दिन 277

धन्यवादिता का व्यवहार

बुद्धि भजन संहिता 116:12-19
नए करार कुलुस्सियों 1:1-23
जूना करार यिर्मयाह 7:30-9:16

परिचय

जिन स्मिथ ने मुझे अपनी कहानी बतायी। वह साठ वर्ष की थी। वह वॉल्स में केब्रेन से आयी थी। वह सोलह वर्षों से अंधी थी। उनके पास एक सफेद छड़ी, और टियाना नाम की मार्गदर्शन करने वाली कुत्ती थी। एक संक्रमण ने उनकी आँखो के द्रष्टिपटल और प्रतिबिंब को खराब कर दिया था – उन्हें बदला नहीं जा सकता था। वह नित्य दर्द में जी रही थी।

जिन एक स्थानीय अल्फा शिक्षा में गई। पवित्र आत्मा के कार्य पर ध्यान देने के लिए उन्होंने एक दिन निकाला। इस समय, दर्द चला गया। अगले रविवार वह परमेश्वर का धन्यवाद देने के लिए चर्च में गई। सेवक ने तेल से उन्हें अभिषिक्त किया। जैसे ही उन्होंने तेल पोछा, वह कम्युनियन की मेज को देख सकती थी। परमेश्वर ने चमत्कारी रूप से जिन को चंगा किया था।

सोलह साल से उन्होंने अपने पति को नहीं देखा था। वह आश्चर्य करने लगी कि उनकी दाढ़ी कितनी सफेद हो गई थी! जिन ने अपनी बहू को अब तक नहीं देखा था। साढ़े छ वर्ष का उनका पोता जमे हुए पानी से बचने में उनकी मदद करता था ताकि उनके पैर गीले न हो जाएँ।

उसने उनसे कहा, ‘दादी यह किसने किया?’

उन्होने जवाब दिया, ‘यीशु ने मुझे बेहतर बनाया है।’

‘मैं आशा करता हूँ कि आपने धन्यवाद कहा, दादी।’

‘मैं हमेशा धन्यवाद कहूंगी, ‘ उन्होंने जवाब दिया।

कल हमने पौलुस के प्रोत्साहन को पढ़ाः’किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ’ (फिलिप्पियों 4:6)। आज हम उन्हें उनके निर्देश को काम पर रखता हुआ देखते हैं। जिन की तरह, पौलुस भी नियमित रूप से परमेश्वर को धन्यवाद देते थे। उनके पास धन्यवादिता का एक व्यवहार था।

स्तुति है, उस चीज के लिए परमेश्वर को महिमा देना जोकि वह हैं। धन्यवादिता है परमेश्वर को महिमा देना, उस चीज के लिए जो उन्होंने हमारे लिए की हैं। यह वह लेंस है जिसके द्वारा हमें अपने संपूर्ण जीवन को देखना है। आखिरकार, जैसा कि हम आज के लेखांश में देखते हैं, विश्व को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैः जो लोग परमेश्वर को पहचानते और उन्हें धन्यवाद देते हैं, और जो ऐसा नहीं करते हैं।

आप कैसे एक धन्यवादिता का व्यवहार विकसित करते हैं?

बुद्धि

भजन संहिता 116:12-19

12 मैं भला यहोवा को क्या अर्पित कर सकता हूँ
 मेरे पास जो कुछ है वह सब यहोवा का दिया है!

13 मैं उसे पेय भेंट दूँगा
 क्योंकि उसने मुझे बचाया है।
 मैं यहोवा के नाम को पुकारूँगा।
14 जो कुछ मन्नतें मैंने मागी हैं वे सभी मैं यहोवा को अर्पित करूँगा,
 और उसके सभी भक्तों के सामने अब जाऊँगा।

15 किसी एक की भी मृत्यु जो यहोवा का अनुयायी है, यहोवा के लिये अति महत्वपूर्ण है।
 हे यहोवा, मैं तो तेरा एक सेवक हूँ!
16 मैं तेरा सेवक हूँ।
 मैं तेरी किसी एक दासी का सन्तान हूँ।
 यहोवा, तूने ही मुझको मेरे बंधनों से मुक्त किया!

17 मैं तुझको धन्यवाद बलि अर्पित करूँगा।
 मैं यहोवा के नाम को पुकारूँगा।
18 मैं यहोवा को जो कुछ भी मन्नतें मानी है वे सभी अर्पित करूँगा,
 और उसके सभी भक्तों के सामने अब जाऊँगा।
19 मैं मन्दिर में जाऊँगा
 जो यरूशलेम में है।

 यहोवा के गुण गाओ!

समीक्षा

सबके सामने धन्यवादिता का एक बलिदान चढ़ाओ

अपने घर में निजी रूप से परमेश्वर का धन्यवाद देना काफी नहीं है। एक साथ इकट्ठा होकर और लोगों के सामने परमेश्वर का धन्यवाद देने के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बात है ‘उनके सभी लोगों की उपस्थिति में’ (व.14)। भजनसंहिता के लेखक शब्दाडंबरयुक्त प्रश्न पूछते हैं, ‘ यहोवा ने मेरे लिए जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूँ?’ (व.12, एम.एस.जी)।

परमेश्वर ने उनके प्रति बहुत भलाई दिखाई। वह आभारी हैं कि उनका भविष्य सुरक्षित है, कि ‘ यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उनकी दृष्टि में अनमोल है’ (व.15, एम.एस.जी)। परमेश्वर ने जो कुछ किया था, उसके लिए वह उनका धन्यवाद देते हैं, घोषणा करते हुए कि ‘ तू ने मेरे बन्धन खोल दिए हैं’ (व.16)।

कभी कभी धन्यवाद देना सरल बात है। कुछ समय यह एक बलिदान स्वरूप है (व.17)। अविला के सेंट जॉन (1500-1569) ने लिखा, ‘जब चीजे हमारे साथ गलत होती है तब धन्यवादिता का एक कार्य, उस हजार धन्यवादिता के बराबर है जब चीजे हमारे पक्ष में होती हैं।’

भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, ‘ मैं तुझ को धन्यवादबलि चढ़ाउँगा, और यहोवा के लिये अपनी मन्नतें, प्रकट रुप में उनकी सारी प्रजा के सामने, यहोवा के भवन के आँगनों में, हे यरूशलेम, तेरे भीतर पूरी करूँगा। याह की स्तुति करो’ (वव.17-19, एम.एस.जी)। ‘हालेलुयाह’ कुछ इब्रानी शब्द में से एक है जो अंग्रेजी भाषा में आ चुके हैं - यह परमेश्वर की स्तुति करने के लिए एक पुकार है।

वह अपनी वेदना को याद करते हैं (वव.1-4)। वह परमेश्वर की दया को याद करते हैं (वव.5-11) और वह महान आभार व्यक्त करते हैं (वव.12-19)।

प्रार्थना

परमेश्वर, कैसे मैं आपका धन्यवाद दूं? आपका धन्यवाद कि आपने मुझे बचाया। मेरे प्रति आपकी सभी भलाई के लिए, मैं आपका धन्यवाद दूंगा, ‘परमेश्वर के भवन में’ (व.19)।
नए करार

कुलुस्सियों 1:1-23

1पौलुस जो परमेश्वर की इच्छानुसार यीशु मसीह का प्रेरित है उसकी, तथा हमारे भाई तिमुथियुस की ओर से।

2 मसीह में स्थित कुलुस्से में रहने वाले विश्वासी भाइयों और सन्तों के नाम:

हमारे परम पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शांति मिले।

3 जब हम तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं, सदा ही अपने प्रभु यीशु मसीह के परम पिता परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। 4 क्योंकि हमने मसीह यीशु में तुम्हारे विश्वास तथा सभी संत जनों के प्रति तुम्हारे प्रेम के बारे में सुना है। 5 यह उस आशा के कारण हुआ है जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में सुरक्षित है और जिस के विषय में तुम पहले ही सच्चे संदेश अर्थात् सुसमाचार के द्वारा सुन चुके हो। 6 सुसमाचार समूचे संसार में सफलता पा रहा है। यह वैसे ही सफल हो रहा है जैसे तुम्हारे बीच यह उस समय से ही सफल होने लगा था जब तुमने परमेश्वर के अनुग्रह के बारे में सुना था और सचमुच उसे समझा था। 7 हमारे प्रिय साथी दास इपफ्रास से, जो हमारे लिये मसीह का विश्वासी सेवक है, तुमने सुसमाचार की शिक्षा पायी थी। 8 आत्मा के द्वारा उत्तेजित तुम्हारे प्रेम के विषय में उसने भी हमें बताया है।

9 इसलिए जिस दिन से हमने इसके बारे में सुना है, हमने भी तुम्हारे लिये प्रार्थना करना और यह विनती करना नहीं छोड़ा है:

प्रभु का ज्ञान सब प्रकार की समझ-बूझ जो आत्मा देता, तुम्हे प्राप्त हो। और तुम बुद्धि भी प्राप्त करो, 10 ताकि वैसे जी सको, जैसे प्रभु को साजे। हर प्रकार से तुम प्रभु को सदा प्रसन्न करो। तुम्हारे सब सत्कर्म सतत सफलता पावें, तुम्हारे जीवन से सत्कर्मो के फल लगें तुम प्रभु परमेश्वर के ज्ञान में निरन्तर बढ़ते रहो। 11 वह तुम्हें अपनी महिमापूर्ण शक्ति से सुदृढ़ बनाता जाये ताकि विपत्ति के काल खुशी से महाधैर्य से तुम सब सह लो।

12 उस परम पिता का धन्यवाद करो, जिसने तुम्हें इस योग्य बनाया कि परमेश्वर के उन संत जनों के साथ जो प्रकाश में जीवन जीते हैं, तुम उत्तराधिकार पाने में सहभागी बन सके। 13 परमेश्वर ने अन्धकार की शक्ति से हमारा उद्धार किया और अपने प्रिय पुत्र के राज्य में हमारा प्रवेश कराया। 14 उस पुत्र द्वारा ही हमें छुटकारा मिला है यानी हमें मिली है हमारे पापों की क्षमा।

मसीह के दर्शन में, परमेश्वर के दर्शन

15 वह अदृश्य परमेश्वर का
दृश्य रूप है।
वह सारी सृष्टि का सिरमौर है।
16 क्योंकि जो कुछ स्वर्ग में है और धरती पर है,
उसी की शक्ति से उत्पन्न हुआ है।
कुछ भी चाहे दृश्यमान हो और चाहे अदृश्य, चाहे सिंहासन हो चाहे राज्य, चाहे कोई शासक हो और चाहे अधिकारी,
सब कुछ उसी के द्वारा रचा गया है और उसी के लिए रचा गया है।

17 सबसे पहले उसी का अस्तित्व था,
उसी की शक्ति से सब वस्तुएँ बनी रहती हैं।
18 इस देह, अर्थात् कलीसिया का सिर वही है।
वही आदि है और मरे हुओं को
फिर से जी उठाने का सर्वोच्च अधिकारी भी वही है ताकि
हर बात में पहला स्थान उसी को मिले।

19 क्योंकि अपनी समग्रता के साथ परमेश्वर ने उसी में वास करना चाहा।
20 उसी के द्वारा समूचे ब्रह्माण्ड को परमेश्वर ने अपने से पुनः संयुक्त करना चाहा उन सभी को
जो धरती के हैं और स्वर्ग के हैं।
उसी लहू के द्वारा परमेश्वर ने मिलाप कराया जिसे मसीह ने क्रूस पर बहाया था।

21 एक समय था जब तुम अपने विचारों और बुरे कामों के कारण परमेश्वर के लिये अनजाने और उसके विरोधी थे। 22 किन्तु अब जब मसीह अपनी भौतिक देह में था, तब मसीह की मृत्यु के द्वारा परमेश्वर ने तुम्हें स्वयं अपने आप से ले लिया, ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र, निश्कलंक और निर्दोष बना कर प्रस्तुत किया जाये। 23 यह तभी हो सकता है जब तुम अपने विश्वास में स्थिरता के साथ अटल बने रहो और सुसमाचार के द्वारा दी गयी उस आशा का परित्याग न करो, जिसे तुमने सुना है। इस आकाश के नीचे हर किसी प्राणी को उसका उपदेश दिया गया है, और मैं पौलुस उसी का सेवक बना हूँ।

समीक्षा

निरंतर परमेश्वर को धन्यवाद दीजिए

बहुत से लोग, यहाँ तक कि आज लौकिक समाज में, मानेंगे कि यीशु एक महान ऐतिहासिक मनुष्य थे। वे शायद उन्हें मूसा, बुद्ध, सोक्रेत और दूसरे महान धार्मिक लीडर्स के साथ गिने।

लेकिन क्या यीशु विश्व का अद्वितीय और यूनिवर्सल उद्धारकर्ता हैं? पहली शताब्दी में यह एक मुद्दा था, जितना कि यह अभी इक्कीसवी शताब्दी में मुद्दा का विषय है। कुलुस्सियों में कुछ बाहरी ताकत को यीशु के समान होने का दावा कर रहे थे।

इस पत्र में, पौलुस महान दीनता और सज्जनता के साथ, घोषणा करते हैं कि यीशु विश्व के अद्वितीय और यूनिवर्सल उद्धारकर्ता हैं। यह परमेश्वर और ‘हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता हैं’ (व.3) जो हमारी सारी स्तुति, आराधना और धन्यवादिता के योग्य हैं।

जैसे ही वह कुलुस्सियों के लिए प्रार्थना करते हैं, वह उनके विश्वास और प्रेम के लिए परमेश्वर का धन्यवाद देते हैं जो स्वर्ग में रखी हुई उनकी आशा से उत्पन्न हो रहा है (व.5)।

वह प्रार्थना करते हैं कि वह बदले में परमेश्वर का धन्यवाद दें। वव.9-12 में वह उन तरीकों को बताते हैं जिसमें वह प्रार्थना करते हैं कि उनका विश्वास विकसित हो जाएँ - ‘आत्मिक बुद्धि और समझ’, ‘फलदायीपन और ‘परमेश्वर का ज्ञान, ‘‘सहनशीलता’ और ‘धीरज’ को माँगते हुए। सूची गोलाकार है जैसे ही हर गुण दूसरे में जा बैठता है, इस बात के साथ यह समाप्त होता है कि ‘आनंद के साथ पिता का धन्यवाद दो’ (व.12)।

पौलुस प्रार्थना कर रहे हैं कि वे पिता का धन्यवाद दें कि उन्हें ‘अंधकार के राज्य से’ निकालकर प्रकाश के राज्य में ला दिया है – उनके छुटकारे के लिए, पापों की क्षमा के लिए (वव.13-14):’उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया, जिस में हमें छुटकारा अर्थात् पापों की क्षमा प्राप्त होती है’ (वव.13-14, एम.एस.जी)।

आपको धन्यवाद देना है ‘अदृश्य परमेश्वर के स्वरूप का’ (व.15) – ‘ वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है।’ (व.15, एम.एस.जी)। यीशु के द्वारा सारी चीजों का निर्माण हुआ। हर वस्तु यीशु के द्वारा और यीशु के लिए सृजी गई। ‘ सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसकी के लिये सृजी गई हैं’ (व.16, एम.एस.जी)। यीशु चर्च का सिर हैं (व.18)। परमेश्वर की सारी परिपूर्णता उनमें निवास करती है (व.19)।

यीशु ने ‘ उस के क्रूस पर बहे हुए लहू के द्वारा परमेश्वर के साथ मेलमिलाप कर लिया’ (व.20)। उन्होंने परमेश्वर के साथ आपका मेलमिलाप कर दिया है (व.22अ)। अब आप उनके सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष हैं (व.22ब)।

यह सुसमाचार है जिसके लिए हम धन्यवाद देते हैः’वही सब वस्तुओं में प्रथम हैं, और सब वस्तुएँ उन्हीं में स्थिर रहती हैं। वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर हैं; वही आदि हैं, और मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे...जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टी में किया गया’ (वव.17-23, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

प्रभु यीशु, मेरे लिए क्रूस पर बहाये गए आपके लहू के द्वारा परमेश्वर के साथ मुझे शांति में लाने और मेरा मेलमिलाप कराने के लिए आपका धन्यवाद। आपका धन्यवाद हमें यह महान सुविधा देने के लिए कि इस सुसमाचार का प्रचार करे और दूसरों को मुक्त होते हुए देखें।
जूना करार

यिर्मयाह 7:30-9:16

30 ये करो क्योंकि मैंने यहूदा के लोगों को पाप करते देखा है।” यह सन्देश यहोवा का है। “उन्होंने अपनी देवमूर्तियाँ स्थापित की हैं और मैं उन देवमूर्तियों से घृणा करता हूँ। उन्होंने देवमूर्तियों को उस मन्दिर में स्थापित किया है जो मेरे नाम से है। उन्होंने मेरे मन्दिर को “गन्दा” कर दिया है। 31 यहूदा के उन लोगों ने बेन—हिन्नोम घाटी में तोपेत के उच्च स्थान बनाए हैं। उन स्थानों पर लोग अपने पुत्र—पुत्रियों को मार डालते थे, वे उन्हें बलि के रूप में जला देते थे। यह ऐसा है जिसके लिये मैंने कभी आदेश नहीं दिया। इस प्रकार की बात कभी मेरे मन में आई ही नहीं! 32 अत: मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ। वे दिन आ रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है, “जब लोग इस स्थान को तोपेत या बेन—हिन्नोम की घाटी फिर नहीं कहेंगे। नहीं, वे इसे हत्याघाटी कहेंगे। वे इसे यह नाम इसलिये देंगे कि वे तोपेत में इतने व्यक्तियों को दफनायेंगे कि उनके लिये किसी अन्य को दफनाने की जगह नहीं बचेगी। 33 तब लोगों के शव जमीन के ऊपर पड़े रहेंगे और आकाश के पक्षियों के भोजन होंगे। उन लोगों के शरीर को जंगली जानवर खायेंगे। वहाँ उन पक्षियों और जानवरों को भगाने के लिये कोई व्यक्ति जीवित नहीं बचेगा। 34 मैं आनन्द और प्रसन्नता के कहकहों को यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों पर समाप्त कर दूँगा। यहूदा और यरूशलेम में दुल्हन और दुल्हे की हँसी—ठिठोली अब से आगे नहीं सुनाई पड़ेगी। पूरा प्रदेश सूनी मरुभूमि बन जाएगा।”

8यह सन्देश यहोवा का है: “उस समय लोग यहूदा के राजाओं और प्रमुख शासकों की हड्डियों को उनके कब्रों से निकाल लेंगे। वे याजकों और नबियों की हड्डियों को उनके कब्रों से ले लेंगे। वे यरूशलेम के सभी लोगों के कब्रों से हड्डियाँ निकाल लेंगे। 2 वे लोग उन हड्डियों को सूर्य, चन्द्र और तारों की पूजा के लिये नीचे जमीन पर फैलायेंगे। यरूशलेम के लोग सूर्य, चन्द्र और तारों की पूजा से प्रेम करते हैं। कोई भी व्यक्ति उन हड्डियाँ को इकट्ठा नहीं करेगा और न ही उन्हें फिर दफनायेगा। अत: उन लोगों की हड्डियाँ गोबर की तरह जमीन पर पड़ी रहेंगी।

3 “मैं यहूदा के लोगों को अपना घर और प्रदेश छोड़ने पर विवश करूँगा। लोग विदेशों में ले जाए जाएंगे। यहूदा के वे कुछ लोग जो युद्ध में नहीं मारे जा सके, चाहेंगे कि वे मार डाले गए होते।” यह सन्देश यहोवा का है।

पाप और दण्ड

4 यिर्मयाह, यहूदा के लोगों से यह कहो कि यहोवा यह सब कहता है,

“‘तुम यह जानते हो कि जो व्यक्ति गिरता है
वह फिर उठता है।
और यदि कोई व्यक्ति गलत राह पर चलता है
तो वह चारों ओर से घूम कर लौट आता है।
5 यहूदा के लोग गलत राह चले गए हैं।
किन्तु यरूशलेम के वे लोग गलत राह चलते ही क्यों जा रहे हैं
वे अपने झूठ में विश्वास रखते हैं।
वे मुड़ने तथा लौटने से इन्कार करते हैं।
6 मैंने उनको ध्यान से सुना है,
किन्तु वे वह नहीं कहते जो सत्य है।
लोग अपने पाप के लिये पछताते नहीं।
लोग उन बुरे कामों पर विचार नहीं करते जिन्हें उन्होंने किये हैं।
परत्येक अपने मार्ग पर वैसे ही चला जा रहा है।
वे युद्ध में दौड़ते हुए घोड़ों के समान हैं।
7 आकाश के पक्षी भी काम करने का ठीक समय जानते हैं।
सारस, कबूतर, खन्जन और मैना भी जानते हैं
कि कब उनको अपने नये घर में उड़ कर जाना है।
किन्तु मेरे लोग नहीं जानते कि
यहोवा उनसे क्या कराना चाहता है।

8 “‘तुम कहते रहते हो, “हमे यहोवा की शिक्षा मिली है।
अत: हम बुद्धिमान हैं!”
किन्तु यह सत्य नहीं! क्योंकि शास्त्रियों ने अपनी लेखनी से झूठ उगला है।
9 उन “चतुर लोगों” ने यहोवा की शिक्षा अनसुनी की है अत:
सचमुच वे वास्तव में बुद्धिमान लोग नहीं हैं।
वे “चतुर लोग” जाल में फँसाये गए।
वे काँप उठे और लज्जित हुए।
10 अत: मैं उनकी पत्नियों को अन्य लोगों को दूँगा।
मैं उनके खेत को नये मालिकों को दे दूँगा।
इस्राएल के सभी लोग अधिक से अधिक धन चाहते हैं।
छोटे से लेकर बड़े से बड़े सभी लोग उसी तरह के हैं।
सभी लोग नबी से लेकर याजक तक सब झूठ बोलते हैं।
11 नबी और याजक हमारे लोगों के घावों को भरने का प्रयत्न ऐसे करते हैं
मानों वे छोटे से घाव हों।
वे कहते हैं, “यह बिल्कुल ठीक है, यह बिल्कुल ठीक है।”
किन्तु यह बिल्कुल ठीक नहीं।
12 उन लोगों को अपने किये बुरे कामों के लिये लज्जित होना चाहिये।
किन्तु वे बिल्कुल लज्जित नहीं।
उन्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि उन्हें अपने पापों के लिये ग्लानि हो सके अत:
वे अन्य सभी के साथ दण्ड पायेंगे।
मैं उन्हें दण्ड दूँगा और जमीन पर फेंक दूँगा।’”
ये बातें यहोवा ने कहीं।
13 “‘मैं उनके फल और फसलें ले लूँगा जिससे उनके यहाँ कोई पकी फसल नहीं होगी।
अंगूर की बेलों में कोई अंगूर नहीं होंगे।
अंजीर के पेड़ों पर कोई अंजीर नहीं होगा।
यहाँ तक कि पत्तियाँ सूखेंगी और मर जाएंगी।
मैं उन चीज़ों को ले लूँगा जिन्हें मैंने उन्हें दे दी थी।’”

14 “‘हम यहाँ खाली क्यों बैठे हैं आओ, दृढ़ नगरों को भाग निकलो।
यदि हमारा परमेश्वर यहोवा हमें मारने ही जा रहा है, तो हम वहीं मरें।
हमने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है अत: परमेश्वर ने हमें पीने को जहरीला पानी दिया है।
15 हम शान्ति की आशा करते थे, किन्तु कुछ भी अच्छा न हो सका।
हम ऐसे समय की आशा करते हैं, जब वह क्षमा कर देगा किन्तु केवल विपत्ति ही आ पड़ी है।
16 दान के परिवार समूह के प्रदेश से
हम शत्रु के घोड़ों के नथनों के फड़फड़ाने की आवाज सुनते हैं,
उनकी टापों से पृथ्वी काँप उठी है,
वे प्रदेश और इसमें की सारी चीज़ों को नष्ट करने आए है।
वे नगर और इसके निवासी सभी लोगों को जो वहाँ रहते हैं,
नष्ट करने आए हैं।’”

17 “यहूदा के लोगों, मैं तुम्हें डसने को विषैले साँप भेज रहा हूँ।
उन साँपों को सम्मोहित नहीं किया जा सकता।
वे ही साँप तुम्हें डसेंगे।”
यह सन्देश यहोवा का है।

18 परमेश्वर, मैं बहुत दु:खी और भयभीत हूँ।
19 मेरे लोगों की सुन।
इस देश में वे चारों ओर सहायता के लिए पुकार रहे हैं।
वे कहते हैं, “क्या यहोवा अब भी सिय्योन में है?
क्या सिय्योन के राजा अब भी वहाँ है?”

किन्तु परमेश्वर कहता है,
“यहूदा के लोग, अपनी देव मूर्तियों की पूजा करके
मुझे क्रोधित क्यों करते हैं,
उन्होंने अपने व्यर्थ विदेशी देव मूर्तियों की पूजा की है।”
20 लोग कहते हैं,
“फसल काटने का समय गया।
बसन्त गया
और हम बचाये न जा सके।”

21 मेरे लोग बीमार है, अत: मैं बीमार हूँ।
मैं इन बीमार लोगों की चिन्ता में दुःखी और निराश हूँ।
22 निश्चय ही, गिलाद प्रदेश में कुछ दवा है।
निश्चय ही गिलाद प्रदेश में वैद्य है।
तो भी मेरे लोगों के घाव क्यों अच्छे नहीं होते?

9यदि मेरा सिर पानी से भरा होता,
और मेरी आँखें आँसू का झरना होतीं तो मैं अपने नष्ट किये गए
लोगों के लिए दिन रात रोता रहता।

2 यदि मुझे मरुभूमि में रहने का स्थान मिल गया होता
जहाँ किसी घर में यात्री रात बिताते, तो मैं अपने लोगों को छोड़ सकता था।
मैं उन लोगों से दूर चला जा सकता था।
क्यों क्योंकि वे सभी परमेश्वर के विश्वासघाती व व्यभिचारी हो गए हैं, वे सभी उसके विरुद्ध हो रहे हैं।

3 “वे लोग अपनी जीभ का उपयोग धनुष जैसा करते हैं,
उनके मुख से झूठ बाण के समान छूटते हैं।
पूरे देश में सत्य नहीं। झूठ प्रबल हो गया है, वे लोग एक पाप से दूसरे पाप करते जाते हैं।
वे मुझे नहीं जानते।” यहोवा ने ये बातें कहीं।

4 “अपने पड़ोसियों से सतर्क रहो, अपने निज भाइयों पर भी विश्वास न करो।
क्यों क्योंकि हर एक भाई ठग हो गया है।
हर पड़ोसी तुम्हारे पीठ पीछे बात करता है।
5 हर एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से झूठ बोलता है।
कोई व्यक्ति सत्य नहीं बोलता।
यहूदा के लोगों ने अपनी जीभ को झूठ बोलने की शिक्षा दी है।
उन्होंने तब तक पाप किये जब तक कि वे इतने थके कि लौट न सकें।
6 एक बुराई के बाद दूसरी बुराई आई।
झूठ के बाद झूठ आया।
लोगों ने मुझको जानने से इन्कार कर दिया।”
यहोवा ने ये बातें कहीं।

7 अत: सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है,
“मैं यहूदा के लोगों की परीक्षा वैसे ही करूँगा
जैसे कोई व्यक्ति आग में तपाकर किसी धातु की परीक्षा करता है।
मेरे पास अन्य विकल्प नहीं है।
मेरे लोगों ने पाप किये हैं।
8 यहूदा के लोगों की जीभ तेज बाणों की तरह हैं।
उनके मुँह से झूठ बरसता है।
हर एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से अच्छा बोलता है।
किन्तु वह छिपे अपने पड़ोसी पर आक्रमण करने की योजना बनाता है।
9 क्या मुझे यहूदा के लोगों को इन कामों के करने के लिये दण्ड नहीं देना चाहिए”
यह सन्देश यहोवा का है।
“तुम जानते हो कि मुझे इस प्रकार के लोगों को दण्ड देना चाहिए।
मैं उनको वह दण्ड दूँगा जिसके वे पात्र हैं।”
10 मैं (यिर्मयाह) पर्वतों के लिये फूट फूट कर रोऊँगा।
मैं खाली खेतों के लिये शोकगीत गाऊँगा।
क्यों क्योंकि जीवित वस्तुएँ छीन ली गई।
कोई व्यक्ति वहाँ यात्रा नहीं करता।
उन स्थान पर पशु ध्वनि नहीं सुनाई पड़ सकती।
पक्षी उड़ गए हैं और जानवर चले गए हैं।
11 “मैं (यहोवा) यरूशलेम नगर को कूड़े का ढेर बना दूँगा।
यह गीदड़ों की माँदे बनेगा।
मैं यहूदा देश के नगरों को नष्ट करूँगा अत: वहाँ कोई भी नहीं रहेगा।”

12 क्या कोई व्यक्ति ऐसा बुद्धिमान है जो इन बातों को समझ सके क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे यहोवा से शिक्षा मिली है क्या कोई यहोवा के सन्देश की व्य़ाख्य़ा कर सकता है देश क्यों नष्ट हुआ यह एक सूनी मरुभूमि की तरह क्यों कर दिया गया जहाँ कोई भी नहीं जाता 13 यहोवा ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया। उसने कहा, “यह इसलिये हुआ कि यहूदा के लोगों ने मेरी शिक्षा पर चलना छोड़ दिया। मैंने उन्हें अपनी शिक्षा दी, किन्तु उन्होंने मेरी सुनने से इन्कार किया। उन्होंने मेरे उपदेशों का अनुसरण नहीं किया। 14 यहूदा के लोग अपनी राह चले, वे हठी रहे। उन्होंने असत्य देवता बाल का अनुसरण किया। उनके पूर्वजों ने उन्हें असत्य देवताओं के अनुसरण करने की शिक्षा दी।”

15 अत: इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “मैं शीघ्र ही यहूदा के लोगों को कड़वा फल चखाऊँगा। मैं उन्हें जहरीला पानी पिलाऊँगा। 16 मैं यहूदा के लोगों को अन्य राष्ट्रों में बिखेर दूँगा। वे अजनबी राष्ट्रों में रहेंगे। उन्होंने और उनके पूर्वजों ने उन देशों को कभी नहीं जाना। मैं तलवार लिये व्यक्तियों को भेंजूँगा। वे लोग यहूदा के लोगों को मार डालेंगे। वे लोगों को तब तक मारते जाएंगे जब तक वे समाप्त नहीं हो जाएंगे।”

समीक्षा

धन्यवादिता को नकारने के परिणाम जानिये

रोमियों 1 में पौलुस के वचनो को इस लेखांश के सारांश के रूप में देखा जा सकता हैः’ इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया’ (रोमियो 1:21)।

यिर्मयाह में हम परमेश्वर की चेतावनी को देखते हैं जो उनके लोगों पर उनके न्याय के बारे में दी गई थी। उन्होंने परमेश्वर की दृष्टि में बुरा काम किया (यिर्मयाह 7:30)। वे ‘सदा दूर ही दूर भटकते जाते हैं... इनमें से किसी ने अपनी बुराई से पछताकर नहीं कहा, ‘हाय! मैं ने यह क्या किया है? ‘ (8:5-6, एम.एस.जी)। ‘ क्या वे घृणित काम करके लज्जित हुए? नहीं, वे कुछ भी लज्जित नहीं हुए, वे लज्ज्ति होना जानते ही नहीं’ (व.12, एम.एस.जी)। ‘ वे बुराई पर बुराई बढ़ाते जाते हैं, और वे मुझ को जानते ही नहीं’ (9:3)। ‘ छल ही के कारण वे मेरा ज्ञान नहीं चाहते’ (व.6)।

‘ उनकी जीभ काल के तीर के समान बेधने वाली है, उस से छल की बातें निकलती हैं; वे मुँह से तो एक दूसरे की घात में लगे रहते हैं’ (व.8)। उनके पाप की जड़ थी कि उन्होंने परमेश्वर को नहीं पहचाना और उनका धन्यवाद नहीं दिया; उन्होंने ‘मुझे पहचानना मना कर दिया’ (व.6, एम.एस.जी)।

परमेश्वर ने उन्हें इतना कुछ दिया था, फिर भी उन्होंने उन्हें नहीं पहचाना या उनका धन्यवाद नहीं दिया। इसलिए वह कहते हैं, ‘ जो कुछ मैं ने उन्हें दिया है वह उनके पास से जाता रहेगा’ (8:13ड)। ‘ न तो उनकी दाखलताओं में दाख पाई जाएँगी, और न अंजीर के पेड़ में अंजीर वरन् उनके पत्ते भी सूख जाएँगे’ (व.13)।

यह न्याय यिर्मयाह के लिए दर्दनाक हैः’ अपने लोगों के दुःख से मैं भी दुःखित हुआ, मैं शोक का पहिरावा पहिने अति अचम्भे में डूबा हूँ। क्या गिलाद देश में कुछ बलसान की औषधि नहीं? क्या उसमें कोई वैद्य नहीं? यदि है, तो मेरे लोगों के घाव क्यों चंगे नहीं हुए?’ (वव.21-22, एम.एस.जी)।

आज के हमारे सभी लेखांश हमें परमेश्वर का धन्यवाद देने और उनकी स्तुति करने के लिए कहते हैं। इसलिए हम अपने सभी विचारों और प्रार्थनाओं को एक कम्युनियन सभा के वचनो पर लगाते हैं:

प्रार्थना

आओ अपने प्रभु परमेश्वर को धन्यवाद दें। उन्हें धन्यवाद देना और उनकी स्तुति करना सही बात है। यह सच में सही है, यह हमारा कर्तव्य और हमारा आनंद है, हर समय और सभी स्थानों में आपको धन्यवाद और स्तुति देना, पवित्र पिता, स्वर्गीय राजा, सर्वशक्तिमान और अनंत परमेश्वर, हमारे प्रभु आपके पुत्र यीशु मसीह के द्वारा। इसलिए स्वर्गदूतों और प्रधानस्वर्गदूतों के साथ, और समस्त स्वर्ग के साथ हम आपके महान और महिमामयी नाम की घोषणा करते हैं, सर्वदा आपकी स्तुति हो और कहेः पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु, सामर्थ और शक्ति के परमेश्वर, स्वर्ग और पृथ्वी आपकी महिमा से भरी हुए है। होसाना ऊँचाईयों में।

पिप्पा भी कहते है

भजनसंहिता 116:15

‘ यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उनकी दृष्टि में अनमोल है’

सीरिया और दूसरी जगहों में हो रहे बहुत से क्रूर हत्याओं के भयानक समाचार के साथ, यह ज्ञान कि परमेश्वर उनमें से हर एक को जानते और उनकी चिंता करते हैं, शांति देते हैं।

दिन का वचन

कुलुस्सियों 1:13

“उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।”

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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