परमेश्वर के मार्ग में कैसे बने रहें
परिचय
मुझे याद है सालों पहले एक घटना के विषय में मैं पढ़ रहा था जो ईटली के उष्ण तटीय क्षेत्र में हुई थी। एक युवा व्यक्ति समुद्र के पास सड़क पर अपनी स्पोर्ट्स कार चला रहा था। वह यह सुंदर और सुरम्य रास्ता था। लेकिन सड़क वैसे नहीं थी जैसी दिखाई देती थी।
सारे रास्ते में चेतावनी के चिह्न थे। फिर भी, युवा व्यक्ति को सड़क बहुत अच्छी जान पड़ती थी। विपत्ति उसका इंतजार कर रही थी। ल़ुढकी हुई चट्टान ने हाल ही में खड़ी चट्टान का निर्माण कर लिया था। किसी को भी उस सड़क पर नहीं होना चाहिए था। वह तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने सभी चेतावनी के चिह्नों को नजरअंदाज किया। वह सीधे खड़ी चट्टान पर चले गए।
कभी कभी हम सुनिश्चित नहीं होते हैं कि यह रास्ता कहाँ ले जाएगा। दूसरे समय पर, हम अच्छी तरह से जानते हैं कि यह कहां जाता है लेकिन फिर भी इस पर चलना चुनते हैं।
यीशु ने कहा कि एक रास्ता है जो जीवन की ओर जाता है। एक ऐसा रास्ता भी है जो विनाश की ओर ले जाता है (मत्ती 7:13-14)। चेतावनी के चिह्न एक धमकी की तरह नहीं लगाए गए हैं, लेकिन प्रेम के कारण। ईटली के उष्ण तटीय क्षेत्र में चिह्न लोगों को सुरक्षित रखने के लिए स्थापित किए गए थे। यीशु के वचन, नया नियम और संपूर्ण बाईबल, डिजाईन किए गए हैं हमें उस रास्ते पर बनाए रखने के लिए जो रास्ता जीवन की ओर जाता है।
कैसे आप सुनिश्चित करते हैं कि आप सही रास्ते पर हैं? जब आप उस रास्ते पर होते हैं, तब आप कैसे इस पर बने रहते हैं?
भजन संहिता 107:1-9
भजनसंहिता 107
107यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह उत्तम है।
उसका प्रेम अमर है।
2 हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने बचाया है, इन राष्ट्रों को कहे।
हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने अपने शत्रुओं से छुड़ाया उसके गुण गाओ।
3 यहोवा ने निज भक्तों को बहुत से अलग अलग देशों से इकट्ठा किया है।
उसने उन्हें पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से जुटाया है।
4 कुछ लोग निर्जन मरूभूमि में भटकते रहे।
वे लोग ऐसे एक नगर की खोज में थे जहाँ वे रह सकें।
किन्तु उन्हें कोई ऐसा नगर नहीं मिला।
5 वे लोग भूखे थे और प्यासे थे
और वे दुर्बल होते जा रहे थे।
6 ऐसे उस संकट में सहारा पाने को उन्होंने यहोवा को पुकारा।
यहोवा ने उन सभी लोगों को उनके संकट से बचा लिया।
7 परमेश्वर उन्हें सीधा उन नगरों में ले गया जहाँ वे बसेंगे।
8 परमेश्वर का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये
और उन अद्भुत कर्मों के लिये जिन्हें वह अपने लोगों के लिये करता है।
9 प्यासी आत्मा को परमेश्वर सन्तुष्ट करता है।
परमेश्वर उत्तम वस्तुओं से भूखी आत्मा का पेट भरता है।
समीक्षा
’अद्भुत मार्ग' पर चलिये
’ यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भले हैं; और उनकी करुणा सदा की है' (व.1, एम.एस.जी)। आप अपने लिए परमेश्वर के उद्देश्य को और बेहतर नहीं बना सकते हैं। परमेश्वर भले हैं। वह आपसे प्रेम करते हैं। वह आपके जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ को चाहते हैं। उनके पास आपके जीवन के लिए एक ’अद्भुत मार्ग' है।
वह चाहते हैं कि आप उनके मार्ग पर चलियेः’उन्होंने उनको सकेती से छुड़ाया' (व.6ब, एम.एस.जी)। वह नहीं चाहते हैं कि आपकी स्थिति ऐसी हो, ' वे जंगल में मरुभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया; भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए' (व.4-5, एम.एस.जी)।
अच्छा समाचार है कि, जहाँ कही आप हैं, वहाँ से आप ’परमेश्वर की दोहाई दे सकते हैं' (व.6अ)। जब आप ऐसा करते हैं, तब ’ वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करते हैं, और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करते हैं' (व.9, एम.एस.जी)।
परमेश्वर ने उनके लोगों को कई बार छुड़ाया, इसके धन्यवादिता के इस भजन में चार बार, भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, 'तब उन्होंने संकट में पड़े परमेश्वर की दोहाई दी' (वव.6,13,19,28)। हर बार, परमेश्वर ने उन्हें छुड़ाया।
इसके अतिरिक्त, भूतकाल में जो कुछ आपने किया है, उसमें से कोई भी चीज आपको परमेश्वर के लोगों के साथ भागीदार बनने के योग्य नहीं बनाती है। एकमात्र योग्यता है कि आपको परमेश्वर की दोहाई देनी है और छुटकारा पाना है (व.2)। छुटकारे का अर्थ है ’परमेश्वर के द्वारा मुक्त किया जाना।' यीशु इस छुटकारे को संभव बनाने आये।
’परमेश्वर के छुड़ाये हुए ' ’ऐसा कहे' (व.2)। बोलिये और दूसरों को बताईये कि कैसे परमेश्वर ने आपको छुड़ाया है।
प्रार्थना
2 कुरिन्थियों 12:11-21
कुरिन्थियों के प्रति पौलुस का प्रेम
11 मैं मूर्खों की तरह बतियाता रहा हूँ किन्तु ऐसा करने को मुझे विवश तुमने किया। तुम्हें तो मेरी प्रशंसा करनी चाहिए थी यद्यपि वैसे तो मैं कुछ नहीं हूँ पर तुम्हारे उन “महा प्रेरितों” से मैं किसी प्रकार भी छोटा नहीं हूँ। 12 किसी को प्रेरित सिद्ध करने वाले आश्चर्यपूर्ण संकेत, अद्भुत कर्म और आश्चर्य कर्म भी तुम्हारे बीच धीरज के साथ प्रकट किये गये हैं। मैंने हर प्रकार की यातना झेली है। चाहे संकेत हो, चाहे कोई चमत्कार या आश्चर्य कर्म 13 तुम दूसरी कलीसियाओं से किस दृष्टि से कम हो? सिवाय इसके कि मैं तुम पर किसी प्रकार भी कभी भार नहीं बना हूँ? मुझे इस के लिए क्षमा करो।
14 देखो, तुम्हारे पास आने को अब मैं तीसरी बार तैयार हूँ। पर मैं तुम पर किसी तरह का बोझ नहीं बनूँगा। मुझे तुम्हारी सम्पत्तियों की नहीं तुम्हारी चाहत है। क्योंकि बच्चों को अपने माता-पिता के लिये कोई बचत करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि अपने बच्चों के लिये माता-पिता को ही बचत करनी होती है। 15 जहाँ तक मेरी बात है, मेरे पास जो कुछ है, तुम्हारे लिए प्रसन्नता के साथ खर्च करूँगा यहाँ तक कि अपने आप को भी तुम्हारे लिए खर्च कर डालूँगा। यदि मैं तुमसे अधिक प्रेम रखता हूँ, तो भला तुम मुझे कम प्यार कैसे करोगे।
16 हो सकता है, मैंने तुम पर कोई बड़ा बोझ न डाला हो किन्तु (तुम्हारा कहना है) मैं कपटी था मैंने तुम्हें अपनी चालाकी से फँसा लिया। 17 क्या जिन लोगों को मैंने तुम्हारे पास भेजा था, उनके द्वारा तुम्हें छला था? नहीं! 18 तितुस और उसके साथ हमारे भाई को मैंने तुम्हारे पास भेजा था। क्या उसने तुम्हें कोई धोखा दिया? नहीं क्या हम उसी निष्कपट आत्मा से नहीं चलते रहे? क्या हम उन्हीं चरण चिन्हों पर नहीं चले?
19 अब तुम क्या यह सोच रहे हो कि एक लम्बे समय से हम तुम्हारे सामने अपना पक्ष रख रहे हैं। किन्तु हम तो परमेश्वर के सामने मसीह के अनुयायी के रूप में बोल रहे हैं। मेरे प्रिय मित्रो! हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह तुम्हें आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिए है। 20 क्योंकि मुझे भय है कि कहीं जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो तुम्हें वैसा न पाऊँ, जैसा पाना चाहता हूँ और तुम भी मुझे वैसा न पाओ जैसा मुझे पाना चाहते हो। मुझे भय है कि तुम्हारे बीच मुझे कहीं आपसी झगड़े, ईर्ष्या, क्रोधपूर्ण कहा-सुनी, व्यक्तिगत षड्यन्त्र, अपमान, काना-फूसी, हेकड़पन और अव्यवस्था न मिले। 21 मुझे डर है कि जब मैं फिर तुमसे मिलने आऊँ तो तुम्हारे सामने मेरा परमेश्वर कहीं मुझे लज्जित न करे; और मुझे उन बहुतों के लिए विलाप न करना पड़े जिन्होंने पहले पाप किये हैं और अपवित्रता, व्यभिचार तथा भोग-विलास में डूबे रहने के लिये पछतावा नहीं किया है।
समीक्षा
प्रेम के मार्ग में जीएँ
पौलुस प्रेरित पूरी तरह से दृढ़संकल्पित थे कि सही चीज करेंगे। वह सही मार्ग पर चलना चाहते थे (व.18)। उन पर झूठा आरोप लगाया गया। ’सुपर-प्रेरितों' (व.11) ने उन्हें कम समझने की कोशिश की। इसके परिणामस्वरूप, उन लोगों ने उसे गलत समझा और उन पर प्रहार किया, जिन्हें बेहतर जानना चाहिए था। मूर्खतापूर्वक, उन पर आरोप लगाया गया कि वह कुरिंथियों से पैसा नहीं लेना चाहते थे क्योंकि वह उनसे प्रेम नहीं करते थे (व.13)।
पौलुस बताते हैं कि उन्होंने उनसे पैसे नहीं लिए क्योंकि वह उन पर बोझ नहीं डालना चाहते थे। वह कहते हैं, 'मुझे तुम्हारी संपत्ति नहीं, बल्कि तुम चाहिए हो। क्योंकि बच्चों को माता – पिता के लिये धन बटोरना नहीं चाहिए, पर माता – पिता को बच्चों के लिये।' (व.14ब)।
उनके लिए अपने प्रेम के कारण पौलुस ने आनंद से उनके लिए सबकुछ खर्च कर दिया और सच में खुद भी खर्च हो गए (व.15)। उन्होंने हमेशा इस तरह से बर्ताव किया जो कि ’ईमानदार' था (व.18, एम.एस.जी)। जो कुछ उन्होंने किया वह उनके लाभ के लिए था (व.19)। वह उनके पैसे या संपत्ति में रूचि नहीं रखते थे। वह उनकी आत्माओं में रूचि रखते थे।
ठीक जैसे कि पौलुस ने सही चीज की और सही दिशा में बने रहे, वैसे ही वह चाहते हैं कि कुरिंथि भी ऐसा ही करें। उन्हें भय है कि उनमें से कुछ शायद मार्ग से भटक जाएंगेः’झगड़ा, डाह, क्रोध, विरोध, ईर्ष्या, चुगली, अभिमान और बखेड़े हों' (व.20, एम.एस.जी)।
उन्हें डर है कि जब वह उनके पास वापस आएँगे, तब वह पायेंगे कि भीड़ ’ जिन्होंने पहले पाप किया था और गन्दे काम और व्यभिचार और लुचपन से, जो उन्होंने किया, मन नहीं फिराया' (व.21, एम.एस.जी)।
इन चीजों से मुड़ जाईये, सुनिश्चित कीजिए कि आप उस मार्ग पर हैं जो जीवन की ओर जाता है। जो रास्ता जीवन की ओर जाता है वह प्रेम का मार्ग है – वह प्रेम जो पौलुस कुरिंथियों से करते हैं।
प्रार्थना
यशायाह 29:1-30:18
यरूशलेम के प्रति परमेश्वर का प्रेम
29परमेशवर कहता है, “अरीएल को देखो! अरीएल वह स्थान हैं जहाँ दाऊद ने छावनी डाली थी। वर्ष दो वर्ष साथ उत्सवों के पूरे चक्र तक गुजर जाने दो। 2 तब मैं अरीएल को दण्ड दूँगा। वह नगरी दु:ख और विलाप से भर जायेगी। वह एक ऐसी मेरी बलि वेदी होगी जिस पर इस नगरी के लोग बलि चढ़ायेंगे!
3 “अरीएल तेरे चारों तरफ मैं सेनाएँ लगाऊँगा। मैं युद्ध के लिये तेरे विरोध में बुर्ज बनाऊँगा। 4 मैं तुझ को हरा दूँगा और धरती पर गिरा दूँगा। तू धरती से बोलेगा। मैं तेरी आवाज ऐसे सुनूँगा जैसे धरती से किसी भूत की आवाज उठ रही हो। धूल से मरी—मरी तेरी दुर्बल आवाज आयेगी।”
5 तेरे शत्रु धूल के कण की भाँति नगण्य होंगे। वहाँ बहुत से क्रूर व्यक्ति भूसे की तरह आँधी में उड़ते हुए होंगे। 6 सर्वशक्तिमान यहोवा मेघों के गर्जन से, धरती की कम्पन से, और महाध्वनियों से तेरे पास आयेगा। यहोवा दण्डित करेगा। यहोवा तूफान, तेज आँधी और अग्नि का प्रयोग करेगा जो जला कर सभी नष्ट कर देगी। 7 फिर बहुत बहुत देशों का अरीएल के साथ नगर और उसके किले के विरोध में लड़ना रात के स्वप्न सा होगा। जो अचानक विलीन होता है। 8 किन्तु उन सेनाओं को भी यह एक स्वप्न जैसा होगा। वे सेनाएँ वे वस्तु न पायेंगी जिनको वे चाहते हैं। यह वैसा ही होगा जैसे भूखा व्यक्ति भोजन का स्वप्न देखे औऱ जागने पर वह अपने को वैसा ही भूखा पाये। यह वैसा ही होगा जैसे कोई प्यासा पानी का स्वप्न देखे और जब जागे तो वह अपने को प्यासा का प्यासा ही पाये। सिय्योन के विरोध में लड़ते हुए सभी देश सचमुच ऐसे ही होंगे। यह बात उन पर खरी उतरेगी। देशों को वे वस्तु नहीं मिलेगी जिनकी उन्हें चाह है।
9 आश्चर्यचकित हो जाओ और अचरज मे भर जाओ।
तुम सभी धुत्त होगे किन्तु दाखमधु से नहीं।
देखो और अचरज करो!
तुम लड़खड़ाओगे और गिर जाओगे किन्तु सुरा से नहीं।
10 यहोवा ने तुमको सुलाया है।
यहोवा ने तुम्हारी आँखें बन्द कर दी। (नबी तुम्हारी आँखें है।)
तुम्हारी बुद्धि पर यहोवा ने पर्दा डाल दिया है। (नबी तुम्हारी बुद्धि हैं।)
11 मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि ये बातें घटेंगी। किन्तु तुम मुझे नहीं समझ रहे। मेरे शब्द उस पुस्तक के समान है, जो बन्द हैं और जिस पर एक मुहर लगी है। 12 तुम उस पुस्तक को एक ऐसे व्यक्ति को दे सकते हो जो पढ़ पुस्तक है और उस व्यक्ति से कह सकते हो कि वह उस पुस्तक को पढ़े। किन्तु वह व्यक्ति कहेगा, “मैं पुस्तक को पढ़ नहीं सकता क्योंकि यह बन्द है और मैं इसे खोल नहीं सकता।” अथवा तुम उस पुस्तक को किसी भी ऐसे व्यक्ति को दे सकते हो जो पढ़ नहीं सकता, और उस व्यक्ति से कह सकते हो कि वह उस पुस्तक को पढ़े। तब वह व्यक्ति कहेगा, “मैं इस किताब को नहीं पढ़ सकता क्योंकि मैं पढ़ना नहीं जानता।”
13 मेरा स्वामी कहता है, “ये लोग कहते हैं कि वे मुझे प्रेम करते हैं। अपने मुख के शब्दों से वे मेरे प्रति आदर व्यक्त करते हैं। किन्तु उनके मन मुझ से बहुत दूर है। वह आदर जिसे वे मेरे प्रति दिखाते हैं, बस कोरे मानव नियम हैं जिन्हें उन्होंने कंठ कर रखा हैं। 14 सो मैं इन लोगों को शक्ति से पूर्ण और अचरज भरी बातें करते हुए आश्चर्यचकित करता रहूँगा। उनके बुद्धिमान पुरुष अपना विवेक छोड़ बैठेंगे। उनके बुद्धिमान पुरुष समझने में असमर्थ हो जायेंगे।”
15 धिक्कार है उन लोगों को जो यहोवा से बातें छिपाने का जतन करेंगे। वे सोचते हैं कि यहोवा तो समझेगा नहीं। वे लोग अन्धेरे में पाप करते हैं। वे लोग अपने मन में कहा करते हैं, “हमें कोई देख नहीं सकता। हम कौन हैं, इसे कोई व्यक्ति नहीं जानेगा।”
16 तुम भ्रम में पड़े हो। तुम सोचा करते हो, कि मिट्टी कुम्हार के बराबर है। तुम सोचा करते हो कि कृति अपने कर्ता से कह सकती है “तूने मेरी रचना नहीं की है!” यह वैसा ही है, जैसे घड़े का अपने बनाने वाले कुम्हार से यह कहना, “तू समझता नहीं है तू क्या कर रहा है।”
एक उत्तम समय आ रहा है
17 यह सच है: कि लबानोन थोड़े दिनों बाद, अपने विशाल ऊँचे पेड़ों को लिये सपाट जुते खेतों में बदल जायेगा और सपाट खेत ऊँचे—ऊँचे पेड़ों वाले सघन वनों का रुप ले लेंगे। 18 पुस्तक के शब्दों को बहरे सुनेंगे, अन्धे अन्धेरे और कोहरे में से भी देख लेंगे। 19 यहोवा दीन जनों को प्रसन्न करेगा। दीन जन इस्राएल के उस पवित्रतम में आनन्द मनायेंगे।
20 ऐसा तब होगा जब नीच और क्रूर व्यक्ति समाप्त हो जायेंगे। ऐसा तब होगा जब बुरा काम करने में आनन्द लेने वाले लोग चले जायेंगे। 21 (वे लोग दूसरे लोगों के बारे में झूठ बोला करते हैं। वे न्यायालय में लोगों को फँसाने का यत्न करते हैं। वे भोले भाले लोगों को नष्ट करने में जुटे रहते हैं।)
22 सो यहोवा ने याकूब के परिवार से कहा। (यह वही यहोवा है जिसने इब्राहीम को मुक्त किया था।) यहोवा कहता है, “अब याकूब (इस्राएल के लोग) को लज्जित नहीं होना होगा। अब उसका मुँह कभी पीला नहीं पड़ेगा। 23 वह अपनी सभी संतानों को देखेगा और कहेगा कि मेरा नाम पवित्र है। इन संतानो को मैंने अपने हाथों से बनाया है और ये संतानें मानेंगी कि याकूब का पवित्र (परमेश्वर) वास्तव में पवित्र है और यें सन्ताने इस्राएल के परमेशवर को आदर देंगी। 24 वे लोग जो गलतियाँ करते रहे हैं, अब समझ जायेंगे। वे लोग जो शिकायत करते रहे हैं अब निर्देशों को स्वीकार करेंगे।”
इस्राएल को परमेश्वर पर विश्वास रखना चाहिये, मिस्र पर नहीं
30यहोवा ने कहा, “मेरे इन बच्चों को देखो, ये मेरी बात नहीं मानते। ये योजनाएँ बनाते हैं किन्तु मेरी सहायता नहीं लेना चाहते। ये दूसरी जातियों के साथ समझौता करते हैं जबकि मेरी आत्मा उन समझौतों को नहीं चाहती। ये लोग अपने सिर पर पाप का बोझ बढ़ाते चले आ रहे हैं। 2 ये बच्चे सहायता के लिये मिस्र की ओर चले जा रहे हैं, किन्तु ये मुझ से कुछ नहीं पूछते कि क्या ऐसा करना उचित है। उन्हें उम्मीद है कि फिरौन उन्हें बचा लेगा। वे चाहते हैं कि वे मिस्र उन्हें बचा ले।
3 “किन्तु मैं तुम्हें बताता हूँ कि मिस्र में शरण लेने से तुम्हारा बचाव नहीं होगा। मिस्र तुम्हारी रक्षा करने में समर्थ नहीं होगा। 4 तुम्हारे अगुआ सोअन में गये हैं और तुम्हारे राजदूत हानेस को चले गये हैं। 5 किन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। वे एक ऐसे राष्ट्र पर विश्वास कर रहे हैं जो उन्हें नहीं बचा पायेगी। मिस्र बेकार है, मिस्र कोई सहायता नहीं देगा। मिस्र के कारण उन्हें अपमानित और लज्जित होना पड़ेगा।”
यहूदा को परमेश्वर का सन्देश
6 दक्षिण के पशुओं के लिए दु:खद सन्देश:
नेगव विपत्तियों और खतरों से भरा एका देश है। यह प्रदेश सिंहों, नागों और उड़ने वाले साँपों से भरा पड़ा है। किन्तु कुछ लोग नेगव से होते हुए यात्रा कर रहे हैं—वे मिस्र की ओर जा रहे हैं। उन लोगों ने गधों की पीठों पर अपनी धन दौलत लादी हुई है। उन लोगों ने अपना खज़ाना ऊँटों की पीठों पर लाद रखा है अर्थात् ये लोग एक ऐसे देश पर भरोसा रखे हैं जो उन्हें नहीं बचा सकता। 7 मिस्र ही वह बेकार का देश है। मिस्र की सहायता बेकार है। इसलिये मैं मिस्र को एक ऐसा रहाब कहता हूँ जो निठल्ला पड़ा रहता है।
8 अब इसे एक चिन्ह पर लिख दो ताकि सभी लोग इसे देख सकें। इसे एक पुस्तक में लिख दो। इन्हे अन्तिम दिनों के लिये लिख दो। ये बातें सुदूर भविष्य के साक्षी होंगी:
9 ये लोग उन बच्चों के जैसे हैं जो अपने माता—पिता की बात नहीं मानते। वे झूठे हैं और यहोवा की शिक्षाओं को सुनना तक नहीं चाहते। 10 वे नबियों से कहा करते हैं, “हमें जो करना चाहिये, उनके बारे में दर्शन मत किया करो! हमें सच्चाई मत बताओ! हमसे ऐसी अच्छी अच्छी बातें कहो, जो हमें अच्छी लगे! हमारे लिये केवल अच्छी बातें ही देखो। 11 जो बातें सचमुच घटने को हैं, उन्हें देखना बन्द करो! हमारे रास्ते से हट जाओ! इस्राएल के उस पवित्र परमेश्वर के बारे में हमें बताना बन्द करो।”
यहूदा की सहायता केवल परमेश्वर से आती है
12 इस्राएल का पवित्र (परमेश्वर) कहता है, “तुम लोगों ने यहोवा से इस सन्देश को स्वीकार करने से मना कर दिया है। तुम लोग सहायता के लिये लड़ाई—झगड़ों और झूठ पर निर्भर रहना चाहते हो। 13 तुम क्योंकि इन बातों के लिए अपराधी हो, इसलिए तुम एक ऐसी ऊँची दीवार के समान हो जिसमें दरारें आ चुकी हैं। वह दीवार ढह जायेगी और छोटे—छोटे टुकड़ों में टूट कर ढेर हो जायेगी। 14 तुम मिट्टी के उस बड़े बर्तन के समान हो जाओगे जो टूट कर छोटे—छोटे टुकड़ों में बिखर जाता है। ये टुकड़ें बेकार होते हैं। इन टुकड़ों से तुम न तो आग से जलता कोयला ही उठा सकते हो और न ही किसी जोहड़ से पानी।”
15 इस्राएल का वह पवित्र, मेरा स्वामी यहोवा कहता है, “यदि तुम मेरी ओर लौट आओ तो तुम बच जाओगे। यदि तुम मुझ पर भरोसा रखोगे तभी तुम्हें तुम्हारा बल प्राप्त होगा किन्तु तुम्हें शांत रहना होगा।”
किन्तु तुम तो वैसा करना ही नहीं चाहते! 16 तुम कहते हो, “नहीं, हमें घोड़ों की आवश्यकता है जिन पर चढ़ कर हम दूर भाग जायें!” यह सच है—तुम घोड़ों पर चढ़ कर दूर भाग जाओगे किन्तु शत्रु तुम्हारा पीछा करेगा और वह तुम्हारे घोड़ों से अधिक तेज़ होगा। 17 एक शत्रु ललकारेगा और तुम्हारे हज़ारों लोग भाग खड़े होंगे। पाँच शत्रु ललकारेंगे और तुम्हारे सभी लोग उनके सामने से भाग जायेंगे। वहाँ तुम ऐसे ही अकेले बचे रह जाओगे, जैसे पहाड़ी पर लगा तुम्हारे झण्डे का डण्डा।
परमेश्वर अपने लोगों की सहायता करेगा
18 यहोवा तुम पर अपनी करुणा दर्शाना चाहता है। यहोवा बाट जोह रहा है। यहोवा तुम्हें सुख चैन देने के लिए तैयार खड़ा है। यहोवा खरा परमेश्वर है और हर वह व्यक्ति जो यहोवा की सहायता की प्रतीक्षा में है, धन्य (आनन्दित) होगा।
समीक्षा
अपने लिए परमेश्वर की योजनाओं के बारे में उनसे पूछिये
कभी कभी हम खुद की स्वतंत्र योजनाएं बनाते हैं या सहायता के लिए सीधे दूसरों के पास जाते हैं। हम पहले परमेश्वर से नहीं माँगते हैं। जैसा कि जॉयस मेयर कहती है, 'जब तुम्हें एक परेशानी हैः तब फोन के पास मत जाओ, सिंहासन के पास जाओ।'
भविष्यवक्ता यशायाह परमेश्वर के लोगों की आलोचना करते हैं कि किस तरह से उन्होंने उनकी योजनाएँ बनायी थी। उन्होंने परमेश्वर से सम्मति नहीं ली (30:1-2)। इसके परिणामस्वरूप, वे गलत दिशा में चले गए। परमेश्वर को पूछे बिना ही वे मिस्र चले गए होते।
परेशानी है कि वे सच में परमेश्वर की योजनाओं को नहीं जानना चाहते थे। उनकी आराधना केवल एक औपचारिकता है (29:13): ’ये लोग जो मुँह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं' (व.13, एम.एस.जी)।
यीशु कहते हैं कि यें वचन सिर्फ यशायाह के दिनों के लोगों के लिए नहीं लिखे गए थे। वह फरीसी और शास्त्रीयों से कहते हैं, ' हे कपटियो, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यवाणी ठीक ही की है : ‘ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उनका मन मुझ से दूर रहता है। और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्यों की विधियों को प्रभु उपदेश करके सिखाते हैं।' (मत्ती 15:7-9)।
क्योंकि उनके हृदय परमेश्वर के साथ सही नहीं हैं, वे बड़ी गहराई में जाते हैं परमेश्वर से अपनी योजनाओं को छिपाने के लिएः’ हाय उन पर जो अपनी युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपने काम अन्धेरे में करके कहते हैं, ’हम को कौन देखता है? हम को कौन जानता है?' ...क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपने कर्त्ता के विषय में कहेगी, ’उसने मुझे नहीं बनाया' (यशायाह 29:15-16, एम.एस.जी)।
इसके परिणामस्वरूप, 'तुम युक्ति तो करते परन्तु मेरी ओर से नहीं; वाचा तो बाँधते परन्तु मेरे आत्मा के सिखाये नहीं; ...वे मुझ से बिन पूछे मिस्र को जाते हैं' (व.301ब-2अ, एम.एस.जी)।
वे ’प्रभु के निर्देशों को सुनना नहीं चाहते हैं। वे दर्शियों से कहते हैं, ’दर्शी मत बनो; और नबियों से कहते हैं, हमारे लिये ठीक नबूवत मत करो; ...मार्ग से मुड़ो, पथ से हटो, और इस्राएल के पवित्र को हमारे सामने से दूर करो' (वव.9अ-11)।
वे नहीं चाहते हैं कि भविष्यवक्ता उन्हें कोई चेतावनी दे। वे चेतावनी के चिह्नों को नजरअंदाज करते हैं। असल में, वे चेतावनी के चिह्नों को मार्ग से हटाना चाहते थे और ’इस रास्ते से मुड़ना और पथ से हटना चाहते थे' (व.11)। उन्होंने कहा, ' हम तो घोड़ों पर चढ़कर भागेंगे ' (व.16, एम.एस.जी)।
कभी कभी मैंने अपने जीवन में चीजे बिगाड़ दी हैं, परमेश्वर की सलाह न लेने और अपनी योजनाओं के साथ आगे बढ़ने के द्वारा।
लेकिन इस लेखांश में यह आशा भी है कि ’ जिनका मन भटका हो वे बुध्दि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वे शिक्षा ग्रहण करेंगे' (29:24, एम.एस.जी)। परमेश्वर कहते हैं, ' ’लौट आने और शान्त रहने में तुम्हारा उध्दार है; शान्त रहने और भरोसा रखने में तुम्हारी वीरता है' (व.30-15, एम.एस.जी)।
परमेश्वर सक्रीय रूप से खोज रहे हैं कि लोगों को आशीष दें:’परमेश्वर आपके प्रति अनुग्रही होना चाहते हैं' (व.18अ) ’ और इसलिये वे उँचे उठेंगे कि तुम पर दया करें। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर हैं; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं' (वव.18ब-18क, ए.एम.पी)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
भजनसंहिता 107:4,6-7
’ वे जंगल में मरुभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया ... तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उन्होंने उनको सकेती से छुड़ाया; और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिये किसी नगर में जा पहुँचे'।
हजारों शरणार्थी युद्धवाले क्षेत्रों से भाग रहे हैं, सुरक्षा की तलाश में, अक्सर छोटे बच्चों और बहुत से जीवनों को खोकर। जैसे ही वे हमारे देश में आते हैं हमें करुणा और बुद्धि की आवश्यकता है कि कैसे सर्वश्रेष्ठ रीति से उनकी सहायता की जाए उनके सदमें से बाहर आने के लिए और उनके जीवन को फिर से कैसे बनाया जाए।
दिन का वचन
यशायाह 30:18
“तौभी यहोवा इसलिये विलम्ब करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिये ऊंचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं॥“
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संदर्भ
जॉयस मेयर @JoyceMeyer: https://twitter.com/joycemeyer/status/367322178749857792 \[Last accessed: September 2015\]
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।