आप परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं
परिचय
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, भयानक आक्रमणों के दिनों में एक पिता अपने छोटे बेटे का हाथ पकड़े हुए एक इमारत से दूर भाग रहे थे जिस पर बम गिराया गया था। आंगन के सामने एक खंदक था। जितना जल्दी हो सकें वे एक छिपने का स्थान तलाश कर रहे थे। पिता उस खंदक में कूद गए और अपनी बाहें ऊपर की ओर फैला दी ताकि उनका बेटा उनका अनुकरण करे। वह भयभीत था फिर भी अपने पिता की आवाज़ सुन रहा था जो उसे कूदने को कह रहे थे, लड़के ने जवाब दिया, 'मैं आपको देख नहीं सकता!'' पिता ने बेटे की रूपरेखा देखी और कहा, 'लेकिन मैं तुम्हें देख सकता हूँ, कूदो!' लड़का कूद गया क्योंकि उसने अपने पिता पर भरोसा किया था। दूसरे शब्दों में, वह उनसे प्रेम करता था, उसने उनपर विश्वास किया था, उसने भरोसा किया था और उसे उन पर विश्वास था।
बाइबल में 'विश्वास', मुख्य रूप से, अपना भरोसा किसी एक व्यक्ति पर रखना है। इस संदर्भ में यह प्रेम करने जैसा है। सभी प्रेममय संबंधों में भरोसे के कुछ अंश शामिल होते हैं। विश्वास पर विश्वास करना यानि उनपर भरोसा करना है, जिससे हमारे बाकी के सभी संबंध परिवर्तित हो जाते हैं।
नीतिवचन 3:21-35
21 हे मेरे पुत्र, तू अपनी दृष्टि से भले बुरे का भेद और
बुद्धि के विवेक को ओझल मत होने दे।
22 वे तो तेरे लिये जीवन बन जायेंगे,
और तेरे कंठ को सजाने का एक आभूषण।
23 तब तू सुरक्षित बना निज मार्ग विचरेगा और
तेरा पैर कभी ठोकर नहीं खायेगा।
24 तुझको सोने पर कभी भय नहीं व्यापेगा और
सो जाने पर तेरी नींद मधुर होगी।
25 आकस्मिक नाश से तू कभी मत डर,
या उस विनाश से जो दृष्टों पर आ पड़ता है।
26 क्योंकि तेरा विश्वास यहोवा बन जायेगा और
वह ही तेरे पैर को फंदे में फँसने से बचायेगा।
27 जब तक ऐसा करना तेरी शक्ति में हो
अच्छे को उनसे बचा कर मत रख जो जन अच्छा फल पाने योग्य है।
28 जब अपने पड़ोसी को देने तेरे पास रखा हो
तो उससे ऐसा मत कह कि “बाद में आना कल तुझे दूँगा।”
29 तेरा पड़ोसी विश्वास से तेरे पास रहता हो तो
उसके विरुद्ध उसको हानि पहुँचाने के लिये कोई षड़यंत्र मत रच।
30 बिना किसी कारण के किसी को मत कोस,
जबकि उस जन ने तुझे क्षति नहीं पहुँचाई है।
31 किसी बुरे जन से तू द्वेष मत रख और
उसकी सी चाल मत चल। तू अपनी चल।
32 क्यों क्योंकि यहोवा कुटिल जन से घृणा करता है
और सच्चरित्र जन को अपनाता है।
33 दुष्ट के घर पर यहोवा का शाप रहता है,
वह नेक के घर को आर्शीवाद देता है।
34 वह गर्वीले उच्छृंखल की हंसी उड़ाता है
किन्तु दीन जन पर वह कृपा करता है।
35 विवेकी जन तो आदर पायेंगे,
किन्तु वह मूर्खों को, लज्जित ही करेगा।
समीक्षा
प्रभु में निडर रहें
क्या आप आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति हैं? यदि ऐसा है, तो यह आत्मविश्वास कहाँ से आता है? क्या यह वहाँ से आता है जो आप काम करते हैं या जो अधिकार आप रखते हैं? क्या यह आपकी शिक्षा, आपका रूप, खेलने की क्षमता या किसी और कौशल से आता है? क्या यह उससे आता है जो दूसरे आपके बारे में सोचते हैं?
इन बातों में कुछ भी गलत नहीं है। 'आत्मविश्वासी' रहें, (पद - 26अ, ए.एम.पी.), लेकिन अंत में आपका विश्वास 'प्रभु' की ओर से ही आना चाहिये। ऐसा संभव हो सकता है कि आपके पास इन में से कोई भी वस्तु न हो मगर फिर भी आपका आत्मविश्वास बना रह सकता है।
नीतिवचन के लेखक कहते हैं, 'प्रभु तेरा विश्वास बना रहेगा' (26अ, ए.एम.पी.)। आपके विश्वास का विषय एक ही व्यक्ति है, जो प्रभु हैं। जिन पर आप सभी बातों के लिए पूर्ण रूप से भरोसा कर सकते हैं। यह 'आत्मविश्वास भरोसा' (पद - 23, ए.एम.पी.) आपके जीवन के तरीके को बदल देगा। यह आपको देगा:
- बुद्धि
मूर्ख 'आत्मविश्वासी होता है', लेकिन जो प्रभु में विश्वास रखता है वह बुद्धिमान होता है: 'खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर,
तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा,' (पद – 21, 22)। बुद्धि, खरा न्याय और विवेक परमेश्वर के साथ घनिष्ठता से चलने से आता है।
- शांति
यदि आप में शांति नहीं है, तो काम की सफलता में, धन और प्रसिद्धि का कोई मूल्य नहीं है। शांति परमेश्वर के साथ सही संबंध बनाए रखने से आती है। शुद्ध विवेक जैसा नरम कोई तकिया नहीं है: 'जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी। अचानक आने वाले भय से न डरना' (पद - 24-25अ)। चाहें कुछ भी हो जाए आपको डरने की ज़रूरत नहीं है, आप परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं कि वह आपके साथ हैं, और सब कुछ उनके नियंत्रण में है।
- भलाई
'जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना' (पद - 27)। भलाई करने के हर एक अवसर को जाने मत दीजिये; यदि किसी की सहायता करने के लिए आपकी क्षमता है, तो इसमें देरी न करें' (पद - 28)।
- प्रेम
'यदि तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूंगा' (पद - 28)।
- घनिष्ठता
'प्रभु….. अपना भेद सीधे लोगों पर खोलता है' (पद - 32)। जब प्रभु हमारा आत्मविश्वास हैं, तो वह हमें अपने आत्मविश्वास में ले जाते हैं। यह परमेश्वर की घनिष्ठता अद्भुत प्रतिरूप है: 'उनकी गोपनीय सहभागिता और उनके गुप्त सुझाव' (पद - 32अ)।
- नम्रता
परमेश्वर नम्र लोगों पर अनुग्रह करते हैं (पद - 34ब), यदि आपका आत्मविश्वास प्रभु पर भरोसा करने से आता है, तो आपके पास घमंड करने का कोई कारण नहीं होगा। परमेश्वर आप को अनुग्रह देने, आशीष देने और सम्मान देने का वायदा करते हैं (पद - 33-35)।
प्रार्थना
मत्ती 21:18-32
विश्वास की शक्ति
18 अगले दिन अलख सुबह जब वह नगर को वापस लौट रहा था तो उसे भूख लगी। 19 राह किनारे उसने अंजीर का एक पेड़ देखा सो वह उसके पास गया, पर उसे उस पर पत्तों को छोड़ और कुछ नहीं मिला। सो उसने पेड़ से कहा, “तुझ पर आगे कभी फल न लगे!” और वह अंजीर का पेड़ तुरंत सूख गया।
20 जब शिष्यों ने वह देखा तो अचरज के साथ पूछा, “यह अंजीर का पेड़ इतनी जल्दी कैसे सूख गया?”
21 यीशु ने उत्तर देते हुए उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। यदि तुम में विश्वास है और तुम संदेह नहीं करते तो तुम न केवल वह कर सकते हो जो मैंने अंजीर के पेड़ का किया। बल्कि यदि तुम इस पहाड़ से कहो, ‘उठ और अपने आप को सागर में डुबो दे’ तो वही हो जायेगा। 22 और प्रार्थना करते हुए तुम जो कुछ माँगो, यदि तुम्हें विश्वास है तो तुम पाओगे।”
यहूदी नेताओं का यीशु के अधिकार पर संदेह
23 जब यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश दे रहा था तो प्रमुख याजकों और यहूदी बुजु़र्गो ने पास जाकर उससे पूछा, “ऐसी बातें तू किस अधिकार से करता है? और यह अधिकार तुझे किसने दिया?”
24 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे एक प्रश्न पूछता हूँ, यदि उसका उत्तर तुम मुझे दे दो तो मैं तुम्हें बता दूँगा कि मैं ये बातें किस अधिकार से करता हूँ। 25 बताओ यूहन्ना को बपतिस्मा कहाँ से मिला? परमेश्वर से या मनुष्य से?”
वे आपस में विचार करते हुए कहने लगे, “यदि हम कहते हैं ‘परमेश्वर से’ तो यह हमसे पूछेगा ‘फिर तुम उस पर विश्वास क्यों नहीं करते?’ 26 किन्तु यदि हम कहते हैं ‘मनुष्य से’ तो हमें लोगों का डर है क्योंकि वे यूहन्ना को एक नबी मानते हैं।”
27 सो उत्तर में उन्होंने यीशु से कहा, “हमें नहीं पता।”
इस पर यीशु उनसे बोला, “अच्छा तो फिर मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि ये बातें मैं किस अधिकार से करता हूँ!”
यहूदियों के लिए एक दृष्टातं कथा
28 “अच्छा बताओ तुम लोग इसके बारे में क्या सोचते हो? एक व्यक्ति के दो पुत्र थे। वह बड़े के पास गया और बोला, ‘पुत्र आज मेरे अंगूरों के बगीचे में जा और काम कर।’
29 “किन्तु पुत्र ने उत्तर दिया, ‘मेरी इच्छा नहीं है’ पर बाद में उसका मन बदल गया और वह चला गया।
30 “फिर वह पिता दूसरे बेटे के पास गया और उससे भी वैसे ही कहा। उत्तर में बेटे ने कहा, ‘जी हाँ,’ मगर वह गया नहीं।
31 “बताओ इन दोनों में से जो पिता चाहता था, किसने किया?”
उन्होंने कहा, “बड़े ने।”
यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कर वसूलने वाले और वेश्याएँ परमेश्वर के राज्य में तुमसे पहले जायेंगे। 32 यह मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना तुम्हें जीवन का सही रास्ता दिखाने आया और तुमने उसमें विश्वास नहीं किया। किन्तु कर वसूलने वालों और वेश्याओं ने उसमें विश्वास किया। तुमने जब यह देखा तो भी बाद में न मन फिराया और न ही उस पर विश्वास किया।
समीक्षा
यीशु पर विश्वास करें
यीशु कहते हैं, 'यदि तुम विश्वास करो और संदेह न करो…. तो यह हो जाएगा।' (पद - 21)। यहाँ उत्तर है 'विश्वास करो…. विश्वास करो….. विश्वास करो' (पद - 22,25,32)। यह वह शब्द है जो तीन पक्षों को एक साथ पकड़े हुए है, अन्यथा वे एक दूसरे में प्रकट रूप से भिन्न हैं।
- अपने विश्वास का पोषण करें और आपका संदेह भूखा मर जाएगा
यीशु कहते हैं, 'जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से मांगो वह सब तुम को मिलेगा' (पद - 22)। यदि आप प्रभुत्व के जीवन को अंगीकार करें और परमेश्वर पर संदेह न करें, तो आप केवल छोटे काम ही नहीं करेंगे – जैसा मैंने अंजीर के पेड़ के साथ किया था – बल्कि आप छोटे से लेकर बड़ी रूकावटों पर भी विजयी होंगे, जब आप इसे विश्वास की प्रार्थना का हिस्सा बनाएंगे और जब आप परमेश्वर को पकड़े रहेंगे, तो इसमें शामिल होंगे (पद - 21-22, एम.एस.जी.)।
आज ही कोशिश करें। माँगें, विश्वास करें, उसके बाद परमेश्वर पर भरोसा करें।
- अपने कार्यों द्वारा विश्वास को व्यक्त करें
अंजीर का पेड़ वह नहीं कर रहा था, जो उसे करना चाहिये था – यानि फल लाना। दृष्टांत में दूसरा पुत्र वह नहीं करता जो उसे करना चाहिये था – यानि अपने पिता के निर्देशों का पालन करना (पद -28-31)। उसी तरह से धार्मिक गुरू वह नहीं कर रहे थे जो उन्हें करना चाहिये था – यानि यीशु में विश्वास करना।
वे यीशु में विश्वास करने के बजाय यीशु से उनके अधिकारों के बारे में पूछते हैं, 'तू ये काम किस अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?' (पद -23)। यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में प्रश्न पूछते हुए जवाब देते हैं, जो यह दर्शाता है कि धार्मिक गुरू, यूहन्ना के बपतिस्मा पर विश्वास करने में असफल रहे हैं। तब वे आपस में विवाद करने लगे, कि यदि हम कहें स्वर्ग की ओर से, तो वह हम से कहेगा, फिर तुम ने उस की प्रतीति क्यों नहीं की? (पद - 25)।
धार्मिक गुरूओं का विश्वास, विचार करने और वाद - विवाद करने पर था और वे उस व्यक्ति को चूक गये जिस पर विश्वास करना ज़रूरी था – जो थे यीशु।
- विश्वास द्वारा परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना
यीशु धार्मिक गुरूओं की तुलना चुंगी लेने वालों और वैश्याओं से से करते हैं जिन्होंने 'मन फिराया था और उन पर विश्वास किया था' (पद -32)।
चुंगी लेने वालों और वैश्याओं को सबसे तुच्छ समझा जाता था ('बदमाश और आवारा', पद - 32, एम.एस.जी.), फिर भी यीशु ने कहा, क्योंकि उन में कई लोगों ने उन पर विश्वास किया है, इसलिए वे परमेश्वर के राज्य में पहले प्रवेश करेंगे।
मैंने देखा है कि 'खरे' नज़र आने वाले लोग अक्सर यीशु में दिलचस्पी नहीं लेते। वे इनकी ज़रूरी महसूस नहीं करते। दूसरी तरफ, मैं कैदियों और अपराधियों की ग्रहणशीलता और आत्मिक भूख देखकर अक्सर विस्मित हो जाता हूँ। कारावास में जाने के बाद ही मैं समझ पाया कि यीशु को अपना समय अधिकारहीन लोगों के साथ बिताना क्यों अच्छा लगता था। वे ही लोग थे जो यीशु के प्रति सबसे ज़्यादा उत्साह दिखाते थे।
यह बड़े प्रोत्साहन की बात है कि भले ही अतीत दुराचार से भरा हो, और आपके किसी भी विचार या शब्द या कार्य ने आपको परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने में मदद नहीं की हो। पर कुछ भी आशा से परे नहीं है। दृष्टांत के पहले पुत्र के समान, आपको सिर्फ अपना हृदय और मन बदलने और वह करने की ज़रूरी है जो पिता कहते हैं (पद - 29)। सिर्फ मन फिराएं और यीशु में विश्वास करें।
प्रार्थना
अय्यूब 22:1-24:25
एलीपज का उत्तर
22फिर तेमान नगर के एलीपज ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “परमेश्वर को कोई भी व्यक्ति सहारा नहीं दे सकता,
यहाँ तक की वह भी जो बहुत बुद्धिमान व्यक्ति हो परमेश्वर के लिये हितकर नहीं हो सकता।
3 यदि तूने वही किया जो उचित था तो इससे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को आनन्द नहीं मिलेगा,
और यदि तू सदा खरा रहा तो इससे उसको कुछ नहीं मिलेगा।
4 अय्यूब, तुझको परमेश्वर क्यों दण्ड देता है और क्यों तुझ पर दोष लगाता है
क्या इसलिए कि तू उसका सम्मान नहीं करता
5 नहीं, ये इसलिए की तूने बहुत से पाप किये हैं,
अय्यूब, तेरे पाप नहीं रुकते हैं।
6 अय्यूब, सम्भव है कि तूने अपने किसी भाई को कुछ धन दिया हो,
और उसको दबाया हो कि वह कुछ गिरवी रख दे ताकि ये प्रमाणित हो सके कि वह तेरा धन वापस करेगा।
सम्भव है किसी दीन के कर्जे के बदले तूने कपड़े गिरवी रख लिये हों, सम्भव है तूने वह व्यर्थ ही किया हो।
7 तूने थके—मांदे को जल नहीं दिया,
तूने भूखों के लिये भोजन नहीं दिया।
8 अय्यूब, यद्यपि तू शक्तिशाली और धनी था,
तूने उन लोगों को सहारा नहीं दिया।
तू बड़ा जमींदार और सामर्थी पुरुष था,
9 किन्तु तूने विधवाओं को बिना कुछ दिये लौटा दिया।
अय्यूब, तूने अनाथ बच्चों को लूट लिया और उनसे बुरा व्यवहार किया।
10 इसलिए तेरे चारों तरफ जाल बिछे हुए हैं
और तुझ को अचान्क आती विपत्तियाँ डराती हैं।
11 इसलिए इतना अंधकार है कि तुझे सूझ पड़ता है
और इसलिए बाढ़ का पानी तुझे निगल रहा है।
12 “परमेश्वर आकाश के उच्चतम भाग में रहता है, वह सर्वोच्च तारों के नीचे देखता है,
तू देख सकता है कि तारे कितने ऊँचे हैं।
13 किन्तु अय्यूब, तू तो कहा करता है कि परमेश्वर कुछ नहीं जानता,
काले बादलों से कैसे परमेश्वर हमें जाँच सकता है
14 घने बादल उसे छुपा लेते हैं, इसलिये जब वह आकाश के उच्चतम भाग में विचरता है
तो हमें ऊपर आकाश से देख नहीं सकता।
15 “अय्यूब, तू उस ही पुरानी राह पर
जिन पर दुष्ट लोग चला करते हैं, चल रहा है।
16 अपनी मृत्यु के समय से पहले ही दुष्ट लोग उठा लिये गये,
बाढ़ उनको बहा कर ले गयी थी।
17 ये वही लोग है जो परमेश्वर से कहते हैं कि हमें अकेला छोड़ दो,
सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारा कुछ नहीं कर सकता है।
18 किन्तु परमेश्वर ने उन लोगों को सफल बनाया है और उन्हें धनवान बना दिया।
किन्तु मैं वह ढंग से जिससे दुष्ट सोचते हैं, अपना नहीं सकता हूँ।
19 सज्जन जब बुरे लोगों का नाश देखते हैं, तो वे प्रसन्न होते है।
पापरहित लोग दुष्टों पर हँसते है और कहा करते हैं,
20 ‘हमारे शत्रु सचमुच नष्ट हो गये!
आग उनके धन को जला देती है।
21 “अय्यूब, अब स्वयं को तू परमेश्वर को अर्पित कर दे, तब तू शांति पायेगा।
यदि तू ऐसा करे तो तू धन्य और सफल हो जायेगा।
22 उसकी सीख अपना ले,
और उसके शब्द निज मन में सुरक्षित रख।
23 अय्यूब, यदि तू फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास आये तो फिर से पहले जैसा हो जायेगा।
तुझको अपने घर से पाप को बहुत दूर करना चाहिए।
24 तुझको चाहिये कि तू निज सोना धूल में
और निज ओपीर का कुन्दन नदी में चट्टानो पर फेंक दे।
25 तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर तेरे लिये
सोना और चाँदी बन जायेगा।
26 तब तू अति प्रसन्न होगा और तुझे सुख मिलेगा।
परमेश्वर के सामने तू बिना किसी शर्म के सिर उठा सकेगा।
27 जब तू उसकी विनती करेगा तो वह तेरी सुना करेगा,
जो प्रतिज्ञा तूने उससे की थी, तू उसे पूरा कर सकेगा।
28 जो कुछ तू करेगा उसमें तुझे सफलता मिलेगी,
तेरे मार्ग पर प्रकाश चमकेगा।
29 परमेश्वर अहंकारी जन को लज्जित करेगा,
किन्तु परमेश्वर नम्र व्यक्ति की रक्षा करेगा।
30 परमेश्वर जो मनुष्य भोला नहीं है उसकी भी रक्षा करेगा,
तेरे हाथों की स्वच्छता से उसको उद्धार मिलेगा।”
23फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुये कहा:
2 “मैं आज भी बुरी तरह शिकायत करता हूँ कि परमेश्वर मुझे कड़ा दण्ड दे रहा है,
इसलिये मैं शिकायत करता रहता हूँ।
3 काश! मैं यह जान पाता कि उसे कहाँ खोजूँ!
काश! मैं जान पाता की परमेश्वर के पास कैसे जाऊँ!
4 मैं अपनी कथा परमेश्वर को सुनाता,
मेरा मुँह युक्तियों से भरा होता यह दर्शाने को कि मैं निर्दोष हूँ।
5 मैं यह जानना चाहता हूँ कि परमेश्वर कैसे मेरे तर्को का उत्तर देता है,
तब मैं परमेश्वर के उत्तर समझ पाता।
6 क्या परमेश्वर अपनी महाशक्ति के साथ मेरे विरुद्ध होता
नहीं! वह मेरी सुनेगा।
7 मैं एक नेक व्यक्ति हूँ।
परमेश्वर मुझे अपनी कहानी को कहने देगा, तब मेरा न्यायकर्ता परमेश्वर मुझे मुक्त कर देगा।
8 “किन्तु यदि मैं पूरब को जाऊँ तो परमेश्वर वहाँ नहीं है
और यदि मैं पश्चिम को जाऊँ, तो भी परमेश्वर मुझे नहीं दिखता है।
9 परमेश्वर जब उत्तर में क्रियाशील रहता है तो मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
जब परमेश्वर दक्षिण को मुड़ता है, तो भी वह मुझको नहीं दिखता है।
10 किन्तु परमेश्वर मेरे हर चरण को देखता है, जिसको मैं उठाता हूँ।
जब वह मेरी परीक्षा ले चुकेगा तो वह देखेगा कि मुझमें कुछ भी बुरा नहीं है, वह देखेगा कि मैं खरे सोने सा हूँ।
11 परमेश्वर जिस को चाहता है मैं सदा उस पर चला हूँ,
मैं कभी भी परमेश्वर की राह पर चलने से नहीं मुड़ा।
12 मैं सदा वही बात करता हूँ जिनकी आशा परमेश्वर देता है।
मैंने अपने मुख के भोजन से अधिक परमेश्वर के मुख के शब्दों से प्रेम किया है।
13 “किन्तु परमेश्वर कभी नहीं बदलता।
कोई भी व्यक्ति उसके विरुद्ध खड़ा नहीं रह सकता है।
परमेश्वर जो भी चाहता है, करता है।
14 परमेश्वर ने जो भी योजना मेरे विरोध में बना ली है वही करेगा,
उसके पास मेरे लिये और भी बहुत सारी योजनायें है।
15 मैं इसलिये डरता हूँ, जब इन सब बातों के बारे में सोचता हूँ।
इसलिये परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
16 परमेश्वर मेरे हृदय को दुर्बल करता है और मेरी हिम्मत टूटती है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
17 यद्यपि मेरा मुख सघन अंधकार ढकता है
तो भी अंधकार मुझे चुप नहीं कर सकता है।
24“सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्यों नहीं न्याय करने के लिये समय नियुक्त करता है?
लोग जो परमेश्वर को मानते हैं उन्हें क्यों न्याय के समय की व्यर्थ बाट जोहनी पड़ती है
2 “लोग अपनी सम्पत्ति के चिन्हों को, जो उसकी सीमा बताते है,
सरकाते रहते हैं ताकि अपने पड़ोसी की थोड़ी और धरती हड़प लें!
लोग पशु को चुरा लेते हैं और उन्हें चरागाहों में हाँक ले जाते हैं।
3 अनाथ बच्चों के गधे को वे चुरा ले जाते हैं।
विधवा की गाय वे खोल ले जाते है। जब तक की वह उनका कर्ज नहीं चुकाती है।
4 वे दीन जन को मजबूर करते है कि वह छोड़ कर दूर हट जाने को विवश हो जाता है,
इन दुष्टों से स्वयं को छिपाने को।
5 “वे दीन जन उन जंगली गदहों जैसे हैं जो मरुभूमि में अपना चारा खोजा करते हैं।
गरीबों और उनके बच्चों को मरुभूमि भोजन दिया करता है।
6 गरीब लोग भूसा और चारा साथ साथ ऐसे उन खेतों से पाते हैं जिनके वे अब स्वामी नहीं रहे।
दुष्टों के अंगूरों के बगीचों से बचे फल वे बीना करते हैं।
7 दीन जन को बिना कपड़ों के रातें बितानी होंगी,
सर्दी में उनके पास अपने ऊपर ओढ़ने को कुछ नहीं होगा।
8 वे वर्षा से पहाड़ों में भीगें हैं, उन्हें बड़ी चट्टानों से सटे हुये रहना होगा,
क्योंकि उनके पास कुछ नहीं जो उन्हें मौसम से बचा ले।
9 बुरे लोग माता से वह बच्चा जिसका पिता नहीं है छीन लेते हैं।
गरीब का बच्चा लिया करते हैं, उसके बच्चे को, कर्ज के बदले में वे बन्धुवा बना लेते हैं।
10 गरीब लोगों के पास वस्त्र नहीं होते हैं, सो वे काम करते हुये नंगे रहा करते हैं।
दुष्टों के गट्ठर का भार वे ढोते है, किन्तु फिर भी वे भूखे रहते हैं।
11 गरीब लोग जैतून का तेल पेर कर निकालते हैं।
वे कुंडो में अंगूर रौंदते हैं फिर भी वे प्यासे रहते हैं।
12 मरते हुये लोग जो आहें भरते हैं। वे नगर में सुनाई देती हैं।
सताये हुये लोग सहारे को पुकारते हैं, किन्तु परमेश्वर नहीं सुनता है।
13 “कुछ ऐसे लोग हैं जो प्रकाश के विरुद्ध होते हैं।
वे नहीं जानना चाहते हैं कि परमेश्वर उनसे क्या करवाना चाहता है।
परमेश्वर की राह पर वे नहीं चलते हैं।
14 हत्यारा तड़के जाग जाया करता है गरीबों और जरुरत मंद लोगों की हत्या करता है,
और रात में चोर बन जाता है।
15 वह व्यक्ति जो व्यभिचार करता है, रात आने की बाट जोहा करता है,
वह सोचता है उसे कोई नहीं देखेगा और वह अपना मुख ढक लेता है।
16 दुष्ट जन जब रात में अंधेरा होता है, तो सेंध लगा कर घर में घुसते हैं।
किन्तु दिन में वे अपने ही घरों में छुपे रहते हैं, वे प्रकाश से बचते हैं।
17 उन दुष्ट लोगों का अंधकार सुबह सा होता है,
वे आतंक व अंधेरे के मित्र होते है।
18 “दुष्ट जन ऐसे बहा दिये जाते हैं, जैसे झाग बाढ़ के पानी पर।
वह धरती अभिशिप्त है जिसके वे मालिक हैं, इसलिये वे अंगूर के बगीचों में अगूंर बिनने नहीं जाते हैं।
19 जैसे गर्म व सूखा मौसम पिघलती बर्फ के जल को सोख लेता है,
वैसे ही दुष्ट लोग कब्र द्वारा निगले जायेंगे।
20 दुष्ट मरने के बाद उसकी माँ तक उसे भूल जायेगी, दुष्ट की देह को कीड़े खा जायेंगे।
उसको थोड़ा भी नहीं याद रखा जायेगा, दुष्ट जन गिरे हुये पेड़ से नष्ट किये जायेंगे।
21 ऐसी स्त्री को जिसके बच्चे नहीं हो सकते, दुष्ट जन उन्हें सताया करते हैं,
वे उस स्त्री को दु:ख देते हैं, वे किसी विधवा के प्रति दया नहीं दिखाते हैं।
22 बुरे लोग अपनी शक्ति का उपयोग बलशाली को नष्ट करने के लिये करते है।
बुरे लोग शक्तिशाली हो जायेंगे, किन्तु अपने ही जीवन का उन्हें भरोसा नहीं होगा कि वे अधिक दिन जी पायेंगे।
23 सम्भव है थोड़े समय के लिये परमेश्वर शक्तिशाली को सुरक्षित रहने दे,
किन्तु परमेश्वर सदा उन पर आँख रखता है।
24 दुष्ट जन थोड़े से समय के लिये सफलता पा जाते हैं किन्तु फिर वे नष्ट हो जाते हैं।
दूसरे लोगों की तरह वे भी समेट लिये जाते हैं। अन्न की कटी हुई बाल के समान वे गिर जाते हैं।
25 “यदि ये बातें सत्य नहीं हैं तो
कौन प्रमाणित कर सकता है कि मैंने झूठ कहा है?
कौन दिखा सकता है कि मेरे शब्द प्रलयमात्र हैं?”
समीक्षा
जब विश्वास किया जाए तो भरोसा बनाए रखें
अय्यूब के जीवन में क्या चल रहा है वह नहीं जानता था फिर भी उसने परमेश्वर पर भरोसा करना सीखा। विश्वास यानि परमेश्वर पर भरोसा करना है, जब आपके पास सभी प्रश्नों के उत्तर न हों तब भी।
जब हम मुश्किल घड़ी में से गुज़रते हैं तब अक्सर विश्वास की परीक्षा होती है। एक बार फिर, इस लेखांश में हम अय्यूब और उसके दोस्तों के बीच ध्यान देने योग्य फर्क देखते हैं। एलीपज का भाषण गलत परोक्ष संकेतों से भरा हुआ था। इस तरह से अय्यूब को बहुत दु:ख पहुँचा होगा। एलीपज ने उस पर गलत दोष लगाया था कि उसने कंगालों, भूखों और विधवाओं के साथ बुरा व्यवहार किया था। उसने कहा, 'अय्यूब इसीलिए कष्ट में है' (22:10)। सच्चाई से परे कुछ भी नहीं है।
एलीपज का सिद्धांत एक तरफा और बेकार था: 'परमेश्वर से मेल - मिलाप कर तब तुझे शान्ति मिलेगी; और इस से तेरी भलाई होगी' (पद - 21)। लेकिन जीवन उससे भी ज़्यादा पेंचीदा है।
तुलनात्मक रूप से, अय्यूब वर्णन से बाहर और निर्दोष दु:ख की असली दुनिया से संघर्ष कर रहा था। फिर भी शोक और पीड़ा के बीच वह विश्वास से भरा हुआ था (23:2)। अय्यूब के जीवन में सब कुछ गलत हुआ था। परमेश्वर कोसों दूर नज़र आ रहे थे ('भला होता, कि मैं जानता कि वह कहां मिल सकता है', पद - 3अ)
जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं, 'यदि आप जीवन के इस मुकाम में हैं जहाँ कुछ भी मायने नहीं रखता, तब भी परमेश्वर पर भरोसा कीजिये। और खुद से कहिये, 'अवश्य ही यह परीक्षा होगी।'
अय्यूब ने कहा, 'और जब वह मुझे ता लेगा तब मैं सोने के समान निकलूंगा' (पद - 10ब)। सोने को बार - बार गरम करके और गन्दगी अलग करके तब तक परखा जाता है जब तक कि सुनार का प्रतिबिंब इस में दिखने नहीं लगता। अपनी भयंकर यातना के बीच में, अय्यूब ने परमेश्वर पर भरोसा किया कि वह भलाई के लिए उसका उपयोग करेंगे और वह ज़्यादा शुद्ध और पवित्र होकर उभरेगा। किसी तरह से वह परमेश्वर को पकड़े रहा:
'मेरे पैर उसके मार्गों में स्थिर रहे; उसकी आज्ञा का पालन करने से मैं न हटा। और मैं ने उसके वचन अपनी इच्छा से कहीं अधिक काम के जान कर सुरक्षित रखे' (पद - 11-12)।
जब हम अय्यूब के जीवन को देखते हैं, तो हम पाते हैं कि संघर्ष से ताकत बढ़ती है, चुनौतियों से साहस बढ़ता है और घावों से बुद्धि परिपक्व होती है। जब परमेश्वर ने अय्यूब की परीक्षा ली तो उसका विश्वास शुद्ध सोने की तरह उभर गया।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
जब मैं बाइबल पढ़ती हूँ तो मैं सामान्यत: प्रोत्साहित करने वाले वचनों को ढूँढती हूँ। मैं अक्सर इन वचनों पर नजर दौड़ाती हूँ जैसे 'कुछ लोग अनाथ बालक को माँ की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं' (अय्यूब 24:9)। यह बड़े दु:ख की बात है कि ऐसा आज भी हो रहा है। बच्चों को 'छीनकर' वैश्यालयों में बेचा जा रहा है। बच्चे, स्त्री और पुरूष गुलामी में पड़े हुए हैं। अब मुझे ऐसा लगता है कि चाहें कैसे भी हो मुझे भयंकर अन्याय के विरूद्ध खड़ा होना चाहिये और लड़ना चाहिये।
दिन का वचन
मत्ती – 21:22
"और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से मांगोगे वह सब तुम को मिलेगा॥"

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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (ए.एम.पी., AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।