दिन 230

घनिष्ठ संबंध

बुद्धि भजन संहिता 99:1-9
नए करार 1 कुरिन्थियों 12:1-26
जूना करार श्रेष्ठगीत 1:1-4:16

परिचय

'जब मैं कॅलिफोर्निया में वाइनयार्ड चर्च में गया, मैंने पाया कि उनका एक सिद्धांतवादी मूल्य था 'परमेश्वर के साथ घनिष्ठता।' तो जब मैं वापस आया मैंने बताना शुरु किया कि यह हमारा भी एक मूल्य है, ' सॅन्डी मिलर अपनी पुस्तक में याद करते हैं, मैं केवल आपको चाहता हूँ।

वह आगे कहते हैं, 'हमारी मंडली के एक बहुत अच्छे सदस्य उस समय मुझे बगल में ले गए और कहा, 'कृपया शब्द 'घनिष्ठता' का इस्तेमाल मत करो क्योंकि उस संदर्भ में उस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते हैं।' तो मैंने 'परमेश्वर के साथ नजदीकी संबंध' के विषय में बताना शुरु किया जोकि थोड़ा सही था। लेकिन थोड़े समय बाद मैं रुक गया क्योंकि मेरा वास्तव में अर्थ था 'घनिष्ठता' और मैं सोचता हूँ कि बाईबल का भी यही अर्थ है परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के विषय में।'

हम घनिष्ठ संबंध के लिए सृजे गए हैं। परमेश्वर के साथ और दूसरे मनुष्यों के साथ एक घनिष्ठ संबंध के लिए हमारी आत्मा में एक गहरी भूख है।

बुद्धि

भजन संहिता 99:1-9

99यहोवा राजा है।
 सो हे राष्ट्र, भय से काँप उठो।
 परमेश्वर राजा के रूप में करूब दूतों पर विराजता है।
 सो हे विश्व भय से काँप उठो।
2 यहोवा सिय्योन में महान है।
 सारे मनुष्यों का वही महान राजा है।
3 सभी मनुष्य तेरे नाम का गुण गाएँ।
 परमेश्वर का नाम भय विस्मय है।
 परमेश्वर पवित्र है।

4 शक्तिशाली राजा को न्याय भाता है।
 परमेश्वर तूने ही नेकी बनाया है।
 तू ही याकूब (इस्राएल) के लिये खरापन और नेकी लाया।
5 यहोवा हमारे परमेश्वर का गुणगान करो,
 और उसके पवित्र चरण चौकी की आराधना करो।

6 मूसा और हारुन परमेश्वर के याजक थे।
 शमूएल परमेश्वर का नाम लेकर प्रार्थना करने वाला था।
 उन्होंने यहोवा से विनती की
 और यहोवा ने उनको उसका उत्तर दिया।
7 परमेश्वर ने ऊँचे उठे बादल में से बातें कीं।
 उन्होंने उसके आदेशों को माना।
 परमेश्वर ने उनको व्यवस्था का विधान दिया।

8 हमारे परमेश्वर यहोवा, तूने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया।
 तूने उन्हें यह दर्शाया कि तू क्षमा करने वाला परमेश्वर है,
 और तू लोगों को उनके बुरे कर्मो के लिये दण्ड देता है।
9 हमारे परमेश्वर यहोवा के गुण गाओ।
 उसके पवित्र पर्वत की ओर झुककर उसकी उपासना करो।
 हमारा परमेश्वर यहोवा सचमुच पवित्र है।

समीक्षा

परमेश्वर के साथ घनिष्ठता

आप परमेश्वर के साथ एक घनिष्ठ संबंध के लिए सृजे गए हैं। यह व्यक्तिगत हैः'प्रभु हमारे परमेश्वर' (व.9)। फिर भी परमेश्वर के साथ घनिष्ठता को हल्के में नहीं लेना चाहिए। परमेश्वर महान, पवित्र और न्यायी हैं।

' यहोवा राजा हुए हैं ... वह करूबों पर विराजमान हैं' (व.1)। करुबों परमेश्वर की पवित्रता का प्रतीक है (उत्पत्ति 3:24, यहेजकेल 1:4 एफ, 10:1 एफ देखें)। परमेश्वर का सिंहासन, 'दो करुबै के बीच में है' (गिनती 7:89)। यह स्थान है जहाँ से परमेश्वर बातें करते हैं।

यह भजन परमेश्वर की पवित्रता को बताता है। शब्द 'पवित्र' (भजनसंहिता 99:3) परमेश्वर और मनुष्य के बीच की दूरी को बताता है। परमेश्वर ना केवल शक्तिशाली और पवित्र हैं; वह न्यायी भी हैं: 'वह न्याय से प्रेम करते हैं' (व.4)। उचित उत्तर है 'उनके पदासन पर आराधना करना' (व.5)।

किसी तरह से, परमेश्वर और हमारे बीच में खाली स्थान भर दिया गया है। अब हम जानते हैं कि यह यीशु और जो उन्होंने हमारे लिए क्रूस और पुनरुत्थान, और पवित्र आत्मा को ऊँडेलने के द्वारा। यह भजन सामर्थ, पवित्रता और न्याय के इस परमेश्वर के साथ घनिष्ठता की बाट जोहते हैं, जो मसीह के द्वारा संभव बनाया गया है।

परमेश्वर ने 'उनसे बातें की' (व.7)। उन्होंने मूसा और हारुन और शमुएल से बातें की (व.6)। उन्होंने लोगों से बातें की। वह हमसे बातें करते हैं। 'उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उन्होंने दिया' (व.6, एम.एस.जी)।

ना केवल वह न्याय के एक परमेश्वर हैं, वह दया और क्षमा के एक परमेश्वर हैं – एक 'क्षमा करने वाले परमेश्वर' (व.8)। वह 'हमारे परमेश्वर' हैं (वव.8-9)। उनका ऐश्वर्य घटता नहीं, लेकिन अंतिम शब्द अब घनिष्ठता दिया गया है।

प्रार्थना

परमेश्वर, यह अद्भुत है कि आप सर्व-शक्तिमान, पवित्र और न्यायी हैं, फिर भी आप मुझे अपने साथ एक घनिष्ठ, व्यक्तिगत संबंध में बुलाते हैं। आपका धन्यवाद कि आप मेरे परमेश्वर हैं।
नए करार

1 कुरिन्थियों 12:1-26

पवित्र आत्मा के वरदान

12हे भाईयों, अब मैं नहीं चाहता कि तुम आत्मा के वरदानों के विषय में अनजान रहो। 2 तुम जानते हो कि जब तुम विधर्मी थे तब तुम्हें गूँगी जड़ मूर्तियों की ओर जैसे भटकाया जाता था, तुम वैसे ही भटकते थे। 3 सो मैं तुम्हें बताता हूँ कि परमेश्वर के आत्मा की ओर से बोलने वाला कोई भी यह नहीं कहता, “यीशु को शाप लगे” और पवित्र आत्मा के द्वारा कहने वाले को छोड़ कर न कोई यह कह सकता है, “यीशु प्रभु है।”

4 हर एक को आत्मा के अलग-अलग वरदान मिले हैं। किन्तु उन्हें देने वाली आत्मा तो एक ही है। 5 सेवाएँ अनेक प्रकार की निश्चित की गयी हैं किन्तु हम सब जिसकी सेवा करते हैं, वह प्रभु तो एक ही है। 6 काम-काज तो बहुत से बताये गये हैं किन्तु सभी के बीच सब कर्मों को करने वाला वह परमेश्वर तो एक ही है।

7 हर किसी में आत्मा किसी न किसी रूप में प्रकट होता है जो हर एक की भलाई के लिये होता है। 8 किसी को आत्मा के द्वारा परमेश्वर के ज्ञान से युक्त होकर बोलने की योग्यता दी गयी है तो किसी को उसी आत्मा द्वारा दिव्य ज्ञान के प्रवचन की योग्यता। 9 और किसी को उसी आत्मा द्वारा विश्वास का वरदान दिया गया है तो किसी को चंगा करने की क्षमताएँ उसी आत्मा के द्वारा दी गयी हैं। 10 और किसी अन्य व्यक्ति को आश्चर्यपूर्ण शक्तियाँ दी गयी हैं तो किसी दूसरे को परमेश्वर की और से बोलने का सामर्थ्य दिया गया है। और किसी को मिली है भली बुरी आत्माओं के अंतर को पहचानने की शक्ति। किसी को अलग-अलग भाषाएँ बोलने की शक्ति प्राप्त हुई है, तो किसी को भाषाओं की व्याख्या करके उनका अर्थ निकालने की शक्ति। 11 किन्तु यह वही एक आत्मा है जो जिस-जिस को जैसा-जैसा ठीक समझता है, देते हुए, इन सब बातों को पूरा करता है।

मसीह की देह

12 जैसे हममें से हर एक का शरीर तो एक है, पर उसमें अंग अनेक हैं। और यद्यपि अंगों के अनेक रहते हुए भी उनसे देह एक ही बनती है, वैसे ही मसीह है। 13 क्योंकि चाहे हम यहूदी रहे हों, चाहे ग़ैर यहूदी, सेवक रहे हों या स्वतन्त्र। एक ही देह के विभिन्न अंग बन जाने के लिए हम सब को एक ही आत्मा द्वारा बपतिस्मा दिया गया और प्यास बुझाने को हम सब को एक ही आत्मा प्रदान की गयी।

14 अब देखो, मानव शरीर किसी एक अंग से ही तो बना नहीं होता, बल्कि उसमें बहुत से अंग होते हैं। 15 यदि पैर कहे, “क्योंकि मैं हाथ नहीं हूँ, इसलिए मेरा शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं” तो इसीलिए क्या वह शरीर का अंग नहीं रहेगा। 16 इसी प्रकार यदि कान कहे, “क्योंकि मैं आँख नहीं हूँ, इसलिए मैं शरीर का नहीं हूँ” तो क्या इसी कारण से वह शरीर का नहीं रहेगा। 17 यदि एक आँख ही सारा शरीर होता तो सुना कहाँ से जाता? यदि कान ही सारा शरीर होता तो सूँघा कहाँ से जाता? 18 किन्तु वास्तव में परमेश्वर ने जैसा ठीक समझा, हर अंग को शरीर में वैसा ही स्थान दिया। 19 सो यदि शरीर के सारे अंग एक से हो जाते तो शरीर ही कहाँ होता। 20 किन्तु स्थिति यह है कि अंग तो अनेक होते हैं किन्तु शरीर एक ही रहता है।

21 आँख हाथ से यह नहीं कह सकती, “मुझे तेरी आवश्यकता नहीं।” या ऐसे ही सिर, पैरों से नहीं कह सकता, “मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं।” 22 इसके बिल्कुल विपरीत शरीर के जिन अंगो को हम दुर्बल समझते हैं, वे बहुत आवश्यक होते हैं। 23 और शरीर के जिन अंगो को हम कम आदरणीय समझते हैं, उनका हम अधिक ध्यान रखते हैं। और हमारे गुप्त अंग और अधिक शालीनता पा लेते हैं। 24 जबकि हमारे प्रदर्शनीय अंगों को इस प्रकार के उपचार की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु परमेश्वर ने हमारे शरीर की रचना इस ढंग से की है जिससे उन अंगों को जो कम सुन्दर हैं और अधिक आदर प्राप्त हो। 25 ताकि देह में कहीं कोई फूट न पड़े बल्कि देह के अंग परस्पर एक दूसरे का समान रूप से ध्यान रखें। 26 यदि शरीर का कोई एक अंग दुख पाता है तो उसके साथ शरीर के और सभी अंग दुखी होते हैं। यदि किसी एक अंग का मान बढ़ता है तो सभी अंग हिस्सा बाटते हैं।

समीक्षा

एक दूसरे के साथ घनिष्ठता

हमारे समाज में बहुत ज्यादा अकेलापन है। विशेष रूप से, आज बहुत से जवान लोगों के पास अपना दर्द बाँटने के लिए कोई स्थान नहीं है। वे शराब, ड्रग्स, व्यभिचार या किसी दूसरी चीजों में चले जाते हैं, अपने दर्द से निपटने की कोशिश करते हुए। बड़े भी अक्सर अकेले और एकांत हो जाते हैं।

आप अकेले रहने के लिए नहीं बनाए गए थे। परमेश्वर ने आपको एक समुदाय के लिए बनाया है –एक समुदाय जो मानवीय शरीर के विभिन्न अंगो की तरह बहुत नजदीक और एक दूसरे पर निर्भर है। पौलुस चर्च की वंशावली को, मसीह की देह के समान बताते हैं। पवित्र आत्मा ने चर्च के हर सदस्य को विभिन्न उपहार दिए हैं (वव.1-11)।

'देह एक है' लेकिन यह 'बहुत से भागों से बना है' (व.12)। विभिन्न समाज, देश और सामाजिक स्तर से लोग चर्च में आते हैं - यहूदी या यूनानी, दास या स्वतंत्र' (व.13ब)। इस बात के बावजूद कि हम कहाँ से आए हैं, ' क्योंकि हम सब ने एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया' (व.13, एम.एस.जी)।

अब हम एक दूसरे के हैं। हमारा संबंध उतना ही घनिष्ठ है जैसा कि शरीर के विभिन्न अंग। हम पूरी तरह से एक दूसरे पर निर्भर हैं (वव.12-13)।

जितने हम अलग हैं, उतना ही हमें एक दूसरे की आवश्यकता है। आँख को हाथ की जरुरत है जितना कि इसे दूसरे आँख की जरुरत है (वव.16-17)। भिन्नता महत्वपूर्ण है (व.17ब)। यह ना केवल स्थानीय चर्च के लिए लेकिन ग्लोबल चर्च के लिए भी सच है। हमें मसीह की देह के विभिन्न भागों को देखकर यह नहीं कहना चाहिए, 'वे अलग हैं, अवश्य ही उनके साथ कुछ परेशानी है।' इसके बजाय, हमें कहना चाहिए, 'वे अलग हैं, हमें सच में उनकी आवश्यकता है।'

यह लेबल को निकालने का समय है – अपने आपको या दूसरों का वर्णन एक प्रकार के मसीह के रूप में करना। 'अपना परिचय देने के लिए जिन पुराने लेबल का हम इस्तेमाल करते थे...वह अब उपयोगी नहीं हैं। हमें कुछ बड़े और व्यापक की आवश्यकता है' (व.13, एम.एस.जी)।

परमेश्वर ने शरीर की रचना की है ताकि वहाँ पर यह नैतिक निर्भरता हो। 'मैं चाहता हूँ कि आप यह भी सोचें कि कैसे यह आपके महत्व को स्वयं-महत्ता में जाने से रोकती है। क्योंकि इससे अंतर नहीं पड़ता है कि आप कितने महत्वपूर्ण हैं, यह सिर्फ इस वजह से है कि आप किसके भाग हैं' (वव.19-20, एम.एस.जी)।

विशेष रूप से हमें उन अंगो की आवश्यकता है जो 'कमजोर दिखाई देते हैं' (व.22)। हमारे आंतरिक अंग 'कमजोर दिखाई देते हैं' क्योंकि असुरक्षित हैं। यही कारण है कि उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है। किंतु, वे 'अपरिहार्य' हैं (व.22)। इसी तरह से, शरीर के जो भाग 'प्रस्तुत करने योग्य नहीं' उनके साथ 'विशेष विनम्रता' से बर्ताव किया जाना चाहिए (व.23)। कोई नहीं कहेगा कि यें भाग महत्वपूर्ण नहीं है। सच में, वे महत्वपूर्ण हैं।

क्योंकि हमें एक दूसरे की बहुत जरुरत है, इसलिए 'एक दूसरे की समान चिंता ' की जानी चाहिए (व.25)। वहाँ पर ऐसी घनिष्ठता और प्रेम होना चाहिए कि 'यदि एक भाग कष्ट उठाता है, तो हर भाग इसके साथ कष्ट उठाता है' (व.26अ)। हमें ऐसे समुदाय की आवश्यकता है जहाँ पर लोग अपना दर्द बाँट सकें। यह ऐसा एक स्थान भी है जहाँ पर लोग अपना आनंद बाँट सकते हैं:'यदि एक भाग का सम्मान होता है, हर भाग इसके साथ आनंद मनाता है' (व.26ब)। जैसा कि सेंट अगस्टाईन् ने कहा, 'द्वेष को हटा दो और जो मेरे पास है वह तुम्हारा भी है। और यदि मैं द्वेष को निकाल दूं तो जो कुछ तुम्हारा है वह मेरा है!'

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हमारे भाईयों और बहनों के प्रति ऐसी एकता, प्रेम और घनिष्ठता को दिखाये जो मसीह को विश्व के लिए सुंदर बनाती है।
जूना करार

श्रेष्ठगीत 1:1-4:16

1सुलैमान का श्रेष्ठगीत।

प्रेमिका का अपने प्रेमी के प्रति

2 तू मुझ को अपने मुख के चुम्बनों से ढक ले।
 क्योंकि तेरा प्रेम दाखमधु से भी उत्तम है।
3 तेरा नाम मूल्यवान इत्र से उत्तम है,
 और तेरी गंध अद्भुत है।
 इसलिए कुमारियाँ तुझ से प्रेम करती हैं।
4 हे मेरे राजा तू मुझे अपने संग ले ले!
 और हम कहीं दूर भाग चलें!

 राजा मुझे अपने कमरे में ले गया।

पुरुष के प्रति यरूशलेम की स्त्रियाँ

 हम तुझ में आनन्दित और मगन रहेंगे। हम तेरी बड़ाई करते हैं।
क्योंकि तेरा प्रेम दाखमधु से उत्तम है।
 इसलिए कुमारियाँ तुझ से प्रेम करती हैं।

स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति

5 हे यरूशलेम की पुत्रियों,
 मैं काली हूँ किन्तु सुन्दर हूँ।
मैं तैमान और सलमा के तम्बूओं के जैसे काली हूँ।

6 मुझे मत घूर कि मैं कितनी साँवली हूँ।
 सूरज ने मुझे कितना काला कर दिया है।
मेरे भाई मुझ से क्रोधित थे।
 इसलिए दाख के बगीचों की रखवाली करायी।
इसलिए मैं अपना ध्यान नहीं रख सकी।

स्त्री का वचन पुरुष के प्रति

7 मैं तुझे अपनी पूरी आत्मा से प्रेम करती हूँ!
 मेरे प्रिये मुझे बता; तू अपनी भेड़ों को कहाँ चराता है?
दोपहर में उन्हें कहाँ बिठाया करता है?
 मुझे ऐसी एक लड़की के पास नहीं होना
जो घूंघट काढ़ती है,
 जब वह तेरे मित्रों की भेड़ों के पास होती है!

पुरुष का वचन स्त्री के प्रति

8 तू निश्चय ही जानती है कि स्त्रियों में तू ही सुन्दर है!
 जा, पीछे पीछे चली जा, जहाँ भेड़ें
और बकरी के बच्चे जाते है।
 निज गड़रियों के तम्बूओं के पास चरा।

9 मेरी प्रिये, मेरे लिए तू उस घोड़ी से भी बहुत अधिक उत्तेजक है
 जो उन घोड़ों के बीच फ़िरौन के रथ को खींचा करते हैं।
10 वे घोड़े मुख के किनारे से
 गर्दन तक सुन्दर सुसज्जित हैं।
तेरे लिये हम ने सोने के आभूषण बनाए हैं।
 जिनमें चाँदी के दाने लगें हैं।
11 तेरे सुन्दर कपोल कितने अलंकृत हैं।
 तेरी सुन्दर गर्दन मनकों से सजी हैं।

स्त्री का वचन

12 मेरे इत्र की सुगन्ध,
 गद्दी पर बैठे राजा तक फैलती है।
13 मेरा प्रियतम रस गन्ध के कुप्पे सा है।
 वह मेरे वक्षों के बीच सारी राद सोयेगा।
14 मेरा प्रिय मेरे लिये मेंहदी के फूलों के गुच्छों जैसा है
 जो एनगदी के अंगूर के बगीचे में फलता है।

पुरुष का वचन

15 मेरी प्रिये, तुम रमणीय हो!
 ओह, तुम कितनी सुन्दर हो!
तेरी आँखे कपोतों की सी सुन्दर हैं।

स्त्री का वचन

16 हे मेरे प्रियतम, तू कितना सुन्दर है!
 हाँ, तू मनमोहक है!
हमारी सेज कितनी रमणीय है!
17 कड़ियाँ जो हमारे घर को थामें हुए हैं वह देवदारु की हैं।
 कड़ियाँ जो हमारी छत को थामी हुई है, सनोवर की लकड़ी की है।

2मैं शारोन के केसर के पाटल सी हूँ।
 मैं घाटियों की कुमुदिनी हूँ।

पुरुष का वचन

2 हे मेरी प्रिये, अन्य युवतियों के बीच
 तुम वैसी ही हो मानों काँटों के बीच कुमुदिनी हो!

स्त्री का वचन

3 मेरे प्रिय, अन्य युवकों के बीच
 तुम ऐसे लगते हो जैसे जंगल के पेड़ों में कोई सेब का पेड़!

स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति

 मुझे अपने प्रियतम की छाया में बैठना अच्छा लगता है;
उसका फल मुझे खाने में अति मीठा लगता है।
4 मेरा प्रिय मुझको मधुशाला में ले आया;
 मेरा प्रेम उसका संकल्प था।
5 मैं प्रेम की रोगी हूँ
 अत: मुनक्का मुझे खिलाओ और सेबों से मुझे ताजा करो।
6 मेरे सिर के नीचे प्रियतम का बाँया हाथ है,
 और उसका दाँया हाथ मेरा आलिंगन करता है।

7 यरूशलेम की कुमारियों, कुंरगों और जंगली हिरणियों को साक्षी मान कर मुझ को वचन दो,
 प्रेम को मत जगाओ,
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।

स्त्री ने फिर कहा

8 मैं अपने प्रियतम की आवाज़ सुनती हूँ।
 यह पहाड़ों से उछलती हुई
और पहाड़ियों से कूदती हुई आती है।
9 मेरा प्रियतम सुन्दर कुरंग
 अथवा हरिण जैसा है।
देखो वह हमारी दीवार के उस पार खड़ा है,
 वह झंझरी से देखते हुए
खिड़कियों को ताक रहा है।
10 मेरा प्रियतम बोला और उसने मुझसे कहा,
 “उठो, मेरी प्रिये, हे मेरी सुन्दरी,
आओ कहीं दूर चलें!
11 देखो, शीत ऋतु बीत गई है,
वर्षा समाप्त हो गई और चली गई है।
12 धरती पर फूल खिलें हुए हैं।
चिड़ियों के गाने का समय आ गया है!
धरती पर कपोत की ध्वनि गुंजित है।
13 अंजीर के पेड़ों पर अंजीर पकने लगे हैं।
अंगूर की बेलें फूल रही हैं, और उनकी भीनी गन्ध फैल रही है।
मेरे प्रिय उठ, हे मेरे सुन्दर,
आओ कहीं दूर चलें!”
14 हे मेरे कपोत,
जो ऊँचे चट्टानों के गुफाओं में
और पहाड़ों में छिपे हो,
मुझे अपना मुख दिखा, मुझे अपनी ध्वनि सुना
क्योंकि तेरी ध्वनि मधुर
और तेरा मुख सुन्दर है!

स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति

15 जो छोटी लोमड़ियाँ दाख के बगीचों को बिगाड़ती हैं,
हमारे लिये उनको पकड़ो!
हमारे अंगूर के बगीचे अब फूल रहे हैं।

16 मेरा प्रिय मेरा है
और मैं उसकी हूँ!
मेरा प्रिय अपनी भेड़ बकरियों को कुमुदिनियों के बीच चराता है,
17 जब तक दिन नहीं ढलता है
और छाया लम्बी नहीं हो जाती है।
लौट आ, मेरे प्रिय,
कुरंग सा बन अथवा हरिण सा बेतेर के पहाड़ों पर!

स्त्री का वचन

3हर रात अपनी सेज पर
मैं अपने मन में उसे ढूँढती हूँ।
जो पुरुष मेरा प्रिय है, मैंने उसे ढूँढा है,
किन्तु मैंने उसे नहीं पाया!
2 अब मैं उठूँगी!
मैं नगर के चारों गलियों,
बाज़ारों में जाऊँगी।
मैं उसे ढूढूँगी जिसको मैं प्रेम करती हूँ।

मैंने वह पुरुष ढूँढा
पर वह मुझे नहीं मिला!
3 मुझे नगर के पहरेदार मिले।
मैंने उनसे पूछा, “क्या तूने उस पुरुष को देखा जिसे मैं प्यार करती हूँ?”

4 पहरेदारों से मैं अभी थोड़ी ही दूर गई
कि मुझको मेरा प्रियतम मिल गया!
मैंने उसे पकड़ लिया और तब तक जाने नहीं दिया
जब तक मैं उसे अपनी माता के घर में न ले आई
अर्थात् उस स्त्री के कक्ष में जिसने मुझे गर्भ में धरा था।

स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति

5 यरूशलेम की कुमारियों, कुरंगों
और जंगली हिरणियों को साक्षी मान कर मुझको वचन दो,
प्रेम को मत जगाओ,
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।

वह और उसकी दुल्हिन

6 यह कुमारी कौन है
जो मरुभूमि से लोगों की इस बड़ी भीड़ के साथ आ रही है?
धूल उनके पीछे से यूँ उठ रही है मानों
कोई धुएँ का बादल हो।
जो धूआँ जलते हुए गन्ध रस, धूप और अन्य गंध मसाले से निकल रही हो।

7 सुलैमान की पालकी को देखो!
उसकी यात्रा की पालकी को साठ सैनिक घेरे हुए हैं।
इस्राएल के शक्तिशाली सैनिक!
8 वे सभी सैनिक तलवारों से सुसज्जित हैं
जो युद्ध में निपुण हैं; हर व्यक्ति की बगल में तलवार लटकती है,
जो रात के भयानक खतरों के लिये तत्पर हैं!

9 राजा सुलैमान ने यात्रा हेतु अपने लिये एक पालकी बनवाई है,
जिसे लबानोन की लकड़ी से बनाया गया है।
10 उसने यात्रा की पालकी के बल्लों को चाँदी से बनाया
और उसकी टेक सोने से बनायी गई।
पालकी की गद्दी को उसने बैंगनी वस्त्र से ढँका
और यह यरूशलेम की पुत्रियों के द्वारा प्रेम से बुना गया था।

11 सिय्योन के पुत्रियों, बाहर आ कर
राजा सुलैमान को उसके मुकुट के साथ देखो
जो उसको उसकी माता ने
उस दिन पहनाया था जब वह ब्याहा गया था,
उस दिन वह बहुत प्रसन्न था!

पुरुष का वचन स्त्री के प्रति

4मेरी प्रिये, तुम अति सुन्दर हो!
तुम सुन्दर हो!
घूँघट की ओट में
तेरी आँखें कपोत की आँखों जैसी सरल हैं।
तेरे केश लम्बे और लहराते हुए हैं
जैसे बकरी के बच्चे गिलाद के पहाड़ के ऊपर से नाचते उतरते हों।
2 तेरे दाँत उन भेड़ों जैसे सफेद हैं
जो अभी अभी नहाकर के निकली हों।
वे सभी जुड़वा बच्चों को जन्म दिया करती हैं,
और उनके बच्चे नहीं मरे हैं।
3 तेरा अधर लाल रेशम के धागे सा है।
तेरा मुख सुन्दर हैं।
अनार के दो फाँको की जैसी
तेरे घूंघट के नीचे तेरी कनपटियाँ हैं।
4 तेरी गर्दन लम्बी और पतली है
जो खास सजावट के लिये
दाऊद की मीनार जैसी की गई।
उसकी दीवारों पर हज़ारों छोटी छोटी ढाल लटकती हैं।
हर एक ढाल किसी वीर योद्धा की है।
5 तेरे दो स्तन
जुड़वा बाल मृग जैसे हैं,
जैसे जुड़वा कुरंग कुमुदों के बीच चरता हो।
6 मैं गंधरस के पहाड़ पर जाऊँगा
और उस पहाड़ी पर जो लोबान की है
जब दिन अपनी अन्तिम साँस लेता है और उसकी छाया बहुत लम्बी हो कर छिप जाती है।
7 मेरी प्रिये, तू पूरी की पूरी सुन्दर हो।
तुझ पर कहीं कोई धब्बा नहीं है!
8 ओ मेरी दुल्हिन, लबानोन से आ, मेरे साथ आजा।
लबानोन से मेरे साथ आजा,
अमाना की चोटी से,
शनीर की ऊँचाई से,
सिंह की गुफाओं से
और चीतों के पहाड़ों से आ!
9 हे मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन,
तुम मुझे उत्तेजित करती हो।
आँखों की चितवन मात्र से
और अपने कंठहार के बस एक ही रत्न से
तुमने मेरा मन मोह लिया है।
10 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तेरा प्रेम कितना सुन्दर है!
तेरा प्रेम दाखमधु से अधिक उत्तम है;
तेरी इत्र की सुगन्ध
किसी भी सुगन्ध से उत्तम है!
11 मेरी दुल्हिन, तेरे अधरों से मधु टपकता है।
तेरी वाणी में शहद और दूध की खुशबू है।
तेरे वस्त्रों की गंध इत्र जैसी मोहक है।
12 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तुम ऐसी हो
जैसे किसी उपवन पर ताला लगा हो।
तुम ऐसी हो
जैसे कोई रोका हुआ सोता हो या बन्द किया झरना हो।
13 तेरे अंग उस उपवन जैसे हैं
जो अनार और मोहक फलों से भरा हो,
जिसमें मेंहदी
और जटामासी के फूल भरे हों;

14 जिसमें जटामासी का, केसर, अगर और दालचीनी का इत्र भरा हो।

जिसमें देवदार के गंधरस
और अगर व उत्तम सुगन्धित द्रव्य साथ में भरे हों।
15 तू उपवन का सोता है
जिसका स्वच्छ जल
नीचे लबानोन की पहाड़ी से बहता है।

स्त्री का वचन

16 जागो, हे उत्तर की हवा!
आ, तू दक्षिण पवन!
मेरे उपवन पर बह।
जिससे इस की मीठी, गन्ध चारों ओर फैल जाये।
मेरा प्रिय मेरे उपवन में प्रवेश करे
और वह इसका मधुर फल खाये।

समीक्षा

3. विवाह में घनिष्ठता

इस पुस्तक को बहुत से विभिन्न स्तरों से पढ़ा जा सकता है। यह आनंद, नैतिकता, सुंदरता और सामर्थ, वेदना और मानवीय यौन-संबंध एवम प्रेम के आनंद का वर्णन करता है। यह विवाह के विषय में बताता है – पुरुष और महिला के बीच में वैवाहिक प्रेम की सुंदर घनिष्ठता।

फिर भी विवाह एक अलंकार है, कुछ और ज्यादा सुंदरता का वर्णन करने के लिए –परमेश्वर का उनके लोगों के साथ संबंध। मुख्य रूप से, इसका इस्तेमाल मसीह और उनके चर्च के बीच में संबंध का वर्णन करने के लिए किया गया है (इफीसियो 5:21-33)। यह आपके लिए परमेश्वर के गहरे और जुनूनी प्रेम और यीशु के साथ आपके घनिष्ठ संबंध का चित्र है। इस वजह से, पूरे चर्च इतिहास में, लोगों ने इस पुस्तक का इस्तेमाल एक अलंकार के रूप में किया है, परमेश्वर और चर्च के बीच में घनिष्ठता को व्यक्त करने के लिए।

फिर भी, यह दिलचस्प बात है कि बाईबल में एक पूरी किताब विवाह में काम –वासना प्रेम का उत्सव मनाती है। यह दिखाती है कि विवाह में यौन-संबंध घनिष्ठता के प्रति बाईबल का क्या उच्च दृष्टिकोण है। यह आनंद और संतुष्टि को बताता है – एक प्रेम जो पूरे दिल से जूनूनी है – वह कुछ भी रख नहीं छोड़ता।

यह स्पष्ट है कि इस प्रकार की यौन-संबंधी घनिष्ठता केवल विवाह के लिए है। यह एक दुल्हन और दूल्हे के बीच में प्रेम है। प्रेमी अपने प्रेम को 'मेरी दुल्हन' कहते हैं (श्रेष्ठगीत 4:8-12फ)। प्रेम ही यौन-संबंध के विश्व में, यह बताता है कि यौन-संबंध को कभी भी प्रेम और जीवनभर की कटिबद्धता से अलग नहीं होना चाहिए।

विवाह से पहले इस उपहार को खोलने के विरूद्ध एक चेतावनी हैः ' जब तक प्रेम आप से न उठे, तब तक उसको न उसकाओ न जगाओ ' (2:7; 3:5)। या जैसा कि मैसेज अनुवाद इसे कहता है, 'प्रेम को उत्साहित मत करो, इसे उत्तेजित मत करो, जब तक समय न आए – और आप तैयार हो' (2:7, एम.एस,जी.)। यदि आप इसे जल्दी खोल देते हैं तो आप इस सुंदर उपहार को खराब कर देने का जोखिम उठाते हैं।

'छोटी लोमड़ियों' के विषय में भी चेतावनी दी गई है जो दाख की बारी बिगाड़ती है (व.15)। हमारे संबंध भी अक्सर नष्ट हो जाते हैं, अधिकतर बड़े मामलों के कारण नहीं बल्कि छोटे मामलों के कारण –महत्वहीन चुनाव और समझौते के कारण।

जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं, अपने जीवन में 'छोटी लोमड़ियों' से बचिये; छोटी सी गलती को भी क्षमा कर दीजिए ताकि आपका हृदय शुद्ध बना रहे, अपने धन में या नौकरी में धोखा मत कीजिए जब आप सोचते हैं कि कोई नहीं देखेगा, अपने आपको अभक्तिमय प्रभावों के लिये मत खोलिये, यह सोचते हुए कि, इससे मुझे नुकसान नहीं होगा यदि मैं केवल इसे एक बार करुँ। छोटी चीजे बढ़कर बडी बन जाती हैं, और आपके जानने से पहले, छोटी लोमड़ियाँ एक मजबूत, स्वस्थ बारी को बरबाद कर सकती हैं।'

वर्णन किया गया है यह घनिष्ठ प्रेम संबंध मिलनसार और गैरमिलनसार है। वे केवल एक दूसरे को देखते हैं:'मेरा प्रेमी मेरा है और मैं उसकी हूँ' (व.16)। फिर भी यह संबंध दूसरों के लिए एक आशीष है, जैसा कि सभी सर्वश्रेष्ठ विवाहों में होता है। मित्र कहते हैं, ' हम तुझ में मगन और आनन्दित होंगे; हम दाखमधु से अधिक तेरे प्रेम की चर्चा करेंगे ' (1:4)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि विवाह में आप हमें घनिष्ठता का सुंदर उपहार देते हैं। आपका धन्यवाद क्योंकि विवाह का उपहार आखिरकार मसीह और चर्च के बीच में घनिष्ठ प्रेम का एक चित्र है। हमारी सहायता कीजिए कि इस घनिष्ठता और आपके साथ और एक दूसरे के साथ प्रेम में बढ़ें।

पिप्पा भी कहते है

1कुरिंथियो 12:26

'यदि एक अंग कष्ट उठाता है, तो सभी अंग इसके साथ कष्ट उठाते हैं...'

जब मेरी एक हड्डी टूट गई (मेरे दाहिने पैर की एक छोटी हड्डी), इसने निश्चत ही मेरे पूरे शरीर को प्रभावित किया। छ सप्ताह तक मैं मुश्किल से ही चल पायी। मैं अब समझ सकती हूँ कि कैसे कोई छोटी सी चीज पूरे शरीर को प्रभावित कर सकती है। और इसी तरह से यदि चर्च में कोई कष्ट उठा रहा है तो हम सभी उनके साथ कष्ट उठाते हैं।

दिन का वचन

भजन संहिता 99:6

“उसके याजकों में मूसा और हारून, और उसके प्रार्थना करने वालों में से शमूएल यहोवा को पुकारते थे, और वह उनकी सुन लेता था।”

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संदर्भ

जॉयस मेयर, द एव्रीडे लाईफ बाईबल (फेथवर्डस, 2013) पी.1036

सॅन्डी मिलर, ऑल आय वान्ट इज यु (अल्फा इंटरनैशनल, 2005)

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

2016

डेरेक किडनर, भजनसंहिता 73-150, (आय.वी.पी,2009) पी.355

सेंट अगस्टाईन, सीटेड इन कॅन्टालमेसा फोर्थ लेंटेन होमिली, 2015 – निकी हॅस नाउ पॅराफ्रेस्ड द कोट

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