और बुराई का प्रायश्चित किया जाए, और युगयुग की सत्यनिष्ठा प्रकट हो" (व.24)। वह अभिषिक्त किए गए हैं (लूका 4:18)। वह हैं जो वापस आयेंगे और एक बाढ़ की तरह अंत हो जाएगा।

यीशु ने अपने चेलों से ये वचन कहे थे जब वह उन संघर्षों के बारे में बता रहे थे जिनका सामना उनके अनुयायी करेंगे उनके चले जाने के बाद और उनके अंतिम आगमन तक (मत्ती 24:6,8,15-16)। वे आधे पूरे हुए हैं जब कभी कोई अपने आपको परमेश्वर के विरूद्ध खड़ा करता है, रोमी साम्राज्य से लेकर स्टेलिन तक, और एक दिन यह पूरा हो जाएगा बुराई पर यीशु की अंतिम विजय में।

दानिय्येल ने एक दर्शन देखा, जिसे यदि नये नियम के दृष्टिकोण से पढ़े, तो हम समझते हैं कि यह यीशु का एक दर्शन हैः" तब मैं ने आँखें उठाकर देखा, कि सन का वस्त्र पहने हुए, और ऊफाज देश के कुन्दन से कमर बाँधे हुए एक पुरुष खड़ा है। उसका शरीर फीरोजा के समान, उसका मुख बिजली के समान, उसकी आँखें जलते हुए दीपक की सी, उसकी बाहें और पाँव चमकाए हुए पीतल के से, और उसके वचनों का शब्द भीड़ों के शब्द का सा था" (दानिय्येल 10:5-6, एम.एस.जी)।

प्रकाशितवाक्य 1:12-18 में यह यीशु के वर्णन के समान है। जब दानिय्येल यीशु के इस दर्शन को देखते हैं " तब मैं अकेला रहकर यह अद्भुत दर्शन देखता रहा, इससे मेरा बल जाता रहा; मैं भयातुर हो गया, और मुझ में कुछ भी बल न रहा" (दानिय्येल 10:8, एम.एस.जी)।

जैसे ही दानिय्येल अपने आपको दीन करते हैं वह पुन:आश्वासन को ग्रहण करते हैं। एक आवाज उन्हें बताती है, "हे दानिय्येल, मत डर, क्योंकि पहले ही दिन को जब तू ने समझने-बूझने के लिये मन लगाया और अपने परमेश्वर के सामने अपने को दीन किया, उसी दिन तेरे वचन सुने गए" (व.12, एम.एस.जी)।

यह दर्शन आगे चलता है और दानिय्येल बताते हैं कि कैसे " मनुष्य के सन्तान के समान किसी ने मेरे होंठ छुए, और मैं मुँह खोलकर बोलने लगा...तब मनुष्य के समान किसी ने मुझे छूकर फिर मेरा साहस बँधाया; और उसने कहा, "हे अति प्रिय पुरुष, मत डर, तुझे शान्ति मिले; तू दृढ़ हो और तेरा साहस बँधा रहे।" जब उसने यह कहा, तब मैं ने साहस बाँधकर कहा, "हे मेरे प्रभु, अब कह, क्योंकि तू ने मेरा साहस बँधाया है" (वव.15-19, एम.एस.जी)।

जब यीशु आपके होठों को छूते हैं तब आपको निर्भीकता दी जाती है और बोलने की योग्यता दी जाती है (व.16)। जब यीशु आपके शरीर को छूते हैं तब आपको निर्भीकता दी जाती है और कार्य करने के लिए सामर्थ दी जाती है (व.18)।

दानिय्येल को यह संदेश दिया गया, "डर मत..तूझे शांति मिले, मजबूत हो" (व.19)। यह निर्भीकता आपके पास आती है क्योंकि यीशु आपको निर्भीकता, शांति और सामर्थ देते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, मुझे अपने साथ यीशु की उपस्थिति की बहुत जरुरत है। मेरी सहायता कीजिए कि आपके वचन को समझने में अपना ध्यान लगाऊँ और आपके सम्मुख अपने आपको दीन करुं (व.12)। आपकी उपस्थिति में मुझे निर्भीकता दीजिए। कृपया मेरे होठों को छूइये और मुझे निर्भीकता दीजिए और वे आपके वचनों को बोलने की योग्यता देते हैं। कृपया मेरे शरीर को छूइये और मुझे निर्भीकता दीजिए और कार्य करने की सामर्थ दीजिए। मेरे डर को लीजिए और मुझे अपनी शांति दीजिए।

पिप्पा भी कहते है

दानिय्येल 10:19b

"हे मेरे प्रभु, अब कह, क्योंकि तू ने मेरा साहस बँधाया है..."

दिन का वचन

1 यूहन्ना – 4:4

“हे बालको, तुम परमेश्वर के हो: और तुम ने उन पर जय पाई है; क्योंकि जो तुम में है, वह उस से जो संसार में है, बड़ा है।”

reader

App

Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.

reader

Email

Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.

Podcast

Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.

reader

Website

Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.

संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट ऊ 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी", बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइडऍ बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट ऊ 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट ऊ 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

एक साल में बाइबल

  • एक साल में बाइबल

This website stores data such as cookies to enable necessary site functionality and analytics. Find out more