दिन 146

परमेश्वर का नाम

बुद्धि भजन संहिता 68:1-6
नए करार यूहन्ना 16:5-17:5
जूना करार 1 शमूएल 17:38-18:30

परिचय

तैंतीस वर्ष की आयु में, बरबरा क्लफम लंदन में रहने के लिए आयी. उन्होंने तय किया कि वह एक चर्च को ढूँढ़ेगी. एक दिन रविवार की सुबह, वह एच.टी.बी में आयी. जवान महिला जो दरवाजे पर खड़ी होकर मुस्कराकर लोगों का स्वागत कर रही थी, वह उन्हें देखकर मुस्कराई और उनका नाम पूछा. उस मुस्कुराहट के कारण, बरबरा आने वाले सप्ताह वापस आयी. जब वह अगले रविवार को आयी, तब उसी व्यक्ति ने कहा, 'हैलो बरबरा.'

क्योंकि दरवाजे पर खड़ी उस व्यक्ति ने उसका नाम याद रखा था, बरबरा ने तय किया कि वह हर रविवार को वहाँ पर आयेंगी. यह 1947 की बात है. तब से लेकर मरने तक बरबरा हर रविवार आती थी, उनके 100वें जन्मदिन का उत्सव मनाने के थोड़े समय बाद उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने एच.टी.बी के जीवन पर एक बड़ा प्रभाव बनाया था (सालो से चर्च की आर्थिक व्यवस्था को चलाया था). मैं आश्चर्य करता हूँ कि क्या दरवाजे पर खड़ी उस महिला को पता था कि बरबरा का नाम याद रखकर वह कितना बड़ा अंतर पैदा कर रही थी.

एक नाम में महान सामर्थ है. नाम महत्वपूर्ण है. यह आज सच है, लेकिन यह इब्रानी संस्कृति में और भी अधिक सच था, जिसके बारे में हमने बाईबल में पढ़ा. एक इब्रानी नाम कोई साधारण लेबल नहीं है. परमेश्वर का नाम प्रकट करता है कि वह कौन है.

बुद्धि

भजन संहिता 68:1-6

संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक स्तुति गीत।

68हे परमेश्वर, उठ, अपने शत्रु को तितर बितर कर।
  उसके सभी शत्रु उसके पास से भाग जायें।
2 जैसे वायु से उड़ाया हुआ धुँआ बिखर जाता है,
  वैसे ही तेरे शत्रु बिखर जायें।
  जैसे अग्नि में मोम पिघल जाती है,
  वैसे ही तेरे शत्रुओं का नाश हो जाये।
3 परमेश्वर के साथ सज्जन सुखी होते हैं, और सज्जन सुखद पल बिताते।
  सज्जन अपने आप आनन्द मनाते और स्वयं अति प्रसन्न रहते हैं।
4 परमेश्वर के गीत गाओ। उसके नाम का गुणगान करों।
  परमेश्वर के निमित राह तैयार करों।
  निज रथ पर सवार होकर, वह मरूभूमि पार करता।
  याह के नाम का गुण गाओ!
5 परमेश्वर अपने पवित्र मन्दिर में,
  पिता के समान अनाथों का और विधवाओं का ध्यान रखता है।
6 जिसका कोई घर नहीं होता, ऐसे अकेले जन को परमेश्वर घर देता है।
  निज भक्तों को परमेश्वर बंधन मुक्त करता है। वे अति प्रसन्न रहते हैं।
  किन्तु जो परमेश्वर के विरूद्ध होते, उनको तपती हुयी धरती पर रहना होगा।

समीक्षा

परमेश्वर के नाम की स्तुति करें

दाऊद चिताते हैं:'परमेश्वर का गीत गाओ, उसके नाम का भजन गाओ; उसका नाम यह है, इसलिये तुम उसके सामने प्रफुल्लित हो' (व.4).

परमेश्वर अपने आपको अपने नाम के द्वारा प्रगट करते हैं. उन्होंने मूसा को अपना नाम बताया ('मैं जो हूँ सो हूँ') जब वह मिस्र में अपने लोगों को दासत्व से छुड़ाने के लिए आए (निर्गमन 3:14). इसी तरह से, इस भजन में हम देखते हैं कि परमेश्वर, जिसका यह नाम है, वह समाज में पिछडे हुओं के प्रति चिंता दिखाते हैं.

परमेश्वर 'उनके पिता हैं जिनका कोई पिता नहीं है' और 'विधवा की रक्षा करने वाले हैं' (भजनसंहिता 68:5). 'परमेश्वर अनाथों का घर बसाते हैं' (व.6अ). 'वह बंदियो को छुड़ाकर सम्पन्न करते हैं' (व.6ब).

परमेश्वर के नाम का सम्मान करने का एक तरीका है पिछड़े हुओं से प्रेम करना और उनकी सेवा करनाः विधवा, अनाथ, अकेले, बेघर और कैदी.

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं आपके पवित्र नाम की स्तुति करता हूँ. होने दीजिए कि मेरे जीवन में आपके नाम की महिमा हो, जैसे ही मैं समाज में पिछड़े हुओं से प्रेम करता हूँ और उनकी सेवा करता हूँ.
नए करार

यूहन्ना 16:5-17:5

5 किन्तु अब मैं उसके पास जा रहा हूँ जिसने मुझे भेजा है और तुममें से मुझ से कोई नहीं पूछेगा, ‘तू कहाँ जा रहा है?’ 6 क्योंकि मैंने तुम्हें ये बातें बता दी हैं, तुम्हारे हृदय शोक से भर गये हैं। 7 किन्तु मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ इसमें तुम्हारा भला है कि मैं जा रहा हूँ। क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो सहायक तुम्हारे पास नहीं आयेगा। किन्तु यदि मैं चला जाता हूँ तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा।

8 “और जब वह आयेगा तो पाप, धार्मिकता और न्याय के विषय में जगत के संदेह दूर करेगा। 9 पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ में विश्वास नहीं रखते, 10 धार्मिकता के विषय में इसलिये कि अब मैं परम पिता के पास जा रहा हूँ। और तुम मुझे अब और अधिक नहीं देखोगे। 11 न्याय के विषय में इसलिये कि इस जगत के शासक को दोषी ठहराया जा चुका है।

12 “मुझे अभी तुमसे बहुत सी बातें कहनी हैं किन्तु तुम अभी उन्हें सह नहीं सकते। 13 किन्तु जब सत्य का आत्मा आयेगा तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य की राह दिखायेगा क्योंकि वह अपनी ओर से कुछ नहीं कहेगा। वह जो कुछ सुनेगा वही बतायेगा। और जो कुछ होने वाला है उसको प्रकट करेगा। 14 वह मेरी महिमा करेगा क्योंकि जो मेरा है उसे लेकर वह तुम्हें बतायेगा। हर वस्तु जो पिता की है, वह मेरी है। 15 इसीलिए मैंने कहा है कि जो कुछ मेरा है वह उसे लेगा और तुम्हें बतायेगा।

शोक आनन्द में बदल जायेगा

16 “कुछ ही समय बाद तुम मुझे और अधिक नहीं देख पाओगे। और थोड़े समय बाद तुम मुझे फिर देखोगे।”

17 तब उसके कुछ शिष्यों ने आपस में कहा, “यह क्या है जो वह हमें बता रहा है, ‘थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देख पाओगे’ और ‘थोड़े समय बाद तुम मुझे फिर देखोगे?’ और ‘मैं परम पिता के पास जा रहा हूँ।’” 18 फिर वे कहने लगे, “यह ‘थोड़ी देर बाद’ क्या है? जिसके बारे में वह बता रहा है। वह क्या कह रहा है हम समझ नहीं रहे हैं।”

19 यीशु समझ गया कि वे उससे प्रश्न करना चाहते हैं। इसलिये उसने उनसे कहा, “क्या तुम मैंने यह जो कहा है, उस पर आपस में सोच-विचार कर रहे हो, ‘कुछ ही समय बाद तुम मुझे और अधिक नही देख पाओगे।’ और ‘फिर थोड़े समय बाद तुम मुझे देखोगे?’ 20 मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, तुम विलाप करोगे और रोओगे किन्तु यह जगत प्रसन्न होगा। तुम्हें शोक होगा किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द में बदल जायेगा।

21 “जब कोई स्त्री जनने लगती है, तब उसे पीड़ा होती है क्योंकि उसकी पीड़ा की घड़ी आ चुकी होती है। किन्तु जब वह बच्चा जन चुकी होती है तो इस आनन्द से कि एक व्यक्ति इस संसार में पैदा हुआ है वह आनन्दित होती है और अपनी पीड़ा को भूल जाती है। 22 सो तुम सब भी इस समय वैसे ही दुःखी हो किन्तु मैं तुमसे फिर मिलूँगा और तुम्हारे हृदय आनन्दित होंगे। और तुम्हारे आनन्द को तुमसे कोई छीन नहीं सकेगा। 23 उस दिन तुम मुझसे कोई प्रश्न नहीं पूछोगे। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ मेरे नाम में परम पिता से तुम जो कुछ भी माँगोगे वह उसे तुम्हें देगा। 24 अब तक मेरे नाम में तुमने कुछ नहीं माँगा है। माँगो, तुम पाओगे। ताकि तुम्हें भरपूर आनन्द हो।

जगत पर विजय

25 “मैंने ये बातें तुम्हें दृष्टान्त देकर बतायी हैं। वह समय आ रहा है जब मैं तुमसे दृष्टान्त दे-देकर और अधिक समय बात नहीं करूँगा। बल्कि परम पिता के विषय में खोल कर तुम्हें बताऊँगा। 26 उस दिन तुम मेरे नाम में माँगोगे और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि तुम्हारी ओर से मैं परम पिता से प्रार्थना करूँगा। 27 परम पिता स्वयं तुम्हें प्यार करता है क्योंकि तुमने मुझे प्यार किया है। और यह माना है कि मैं परम पिता से आया हूँ। 28 मैं परम पिता से प्रकट हुआ और इस जगत में आया। और अब मैं इस जगत को छोड़कर परम पिता के पास जा रहा हूँ।”

29 उसके शिष्यों ने कहा, “देख अब तू बिना किसी दृष्टान्त को खोल कर बता रहा है। 30 अब हम समझ गये हैं कि तू सब कुछ जानता है। अब तुझे अपेक्षा नहीं है कि कोई तुझसे प्रश्न पूछे। इससे हमें यह विश्वास होता है कि तू परमेश्वर से प्रकट हुआ है।”

31 यीशु ने इस पर उनसे कहा, “क्या तुम्हें अब विश्वास हुआ है? 32 सुनो, समय आ रहा है, बल्कि आ ही गया है जब तुम सब तितर-बितर हो जाओगे और तुम में से हर कोई अपने-अपने घर लौट जायेगा और मुझे अकेला छोड़ देगा किन्तु मैं अकेला नहीं हूँ क्योंकि मेरा परम पिता मेरे साथ है।

33 “मैंने ये बातें तुमसे इसलिये कहीं कि मेरे द्वारा तुम्हें शांति मिले। जगत में तुम्हें यातना मिली है किन्तु साहस रखो, मैंने जगत को जीत लिया है।”

अपने शिष्यों के लिए यीशु की प्रार्थना

17ये बातें कहकर यीशु ने आकाश की ओर देखा और बोला, “हे परम पिता, वह घड़ी आ पहुँची है अपने पुत्र को महिमा प्रदान कर ताकि तेरा पुत्र तेरी महिमा कर सके। 2 तूने उसे समूची मनुष्य जाति पर अधिकार दिया है कि वह, हर उसको, जिसको तूने उसे दिया है, अनन्त जीवन दे। 3 अनन्त जीवन यह है कि वे तुझे एकमात्र सच्चे परमेश्वर और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें। 4 जो काम तूने मुझे सौंपे थे, उन्हें पूरा करके जगत में मैंने तुझे महिमावान किया है। 5 इसलिये अब तू अपने साथ मुझे भी महिमावान कर। हे परम पिता! वही महिमा मुझे दे जो जगत से पहले, तेरे साथ मुझे प्राप्त थी।

समीक्षा

यीशु के नाम में सामर्थ

क्या आप जानते हैं कि यीशु के नाम में कितनी सामर्थ है? जैसे ही यीशु अपने चेलो को छोड़कर जा रहे थे, वह उनसे कहते हैं, ' उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे. मैं तुम से सच सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम में तुम्हें देगा. अब तक तुम ने मेरे नाम में कुछ नहीं माँगा; माँगो, तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए... उस दिन तुम मेरे नाम में माँगोगे' (16:23ब – 26 अ).

जब हम प्रार्थना में परमेश्वर के पास जाते हैं तब हम अपने नाम में नहीं मांगते हैं, लेकिन यीशु के नाम में मॉंगते हैं. हमारे अपने नाम में हमारे पास कुछ भी माँगने का अधिकार नहीं है. लेकिन यीशु ने क्रूस और पुनरुत्थान के द्वारा यह संभव किया कि आप उनके नाम में परमेश्वर के पास जा सकें.

यीशु के नाम में प्रार्थना करना यानि, अपने आपको यीशु के साथ मेल में लाना. जैसे ही आप इसे करते हैं, वैसे ही आपकी प्रार्थनाएँ आपके जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छाओं के साथ मेल में आ जाती हैं और आप प्रार्थना कर सकते हैं कि परमेश्वर की इच्छा पूरी हो. आप अपने आपसे यह नहीं कर सकते हैं. आपको पवित्र आत्मा की आवश्यकता है.

यीशु चेलों को बताते हैं कि उनके जाने से चेलों को लाभ होगा क्योंकि, 'क्योंकि जब तक मैं नहीं जाऊँगा, तब तक सलाहकार ('मित्र' एम.एस.जी) नहीं आएगा; लेकिन यदि मैं जाऊँगा, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूंगा' (व.7). यीशु एक समय में एक ही स्थान पर हो सकते थे. अब, उनकी आत्मा के द्वारा, वह आपके और मेरे साथ हो सकते हैं, हर समय हमारे मित्र और सहायक के रूप में, जहाँ कही हम जाते हैं.

पवित्र आत्मा विश्व को आत्मग्लानि के विषय में एहसास दिलायेंगे (मुख्यरूप से क्योंकि 'लोग यीशु में विश्वास नहीं करते हैं' व.9), और वह 'सारी सच्चाई में (हमारा) मार्गदर्शन करेंगे' (व.13अ). हर बार जब हम मार्ग भटकते व.9),हैं w या गलत दिशा में चले जाते हैं, तब पवित्र आत्मा हमें बताते हैं. हम अपनी आत्मा में जान लेते हैं कि जो हम कर रहे हैं वह सही नहीं है.

पवित्र आत्मा कभी हम पर दोष नहीं लगाते हैं (रोमियो 8:1). वह हमें बताते हैं कि पश्चाताप करो और फिर सही दिशा में जाओ. और अधिक यीशु की तरह बनने के लिए वह आपको मार्गदर्शित करते हैं, बनाए रखते हैं और मजबूत करते हैं.

सारी सच्चाई में वह आपको मार्गदर्शित करते हैं. सच्चाई की आत्मा के द्वारा सत्य प्रकट है (यूहन्ना 16:13अ). दूसरी वस्तुओं के बीच में, वह आपके विषय में सच्चाई को प्रकट करते हैं. सच्चाई आपको स्वतंत्र करती है.

यीशु आपसे तीन वस्तुओं का वायदा करते हैं:

  1. आनंद- शोक और दुख के बीच में

' मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा; तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द में बदल जाएगा' (व.20). न्याय प्रबल होगा. बुराई अंतिम निर्णायक नहीं होगी. जब यीशु मृत्यु में से जी उठे, तब चेले आनंद से इतने भर गए थे कि उनका शोक पूरी तरह से गायब हो गया एक माँ की तरह जिसने बच्चे को जन्म दे दिया है और वह जन्म देने के दुख के समय को याद नहीं करती (वव.21-22).

  1. प्रेम – नफरत के बीच में

आपसे प्रेम किया गया है. यहाँ तक कि जब 'विश्व आपसे नफरत करता है' (15:18), यीशु आपसे कहते हैं कि ' पिता तो आप ही तुम से प्रेम रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रेम रखा है और यह भी विश्वास किया है कि मैं पिता की ओर से आया' (16:27). सत्य का आत्मा आपके लिए पिता के पूर्ण प्रेम को प्रकट करेंगे.

  1. शांती – परेशानी के बीच में

यीशु ने कभी भी आपसे परेशानी से मुक्त जीवन का वायदा नहीं किया. वह कहते हैं कि विश्व में तुम्हें 'क्लेश, दुख और उदासी और निराशा' मिलती है (व.33, ए.एम.पी.). लेकिन वह 'इन परीक्षाओं के बीच में आपसे सिद्ध शांती और निर्भीकता का वायदा करते हैं, क्योंकि उन्होंने 'विश्व पर जय पायी है' (ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है)' (व.33, ए.एम.पी.).

सबसे महत्वपूर्ण उपहार जिसे आपने पवित्र आत्मा से ग्रहण किया है, वह है परमेश्वर के साथ एक संबंध. इस प्रार्थना में यीशु इसके बारे में बताते हैं सच्चे हृदय और 'अनंत जीवन' की परिभाषा के रूप में - ' और अनन्त जीवन यह है कि वे एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें' (17:3).

अनंत जीवन के विषय में यह अद्भुत वर्णन यीशु की प्रार्थनाओं से घिरा हुआ है कि परमेश्वर के नाम की महिमा हो. जो कुछ यीशु ने किया जब वह पृथ्वी पर थे, और यीशु के द्वारा पिता के साथ हमारा संबंध, यह सभी परमेश्वर के नाम की महिमा के लिए है.

प्रार्थना

परमेश्वर, यीशु के नाम में प्रार्थना कर पाने की अनंत सुविधा के लिए मैं कभी भी आपको पर्याप्त धन्यवाद नहीं दे पाऊँगा. आज मैं प्रार्थना करता हूँ...आपके नाम में.
जूना करार

1 शमूएल 17:38-18:30

38 शाऊल ने अपने वस्त्र दाऊद को पहनाये। शाऊल ने एक काँसे का टोप दाऊद के सिर पर रखा और उसके शरीर पर कवच पहनाया। 39 दाऊद ने तलवार ली और चारों ओर चलने का प्रयत्न किया। इस प्रकार दाऊद ने शाऊल की वर्दी को पहनने का प्रयत्न किया। किन्तु दाऊद को उन भारी चीज़ों को पहनने का अभ्यास नहीं था। दाऊद ने शाऊल से कहा, “मैं इन चीज़ों के साथ नहीं लड़ सकता। मेरा अभ्यास इनके लिये नहीं है।”

इसलिये दाऊद ने उन सब को उतार दिया। 40 दाऊद ने अपनी छड़ी अपने हाथों में ली। घाटी से दाऊद ने पाँच चिकने पत्थर चुने। उसने पाँचों पत्थरों को अपने गड़रिये वाले थैले में रखा। उसने अपना गोफन (गुलेल) अपने हाथों में लिया और वह पलिश्ती (गोलियत) से मिलने चल पड़ा।

दाऊद, गोलियत को मार डालाता है

41 पलिश्ती (गोलियत) धीरे—धीरे दाऊद के समीप और समीपतर होता गया। गोलियत का सहायक उसकी ढाल लेकर उसके आगे चल रहा था। 42 गोलियत ने दाऊद को देखा और हँसा। गोलियत ने देखा कि दाऊद सैनिक नहीं है। वह तो केवल सुनहरे बालों वाला युवक है। 43 गोलियत ने दाऊद से कहा, “यह छड़ी किस लिये है? क्या तुम कुत्ते की तरह मेरा पीछा करके मुझे भगाने आये हो?” तब गोलियत ने अपने देवताओं का नाम लेकर दाऊद के विरुद्ध अपशब्द कहे। 44 गोलियत ने दाऊद से कहा, “यहाँ आओ, मैं तुम्हरे शरीर को पक्षियों और पशूओं को खिला दूँगा!”

45 दाऊद ने पलिश्ती (गोलियत) से कहा, “तुम मेरे पास तलवार, बर्छा और भाला चलाने आये हो। किन्तु मैं तुम्हारे पास इस्राएल की सेना के परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा के नाम पर आया हूँ। तुमने उसके विरुद्ध बुरी बातें कहीं हैं। 46 आज यहोवा तुमको मेरे द्वारा पराजित कराएगा। मैं तुमको मार डालूँगा। आज मैं तुम्हारा सिर काट डालूँगा और तुम्हारे शरीर को पक्षियों और जंगली जानवरों को खिला दूँगा। हम लोग अन्य पलिश्तियों के साथ भी यही करेंगे। तब सारा संसार जानेगा कि इस्राएल में परमेश्वर है! 47 यहाँ इकट्ठे सभी लोग जानेंगे कि लोगों की रक्षा के लिये यहोवा को तलवार और भाले की आवश्यकता नहीं। युद्ध यहोवा का है और यहोवा तुम सभी पलिश्तियों को हराने में हमारी सहायता करेगा।”

48 पलिश्ती (गोलियत) दाऊद पर आक्रमण करने उसके पास आया। दाऊद गोलियत से भिड़ने के लिये तेजी से दौड़ा 49 दाऊद ने एक पत्थर अपने थैले से निकाला। उसने उसे अपने गोफन (गुलेल) पर चढ़ाया और उसे चला दिया। पत्थर गुलेल से उड़ा और उसने गोलियत के माथे पर चोट की। पत्थर उसके सिर में गहरा घुस गया और गोलियत मुँह के बल गिर पड़ा।

50 इस प्रकार दाऊद ने एक गोफन और एक पत्थर से पलिश्ती को हरा दिया। उसने पलिश्ती पर चोट की और उसे मार डाला। दाऊद के पास कोई तलवार नहीं थी। 51 इसलिए दाऊद दौड़ा और पलिश्ती की बगल में खड़ा हो गया। दाऊद ने गोलियत की तलवार उसकी म्यान से निकाली और उससे गोलियत का सिर काट डाला और इस तरह दाऊद ने पलिश्ती को मार डाला।

जब अन्य पलिश्तियों ने देखा कि उनका वीर मारा गया तो वे मुड़े और भाग गए। 52 इस्राएल और यहूदा के सैनिकों ने जयघोष किया और पलिश्तियों का पीछा करने लगे। इस्राएलियों ने लगातार गत की सीमा और एक्रोन के द्वार तक पलिश्तियों का पीछा किया। उन्होंने अनेकों पलिश्ती मार गिराए। उनके शव शारैंम सड़क पर गत और एक्रोन तक लगातार बिछ गए। 53 पलिश्तियों का पीछा करने के बाद इस्राएली पलिश्तियों के डेरे में लौटे। इस्राएली उस डेरे से बहुत सी चीज़ें ले गये।

54 दाऊद पलिश्ती का सिर यरूशलेम ले गया। दाऊद ने पलिश्तियों के शस्त्रों को अपने पास अपने डेरे में रखा।

शाऊल दाऊद से डरने लगता है।

55 शाऊल ने दाऊद को गोलियत से लड़ने के लिये जाते देखा था। शाऊल ने सेनापति अब्नेर से बातें कीं, “अब्नेर, उस युवक का पिता कौन है?”

अब्नेर ने उत्तर दिया, “महाराज, मैं शपथ खाकर कहता हूँ—मैं नहीं जानता।”

56 राजा शाऊल ने कहा, “पता लगाओ कि उस युवक का पिता कौन है?”

57 जब दाऊद गोलियत को मारने के बाद लौटा तो अब्नेर उसे शाऊल के पास लाया। दाऊद तब भी पलिश्ती का सिर हाथ में पकड़े हुआ था।

58 शाऊल ने पुछा, “युवक तुम्हारा पिता कौन है?”

दाऊद ने उत्तर दिया, “मैं आपके सेवक बेतलेहेम के यिशै का पुत्र हूँ।”

दाऊद और योनातान की घनिष्ट मित्रता

18दाऊद ने जब शाऊल से बात पूरी कर ली तब योनातान दाऊद का बहुत अभिन्न मित्र बन गया। योनातान दाऊद से उतना ही प्रेम करने लगा जितना अपने से। 2 शाऊल ने उस दिन के बाद से दाऊद को अपने पास रखा। शाऊल ने दाऊद को उसके घर पिता के पास नहीं जाने दिया। 3 योनातान दाऊद से बहुत प्रेम करता था। योनातान ने दाऊद से एक सन्धि की। 4 योनातान ने जो अंगरखा पहना हुआ था उसे उतारा और दाऊद को दे दिया। योनातान ने अपनी सारी वर्दी भी दाऊद को दे दी। योनातान ने अपना धनुष, अपनी तलवार और अपनी पेटी भी दाऊद को दी।

शाऊल का दाऊद की सफलता पर ध्यान देना

5 शाऊल ने दाऊद को विभिन्न युद्धों में लड़ने भेजा। दाऊद बहुत सफल रहा। तब शाऊल ने उसे सैनिकों के ऊपर रख दिया। इससे सभी प्रसन्न हुये, यहाँ तक कि शाऊल के सभी अधिकारी भी इससे प्रसन्न हुए। 6 दाऊद पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ने जाया करता था। युद्ध के बाद वह घर लौटता था। इस्राएल के सभी नगरों में स्त्रियाँ दाऊद के स्वागत में उससे मिलने आती थीं। वे हँसती नाचतीं और ढोलक एवं सितार बजाती थीं। वे शाऊल के सामने ही ऐसा किया करती थीं! 7 स्त्रियाँ गाती थीं,

“शाऊल ने हजारों शत्रओं को मारा।
दाऊद ने दसियों हजार शत्रुओं को मारा!”

8 स्त्रियों के इस गीत ने शाऊल को खिन्न कर दिया, वह बहुत क्रोधित हो गया। शाऊल ने सोचा, “स्त्रियाँ कहती हैं कि दाऊद ने दासियों हजार शत्रु मारे हैं और वे कहती हैं कि मैंने केवल हजार शत्रु ही मारे।” 9 इसलिये उस समय से आगे शाऊल दाऊद पर निगाह रखने लगा।

शाऊल दाऊद से भयभीत हुआ

10 अगले दिन, परमेश्वर के द्वारा भेजी एक दुष्टात्मा शाऊल पर बलपूर्वक हावी हो गई। शाऊल अपने घर में वहशी हो गया। दाऊद ने पहले की तरह वीणा बजाई। 11 किन्तु शाऊल के हाथ में भाला था। शाऊल ने सोचा, “मैं दाऊद को दीवार में टाँक दूँगा।” शाऊल ने दो बार भाला चलाया, किन्तु दाऊद बच गया।

12 यहोवा दाऊद के साथ था और यहोवा ने शाऊल को त्याग दिया था। इसलिए शाऊल दाऊद से भयभीत था। 13 शाऊल ने दाऊद को अपने से दूर भेज दिया। शाऊल ने दाऊद को एक हजार सैनिकों का सेनापति बना दिया। दाऊद ने युद्ध में सैनिकों का नेतृत्व किया। 14 यहोवा दाऊद के साथ था। अत: दाऊद सर्वत्र सफल रहता था। 15 शाऊल ने देखा कि दाऊद को बहुत अधिक सफलता मिल रही है तो शाऊल दाऊद से और भी अधिक भयभीत रहने लगा। 16 किन्तु इस्राएल और यहूदा के सभी लोग दाऊद से प्रेम करते थे। वे उससे प्रेम इसलिये करते थे क्योंकि वह युद्ध में उनका संचालन करता था और उनके लिये लड़ता था।

शाऊल की अपनी बेटी से दाऊद के विवाह की योजना

17 शाऊल दाऊद को मार डालना चाहता था। शाऊल ने दाऊद को धोखा देने का एक उपाय सोचा। शाऊल ने दाऊद से कहा, “यह मेरी सबसे बड़ी पुत्री मेरब है। मैं तुम्हें इससे विवाह करने दूँगा। तब तुम शक्तिशाली योद्धा हो जाओगे। तुम हमारे पुत्र के समान होओगे। तब तुम जाना और यहोवा के युद्धों को लड़ना।” यह एक चाल थी। शाऊल सचमुच अब यह सोच रहा थ, “इस प्रकार दाऊद को मुझे मारना नहीं पड़ेगा। मैं पलिश्तियों से उसे अपने लिए मरवा दूँगा!”

18 किन्तु दाऊद ने कहा, “मैं किसी महत्वपूर्ण परिवार से नहीं हूँ और मेरी हस्ती ही क्या है? मैं एक राजा की पुत्री के साथ विवाह नहीं कर सकता हूँ!”

19 फिर जब शाऊल की पुत्री मेरब का दाऊद के साथ विवाह का समय आया तब शाऊल ने महोलाई अद्रीएल से उसका विवाह कर दिया।

20 शाऊल की दूसरी पुत्री मीकल दाऊद से प्रेम करती थी। लोगों ने शाऊल से कहा कि मीकल दाऊद से प्रेम करती है। इससे शाऊल को प्रसन्नता हुई। 21 शाऊल ने सोचा, “मैं मीकल का उपयोग दाऊद को फँसाने के लिये करूँगा। मैं मीकल को दाऊद से विवाह करने दूँगा और तब मैं पलिश्तियों को इसे मार डालने दूँगा।” अत: शाऊल ने दाऊद से दूसरी बार कहा, “आज तुम मेरी पुत्री से विवाह कर सकते हो।”

22 शाऊल ने अपने अधिकारियों को आदेश दिया। उसने उनसे कहा, “दाऊद से अकेले में बातें करो। कहो, ‘देखो, राजा तुमको पसन्द करता है। उसके अधिकारी तुमको पसन्द करते हैं। तुम्हें उसकी पुत्री से विवाह कर लेना चाहिये।’”

23 शाऊल के अधिकारियों ने वे बाते दाऊद से कहीं। किन्तु दाऊद ने उत्तर दिया, “क्या तुम लोग समझते हो कि राजा का दामाद बनना सरल है? मेरे पास इतना धन नहीं कि राजा की पुत्री के लिये दे सकूँ। मैं तो एक साधारण गरीब व्यक्ति हूँ।”

24 शाऊल के अधिकारियों ने शाऊल को वह सब बताया जो दाऊद ने कहा था। 25 शाऊल ने उनसे कहा, “दाऊद से यह कहो, ‘दाऊद, राजा यह नहीं चाहता कि तुम उसकी पुत्री के लिये धन दो! शाऊल अपने शत्रुओं से बदला लेना चाहता है। इसलिए विवाह करने के लिये कीमत के रूप में केवल सौ पलिश्तियों की खलडियाँ हैं।’” यह शाऊल की गुप्त योजना थी। शाऊल ने सोचा कि पलिश्ती इस प्रकार दाऊद को मार डालेंगे।

26 शाऊल के अधिकारियों ने दाऊद से ये बातें कहीं। दाऊद राजा का दामाद बनना चाहता था, इसलिए उसने तुरन्त ही कुछ कर दिखाया। 27 दाऊद और उसके व्यक्ति पलिश्तियों से लड़ने गये। उन्होंने दो सौ पलिश्ती मार डाले। दाऊद ने उनके खलड़ियों को लिया और शाऊल को दे दिये। दाऊद ने यह इसलिए किया क्योंकि वह राजा का दामाद बनना चाहता था।

शाऊल ने दाऊद को अपनी पुत्री मीकल से विवाह करने दिया। 28 शाऊल ने देखा कि यहोवा दाऊद के साथ था। किन्तु शाऊल ने यह भी ध्यान में रखा कि उसकी पुत्री मीकल दाऊद को प्यार करती है। 29 इसलिये शऊल दाऊद से और भी अधिक भयभीत हुआ। शाऊल उस पूरे समय दाऊद के विरुद्ध रहा।

30 इस्राएलियों के विरूद्ध लड़ने के लिये पलिश्ती सेनापति बाहर निकलते रहे। किन्तु हर बार दाऊद ने उनको हराया। दाऊद शाऊल के सभी अधिकारियों में सबसे अधिक सफल था सो दाऊद प्रसिद्ध हो गया।

समीक्षा

परमेश्वर के नाम में सुरक्षा

दाऊद ने समझा कि सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा शाऊल का हथियार नहीं था लेकिन परमेश्वर का नाम था (17:45).

पहले, दाऊद ने शाऊल के हथियार में गोलियात का सामना करने की कोशिश की. तब उसने जाना, 'मैं इन्हें पहनकर नही जा सकता हूँ...क्योंकि मुझे इन चीजों की आदत नहीं है' (व.39). इसलिए उन्होंने हथियार को हटा दिया. उन्होंने जैसे वह हैं वैसे ही बनने का निर्णय लिया. यह जीवन में एक सीख है. किसी दूसरे के हथियार को पहनना अच्छी बात नहीं है. जब हम कोई दूसरा व्यक्ति बनने की कोशिश करते हैं या अपने आपको ऐसा प्रस्तुत करते हैं, तो यह हमेशा नकली और अस्वाभाविक दिखाई देता है.

प्रमाणिकता में महान सामर्थ है. ऑस्कर विल्डे ने कहा, 'स्वयं बने; बाकी दूसरे पहले से ही हैं!' जब आप स्वयं बनते हैं जब आप सबसे प्रभावी होते हैं. जैसा कि सियाना की कैथरीन बताती हैः 'वह बनो जो परमेश्वर ने आपको बनाया है और आप विश्व को आग लगा दोगे.'

दाऊद को परमेश्वर के नाम और इसके प्रमाणिकता की चिंता थी. उन्होंने गोलियात से कहा, 'तू तो तलवार और भाला और सांग लिये हुए मेरे पास आता है; परंतु मैं सेनाओं के यहोवा के नाम में तेरे पास आता हूँ' (व.45). उन्होंने मानवीय प्रयासों की सीमाओं को समझा (व.47). उसे अपने परमेश्वर में विश्वास था जिनका केवल नाम ही काफी है सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को भूमि पर गिरा देने के लिए (व.46). अनगिनत विरोध के सामने वह परमेश्वर के नाम पर भरोसा करने के लिए तैयार थे.

शायद से आप बड़े विरोध का सामना कर रहे हो. जिस विश्व में आप जीते हैं वह बहुत ताकतवर और पराजित करने वाला दिखाई दे सकता है. शायद से आप कमजोर और लाचार महसूस करें. परमेश्वर के नाम में बाहर जाईये –अपनी सीमाओं को पहचानते हुए पर फिर भी उनके नाम की प्रमाणिकता के लिए उन पर भरोसा करिए. क्योंकि परमेश्वर दाऊद के साथ थे इसलिए जो कुछ वह करते थे वह सफल होता था (18:5,12,14).

दाऊद की सफलता ने शाऊल के क्रोध और ईर्ष्या को उकसाया (वव.8-9). जैसा कि जॉयस मेयर बताती है, 'परमेश्वर हमेशा हमें किसी ऐसे व्यक्ति के आस-पास रखते हैं जो रेगमाल (पॉलिश पेपर) की तरह है ताकि हमारे खुरदरे किनारों को चिकना कर सकें - यानि एक जाँच जो हमारी उन्नती से पहले आती है. यदि आप अगुवाई करना चाहते हैं तो आपको अवश्य ही ऐसी परिस्थितियों में सेवा करनी पड़ेगी जो शायद से आदर्शपूर्ण नहीं हैं और इस प्रकार बुद्धिपूर्वक बर्ताव करना सीखना है. यह हमे तैयार करता है कि परमेश्वर महान रूप से हमारा इस्तेमाल करें.'

परमेश्वर ने दाऊद को और अधिक सफलता दी. दिलचस्प रूप से, परमेश्वर के नाम के लिए उनकी चिंता के कारण, दाऊद का 'नाम प्रसिद्ध हो गया' (व.30). लेकिन यह उनका लक्ष्य या अभिप्राय नहीं था, या उनके जीवन का केंद्र नहीं था.

प्रार्थना

परमेश्वर, होने दीजिए कि इस देश में चर्च फिर से लोगों से भर जाएं, यीशु की आराधना करते हुए. मैं प्रार्थना करता हूँ कि जो कुछ हम करते हैं उसे इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि यीशु का नाम ऊपर उठाया जाता है और हमारे समाज में फिर से सम्मान पाता है.

पिप्पा भी कहते है

1शमुएल 18:1

मित्रता अद्भुत है. दाऊद और योनातन 'आत्मा में एक बन गए' – सच्चे मित्र. गहरी मित्रता के विषय में कुछ बहुत ही संतुष्ट करता है. यह बहुत अंतर पैदा करता है जब कठिन समयों में आपके साथ खड़े रहने के लिए आपके प्रिय मित्रो का समर्थन होता है. और अच्छे समय में आपके साथ हँसने के लिए.

मित्रता ऐसी चीज है जो आपके साथ सर्वदा बनी रहेगी. स्वर्ग में समय की कोई सीमा नहीं होगी और कोई ईर्ष्या नहीं होगी जिसका सामना दाऊद को करना पड़ा था.

दिन का वचन

यूहन्ना – 16:27

"क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया।"

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संदर्भ

जॉयस मेयर, एव्रीडे लाईफ बाईबल (फेथवर्ड्स, 2013) पी.451

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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