दिन 136

आपकी कहानी में सामर्थ है

बुद्धि नीतिवचन 12:8-17
नए करार यूहन्ना 9:1-34
जूना करार रूत 1:1-2:23

परिचय

मार्क हिदर के माता-पिता अलग हो गए थे जब वह बच्चे थे तब उनकी शराबी माँ ने उनका पालन –पोषण किया जो उन्हें पीटती थी. जब वह चौदह वर्ष के थे, वह उनके सामने खड़े हो गए और कहा कि अब वह मार नहीं खायेंगे. अगले दिन उसने आत्महत्या कर ली.

उस क्षण से, उन्हें देखभाल केंद्र में रख दिया गया और उनके शब्दों में, 'सच में पागल बन गए' – पुलिस के साथ वह परेशानी में पड़ गए, ड्रग्स लेने लगे, और स्वयं को नष्ट करने वाली जीवनशैली से जुड़ गए.

मार्क (अब 30 वर्ष के हैं) की प्रेमीका ने उन्हें एच.टी.बी. अल्फा में आमंत्रित किया था. सप्ताहिक छुट्टी पर उनका परमेश्वर के साथ एक शक्तिशाली साक्षात्कार हुआ. उन्होंने कहा, 'मेरे ग्रुप लीडर, टोबी ने मेरे लिए प्रार्थना की पवित्र आत्मा मुझ पर उतरे – और मैं जानता था कि यह हो रहा है. इस अनुभव के कारण मैं बहुत रोने लगा.

मैं सड़क पर से दौड़ते हुए पब में चला गया, एक बीयर ली, पीछे घूमकर एक अंधेरे कोने में बाहर जाकर बैठ गया. थोड़ी देर शांत बैठने के बाद, मुझमें पूर्ण शांति आ गई. मैंने पूर्ण प्रेम को महसूस किया. मैंने उसे परिवार के एक भाग के रूप में महसूस किया, जो अब तक मैंने कभी महसूस नहीं किया था.

'रोते हुए, मैंने एक और चिह्न के लिए प्रार्थना की. मैंने माँगा कि टोबी दरवाजे से आए. जैसे ही मैंने मांगा, वैसे ही टोबी उसी दरवाजे से मुझे खोजते हुए आए.'

'परमेश्वर वास्तविक हैं और वह बिना किसी शर्त के मुझसे प्रेम करते हैं और वह सज्जन हैं. पवित्र आत्मा ने मुझे बचाया. अल्फा सप्ताह ने उन्हें खोजने में मेरी सहायता की. वह जानते थे कि मैं कहाँ पर था, इसलिए जब मैं सही जगह पर पहुँचा, तब वह इंतजार कर रहे थे.'

मार्क की व्यक्तिगत कहानी ने बहुतों के जीवन पर एक शक्तिशाली प्रभाव डाला. शायद से आपकी कहानी मार्क की तरह नाटकीय न हो, लेकिन हर एक के पास एक कहानी है. चाहे आप एक मसीह के रूप में बढ़े हैं या आप केवल कुछ घंटो से मसीह हैं, आपकी कहानी में सामर्थ है.

बुद्धि

नीतिवचन 12:8-17

8 व्यक्ति अपनी भली समझ के अनुसार प्रशंसा पाता है,
 किन्तु ऐसे जन जिनके मन कुपथ गामी हों घृणा के पात्र होते हैं।

9 सामान्य जन बनकर परिश्रम करना उत्तम है
 इसके बजाए कि भूखे रहकर महत्वपूर्ण जन सा स्वांग भरना।

10 धर्मी अपने पशु तक की जरूरतों का ध्यान रखता है,
 किन्तु दुष्ट के सर्वाधिक दया भरे काम भी कठोर क्रूर रहते हैं।

11 जो अपने खेत में काम करता है उसके पास खाने की बहुतायत होंगी;
 किन्तु पीछे भागता रहता जो ना समझ के उसके पास विवेक का अभाव रहता है।

12 दुष्ट जन पापियों की लूट को चाहते हैं,
 किन्तु धर्मी जन की जड़ हरी रहती है।

13 पापी मनुष्य को पाप उसका अपना ही शब्द—जाल में फँसा लेता है।
 किन्तु खरा व्यक्ति विपत्ति से बच निकलता।

14 अपनी वाणी के सुफल से व्यक्ति श्रेष्ठ वस्तुओं से भर जाता है।
 निश्चय यह उतना ही जितना अपने हाथों का काम करके उसको सफलता देता है।

15 मूर्ख को अपना मार्ग ठीक जान पड़ता है,
 किन्तु बुद्धिमान व्यक्ति सन्मति सुनता है।

16 मूर्ख जन अपनी झुंझलाहट झटपट दिखाता है,
 किन्तु बुद्धिमान अपमान की उपेक्षा करता है।

17 सत्यपूर्ण साक्षी खरी गवाही देता है,
 किन्तु झूठा साक्षी झूठी बातें बनाता है।

समीक्षा

प्रमाणिक रूप से अपनी कहानी को बतायें

आज का नीतिवचन कई विभिन्न विषयों की चर्चा करता है, पशुओं की देखभाल करना (व.10) अपमान को नजरअंदाज करना इसके बजाय कि इसके प्रति नाराजगी को दिखाएः 'मूढ़ की रिस उसी दिन प्रकट हो जाती है, परंतु चतुर अपमान को छिपा रखता है' (व.16, एम.एस.जी.).

एक नीतिवचन है जो निश्चित रूप से आज के विषय में हैः 'एक सच्चा गवाह एक सच्ची गवाही देता है' (व.17अ). निश्चित ही इसका अर्थ न्यायालय में गवाही देने से है. लेकिन हम सभी गवाह हैं क्योंकि हम सभी यीशु के विषय में गवाही दे सकते हैं.

चाहे आप मित्रों के साथ बाहर हैं या चर्च के सामने बोल रहे हैं, एक व्यक्ति के द्वारा अपनी कहानी को सच्चाई में, ईमानदारी से और हृदय से बताए जाने के विषय में कुछ बहुत ही शक्तिशाली है.

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि मैं अपनी कहानी अपने हृदय से, ईमानदारी से और प्रमाणिकता के साथ बता पाऊँ.
नए करार

यूहन्ना 9:1-34

जन्म से अन्धे को दृष्टि-दान

9जाते हुए उसने जन्म से अंधे एक व्यक्ति को देखा। 2 इस पर यीशु के अनुयायियों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, यह व्यक्ति अपने पापों से अंधा जन्मा है या अपने माता-पिता के?”

3 यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किए हैं और न इसके माता-पिता ने बल्कि यह इसलिये अंधा जन्मा है ताकि इसे अच्छा करके परमेश्वर की शक्ति दिखायी जा सके। 4 उसके कामों को जिसने मुझे भेजा है, हमें निश्चित रूप से दिन रहते ही कर लेना चाहिये क्योंकि जब रात हो जायेगी कोई काम नहीं कर सकेगा। 5 जब मैं जगत में हूँ मैं जगत की ज्योति हूँ।”

6 इतना कहकर यीशु ने धरती पर थूका और उससे थोड़ी मिट्टी सानी उसे अंधे की आंखों पर मल दिया। 7 और उससे कहा, “जा और शीलोह के तालाब में धो आ।” (शीलोह अर्थात् “भेजा हुआ।”) और फिर उस अंधे ने जाकर आँखें धो डालीं। जब वह लौटा तो उसे दिखाई दे रहा था।

8 फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे बोले, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

9 कुछ ने कहा, “यह वही है,” दूसरों ने कहा, “नहीं, यह वह नहीं है, उसका जैसा दिखाई देता है।”

इस पर अंधा कहने लगा, “मैं वही हूँ।”

10 इस पर लोगों ने उससे पूछा, “तुझे आँखों की ज्योति कैसे मिली?”

11 उसने जवाब दिया, “यीशु नाम के एक व्यक्ति ने मिट्टी सान कर मेरी आँखों पर मली और मुझसे कहा, जा और शीलोह में धो आ और मैं जाकर धो आया। बस मुझे आँखों की ज्योति मिल गयी।”

12 फिर लोगों ने उससे पूछा, “वह कहाँ है?”

उसने जवाब दिया, “मुझे पता नहीं।”

दृष्टि-दान पर फरीसियों का विवाद

13 उस व्यक्ति को जो पहले अंधा था, वे लोग फरीसियों के पास ले गये। 14 यीशु ने जिस दिन मिट्टी सानकर उस अंधे को आँखें दी थीं वह सब्त का दिन था। 15 इस तरह फ़रीसी उससे एक बार फिर पूछने लगे, “उसने आँखों की ज्योति कैसे पायी?”

उसने बताया, “उसने मेरी आँखों पर गीली मिट्टी लगायी, मैंने उसे धोया और अब मैं देख सकता हूँ।”

16 कुछ फ़रीसी कहने लगे, “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं है क्योंकि यह सब्त का पालन नहीं करता।”

उस पर दूसरे बोले, “कोई पापी आदमी भला ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे कर सकता है?” इस तरह उनमें आपस में ही विवाद होने लगा।

17 वे एक बार फिर उस अंधे से बोले, “उसके बारे में तू क्या कहता है? क्योंकि इस तथ्य को तू जानता है कि उसने तुझे आँखे दी हैं।”

तब उसने कहा, “वह नबी है।”

18 यहूदी नेताओं ने उस समय तक उस पर विश्वास नहीं किया कि वह व्यक्ति अंधा था और उसे आँखों की ज्योति मिल गयी है। जब तक उसके माता-पिता को बुलाकर 19 उन्होंने यह नहीं पूछ लिया, “क्या यही तुम्हारा पुत्र है जिसके बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा था। फिर यह कैसे हो सकता है कि वह अब देख सकता है?”

20 इस पर उसके माता पिता ने उत्तर देते हुए कहा, “हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है और यह अंधा जन्मा था। 21 पर हम यह नहीं जानते कि यह अब देख कैसे सकता है? और न ही हम यह जानते हैं कि इसे आँखों की ज्योति किसने दी है। इसी से पूछो, यह काफ़ी बड़ा हो चुका है। अपने बारे में यह खुद बता सकता है।” 22 उसके माता-पिता ने यह बात इसलिये कही थी कि वे यहूदी नेताओं से डरते थे। क्योंकि वे इस पर पहले ही सहमत हो चुके थे कि यदि कोई यीशु को मसीह माने तो उसे आराधनालय से निकाल दिया जाये। 23 इसलिये उसके माता-पिता ने कहा था, “वह काफ़ी बड़ा हो चुका है, उससे पूछो।”

24 यहूदी नेताओं ने उस व्यक्ति को दूसरी बार फिर बुलाया जो अंधा था, और कहा, “सच कहो, और जो तू ठीक हुआ है उसका सिला परमेश्वर को दे। हमें मालूम है कि यह व्यक्ति पापी है।”

25 इस पर उसने जवाब दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं, मैं तो बस यह जानता हूँ कि मैं अंधा था, और अब देख सकता हूँ।”

26 इस पर उन्होंने उससे पूछा, “उसने क्या किया? तुझे उसने आँखें कैसे दीं?”

27 इस पर उसने उन्हें जवाब देते हुए कहा, “मैं तुम्हें बता तो चुका हूँ, पर तुम मेरी बात सुनते ही नहीं। तुम वह सब कुछ दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके अनुयायी बनना चाहते हो?”

28 इस पर उन्होंने उसका अपमान किया और कहा, “तू उसका अनुयायी है पर हम मूसा के अनुयायी हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की थी पर हम नहीं जानते कि यह आदमी कहाँ से आया है?”

30 उत्तर देते हुए उस व्यक्ति ने उनसे कहा, “आश्चर्य है तुम नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है? पर मुझे उसने आँखों की ज्योति दी है। 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता बल्कि वह तो उनकी सुनता है जो समर्पित हैं और वही करते हैं जो परमेश्वर की इच्छा है। 32 कभी सुना नहीं गया कि किसी ने किसी जन्म से अंधे व्यक्ति को आँखों की ज्योति दी हो। 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से नहीं होता तो यह कुछ नहीं कर सकता था।”

34 उत्तर में उन्होंने कहा, “तू सदा से पापी रहा है। ठीक तब से जब से तू पैदा हुआ। और अब तू हमें पढ़ाने चला है?” और इस तरह यहूदी नेताओं ने उसे वहाँ से बाहर धकेल दिया।

समीक्षा

निरंतर अपनी कहानी को बतायें

मुझे आज के लेखांश में उस व्यक्ति की कहानी पसंद है जो जन्म से अंधा था. पहला, यीशु व्यक्त रूप से पाप और कष्ट उठाने के बीच में सीधे कड़ी को नकारते हैं (वव.1-3). फरीसियों ने अनुमान लगाया कि वह व्यक्ति अंधा था क्योंकि वह 'जन्म से पाप से भरा हुआ था' (व.34).

यहाँ तक कि यीशु के चेलो ने यह प्रश्न पूछा जो कि हर संस्कृति पूछती हैः'क्यो कोई अपंग जन्म लेता है? यह किसकी गलती है – इस व्यक्ति की या इसके माता-पिता की?' (व.2). यीशु उन्हें बता रहे हैं कि वे गलत प्रश्न पूछ रहे हैं. वह उत्तर देते हैं, 'ना तो इस व्यक्ति ने नाही इसके माता-पिता ने पाप किया...लेकिन यह हुआ ताकि परमेश्वर के कार्य इसके जीवन में प्रकट हो' (व.3).

अपने वचन और अपने स्पर्श के द्वारा यीशु इस व्यक्ति को चंगा करते हैं. वह गहरे प्रेम और सम्मान के साथ उसे स्पर्श करते हैं. चमत्कार से अत्यधिक उत्साह आ जाता है. जो लोग उस अंधे व्यक्ति को जानते थे, इस बात की चर्चा करने लगते हैं.

हम देखते हैं कि कैसे चंगाई के चमत्कार को समझाना हमेशा संभव प्रयत्न है. जब अंधे व्यक्ति की आँखे खुल गई, तब पड़ोसी और जिन्होंने पहले उसे भीख माँगते हुए देखा था, कहने लगे, 'क्या यह वही नहीं, जो वहाँ बैठा भीख माँगा करता था?' कुछ लोगों ने कहा, 'यह वही है,' दूसरों ने कहा, 'नहीं, परन्तु उसके समान है.' (वव.8-9अ).

हम जरा सी बात में पकड़े जाने का और सारे मुद्दे को खो देने का खतरा. जब उस व्यक्ति ने चंगाई के विषय में गवाही दी, तब कुछ ने उत्तर दिया, 'यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं है, क्योंकि यह सब्त को नहीं मानता है' (व.16).

यह व्यक्ति बार-बार अपनी कहानी को बताता है. उसके पास उनके जटिल प्रश्नों का उत्तर नहीं है. किंतु, वह सर्वश्रेष्ठ उत्तर देता है जो आप दे सकते हैं, जब आपसे ऐसा एक प्रश्न पूछा जाता है जिसका उत्तर आप नहीं जानते हैं. वह सरलतापूर्वक कहता है, 'मुझे नहीं पता' (व.12).

मुझे बहुत पसंद है जब वह उनके सभी संदेहास्पद और दोष दिखाने वाले प्रश्नों से निराश हो जाता है. वह उनसे कहता है कि उसे उनके सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं पता है, ' मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ' (व.25, ए.एम.पी.).

जैसे ही उसकी आँखे खुलती हैं, वैसे ही उसका हृदय और दिमाग भी खुल जाता है. वह उन्हें जानना शुरु करता है, 'जिसे वे यीशु कहते हैं' (व.11). फिर वह उन्हें 'एक भविष्यवक्ता' के रूप में देखता है (व.17) 'जो परमेश्वर की ओर से है' (व.33). अंत में, वह विश्वास करता है कि वह 'मनुष्य का पुत्र है' और उनकी आराधना करता है (व.38).

यह गवाही की सामर्थ है. यह विरोधों से निबटने के लिए एक लगभग उत्तर न देने वाला तरीका हैः'पहले मैं ऐसा था...और अब मैं ऐसा हूँ...यह अंतर है जो यीशु मेरे जीवन में लाए हैं.'

अपनी कहानी को बताना अब भी आधुनिक विश्व में अपने विश्वास को बताने की मुख्य पूंजी है, जैसा कि यह नये नियम में था.

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद उन लोगों की कहानी की सामर्थ के लिए जो कहते हैं, 'मैं अंधा था लेकिन अब मैं देखता हूँ' (व.25). प्रभु, होने दीजिए कि बहुत से लोग आपसे मुलाकात के विषय में कह सकें (व.25), और उनकी आँखे खुल जाएं और वे चंगे हो जाएं.
जूना करार

रूत 1:1-2:23

यहूदा में अकाल

1बहुत समय पहले, जब न्यायाधीशों का शासन था, तभी एक इतना बुरा समय आया कि लोगों के पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन तक न रहा। एलीमेलेक नामक एक व्यक्ति ने तभी यहूदा के बेतलेहेम को छोड़ दिया। वह, अपनी पत्नी और दो पुत्रों के साथ मोआब के पहाड़ी प्रदेश में चला गया। 2 उसकी पत्नी का नाम नाओमी था और उसके पुत्रों के नाम महलोन और किल्योन थे। ये लोग यहूदा के बेतलेहेम के एप्राती परिवार से थे। इस परिवार ने मोआब के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की और वहीं बस गये।

3 बाद में, नाओमी का पति, एलीमेलेक मर गया। अत: केवल नाओमी और उसके दो पुत्र बचे रह गये। 4 उसके पुत्रों ने मोआब देश की स्त्रियों के साथ विवाह किया। एक की पत्नी का नाम ओर्पा और दूसरे की पत्नी का नाम रूत था। वे मोआब में लगभग दस वर्ष रहे, 5 फिर महलोन और किल्योन भी मर गये। अत: नाओमी अपने पति और पुत्रों के बिना अकेली हो गई।

नाओमी अपने घर जाती है

6 जब नाओमी मोआब के पहाड़ी प्रदेश में रह रही थी तभी, उसने सुना कि यहोवा ने उसके लोगों की सहायता की है। उसने यहूदा में अपने लोगों को भोजन दिया है। इसलिए नाओमी ने मोआब के पहाड़ी प्रदेश को छोड़ने तथा अपने घर लौटने का निश्चय किया। उसकी पुत्र वधुओं ने भी उसके साथ जाने का निश्चय किया।

7 उन्होंने उस प्रदेश को छोड़ा जहाँ वे रहती थीं और यहूदा की ओर लौटना आरम्भ किया।

8 तब नाओमी ने अपनी पुत्र वधुओं से कहा, “तुम दोनों को अपने घर अपनी माताओं के पास लौट जाना चाहिए। तुम मेरे तथा मेरे पुत्रों के प्रति बहुत दयालु रही हो। इसलिए मैं प्रार्थाना करती हूँ कि यहोवा तुम पर ऐसे ही दयालु हो। 9 मैं प्रार्थना करती हूँ कि यहोवा, पति और अच्छा घर पाने में तुम दोनों की सहायता करे।” नाओमी ने अपनी पुत्र वधुओं को प्यार किया और वे सभी रोने लगीं। 10 तब पुत्र वधुओं ने कहा, “किन्तु हम आप के साथ चलना चाहतें हैं और आपके लोगों में जाना चाहते हैं।”

11 किन्तु नाओमी ने कहा, “नहीं, पुत्रियों, अपने घर लौट जाओ। तुम मेरे साथ किसलिए जाओगी? मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती। मेरे पास अब कोई पुत्र नहीं जो तुम्हारा पति हो सके। 12 अपने घर लौट जाओ! मैं इतनी वृद्धा हूँ कि नया पति नहीं रख सकती। यहाँ तक कि यदि मैं पुनः विवाह करने की बात सोचूँ तो भी मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती। यदि मैं आज की रात ही गर्भवती हो जाऊँ और दो पुत्रों को उत्पन्न करुँ, तो भी इससे तुम्हें सहायता नहीं मिलेगी। 13 विवाह करने से पूर्व उनके युवक होने तक तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मैं तुमसे पति की प्रतीक्षा इतने लम्बें समय तक नहीं करवाऊँगी। इससे मुझे बहुत दुःख होगा और मैं तो पहले से ही बहुत दुःखी हूँ। यहोवा ने मेरे साथ बहुत कुछ कर दिया है।”

14 अत: स्त्रियाँ पुन: बहुत अधिक रोयीं। तब ओर्पा ने नाओमी का चुम्बन लिया और वह चली गई। किन्तु रूत ने उसे बाहों में भर लिया और वहाँ ठहर गई।

15 नाओमी ने कहा, “देखो, तुम्हारी जेठानी अपने लोगों और अपने देवताओं में लौट गई। अत: तुम्हें भी वही करना चाहिए।”

16 किन्तु रूत ने कहा, “अपने को छोड़ने के लिये मुझे विवश मत करो! अपने लोगों में लौटने के लिये मुझे विवश मत करो। मुझे अपने साथ चलने दो। जहाँ कहीं तुम जाओगी, मैं सोऊँगी। जहाँ कहीं तुम सोओगी, मैं सोऊँगी। तुम्हारे लोग, मेरे लोग होंगे। तुम्हारा परमेश्वर, मेरा परमेश्वर होगा। 17 जहाँ तुम मरोगी, मैं भी वहीं मरूँगी और में वहीं दफनाई जाऊँगी। मैं यहोवा से याचना करती हूँ कि यदि मैं अपना वचन तोड़ूँ तो यहोवा मुझे दण्ड देः केवल मृत्यु ही हम दोनों को अलग कर सकती है।”

घर लौटना

18 नाओमी ने देखा कि रूत की उसके साथ चलने की प्रबल इच्छा है। इसलिए नाओमी ने उसके साथ बहस करना बन्द कर दिया। 19 फिर नाओमी और रूत ने तब तक यात्रा की जब तक वे बेतलेहेम नहीं पहुँच गईं। जब दोनों स्त्रियाँ बेतलेहेम पहुँचीं तो सभी लोग बहुत उत्तेजित हुए। उन्होंने कहना आरम्भ किया, “क्या यह नाओमी है?”

20 किन्तु नाओमी ने लोगों से कहा, “मुझे नाओमी मत कहो, मुझे मारा कहो। क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरे जीवन को बहुत दुःखी बना दिया है। 21 जब मैं गई थी, मेरे पास वे सभी चीज़ें थीं जिन्हें मैं चाहती थी। किन्तु अब, यहोवा मुझे खाली हाथ घर लाया है। यहोवा ने मुझे दुःखी बनाया है अत: मुझे ‘प्रसन्न’ क्यों कहते हो? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे बहुत अधिक कष्ट दिया है।”

22 इस प्रकार नाओमी तथा उसकी पुत्रवधु रूत (मोआबी स्त्री) मोआब के पहाड़ी प्रदेश से लौटीं। ये दोनों स्त्रियाँ जौ की कटाई के समय यहूदा के बेतलेहेम में आईं।

रूत का बोअज से मिलना

2बेतलेहेम में एक धनी पुरुष रहता था। उसका नाम बोअज़ था। बोअज़ एलीमेलेक परिवार से नाओमी के निकट सम्बन्धियों में से एक था।

2 एक दिन रूत ने (मोआबी स्त्री) नाओमी से कहा, “मैं सोचती हूँ कि मैं खेतों में जाऊँ। हो सकता है कि कोई ऐसा व्यक्ति मुझे मिले जो मुझ पर दया करके, मेरे लिए उस अन्न को इकट्ठा करने दे जिसे वह अपने खेत में छोड़ रहा हो।”

नाओमी ने कहा, “पुत्री, ठीक है, जाओ।”

3 अत: रूत खेतों में गई। वह फसल काटने वाले मजदूरों के पीछे चलती रही और उसने वह अन्न इकट्ठा किया जो छोड़ दिया गया था। ऐसा हुआ कि उस खेत का एक भाग एलीमेलेक पिरवार के व्यक्ति बोअज का था। 4 बाद में, बेतलेहेम से बोअज़ खेत में आया। बोअज़ ने अपने मज़दूरों का हालचाल पूछा। उसने कहा, “यहोवा तुम्हारे साथ हो!”

मज़दूरों ने उत्तर दिया, “यहोवा आपको आशीर्वाद दे!”

5 तब बोअज़ ने अपने उस सेवक से बातें कीं, जो मज़दूरों का निरीक्षक था। उसने पूछा, “वह लड़की किस की है?”

6 सेवक ने उत्तर दिया, “यह वही मोआबी स्त्री है जो मोआब के पहाड़ी प्रदेश से नाओमी के साथ आई है। 7 वह बहुत सवेरे आई और मुझसे उसने पूछा कि क्या मैं मज़दूरों के पीछे चल सकती हूँ और भूमि पर गिरे अन्न को इकट्ठा कर सकती हूँ और यह तब से काम कर रही है। उसका घर वहाँ है।”

8 तब बोअज़ ने रूत से कहा, “बेटी, सुनो। तुम अपने लिये अन्न इकट्ठा करने के लिये मेरे खेत में रहो। तुम्हें किसी अन्य व्यक्ति के खेत में जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरी दासियों के पीछे चलती रहो। 9 यह ध्यान में रखो कि वे किस खेत में जा रही है और उनका अनुसरण करो। मैंने युवकों को चेतावनी दे दी है कि वे तुम्हें परेशान न करें। जब तुम्हें प्यास लगे, तो उसी घड़े से पानी पीओ जिस से मेरे आदमी पीते हैं।”

10 तब रूत प्रणाम करने नीचे धरती तक झुकी। उसने बोअज से कहा, “मुझे आश्चर्य है कि आपने मुझ पर ध्यान दिया! मैं एक अजनबी हूँ, किन्तु आपने मुझ पर बडी दया की।”

11 बोअज़ ने उसे उत्तर दिया “मैं उन सारी सहायताओं को जानता हूँ जो तुमने अपनी सास नाओमी को दी है। मैं जानता हूँ कि तुमने उसकी सहायता तब भी की थी जब तुम्हारा पति मर गया था और मैं जानता हूँ कि तुम अपने माता—पिता और अपने देश को छोड़कर इस देश में यहाँ आई हो। तुम इस देश के किसी भी व्यक्ति को नहीं जानती, फिर भी तुम यहाँ नाओमी के सात आई। 12 यहोवा तुम्हें उन सभी अच्छे कामों के लिये फल देगा जो तुमने किये हैं। तुम्हें इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा भरपूर करेगा। तुम उसके पास सुरक्षा के लिये आई हो और वह तुम्हारी रक्षा करेगा।”

13 तब रूत ने कहा, “आप मुझ पर बड़े दयालु हैं, महोदय। मैं तो केवल एक दासी हूँ। मैं आपके सेवकों में से भी किसी के बराबर नहीं हूँ। किन्तु आपने मुझसे दयापूर्ण बातें की हैं और मुझे सान्त्वना दी है।”

14 दोपहर के भोजन के समय, बोअज़ ने रूत से कहा, “यहाँ आओ! हमारी रोटियों में से कुछ खाओ। इधर हमारे सिरके में अपनी रोटी डुबाओ।”

इस प्रकार रूत मजदूरों के साथ बैठ गई। बोअज़ ने उसे ढेर सारा भुना अनाज दिया। रूत ने भरपेट खाया और कुछ भोजन बच भी गया। 15 तब रूत उठी और काम करने लौट गई।

तब बोअज़ ने अपने सेवकों से कहा, “रूत को अन्न की ढेरी के पास भी अन्न इकट्ठा करने दो। उसे रोको मत। 16 उसके काम को, उसके लिये कुछ दाने से भी भरी बालें गिराकर, हलका करो। उसे उस अन्न को इकट्ठा करने दो। उसे रूकने के लिये मत कहो।”

नाओमी बोअज के बारे में सुनती है

17 रूत ने सन्ध्या तक खेत में काम किया। तब उसने भूसे से अन्न को अलग किया। लगभग आधा बुशल जौ निकला। 18 रूत उस अन्न को अपनी सास को यह दिखाने के लिये ले गई कि उसने कितना अन्न इकट्ठा किया है। उसने उसे वह भोजन भी दिया जो दोपहर के भोजन में से बच गया था।

19 उसकी सास ने उससे पूछा, “यह अन्न तुमने कहाँ से इकट्ठा किया है? तुमने कहाँ काम किया? उस व्यक्ति को यहोवा का आशीर्वाद मिले, जिसने तुम पर ध्यान दिया।”

तब रूत ने उसे बताया कि उसने किसके साथ काम किया था। उसने कहा, “जिस व्यक्ति के साथ मैंने काम किया था, उसका नाम बोअज है।”

20 नाओमी ने अपनी पुत्रवधु से कहा, “यहोवा उसे आशीर्वाद दे। याहोवा सभी पर दया करता रहता है चाहे वे जीवित हों या मृत हों।” तब नाओमी ने अपनी पुत्रवधु से कहा, “बोअज़ हमारे सम्बन्धियों में से एक है। बोअज हमारे संरक्षकों में से एक है”

21 तब रूत ने कहा, “बोअज़ ने मुझे वापस आने और काम करने को भी कहा है। बोअज़ ने कहा है कि मैं सेवकों के साथ तब तक काम करती रहूँ जब तक फ़सल की कटाई पूरी नहीं हो जाती।”

22 तब नाओमी ने अपनी पुत्रवधु रूत से कहा, “यह अच्छा है कि तुम उसकी दसियों के साथ काम करती रहो। यदि तुम किसी अन्य के खेत में काम करोगी तो कोई व्यक्ति तुम्हें कोई नुकसान पहुँचा सकता है।” 23 अत: रूत बोअज़ की दासियों के साथ काम करती रही। उसने तब तक अन्न इकट्ठा किया जब तक फसल की कटाई पूरी नहीं हुई। उसने वहाँ गेहूँ की कटाई के अन्त तक भी काम किया। रूत अपनी सास, नाओमी के साथ रहती रही।

समीक्षा

दीनतापूर्वक अपनी कहानी बतायें

सच्चा प्रेम अक्सर कठिन, असुविधाजनक और महँगा होता है; लेकिन सच्ची खुशी केवल उन लोगों के पास आती है जो दूसरों के विषय में चिंता करते हैं.

रुथ की पुस्तक दो विधवा और एक गाँव में एक किसान की कहानी है. यह पिछली पुस्तक न्यायियों के विपरीत है. जबकि दोनों पुस्तकों का संदर्भ आदर्शरूप है (रुथ 'तब स्थापित होती है जब न्यायी शासन करते थे' (1:1), दो पुस्तकों का संदर्भ बहुत अलग है.

जबकि न्यायियों बुराई और उथल-पुथल के संग्रह को पुन: याद करता है, क्योंकि 'जिसको जैसा ठीक जान पड़ता था वैसा वह करता था' (न्यायियों 21:25), रुथ की पुस्तक ईमानदारी, वफादारी और दयालुता की एक अद्भुत कहानी है – और भी अधिक मोहित करती है क्योंकि इस लड़ाई के समय में हुई. इसके अतिरिक्त, जब न्यायियों इस अवधि में इस्राएल देश के बड़े चित्र को देखता है, वही रुथ की पुस्तक एक निश्चित परिवार पर केंद्रित है.

यह हमें याद दिलाता है कि ब्रह्मांड और इतिहास के परमेश्वर, आपके जीवन की छोटी सी छोटी बातों के भी परमेश्वर हैं. वह ना केवल परमप्रधान और शक्तिशाली परमेश्वर हैं, लेकिन वह आपके पिता भी हैं जो नजदीकी रूप से आपके साथ चिंतित हैं. आपके जीवन और इसके हर विवरण से परमेश्वर को अंतर पड़ता है. आपका जीवन मूल्यवान है.

रुथ की पुस्तक हमें परमेश्वर की देखभाल, प्रावधान और हमारे जीवन के छोटे से टुकड़ो में वफादारी की याद दिलाती है.

नाओमी अपने से अधिक रूथ के विषय में चिंतित थी. नाओमी चाहती थी कि रुथ घर वापस चली जाए ताकि उसके पास फिर से विवाह करने का मौका हो और नाओमी रुथ की खुशी के लिए रुथ को खोने के लिए तैयार है (रूथ 1:8ö13). नाओमी के लिए रुथ का प्रेम उतना ही निस्वार्थ और स्वयं – को देने वाला था.

वह तैयार हो चुकी थी कि फिर से विवाह नहीं करेगी. वह अपनी सास के प्रति असाधारण ईमानदारी को दिखाती है. वह कहती है, 'आपको छोड़ने के लिए मुझ पर दबाव मत दो; मुझे घर मत जाने दो. जहाँ आप जाओगी वही मैं जाऊँगी; और जहाँ आप रहोगी वही मैं रहूँगी. आपके लोग मेरे लोग हैं, आपका परमेश्वर मेरा परमेश्वर है; जहाँ आप मरोगी, वही मैं मरुँगी, और वही पर मैं गाड़ी जाऊँगी, इसलिए परमेश्वर मेरी सहायता कीजिए –मृत्यु भी हमारे बीच में नहीं आएगी!' (वव.16-17, एम.एस.जी.).

बोअज भी परमेश्वर का भय मानने वाला एक व्यक्ति था. उसने रूथ की प्रसिद्धी के विषय में सुना था. वह ना केवल ईमानदार और वफादार थी – वह बहुत ही कठिन परिश्रमी थी (2:7). किसी ने अवश्य ही उसके विषय में गवाही दी होगी. बोअज कहते हैं, 'मैंने तुम्हारें विषय में सबकुछ सुना है –मैंने सुना है कि कैसे तुमने अपनी सास के साथ बर्ताव किया है उनके पति की मृत्यु के बाद, और कैसे तुमने अपने माता और पिता और अपने जन्मस्थान को छोड़ दिया और पूरी तरह से अजनबियों के बीच में रहने आ गई हो' (व.11, एम.एस.जी.).

इसके अतिरिक्त, रुथ ने अवश्य ही परमेश्वर में अपने विश्वास के विषय में गवाही दी होगी, क्योकि बोअज जानते थे कि वह परमेश्वर के प्रति कटिबद्ध है, 'परमेश्वर यहोवा जिसके पंखों तले तू शरण लेने आई है तुझे पूरा बदला दें' (व.12, एम.एस.जी.).

तब बोअज रुथ के प्रति असाधारण दयालुता को दिखाते हैं. रुथ अपनी सास से कहती है, 'आज जिस व्यक्ति के साथ मैंने काम किया उसका नाम बोअज है...वह जीवित और मृत दोनों के प्रति दयालुता को दिखाते हैं' (वव.19-20).

प्रार्थना

परमेश्वर, ईमानदारी, दयालुता और वफादारी के उदाहरण के लिए आपका धन्यवाद. मेरी सहायता कीजिए कि मैं ऐसा बनूं. एक समुदाय के रुप में हमारी सहायता कीजिए कि ऐसे लोग बने जो ईमानदारी, दयालुता और वफादारी के लिए पहचाने जाते हैं.

पिप्पा भी कहते है

रूथ 1:1-2:23

न्यायियों की पुस्तक के अंतिम अध्याय में लोगों के भयानक बर्ताव के बाद, रुथ की कहानी को पढ़ना कितनी शांति प्रदान करता है. यहाँ पर हमें शांति मिलती है, शांतिभरा जीवन, जहाँ हर कोई ईमानदार, दयालु और भरोसेमंद है. नाओमी और रुथ के बीच संबंध प्रेम और ईमानदारी का एक असाधारण संबंध है, सास और बहू के संबंध के लिए स्तर को बहुत ऊँचा रखते हुए.

दिन का वचन

नीतिवचन – 12:16

"मूढ़ की रिस उसी दिन प्रगट हो जाती है, परन्तु चतुर अपमान को छिपा रखता है।"

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संदर्भ

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