दिन 192

आपके वचन शक्तिशाली हैं

बुद्धि नीतिवचन 16:28-17:4
नए करार प्रेरितों के काम 28:17-31
जूना करार 2 राजा 21:1-22:20

परिचय

'ब्रिटेन की लड़ाई शुरु होने वाली है। इस लड़ाई पर मसीह नागरिकों का जीवित रहना निर्भर है।' 1940 में हाउस ऑफ कॉमन्स में सर विन्स्टन चर्चिल के द्वारा एक भाषण में ये वचन दिए गए। हार का सामना करते हुए, उन्होंने देश को उत्साहित किया कि कोनों से लड़ो, उन्हें चिताते हुए कि अपने कर्तव्यों को करने के लिए अपने आपको मजबूत करो और अपने आपको इस तरह से लेकर जाओ कि हजारों सालो के बाद भी लोग कहें, 'यह उनका सबसे उत्तम समय था।' यह भाषण शक्तिशाली था, देश ने उत्तर दिया और आखिरकार एक अनंत शांति प्राप्त हुई।

यह एक भाषण है जिसने आधुनिक विश्व को आकार दिया है, शब्दों की सामर्थ को दर्शाते हुए। भाषण ने युद्ध, राजनीतिक चुनाव में महिलाओं के मतदान के अधिकार, मानवीय अधिकार और बहुत से दूसरें मामलों के परिणाम को प्रभावित किया है।

प्रेरित याकूब लिखते हैं कि यद्यपि, 'जीभ शरीर का एक छोटा सा भाग है...यह बड़ी डींगे मारती है' (याकूब 3:5)। इस छोटे उपकरण में अनगिनत सामर्थ है। यह बहुत नुकसान कर सकती है लेकिन यह असाधारण आशीषों को भी ला सकती है।

बुद्धि

नीतिवचन 16:28-17:4

28 उत्पाती मनुष्य मतभेद भड़काता है,
 और बेपैर बातें निकट मित्रों को फोड़ देती है।

29 अपने पड़ोसी को वह हिंसक फँसा लेता है
 और कुमार्ग पर उसे खींच ले जाता है।

30 जब भी मनुष्य आँखों से इशारा करके मुस्कुराता है,
 वह गलत और बुरी योजनाऐं रचता रहता है।

31 श्वेत केश महिमा मुकुट होते हैं
 जो धर्मी जीवन से प्राप्त होते हैं।

32 धीर जन किसी योद्धा से भी उत्तम हैं,
 और जो क्रोध पर नियंत्रण रखता है,
 वह ऐसे मनुष्य से उत्तम होता है जो पूरे नगर को जीत लेता है।

33 पासा तो झोली में फेंक दिया जाता है,
 किन्तु उसका हर निर्णय यहोवा ही करता है।

17झंझट झमेलों भरे घर की दावत से चैन
 और शान्ति का सूखा रोटी का टुकड़ा उत्तम है।

2 बुद्धिमान दास एक ऐसे पुत्र पर शासन करेगा जो घर के लिए लज्जाजनक होता है।
 बुद्धिमान दास वह पुत्र के जैसा ही उत्तराधिकार पानें में सहभागी होगा।

3 जैसे चाँदी और सोने को परखने शोधने कुठाली और
 आग की भट्टी होती है वैसे ही यहोवा हृदय को परखता शोधता है।

4 दुष्ट जन, दुष्ट की वाणी को सुनता है,
 मिथ्यावादी बैर भरी वाणी पर ध्यान देता।

समीक्षा

शांति लाने की सामर्थ

जो वचन आप बोलते हैं, वह या तो जीवन दे सकता है या विनाश कर सकता है।

वचन बहुत बड़ी परेशानी पैदा कर सकते हैं। 'टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े कराता है, और कानाफूसी करने वाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है' (16:28)। कानाफूसी में दोस्ती तोड़ देने की सामर्थ है।

यह महत्वपूर्ण है कि अपनी जीभ का नियंत्रण लिया जाएः'विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर को जीत लेने से उत्तम है' (व.32)।

आप ना केवल उन वचनों के लिए उत्तरदायी हैं जो आप बोलते हैं, लेकिन उन वचनों और उन प्रकार के वचनों के लिए भी जो आप सुनते हैं। 'कुकर्मी अनर्थ बात को ध्यान देकर सुनता है,और झूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है' (17:4, एम.एस.जी)। याद रखें कि जो कोई आपके साथ कानाफूसी करता है, वह शायद से आपके विषय में कानाफूसी करेगा। ठीक जैसे कि चुराये हुए सामान को लेना कानून की नजर में चोरी जैसा ही गंभीर अपराध है; वैसे ही कानाफूसी को सुनना, कानाफूसी करने जितना ही हानिकारक है।

आप कैसे बोलते हैं और आप कैसे सुनते हैं, यह आपके घर में संपूर्ण वातावरण को प्रभावित करेगाः'चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है, जो मेलबलि- पशुओं से भरा हो, परंतु उसमें झगड़े-रगड़े हो' (व.1)।

आपके वचन शक्तिशाली हैं। आज निर्धारित कीजिए कि जहाँ कही आप जाते हैं, वहाँ पर सकारात्मक, जीवन के उत्साहित करने वाले वचन और आशीष को बोलेंगे।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता करिए कि कानाफूसी और द्वेषपूर्ण बातों को नहीं करुँ। 'हर उस व्यक्ति के दिल में रहिये जिनसे मैं बात करता हूँ; हर उसके मुंह में जो मुझसे बात करता है।' (नॉर्थुम्ब्रीया समुदाय की सुबह की प्रार्थना)
नए करार

प्रेरितों के काम 28:17-31

17 तीन दिन बाद पौलुस ने यहूदी नेताओं को बुलाया और उनके एकत्र हो जाने पर वह उनसे बोला, “हे भाईयों, चाहे मैंने अपनी जाति या अपने पूर्वजों के विधि-विधानके प्रतिकूल कुछ भी नहीं किया है, तो भी यरूशलेम में मुझे बंदी के रूप में रोमियों को सौंप दिया गया था। 18 उन्होंने मेरी जाँच पड़ताल की और मुझे छोड़ना चाहा क्योंकि ऐसाकुछ मैंने किया ही नहीं था जो मृत्युदण्ड के लायक होता 19 किन्तु जब यहूदियों नेआपत्ति की तो मैं कैसर से पुनर्विचार की प्रार्थना करने को विवश हो गया। इसलिये नहींकि मैं अपने ही लोगों पर कोई आरोप लगाना चाहता था। 20 यही कारण है जिससे मैं तुमसे मिलना और बातचीत करना चाहता था क्योंकि यह इस्राएल का वह भरोसा ही है जिसके कारण मैं ज़ंजीर में बँधा हूँ।”

21 यहूदी नेताओं ने पौलुस से कहा, “तुम्हारे बारे में यहूदिया से न तो कोई पत्र ही मिला है, और न ही वहाँ सेआने वाले किसी भी भाई ने तेरा कोई समाचार दिया और न तेरे बारे में कोई बुरी बात कही। 22 किन्तु तेरे विचार क्या हैं, यह हम तुझसे सुनना चाहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि लोग सब कहीं इस पंथ के विरोध में बोलते हैं।”

23 सो उन्होंने उसके साथ एक दिन निश्चित किया। और फिर जहाँ वह ठहरा था, बड़ी संख्या में आकार वे लोग एकत्र हो गये। मूसा की व्यवस्था और नबियों के ग्रंथों से यीशु के विषय में उन्हें समझाने का जतन करते हुए उसने परमेश्वर के राज्य के बारे में अपनी साक्षी दी और समझाया। वह सुबह से शाम तक इसी में लगा रहा। 24 उसने जो कुछ कहा था, उससे कुछ तो सहमत होगये किन्तु कुछ ने विश्वास नहीं किया। 25 फिर आपस में एक दूसरे से असहमत होते हुए वे वहाँ से जाने लगे। तब पौलुस ने एक यह बात और कही, “यशायाह भविष्यवक्ता के द्वारा पवित्र आत्मा ने तुम्हारे पूर्वजों से कितना ठीक कहा था,

26 ‘जाकर इन लोगों से कह दे:
 तुम सुनोगे,
 पर न समझोगे कदाचित्!
 तुम बस देखते ही देखते रहोगे
 पर न बूझोगे कभी भी!
27 क्योंकि इनका ह्रदय जड़ता से भर गया
 कान इनके कठिनता से श्रवण करते
 और इन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली
 क्योंकि कभी ऐसा न हो जाए कि
 ये अपनी आँख से देखें,
 और कान से सुनें
 और ह्रदय से समझे,
 और कदाचित् लौटें मुझको स्वस्थ करना पड़े उनको।’

28 “इसलिये तुम्हें जान लेना चाहिये कि परमेश्वर का यह उद्धार विधर्मियों के पास भेज दिया गया है। वे इसे सुनेंगे।” 29

30 वहाँ किराये के अपने मकान में पौलुस पूरे दो साल तक ठहरा। जो कोई भी उससे मिलने आता, वह उसका स्वागत करता। 31 वह परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह के विषय में उपदेश देता। वह इस कार्य को पूरी निर्भयता और बिना कोई बाधा माने किया करता था।

समीक्षा

सही करने और परिवर्तित करने की सामर्थ

सबसे बड़ी आशीष जो आप दूसरे व्यक्ति को दे सकते हैं, वह है उन्हें यीशु के बारे में बताना। परमेश्वर ने आपको सबसे शक्तिशाली वचन सौंपे हैं, जो कोई व्यक्ति बोल सकता है। यीशु के संदेश में जीवन को बदलने की सामर्थ है।

परमेश्वर के वचन को सुनने में अनगिनत सामर्थ है। पौलुस संपूर्ण पुराने नियम में अत्यधिक दोहराये गए लेखांश के बारे में बताते हैं, यशायाह 6:9-10: 'जाकर इन लोगों से कह, कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे... उनके कान भारी हो गए हैं, और उन्होंने अपनी आँखें बन्द की हैं, ऐसा न हो कि वे कभी आँखों से देखें और कानों से सुनें और मन से समझें और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूँ' (प्रेरितों के काम 28:26-27, एम.एस.जी)।

सुसमाचार का संदेश अक्सर श्रोताओं को दो भागों में विभाजित करता है। जैसा कि पौलुस ने प्रचार किया, ' तब कुछ ने उन बातों को मान लिया, और कुछ ने विश्वास न किया' (व.24, एम.एस.जी)। जैसा कि यशायाह ने भविष्यवाणी की है इन लोगों का मन मोटा और उनके कान भारी हो गए हैं, और उन्होंने अपनी आँखें बन्द की हैं, ऐसा न हो कि वे कभी आँखों से देखें और कानों से सुनें और मन से समझें और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूँ (व.27)।

पौलुस को बंदी बनाए जाने का प्रकार अब घर में बंदी बनाये जाने की तरह दिखाई देता है। यद्यपि वह जंजीरों में बँधे हैं (व.20), वह यहूदियों के लीडर को एक साथ बुलाने में सक्षम हैं (व.17) और बड़ी संख्या में लोगों को उस स्थान में इकट्ठा कर सकें जहाँ पर वह रह रहे थे (व.23)। अपने घर को खोलने के द्वारा वह एक बड़ा उदाहरण रखते हैं, ताकि बहुत से लोग सुसमाचार को सुन सकें (वव.30-31)।

आज विश्व भर में मसीहों और मसीह विश्वास के विरोध में बड़ा विरोध है। पौलुस को उनके विश्वास के कारण घर में बंदी बनाया गया था। उन्होंने कहा, 'क्योंकि हम जानते हैं कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें करते हैं।' (व.22, एम.एस.जी)।

जैसा कि आज बहुत से मसीह सामना करते हैं, पौलुस के विरूद्ध आरोप जालसाजी थी और टिक नहीं पायी, लेकिन फिर भी उन्हें एक लंबे समय तक कैद में रखा गया।

इस स्थिति के विरोध में, हम पौलुस के वचनों की असाधारण सामर्थ को देखते हैं। ' तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत से लोग उसके यहाँ इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा समझाकर भोर से साँझ तक वर्णन करता रहा' (व.23, एम.एस.जी.)। असल में, ' वह पूरे दो वर्ष तक ...जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक – टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा' (वव.30-31, एम.एस.जी)।

पौलुस के वचन शक्तिशाली थे क्योंकि वे यीशु पर केंद्रित थे। जैसे ही हम सुसमाचार को पढ़ते हैं, हम देखते हैं कि यीशु की शिक्षा का केंद्रीय विषय परमेश्वर का राज्य था। जैसे ही हम नये नियम को पढ़ते हैं, हम देखते हैं कि प्रेरितों की शिक्षा का केंद्रीय विषय था प्रभु यीशु मसीह। यीशु का प्रचार करने में वे परमेश्वर के राज्य का प्रचार कर रहे थे। दोनों लगभग समानार्थी हैं, जैसा कि हम यहाँ पर देखते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि हमारे पास विश्व का सबसे शक्तिशाली वचन है -यीशु का संदेश। हमारी सहायता करिए कि दूसरों को समझाने, बताने और मनाने के लिए सही वचनों को चुने, ताकि ' वे आँखों से देखें और कानों से सुनें और मन से समझें और फिरें, और चंगे हो जाएँ' (व.27)।
जूना करार

2 राजा 21:1-22:20

मनश्शे अपना कुशासन यहूदा पर आरम्भ करता है

21मनेश्शे जब शासन करने लगा तब वह बारह वर्ष का था। उसने पचपन वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम हेप्सीबा था।

2 मनश्शे ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा बाताया था। मनश्शे वे भयंकर काम करता था जो अन्य राष्ट्र करते थे। (और योहवा ने उन राष्ट्रों को अपना देश छोड़ने पर विवश किया था जब इस्राएली आए थे।) 3 मनश्शे ने फिर उन उच्च स्थानों को बनाया जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने नष्ट किया था। मनश्शे ने भी ठीक इस्राएल के राजा अहाब की तरह बाल की वेदी बनाई और अशेरा स्तम्भ बनाया। मनश्शे ने आकाश में तारों की सेवा और पूजा आरम्भ की। 4 मनश्शे ने यहोवा के मन्दिर में असत्य देवताओं की पूजा की वेदियाँ बनाईं। (यह वही स्थान है जिसके बारे में यहोवा बातें कर रहा था जब उसने कहा था, “मैं अपना नाम यरूशलेम में रखूँगा।”) 5 मनश्शे ने यहोवा के मन्दिर के दो आँगनों में आकाश के नक्षत्रों के लिये वेदियाँ बनाईं। 6 मनश्शे ने अपने पुत्र की बलि दी और उसे वेदी पर जलाया। मनश्शे ने भविष्य जानने के प्रयत्न में कई तरीकों का उपयोग किया। वह ओझाओं और भूत सिद्धियों से मिला।

मनश्शे अधिक से अधिक वह करता गया जिसे यहोवा ने बुरा कहा था। इसने यहोवा को क्रोधित किया। 7 मनश्शे ने अशेरा की एक खुदी हुई मूर्ति बनाई। उसने इस मूर्ति को मन्दिर में रखा। यहोवा ने दाऊद और दाऊद के पुत्र सुलैमान से इस मन्दिर के बारे में कहा थाः “मैंने यरूशलेम को पूरे इस्राएल के नगरों में से चुना है। मैं अपना नाम यरूशलेम के मन्दिर में सदैव के लिये रखूँगा। 8 मैं इस्राएल के लोगों से वह भूमि जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दी थी, छोड़ने के लिये नहीं कहूँगा। मैं लोगों को उनके देश में रहने दूँगा, यदि वे उन सब चीज़ों का पालन करेंगे जिनका आदेश मैंने दिया है और जो उपदेश मेरे सेवक मूसा ने उनको दिये हैं।” 9 किन्तु लोगों ने परमेश्वर की एक न सुनी। इस्राएलियों के आने के पहले कनान में रहने वाले सभी राष्ट्र जितना बुरा करते थे मनश्शे ने उससे भी अधिक बुरा किया और यहोवा ने उन राष्ट्रों को नष्ट कर दिया था जब इस्राएल के लोग अपनी भूमि लेने आए थे।

10 यहोवा ने अपने सेवक, नबियों का उपयोग यह कहने के लिये कियाः 11 “यहूदा के राजा मनश्शे ने इन घृणित कामों को किया है और अपने से पहले की गई एमोरियों की बुराई से भी बड़ी बुराई की है। मनश्शे ने अपने देवमूर्तियों के कारण यहूदा से भी पाप कराया है। 12 इसलिये इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘देखो! मैं यरूशलेम और यहूदा पर इतनी विपत्तियाँ ढाऊँगा कि यदि कोई व्यक्ति इनके बारे में सुनेगा तो उसका हृदय बैठ जायेगा। 13 मैं यरूशलेम तक शोमरोन की माप पंक्ति और अहाब के परिवार की साहुल को फैलाऊँगा। कोई व्यक्ति तश्तरी को पोछता है और तब वह उसे उलट कर रख देता है। मैं यरूशलेम के ऊपर भी ऐसा ही करूँगा। 14 वहाँ मेरे कुछ व्यक्ति फिर भी बचे रह जायेंगे। किन्तु मैं उन व्यक्तियों को छोड़ दूँगा। मैं उन्हें उनके शत्रुओं को दे दूँगा। उनके शत्रु उन्हें बन्दी बनायेंगे, वे उन कीमती चीज़ों की तरह होंगे जिन्हें सैनिक युद्ध में प्राप्त करते हैं। 15 क्यों क्योंकि हमारे लोगों ने वे काम किये जिन्हें मैंने बुरा बताया। उन्होंने मुझे उस दिन से क्रोधित किया है जिस दिन से उनके पूर्वज मिस्र से बाहर आए 16 और मनश्शे ने अनेक निरपराध लोगों को मारा। उसने यरूशलेम को एक सिरे से दूसरे सिरे तक खून से भर दिया और वे सारे पाप उन पापों के अतिरिक्त हैं जिसे उसने यहूदा से कराया। मनश्शे ने यहूदा से वह कराया जिसे यहोवा ने बुरा बताया था।’”

17 उन पापों सहित और भी जो कार्य मनश्शे ने किये, वह सभी यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 18 मनश्शे मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। मनश्शे अपने घर के बाग में दफनाया गया। इस बाग का नाम उज्जर का बाग था। मनश्शे का पुत्र आमोन उसके बाद नया राजा हुआ।

आमोन का अल्पकालीन शासन

19 आमोन ने जब शासन करना आरम्भ किया तो वह बाईस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में दो वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम मशुल्लेमेत था, जो योत्बा के हारूस की पुत्री थी।

20 आमोन ने ठीक अपने पिता मनश्शे की तरह के काम किये, जिन्हें यहोवा ने बुरा बताया था। 21 आमोन ठीक अपने पिता की तरह रहता था। आमोन उन्ही देवमूर्तियों की पूजा और सेवा करता था जिनकी उसका पिता करता था। 22 आमोन ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया और उस तरह नहीं रहा जैसा यहोवा चाहता था।

23 आमोन के सेवकों ने उसके विरुद्ध षडयन्त्र रचा और उसे उसके महल में मार डाला। 24 साधारण जनता ने उन सभी अधिकारियों को मार डाला जिन्होंने आमोन के विरुद्ध षडयन्त्र रचा था। तब लोगों ने आमोन के पुत्र योशिय्याह को उसके बाद नया राजा बनाया।

25 जो अन्य काम आमोन ने किये वे यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 26 आमोन उज्जर के बाग में अपनी कब्र में दफनाया गया। आमोन का पुत्र योशिय्याह नया राजा बना।

योशिय्याह यहूदा पर अपना शासन आरम्भ करता है

22योशिय्याह ने जब शासन आरम्भ किया तो वह आठ वर्ष का था। उसने इकतीस वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ बोस्कत के अदाया की पुत्री यदीदा थी। 2 योशिय्याह ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने अच्छा बताया था। योशिय्याह ने परमेश्वर का अनुसरण अपने पूर्वज दाऊद की तरह किया। योशिय्याह ने परमेश्वर की शिक्षाओं को माना, और उसने ठीक वैसा ही किया जैसा परमेश्वर चाहता था।

योशिय्याह मन्दिर की मरम्मत के लिये आदेश देता है

3 योशिय्याह ने अपने राज्यकाल के अट्ठारहवें वर्ष में अपने मन्त्री, मशुल्लाम के पौत्र व असल्याह के पुत्र शापान को यहोवा के मन्दिर में भेजा। 4 योशिय्याह ने कहा, “महयाजक हिलकिय्याह के पास जाओ। उससे कहो कि उसे वह धन लेना चाहिये जिसे लोग यहोवा के मन्दिर में लाये हैं। द्वारपालों ने उस धन को लोगों से इकट्ठा किया था। 5 याजकों को यह धन उन कारीगरों को देने में उपयोग करना चाहिये जो यहोवा के मन्दिर की मरम्मत करते हैं। याजकों को इस धन को उन लोगों को देना चाहिये जो यहोवा के मन्दिर की देखभाल करते हैं। 6 बढ़ई, पत्थर की दीवार बनाने वाले मिस्त्री और पत्थर तराश के लिये धन का उपयोग करो। मन्दिर में लगाने के लिये इमारती लकड़ी और कटे पत्थर के खरीदने में धन का उपयोग करो। 7 उस धन को न गिनो जिसे तुम मजदूरों को दो। उन मजदूरों पर विश्वास किया जा सकता है।”

व्यवस्था की पुस्तक मन्दिर में मिली

8 महायाजक हिलकिय्याह ने शास्त्री शापान से कहा, “देखो! मुझे व्यवस्था की पुस्तक यहोवा के मन्दिर में मिली है।” हिलकिय्याह ने इस पुस्तक को शापान को दिया और शापान ने इसे पढ़ा।

9 शास्त्री शापान, राजा योशिय्याह के पास आया और उसे बताया जो हुआ था। शापान ने कहा, “तुम्हारे सेवकों ने मन्दिर से मिले धन को लिया और उसे उन कारीगरों को दिया जो यहोवा के मन्दिर की देख—रेख कर रहे थे।” 10 तब शास्त्री शापान ने राजा से कहा, “याजक हिलकिय्याह ने मुझे यह पुस्तक भी दी है।” तब शापान ने राजा को पुस्तक पढ़ कर सुनाई।

11 जब राजा ने व्यवस्था की पुस्तक के शब्दों को सुना, उसने अपना दुःख और परेशानी प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला। 12 तब राजा ने याजक हिलकिय्याह, शापान के पुत्र अहीकाम, मीकायाह के पुत्र अकबोर, शास्त्री शापान और राजसेवक असाया को आदेश दिया। 13 राजा योशिय्याह ने कहा, “जाओ, और यहोवा से पूछो कि हमें क्या करना चाहिये। यहोवा से मेरे लिये, लोगों के लिये और पूरे यहूदा के लिये याचना करो। इस मिली हुई पुस्तक के शब्दों के बारे में पूछो। यहोवा हम लोगों पर क्रोधित है। क्यों क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इस पुस्तक की शिक्षा को नहीं माना। उन्होंने हम लोगों के लिये लिखी सब बातों को नहीं किया।”

योशिय्याह और नबिया हुल्दा

14 अतः याजक हिलकिय्याह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया, नबिया हुल्दा के पास गए। हुल्दा हर्हस के पौत्र व तिकवा के पुत्र शल्लूम की पत्नी थी। वह याजक के वस्त्रों की देखभाल करता था। हुल्दा यरूशलेम में द्वितीय खण्ड में रह रही थी। वे गए और उन्होंने हुल्दा से बातें कीं।

15 तब हुल्दा ने उनसे कहा, “यहोवा इस्राएल का परमेश्वर कहता हैः उस व्यक्ति से कहो जिसने तुम्हें मेरे पास भेजा हैः 16 ‘यहोवा यह कहता हैः मैं इस स्थान पर विपत्ति ला रहा हूँ और उन मनुष्यों पर भी जो यहाँ रहते हैं। ये विपत्तियाँ हैं जिन्हें उस पुस्तक में लिखा गया है जिसे यहूदा के राजा ने पढ़ा है। 17 यहूदा के लोगों ने मुझे त्याग दिया है और अन्य देवताओं के लिये सुगन्धि जलाई है। उन्होंने मुझे बहुत क्रोधित किया है। उन्होंने बहुत सी देवमूर्तियाँ बनाईं। यही कारण है कि मैं इस स्थान के विरुद्ध अपना क्रोध प्रकट करूँगा। मेरा क्रोध उस अग्नि की तरह होगा जो बुझाई न जा सकेगी।’

18-19 “यहूदा के राजा योशिय्याह ने तुम्हें यहोवा से सलाह लेने को भेजा है। योशिय्याह से यह कहोः ‘यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर ने जो कहा उसे तुमने सुना। तुमने वह सुना जो मैंने इस स्थान और इस स्थान पर रहने वाले लोगों के बारे में कहा। तुम्हारा हृदय कोमल है और जब तुमने यह सुना तो तुम्हें दु:ख हुआ। मैंने कहा कि भयंकर घटनायें इस स्थान (यरूशलेम) के साथ घटित होंगी। और तुमने अपने दुःख को प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला और तुम रोने लगे। यही कारण है कि मैंने तुम्हारी बात सुनी।’ यहोवा यह कहता है, 20 ‘मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के साथ ले आऊँगा। तुम मरोगे और अपनी कब्र में शान्तिपूर्वक जाओगे। अतः तुम्हारी आँखें उन विपत्तियों को नहीं देखेंगी जिन्हें मैं इस स्थान (यरूशलेम) पर ढाने जा रहा हूँ।’”

तब याजक हिलकिय्याह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया ने राजा से यह सब कहा।

समीक्षा

एक देश को बदलने की सामर्थ

इतिहास दिखाता है कि वचनो में एक देश को बदलने की सामर्थ है। राजा मनश्शे (696-641 बी.सी) एक बुरा राजा था। 'उसने घिनौने काम और आत्मिक भ्रष्टाचार किए...मनश्शे ने (लोगों) से पाप करवाया...बुराई में नया रिकॉर्ड बनाया...वह मनमाना खूनी था। उसने यरूशलेम को निर्दोषों के खून से भर दिया' (21:1-16, एम.एस.जी)। उसके पुत्र आमोन (641-639 बी.सी.) ने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था (वव.20-21)।

इतिहास की पुस्तक बताती है कि मनश्शे के लिए भी उसके जीवन के अंत तक आशा थी। कभी भी बहुत देर नहीं होती है और कोई भी पाप परमेश्वर से क्षमा ग्रहण करने के लिए बहुत बड़ा नहीं है (2इतिहास33 देखे)।

बुरे राजाओं की इस श्रृंखला के बाद योशिय्याह आया (639-609 बी.सी)। वह एक युवा व्यक्ति थे जो अपने लोगों को महान आत्मिक पुनर्जीवन में ले गए, आराधना को सुधार दिया और लोगों को परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में वापस ले गए। वह केवल आठ वर्ष के थे जब वह राजा बने (2राजाओं 22:1)। उसने 'वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था और जिस मार्ग पर उसका मूलपुरुष दाऊद चला ठीक उसी पर वह भी चला, और उससे न तो दाहिनी ओर और न बाईं ओर मुड़ा' (व.2)।

योशिय्याह और देश पर वचनो का एक शक्तिशाली प्रभाव हुआः

लिखे गए वचन की सामर्थ

अ.जब वे मंदिर में काम कर रहे थे, तब शापान, महायाजक को 'व्यवस्था की पुस्तक' मिली (व.8)। ऐसा लगता है कि यह व्यवस्थाविवरण की पुस्तक थी।

ब. पहला, शापान ने इसे पढ़ा (व.8)। तब शापान ने इसे राजा की उपस्थिति में पढ़ा। व्यवस्था कि इस पुस्तक की बातें सुनकर राजा ने अपने वस्त्र फाड़े (पश्चाताप में)। उन्होंने समझा कि उन्होंने इस पुस्तक की बातें नही मानी है (वव.11-13)। इसके कारण हृदय में एक परिवर्तन आया, जिससे देश में एक बदलाव आया।

क.यह हमें परमेश्वर के लिखे हुए वचनों की महत्ता दिखाता है। आपमें से जिन लोगों ने एक वर्ष में संपूर्ण बाईबल को पढ़ने की चुनौती ली है, वे उस चीज में जुड़ गए हैं जो ना केवल दिलचस्प और जानकारी से भरी है, लेकिन जीवन भी बदलती है।

बोले गए वचन की सामर्थ

अ.ना केवल परमेश्वर ने योशिय्याह और लोगों से लिखे हुए वचन के द्वारा बातें की, उन्होंने भविष्यवाणी के द्वारा भी बातें की। दिलचस्प रूप से,यह शल्लूम की पत्नी, हुल्दा नबिया के द्वारा हुआ (व.14)। यह दिखाता है कि सेवकाई में महिलाओं के स्थान की जड़े पुराने नियम में और परमेश्वर के लोगों की इतिहास में हैं।

ब. हुल्दा की शक्तिशाली सेवकाई थी। सच में, ऐसा लगता है कि 'भवन के वस्त्रों की रखवाली करने' के उसके पति के काम से बढ़कर उसका काम था (व.14, एम.एस.जी)।

क.उसके बोले गए वचन, पवित्रशास्त्र के लिखे हुए वचनों से विरोधाभास नहीं करते थे; इसके बजाय, उन्होंने उसे उभारा और दृढ कियाः 'इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता हैः'...मैंने तेरी सुनी है, यहोवा की यही वाणी है' (वव.18-19)।

ड.उसने उन्हें बताया कि जिस तरह से उन्होंने परमेश्वर के लिखे हुए वचन के प्रति उत्तर दिया है –उन्होंने अपने आपको दीन किया और पछताये – परमेश्वर ने उनकी बातें सुनी और उन्हे उत्तर दिया। परमेश्वर के वचन के लिए उनके उत्तर ने इतिहास की दिशा को बदल दिया।

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं हमारे देश के लिए प्रार्थना करता हूँ – कि हम फिर से परमेश्वर के वचन की सामर्थ को खोजे और आपके भविष्यवक्ताओं की बातें सुने, जो आपके वचन के साथ मेल में बोलते हैं। होने दीजिए कि वहाँ पर पछतावा हो और हमारे लीडर्स और हमारे देश में लोगों के हृदय बदले।

पिप्पा भी कहते है

नीतिवचन 16:31अ

'भूरे बाल वैभव का एक मुकुट है।'

हमारा समाज भूरे बालों को महत्व नहीं देता है, लेकिन मुझे लगता है कि निकी इसमें बहुत अच्छा दिखते हैं। मैं अपने बालों को छिपाने की कोशिश करती हूँ!

दिन का वचन

नीतिवचन 17:1

“चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उस में झगड़े रगड़े हों।“

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संदर्भ

एलेन विटिकर, भाषण जिसने आधुनिक विश्व को आकार दिया (न्यु हॉलंड पब्लिशर, 2005)

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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