दिन 276

संतुष्टि की पूंजी

बुद्धि नीतिवचन 24:5-14
नए करार फिलिप्पियों 4:2-23
जूना करार यिर्मयाह 6:1-7:29

परिचय

हाँल ही में, मैंने एक मित्र से बात की जो एक मसीह नहीं हैं। वह एक आकर्षक और आनंदी व्यक्ति हैं। वह एक सफल व्यवसायी हैं और बहुत सा पैसा उन्होंने कमाया है। उनकी एक अद्भुत पत्नी हैं, एक अच्छा विवाह और एक महान परिवार। तब भी उन्होंने मुझे बताया कि वह अपने जीवन में गहरे खालीपन, और शांति और संतुष्टि की कमी का अनुभव कर रहे थे।

‘संतुष्टि गरीब को अमीर बनाती है; असंतुष्टि अमीर को गरीब बनाती है,’ अमेरिक स्टेटमैन, बेंजामिन फ्रँकलिन ने कहा। कुछ लोग सच में संतुष्ट दिखाई देते हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर ने एक बार कहा, ‘संतुष्टि एक दुर्लभ चिड़िया है, लेकिन यह सीने में मीठा गीत गाती है।’

बाईबल कभी वायदा नहीं करती है कि हम कठिन समय या मुश्किल स्थितियों का सामना नहीं करेंगे। लेकिन यह ऐसे समय में हमें परमेश्वर की सामर्थ और अनुग्रह का वायदा करती है।

पौलुस प्रेरित ने परेशानी के समय में शांति और संतुष्टि के एक जीवन की पूँजी को पा लिया था। वह फिलिप्पियों को बताते हैं कि कैसे शांति को पाना है और संतुष्ट होने का रहस्य उन्हें बताते हैं (फिलिप्पियों 4:12)।

बुद्धि

नीतिवचन 24:5-14

कहावत 22

5 बुद्धिमान जन में महाशक्ति होती है और ज्ञानी पुरुष शक्ति को बढ़ाता है। 6 युद्ध लड़ने के लिये परामर्श चाहिये और विजय पाने को बहुत से सलाहकार।

कहावत 23

7 मूर्ख बुद्धि को नहीं समझता। लोग जब महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करते हैं तो मूर्ख समझ नहीं पाता।

कहावत 24

8 षड्यन्त्रकारी वही कहलाता है, जो बुरी योजनाएँ बनाता रहता है। 9 मूर्ख की योजनायें पाप बन जाती है और निन्दक जन को लोग छोड़ जाते हैं।

कहावत 25

10 यदि तू विपत्ति में हिम्मत छोड़ बैठेगा, तो तेरी शक्ति कितनी थोड़ी सी है।

कहावत 26

11 यदि किसी की हत्या का कोई षड्यन्त्र रचे तो उसको बचाने का तुझे यत्न करना चाहिये। 12 तू ऐसा नहीं कह सकता, “मुझे इससे क्या लेना।” यहोवा जानता है सब कुछ और यह भी वह जानता है किस लिये तू काम करता है यहोवा तुझको देखता रहता है। तेरे भीतर की जानता है और वह तुझको यहोवा तेरे कर्मो का प्रतिदान देगा।

कहावत 27

13 हे मेरे पुत्र, तू शहद खाया कर क्योंकि यह उत्तम है। यह तुझे मीठा लगेगा। 14 इसी तरह यह भी तू जान ले कि आत्मा को तेरी बुद्धि मीठी लगेगी, यदि तू इसे प्राप्त करे तो उसमें निहित है तेरी भविष्य की आशा और वह तेरी आशा कभी भंग नहीं होगी।

समीक्षा

परमेश्वर की बुद्धि में प्राणों की संतुष्टि पायें

क्या होता है जब आप अपने जीवन में एक मुसीबत का सामना करते हैं? आप कठिन समय और मुश्किल स्थिति में कैसे उत्तर देते हैं?

हम सभी अपने जीवन में परेशानी के समय का सामना करते हैं। नीतिवचन के लेखक कहते हैं, ‘ यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है’ (व.10)। यदि आप मुसीबत में टूट जाते हैं, तो पहले से आपमें कुछ सामर्थ नहीं थी’ (व.10, एम.एस.जी)।

बुद्धिमान व्यक्ति ‘टूटेगा’ नहीं, क्योंकि उनके पास ‘महान सामर्थ’ और ‘ज्ञान से बढ़ी हुई शक्ति’ होती है (व.5)। वे मार्गदर्शन को खोजते हैं और उनके ‘बहुत से सलाहकार’ होते हैं (व.6)।

जब बुरी चीजें हो रही हैं (व.11), तब अपनी आँखे बंद करके मत कहो, ‘लेकिन हम इस बारे में नहीं जानते थे’ (व.12)।

आप कैसे इस बुद्धि को पाते हैं? परमेश्वर की बुद्धि शहर के मीठे स्वाद की तरह हैः’इसी रीति बुध्दि भी तुझे वैसी ही मीठी लगेगी; यदि तू उसे पा जाए तो अन्त में उसका फल भी मिलेगा, और तेरी आशा न टूटेगी’ (व.14)। यह बुद्धि मुख्य रूप से मसीह में मिलती है, क्योंकि वह ‘परमेश्वर की बुद्धि’ है (1कुरिंथियो 1:24)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि मसीह, परमेश्वर की बुद्धि में, हमारे प्राण तृप्त होते हैं। कृपया आज मुझे यीशु की आत्मा से भर दीजिए – बुद्धि, संतुष्टि और शांति के साथ।
नए करार

फिलिप्पियों 4:2-23

2 मैं यहूदिया और संतुखे दोनों को प्रोत्साहित करता हूँ कि तुम प्रभु में एक जैसे विचार बनाये रखो। 3 मेरे सच्चे साथी तुझसे भी मेरा आग्रह है कि इन महिलाओं की सहायता करना। ये वलैमेन्स तथा मेरे दूसरे सहकर्मियों सहित सुसमाचार के प्रचार में मेरे साथ जुटी रही हैं। इनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे गये है।

4 प्रभु में सदा आनन्द मनाते रहो। इसे मैं फिर दोहराता हूँ, आनन्द मनाते रहो।

5 तुम्हारी सहनशील आत्मा का ज्ञान सब लोगों को हो। प्रभु पास ही है। 6 किसी बात कि चिंता मत करो, बल्कि हर परिस्थिति में धन्यवाद सहित प्रार्थना और विनय के साथ अपनी याचना परमेश्वर के सामने रखते जाओ। 7 इसी से परमेश्वर की ओर से मिलने वाली शांति, जो समझ से परे है तुम्हारे हृदय और तुम्हारी बुद्धि को मसीह यीशु में सुरक्षित बनाये रखेगी।

8 हे भाईयों, उन बातों का ध्यान करो जो सत्य हैं, जो भव्य है, जो उचित है, जो पवित्र है, जो आनन्द दायी है, जो सराहने योग्य है या कोई भी अन्य गुण या कोई प्रशंसा 9 जिसे तुमने मुझसे सीखा है, पाया है या सुना है या जिसे करते मुझे देखा है। उन बातों का अभ्यास करते रहो। शांति का स्रोत परमेश्वर तुम्हारे साथ रहेगा।

फिलिप्पी मसीहियों के उपहार के लिए पौलुस का धन्यवाद

10 तुम निश्चय ही मेरी भलाई के लिये सोचा करते थे किन्तु तुम्हें उसे दिखाने का अवसर नहीं मिला था, किन्तु अब आखिरकार तुममें मेरे प्रति फिर से चिंता जागी है। इससे मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हुआ हूँ। 11 किसी आवश्यकता के कारण मैं यह नहीं कह रहा हूँ। क्योंकि जैसी भी परिस्थिति में मैं रहूँ, मैंने उसी में संतोष करना सीख लिया है। 12 मैं अभावों के बीच रहने का रहस्य भी जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि सम्पन्नता में कैसे रहा जाता है। कैसा भी समय हो और कैसी भी परिस्थिति चाहे पेट भरा हो और चाहे भूखा, चाहे पास में बहुत कुछ हो और चाहे कुछ भी नहीं, मैंने उन सब में सुखी रहने का भेद सीख लिया है। 13 जो मुझे शक्ति देता है, उसके द्वारा मैं सभी परिस्थितियों का सामना कर सकता हूँ।

14 कुछ भी हो तुमने मेरे कष्टों में हाथ बटा कर अच्छा ही किया है। 15 हे फिलिप्पियो, तुम तो जानते ही हो, सुसमाचार के प्रचार के उन आरम्भिक दिनों में जब मैंने मकिदुनिया छोड़ा था, तो लेने-देने के विषय में केवल मात्र तुम्हारी कलीसिया को छोड़ कर किसी और कलीसिया ने मेरा हाथ नहीं बटाया था। 16 मैं जब थिस्सिलुनीके में था, मेरी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये तुमने बार बार मुझे सहायता भेजी थी। 17 ऐसा नहीं है कि मैं उपहारों का इच्छुक हूँ, बल्कि मैं तो यह चाहता हूँ कि तुम्हारे खाते में लाभ जुड़ता ही चला जाये। 18 तुमने इपफ्रुदीतुस के हाथों जो उपहार मधुर गंध भेंट के रूप में मेरे पास भेजे हैं वे एक ऐसा स्वीकार करने योग्य बलिदान है जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता है। उन उपहारों के कारण मेरे पास मेरी आवश्यकता से कहीं अधिक हो गया है, मुझे पूरी तरह दिया गया है, बल्कि उससे भी अधिक भरपूर दिया गया है। वे वस्तुएँ मधुर गंध भेंट के रूप में हैं, एक ऐसा स्वीकार करने योग्य बलिदान जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता है। 19 मेरा परमेश्वर तुम्हारी सभी आवश्यकताओं को मसीह यीशु में प्राप्त अपने भव्य धन से पूरा करेगा। 20 हमारे परम पिता परमेश्वर की सदा सदा महिमा होती रहे। आमीन।

21 मसीह यीशु के हर एक संत को नमस्कार। मेरे साथ जो भाई हैं, तुम्हें नमस्कार करते हैं। 22 तुम्हें सभी संत और विशेष कर कैसर परिवार के लोग नमस्कार करते हैं।

23 तुम में से हर एक पर हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे।

समीक्षा

यीशु मसीह में रहस्य को पाइए

कोई भी जीवन में कठिनाईयों और कठिन समय के बिना नहीं गुजरता। पौलुस बिना परेशानी के नहीं हैं (व.14)। वह बंदीगृह में हैं और इसमें संदेह नहीं कि चिंता करने के लिए बहुत सी चीजे हैं।

किंतु, वह लिखते हैं, ‘ किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी’ (वव.6-7, ए.एम.पी)। यह एक उल्लेखनीय और अद्भुत वायदा है और अपने जीवन में मैंने बहुत सी बार इसका दावा किया और इसे अनुभव किया है।

कोरी टेन बूम चिंता की परिभाषा देते हैं ‘डर के बीच में घूमते हुए असक्षम विचारों की एक श्रंखला’ के रूप में। चिंता हमारे जीवन को बरबाद कर सकती है। पौलुस की तरह, हमारी कुछ चिंताएँ वास्तविक हैं, और कुछ मिथ्या है, लेकिन दोनों ही मामले में, चिंता से दबा जीवन सच में जीने योग्य नहीं है।

पौलुस का समाधान है कि हमें प्रार्थना करने के लिए उत्साहित करें, हमारी निश्चित चिंताओं को परमेश्वर के पास लाते हुएः’हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं’ (व.6, एम.एस.जी)।

कभी कभी, मुझे निश्चित निवेदनों को लिखने में सहायता मिलती है। यह मुझे सक्षम बनाता है कि देख पाऊँ कि कैसे परमेश्वर ने पहले मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया है। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप धन्यवाद दे सकते हैं (व.6), और प्रार्थना में आपका आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।

आपकी वर्तमान प्रार्थनाओं को ऐसे एक जीवन की नींव से लाईये जो कि ‘धन्यवादिता’ से भरी हुई है (व.6)। अद्भुत वायदा यह है कि जैसे ही आप यह करते हैं ‘परमेश्वर की शांति, जो सारी समझ से परे है, मसीह यीशु में आपके हृदय और दिमाग को सुरक्षित रखेगी’ (व.7)। परमेश्वर आपकी चिंताओं के बदले उनकी शांति देते हैं।

शांति के लिए शब्द का अर्थ शत्रुता की भावना की अनुपस्थिति से कही बढ़कर है। इसका अर्थ है परिपूर्णता, विवेकशीलता, कुशल-क्षेम, परमेश्वर के साथ एकत्व और हर प्रकार की आशीष और भलाई। यह एक शांति जो ‘सारी समझ के परे है।’ यह आने वाली चीज के विषय में आपकी समझ और आपकी चिंता दोनों के परे जाती है।

फिर पौलुस इस बात पर ध्यान देते हैं कि हमें क्या सोचना चाहिए। हम चित्रों और मीडिया से खबरो, बातचीत और घटनाओं से घिरे हुए हैं, जो प्रतिदिन हमें आसानी से गलत विचारों के साथ प्रलोभित कर सकती हैं। लेकिन आप इसे रोक सकते हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर ने कहा, ‘आप एक चिड़िया को अपने सिर पर उड़ने से नहीं रोक सकते हैं, लेकिन आप इसे अपने बालों में घोसला बनाने से रोक सकते हैं।’

गलत विचारों को बाहर निकालने का तरीका है, सही विचारों को अंदर लेना। आपका दिमाग खाली नहीं हो सकता है। यदि आप अपने दिमाग को अच्छे विचारों से नहीं भरेंगे, तो शत्रु इसे बुरे विचारों से भर देगा।

पौलुस की सलाह मानियेः’इसलिये हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो’ (व.8, एम.एस.जी)। वह समझते हैं कि आप जिस विषय में सोचते हैं वह आपके जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करेगा। अपने दिमाग को अच्छी चीजों से भर दीजिए, जो कुछ ‘श्रेष्ठ और स्तुति के योग्य’ है (व.8)।

सोचिये कि आप किस विषय में सोचते हैं। हमारी परेशानियों की जड़ हमारे विचार हो सकते हैं। यदि आप उन चीजों को बदल देंगे जिन पर आप अपना दिमाग लगाते हैं, ‘ तब परमेश्वर जो शान्ति के सोता हैं तुम्हारे साथ रहेंगे’ (व.9, एम.एस.जी)।

कठिन भाग है, हमेशा इन सभी चीजों को ‘काम पर रखना’ (व.9)। किसी भी हुनर, व्यापार या खेल को सीखने का एकमात्र तरीका है अभ्यास करना। झगड़े को दूर करके अभ्यास कीजिए, दूसरे मसीहों के साथ एकता में रहकर (वव2-3) और निरंतर प्रार्थना करने के द्वारा चिंता करना अस्वीकार करके। यदि आप ऐसा करते हैं, तो पौलुस वायदा करते हैं कि ‘शांति के परमेश्वर तुम्हारे साथ रहेंगे’ (व.9)।

पौलुस ने चिंता नहीं की कि उनकी जरुरतें कैसे पूरी होंगी। उन्होंने सीख लिया था कि हर स्थिति में संतुष्ट रहने का रहस्य, बहुतायत में या कमी में, यह था कि वह ‘सबकुछ कर सकते थे उनके द्वारा जो उन्हें सामर्थ देते हैं’ (व.13)। आप जिस किसी स्थिति में हैं, परमेश्वर आपको सामर्थ देंगे वह करने के लिए, जो करने के लिए उन्होंने आपको बुलाया है।

पौलुस फिलिप्पियों की स्तुति करते हैं, उनकी उदारता के लिए, जो कि एक ‘ सुखदायक सुगन्ध, ग्रहण करने योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है’ (व.18)। यह उदारता प्रेम का एक भाग है। आप प्रेम के बिना दे सकते हैं, लेकिन आप दिए बिना प्रेम नहीं कर सकते हैं।

परमेश्वर वायदा करते हैं कि वह आपकी सारी ‘जरुरतों को पूरा करेंगे मसीह यीशु में उनके महिमामयी धन के अनुसार’ (व.19), जैस ही आप एक उदार जीवन जीते हैं, जो आर्थिक चिंता से मुक्त है। इसमें आपकी भौतिक जरुरतें शामिल हैं- यद्यपि आवश्यक रूप से आपकी इच्छाएँ नहीं। आप सुनिश्चित हो सकते हैं ‘ परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है, तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेंगे।’ (व.19, एम.एस.जी)। आप परमेश्वर से बढ़कर नहीं दे सकते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, आज मैं आपके पास अपनी चिंताओं को लाता हूँ...आपका धन्यवाद आपकी शांति के वायदे के लिए, जो सारी समझ से परे हैं।
जूना करार

यिर्मयाह 6:1-7:29

शत्रु द्वारा यरूशलेम का घेराव

6“बिन्यामीन के लोगों, अपनी जान लेकर भागो,
 यरूशलेम नगर से भाग चलो!
 युद्ध की तुरही तकोआ नगर में बजाओ!
 बेथक्केरेम नगर में खतरे का झण्डा लगाओ!
 ये काम करो क्योंकि उत्तर की ओर से विपत्ति आ रही है।
 तुम पर भयंकर विनाश आ रहा है।
2 सिय्योन की पुत्री,
 तुम एक सुन्दर चरागाह के समान हो।
3 गडेरिये यरूशलेम आते हैं, और वे अपनी रेवड़ लाते हैं।
 वे उसके चारों ओर अपने डेरे डालते हैं।
 हर एक गडेरिया अपनी रेवड़ की रक्षा करता है।

4 “यरूशलेम नगर के विरुद्ध लड़ने के लिये तैयार हो जाओ!
 उठो, हम लोग दोपहर को नगर पर आक्रमण करेंगे, किन्तु पहले ही देर हो चुकी है।
 संध्या की छाया लम्बी हो रही है,
5 अत: उठो! हम नगर पर रात में आक्रमण करेंगे!
 हम यरूशलेम के दृढ़ रक्षा—साधनों को नष्ट करेंगे।”

6 सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यही है:

 “यरूशलेम के चारों ओर के पेड़ों को काट डालो
 और यरूशलेम के विरुद्ध घेरा डालने का टीला बनाओ।
 इस नगर को दण्ड मिलना चाहिये।”
 इस नगर के भीतर दमन करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
7 जैसे कुँआ अपना पानी स्वच्छ रखता है उसी प्रकार यरूशलेम अपनी दुष्टता को नया बनाये रखता है।
 इस नगर में हिंसा और विध्वंस सुना जाता हैं।
 मैं सदैव यरूशलेम की बीमारी और चोटों को देख सकता हूँ।
8 यरूशलेम, इस चेतावनी को सुनो।
 यदि तुम नहीं सुनोगे तो मैं अपनी पीठ तुम्हारी ओर कर लूँगा।
 मैं तुम्हारे प्रदेश को सूनी मरुभूमि कर दूँगा।
 कोई भी व्यक्ति वहाँ नहीं रह पायेगा।”

9 सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है:

 “उन इस्राएल के लोगों को इकट्ठा करो जो अपने देश में बच गए थे।
 उन्हें इस प्रकार इकट्ठे करो, जैसे तुम अंगूर की बेल से आखिरी अंगूर इकट्ठे करते हो।
 अंगूर इकट्ठे करने वाले की तरह हर एक बेल की जाँच करो।”

10 मैं किससे बात करुँ?
 मैं किसे चेतावनी दे सकता हूँ?
 मेरी कौन सुनेगा?
 इस्राएल के लोगों ने अपने कानो को बन्द किया है।
 अत: वे मेरी चेतावनी सुन नहीं सकते।
 लोग यहोवा की शिक्षा पसन्द नहीं करते।
 वे यहोवा का सन्देश सुनना नहीं चाहते।
11 किन्तु मैं (यिर्मयाह) यहोवा के क्रोध से भरा हूँ।
 मैं इसे रोकते—रोकते थक गया हूँ।
 “सड़क पर खेलते बच्चों पर यहोवा का क्रोध उंडेलो।
 एक साथ एकत्रित युवकों पर इसे उंडेलो।
 पति और उसकी पत्नी दोनों पकड़े जाएंगे।
 बूढ़े और अति बूढ़े लोग पकड़े जाएंगे।
12 उनके घर दूसरे लोगों को दे दिए जाएंगे।
 उनके खेत और उनकी पत्नियाँ दूसरों को दे दी जाएंगी।
 मैं अपने हाथ उठाऊँगा और यहूदा देश के लोगों को दण्ड दूँगा।”
 यह सन्देश यहोवा का था।

13 “इस्राएल के सभी लोग धन और अधिक धन चाहते हैं।
 छोटे से लेकर बड़े तक सभी लालची हैं।
 यहाँ तक कि याजक और नबी झूठ पर जीते हैं।
14 मेरे लोग बहुत बुरी तरह चोट खाये हुये हैं।
 नबी और याजक मेरे लोगों के घाव भरने का प्रयत्न ऐसे करते हैं, मानों वे छोटे से घाव हों।
 वे कहते हैं, ‘यह बहुत ठीक है, यह बिल्कुल ठीक है।’
 किन्तु यह सचमुच ठीक नहीं हुआ है।
15 नबियों और याजकों को उस पर लज्जित होना चाहिये, जो बुरा वे करते हैं।
 किन्तु वे तनिक भी लज्जित नहीं।
 वे तो अपने पाप पर संकोच करना तक भी नहीं जानते।
 अत: वे अन्य हर एक के साथ दण्डित होंगे।
 जब मैं दण्ड दूँगा, वे जमीन पर फेंक दिये जायेंगे।”
 यह सन्देश यहोवा का है।

16 यहोवा यह सब कहता है:
 “चौराहों पर खड़े होओ और देखो।
 पता करो कि पुरानी सड़क कहाँ थी।
 पता करो कि अच्छी सड़क कहाँ है, और उस सड़क पर चलो।
 यदि तुम ऐसा करोगे, तुम्हें आराम मिलेगा! किन्तु तुम लोगों ने कहा है,
 “हम अच्छी सड़क पर नहीं चलेंगे!”
17 मैंने तुम्हारी चौकसी के लिये चौकीदार चुने!
 मैंने उनसे कहा, ‘युद्ध—तुरही की आवाज पर कान रखो।’
 किन्तु उन्होंने कहा, ‘हम नहीं सुनेंगे!’
18 अत: तुम सभी राष्ट्रों, उन देशों के तुम सभी लोगों, सुनो ध्यान दो!
 वह सब सुनो जो मैं यहूदा के लोगों के साथ करूँगा।
19 पृथ्वी के लोगों, यह सुनो:
 मैं यहूदा के लोगों पर विपत्ति ढाने जा रहा हूँ।
 क्यों क्योंकि उन लोगों ने सभी बुरे कामों की योजनायें बनाई।
 यह होगा क्योंकि उन्होंने मेरे सन्देशों की ओर ध्यान नहीं दिया है।
 उन लोगों ने मेरे नियमों का पालन करने से इन्कार किया है।

20 यहोवा कहता है, “तुम शबा देश से मुझे सुगन्धि की भेंट क्यों लाते हो
 तुम भेंट के रूप में दूर देशों से सुगन्धि क्यों लाते हो
 तुम्हारी होमबलि मुझे प्रसन्न नहीं करती।
 तुम्हारी बलि मुझे खुश नहीं करती।”
21 अत: यहोवा जो कहता है, वह यह है:
 “मैं यहूदा के लोगों के सामने समस्यायें रखूँगा।
 वे लोगों को गिराने वाले पत्थर से होंगे।
 पिता और पुत्र उन पर ठोकर खाकर गिरेंगे।
 मित्र और पड़ोसी मरेंगे।”

22 यहोवा जो कहता है, वह यह है:
 “उत्तर के देश से एक सेना आ रही है,
 पृथ्वी के दूर स्थानों से एक शक्तिशाली राष्ट्र आ रहा है।
23 सैनिकों के हाथ में धनुष और भाले हैं, वे क्रूर हैं।
 वे कृपा करना नहीं जानते।
 वे बहुत शक्तिशाली हैं।
 वे सागर की तरह गरजते हैं, जब वे अपने घोड़ों पर सवार होते हैं।
 वह सेना युद्ध के लिये तैयार होकर आ रही है।
 हे सिय्योन की पुत्री, सेना तुम पर आक्रमण करने आ रही हैं।”
24 हमने उस सेना के बारे में सूचना पाई है।
 हम भय से असहाय हैं।
 हम स्वयं को विपत्तियों के जाल में पड़ा अनुभव करते हैं।
 हम वैसे ही कष्ट में हैं जैसे एक स्त्री को प्रसव—वेदना होती है।
25 खेतों में मत जाओ, सड़कों पर मत निकलो।
 क्यों क्योंकि शत्रु के हाथों में तलवार है,
 क्योंकि खतरा चारों ओर है।
26 हे मेरे लोगों, टाट के वस्त्र पहन लो।
 राख में लोट लगा लो।
 मरे लोगों के लिए फूट—फूट कर रोओ।
 तुम एकमात्र पुत्र के खोने पर रोने सा रोओ।
 ये सब करो क्योंकि विनाशक अति शीघ्रता से हमारे विरुद्ध आएंगे।

27 “यिर्मयाह, मैंने (यहोवा ने)
 तुम्हें प्रजा की कच्ची धातु का पारखी बनाया है।
 तुम हमारे लोगों की जाँच करोगे
 और उनके व्यवहार की चौकसी रखोगे।
28 मेरे लोग मेरे विरुद्ध हो गए हैं,
 और वे बहुत हठी हैं।
 वे लोगों के बारे में बुरी बातें कहते घूमते हैं।
 वे उस काँसे और लोहे की तरह हैं जो चकमहीन
 और जंग खाये हैं।
29 वे उस श्रमिक की तरह हैं जिसने चाँदी को शुद्ध करने की कोशिश की।
 उसकी धोकनी तेज चली, आग भी तेज जली,
 किन्तु आग से केवल रांगा निकला।
 यह समय की बरबादी थी जो शुद्ध चाँदी बनाने का प्रयत्न किया गया।
 ठीक इसी प्रकार मेरे लोगों से बुराई दूर नहीं की जा सकी।
30 मेरे लोग ‘खोटी चाँदी’ कहे जायेंगे।
 उनको यह नाम मिलेगा क्योंकि यहोवा ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।”

यिर्मयाह का मन्दिर उपदेश

7यह यहोवा का सन्देश यिर्मयाह के लिये है: 2 यिर्मयाह, यहोवा के मन्दिर के द्वार के सामने खड़े हो। द्वार पर यह सन्देश घोषित करो:

“‘यहूदा राष्ट्र के सभी लोगों, यहोवा के यहाँ का सन्देश सुनो। यहोवा की उपासना करने के लिये तुम सभी लोग जो इन द्वारों से होकर आए हो इस सन्देश को सुनो। 3 इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा है। सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है, अपना जीवन बदलो और अच्छे काम करो। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हें इस स्थान पर रहने दूँगा। 4 इस झूठ पर विश्वास न करो जो कुछ लोग बोलते हैं। वे कहते हैं, “यह यहोवा का मन्दिर है। यहोवा का मन्दिर है! यहोवा का मन्दिर है!” 5 यदि तुम अपना जीवन बदलोगे और अच्छा काम करोगे, तो मैं तुम्हें इस स्थान पर रहने दूँगा। तुम्हें एक दूसरे के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। 6 तुम्हें अजनबियों के साथ भी निष्ठावान होना चाहिये। तुम्हें विधवा और अनाथ बच्चों के लिये उचित काम करना चाहिये। निरपराध लोगों को न मारो। अन्य देवताओं का अनुसरण न करो। क्यों क्योंकि वे तुम्हारे जीवन को नष्ट कर देंगे। 7 यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन करोगे तो मैं तुम्हें इस स्थान पर रहने दूँगा। मैंने यह प्रदेश तुम्हारे पूर्वजों को अपने पास सदैव रखने के लिये दिया।

8 “‘किन्तु तुम झूठ में विश्वास कर रहे हो और वह झूठ व्यर्थ है। 9 क्या तुम चोरी और हत्या करोगे क्या तुम व्यभिचार का पाप करोगे क्या तुम लोगों पर झूठा आरोप लगाओगे क्या तुम असत्य देवता बाल की पूजा करोगे और अन्य देवताओं का अनुसरण करोगे जिन्हें तुम नहीं जानते 10 यदि तुम ये पाप करते हो तो क्या तुम समझते हो कि तुम उस मन्दिर में मेरे सामने खड़े हो सकते हो जिसे मेरे नाम से पुकारा जाता हो क्या तुम सोचते हो कि तुम मेरे सामने खड़े हो सकते हो और कह सकते हो, “हम सुरक्षित हैं” सुरक्षित इसलिये कि जिससे तुम ये घृणित कार्य कर सको। 11 यह मन्दिर मेरे नाम से पुकारा जाता है। क्या यह मन्दिर तुम्हारे लिये डकैतों के छिपने के स्थान के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है मैं तुम्हारी चौकसी रख रहा हूँ।’” यह सन्देश यहोवा का है।

12 “‘यहूदा के लोगों, तुम अब शीलो नगर को जाओ। उस स्थान पर जाओ जहाँ मैंने प्रथम बार अपने नाम का मन्दिर बनाया। इस्राएल के लोगों ने भी पाप कर्म किये। जाओ और देखो कि उस स्थान का मैंने उन पाप कर्मों के लिये क्या किया जो उन्होंने किये। 13 इस्राएल के लोगों, तुम लोग ये सब पाप कर्म करते रहे। यह सन्देश यहोवा का था! “मैंने तुमसे बार—बार बातें कीं, किन्तु तुमने मेरी अनसुनी कर दी। मैंने तुम लोगों को पुकारा पर तुमने उत्तर नहीं दिया। 14 इसलिये मैं अपने नाम से पुकारे जाने वाले यरूशलेम के इस मन्दिर को नष्ट करूँगा। मैं उस मन्दिर को वैसे ही नष्ट करूँगा जैसे मैंने शीलो को नष्ट किया और यरूशलेम में वह मन्दिर जो मेरे नाम पर हैं, वही मन्दिर है जिसमें तुम विश्वास करते हो। मैंने उस स्थान को तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया। 15 मैं तुम्हें अपने पास से वैसे ही दूर फेंक दूँगा जैसे मैंने तुम्हारे सभी भाईयों को एप्रैम से फेंका।’

16 “यिर्मयाह, जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुम यहूदा के इन लोगों के लिये प्रार्थना मत करो। न उनके लिये याचना करो और न ही उनके लिये प्रार्थना। उनकी सहायता के लिये मुझसे प्रार्थना मत करो। उनके लिये तुम्हारी प्रार्थना को मैं नहीं सुनूँगा। 17 मैं जानता हूँ कि तुम देख रहे हो कि वे यहूदा के नगर में क्या कर रहे हैं तुम देख सकते हो कि वे यरूशलेम नगर की सड़कों पर क्या कर रहे हैं 18 यहूदा के लोग जो कर रहे हैं वह यह है: “बच्चे लकड़ियाँ इकट्ठी करते हैं। पिता लोग उस लकड़ी का उपयोग आग जलाने में करते हैं। स्त्रियाँ आटा गूँधती हैं और स्वर्ग की रानी की भेंट के लिये रोटियाँ बनाती हैं। यहूदा के वे लोग अन्य देवताओं की पूजा के लिये पेय भेंट चढ़ाते हैं। वे मुझे क्रोधित करने के लिये यह करते हैं। 19 किन्तु मैं वह नहीं हूँ जिसे यहूदा के लोग सचमुच चोट पहुँचा रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। “वे केवल अपने को ही चोट पहुँचा रहे हैं। वे अपने को लज्जा का पात्र बना रहे हैं।”

20 अत: यहोवा यह कहता है: “मैं अपना क्रोध इस स्थान के विरुद्ध प्रकट करुँगा। मैं लोगों तथा जानवरों को दण्ड दूँगा। मैं खेत में पेड़ों और उस भूमि में उगनेवाली फसलों को दण्ड दूँगा। मेरा क्रोध प्रचण्ड अग्नि सा होगा और कोई व्यक्ति उसे रोक नहीं सकेगा।”

यहोवा बलि की अपेक्षा, अपनी आज्ञा का पालन अधिक चाहता है

21 इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है, “जाओ और जितनी भी होमबलि और बलि चाहो, भेंट करो। उन बलियों के माँस स्वयं खाओ। 22 मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाया। मैंने उनसे बातें कीं, किन्तु उन्हें कोई आदेश होमबलि और बलि के विषय में नहीं दिया। 23 मैंने उन्हें केवल यह आदेश दिया, ‘मेरी आज्ञा का पालन करो और मैं तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा तथा तुम मेरे लोग होगे। जो मैं आदेश देता हूँ वह करो, और तुम्हारे लिए सब अच्छा होगा।’

24 “किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी एक न सुनी। उन्होंने मुझ पर ध्यान नहीं दिया। वे हठी रहे और उन्होंने उन कामों को किया जो वे करना चाहते थे। वे अच्छे न बने। वे पहले से भी अधिक बुरे बने, वे पीछे को गए, आगे नहीं बढ़े। 25 उस दिन से जिस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मिस्र छोड़ा आज तक मैंने अपने सेवकों को तुम्हारे पास भेजा है। मेरे सेवक नबी हैं। मैंने उन्हें तुम्हारे पास बारबार भेजा। 26 किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी अनसुनी की। उन्होंने मुझ पर ध्यान नहीं दिया। वे बहुत हठी रहे, और उन्होंने अपने पूर्वजों से भी बढ़कर बुराईयाँ कीं।

27 “यिर्मयाह, तुम यहूदा के लोगों से ये बातें कहोगे। किन्तु वे तुम्हारी एक न सुनेंगे। तुम उनसे बातें करोगे किन्तु वे तुम्हें जवाब भी नहीं देंगे। 28 इसलिये तुम्हें उनसे ये बातें कहनी चाहियें: यह वह राष्ट्र है जिसने यहोवा अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं किया। इन लोगों ने परमेश्वर की शिक्षाओं को अनसुनी किया। ये लोग सच्ची शिक्षा नहीं जानते।

हत्या—घाटी

29 “यिर्मयाह, अपने बालों को काट डालो और इसे फेंक दो। पहाड़ी की नंगी चोटी पर चढ़ो और रोओ चिल्लाओ। क्यों क्योंकि यहोवा ने इस पीढ़ी के लोगों को दुत्कार दिया है। यहोवा ने इन लोगों से अपनी पीठ मोड़ ली है और वह क्रोध में इन्हें दण्ड देगा।

समीक्षा

परमेश्वर के मार्ग पर आत्मा के विश्राम को पाइयें

परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं। वह चाहते हैं कि आप ‘मन का चैन पायें’ (6:16)। वह आपको सुरक्षित रखना और आपकी जरुरतों को पूरा करना चाहते हैं। यह विडंबना है जब लोग परमेश्वर की बात नहीं सुनते हैं।

यिर्मयाह परेशानी के समय के बारे में भविष्यवाणी करते हैं। परमेश्वर चेतावनी के बिना काम नहीं करते हैं। उन्होंने भविष्यवक्ताओं के द्वारा अपने लोगों को चेतावनी दी, यह कहते हुए, ‘ मैं किससे बोलूँ और किसको चिताकर कहूँ कि वे मानें?’ (व.10)। झूठे भविष्यवक्ताओं ने झूठी शांति के बारे में बताया, ‘ वे, ‘शान्ति ‘, ऐसा कह कहकर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं, परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं’ (व.14ब)।

दूसरी ओर’यहोवा यों भी कहता है: ‘सड़कों पर खड़े होकर देखो, और पूछो कि प्राचीनकाल का अच्छा मार्ग कौन सा है, उसी में चलो, और तुम अपने अपने मन में चैन पाओगे’ (व.16, ए.एम.पी)।

परेशानी यह थी कि उन्होंने सुना नहीं:’उनके कान मोम से भर गए हैं’ (व.12, एम.एस.जी)। ‘उन्होंने मेरी हर बात को नजरअंदाज किया’ (व.19, एम.एस.जी)।

यिर्मयाह ने निर्भीकता के साथ संदेश सुनाया (7:2) और उन्हें मन फिराने के लिये कहाः’ अपनी अपनी चाल और काम सुधारो’ (व.3), ‘ यदि तुम सचमुच अपनी अपनी चाल और काम सुधारो, और सचमुच मनुष्य मनुष्य के बीच न्याय करो’ (व.5)। परदेसियों, अनाथ या विधवा को मत सताओ, दूसरे देवताओं के पीछे मत जाओ। परमेश्वर कहते हैं, ‘ मेरे वचन को मानो, तब मैं तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा, और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे; और जिस मार्ग की मैं तुम्हें आज्ञा दूँ उसी में चलो, तब तुम्हारा भला होगा’ (व.23)।

‘ पर उन्होंने मेरी न सुनी और न मेरी बातों पर कान लगाया; वे अपनी ही युक्तियों और अपने बुरे मन के हठ पर चलते रहे और पीछ हट गए पर आगे न बढ़े’ (व.24, एम.एस.जी)। विडंबना यह है कि लोगों ने यह करना अस्वीकार कर दिया, और परमेश्वर की आशीषों से मुँह मोड़ लिया।

प्रार्थना

परमेश्वर, मुझे क्षमा कीजिएगा जब मैंने आपकी बात नहीं सुनी। आपका धन्यवाद कि जब आप मुझे पश्चाताप के लिए बुलाते हैं, आप वायदा करते हैं कि यदि मैं अनंत मार्ग में आ जाऊँ और उनमें चलूं, तो मेरे मन को चैन और विश्राम मिलेगा।

पिप्पा भी कहते है

फिलिप्पियों 4:6-7

‘ किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।’

मैं कठिन परिश्रम कर रही हूँ कि चिंता न करुँ, बल्कि प्रार्थना करुँ। तो जब कभी दिन या रात में एक विचार मेरे पास आता है, (यह एक व्यक्ति के बारे में हो सकता है जो बीमार है, एक निर्णय जो मुझे लेना है, एक लंबी यात्रा या अगले हफ्ते कोई अल्फा में आएगा), मैं इसके बारे में बहुत सोचकर समय बर्बाद न करने की कोशिश कर रही हूँ, इसके बजाय प्रार्थना करके और भरोसा करती हूँ कि परमेश्वर ने सुन लिया है और उत्तर देंगे।

दिन का वचन

फिलिप्पियों 4:6-7

“किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी॥”

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

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