दिन 148

लडाई के प्रति कैसे उत्तर दें

बुद्धि नीतिवचन 13:10-19
नए करार यूहन्ना 18:1-24
जूना करार 1 शमूएल 21:1-23:29

परिचय

स्प्रिंगबोक, हिरण जैसा एक मृग है. सामान्यत: वे परजीवियों से बहुत सावधान रहते हैं. किंतु, मुझे याद है मैं एक बीबीसी वाईल्डलाईफ प्रोग्राम देख रहा था, जिसे कालाहारी जंगल में दो स्प्रिंगबोक को लड़ते हुए फिल्माया गया था. जब वे लड़ाई में मगन हो गए, तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि सिंह उनके आस-पास घात लगाए हुए बैठा था, उन पर प्रहार करने के अवसर का इंतजार करते हुए.

जैसे ही मैं देख रहा था, यह मुझे चर्च के एक चित्र की तरह दिखाई दिया. जब चर्च में, हम एक –दूसरे से लड़ते है, तब हम प्रहार के लिए खुल जाते हैं. ' शैतान गरजने वाले सिंह के समान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए' (1पतरस 5:8).

जब परमेश्वर आपको उनके पीछे आने के लिए कहते हैं, तब वह आपको एक सरल जीवन जीने के लिए नहीं बुलाते हैं. पृथ्वी पर जीवन में बहुत सी लड़ाईयां शामिल हैं, इन सभी में परमेश्वर आपसे यीशु मसीह के द्वारा विजय का वायदा करते हैं. पृथ्वी पर आपके जीवन में ऐसा कोई क्षण नहीं होगा जब सबकुछ सिद्ध होगा. वहाँ पर हमेशा चुनौतियाँ, कठिनाईयाँ और सुलझाने के लिए परेशानियाँ होंगी. किंतु, ऐसे समय होते हैं जब ये चीजे तीव्र हो जाती हैं और हम प्रहार के अंतर्गत आते हुए दिखाई देते हैं.

मार्टिन लुथर किंग ने कहा कि एक व्यक्ति का माप यह नहीं है कि वह 'सुविधाजनक क्षणों' में खड़ा रह पाता है या नही, बल्कि वह 'चुनौती के क्षणों में, बड़े संकट और विरोधाभास के क्षणों में खड़े रह पाते हैं या नहीं.'

बुद्धि

नीतिवचन 13:10-19

10 अहंकार केवल झगड़ों को पनपाता है किन्तु
 जो सम्मति की बात मानता है, उनमें ही विवेक पाया जाता है।

11 बेइमानी का धन यूँ ही धूल हो जाता है किन्तु जो बूँद—
 बूँद करके धन संचित करता है, उसका धन बढ़ता है।

12 आशा हीनता मन को उदास करती है,
 किन्तु कामना की पूर्ति प्रसन्नता होती है।

13 जो जन शिक्षा का अनादर करता है,
 उसको इसका मूल्य चुकाना पड़ेगा।
 किन्तु जो शिक्षा का आदर करता है, वह तो इसका प्रतिफल पाता है।

14 विवेक की शिक्षा जीवन का उद्गम स्रोत है,
 वह लोगों को मौत के फंदे से बचाती है।

15 अच्छी भली समझ बूझ कृपा दृष्टि अर्जित करती,
 पर विश्वासहीन का जीवन कठिन होता है।

16 हर एक विवेकी ज्ञानपूर्वक काम करता,
 किन्तु एक मूर्ख निज मूर्खता प्रकट करता है।

17 कुटिल सन्देशवाहक विपत्ति में पड़ता है,
 किन्तु विश्वसनीय दूत शांति देता है।

18 ऐसा मनुष्य जो शिक्षा की उपेक्षा करता है,
 उसपर लज्जा और दरिद्रता आ पड़ती है,
 किन्तु जो शिक्षा पर कान देता है, वह आदर पाता है।

19 किसी इच्छा का पूरा हो जाना मन को मधुर लगता है
 किन्तु दोष का त्याग, मूर्खो को नहीं भाता है।

समीक्षा

अनावश्यक झगड़े को दूर करें

नीतिवचन के लेखक बुद्धिमान ('जो लोग सलाह लेते हैं उनमें बुद्धि पायी जाती है, व.10ब') और मूर्ख ('मूर्ख बुराई से मुड़ने से घृणा करते हैं, व.19ब') के बीच अंतर को स्पष्ट करते हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हम लड़ाई का अनुभव करते हैं. इस लेखांश में हम दो उदाहरणों को देखते हैं:

  1. लड़ाई

'अहंकार झगड़े को उत्पन्न करता है' (व.10अ). जीवन का एक सबसे सुखा देने वाला अनुभव है झगड़ा करना - चाहे विवाह में, मित्रो के बीच में, सहकर्मियों के साथ या चर्च में. यहाँ पर हम देखते हैं कि झगड़े का एक कारण अहंकार हो सकता है. यदि आप दीनता के साथ अपनी गलतियों को मानने के लिए तैयार हैं, तो आप बहुत से झगड़े को दूर कर सकते हैं.

दूसरी पूँजी है एक दूसरे की बातें सावधानीपूर्वक सुननाः'झगड़े रगड़े केवल अहंकार ही से होते हैं, परंतु जो लोग सम्मति मानते हैं उनके पास बुद्धि रहती है' (व.10,एम.एस.जी.).

  1. निराशाएँ

'जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है' (व.12अ). या जैसा कि मैसेज अनुवाद इसे कहता है, 'कठोर निराशा आपको उदास कर देती है.'

यह दूसरे प्रकार का प्रहार है जो बीमार करता है. जब किसी चीज के लिए हमारे पास एक दर्शन था वह रूका हुआ है या हमारी योजनाऍं पूरी होने में देर हुई या किसी प्रहार के कारण यह असफल हो गई, तो निराशा मन को उदास कर देती है. हम अपनी ही योजनाओं और अपनी परिस्थितियों के साथ लड़ते हैं.

दूसरी ओर, दृढ़तापूर्वक बने रहने और आपके दर्शन के कुछ भाग को पूरा होते हुए देखने से अधिक कुछ भी संतुष्ट नहीं करता है. 'जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है' (व.12अ). 'लालसा का पूरा होना तो प्राण को मीठा लगता है' (व.19अ).

जीवन के सभी प्रहारों के बीच में, महान विजय, परिपूर्णता और संतोष के क्षण होते हैं.

प्रार्थना

परमेश्वर, चुनौतियों के बीच में, मेरी सहायता कीजिए कि मैं यीशु पर अपनी निगाहे रखकर, दृढ़तापूर्वक अपनी दौड़ को दौड सकूं. (इब्रानियों 12:1-3).
नए करार

यूहन्ना 18:1-24

यीशु का बंदी बनाया जाना

18यीशु यह कहकर अपने शिष्यों के साथ छोटी नदी किद्रोन के पार एक बगीचे में चला गया।

2 धोखे से उसे पकड़वाने वाला यहूदा भी उस जगह को जानता था क्योंकि यीशु वहाँ प्रायः अपने शिष्यों से मिला करता था। 3 इसलिये यहूदा रोमी सिपाहियों की एक टुकड़ी और महायाजकों और फरीसियों के भेजे लोगों और मन्दिर के पहरेदारों के साथ मशालें दीपक और हथियार लिये वहाँ आ पहुँचा।

4 फिर यीशु जो सब कुछ जानता था कि उसके साथ क्या होने जा रहा है, आगे आया और उनसे बोला, “तुम किसे खोज रहे हो?”

5 उन्होंने उसे उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।”

यीशु ने उनसे कहा, “वह मैं हूँ।” (तब उसे धोखे से पकड़वाने वाला यहूदा भी वहाँ खड़ा था।) 6 जब उसने उनसे कहा, “वह मैं हूँ,” तो वे पीछे हटे और धरती पर गिर पड़े।

7 इस पर एक बार फिर यीशु ने उनसे पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?”

वे बोले, “यीशु नासरी को।”

8 यीशु ने उत्तर दिया, “मैंने तुमसे कहा, वह मैं ही हूँ। यदि तुम मुझे खोज रहे हो तो इन लोगों को जाने दो।” 9 यह उसने इसलिये कहा कि जो उसने कहा था, वह सच हो, “मैंने उनमें से किसी को भी नहीं खोया, जिन्हें तूने मुझे सौंपा था।”

10 फिर शमौन पतरस ने, जिसके पास तलवार थी, अपनी तलवार निकाली और महायाजक के दास का दाहिना कान काटते हुए उसे घायल कर दिया। (उस दास का नाम मलखुस था।) 11 फिर यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख! क्या मैं यातना का वह प्याला न पीऊँ जो परम पिता ने मुझे दिया है?”

यीशु का हन्ना के सामने लाया जाना

12 फिर रोमी टुकड़ी के सिपाहियों और उनके सूबेदारों तथा यहूदियों के मन्दिर के पहरेदारों ने यीशु को बंदी बना लिया। 13 और उसे बाँध कर पहले हन्ना के पास ले गये जो उस साल के महायाजक कैफा का ससुर था। 14 यह कैफा वही व्यक्ति था जिसने यहूदी नेताओं को सलाह दी थी कि सब लोगों के लिए एक का मरना अच्छा है।

पतरस का यीशु को पहचानने से इन्कार

15 शमौन पतरस तथा एक और शिष्य यीशु के पीछे हो लिये। महायाजक इस शिष्य को अच्छी तरह जानता था इसलिए वह यीशु के साथ महायाजक के आँगन में घुस गया। 16 किन्तु पतरस बाहर द्वार के पास ही ठहर गया। फिर महायाजक की जान पहचान वाला दूसरा शिष्य बाहर गया और द्वारपालिन से कह कर पतरस को भीतर ले आया। 17 इस पर उस दासी ने जो द्वारपालिन थी कहा, “हो सकता है कि तू भी यीशु का ही शिष्य है?”

पतरस ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”

18 क्योंकि ठंड बहुत थी दास और मन्दिर के पहरेदार आग जलाकर वहाँ खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ वहीं खड़ा था और ताप रहा था।

महायाजक की यीशु से पूछताछ

19 फिर महायाजक ने यीशु से उसके शिष्यों और उसकी शिक्षा के बारे में पूछा। 20 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “मैंने सदा लोगों के बीच हर किसी से खुल कर बात की है। सदा मैंने आराधनालयों में और मन्दिर में, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठे होते हैं, उपदेश दिया है। मैंने कभी भी छिपा कर कुछ नहीं कहा है। 21 फिर तू मुझ से क्यों पूछ रहा है? मैंने क्या कहा है उनसे पूछ जिन्होंने मुझे सुना है। मैंने क्या कहा, निश्चय ही वे जानते हैं।”

22 जब उसने यह कहा तो मन्दिर के एक पहरेदार ने, जो वहीं खड़ा था, यीशु को एक थप्पड़ मारा और बोला, “तूने महायाजक को ऐसे उत्तर देने की हिम्मत कैसे की?”

23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने कुछ बुरा कहा है तो प्रमाणित कर और बता कि उसमें बुरा क्या था, और यदि मैंने ठीक कहा है तो तू मुझे क्यों मारता है?”

24 फिर हन्ना ने उसे बंधे हुए ही महायाजक कैफा के पास भेज दिया।

समीक्षा

भरोसा कीजिए कि परमेश्वर बुराई में से अच्छाई निकाल सकते हैं

कभी कभी, जब हमारे जीवनों में लड़ाई आती है, तब हम केवल अपने आप पर दोष लगा सकते हैं. किंतु, आवश्यक रूप से हमेशा ऐसा ही नहीं होता है. यीशु पर प्रहार, उनके खुद के पाप या असफलता के कारण नहीं आया था. इसके बजाय, वे बुराई के परिणाम थे. फिर भी परमेश्वर ने इसका इस्तेमाल भलाई के लिए किया (व.14).

एकता के लिए प्रार्थना करने के बाद, यीशु अब लड़ाई के विश्व में प्रवेश करते हैं. अकेले और असुरक्षित, प्रेम और दयालुता से भरे हुए, यीशु को गिरफ्तार किया जाता है और मृत्यु दंड की सजा दी जाती है. जीवन देने के लिए वह अपना जीवन देते हैं.

  1. पकड़वाया जाना

यीशु के जीवन में यह एक भयानक क्षण था. उनके मित्र और चेले यहूदा, जिसके साथ उन्होंने तीन साल बिताएं थे, उसने यीशु को गिरफ्तार करवाने के लिए सेना की एक तुकड़ी और महायाजक और फरीसियों की ओर से कुछ अधिकारियों को भेजा (वव.1-3).

जब प्रहार एक मित्र या सहकर्मी की ओर से आता है, तब इससे अधिक दर्दनाक कुछ नहीं है. यीशु का शालीन उत्तर उदाहरण के योग्य है. वह शांत थे,उन्होनें हिंसा को अस्वीकार कर दिया और असाधारण आत्म-संयम का इस्तेमाल किया (वव.4-12).

अपने चेलों को बचाने के लिए, यीशु शक्तिशाली हथियारबंद मनुष्यों के समूह का सामना करते हैं, जिन्हें यहूदा ने लाया था. यीशु को बचाने के लिए हिंसा का सहारा लेने के पतरस के प्रयास को वह रोकते हैं. विश्व के तरीकों को इस्तेमाल करते हुए वह लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहते हैं.

  1. बुरा-बर्ताव

वहीं अधिकारी जिन्हें निर्दोष को बचाना चाहिए था, वही यीशु पर प्रहार करने में शामिल हो गए. उन्होंने यीशु को गिरफ्तार किया. 'उन्होंने यीशु को बाँध दिया' (व.12). पहले वे उसे हन्ना के पास ले गए और फिर कैफा के पास. महायाजक के पास खड़ा करके, बँधे हुए, यीशु को थप्पड़ मारा जाता है (वव.12-14,1ö24).

यदि यीशु के साथ इस तरह से बर्ताव किया गया, तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि समय समय पर हम अधिकार वाले मनुष्यों से प्रहार सहते है - चाहे धार्मिक या लौकिक.

  1. नकारना

पतरस के द्वारा नकारा जाना एक बुरे हृदय से नहीं आया था लेकिन केवल मानवीय कमजोरी से आया था. जब उससे पूछा गया कि क्या वह यीशु का चेला है, तब उसने जवाब दिया, 'मैं नही हूँ' (व.17).

ब. मैं पूरी तरह से समझता हूँ कि कैसे पतरस ने अपने आपको यीशु को नकारने की अवस्था में पाया होगा, उसके सारे सर्वश्रेष्ठ अभिप्रायों के बावजूद. मैंने कुछ समय ऐसी चीजें कहीं हैं या की हैं जो बाद में समझ आयी कि यह पूरी तरह से कायरता थी.

वास्तविकता यह है कि यीशु स्थिति के पूरे नियंत्रण में हैं. 'जो कुछ उनके साथ होने वाला था' वह सब जानते थे (व.4). पिछले अध्याय में उन्होंने अपनी खुद की प्रार्थना के उत्तर को पूरा करने के लिए कार्य किया (व.9, 17:12 देखे). यीशु अपनी मृत्यु के पास गए 'उस प्याले को पीने के लिए जो पिता ने उन्हें दिया था' हमारे पाप और गलत कामों के लिए दाम चुकाते हुए (18:11).

उन्होंने हमारे लिए दाम चुकायाः'अच्छा है कि सभी लोगों के लिए एक व्यक्ति अपनी जान दे' (व.14). यीशु की मृत्यु पतरस और हममें से हर एक के बदले में है. वह मृत्यु और न्याय के प्रहार का सामना करते हैं, ताकि आपको न करना पड़े. यीशु ने अपने आपको बँधने दिया (वव.12,24) ताकि आपके बंधन खुल जाएँ और आप मुक्त हो जाएं.

प्रार्थना

पिता, मुझे साहस और बुद्धि दीजिए यह जानने के लिए कि शालीनता और अनुग्रह के साथ कैसे उत्तर देना है, जब मुझ पर प्रहार होता है. इस वचन पर भरोसा करने में मेरी सहायता कीजिए कि सारी वस्तुओं में आप उनकी भलाई के लिए कार्य करते हैं जो आपसे प्रेम करते हैं और आपके उद्देश्य के अनुसार बुलाए गए हैं (रोमियो 8:28).
जूना करार

1 शमूएल 21:1-23:29

दाऊद का याजक अहीमेलेक से मिलने जाना

21तब दाऊद चला गया और योनातान नगर को लौट गया। दाऊद नोब नामक नगर में याजक अहीमेलेक से मिलने गया।

अहीमेलेक दाऊद से मिलने बाहर गया। अहीमेलेक भय से काँप रहा था। अहीमेलेक ने दाऊद से पूछा, “तुम अकेले क्यों हो? तुम्हारे साथ कोई व्यक्ति क्यों नहीं है?”

2 दाऊद ने अहीमेलेक को उत्तर दिया, “राजा ने मुझको विशेष आदेश दिया है। उसने मुझसे कहा है, ‘इस उद्देश्य को किसी को न जानने दो। कोई भी व्यक्ति उसे न जाने जिसे मैंने तुम्हें करने को कहा है।’ मैंने अपने व्यक्तियों से कह दिया है कि वे कहाँ मिलें। 3 अब यह बताओ कि तुम्हारे पास भोजन के लिये क्या है? मुझे पाँच रोटियाँ या जो कुछ खाने को है, दो।”

4 याजक ने दाऊद से कहा, “मेरे पास यहाँ सामान्य रोटियाँ नहीं हैं। किन्तु मेरे पास कुछ पवित्र रोटी तो है। तुम्हारे अधिकारी उसे खा सकते हैं, यदि उन्होंने किसी स्त्री के साथ इन दिनों शारीरिक सम्बन्ध न किया हो।”

5 दाऊद ने याजक को उत्तर दिया “हम लोग इन दिनों किसी स्त्री के साथ नहीं रहे हैं। हमारे व्यक्ति अपने शरीर को पवित्र रखते हैं जब कभी हम युद्ध करने जाते हैं, यहाँ तक कि सामान्य उद्देश्य के लिये जाने पर भी और आज के लिए तो यह विशेष रूप से सच है क्योंकि हमारा काम अति विशिष्ट है।”

6 वहाँ पवित्र रोटी के अतिरिक्त कोई रोटी नहीं थी। अत: याजक ने दाऊद को वही रोटी दी। यह वह रोटी थी जिसे याजक यहोवा के सामने पवित्र मेज पर रखते थे। वे हर एक दिन इस रोटी को हटा लेते थे और उसकी जगह ताजी रोटी रखते थे।

7 उस दिन शाऊल के अधिकारियों में से एक वहाँ था। वह एदोमी दोएग था। दोएग को वहाँ यहोवा के सामने रखा गया था। दोएग शाऊल के गड़ेरियों का मुखिया था।

8 दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, “क्या तुम्हारे पास यहाँ कोई भाला या तलवार है? राजा का कार्य बहुत जरूरी है। मुझे शीघ्रता से जाना है और मैं अपनी तलवार या अन्य कोई शस्त्र नहीं ला सका हूँ।”

9 याजक ने उत्तर दिया, “एक मात्र तलवार जो यहाँ है वह पलिश्ती (गोलियत) की है। यह वही तलवार है जिसे तुमने उससे तब लिया था जब तुमने उसे एला की घाटी में मारा था। वह तलवार एक कपड़े में लिपटी हुई एपोद के पीछे रखी है। यदि तुम चाहो तो उसे ले सकते हो।”

दाऊद ने कहा, “इसे मुझे दो। गोलियत की तलवार के समान कोई तलवार नहीं है।”

दाऊद का गत को जाना

10 उस दिन दाऊद शाऊल के यहाँ से भाग गया। दाऊद गत के राजा आकीश के पास गया। 11 आकीश के अधिकारियों को यह अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा, “यह इस्राएल प्रदेश का राजा दाऊद है। यही वह व्यक्ति है जिसका गीत इस्राएली गाते हैं। वे नाचते हैं और यह गीत गाते है:

“शाऊल ने हजारों शत्रुओं को मारा
दाऊद ने दसियों हजार शत्रुओं को मारा!”

12 दाऊद को ये बातें याद थीं। दाऊद गत के राजा आकीश से बहुत भयभीत था। 13 इसलिए दाऊद ने आकीश और उसके अधिकारियों के सामने अपने को विक्षिप्त दिखाने का बहाना किया। जब तक दाऊद उनके साथ रहा उसने विक्षिप्तों जैसा व्यवहार किया। वह द्वार के दरवाजों पर थूक देता था। वह अपने थूक को अपनी दाढ़ी पर गिरने देता था।

14 आकीश ने अपने अधिकारियों से कहा, “इस व्यक्ति को देखो। यह तो विक्षिप्त है! तुम लोग इसे मेरे पास क्यों लाए हो? 15 मेरे पास तो वैसे ही बहुत से विक्षिप्त हैं। मैं तुम लोगों से यह नहीं चाहता कि तुम इस व्यक्ति को मेरे घर पर विक्षिप्त जैसा काम करने को लाओ। इस व्यक्ति को मेरे घर मैं फिर न आने देना।”

दाऊद का विभिन्न स्थानों पर जाना

22दाऊद ने गत को छोड़ दिया। दाऊद अदुल्लाम की गुफा में भाग गया। दाऊद के भाईयों और सम्बन्धियों ने सुना कि दाऊद अदुल्लाम में था। वे दाऊद को देखने वहाँ गए। 2 बहुत से लोग दाऊद के साथ हो लिये। वे सभी लोग, जो किसी विपत्ति में थे या कर्ज में थे या असंतुष्ट थे, दाऊद के साथ हो लिए। दाऊद उनका मुखिया बन गया। दाऊद के पास लगभग चार सौ पुरुष थे।

3 दाऊद ने अदुल्लाम को छोड़ दिया और वह मोआब में स्थित मिस्पा को चला गया। दाऊद ने मोआब के राजा से कहा, “कृपया मेरे माता पिता को आने दें और अपने पास तब तक रहने दें जब तक मैं यह न समझ सकूँ कि परमेश्वर मेरे साथ क्या करने जा रहा है।” 4 दाऊद ने अपने माता—पिता को मोआब के राजा के पास छोड़ा। दाऊद के माता—पिता मोआब के राजा के पास तब तक ठहरे जब तक दाऊद किले में रहा।

5 किन्तु नबी गाद ने दाऊद से कहा, “गढ़ी में मत ठहरो। यहूदा प्रदेश में जाओ।” इसलिये दाऊद वहाँ से चल पड़ा और हेरेत के जंगल में गया।

शाऊल का अहीमेलेक के परिवार को नष्ट करना

6 शाऊल ने सुना कि लोग दाऊद और उसके लोगों के बारे में जान गए हैं। शाऊल गिबा में पहाड़ी पर एक पेड़ के नीचे बैठा था। शाऊल के हाथ में उसका भाला था। शाऊल के सभी अधिकारी उसके चारों ओर खड़े थे। 7 शाऊल ने अपने उन अधिकारियों से कहा, जो उसके चारों ओर खड़े थे, “बिन्यामीन के लोगो सुनो! क्या तुम लोग समझते हो कि यिशै का पुत्र(दाऊद) तुम्हें खेत और अंगूरों के बाग देगा? क्या तुम समझते हो कि वह तुमको उन्नति देगा और तुम्हें एक हजार व्यक्तियों और एक सौ व्यक्तियों के ऊपर अधिकारी बनाएगा। 8 तुम लोग मेरे विरुद्ध षडयन्त्र रच रहे हो। तुमने गुप्त योजनायें बनाई हैं। तुम में से किसी ने भी मेरे पुत्र योनातान के बारे में नहीं बताया है। तुममें से किसी ने भी यह नहीं बताया है कि उसने यिशै के पुत्र के साथ क्या सन्धि की है। तुममें से कोई भी मेरी परवाह नहीं करता। तुममें से किसी ने यह नहीं बताया कि मेरे पुत्र योनातान ने दाऊद को उकसाया है। योनातान ने मेरे सेवक दाऊद से कहा कि वह छिप जाए और मुझ पर आक्रमण करे और यह वही है जो दाऊद अब कर रहा है।”

9 एदोमी दोएग शाऊल के अधिकारियों के साथ खड़ा था। दोएग ने कहा, “मैंने यिशै के पुत्र दाऊद को नोब में देखा है। दाऊद अहितूब के पुत्र अहीमेलेक से मिलने आया। 10 अहीमेलेक ने यहोवा से दाऊद के लिये प्रार्थना की। अहीमेलेक ने दाऊद को भोजन भी दिया और अहीमेलेक ने दाऊद को पलिश्ती (गोलियत) की तलवार भी दी।”

11 तब राजा शाऊल ने कुछ लोगों को आज्ञा दी कि वे याजक को उसके पास लेकर आएं। शाऊल ने उनसे अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक और उसके सभी सम्बन्धियों को लाने को कहा। अहीमेलेक के सम्बन्धी नोब में याजक थे। वे सभी राजा के पास आए। 12 शाऊल ने अहीमेलेक से कहा, “अहीतूब के पुत्र, अब सुन लो।”

अहीमेलेक ने उत्तर दिया, “हाँ, महाराज।”

13 शाऊल ने अहीमेलेक से कहा, “तुमने और यिशै के पुत्र (दाऊद) ने मेरे विरुद्ध गुप्त योजना क्यों बनाई? तुमने दाऊद को रोटी और तलवार दी! तुमने परमेश्वर से उसके लिये प्रार्थना की और अब सीधे, दाऊद मुझ पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा कर रहा है!”

14 अहीमेलेक ने उत्तर दिया, “दाऊद तुम्हारा बड़ा विश्वास पात्र है। तुम्हारे अधिकारियों में कोई उतना विश्वस्त नहीं है जितना दाऊद है। दाऊद तुम्हारा अपना दामाद है और दाऊद तुम्हारे अंगरक्षकों का नायक है। तुम्हारा अपना परिवार दाऊद का सम्मान करता है। 15 वह पहली बार नहीं था, कि मैंने दाऊद के लिये परमेश्वर से प्रार्थना की। ऐसी बात बिल्कुल नहीं है। मुझे या मेरे किसी सम्बन्धी को दोष मत लगाओ। हम तुम्हारे सेवक हैं। मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं है कि यह सब हो क्या रहा है?”

16 किन्तु राजा ने कहा, “अहीमेलेक, तुम्हें और तुम्हारे सभी सम्बन्धियों को मरना है।” 17 तब राजा ने अपने बगल में खड़े रक्षकों से कहा, “जाओ और यहोवा के याजकों को मार डालो। यह इसलिए करो क्योंकि वे भी दाऊद के पक्ष में हैं। वे जानते थे कि दाऊद भागा है, किन्तु उन्होंने मुझे बताया नहीं।”

किन्तु राजा के अधिकारियों ने यहोवा के याजकों को मारने से इन्कार कर दिया। 18 अत: राजा ने दोएग को आदेश दिया। शाऊल ने कहा, “दोएग, तुम जाओ और याजकों को मार डालो।” इसलिए एदोमी दोएग गया और उसने याजकों को मार डाला। उस दिन दोएग ने पचासी, सन के एपोद धारण करने वालों को मार डाला। 19 नोब याजकों का नगर था। दोएग ने नोब के सभी लोगों को मार डाला। दोएग ने अपनी तलवार का उपयोग किया और उसने सभी पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों और छोटे शिशुओं को भी मार डाला। दोएग ने उनकी गायों, खच्चरों और भेड़ों तक को मार डाला।

20 किन्तु एब्यातार वहाँ से बच निकला। एब्यातार अहीमेलेक का पुत्र था। अहीमेलेक अहीतूब का पुत्र था। एब्यातार बच निकला और दाऊद से मिल गया। 21 एब्यातार ने दाऊद से कहा कि शाऊल ने यहोवा के याजकों को मार डाला है। 22 तब दाऊद ने एब्यातार से कहा, “मैंने एदोमी दोएग को उस दिन नोब में देखा था और मैं जानता था की वह शाऊल से कहेगा। मैं तुम्हारे पिता के परिवार की मृत्यु के लिये उत्तरदायी हूँ। 23 जो व्यक्ति (शाऊल) तुमको मारना चाहता है वह मुझको भी मारना चाहता है। मेरे साथ ठहरो। डरो नहीं। तुम मेरे साथ सुरक्षित रहोगे।”

दाऊद कीला में

23लोगों ने दाऊद से कहा, “देखो, पलिश्ती कीला के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं। वे खलिहानों से अन्न लूट रहे हैं।”

2 दाऊद ने यहोवा से पूछा, “क्या मैं जाऊँ और इन पलिश्तियों से लड़ूँ?”

यहोवा ने दाऊद को उत्तर दिया, “जाओ और पलिश्तियों पर आक्रमण करो। कीला को बचाओ।”

3 किन्तु दाऊद के लोगों ने उससे कहा, “देखो, हम यहाँ यहूदा में हैं और हम भयभीत हैं। तनिक सोचो तो सही कि हम तब कितने भयभीत होंगे जब वहाँ जाएंगे जहाँ पलिश्ती सेना है।”

4 दाऊद ने फिर यहोवा से पूछा। यहोवा ने दाऊद को उत्तर दिया, “कीला को जाओ। मैं तुम्हारी सहायता पलिश्तियों को हराने में करूँगा।” 5 इसलिये दाऊद और उसके लोग कीला को गये। दाऊद के लोग पलिश्तियों से लड़े। दाऊद के लोगों ने पलिश्तियों को हराया और उनकी गायें ले लीं। इस प्रकार दाऊद ने कीला के लोगों को बचाया। 6 (जब एब्यातार दाऊद के पास भाग कर गया था तब एब्यातार अपने साथ एक एपोद ले गया था।)

7 लोगों ने शाऊल से कहा कि अब दाऊद कीला में है। शाऊल ने कहा, “परमेश्वर ने दाऊद को मुझे दे दिया है। दाऊद स्वयं जाल में फँस गया है। वह ऐसे नगर में गया है जिसके द्वार को बन्द करने के लिये दरवाजे और छड़ें हैं।” 8 शाऊल ने युद्ध के लिये अपनी सारी सेना को एक साथ बुलाया। उन्होंने अपनी तैयारी कीला जाने और दाऊद तथा उसके लोगों पर आक्रमण के लिये की।

9 दाऊद को पता लगा कि शाऊल उसके विरुद्ध योजना बना रहा है। दाऊद ने तब याजक एब्यातार से कहा, “एपोद लाओ।”

10 दाऊद ने प्रार्थना की, “यहोवा इस्राएल के परमेश्वर, मैंने सुना है कि शाऊल कीला में आने और मेरे कारण इसे नष्ट करने की योजना बना रहा है। 11 क्या शाऊल कीला में आएगा? क्या कीला के लोग मुझे शाऊल को दे देंगे? यहोवा इस्राएल के परमेश्वर, मैं तेरा सेवक हूँ! कृपया मुझे बता!”

यहोवा ने उत्तर दिया, “शाऊल आएगा।”

12 दाऊद ने फिर पूछा, “क्या कीला के लोग मुझे और मेरे लोगों को शाऊल को दे देंगे।”

यहोवा ने उत्तर दिया, “वे ऐसा करेंगे।”

13 इसलिए दाऊद और उसके लोगों ने कीला को छोड़ दिया। वहाँ लगभग छः सौ पुरुष थे जो दाऊद के साथ गए। दाऊद और उसके लोग एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहे। शाऊल को पता लग गया कि दाऊद कीला से बच निकला। इसलिए शाऊल उस नगर को नहीं गया।

शाऊल दाऊद का पीछा करता है

14 दाऊद मरूभूमि में चला गया और वहाँ किलों में ठहर गया। दाऊद जीप की मरूभूमि के पहाड़ी देश में भी गया। शाऊल प्रतिदिन दाऊद की खोज करता था, किन्तु यहोवा शाऊल को दाऊद को पकड़ने नहीं देता था।

15 दाऊद जीप की मरुभूमि में होरेश में था। वह भयभीत था क्योंकि शाऊल उसे मारने आ रहा था। 16 किन्तु शाऊल का पुत्र योनातान होरेश में दाऊद से मिलने गया। योनातान ने परमेश्वर पर दृढ़ विश्वास रखने में दाऊद की सहायता की। 17 योनातान ने दाऊद से कहा, “डरो नहीं। मेरे पिता शाऊल तुम्हें चोट नहीं पहुँचा सकते। तुम इस्राएल के राजा बनोगे। मैं तुम्हारे बाद दूसरे स्थान पर रहूँगा। मेरे पिता भी यह जानते हैं।”

18 योनातान और दाऊद दोनों ने यहोवा के सामने सन्धि की। तब योनातान घर चला गया और दाऊद होरेश में टिका रहा।

जीप के लोग शाऊल को दाऊद के बारे में बताते हैं

19 जीप के लोग गिबा में शाऊल के पास आए। उन्होंने शाऊल से कहा, “दाऊद हम लोगों के क्षेत्र में छिपा है। वह होरेश के किले में है। वह हकीला पहाड़ी पर यशीमोन के दक्षिण में है। 20 महाराज आप जब चाहें आएँ। यह हम लोगों का कर्तव्य है कि हम आपको दाऊद को दें।”

21 शाऊल ने उत्तर दिया, “यहोवा आप लोगों को मेरी सहायता के लिये आशीर्वाद दे। 22 जाओ और उसके बारे में और अधिक पता लगाओ। पता लगाओ कि दाऊद कहाँ ठहरा है। पता लगाओ कि दाऊद को वहाँ किसने देखा है। शाऊल ने सोचा, ‘दाऊद चतुर है। वह मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहा है।’ 23 छिपने के जिन स्थानों का उपयोग दाऊद कर रहा है, उन सभी का पता लगाओ और मेरे पास वापस लौटो तथा मुझे सब कुछ बताओ। तब मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। यदि दाऊद उस क्षेत्र में होगा तो मैं उसका पता लगाऊँगा। मैं उसका पता तब लगा लूँगा यदि मुझे यहूदा के सभी परिवारों की तलाशी लेनी पड़े।”

24 तब जीपी निवासी जीप को लौट गए। शाऊल वहाँ बाद में गया।

दाऊद और उसके लोग माओन की मरुभूमि में थे। वे यशीमोन के दक्षिण में मरुभूमि क्षेत्र में थे। 25 शाऊल और उसके लोग दाऊद की खोज करने गये। किन्तु लोगों ने दाऊद को सावधान कर दिया। उन्होंने बताया कि शाऊल उसकी तलाश कर रहा है। दाऊद तब माओन की मरुभूमि में नीचे की ओर चट्टान पर गया। शाऊल ने सुना कि दाऊद माओन की मरुभूमि में गया है। इसलिये शाऊल उस स्थान पर दाऊद को पकड़ने गया।

26 शाऊल पर्वत की एक ओर था। दाऊद और उसके लोग उसी पर्वत की दूसरी ओर थे। दाऊद शाऊल से दूर निकल जाने के लिये शीघ्रता कर रहा था। शाऊल और उसके सैनिक पर्वत के चारों ओर दाऊद और उसके लोगों को पकड़ने जा रहे थे।

27 तभी शाऊल के पास एक दूत आया। दूत ने कहा, “शीघ्रता करो! पलिश्ती हम पर आक्रमण कर रहें है!”

28 इसलिये शाऊल ने दाऊद का पीछा करना छोड़ दिया और पलिश्तियों से लड़ने निकल गया। यही कारण है कि लोग उस स्थान को “फिसलनी चट्टान” कहते हैं। 29 दाऊद ने माओन की मरूभूमि को छोड़ा और एनगदी के समीप के किले में गया।

समीक्षा

एक दूसरे को मजबूत करें

दाऊद के लिए यह तीव्र संघर्ष का एक समय था.

ईर्ष्या, जैसा कि हम यहाँ पर शाऊल के साथ देखते हैं, कभी सरल नहीं होती है जब यह एक व्यक्ति को जकड़ लेती है. यह शाऊल को बुरे कार्यों की ओर खींचती चली गई. याजकों से भरे नगर को नष्ट करने से पहले उसने एक बार भी नहीं सोचा (22:19).

प्रहार से बचने के लिए दाऊद को हर छल का सहारा लेना पड़ता था. उन्होंने परमेश्वर की उपस्थिति में पवित्र रोटियाँ खायी (21:1-9, एम.एस.जी); उन्होंने पागल बनने का नाटक किया (व.13) और जितने संकट में पड़े थे, और जितने ऋणी थे, और जितने उदास थे, वे सब उसके पास इकट्ठे हुए (22:1, एम.एस.जी.). तब भी हम इस लेखांश में दाऊद के गुणों को देखते हैं जो उत्पन्न हुई जब वह प्रहार का सामना कर रहे थे.

  1. ईमानदारी

दाऊद ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे (व.14) और लोग उनका बहुत सम्मान करते थे. दाऊद और योनातन एक दूसरे के प्रति बहुत ईमानदार थेः'शाऊल का पुत्र योनातन उठकर उसके पास होरेश में गया, और परमेश्वर की चर्चा करके उसको ढाँढ़स दिलाया' (23:16).

यह जानते हुए कि वह अपने आपको सिंहासन के वारिस में देख सकते थे, तब भी दाऊद के प्रति योनातन का बर्ताव असाधारण थाः 'तू ही इस्राएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे रहूँगा' (व.17). वे एक दूसरे के प्रति बहुत कटिबद्ध थेः'तब उन दोनों ने यहोवा की शपथ खाकर आपस में वाचा बाँधी' (व.18).

लड़ाई के समय में हमारे मित्रों और परिवार की ईमानदारी से अधिक कुछ भी नहीं है जो सहायता करता है. कठिन समय में वे आपकी सहायता कर सकते हैं. और जब वे प्रहार को सहते हैं तब आप अपनी ईमानदारी से उनकी सहायता कर सकते हैं और परमेश्वर में उन्हें ढ़ाँढ़स बँधा सकते हैं.

  1. प्रार्थना

जब आपके जीवन में संघर्ष आता है तब आप सबसे पहले किसे पुकारते हैं? जैसा कि जॉयस मेयर बताती हैं, जब परेशानी आती है तब क्या आप 'फोन की ओर दौड़ते हैं' या आप 'सिंहासन की ओर दौड़ते हैं?' अपने जीवन के इस पड़ाव पर दाऊद ने निर्णय लेने से पहले परमेश्वर से पूछने के महत्व को सीख लिया था. जब बार बार उन पर प्रहार होते थे, 'तब दाऊद प्रार्थना में परमेश्वर के पास जाते थे' (वव.2,4, एम.एस.जी). इस तरह से, प्रहार वास्तव में आपको परमेश्वर के नजदीक ले जा सकते हैं.

इस कहानी की त्रासदी यह है कि असली शत्रु से लड़ने के बजाय (व.27), परमेश्वर के लोग उन दो . स्प्रिंगबोक की तरह एक दूसरे से लड़ रहे थे. उन्होंने पलिश्तियों को प्रहार करने का अवसर दिया. आज भी चर्च ऐसा करने के खतरे में है.

शैतान जिस चीज को बुराई और फूट डालने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है, उस चीज को परमेश्वर अच्छाई में बदल सकते हैं. पलिश्तियों के द्वारा प्रहार का इस्तेमाल परमेश्वर ने दाऊद को बचाने में कियाः'शाऊल दाऊद का पीछा छोड़कर पलिश्तियों का सामना करने के लिए चला' (व.28). यह अद्भुत होगा यदि चर्च अंदर की लड़ाई को बंद करके, एक होकर उस असली शत्रु का सामना करे, जो हमारे विश्व को नष्ट करने की धमकी देता है, जैसे कि अन्याय, मानवीय तस्करी, रोग और गरीबी.

प्रार्थना

पिता, हमारी सहायता कीजिए कि एक-दूसरे के प्रति ईमानदार बने, चर्च के अंदर लड़ाई को बंद कर दें और बाहर से असली प्रहार का सामना करने के लिए एकजुट हो जाएँ.

पिप्पा भी कहते है

नीतिवचन 13:12

'जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है, परंतु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है.'

निराशा सच में आपको बीमार कर सकती है. यदि आप इसे फलने देंगे, तो यह आपको खा लेगी. मुझे नहीं पता कि उत्तर क्या है, केवल यह कि इसे परमेश्वर के पास ले जाईये, इसे जाने देने की कोशिश करिए और परमेश्वर की सार्वभौमिकता पर भरोसा कीजिए – यह हमेशा सरल नहीं है.

दिन का वचन

नीतिवचन – 13:10

" झगड़े रगड़े केवल अंहकार ही से होते हैं, परन्तु जो लोग सम्मति मानते हैं, उनके पास बुद्धि रहती है। "

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित. ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है.

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है. कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है.

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