अपने जीवन को महान कैसे बनाएं
परिचय
शेन क्लेबोर्न उनकी पुस्तक 'इर्रज़िस्टेबल रिवोल्यूशन' में लिखते हैं 'अक्सर लोंग मुझसे पूछतें हैं कि मदर टेरेसा किस तरह की व्यक्ति थी।' कभी – कभी वे आश्चर्य करते है कि क्या वह अंधेरे में चमकती थी या उनके चेहरे के आस-पास चमक थी। वह कद में छोटी थी, उनके चेहरे पर झुर्रियाँ थी और...एक सुंदर बुद्धिमान बूढ़ी दादी की तरह। किंतु एक चीज़ है जिसे मैं कभी नहीं भूलूँगा – उनके पैर। उनके पैर खराब हो गए थे।
हर सबेरे मैं उन्हें घूरता था। मुझे आश्चर्य होता था कि कही उन्हें कोढ़ तो नहीं हुआ है। एक दिन एक सिस्टर ने बताया, 'उनके पैर खराब हो गए हैं क्योंकि हमें सभी के लिए केवल पर्याप्त दान किए गए जूते मिलते हैं, और मदर नहीं चाहती हैं कि कोई भी खराब जोड़े में फँस जाएं, इसलिए वह उनमें पैर डालकर स्वयं उन्हें ढूँढ़ती हैं। और सालों से ऐसा करने के कारण उनके पैर खराब हो गए हैं।' 'सालों से अपने पड़ोसियों से अपने ही समान प्रेम करने के कारण उनके पैर खराब हो गए'।
जब लोगों से पूछा जाता हैं कि वे किसके जीवन को ज़्यादा पसंद करते हैं, अक्सर जवाब होता है 'मदर टेरेसा'। उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया। यह एक विरोधाभास है, क्योंकि उनका जीवन स्वयं को नकारने वाला जीवन था, अपने क्रूस को लेकर यीशु के पीछे चलना।
जीवन एक असाधारण और अद्भुत उपहार है। बाइबल में हमें नियमित रूप से चिताया गया है कि इस उपहार को व्यर्थ न जाने दें, बल्कि इसे महान बनाएं।
नीतिवचन 6:1-11
कोई चूक मत कर
6हे मेरे पुत्र, बिना समझे बूझे यदि किसी की जमानत दी है
अथवा किसी के लिये वचनबद्ध हुआ है,
2 यदि तू अपने ही कथन के जाल में फँस गया है,
तू अपने मुख के ही शब्दों के पिंजरे में बन्द हो गया है
3 तो मेरे पुत्र, क्योंकि तू औरों के हाथों में पड़ गया है,
तू स्वंय को बचाने को ऐसा कर: तू उसके निकट जा और
विनम्रता से अपने पड़ोसो से अनुनय विनम्र कर।
4 निरन्तर जागता रह, आँखों में नींद न हो और
तेरी पलकों में झपकी तक न आये।
5 स्वंय को चंचल हिरण शिकारी के हाथ से और
किसी पक्षा सा उसके जाल से छुड़ा ले।
आलसी मत बनों
6 अरे ओ आलसी, चींटी के पास जा।
उसकी कार्य विधि देख और उससे सीख ले।
7 उसका न तो काई नायक है,
न ही कोई निरीक्षक न ही कोई शासक है।
8 फिर भी वह ग्रीष्म में भोजन बटोरती है और
कटनी के समय खाना जुटाती है।
9 अरे ओ दीर्घ सूत्री, कब तक तुम यहाँ पड़े ही रहोगे?
अपनी निद्रा से तुम कब जाग उठोगे?
10 तुम कहते रहोगे, “थोड़ा सा और सो लूँ, एक झपकी ले लूँ,
थोड़ा सुस्ताने को हाथों पर हाथ रख लूँ।”
11 और बस तुझको दरिद्रता एक बटमार सी आ घेरेगी और
अभाव शस्त्रधारी सा घेर लेगा।
समीक्षा
आत्म - संयम पर स्वामित्व पायें
नीतिवचन की पुस्तक आपको प्रायोगिक बुद्धि देती है कि कैसे अपने जीवन को महान बनाना है और कैसे इसे विभिन्न जालों में फँसने के द्वारा बेकार होने से बचाना है। आज के लेखांश में हम दो उदाहरण को देखते हैं:
- अपने धन पर स्वामित्व पायें
अ. जीवन का एक क्षेत्र जिसमें आत्म - संयम की आवश्यकता है, वह है हमारा धन। हमेशा बहुत से आर्थिक जाल और फँदे होते हैं – जैसे कि सॅंभाला ना जा सकने वाला क़र्ज़, बेवकूफी भरे निवेश, और मूर्खतापूर्ण प्रतिज्ञाएं। लेखक आपको चिताते हैं कि यदि आपने अपने आपको आर्थिक परेशानी में पाया है (पद - 2-5), तो इसमें से बाहर निकलने के लिए आपको वह सब करना चाहिए जो आप कर सकते हैं, जितनी जल्दी हो सकेः 'एक मिनट भी मत गॅंवाईयें' (पद - 3, एम.एस.जी.)। '
ब. शायद हमें अपने आपको दीन करना पड़े (पद - 3ब)। शायद हमें अपने मामले की याचना करनी पड़े (पद - 3क) इन फँदो से अपने आपको मुक्त करने के लिए हमें वह सब करना चाहिए जो हम कर सकते हैं (पद - 5)। यदि हम अपने धन को सॅंभाल नहीं पायेंगे, तो यह हमारें जीवन पर और हमारे परिवार पर हानिकारक प्रभाव बना सकता है।
- अपने समय पर स्वामित्व पायें
अ. स्वयं - अनुशासन की कमी के कारण हम अपने जीवन को व्यर्थ कर सकते हैं। उत्तरदायी बनें बिना हम आसानी से आलसी बन सकते हैं, और इसके बहुत बुरें परिणाम हो सकते हैं (पद - 9-11)। हम चींटी से स्वयं - लीडरशिप सीख सकते हैं; कोई उसे नहीं बताता है कि क्या करना है। 'उसे आज्ञा देने वाला कोई नहीं होता है, उसका कोई निरीक्षक या शासक नहीं होता है' (पद - 7), फिर भी वह बहुत कठिन परिश्रम करती हैः 'वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं' (पद - 8)।
ब. निश्चित ही, यह महत्त्वपूर्ण है कि आप पर्याप्त नींद लें। हमारे शरीर को आराम की ज़रूरत है। किंतु हमें ध्यान देने की ज़रूरत है कि हम अपना समय बेकार की गतिविधी में बरबाद ना करें।
प्रार्थना
मरकुस 8:14-9:1
यहूदी नेताओं के विरुद्ध यीशु की चेतावनी
14 यीशु के शिष्य कुछ खाने को लाना भूल गये थे। एक रोटी के सिवाय उनके पास और कुछ नहीं था। 15 यीशु ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, “सावधान! फरीसियों और हेरोदेस के ख़मीर से बचे रहो।”
16 “हमारे पास रोटी नहीं है,” इस पर, वे आपस में सोच विचार करने लगे।
17 वे क्या कह रहे हैं, यह जानकर यीशु उनसे बोला, “रोटी पास नहीं होने के विषय में तुम क्यों सोच विचार कर रहे हो? क्या तुम अभी भी नहीं समझते बूझते? क्या तुम्हारी बुद्धि इतनी जड़ हो गयी है? 18 तुम्हारी आँखें हैं, क्या तुम देख नहीं सकते? तुम्हारे कान हैं, क्या तुम सुन नहीं सकते? क्या तुम्हें याद नहीं? 19 जब मैंने पाँच हजार लोगों के लिये पाँच रोटियों के टुकड़े किये थे और तुमने उन्हें कितनी टोकरियों में बटोरा था?”
“बारह”, उन्होंने कहा।
20 “और जब मैंने चार हज़ार के लिये सात रोटियों के टुकड़े किये थे तो तुमने कितनी टोकरियाँ भर कर उठाई थीं?”
“सात”, उन्होंने कहा।
21 फिर यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब भी नहीं समझे?”
अंधे को आँखें
22 फिर वे बैतसैदा चले आये। वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे को लाये और उससे प्रार्थना की कि वह उसे छू दे। 23 उसने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया। उसने उसकी आँखों पर थूका, अपने हाथ उस पर रखे और उससे पूछा, “तुझे कुछ दिखता है?”
24 ऊपर देखते हुए उसने कहा, “मुझे लोग दिख रहे हैं। वे आसपास चलते पेड़ों जैसे लग रहे हैं।”
25 तब यीशु ने उसकी आँखों पर जैसे ही फिर अपने हाथ रखे, उसने अपनी आँखें पूरी खोल दीं। उसे ज्योति मिल गयी थी। वह सब कुछ साफ़ साफ़ देख रहा था। 26 फिर यीशु ने उसे घर भेज दिया और कहा, “वह गाँव में न जाये।”
पतरस का कथन: यीशु मसीह है
27 और फिर यीशु और उसके शिष्य कैसरिया फिलिप्पी के आसपास के गाँवों को चल दिये। रास्ते में यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा, “लोग क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँ?”
28 उन्होंने उत्तर दिया, “बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना पर कुछ लोग एलिय्याह और दूसरे तुझे भविष्यवक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।”
29 फिर यीशु ने उनसे पूछा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ।”
पतरस ने उसे उत्तर दिया, “तू मसीह है।”
30 फिर उसने उन्हें चेतावनी दी कि वे उसके बारे में यह किसी से न कहें।
यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की भबिष्यवाणी
31 और उसने उन्हें समझाना शुरु किया, “मनुष्य के पुत्र को बहुत सी यातनाएँ उठानी होंगी और बुजुर्ग, प्रमुख याजक तथा धर्मशास्त्रियोंं द्वारा वह नकारा जायेगा और निश्चय ही वह मार दिया जायेगा। और फिर तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जी उठेगा।” 32 उसने उनको यह साफ़ साफ़ बता दिया।
फिर पतरस उसे एक तरफ़ ले गया और झिड़कने लगा। 33 किन्तु यीशु ने पीछे मुड़कर अपने शिष्यों पर दृष्टि डाली और पतरस को फटकारते हुए बोला, “शैतान, मुझसे दूर हो जा! तू परमेश्वर की बातों से सरोकार नहीं रखता, बल्कि मनुष्य की बातों से सरोकार रखता है।”
34 फिर अपने शिष्यों के साथ भीड़ को उसने अपने पास बुलाया और उनसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है तो वह अपना सब कुछ त्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। 35 क्योंकि जो कोई अपने जीवन को बचाना चाहता है, उसे इसे खोना होगा। और जो कोई मेरे लिये और सुसमाचार के लिये अपना जीवन देगा, उसका जीवन बचेगा। 36 यदि कोई व्यक्ति अपनी आत्मा खोकर सारे जगत को भी पा लेता है, तो उसका क्या लाभ? 37 क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी वस्तु के बदले में जीवन नहीं पा सकता। 38 यदि कोई इस व्यभिचारी और पापी पीढ़ी में मेरे नाम और वचन के कारण लजाता है तो मनुष्य का पुत्र भी जब पवित्र स्वर्गदूतों के साथ अपने परम पिता की महिमा सहित आयेगा, तो वह भी उसके लिए लजायेगा।”
9और फिर उसने उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, यहाँ जो खड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो परमेश्वर के राज्य को सामर्थ्य सहित आया देखने से पहले मृत्यु का अनुभव नहीं करेंगे।”
समीक्षा
अपना जीवन समर्पित कर दें
यीशु अपने चेलों को फारीसियों और हेरोदेस के 'खमीर' के विरूद्ध चेतावनी देते हैं (8:15)। 'खमीर' मानवजाति में बुराई की प्रवृत्ति का एक सामान्य रूपक अलंकार है, हालॉंकि जो एक छोटी चीज़ लगती है, फिर भी यह व्यक्ति को दूषित करती है। फिर भी चेले समझ नहीं सकें क्योंकि वे भौतिकता के द्वारा इतने प्रभावित हो चुके थे कि वे आत्मिकता को नहीं देख सकें।
ऐसा नहीं है कि भौतिक चीज़ों में कुछ परेशानी हैं। अंधा व्यक्ति यीशु को छूना चाहता था (पद - 22)। यीशु ने कुछ भौतिक काम किए – उन्होंने उस व्यक्ति की आँखो पर थूंका और दो बार उस पर अपने हाथ रखें (पद - 23-25)। उन्होंने दो बार प्रार्थना की और वह मनुष्य चंगा हो गया। यह हमें उत्साहित करता है बीमारों के लिए एक से अधिक बार प्रार्थना करने के लिए।
आखिरकार चेले समझते हैं कि यीशु कौन हैं: 'आप मसीह हैं' (पद - 29)। 'क्रिस्टोस' का अर्थ है 'अभिषिक्त व्यक्ति, मसीहा'। यीशु के समय में यह शब्द दाऊद के वंश से आने वाले राजा की आशा के साथ जुड़ा हुआ था। किंतु, पुराने नियम में, राजा, याजक और भविष्यवक्ता सभी अभिषिक्त थे। यीशु उन सभी की परिपूर्णता हैं। वह राजा हैं, महान महायाजक, भविष्यवक्ता।
फिर भी यह शीर्षक, 'मसीहा' पर्याप्त नहीं था। यीशु को 'मनुष्य का पुत्र' कहलाना ज़्यादा पसंद था (पद - 31)। 'मनुष्य का पुत्र' और अधिक 'प्रतापी' था और इसलिए ज़्यादा ठीक लगने वाला शीर्षक था। इसमें कष्ट उठाने का विचार शामिल था (दानिएल 7:21)। 'मुनष्य का पुत्र' एक प्रतिनिधित्व करने वालो के रुप में भी था, जो अपने आपको मानवजाति के साथ दर्शाता था।
तब यीशु ने क्रूस के विषय में बताना शुरु किया (मरकुस 8:31)। हम तब तक क्रूस को नहीं समझ सकते हैं जब तक हम न समझ लें कि यीशु कौन हैं। उनकी शिक्षा इतनी विरोधाभासी,... और आश्चर्यचकित करने वाली है कि पतरस उन्हें डाँटने के लिए उन्हें एकांत में ले जाते हैं (पद - 32)।
यहाँ पर अंधे मनुष्य के चंगे होने के साथ - साथ एक समरूप कार्य होता है, जो कि चेलों की आँखे धीरे - धीरे खुलने के दृश्य उदाहरण के रूप में काम करता है। पहला, यीशु की पहचान के बारे में पतरस की आँखे खुलती हैं (पद - 29)। किंतु, उन्होंने केवल आधा ही समझा। उन्होंने यीशु के 'मिशन' को नहीं देखा (पद - 31-32)। पतरस 'देख' सकते थे, किंतु वह पूरी तरह से देख नहीं सकते थे।
यीशु को अपने चेलों को समझाना पड़ा कि हमारे जीवनों को पूरी तरह से महान करने में असाधारण विरोधाभास शामिल है – जिसके लिए उन्हें महान उदाहरण दर्शाना था। वे कहते हैं कि यदि आप अपने जीवन को महान बनाना चाहते हैं, तो आपको इसे समर्पित करना पड़ेगा। आपको परमेश्वर की सेवा और सुसमाचार के लिए अपने जीवन को त्यागना पड़ेगा - 'क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा' (पद - 35)।
इसके विपरीत वे कहते हैं कि यह संभव है कि 'कोई संपूर्ण जगत को प्राप्त करे, फिर भी (अपने) प्राण की हानि उठाए' (पद - 36)। नायक जिम कैरी ने कहा, 'मुझे लगता है कि हर एक को अमीर और प्रसिद्ध होना चाहिए और वह करना चाहिए जिसका उन्होंने सपना देखा हो, ताकि वें देख सकें कि यह उत्तर नहीं है।'
यहाँ तक कि सबसे बड़े मल्टि – बिलेनियर्स के पास विश्व का केवल कुछ भाग है। यीशु हमें चेतावनी देते हैं कि यदि हम उस दिशा में चले जाते हैं, तो चाहे हम उनकी सफलता के ऊपर चले जाए और संपूर्ण विश्व को प्राप्त कर लें, तब भी हम पूरी तरह से अपने जीवन को बेकार कर सकते हैं और अपने प्राण की हानि उठा सकते हैं (पद - 36)। वह कहते हैं जीवन को पाने का तरीका है अपने आपका इनकार करना और अपने क्रूस को लेकर उनके पीछे चलना (पद - 34)।
शब्द 'अपने आपका इनकार करना' का अर्थ है अपने आपको ‘ना’ कहना। मसीह जीवन में प्रतिदिन इनकार करने की चुनौती का समावेश है। विश्व सोचता है कि जीवन को प्राप्त करने का तरीका है अपने आपको किसी भी चीज़ के लिए मना न करना। यीशु कहते हैं कि इसका उल्टा सच है। जीवन को प्राप्त करने का तरीका है अपने आपका इनकार करना और अपना क्रूस लेकर उनके पीछे चलना।
आप प्रेम करने के लिए बुलाए गए हैं। आपको परमेश्वर के लिए और दूसरे लोगों के लिए जीना है। और जैसे ही आप अपने आपको समर्पित करते हैं, वैसे ही परमेश्वर आपके जीवन की देखभाल करेंगे।
यीशु की शिक्षा सुधारवादी और क्रांतिकारी है। यह ठीक उसके विपरीत है जिसकी हम आशा करते हैं, फिर भी हम देखते हैं कि कैसे यह काम करती है। जो अपनी ही संतुष्टि को पाना चाहते हैं वे बरबाद हो जाते हैं और असंतुष्ट रहते हैं और उनका जीवन बेकार हो जाता है; जो लोग यीशु की शिक्षा को मानते हैं, वे जीवन को इसकी परिपूर्णता में प्राप्त करते हैं।
प्रार्थना
निर्गमन 37:1-38:31
साक्षीपत्र का सन्दूक
37बसलेल ने बबूल की लकड़ी का पवित्र सन्दूक बनाया। सन्दूक पैतालिस इंच लम्बा, सत्ताईस इंच चौड़ा और सत्ताईस इंच ऊँचा था। 2 उसने सन्दूक के भीतरी और बाहरी भाग को शुद्ध सोने से मढ़ दिया। तब उसने सोने की पट्टी सन्दूक के चारों ओर लगाई। 3 फिर उसने सोने के चार कड़े बनाए और उन्हें नीचे के चारों कोनों पर लगाया। ये कड़े सन्दूक को ले जाने के लिए उपयोग में आते थे। दोनों तरफ दो—दो कड़े थे। 4 तब उसने सन्दूक ले चलने के लिये बल्लियों को बनाया। बल्लियों के लिये उसने बबूल की लकड़ी का उपयोग किया और बल्लियों को शुद्ध सोने से मढ़ा। 5 उसने सन्दूक के हर एक सिरे पर बने कड़ों में बल्लियों को डाला। 6 तब उसने शुद्ध सोने से ढक्कन को बनाया। ये ढाई हाथ लम्बा तथा डेढ़ हाथ चौड़ा था। 7 तब बसलेल ने सोने को पीट कर दो करूब बनाए। उसने ढक्कन के दोनों छोरो पर करूब लगाये। 8 उसने एक करूब को एक ओर तथा दूसरे को दूसरी ओर लगाया। करूब को ढक्कन से एक बनाने के लिये जोड़ दिया गया। 9 करूबों के पंख आकाश की ओर उठा दिए गए। करूबों ने सन्दूक को अपने पंखों से ढक लिया। करूब एक दूसरे के सामने ढक्कन को देख रहे थे।
विशेष मेज
10 तब बसलेल ने बबूल की लकड़ी की मेज बनाई। मेज़ छत्तीस इंच लम्बी, अट्ठारह इंच चौड़ी और सत्ताईस इंच ऊँची थी। 11 उसने मेज को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने सोने की सजावट मेज के चारों ओर की। 12 तब उसने मेज के चारों ओर एक किनार बनायी। यह किनार लगभग तीन इंच चौड़ी थी। उसने किनार पर सोने की झालर लगाई। 13 तब उसने मेज के लिये चार सोने के कड़े बनाए। उसने नीचे के चारों कोनों पर सोने के चार कड़े लगाए। ये वहीं—वहीं थे जहाँ चार पैर थे। 14 कड़े किनारी के समीप थे। कड़ों में वे बल्लियाँ थीं जो मेज को ले जाने में काम आती थीं। 15 तब उसने मेज को ले जाने के लिये बल्लियाँ बनाईं। बल्लियों के लिये उसने बबूल की लकड़ी का उपयोग किया और उन को शुद्ध सोने से मढ़ा। 16 तब उसने उन चीज़ों को बनाया जो मेज पर काम आती थीं। उसने तश्तरी, चम्मच, परात और पेय भेंटों के लिये उपयोग में आने वाले घड़े बनाए। ये सभी चीज़ें शुद्ध सोने से बनाई गईं थीं।
दीपाधार
17 तब उसने दीपाधार बनाया। इसके लिये उसने शुद्ध सोने का उपयोग किया और उसे पीट कर आधार तथा उसके डंडे को बनाया। तब उसने फूलों के समान दिखने वाले प्याले बनाए। प्यालों के साथ कलियाँ और खिले हुए पुष्प थे। हर एक चीज़ शुद्ध सोने की बनी थी। ये सभी चीजें एक ही इकाई बनाने के रूप में परस्पर जुड़ी थीं। 18 दीपाधार के दोनों ओर छः शाखाएं थीं। एक ओर तीन शाखाएं थीं तथा तीन शाखाएं दूसरी ओर। 19 हर एक शाखा पर सोने के तीन फूल थे। ये फूल बादाम के फूल के आकार के बने थे। उनमें कलियाँ और पंखुडियाँ थीं। 20 दीपाधार की डंडी पर सोने के चार फूल थे। वे भी कली और पंखुडियों सहित बादाम के फूल के आकार के बने थे। 21 छः शाखाएं दो—दो करके तीन भागों में थीं। हर एक भाग की शाखाओं के नीचे एक कली थी। 22 ये सभी कलियां, शाखाएं और दीपाधार शुद्ध सोने के बने थे। इस सारे सोने को पीट कर एक ही में मिला दिया गया था। 23 उसने इस दीपाधार के लिये सात दीपक बनाए तब उसने तश्तरियाँ और चिमटे बनाए। हर एक वस्तु को शुद्ध सोने से बनाया। 24 उसने लगभग पचहत्तर पौंड शुद्ध सोना दीपाधार और उसके उपकरणों को बनाने में लगाया।
धूप जलाने की वेदी
25 तब उसने धूप जलाने की एक वेदी बनाई। उसने इसे बबूल की लकड़ी का बनाया। वेदी वर्गाकार थी। यह अट्ठारह इंच लम्बी, अट्ठारह इंच चौड़ी और छत्तीस इंच ऊँची थी। वेदी पर चार सींग बनाए गए थे। हर एक कोने पर एक सींग बना था। ये सींग वेदी के साथ एक इकाई बनाने के लिये जोड़ दिए गए थे। 26 उसने सिरे, सभी बाजुओं और सींगो को शुद्ध सोने के पतरे से मढ़ा। तब उसने वेदी के चारों ओर सोने की झालर लगाई। 27 उसने सोने के दो कड़े वेदी के लिये बनाए। उसने सोने के कड़ों को वेदी के हर ओर की झालर से नीचे रखा। इन कड़ों में वेदी को ले जाने के लिये बल्लियाँ डाली जाती थीं। 28 तब उसने बबूल की लकड़ी की बल्लियाँ बनाईं और उन्हें सोने से मढ़ा।
29 तब उसने अभिषेक का पवित्र तेल बनाया। उसने शुद्ध सुगन्धित धूप भी बनाई। ये चीज़ें उसी प्रकार बनाई गईं जिस प्रकार कोई निपुण बनाता है।
होमबलि की वेदी
38तब उसने होमबलि की वेदी बनाई। यह वेदी होमबलि के लिये उपयोग में आने वाली थी। उसने बबूल की लकड़ी से इसे बनाया। वेदी वर्गाकार थी। यह साढ़े सात फुट लम्बी, साढ़े सात फुट चौड़ी और साढ़े सात फुट ऊँची थी। 2 उसने हर एक कोने पर एक सींग बनाया। उसने सींगों को वेदी के साथ जोड़ दिया। तब उसने हर चीज़ को काँसे से ढक लिया। 3 तब उसने वेदी पर उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों को बनाया। उसने इन चीज़ों को काँसे से ही बनाया। उसने पात्र, बेलचे, कटोरे, माँस के लिए काँटे, और कढ़ाहियाँ बनाईं। 4 तब उसने वेदी के लिये एक जाली बनायी। यह जाली काँसे की जाली की तरह थी। जाली को वेदी के पायदान से लगाया। यह वेदी के भीतर लगभग मध्य में था। 5 तब उसने काँसे के कड़े बनाए। ये कड़े वेदी को ले जाने के लिये बल्लियों को फँसाने के काम आते थे। उसने पर्दे के चारों कोनों पर कड़ों को लगाया। 6 तब उसने बबूल की लकड़ी की बल्लियाँ बनाईं और उन्हें काँसे से मढ़ा। 7 उसने बल्लियाँ को कड़ों में डाला। बल्लियाँ वेदी की बगल में थीं। वे वेदी को ले जाने के काम आती थीं। उसने वेदी को बनाने के लिये बबूल के तख़्तों का उपयोग किया। वेदी भीतर खाली थी, एक खाली सन्दूक की तरह।
8 उसने हाथ धोने के बड़े पात्र तथा उसके आधार को उस काँसे से बनाया जिसे पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर सेवा करने वाली स्त्रियों द्वारा दर्पण के रूप में काम में लाया जाता था।
पवित्र तम्बू के चारों ओर का आँगन
9 तब उसने आँगन के चारों ओर पर्दें की दीवार बनाई। दक्षिण की ओर के पर्दे की दीवार पचास गज लम्बी थी। ये पर्दे सन के उत्तम रेशों के बने थे। 10 दक्षिणी ओर के पर्दो को बीस खम्भों पर सहारा दिया गया था। ये खम्भे काँसे के बीस आधारों पर थे। खम्भों और बल्लियों के लिये छल्ले चाँदी के बने थे। 11 उत्तरी तरफ़ का आँगन भी पचास गज लम्बा था और उसमें बीस खम्भे बीस काँसे के आधारों के साथ थे। खम्भों और बल्लियों के लिये छल्ले चाँदी के बने थे।
12 आँगन के पश्चिमी तरफ़ के पर्दे पच्चीस गज लम्बे थे। वहाँ दस खम्भे और दस आधार थे। खम्भों के लिये छल्ले तथा कुँड़े चाँदी के बनाए गए थे।
13 आँगन की पूर्वी दीवार पच्चीस गज चौड़ी थी। आँगन का प्रवेश द्वार इसी ओर था। 14 प्रवेश द्वार के एक तरफ़ पर्दे की दीवार साढ़े सात गज लम्बी थी। इस तरफ़ तीन खम्भे और तीन आधार थे। 15 प्रवेश द्वार के दूसरी तरफ़ पर्दे की दीवार की लम्बाई भी साढ़े सात गज़ थी। वहाँ भी तीन खम्भे और तीन आधार थे। 16 आँगन के चारों ओर की कनाते सन के उत्तम रेशों की बनी थीं। 17 खम्भों के आधार काँसे के बने थे। छल्लों और कनातों की छड़े चाँदी की बनी थीं। खम्भों के सिरे भी चाँदी से मढ़े थे। आँगन के सभी खम्भे कनात की चाँदी की छड़ों से जुड़े थे।
18 आँगन के प्रवेश द्वार की कनात सन के उत्तम रेशों और नीले, लाल तथा बैंगनी कपड़े की बनी थी। इस पर कढ़ाई कढ़ी हुई थी। कनात दस गज लम्बी और ढाई गज ऊँची थी। ये उसी ऊँचाई की थी जिस ऊँचाई की आँगन की चारों ओर की कनातें थीं। 19 कनात चार खम्भों और चार काँसें के आधारों पर खड़ी थी। खम्भों के छल्ले चाँदी के बने थे। खम्भों के सिरे चाँदी से मढ़े थे और पर्दे की छड़ें भी चाँदी की बनी थीं। 20 पवित्र तम्बू और आँगन के चारों ओर की कनातों की खूँटियाँ काँसे की बनी थीं।
21 मूसा ने सभी लेवी लोगों को आदेश दिया कि वे तम्बू अर्थात् साक्षीपत्र का तम्बू बनाने में काम आई हुई चीज़ों को लिख लें। हारून का पुत्र ईतामार इस सूची को रखने का अधिकारी था।
22 यहूदा के परिवार समूह से हूर के पुत्र ऊरी के पुत्र बसलेल ने भी सभी चीज़ें बनाईं जिनके लिये यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था। 23 दान के परिवार समूह से अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब ने भी उसे सहायता दी। ओहोलीआब एक निपुण कारीगर और शिल्पकार था। वह सन के उत्तम रेशों और नीले, बैंगनी और लाल कपड़े बुनने में निपुण था।
24 दो टन से अधिक सोना पवित्र तम्बू के लिये यहोवा को भेंट किया गया था। (यह मन्दिर के प्रामाणिक बाटों से तोला गया था।)
25 लोगों ने पौने चार टन से अधिक चाँदी दी। (यह अधिकारिक मन्दिर के बाट से तोली गयी थी।) 26 यह चाँदी उनके द्वारा कर वसूल करने से आई। लेवी पुरुषों ने बीस वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों की गणना की। छः लाख तीन हज़ार पाँच सौ पचास लोग थे और हर एक पुरुष को एक बेका चाँदी कर के रूप में देनी थी। (मन्दिर के अधिकारिक बाट के अनुसार एक बेका आधा शेकेल होता था।) 27 पौने चार टन चाँदी का उपयोग पवित्र तम्बू के सौ आधारों और कनातों को बनाने में हुआ था। उन्होंने पचहत्तर पौंड चाँदी हर एक आधार में लगायी। 28 अन्य पचास पौंड़ चाँदी का उपयोग खूँटियों कनातों की छड़ों और खम्भों के सिरों को बनाने में हुआ था।
29 साढ़े छब्बीस टन से अधिक काँसा यहोवा को भेंट चढ़ाया गया। 30 उस काँसे का उपयोग मिलापवाले तम्बू के प्रवेश द्वार के आधारों को बनाने में हुआ। उन्होंने काँसे का उपयोग वेदी और काँसे की जाली बनाने में भी किया और वह काँसा, सभी उपकरण और वेदी की तश्तरियों को बनाने के काम में आया। 31 इसका उपयोग आँगन के चारों ओर की कनातों के आधारों और प्रवेश द्वार की कनातों के आधारों के लिए भी हुआ। और काँसे का उपयोग तम्बू के लिये खूँटियों को बनाने और आँगन के चारों ओर की कनातों के लिए हुआ।
समीक्षा
काम करते वक़्त भी पर परमेश्वर की सेवा कीजिए
अपने पूरे दिल से परमेश्वर की सेवा करने के लिए आपको अपनी नौकरी को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। बसलेल के जीवन से हमें ऐसे एक व्यक्ति का उदाहरण मिलता है जिसने अपने काम के स्थान पर परमेश्वर की सेवा करने के द्वारा अपने जीवन को महान बनाया।
काम के स्थान के लिए परमेश्वर अपने लोगों को उनकी आत्मा से भरते हैः 'मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान और सब प्रकार के कार्यों की समझ देने वाली आत्मा है, परिपूर्ण करता हूँ, जिससे वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकालकर सब भाँति की बनावट का काम करे' (31:3-5 एम.एस.जी.)।
बसलेल एक मूर्तिकार था। मंदिर को बनाने के लिए परमेश्वर ने उसे चुना था (37:1; 31:1-5 भी देखिये)। उसने परमेश्वर की बुलाहट को उत्तर दिया और वह सब बनाया जो 'परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी थी' (38:22)। उसने एक समूह में काम किया, जिसमें नक्काशी करने वाला ओहोलीआब भी शामिल था (पद - 23) और उन्होंने परमेश्वर के लिए महान चीज़ों को किया। उसकी सफलता की कुँजी थी कि वह 'परमेश्वर की आत्मा' से भरा हुआ मनुष्य था (31:3;35:31)।
आत्मा से भरे बिना, एक होनहार संगीतकार, लेखक या कलाकार होना संभव बात है। लेकिन जब परमेश्वर का आत्मा लोगों को इन कामों के लिए भरता है, तब उनके काम अक्सर एक नये आयाम में चले जाते हैं। इसका एक बहुत ही आत्मिक प्रभाव है। यह सच हो सकता है, जहाँ पर संगीतकार या कलाकार की प्राकृतिक योग्यता उल्लेखनीय न हो। हृदय को स्पर्श किया जा सकता है और जीवन बदले जा सकते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बसलेल के द्वारा ऐसा ही कुछ हुआ।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
नीतिवचन 6:10-11
'कुछ और सो लेना, थोड़ी सी नींद, एक और झपकी और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना...'
मैं सोचती हूँ कि यह अच्छा जान पड़ता है। लेकिन 11वाँ वचन एक बुरे सदमे की तरह आता हैः
'...और गरीबी आप पर एक लुटेरे के समान आ पड़ेगी।'
हम नहीं चाहते हैं कि हम सोते हुए पाएँ जाएँ और वह सब खो दें जो परमेश्वर ने हमारे लिए रखा है।
दिन का वचन
मरकुस – 8:36
" यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? "
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संदर्भ
नोट्स:
शेन क्लेबोर्न, 'इर्रजिस्टेबल रिवोल्यूशन', (जॉन्डर्वन,2006) पी.121
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