इसे वापस दीजिए
परिचय
यह सबसे छू लेने वाली और शक्तिशाली गवाहियाँ थी जिसे मैंने कभी नहीं सुना था। एक पूर्वी वेश्वावृत्ति करने वाली, ड्रग व्यसनी और इसे बेचने वाली ने बताया कि कैसे वह एक ऐसे बिंदु पर पहुँच गई थी कि, अपने ही शब्दों में वह, 'मृत' थी। उसने कहा, 'उनका लहू काला' था और उनका 'हृदय काला था।' उन्होंने बताया कि कैसे वह अल्फा में आयी और सुना कि यीशु ने उनसे इतना प्रेम किया कि उन्होंने उनके लिए जान दे दी। उन्होंने बताया कि कैसे उनके हृदय के मलबे को इसने तोड़ दिया। उन्होंने पहली बार अपने लिए परमेश्वर के प्रेम का अनुभव किया। अब वह सभी के लिए प्रेम से भरी हुई हैं, उन्होंने निंदा करने वालों को क्षमा कर दिया है, और अब मसीह के प्रेम को दर्शा रही हैं।
मग्न मंडली में अपनी गवाही बताने के बाद, मैं उनका धन्यवाद देने के लिए ऊपर गया और कहा कि यह कितना शक्तिशाली था। उन्होंने जवाब दिया, 'मुझे इसे वापस देना है!' मैं नहीं समझ पाया कि उनका क्या अर्थ था, तो मैंने उन्हें समझाने के लिए कहा। उन्होंने कहा, 'यह सब उनका अनुग्रह है। मुझे उन्हें महिमा देनी है।' अनुग्रह, महिमा और मसीह जैसा होने का क्या अर्थ है, इस विषय में उनके पास एक महान समझ है।
'महिमा' का विषय आज के लेखांश में मिलता है (भजनसंहिता 115:1; फिलिप्पियो 2:11; यिर्मयाह 2:11)। हम देखते हैं कि क्यों, कैसे और कब परमेश्वर को महिमा देनी है।
भजन संहिता 115:1-11
115यहोवा! हमको कोई गौरव ग्रहण नहीं करना चाहिये।
गौरव तो तेरा है।
तेरे प्रेम और निष्ठा के कारण गौरव तेरा है।
2 राष्ट्रों को क्यों अचरज हो कि
हमारा परमेश्वर कहाँ है?
3 परमेश्वर स्वर्ग में है।
जो कुछ वह चाहता है वही करता रहता है।
4 उन जातियों के “देवता” बस केवल पुतले हैं जो सोने चाँदी के बने है।
वह बस केवल पुतले हैं जो किसी मानव ने बनाये।
5 उन पुतलों के मुख है, पर वे बोल नहीं पाते।
उनकी आँखे हैं, पर वे देख नहीं पाते।
6 उनके कान हैं, पर वे सुन नहीं सकते।
उनकी पास नाक है, किन्तु वे सूँघ नहीं पाते।
7 उनके हाथ हैं, पर वे किसी वस्तु को छू नहीं सकते,
उनके पास पैर हैं, पर वे चल नहीं सकते।
उनके कंठो से स्वर फूटते नहीं हैं।
8 जो व्यक्ति इस पुतले को रखते
और उनमें विश्वास रखते हैं बिल्कुल इन पुतलों से बन जायेंगे!
9 ओ इस्राएल के लोगों, यहोवा में भरोसा रखो!
यहोवा इस्राएल को सहायता देता है और उसकी रक्षा करता है
10 ओ हारुन के घराने, यहोवा में भरोसा रखो!
हारुन के घराने को यहोवा सहारा देता है, और उसकी रक्षा करता है।
11 यहोवा की अनुयायिओं, यहोवा में भरोसा रखे!
यहोवा सहारा देता है और अपने अनुयायिओं की रक्षा करता है।
समीक्षा
परमेश्वर को महिमा क्यों दें?
जब लोगों ने जॉन विम्बर की प्रशंसा की उस भाषण के लिए जो उन्होंने दिया था या जो चंगाई उनकी सेवकाई के द्वारा हुई थी, तब वे कहा करते थे, 'मैं प्रोत्साहन को लूँगा, लेकिन मैं महिमा परमेश्वर को दूँगा।'
भजनसंहिता के लेखक परमेश्वर को महिमा देने का एक महान उदाहरण देते हैं – इसे परमेश्वर को देना। वह कहते हैं:' हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन् अपने ही नाम की महिमा, अपनी करुणा और सच्चाई के निमित्त कर' (व.1)। वह आगे दो कारण बताते हैं कि क्यों आपको परमेश्वर की महिमा और आराधना करनी चाहिए।
पहला है परमेश्वर के प्रेम और वफादारी के प्रति हमारे अनुभव के कारण (व.1ब)। परमेश्वर ने आपके लिए जो किया है, आराधना उसका एक उत्तर है। उन्हें सारी महिमा दीजिए।
दूसरा है अक्सर दोहराया गया बाईबल का सत्य – आप वह बन जाते हैं जिसकी आप आराधना करते हैं:' जैसे वे हैं वैसे ही उनके बनाने वाले हैं; और उन पर सब भरोसा रखने वाले भी वैसे ही हो जाएँगे' (व.8)। इसलिए, यदि हम मूर्तिपूजा करते हैं, तो हम पूरी तरह से जीवनहीन बन जाते हैं, कुछ भी महत्वपूर्ण चीज करनें में सक्षम नहीं होते हैं।
परमेश्वर में भरोसा कीजिए जो आपकी 'सहायता और ढ़ाल' है (वव.9-11)। यदि आप परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे और उनकी आराधना करेंगे, आप उनकी तरह बन जाएँगे –आप उनके स्वरूप में बदल जाएँगे और जीवन की परिपूर्णता को पायेंगे।
प्रार्थना
फिलिप्पियों 1:27-2:11
27 किन्तु हर प्रकार से ऐसा करो कि तुम्हारा आचरण मसीह के सुसमाचार के अनुकूल रहे। जिससे चाहे मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हें देखूँ और चाहे तुमसे दूर रहूँ, तुम्हारे बारे में यही सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में दृढ़ता के साथ स्थिर हो और सुसमाचार से उत्पन्न विश्वास के लिए एक जुट होकर संघर्ष कर रहे हो। 28 तथा मैं यह भी सुनना चाहता हूँ कि तुम अपने विरोधियों से किसी प्रकार भी नहीं डर रहे हो। तुम्हारा यह साहस उनके विनाश का प्रमाण है और यही प्रमाण है तुम्हारी मुक्ति का और परमेश्वर की ओर से ऐसा ही किया जायेगा। 29 क्योंकि मसीह की ओर से तुम्हें न केवल उसमें विश्वास करने का बल्कि उसके लिए यातनाएँ झेलने का भी विशेषाधिकार दिया गया है। 30 तुम जानते हो कि तुम उसी संघर्ष में जुटे हो, जिसमें मैं जुटा था और जैसा कि तुम सुनते हो आज तक मैं उसी में लगा हूँ।
एकतापूर्वक एक दूसरे का ध्यान रखो
2फिर तुम लोगों में यदि मसीह में कोई उत्साह है, प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई भागेदारी है, स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है 2 तो मुझे पूरी तरह प्रसन्न करो। मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एका रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो। 3 ईर्ष्या और बेकार के अहंकार से कुछ मत करो। बल्कि नम्र बनो तथा दूसरों को अपने से उत्तम समझो। 4 तुममें से हर एक को चाहिए कि केवल अपना ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
यीशु से निःस्वार्थ होना सीखो
5 अपना चिंतन ठीक वैसा ही रखो जैसा मसीह यीशु का था।
6 जो अपने स्वरूप में यद्यपि साक्षात् परमेश्वर था,
किन्तु उसने परमेश्वर के साथ अपनी इस समानता को कभी
ऐसे महाकोष के समान नहीं समझा जिससे वह चिपका ही रहे।
7 बल्कि उसने तो अपना सब कुछ त्याग कर
एक सेवक का रूप ग्रहण कर लिया और मनुष्य के समान बन गया।
और जब वह अपने बाहरी रूप में मनुष्य जैसा बन गया
8 तो उसने अपने आप को नवा लिया। और इतना आज्ञाकारी बन गया कि
अपने प्राण तक निछावर कर दिये और वह भी क्रूस पर।
9 इसलिए परमेश्वर ने भी उसे ऊँचे से ऊँचे
स्थान पर उठाया और उसे वह नाम दिया जो सब नामों के ऊपर है
10 ताकि सब कोई जब यीशु के नाम का उच्चारण होते हुए सुनें, तो नीचे झुक जायें।
चाहे वे स्वर्ग के हों, धरती पर के हों और चाहे धरती के नीचे के हों।
11 और हर जीभ परम पिता परमेश्वर की
महिमा के लिये स्वीकार करें, “यीशु मसीह ही प्रभु है।”
समीक्षा
परमेश्वर की महिमा कैसे करें?
पौलुस बताते हैं कि कैसे आप परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं, यीशु की तरह बनने के द्वाराः' जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो' (2:5, एम.एस.जी)। 'यीशु के नाम' (व.10)और 'परमेश्वर की महिमा' (व.11) के निमित्त मसीह जैसा स्वभाव रखो। 'मसीह के सुसमाचार के योग्य' एक जीवन जीओ (1:27)। यह एक सुविधा है ना केवल यीशु में विश्वास करना, लेकिन उनके लिए कष्ट उठाना और उनके लिए संघर्ष करना भी (वव.29-30)।
जब लोग या घटनाएँ आपके विरूद्ध आते हैं, तब एकता में 'दृढ़ खड़े रहो' (व.27) उन सभी विरोध और प्रहारों के विरूद्ध जिनका आप सामना करते हैं। जिस भाषा का पौलुस इस्तेमाल करते हैं, वह एक phalanx –प्राचीनकाल का सबसे विकट सैन्य उपकरण। ढ़ाल को एक साथ जोड़कर और भाले को आगे निकालकर, सैनिक कंधे से कंधे मिलाकर आठ की संख्या में खड़े रहते थे। जब तक वह हिलते नहीं थे, तब तक वे अभेद्य रहते थे।
' केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल - चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूँ, चाहे न भी आउँ, तुम्हारे विषय में यही सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में स्थिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिये परिश्रम करते रहते हो, और किसी बात में विरोधियों से भय नहीं खाते। यह उनके लिये विनाश का स्पष्ट चिह्न है, परन्तु तुम्हारे लिये उध्दार का और यह परमेश्वर की ओर से है' (वव.27-28, एम.एस.जी)।
मसीह का स्वभाव एकता की पूंजी है। चर्च में कोई भी फूट पौलुस के 'आनंद' को कम कर देगी (2:2)। एक्सर फूट 'स्वार्थ और झूठी बड़ाई' से आती है (व.3ब)। इसका समाधान है कि दूसरों को अपने से बेहतर समझे (व.3ब), केवल ' अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करें' (व.4)।
' विरोधी या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करें' (वव.3-4, एम.एस.जी)।
दूसरे शब्दों में, आपको यीशु का स्वभाव अपनाना है, जिन्होंने अपने स्वाभाविक, कानूनी और सामाजिक प्रतिष्ठा को जाने दिया और अपने आपको 'शून्य' बना दिया। ' वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रकट होकर अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली' (वव.7-8)। उन्होंने दीन सेवा और निस्वार्थ प्रेम का मार्ग अपनाया। यदि आप कभी अपनी प्रतिष्ठा के बारे में चिंतित हैं, तो याद रखिये कि यीशु ने आपको उससे अधिक नीचा किया, जितना कि हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते।
और इसके परिणामस्वरूप, ' इस कारण परमेश्वर ने उनको अति महान भी किया, और उनको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे है, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें; और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है' (वव.9-11)।
इसी तरह से आप परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं: मसीह के पीछे चलने के द्वारा उनकी दीन सेवा में और निस्वार्थ प्रेम में।
प्रार्थना
यिर्मयाह 1:1-2:30
1यिर्मयाह के ये सन्देश हैं। यिर्मयाह हिल्किय्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था। यिर्मयाह उन याजकों के परिवार से था जो अनातोत नगर में रहते थे। वह नगर उस प्रदेश में है जो बिन्यामीन परिवार का था। 2 यहोवा ने यिर्मयाह से उन दिनों बातें करनी आरम्भ की। जब योशिय्याह यहूदा राष्ट्र का राजा था। योशिय्याह आमोन नामक राजा का पुत्र था। यहोवा ने यिर्मयाह से योशिय्याह के राज्यकाल के तेरहवें वर्ष में बातें करनी आरम्भ की। 3 यहोवा यिर्मयाह से उस समय बातें करता रहा जब यहोयाकीम यहूदा का राजा था। यहोयाकीम योशिय्याह का पुत्र था। यिर्मयाह को सिदकिय्याह के राज्यकाल के ग्यारह वर्ष पाँच महीने तक, यहोवा की वाणी सुनाई पड़ती रही। सिदकिय्याह भी योशिय्याह का एक पुत्र था। सिदकिय्याह के राज्यकाल के ग्यारहवें वर्ष के पाँचवें महीने में यरूशलेम के निवासियों को देश—निकाला दिया गया था।
परमेश्वर यिर्मयाह को अपने पास बुलाता है
4 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहोवा का सन्देश यह था:
5 “तुम्हारी माँ के गर्भ में रखने के पहले
मैंने तुमको जान लिया।
तुम्हारे जन्म लेने के पहले,
मैंने तुम्हें विशेष कार्य के लिये चुना था।
मैंने तुम्हें राष्ट्रों का नबी होने को चुना था।”
6 तब मैंने अर्थात् यिर्मयाह ने कहा, “किन्तु सर्वशक्तिमान यहोवा, मैं तो बोलना भी नहीं जानता। मैं तो अभी बालक ही हूँ।”
7 किन्तु यहोवा ने मुझसे कहा,
“मत कहो, ‘मै बालक ही हूँ।’
तुम्हें हर उन स्थानों पर जाना है जहाँ मैं भेंजूँ।
तुम्हें वह सब कहना है जिसे मैं कहने को कहूँ।
8 किसी से मत डरो।
मैं तुम्हारे साथ हूँ, और मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का है।
9 तब यहोवा ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे मुँह को छू लिया। यहोवा ने मुझसे कहा,
“यिर्मयाह, मैं अपने शब्द तेरे मुँह में दे रहा हूँ।
10 आज मैंने तुम्हें राज्यों और राष्ट्रों का अधिकारी बनाया है।
तुम इन्हें उखाड़ और उजाड़ सकते हो। तुम इन्हें नष्ट और उठा फेंक सकते हो।
तुम इन्हें और उठा फेंक सकते हो।
तुम निर्माण और रोपण कर सकते हो।”
दो अर्न्तदृश्य
11 यहोवा का सन्देश मुझे मिला। यह सन्देश यहोवा का था: “यिर्मयाह, तुम क्या देखते हो”
मैंने यहोवा को उत्तर दिया और कहा, “मैं बादाम की लकड़ी की एक छड़ी देखता हूँ।”
12 यहोवा ने मुझसे कहा, “तुमने बहुत ठीक देखा और मैं इस बात की चौकसी कर रहा हूँ कि तुमको दिया गया मेरा सन्देश ठीक उतरे।”
13 यहोवा का सन्देश मुझे फिर मिला। यहोवा के यहाँ का सन्देश यह था, “यिर्मयाह, तुम क्या देखते हो”
मैंने यहोवा को उत्तर दिया और कहा, “मैं उबलते पानी का एक बर्तन देख रहा हूँ। यह बर्तन उत्तर की ओर से टपक रहा है।”
14 यहोवा ने मुझसे कहा, “उत्तर से कुछ भयानक आएगा।
यह उन सब लोगों के लिए होगा जो इस देश में रहते हैं।
15 कुछ समय बाद मैं उत्तर के राज्यों के सभी लोगों को बुलाऊँगा।”
ये बातें यहोवा ने कहीं।
“उन देशों के राजा आएंगे।
वे यरूशलेम के द्वार के सामने अपने सिंहासन जमाएंगे।
वे यरूशलेम के सभी नगर दीवारों पर आक्रमण करेंगे।
वे यहूदा प्रदेश के सभी नगरों पर आक्रमण करेंगे।
16 और मैं अपने लोगों के विरूद्ध अपने निर्णय की घोषणा करूँगा।
मैं यह इसलिये करूँगा, क्योंकि वे बुरे लोग हैं, और वे मेरे विरुद्ध चले गए हैं।
मेरे लोगों ने मुझे छोड़ा।
उन्होंने अन्य देवताओं को बलि चढ़ाई।
उन्होंने अपने हाथों से बनाई गई मूर्तियों को पूजा की।
17 “यिर्मयाह, जहाँ तक तुम्हारी बात है, उठो।
तैयार हो जाओ! उठो और लोगों को सन्देश दो।
वह सब कुछ लोगों से कहो जो मैं कहने को कहूँ।
लोगों से मत डरो।
यदि तुम लोगों से डरे तो मैं उनसे डरने का अच्छा कारण तुम्हें दे दूँगा।
18 जहाँ तक मेरी बात है, मैं आज ही तुझे
एक दृढ़ नगर, एक लौह स्तम्भ, एक काँसे की दीवार बनाने जा रहा हूँ।
तुम देश में हर एक के विरूद्ध खड़े होने योग्य होगे,
यहूदा देश के राजाओं के विरूद्ध, यहूदा के प्रमुखों के विरूद्ध, यहूदा के याजकों के विरूद्ध और यहूदा देश के लोगों के विरूद्ध भी।
19 वे सब लोग तुम्हारे विरूद्ध लड़ेंगे,
किन्तु वे तुझे पराजित नहीं करेंगे।
क्यों क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ,
और मैं तेरी रक्षा करूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का है।
यहूदा विश्वासयोग्य नहीं रहा
2यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहोवा का सन्देश यह था: 2 “यिर्मयाह, जाओ और यरूशलेम के लोगों को सन्देश दो। उनसे कहो:
“जिस समय तुम नव राष्ट्र थे, तुम मेरे विश्वासयोग्य थे।
तुमने मेरा अनुगमन नयी दुल्हन सा किया।
तुमने मेरा अनुगमन मरुभूमि में से होकर किया, उस प्रदेश में अनुगमन किया जिसे कभी कृषि भूमि न बनाया गया था।
3 इस्राएल के लोग यहोवा को एक पवित्र भेंट थे।
वे यहोवा द्वारा उतारे गये प्रथम फल थे।
इस्राएल को चोट पहुँचाने का प्रयत्न करने वाले हर एक लोग अपराधी निर्णीत किये गए थे।
उन बुरे लोगों पर बुरी आपत्तियाँ आई थीं।”
यह सन्देश यहोवा का था।
4 याकूब के परिवार, यहोवा का सन्देश सुनो।
इस्राएल के तुम सभी परिवार समूहो, सन्देश सुनो।
5 जो यहोवा कहता है, वह यह है:
“क्या तुम समझते हो कि, मैं तुम्हारे पूर्वजों का हितैषी नहीं था?
तब वे क्यों मुझसे दूर हो गए तुम्हारे पूर्वजों ने निरर्थक हो गये।
6 तुम्हारे पूर्वजों ने यह नहीं कहा,
‘यहोवा ने हमें मिस्र से निकाला।
यहोवा ने मरुभूमि में हमारा नेतृत्व किया।
यहोवा हमे सूखे चट्टानी प्रदेश से लेकर आया,
यहोवा ने हमें अन्धकारपूर्ण और भयपूर्ण देशों में राह दिखाई।
कोई भी लोग वहाँ नहीं रहते कोई भी लोग उस देश से यात्रा नहीं करते।
लेकिन यहोवा ने उस प्रदेश में हमारा नेतृत्व किया।
अत: वह यहोवा अब कहाँ हैं?’
7 “यहोवा कहता है, मैं तुम्हें अनेक अच्छी चीज़ों से भरे उत्तम देश में लाया।
मैंने यह किया जिससे तुम वहाँ उगे हुये फल और पैदावार को खा सके।
किन्तु तुम आए और मेरे देश को तुमने “गन्दा” किया।
मैंने वह देश तुम्हें दिया था,
किन्तु तुमने उसे बुरा स्थान बनाया।”
8 “याजकों ने नहीं पूछा, ‘यहोवा कहाँ हैं’ व्यवस्था को जाननेवाले लोगों ने मुझको जानना नहीं चाहा।
इस्राएल के लोगों के प्रमुख मेरे विरुद्ध चले गए।
नबियों ने झूठे बाल देवता के नाम भविष्यवाणी की।
उन्होंने निरर्थक देव मूर्तियों की पूजा की।”
9 यहोवा कहता है, “अत: मैं अब तुम्हें फिर दोषी करार दूँगा,
और तुम्हारे पौत्रों को भी दोषी ठहराऊँगा।
10 समुद्र पार कित्तियों के द्वीपों को जाओ
और देखो किसी को केदार प्रदेश को भेजो
और उसे ध्यान से देखने दो।
ध्यान से देखो क्या कभी किसी ने ऐसा काम किया:
11 क्या किसी राष्ट्र के लोगों ने कभी अपने पुराने देवताओं को नये देवता से बदला है नहीं!
निसन्देह उनके देवता वास्तव में देवता हैं ही नहीं।
किन्तु मेरे लोगों ने अपने यशस्वी परमेश्वर को निरर्थक देव मूर्तियों से बदला हैं।
12 “आकाश, जो हुआ है उससे अपने हृदय को आघात पहुँचने दो!
भय से काँप उठो!”
यह सन्देश यहोवा का था।
13 “मेरे लोगों ने दो पाप किये हैं।
उन्होंने मुझे छोड़ दिया (मैं ताजे पानी का सोता हूँ।)
और उन्होंने अपने पानी के निजी हौज खोदे हैं।
(वे अन्य देवताओं के भक्त बने हैं।)
किन्तु उनके हौज टूटे हैं।
उन हौजों में पानी नहीं रुकेगा।
14 “क्या इस्राएल के लोग दास हो गए हैं
ल के लोगों की सम्पत्ति अन्य लोगों ने क्यों ले ली
15 जवान सिंह (शत्रु) इस्राएल राष्ट्र पर दहाड़ते हैं, गुरते हैं।
सिंहों ने इस्राएल के लोगों का देश उजाड़ दिया हैं।
इस्राएल के नगर जला दिये गए हैं।
उनमें कोई भी नहीं रह गया है।
16 नोप और तहपन्हेस नगरों के लोगों ने तुम्हारे सिर के शीर्ष को कुचल दिया है।
17 यह परेशानी तुम्हारे अपने दोष के कारण है।
तुम अपने यहोवा परमेश्वर से विमुख हो गए, जबकि वह सही दिशा में तुम्हें ले जा रहा था।
18 यहूदा के लोगों, इसके बारे में सोचो:
क्या उसने मिस्र जाने में सहायता की क्या इसने नील नदी का पानी पीने में सहायता की नहीं!
क्या इसने अश्शूर जाने में सहायता की क्या इसने परात नदी का जल पीने में सहायता की नहीं!
19 तुमने बुरे काम किये, और वे बुरी चीजें तुम्हें केवल दण्ड दिलाएंगी।
विपत्तियाँ तुम पर टूट पड़ेंगी और ये विपत्तियाँ तुम्हें पाठ पढ़ाएंगी।
इस विषय में सोचो: तब तुम यह समझोगे कि अपने परमेश्वर से विमुख हो जाना कितना बुरा है।
मुझसे न डरना बुरा है।”
यह सन्देश मेरे स्वामी सर्वशक्तिमान यहोवा का था।
20 “यहूदा बहुत पहले तुमने अपना जुआ फेंक दिया था।
तुमने वह रस्सियाँ तोड़ फेंकी जिसे मैं तुम्हें अपने पास रखने में काम में लाता था।
तुमने मुझसे कहा, ‘मै आपकी सेवा नहीं करूँगा!’
सच्चाई यह है कि तुम वेश्या की तरह हर एक ऊँची पहाड़ी पर
और हर एक हरे पेड़ के नीचे लेटे और काम किये।
21 यहूदा, मैंने तुम्हें विशेष अंगूर की बेल की तरह रोपा।
तुम सभी अच्छे बीज के समान थे।
तुम उस भिन्न बेल में कैसे बदले
जो बुरे फल देती है
22 यदि तुम अपने को ल्ये से भी धोओ,
बहुत साबुन भी लगाओ,
तो भी मैं तुम्हारे दोष के दाग को देख सकता हूँ।”
यह सन्देश परमेश्वर यहोवा का था।
23 “यहूदा, तुम मुझसे कैसे कह सकते हो,
‘मै अपराधी नहीं हूँ, मैंने बाल की मूर्तियों की पूजा नहीं की है!’
उन कामों के बारे में सोचों
जिन्हें तुमने घाटी में किये।
उस बारे में सोचों, तुमने क्या कर डाला है।
तुम उस तेज ऊँटनी के समान हो जो एक स्थान से दूसरे स्थान को दौड़ती है।
24 तुम उस जँगली गधी की तरह हो जो मरुभूमि में रहती है
और सहभोग के मौसम में जो हवा को सूंघती है (गन्ध लेती है।)
कोई व्यक्ति उसे कामोत्तेजना के समय लौटा कर ला नहीं सकता।
सहभोग के समय हर एक गधा जो उसे चाहता है, पा सकता है।
उसे खोज निकालना सरल है।
25 यहूदा, देवमूर्तियों के पीछे दौड़ना बन्द करो।
उन अन्य देवताओं के लिये प्यास को बुझ जाने दो।
किन्तु तुम कहते हो, ‘यह व्यर्थ है! मैं छोड़ नहीं सकता!
मैं उन अन्य देवताओं से प्रेम करता हूँ।
मैं उनकी पूजा करना चाहता हूँ।’
26 “चोर लज्जित होता है जब उसे लोग पकड़ लेते हैं।
उसी प्रकार इस्राएल का परिवार लज्जित है।
राजा और प्रमुख, याजक और नबी लज्जित हैं।
27 वे लोग लकड़ी के टुकड़ो से बातें करते हैं, वे कहते हैं,
‘तुम मेरे पिता हो।’
वे लोग चट्टान से बात करते हैं, वे कहते हैं,
‘तुमने मुझे जन्म दिया है।’
वे सभी लोग लज्जित होंगे।
वे लोग मेरी ओर ध्यान नहीं देते।
उन्होंने मुझसे पीठ फेर ली है।
किन्तु जब यहूदा के लोगों पर विपत्ति आती है
तब वे मुझसे कहते हैं, ‘आ और हमें बचा!’
28 उन देवमूर्तियों को आने और तुमको बचाने दो!
वे देवमूर्तियाँ कहाँ हैं जिसे तुमने अपने लिये बनाया है हमें देखने दो,
क्या वे मूर्तियाँ आती हैं और तुम्हारी रक्षा विपत्ति से करती हैं
यहूदा के लोगों, तुम लोगों के पास उतनी मूर्तियाँ हैं जितने नगर।
29 “तुम मुझसे विवाद क्यों करते हो
तुम सभी मेरे विरुद्ध हो गए हो।”
यह सन्देश यहोवा का था।
30 “यहूदा के लोगों, मैंने तुम्हारे लोगों को दण्ड दिया,
किन्तु इसका कोई परिणाम न निकला।
तुम तब लौट कर नहीं आए जब दण्डित किये गये।
तुमने उन नबियों को तलवार के घाट उतारा जो तुम्हारे पास आए।
तुम खूंखार सिंह की तरह थे
और तुमने नबियों को मार डाला।”
समीक्षा
परमेश्वर की महिमा कब करें?
क्या होता है जब आपके जीवन में और आपके आस-पास के लोगों के जीवन में परेशानियाँ, कठिनाईया और व्यवधान आते हैं?
यिर्मयाह इस्राएल के इतिहास में सबसे कठिन समय में जीएँ -587 बी.सी. में यरूशलेम का पतन और बेबीलोन में निर्वासन। लोगों को सुनाने के लिए उन्हें एक कठिन संदेश दिया गया। शत्रुता की भावना और सताव के सामने उन्होंने इसे बड़े साहस के साथ किया।
यिर्मयाह का आरंभिक अध्याय दो और तरीके को दिखाता है जिससे आप परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं और कब आप यह कर सकते हैं।
पहला, आप परमेश्वर की महिमा करते हैं जब आप परमेश्वर की बुलाहट को उत्तर देते हैं। लीडरशिप के लिए उम्र अड़चन नहीं है। यिर्मियाह लगभग एक टीनेजर थे जब परमेश्वर ने उन्हें बुलाया, 627बी.सी के आस-पास। उनका वर्णन एक 'पैदा हुए लीडर' और एक 'पैदा हुए भविष्यवक्ता' के रूप में किया जा सकता है। उनके जन्म से पहले, उन्हें एक भविष्यवक्ता बनने के लिए अलग किया गया था। परमेश्वर ने कहा, ' 'गर्भ में रचने से पहले ही मैं ने तुझ पर चित्त लगाया, और उत्पन्न होने से पहले ही मैं ने तेरा अभिषेक किया; मैं ने तुझे जातियों का भविष्यद्वक्ता ठहराया' (1:5, ए.एम.पी)।
परमेश्वर आपके विषय में सब कुछ जानते हैं – अच्छा और बुरा। उनकी जानकारी से कुछ परे नहीं है। वह आपसे प्रेम करते हैं। आवश्यक रूप से उन सभी चीजों से सहमत नहीं हैं जो आप करते हैं, लेकिन वह चाहते हैं कि आप यिर्मयाह की तरह जीएँ, उनके प्रेम और सहमति को जानने की स्वतंत्रता के साथ।
परमेश्वर आपसे कहते हैं, जैसा कि उन्होंने यिर्मयाह से कहा, ' जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँ वहाँ तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे आज्ञा दूँ वही तू कहेगा' (व.7)। यह आपके शरीर से पूर्ण उत्तरदायित्व को हटा देता है। परमेश्वर की महिमा करने का अर्थ संपूर्ण विश्व को बचाने की कोशिश करना नहीं है (यह परमेश्वर का उत्तरदायित्व है), बल्कि वह करना जो परमेश्वर आपसे करने के लिए कहते हैं। यह सरल नहीं होगा। परमेश्वर चेतावनी देते हैं कि विरोध आएगा (वव.17-19)।
दूसरा, आप परमेश्वर की महिमा करते हैं जब आप परमेश्वर के सुधार कार्य को उत्तर देते हैं। परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा कि लोगों को चिताये कि बेकार की मूर्तिपूजा न करें और उन्हें परमेश्वर की आराधना करने के लिए फिरने को कहें।
यिर्मयाह ने कहा, ' मेरी प्रजा ने अपनी महिमा को निकम्मी वस्तु से बदल दिया है' (2:11ब)। ना केवल यह परमेश्वर को वह महिमा देता, जिसके वह योग्य हैं, यह असल में स्वयं का विनाश करता है। जब हम परमेश्वर से दूर चले जाते हैं, तब हम उनके साथ संबंध की आशीष को खो देते हैं और इसके बदले बेकार चीज ले आते हैं। परमेश्वर शोक प्रकट करते हैं कि कैसे ' मेरी प्रजा ने दो बुराइयाँ की हैं : उन्होंने मुझ बहते जल के सोते को त्याग दिया है, और उन्होंने हौद बना लिए, वरन् ऐसे हौद जो टूट गए हैं, और जिन में जल नहीं रह सकता' (व.13)।
फिर से, हम देखते हैं कि आप वह बन जाते हैं जिनकी आप आराधना करते हैं। जो 'बेकार मूर्ति' के पीछे जाते हैं वह 'अपने आपमें बेकार' बन जाते हैं (व.5)। यदि आप यीशु के पीछे चलते हैं, तो आप उनकी तरह बन जाते हैं। यदि हम ताकत, पैसा, भोजन, पानी और ड्रग्स के लिए हमारी स्वार्थी भूख और हमारी अभिलाषा के द्वारा संतुष्टि, अर्थ और उद्देश्य को पाने की कोशिश करते हैं, तो हम महत्वहीन बन जाते हैं – हमारा जीवन बेकार बन जाता है।
विशेष रूप से, ' जंगल में पली हुई जंगली गदही जो कामातुर होकर वायु सूँघती फिरती है तब कौन उसे वश में कर सकता है? जितने उसको ढूँढ़ते हैं वे व्यर्थ परिश्रम न करें; क्योंकि वे उसे उसकी ऋतु में पाएँगे' (व.24, एम.एस.जी)। ' तू ने कहा, ‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा प्रेम दूसरों से हो गया है और मैं उनके पीछे चलती रहूँगी।' (व.25, एम.एस.जी)।
यिर्मयाह ने उदासी जतायी कि परमेश्वर के लोगों ने उनकी बात नहीं मानी (व.30)। वे उनकी आशीषों को भूल गए, और उन्हे महिमा देने में असफल हो गए।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
यिर्मयाह 1:11-12
यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा, 'हे यिर्मयाह, तुझे क्या दिखाई पड़ता है?' मैं ने कहा, 'मुझे बादाम की एक टहनी दिखाई पड़ती है।' तब यहोवा ने मुझ से कहा, 'तुझे ठीक दिखाई पड़ता है, क्योंकि मैं अपने वचन को पूरा करने के लिये जागृत हूँ।'
यह दिलचस्प बात है कि परमेश्वर बातें करने के लिए चित्रों का इस्तेमाल करते हैं। वे बहुत ही शांतिदायक, उत्साहित करने वाले और स्मरणीय हो सकते हैं। मुझे यह थोड़ा डरावना लगता है यदि मुझे लगता है कि सभा में मेरे पास एक चित्र है। इसे झूठ मानना आसान बात है, यह सोचते हुए कि किसी दूसरे के पास शायद से एक बेहतर चित्र होगा और यह कि शायद से मैंने इसे बनाया। मैं थोड़ा अधिक साहसी बनने की कोशिश कर रही हूँ और, यदि मेरे पास कुछ है, तो इसे आशा के साथ बताऊँ ताकि परमेश्वर मुझे और दें।
दिन का वचन
भजन संहिता 115:1
“हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन अपने ही नाम की महिमा, अपनी करूणा और सच्चाई के निमित्त कर।“
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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
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