झगड़े से कैसे निपटे
परिचय
’बाईबल हमें पड़ोसियों से प्रेम करने के लिए कहती है, और हमारे शत्रुओं से भी प्रेम करने के लिए कहती है; शायद से इसलिए क्योंकि वे सामान्य रूप से एक जैसे लोग हैं!“ जी.के.चेस्टर्टन् ने लिखा।
झगड़े से बचा नहीं जा सकता है। यहाँ तक कि हममें से उन लोगों के लिए जो किसी का सामना करने से शर्माते हैं, इससे बचना असंभव बात है। जैसे ही हम जीवन से गुजरते हैं, हम अपरिहार्य रूप से ऐसे लोगों से मिलेंगे, जिनके साथ हमारा झगड़ा होगा। इसके अतिरिक्त, एक मसीह के लिए, हमारे पापी स्वभाव की इच्छाओं और पवित्र आत्मा के बीच में एक आंतरिक संघर्ष होता है।
हम तब भी संघर्ष का अनुभव कर सकते हैं जब हम चर्च में सच्चाई के लिए खड़े होते हैं, या जब हम प्रबल होने वाली संस्कृति में जुड़ते हैं। यहाँ तक कि यू.के. में, एक देश जिसे परांपरागत रूप से ’मसीह“ के रूप में देखा जाता है, संस्कृति मसीह विश्वास के प्रति शत्रुतापूर्ण बनती जा रही है।
भजन संहिता 109:1-20
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक स्तुति गीत।
109हे परमेश्वर, मेरी विनती की ओर से
अपने कान तू मत मूँद!
2 दुष्ट जन मेरे विषय में झूठी बातें कर रहे हैं।
वे दुष्ट लोग ऐसा कह रहें जो सच नहीं है।
3 लोग मेरे विषय में घिनौनी बातें कह रहे हैं।
लोग मुझ पर व्यर्थ ही बात कर रहे हैं।
4 मैंने उन्हें प्रेम किया, वे मुझसे बैर करते हैं।
इसलिए, परमेश्वर अब मैं तुझ से प्रार्थना कर रहा हूँ।
5 मैंने उन व्यक्तियों के साथ भला किया था।
किन्तु वे मेरे लिये बुरा कर रहे हैं।
मैंने उन्हें प्रेम किया,
किन्तु वे मुझसे बैर रखते हैं।
6 मेरे उस शत्रु ने जो बुरे काम किये हैं उसको दण्ड दे।
ऐसा कोई व्यक्ति ढूँढ जो प्रमाणित करे कि वह सही नहीं है।
7 न्यायाधीश न्याय करे कि शत्रु ने मेरा बुरा किया है, और मेरे शत्रु जो भी कहे वह अपराधी है
और उसकी बातें उसके ही लिये बिगड़ जायें।
8 मेरे शत्रु को शीघ्र मर जाने दे।
मेरे शत्रु का काम किसी और को लेने दे।
9 मेरे शत्रु की सन्तानों को अनाथ कर दे और उसकी पत्नी को तू विधवा कर दे।
10 उनका घर उनसे छूट जायें
और वे भिखारी हो जायें।
11 कुछ मेरे शत्रु का हो उसका लेनदार छीन कर ले जायें।
उसके मेहनत का फल अनजाने लोग लूट कर ले जायें।
12 मेरी यही कामना है, मेरे शत्रु पर कोई दया न दिखाये,
और उसके सन्तानों पर कोई भी व्यक्ति दया नहीं दिखलाये।
13 पूरी तरह नष्ट कर दे मेरे शत्रु को।
आने वाली पीढ़ी को हर किसी वस्तु से उसका नाम मिटने दे।
14 मेरी कामना यह है कि मेरे शत्रु के पिता
और माता के पापों को यहोवा सदा ही याद रखे।
15 यहोवा सदा ही उन पापों को याद रखे
और मुझे आशा है कि वह मेरे शत्रु की याद मिटाने को लोगों को विवश करेगा।
16 क्यों? क्योंकि उस दुष्ट ने कोई भी अच्छा कर्म कभी भी नहीं किया।
उसने किसी को कभी भी प्रेम नहीं किया।
उसने दीनों असहायों का जीना कठिन कर दिया।
17 उस दुष्ट लोगों को शाप देना भाता था।
सो वही शाप उस पर लौट कर गिर जाये।
उस बुरे व्यक्ति ने कभी आशीष न दी कि लोगों के लिये कोई भी अच्छी बात घटे।
सो उसके साथ कोई भी भली बात मत होने दे।
18 वह शाप को वस्त्रों सा ओढ़ लें।
शाप ही उसके लिये पानी बन जाये
वह जिसको पीता रहे।
शाप ही उसके शरीर पर तेल बनें।
19 शाप ही उस दुष्ट जन का वस्त्र बने जिनको वह लपेटे,
और शाप ही उसके लिये कमर बन्द बने।
20 मुझको यह आशा है कि यहोवा मेरे शत्रु के साथ इन सभी बातों को करेगा।
मुझको यह आशा है कि यहोवा इन सभी बातों को उनके साथ करेगा जो मेरी हत्या का जतन कर रहे है।
समीक्षा
जो हमसे नफरत करते और हम पर प्रहार करते हैं, उनके साथ संघर्ष
दाऊद परमेश्वर की दोहाई देते हैं ’जिसकी मैं स्तुति करता हूँ“ (व.1)। वह इनके साथ संघर्ष में हैं ’ दुष्ट और कपटी मनुष्यों ने मेरे विरुध्द मुँह खोला है, वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं“ (व.2) ’झूठ बोलकर“ (व.2) और ’नफरत के शब्दों“ के साथ’ उन्होंने भलाई के बदले में मुझ से बुराई की और मेरे प्रेम के बदले मुझ से बैर किया है“ (वव.2-5)।
यह बहुत ही दुख देता है जब वे लोग जिनसे हम प्रेम करते हैं और अपना मित्र मानते हैं, वे हम पर प्रहार करते हैं। उनके आरोप और नफरत के शब्द गहरा दर्द देते हैं।
इस भजन में दाऊद की प्रतिक्रिया है अपने दर्द और संघर्षों को परमेश्वर के पास लाना। इन सभी चीजों के बीच में वह घोषणा करते हैं,’मैं प्रार्थना का एक मनुष्य हूँ“ (व.4), और वह परमेश्वर के सामने अपने हृदय को ऊँडेलते हैं। वह परमेश्वर को पुकारते हैं, कि चुप न रहे, बल्कि उनका बदला चुकाये।
जो कुछ वह कहते हैं, उनमें से कुछ पढना मुश्किल है और यह दर्शाता है कि कैसे परमेश्वर की सहायता के बिना क्षमा करना कठिन बात है। यह यीशु की पुकार के विपरीत है कि ’अपने शत्रुओं से प्रेम करो और अपने सताने वालो के लिए प्रार्थना करो“ (मत्ती 5:44)। यदि अनुचित रीति से आप पर प्रहार होता है, तो दाऊद के उदाहरण के पीछे चलिये जो परमेश्वर के सामने प्रार्थनापूर्वक और ईमानदारी से चलते हैं। परमेश्वर से माँगिये कि कड़वाहट और नफरत पर जय पाने में आपकी सहायता करें।
प्रार्थना
गलातियों 5:7-26
7 तुम तो बहुत अच्छी तरह एक मसीह का जीवन जीते रहे हो। अब तुम्हें, ऐसा क्या है जो सत्य पर चलने से रोक रहा है। 8 ऐसी विमत्ति जो तुम्हें सत्य से दूर कर रही है, तुम्हारे बुलाने वाले परमेश्वर की ओर से नहीं आयी है। 9 “थोड़ा सा ख़मीर गुँधे हुए समूचे आटे को ख़मीर से उठा लेता है।” 10 प्रभु के प्रति मेरा पूरा भरोसा है कि तुम किसी भी दूसरे मत को नहीं अपनाओगे किन्तु तुम्हें विचलित करने वाला चाहे कोई भी हो, उचित दण्ड पायेगा।
11 हे भाईयों, यदि मैं आज भी, जैसा कि कुछ लोग मुझ पर लांछन लगाते हैं कि मैं ख़तने का प्रचार करता हूँ तो मुझे अब तक यातनाएँ क्यों दी जा रही हैं? और यदि मैं अब भी ख़तने की आवश्यकता का प्रचार करता हूँ, तब तो मसीह के क्रूस के कारण पैदा हुई मेरी सभी बाधाएँ समाप्त हो जानी चाहियें। 12 मैं तो चाहता हूँ कि वे जो तुम्हें डिगाना चाहते हैं, ख़तना कराने के साथ साथ अपने आपको बघिया ही करा डालते।
13 किन्तु भाईयों, तुम्हें परमेश्वर ने स्वतन्त्र रहने को चुना है। किन्तु उस स्वतन्त्रता को अपने आप पूर्ण स्वभाव की पूर्ति का साधन मत बनने दो, इसके विपरीत प्रेम के कारण परस्पर एक दूसरे की सेवा करो। 14 क्योंकि समूचे व्यवस्था के विधान का सार संग्रह इस एक कथन में ही है: “अपने साथियों से वैसे ही प्रेम करो, जैसे तुम अपने आप से करते हो।” 15 किन्तु आपस में काट करते हुए यदि तुम एक दूसरे को खाते रहोगे तो देखो! तुम आपस में ही एक दूसरे को समाप्त कर दोगे।
मानव-प्रकृति और आत्मा
16 किन्तु मैं कहता हूँ कि आत्मा के अनुशासन के अनुसार आचरण करो और अपनी पाप पूर्ण प्रकृति की इच्छाओं की पूर्ति मत करो। 17 क्योंकि शारीरिक भौतिक अभिलाषाएँ पवित्र आत्मा की अभिलाषाओं के और पवित्र आत्मा की अभिलाषाएँ शारीरिक भौतिक अभिलाषाओं के विपरीत होती हैं। इनका आपस में विरोध है। इसलिए तो जो तुम करना चाहते हो, वह कर नहीं सकते। 18 किन्तु यदि तुम पवित्र आत्मा के अनुशासन में चलते हो तो फिर व्यवस्था के विधान के अधीन नहीं रहते।
19 अब देखो! हमारे शरीर की पापपूर्ण प्रकृति के कामों को तो सब जानते हैं। वे हैं: व्यभिचार अपवित्रता, भोगविलास, 20 मूर्ति पूजा, जादू-टोना, बैर भाव, लड़ाई-झगड़ा, डाह, क्रोध, स्वार्थीपन, मतभेद, फूट, ईर्ष्या, 21 नशा, लंपटता या ऐसी ही और बातें। अब मैं तुम्हें इन बातों के बारे में वैसे ही चेता रहा हूँ जैसे मैंने तुम्हें पहले ही चेता दिया था कि जो लोग ऐसी बातों में भाग लेंगे, वे परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पायेंगे। 22 जबकि पवित्र आत्मा, प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास, 23 नम्रता और आत्म-संयम उपजाता है। ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है। 24 उन लोगों ने जो यीशु मसीह के हैं, अपने पापपूर्ण मानव-स्वभाव को वासनाओं और इच्छाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है। 25 क्योंकि जब हमारे इस नये जीवन का स्रोत आत्मा है तो आओ आत्मा के ही अनुसार चलें। 26 हम अभिमानी न बनें। एक दूसरे को न चिढायें। और न ही परस्पर ईर्ष्या रखें।
समीक्षा
विपरीत मत के साथ और हमारे हृदय में संघर्ष
संघर्ष और सामना करना कभी आसान नहीं होता, लेकिन वे साहसी लीडरशीप के एक आवश्यक भाग हैं। पौलुस अपने आपको आंदोलन करने वालो के साथ संघर्ष में पाते हैं (व.12)। वह सच्चाई के विषय में जुनूनी हैं, और उनके विषय में बहुत ही मजबूत भाषा का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वे चर्च को भटका रहे हैं।
इसके परिणामस्वरूप, वह कहते हैं कि यदि वे खतना के द्वारा मनुष्य के शरीर के भाग को काटने में ज्यादा रुचि रखते हैं, तो वे पूरे आगे बढ़कर अपने आपको बधिया कर सकते हैं। यह नये नियम में इस भाषा का पाया जाना आश्चर्यचकित करता है। लेकिन सच्चाई से अंतर पड़ता है, और सच्चाई की रक्षा करने के लिए पौलुस लड़ाई का सामना करने के लिए तैयार हैं।
फिर पौलुस पापमय स्वभाव और पवित्र आत्मा के बीच संघर्ष के बारे में बताते हैं। वह लिखते हैं कि पवित्र आत्मा और पापमय स्वभाव ’एक दूसरे के विरोध में हैं“ (व.17)।
पौलुस के विवाह का पूरा मुद्दा यह था कि स्वतंत्रता पर जोर दें। किंतु, पाप से स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं है कि हम पाप करने के लिए स्वतंत्र हैं।
पौलुस दो प्रकार के दासत्व में के बारे में बताते हैं: कानूनीपन (नियम के दास) और लाइसेंस (स्वयं के दास)। आप इन से स्वतंत्र किए गए हैं। कानूनीपन और लाइसेंस दोनों से दूर रहेः आप ’स्वतंत्र होने के लिये बुलाए गए हो; परन्तु ऐसा न हो कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामों के लिये अवसर बने, वरन प्रेम से एक दूसरे के दास बनो। क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, ’तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख“ (वव.13-14, एम.एस.जी)।
यह सच्ची स्वतंत्रता है – नैतिकता की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि प्रेम में दूसरों की सेवा करने की स्वतंत्रताः अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना (व.14)। यदि हम झगड़े का उत्तर देते रहेंगे, जैसा कि विश्व करता है,’ यदि तुम एक दूसरे को दाँत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो“ (व.15)।
पौलुस उन स्तरों के चार उदाहरण बताते हैं, जिसमें संघर्ष काम करता हैः
यौन-संबंधी पाप’ शरीर के काम तो प्रकट हैं, अर्थात व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन “ (व.19, एम.एस.जी)
धार्मिक पाप’ मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म“ (व.20अ, एम.एस.जी)
सामाजिक पाप’ बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म“ (व.20ब, एम.एस.जी)
बहुतायतता के पाप’डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा“ (व.21, एम.एस.जी)
हमें अवश्य ही इन इच्छाओं को तृप्त नहीं करना हैः इसके बजाय,’आत्मा के द्वारा चलाए चलो“ (व.18)। यदि आप आत्मा के द्वारा जीना चुनते हैं, तो आप शरीर की कामना के पीछे नहीं चलेंगे जो निरंतर हमें प्रलोभित करती है। इसके बजाय, आप आत्मा के फल उत्पन्न करेंगेः’प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम“ (वव.22-23)। यें विशेषताएँ हैं जो हम यीशु में देखते हैं।
वह आगे कहते हैं,’ जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है“ (व.24)। हमेशा पीछे जाने का प्रलोभन आता है। लेकिन ’क्योंकि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी“ (व.25)। जहाँ तक संभव हो, व्यक्तिगत संघर्ष से दूर रहोः’हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें“ (व.26)।
अब जबकि पवित्र आत्मा आपमें रहते हैं, उन्हें अपने सभी निर्णयों में शामिल कीजिए और उनकी प्रेरणा के पीछे चलिये। यदि आप ऐसा कुछ सोच रहे हैं, कह रहे हैं या कर रहे हैं जो अंदर से आपको असुविधाजनक महसूस करवाता है, तो हो सकता है कि पवित्र आत्मा रूकने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। दूसरी ओर, जब आप एक निर्णय लेते हैं और शांति का अनुभव करते हैं, जान लीजिए कि यह पवित्र आत्मा के साथ चलने के द्वारा प्राप्त होता है।
प्रार्थना
यशायाह 47:1-49:7
बाबुल को परमेश्वर का सन्देश
47“हे बाबुल की कुमारी पुत्री,
नीचे धूल में गिर जा और वहाँ पर बैठ जा!
अब तू रानी नहीं है!
लोग अब तुझको कोमल और सुन्दर नहीं कहा करेंगे।
2 अब तुझको अपना कोमल वस्त्र उतार कर कठिन परिश्रम करना चाहिए।
अब तू चक्की ले और उस पर आटा पीस।
तू अपना घाघरा इतना ऊपर उठा कि लोगों को तेरी टाँगे दिखने लग जाये और नंगी टाँगों से तू नदी पार कर।
तू अपना देश छोड़ दे!
3 लोग तेरे शरीर को देखेंगे और वे तेरा भोग करेंगे।
तू अपमानित होगी।
मैं तुझसे तेरे बुरे कर्मों का मोल दिलवाऊँगा जो तूने किये हैं।
तेरी सहायता को कोई भी व्यक्ति आगे नहीं आयेगा।”
4 “मेरे लोग कहते हैं, ‘परमेश्वर हम लोगों को बचाता है।
उसका नाम, इस्राएल का पवित्र सर्वशक्तिमान है।’”
5 यहोवा कहता है, हे बाबुल, तू बैठ जा और कुछ भी मत कह।
बाबुल की पुत्री, चली जा अन्धेरे में।
क्यों? क्योंकि अब तू और अधिक “राज्यों की रानी” नहीं कहलायेगी।
6 “मैंने अपने लोगों पर क्रोध किया था।
ये लोग मेरे अपने थे, किन्तु मैं क्रोधित था,
इसलिए मैंने उनको अपमानित किया।
मैंने उन्हें तुझको दे दिया, और तूने उन्हें दण्ड दिया।
तूने उन पर कोई करूणा नहीं दर्शायी
और तूने उन बूढ़ों पर भी बहुत कठिन काम का जुआ लाद दिया।
7 तू कहा करती थी, ‘मैं अमर हूँ।
मैं सदा रानी रहूँगी।’
किन्तु तूने उन बुरी बातों पर ध्यान नहीं दिया जिन्हें तूने उन लोगों के साथ किया था।
तूने कभी नहीं सोचा कि बाद में क्या होगा।
8 इसलिए अब, ओ मनोहर स्त्री, मेरी बात तू सुन ले!
तू निज को सुरक्षित जान और अपने आप से कह।
‘केवल मैं ही महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ।
मेरे समान कोई दूसरा बड़ा नहीं है।
मुझको कभी भी विधवा नहीं होना है।
मेरे सदैव बच्चे होते रहेंगे।”
9 ये दो बातें तेरे साथ में घटित होंगी:
प्रथम, तेरे बच्चे तुझसे छूट जायेंगे और फिर तेरा पति भी तुझसे छूट जायेगा।
हाँ, ये बातें तेरे साथ अवश्य घटेंगी।
तेरे सभी जादू और शक्तिशाली टोने तुझको नहीं बचा पायेंगे।
10 तू बुरे काम करती है, फिर भी तू अपने को सुरक्षित समझती है।
तू कहा करती है, ‘तेरे बुरे काम को कोई नहीं देखता।’
तू बुरे काम करती है किन्तु तू सोचती है कि तेरी बुद्धि और तेरा ज्ञान तुझको बचा लेंगे।
तू स्वयं को सोचती है कि, ‘बस एक तू ही महत्त्वपूर्ण है।
तेरे जैसा और कोई भी दूसरा नहीं है।’
11 “किन्तु तुझ पर विपत्तियाँ आयेंगी।
तू नहीं जानती कि यह कब हो जायेगा, किन्तु विनाश आ रहा है।
तू उन विपत्तियों को रोकने के लिये कुछ भी नहीं कर पायेगी।
तेरा विनाश इतना शीघ्र होगा कि तुझको पता तक भी न चलेगा कि क्या कुछ तेरे साथ घट गया।
12 जादू और टोने को सीखने में तूने कठिन श्रम करते हुए जीवन बिता दिया।
सो अब अपने जादू और टोने को चला।
सम्भव है, टोने—टोटके तुझको बचा ले।
सम्भव है, उनसे तू किसी को डरा दे।
13 तेरे पास बहुत से सलाहकार हैं।
क्या तू उनकी सलाहों से तंग आ चुकी है तो फिर उन लोगों को जो सितारे पढ़ते हैं, बाहर भेज।
जो बता सकते हैं महीना कब शुरू होता है।
सो सम्भव है वे तुझको बता पाये कि तुझ पर कब विपत्तियाँ पड़ेंगी।
14 किन्तु वे लोग तो स्वयं अपने को भी बचा नहीं पायेंगे।
वे घास के तिनकों जैसे भक से जल जायेंगे।
वे इतने शीघ्र जलेंगे कि अंगार तक कोई नहीं बचेगा जिसमें रोटी सेकी जा सके।
कोई आग तक नहीं बचेगी जिसके पास बैठ कर वे खुद को गर्मा ले।
15 ऐसा ही हर वस्तु के साथ में घटेगा जिनके लिये तूने कड़ी मेहनत की।
तेरे जीवन भर जिन से तेरा व्यापार रहा, वे ही व्यक्ति तुझे त्याग जायेंगे।
हर कोई अपनी—अपनी राह चला जायेगा।
कोई भी व्यक्ति तुझको बचाने को नहीं बचेगा।”
परमेश्वर अपने जगत पर राज करता है
48यहोवा कहता है,
“याकूब के परिवार, तू मेरी बात सुन।
तुम लोग अपने आप को ‘इस्राएल’ कहा करते हो।
तुम यहूदा के घराने से वचन देने के लिये यहोवा का नाम लेते हो।
तुम इस्राएल के परमेश्वर की प्रशंसा करते हो।
किन्तु जब तुम ये बातें करते हो तो सच्चे नहीं होते हो
और निष्ठावान नहीं रहते।
2 “तुम लोग अपने को पवित्र नगरी के नागरिक कहते हो।
तुम इस्राएल के परमेश्वर के भरोसे रहते हो।
उसका नाम सर्वशक्तिमान यहोवा है।
3 “मैंने तुम्हें बहुत पहले उन वस्तुओं के बारे में तुम्हें बताया था जो आगे घटेंगी।
मैंने तुम्हें उस वस्तुओं के बारे में बताया था,
और फिर अचानक मैंने बातें घटा दीं।
4 मैंने इसलिए वह किया था क्योंकि मुझको ज्ञात था कि तुम बहुत जिद्दी हो।
मैंने जो कुछ भी बताया था उस पर विश्वास करने से तुमने मना किया।
तुम बहुत जिद्दी थे,जैसे लोहे की छड़ नहीं झुकती है।
यह बात ऐसी थी जैसे तुम्हारा सिर काँसे का बना हुआ है।
5 इसलिए मैंने तुमको पहले ही बता दिया था, उन सभी ऐसी बातों को जो घटने वाली हैं।
जब वे बातें घटी थी उससे बहुत पहले मैंने तुम्हें वह बता दी थीं।
मैंने ऐसा इसलिए किया था ताकि तू कह न सके कि,
‘ये काम हमारे देवताओं ने किये,
ये बातें हमारे देवताओं ने, हमारी मूर्तियों ने घटायी हैं।’”
इस्राएल को पवित्र करने के लिए परमेश्वर का ताड़ना
6 “तूने उन सभी बातों को जो हो चुकी हैं,
देखा और सुना है।
ए तुझको ये समाचार दूसरों को बताना चाहिए।
अब मैं तुझे नयी बातें बताना आरम्भ करता हूँ
जिनको तू अभी नहीं जानता है।
7 ये वे बातें नहीं हैं जो पहले घट चुकी है।
ये बातें ऐसी हैं जो अब शुरू हो रही हैं।
आज से पहले तूने ये बातें नहीं सुनी।
सो तू नहीं कह सकता, ‘हम तो इसे पहले से ही जानते हैं।’
8 किन्तु तूने कभी उस पर कान नहीं दिया जो मैंने कहा।
तूने कुछ नहीं सीखा।
तूने मेरी कभी नहीं सुनी, किन्तु मैंने तुझे उन बातों के बारे में बताया
क्योंकि मैं जानता न था कि तू मेरे विरोध में होगा।
अरे! तू तो विद्रोही रहा जब से तू पैदा हुआ।
9 “किन्तु मैं धीरज धरूँगा। ऐसा मैं अपने लिये करूँगा।
मुझको क्रोध नहीं आया इसके लिये लोग मेरा यश गायेंगे।
मैं अपने क्रोध पर काबू करूँगा कि तुम्हारा नाश न करूँ।
तुम मेरी बाट जोहते हुए मेरा गुण गाओगे।
10 “देख, मैं तुझे पवित्र करूँगा।
चाँदी को शुद्ध करने के लिये लोग उसे आँच में डालते हैं!
किन्तु मैं तुझे विपत्ति की भट्टी में डालकर शुद्ध करूँगा।
11 यह मैं स्वयं अपने लिये करूँगा!
तू मेरे साथ ऐसे नहीं बरतेगा, जैसे मेरा महत्त्व न हो।
किसी मिथ्या देवता को मैं अपनी प्रशंसा नहीं लेने दूँगा।
12 “याकूब, तू मेरी सुन!
हे इस्राएल के लोगों, मैंने तुम्हें अपने लोग बनने को बुलाया है।
तुम इसलिए मेरी सुनों!
मैं परमेश्वर हूँ, मैं ही आरम्भ हूँ
और मैं ही अन्त हूँ।
13 मैंने स्वयं अपने हाथों से धरती की रचना की।
मेरे दाहिने हाथ ने आकाश को बनाया।
यदि मैं उन्हें पुकारूँ तो
दोनों साथ—साथ मेरे सामने आयेंगे।
14 “इसलिए तुम सभी जो आपस में इकट्ठे हुए हो मेरी बात सुनों!
क्या किसी झूठे देव ने तुझसे ऐसा कहा है कि आगे चल कर ऐसी बातें घटित होंगी नहीं।”
यहोवा इस्राएल से जिसे, उस ने चुना है, प्रेम करता है।
वह जैसा चाहेगा वैसा ही बाबुल और कसदियों के साथ करेगा।
15 यहोवा कहता है कि मैंने तुझसे कहा था, “मैं उसको बुलाऊँगा
और मैं उसको लाऊँगा
और उसको सफल बनाऊँगा!
16 मेरे पास आ और मेरी सुन!
मैंने आरम्भ में साफ—साफ बोला ताकि लोग मुझे सुन ले
और मैं उस समय वहाँ पर था जब बाबुल की नींव पड़ी।”
इस पर यशायाह ने कहा,
अब देखो, मेरे स्वामी यहोवा ने इन बातों को तुम्हें बताने के लिये मुझे और अपनी आत्मा को भेजा है। 17 यहोवा जो मुक्तिदाता है और इस्राएल का पवित्र है, कहता है,
“तेरा यहोवा परमेश्वर हूँ।
मैं तुझको सिखाता हूँ कि क्या हितकर है।
मैं तुझको राह पर लिये चलता हूँ जैसे तुझे चलना चाहिए।
18 यदि तू मेरी मानता तो तुझे उतनी शान्ति मिल जाती जितनी नदी भर करके बहती है।
तुझ पर उत्तम वस्तुएँ ऐसी छा जाती जैसे समुद्र की तरंग हों।
19 यदि तू मेरी मानता तो तेरी सन्तानें बहुत बहुत होतीं।
तेरी सन्तानें वैसे अनगिनत हो जाती जैसे रेत के असंख्य कण होते हैं।
यदि तू मेरी मानता तो तू नष्ट नहीं होता।
तू भी मेरे साथ में बना रहता।”
20 हे मेरे लोगों, तुम बाबुल को छोड़ दो!
हे मेरे लोगों तुम कसदियों से भाग जाओ!
प्रसन्नता में भरकर तुम लोगों से इस समाचार को कहो!
धरती पर दूर दूर इस समाचार को फैलाओ! तुम लोगों को बता दो,
“यहोवा ने अपने दास याकूब को उबार लिया है!”
21 यहोवा ने अपने लोगों को मरूस्थल में राह दिखाई,
और वे लोग कभी प्यासे नहीं रहे!
क्यों क्योंकि उसने अपने लोगों के लिये चट्टान फोड़कर पानी बहा दिया!
22 किन्तु परमेश्वर कहता है,
“दुष्टों को शांति नहीं है!”
अपने विशेष सेवक को परमेश्वर का बुलावा
49हे दूर देशों के लोगों,
मेरी बात सुनों हे धरती के निवासियों,
तुम सभी मेरी बात सुनों!
मेरे जन्म से पहले ही यहोवा ने मुझे अपनी सेवा के लिये बुलाया।
जब मैं अपनी माता के गर्भ में ही था, यहोवा ने मेरा नाम रख दिया था।
2 यहोवा अपने बोलने के लिये मेरा उपयोग करता है।
जैसे कोई सैनिक तेज तलवार को काम में लाता है वैसे ही वह मेरा उपयोग करता है किन्तु वह अपने हाथ में छुपा कर मेरी रक्षा करता है।
यहोवा मुझको किसी तेज तीर के समान काम में लेता है किन्तु वह अपने तीरों के तरकश में मुझको छिपाता भी है।
3 यहोवा ने मुझे बताया है, “इस्राएल, तू मेरा सेवक है।
मैं तेरे साथ में अद्भुत कार्य करूँगा।”
4 मैंने कहा, “मैं तो बस व्यर्थ ही कड़ी मेहनत करता रहा।
मैं थक कर चूर हुआ।
मैं काम का कोई काम नहीं कर सका।
मैंने अपनी सब शक्ति लगा दी।
सचमुच, किन्तु मैं कोई काम पूरा नहीं कर सका।
इसलिए यहोवा निश्चय करे कि मेरे साथ क्या करना है।
परमेश्वर को मेरे प्रतिफल का निर्णय करना चाहिए।
5 यहोवा ने मुझे मेरी माता के गर्भ में रचा था।
उसने मुझे बनाया कि मैं उसकी सेवा करूँ।
उसने मुझको बनाया ताकि मैं याकूब और इस्राएल को उसके पास लौटाकर ले आऊँ।
यहोवा मुझको मान देगा।
मैं परमेश्वर से अपनी शक्ति को पाऊँगा।”
यह यहोवा ने कहा था।
6 “तू मेरे लिये मेरा अति महत्त्वपूर्ण दास है।
इस्राएल के लोग बन्दी बने हुए हैं।
उन्हें मेरे पास वापस लौटा लाया जायेगा
और तब याकूब के परिवार समूह मेरे पास लौट कर आयेंगे।
किन्तु तेरे पास एक दूसरा काम है।
वह काम इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है!
मैं तुझको सब राष्ट्रों के लिये एक प्रकाश बनाऊँगा।
तू धरती के सभी लोगों की रक्षा के लिये मेरी राह बनेगा।”
7 इस्राएल का पवित्र यहोवा, इस्राएल की रक्षा करता है और यहोवा कहता है, “मेरा दास विनम्र है।
वह शासकों की सेवा करता है, और लोग उससे घृणा करते हैं।
किन्तु राजा उसका दर्शन करेंगे और उसके सम्मान में खड़े होंगे।
महान नेता भी उसके सामने झुकेंगे।”
ऐसा घटित होगा क्योंकि इस्राएल का वह पवित्र यहोवा ऐसा चाहता है, और यहोवा के भरोसे रहा जा सकता है। वह वही है जिसने तुझको चुना।
समीक्षा
संस्कृति के साथ संघर्ष
आज बहुतों की तरह, परमेश्वर के लोग अक्सर अपने आपको ऐसी एक संस्कृति में पाते हैं जो उनके स्तर से बहुत अलग हैं। आप संस्कृति से बाहर होने के लिए बुलाए नहीं गए हैं, बल्कि आप अलग बनने के लिए बुलाए गए हैं। संस्कृति जीवन के विपरीत जीयें और आप संस्कृति पर एक शक्तिशाली और अच्छा प्रभाव बनायेंगे।
परमेश्वर के लोगों ने अपने आपको एक क्रूर समाज में पाया (बेबीलोन) जिसने ’उन पर दया नहीं दिखायी“ (47:6)। एक बहुत ही घमंडी संस्कृति (वव.8-9) जो ’ तंत्र – मंत्र और बहुत से टोन्हों... ज्योतिषी जो नक्षत्रो को ध्यान से देखते और नये चाँद को देखकर होनहार बताते हैं, इत्यादि में शामिल थे“ (वव.9ब, 12-13)।
पूरी तरह से सांस्कृतिक विरोधी जीवन जीना बहुत कठिन बात है। अध्याय 48 में, भविष्यवक्ता उनकी आग को बेबीलोन से हटाकर इस्राएल पर लाते हैं। वह कहते हैं कि यदि वे केवल परमेश्वर और उनकी आज्ञाओं पर ध्यान देते,’ तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा सत्यनिष्ठ समुद्र की लहरों के समान होता“ (48:18)।
इस्राएल की सारी गलतियों और परेशानियों के बावजूद, परमेश्वर ने इस्राएल के लिए अपनी योजनाओं और उद्देश्य को नहीं छोड़ा ’तू मेरा दास इस्राएल है, मैं तुझ में अपनी महिमा प्रकट करूँगा“ (49:3)। हमने ’परमेश्वर के दूसरे सेवक“ के बारे में पढ़ा (BiOY दिन 260 देखें), इस बार एक व्यक्ति,’ याकूब को उसकी ओर लौटा ले आउँ अर्थात् इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूँ“ (व.5)। परमेश्वर का मूल उद्देश्य उनके दास इस्राएल के लिए उनमें प्रकट और पूरा होगा। यह यीशु की ओर इशारा करता है। वह एक इस्राएली थे, इस्राएल में भेजे गए। वह पूरी तरह से अपने देश के साथ पहचाने जाते थे, फिर भी इससे अलग थे।
सेवक का पहला काम है सच्चाई की घोषणा करना। उनका मुँह ’एक तेज तलवार की तरह“ है (व.2)। परमेश्वर ने एक देश से बात की और उन्हें कहा कि दूसरों को बताये। सेवक का दूसरा काम है परमेश्वर को दृश्य करना,’जिसमें मैं अपनी महिमा दिखाऊंगा“ (व.3)। तीसरा काम है विश्व के लिए एक आशीष बननाः’ मैं तुझे जाति – जाति के लिये ज्योति ठहराउँगा कि मेरा उध्दार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए“ (व.6, एम.एस.जी)।
फिर यशायाह हमें एक झलक देते हैं कि कैसे सेवक इसे पूरा करेंगे। यशायाह 53 में,’ जो मनुष्यों से तुच्छ जाना जाता, जिस से जातियों को घृणा है“ (49:7)। सेवक परमेश्वर की महिमा करता है (व.3)। अब परमेश्वर सेवक की महिमा करते हैः’’राजा उसे देखकर खड़े हो जाएँगे और हाकिम दण्डवत् करेंगे; यह यहोवा के निमित्त होगा, जो सच्चा और इस्राएल का पवित्र है जिस ने तुझे चुन लिया है“ (व.7)।
यह पूरा हुआ जब ज्योतिषी यीशु के सामने दंडवत करने आये (मत्ती 2:1-12)। पिछले 2000 सालों से यह बार बार पूरा हुआ है, जैसे ही राजा, सम्राट, प्रेसीडेंट और प्रधानमंत्री ने यीशु के सामने घुटने टेके।
इस्राएल सफल नहीं हुआ, लेकिन यीशु हुए। अब, यह हमारा काम है कि प्रभु के सेवक बने। पौलुस और बरनबास ने इस वचन को दोहरायाः’परमेश्वर ने हमें यह आज्ञा दी हैः’ मैं तुझे जाति – जाति के लिये ज्योति ठहराउँगा कि मेरा उध्दार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए“ (यशायाह 49:6; प्रेरितों के काम 13:47)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
गलातियों 5:22-23
पर आत्मा के फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं“
हम सभी कैसा कर रहे हैं?
दिन का वचन
गलातियों 5:22-23
“पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।“
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संदर्भ
जी.के.चेस्टर्टन, लंदन न्युज, 16 जुलाई 1910
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