दिन 40

पाँच बहाने

बुद्धि नीतिवचन 4:10-19
नए करार मत्ती 26:31-46
जूना करार निर्गमन 4:1-6:12

परिचय

यह एक गाना है जिसे ब्रिटिश में दाहसंस्कार के समय अक्सर बजाया जाता है। यह इतिहास का सबसे ज़्यादा पुनर्निर्मित गाना है। इसने 1969 में फ्रॅन्क सिनाट्रा के एलबम माई वे में प्रसिद्धि पाई थी। फिलिपीन्स में कराओके बार्स में ‘माई वे’ इतना लोकप्रिय है कि इसे सबसे ज़्यादा मृत्यु के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया जहाँ प्रदर्शन पर हुई बहस हिंसा में बदल गई थी!

‘एंड इट इज़ माई वे! (‘और यह मेरा तरीका है!)

यस, इट वाज़ माई वे!’ (हाँ, यह मेरा तरीका था!’)

‘मैंने अपने तरीके से किया’ यह दुनिया का तरीका है। यह यीशु का तरीका नहीं है। यीशु ने कहा था, ‘फिर मेरी नहीं, किंतु तेरी इच्छा पूरी हो जाए’ (मत्ती 26:39)। दूसरी तरफ मूसा, जैसा कि हम आज देखेंगे, अंत में परमेश्वर का तरीका अपनाने से पहले पाँच बहाने बनाए थे।

बुद्धि

नीतिवचन 4:10-19

10 सुन, हे मेरे पुत्र। जो मैं कहता हूँ तू उसे ग्रहण कर!
 तू अनगिनत सालों साल जीवित रहेगा।
11 मैं तुझे बुद्धि के मार्ग की राह दिखाता हूँ,
 और सरल पथों पर अगुवाई करता हूँ।
12 जब तू आगे बढ़ेगा तेरे चरण बाधा नहीं पायेंगे,
 और जब तू दौड़ेगा ठोकर नहीं खायेगा।
13 शिक्षा को थामे रह, उसे तू मत छोड़।
 इसकी रखवाली कर। यही तेरा जीवन है।
14 तू दुष्टों के पथ पर चरण मत रख
 या पापी जनों की राह पर मत चल।
15 तू इससे बचता रह, इसपर कदम मत बढ़ा।
 इससे तू मुड़ जा। तू अपनी राह चल।
16 वे बुरे काम किये बिना सो नहीं पाते।
 वे नींद खो बैठते हैं जब तक किसी को नहीं गिराते।
17 वे तो बस सदा नीचता की रोटी खाते
 और हिंसा का दाखमधु पीते हैं।
18 किन्तु धर्मी का पथ वैसा होता है जैसी प्रात: किरण होती है।
 जो दिन की परिपूर्णता तक अपने प्रकाश में बढ़ती ही चली जाती है।
19 किन्तु पापी का मार्ग सघन, अन्धकार जैसा होता है।
 वे नहीं जान पाते कि किससे टकराते हैं।

समीक्षा

बुद्धि का मार्ग

आत्मिक तरीका एक यात्रा के समान है। आप एक समय में एक कदम आगे बढ़ाते हैं। यह इतना मायने नहीं रखता कि आपने कितना पाया – बल्कि यह कि आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और आप आगे बढ़ते जा रहे हैं।

नीतिवचन की पुस्तक हमसे कहती है कि यहाँ दो तरीके/रास्ते हैं: ‘दुष्टों की बाट….. बुरे लोगों के मार्ग (पद - 14) और ‘बुद्धि का मार्ग ’….. ‘धर्मियों का मार्ग’ (पद - 18)। हमें बुरे लोगों से बचने के लिए नहीं कहा गया है (यानि दुनिया से अलग होना)। बजाय इसके, हमें उनका मार्ग अपनाने से मना किया गया है – जो लोग कर रहे हैं उसे करने से मना किया गया है। यदि आप परमेश्वर का मार्गदर्शन अपनाएं तो उनका वायदा है कि वह आपको ‘बुद्धि के मार्ग पर’ ले चलेंगे (पद - 11, एम.एस.जी.)।

परमेश्वर का मार्ग आसान नहीं है, लेकिन उनका मार्ग अपनाने में बहुत आनंद और रोमांच है: ‘धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक से अधिक बढ़ता रहता है’ (पद - 18)। ‘जितना ज़्यादा वे जीते हैं, उतना ही वे चमकते हैं’ (पद - 18, एम.एस.जी.)।

एलिज़ाबेथ कबलर रॉस, मरणासन्न रोगियों की देखभाल आंदोलन की संस्थापक, ने कहा है, ‘लोग रंगीन - काँच वाली खिड़की के समान हैं। सूरज बाहर निकलता है तब वे चमकते और जगमगाते हैं, लेकिन जब अंधियारा फैलता है, तो उनकी असली सुंदरता तब प्रकट होती है जब उनके अंदर प्रकाश होता है।’

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद क्योंकि आपका वायदा है कि आप मुझे सही मार्ग पर ले जाएंगे। मुझे बुद्धि के मार्ग पर चलने में सहायता कीजिये।
नए करार

मत्ती 26:31-46

यीशु का कथन: सब शिष्य उसे छोड़ देंगे

31 फिर यीशु ने उनसे कहा, “आज रात तुम सब का मुझमें से विश्वास डिग जायेगा। क्योंकि शास्त्र में लिखा है:

  ‘मैं गडेरिये को मारूँगा और
  रेवड़ की भेड़ें तितर बितर हो जायेंगी।’

32 पर फिर से जी उठने के बाद मैं तुमसे पहले ही गलील चला जाऊँगा।”

33 पतरस ने उत्तर दिया, “चाहे सब तुझ में से विश्वास खो दें किन्तु मैं कभी नहीं खोऊँगा।”

34 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ में सत्य कहता हूँ आज इसी रात मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मुझे नकार चुकेगा।”

35 तब पतरस ने उससे कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े तो भी तुझे मैं कभी नहीं नकारूँगा।” बाकी सब शिष्यों ने भी वही कहा।

यीशु की एकान्त प्रार्थना

36 फिर यीशु उनके साथ उस स्थान पर आया जो गतसमने कहलाता था। और उसने अपने शिष्यों से कहा, “जब तक मैं वहाँ जाऊँ और प्रार्थना करूँ, तुम यहीं बैठो।” 37 फिर यीशु पतरस और जब्दी के दो बेटों को अपने साथ ले गया और दुःख तथा व्याकुलता अनुभव करने लगा। 38 फिर उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत दुःखी है, जैसे मेरे प्राण निकल जायेंगे। तुम मेरे साथ यहीं ठहरो और सावधान रहो।”

39 फिर थोड़ा आगे बढ़ने के बाद वह धरती पर झुक कर प्रार्थना करने लगा। उसने कहा, “हे मेरे परम पिता यदि हो सके तो यातना का यह प्याला मुझसे टल जाये। फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही कर।” 40 फिर वह अपने शिष्यों के पास गया और उन्हें सोता पाया। वह पतरस से बोला, “सो तुम लोग मेरे साथ एक घड़ी भी नहीं जाग सके? 41 जगते रहो और प्रार्थना करो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। तुम्हारा मन तो वही करना चाहता है जो उचित है किन्तु, तुम्हारा शरीर दुर्बल है।”

42 एक बार फिर उसने जाकर प्रार्थना की और कहा, “हे मेरे परम पिता, यदि यातना का यह प्याला मेरे पिये बिना टल नहीं सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।”

43 तब वह आया और उन्हें फिर सोते पाया। वे अपनी आँखें खोले नहीं रख सके। 44 सो वह उन्हें छोड़कर फिर गया और तीसरी बार भी पहले की तरह उन ही शब्दों में प्रार्थना की।

45 फिर यीशु अपने शिष्यों के पास गया और उनसे पूछा, “क्या तुम अब भी आराम से सो रहे हो? सुनो, समय आ चुका है, जब मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथों सौंपा जाने वाला है। 46 उठो, आओ चलें। देखो, मुझे पकड़वाने वाला यह रहा।”

समीक्षा

आपकी इच्छा

यीशु की इच्छा परमेश्वर से यह कहना है कि, ‘मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा।’ यीशु ने हमें केवल यह प्रार्थना करना नहीं सिखाया कि: ‘तेरी इच्छा पूरी हो,’ बल्कि उन्होंने खुद के लिए भी यही प्रार्थना की: ‘हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ पर से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो (पद - 39)। दूसरी बार उन्होंने प्रार्थना की, मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो (पद - 42)।

यह परित्याग की प्रार्थना नहीं है, बल्कि यह महान साहस की प्रार्थना है – परमेश्वर का मार्ग अपनाने की इच्छा करना, फिर चाहें जो भी हो।

इस पद्यांश में हम यीशु की विनम्रता देखते हैं: ‘वह उदास और व्याकुल होने लगा (पद - 37)। उनके साथ उनके तीन करीबी मित्र थे। वही तीन मित्र जिन्होंने यीशु का महिमामयी रूपांतरण देखा था, और अब वे लोग यीशु को गहरी वेदना में देख रहे हैं। उन्होंने परमेश्वर से कोई दूसरा विकल्प दिखाने के लिए प्रार्थना की। फिर भी, वह पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार थे, चाहें इसकी कुछ भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।

यीशु के लिए, यह कीमत बिल्कुल अलग थी जिसका सामना हम नहीं कर सकते। उन्होंने पूरे संसार का पाप अपने कंधों पर उठा लिया। ‘यहां तक कि उनके प्राण निकलना चाहते थे’ (पद - 38)। यीशु ने तीन बार प्रार्थना की कि ‘यह कटोरा उनके सामने से हट जाए’ (पद - 39,42,44)। यह कटोरा उनके सिर पर मंडरा रही तकलीफों और मृत्यु को दर्शाता है।

गतसमनी के बगीचे में जाने से ठीक पहले, फसह के पर्व के दिन दोपहर का भोजन लेते समय यीशु ने कहा था कि ‘यह लहू बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है’ (पद - 28)। इससे भी ज़्यादा, जैसा कि अक्सर पुराने नियम में होता था, इस कटोरे में परमेश्वर का क्रोध शामिल था (उदाहरण के लिए यशायाह 51:22; हबक्कूक 2:16)। यीशु ने क्रूस पर आपकी जगह ली है।

जब आप गहराई से उदास हैं, दु:ख से परेशान हैं या कठिन समय से गुज़र रहे हैं, तो ऐसे समय में यह जानना प्रोत्साहन देता है कि यीशु ने वह सब अनुभव किया है जिसका सामना आप कर रहे हैं और आप खुद को परमेश्वर के मार्ग पर समर्पित करके उनके आदर्श का अनुसरण कर सकते हैं।

गतसमनी और अदन के बगीचे में जो कुछ हुआ था उसमें काफी फर्क है। ‘तेरी नहीं, बल्कि मेरी इच्छा’, यह पहले बगीचे में आदम और हव्वा की प्रतिक्रिया का सार था। जबकि दूसरे बगीचे में, ‘मेरी नहीं, बल्कि तेरी इच्छा’ यह पिता से यीशु की प्रार्थना थी। परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का मतलब है कष्ट और मृत्यु। लेकिन इसने पूरी दुनिया को मुक्ति दिलाई।

प्रार्थना

प्रभु, मुझे आपके आदर्श का अनुसरण करने और यह प्रार्थना करने में मेरी मदद कीजिये, ‘जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।
जूना करार

निर्गमन 4:1-6:12

मूसा के लिए प्रमाण

4तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, “किन्तु इस्राएल के लोग मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे जब मैं उनसे कहूँगा कि तूने मुझे भेजा है। वे कहेंगे, ‘यहोवा ने तुमसे बातें नहीं कीं।’”

2 किन्तु परमेश्वर ने मूसा से कहा, “तुमने अपने हाथ में क्या ले रखा है?”

मूसा ने उत्तर दिया, “यह मेरी टहलने की लाठी है।”

3 तब परमेश्वर ने कहा, “अपनी लाठी को जमीन पर फेंको।”

इसलिए मूसा ने अपनी लाठी को जमीन पर फेंका और लाठी एक साँप बन गयी। मूसा डरा और इससे दूर भागा। 4 किन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “आगे बढ़ो और साँप की पूँछ पकड़ लो।”

इसलिए मूसा आगे बढ़ा और उसने साँप की पूँछ पकड़ लीया। जब मूसा ने ऐसा किया तो साँप फिर लाठी बन गयी। 5 तब परमेश्वर ने कहा, “अपनी लाठी का इसी प्रकार उपयोग करो और लोग विश्वास करेंगे कि तुमने यहोवा अर्थात् अपने पूर्वजों के परमेश्वर, इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर तथा याकूब के परमेश्वर को देखा है।”

6 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं तुमको दूसरा प्रमाण दूँगा। तुम अपने हाथ को अपने लबादे के अन्दर करो।”

इसलिए मूसा ने अपने लबादे को खोला और हाथ को अन्दर किया। तब मूसा ने अपने हाथ को लबादे से बाहर निकाला और वह बदला हुआ था। उसका हाथ बर्फ की तरह सफेद दागों से ढका था।

7 तब परमेश्वर ने कहा, “अब तुम अपना हाथ फिर लबादे के भीतर रखो।” इसलिए मूसा ने फिर अपना हाथ अपने लबादे के भीतर किया। तब मूसा ने अपना हाथ बाहर निकाला और उसका हाथ बदल गया था। अब उसका हाथ पहले की तरह ठीक हो गया था।

8 तब परमेश्वर ने कहा, “यदि लोग तुम्हारा विश्वास लाठी का उपयोग करने पर न करें, तो वे तुम पर तब विश्वास करेंगे जब तुम इस चिन्ह को दिखाओगे। 9 यदि वे दोनों चीजों को दिखाने के बाद भी विश्वास न करें तो तुम नील नदी से कुछ पानी लेना। पानी को ज़मीन पर गिराना शुरु करना और ज्यों ही यह ज़मीन को छूएगा, खून बन जाएगा।”

10 किन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “किन्तु हे यहोवा, मैं सच कहता हूँ मैं कुशल वक्ता नहीं हूँ। मैं लोगों से कुशलतापूर्वक बात करने के योग्य नहीं हुआ और अब तुझ से बातचीत करने के बाद भी मैं कुशल वक्ता नहीं हूँ। तू जानता हैं कि मैं धीरे—धीरे बोलता हूँ और उत्तम शब्दों का उपयोग नहीं करता।”

11 तब यहोवा ने उससे कहा, “मनुष्य का मुँह किसने बनाया? और एक व्यक्ति को कौन बोलने और सुनने में असमर्थ बना सकता है? मनुष्य को कौन देखनेवाला और अन्धा बना सकता है? यह मैं हूँ जो इन सभी चीजों को कर सकता हूँ। मैं यहोवा हूँ। 12 इसलिए जाओ। जब तुम बोलोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हें बोलने के लिए शब्द दूँगा।”

13 किन्तु मूसा ने कहा, “मेरे यहोवा, मैं दूसरे व्यक्ति को भेजने के लिए प्रार्थना करता हूँ मुझे न भेज।”

14 यहोवा मूसा पर क्रोधित हुआ। यहोवा ने कहा, “मैं तुमको सहायता के लिए एक व्यक्ति दूँगा। मैं तुम्हारे भाई हारून का उपयोग करूँगा। वह कुशल वक्ता है। हारून पहले ही तुम्हारे पास आ रहा था। वह तुमको देखकर बहुत प्रसन्न होगा। 15 वह तुम्हारे साथ फ़िरौन के पास जाएगा। मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या कहना है। तब तुम हारून को बताओगे। हारून फ़िरौन से कहने के लिए उचित शब्द चुनेगा। 16 हारून ही तुम्हारे लिए लोगों से बात करेगा। तुम उसके लिए महान राजा के रूप में रहोगे और वह तुम्हारा अधिकृत वक्ता होगा। 17 इसलिए जाओ और अपनी लाठी साथ ले जाओ। अपनी लाठी और दूसरे चमत्कारों का उपयोग लोगों को यह दिखाने के लिए करो कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

मूसा मिस्र लौटता है

18 तब मूसा अपने ससुर यित्रो के पास लौटा। मूसा ने यित्रो से कहा, “मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि मुझे मिस्र में अपने लोगों के पास जाने दें। मैं यह देखना चाहता हूँ कि क्या वे अभी तक जीवित हैं?”

यित्रो ने मूसा से कहा, “तुम शान्तिपूर्वक जा सकते हो।”

19 उस समय जब मूसा मिद्यान में ही था, परमेश्वर ने उससे कहा, “इस समय तुम्हारे लिए मिस्र को जाना सुरक्षित है। जो व्यक्ति तुमको मारना चाहते थे वे मर चुके हैं।” 20 इसलिए मूसा ने अपनी पत्नी और अपने पुत्रों को लिया और उन्हें गधे पर बिठाया। तब मूसा ने मिस्र देश की वापसी यात्रा की। मूसा उस लाठी को अपने साथ ले गया जिसमें परमेश्वर की शक्ति थी।

21 जिस समय मूसा मिस्र की वापसी यात्रा पर था, परमेश्वर उससे बोला। परमेश्वर ने कहा, “जब तुम फ़िरौन से बात करो तो उन सभी चमत्कारों को दिखाना। याद रखना जिन्हें दिखाने की शक्ति मैंने तुम्हें दी है। किन्तु फ़िरौन को मैं बहुत हठी बना दूँगा। वह लोगों को जाने नहीं देगा। 22 तब तुम फ़िरौन से कहना: 23 यहोवा कहता है, ‘इस्राएल मेरा पहलौठा पुत्र है और मैं तुम से कहता हूँ कि मेरे पुत्र को जाने दो तथा मेरी उपासना करने दो। यदि तुम इस्राएल को जाने से मना करते हो तो मैं तुम्हारे पहलौठे पुत्र को मार डालूँगा।’”

मूसा के पुत्र का खतना

24 मूसा मिस्र की अपनी यात्रा करता रहा। यात्रियों के लिए बने एक स्थान पर वह सोने के लिए रूका। यहोवा इस स्थान पर मूसा से मिला और उसे मार डालने की कोशिश की। 25 किन्तु सिप्पोरा ने पत्थर का एक तेज़ चाकू लिया और अपने पुत्र का खतना किया। उसने चमड़े को लिया और उसके पैर छुए। तब उसने मूसा से कहा, “तुम मेरे खून बहाने वाले पति हो।” 26 सिप्पोरा ने यह इसलिए कहा कि उसे अपने पुत्र का खतना करना पड़ा था। इसलिए परमेश्वर ने मूसा को क्षमा किया और उसे मारा नहीं।

परमेश्वर के सामने मूसा और हारून

27 यहोवा ने हारून से बात की थी। यहोवा ने उससे कहा था, “मरूभूमि में जाओ और मूसा से मिलो।” इसलिए हारून गया और परमेश्वर के पहाड़ पर मूसा से मिला। जब हारून ने मूसा को देखा, उसने उसे चूमा। 28 मूसा ने हारून को यहोवा द्वारा भेजे जाने का कारण बताया और मूसा ने हारून को उन चमत्कारों और उन संकेतों को भी समझाया जिन्हें उसे प्रमाण रूप में प्रदर्शित करना था। मूसा ने हारून को वह सब कुछ बताया जो यहोवा ने कहा था।

29 इस प्रकार मूसा और हारून गए और उन्होंने इस्राएल के लोगों के सभी बुजुर्गों (नेताओ) को इकट्ठा किया। 30 तब हारून ने लोगों से कहा। उसने लोगों को वे सारी बातें बताईं जो यहोवा ने मूसा से कहीं थीं। तब मूसा ने सब लोगों को दिखाने के लिए सारे प्रमाणों को करके दिखाया। 31 लोगों ने विश्वास किया कि परमेश्वर ने मूसा को भेजा है। उन्होंने झुक कर प्रणाम किया और परमेश्वर की उपासना की, क्योंकि वे जान गए कि परमेश्वर इस्राएल के लोगों की सहायता करने आ गया है और उन्होंने परमेश्वर की इसलिए उपासना की क्योंकि वे जान गए कि यहोवा ने उनके कष्टों को देखा है।

मूसा और हारून फ़िरौन के सामने

5लोगों से बात करने के बाद मूसा और हारून फ़िरौन के पास गए। उन्होंने कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मेरे लोगों को मरुभूमि में जाने दें जिससे वे मेरे लिए उत्सव कर सके।’”

2 किन्तु फ़िरौन ने कहा, “यहोवा कौन है? मैं उसका आदेश क्यों मानूँ? मैं इस्राएलियों को क्यों जाने दूँ? मैं उसे नहीं जानता जिसे तुम यहोवा कहते हो। इसलिए मैं इस्राएलियों को जाने देने से मना करता हूँ।”

3 तब हारून और मूसा ने कहा, “हिब्रूओं के परमेश्वर ने हम लोगों को दर्शन दिया है। इसलिए हम लोग आपसे प्रार्थना करते है कि आप हम लोगों को तीन दिन तक मरुभूमि में यात्रा करने दें। वहाँ हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा को एक बलि चढ़ाएंगे। यदि हम लोग ऐसा नहीं करेंगे तो वह क्रोधित हो जाएगा और हमें नष्ट कर देगा। वह हम लोगों को रोग या तलवार से मार सकता है।”

4 किन्तु फ़िरौन ने उनसे कहा, “मूसा और हारून, तुम लोगों को परेशान कर रहे हैं। तुम उन्हें काम करने से हटा रहे हो। उन दासों को काम पर लौटने को कहो। 5 यहाँ बहुत से श्रमिक हैं तुम लोग उन्हें अपना काम करने से रोक रहे हो।”

फ़िरौन द्वारा लोगों को दण्ड

6 ठीक उसी दिन फ़िरौन ने इस्राएल के लोगों के काम को और अधिक कड़ा बनाने का आदेश दिया। फ़िरौन ने दास स्वामियों से कहा, 7 “तुम ने लोगों को सदा भूसा दिया है जिसका उपयोग वे ईंटें बनाने में करते हैं। किन्तु अब उनसे कहो कि वे ईंटें बनाने के लिए भूसा स्वयं जाकर इकट्ठा करें। 8 किन्तु वे संख्या में अब भी उतनी ही ईंटें बनाएं जितनी वे पहले बनाते थे। वे आलसी हो गए है। यही कारण है कि वे जाने की माँग कर रहे हैं। उनके पास करने के लिए काफी काम नहीं है इसलिए वे मुझसे माँग कर रहे हैं कि मैं उन्हें उनके परमेश्वर को बलि चढ़ाने दूँ। 9 इसलिए इन लोगों से अधिक कड़ा काम कराओ। इन्हें काम में लगाए रखो। तब उनके पास इतना समय ही नहीं होगा कि वे मूसा की झूठी बातें सुनें।”

10 इसलिए मिस्री दास स्वामी और हिब्रू कार्य प्रबन्धक इस्राएल के लोगों के पास गए और उन्होंने कहा, “फ़िरौन ने निर्णय किया है कि वह तुम लोगों को तुम्हारी ईंटों के लिए तुम्हें भूसा नहीं देगा। 11 तुम लोगों को स्वयं जाना होगा और अपने लिए भूसा स्वयं इकट्ठा करना होगा। इसलिए जाओ और भूसा जुटाओ। किन्तु तुम लोग उतनी ही ईंटें बनाओ जितनी पहले बनाते थे।”

12 इस प्रकार हर एक आदमी मिस्र में भूसा खोजने के लिए चारों ओर गया। 13 दास स्वामी लोगों को अधिक कड़ा काम करने के लिए विवश करते रहे। वे लोगों को उतनी ही ईंटें बनाने के लिए विवश करते रहे जितनी वे पहले बनाया करते थे। 14 मिस्री दास स्वामियों ने हिब्रू कार्य—प्रबन्धक चुन रखे थे और उन्हें लोगों के काम का उत्तरदायी बना रखा था। मिस्री दास स्वामी इन कार्य—प्रबन्धकों को पीटते थे और उनसे कहते थे, “तुम उतनी ही ईंटें क्यों नहीं बनाते जितनी पहले बना रहे थे। जब तुम यह काम पहले कर सकते थे तो तुम इसे अब भी कर सकते हो।”

15 तब हिब्रू कार्य—प्रबन्धक फ़िरौन के पास गए। उन्होंने शिकायत की और कहा, “आप अपने सेवकों के साथ ऐसा बरताव क्यों कर रहे है? 16 आपने हम लोगों को भूसा नहीं दिया। किन्तु हम लोगों को आदेश दिया गया कि उतनी ही ईंटें बनाएँ जितनी पहले बनती थीं और अब हम लोगों के स्वामी हमे पीटते हैं। ऐसा करने में आपके लोगों की ग़लती है।”

17 फ़िरौन ने उत्तर दिया, “तुम लोग आलसी हो। तुम लोग काम करना नहीं चाहते। यही कारण है कि तुम लोग माँग करते हो कि मैं तुम लोगों को जाने दूँ और यही कारण है कि तुम लोग यह स्थान छोड़ना चाहते हो और यहोवा को बलि चढ़ाना चाहते हो। 18 अब काम पर लौट जाओ। हम तुम लोगों को कोई भूसा नहीं देंगे। किन्तु तुम लोग उतनी ही ईंटें बनाओ जितनी पहले बनाया करते थे।”

19 हिब्रू कार्य—प्रबन्धक समझ गए कि वे परेशानी में पड़ गए हैं। कार्य—प्रबन्धक जानते थे कि वे उतनी ईंटें नहीं बना सकते जितनी बीते समय में बनाते थे।

20 जब वे फिरौन से मिलने के बाद जा रहे थे, वे मूसा और हारून के पास से निकले। मूसा और हारून उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। 21 इसलिए उन्होंने मूसा और हारून से कहा, “तुम लोगों ने बुरा किया कि तुम ने फ़िरौन से हम लोगों को जाने देने के लिए कहा। यहोवा तुम को दण्ड दे क्योंकि तुम लोगों ने फ़िरौन और उसके प्रशासकों में हम लोगों के प्रति घृणा उत्पन्न की। तुम ने हम लोगों को मारने का एक बहाना उन्हें दिया है।”

मूसा की परमेश्वर से शिकायत

22 तब मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की और कहा, “हे स्वामी, तूने अपने लोगों के लिए यह बुरा काम क्यों किया है? तूने हमको यहाँ क्यों भेजा है? 23 मैं फ़िरौन के पास गया और जो तूने कहने को कहा उसे मैंने उससे कहा। किन्तु उस समय से वह लोगों के प्रति अधिक क्रूर हो गया। और तूने उनकी सहायता के लिए कुछ नहीं किया है।”

6तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तुम देखोगे कि फ़िरौन का मैं क्या करता हूँ। मैं अपनी महान शक्ति का उपयोग उसके विरोध में करूँगा और वह मेरे लोगों को जाने देगा। वह उन्हें छोड़ने के लिए इतना अधिक आतुर होगा कि वह स्वयं उन्हें जाने के लिए विवश करेगा।”

2 तब परमेश्वर ने मूसा से कहा, 3 “मैं यहोवा हूँ। मैं इब्राहीम, इसहाक और याकूब के सामने प्रकट हुआ था। उन्होंने मुझे एल सद्दायी (सर्वशक्तिमान परमेश्वर) कहा। मैंने उनको यह नहीं बताया था कि मेरा नाम यहोवा (परमेश्वर) है। 4 मैंने उनके साथ एक साक्षीपत्र बनाया मैंने उनको कनान प्रदेश देने का वचन दिया। वे उस प्रदेश में रहते थे, किन्तु वह उनका अपना प्रदेश नहीं था। 5 अब मैं इस्राएल के लोगों के कष्ट के बारे में जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि वे मिस्र के दास हैं और मुझे अपना साक्षीपत्र याद है। 6 इसलिए इस्राएल के लोगों से कहो कि मैं उनसे कहता हूँ, ‘मैं यहोवा हूँ। मैं तुम लोगों की रक्षा करूँगा। मैं तुम लोगों को स्वतन्त्र करूँगा। तुम लोग मिस्रियों के दास नहीं रहोगे। मैं अपनी महान शक्ति का उपयोग करूँगा और मिस्रियों को भयंकर दण्ड दूँगा। तब मैं तुम लोगों को बचाऊँगा। 7 तुम लोग मेरे लोग होंगे और मैं तुम लोगों का परमेश्वर। मैं यहोवा तुम लोगों का परमेश्वर हूँ और जानोगे कि मैंने तुम लोगों को मिस्र की दासता से मुक्त किया। 8 मैंने इब्राहीम, इसहाक और याकूब से बड़ी प्रतिज्ञा की थी। मैंने उन्हें विशेष प्रदेश देने का वचन दिया था। इसलिए मैं तुम लोगों को उस प्रदेश तक ले जाऊँगा। मैं वह प्रदेश तुम लोगों को दूँगा। वह तुम लोगों का होगा। मैं यहोवा हूँ।’”

9 इसलिए मूसा ने यह बात इस्राएल के लोगों को बताई। किन्तु लोग इतना कठिन श्रम कर रहे थे कि वे मूसा के प्रति धीरज न रख सके। उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी।

10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 11 “जाओ और फ़िरौन से कहो कि वह इस्राएल के लोगों को इस देश से निश्चय ही जाने दे।”

12 किन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “इस्राएल के लोग मेरी बात सुनना भी नहीं चाहते हैं इसलिए निश्चय ही फ़िरौन भी सुनना नहीं चाहेगा। मैं बहुत खराब वक्ता हूँ।”

समीक्षा

परमेश्वर की इच्छा

इस पद्यांश में मुझे बहुत ज़्यादा सांत्वना और प्रोत्साहन मिलता है। मैं बहुत ही शर्मिला और अंतर्मुखी हूँ। स्वभाव से मैं, प्रतिकूल अगुआ हूँ। मुझे यह जानकर बड़ा प्रोत्साहन मिलता है कि मूसा जैसा महान अगुआ भी एक प्रतिकूल अगुआ था और यह कि उसने कई बहाने बनाने का प्रयास किया कि उसे वह क्यों नहीं करना चाहिये जिसके लिए परमेश्वर ने उसे बुलाया था।

कल के और आज के पद्यांश में, हम पाँच बहानों को देखते हैं (इनमें से मैं हर एक को निम्नलिखित के साथ जोड़ सकता हूँ):

1. ‘आपको गलत व्यक्ति मिला है’

मूसा कहता है, ‘मैं कौन हूँ?’ (3:11)। उसने अपर्याप्तता महसूस की। हम सब महसूस कर सकते हैं, ‘मैं काफी अच्छा नहीं हूँ।’ ‘मैं काफी पवित्र नहीं हूँ।’ मूसा ने परमेश्वर से कहा, आपने गलत व्यक्ति को ढूँढा है। मैं ही क्यों?

परमेश्वर का उत्तर था, ‘मैं तेरे संग रहूँगा’ (पद - 12अ)। सिर्फ यही मायने रखता है।

2. ‘मैं अब तक तैयार नहीं हूँ’

मूसा कहते हैं, ‘मैं उनसे क्या कहूँ?’ (पद - 13)। उसे ऐसा लगा कि उसके पास ज्ञान की कमी थी। उसने यह नहीं सोचा कि वह सभी सवालों का जवाब दे पाएगा। उसने सोचा उसक़े पास कहने के लिए कुछ नहीं है।

परमेश्वर ने कहा, ‘तू इस्राएलियों से यह कहना’ (पद - 14)। परमेश्वर तुम्हें सही समय पर संदेश देंगे।

3. ‘मैं असफल हो सकता हूँ’

मूसा कहते हैं, ‘वे मेरी प्रतीति न करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन कहेंगे, कि यहोवा ने तुझ को दर्शन नहीं दिया’ (4:1)।

जवाब में, परमेश्वर ने मूसा को अपनी सामर्थ दिखाई (पद - 2-9)।

4. ‘मेरे पास कौशल नहीं है’

मूसा कहते हैं, ‘मेरे पास सही वरदान नहीं है’ : ‘हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं….. मैं तो मुंह और जीभ का भद्दा हूँ’ ऐसा लगता है कि मूसा हकलाता था या उसे बोलने की कोई और समस्या थी। (‘मैं भद्दा बोलता हूँ’ 6:12 )

परमेश्वर ने कहा, ‘मैं तेरे मुख के संग हो कर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊंगा’ (4:12)। परमेश्वर की सामर्थ दुर्बलता में भी सिद्ध बनाती है।

5. ‘इसे कोई और कर देगा’

मूसा कहता है, ‘जिस को तू चाहे उसी के हाथ से भेज’ (पद - 13)। यह सोचना आसान है कि, ‘मुझ से बेहतर कोई और कर लेगा।’

परमेश्वर मूसा से अति प्रसन्न नहीं थे लेकिन उन्होंने कहा कि वह उसके साथ हारून को भेजेंगे: ‘और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग हो कर जो कुछ तुम्हें करना होगा वह तुम को सिखलाता जाऊंगा’ (पद - 15ब)।

अंत में मूसा परमेश्वर की इच्छा और परमेश्वर की बुलाहट के अनुसार जाने को तैयार हो गया। फिर सभी लड़ाइयाँ शुरू हो गईं और चीज़ें बेहतर होने के बजाय और भी बिगड़ती गईं। फिरौन की ‘इच्छा’ (5:15) परमेश्वर की इच्छा नहीं थी। परमेश्वर के लोगों को भूसे के बिना ईंटे बनानी पड़ती थीं। मूसा और हारून को खुद के लोगों से अपमान और विरोध का सामना करना पड़ा (पद - 21)। मूसा ने परमेश्वर से शिकायत की कि उन्होंने जो वायदा किया था उसे उन्होंने अब तक पूरा नहीं किया (पद - 23)।

परमेश्वर ने उसे इसका जवाब एक स्पष्ट दर्शन देकर दिया कि, वह कौन हैं। परमेश्वर ने कहा, ‘मैं यहोवा हूँ। मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम से इब्राहिम, इसहाक, और याकूब को दर्शन देता था, परन्तु यहोवा के नाम से मैं उन पर प्रगट न हुआ’ (6:2-3)।

परमेश्वर ने कुछ ही शब्दों में मूसा पर खुद का स्वरूप प्रगट किया। उन्होंने दिखाया कि वह विश्वासयोग्य हैं और वह अपने वायदे को पूरा करते हैं (पद - 4-5)। वह प्रदर्शित करते हैं कि वह हमारे साथ दु:ख उठाते हैं और हमारे दर्द को महसूस करते हैं (पद - 5)। वह छुटकारे और आज़ादी का आश्वासन देते हैं (पद - 6)। वह हमें खुद के साथ घनिष्ठ संबंध में ले आते हैं (पद - 7)। वह हमें अपनी विरासत में पहुँचाते हैं और हमें अपने घर में ले जाते हैं (पद - 8)।

लेकिन जब मूसा ने लोगों से यह सब कहा, तो ‘उन्होंने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उसकी न सुनी’ (पद - 12)।

यह बाइबल की ज़्यादातर मिसाल रही है। पहले परमेश्वर का दर्शन और उनकी बुलाहट आती है; फिर इससे पहले कि आप वायदे को पूरा होता हुआ देखें चुनौतियाँ और तकलीफें आती हैं लेकिन अंत में यह वायदा आश्चर्यजनक रूप से पूरा होता है।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद, आप कहते हैं कि, ‘मैं तुम्हारे संग रहूँगा’ (3:12)। आपकी बुलाहट सुनने और आपकी इच्छा के अनुसार चलने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए आपका धन्यवाद। जब चीज़ें और ज़्यादा बिगड़ती हुई नजर आएं तब भी आपकी इच्छा के अनुसार चलने में मेरी मदद कीजिये।

पिप्पा भी कहते है

मत्ती 26:31-46

पतरस कहते हैं, ‘मैं तुझ से कभी न मुकरूंगा’ (पद - 35ब)। परतस की तरह हमारे भी इरादे अच्छे हैं, लेकिन हम सब दोषपूर्ण हैं और हम परमेश्वर की सामर्थ के बिना आगे नहीं बढ़ सकते। जब शिष्यों को प्रार्थना करनी थी तब वे गहरी निद्रा में सो गए। मैं भी कई बार प्रार्थना करते समय गहरी नींद में सो गई थी। मैंने आँखों का बंद होना खतरनाक पाया है!

आज का वचन

" परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है। " ()

दिन का वचन

नीतिवचन – 4:18

" परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है। "

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संदर्भ

नोट्स

फैंक सिनाट्रा, ‘माई वे’, लिरिक्स © EMI Music Publishing

एलिजाबेथ कबलर-रॉस, जैसाकि जिम

क्लेमर में उद्धरण किया गया था, द लीडर डाइजेस्ट : टाइमलेस प्रिंसिपल फोर टीम एंड ऑर्गनाइजेशन (2003) पन्ना 84।

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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