प्रेमपूर्ण सीमाएं
परिचय
मुझे याद है, कई साल पहले, एक फुटबॉल मैच का आयोजन किया गया था जिसमें 22 छोटे लड़के थे (जिनमें से एक मेरा बेटा भी था, जिसकी उम्र उस समय 8 साल थी). मेरे एक दोस्त जिसका नाम एन्डी था (जो इन सभी वर्षों तक उन लड़कों का प्रशिक्षक था) वह रेफ्री बनने वाला था. दुर्भाग्य से, दोपहर के 2.30 बजे तक वह नहीं आया. लड़के और ज्यादा इंतजार नहीं कर पाए.
फिर मुझे जबर्दस्ती वैकल्पिक रैफ्री बनना पड़ा. लेकिन मेरे पास सीटी नहीं थी, और पिच की सीमा पर कोई निशान नहीं लगे थे और मुझे नियम भी पता नहीं थे जैसा कि कुछ लड़कों को भी पता नहीं थे.
जल्द ही खेल पूरी तरह से गड़बड़ा गया. कुछ लोग चिल्लाए कि बॉल अंदर था. दूसरों ने कहा कि यह बाहर था. मैं ज्यादा निश्चित नहीं था, इसलिए मैंने ऐसे ही चलने दिया. फिर फॉउल होने लगे. कुछ लोगों ने 'फॉउल' चिल्लाया. दूसरों ने कहा 'कोई फॉल नहीं है'. मुझे नहीं पता था कि कौन सही है. इसलिए मैंने इसी तरह से चलने दिया. फिर लोगों को चोट लगने लगी. जब तक एन्डी पहुँचा, खेल के मैदान पर तीन लड़कों को चोट लग चुकी थी और बाकी के लोग चिल्ला रहे थे, खासकर मुझ पर!
लेकिन जैसे ही वह पहुँचा, उसने सीटी बजाई, टीमों को व्यवस्थित किया, उन्हें बताया कि सीमाएं कहां पर हैं, और उन्हें पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिया. फिर लड़कों ने इस खेल का पूरा आनंद उठाया.
क्या नियमों के बिना लड़के ज्यादा आजाद थे, या वे सच में आजाद नहीं थे? बिना किसी प्रभावशाली अधिकारी के जैसा वे चाहते थे वैसा नहीं कर सकते थे. परिणाम यह हुआ कि लोग दुविधा में थे और वे घायल थे. नियमों के अंतर्गत खेल खेलना उन्हें ज्यादा अच्छा लगता था. इन सीमाओं के अंदर रहकर वे खेल का मजा लेने के लिए आजाद थे. फुटबॉल के नियम खेल का आनंद चुराने के लिए नहीं बनाए गए हैं. वे इस तरह से डिजाइन किये गए हैं ताकि खेल का आनंद पूरी तरह से लिया जा सके.
परमेश्वर के 'नियम' जीवन के लिए उनकी सीमाएं हैं, जो उन्होंने प्यार से हमारे लिए बनाए हैं. परमेश्वर के 'नियमों का पालन' करना जीवन की पूर्णता को पाने का तरीका है. उनकी सीमाएं हमारी आजादी को रोकने के लिए नहीं है, बल्कि हमें आजादी देने के लिए है. फुटबॉल के नियमों की तरह, ये खेल के आनंद को नहीं रोकते. बल्कि ये पूरी तरह से जीवन के खेल का आनंद लेने में मदद करते हैं.
नीतिवचन 7:1-5
विवेक दुराचार से बचाता है
7हे मेरे पुत्र, मेरे वचनों को पाल
और अपने मन में मेरे आदेश संचित कर।
2 मेरे आदेशों का पालन करता रहा तो तू जीवन पायेगा।
तू मेरे उपदेशों को अपनी आँखों की पुतली सरीखा सम्भाल कर रख।
3 उनको अपनी उंगलियों पर बाँध ले,
तू अपने हृदय पटल पर उनको लिख ले।
4 बुद्ध से कह, “तू मेरी बहन है”
और तू समझ बूझ को अपनी कुटुम्बी जन कह।
5 वे ही तुझको उस कुलटा से
और स्वेच्छाचारिणी पत्नी के लुभावनें वचनों से बचायेंगे।
समीक्षा
परमेश्वर की प्रेमपूर्ण सीमाएं
परमेश्वर हमें उनके नियमों का पालन करने के लिए बुलाते नहीं हैं, बल्कि वे आदेश देते हैं. लेकिन यह आदेश किसी तानाशाह का नहीं है, बल्कि ये आदेश प्यार से तैयार किये गए हैं ताकि न्याय, शांति और जीवन की पूर्णता को सुनिश्चित किया जा सके.
नीतिवचन के लेखक एक माता-पिता के समान हैं जो अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें परमेश्वर के आदेशों को बतलाते हैं. वह अपने बच्चों से कहते हैं: ' मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़' (व.1); ' मेरी आज्ञाओं को मान, इस से तू जीवित रहे' (व.2अ); ' मेरी शिक्षा को अपनी आंख की पुतली जान' (व.2ब); ' और इन्हें अपने हृदय की पटिया पर लिख ले' (व.3ब). पवित्र आत्मा ऐसा ही करते हैं वह परमेश्वर के नियमों को आपके हृदय पर लिखते हैं और आपको उनका पालन करने की क्षमता देते हैं (यिर्मयाह 31:33-34).
परमेश्वर की आज्ञा 'बुद्धि' लाती है – और बुद्धि हमारी घनिष्ठ साथिन होनी चाहिये (नीतिवचन 7:4). ये हमें 'अंतर्दृष्टि' देते हैं (व.4) और हमें परेशानी से बचाते हैं (व.5).
प्रार्थना
लूका 1:1-25
लूका का यीशु के जीवन के बारे में लिखना
1बहुत से लोगों ने हमारे बीच घटी बातों का ब्यौरा लिखने का प्रयत्न किया। 2 वे ही बातें हमें उन लोगों द्वारा बतायी गयीं, जिन्होंने उन्हें प्रारम्भ से ही घटते देखा था और जो सुसमाचार के प्रचारक रहे थे। 3 हे मान्यवर थियुफिलुस! क्योंकि मैंने प्रारम्भ से ही सब कुछ का बड़ी सावधानी से अध्ययन किया है इसलिए मुझे यह उचित जान पड़ा कि मैं भी तुम्हारे लिये इसका एक क्रमानुसार विवरण लिखूँ। 4 जिससे तुम उन बातों की निश्चिंतता को जान लो जो तुम्हें सिखाई गयी हैं।
जकरयाह और इलीशिबा
5 उन दिनों जब यहूदिया पर हेरोदेस का राज था वहाँ जकरयाह नाम का एक यहूदी याजक था जो उपासकों के अबिय्याह समुदाय का था। उसकी पत्नी का नाम इलीशिबा और वह हारून के परिवार से थी। 6 वे दोनों ही धर्मी थे। वे बिना किसी दोष के प्रभु के सभी आदेशों और नियमों का पालन करते थे। 7 किन्तु उनके कोई संतान नहीं थी, क्योंकि इलीशिबा बाँझ थी और वे दोनों ही बहुत बूढ़े हो गए थे।
8 जब जकरयाह के समुदाय के मन्दिर में याजक के काम की बारी थी, और वह परमेश्वर के सामने उपासना के लिये उपस्थित था। 9 तो याजकों में चली आ रही परम्परा के अनुसार पर्ची डालकर उसे चुना गया कि वह प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाये। 10 जब धूप जलाने का समय आया तो बाहर इकट्ठे हुए लोग प्रार्थना कर रहे थे।
11 उसी समय जकरयाह के सामने प्रभु का एक दूत प्रकट हुआ। वह धूप की वेदी के दाहिनी ओर खड़ा था। 12 जब जकरयाह ने उस दूत को देखा तो वह घबरा गया और भय ने जैसे उसे जकड़ लिया हो। 13 फिर प्रभु के दूत ने उससे कहा, “जकरयाह डर मत, तेरी प्रार्थना सुन ली गयी है। इसलिये तेरी पत्नी इलीशिबा एक पुत्र को जन्म देगी, तू उसका नाम यूहन्ना रखना। 14 वह तुम्हें तो आनन्द और प्रसन्नता देगा ही, साथ ही उसके जन्म से और भी बहुत से लोग प्रसन्न होंगे। 15 क्योंकि वह प्रभु की दृष्टि में महान होगा। वह कभी भी किसी दाखरस या किसी भी मदिरा का सेवन नहीं करेगा। अपने जन्म काल से ही वह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होगा।
16 “वह इस्राएल के बहुत से लोगों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर लौटने को प्रेरित करेगा। 17 वह एलिय्याह की शक्ति और आत्मा में स्थित हो प्रभु के आगे आगे चलेगा। वह पिताओं का हृदय उनकी संतानों की ओर वापस मोड़ देगा और वह आज्ञा ना मानने वालों को ऐसे विचारों की ओर प्रेरित करेगा जिससे वे धर्मियों के जैसे विचार रखें। यह सब, वह लोगों को प्रभु की खातिर तैयार करने के लिए करेगा।”
18 तब जकरयाह ने प्रभु के दूत से कहा, “मैं यह कैसे जानूँ कि यह सच है? क्योंकि मैं एक बूढ़ा आदमी हूँ और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है।”
19 तब प्रभु के दूत ने उत्तर देते हुए उससे कहा, “मैं जिब्राईल हूँ। मैं वह हूँ जो परमेश्वर के सामने खड़ा रहता हूँ। मुझे तुझ से बात करने और इस सुसमाचार को बताने को भेजा गया है। 20 किन्तु देख! क्योंकि तूने मेरे शब्दों पर, जो निश्चित समय आने पर सत्य सिद्ध होंगे, विश्वास नहीं किया, इसलिये तू गूँगा हो जायेगा और उस दिन तक नहीं बोल पायेगा जब तक यह पूरा न हो ले।”
21 उधर बाहर लोग जकरयाह की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें अचरज हो रहा था कि वह इतनी देर मन्दिर में क्यों रुका हुआ है। 22 फिर जब वह बाहर आया तो उनसे बोल नहीं पा रहा था। उन्हें लगा जैसे मन्दिर के भीतर उसे कोई दर्शन हुआ है। वह गूँगा हो गया था और केवल संकेत कर रहा था। 23 और फिर ऐसा हुआ कि जब उसका उपासना का समय पूरा हो गया तो वह वापस अपने घर लौट गया।
24 थोड़े दिनों बाद उसकी पत्नी इलीशिबा गर्भवती हुई। पाँच महीने तक वह सबसे अलग थलग रही। उसने कहा, 25 “अब अन्त में जाकर इस प्रकार प्रभु ने मेरी सहायता की है। लोगों के बीच मेरी लाज रखने को उसने मेरी सुधि ली।”
समीक्षा
दूसरों के उदाहरण
मेरे जीवन में मुझे सबसे ज्यादा मदद जिस बात ने की है वह दूसरों के उदाहरण से प्रेरित होना. कभी-कभी वृद्ध लोग – जैसे जकर्याह और एलिज़ाबेथ, जिन्होंने अपना जीवन 'निर्दोषपूर्ण तरीके से और प्रभु की आज्ञाओं को मानते हुए बिताया है' (व.6). कई बार युवा लोग – जैसे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले, जो पवित्र आत्मा और सामर्थ से भरे हुए थे. कोई भी, किसी भी उम्र में, प्रेरणादायक उदाहरण बन सकता है.
लूका एक शिक्षित तथा ऐतिहासिक मनुष्य और पारंपरिक रूप से एक चिकित्सक था. संपूर्ण यहूदी जाति में वह एकमात्र अन्यजाति का व्यक्ति था जो नये नियम का लेखक था. उसके दो-संस्करण वाले कार्य - 'लूका-प्रेरितों के कार्य' का यह पहला संस्कार है.
लूका ने यीशु के आसपास होने वाली घटनाओं का सावधानी पूर्वक अवलोकन किया है (व.3). आँखों देखी साक्षी के अनुसार उन्होंने घटनाओं का वर्णन लिखा है (वव.1,2), ताकि आप उन बातों की निश्चितता को जान सकें जिनके बारे में आप सोचते आए हैं' (व.4). आप यीशु के जीने, बलिदान होने और फिर से जी उठने के बारे में विश्वास रख सकते हैं.
वह अपने वर्णन की शुरुवात यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के जन्म से करते हैं. खासकर के, वह इसकी शुरुवात यूहन्ना के माता-पिता जकर्याह और एलिज़ाबेथ से करते हैं: ' वे दोनों परमेश्वर के सामने धर्मी थे: और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलने वाले थे' (व.6). (इस बात को ध्यान रखना जरूरी है कि यहाँ ऐसा कोई संकेत नहीं है कि उनके जीवन में किसी पाप की वजह से एलिजाबेथ बांझ थी – काफी विरोधाभास है).
अंत में उनकी प्रार्थना सुनी गई (व.13). जब हम प्रार्थना करते हैं, तो जितना हम कहते हैं उससे ज्यादा परमेश्वर सुनते हैं, और जितना हम मांगते हैं उससे ज्यादा उत्तर देते हैं और जितना हम कल्पना भी नहीं कर सकते उससे ज्यादा हमें देते हैं. उन्होंने अपनी प्रार्थना का उत्तर पाने के लिए काफी समय तक इंतजार किया. यदि परमेश्वर आपको इंतजार कराते हैं, तो आप अच्छी संगत में हैं.
परमेश्वर ने एक बच्चे के लिए उनकी प्रार्थना को मान्य किया – जिससे वे प्रसन्न और आनंदित हुए. परमेश्वर ने जकर्याह को एक दर्शन दिया (व.22) कि क्या होने वाला है. यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले जन्म से पहले ही पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे (व.15). 'वह पितरों का मन लड़के बालों की ओर फेर दे; और आज्ञा न मानने वालों को धर्मियों की समझ पर लाने वाले थे' (व.17).
परमेश्वर की इच्छा दुनिया को फिर से बुद्धिमानी से जीने के तरीकों पर लाना है और उनकी आज्ञा के उल्लंघन की वजह से आई परेशानी से दूर करना है. यीशु ने इसे संभव किया है. यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला यीशु के लिए मार्ग तैयार करने के लिए आए थे.
प्रार्थना
लैव्यव्यवस्था 26:14-27:34
योहवा की आज्ञा पालन न करने के लिए दण्ड
14 “किन्तु यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे और मेरे ये सब आदेश नहीं मानोगे तो ये बुरी बातें होंगी। 15 यदि तुम मेरे नियमों और आदेशों को मानना अस्वीकार करते हो तो तुमने मेरी वाचा को तोड़ दिया है। 16 यदि तुम ऐसा करते हो तो मैं ऐसा करूँगा कि तुम्हारा भयंकर अनिष्ट होगा। मैं तुमको असाध्य रोग और तीव्र ज्वर लगाऊँगा वे तुम्हारी आँखे कठर करेंगे और तुम्हारा जीवन ले लेंगे। जब तुम अपने बीज बोओगे तो तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी। तुम्हारी पैदावार तुम्हारे शुत्र खाएंगे। 17 मैं तुम्हारे विरुद्ध होऊँगा, अत: तुम्हारे शत्रु तुमको हराएँगे। वे शत्रु तुमसे घृणा करेंगे और तुम्हारे ऊपर शासन करेंगे। तुम तब भी भागोगे जब तुम्हारा पीछा कोई न कर रहा होगा।
18 “यदि इस के बाद भी तुम मेरी आज्ञा पालन नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे पापों के लिए सात गुना अधिक दण्ड दूँगा। 19 मैं उन बड़े नगरों को भी नष्ट करूँगा जो तुम्हें गर्वीला बनाते हैं। आकाश वर्षा नहीं देगा और धरती पैदावार नहीं उत्पन्न करेगी। 20 तुम कठोर परिश्रम करोगे, किन्तु इससे कुछ भी नहीं होगा। तुम्हारी भूमि में कोई पैदावार नहीं होगी और तुम्हारे पेड़ों पर फल नहीं आएंगे।
21 “यदि तब भी तुम मेरे विरुद्ध जाते हो और मेरी आज्ञा का पालन करना अस्वीकार करते हो तो मैं सात गुना कठोरता से मारूँगा। जितना अधिक पाप करोगे उतना अधिक दण्ड पाओगे। 22 मैं तुम्हारे विरुद्ध जंगली जानवरों को भेजूँगा। वे तुम्हारे बच्चों को तुमसे छीन ले जाएगें। वे तुम्हारे मवेशियों को नष्ट करेंगे। वे तुम्हारी संख्या बहुत कम कर देंगे। लोग यात्रा करने से भय खाएंगे, सड़कें खाली हो जाएंगी!
23 “यदि उन चीज़ों के होने पर भी तुम्हें सबक नहीं मिलता और तुम मेरे विरुद्ध जाते हो, 24 तो मैं तुम्हारे विरुद्ध होऊँगा। मैं, हाँ, मैं (यहोवा), तुम्हारे पापों के लिए तुम्हें सात गुना दण्ड दूँगा। 25 तुमने मेरी वाचा तोड़ी है, अतः मैं तुम्हें दण्ड दूँगा। मैं तुम्हारे विरुद्ध सेनाएँ भेजूँगा। तुम सुरक्षा के लिए अपने नगरों में जाओगे। किन्तु मैं ऐसा करूँगा कि तुम लोगों में बीमारियाँ फैलें। तब तुम्हारे शत्रु तुमहे हराएंगे। 26 मैं उस नगर में छोड़े गए अन्न का एक भाग तुम्हें दूँगा। किन्तु खाने के लिए बहुत कम अन्न रहेगा। दस स्त्रियाँ अपनी सभी रोटी एक चूल्हे में पका सकेंगी। वे रोटी के हर एक टुकड़े को नापेंगी। तुम खओगे, किन्तु फिर भी भूखे रहोगे!
27 “यदि तुम इतने पर भी मेरी बातें सुनना अस्वीकार करते हो, और मेरे विरुद्ध रहते हो 28 तो मैं वस्तुत: अपना क्रोध प्रकट करूंगा! मैं, हाँ, मैं (यहोवा) तुम्हें तुम्हारे पापों के लिए सात गुना दण्ड दूँगा। 29 तुम अपने पुत्र पुत्रियों के शरीरों को खाओगे। 30 मैं तुम्हारे ऊँचे स्थानों को नष्ट करूँगा। मैं तुम्हारी सुगन्धित वेदियों को काट डालूँगा। मैं तुम्हारे शवों को तुमहारी निर्जीव मूर्तियों के शवों पर डालूँगा। तुम मुझको अत्यन्त घेनौने लगोगे। 31 मैं तुम्हारे नगरों को नष्ट करूँगा। मैं ऊँचे पवित्र स्थानों को खाली कर दूँगा। मैं तुम्हारी भेंटों की मधुर सुगन्ध को नहीं लूँगा। 32 मैं तुम्हारे देश को इतना खाली कर दूँगा की तुम्हारे शत्रु तक जो इसमें रहने आएंगे, वे इस पर चकित होंगे। 33 और मैं तुम्हें विभिन्न प्रदेशों में बिखेर दूँगा। मैं अपनी तलवार खीचूँगा और तुम्हें नष्ट करूँगा। तुमहारी भूमि ख़ाली हो जाएगी और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे।
34 “तुम अपने शत्रु के देशों में ले जाये जाओगे। तुमहारी धरती खाली हो जायेगी और वह अंत में उस विश्राम को पायेगी। 35 जिसे तुमने उसे तब नहीं दिया था जब तुम उस पर रहते थे। 36 बचे हुए व्यक्ति अपने शत्रुओं के देश में अपना साहस खो देंगे। वह हर चीज से भयभीत होंगे। वह हवा में उड़ती पत्ती की तरह चारों ओर भागेंगें। वे ऐसे भागेंगे मानों कोई तलवरा लिए उनका पीछा कर रहा हो। 37 वे एक दूसरे पर तब भी गिरेंगे जब कोई भी उनका पीछा नहीं कर रहा होगा।
“तुम इतने शक्तिशाली नहीं रहोगे कि अपने शत्रुओं के मुकाबले खड़े रह सको। 38 तुम अन्य लोगों में विलीन हो जाओगे। तुम अपने शत्रुओं के देश में लुप्त हो जाओगे। 39 इस प्रकार तुमहारी सन्तानें तुम्हारे शत्रुओं के देश में अपने पापों में सड़ेंगी। वे अपने पापों में ठीक वैसे ही सड़ेंगी जैसे उनके पूर्वज सड़े।
आशा सदा रहती है
40 “सम्भव है कि लोग अपने पाप स्वीकार करें और वे अपने पूर्वजों के पापों को सवीकार करेंगे। सम्भव हे वे यह स्वीकार करें कि वे मेरे विरुद्ध हुए सम्भव है वे यह स्वीकार करें कि उन्होंने मेरे विरुद्ध पाप किया है। 41 सम्भव है कि वे स्वीकार करें कि मैं उनके विरुद्ध हुआ और उन्हें उनके शत्रुओं के देश में लाया। उन लोगों ने मेरे साथ अजनबी का सा व्यवहार किया। यदि वे विनम्र हो जाएं और अपने पापों के लिए दण्ड स्वीकर करें 42 तो मैं याकूब के साथ के अपनी वचा को याद करूँगा। इसहाक के साथ के अपनी वाचा को याद करुँगा। इब्राहिम के साथ की गई वाचा को मैं याद करूँगा और मैं उस भूमि को याद करूँगा।
43 “भूमि खाली रहेगी। भूमि आराम के समय का आनन्द लेगी। तब तुम्हारे बचे हुए लोग अपने पाप के लिए दण्ड स्वीकार करेगें। वे सीखेंगे कि उन्हें इसलिए दण्ड मिला कि उन्होंने मेरे व्यवस्था से घृणा की और नियमों का पालन करना अस्वीकार किया। 44 उन्होंने सचमुच पाप किया। किन्तु यदि वे मेरे पास सहायता के लिए आते हैं तो मैं उनसे दूर नहीं रहूँगा। मैं उनकी बातें तब भी सुनूँगा जब वे अपने शत्रुओं के देश में भी होगें। मैं उन्हें पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा। मैं उनके साथ अपनी वाचा को नहीं तोड़ूँगा। क्यों? क्योंकि में उनका परमेश्वर यहोवा हूँ। 45 मैं उनके पूर्वजों के साथ की गई वाचा को याद रखूँगा। मैं उनके पूर्वजों को इसलिए मिस्र से बाहर लाया कि मैं उनका परमेश्वर हो सकूँ। दूसरे राष्ट्रों ने उन बातों को देखा। मैं यहोवा हूँ।”
46 ये वे विधियाँ, नियम और व्यवस्थाएं हैं जिन्हें यहोवा ने इस्राएल के लोगों को दिया। वे नियम इस्राएल के लोगों और यहोवा के बीच वाचा है। यहोवा ने उन नियमों को सीनै पर्वत पर दिया था। उसने मूसा को नियम दिए और मूसा ने उन्हें लोगों को दिया।
वचन महत्वपूर्ण हैं
27यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इस्राएल के लोगों से कहो: कोई व्यक्ति यहोवा को विशेष वचन दे सकता है। वह व्यक्ति यहोवा को किसी व्यक्ति को अर्पित करने का वचन दे सकता है। वह व्यक्ति यहोवा की सेवा विशेष ढंग से करेगा। याजक उस व्यक्ति के लिए विशेष मूल्य निश्चित करेगा। यदि लोग उसे यहोवा से वापस खरीदना चाहते हैं तो वे मूल्य देंगे। 3 बीस से साठ वर्ष तक की आयु के पुरुष का मूल्य पचास शेकेल चाँदी होगी। (तुम्हें चाँदी को तोलने के लिए पवित्र स्थान से प्रामाणिक शेकेल का उपयोग करना चाहिए।) 4 बीस से साठ वर्ष की आयु की स्त्री का मूल्य तीस शेकेल है। 5 पाँच से बीस वर्ष आयु के पुरुष का मूल्य बीस शेकेल है। पाँच से बीस वर्ष आयु की स्त्री का मूल्य दस शेकेल है। 6 एक महीने से पाँच महीने तक के बालक का मूल्य पाँच शेकेल है। एक बालिका का मूल्य तीन शेकेल है। 7 साठ या साठ से अधिक आयु के पुरूष का मूल्य पन्द्रह शेकेल है। एक स्त्री का मूल्य दस शेकेल है।
8 “यदि व्यक्ति इतना गरीबत है कि मूल्य देने में असमर्थ है तो उस व्यक्ति को याजक के सामने लाओ। याजक यह निश्चित करेगा कि वह व्यक्ति कितना मूल्य भुगतान में दे सकता है।
यहोवा को भेंट
9 “कुछ जानवरों का उपयोग यहोवा की बलि के रूप में किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति उन जानवरों में से किसी को लाता है तो वह जानवर पवित्र हो जाएगा। 10 वह व्यक्ति यहोवा को उस जानवर को देने का वचन देता है। इसलिए उस व्यक्ति को उस जानवर के स्थान पर दूसरा जानवर रखने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। उसे अच्छे जानवर को बुरे जानवर से नहीं बदलना चाहिए। उसे बुरे जानवर को अच्छे जानवर से नहीं बदलना चाहिए। यदि वह व्यक्ति दोनों जानवरों को बदलना ही चाहता है तो दोनों जानवर पवित्र हो जाएंगे। दोनों जानवर यहोवा के हो जाएंगे।
11 “कुछ जानवर यहोवा को बलि के रूप में नहीं भेंट किए जा सक्ते। यदि कोई व्यक्ति उन अशुद्ध जानवरों में से किसी को यहोवा के लिए लाता है तो वह जानवर याजक के सामने लाया जाना चाहिए। 12 याजक उस जानवर का मूल्य निश्चित करेगा। इससे कोई जानवर नहीं कहा जाएगा कि वह जानवर अच्छा है या बूरा, यदि याजक मूल्य निश्चित कर देता है तो जानवर का वही मूल्य है। 13 यदि व्यक्ति जानवर को वापस खरीदना चाहता है। तो उसे मूल्य में पाँचवाँ हिस्सा और जोड़ना चाहिए।
यहोवा को भेंट किए गए मकान का मूल्य
14 “यदि कोई व्यक्ति अपने मकान को पवित्र मकान के रूप में यहोवा को अर्पित करता है तो याजक को इसका मूल्य निश्चित करना चाहिए। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि मकान अच्छा है या बुरा, यदि याजक मूल्य निश्चित करता है तो वही मकान का मूल्य है। 15 किन्तु वह व्यक्ति जो मकान अर्पित करता है यदि उसे वापस खरीदना चाहता है तो उसे मूल्य में पाँचवाँ हिस्सा जोड़ना चाहिए। तब घर उस व्यक्ति का हो जाएगा।
भूसम्पत्ति का मूल्य
16 “यदि कोई व्यक्ति अपने खेत का कोई भाग यहोवा को अर्पित करता है तो उन खेतों का मूल्य उनको बोने के लिए आवश्यक बीज पर आधारित होगा। एक होमेर जौ के बीज की कीमत चाँदी के पचास शेकेल होगी। 17 यदि व्यक्ति जुबली के वर्ष खेत का दान करता है तब मूल्य वह होगा जो याजक निश्चित करेगा। 18 किन्तु व्यक्ति यदि जुबलि के बाद खेत का दान करता है तो याजक को वास्तविक मूल्य निश्चित करना चाहिए। उसे अगले जुबली वर्ष तक के वर्षों को गिनना चाहिए। तब वह उस गणना का उपयोग मूल्य निश्चित करने के लिए करेगा। 19 यदि खेत दान देने वाला व्यक्ति खेत को वापस खरीदना चाहे तो उसके मूल्य में पाँचवाँ भाग और जोड़ा जाएगा। 20 यदि वह व्यक्ति खेत को वापस नहीं खरीदता है तो खेत सदैव याजकों का होगा। यदि खेत किसी अन्य को बेंचा जाता है तो पहलपा व्यक्ति उसे पापस नहीं खरीद सकता। 21 यदि व्यक्ति खेत को वापस नहीं खरीदता है तो जुबली के वर्ष खेत केवल यहोवा के लिए पवित्र रहेगा। यह सदैव याजकों का रहेगा। यह उस भूमि की तरह होगा जो पूरी तरह यहोवा को दे दी गई हो।
22 “यदि कोई अपने खरीदे खेत को यहोवा को अर्पित करता है जो उसकी निजी सम्पत्ति का भाग नहीं है। 23 तब याजक को जुबली के वर्ष तक वर्षों को गिनना चाहिए और खेत का मूल्य निश्चित करना चाहिए। तब वह खेत योहवा का होगा। 24 जुबली के वर्ष वह खेत मूल भूस्वामी के पास चला जाएगा। वह उस परिवार को जाएगा जो उसका स्वामी है।
25 “तुम्हें पवित्र स्थान से प्रामाणिक शेकेल का उपयोग उन मूल्यों को अदा करने के लिए करना चाहिए। पवित्र स्थान के प्रामाणिक शेकेल का तोल बीस गेरा है।
जानवरों का मूल्य
26 “लोग मवेशियों और भेड़ों को यहोवा को दान दे सकते हैं, किन्तु यदि जानवर पहलौठा है तो वह जानवर जन्म से ही यहोवा का है। इसलिए लोग पहलौठा जानवर का दान नहीं कर सकते। 27 लोगों को पहलौठा जानवर यहोवा को देना चाहिए। किन्तु यदि पलौठा जानवर अशुद्ध है तो व्यक्ति को उस जानवर को वापस खरीदना चाहिए। याजक उस जानवर का मूल्य निश्चित करेगा और व्यक्ति को उस मूल्य का पाँचवाँ भाग उसमें जोड़ना चाहिए। यदि व्यक्ति जानवर को वापस नहीं खरीदता तो याजक को अपने निश्चित किए गाए मूल्य पर उसे बेच देना चाहिए।
विशेष भेंटें
28 “एक विशेष प्रकार की भेंट है जिसे लोग योहवा को चढ़ाते हैं। वह भेंट पूरी तरह यहोवा की है। वह भेंट न तो वापस खरीदी जा सकती है न ही बेची जा सकती है। वह भेंट यहोवा की है। उस प्रकार की भेटें ऐसे लोग, जानवर और खेत हैं, जो परिवार की सम्पत्ति है। 29 यदि वह विशेष प्रकार की योहवा को भेंट कोई व्यक्ति है तो उसे वापस खरीदा नहीं जा सकता। उसे अवश्य मार दिया जाना चाहिए।
30 “सभी पैदावारों का दसवाँ भाग यहोवा का है। इसमें खेतों, फसलें और पेड़ों के फल सम्मिलित हैं। वह दसवाँ भाग यहोवा का है। 31 इसलिए यदि कोई व्यक्ति अपना दसवाँ भाग वापस लेना चाहता है तो उसके मूल्य का पाँचवाँ भाग उसमें जोड़ना चाहिए और वापस खरीदना चाहिए।
32 “याजक व्यक्तियों के मवेशियों और भेड़ों में से हर दसवाँ जानवर लेगा। हर दसवाँ जानवर यहोवा का होगा। 33 मालिक को यह चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि वह जानवर अच्छा है या बुरा। उसे जानवर को अन्य जानवर से नहीं बदलना चाहिए। यदि वह बदलने का निश्चय करता है तो दोनों जानवर यहोवा के होंगे। वह जानवर वापस नहीं खरीदा जा सकता।”
34 ये वे आदेश हैं जिन्हें यहोवा ने सीनै पर्वत पर मूसा को दिये। ये आदेश इस्राएल के लोगों के लिए हैं।
समीक्षा
सीमाओं की आशीष
परमेश्वर आप से प्रेम करते हैं. वह आपको दु:ख पहुँचाना नहीं चाहते और आपके और दूसरों के जीवन को बिगाड़ना नहीं चाहते. इसलिए वह आपको अपनी निर्देश पुस्तिका देना चाहते हैं और उनकी प्रेममयी सीमाओं के बाहर जीने के प्रति आपको चिताना चाहते हैं.
लैव्यव्यवस्था की आखिरी पुस्तक को वचन सारांशित करता है: 'आज्ञाएं यहोवा ने इस्रालियों के लिये सीनै पर्वत पर मूसा को दी थीं वे ये ही हैं ' (27:34). उनकी सीमाओं का उद्देश्य आशीष लाना था.
आज का लेखांश विनाशकारी परिणामों का उल्लेख करता है जब परमेश्वर के लोग 'उनकी नहीं सुनते और उनकी आज्ञाओं को नहीं मानते' (26:14). 'यदि तुम मेरी विधियों को निकम्मा जानोगे, और तुम्हारी आत्मा मेरे निर्णयों से घृणा करे, और तुम मेरी सब आज्ञाओं का पालन न करोगे, वरन मेरी वाचा को तोड़ोगे, तो मैं तुम से यह करूंगा.....' (व.15).
हम अस्त-व्यस्त दुनिया को देखते हैं जो कि बल के घमंड' का परिणाम है (व.19). परमेश्वर के साथ संबंध टूट गया है. प्रार्थनाएं सफल नहीं होतीं. परमेश्वर कहते हैं, 'तुम्हारे लिये आकाश को ऐसा बनाऊँगा मानो यह लोहे का हो' (व.20). तुम भौतिक रूप से चाहें कितने भी सफल हो, लेकिन यह तुम्हें संतुष्ट नहीं कर पाएगा: ' तुम खाकर भी तृप्त न होगे' (वव.26ब). इनका उल्लेख 'आज्ञा के उल्लंघन के कारण पड़ने वाले श्राप के रूप में' किया गया है.'
परमेश्वर पश्चाताप करने का हर संभव मौका प्रदान करते हैं. वह हमारे मार्ग में हर तरह की अड़चन पैदा करते हैं ताकि हम उनकी ओर फिरें (वव.18,21,23,27). उनकी विश्वासयोग्यता में और लगातार तिरस्कार के बावजूद, परमेश्वर हमें फिर से अपनाने के लिए हमेशा से तैयार हैं, यदि हम पश्चाताप करें और खुद को दीन बनाएं (वव.40-42).
यह सब यीशु की ओर संकेत करता है. इन सभी आज्ञाओं के बारे में दु:खद बात यह है कि इनका पालन कोई नहीं कर पाता. इन वचनों में यह स्पष्ट है कि परमेश्वर जानते थे कि लोग इनका उल्लंघन करेंगे और इन सारे श्रापों को खुद पर लाएंगे. फिर भी यह कहानी का अंत नहीं था, परमेश्वर फिर भी वायदा करते हैं कि वह अपने लोगों को छुड़ांएगे और मुक्त करेंगे (वव.42-45). अंत में परमेश्वर ने व्यवस्था के श्रापों को खुद पर ले लिया.
जब हम इन सभी की पृष्ठ भूमि देखते हैं तब हम जान जाते हैं कि क्रूस कितना विस्मयकारी है और हमारे लिए श्रापित होने के कारण यीशु ने कितना दु:ख उठाया और विश्वास करने के द्वारा निर्दोष साबित होना और पवित्र आत्मा के वायदों को प्राप्त करना कितनी महान आशीष है (गलातियों 3:10-14).
परमेश्वर की आत्मा हमें बदल देते हैं जब वह हमारे दिलों पर अपनी सीमाओं को लिखते हैं. जैसाकि पौलुस लिखते हैं, 'आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे' (5:16). 'परमेश्वर का आत्मा आपके अंदर यह फल पैदा करता है जैसे प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं' (व.22).
यह सीमाएं प्रेमपूर्वक दी गई हैं. यीशु इन आज्ञाओं को सारांशित करते हैं, 'अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करो..... और..... अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो' (मत्ती 22:37-40). 'हमें उनसे प्रेम करना हैं क्योंकि पहले उन्होंने हमसे प्रेम किया' (1यूहन्ना 4:19). प्रेम के कारण, वह आपके लिए मरे और वह आपको अपना पवित्र आत्मा देते हैं ताकि आप प्रेम पूर्ण जीवन जीने के द्वारा उनकी आज्ञाओं को मानने में सक्षम हो जाएं.
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
लूका 1:13
'स्वर्गदूत ने उससे कहा...... "तुम्हारी प्रार्थना सुन ली गई है"'.
जकर्याह कई दशकों से एक बच्चे के लिए प्रार्थना कर रहा था और शायद उसने यह विशेष प्रार्थना करना भी छोड़ दिया होगा. यह प्रोत्साहित करने वाली बात है कि जब ऐसा लगता है कि परमेश्वर नहीं सुन रहे हैं, तब भी वह सुन रहे होते हैं. यूहन्ना का इस दुनिया में आने का परमेश्वर द्वारा निर्धारित समय बिल्कुल सही था. हम हमेशा बड़ी तस्वीर नहीं देखते.
दिन का वचन
लूका 1:13
"….क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है…."

App
Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.

Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.
Podcast
Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.

Website
Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.
संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।