पाँच बोझ, जिसे आपको उठाने की आवश्यकता नहीं है
परिचय
अपने जीवन के अंत समय में, सर विंस्टन चर्चिल ने कहा, 'जब मैं इन सभी चिंताओं को देखता हूँ, तब मुझे एक बूढ़े व्यक्ति की कहानी याद आती है जिन्होंने मरते समय कहा था कि उनके जीवन में बहुत सी परेशानी थी, जिनमें से बहुत सी कभी हुई भी नहीं थी!'
चर्चिल चिंताओं के बोझ के विषय में बता रहे थे जो कभी भी भौतिकता में नहीं आती हैं. किंतु, जीवन में 'बोझ' के कई विभिन्न प्रकार होते हैं, और उनमें से कुछ बहुत ही वास्तविक हैं. यीशु ने कहा, ' 'हे सब परिश्रम करने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा. मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो ...और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे. क्योंकि मेरा जुआ सरल और मेरा बोझ हल्का है.' (मत्ती 11:28-30).
एक जुआ ऐसी वस्तु है जिसे यीशु ने एक बढ़ई की दुकान में बनाया होगा. यह एक लकड़ी का आकार है जो दो जानवरों को गले पर एक साथ बाँधा जाता है (सामान्यत बैलों को), ताकि वे एक साथ हल या बैलगाड़ी को खींच सकें. जुए का काम है लेकर जाने के लिए बोझ को हल्का करना.
मुझे पसंद है जिस तरह से यूजन पिटरसन इस लेखांश को मैसेज में अनुवादित करते हैं:' क्या आप थके हुए हैं? धर्म से परेशान हैं? मेरे पास आओ. मेरे साथ चलो और तुम अपने जीवन को सुधार लोगे. मैं तुम्हे दिखाऊँगा कि कैसे एक सच्चे व्यक्तिविश्राम को पाते हैं. मेरे साथ चलो और मेरे साथ काम करो – देखो मैं इसे कैसे करता हूँ. अनुग्रह के मुक्त संगीत को सीखो. मैं तुम पर कुछ भी भारी या अनुचित चीजें नही डालता हूँ. मेरे साथ संगति रखो और तुम मुक्त रूप से और बिना भार के जीवन जीना सीख जाओगे' (वव.28-30).
भजन संहिता 68:15-20
15 बाशान पर्वत, महान पर्वत है,
जिसकी चोटियाँ बहुत सी हैं।
16 बाशान पर्वत, तुम क्यों सिय्योन पर्वत को छोटा समझते हो
परमेश्वर उससे प्रेम करता है।
परमेश्वर ने उसे वहाँ सदा रहने के लिए चुना है।
17 यहोवा पवित्र पर्वत सिय्योन पर आ रहा है।
और उसके पीछे उसके लाखों ही रथ हैं
18 वह ऊँचे पर चढ़ गया।
उसने बंदियों कि अगुवाई की;
उसने मनुष्यों से यहाँ तक कि
अपने विरोधियों से भी भेंटे ली।
यहोवा परमेश्वर वाहाँ रहने गया।
19 यहोवा के गुण गाओ!
वह प्रति दिन हमारी, हमारे संग भार उठाने में सहायता करता है।
परमेश्वर हमारी रक्षा करता है!
20 वह हमारा परमेश्वर है।
वह वही परमेश्वर है जो हमको बचाता है।
हमारा यहोवा परमेश्वर मृत्यु से हमारी रक्षा करता है!
समीक्षा
1. चिंता
जैसा कि कोरी टेन बूम ने बताया, 'चिंता आने वाले कल के दुख को कम नहीं करती है, लेकिन यह आज की शक्ति को कम करती है.' दाऊद परमेश्वर की स्तुति करते हैं 'जो कि प्रतिदिन हमारे बोझों को उठाते हैं' (व.19). यहाँ पर बोझ में बहुत सी चीजें शामिल हैं. एक बोझ जिसे परमेश्वर प्रतिदिन हमारे लिए उठाते हैं वह है चिंता, तनाव और व्याकुलता का बोझ.
उनकी पुस्तक 'खुशहाली' में, मनोवैज्ञानिक ओलिवर जेम्स बताते हैं कि 'लगभग ब्रिटेन का एक चौथाई भाग गंभीर भावनात्मक उदासी से कष्ट उठाता है, जैसे कि उदासी और चिंता, और दूसरा चौथाई भाग इसके बहुत समीप है. स्पष्ट रूप से, हम में से आधे बुरे रास्ते पर हैं...जो लोग 50000 से अधिक कमाते हैं...हाँल ही में दिखाया गया है कि उन्हें उदासी और चिंता की संभावना ज्यादा है उनकी तुलना में जो उनसे भी कम कमाते हैं.
हर दिन, आप अपनी चिंताओं और बेचैनियों को परमेश्वर को दे सकते हैं. यह अंतर पैदा करता है. वह प्रतिदिन आपके 'बोझों' को उठाते हैं (व.19).
प्रार्थना
यूहन्ना 18:25-40
पतरस का यीशु को पहचानने से फिर इन्कार
25 जब शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था तो उससे पूछा गया, “क्या यह सम्भव है कि तू भी उसका एक शिष्य है?” उसने इससे इन्कार किया।
वह बोला, “नहीं मैं नहीं हूँ।”
26 महायाजक के एक सेवक ने जो उस व्यक्ति का सम्बन्धी था जिसका पतरस ने कान काटा था, पूछा, “बता क्या मैंने तुझे उसके साथ बगीचे में नहीं देखा था?”
27 इस पर पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया। और तभी मुर्गे ने बाँग दी।
यीशु का पिलातुस के सामने लाया जाना
28 फिर वे यीशु को कैफा के घर से रोमी राजभवन में ले गये। सुबह का समय था। यहूदी लोग राजभवन में नहीं जाना चाहते थे कि कहीं अपवित्र न हो जायें और फ़सह का भोजन न खा सकें। 29 तब पिलातुस उनके पास बाहर आया और बोला, “इस व्यक्ति के ऊपर तुम क्या दोष लगाते हो?”
30 उत्तर में उन्होंने उससे कहा, “यदि यह अपराधी न होता तो हम इसे तुम्हें न सौंपते।”
31 इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, “इसे तुम ले जाओ और अपनी व्यवस्था के विधान के अनुसार इसका न्याय करो।”
यहूदियों ने उससे कहा, “हमें किसी को प्राणदण्ड देने का अधिकार नहीं है।” 32 (यह इसलिए हुआ कि यीशु ने जो बात उसे कैसी मृत्यु मिलेगी, यह बताते हुए कही थी, सत्य सिद्ध हो।)
33 तब पिलातुस महल में वापस चला गया। और यीशु को बुला कर उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”
34 यीशु ने उत्तर दिया, “यह बात क्या तू अपने आप कह रहा है या मेरे बारे में यह औरों ने तुझसे कही है?”
35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या तू सोचता है कि मैं यहूदी हूँ? तेरे लोगों और महायाजकों ने तुझे मेरे हवाले किया है। तूने क्या किया है?”
36 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस जगत का होता तो मेरी प्रजा मुझे यहूदियों को सौंपे जाने से बचाने के लिए युद्ध करती। किन्तु वास्तव में मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।”
37 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “तो तू राजा है?”
यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इसी प्रयोजन से मैं इस संसार में आया हूँ कि सत्य की साक्षी दूँ। हर वह व्यक्ति जो सत्य के पक्ष में है, मेरा वचन सुनता है।”
38 पिलातुस ने उससे पूछा, “सत्य क्या है?” ऐसा कह कर वह फिर यहूदियों के पास बाहर गया और उनसे बोला, “मैं उसमें कोई खोट नहीं पा सका हूँ 39 और तुम्हारी यह रीति है कि फ़सह पर्व के अवसर पर मैं तुम्हारे लिए किसी एक को मुक्त कर दूँ। तो क्या तुम चाहते हो कि मैं इस ‘यहूदियों के राजा’ को तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?”
40 एक बार वे फिर चिल्लाये, “इसे नहीं, बल्कि बरअब्बा को छोड़ दो।” (बरअब्बा एक बाग़ी था।)
समीक्षा
2. असफलता
महान प्रेरित पतरस से पूछा गया, 'क्या तुम उन चेलों में से एक नहीं हो?' उसने इनकार कर दिया, कहा, 'मैं नही हूँ' (व.25). यह दूसरी बार उन्होंने नकारा है. फिर तीसरी बार, पतरस को चुनौती मिलती है और वह यीशु को जानने से मना कर देते हैं (व.26). और उस समय मुर्गा बांग देने लगता है (व.27) – जैसा कि यीशु ने पहले ही बताया था.
पतरस को एहसास हुआ, जैसा कि समय समय पर हममें से बहुतों को एहसास होता है, कि उसने यीशु को असफल कर दिया है. असफलता का एक बोध एक बड़ा बोझ हो सकता है.
यह लेखांश पतरस की कहानी का अंत नहीं है. पुनरुत्थान के बाद, यीशु पतरस से मिले और उन्हें पुनर्नियुक्त किया, उनकी असफलता को क्षमा किया और फिर से उन्हें आयोग दिया (21:15-25). यीशु के साथ, असफलता कभी भी अंत नहीं है.
यद्पि पतरस ने उन्हें असफल कर दिया था, तब भी यीशु ने उसकी असफलता के बोझ को लिया, उन्हें पुनर्नियुक्त किया और मानव इतिहास में सबसे अधिक शक्तिशाली रूप से उनका इस्तेमाल किया.
3. अन्याय
हम इस लेखांश में देखते हैं कि बहुत सी चीजों में से एक जिसे यीशु को सहना पड़ा था वह पूरी तरह से अनुचित जाँच थी. जब पिलातुस ने पूछा, ' तुम इस मनुष्य पर किस बात का आरोप लगाते हो?' (व.29), उन्होंने उत्तर दिया, ' यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते' (व.30).
न्याय व्यवस्था का मूलभूत सिद्धांत है कि अभियोग चलाने वाले व्यक्ति को उस व्यक्ति के विरोध में,उस मामले को अवश्य ही साबित करना पड़ता है जिसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया है. यीशु पर आरोप लगाने वालों ने इसे खोखला करने की कोशिश की आधारभूत राय को पेश करने के द्वारा जिस पर हर अदालती व्यवस्था को जय पाने की आवश्यकता है - यह धारणा है कि क्योंकि एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा रहा है, तो अवश्य ही वह अपराधी होगा. पिलातुस ने अनुचित रूप से प्रमाण के बोझ को उलटने की कोशिश की.
पिलातुस ने भी अनुचित रूप से यीशु के चुप रहने के अधिकार को नकार दिया. उसने कहा, ' तू ने क्या किया है?' (व.35क). उसने कोशिश की कि यीशु ने अपने ही मुंह से अपने ऊपर दोष लगाएँ. यीशु कहते हैं कि वह विश्व में 'सच्चाई की गवाही देने के लिए आए हैं' 7व.37ब). पिलातुस ने पूछा, 'सच्चाई क्या है?' (व.38अ).
यह लगभग इस तरह से है जैसे कि पिलातुस प्रश्न पूछ रहा है (जैसा कि हमारा आधुनिक समाज करता है), कि क्या 'सच्चाई' नाम की कोई चीज है (अर्थात् पूर्ण सच्चाई). किंतु, पिलातुस सच्चाई के सामने खड़ा था, यीशु मसीह –जो एक अनुचित मुकदमे को सह रहे थे – और इससे भी बदतर क्रूस पर चढ़ाए जाने और मृत्यु का अनुचित दंड - आपके और मेरे लिए.
4. पाप
इस अनुचित मुकदमें के बावजूद, पिलातुस अंत में कहते हैं, ' मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता' (व.38ब). यीशु पूरी तरह से निर्दोष हैं. पिलातुस उन्हें छोड़ देना चाहते हैं लेकिन भीड़ चिल्लाने लगती है, ' इसे नहीं, परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे.' और बरअब्बा विद्रोही था' (व.40). निर्दोष यीशु को क्रूस पर चढ़ाये जाने का दंड दिया जाता है. पापी बरअब्बा को मुक्त कर दिया जाता है.
प्रतीकात्मकता स्पष्ट है. क्रूस पर निर्दोष यीशु मर गए, ताकि हम पापी मुक्त हो जाएँ. उन्होंने हमारे पाप के बोझ को उठाया.
प्रार्थना
1 शमूएल 24:1-25:44
दाऊद शाऊल को लज्जित करता है
24जब शाऊल ने पलिश्तियों को पीछा करके भगा दिया तब लोगों ने शाऊल से कहा, “दाऊद एनगदी के पास के मरुभूमि क्षेत्र में है।”
2 इसलिये शाऊल ने पूरे इस्राएल में से तीन हजार लोगों को चुना। शाऊल ने इन व्यक्तियों को साथ लिया और दाऊद तथा उसके लोगों की खोज आरम्भ की। उन्होंने “जंगली बकरियों की चट्टान” के समीप खोजा। 3 शाऊल सड़क के किनारे भेड़ों के बाड़े के समीप आया। वहाँ समीप ही एक गुफा थी। शाऊल स्वयं गुफा में शौच करने गया। दाऊद और उसके लोग बहुत पीछे उस गुफा में छिपे थे। 4 लोगों ने दाऊद से कहा, “आज वह दिन है जिसके विषय में यहोवा ने बातें की थीं। यहोवा ने तुमसे कहा था, ‘मैं तुम्हारे शत्रु को तुम्हें दूँगा, तब तुम जो चाहो अपने शत्रु के साथ कर सकोगे।’”
तब दाऊद रेंगकर शाऊल के पास आया। दाऊद ने शाऊल के लबादे का एक कोना काट लिया। शाऊल ने दाऊद को नहीं देखा। 5 बाद में, दाऊद को शाऊल के लबादे के एक कोने के काटने का अफसोस हुआ। 6 दाऊद ने अपने लोगों से कहा, “यहोवा मुझे अपने स्वामी के साथ कुछ भी ऐसा करने से रोके। शाऊल यहोवा का चुना हुआ राजा है। मुझे शाऊल के विरुद्ध कुछ नहीं करना चाहिए वह यहोवा का चुना हुआ राजा है।” 7 दाऊद ने ये बातें अपने लोगों को रोकने के लिये कहीं। दाऊद ने अपने लोगों को शाऊल पर आक्रमण करने नहीं दिया।
शाऊल ने गुफा छोड़ी और अपने मार्ग पर चल पड़ा। 8 दाऊद गुफा से निकला। दाऊद ने शाऊल को जोर से पुकारा, “मेरे प्रभु महाराज!”
शाऊल ने पीछे मुड़ कर देखा। दाऊद ने अपना सिर भूमि पर रखकर प्रणाम किया। 9 दाऊद ने शाऊल से कहा, “आप क्यों सुनते हैं जब लोग यह कहते हैं, ‘दाऊद आप पर चोट करने की योजना बना रहा है?’ 10 मैं आपको चोट पहुँचाना नहीं चाहता! आप इसे अपनी आँखों से देख सकते हैं! यहोवा ने आज आपको गुफा में मेरे हाथों में दे दिया था। किन्तु मैंने आपको मार डालने से इन्कार किया। मैंने आप पर दया की। मैंने कहा, ‘मैं अपने स्वामी को चोट नहीं पहुँचाऊँगा। शाऊल यहोवा का चुना हुआ राजा है!’ 11 मेरे हाथ में इस कपड़े के टुकड़े को देखें। मैंने आपके लबादे का टुकड़ा काट लिया। मैं आपको मार सकता था, किन्तु मैंने यह नहीं किया। अब मैं चाहता हूँ कि आप इसे समझें। मैं चाहता हूँ कि आप यह समझें कि मैं आपके विरुद्ध कोई योजना नहीं बना रहा हूँ। मैंने आपका कोई बुरा नहीं किया। किन्तु आप मेरा पीछा कर रहे हैं और मुझे मार डालना चाहते हैं। 12 यहोवा को न्याय करने दो। यहोवा आपको उस अन्याय के लिये दण्ड देगा जो आपने मेरे साथ किया। किन्तु मैं अपने आप आपसे युद्ध नहीं करूँगा। 13 पुरानी कहावत है:
‘बुरी चीजें बुरे लोगों से आती हैं।’
“मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है! मैं बुरा व्यक्ति नहीं हूँ! अत: मैं आप पर चोट नहीं करुँगा। 14 आप किसका पीछा कर रहे हैं? इस्राएल का राजा किसके विरुद्ध लड़ने आ रहा है? आप ऐसे किसी का पीछा नहीं कर रहे हैं जो आपको चोट पहुँचाएगा। यह ऐसा ही है जैसे आप एक मृत कुत्ते या मच्छर का पीछा कर रहे हैं। 15 यहोवा को न्याय करने दो। उसको मेरे और अपने बीच निर्णय देने दो। यहोवा मेरा समर्थन करेगा और दिखायेगा कि मैं सच्चाई पर हूँ। यहोवा आपसे मेरी रक्षा करेगा।”
16 दाऊद ने अपना यह कथन समाप्त किया और शाऊल ने पूछा, “मेरे पुत्र दाऊद, क्या यह तुम्हारी आवाज है?” तब शाऊल रोने लगा। शाऊल बहुत रोया। 17 शाऊल ने कहा, “तुम सही हो और मैं गलती पर हूँ। तुम हमारे प्रति अच्छे रहे। किन्तु मैं तुम्हारे प्रति बुरा रहा। 18 तुमने उन अच्छी बातों को बताया जिन्हें तुमने मेरे प्रति किया। यहोवा मुझे तुम्हारे पास लाया, किन्तु तुम ने मुझे नहीं मार डाला। 19 यदि कोई अपने शत्रु को पकड़ता है तो वह उसे बच निकलने नहीं देता। वह अपने शत्रु के लिये अच्छे काम नहीं करता। यहोवा तुमको इसका पुरस्कार दे क्योंकि तुम आज मेरे प्रति अच्छे रहे। 20 मैं जानता हूँ कि तुम नये राजा होगे। तुम इस्राएल के राज्य पर शासन करोगे। 21 अब मुझसे एक प्रतिज्ञा करो। यहोवा का नाम लेकर यह प्रतिज्ञा करो कि तुम मेरे वंशजों को मारोगे नहीं। प्रतिज्ञा करो कि तुम मेरे पिता के परिवार से मेरा नाम मिटाओगे नहीं।”
22 इसलिये दाऊद ने शाऊल से प्रतिज्ञा की। दाऊद ने प्रतिज्ञा की कि वह शाऊल के परिवार को नहीं मारेगा। तब शाऊल लौट गया। दाऊद और उसके लोग किले में चले गये।
दाऊद और नाबाल
25शमूएल मर गया। इस्राएल के सभी लोग इकट्ठे हुए और उन्होंने शमूएल की मृत्यु पर शोक प्रकट किया। उन्होंने शमूएल को उसके घर रामा में दफनाया।
तब दाऊद पारान की मरुभूमि में चला गया। 2 एक व्यक्ति था जो माओन में रहता था। वह व्यक्ति बहुत सम्पन्न था। उसके पास तीन हजार भेड़ें और एक हजार बकरियाँ थीं। वह कर्मेल में अपने धंधे की देखभाल करता था। वह कर्मेल में अपनी भेड़ों की ऊन काटता था। 3 उस व्यक्ति का नाम नाबाल था। उसकी पत्नी का नाम अबीगैल था। अबीगैल बुद्धिमती और सुन्दर स्त्री थी। किन्तु नाबल क्रूर और नीच था। नाबाल कालेब के परिवार से था।
4 दाऊद मरुभूमि में था और उसने सुना कि नाबाल अपनी भेड़ों की ऊन काट रहा है। 5 इसलिये दाऊद ने दस युवकों को नाबाल से बातें करने के लिये भेजा। दाऊद ने कहा, “कर्मेल जाओ। नाबाल से मिलो और उसको मेरी ओर से ‘नमस्ते’ कहो।” 6 दाऊद ने उन्हें नाबाल के लिये यह सन्देश दिया, “मुझे आशा है कि तुम और तुम्हारा परिवार सुखी है। मैं आशा करता हूँ कि जो कुछ तुम्हारा है, ठीक—ठाक है। 7 मैंने सुना है कि तुम अपनी भेड़ों से ऊन काट रहे हो। तुम्हारे गड़रिये कुछ समय तक हम लोगों के साथ रहे थे और हम लोगों ने उन्हें कोई कष्ट नहीं दिया। जब तक तुम्हारे गड़रिये कर्मेल में रहे हमने उनसे कुछ भी नहीं लिया। 8 अपने सेवकों से पूछो और वे बता देंगे कि यह सब सच है। कृपया मेरे युवकों पर दया करो। इस प्रसन्नता के अवसर पर हम तुम्हारे पास पहुँच रहे हैं। कृपया इन युवकों को तुम जो कुछ चाहो, दो। कृपया यह मेरे लिये, अपने मित्र दाऊद के लिये करो।”
9 दाऊद के व्यक्ति नाबाल के पास गए। उन्होंने दाऊद का सन्देश नाबाल को दिया। 10 किन्तु नाबाल उनके प्रति नीचता से पेश आया। नाबाल ने कहा, “दाऊद है कौन? यह यिशै का पुत्र कौन होता है? इन दिनों बहुत से दास हैं जो अपने स्वामियों के यहाँ से भाग गये हैं! 11 मेरे पास रोटी और पानी है और मेरे पास वह माँस भी है जिसे मैंने भेड़ों से ऊन काटने वाले सेवकों के लिये मारा है। किन्तु मैं उसे उन व्यक्तियों को नहीं दे सकता जिन्हें मैं जानता भी नहीं!”
12 दाऊद के व्यक्ति लौट गये और नाबाल ने जो कुछ कहा था दाऊद को बता दिया। 13 तब दाऊद ने अपने लोगों से कहा, “अपनी तलवार उठाओ!” अत: दाऊद और उसके लोगों ने तलवारें कस लीं। लगभग चार सौ व्यक्ति दाऊद के साथ गये और दो सौ व्यक्ति साज़ो सामान के साथ रुके रहे।
अबीगैल आपत्ति को टालती है
14 नाबाल के सेवकों में से एक ने नाबाल की पत्नी अबीगैल से बातें कीं। सेवक ने कहा, “दाऊद ने मरुभूमि से अपने दूतों को हमारे स्वामी (नाबाल) के पास भेजा। किन्तु नाबाल दाऊद के दूतों के साथ नीचता से पेश आया। 15 ये लोग हम लोगों के प्रति बहुत अच्छे थे। हम लोग भेड़ों के साथ मैदानों में जाते थे। दाऊद के लोग हमारे साथ लगातार रहे और उन्होंने हमारे साथ कुछ भी बुरा नहीं किया। उन्होंने पूरे समय हमारा कुछ भी नहीं चुराया। 16 दाऊद के लोगों ने दिन रात हमारी रक्षा की। वे हम लोगों के लिये रक्षक चहारदीवारी की तरह थे, उन्होंने हमारी रक्षा तब की जब हम भेड़ों की रखवाली करते हुए उनके साथ थे। 17 अब इस विषय में सोचो और निर्णय करो कि तुम क्या कर सकती हो। नाबाल ने जो कुछ कहा वह मूर्खतापूर्ण था। हमारे स्वामी (नाबाल) और उनके सारे परिवार के लिये भयंकर आपत्ति आ रही है।”
18 अबीगैल ने शीघ्रता की और दो सौ रोटियाँ, दाखमधु की दो भरी मशकें, पाँच पकी भेड़ें, लगभग एक बुशल पका अन्न, दो र्क्वाट मुनक्के और दो सौ सूखे अंजीर की टिकियाँ लीं। उसने उन्हें गधों पर लादा। 19 तब अबीगैल ने अपने सेवकों से कहा, “आगे चलते रहो मैं तुम्हारे पीछे आ रही हूँ।” किन्तु उसने अपने पति से कुछ न कहा।
20 अबीगैल अपने गधे पर बैठी और पर्वत की दूसरी ओर पहुँची। वह दूसरी ओर से आते हुए दाऊद और उसके आदमियों से मिली।
21 अबीगैल से मिलने के पहले दाऊद कह रहा था, “मैंने नाबाल की सम्पत्ति की रक्षा मरुभूमि में की। मैंने यह व्यवस्था की कि उसकी कोई भेड़ खोए नहीं। मैंने यह सब कुछ बिना लिये किया। मैंने उसके लिये अच्छा किया। किन्तु मेरे प्रति वह बुरा रहा। 22 परमेश्वर मुझे दण्डित करे यदि मैं नाबाल के परिवार के किसी व्यक्ति को कल सवेरे तक जीवित रहने दूँ।”
23 किन्तु जब अबीगैल ने दाऊद को देखा वह शीघ्रता से अपने गधे पर से उतर पड़ी। वह दाऊद के सामने प्रणाम करने को झुकी। उसने अपना माथा धरती पर टिकाया। 24 अबीगैल दाऊद के चरणों पर पड़ गई। उसने कहा, “मान्यवर, कृपा कर मुझे कुछ कहने दें। जो मैं कहूँ उसे सुनें। जो कुछ हुआ उसके लिये मुझे दोष दें। 25 मैंने उन व्यक्तियों को नहीं देखा जिन्हें आपने भेजा। मान्यवर, उस नालायक आदमी (नाबाल) पर ध्यान न दें। वह ठीक वही है जैसा उसका नाम है। उसके नाम का अर्थ ‘मूर्ख’ है और वह सचमुच मूर्ख ही है। 26 यहोवा ने आपको निरपराध व्यक्तियों को मारने से रोका है। यहोवा शाश्वत है और आप जीवित हैं, इसकी शपथ खाकर मैं आशा करती हूँ कि आपके शत्रु और जो आपको हानि पहुँचाना चाहते हैं, वे नाबाल की स्थिति में होंगे। 27 अब, मैं आपको यह भेंट लाई हूँ। कृपया इन चीज़ों को उन लोगों को दें जो आपका अनुसरण करते हैं। 28 अपराध करने के लिये मुझे क्षमा करें। मैं जानती हूँ कि यहोवा आपके परिवार को शक्तिशाली बनायेगा, आपके परिवार से अनेक राजा होंगे। यहोवा यह करेगा क्योंकि आप उसके लिये युद्ध लड़ते हैं। लोग तब आप में कभी बुराई नहीं पाएंगे जब तक आप जीवित रहेंगे। 29 यदि कोई व्यक्ति आपको मार डालने के लिये आपका पीछा करता है तो यहोवा आपका परमेश्वर आपके जीवन की रक्षा करेगा। किन्तु यहोवा आपके शत्रुओं के जीवन को ऐसे दूर फेंकेगा जैसे गुलेल से पत्थर फेंका जाता है। 30 यहोवा ने आपके लिये बहुत सी अच्छी चीजों को करने का वचन दिया है और यहोवा अपने सभी वचनों को पूरा करेगा। परमेश्वर आपको इस्राएल का शासक बनाएगा। 31 और आप इस जाल में नहीं फँसेंगे। आप बुरा काम करने के अपराधी नहीं होंगे। आप निरपराध लोगों को मारने का अपराध नहीं करेंगे। कृपया मुझे उस समय याद रखें जब यहोवा आपको सफलता प्रदान करे।”
32 दाऊद ने अबीगैल को उत्तर दिया, “इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा की स्तुति करो। परमेश्वर ने तुम्हें मुझसे मिलने भेजा है। 33 तुम्हारे अच्छे निर्णय के लिये परमेश्वर तुम्हें आशीर्वाद दे। तुमने आज मुझे निरपराध लोगों को मारने से बचाया। 34 निश्चय ही, जैसे ईस्राएल का परमेश्वर, यहोवा शाश्वत है, यदि तुम शीघ्रता से मुझसे मिलने न आई होती तो कल सवेरे तक नाबाल के परिवार का कोई भी पुरूष जीवित नहीं बच पाता।”
35 तब दाऊद ने अबीगैल की भेंट को स्वीकार किया। दाऊद ने उससे कहा, “शान्ति से घर जाओ। मैंने तुम्हारी बातें सुनी हैं और मैं वही करूँगा जो तुमने करने को कहा है।”
नाबाल की मृत्यु
36 अबीगैल नाबाल के पास लौटी। नाबाल घर में था। नाबाल एक राजा की तरह खा रहा था। नाबाल ने छक कर दाखमधु पी रखी थी और वह प्रसन्न था। इसलिये अबीगैल ने नाबाल को अगले सवेरे तक कुछ भी नहीं बताया। 37 अगली सुबह नाबाल का नशा उतरा। अतः उसकी पत्नी ने हर बात बता दी और नाबाल को दिल का दौरा पड़ गया। वह चट्टान की तरह कड़ा हो गया। 38 करीब दस दिन बाद यहोवा ने नाबाल को मर जाने दिया।
39 दाऊद ने सुना कि नाबाल मर गया है। दाऊद ने कहा, “यहोवा की स्तुति करो! नाबाल ने मेरे विरुद्ध बुरी बातें कीं, किन्तु यहोवा ने मेरा समर्थन किया। यहोवा ने मुझे पाप करने से बचाया और यहोवा ने नाबाल को मर जाने दिया क्योंकि उसने अपराध किया था।”
तब दाऊद ने अबीगैल को एक सन्देश भेजा। दाऊद ने उसे अपनी पत्नी होने के लिये कहा। 40 दाऊद के सेवक कर्मेल गए और अबीगैल से कहा, “दाऊद ने हम लोगों को तुम्हें लाने के लिये भेजा है। दाऊद चाहता है कि तुम उसकी पत्नी बनो।”
41 अबीगैल ने धरती तक अपना माथा झुकाया। उसने कहा, “मैं आपकी दासी हूँ। मैं आपकी सेवा करने के लिये तैयार हूँ। मैं अपने स्वामी (दाऊद) के सेवकों के पैरों को धोने को तैयार हूँ।”
42 अबीगेल शीघ्रता से गधे पर बैठी और दाऊद के दूतों के साथ चल दी। अबीगैल अपने साथ पाँच दासियाँ ले गई। वह दाऊद की पत्नी बनी। 43 दाऊद ने यिज्रेल की अहिनोअम से भी विवाह किया था। अहिनोअम और अबीगैल दोनों दाऊद की पत्नियाँ थीं। 44 शाऊल की पुत्री मीकल भी दाऊद की पत्नी थी। किन्तु शाऊल ने उसे गल्लीम के निवासी लैश के पुत्र पलती को दे दिया था।
समीक्षा
5. आत्मग्लानि
आत्मग्लानि एक भयानक बोझ है. हमारे अल्फा के छोटे समूह में आए एक मेहमान ने आत्मग्लानि की भौतिक भावना का वर्णन किया कि यह 'अपचन का एक बहुत बुरा मामला है'. लेकिन आत्मग्लानि एक भौतिक एहसास से बढ़ कर है. इसके बहुत ही गंभीर भावनात्मक और आत्मिक परिणाम होते हैं.
परमेश्वर ने हम सभी को एक नैतिक बोध दिया है – एक विवेक. अक्सर, हम आत्मग्लानि महसूस करते हैं क्योंकि हमने ऐसा कुछ किया है जो हम जानते हैं कि यह गलत है. किंतु, हमारा विवेक, गिरी हुई मानवजाति के रूप में, सिद्ध नहीं है. कभी-कभी हम झूठी आत्मग्लानि का अनुभव करते हैं. हम उन चीजों के विषय में आत्मग्लानि महसूस करते हैं जिसमें वास्तव में हमारी गलती नहीं थी. हमें अपने विवेक को परमेश्वर के वचन के द्वारा शिक्षित करने की आवश्यकता है.
दाऊद के पास एक अवसर था कि उस व्यक्ति से छुटकारा पा ले जो उसे मार डालने की कोशिश कर रहा था – शाऊल (24:1-4). उस अवसर का लाभ उठाने के बजाय, दाउद केवल शाऊल के कपड़े के एक छोर को काटते हैं, उन्हें बताने के लिए कि यदि वह चाहते तो वह शाऊल का वध कर सकते थे.
फिर भी, 'दाऊद शाऊल के बाग की छोर काटने से पछताया' (व.5). 'उन्होंने आत्मग्लानि महसूस की' (व.5, एम.एस.जी). स्पष्ट रूप से दाऊद के पास एक बहुत ही संवेदनशील विवेक था और वह आत्मग्लानि के बोझ को महसूस कर रहे थे कि उन्होंने 'परमेश्वर के अभिषिक्त' के साथ ऐसा किया (व.6). फिर भी वह शाऊल से कह पाये, 'इससे निश्चित करके जान ले, कि मेरे मन में कोई बुराई या अपराध की सोच नहीं है. मैं ने तेरे विरूद्ध कोई अपराध नहीं किया' (व.11ब).
कुछ समय के लिए, ऐसा लगता है कि, स्वयं शाऊल आत्मग्लानि महसूस कर रहे थे, 'वह चिल्लाकर रोने लगेः 'तू मुझसे अधिक सत्यनिष्ठ है...तू ने तो मेरे साथ भलाई की है, परंतु मैं ने तेरे साथ बुराई की' (वव.16-17). उनकी ईर्ष्या के बीच में, शाऊल मानसिक संतुलन के समय से गुजरे – जहाँ पर उन्होंने सच्ची आत्मग्लानि को महसूस किया.
दाऊद ने अपने ऊपर आत्मग्लानि के और अधिक बोझ को लेना अस्वीकार कर दिया. वह अपने और अपने मनुष्यों के प्रति नाबाल के बुरे बर्ताव का बदला लेने वाले थे. अबीगैल बचाव के लिए आती है. अनगिनत हुनर और व्यवहार कुशलता के साथ, वह दाऊद के पास उपहारों को लाती है और कहती है, 'यह अपराध मेरे ही सिर पर हो...यहोवा ने तूझे खून करने से रोक रखा है' (25:24,26, ए.एम.पी.).
उसने आगे कहा, '...मेरे प्रभु का हृदय पीड़ित न होगा कि तू ने अकारण खून किया, और मेरे प्रभु ने अपना बदला आप लिया है.' (व.31).
दाऊद ने समझा कि अबीगैल ने उसे आत्मग्लानि के बोझ से बचा लिया हैः 'तेरा विवेक धन्य है, और तू आप भी धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने और अपना बदला आप लेने से रोक लिया है' (व.33). अबीगैल का हूनर, ऐसा है जिसे हम सभी को विकसित करने की आवश्यकता है. जब दूसरों को सलाह दे रहे हैं कि उन्हें किस तरह से बतार्व करना चाहिए, तब बुद्धि और व्यवहार कुशलता के साथ बोलना अच्छा होता है, ताकि वह ऐसी चीजों को करना बंद कर दे जो आत्मग्लानि लाती हैं.
दाउढद ने अपने हाथों से न्याय करना रोक दिया. तब, 'यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा कि वह मर गया' (व.38). जब दाऊद ने सुना कि नाबाल मर चुका है, तब उसने कहा, 'धन्य है यहोवा जिसने नाबाल के साथ मेरी नामधराई का मुकद्दमा लड़कर अपने दास को बुराई से रोके रखा; और यहोवा ने नाबाल की बुराई को उसी के सिर पर लाद दिया है' (व.39). आखिर में, इन सब का एक खुशहाल अंत होता है जब दाऊद नई विधवा बनी अबीगैल से विवाह कर लेते हैं.
चाहे हमारे पास ऐसी भावनाएँ हो जो इसके साथ जाती है या नहीं, सच्ची आत्मग्लानि का बोझ हम सभी के लिए वास्तविक है. हमारी आत्मग्लानि को लेने के लिए यीशु क्रूस पर मर गए.
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
1शमुएल 25:18-19
यह खानपान का प्रबंध करने के बारे में है. अबीगैल और उसका पूरा समुदाय मर जाते यदि वह खानपान को वहाँ पर समय पर नहीं पहुँचाती. मैं प्रसन्न हूँ कि अबीगैल ने दो सौ रोटीयाँ बनाने का जल्दी से प्रबंध किया, दाखरस, अंजीर, भुना हुआ अनाज, केक और पाँच भेड़! उसने पूरा दिन बचा लिया. इसकी तुलना में मेरे द्वारा भोजन का प्रबंध करने की परेशानी बहुत छोटी दिखाई देती है!
दिन का वचन
भजन संहिता – 68:19
"धन्य है प्रभु, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है; वही हमारा उद्धारकर्ता ईश्वर है।"
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संदर्भ
कोरी टेन बूम, क्लिपींग फ्रोम माय नोटबुक, (थॉमस नेल्सन इंक, 1982).
ओलीवर जेम्स, खुशहाली (वरमिलियन, 2007) पी.35
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