दिन 283

आनंद के द्वारा आश्चर्यचकित

बुद्धि भजन संहिता 119:9-16
नए करार 1 थिस्सलुनीकियों 2:17-3:13
जूना करार यिर्मयाह 21:1-23:8

परिचय

‘आनंद के द्वारा आश्चर्यचकित’ इस तरह से सी.एस. लेविस ने नास्तिक से परिवर्तित होकर उनके द्वारा यीशु मसीह में विश्वास करने का वर्णन किया। उन्होंने कभी आशा नहीं की थी कि परमेश्वर और आनंद के बीच में कोई संबंध है। यदि कुछ होता, तो वे सोचते कि यह विपरीत होगाः’क्योंकि मैं जो कुछ जानता था, आनंद का पूर्ण नकारा जाना एक माँग हो सकती है।’

इसे सच मानकर, लेविस ‘ने स्वीकार किया कि परमेश्वर, परमेश्वर थे।’ उस समय, ‘संपूर्ण इंग्लैंड में वह सबसे निराश और अनिच्छुक विश्वासी थे।’ उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि यीशु के पीछे चलने का अर्थ उससे बिल्कुल विपरीत था जैसा कि उन्होंने आशा की थी। नये मिले विश्वास के द्वारा उन्होंने महान आनंद का अनुभव किया। उन्होंने खोजा कि ‘वास्तविकता’ एक व्यक्ति में पायी जाती है। वह आनंद के द्वारा चकित हुए।

हुत से लोग प्रसन्नता, संतुष्टि और आनंद के विषय में उलझन में हैं। ‘प्रसन्नता’ एक अच्छी छुट्टी, वेतन के बढ़ने से या चॉकलेट के एक डिब्बे से आ सकती है। लोग प्रसन्नता के व्यसनी बन सकते हैं – हमेशा अगले समाधान का इंतजार करते हुए। लेकिन प्रसन्नता के ये अनुभव आते और जाते हैं।

‘संतुष्टि’ बड़ा शब्द है – अपने जीवन, अपने घर, अपनी नौकरी और अपने संबंधो के साथ संतुष्ट होना।

लेकिन अलग प्रकार की खुशी है जिसे हम ‘आनंद’ कहते हैं। यह एक क्षणिक भावना नहीं है, बल्कि एक अस्तित्व का एक गहरा तरीका – दिमाग की दशा जो सभी के लिए उपलब्ध है। यह वस्तुओं में प्राप्त नहीं होती, बल्कि एक व्यक्ति में प्राप्त होती है।

बुद्धि

भजन संहिता 119:9-16

वेथ्

9 एक युवा व्यक्ति कैसे अपना जीवन पवित्र रख पाये
 तेरे निर्देशों पर चलने से।
10 मैं अपने पूर्ण मन से परमेश्वर कि सेवा का जतन करता हूँ।
 परमेश्वर, तेरे आदेशों पर चलने में मेरी सहायता कर।
11 मैं बड़े ध्यान से तेरे आदेशों का मनन किया करता हूँ।
 क्यों ताकि मैं तेरे विरूद्ध पाप पर न चलूँ।
12 हे यहोवा, तेरा धन्यवाद!
 तू अपने विधानों की शिक्षा मुझको दे।
13 तेरे सभी निर्णय जो विवेकपूर्ण हैं। मैं उनका बखान करूँगा।
14 तेरे नियमों पर मनन करना,
 मुझको अन्य किसी भी वस्तु से अधिक भाता है।
15 मैं तेरे नियमों की चर्चा करता हूँ,
 और मैं तेरे समान जीवन जीता हूँ।
16 मैं तेरे नियमों में आनन्द लेता हूँ।
 मैं तेरे वचनों को नहीं भूलूँगा।

समीक्षा

बाईबल का अध्ययन करने में आनंद

ना तो पीपा, नाही मुझे दिशा का अच्छा ज्ञान है। अक्सर हम कार यात्रा में खो जाते हैं (यहॉं तक कि उपग्रह नेविगेशन भी)। बहुत आनंद मिलता है जब हम ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो हमें अच्छी दिशा प्रदान कर सकता है।

बाईबल हमें जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा प्रदान करती है। यह हमें भटकने नहीं देती है (व.10) और खोने नहीं देती। बहुतायत जीवन की दिशा पाने से महान आनंद मिलता है।

बाईबल पढ़ना विश्व में अंतिम स्थान है जहाँ से बहुत से लोग आनंद पाने की आशा करेंगे। फिर भी, जैसा कि भजनसंहिता के लेखक बताते हैं, परमेश्वर की बुद्धि और उनकी वाचाएँ आनंद, उत्सव मनाने और महान धन का एक स्त्रोत हैं। वह लिखते हैं, ‘ मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, मानो सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूँ... मैं तेरी विधियों से सुख पाउँगा’ (वव.14, 16अ)।

बाईबल में हमें शुद्धता का मार्ग मिलता हैः ‘ जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुध्द रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से’ (व.9)। वह लिखते हैं, ‘ मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुध्द पाप न करूँ’ (व.11)। वचनो को सीखो, उन पर मनन करो (व.15) और उन्हें बाहर बोलो (व.13)। इस तरह से आप भटकना और खोना, टाल सकते हैं (व.10)।

जैसे ही आप समझते हैं कि पवित्र आत्मा किसी वचन या लेखांश के द्वारा आपसे बात कर रहे हैं, आप दूसरी शताब्दी चर्च फादर, ओरिजेन के साथ कह पाते हैं, ‘यह मेरा वचन है।’ आप परमेश्वर की आवाज को सुनने का आनंद पाते हैं और उनकी विधियों पर चलने का आनंद पाते हैं (व.14)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि आपके वचन मुझे आनंद देते हैं। मेरी सहायता कीजिए कि आपके वचन अपने हृदय में रखूं और अपने होठों से उन्हें फिर से गिनूं।
नए करार

1 थिस्सलुनीकियों 2:17-3:13

फिर मिलने की इच्छा

17 हे भाईयों, जहाँ तक हमारी बात है, हम थोड़े समय के लिये तुमसे बिछड़ गये थे। विचारों से नहीं, केवल शरीर से। सो हम तुमसे मिलने को बहुत उतावले हो उठे। हमारी इच्छा तीव्र हो उठी थी। 18 हाँ! हम तुमसे मिलने के लिए बहुत जतन कर रहे थे। मुझ पौलुस ने अनेक बार प्रयत्न किया किन्तु शैतान ने उसमें बाधा डाली। 19 भला बताओ तो हमारी आशा, हमारा उल्लास या हमारा वह मुकुट जिस पर हमें इतना गर्व है, क्या है? क्या वह तुम्हीं नहीं हो। हमारे प्रभु यीशु के दुबारा आने पर जब हम उसके सामने उपस्थित होंगे 20 तो वहाँ तुम हमारी महिमा और हमारा आनन्द होगे।

3क्योंकि हम और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे इसलिए हमने एथेंस में अकेले ही ठहर जाने का निश्चय कर लिया। 2 और हमने हमारे बन्धु तथा परमेश्वर के लिए मसीह के सुसमाचार के प्रचार में अपने सहकर्मी तिमुथियुस को तुम्हें सुदृढ़ बनाने और विश्वास में उत्साहित करने को तुम्हारे पास भेज दिया 3 ताकि इन वर्तमान यातनाओं से कोई विचलित न हो उठे। क्योंकि तुम तो जानते ही हो कि हम तो यातना के लिए ही निश्चित किए गये हैं। 4 वास्तव में जब हम तुम्हारे पास थे, तुम्हें पहले से ही कहा करते थे कि हम पर कष्ट आने वाले हैं, और यह ठीक वैसे ही हुआ भी है। तुम तो यह जानते ही हो। 5 इसलिए क्योंकि मैं और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने तुम्हारे विश्वास के विषय में जानने तिमुथियुस को भेज दिया। क्योंकि मुझे डर था कि लुभाने वाले ने कहीं तुम्हें प्रलोभित करके हमारे कठिन परिश्रम को व्यर्थ तो नहीं कर दिया है।

6 तुम्हारे पास से तिमुथियुस अभी-अभी हमारे पास वापस लौटा है और उसने हमें तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे प्रेम का शुभ समाचार दिया है। उसने हमें बताया है कि तुम्हें हमारी मधुर याद आती है और तुम हमसे मिलने को बहुत अधीर हो। वैसे ही जैसे हम तुमसे मिलने को। 7 इसलिए हे भाईयों, हमारी सभी पीड़ाओं और यातनाओं में तुम्हारे विश्वास के कारण हमारा उत्साह बहुत बढ़ा है। 8 हाँ! अब हम फिर साँस ले पा रहे हैं क्योंकि हम जान गए हैं कि प्रभु में तुम अटल खड़े हो। 9 तुम्हारे विषय में तुम्हारे कारण जो आनन्द हमें मिला है, उसके लिए हम परमेश्वर का धन्यवाद कैसे करें। अपने परमेश्वर के सामने 10 रात-दिन यथासम्भव लगन से हम प्रार्थना करते रहते हैं कि किसी प्रकार तुम्हारा मुँह फिर देख पायें और तुम्हारे विश्वास में जो कुछ कमी रह गयी है, उसे पूरा करें।

11 हमारा परम पिता परमेश्वर और हमारा प्रभु यीशु तुम्हारे पास आने को हमें मार्ग दिखाये। 12 और प्रभु एक दूसरे के प्रति तथा सभी के लिए तुममें जो प्रेम है, उसकी बढ़ोतरी करे। वैसे ही जैसे तुम्हारे लिए हमारा प्रेम उमड़ पड़ता है। 13 इस प्रकार वह तुम्हारे हृदयों को सुदृढ़ करे और उन्हें हमारे परम पिता परमेश्वर के सामने हमारे प्रभु यीशु के आगमन पर अपने सभी पवित्र स्वर्गदूतों के साथ पवित्र एवं दोष-रहित बना दे।

समीक्षा

यीशु में दूसरों को विश्वास में लाने का आनंद

पौलुस ने थिस्सलुनिकियों की मुलाकात यीशु मसीह से करवायी। लोगों को मसीह में विश्वास में आता देखकर महान आनंद मिलता है। मैं सोचता हूँ कि यह एक कारण है कि लोग अल्फा की सहायता करना पसंद करते हैं। उनके पास लोगों को मसीह में आता देखने का आनंद है, आत्मा से भरकर और यीशु के विषय में उत्साहित होकर।

थिस्सलुनिकियों के लोग पौलुस का ‘गर्व और आनंद’ थे (2:20, एम.एस.जी)। उनके साथ एक नजदीकी संबंध था। वह उनसे मिलने के लिए बहुत आतुर थे (व.17)। वह लिखते हैं, ‘ भला हमारी आशा या आनन्द या बड़ाई का मुकुट क्या है? क्या हमारे प्रभु यीशु के सम्मुख उसके आने के समय तुम ही न होंगे? हमारी बड़ाई और आनन्द तुम ही हो’ (वव.19-20)।

पुरस्कार सिद्धांत में गलत नहीं है और दूसरों को यीशु में विश्वास करता देखना एक महान पुरस्कार (‘मुकुट’) है। हमारी महिमा विश्व से कितनी अलग है; विश्व पैसे, सफलता और सामर्थ में महिमा करता है। लेकिन हम यीशु में उन लोगों में महिमा पाते हैं, जो हमारे वचनो और हमारी प्रार्थनाओं के द्वारा यीशु की ओर आ गए हैं।

पौलुस के आनंद को उनकी खुद की परिस्थितियों से अंतर नहीं पड़ता था। वह परेशानी और कठिन समय के बीच में थेः’ दुःख और क्लेश में’ (3:7, ए.एम.पी)। अद्भुत रीति से पौलुस की चिंता उनकी खुद की स्थिति के विषय में नहीं थी, बल्कि उनके जाँचे जाने और सताव के कारण कही थिस्सलुनिकियों का विश्वास डगमगा न जाएँ, इस विषय में थी (व.3)।

पौलुस का आनंद उनके आनंद से आता था। यह सच में सही बात है कि खुशी का रहस्य है किसी दूसरे को खुश करना।

पौलुस लिखते हैं, ‘ क्योंकि अब यदि तुम प्रभु में स्थिर रहो तो हम जीवित हैं’ (व.8)। उनके जीवन की गुणवत्ता गहराइ से उस संबंध के द्वारा प्रभावित होती है जो प्रभु के साथ हैं। वह आनंद से भर गए हैं: ’ जैसा आनन्द हमें तुम्हारे कारण अपने परमेश्वर के सामने है, उसके बदले तुम्हारे विषय में हम किस रीति से परमेश्वर का धन्यवाद करें?’ (व.9)।

पौलुस और थिस्सलुनिकियों के बीच जो संबंध था, उसकी गहराई से यह आनंद बहता था। उनके लिए उनका प्रेम और चिंता बहुत स्पष्ट है। उनके जाने के बाद वह प्रेम और चिंता जारी रही। वह उनके पास लौटने की इच्छा करते थे (2:18;3:10-11), उनकी सहायता करने के लिए तीमुथियुस को भेजा (यहॉं तक कि इस वजह से उन्हें थोड़े समय के लिए अकेला रहना पड़ा,3:1-2), और वे ‘दिन रात’ उनके लिए ‘जुझारू’ रूप से प्रार्थना करते थे (व.10)।

अपने आस-पास के लोगों के जीवन के प्रति गहराई से कटिबद्ध होना, भयभीत करने जैसा लग सकता है और इसमें शायद कठिन परिश्रम लगे। फिर भी, जैसा कि पौलुस का उदाहरण दिखाता है, यह आनंद और उत्सव का भी एक स्त्रोत है। यह ‘परमेश्वर की उपस्थिति में आनंद’ था। जैसे ही पौलुस प्रार्थना कर रहे थे, उनका हृदय अवश्य ही आनंद से भर गया होगा, जैसे ही वह उनके विषय में सोचते थे। बहुत से पौलुस के पत्र धन्यवादिता और आनंद के साथ भरे हुए हैं। जैसे ही हम परमेश्वर की उपस्थिति में जाते हैं, हमारे हृदय का बोझ हट जाता है और हम चीजों को उस तरह से देखते हैं, जैसे परमेश्वर उन्हें देखते हैं:’आप मुझे अपनी उपस्थिति में आनंद से भर देंगे’ (भजनसंहिता 16:11)।

प्रार्थना

परमेश्वर, लोगों को मसीह में आता हुआ देखने के आनंद के लिए आपका बहुत धन्यवाद। होने दीजिए कि मैं प्रेम में बढूं और उमड़ने लगूं, और सामर्थ और शुद्धता से भर जाऊँ, हमारे पिता परमेश्वर की उपस्थिति में निर्भीकता से भर जाऊं।
जूना करार

यिर्मयाह 21:1-23:8

राजा सिदकिय्याह के निवेदन को परमेश्वर अस्वीकार करता है

21यह यहोवा का वह सन्देश है जो यिर्मयाह को मिला। यह सन्देश तब आया जब यहूदा के राजा सिदकिय्याह ने पशहूर नामक एक व्यक्ति तथा सपन्याह नामक एक याजक को यिर्मयाह के पास भेजा। पशहूर मल्किय्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था। सपन्याह मासेयाह नामक व्यक्ति का पुत्र था। पशहूर और सपन्याह यिर्मयाह के लिये एक सन्देश लेकर आए। 2 पशहूर और सपन्याह ने यिर्मयाह से कहा, “यहोवा से हम लोगों के लिए प्रार्थना करो। यहोवा से पूछो कि क्या होगा हम जानना चाहते हैं क्योंकि बाबुल का राजा नबूकदनेस्सर हम लोगों पर आक्रमण कर रहा है। सम्भव है यहोवा हम लोगों के लिये वैसे ही महान कार्य करे जैसा उसने बीते समय में किया। सम्भव है कि यहोवा नबूकदनेस्सर को आक्रमण करने से रोक दे या उसे चले जाने दे।”

3 तब यिर्मयाह ने पशहूर और सपन्याह को उत्तर दिया। उसने कहा, “राजा सिदकिय्याह से कहो, 4 ‘इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जो कहता है, यह वह है: तुम्हारे हाथों में युद्ध के अस्त्र शस्त्र हैं। तुम उन अस्त्र शस्त्रों का उपयोग अपनी सुरक्षा के लिये बाबुल के राजा और कसदियों के विरुद्ध कर रहे हो। किन्तु मैं उन अस्त्रों को व्यर्थ कर दूँगा।

“‘बाबुल की सेना नगर के चारों ओर दीवार के बाहर है। वह सेना नगर के चारों ओर है। शीघ्र ही मैं उस सेना को यरूशलेम में ले आऊँगा। 5 मैं स्वयं यहूदा तुम लोगों के विरुद्ध लड़ूँगा। मैं अपने शक्तिशाली हाथों से तुम्हारे विरुद्ध लड़ूँगा। मैं तुम पर बहुत अधिक क्रोधित हूँ, अत: मैं अपनी शक्तिशाली भुजाओं से तुम्हारे विरुद्ध लड़ूँगा। मैं तुम्हारे विरुद्ध घोर युद्ध करुँगा और दिखाऊँगा कि मैं कितना क्रोधित हूँ। 6 मैं यरूशलेम में रहने वाले लोगों को मार डालूँगा। मैं लोगों और जानवरों को मार डालूँगा। वे उस भयंकर बीमारी से मरेंगे जो पूरे नगर में फैल जाएगी। 7 जब यह हो जायेगा तब उसके बाद,’” यह सन्देश यहोवा का है, “‘मैं यहूदा के राजा सिदकिय्याह को बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को दूँगा। मैं सिदकिय्याह के अधिकारियों को भी नबूकदनेस्सर को दूँगा। यरूशलेम के कुछ लोग भयंकर बीमारी से नहीं मरेंगे। कुछ लोग तलवार के घाट नहीं उतारे जाएंगे। उनमें से कुछ भूखों नहीं मरेंगे किन्तु मैं उन लोगों को नबूकदनेस्सर को दूँगा। मैं यहूदा के शत्रु को विजयी बनाऊँगा। नबूकदनेस्सर की सेना यहूदा के लोगों को मार डालना चाहती है। इसलिये यहूदा और यरूशलेम के लोग तलवार के घाट उतार दिए जाएंगे। नबूकदनेस्सर कोई दया नहीं दिखायेगा। वह उन लोगों के लिए अफसोस नहीं करेगा।’

8 “यरूशलेम के लोगों से ये बातें भी कहो। यहोवा ये बातें कहता है, ‘समझ लो कि मैं तुम्हें जीने और मरने में से एक को चुनने दूँगा। 9 कोई भी व्यक्ति जो यरूशलेम में ठहरेगा, मरेगा। वह व्यक्ति तलवार, भूख या भयंकर बीमारी से मरेगा किन्तु जो व्यक्ति यरूशलेम के बाहर जायेगा और बाबुल की सेना को आत्म समर्पण करेगा, जीवित रहेगा। उस सेना ने नगर को घेर लिया है। अत: कोई व्यक्ति नगर में भोजन नहीं ला सकता। किन्तु जो कोई नगर को छोड़ देगा, वह अपने जीवन को बचा लेगा। 10 मैंने यरूशलेम नगर पर विपत्ति ढाने का निश्चय कर लिया है। मैं नगर की सहायता नहीं करुँगा। यह सन्देश यहोवा का है। मैं यरूशलेम के नगर को बाबुल के राजा को दूँगा। वह इसे आग से जलायेगा।’”

11 “यहूदा के राज परिवार से यह कहो, ‘यहोवा के सन्देश को सुनो। 12 दाऊद के परिवार यहोवा यह कहता है:

“‘तुम्हें प्रतिदिन लोगों का निष्पक्ष न्याय करना चाहिए।
अपराधियों से उनके शिकारों की रक्षा करो।
यदि तुम ऐसा नहीं करते तो मैं बहुत क्रोधित होऊँगा।
मेरा क्रोध ऐसे आग की तरह होगा जिसे कोई व्यक्ति बुझा नहीं सकता।
यह घटित होगा क्योंकि तुमने बुरे काम किये हैं।’

13 “यरूशलेम, मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ।
तुम पर्वत की चोटी पर बैठी हो।
तुम इस घाटी के ऊपर एक रानी की तरह बैठी हो।
यरूशलेम के लोगों, तुम कहते हो,
‘कोई भी हम पर आक्रमण नहीं कर सकता।
कोई भी हमारे दृढ़ नगर में घुस नहीं सकता।’”
किन्तु यहोवा के यहाँ से उस सन्देश को सुनो:

14 “तुम वह दण्ड पाओगे जिसके पात्र तुम हो।
मैं तुम्हारे वनों में आग लगाऊँगा।
वह आग तुम्हारे चारों ओर की हर एक चीज़ जला देगी।”

बुरे राजाओं के विरुद्ध न्याय

22यहोवा ने कहा, “यिर्मयाह राजा के महल को जाओ। यहूदा के राजा के पास जाओ और वहाँ उसे इस सन्देश का उपदेश दो। 2 ‘यहूदा के राजा, यहोवा के यहाँ से सन्देश सुनो। तुम दाऊद के सिंहासन से शासन करते हो, अत: सुनो। राजा, तुम्हें और तुम्हारे अधिकारियों को यह अच्छी तरह सुनना चाहिये। यरूशलेम के द्वारों से आने वाले सभी लोगों को यहोवा का सन्देश को सुनना चाहिये। 3 यहोवा कहता है: वे काम करो जो अच्छे और न्यायपूर्ण हों। उस व्यक्ति की रक्षा जिसकी चोरी की गई हो उस व्यक्ति से करो जिसने चोरी की है। विदेशी अनाथ बच्चों और विधवाओं को मत मारो। 4 यदि तुम इन आदेशों का पालन करते हो तो जो घटित होगा वह यह है: जो राजा दाऊद के सिंहासन पर बैठेंगे, वे यरूशलेम नगर में नगर द्वारों से आते रहेंगे। वे राजा नगर द्वारों से अपने अधिकारियों सहित आएंगे। वे राजा, उनके उत्तराधिकारी और उनके लोग रथों और घोड़ों पर चढ़कर आएंगे। 5 किन्तु यदि तुम इन आदेशों का पालन नहीं करोगे तो यहोवा यह कहता है: मैं अर्थात् यहोवा प्रतिज्ञा करता हूँ कि राजा का महल ध्वस्त कर दिया जायेगा यह चट्टानों का एक ढेर रह जायेगा।’”

6 यहोवा उन महलों के बारे में यह कहता है जिनमें यहूदा के राजा रहते हैं:

“गिलाद वन की तरह यह महल ऊँचा है।
यह लबानोन पर्वत के समान ऊँचा है।
किन्तु मैं इसे सचमुच मरुभूमि सा बनाऊँगा।
यह महल उस नगर की तरह सूना होगा जिसमें कोई व्यक्ति न रहता हो।
7 मैं लोगों को महल को नष्ट करने भेजूँगा।
हर एक व्यक्ति के पास वे औजार होंगे जिनसे वह इस महल को नष्ट करेगा।
वे लोग तुम्हारी देवदार की मजबूत और सुन्दर कड़ियों को काट डालेंगे।
वे लोग उन कड़ियों को आग में फेंक देंगे।”

8 “अनेक राष्ट्रों से लोग इस नगर से गुजरेंगे। वे एक दूसरे से पूछेंगे, ‘यहोवा ने यरूशलेम के साथ ऐसा भयंकर काम क्यों किया यरूशलेम कितना महान नगर था।’ 9 उस प्रश्न का उत्तर यह होगा, ‘परमेश्वर ने यरूशलेम को नष्ट किया, क्योंकि यहूदा के लोगों ने यहोवा अपने परमेश्वर के साथ की गई वाचा को मानना छोड़ दिया। उन लोगों ने अन्य देवताओं की पूजा और सेवाएँ की।’”

राजा यहोशाहाज (शल्लूम) के विरुद्ध न्याय

10 उस राजा के लिये मत रोओ जो मर गया।
उसके लिये मत रोओ।
किन्तु उस राजा के लिये फूट—फूट कर रोओ
जो यहाँ से जा रहा है।
उसके लिये रोओ, क्योंकि वह फिर कभी वापस नहीं आएगा।
शल्लूम (यहोशाहाज) अपनी जन्मभूमि को फिर कभी नहीं देखेगा।

11 यहोवा योशिय्याह के पुत्र शल्लूम (यहोशाहाज) के बारे में जो कहता है, वह यह है (शल्लूम अपने पिता योशिय्याह की मृत्यु के बाद यहूदा का राजा हुआ।) “शल्लूम (यहोशाहाज) यरूशलेम से दूर चला गया। वह फिर यरूशलेम को वापस नहीं लौटेगा। 12 शल्लूम (यहोशाहाज) वहीं मरेगा जहाँ उसे मिस्री ले जाएँगे। वह इस भूमि को फिर नहीं देखेगा।”

राजा यहोयाकीम के विरुद्ध न्याय

13 राजा यहोयाकीम के लिये यह बहुत बुरा होगा।
वह बुरे कर्म कर रहा है अत: वह अपना महल बना लेगा।
वह लोगों को ठग रहा है, अत: वह ऊपर कमरे बना सकता है।
वह अपने लोगों से बेगार ले रहा है।
वह उनके काम की मजदूरी नहीं दे रहा है।

14 यहोयाकीम कहता है, “मैं अपने लिये एक विशाल महल बनाऊँगा।
मैं दूसरी मंजिल पर विशाल कमरे बनाऊँगा।”
अत: वह विशाल खिड़कियों वाला महल बना रहा है।
वह देवदार के फलकों को दीवारों पर मढ़ रहा है और इन पर लाल रंग चढ़ा रहा है।

15 “यहोयाकीम, अपने घर में देवदार की अधिक लकड़ी का उपयोग तुम्हें महान सम्राट नहीं बनाता।
तुम्हारा पिता योशिय्याह भोजन पान पाकर ही सन्तुष्ट था।
उसने वह किया जो ठीक और न्यायपूर्ण था।
योशिय्याह ने वह किया,
अत: उसके लिये सब कुछ अच्छा हुआ।
16 योशिय्याह ने दीन—हीन लोगों को सहायता दी।
योशिय्याह ने वह किया, अत: उसके लिये सब कुछ अच्छा हुआ।
यहोयाकीम “परमेश्वर को जानने” का अर्थ क्या होता है मुझको जानने का अर्थ,
ठीक रहना और न्यायपूर्ण होना है।”
यह सन्देश यहोवा का है।

17 “यहोयाकीम, तुम्हारी आँखें केवल तुम्हारे अपने लाभ को देखती हैं,
तुम सदैव अपने लिये अधिक से अधिक पाने की सोचते हो।
तुम निरपराध लोगों को मारने के लिये इच्छुक रहते हो।
तुम अन्य लोगों की चीज़ों की चोरी करने के इच्छुक रहते हो।”
18 अत: योशिय्याह के पुत्र यहोयाकीम से यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“यहूदा के लोग यहोयाकीम के लिये रोएंगे नहीं।
वे आपस में यह नहीं कहेंगे,
‘हे मेरे भाई, मैं यहोयाकीम के बारे में इतना दु:खी हूँ।
हे मेरी बहन, मैं यहोयाकीम के लिए रोएंगे नहीं।’
वे उसके बारे में नहीं कहेंगे,
‘हे स्वामी, हम इतने दु:खी हैं।
हे राजा, हम इतने दु:खी हैं।’
19 यरूशलेम के लोग यहोयाकीम को एक मरे गधे की तरह दफनायेंगे।
वे उसके शव को केवल दूर घसीट ले जाएंगे और वे उसके शव को यरूशलेम के द्वार के बाहर फेंक देंगे।

20 “यहूदा, लबानोन के पर्वतों पर जाओ और चिल्लाओ।
बाशान के पर्वतों में अपना रोना सुनाई पड़ने दो।
अबारीम के पर्वतों में जाकर चिल्लाओ।
क्यों क्योंकि तुम्हारे सभी “प्रेमी” नष्ट कर दिये जाएंगे।

21 “हे यहूदा, तुमने अपने को सुरक्षित समझा,
किन्तु मैंने तुम्हें चेतावनी दी।
मैंने तुम्हें चेतावनी दी,
परन्तु तुमने सुनने से इन्कार किया
तुमने यह तब से किया जब तुम युवती थी
और यहूदा जब से तुम युवती थी,
तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया।
22 हे यहूदा, मेरा दण्ड आँधी की तरह आएगा
और यह तुम्हारे सभी गडेरियों (प्रमुखों) को उड़ा ले जाएगा।
तुमने सोचा था कि अन्य कुछ राष्ट्र तुम्हारी सहायता करेंगे।
किन्तु वे राष्ट्र भी पराजित होंगे।
तब तुम सचमुच निराश होओगी।
तुमने जो सब बुरे काम किये, उनके लिये लज्जित होओगी।

23 “हे राजा, तुम देवदार से बने अपने महल में ऊँचे पर्वत पर रहते हो।
तुम उसी तरह रह रहे हो, जैसा कि पहले लबानोन में रहे हो, जहाँ से यह लकड़ी लाई गई हैं।
तुम समझते हो कि उँचे पर्वत पर अपने विशाल महल में तुम सुरक्षित हो।
किन्तु तुम सचमुच तब कराह उठोगे जब तुम्हें तुम्हारा दण्ड मिलेगा।
तुम प्रसव करती स्त्री की तरह पीड़ित होगे।”

राजा कोन्याह के विरुद्ध न्याय

24 यह सन्देश यहोवा का है, “मैं निश्चय ही शाश्वत हूँ अत: यहोयाकीम के पुत्र यहूदा के राजा कोन्याह मैं तुम्हारे साथ ऐसा करुँगा। चाहे तुम मेरे दायें हाथ की राजमुद्रा ही क्यों न हो, मैं तुम्हें तब भी बाहर फेकूँगा। 25 कोन्याह मैं तुम्हें बाबुल और कसदियों के राजा नबूकदनेस्सर को दूँगा। वे ही लोग ऐसे हैं जिनसे तुम डरते हो। वे लोग तुम्हें मार डालना चाहते हैं। 26 मैं तुम्हें और तुम्हारी माँ को ऐसे देश में फेकूँगा कि जहाँ तुम दोनों में से कोई भी पैदा नहीं हुआ था। तुम और तुम्हारी माँ दोनों उसी देश में मरेंगे। 27 कोन्याह तुम अपने देश में लौटना चाहोगे, किन्तु तुम्हें कभी भी लौटने नहीं दिया जाएगा।”

28 कोन्याह उस टूटे बर्तन की तरह है जिसे किसी ने फेंक दिया हो।
वह ऐसे बर्तन की तरह है जिसे कोई व्यक्ति नहीं चाहता।
कोन्याह और उसकी सन्तानें क्यों बाहर फेंक दी जायेगी?
वे किसी विदेश में क्यों फेंकें जाएंगे?
29 भूमि, भूमि, यहूदा की भूमि!
यहोवा का सन्देश सुनो!
30 यहोवा कहता है, “कोन्याह के बारे में यह लिख लो:
‘वह ऐसा व्यक्ति है जिसके भविष्य में अब बच्चे नहीं होंगे।
कोन्याह अपने जीवन में सफल नहीं होगा।
उसकी सन्तान में से कोई भी
यहूदा पर शासन नहीं करेगा।’”

23“यहूदा के गडरियों (प्रमुखों) के लिये यह बहुत बुरा होगा। वे गडेरिये भेड़ों को नष्ट कर रहें हैं। वे भेड़ों को मेरी चरागाह से चारों ओर भगा रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है।

2 वे गडेरिये (प्रमुख) मेरे लोगों के लिये उत्तरदायी हैं, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा उन गडेरियों से यह कहता है, “गडेरियों (प्रमुखों), तुमने मेरी भेड़ों को चारों ओर भगाया है। तुमने उन्हें चले जाने को विवश किया है। तुमने उनकी देखभाल नहीं रखी है। किन्तु मैं तुम लोगों को देखूँगा, मैं तुम्हें उन बुरे कामों के लिये दण्ड दूँगा जो तुमने किये हैं।” यह सन्देश यहोवा के यहाँ से है। 3 “मैंने अपनी भेड़ों (लोगों) को विभिन्न देशों में भेजा। किन्तु मैं अपनी उन भेड़ों (लोगों) को एक साथ इकट्ठी करुँगा जो बची रह गई हैं और मैं उन्हें उनकी चरागाह (देश) में लाऊँगा। जब मेरी भेड़ें (लोग) अपनी चरागाह (देश) में वापस आएंगी तो उनके बहुत बच्चे होंगे और उनकी संख्या बढ़ जाएगी। 4 मैं अपनी भेड़ों के लिये नये गडेरिये (प्रमुख) रखूँगा वे गडेरिये (प्रमुख) मेरी भेड़ों (लोगों) की देखभाल करेंगे और मेरी भेड़ें (लोग) भयभीत या डरेंगी नहीं। मेरी भेड़ों (लोगों) में से कोई खोएगी नहीं।” यह सन्देश यहोवा का है।

सच्चा “अंकुर”

5 यह सन्देश यहोवा का है:
“समय आ रहा है
जब मैं दाऊद के कुल में एक सच्चा ‘अंकुर’ उगाऊँगा।
वह ऐसा राजा होगा जो बुद्धिमत्ता से शासन करेगा
और वह वही करेगा जो देश में उचित और न्यायपूर्ण होगा।
6 उस सच्चे अंकुर के समय में
यहूदा के लोग सुरक्षित रहेंगे और इस्राएल सुरक्षित रहेगा।
उसका नाम यह होगा
यहोवा हमारी सच्चाई हैं।

7 यह सन्देश यहोवा का है, “अत: समय आ रहा है, “जब लोग भविष्य में यहोवा के नाम पर पुरानी प्रतिज्ञा फिर नहीं करेंगे। पुरानी प्रतिज्ञा यह है: ‘यहोवा जीवित है, यहोवा ही वह है जो इस्राएल के लोगों को मिस्र देश से बाहर लाया था।’ 8 किन्तु अब लोग कुछ नया कहेंगे, ‘यहोवा जीवित है, यहोवा ही वह है जो इस्राएल के लोगों को उत्तर के देश से बाहर लाया। वह उन्हें उन सभी देशों से बाहर लाया जिनमें उसने उन्हें भेजा था।’ तब इस्राएल के लोग अपने देश में रहेंगे।”

समीक्षा

यीशु की मित्रता में आनंद

जैसे ही हम यीशु के नजदीक बने रहते हैं, उनका आनंद हममें बहता है और हमारा आनंद पूरा हो जाता है। जैसा कि गॉर्डन फी लिखते हैं, ‘आनंद कम नहीं होता, बिना रूके - या कम से कम होना चाहिए –मसीह यीशु में अगल ठहराये जाने का चिह्न। इस लेखांश में यिर्मयाह जिस ‘सत्यनिष्ठ शाखा’ के विषय में बात करते हैं, वह पूर्ण आनंद का स्त्रोत होगा।

यिर्मयाह के द्वारा परमेश्वर अपने लोगों से कहते हैं, ‘ देखो, मैं तुम्हारे सामने जीवन का मार्ग और मृत्यु का मार्ग भी बताता हूँ।’ (21:8)।

वह उन्हें ‘न्याय चुकाने’ के लिए कहते हैं (व.12)। वह कहते हैं, ‘ न्याय और सत्यनिष्ठा के काम करो; और लुटे हुए को अन्धेर और विधवा पर अन्धेर व उपद्रव मत करो, न इस स्थान में निर्दोषों का लहू बहाओ’ (22:3, एम.एस.जी)।

राजाओं ने योशिय्याह की तरह काम करना चाहिए थाः’ वह इस कारण सुख से रहता था क्योंकि वह दीन और दरिद्र लोगों का न्याय चुकाता था। क्या यही मेरा ज्ञान रखना नहीं है? यहोवा की यह वाणी है’ (व.16)।

यहाँ पर हम तब और अब, दोनों समय में परमेश्वर की चिंता को देखते हैं। वह न्याय के विषय में चिंतित हैं; गरीब और बेघर; विधवा और अनाथ; अन्याय के शिकार के विषय में। हमारे समाज में हम पीड़ीतों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, इस बात से परमेश्वर को अंतर पड़ता है।

इन क्षेत्रों में असफल होने के कारण परमेश्वर के लोग उनके न्याय के अंतर्गत आ चुके थे। वे एक ‘बुरी शासन प्रणाली’ बन गए थे (21:14, एम.एस.जी)। वे निर्वासन में जाने वाले थे। फिर भी, बरबादी और निर्वासन की इन भविष्यवाणीयों के बीच में, वहाँ पर आशा की एक किरण थी।

‘यहोवा की यह वाणी है : देख ऐसे दिन आते हैं जब मैं दाऊद के कुल में एक सत्यनिष्ठ अंकुर उगाउँगा, और वह राजा बनकर बुध्दि से राज्य करेगा, और अपने देश में न्याय और सत्यनिष्ठा से प्रभुता करेगा। उसके दिनों में यहूदी लोग बचे रहेंगे, और इस्राएली लोग निडर बसे रहेंगे। और यहोवा उनका नाम ‘यहोवा हमारी सत्यनिष्ठा’ रखेगा। (23:5-6)।

नये नियम के दृष्टिकोण से, हम देखते हैं कि कैसे यीशु ने ‘सत्यनिष्ठा की शाखा’ के विषय में इस भविष्यवाणी को पूरा किया (23:5, यशायाह 11, यहेजकेल 17 और यिर्मयाह 33:15 देखें)। वह दाऊद के वंश का था, यहूदियों का राजा, एक उद्धारकर्ता, प्रभु हमारी सत्यनिष्ठा।

यीशु में हम संपूर्ण आनंद को पाते हैं। वह ‘सत्यनिष्ठा की शाखा’ हैं (व.5) जहाँ से हर दूसरी शाखा निकलती है। यहेजकेल 17 सत्यनिष्ठ शाखा को एक दाखलता से जोड़ता है। यीशु ने कहा, ‘मैं सच्ची दाखलता हूँ और मेरा पिता माली है’ (यूहन्ना 15:1), ‘ मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।’ (व.11)।

प्रार्थना

परमेश्वर, उस आनंद के लिए आपका धन्यवाद जो यीशु के नजदीक रहने से आता है। हर दिन मेरी सहायता कीजिए कि ‘सत्यनिष्ठ डाली’ के पास रहूँ, ताकि यीशु का आनंद मुझमें हो और मेरा आनंद पूरा हो जाएँ।

पिप्पा भी कहते है

भजनसंहिता 119:11

‘ मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुध्द पाप न करूँ।’

यह अद्भुत है जब सही वचन दिमाग में आता है एक विशेष स्थिति में। काश मैने बहुत से वचनो को सीखा होता जब मेरी याददाश्त अच्छी तरह से काम करती थी। अब मैं केवल नये वचन को तभी सीख सकती हूँ जब वे उन गीतों में आते हैं जिन्हें हम नियमित रूप से गाते हैं। अक्सर बच्चों के गीत सर्वश्रेष्ठ होते हैं!

दिन का वचन

1 थिस्सलुनिकियों 3:12

“और प्रभु ऐसा करे, कि जैसा हम तुम से प्रेम रखते हैं; वैसा ही तुम्हारा प्रेम भी आपस में, और सब मनुष्यों के साथ बढ़े, और उन्नति करता जाए।”

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संदर्भ

सी.एस. लेविस, आनंद के द्वारा आश्चर्यचकित, (विलियम कॉलिन, 2012)

गॉर्डन फि, फिलिप्पियों के लिए पौलुस का पत्र द न्यु इंटरनैशनल कमंट्री ऑन द न्यु टेस्टामेंट (डब्लुएम.बी. एडमन्स पब्लिशींग क.1995) पी.404

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

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