नेतृत्व करने का सबसे अच्छा तरीका
परिचय
'प्रभु का दास कौन है?' इथियोपिया के मुख्य वित्तीय अधिकारी ने ईसाई मत के प्रचारक और सुसमाचार प्रचारक फिलिप से पूछा कि “भविष्यवक्ता किसके बारे में बात कर रहे हैं, स्वयं के बारे में या किसी और के बारे में?" (प्रेरितो के कार्य 8:34)
'प्रभु के दास' यह उपाधि बहुत प्रतिष्ठित है, जो इब्राहीम, मूसा और दाऊद जैसे भविष्यवक्ताओं को दी गई है। परन्तु यशायाह के चार गीत 'दास के गीत' (ISAIAH - 42:1-4, 49:1-7, 50:4-9, 52:13-53:12) के अनुसार दासत्व की एक अलग अवधारणा प्रकट होती है।
ऊपर उल्लेखित दास की भूमिका भाई अन्द्रियास (संत एंड्रियूज़) की मृत्यु के उदहारण से स्पष्ट हो जाती है। भाई अन्द्रियास (संत एंड्रियूज़) जो पतरस के भाई थे जिनकी मृत्यु एक तिरछे सलीब पर हुई थी, रोम के लोग कभी-कभी इसका उपयोग मृत्यु दंड के लिए किया करते थे। इसलिए इसे संत अन्द्रियास का क्रूस कहा जाता है, जो अब स्कॉटलैंड देश के ध्वज पर भी अंकित है।
आरम्भ में परमेश्वर चाहते थे कि सारी मानव जाति उनकी दास बने, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो परमेश्वर ने सारे इस्राएल को अपने दास के रूप में चाहा, परंतु परमेश्वर के चुने हुए इस्रालियो ने भी परमेश्वर को निराश किया। अंत में केवल यीशु ही एक ऐसे थे जो परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से विश्वासयोग्य थे (इसे क्रूस के केन्द्र में सबसे संकरे भाग से दर्शाया गया है)। यह यीशु थे।
यीशु ने वही प्रकट किया जो इस्रालियों को होना चाहिये था। यीशु ऐसे इस्राएली थे जिन्हें इस्राएल में भेजा गया था। पर वह एक सच्चे इस्राएली होने के बावजूद भी आम इस्रालियों से काफी अलग थे। पृथ्वी का कोई भी राजा या भविष्यवक्ता उसे पूरा नहीं कर सकता जिसका उल्लेख दास के सभी लेखांशों में किया गया है। फिर भी, यीशु इसे सिद्ध रूप से पूरा करते हैं।
इस्राएल जहाँ विफल हुए, वहीं यीशु सफल हुए। परमेश्वर की यही योजना है, कि कलीसियाएं यीशु की सफलता से और पवित्र आत्मा के समर्थ से सफल हों और बढ़ती जाएं। इसलिए भाई अन्द्रियास (संत एंड्रियूज़) ने कोशिश की थी कि सारी कलीसिया के सदस्य परमेश्वर के सेवक बनें और सारी मानव जाति के मूल उद्देश्य को पूरा करें।
नीतिवचन 22:28-23:9
कहावत 5
28 तेरी धरती की सम्पत्ति जिसकी सीमाएँ तेरे पूर्वजों ने निर्धारित की उस सीमा रेखा को कभी भी मत हिला।
कहावत 6
29 यदि कोई व्यक्ति अपने कार्य में कुशल है, तो वह राजा की सेवा के योग्य है। ऐसे व्यक्तियों के लिये जिनका कुछ महत्व नहीं उसको कभी काम नहीं करना पड़ेगा।
कहावत 7
23जब तू किसी अधिकारी के साथ भोजन पर बैठे तो इसका ध्यान रख, कि कौन तेरे सामने है। 2 यदि तू पेटू है तो खाने पर नियन्त्रण रख। 3 उसके पकवानों की लालसा मत कर क्योंकि वह भोजन तो कपटपूर्ण होता है।
कहावत 8
4 धनवान बनने का काम करके निज को मत थका। तू संयम दिखाने को, बुद्धि अपना ले। 5 ये धन सम्पत्तियाँ देखते ही देखते लुप्त हो जायेंगी निश्चय ही अपने पंखों को फैलाकर वे गरूड़ के समान आकाश में उड़ जायेंगी।
कहावत 9
6 ऐसे मनुष्य का जो सूम भोजन होता है तू मत कर; तू उसके पकवानों को मत ललचा। 7 क्योंकि वह ऐसा मनुष्य है जो मन में हरदम उसके मूल्य का हिसाब लगाता रहता है; तुझसे तो वह कहता — “तुम खाओ और पियो” किन्तु वह मन से तेरे साथ नहीं है। 8 जो कुछ थोड़ा बहुत तू उसका खा चुका है, तुझको तो वह भी उलटना पड़ेगा और वे तेरे कहे हुए आदर पूर्ण वचन व्यर्थ चले जायेंगे।
कहावत 10
9 तू मूर्ख के साथ बातचीत मत कर, क्योंकि वह तेरे विवेकपूर्ण वचनों से घृणा ही करेगा।
समीक्षा
अपने सारे नेतृत्व कौशल का उपयोग दूसरों की सेवा के लिए करें
नीतिवचन की पुस्तक के लेखक हमें चिताते हैं, हम अपना जीवन व्यर्थ की बातों में और ढकोसलों में नष्ट ना करें (23:1–3)। धनी होने के लिये परिश्रम न करना; अपनी समझ का भरोसा छोड़ना। वह उकाब पक्षी की नाईं पंख लगा कर, नि:सन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है, (वव.4-5)।
इसके बजाय, हम जो कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं उसी के लिए हम प्रोत्साहित हों। यदि तू ऐसा पुरूष देखे जो कामकाज में निपुण हो, तो वह राजाओं के सम्मुख खड़ा होगा; छोटे लोगों के सम्मुख नहीं, (नीतिवचन 22:29)। मैंनें बीते वर्षों में देखा है कि जो लोग नम्रता और कार्य कौशलता के साथ सेवा करते हैं परमेश्वर उन्हें प्रभावशाली बनाते हैं।
प्रार्थना
गलातियों 3:10-25
10 किन्तु वे सभी लोग जो व्यवस्था के विधानों के पालन पर निर्भर रहते हैं, वे तो किसी अभिशाप के अधीन हैं। शास्त्र में लिखा है: “ऐसा हर व्यक्ति शापित है जो व्यवस्था के विधान की पुस्तक में लिखी हर बात का लगन के साथ पालन नहीं करता।” 11 अब यह स्पष्ट है कि व्यवस्था के विधान के द्वारा परमेश्वर के सामने कोई भी नेक नहीं ठहरता है। क्योंकि शास्त्र के अनुसार “धर्मी व्यक्ति विश्वास के सहारे जीयेगा।”
12 किन्तु व्यवस्था का विधान तो विश्वास पर नहीं टिका है बल्कि शास्त्र के अनुसार, जो व्यवस्था के विधान को पालेगा, वह उन ही के सहारे जीयेगा। 13 मसीह ने हमारे शाप को अपने ऊपर ले कर व्यवस्था के विधान के शाप से हमें मुक्त कर दिया। शास्त्र कहता है: “हर कोई जो वृक्ष पर टाँग दिया जाता है, शापित है।” 14 मसीह ने हमें इसलिए मुक्त किया कि, इब्राहीम को दी गयी आशीश मसीह यीशु के द्वारा ग़ैर यहूदियों को भी मिल सके ताकि विश्वास के द्वारा हम उस आत्मा को प्राप्त करें, जिसका वचन दिया गया था।
व्यवस्था का विधान और वचन
15 हे भाईयों, अब मैं तुम्हें दैनिक जीवन से एक उदाहरण देने जा रहा हूँ। देखो, जैसे किसी मनुष्य द्वारा कोई करार कर लिया जाने पर, न तो उसे रद्द किया जा सकता है और न ही उस में से कुछ घटाया जा सकता है। और न बढ़ाया, 16 वैसे ही इब्राहीम और उसके भावी वंशज के साथ की गयी प्रतिज्ञा के संदर्भ में भी है। (देखो, शास्त्र यह नहीं कहता, “और उसके वंशजों को” यदि ऐसा होता तो बहुतों की ओर संकेत होता किन्तु शास्त्र में एक वचन का प्रयोग है। शास्त्र कहता है, “और तेरे वंशज को” जो मसीह है।) 17 मेरा अभिप्राय यह है कि जिस करार को परमेश्वर ने पहले ही सुनिश्चित कर दिया उसे चार सौ तीस साल बाद आने वाला व्यवस्था का विधान नहीं बदल सकता और न ही उसके वचन को नाकारा ठहरा सकता है।
18 क्योंकि यदि उत्तराधिकार व्यवस्था के विधान पर टिका है तो फिर वह वचन पर नहीं टिकेगा। किन्तु परमेश्वर ने उत्तराधिकार वचन के द्वारा मुक्त रूप से इब्राहीम को दिया था।
19 फिर भला व्यवस्था के विधान का प्रयोजन क्या रहा? आज्ञा उल्लंघन के अपराध के कारण व्यवस्था के विधान को वचन से जोड़ दिया गया था ताकि जिस के लिए वचन दिया गया था, उस वंशज के आने तक वह रहे। व्यवस्था का विधान एक मध्यस्थ के रूप में मूसा की सहायता से स्वर्गदूत द्वारा दिया गया था। 20 अब देखो, मध्यस्थ तो दो के बीच होता है, किन्तु परमेश्वर तो एक ही है।
मूसा की व्यवस्था के विधान का प्रयोजन
21 क्या इसका यह अर्थ है कि व्यवस्था का विधान परमेश्वर के वचन का विरोधी है? निश्चित रूप से नहीं। क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था का विधान दिया गया होता जो लोगों में जीवन का संचार कर सकता तो वह व्यवस्था का विधान ही परमेश्वर के सामने धार्मिकता को सिद्ध करने का साधन बन जाता। 22 किन्तु शास्त्र ने घोषणा की है कि यह समूचा संसार पाप की शक्ति के अधीन है। ताकि यीशु मसीह में विश्वास के आधार पर जो वचन दिया गया है, वह विश्वासी जनों को भी मिले।
23 इस विश्वास के आने से पहले, हमें व्यवस्था के विधान की देखरेख में, इस आने वाले विश्वास के प्रकट होने तक, बंदी के रूप में रखा गया। 24 इस प्रकार व्यवस्था के विधान हमें मसीह तक ले जाने के लिए एक कठोर अभिभावक था ताकि अपने विश्वास के आधार पर हम नेक ठहरें। 25 अब जब यह विश्वास प्रकट हो चुका है तो हम उस कठोर अभिभावक के अधीन नहीं हैं।
समीक्षा
यीशु मसीह के सर्वश्रेष्ठ सेवकपूर्ण नेतृत्व के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दें
यीशु ने कहा है कि, जो लोग उनका अनुसरण करते है उन्हें अपने आसपास के लोगों की अपेक्षा अलग तरह से नेतृत्व करना चाहिये। उन्हें यहाँ वहाँ की व्यर्थ की बातें नहीं करनी चाहिए। हमें घमंडी और गर्वित नहीं होना चाहिए (मरकुस 10:42-45)। बल्कि हमें यीशु की तरह एक सेवक होते हुए अगुआ बनकर रहने के आदर्श गुण का अनुसरण करना चाहिये। क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे (V.45)।
इस लेखांश में पौलुस हमें समझाते हैं कि हमें अपने पापों से मुक्त करने के लिए यीशु ने कैसे अपने जीवन का बलिदान दिया। सलीब उनके जीवन और सेवकाई की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है।
हम सब परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने में विफल हुए हैं। मूसा की व्यवस्था के अनुसार, 'जो व्यवस्था की पुस्तक का पालन नहीं करते हैं वे लोग श्रापित हैं' (गलातियों 3:10ब; व्यवस्थाविवरण 27:26)। हम सब श्रापित हैं क्योंकि हम सब व्यवस्था का पालन करने में विफल हुए हैं।
मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया (व.13अ)। पौलुस व्यवस्थाविवरण की पुस्तक की में दिखाते हैं जहाँ पर लिखा है कि, ' जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है (देखें व्यवस्थाविवरण 21:23)। ये क्रूसित होने का सरासर अपमान है। 'वह हमारे लिए श्रापित हुए और इसके साथ-साथ उन्होंने श्राप को मिटा दिया (व.13, एमएसजी)।
यीशु, परमेश्वर के सेवक, ने क्रूस पर जो कार्य किया उसके द्वारा आप नीतिवान बने, "यह इसलिये हुआ, कि इब्राहीम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियों तक पंहुचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्त करें, जिस की प्रतिज्ञा हुई है" (व.14)।
' निदान, प्रतिज्ञाएं इब्राहीम को, और उसके वंश को दी गईं;' (व.16अ)। पौलुस समझाते हैं कि यीशु परमेश्वर की प्रतिज्ञा हैं, क्योंकि ' वचन यह नहीं कहता, कि वंशों को; जैसे बहुतों के विषय में कहा, पर जैसे एक के विषय में कि तेरे वंश को: और वह मसीह हैं' (व.16ब)।
तब फिर व्यवस्था क्यों दी गई? (व. 19)। तो फिर व्यवस्था-विवरण का उद्देश्य क्या था? व्यवस्था विवरण के दो मुख्य उद्देश्य हैं। पहला ये हमें हमारे पापों के विषय में बताता है। हमें हमारी समस्याओं से अवगत कराता है। हमारे पापों की व्याख्या करता है और हमें ये पाप करने से रोकता है।
दूसरी, व्यवस्था हमें यीशु मसीह की ओर ले जाती है। व्यवस्था उस यूनानी अध्यापकों की तरह है जो बच्चों को विद्यालय ले जाते थे और उनको हर जोखिम और भ्रम से बचाते थे। ' इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने के लिए हमारी शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें' (व. 24)।
परमेश्वर के सर्वेश्रेष्ट सेवक यीशु मसीह ने हमारे पापों के लिए श्रापित होकर व्यवस्था के श्राप को हमारे ऊपर से हटा दिया। यीशु मसीह ने अपने बलिदान के द्वारा बहुतों को उनके पापों से छुटकारा दिलाया। उनके इस बलिदान के कारण हम सब अपने पापों से मुक्त हुए ताकि हम परमेश्वर के सेवक बन सकें।
प्रार्थना
यशायाह 41:1-42:25
यहोवा सृजनहार है: वह अमर है
41यहोवा कहा करता है,
“सुदूरवर्ती देशों, चुप रहो और मेरे पास आओ!
जातियों, फिर से सुदृढ़ बनों।
मेरे पास आओ और मुझसे बातें करो।
आपस में मिल कर हम
निश्चय करें कि उचित क्या है।
2 किसने उस विजेता को जगाया है, जो पूर्व से आयेगा
कौन उससे दूसरे देशों को हरवाता और राजाओं को अधीन कर देता
कौन उसकी तलवारों को इतना बढ़ा देता है
कि वे इतनी असंख्य हो जाती जितनी रेत—कण होते हैं
कौन उसके धनुषों को इतना असंख्य कर देता जितना भूसे के छिलके होते हैं
3 यह व्यक्ति पीछा करेगा और उन राष्ट्रों का पीछा बिना हानि उठाये करता रहेगा
और ऐसे उन स्थानों तक जायेगा जहाँ वह पहले कभी गया ही नहीं।
4 कौन ये सब घटित करता है किसने यह किया
किसने आदि से सब लोगों को बुलाया मैं यहोवा ने इन सब बातों को किया!
मैं यहोवा ही सबसे पहला हूँ।
आदि के भी पहले से मेरा अस्तित्व रहा है,
और जब सब कुछ चला जायेगा तो भी मैं यहाँ रहूँगा।
5 सुदूरवर्ती देश इसको देखें
और भयभीत हों।
दूर धरती के छोर के लोग
फिर आपस में एक जुट होकर
भय से काँप उठें!
6 “एक दूसरे की सहायता करेंगें। देखो! अब वे अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए एक दूसरे की हिम्मत बढ़ा रहे हैं। 7 मूर्ति बनानें के लिए एक कारीगर लकड़ी काट रहा है। फिर वह व्यक्ति सुनार को उत्साहित कर रहा है। एक कारीगर हथौड़ें से धातु का पतरा बना रहा है। फिर वह कारीगर निहायी पर काम करनेवाले व्यक्ति को प्रेरित कर रहा है। यह अखिरी कारीगर कह रहा है, काम अच्छा है किन्तु यह धातु पिंड कहीं उखड़ न जाये। इसलिए इस मूर्ति को आधार पर कील से जड़ दों! उससे मूर्ति गिरेगी नहीं, वह कभी हिलडुल तक नहीं पायेगो।”
यहोवा ही हमारी रक्षा कर सकता है
8 यहोवा कहता है: “किन्तु तू इस्राएल, मेरा सेवक है।
याकूब, मैंने तुझ को चुना है
तू मेरे मित्र इब्राहीम का वंशज है।
9 मैंने तुझे धरती के दूर देशों से उठाया।
मैंने तुम्हें उस दूर देश से बुलाया।
मैंने कहा, ‘तू मेरा सेवक है।’
मैंने तुझे चुना है
और मैंने तुझे कभी नहीं तजा है।
10 तू चिंता मत कर, मैं तेरे साथ हूँ।
तू भयभीत मत हो, मैं तेरा परमेश्वर हूँ।
मैं तुझे सुदृढ़ करुँगा।
मैं तुझे अपने नेकी के दाहिने हाथ से सहारा दूँगा।
11 देख, कुछ लोग तुझ से नाराज हैं किन्तु वे लजायेंगे।
जो तेरे शत्रु हैं वे नहीं रहेंगे, वे सब खो जायेंगे।
12 तू ऐसे उन लोगों की खोज करेगा जो तेरे विरुद्ध थे।
किन्तु तू उनको नहीं पायेगा।
वे लोग जो तुझ से लड़े थे, पूरी तरह लुप्त हो जायेंगे।
13 मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ।
मैंने तेरा सीधा हाथ थाम रखा है।
मैं तुझ से कहता हूँ कि मत डर! मैं तुझे सहारा दूँगा।
14 मूल्यवान यहूदा, तू निर्भय रह! हे मेरे प्रिय इस्राएल के लोगों।
भयभीत मत रहो।”
सचमुच मैं तुझको सहायता दूँगा।
स्वयं यहोवा ही ने यें बातें कहीं थी।
इस्राएल के पवित्र (परमेश्वर) ने
जो तुम्हारी रक्षा करता है, कहा था:
15 देख, मैंने तुझे एक नये दाँवने के यन्त्र सा बनाया है।
इस यन्त्र में बहुत से दाँते हैं जो बहुत तीखे हैं।
किसान इसको अनाज के छिलके उतारने के काम में लाते है।
तू पर्वतों को पैरों तले मसलेगा और उनको धूल में मिला देगा।
तू पर्वतों को ऐसा कर देगा जैसे भूसा होता है।
16 तू उनको हवा में उछालेगा और हवा उनको उड़ा कर दूर ले जायेगी और उन्हें कहीं छितरा देगी।
तब तू यहोवा में स्थित हो कर आनन्दित होगा।
तुझको इस्राएल के पवित्र (परमेश्वर) पर पहुत गर्व होगा।
17 गरीब जन, और जरुरत मंद जल ढूँढ़ते हैं किन्तु उन्हें जल नहीं मिलता है।
वे प्यासे हैं और उनकी जीभ सूखी है। मैं उनकी विनतियों का उत्तर दूँगा।
मैं उनको न ही तजूँगा और न ही मरने दूँगा।
18 मैं सूखे पहाड़ों पर नदियाँ बहा दूँगा।
घाटियों में से मैं जलस्रोत बहा दूँगा।
मैं रेगिस्तान को जल से भरी झील में बदल दूँगा।
उस सूखी धरती पर पानी के सोते मिलेंगे।
19 मरुभूमि में देवदार के, कीकार के, जैतून के, सनावर के, तिघारे के, चीड़ के पेड़ उगेंगे!
20 लोग ऐसा होते हुए देखेंगे और वे जानेंगे कि
यहोवा की शक्ति ने यह सब किया है।
लोग इनको देखेंगे और समझना शुरु करेंगे कि
इस्राएल के पवित्र (परमेश्वर) ने यह बातें की हैं।”
यहोवा की झूठे देवताओं को चेतावनी
21 याकूब का राजा यहोवा कहता है, “आ, और मुझे अपनी युक्तियाँ दे। अपना प्रमाण मुझे दिखा और फिर हम यह निश्चय करेंगे कि उचित बातें क्या हैं 22 तुम्हारे मूर्तियों को हमारे पास आकर, जो घट रहा है, वह बताना चाहिये। “प्रारम्भ में क्या कुछ घटा था और भविष्य में क्या घटने वाला है। हमें बताओं हम बड़े ध्यान से सुनेंगे। जिससे हम यह जान जायें कि आगे क्या होने वाला है। 23 हमें उन बातों को बताओ जो घटनेवाली हैं। जिन्हें जानने का हमें इन्तज़ार है ताकि हम विश्वास करें कि सममुच तुम देवता हो। कुछ करो! कुछ भी करो। चाहे भला चाहे बुरा ताकि हम देख सकें और जान सके कि तुम जीवित हो और तुम्हारा अनुसरण करें।
24 “देखो झूठे देवताओं, तुम बेकार से भी ज्यादा बेकार हो! तुम कुछ भी तो नहीं कर सकते। केवल बेकार के भ्रष्ट लोग ही तुम्हें पूजना चाहते हैं!”
बस यहोवा ही परमेश्वर है
25 “उत्तर में मैंने एक व्यक्ति को उठाया है।
वह पूर्व से जहाँ सूर्य उगा करता है, आ रहा है।
वह मेरे नाम की उपासना किया करता है।
जैसे कुम्हार मिट्टी रौंदा करता है वैसे ही वह विशेष व्यक्ति राजाओं को रौंदेगा।”
26 “यह सब घटने से पहले ही हमें जिसने बताया है, हमें उसे परमेश्वर कहना चाहिए।
क्या हमें ये बातें तुम्हारे किसी मूर्ति ने बतायी नहीं!
किसी भी मूर्ति ने कुछ भी हमको नहीं बताया था।
वे मूर्ति तो एक भी शब्द नहीं बोल पाते हैं।
वे झूठे देवता एक भी शब्द जो तुम बोला करते हो नहीं सुन पाते हैं।
27 मैं यहोवा सिय्योन को इन बातों के विषय में बताने वाला पहला था।
मैंने एक दूत को इस सन्देश के साथ यरूशलेम भेजा था कि: ‘देखो, तुम्हारे लोग वापस आ रहे हैं!’”
28 मैंने उन झूठे देवों को देखा था, उनमें से कोई भी इतना बुद्धिमान नहीं था जो कुछ कह सके।
मैंने उनसे प्रश्न पूछे थे वे एक भी शब्द नहीं बोल पाये थे।
29 वे सभी देवता बिल्कुल ही व्यर्थ हैं!
वे कुछ नहीं कर पाते वे पूरी तरह मूल्यहीन हैं!
यहोवा का विशेष सेवक
42“मेरे दास को देखो!
मैं ही उसे सभ्भाला हूँ।
मैंने उसको चुना है, मैं उससे अति प्रसन्न हूँ।
मैं अपनी आत्मा उस पर रखता हूँ।
वह ही सब देशों में न्याय खरेपन से लायेगा।
2 वह गलियों में जोर से नहीं बोलेगा।
वह नहीं चिल्लायेगा और न चीखेगा।
3 वह कोमल होगा।
कुचली हुई घास का तिनका तक वह नहीं तोड़ेगा।
वह टिमटिमाती हुई लौ तक को नहीं बुझायेगा।
वह सच्चाई से न्याय स्थापित करेगा।
4 वह कमजोर अथवा कुचला हुआ तब तक नहीं होगा
जब तक वह न्याय को दुनियाँ में न ले आये।
दूर देशों के लोग उसकी शिक्षाओं पर विश्वास करेंगे।”
यहोवा जगत का सृजन हार और शासक है
5 सच्चे परमेश्वर यहोवा ने ये बातें कही हैं: (यहोवा ने आकाशों को बनाया है। यहोवा ने आकाश को धरती पर ताना है। धरती पर जो कुछ है वह भी उसी ने बनाया है। धरती पर सभी लोगों में वही प्राण फूँकता है। धरती पर जो भी लोग चल फिर रहे हैं, उन सब को वही जीवन प्रदान करता है।)
6 “मैं यहोवा ने तुझ को खरे काम करने को बुलाया है।
मैं तेरा हाथ थामूँगा और तेरी रक्षा करुँगा।
तू एक चिन्ह यह प्रगट करने को होगा कि लोगों के साथ मेरी एक वाचा है।
तू सब लोगों पर चमकने को एक प्रकाश होगा।
7 तू अन्धों की आँखों को प्रकाश देगा और वे देखने लगेंगे।
ऐसे बहुत से लोग जो बन्दीगृह में पड़े हैं, तू उन लोगों को मुक्त करेगा।
तू बहुत से लोगों को जो अन्धेरे में रहते हैं उन्हें उस कारागार से तू बाहर छुड़ा लायेगा।”
8 “मैं यहोवा हूँ! मेरा नाम यहोवा है।
मैं अपनी महिमा दूसरे को नहीं दूँगा।
मैं उन मूर्तियों (झूठे देवों) को वह प्रशंसा,
जो मेरी है, नहीं लेने दूँगा।
9 प्रारम्भ में मैंने कुछ बातें जिनको घटना था,
बतायी थी और वे घट गयीं।
अब तुझको वे बातें घटने से पहले ही बताऊँगा
जो आगे चल कर घटेंगी।”
परमेश्वर की स्तुति
10 यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ,
तुम जो दूर दराज के देशों में बसे हो,
तुम जो सागर पर जलयान चलाते हो,
तुम समुद्र के सभी जीवों,
दूरवर्ती देशों के सभी लोगों,
यहोवा का यशगान करो!
11 हे मरुभूमि एवं नगरों और केदार के गाँवों,
यहोवा की प्रशंसा करो!
सेला के लोगों,
आनन्द के लिये गाओ!
अपने पर्वतों की चोटी से गाओ।
12 यहोवा को महिमा दो।
दूर देशों के लोगों उसका यशगान करो!
13 यहोवा वीर योद्धा सा बाहर निकलेगा उस व्यक्ति सा जो युद्ध के लिये तत्पर है।
वह बहुत उत्तेजित होगा।
वह पुकारेगा और जोर से ललकारेगा
और अपने शत्रुओं को पराजित करेगा।
परमेश्वर धीरज रखता है
14 “बहुत समय से मैंने कुछ भी नहीं कहा है।
मैंने अपने ऊपर नियंन्त्रण बनाये रखा है और मैं चुप रहा हूँ।
किन्तु अब मैं उतने जोर से चिल्लाऊँगा जितने जोर से बच्चे को जनते हुए स्त्री चिल्लाती है!
मैं बहुत तीव्र और जोर से साँस लूँगा।
15 मैं पर्वतों — पहाड़ियों को नष्ट कर दूँगा।
मैं जो पौधे वहाँ उगते हैं। उनको सुखा दूँगा।
मैं नदियों को सूखी धरती में बदल दूँगा।
मैं जल के सरोवरों को सुखा दूँगा।
16 फिर मैं अन्धों को ऐसी राह दिखाऊँगा जो उनको कभी नहीं दिखाई गयी।
नेत्रहीन लोगों को मैं ऐसी राह दिखाऊँगा जिन पर उनका जाना कभी नहीं हुआ।
अन्धेरे को मैं उनके लिये प्रकाश में बदल दूँगा।
ऊँची नीची धरती को मैं समतल बनाऊँगा।
मैं उन कामों को करुँगा जिनका मैंने वचन दिया है!
मैं अपने लोगों को कभी नहीं त्यागूँगा।
17 किन्तु कुछ लोगों ने मेरा अनुसरण करना छोड़ दिया।
उन लोगों के पास वे मूर्तियाँ हैं जो सोने से मढ़ी हैं।
उन से वे कहा करते हैं कि ‘तुम हमारे देवता हो।’
वे लोग अपने झूठे देवताओं के विश्वासी हैं।
किन्तु ऐसे लोग बस निराश ही होंगे!”
इस्राएल ने परमेश्वर की नहीं सुनी
18 “तुम बहरे लोगों को मेरी सुनना चाहिए!
तुम अंधे लोगों को इधर दृष्टि डालनी चाहिए और मुझे देखना चाहिए!
19 कौन है उतना अन्धा जितना मेरा दास है कोई नहीं।
कौन है उतना बहरा जितना मेरा दूत है जिसे को मैंने इस संसार में भेजा है कोई नहीं!
यह अन्धा कौन है जिस के साथ मैंने वाचा की ये इतना अन्धा है जितना अन्धा यहोवा का दास है।
20 वह देखता बहुत है,
किन्तु मेरी आज्ञा नहीं मानता।
वह अपने कानों से साफ साफ सुन सकता है
किन्तु वह मेरी सुनने से इन्कार करता है।”
21 यहोवा अपने सेवक के साथ सच्चा रहना चाहता है।
इसलिए वह लोगों के लिए अद्भुत उपदेश देता है।
22 किन्तु दूसरे लोगों की ओर देखो।
दूसरे लोगों ने उनको हरा दिया और जो कुछ उनका था,छीन लिया।
काल कोठरियों में वे सब फँसे हैं,
कारागरों के भीतर वे बन्दी हैं।
लोगों ने उनसे उनका धन छीन लिया है
और कोई व्यक्ति ऐसा नहीं जो उनको बचा ले।
दूसरे लोगों ने उनका धन छीन लिया
और कोई व्यक्ति ऐसा नहीं जो कहे “इसको वापस करो!”
23 तुममें से क्या कोई भी इसे सुनता है क्या तुममें से किसी को भी इस बात की परवाह है और क्या कोई सुनता है कि भविष्य में तुम्हारे साथ क्या होनेवाला है 24 याकूब और इस्राएल की सम्पत्ति लोगों को किसने लेने दी यहोवा ने ही उन्हें ऐसा करने दिया! हमने यहोवा के विरुद्ध पाप किया था। सो यहोवा ने लोगों को हमारी सम्पत्ति छीनने दी। इस्राएल के लोग उस ढंग से जीना नहीं चाहते थे जिस ढंग से यहोवा चाहता था। इस्राएल के लोगों ने उसकी शिक्षा पर कान नहीं दिया। 25 सो यहोवा उन पर क्रोधित हो गया। यहोवा ने उनके विरुद्ध भयानक लड़ाईयाँ भड़कवा दीं। यह ऐसे हुआ जैसे इस्राएल के लोग आग में जल रहे हों और वे जान ही न पाये हों कि क्या हो रहा है। यह ऐसा था जैसे वे जल रहे हों। किन्तु उन्होंने जो वस्तुएँ घट रही थीं, उन्हें समझने का जतन ही नहीं किया।
समीक्षा
यीशु मसीह के आदर्शों का पालन करें : नेतृत्व करने के लिए सेवा करें
हर एक टोपी, हर एक बिल्ले और हर एक पट्टे पर आदर्श वाक्य यही होना चाहिए “नेतृत्व करने के लिए सेवा करें”। जे. ओसवाल्ड सैंडर्स के अनुसार 'सही और सच्चा नेतृत्व सभी की नि:स्वार्थ सेवा करना है, ना कि उन लोगों से अपनी सेवा करवाना।'
जैसा कि हमने पवित्र शास्त्र - बाइबल में पढ़ा है कि, आरम्भ में परमेश्वर ने इस्रालियों को अपनी सेवा के लिए चुना था। परमेश्वर ने इस्रालियों को सामर्थ देने और उनकी सहायता करने का वचन दिया था (41:8-9)।
मगर इस्राएली इस सेवा में विफल हुए और कई मुसीबतों में फंस गए। शारीरिक तौर से 20/20 संपूर्ण शारीरिक दृष्टि पाना संभव है पर हम अब भी आध्यात्मिक तौर से नासमझ और विवेकशून्य हो सकते हैं: 'मेरे दास के सिवाय कौन अन्धा है? और मेरे भेजे हुए दूत के तुल्य कौन बहरा है? मेरे मित्र के समान कौन अन्धा था यहोवा के दास के तुल्य अन्धा कौन है?' (42:19)।
यशायाह ने पहले से ही परमेश्वर के एक और सेवक को देख लिया था:
'मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूँ, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्न है;
मैंने उस में अपनी आत्मा रखी है, वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रकट करेगा।
न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा।
कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा;
वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा।
वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे;'
(वव.1-4अ).
मत्ती बताता है कि यीशु ने इन वचनो को पूरा किया, जैसा कि यशायाह के लेखांश में सभी अन्य सेवकों ने किया था (यशायाह 49:1-7; 50:4-9; 52:13-53:12)। यीशु जातियों के लिए प्रकाश ठहरेंगे..... अंधों की आँखें खोलेंगे..... बंधुओं को बन्दीगृह से निकालेंगे..... और जो अंधियारे में बैठें हैं उन्हें कालकोठरी से निकालेंगे' (42:6-7)।
यीशु ने आपके लिए जो किया है उसके परिणामस्वरूप, ये अद्भुत वायदे आप के लिए पूरे होंगें:
'मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ,
इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ;
मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा,
अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सभाले रहूंगा' (41:10)।
'मैं अन्धों को एक मार्ग से ले चलूंगा जिसे वे नहीं जानते और उन को ऐसे पथों से चलाऊंगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अन्धियारे को उजियाला करूंगा और टेढ़े मार्गों को सीधा करूंगा।' (42:16)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
यशायाह 41:9-10
" तू मेरा दास है, मैं ने तुझे चुना है और तजा नहीं; मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा "
सांत्वना देने वाले अद्भुत वचन, खासकर परेशानी के समय में।
दिन का वचन
यशायाह 41:10
“मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा॥“
App
Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.
Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.
Podcast
Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.
Website
Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.
संदर्भ
जे. ओस्वाल्ड सॅन्डर्स, स्प्रिच्युअल लीडरशिप, (मूडी पब्लिशर्स, 2007)
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।