सही पथ पर कैसे बने रहें
परिचय
पिपा और मुझे लंबी दूरी तक पैदल चलना अच्छा लगता है (बल्कि मुझे ज़्यादा दूर जाना अच्छा लगता है और उसे थोड़ी दूर जाना अच्छा लगता है – इसलिए हम मध्यम दूरी तक जाने के लिए समझौता कर लेते हैं!)। ज़्यादा समय नहीं हुआ, हम साउथ डाउन्स में काफी दूर चले गए थे। हम में से किसी को भी दिशा की ज़्यादा जानकारी नहीं थी और हम नक्शा साथ ले जाना भी भूल गए थे। किसी तरह से हम सही मार्ग पर पहुँच गए और अंत में किसी के खेत में पहुँचे।
यह साल के सबसे छोटे दिनों में से एक था और जल्दी ही रौशनी धुंधली होने लगी। ऐसा लगा कि जहाँ पर हमने अपनी कार पार्क की थी वहाँ पर जाने के लिए हमें एक खेत को पार करना पड़ेगा जहाँ पर गायों का एक बड़ा झुंड था। जब हम उनके पास पहुँचे, तो उनमें से कुछ ने हमें मित्रवत तरीके से घेर लिया, और हमारा रास्ता रोक दिया, जबकि कुछ गायें डर के मारे खेत में इधर - उधर भागने लगीं।
हम ने यकीन कर लिया था कि हमें गायों को खदेड़ते हुए कींचड़ के ढेर में से होकर गुज़रना पड़ेगा या भयभीत गायों को बाड़े में ले जाने के लिए किसी किसान को क्रोधित करना पड़ेगा। हमने काफी ढलान वाले और फिसलन वाले मार्ग पर से तेज़ी से निकलने का फैसला किया। पिपा को ज़्यादा दूर चलने की इच्छा थी, अंधेरा बढ़ रहा था और सही मार्ग पर आने का कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा था। चीज़ें अच्छी नज़र नहीं आ रही थीं।
शुक्र है, किसी तरह से हम सही मार्ग पर वापस आ गए। बड़ी राहत मिली। हमने सोच लिया कि भविष्य में हम हमेशा नक्शा और छ्ड़ी अपने साथ रखेंगे। सही मार्ग पर बने रहने से यह हमें विश्राम करने, एक दूसरे से बातें करने और सामान्य रूप से अपने संबंधों के लिए बेहतर साबित होता है!
बाइबल में, परमेश्वर के मार्ग का उपयोग कई बार किया गया है: वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है।
भजन संहिता 17:1-5
दाऊद का प्रार्थना गीत।
17हे यहोवा, मेरी प्रार्थना न्याय के निमित्त सुन।
मैं तुझे ऊँचे स्वर से पुकार रहा हूँ।
मैं अपनी बात ईमानदारी से कह रहा हूँ।
सो कृपा करके मेरी प्रार्थना सुन।
2 यहोवा तू ही मेरा उचित न्याय करेगा।
तू ही सत्य को देख सकता है।
3 मेरा मन परखने को तूने उसके बीच
गहरा झाँक लिया है।
तू मेरे संग रात भर रहा, तूने मुझे जाँचा, और तुझे मुझ में कोई खोट न मिला।
मैंने कोई बुरी योजना नहीं रची थी।
4 तेरे आदेशों को पालने में मैंने कठिन यत्न किया
जितना कि कोई मनुष्य कर सकता है।
5 मैं तेरी राहों पर चलता रहा हूँ।
मेरे पाँव तेरे जीवन की रीति से नहीं डिगे।
समीक्षा
परमेश्वर के मार्ग पर बने रहने का निर्णय लें
दाऊद कहता है, ‘मेरे पांव तेरे पथों में स्थिर रहे, फिसले नहीं’ (पद - 5अ)। पथ के लिए इब्रानियों में इस शब्द का अर्थ ‘पटरी’ (व्हील ट्रैक्स) है। दाऊद परमेश्वर के पथ पर बने रहने के लिए दृढ़ संकल्पित है। परमेश्वर के पथ पर बने रहने के लिए आपको इन्हें जाँचना जरूरी है:
- आपका हृदय (आप क्या सोचते हैं)
- ‘तू ने मेरे हृदय को जांचा है; तू ने रात को मेरी देखभाल की, तू ने मुझे परखा परन्तु कुछ भी खोटापन नहीं पाया’ (पद - 3अ)।
- आपके शब्द (आप क्या कहते हैं)
- 'मैं ने ठान लिया है कि मेरे मुंह से अपराध की बात नहीं निकलेगी' (पद - 3क)।
- आपके पाँव (आप किन जगहों पर जाते हैं)
- 'मेरे पांव तेरे पथों में स्थिर रहे, फिसले नहीं' (पद - 5ब)।
प्रार्थना
मत्ती 19:1-15
तलाक
19ये बातें कहने के बाद वह गलील से लौट कर यहूदिया के क्षेत्र में यर्दन नदी के पार चला गया। 2 एक बड़ी भीड़ वहाँ उसके पीछे हो ली, जिसे उसने चंगा किया।
3 उसे परखने के जतन में कुछ फ़रीसी उसके पास पहुँचे और बोले, “क्या यह उचित है कि कोई अपनी पत्नी को किसी भी कारण से तलाक दे सकता है?”
4 उत्तर देते हुए यीशु ने कहा, “क्या तुमने शास्त्र में नहीं पढ़ा कि जगत को रचने वाले ने प्रारम्भ में, ‘उन्हें एक स्त्री और एक पुरुष के रूप में रचा था?’ 5 और कहा था ‘इसी कारण अपने माता-पिता को छोड़ कर पुरुष अपनी पत्नी के साथ दो होते हुए भी एक शरीर होकर रहेगा।’ 6 सो वे दो नहीं रहते बल्कि एक रूप हो जाते हैं। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे किसी भी मनुष्य को अलग नहीं करना चाहिये।”
7 वे बोले, “फिर मूसा ने यह क्यों निर्धारित किया है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। शर्त यह है कि वह उसे तलाक नामा लिख कर दे।”
8 यीशु ने उनसे कहा, “मूसा ने यह विधान तुम लोगों के मन की जड़ता के कारण दिया था। किन्तु प्रारम्भ में ऐसी रीति नहीं थी। 9 तो मैं तुमसे कहता हूँ कि जो व्यभिचार को छोड़कर अपनी पत्नी को किसी और कारण से त्यागता है और किसी दूसरी स्त्री की ब्याहता है तो वह व्यभिचार करता है।”
10 इस पर उसके शिष्यों ने उससे कहा, “यदि एक स्त्री और एक पुरुष के बीच ऐसी स्थिति है तो किसी को ब्याह ही नहीं करना चाहिये।”
11 फिर यीशु ने उनसे कहा, “हर कोई तो इस उपदेश को ग्रहण नहीं कर सकता। इसे बस वे ही ग्रहण कर सकते हैं जिनको इसकी क्षमता प्रदान की गयी है। 12 कुछ ऐसे हैं जो अपनी माँ के गर्भ से ही नपुंसक पैदा हुए हैं। और कुछ ऐसे हैं जो लोगों द्वारा नपुंसक बना दिये गये हैं। और अंत में कुछ ऐसे हैं जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के कारण विवाह नहीं करने का निश्चय किया है। जो इस उपदेश को ले सकता है ले।”
यीशु की आशीष: बच्चों को
13 फिर लोग कुछ बालकों को यीशु के पास लाये कि वह उनके सिर पर हाथ रख कर उन्हें आशीर्वाद दे और उनके लिए प्रार्थना करे। किन्तु उसके शिष्यों ने उन्हें डाँटा। 14 इस पर यीशु ने कहा, “बच्चों को रहने दो, उन्हें मत रोको, मेरे पास आने दो क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों का ही है।” 15 फिर उसने बच्चों के सिर पर अपना हाथ रखा और वहाँ से चल दिया।
समीक्षा
अपने संबंधों में परमेश्वर के पथ पर बने रहे
आपके खुद के जीवन के लिए और समाज के लिए संबंधों पर, यीशु की शिक्षा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
- विवाह का महत्त्व
- फरीसियों ने यीशु से तलाक के बारे में पूछा, लेकिन उन्होंने विवाह के बारे में उत्तर देते हुए कहा। वह सृष्टि का उल्लेख करते हैं। यीशु उत्पत्ति 2:24 से कहते हैं, यह बताते हुए कि, ‘इस कारण पुरूष अपने माता - पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे’ (मत्ती 19:5)। उत्पत्ति का यह वचन विवाह के लिए मूल योजना है – केवल पुराने नियम में और पौलुस के द्वारा ही नहीं (इफीसीयों 5:31), बल्कि स्वयं यीशु के द्वारा भी।
- विवाह में सार्वजनिक व्यवस्था शामिल है, जिसमें आप अपने साथी से पूरे जीवन के लिए प्रतिज्ञा करते हैं जो कि माता - पिता के साथ आपके संबंधों से ज़्यादा प्रधान है। इसमें एक ही जीवन साथी के साथ ‘जुड़े रहना’ शामिल है – इब्रानी में इस शब्द का अर्थ है एक - साथ ‘चिपके रहना’ – केवल शारीरिक और जैविक रीति से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आत्मिक तौर से भी। यह ‘एक - तन’ होने का मसीही प्रसंग है। विवाह का बाइबल पर आधारित सिद्धांत सबसे रोमांचक और सकारात्मक है। यह सबसे रूमानी दृष्टिकोण है। यह हमारे सामने परमेश्वर की सिद्ध योजना स्थापित करता है।
- तलाक में रियायत
- फरीसी तलाक के बारे में अपने प्रश्न पर ज़ोर देते रहे। उन्होंने मूसा के निर्देशों का उल्लेख किया (मत्ती 19:7)। यीशु ने यह कहकर उत्तर दिया, ‘मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी पत्नी को छोड़ देने की आज्ञा दी,’ (पद - 8) और ' और मैं तुम से कहता हूं, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्यागकर, दूसरी से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई से ब्याह करे, वह भी व्यभिचार करता है' (पद - 9)।
- तलाक के लिए मूसा की व्यवस्था हमें परमेश्वर की दया और करूणा की याद उन परिस्थितियों में दिलाती है जब हम उनके आदर्शों का पालन करने में उल्लंघन करते हैं। लेकिन यीशु कहते हैं कि तलाक कभी भी मान्य नहीं है।
- जिन लोगों ने विवाह टूटने के दर्द का अनुभव किया है वे अपने कष्टों के बारे में आज के पुराने नियम के पद्यांश में से याकूब के दु:खों का वर्णन सही पाएंगे। खुद के और दूसरों के विवाह को बचाए रखने के लिए हमें जितना संभव हो सके प्रयास करना चाहिये और जिनका तलाक हो गया है उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा तसल्ली देनी चाहिये (ना कि एलीपज की तरह दोष लगाना चाहिये)।
- कुँआरेपन के लिए बुलाहट
- यीशु तीन तरह के कुँआरेपन (अकेलेपन) के बारे में बताते हैं। पहला, आनुवांशिक - ‘जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे’ (पद - 12अ)। अनैच्छिक कुँआरापन (पद - 12ब)। – ‘जिन्होंने कभी नहीं चाहा – नहीं अपनाया’ (एम.एस.जी.)। तीसरा, ऐच्छिक कुँआरापन – जिन्होंने स्वर्ग राज्य के लिए अपने आपको कुँआरा बनाया है (पद - 12क, एम.एस.जी.)। कुँआरापन स्थायी या अस्थायी हो सकता है, लेकिन इसे नये नियम में दूसरा सबसे अच्छे के रूप में कभी भी मान्य नहीं किया गया है। विवाह और कुँआरापन दोनों उच्च बुलाहट है और नये नियम के अनुसार दोनों के फायदे और नुकसान हैं।
- बच्चों को प्राथमिकता देना
- यीशु के शब्दों ने बच्चों के प्रति उस समय के कई लोगों के व्यवहार को चुनौती दी। प्राचीन काल में समाज अक्सर बच्चों को समाज के घेरे पर रखा करते थे – प्राचीन समय की ब्रिटिश कहावत का इस्तेमाल करते हुए, उन्हें इस तरह से रखा जाता था कि, ‘वे देख पाएं पर सुन न पाएं’।
- परमेश्वर का पथ बिल्कुल अलग है। यीशु अपने हाथ छोटे बच्चों पर रखकर उनके लिए प्रार्थना करते थे (पद - 13अ)। जब शिष्यों को लगा कि बच्चों के कारण वे विचलित न हों, तो यीशु ने उनसे कहा, ‘ बालकों को मेरे पास आने दो: और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है’ (पद - 14)। उन्होंने दर्शाया कि बच्चों को हमारे जीवन में ज़्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- माता - पिता होने के नाते हमें बच्चों को प्राथमिकता देना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और यह न समझना कि उनके कारण हमारे काम में या सेविकाई में परेशानी आ रही हैं।
प्रार्थना
अय्यूब 4:1-7:21
एलीपज का कथन
4फिर तेमान के एलीपज ने उत्तर दिया:
2 “यदि कोई व्यक्ति तुझसे कुछ कहना चाहे तो
क्या उससे तू बेचैन होगा? मुझे कहना ही होगा!
3 हे अय्यूब, तूने बहुत से लोगों को शिक्षा दी
और दुर्बल हाथों को तूने शक्ति दी।
4 जो लोग लड़खड़ा रहे थे तेरे शब्दों ने उन्हें ढाढ़स बंधाया था।
तूने निर्बल पैरों को अपने प्रोत्साहन से सबल किया।
5 किन्तु अब तुझ पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है
और तेरा साहस टूट गया है।
विपदा की मार तुझ पर पड़ी
और तू व्याकुल हो उठा।
6 तू परमेश्वर की उपासना करता है,
सो उस पर भरोसा रख।
तू एक भला व्यक्ति है
सो इसी को तू अपनी आशा बना ले।
7 अय्यूब, इस बात को ध्यान में रख कि कोई भी सज्जन कभी नहीं नष्ट किये गये।
निर्दोष कभी भी नष्ट नहीं किया गया है।
8 मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो कष्टों को बढ़ाते हैं और जो जीवन को कठिन करते हैं।
किन्तु वे सदा ही दण्ड भोगते हैं।
9 परमेश्वर का दण्ड उन लोगों को मार डालता है
और उसका क्रोध उन्हें नष्ट करता है।
10 दुर्जन सिंह की तरह गुरर्ते और दहाड़ते हैं,
किन्तु परमेश्वर उन दुर्जनों को चुप कराता है।
परमेश्वर उनके दाँत तोड़ देता है।
11 बुरे लोग उन सिंहों के समान होते हैं जिन के पास शिकार के लिये कुछ भी नहीं होता।
वे मर जाते हैं और उनके बच्चे इधर—उधर बिखर जाते है, और वे मिट जाते हैं।
12 “मेरे पास एक सन्देश चुपचाप पहुँचाया गया,
और मेरे कानों में उसकी भनक पड़ी।
13 जिस तरह रात का बुरा स्वप्न नींद उड़ा देता हैं,
ठीक उसी प्रकार मेरे साथ में हुआ है।
14 मैं भयभीत हुआ और काँपने लगा।
मेरी सब हड्डियाँ हिल गई।
15 मेरे सामने से एक आत्मा जैसी गुजरी
जिससे मेरे शरीर में रोंगटे खड़े हो गये।
16 वह आत्मा चुपचाप ठहर गया
किन्तु मैं नहीं जान सका कि वह क्या था।
मेरी आँखों के सामने एक आकृति खड़ी थी,
और वहाँ सन्नाटा सा छाया था।
फिर मैंने एक बहुत ही शान्त ध्वनि सुनी।
17 “मनुष्य परमेश्वर से अधिक उचित नहीं हो सकता।
अपने रचयिता से मनुष्य अधिक पवित्र नहीं हो सकता।
18 परमेश्वर अपने स्वर्गीय सेवकों तक पर भरोसा नहीं कर सकता।
परमेश्वर को अपने दूतों तक में दोष मिल जातें हैं।
19 सो मनुष्य तो और भी अधिक गया गुजरा है।
मनुष्य तो कच्चे मिट्टी के घरौंदों में रहते हैं।
इन मिट्टी के घरौंदों की नींव धूल में रखी गई हैं।
इन लोगों को उससे भी अधिक आसानी से मसल कर मार दिया जाता है,
जिस तरह भुनगों को मसल कर मारा जाता है।
20 लोग भोर से सांझ के बीच में मर जाते हैं किन्तु उन पर ध्यान तक कोई नहीं देता है।
वे मर जाते हैं और सदा के लिये चले जाते हैं।
21 उनके तम्बूओं की रस्सियाँ उखाड़ दी जाती हैं,
और ये लोग विवेक के बिना मर जाते हैं।”
5“अय्यूब, यदि तू चाहे तो पुकार कर देख ले किन्तु तुझे कोई भी उत्तर नहीं देगा।
तू किसी भी स्वर्गदूत की ओर मुड़ नहीं सकता है।
2 मूर्ख का क्रोध उसी को नष्ट कर देगा।
मूर्ख की तीव्र भावनायें उसी को नष्ट कर डालेंगी।
3 मैंने एक मूर्ख को देखा जो सोचता था कि वह सुरक्षित है।
किन्तु वह एकाएक मर गया।
4 ऐसे मूर्ख व्यक्ति की सन्तानों की कोई भी सहायता न कर सका।
न्यायालय में उनको बचाने वाला कोई न था।
5 उसकी फसल को भूखे लोग खा गये, यहाँ तक कि वे भूखे लोग काँटों की झाड़ियों के बीच उगे अन्न कण को भी उठा ले गये।
जो कुछ भी उसके पास था उसे लालची लोग उठा ले गये।
6 बुरा समय मिट्टी से नहीं निकलता है,
न ही विपदा मैदानों में उगती है।
7 मनुष्य का जन्म दु:ख भोगने के लिये हुआ है।
यह उतना ही सत्य है जितना सत्य है कि आग से चिंगारी ऊपर उठती है।
8 किन्तु अय्यूब, यदि तुम्हारी जगह मैं होता
तो मैं परमेश्वर के पास जाकर अपना दुखड़ा कह डालता।
9 लोग उन अद्भुत भरी बातों को जिन्हें परमेश्वर करता है, नहीं समझते हैं।
ऐसे उन अद्भुत कर्मो का जिसे परमेश्वर करता है, कोई अन्त नहीं है।
10 परमेश्वर धरती पर वर्षा को भेजता है,
और वही खेतों में पानी पहुँचाया करता है।
11 परमेश्वर विनम्र लोगों को ऊपर उठाता है,
और दु:खी जन को अति प्रसन्न बनाता है।
12 परमेश्वर चालाक व दुष्ट लोगों के कुचक्र को रोक देता है।
इसलिये उनको सफलता नहीं मिला करती।
13 परमेश्वर चतुर को उसी की चतुराई भरी योजना में पकड़ता है।
इसलिए उनके चतुराई भरी योजनाएं सफल नहीं होती।
14 वे चालाक लोग दिन के प्रकाश में भी ठोकरें खाते फिरते हैं।
यहाँ तक कि दोपहर में भी वे रास्ते का अनुभव रात के जैसे करते हैं।
15 परमेश्वर दीन व्यक्ति को मृत्यु से बचाता है
और उन्हें शक्तिशाली चतुर लोगों की शक्ति से बचाता है।
16 इसलिए दीन व्यक्ति को भरोसा है।
परमेश्वर बुरे लोगों को नष्ट करेगा जो खरे नहीं हैं।
17 “वह मनुष्य भाग्यवान है, जिसका परमेश्वर सुधार करता है
इसलिए जब सर्वशक्तिशाली परमेश्वर तुम्हें दण्ड दे रहा तो तुम अपना दु:खड़ा मत रोओ।
18 परमेश्वर उन घावों पर पट्टी बान्धता है जिन्हें उसने दिया है।
वह चोट पहुँचाता है किन्तु उसके ही हाथ चंगा भी करते हैं।
19 वह तुझे छ: विपत्तियों से बचायेगा।
हाँ! सातों विपत्तियों में तुझे कोई हानि न होगी।
20 अकाल के समय परमेश्वर
तुझे मृत्यु से बचायेगा
और परमेश्वर युद्ध में
तेरी मृत्यु से रक्षा करेगा।
21 जब लोग अपने कठोर शब्दों से तेरे लिये बुरी बात बोलेंगे,
तब परमेश्वर तेरी रक्षा करेगा।
विनाश के समय
तुझे डरने की आवश्यकता नहीं होगी।
22 विनाश और भुखमरी पर तू हँसेगा
और तू जंगली जानवरों से कभी भयभीत न होगा।
23 तेरी वाचा परमेश्वर के साथ है यहाँ तक कि मैदानों की चट्टाने भी तेरा वाचा में भाग लेती है।
जंगली पशु भी तेरे साथ शान्ति रखते हैं।
24 तू शान्ति से रहेगा
क्योंकि तेरा तम्बू सुरक्षित है।
तू अपनी सम्पत्ति को सम्भालेगा
और उसमें से कुछ भी खोया हुआ नहीं पायेगा।
25 तेरी बहुत सन्तानें होंगी और वे इतनी होंगी
जितनी घास की पत्तियाँ पृथ्वी पर हैं।
26 तू उस पके गेहूँ जैसा होगा जो कटनी के समय तक पकता रहता है।
हाँ, तू पूरी वृद्ध आयु तक जीवित रहेगा।
27 “अय्यूब, हमने ये बातें पढ़ी हैं और हम जानते हैं कि ये सच्ची है।
अत: अय्यूब सुन और तू इन्हें स्वयं अपने आप जान।”
अय्यूब ने एलीपज को उत्तर देता है
6फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा,
2 “यदि मेरी पीड़ा को तौला जा सके
और सभी वेदनाओं को तराजू में रख दिया जाये, तभी तुम मेरी व्यथा को समझ सकोगे।
3 मेरी व्यथा समुद्र की समूची रेत से भी अधिक भारी होंगी।
इसलिये मेरे शब्द मूर्खतापूर्ण लगते हैं।
4 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बाण मुझ में बिधे हैं और
मेरा प्राण उन बाणों के विष को पिया करता है।
परमेश्वर के वे भयानक शस्त्र मेरे विरुद्ध एक साथ रखी हुई हैं।
5 तेरे शब्द कहने के लिये आसान हैं जब कुछ भी बुरा नहीं घटित हुआ है।
यहाँ तक कि बनैला गधा भी नहीं रेंकता यदि उसके पास घास खाने को रहे
और कोई भी गाय तब तक नहीं रम्भाती जब तक उस के पास चरने के लिये चारा है।
6 भोजन बिना नमक के बेस्वाद होता है
और अण्डे की सफेदी में स्वाद नहीं आता है।
7 इस भोजन को छूने से मैं इन्कार करता हूँ।
इस प्रकार का भोजन मुझे तंग कर डालता है।
मेरे लिये तुम्हारे शब्द ठीक उसी प्रकार के हैं।
8 “काश! मुझे वह मिल पाता जो मैंने माँगा है।
काश! परमेश्वर मुझे दे देता जिसकी मुझे कामना है।
9 काश! परमेश्वर मुझे कुचल डालता
और मुझे आगे बढ़ कर मार डालता।
10 यदि वह मुझे मारता है तो एक बात का चैन मुझे रहेगा,
अपनी अनन्त पीड़ा में भी मुझे एक बात की प्रसन्नता रहेगा कि मैंने कभी भी अपने पवित्र के आदेशों पर चलने से इन्कार नहीं किया।
11 “मेरी शक्ति क्षीण हो चुकी है अत: जीते रहने की आशा मुझे नहीं है।
मुझ को पता नहीं कि अंत में मेरे साथ क्या होगा इसलिये धीरज धरने का मेरे पास कोई कारण नहीं है।
12 मैं चट्टान की भाँति सुदृढ़ नहीं हूँ।
न ही मेरा शरीर काँसे से रचा गया है।
13 अब तो मुझमें इतनी भी शक्ति नहीं कि मैं स्वयं को बचा लूँ।
क्यों? क्योंकि मुझ से सफलता छीन ली गई है।
14 “क्योंकि वह जो अपने मित्रों के प्रति निष्ठा दिखाने से इन्कार करता है।
वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का भी अपमान करता है।
15 किन्तु मेरे बन्धुओं, तुम विश्वासयोग्य नहीं रहे।
मैं तुम पर निर्भर नहीं रह सकता हूँ।
तुम ऐसी जलधाराओं के सामान हो जो कभी बहती है और कभी नहीं बहती है।
तुम ऐसी जलधाराओं के समान हो जो उफनती रहती है।
16 जब वे बर्फ से और पिघलते हुए हिम सा रूँध जाती है।
17 और जब मौसम गर्म और सूखा होता है
तब पानी बहना बन्द हो जाता है,
और जलधाराऐं सूख जाती हैं।
18 व्यापारियों के दल मरुभूमि में अपनी राहों से भटक जाते हैं
और वे लुप्त हो जाते हैं।
19 तेमा के व्यापारी दल जल को खोजते रहे
और शबा के यात्री आशा के साथ देखते रहे।
20 वे आश्वत थे कि उन्हें जल मिलेगा
किन्तु उन्हें निराशा मिली।
21 अब तुम उन जलधाराओं के समान हो।
तुम मेरी यातनाओं को देखते हो और भयभीत हो।
22 क्या मैंने तुमसे सहायता माँगी? नहीं।
किन्तु तुमने मुझे अपनी सम्मति स्वतंत्रता पूर्वक दी।
23 क्या मैंने तुमसे कहा कि शत्रुओं से मुझे बचा लो
और क्रूर व्यक्तियों से मेरी रक्षा करो।
24 “अत: अब मुझे शिक्षा दो और मैं शान्त हो जाऊँगा।
मुझे दिखा दो कि मैंने क्या बुरा किया है।
25 सच्चे शब्द सशक्त होते हैं
किन्तु तुम्हारे तर्क कुछ भी नहीं सिद्ध करते।
26 क्या तुम मेरी आलोचना करने की योजनाऐं बनाते हो?
क्या तुम इससे भी अधिक निराशापूर्ण शब्द बोलोगे ?
27 यहाँ तक कि तुम जुऐ में उन बच्चों की वस्तुओं को छीनना चाहते हो,
जिनके पिता नहीं हैं।
तुम तो अपने निज मित्र को भी बेच डालोगे।
28 किन्तु अब मेरे मुख को पढ़ो।
मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा।
29 अत:, अपने मन को अब परिवर्तित करो।
अन्यायी मत बनो, फिर से जरा सोचो कि मैंने कोई बुरा काम नहीं किया है।
30 मैं झूठ नहीं कह रहा हूँ। मुझको भले
और बुरे लोगों की पहचान है।”
7अय्यूब ने कहा,
“मनुष्य को धरती पर कठिन संघर्ष करना पड़ता है।
उसका जीवन भाड़े के श्रमिक के जीवन जैसा होता है।
2 मनुष्य उस भाड़े के श्रमिक जैसा है जो तपते हुए दिन में मेहनत करने के बाद शीतल छाया चाहता है
और मजदूरी मिलने के दिन की बाट जोहता रहता है।
3 महीने दर महीने बेचैनी के गुजर गये हैं
और पीड़ा भरी रात दर रात मुझे दे दी गई है।
4 जब मैं लेटता हूँ, मैं सोचा करता हूँ कि
अभी और कितनी देर है मेरे उठने का?
यह रात घसीटती चली जा रही है।
मैं छटपटाता और करवट बदलता हूँ, जब तक सूरज नहीं निकल आता।
5 मेरा शरीर कीड़ों और धूल से ढका हुआ है।
मेरी त्वचा चिटक गई है और इसमें रिसते हुए फोड़े भर गये हैं।
6 “मेरे दिन जुलाहे की फिरकी से भी अधिक तीव्र गति से बीत रहें हैं।
मेरे जीवन का अन्त बिना किसी आशा के हो रहा है।
7 हे परमेश्वर, याद रख, मेरा जीवन एक फूँक मात्र है।
अब मेरी आँखें कुछ भी अच्छा नहीं देखेंगी।
8 अभी तू मुझको देख रहा है किन्तु फिर तू मुझको नहीं देख पायेगा।
तू मुझको ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा।
9 एक बादल छुप जाता है और लुप्त हो जाता है।
इसी प्रकार एक व्यक्ति जो मर जाता है और कब्र में गाड़ दिया जाता है, वह फिर वापस नहीं आता है।
10 वह अपने पुराने घर को वापस कभी भी नहीं लौटेगा।
उसका घर उसको फिर कभी भी नहीं जानेगा।
11 “अत: मैं चुप नहीं रहूँगा। मैं सब कह डालूँगा।
मेरी आत्मा दु:खित है और मेरा मन कटुता से भरा है,
अत: मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा।
12 हे परमेश्वर, तू मेरी रखवाली क्यों करता है?
क्या मैं समुद्र हूँ, अथवा समुद्र का कोई दैत्य?
13 जब मुझ को लगता है कि मेरी खाट मुझे शान्ति देगी
और मेरा पलंग मुझे विश्राम व चैन देगा।
14 हे परमेश्वर, तभी तू मुझे स्वप्न में डराता है,
और तू दर्शन से मुझे घबरा देता है।
15 इसलिए जीवित रहने से अच्छा
मुझे मर जाना ज्यादा पसन्द है।
16 मैं अपने जीवन से घृणा करता हूँ।
मेरी आशा टूट चुकी है।
मैं सदैव जीवित रहना नहीं चाहता।
मुझे अकेला छोड़ दे। मेरा जीवन व्यर्थ है।
17 हे परमेश्वर, मनुष्य तेरे लिये क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
क्यों तुझे उसका आदर करना चाहिये? क्यों मनुष्य पर तुझे इतना ध्यान देना चाहिये?
18 हर प्रात: क्यों तू मनुष्य के पास आता है
और हर क्षण तू क्यों उसे परखा करता है?
19 हे परमेश्वर, तू मुझसे कभी भी दृष्टि नहीं फेरता है
और मुझे एक क्षण के लिये भी अकेला नहीं छोड़ता है।
20 हे परमेश्वर, तू लोगों पर दृष्टि रखता है।
यदि मैंने पाप किया, तब मैं क्या कर सकता हूँ
तूने मुझको क्यों निशाना बनाया है?
क्या मैं तेरे लिये कोई समस्या बना हूँ?
21 क्यों तू मेरी गलतियों को क्षमा नहीं करता और मेरे पापों को
क्यों तू माफ नहीं करता है?
मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और कब्र में चला जाऊँगा।
जब तू मुझे ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा।”
समीक्षा
परमेश्वर के पथ पर बनें रहने में दूसरों की मदद करें
मैं अपने दोस्तों का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मुझे सही पथ पर बने रहने में मदद की। हालाँकि, कभी - कभी हमारे दोस्तों में गलतफहमी होना और चीज़ों को गलत समझना संभव है। इस पद्यांश में हम एक विपरीत स्थिति को देखते हैं जिसमें अय्यूब अपने दोस्तों को सही पथ पर बने रहने में मदद करता है (4:3-4) और एलीपज जो याकूब के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ (6:21)।
कभी - कभी लोग पूछते हैं, ‘क्या बाइबल में हर एक शब्द सत्य है?’ मेरा जवाब हमेशा ‘हाँ; होता है, लेकिन अन्य पुस्तकों की तरह इस पुस्तक का भी अर्थ समझना ज़रूरी है। अर्थ निकालने का एक नियम यह है कि हमें प्रसंग के अनुसार अर्थ निकालना चाहिये।
इस पद्यांश में आज हम अय्यूब के मित्र एलीपज के शब्दों को पढ़ेंगे। हमें इन शब्दों की इस सच्चाई के प्रकाश को पढ़ना ज़रूरी है कि अंत में प्रभु ने तेमानी एलीपज से कहा, ‘मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय में कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही’ (42:7)। इस पद्यांश में हम जो शब्द पढ़ते हैं वह सही नहीं है। कष्ट के मामले में अय्यूब के दोस्तों ने काफी साधारण उत्तर दिया। उनका निदान अक्सर सीधा - सादा, धर्मपरायण, और अवास्तविक रहता था।
दूसरी तरफ अय्यूब, यथार्थवादी और ईमानदार था, जबकि वह दर्द, रात में नींद न आना, दु:ख और पीड़ा से जूझ रहा था। उसका दु:ख उसके कर्मों का परिणाम नहीं था जैसा कि एलीपज और उसके दोस्तों ने सुझाया था। अय्यूब खराई से पूछता है, ‘मुझे बताओं कि मैं कहाँ गलत रहा’ (6:24)। परमेश्वर की आत्मा हमेशा हमें विशेष पाप के बारे में बताती है जबकि एलीपज और उसके दोस्तों ने उससे ऐसा कहा, ‘अवश्य ही तू ने ऐसे काम किये होंगे जिससे तुझ पर यह भारी दु:ख पड़ा है।’ जो दु:ख में हैं, कोई ज़रूरी नहीं कि वे अपने पाप के कारण इस दु:ख में पड़े हैं। यदि ऐसा होता तो परमेश्वर ने हमें यकीन दिलाया होता और उस विशेष पाप को हमें भी दिखाया होता।
एलीपज और उसके दोस्तों ने सलाह दी जो कि सच्चाई और अधर्म का मिश्रण था और उनके शब्दों का सही अर्थ निकालना ज़रूरी है। एलीपज ने एक बात कही जो शायद सही है कि अय्यूब ने लोगों को परमेश्वर के पथ पर बने रहने में मदद की: ‘सुन, तू ने बहुतों को शिक्षा दी है, और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है। गिरते हुओं को तू ने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तू ने बलवन्त किया’ (4:3-4)।
आपका काम सिर्फ पथ पर बने रहना ही नहीं है, बल्कि आपको अय्यूब की तरह, अपने कार्यों और अपने शब्दों द्वारा दूसरों की मदद भी करनी चाहिये।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
भजन संहिता 17:1-5
मैं भजन लिखने वाले के कथनों से प्रभावित हुई, ‘…..मेरे मुंह से अपराध की बात नहीं निकली ’ (पद - 17:3क)। इसका मतलब है कि अपने सारे शब्दों के प्रति सचेत रहें। काम के समय के बाद भी हम जो कहते हैं, वह सच में मायने रखता है।
दिन का वचन
मत्ती – 19:14
" यीशु ने कहा, बालकों को मेरे पास आने दो: और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है। "
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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
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