आप चूक नहीं सकते हैं
परिचय
गोलियात एक दानव था. वह नौ फिट लंबा, एक चैम्पियन था, भारी हथियार पहने हुए था, खड़े होकर चिल्ला रहा था, और परमेश्वर के लोगों की निंदा कर रहा था (1शमुएल 17:1-11). भौतिक दानवों की तरह ही, रुपक प्रकार के भी हैं. एक 'दानव' एक बड़ा, हराई ना जा सकने वाली परेशानी या मामला है.
'व्यक्तिगत दानव' में दानव व्यक्तिगत चुनौतीयां हो सकती हैं, आपके स्वास्थ में, विवाह में, परिवार में, संबंधो में या संबंधो की कमी में, काम पर या काम की कमी में, काम की दूसरी परेशानियाँ, या कोई पाप, प्रलोभन, व्यसन, डर, अकेलापन, निराशा या कर्ज में.
यूके में 'राष्ट्रीय दानव' में शामिल है चाकू से किया जाने वाला अपराध, बेघर होना, शादी का टूटना, परिवार और समुदाय का टूटना, अपराधियों का बढ़ना, स्कूल और चर्च की कमी. इसलिए देश में सुसमाचार प्रचार करने, चर्च को पुन: स्थापित करने और हमारे समाज को बदलने का बड़ा कार्य है.
'वैश्विक दानव' में शामिल हैं प्रचंड गरीबी (जिसके परिणामस्वरूप 30000 बच्चे प्रतिदिन मरते हैं), नाइलाज रोग (लोखों लोग इन रोगों से मरते हैं जिसका कोई ईलाज नहीं है), यूनिवर्सल प्राथमिक शिक्षा की आवश्यकता (लगगभ एक बिलियन लोग पढ़ नहीं सकते हैं) और विश्व भर में पानी में सफाई की आवश्यकता (जो उस पैसे से हो सकती है जो यूरोपी लोग हर साल आईस्क्रीम पर खर्च करते हैं).
जब हम एक दानव का सामना करते हैं तब दो संभव व्यवहार हो सकते हैं. एक है कहना, 'यह बहुत बड़ा है, मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ.' दूसरा है कहना, 'यह बहुत बड़ा है, मैं चूक नहीं सकता!'
भजन संहिता 67:1-7
तार वाद्यों के संगीत निर्देशक के लिए एक स्तुति गीत।
67हे परमेश्वर, मुझ पर करूणा कर, और मुझे आशीष दे।
कृपा कर के, हमको स्वीकार कर।
2 हे परमेश्वर, धरती पर हर व्यक्ति तेरे विषय में जाने।
हर राष्ट्र यह जान जाये कि लोगों की तू कैसे रक्षा करता है।
3 हे परमेश्वर, लोग तेरे गुण गायें!
सभी लोग तेरी प्रशंसा करें।
4 सभी राष्ट्र आनन्द मनावें और आनन्दिन हो!
क्योंकि तू लोगों का न्याय निष्पक्ष करता।
और हर राष्ट्र पर तेरा शासन है।
5 हे परमेश्वर, लोग तेरे गुण गायें!
सभी लोग तेरी प्रशंसा करें।
6 हे परमेश्वर, हे हमारे परमेश्वर, हमको आशीष दे।
हमारी धरती हमको भरपूर फसल दें।
7 हे परमेश्वर, हमको आशीष दे।
पृथ्वी के सभी लोग परमेश्वर से डरे, उसका आदर करे।
समीक्षा
वैश्विक सोचिये
परमेश्वर संपूर्ण विश्व से प्रेम रखते हैं. वह चाहते हैं कि सारे देश और लोग उन्हें जाने और उनकी आराधना करें और उनसे प्रेम करें.
भजनसंहिता के लेखक ने प्रार्थना की कि परमेश्वर अपने लोगों को आशीष दें ताकि, 'जिससे तेरी गति पृथ्वी पर, और तेरा किया हुआ उद्धार सारी जातियों में जाना जाए' (व.2).
इस भजन में हम देखते हैं कि परमेश्वर के लोगों के लिए ग्लोबल दर्शन उनकी खुद की सीमा के परे है और पुराने नियम में इसे दर्शाया गया है.
भजनसंहिता के लेखक संपूर्ण विश्व के लिए प्रार्थना करते हैं (वव.3-5). यदि हमें ग्लोबल दानवों से निपटना है, तो हमें एक ग्लोबल दर्शन रखने की आवश्यकता है. इस भजन के वचन परमेश्वर के विषय में हैं. आपके दर्शन का आकार, परमेश्वर के प्रति आपके दर्शन के आकार पर निर्भर होगा. जैसा कि ए.डब्ल्यू, टोजर इसे बताते हैं, 'जब हम परमेश्वर के बारे में सोचते हैं तब हमारे दिमाग में क्या आता है, वही हमारे विषय में सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है.'
प्रार्थना
यूहन्ना 15:1-16:4
यीशु-सच्ची दाखलता
15यीशु ने कहा, “सच्ची दाखलता मैं हूँ। और मेरा परम पिता देख-रेख करने वाला माली है। 2 मेरी हर उस शाखा को जिस पर फल नहीं लगता, वह काट देता है। और हर उस शाखा को जो फलती है, वह छाँटता है ताकि उस पर और अधिक फल लगें। 3 तुम लोग तो जो उपदेश मैंने तुम्हें दिया है, उसके कारण पहले ही शुद्ध हो। 4 तुम मुझमें रहो और मैं तुममें रहूँगा। वैसे ही जैसे कोई शाखा जब तक दाखलता में बनी नहीं रहती, तब तक अपने आप फल नहीं सकती वैसे ही तुम भी तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक मुझमें नहीं रहते।
5 “वह दाखलता मैं हूँ और तुम उसकी शाखाएँ हो। जो मुझमें रहता है, और मैं जिसमें रहता हूँ वह बहुत फलता है क्योंकि मेरे बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते। 6 यदि कोई मुझमें नहीं रहता तो वह टूटी शाखा की तरह फेंक दिया जाता है और सूख जाता है। फिर उन्हें बटोर कर आग में झोंक दिया जाता है और उन्हें जला दिया जाता है। 7 यदि तुम मुझमें रहो, और मेरे उपदेश तुम में रहें, तो जो कुछ तुम चाहते हो माँगो, वह तुम्हें मिलेगा। 8 इससे मेरे परम पिता की महिमा होती है कि तुम बहुत सफल होवो और मेरे अनुयायी रहो।
9 “जैसे परम पिता ने मुझे प्रेम किया है, मैंने भी तुम्हें वैसे ही प्रेम किया है। मेरे प्रेम में बने रहो। 10 यदि तुम मेरे आदेशों का पालन करोगे तो तुम मेरे प्रेम में बने रहोगे। वैसे ही जैसे मैं अपने परम पिता के आदेशों को पालते हुए उसके प्रेम में बना रहता हूँ। 11 मैंने ये बातें तुमसे इसलिये कहीं हैं कि मेरा आनन्द तुम में रहे और तुम्हारा आनन्द परिपूर्ण हो जाये। यह मेरा आदेश है 12 कि तुम आपस में प्रेम करो, वैसे ही जैसे मैंने तुम से प्रेम किया है। 13 बड़े से बड़ा प्रेम जिसे कोई व्यक्ति कर सकता है, वह है अपने मित्रों के लिए प्राण न्योछावर कर देना। 14 जो आदेश तुम्हें मैं देता हूँ, यदि तुम उन पर चलते रहो तो तुम मेरे मित्र हो। 15 अब से मैं तुम्हें दास नहीं कहूँगा क्योंकि कोई दास नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या कर रहा है बल्कि मैं तुम्हें मित्र कहता हूँ। क्योंकि मैंने तुम्हें वह हर बात बता दी है, जो मैंने अपने परम पिता से सुनी है।
16 “तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें चुना है और नियत किया है कि तुम जाओ और सफल बनो। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी सफलता बनी रहे ताकि मेरे नाम में जो कुछ तुम चाहो, परम पिता तुम्हें दे। 17 मैं तुम्हें यह आदेश दे रहा हूँ कि तुम एक दूसरे से प्रेम करो।
यीशु की चेतावनी
18 “यदि संसार तुमसे बैर करता है तो याद रखो वह तुमसे पहले मुझसे बैर करता है। 19 यदि तुम जगत के होते तो जगत तुम्हें अपनों की तरह प्यार करता पर तुम जगत के नहीं हो मैंने तुम्हें जगत में से चुन लिया है और इसीलिए जगत तुमसे बैर करता है।
20 “मेरा वचन याद रखो एक दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं है। इसीलिये यदि उन्होंने मुझे यातनाएँ दी हैं तो वे तुम्हें भी यातनाएँ देंगे। और यदि उन्होंने मेरा वचन माना तो वे तुम्हारा वचन भी मानेंगे। 21 पर वे मेरे कारण तुम्हारे साथ ये सब कुछ करेंगे क्योंकि वे उसे नहीं जानते जिसने मुझे भेजा है। 22 यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता तो वे किसी भी पाप के दोषी न होते। पर अब अपने पाप के लिए उनके पास कोई बहाना नहीं है।
23 “जो मुझसे बैर करता है वह परम पिता से बैर करता है। 24 यदि मैं उनके बीच वे कार्य नहीं करता जो कभी किसी ने नहीं किये तो वे पाप के दोषी न होते पर अब जब वे देख चुके हैं तब भी मुझसे और मेरे परम पिता दोनों से बैर रखते हैं। 25 किन्तु यह इसलिये हुआ कि उनके व्यवस्था-विधान में जो लिखा है वह सच हो सके: ‘उन्होंने बेकार ही मुझसे बैर किया है।’
पवित्र आत्मा के कार्य
26 “जब वह सहायक (जो सत्य की आत्मा है और परम पिता की ओर से आता है) तुम्हारे पास आयेगा जिसे मैं परम पिता की ओर से भेजूँगा, वह मेरी ओर से साक्षी देगा। 27 और तुम भी साक्षी दोगे क्योंकि तुम आदि से ही मेरे साथ रहे हो।
16“ये बातें मैंने इसलिये तुमसे कही हैं कि तुम्हारा विश्वास न डगमगा जाये। 2 वे तुम्हें आराधनालयों से निकाल देंगे। वास्तव में वह समय आ रहा है जब तुम में से किसी को भी मार कर हर कोई सोचेगा कि वह परमेश्वर की सेवा कर रहा है। 3 वे ऐसा इसलिए करेंगे कि वे न तो परम पिता को जानते हैं और न ही मुझे। 4 किन्तु मैंने तुमसे यह इसलिये कहा है ताकि जब उनका समय आये तो तुम्हें याद रहे कि मैंने उनके विषय में तुमको बता दिया था।
“आरम्भ में ये बातें मैंने तुम्हें नहीं बतायी थीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था।
समीक्षा
यीशु के विषय में गवाही दें
यीशु का एक मित्र बनने से बढ़कर कोई महत्वपूर्ण और महान सुविधा नहीं है. यीशु कहते हैं, 'तुम मेरे मित्र हो...मैं तुम्हें अब दास नहीं कहूँगा..मैं तुम्हें अपना मित्र कहता हूँ' (15:14-15).
यीशु को अपना मित्र बनाना आपको अपने जीवन में, चर्च में और एक अद्वितीय दृष्टिकोण से समाज में दानव से निपटने देता है.
- व्यक्तिगत
यीशु हमें बताते हैं कि मसीह फलदायीपन के दो रहस्य हैं.
पहला है छाँटना (वव.1-2). छाँटने का उद्देश्य यह है कि आप और अधिक फल उत्पन्न करें. दर्द, दुख, बीमारी और कष्ट, हानि, शोक, असफलता, निराशा और निराश अभिप्राय कुछ तरीके हैं, जिससे आपका जीवन छाँटा जाता है.
छंटाई बहुत ही क्रूर लगती है, कभी-कभी कड़ी सर्दी का सामना करने के लिए केवल नुकीलीदार खूँटी छोड दी जाती है. 'लेकिन कुछ नया बनने के लिए हमारी छंटाई की जाती है, परंतु जब वसंत और गरमी का मौसम आता है, तब यह भरपूर फल लाता है. छंटनी करनेवाला तेज चाकू फलों को लायेगा और आशीषों को भी.
परिणामी होने का दूसरा रहस्य है, यीशु के नजदीक रहना (व.4). आप अपने आपसे दानवो को नहीं हरा सकते हैं. यीशु कहते हैं, ' मैं दाखलता हूँ: तुम डालियाँ हो. जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल लाता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते' (व.5, एम.एस.जी.). यदि आप यीशु के साथ नजदीकी संबंध में रहेंगे, केवल तभी आप सफलतापूर्वक दानवों से निपट पायेंगे.
यीशु के साथ मित्रता को विकसित कीजिए (वव.14-15) उनके साथ समय बिताकर, उनके साथ चलकर, उनके वचन के द्वारा उनसे प्रार्थना करके और उनसे सुनते हुए, उनकी इच्छाओं को मानते हुए.
यीशु कहते हैं कि यदि आप उनके साथ नजदीकी संबंध में रहेंगे ('उनमें बने रहेंगे') तब फलदायीपन के रूप में तीन चीजें होगी. पहला, आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर आएगा (व.7). दूसरा, परमेश्वर की महिमा होगी (व.8). तीसरा, आपका आनंद पूरा हो जाएगा और उमड़ने लगेगा (व.11, ए.एम.पी.).
यीशु चाहते हैं कि आप आनंद से भर जाएँ और पूरी तरह से जीवित रहे. इससे बड़ा आनंद कोई नहीं कि आप जाने कि परमेश्वर ने आपको मूल्य दिया है और आपको कीमती बनाया है और आपसे प्रेम किया है और आपको दूसरे से वैसा ही प्रेम करना है जैसा परमेश्वर ने आपसे प्रेम किया है. यीशु में और यीशु के साथ दूसरों को अनंत जीवन देने से बढ़कर कोई बड़ा आनंद नहीं है.
- चर्च
आज चर्च बहुत से दानवों का सामना कर रहे हैं. सबसे बड़ा दानव है फूट. फूट को केवल प्रेम से जीता जा सकता है. यीशु ने कहा, ' मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो. इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे ...यह मेरी आज्ञा हैः एक दूसरे से प्रेम करो' (वव.12-13,17).
- समाज
यीशु हमें चेतावनी देते हैं कि हम विश्व के दानव का सामना करेंगे जो हमसे नफरत करता है (वव.18-19). वह कहते हैं, 'यदि उन्होंने मुझे सताया तो वह तुम्हें भी सतायेंगे' (व.20). वह कहते हैं, ' जो कोई तुम्हें मार डालेगा वह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ' (16:2). विश्व के ऐसे भाग हैं जहाँ पर यह पूरी तरह से सच है.
ब. लेकिन छिपे हुए सताव के और अधिक रहस्यमय प्रकार भी हैं. किसी को पसंद नहीं है कि कोई उन्हें नकार दे, उन्हें नीचा देखे, उनका मजाक उड़ाये या उनका उपहास करे. यीशु चिताते हैं कि जहाँ कही आप हैं, आपको विरोध, नफरत और यहाँ तक कि सताव की अपेक्षा करनी चाहिए.
अपने आपसे हमारे पास उत्तर नहीं होगे लेकिन यीशु कहते हैं, 'परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा; और तुम भी मेरे गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो' (15:26-27). पवित्र आत्मा आपको यीशु के विषय में गवाही देने के लिए सक्षम बनाता है और इन दानवों जैसी चुनौतियों से निपटने और अपने समाज को बदलता हुआ देखने में आपको सक्षम बनाता है.
प्रार्थना
1 शमूएल 16:1-17:37
शमूएल का बेतलेहेम को जाना
16यहोवा ने शमूएल से कहा, “तुम शाऊल के लिये कब तक दुःखी रहोगे? मैंने शाऊल को इस्राएल का राजा होना अस्वीकार कर दिया है! अपनी सींग तेल से भरो और चल पड़ो। मैं तुम्हें यिशै नाम के एक व्यक्ति के पास भेज रहा हूँ। यिशै बेतलेहेम में रहता है। मैंने उसके पुत्रों में से एक को नया राजा चुना हैं।”
2 किन्तु शमूएल ने कहा, “यदि मैं जाऊँ, तो शाऊल इस समाचार को सुनेगा। तब वह मुझे मार डालने का प्रयत्न करेगा।”
यहोवा ने कहा, “बेतलेहेम जाओ। एक बछड़ा अपने साथ ले जाओ। यह कहो, ‘मैं यहोवा को बलि चढ़ाने आया हूँ।’ 3 यिशै को बलि के समय आमंत्रित करो। तब मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना है। तुम्हें उस व्यक्ति का अभिषेक करना चाहिये जिसे मैं दिखाऊँ।”
4 शमूएल ने वही किया जो यहोवा ने उसे करने को कहा था। शमूएल बेतलेहेम गया। बेतलेहेम के बुजुर्ग भय से काँप उठे। वे शमूएल से मिले और उन्होंने उससे पूछा, “क्या आप शान्तिपूर्वक आए हैं?”
5 शमूएल ने उत्तर दिया, “हाँ, मैं शान्तिपूर्वक आया हूँ। मैं यहोवा को बलि—भेंट करने आया हूँ। अपने को तैयार करो और मेरे साथ बलि—भेंट में आओ।” शमूएल ने यिशै और उसके पुत्रों को तैयार किया। तब शमूएल ने उन्हें आने और बलि—भेंट में भाग लेने के लिये आमन्त्रित किया।
6 जब यिशै और उसके पुत्र आए, तो शमूएल ने एलीआब को देखा। शमूएल ने सोचा, “निश्चय ही यही वह व्यक्ति है जिसे यहोवा ने चुना है।”
7 किन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, “एलीआब लम्बा और सुन्दर है किन्तु उसके बारे में मत सोचो। एलीआब लम्बा है किन्तु उसके बारे में मत सोचो। परमेश्वर उस चीज़ को नहीं देखता जिसे साधारण व्यक्ति देखते हैं। लोग व्यक्ति के बाहरी रूप को देखते हैं, किन्तु यहोवा व्यक्ति के हृदय को देखता है। एलीआब उचित व्यक्ति नहीं है।”
8 तब यिशै ने अपने दूसरे पुत्र अबीनादाब को बुलाया। अबीनादाब शमूएल के पास से गुजरा। किन्तु शमूएल ने कहा, “नहीं, यह भी वह व्यक्ति नहीं है कि जिसे यहोवा ने चुना है।”
9 तब यिशै ने शम्मा को शमूएल के पास से गुजरने को कहा। किन्तु शमूएल ने कहा, “नहीं, यहोवा ने इस व्यक्ति को भी नहीं चुना है।”
10 यिशै ने अपने सात पुत्रों को शमूएल को दिखाया। किन्तु शमूएल ने यिशै को कहा, “यहोवा ने इन व्यक्तियों में से किसी को भी नहीं चुना है।”
11 तब शमूएल ने यिशै से पूछा, “क्या तुम्हारे सभी पुत्र ये ही हैं?”
यिशै ने उत्तर दिया, “नहीं, मेरा सबसे छोटा एक और पुत्र है, किन्तु वह भेड़ों की रखवाली कर रहा है।”
शमूएल ने कहा, “उसे बुलाओ। उसे यहाँ लाओ। हम लोग तब तक खाने नहीं बैठेंगे जब तक वह आ नहीं जाता।”
12 यिशै ने किसी को अपने सबसे छोटे पुत्र को लाने के लिये भेजा। यह पुत्र सुन्दर और सुनहरे बालों वाला युवक था। यह बहुत सुन्दर था।
यहोवा ने समूएल से कहा, “उठो, इसका अभिषेक करो। यही है वह।”
13 शमूएल ने तेल से भरा सींग उठाया और उस विशेष तेल को यिशै के सबसे छोटे पुत्र के सिर पर उसके भाईयों के सामने डाल दिया। उस दिन से यहोवा की आत्मा दाऊद पर तीव्रता से आती रही। तब शमूएल रामा को लौट गया।
दुष्टात्मा का शाऊल को परेशान करना
14 यहोवा की आत्मा ने शाऊल को त्याग दिया। तब यहोवा ने शाऊल पर एक दुष्टात्मा भेजी। उसने उसे बहुत परेशान किया। 15 सेवकों ने शाऊल से कहा, “परमेश्वर के द्वारा भेजी एक दुष्टात्मा तुमको परेशान कर रही है। 16 हम लोगों को आदेश दो कि हम लोग किसी की खोज करें जो वीणा बजायेगा। यदि दुष्टात्मा यहोवा के यहाँ से तुम्हारे ऊपर आई है तो जब वह व्यक्ति वीणा बजायेगा तब वह दुष्टआत्मा तुमको अकेला छोड़ देगी और तुम स्वस्थ अनुभव करोगे।”
17 अत: शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, “ऐसे व्यक्ति की खोज करो जो वीणा अच्छी बजाता है और उसे मेरे पास लाओ।”
18 सेवकों में से एक ने कहा, “बेतलेहेम में रहने वाला यिशै नाम का एक व्यक्ति है। मैंने यिशै के पुत्र को देखा है। वह जानता है कि वीणा कैसे बजाई जाती है। वह एक वीर व्यक्ति भी है और अच्छी प्रकार लड़ता है। वह जागरूक है। वह सुन्दार है और यहोवा उसके साथ है।”
19 इसलिये शाऊल ने यीशै के पास दूत भेजा। उन्होंने यिशै से वह कहा जो शाऊल ने कहा था। “तुम्हारा पुत्र दाऊद नाम का है। वह तुम्हारी भेड़ों की रखवाली करता है। उसे मेरे पास भेजो।”
20 फिर यिशै ने शाऊल को भेंट करने के लिये कुछ चीजें तैयार कीं। यिशै ने एक गधा, कुछ रोटियाँ और एक मशक दाखमधु और एक बकरी का बच्चा लिया। यिशै ने वे चीज़ें दाऊद को दीं, और उसे शाऊल के पास भेज दिया। 21 इस प्रकार दाऊद शाऊल के पास गया और उसके सामने खड़ा हुआ। शाऊल ने दाऊद से बहुत स्नेह किया। फिर दाऊद ने शाऊल को अपना शस्त्रवाहक बना लिया। 22 शाऊल ने यिशै के पास सूचना भेजी, “दाऊद को मेरे पास रहने और मेरी सेवा करने दो। वह मुझे बहुत पसन्द करता है।”
23 जब कभी परमेश्वर की ओर से आत्मा शाऊल पर आती, तो दाऊद अपनी वीणा उठाता और उसे बजाने लगता। दुष्ट आत्मा शाऊल को छोड़ देती और वह स्वस्थ अनुभव करने लगता।
गोलियत का इस्राएल को चुनौती देना
17पलिश्तियों ने अपनी सेना युद्ध के लिये इकट्ठी की। वे यहूदा स्थित सोको में युद्ध के लिये एकत्र हुए। उनका डेरा सोको और अजेका के बीच एपेसदम्मीम नामक नगर में था।
2 शाऊल और इस्राएली सैनिक भी वहाँ एक साथ एकत्रित हुए। उनका डेरा एला की घाटी में था। शाऊल के सैनिक मोर्चा लगाये पलिश्तियों से युद्ध करने के लिये तैयार थे। 3 पलिश्ती एक पहाड़ी पर थे और इस्राएली दूसरी पर । घाटी इन दोनों पहाड़ियों के बीच में थी।
4 पलिश्तियों में एक गोलियत नाम का अजेय योद्धा था। गोलियत गत का था। गोलियत लगभग नौ फीट ऊँचा था। गोलियत पलिश्ती डेरे से बाहर आया। 5 उसके सिर पर काँसे का टोप था। उसने पट्टीदार कवच का कोट पहन रखा था। यह कवच काँसे का बना था और इसका तौल लगभग एक सौ पच्चीस पौंड था। 6 गोलियत ने अपने पैरों में काँसे के रक्षा कवच पहने थे। उसके पास काँसे का भाला था जो उसकी पीठ पर बंधा था। 7 गोलियत के भाले का फल जुलाहे की छड़ की तरह था। भाले की फल की तोल पन्द्रह पौंड थी। गोलियत का सहायक गोलियत की ढाल को लिये हुए उसके आगे आगे चल रहा था।
8 गोलियत बाहर निकला और उसने इस्राएली सैनिकों को जोर से पुकार कर कहा, “तुम्हारे सभी सैनिक युद्ध के लिये मोर्चा क्यों लगाये हुए हैं? तुम शाऊल के सेवक हो। मैं एक पलिश्ती हूँ। इसलिये किसी एक व्यक्ति को चुनो और उसे मुझसे लड़ने को भेजो। 9 यदि वह व्यक्ति मुझे मार डालता है तो हम पलिश्ती तुम्हारे दास हो जाएंगे। किन्तु यदि मैं उसे जीत लूँ और तुम्हारे व्यक्ति को मार डालूँ तो तुम हमारे दास हो जाना। तब तुम हमारी सेवा करोगे!”
10 पलिश्ती ने यह भी कहा, “आज मैं खड़ा हूँ और इस्राएल की सेना का मजाक उड़ा रहा हूँ! मुझे अपने में से एक के साथ लड़ने दो!”
11 शाऊल और इस्राएली सैनिकों ने जो गोलियत कहा था, उसे सुना और वे बहुत भयभीत हो उठे।
दाऊद का युद्ध क्षेत्र को जाना
12 दाऊद यिशै का पुत्र था। यिशै एप्राती परिवार के यहूदा बेतलेहेम से था। यिशै के आठ पुत्र थे। शाऊल के समय में यिशै एक बूढ़ा आदमी था। 13 यिशै के तीन बड़े पुत्र शाऊल के साथ युद्ध में गये थे। प्रथम पुत्र एलीआब था। दूसरा पुत्र अबीनादाब था और तीसरा पुत्र शम्मा था। 14 दाऊद सबसे छोटा पुत्र था। तीनों पुत्र शाऊल की सेना में थे। 15 किन्तु दाऊद कभी—कभी बेतलेहेम में अपने पिता की भेड़ों की रखवाली के लिये शाऊल के पास से चला जाता था।
16 पलिश्ती गोलियत हर एक प्रात: एवं सन्ध्या को बाहर आता था और इस्राएल की सेना के सामने खड़ा हो जाता था। गोलियत ने चालीस दिन तक इस प्रकार इस्राएल का मजाक उड़ाया।
17 एक दिन यिशै ने अपने पुत्र दाऊद से कहा, “पके अन्न की टोकरी और इन दस रोटियों को डेरे में अपने भाईयों के पास ले जाओ। 18 पनीर की इन दस पिंडियों को भी एक हजार सैनिकों वाली अपने भाई की टुकड़ी के संचालक अधिकारी के लिये ले जाओ। देखो कि तुम्हारे भाई कैसे हैं। कुछ ऐसा लाओ जिससे मुझे पता चले कि तुम्हारे भाई ठीक—ठाक हैं। 19 तुम्हारे भाई शाऊल के साथ हैं और इस्राएल के सारे सैनिक एला घाटी में हैं। वे पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ रहे हैं।”
20 सवेरे तड़के ही दाऊद, ने भेड़ों की रखवाली दूसरे गड़रिये को सौंपी। दाऊद ने भोजन लिया और वहाँ के लिये चल पड़ा जहाँ के लिये यिशै ने कहा था। दाऊद अपनी गाड़ी को डेरे में ले गया। उस समय सैनिक लड़ाई में अपने मोर्चे संभालने जा रहे थे जब दाऊद वहाँ पहुँचा। सैनिक अपना युद्ध उद्घोष करने लगे। 21 इस्राएली और पलिश्ती अपने पुरुषों को युद्ध में एक—दूसरे से भिड़ने के लिये इकट्ठा कर रहे थे।
22 दाऊद ने भोजन और चीजों को उस व्यक्ति के पास छोड़ा जो सामग्री का वितरण करता था। दाऊद दौड़ कर उस स्थान पर पहुँचा जहाँ इस्राएली सैनिक थे। दाऊद ने अपने भाईयों के विषय में पूछा। 23 दाऊद ने अपने भाईयों के साथ बात करनी आरम्भ की। उसी समय वह पलिश्ती वीर योद्धा जिसका नाम गोलियत था और जो गत का निवासी था, पलिश्ती सेना से बाहर आया। पहले की तरह गोलियत ने इस्राएल के विरुद्ध वही बातें चिल्लाकर कहीं।
24 इस्राएली सैनिकों ने गोलियत को देखा और वे भाग खड़े हुए। वे सभी उससे भयभीत थे। 25 इस्राएली व्यक्तियों में से एक ने कहा, “अरे लोगों, तुममें से किसी ने उस देखा है! उसे देखो! वह गोलियत आ रहा है जो बार—बार इस्राएल का मजाक उड़ाता है। जो कोई उस व्यक्ति को मार देगा, धनी हो जायेगा! राजा शाऊल उसे बहुत धन देगा। शाऊल अपनी पुत्री का विवाह भी उस व्यक्ति से कर देगा, जो गोलियत को मारेगा और शाऊल उस व्यक्ति के परिवार को इस्राएल में स्वतन्त्र कर देगा।”
26 दाऊद ने समीप खड़े आदमी से पूछा, “उसने क्या कहा? इस पलिश्ती को मारने और इस्राएल के इस अपमान को दूर करने का पुरस्कार क्या है? अन्तत: यह गोलियत है ही क्या? यह बस एक विदेशी मात्र है। गोलियत एक पलिश्ती से अधिक कुछ नहीं। वह क्यों सोचता है कि वह साक्षात् परमेश्वर की सेना के विरुद्ध बोल सकता है?”
27 इसलिए इस्राएलियों ने गोलियत को मारने के लिये पुरस्कार के बारे में बताया। 28 दाऊद के बड़े भाई एलीआब ने दाऊद को सैनिकों से बातें करते सुना। एलीआब ने दाऊद पर क्रोधित हुआ। एलीआब दाऊद से पूछा, “तुम यहाँ क्यों आये? मरुभूमि में उन थोड़ी सी भेड़ों को किस के पास छोड़कर आये हो? मैं जानता हूँ कि तुम यहाँ क्यों आये हो! तुम वह करना नहीं चाहते जो तुमसे करने को कहा गया था। तुम केवल यहाँ युद्ध देखने के लिये आना चाहते थे!”
29 दाऊद ने कहा, “ऐसा मैंने क्या किया है? मैंने कोई गलती नहीं की! मैं केवल बातें कर रहा था।” 30 दाऊद दूसरे लोगों की तरफ मुड़ा और उनसे वे ही प्रश्न किये। उन्होने दाऊद को वे ही पहले जैसे उत्तर दिये।
31 कुछ व्यक्तियों ने दाऊद को बातें करते सुना। उन्होंने दाऊद के बारे में शाऊल से कहा। शाऊल ने आदेश दिया कि वे दाऊद को उसके पास लाएं। 32 दाऊद ने शाऊल से कहा, “किसी व्यक्ति को उसके कारण हतोत्साहित मत होने दो। मैं आपका सेवक हूँ। मैं इस पलिश्ती से लड़ने जाऊँगा।”
33 शाऊल ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जा सकते और इस पलिश्ती गोलियत से नहीं लड़ सकते। तुम सैनिक भी नहीं हो! तुम अभी बच्चे हो और गोलियत जब बच्चा था, तभी से युद्धों में लड़ रहा है।”
34 किन्तु दाऊद ने शाऊल से कहा, “मैं आपका सेवक हूँ और मैं अपने पिता की भेड़ों की रखवाली भी करता रहा हूँ। यदि कोई शेर या रीछ आता और झुंड से किसी भेड़ को उठा ले जाता। 35 तो मैं उसका पीछा करता था। मैं उस जंगली जानवर पर आक्रमण करता था और उसके मुँह से भेड़ को बचा लेता था और उससे युद्ध करता था तथा उसे मार डालता था। 36 मैंने एक शेर और एक रीछ को मार डाला है! मैं उस विदेशी गोलियत को वैसे ही मार डालूँगा। गोलियत मरेगा, क्योंकि उसने साक्षात परमेश्वर की सेना का मजाक उड़ाया है। 37 यहोवा ने मुझे शेर और रीछ से बचाया है। यहोवा इस पलिश्ती गोलियत से भी मेरी रक्षा करेगा।”
शाऊल ने दाऊद से कहा, “जाओ यहोवा तुम्हारे साथ हो।”
समीक्षा
परमेश्वर पर भरोसा करें
दाऊद को असाधारण रूप से परमेश्वर का वरदान दिया गया था – स्वाभाविक रूप से और दैवीय रूप से भी. वह सुंदर और स्वस्थ थे (16:12). वह संगीत में हुनरवान थे (व.18). वह एक अच्छे वक्ता थे (व.18). उनके पास खिलाड़ी की योग्यता थी (17:1-37;18:11). वह एक लीडर थे (18:13). वह सफल थे (वव.14,30). वह प्रसिद्ध थे (व.30).
फिर भी इनमें से किसी भी कारण के लिए परमेश्वर ने उनका इस्तेमाल नहीं किया. परमेश्वर ने शमुएल से कहा, 'न तो उसके रूप पर दृष्टिकर, और न उसके कद की ऊँचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रुप देखता है, परंतु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है' (16:7).
दाऊद गोलियात के द्वारा जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारे जाने से बहुत क्रोधित हो गया था (17:26). वह एक साहसी लीडर थे. वह कहते हैं, 'किसी का मन इस पलिश्ती (गोलियाथ) के कारण कच्चा न हो (व.32). जिस तरह से दाऊद ने इस दानव का सामना किया उससे हम क्या सीखते हैं?
- अस्वीकारता को नकार दें:
एलीआब ने दाऊद से कहा, 'तू यहाँ क्यों आया है? और जंगल में उन थोड़ी सी भेड़ बकरियों को तू किस के पास छोड़ आया है? तेरा अभिमान और तेरे मन की बुराई मुझे मालूम है; तू तो लड़ाई देखने के लिये यहाँ आया है!' (व.28, एम.एस.जी.).
फिर भी दाऊद एलीआब से 'दूर चला गया' (व.30).
यहाँ पर हम सीखते है कि जब अस्वीकार कर दिए गए या किसी ने बुरा बर्ताव किया तो हार न मानें. जैसा कि जॉयस मेयर लिखती है, 'परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नहीं खोज रहे है जिसके पास योग्यता है बल्कि ऐसे व्यक्ति को खोज रहे है जो उपलब्ध है...अपने हृदय को शुद्ध रखिये नफरत, ठोकर, कड़वाहट, बुरा मानना या क्षमा न करने को अपने आपको रोकने देना अस्वीकार कर दें.
- शामिल हो जाईये
दाऊद ने शाऊल से कहा, 'किसी मनुष्य का मन उसके कारण कच्चा न हो; तेरा दास जाकर उस पलिश्ती से लड़ेगा' (व.32). उसने अपनी सेवा की. मैं हमेशा इस बात से बहुत ही स्पर्शित और मोहित हो जाता हूँ कि हमारी मंडली सेवा करने के लिए कितनी इच्छुक रहती हैः प्रार्थना करते हुए, सेवा करते हुए और भेंट देते हुए.
- परमेश्वर पर भरोसा करें
शाऊल दाऊद से कहते हैं, 'तू जाकर उस पलिश्ती के विरूद्ध युद्ध नहीं कर सकता; क्योंकि तू तो लड़का ही है' (व.33). फिर भी दाऊद उत्तर देते हैं, 'यहोवा जिसने मुझे सिंह और भालू दोनों के पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा' (व.37अ). वह परमेश्वर पर भरोसा करते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि परमेश्वर उनके साथ हैं (16:18; 17:37ब; 18:14 देखें).
आखिरकार, दाऊद गोलियात का सामना कर पाये क्योंकि वह परमेश्वर के अभिषिक्त थेः'तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयो के मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा' (16:13, एम.एस.जी.). आप अपने जीवन में, समाज में और विश्व में एकमात्र तरीका जिससे दानवों का सामना कर सकेंगे, वह है पवित्र आत्मा के अभिषेक के द्वारा.
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
1शमुएल 16:17ब
'परमेश्वर उन चीजों को नहीं देखते हैं जिन चीजों को लोग देखते हैं. मनुष्य बाहरी रूप देखता है, लेकिन परमेश्वर हृदय को देखते हैं.'
मैंने लोगो को उनका बाहरी रूप देखकर अनुमान लगाने के कारण आत्मग्लानि महसूस की है. मैं अक्सर उन लोगों से मिला हूँ जो बहुत शांत हैं और बाहर से उनका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है और मैंने मुश्किल से ही उन पर ध्यान दिया है, लेकिन वे अपने आस-पास के विश्व को अद्भुत तरीके से बदल रहे हैं.
किंतु दाऊद का रुप सुंदर था और उसके चेहरे पर 'लालीमा' थी. मैं पहले ही मोहित हो चुका हूँ!
दिन का वचन
1 शमुएल – 16:7
"परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।"
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संदर्भ
ए.डब्ल्यु टोजर, पवित्र का ज्ञान, (न्यु यॉर्कः हार्पर कॉलीन,1978)
जॉयस मेयर, एव्रीडे लाईफ बाईबल, (फेथवर्डस, 2013) पी.448'
http://www.heartsandminds.org/poverty/hungerfacts.htm \[updated 2011\]
http://www.globalissues.org/issue/2/causes-of-poverty \[updated 2012\]
http://www.unwater.org/iys.html
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित. ‘एनआईवी', बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है.
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