दिन 107

एक परमेश्वर- केंद्रित जीवन के लिए छह कदम

बुद्धि भजन संहिता 47:1-9
नए करार लूका 18:1-30
जूना करार व्यवस्था विवरण 28:15-68

परिचय

विलियम टेंपल, अपने पिता की तरह ही, कैंटरबरी के प्रधान बिशप थे (1942-1944). उनके बहुत से उल्लेखनीय उपलब्धियों के बीच, उन्होंने यूहन्ना के सुसमाचार पर एक बेहतरीन लेख लिखा. उन्होंने संपूर्ण लेख को लिखा, जिसका शीर्षक था संत यूहन्ना के सुसमाचार को पढ़ना, परमेश्वर के सामने अपने घुटनों पर प्रार्थना करते समय.

आराधना के विषय में, उन्होंने लिखाः

'आराधना है हमारे सभी स्वभाव को परमेश्वर के सामने समर्पित करना. यह उनकी पवित्रता के द्वारा विवेक को जीवित करना है; उनकी सच्चाई से दिमाग को पोषित करना; उनकी सुंदरता के द्वारा कल्पना को शुद्ध करना; उनके प्रेम के प्रति अपने हृदय को खोलना; उनके उद्देश्य के प्रति अपनी इच्छा को समर्पित करना – और यह सब आराधना में इकट्ठा होते हैं.'

आराधना हमें स्वयं-केंद्रित होने से बचाती है और हमें परमेश्वर-केंद्रित बनाती है. आप परमेश्वर के साथ एक संबंध में जीने के लिए सृजे गए हैं. इसे आपकी नंबर एक प्राथमिकता होनी चाहिए. यदि आप परमेश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान देंगे, तो हर प्रकार की आशीषें आपके पीछे आएँगी. क्योंकि परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं, वह आपके जीवन के डिजाईन की अवहेलना करने के खतरे के विषय में आपको चेतावनी देते हैं.

लेकिन परमेश्वर-केंद्रित जीवन जीने का क्या अर्थ है और वहाँ पर पहुँचने के लिए आपको कौन से कदम उठाने की आवश्यकता है?

बुद्धि

भजन संहिता 47:1-9

संगीत निर्देशक के लिए कोरह परिवार का एक भक्ति गीत।

47हे सभी लोगों. तालियाँ बजाओ।
 और आनन्द में भर कर परमेश्वर का जय जयकार करो।
2 महिमा महिम यहोव भय और विस्मय से भरा है।
 सरी धरती का वही सम्राट है।
3 उसने अदेश दिया और हमने राष्ट्रों को पराजित किया
 और उन्हें जीत लिया।
4 हमारी धरती उसने हमारे लिये चुनी है।
 उसने याकूब के लिये अद्भुत धरती चुनी। याकूब वह व्यक्ति है जिसे उसने प्रेम किया।

5 यहोवा परमेश्वर तुरही की ध्वनि
 और युद्ध की नरसिंगे के स्वर के साथ ऊपर उठता है।
6 परमेश्वर के गुणगान करते हुए गुण गाओ।
 हमारे राजा के प्रशंसा गीत गाओ। और उसके यशगीत गाओ।
7 परमेश्वर सारी धरती का राजा है।
 उसके प्रशंसा गीत गाओ।
8 परमेश्वर अपने पवित्र सिंहासन पर विराजता है।
 परमेश्वर सभी राष्ट्रों पर शासन करता है।
9 राष्ट्रों के नेता,
 इब्राहीम के परमेश्वर के लोगों के साथ मिलते हैं।
 सभी राष्ट्रों के नेता, परमेश्वर के हैं।
 परमेश्वर उन सब के ऊपर है।

समीक्षा

1. परमेश्वर की आराधना करें

आप परमेश्वर की आराधना करने के लिए बुलाए गए हैं.

इस भजन में आराधना थोड़ी भावनात्मक और शोरगुल वाली लगती हैः'हे देश देश के सब लोगो, तालियाँ बजाओ! ऊँचे शब्द से परमेश्वर के लिये जयजयकार करो...परमेश्वर जयजयकार सहित, यहोवा नरसिंगे के शब्द के साथ ऊपर गया है' (वव.1-5). इसमें बहुत से गीत भी शामिल है (वव.6-7).

आराधना में एक महान उल्लास है, जैसे ही परमेश्वर की आराधना और अद्भुतता अत्यधिक कार्य में उभरती है.

परमेश्वर की आराधना को व्यक्त करने के यें सभी बाहरी तरीके हैं. आराधना में भावनाओं का इस्तेमाल होता है, परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम और आभार को व्यक्त करने के लिए और परमेश्वर को सम्मान देने के लिए.

जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं, 'परमेश्वर ने हमें भावनाएँ और अधिक उद्देश्यों के लिए दी हैं, केवल बॉल गेम में या एक नई गाड़ी के विषय में उत्साही होने के लिए नहीं. निश्चित ही परमेश्वर चाहते हैं कि हम उनके प्रति अपने प्रेम और आभार को व्यक्त करने के लिए अपनी भावनाओं को शामिल करें...यदि हम स्तुति और आराधना के दौरान उचित रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त करते हैं, तो शायद हम दूसरे समय पर अनुचित तरीके से भावनाओं को मुक्त नहीं करेंगे.'

प्रार्थना

परमेश्वर, आज मैं अपने आपको समर्पित करता हूँ. अपनी पवित्रता से मेरे विवेक को जीवित कीजिए. अपनी सच्चाई से मेरे दिमाग को पोषित कीजिए. अपनी सुंदरता से मेरी कल्पना को शुद्ध कीजिए. अपने प्रेम के लिए मेरे हृदय को खोलिये. मैं अपना सबकुछ आपके उद्देश्य के लिए समर्पित करता हूँ. मैं आपकी आराधना करता हूँ.
नए करार

लूका 18:1-30

परमेश्वर अपने भक्त जनों की अवश्य सुनेगा

18फिर उसने उन्हें यह बताने के लिए कि वे निरन्तर प्रार्थना करते रहें और निराश न हों, यह दृष्टान्त कथा सुनाई: 2 वह बोला: “किसी नगर में एक न्यायाधीश हुआ करता था। वह न तो परमेश्वर से डरता था और न ही मनुष्यों की परवाह करता था। 3 उसी नगर में एक विधवा भी रहा करती थी। और वह उसके पास बार बार आती और कहती, ‘देख, मुझे मेरे प्रति किए गए अन्याय के विरुद्ध न्याय मिलना ही चाहिये।’ 4 सो एक लम्बे समय तक तो वह न्यायाधीश आनाकानी करता रहा पर आखिरकार उसने अपने मन में सोचा, ‘न तो मैं परमेश्वर से डरता हूँ और न लोगों की परवाह करता हूँ। 5 तो भी क्योंकि इस विधवा ने मेरे कान खा डाले हैं, सो मैं देखूँगा कि उसे न्याय मिल जाये ताकि यह मेरे पास बार-बार आकर कहीं मुझे ही न थका डाले।’”

6 फिर प्रभु ने कहा, “देखो उस दुष्ट न्यायाधीश ने क्या कहा था। 7 सो क्या परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों पर ध्यान नहीं देगा कि उन्हें, जो उसे रात दिन पुकारते रहते हैं, न्याय मिले? क्या वह उनकी सहायता करने में देर लगायेगा? 8 मैं तुमसे कहता हूँ कि वह देखेगा कि उन्हें न्याय मिल चुका है और शीघ्र ही मिल चुका है। फिर भी जब मनुष्य का पुत्र आयेगा तो क्या वह इस धरती पर विश्वास को पायेगा?”

दीनता के साथ परमेश्वर की उपासना

9 फिर यीशु ने उन लोगों के लिए भी जो अपने आप को तो नेक मानते थे, और किसी को कुछ नहीं समझते, यह दृष्टान्त कथा सुनाई: 10 “मन्दिर में दो व्यक्ति प्रार्थना करने गये, एक फ़रीसी था और दूसरा कर वसूलने वाला। 11 वह फ़रीसी अलग खड़ा होकर यह प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं दूसरे लोगों जैसा डाकू, ठग और व्यभिचारी नहीं हूँ और न ही इस कर वसूलने वाले जैसा हूँ। 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास रखता हूँ और अपनी समूची आय का दसवाँ भाग दान देता हूँ।’

13 “किन्तु वह कर वसूलने वाला जो दूर खड़ा था और यहाँ तक कि स्वर्ग की ओर अपनी आँखें तक नहीं उठा रहा था, अपनी छाती पीटते हुए बोला, ‘हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर।’ 14 मैं तुम्हें बताता हूँ, यही मनुष्य नेक ठहराया जाकर अपने घर लौटा, न कि वह दूसरा। क्योंकि हर वह व्यक्ति जो अपने आप को बड़ा समझेगा, उसे छोटा बना दिया जायेगा और जो अपने आप को दीन मानेगा, उसे बड़ा बना दिया जायेगा।”

बच्चे स्वर्ग के सच्चे अधिकारी हैं

15 लोग अपने बच्चों तक को यीशु के पास ला रहे थे कि वह उन्हें बस छू भर दे। किन्तु जब उसके शिष्यों ने यह देखा तो उन्हें झिड़क दिया। 16 किन्तु यीशु ने बच्चों को अपने पास बुलाया और शिष्यों से कहा, “इन छोटे बच्चों को मेरे पास आने दो, इन्हें रोको मत, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों का ही है। 17 मैं सच्चाई के साथ तुमसे कहता हूँ कि ऐसा कोई भी जो परमेश्वर के राज्य को एक अबोध बच्चे की तरह ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश नहीं पायेगा!”

एक धनिक का यीशु से प्रश्न

18 फिर किसी यहूदी नेता ने यीशु से पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकार पाने के लिये मुझे क्या करना चाहिये?”

19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? केवल परमेश्वर को छोड़ कर और कोई भी उत्तम नहीं है। 20 तू व्यवस्था के आदेशों को तो जानता है, ‘व्यभिचार मत कर, हत्या मत कर, चोरी मत कर, झूठी गवाही मत दे, अपने पिता और माता का आदर कर।’ ”

21 वह यहूदी नेता बोला, “मैं इन सब बातों को अपने लड़कपन से ही मानता आया हूँ।”

22 यीशु ने जब यह सुना तो वह उससे बोला, “अभी भी एक बात है जिसकी तुझ में कमी है। तेरे पास जो कुछ है, सब कुछ को बेच डाल और फिर जो मिले, उसे गरीबों में बाँट दे। इससे तुझे स्वर्ग में भण्डार मिलेगा। फिर आ और मेरे पीछे हो ले।” 23 सो जब उस यहूदी नेता ने यह सुना तो वह बहुत दुखी हुआ, क्योंकि उसके पास बहुत सारी सम्पत्ति थी।

24 यीशु ने जब यह देखा कि वह बहुत दुखी है तो उसने कहा, “उन लोगों के लिये जिनके पास धन है, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर पाना कितना कठिन है! 25 हाँ, किसी ऊँट के लिये सूई के नकुए से निकल जाना तो सम्भव है पर किसी धनिक का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर पाना असम्भव है।”

उद्धार किसका होगा

26 वे लोग जिन्होंने यह सुना, बोले, “फिर भला उद्धार किसका होगा?”

27 यीशु ने कहा, “वे बातें जो मनुष्य के लिए असम्भव हैं, परमेश्वर के लिए सम्भव हैं।”

28 फिर पतरस ने कहा, “देख, हमारे पास जो कुछ था, तेरे पीछे चलने के लिए हमने वह सब कुछ त्याग दिया है।”

29 तब यीशु उनसे बोला, “मैं सच्चाई के साथ तुमसे कहता हूँ, ऐसा कोई नहीं है जिसने परमेश्वर के राज्य के लिये घर-बार या पत्नी या भाई-बंधु या माता-पिता या संतान का त्याग कर दिया हो, 30 और उसे इसी वर्तमान युग में कई गुणा अधिक न मिले और आने वाले काल में वह अनन्त जीवन को न पा जाये।”

समीक्षा

2. नियमित रूप से प्रार्थना करें

परमेश्वर-केंद्रित जीवन, नियमित प्रार्थना का एक जीवन है. यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि 'हमेशा प्रार्थना करो और हार मत मानो' (व.1). आप परमेश्वर से बात कर सकते हैं ना केवल चर्च में या प्रार्थना के निर्धारित समय में, लेकिन कहीं भी और कभी भी. मुझे अपने मसीह जीवन में बहुत पहले ही सिखाया गया था कि दिन में ' आप चलते चलते बातें करें'.

यीशु विधवा और अन्यायी न्यायाधीश के दृष्टांत को बताते हैं जो आखिरकार विधवा का न्याय चुका देते हैं ताकि वह बार बार आकर उसे परेशान करके उसे थका न दे (वव.4-5). यीशु कहते हैं कि यदि एक अन्यायी न्यायाधीश एक विधवा की याचना को सुन लेता है, तो परमेश्वर उन लोगों की क्यों न सुनेंगे जो 'दिन रात उनकी दोहाई देते हैं?' (व.7ब).

3. अपने आपको दीन करें

दीनता एक ऐसी चीज नहीं है जो आपके साथ होती है. यह ऐसा है जिसे आपको अपने लिए करना है. ऊंचा करने के बजाय, आपको अपने आपको 'दीन' करना है. परमेश्वर वादा करते हैं कि वह आपको ऊँचा उठायेंगे (व.14).

यदि हम दूसरों के साथ अपनी तुलना करेंगे, तो शायद हम फरीसियों की तरह बन जाएगें, परमेश्वर का धन्यवाद देते हुए कि हम दूसरों की तरह नहीं हैं -'लुटेरे, बुराई करने वाले, व्यभिचारी' (व.11). फरीसी 'अपनी सत्यनिष्ठा के प्रति आश्वस्त थे' (व.9). वह अपने आप पर भरोसा करने के जाल में फँस गए. यदि हमारा जीवन सच में परमेश्वर पर केंद्रित है (हमारा विवेक उनकी पवित्रता के द्वारा जीवित है), तो हम उनके साथ अपनी तुलना कर सकते हैं और हम केवल यही कह सकते हैं कि, 'परमेश्वर मुझ, पापी पर दया करें' (व.13). सच्चाई यह है कि हम सभी पापी हैं, और हम सभी को परमेश्वर की दया की आवश्यकता है.

मुझे इस लेखांश को पढ़ना और परमेश्वर को धन्यवाद करना बहुत सरल लगता है कि मैं फरीसी की तरह नहीं हूँ. लेकिन ऐसा करने के द्वारा मैं उसी जाल में फँसता हूँ जिसके बारे में यीशु बता रहे हैं -यह सोचना कि मैं दूसरो से अधिक सत्यनिष्ठ हूँ, इसके बजाय कि अपने पाप को मानूं और परमेश्वर की आवश्यकता को मानूँ. यह निश्चित ही फरीसी का पाप है

4. बालक के समान बनें

कभी कभी 'बालकों' (व.15), एक चर्च में बच्चे या जवान लोगों को 'भविष्य का चर्च' कहा जाता है. लेकिन यीशु के अनुसार, वे केवल भविष्य का चर्च नहीं है, वे आज के चर्च हैं: 'परमेश्वर का राज्य ऐसो ही का है' (व.16).

यीशु हमें बालकों के समान बनने के लिए कहते हैं. वह कभी भी बचकाना बनने के लिए नहीं कहते हैं (भोले बनना,) लेकिन वह हमें बालकों के समान बनने के लिए कहते हैं.

बालकों के समान बनना आत्मनिर्भर होना और 'बड़े हो जाना' के विपरीत है. बच्चे खुले दिल के, ग्रहणशील, भरोसा करने वाले, दीन, प्रेमी और क्षमा करने वाले होते हैं. परमेश्वर – जीवन का केन्द्र हैं परमेश्वर पर एक बच्चे के समान निर्भर रहने वाला जीवन.

आप फिर से एक बालक के समान बन जाते हैं जब आप अपनी भावनाओं को दिखाते हैं बाँटते हैं, और पहचानते हैं कि आप कितने थोड़े पलों के लिए हैं और असुरक्षित हैं और आपको परमेश्वर और दूसरों की कितनी अधिक आवश्यकता है.

बच्चे स्वाभाविक रूप से खोज करने और तलाश करने की ओर अग्रसर होते हैं. वे ना तो भूतकाल में जीते हैं नाही वर्तमान में संतुष्ट होते हैं, लेकिन आगे की ओर देखते हैं – भविष्य के लिए - एक न बूझने वाली जिज्ञासा के साथ, आश्चर्य के द्वारा आगे बढ़ते हुए और आनंद के लिए एक प्रचंड क्षमता के साथ.

एक बालक के समान, स्वाभाविक रूप से उत्तर देने के लिए इस स्वतंत्रता को विकसित करिए और आश्चर्य, सम्मान, प्रेम और आनंद को महसूस करने और व्यक्त करने के लिए, तेजी से और आतुरता से खोजने के लिए, अपने लिए वस्तुओं को खोजने के लिए.

5. यीशु के पीछे चलें

यीशु के पीछे चलने से अधिक प्रतिफल देने वाली कोई चीज नहीं है. पतरस ने यीशु से कहा, ' देख, हम तो घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं' (व.28). यीशु उत्तर देते हैं, 'मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए घर, या पत्नी, या भाइयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो; और इस समय कई गुना अधिक न पाए और आने वाले युग में अनन्त जीवन' (वव.29-30).

यीशु अमीर जवान शासक को परमेश्वर द्वारा केंद्रित जीवन में बुलाते हैं. वह उसे सबकुछ छोड़कर उनके पीछे आने के लिए कहते हैं (व.22). शायद से यीशु ने उसमें प्रेरित पतरस, या मत्ती या कोई दूसरा बनने की क्षमता देखी होगी, जिन्होंने सकारात्मक रूप से उत्तर दिया था जब यीशु ने कहा, 'मेरे पीछे आओ.'

जितना अधिक हम भौतिक चीजों को संग्रहित करते हैं, उतना ही अधिक परमेश्वर-केंद्रित जीवन जीना कठिन हो जाता है. अमीर जवान शासक 'बहुत दुखी हो गया, क्योंकि वह बहुत अमीर था' (व.23). अमीर का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना असंभव बात नहीं है (व.27), लेकिन यह बहुत कठिन है (वव.24-25) – इसलिए नहीं कि स्तर ऊँचा है, लेकिन खतरा बहुत ज्यादा दिखता है.

वास्तव में, उस अमीर व्यक्ति को मिलाकर, हममें से हर एक के लिए यह असंभव है, कि अपने खुद के कामों की सामर्थ से परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर पायें (वव.24-25). फिर भी, परमेश्वर के साथ उस अमीर को मिलाकर, यह हर व्यक्ति के लिए संभव है कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करे (व.27). ना तो आपके भूतकाल की असफलताओं को नाही आपकी वर्तमान परिस्थितियों को आपका भविष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है. परमेश्वर के साथ सबकुछ संभव है.

प्रार्थना

परमेश्वर, मुझ पापी पर दया करें, मुझे एक बालक के समान विश्वास दीजिए और आप पर पूर्णनिर्भरता दीजिए और मेरी सहायता कीजिए कि पूरे हृदय से आपके पीछे आने के लिए मैं सबकुछ छोड़ सकूं.
जूना करार

व्यवस्था विवरण 28:15-68

अभिशाप

15 “किन्तु यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर द्वारा कही गई बातों पर ध्यान नहीं देते और आज मैं जिन आदेशों और नियमों को बता रहा हूँ, पालन नहीं करते तो ये सभी अभिशाप तुम पर आयेंगेः

16 “यहोवा तुम्हारे नगरों और गाँवों को
अभिशाप देगा।
17 यहोवा तुम्हारी टोकरियों व बर्तनों को अभिशाप देगा
और तुम्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलेगा।
18 तुम्हारे बच्चे अभिशप्त होंगे। तुम्हारी भूमि की फसलें तुम्हारे मवेशियों के बछड़े और तुम्हारी रेवड़ों के मेमनें अभिशप्त होंगे।

19 तुम्हारा आगमन और प्रस्थान अभिशप्त होगा।

20 “यदि तुम बुरे काम करोगे और अपने यहोवा से मुँह फेरोगे, तो तुम अभिशप्त होगे। तुम जो कुछ करोगे उसमें तुम्हें अव्यवस्था और फटकार का समाना करना होगा। वह यह तब तक करेगा जब तक तुम शीघ्रता से और पूरी तरह से नष्ट नहीं हो जाते। 21 यदि तुम यहोवा की आज्ञा नहीं मानते तो वह तुम्हें तब तक महामारी से पीड़ित करत रहेगा जब तक तुम उस देश में पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाते जिसमें तुम रहने के लिये प्रवेश कर रहे हो। 22 यहोवा तुम्हें रोग से पीड़ित और दुर्बल होने का दण्ड देगा। तुम्हें ज्वर और सूजन होगी। यहोवा तुम्हारे पास भंयकर गर्मी भेजेगा और तुम्हारे यहाँ वर्षा नहीं होगी। तुम्हारी फसलें गर्मी या रोग से नष्ट हो जाएंगी। तुम पर ये आपत्तियाँ तब तक आएंगी जब तक तुम मर नहीं जाते! 23 आकाश में कोई बादल नहीं रहेगा और आकाश काँसा जैसा होगा। और तुम्हारे नीचे पृथ्वी लोहे की तरह होगी। 24 वर्षा के बदले यहोवा तुम्हारे पास आकाश से रेत और धूलि भेजेगा। यह तुम पर तब तक आयेगी जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते।

25 “यहोवा तुम्हारे शत्रुओं द्वारा तुम्हें पराजित करायेगा। तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध एक रास्ते से जाओगे और उनके सामने से सात मार्ग से भागोगे। तुम्हारे ऊपर जो आपत्तियाँ आएँगी वे सारी पृथ्वी के लोगों को भयभीत करेंगी। 26 तुम्हारे शव सभी जंगली जानवरों और पक्षियों का भोजन बनेंगे। कोई व्यक्ति उन्हें डराकर तुम्हारी लाशों से भगाने वाला न होगा।

27 “यदि तुम यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं करते तो वह तुम्हें वैसे फोड़े होने का दण्ड देगा जैसे फोड़े उसने मिस्रियों पर भेजे थे। वह तुम्हें भयंकर फोड़ों और खुजली से पीड़ित करेगा। 28 यहोवा तुम्हें पागल बना कर दण्ड देगा। वह तुम्हें अन्धा और कुण्ठित बनाएगा। 29 तुम्हें दिन के प्रकाश में अन्धे की तरह अपना रास्ता टटोलना पड़ेगा। तुम जो कुछ करोगे उसमें तुम असफल रहोगे। लोग तुम पर बार—बार प्रहार करेंगे और तुम्हारी चीजें चुराएंगे। तुम्हें बचाने वाला वहाँ कोई भी न होगा।

30 “तुम्हारा विवाह किसी स्त्री के साथ पक्का हो सकता है, किन्तु दूसरा व्यक्ति उसके साथ सोयेगा। तुम कोई घर बना सकते हो, किन्तु तुम उसमें रहोगे नहीं। तुम अंगूर का बाग लगा सकते हो, किन्तु इससे कुछ भी इकट्ठा नहीं कर सकते। 31 तुम्हारा बैल तुम्हारी आँखों के सामने मारा जाएगा किन्तु तुम उसका कुछ भी माँस नहीं खा सकते। तुम्हारा गधा तुमसे बलपूर्वक छीन कर ले जाया जाएगा यह तुम्हें लौटाया नहीं जाएगा। तुम्हारी भेड़ें तुम्हारे शत्रुओं को दे दी जाएँगी। तुम्हारा रक्षक कोई व्यक्ति नहीं होगा।

32 “तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियाँ दूसरी जाति के लोगों को दे दी जाएँगी। तुम्हारी आँखे सारे दिन बच्चों को देखने के लिये टकटकी लगाए रहेंगी क्योंकि तुम बच्चों को देखना चाहोगे। किन्तु तुम प्रतीक्षा करते—करते कमजोर हो जाओगे, तुम असहाय हो जाओगे।

33 “वह राष्ट्र जिसे तुम नहीं जानते, तुम्हारे पसीने की कमाई की सारी फसल खाएगा। तुम सदैव परेशान रहोगे। तुम सदैव छिन्न—भिन्न होगे। 34 तुम्हारी आँखें वह देखेंगी जिससे तुम पागल हो जाओगे। 35 यहोवा तुम्हें दर्द वाले फोड़ों का दण्ड देगा। ये फोड़े तुम्हारे घुटनों और पैरों पर होंगे। वे तुम्हारे तलवे से लेकर सिर के ऊपर तक फैल जाएंगे और तुम्हारे ये फोड़े भरेंगे नहीं।

36 “यहोवा तुम्हें और तुम्हारे राजा को ऐसे राष्ट्र में भेजेगा जिसे तुम नहीं जानते होगे। तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने उस राष्ट्र को कभी नहीं देखा होगा। वहाँ तुम लकड़ी और पत्थर के बने अन्य देवताओं को पूजोगे। 37 जिन देशों में यहोवा तुम्हें भेजेगा उन देशों के लोग तुम लोगों पर आई विपत्तियों को सुनकर स्तब्ध रह जाएंगे। वे तुम्हारी हँसी उड़ायेंगे और तुम्हारी निन्दा करेंगे।

असफलता का अभिशाप

38 “तुम अपने खेतों में बोने के लिये आवश्यकता से बहुत अधिक बीज ले जाओगे। किन्तु तुम्हारी उपज कम होगी। क्यों? क्योंकि टिड्डयाँ तुम्हारी फसलें खा जाएंगी। 39 तुम अंगूर के बाग लगाओगे और उनमें कड़ा परिश्रम करोगे। किन्तु तुम उनमें से अंगूर इकट्ठे नहीं करोगे और न ही उन से दाखमधु पीओगे। क्यों? क्योंकि उन्हें कीड़े खा जाएंगे। 40 तुम्हारी सारी भूमि में जैतून के पेड़ होंगे। किन्तु तुम उसके कुछ भी तेल का उपयोग नहीं कर सकोगे। क्यों? क्योंकि तुम्हारे जैतून के पेड़ अपने फलों को नष्ट होने के लिये गिरा देंगे। 41 तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियाँ होंगी, किन्तु तुम उन्हें अपने पास नहीं रख सकोगे। क्यों? क्योंकि वे पकड़कर दूर ले जाए जाएंगे। 42 टिड्डियाँ तुम्हारे पेड़ों और खेतों की फसलों को नष्ट कर देंगी। 43 तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी अधिक से अधिक शक्ति बढ़ाते जाएँगे और तुममें जों भी तुम्हारी शक्ति है उसे खोते जाओगे। 44 विदेशियों के पास तुम्हें उधार देने योग्य धन होगा लेकिन तुम्हारे पास उन्हें उधार देने योग धन नहीं होगा। वे तुम्हारा वैसा ही नियन्त्रण करेंगे जैसा मस्तिष्क शरीर का करता है। तुम पूँछ के समान बन जाओगे।

45 “ये सारे अभिशाप तुम पर पड़ेंगे। वे तुम्हारा पीछा तब तक करते रहेंगे और तुमको ग्रसित करते रहेंगे जब तक तुम नष्ट हो जाते। क्यों? क्योंकि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर की कही हुई बातों की परवाह नहीं की। तुमने उसके उन आदेशों और नियमों का पालन नहीं किया जिसे उसने तुम्हें दिया। 46 ये अभिशाप लोगों को बताएंगे कि परमेश्वर ने तुम्हारे वंशजों के साथ सदैव न्याय किया है। ये अभिशाप संकेत और चेतावनी के रूप में तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को हमेशा याद रहेंगे।

47 “यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें बहुत से वरदान दिये। किन्तु तुमने उसकी सेवा प्रसन्नता और उल्लास भरे हृदय से नहीं की। 48 इसलिए तुम अपने उन शत्रुओं की सेवा करोगे जिन्हें यहोवा, तुम्हारे विरुद्ध भेजेगा। तुम भूखे, प्यासे और नंगे रहोगे। तुम्हारे पास कुछ भी न होगा। यहोवा तुम्हारी गर्दन पर एक लोहे का जुवा तब तक रखेगा जब तक वह तुम्हें नष्ट नहीं कर देता।

शत्रु राष्ट्र का अभिशाप

49 “यहोवा तुम्हारे विरुद्ध बहुत दूर से एक राष्ट्र को लाएगा। यह राष्ट्र पृथ्वी की दूसरी ओर से आएगा। यह राष्ट्र तुम्हारे ऊपर आकाश से उतरते उकाब की तरह शीघ्रता से आक्रमण करेगा। तुम इस राष्ट्र की भाषा नहीं समझोगे। 50 इस राष्ट्र के लोगों के चेहरे कठोर होंगे। वे बूढ़े लोगों की भी परवाह नहीं करेंगे। वे छोटे बच्चों पर भी दयालु नहीं होंगे। 51 वे तुम्हारे मवेशियों के बछड़े और तुम्हारी भूमि की फसल तब तक खायेंगे जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाओगे। वे तुम्हारे लिये अन्न, नयी दाखमधु, तेल तुम्हारे मवेशियों के बछड़े अथवा तुम्हारे रेवड़ों के मेमने नहीं छोड़ेंगे। वे यह तब तक करते रहेंगे जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाओगे।

52 “यह राष्ट्र तुम्हारे सभी नगरों को घेर लेगा। तुम अपने नगरों के चारों ओर ऊँची और दृढ़ दीवारों पर भरोसा रखते हो। किन्तु तुम्हारे देश में ये दीवारें सर्वत्र गिर जाएंगी। हाँ, वह राष्ट्र तुम्हारे उस देश के सभी नगरों पर आक्रमण करेगा जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। 53 जब तक तुम्हारा शत्रु तुम्हारे नगर का घेरा डाले रहेगा तब तक तुम्हारी बड़ी हानि होगी। तुम इतने भूखे होगे कि अपने बच्चों को भी खा जाओगे। तुम अपने पुत्र और पुत्रियों का माँस खाओगे जिन्हें यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हे दिया है।

54 “तुम्हारा बहुत विनम्र सज्जन पुरुष भी अपने बच्चों, भाईयों, अपनी प्रिय पत्नी तथा बचे हुए बच्चों के साथ बहुत क्रूरता का बर्ताव करेगा। 55 उसके पास कुछ भी खाने को नहीं होगा क्योंकि तुम्हारे नगरों के विरूद्ध आने वाले शत्रु इतनी अधिक हानि पहुँचा देंगे। इसलिए वह अपने बच्चों को खायेगा। किन्तु वह अपने परिवार के शेष लोगों को कुछ भी नहीं देगा!

56 “तुम्हारे बीच सबसे अधिक विनम्र और कोमल स्त्री भी वही करेगी। ऐसी सम्पन्न और कोमल स्त्री भी जिसने कहीं जाने के लिये जमीन पर कभी पैर भी न रखा हो। वह अपने प्रिय पति या अपने पुत्र—पुत्रियों के साथ हिस्सा बँटाने से इन्कार करेगी। 57 वह अपने ही गर्भ की झिल्ली को खायेगी और उस बच्चे को भी जिसे वह जन्म देगी। वह उन्हें गुप्त रूप से खायेगी। क्यों? क्योंकि वहाँ कोई भी भोजन नहीं बचा है। यह तब होगा जब तुम्हारा शत्रु तुम्हारे नगरों के विरुद्ध आयेगा और बहुत अधिक कष्ट पहुँचायेगा।

58 “इस पुस्तक में जितने आदेश और नियम लिखे गए हैं उन सबका पालन तुम्हें करना चाहिए और तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर के आश्चर्य और आतंक उत्पन्न करने वाले नाम का सम्मान करना चाहिए। यदि तुम इनका पालन नहीं करते 59 तो यहोवा तुम्हें भयंकर आपत्ति में डालेगा और तुम्हारे वंशज बड़ी परेशानियाँ उठायेंगे और उन्हें भयंकर रोग होंगे जो लम्बे समय तक रहेंगे 60 और यहोवा मिस्र से वे सभी बीमारियाँ लाएगा जिनसे तुम डरते हो। ये बीमारियाँ तुम लोगों में रहेंगी। 61 यहोवा उन बीमारियों और परेशानियों को भी तुम्हारे बीच लाएगा जो इस व्यवस्था की किताब में नहीं लिखी गई हैं। वह यह तब तक करता रहेगा जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते। 62 तुम इतने अधिक हो सकते हो जितने आकाश में तारे हैं। किन्तु तुममें से कुछ ही बचे रहेंगे। तुम्हारे साथ यह क्यों होगा? क्योंकि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर की बात नहीं मानी।

63 “पहले यहोवा तुम्हारी भलाई करने और तुम्हारे राष्ट्र को बढ़ाने में प्रसन्न था। उसी तरह यहोवा तुम्हें नष्ट और बरबाद करने में प्रसन्न होगा। तुम उस देश से बाहर ले जाए जाओगे जिसे तुम अपना बनाने के लिये उसमें प्रवेश कर रहे हो। 64 यहोवा तुम्हें पृथ्वी के एक छोर से दूसरी छोर तक संसार के सभी लोगों मे बिखेर देगा। वहाँ तुम दूसरे लकड़ी और पत्थर के देवताओं को पूजोगे जिन्हें तुमने या तुम्हारे पूर्वजों ने कभी नहीं पूजा।

65 “तुम्हें इन राष्ट्रों के बीच तनिक भी शान्ति नहीं मिलेगी। तुम्हें आराम की कोई जगह नहीं मिलेगी। यहोवा तुम्हारे मस्तिष्क को चिन्ताओं से भर देगा। तुम्हारी आँखें पथरा जाएंगी। तुम अपने को ऊखड़ा हुआ अनुभव करोगे। 66 तुम संकट में रहोगे। तुम दिन—रात भयभीत रहोगे। सदैव सन्देह में पड़े रहोगे। तुम अपने जीवन के बारे में कभी निश्चिन्त नहीं रहोगे। 67 सवेरे तुम कहोगे, ‘अच्छा होता, यह शाम होती!’ शाम को तुम कहोगे, ‘अच्छा होता, यह सवेरा होता!’ क्यों? क्योंकि उस भय के कारण जो तुम्हारे हृदय में होगा और उन आपत्तियों के कारण जो तुम देखोगे। 68 यहोवा तुम्हें जहाजों में मिस्र वापस भेजेगा। मैंने यह कहा कि तुम उस स्थान पर दुबारा कभी नहीं जाओगे। किन्तु यहोवा तुम्हें वहाँ भेजेगा। और वहाँ तुम अपने को अपने शत्रुओं के हाथ दास के रूप में बेचने की कोशिश करोगे, किन्तु कोई व्यक्ति तुम्हें खरीदेगा नहीं।”

समीक्षा

6. परमेश्वर की सेवा करें

इस लेखांश में हम परमेश्वर-केंद्रित जीवन न जीने, नियम को न मानने, सावधानीपूर्वक उनकी आज्ञा को न मानने के दुष्परिणामों को देखते हैं (व.45) और परमेश्वर की सेवा न करने के दुष्परिणाम को देखते हैं (व.47). हम इस दुष्परिणाम को इस्राएल के इतिहास में देखते हैं.

मेरे अपने जीवन में, मैंने वर्णन की गई कुछ चीजों की झलक देखी है, विशेषरूप से परमेश्वर के साथ एक संबंध का अनुभव करने के कुछ सालों पहलेः 'तेरे सिर के ऊपर का आकाश पीतल का होगा' (व.23). मैंने अनुभव किया है कि परमेश्वर से बहुत दूर होने का एहसास क्या होता है.

हम देखते हैं कि कैसे 'परमेश्वर तुम्हें एक चिंतामय दिमाग देंगे, तेरा हृदय काँपता रहेगा और तेरी आँखे धुँधली पड़ जाऍंगी, और तेरा मन व्याकुल रहेगा, और तुझ को जीवन पर नित्य संदेह रहेगा, और तू दिन रात थरथराता रहेगा' (वचव.65-66). यें वचन ऐसे एक जीवन का वर्णन करते हैं जो उस शांति और आनंद के विपरीत है जो यीशु देते हैं.

निश्चित ही, मसीह में विश्वास में आने से पहले, मैंने हमेशा एक परमेश्वर-केंद्रित जीवन नहीं जीया था. कभी कभी मैं सेवा करने में, आज्ञा मानने में और उनके निर्देश को मानने में असफल हो जाता था. नये नियम का अद्भुत समाचार यह है कि यीशु ने हमें दंड और श्रापों से बचा लिया है जो हम पर आनेवाली थीः 'मसीह ने जो हमारे लिये शापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के शाप से छुड़ाया' (गलातियों 3:13).

प्रार्थना

यीशु, आपका बहुत बहुत धन्यवाद क्योंकि आप मेरे लिए मारे गए ताकि मुझे क्षमा मिले और उन परिणामों से मैं मुक्त हो पाऊँ जिसके मैं लायक हूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे एक परमेश्वर-केंद्रित जीवन में बुलाते हैं. मेरी सहायता कीजिए कि मैं पूरे दिल से आपकी आराधना करूं, आनंद और हर्ष के साथ आपकी सेवा करूं, और हमेशा आपकी आज्ञा मानूँ और आपके पीछे चलूं.

पिप्पा भी कहते है

लूका 18:1-8

विधवा की निरंतरता के दृष्टांत को पढ़ने के बाद, मैंने अपनी पिछली कुछ प्रार्थनाओं को देखा, जिनका अब तक उत्तर नहीं मिला है. मुझे लगता है कि मुझे अपना प्रयास करना चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए.

दिन का वचन

लूका – 18:27

"उस ने कहा; जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्वर से हो सकता है।"

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संदर्भ

नोट्स:

जॉयस मेयर, एव्रीडे लाईफ बाईबल, (फेथवर्डस, 2013) पी.862

विलियम टेंपल, रिडिंग इन सेंट जॉन गॉस्पल (मॅकमिलियन, 1952)

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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