दिन 292

शब्द, परमेश्वर का वचन और ‘शब्द’

बुद्धि नीतिवचन 25:11-20
नए करार 1 तीमुथियुस 4:1-16
जूना करार यिर्मयाह 40:7-42:22

परिचय

नायक डेविड सुचित, पायरेट में अपने अभिनय के लिए प्रसिद्ध, बताते हैं कि कैसे कुछ साल पहले वह अमेरिका में एक होटल में स्नान कर रहे थे, जब उन्हें अचानक बाईबल पढ़ने की आवेशपूर्ण इच्छा हुई। उन्होंने किसी तरह से गिदोन बाईबल का प्रबंध किया और नया नियम पढ़ना शुरु किया। जैसे ही उन्होंने पढा, उनकी मुलाकात यीशु मसीह से हुई। उन्होंने कहाः

‘कही से मुझे यह इच्छा हुई कि फिर से बाईबल पढूं। यह मेरे परिवर्तन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। मैंने प्रेरितों के काम से शुरुवात की और फिर पौलुस की पत्रियों में गया – रोमियों और कुरिंथियो। और केवल तभी मैं सुसमाचार में गया। नये नियम में मैंने अचानक पाया कि किस तरह से जीवन में चलना चाहिए।’

सबसे शक्तिशाली शब्द जो कभी लिखे गए, वह बाईबल में हैं। इसमें शब्द एक महत्वपूर्ण विषय है, और शब्द ‘शब्द’ का इस्तेमाल विभिन्न तरीके से आज के लेखांश में किया गया है।

पहला, यह हमारे शब्दों को बताने के लिए इस्तेमाल किया गया है। जो चीजे हम कहते हैं वह अच्छी या बुरी हो सकती हैं (नीतिवचन 25:11-20)।

दूसरा, यह परमेश्वर के वचन को बताने के लिए भी इस्तेमाल किया गया है। यह मुख्य रूप से यीशु मसीह हैं (यूहन्ना 1:1; इब्रानियो 1:2), लेकिन इसका अर्थ पवित्रशास्त्र में परमेश्वर के वचन से है और प्रचार करने और सिखाने में है (1तीमुथियुस 4:1-16)।

तीसरा, भविष्यवाणी को बताने के लिए बाईबल पदबंध ‘प्रभु का वचन’ का भी इस्तेमाल करती है (यिर्मयाह 42:7)। परमेश्वर भविष्यवाणी के संदेश के द्वारा चर्च से बातें करते हैं (1तीमुथियुस 4:14)। निश्चित ही हमें पुराने नियम के भविष्यवक्ताओं को समझने की आवश्यकता है, जिनके ‘वचन’ निश्चित ही ‘प्रभु के वचन’ थे और अब पवित्रशास्त्र के भाग हैं, आज के भविष्यवाणी के ‘वचन’ से, जिसे पवित्रशास्त्र के सामने परखने की आवश्यकता है।

बुद्धि

नीतिवचन 25:11-20

11 अवसर पर बोला वचन होता है
 ऐसा जैसा हों चाँदी में स्वर्णिम सेब जड़े हुए।
12 जो कान बुद्धिमान की झिड़की सुनता है,
 वह उसके कान के लिये सोने की बाली या कुन्दन की आभूषण बन जाता है।

13 एक विश्वास योग्य दूत, जो उसे भेजते हैं
 उनके लिये कटनी के समय की शीतल बयार सा होता है
 हृदय में निज स्वामियों के वह स्फूर्ती भर देता है।
14 वह मनुष्य वर्षा रहित पवन और रीतें मेघों सा होता है,
 जो बड़ी—बड़ी कोरी बातें देने की बनाता है; किन्तु नहीं देता है।

15 धैर्यपूर्ण बातों से राजा तक मनाये जाते और
 नम्र वाणी हड्डी तक तोड़ सकती हैं।

16 यद्यपि शहद बहुत उत्तम है, पर तू बहुत अधिक मत खा और
 यदि तू अधिक खायेगा, तो उल्टी आ जायेगी और रोगी हो जायेगा।
17 वैसे ही तू पड़ोसी के घर में बार—बार पैर मत रख।
 अधिक आना जाना निरादर करता है।

18 वह मनुष्य, जो झूठी साक्षी अपने साथी के विरोध में देता है वह तो है
हथौड़ा सा अथवा तलवार सा या तीखे बाणा सा।
19 विपत्ति के काल में भरोसा विश्वास—घाती पर होता है ऐसा जैसे दुःख देता दाँत अथवा लँगड़ाते पैर। 20 जो कोई उसके सामने खुशी के गीत गाता है जिसका मन भारी है।
 वह उसको वैसा लगता है जैसे जोड़े में कोई कपड़े उतार लेता अथवा
 कोई फोड़े के सफफ पर सिरका उंडेला हो।

समीक्षा

अच्छे प्रभाव के लिए अपने शब्दों का इस्तेमाल कीजिए

1. अच्छे शब्द

जो शब्द हम बोलते हैं उनसे सच में अंतर पड़ता है। कभी कभी, वे बहुत अच्छा प्रभाव बनाते हैं। जब किसी के पास सही समय के लिए सही शब्द होते हैं, तो इसके विषय में कुछ बहुत ही सुंदर बात होती हैः’ जैसे चाँदी की टोकरियों में सोने के सेब हों, वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है’ (व.11, एम.एस.जी)।

जो चीज सुनने में आसान नहीं, लेकिन उतनी ही मूल्यवान है, ‘ वैसे ही मानने वाले के कान में बुध्दिमान की डाँट भी अच्छी लगती है’ (व.12ब)। आलोचना ग्रहण करना हमेशा कठिन होता है लेकिन, जैसा कि नीतिवचन के लेखक कहते हैं, ‘ जैसे सोने का नथ और कुन्दन का जेबर अच्छा लगता है, वैसे ही मानने वाले के कान में बुध्दिमान की डाँट भी अच्छी लगती है’ (व.12, एम.एस.जी)। जो मित्र हमसे प्रेम करते हैं कि हमें चुनौती देते हैं, वे बहुत ही मूल्यवान हैं।

इसी तरह से, ‘ जैसे कटनी के समय बर्फ की ठण्ड से, वैसे ही विश्वासयोग्य दूत से भी, भेजने वालो का जी ठण्डा होता है’ (व.13, एम.एस.जी)।

जीभ बहुत शक्तिशाली हैः’ धीरज धरने से न्यायी मनाया जाता है, और कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है’ (व.15)। या जैसा कि मैसेज इसे बताता है, ‘कोमल वचन कठोर विरोध को तोड़ सकता है।’

2. बुरे शब्द

किंतु, शब्दों के कुछ इस्तेमाल हैं जिसके विरूद्ध नीतिवचन के लेखक हमें चेतावनी देते हैं। व्यर्थ वायदा निराशा देता हैः’ जैसे बादल और पवन बिना वृष्टि के होते हैं, वैसे ही झूठ – मूठ दान देने वाले का बड़ाई मारना होता है’ (व.14)।

किसी एक व्यक्ति से या लोगों के समूह से बात करते हुए बहुत समय बिताना अच्छी बात नहीं हैः’ अपने पड़ोसी के घर में बारम्बार जाने से अपने पाँव को रोक, ऐसा न हो कि वह खिन्न होकर घृणा करने लगे’ (व.17, एम.एस.जी)। हमें अपने संबंधों में एक संतुलन की आवश्यकता है। वचनो को व्यापक रूप से फैलाये जाने की आवश्यकता है।

शब्दों का दूसरा बुरा इस्तेमाल है झूठी गवाही। यह न्यायालय में हो सकती है या हमारी बातचीत में या ऑनलाईन’ जो किसी के विरुध्द झूठी साक्षी देता है, वह मानो हथौड़ा और तलवार और पैना तीर है’ (व.18, एम.एस.जी)। ऐसी चीजों को पढ़ना या सुनना दर्द देता है, जो सच नहीं है।

प्रार्थना

परमेश्वर, आशीष लाने के लिए शब्दों की सामर्थ के लिए आपका धन्यवाद। आज, मेरे होठों पर पहना दें और मेरी जीभ पर निगरानी करें कि मैं केवल अच्छे शब्दों को बोलूं।
नए करार

1 तीमुथियुस 4:1-16

झूठे उपदेशकों से सचेत रहो

4आत्मा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आगे चल कर कुछ लोग भटकाने वाले झूठे भविष्यवक्ताओं के उपदेशों और दुष्टात्माओं की शिक्षा पर ध्यान देने लगेंगे और विश्वास से भटक जायेंगे। 2 उन झूठे पाखण्डी लोगों के कारण ऐसा होगा जिनका मन मानो तपते लोहे से दाग दिया गया हो। 3 वे विवाह का निषेध करेंगे। कुछ वस्तुएँ खाने को मना करेंगे जिन्हें परमेश्वर के विश्वासियों तथा जो सत्य को पहचानते हैं, उनके लिए धन्यवाद देकर ग्रहण कर लेने को बनाया गया है। 4 क्योंकि परमेश्वर की रची हर वस्तु उत्तम है तथा कोई भी वस्तु त्यागने योग्य नहीं है बशर्ते उसे धन्यवाद के साथ ग्रहण किया जाए। 5 क्योंकि वह परमेश्वर के वचन और प्रार्थना से पवित्र हो जाती है।

मसीह के उत्तम सेवक बनो

6 यदि तुम भाइयों को इन बातों का ध्यान दिलाते रहोगे तो मसीह यीशु के ऐसे उत्तम सेवक ठहरोगे जिसका पालन-पोषण, विश्वास के द्वारा और उसी सच्ची शिक्षा के द्वारा होता है जिसे तूने ग्रहण किया है। 7 बुढ़ियाओं की परमेश्वर विहीन कल्पित कथाओं से दूर रहो तथा परमेश्वर की सेवा के लिए अपने को साधने में लगे रहो। 8 क्योंकि शारीरिक साधना से तो थोड़ा सा ही लाभ होता है जबकि परमेश्वर की सेवा हर प्रकार से मूल्यवान है क्योंकि इसमें आज के समय और आने वाले जीवन के लिए दिया गया आशीर्वाद समाया हुआ है। 9 इस बात पर पूरी तरह निर्भर किया जा सकता है और यह पूरी तरह ग्रहण करने योग्य है। 10 और हम लोग इसलिए कठिन परिश्रम करते हुए जूझते रहते हैं। हमने अपनी आशाएँ सबके, विशेष कर विश्वासियों के, उद्धारकर्त्ता सजीव परमेश्वर पर टिका दी हैं।

11 इन्हीं बातों का आदेश और उपदेश दो। 12 तू अभी युवक है। इसी से कोई तुझे तुच्छ न समझे। बल्कि तू अपनी बात-चीत, चाल-चलन, प्रेम-प्रकाशन, अपने विश्वास और पवित्र जीवन से विश्वासियों के लिए एक उदाहरण बन जा।

13 जब तक मैं आऊँ तू शास्त्रों के सार्वजनिक पाठ करने, उपदेश और शिक्षा देने में अपने आप को लगाए रख। 14 तुझे जो वरदान प्राप्त है, तू उसका उपयोग कर यह तुझे नबियों की भविष्यवाणी के परिणामस्वरूप बुज़ुर्गों के द्वारा तुझ पर हाथ रख कर दिया गया है। 15 इन बातों पर पूरा ध्यान लगाए रख। इन ही में स्थित रह ताकि तेरी प्रगति सब लोगों के सामने प्रकट हो। 16 अपने जीवन और उपदेशों का विशेष ध्यान रख।उन ही पर टिका रह क्योंकि ऐसा आचरण करते रहने से तू स्वयं अपने आपका और अपने सुनने वालों का उद्धार करेगा।

समीक्षा

अपने आपको परमेश्वर के वचन के लिए समर्पित करिए

यह बहुत दुख और निराशा की बात है जब मसीह अपने विश्वास से भटक जाते हैं। पौलुस लिखते हैं कि ‘ आने वाले समयो में कितने लोग भरमाने वाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएँगे’ (व.1, एम.एस.जी)।

वचन का अध्ययन करने के द्वारा अपने आपको धोखे से बचाकर रखिये –जोकि परमेश्वर के वचन में पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकट हैं।

पौलुस झूठी शिक्षा के विरूद्ध चिताते हैं जो हमें ‘विवाह न करने’ या ‘यह या वह भोजन ना खाने’ के लिए कहते हैं (व.3, एम.एस.जी)। वह लिखते हैं, ‘आत्मा स्पष्ट रूप से कहता है...’ (व.1) और ‘ क्योंकि परमेश्वर की सृजी हुई हर एक वस्तु अच्छी है, और कोई वस्तु अस्वीकार करने के योग्य नहीं; पर यह कि धन्यवाद के साथ खाई जाए, क्योंकि वह परमेश्वर के वचन और प्रार्थना के द्वारा शुध्द हो जाती है’ (वव.4-5, एम.एस.जी)।

पौलुस तीमुथी को चिताते हैं कि ‘अच्छी शिक्षा’ को सिखा जो तुमने ग्रहण की हैं (व.6)। अच्छी शिक्षा का एक उदाहरण है ‘एक भरोसे के योग्य बात’ (व.9) -’ परमेश्वर सब मनुष्यों का और निज करके विश्वासियों के उध्दारकर्ता हैं’ (व.10)।

तीमुथी को बुलाया गया है कि ‘ इन बातों की आज्ञा दें और सिखाता रह’ (व.11, एम.एस.जी)। उन्हें अपने शब्दों में विश्वासियों के लिए एक उदाहरण बनना है (साथ ही जीवन में, प्रेम में, विश्वास में और शुद्धता में)। पौलुस उन्हें चिताते हैं कि ‘ पढ़ने और उपदेश देने और सिखाने में लौलीन रहे’ (व.13)। इसे मसीह लीडर्स की एक उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए (5:17 देखें)।

यह सब ‘आपको भक्तिमय’ बनाने के लिए प्रशिक्षण का भाग है (4:7)। व्यायाम करना और तंदुरुस्त रहना अच्छी बात हैः’देह की साधना से कम लाभ होता है’ (व.8अ), पर भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है। ‘ क्योंकि देह की साधना से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आने वाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिये है’ (व.8ब, एम.एस.जी)।

मसीह जीवन में आपकी उम्र आपकी वयस्कता को परिभाषित नहीं करती है। पौलुस लिखते हैं, ‘ कोई तेरी जवानी को तुच्छ न समझने पाए’ (व.11, एम.एस.जी)। आपकी उम्र चाहे जो हो, आप अपने जीवन के द्वारा एक उदाहरण रख सकते हैं। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर का वचन सिखाने के लिए उम्र बाधा नहीं है।

पौलुस तीमुथी को चिताते हैं कि ‘ अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रख’ (व.16)। अपने जीवन और अपने होठों पर ध्यान दो। ‘अपने चरित्र और अपनी शिक्षा को दृढ़ता से पकड़े रहो’ (व.16, एम.एस.जी)।

वह उस वरदान के बारे में भी बताते हैं जो तीमुथी को दिया गया था एक भविष्यवाणी के वचन के द्वारा जब प्राचीनों ने उन पर हाथ रखा था। यह परमेश्वर से एक ‘वचन’ का उदाहरण है जो कि नये नियम में भविष्यवाणी के वरदान के द्वारा दिया गया है।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि अपने आपको भक्ति में प्रशिक्षित करूँ (व.7ब), अपने आपको वचन के लिए समर्पित करुँ और अपने जीवन के हर क्षेत्र में एक उदाहरण रखूँ (वव.12-13)।
जूना करार

यिर्मयाह 40:7-42:22

गदल्याह का अल्पकालीन शासन

7 यहूदा की सेना के कुछ सैनिक, अधिकारी और उनके लोग, जब यरूशलेम नष्ट हो रहा था, खुले मैदान में थे। उन सैनिकों ने सुना कि अहीकाम के पुत्र गदल्याह को बाबुल के राजा ने प्रदेश में बचे लोगों का प्रशासक नियुक्त किया है। बचे हुए लोगों में वे सभी स्त्री, पुरुष और बच्चे थे जो बहुत अधिक गरीब थे और बन्दी बनाकर बाबुल नहीं पहुँचाये गए थे। 8 अत: वे सैनिक गदल्याह के पास मिस्पा में आए। वे सैनिक नतन्याह का पुत्र इश्माएल, योहानान और उसका भाई योनातान, कारेह के पुत्र तन्हूसेत का पुत्र सरायाह, नतोपावासी एपै के पुत्र माकावासी का पुत्र याजन्याह और उनके साथ के पुरुष थे।

9 शापान के पुत्र अहीकाम के पुत्र गदल्याह ने उन सैनिकों और उनके लोगों को अधिक सुरक्षित अनुभव कराने की शपथ खाई। गदल्याह ने जो कहा, वह यह है: “सैनिकों तुम लोग कसदी लोगों की सेवा करने से भयभीत न हो। इस प्रदेश में बस जाओ और बाबुल के राजा की सेवा करो। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारा सब कुछ भला होगा। 10 मैं स्वयं मिस्पा में रहूँगा। मैं उन कसदी लोगों से तुम्हारे लिये बातें करूँगा जो यहाँ आएंगे। तुम लोग यह काम मुझ पर छोड़ो। तुम्हें दाखमधु ग्रीष्म के फल और तेल पैदा करना चाहिये। जो तुम पैदा करो उसे अपने इकट्ठा करने के घड़ों में भरो। उन नगरों में रहो जिस पर तुमने अधिकार कर लिया है।”

11 यहूदा के सभी लोगों ने, जो मोआब, अम्मोन, एदोम और अन्य सभी प्रदेशों में थे, सुना कि बाबुल के राजा ने यहूदा के कुछ लोगों को उस देश में छोड़ दिया है और उन्होंने यह सुना कि बाबुल के राजा ने शापान के पौत्र एवं अहीकाम के पुत्र गदल्याह को उनका प्रशासक नियुक्त किया है। 12 जब यहूदा के लोगों ने यह खबर पाई, तो वे यहूदा प्रदेश में लौट आए। वे गदल्याह के पास उन सभी देशों से मिस्पा लौटे, जिनमें वे बिखर गए थे। अत: वे लौटे और उन्होंने दाखमधु और ग्रीष्म फलों की बड़ी फसल काटी।

13 कारेह का पुत्र योहानान और यहूदा की सेना के सभी अधिकारी, जो अभी तक खुले प्रदेशों में थे, गदल्याह के पास आए। गदल्याह मिस्पा नगर में था। 14 योहानान और उसके साथ के अधिकारियों ने गदल्याह से सहा, “क्या तुम्हें मालूम है कि अम्मोनी लोगों का राजा बालीस तुम्हें मार डालना चाहता है उसने नतन्याह के पुत्र इश्माएल को तुम्हें मार डालने के लिये भेजा है।” किन्तु अहीकाम के पुत्र गदल्याह ने उन पर विश्वास नहीं किया।

15 तब कारेह के पुत्र योहानान ने मिस्पा में गदल्याह से गुप्त वार्ता की। योहानान ने गदल्याह से कहा, “मुझे जाने दो और नतन्याह के पुत्र इश्माएल को मार डालने दो। कोई भी व्यक्ति इस बारे में नहीं जानेगा। हम लोग इश्माएल को तुम्हें मारने नहीं देंगे। वह यहूदा के उन सभी लोगों को जो तुम्हारे पास इकट्ठे हुए हैं, विभिन्न देशों में फिर से बिखेर देगा और इसका यह अर्थ होगा कि यहूदा के थोड़े से बचे—खुचे लोग भी नष्ट हो जायेंगे।”

16 किन्तु अहीकाम के पुत्र गदल्याह ने कारेह के पुत्र योहानान से कहा, “इश्माएल को न मारो। इश्माएल के बारे में जो तुम कह रहे हो, वह सत्य नहीं है।”

41सातवें महीने में नतन्याह (एलीशामा का पुत्र) का पुत्र इश्माएल, अहीकाम के पुत्र गदल्याह के पास आया। इश्माएल अपने दस व्यक्तियों के साथ आया। वे लोग मिस्पा नगर में आए थे। इश्माएल राजा के परिवार का सदस्य था। वह यहूदा के राजा के अधिकारियों में से एक था। इश्माएल और उसके लोगों ने गदल्याह के साथ खाना खाया। 2 जब वे साथ भोजन कर रहे थे तभी इश्माएल और उसके दस व्यक्ति उठे और अहीकाम के पुत्र गदल्याह को तलवार से मार दिया। गदल्याह वह व्यक्ति था जिसे बाबुल के राजा ने यहूदा का प्रशासक चुना था। 3 इश्माएल ने यहूदा के उन सभी लोगों को भी मार डाला जो मिस्पा में गदल्याह के साथ थे। इश्माएल ने उन कसदी सैनिकों को भी मार डाला जो गदल्याह के साथ थे।

4-5 गदल्याह की हत्या के एक दिन बाद अस्सी व्यक्ति मिस्पा आए। वे अन्नबलि और सुगन्धि यहोवा के मन्दिर के लिये ला रहे थे। उन अस्सी व्यक्तियों ने अपनी दाढ़ी मुड़ा रखी थी, अपने वस्त्र फाड़ डाले थे और अपने को काट रखा था। वे शकेम, शीलो और शोमरोन से आए थे। इनमें से कोई भी यह नहीं जानता था कि गदल्याह की हत्या कर दी गई है। 6 इश्माएल मिस्पा नगर से उन अस्सी व्यक्तियों से मिलने गया। उनसे मिलने जाते समय वह रोता रहा। इश्माएल उन अस्सी व्यक्तियों से मिला और उसने कहा, “अहीकाम के पुत्र गदल्याह से मिलने मेरे साथ चलो।”

7 वे अस्सी व्यक्ति मिस्पा नगर में गए। तब इश्माएल और उसके व्यक्तियों ने उनमें से सत्तर लोगों को मार डाला। इश्माएल और उसके व्यक्तियों ने उन सत्तर व्यक्तियों के शवों को एक गहरे हौज में डाल दिया।

8 किन्तु बचे हुए दस व्यक्तियों ने इश्माएल से कहा, “हमें मत मारो। हमारे पास गेहूँ और जौ है और हमारे पास तेल और शहद है। हम लोगों ने उन चीज़ों को एक खेत में छिपा रखा है।” अत: इश्माएल ने उन व्यक्तियों को छोड़ दिया। उसने अन्य लोगों के साथ उनको नहीं मारा। 9 (वह हौज बहुत बड़ा था। यह यहूदा के आसा नामक राजा द्वारा बनवाया गया था। राजा आसा ने उसे इसलिये बनाया था कि युद्ध के दिनों में नगर को उससे पानी मिलता रहे। आसा ने यह काम इस्राएल के राजा बाशा से नगर की रक्षा के लिये किया था। इश्माएल ने उस हौज में इतने शव डाले कि वह भर गया।)

10 इश्माएल ने मिस्पा नगर के अन्य सभी लोगों को भी पकड़ा। (उन लोगों में राजा की पुत्रियाँ और वे अन्य सभी लोग थे जो वहाँ बच गए थे। वे ऐसे लोग थे जिन्हें नबूजरदान ने गदल्याह पर नजर रखने के लिये चुना था। नबूजरदान बाबुल के राजा के विशेष रक्षकों का अधिनायक था। अत: इश्माएल ने उन लोगों को पकड़ा और अम्मोनी लोगों के देश में जाने के लिये बढ़ना आरम्भ किया।)

11 कारेह का पुत्र योहानान और उसके साथ के सभी सैनिक अधिकारियों ने उन सभी दुराचारों को सुना जो इश्माएल ने किये। 12 इसलिये योहानान और उसके साथ के सैनिक अधिकारियों ने अपने व्यक्तियों को लिया और नतन्याह के पुत्र इश्माएल से लड़ने गए। उन्होंने इश्माएल को उस बड़े पानी के हौज के पास पकड़ा जो गिबोन नगर में है। 13 उन बन्दियों ने जिन्हें इश्माएल ने बन्दी बनाया था, योहानान और सैनिक अधिकारियों को देखा। वे लोग अति प्रसन्न हुए। 14 तब वे सभी लोग जिन्हें इश्माएल ने मिस्पा में बन्दी बनाया था, कारेह के पुत्र योहानान के पास दौड़ पड़े। 15 किन्तु इश्माएल और उसके आठ व्यक्ति जोहानान से बच निकले। वे अम्मोनी लोगों के पास भाग गये।

16 अत: कारेह के पुत्र योहानान और उसके सभी सैनिक अधिकारियों ने बन्दियों को बचा लिया। इश्माएल ने गदल्याह की हत्या की थी और उन लोगों को मिस्पा से पकड़ लिया था। बचे हुए लोगों में सैनिक, स्त्रियाँ, बच्चे और अदालत के अधिकारी थे। योहानान उन्हें गिबोन नगर से वापस लाया।

मिस्र को बच निकलना

17-18 योहानान तथा अन्य सैनिक अधिकारी कसदियों से भयभीत थे। बाबुल के राजा ने गदल्याह को यहूदा का प्रशासक चुना था। किन्तु इश्माएल ने गदल्याह की हत्या कर दी थी और योहानान को भय था कि कसदी क्रोधित होंगे। अत: उन्होंने मिस्र को भाग निकलने का निश्चय किया। मिस्र के रास्ते में वे गेरथ किम्हाम में रुके। गेरथ किम्हाम बेतलेहेम नगर के पास है।

42जब वे गेरथ किम्हाम में थे योहानान और होशायाह का पुत्र याजन्याह नामक एक व्यक्ति यिर्मयाह नबी के पास गए। योहानान और याजन्याह के साथ सभी सैनिक अधिकारी गए। बड़े से लेकर बहुत छोटे तक सभी व्यक्ति यिर्मयाह के पास गए। 2 उन सभी लोगों ने उससे कहा, “यिर्मयाह, कृपया सुन जो हम कहते हैं। अपने परमेश्वर यहोवा से, यहूदा के परिवार के इन सभी बचे व्यक्तियों के लिये प्रार्थना करो। यिर्मयाह, तुम देख सकते हो कि हम लोगों में बहुत अधिक नहीं बचे हैं। किसी समय हम बहुत अधिक थे। 3 यिर्मयाह, अपने परमेश्वर यहोवा से यह प्रार्थना करो कि वह बताये कि हमें कहाँ जाना चाहिये और हमें क्या करना चाहिये।”

4 तब यिर्मयाह नबी ने उत्तर दिया, “मैं समझता हूँ कि तुम मुझसे क्या कराना चाहते हो। मैं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा से वही प्रार्थना करूँगा जो तुम मुझसे करने को कहते हो। मैं हर एक बात, जो यहोवा कहेगा बताऊँगा। मैं तुमसे कुछ भी नहीं छिपाऊँगा।”

5 तब उन लोगों ने यिर्मयाह से कहा, “यदि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो कुछ कहता है उसे हम नहीं करते तो हमें आशा है कि यहोवा ही सच्चा और विश्वसनीय गवाह हमारे विरुद्ध होगा। हम जानते हैं कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें यह बताने को भेजा कि हम क्या करे 6 इसका कोई महत्व नहीं कि हम सन्देश को पसन्द करते हैं या नहीं। हम लोग अपने परमेश्वर, यहोवा की आज्ञा का पालन करेंगे। हम लोग तुम्हें यहोवा के यहाँ उससे सन्देश लेने के लिये भेज रहे हैं। हम उसका पालन करेंगे जो वह कहेगा। तब हम लोगों के लिए सब अच्छा होगा। हाँ, हम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा का पालन करेंगे।”

7 दस दिन बीतने के बाद यहोवा के यहाँ से यिर्मयाह को सन्देश मिला। 8 तब यिर्मयाह ने कारेह के पुत्र योहानान और उसके साथ के सैनिक अधिकारियों को एक साथ बुलाया। यिर्मयाह ने बहुत छोटे व्यक्ति से लेकर बहुत बड़े व्यक्ति तक को भी एक साथ बुलाया। 9 तब यिर्मयाह ने उनसे कहा, “जो इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा कहता है, यह वह है: ‘तुमने मुझे उसके पास भेजा। मैंने यहोवा से वह पूछा, जो तुम लोग मुझसे पूछना चाहते थे। यहोवा यह कहता है: 10 यदि तुम लोग यहूदा में रहोगे तो मैं तुम्हारा निर्माण करूँगा मैं तुम्हें नष्ट नहीं करूँगा। मैं तुम्हें रोपूँगा और मैं तुमको उखाड़ूँगा नहीं। मैं यह इसलिये करूँगा कि मैं उन भयंकर विपत्तियों के लिये दु:खी हूँ जिन्हें मैंने तुम लोगों पर घटित होने दीं। 11 इस समय तुम बाबुल के राजा से भयभीत हो। किन्तु उससे भयभीत न हो। बाबुल के राजा से भयभीत न हो: यही यहोवा का सन्देश है, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हें बचाऊँगा। मैं तुम्हें खतरे से निकालूँगा। वह तुम पर अपना हाथ नहीं रख सकेगा। 12 मैं तुम पर दयालु रहूँगा और बाबुल का राजा भी तुम्हारे साथ दया का व्यवहार करेगा और वह तुम्हें तुम्हारे देश वापस लायेगा। 13 किन्तु तुम यह कह सकते हो, हम यहूदा में नहीं ठहरेंगे। यदि तुम ऐसा कहोगे तो तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करोगे। 14 तुम यह भी कह सकते हो, ‘नहीं हम लोग जाएंगे और मिस्र में रहेंगे। हमे उस स्थान पर युद्ध की परेशानी नहीं होगी। हम वहाँ युद्ध की तुरही नहीं सुनेंगे और मिस्र में हम भूखे नहीं रहेंगे।’ 15 यदि तुम यह सब कहते हो, तो यहूदा के बचे लोगों यहोवा के इस सन्देश को सुनो। इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है: ‘यदि तुम मिस्र में रहने के लिये जाने का निर्णय करते हो तो यह सब घटित होगा: 16 तुम युद्ध की तलवार से डरते हो, किन्तु यही तुम्हें वहाँ पराजित करेगी और तुम भूख से परेशान हो, किन्तु तुम मिस्र में भूखे रहोगे। तुम वहाँ मरोगे। 17 हर एक वह व्यक्ति तलवार, भूख और भयंकर बीमारी से मरेगा जो मिस्र में रहने के लिये जाने का निर्णय करेगा। जो लोग मिस्र जाएंगे उसमें से कोई भी जीवित नहीं बचेगा। उनमें से कोई भी उन भयंकर विपत्तियों से नहीं बचेगा जिन्हें मैं उन पर ढाऊँगा।’

18 “इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा, यह कहता है: ‘मैंने अपना क्रोध यरूशलेम के विरुद्ध प्रकट किया है। मैंने उन लोगों को दण्ड दिया जो यरूशलेम में रहते थे। उसी प्रकार मैं अपना क्रोध प्रत्येक उस व्यक्ति पर प्रकट करुँगा जो मिस्र जाएगा। लोग तुम्हारा उदाहरण तब देंगे जब वे अन्य लोगों के साथ बुरा घटित होने की प्रार्थना करेंगे। तुम अभिशाप वाणी के समान होओगे। तुम पर जो हुआ उसे देख कर लोग भयभीत होंगे। लोग तुम्हारा अपमान करेंगे और तुम फिर कभी यहूदा को नहीं देख पाओगे।’

19 “यहूदा के बचे हुए लोगों, यहोवा ने तुमसे कहा, ‘मिस्र मत जाओ।’ मैं तुम्हें स्पष्ट चेतावनी देता हूँ। 20 तुम लोग एक बड़ी भूल कर रहे हो, जिसके कारण तुम मरोगे। तुम लोगों ने यहोवा अपने परमेश्वर के पास मुझे भेजा। तुमने मुझसे कहा, ‘परमेश्वर यहोवा से हमारे लिये प्रार्थना करो। हर बात हमें बताओ जो यहोवा करने को कहता है। हम यहोवा की आज्ञा का पालन करेंगे।’ 21 अत: आज मैंने यहोवा का सन्देश तुम्हें दिया है। किन्तु तुमने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं किया। तुमने वह सब नहीं किया है जिसे करने के लिये कहने को उसने मुझे भेजा है। 22 तुम लोग रहने के लिये मिस्र जाना चाहते हो अब निश्चय ही तुम यह समझ गये होगे कि मिस्र में तुम पर यह घटेगा: तुम तलवार से या भूख से, या भयंकर बीमारी से मरोगे।”

समीक्षा

भविष्यवक्ताओं के ‘वचनो’ को ध्यान से सुना

क्या आप कभी ऐसी एक स्थिति में थे जहाँ पर आपने निर्णय लिया कि आप क्या करने वाले थे और फिर परमेश्वर से वचन का इंतजार करने लगे उस बात की पुष्टि करने के लिए जो आपने पहले ही अपने हृदय में निर्णय ले लिया था?

मैं ऐसी स्थिति में था। यह रहने के लिए एक अच्छा स्थान नहीं है। यहाँ पर यही हुआ। उन्होंने निर्णय ले लिया था कि वे मिस्र में जाना चाहते थे और वे चाहते थे कि यिर्मयाह उन्हें परमेश्वर से एक वचन दे, यह बताते हुए कि ऐसा करना सही था। इसने विपत्ति ला दी।

यिर्मयाह पुराने नियम के एक भविष्यवक्ता थे जो ‘परमेश्वर से वचन’ सुनने के लिए प्रसिद्ध थे (42:1-7)।

इस्राएल अपने इतिहास के सबसे निम्नतम बिंदु पर पहुँच चुका था। गदल्याह, जो बचे हुए लोगों के ऊपर अधिकारी ठहराया गया था, जो निर्वासन में नहीं गया था (40:7), उसकी हत्या कर दी गई (40:7-41:15)। क्योंकि पलिश्तियों में पानी की आपूर्ति बहुत मूल्यवान थी, व्यवस्था को गंदा करना बर्बरता का एक लापरवाह कार्य था (41:9)।

याजन्याह स्थिति से निपटने में सक्षम थे जिसमें सेना की शिक्षा की आवश्यकता थी। लेकिन उनका विचार था कि मिस्र में भाग जाएं क्योंकि उन्हें बेबीलोनियों का प्रतिशोध अपराजेय लगता था। इस पॉलिसी में वह यिर्मयाह से टकराये।

याजन्याह और सेना के सभी अधिकारी यिर्मयाह के पास आये और उनसे विनती की कि ‘ प्रार्थना करें कि तेरा परमेश्वर यहोवा हम को बताए कि हम किस मार्ग से चलें, और कौन सा काम करें?’ (42:3)।

यिर्मयाह ने जवाब दिया, ‘ मैंने तुम्हारी सुनी है; देखो, मैं तुम्हारे वचनो के अनुसार तुम्हारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करूँगा और जो उत्तर यहोवा तुम्हारे लिये देगा मैं तुम को बताउँगा; मैं तुम से कोई बात न छिपाउँगा’ (व.4)।

वे वायदा करते हैं, ‘ चाहे वह भली बात हो, चाहे बुरी, तब भी हम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा, जिसके पास हम तुझे भेजते हैं, मानेंगे’ (व.6)।

यह दिलचस्प बात हे कि यहाँ तक कि यिर्मयाह के लिए, मार्गदर्शन तुरंत नहीं आया। इसके बजाय, ‘ दस दिन के बीतने पर यहोवा का वचन यिर्मयाह के पास पहुँचा’ (व.7)।

उन्होंने वफादारी से इसे बतायाः’परमेश्वर कहता है...’ (व.9)। यदि वह देश में बने रहे तो वह आशीष का वायदा करते हैं (वव.10-12) और यदि मिस्र में जाएँगे तो दंड मिलेगा (व.13)।

ऐसा हुआ कि उन्होंने पहले ही निर्णय लिया था कि वे क्या करेंगे और सिर्फ चाहते थे कि परमेश्वर इस बात की पुष्टि करें। उन्होंने परमेश्वर के वचन को न मानने की गलती की (व.21)। यह कितना महत्वपूर्ण है कि निर्णय लेने से पहले परमेश्वर से पूछे नाकि बाद में!

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि आप वचनो और भविष्यवक्ताओं के द्वारा हमसे बात करते हैं। मेरी सहायता कीजिए कि सावधानीपूर्वक आपके वचन को सुनूं और उनका पालन करुँ।

पिप्पा भी कहते है

नीतिवचन 25:17

‘ अपने पड़ोसी के घर में बारम्बार जाने से अपने पाँव को रोक, ऐसा न हो कि वह खिन्न होकर घृणा करने लगे’

बहुत से दिनों में हमारे घर में सभा और भोजन के लिए बहुत से लोग आते हैं। अब तक मैं इसका आनंद ले रही हूँ!

दिन का वचन

1 तीमुथियुस 4:7-8

“पर अशुद्ध और बूढिय़ों की सी कहानियों से अलग रह; और भक्ति के लिये अपना साधन कर। क्योंकि देह की साधना से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आने वाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिये है।”

reader

App

Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.

reader

Email

Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.

Podcast

Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.

reader

Website

Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.

संदर्भ

बिल ब्रेडफिल्ड, बाईबल को पढ़नाः 500 से अधिक पुरुषों और महिलाओं के विचार, (डोवर पब्लिकेशन्स, 2005) पी.121

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

Bible in One Year

  • Bible in One Year

This website stores data such as cookies to enable necessary site functionality and analytics. Find out more