दिन 290

प्रार्थना कैसे करें

बुद्धि भजन संहिता 119:49-56
नए करार 1 तीमुथियुस 2:1-15
जूना करार यिर्मयाह 35:1-37:21

परिचय

प्रार्थना आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधी है। यह मुख्य तरीका है जिससे आप अपने स्वर्गीय पिता के साथ एक संबंध को विकसित करते हैं। यदि आप किसी से प्रेम करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से, आप उनकी उपस्थिति में समय बिताना चाहेंगे, उनसे बातें करते हुए। जैसा कि किसी भी संबंध में, बातचीत विभिन्न रूप ले सकती है। लॅन्कलोट एन्द्रीयु (1555-1626), एक महान सिद्धांतवादी और प्रचारक, ने अपने व्यक्तिगत समर्पण में दो सूची लिखीः

पहला, उन्होंने बाईबल में प्रार्थना के समय की एक सूची लिखीः

‘हमेशा...

बिना रूके...

हर बार...

दिन में तीन बार...

शाम, और सुबह और दोपहर...

दिन में सात बार...

सुबह में, दिन से पहले...

भोर होने पर...

दिन के तीसरे पहर...

छठे पहर में...

प्रार्थना का समय, नौवाँ...

शाम...

रात में...

मध्यरात्री में... ‘

अगला, उन्होंने बाईबल में प्रार्थना के स्थानों की सूची बनाईः

‘सभा में...और मंडली में...

अपने कमरे में...

एक ऊपरी कमरे में...

घर के ऊपर...

मंदिर...

किनारे पर...

बगीचे में...

अपने बिस्तर पर...

जंगल में...

हर स्थान में...’

इसकी कोई सीमा नहीं है कि आप प्रार्थना किसी समय, स्थान और विभिन्न तरीकों से कर सकते हैं।

बुद्धि

भजन संहिता 119:49-56

जाइन्

49 हे यहोवा, अपना वचन याद कर जो तूने मुझको दिया।
 वही वचन मुझको आज्ञा दिया करता है।
50 मैं संकट में पड़ा था, और तूने मुझे चैन दिया।
 तेरे वचनो ने फिर से मुझे जीने दिया।
51 लोग जो स्वयं को मुझसे उत्तम सोचते हैं, निरन्तर मेरा अपमान कर रहे हैं,
 किन्तु हे यहोवा मैंने तेरी शिक्षाओं पर चलना नहीं छोड़ा।
52 मैं सदा तेरे विवेकपूर्ण निर्णयों का ध्यान करता हूँ।
 हे यहोवा तेरे विवेकपूर्ण निर्णय से मुझे चैन है।
53 जब मैं ऐसे दुष्ट लोगों को देखता हूँ,
 जिन्होंने तेरी शिक्षाओं पर चलना छोड़ा है, तो मुझे क्रोध आता है।
54 तेरी व्यवस्थायें मुझे ऐसी लगती है,
 जैसे मेरे घर के गीत।
55 हे यहोवा, रात में मैं तेरे नाम का ध्यान
 और तेरी शिक्षाएँ याद रखता हूँ।
56 इसलिए यह होता है कि
 मैं सावधानी से तेरे आदेशों को पालता हूँ।

समीक्षा

रात में परमेश्वर का वचन, गीत और प्रार्थना

प्रार्थना दो तरफा बातचीत है। प्रार्थना में हम परमेश्वर से सुनते हैं और उनसे बात करते हैं। मुख्य तरीका जिससे हम आज परमेश्वर को सुनते हैं, उनके वचन के द्वारा है। यीशु परमेश्वर के वचन हैं (यूहन्ना 1:1) और बाईबल उनके विषय में बताती है। जैसे ही आप बाईबल का अध्ययन करते हैं, प्रार्थना कीजिए कि परमेश्वर इसके द्वारा आपसे बात करें।

यह आपको ‘आशा’ देगा (भजनसंहिता 119:49) जीवन की सभी कठिनाईयों के बीच में’ मेरे दुःख में मुझे शान्ति उन्ही से मिली है, क्योंकि आपके वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है’ (व.50, एम.एस.जी)। आप परमेश्वर के वचन में शांति पायेंगे (व.52)।

ये वचन परमेश्वर के लिए हमारी आराधना को भी उत्साहित करती हैः’ वहाँ आपकी विधियाँ, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं’ (व.54)। बहुत से महान भजन और आराधना गीत, बाईबल के वचनो पर आधारित हैं।

आपको अपनी प्रार्थनाओं को दिन के समय तक सीमित करने की आवश्यकता नहीं है। ‘ हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया’ (व.55अ): यह सर्वश्रेष्ठ तरीका है उस समय को इस्तेमाल करने का जब आप रात में उठ जाते हैं। यह अनिद्र रोग का इलाज करने का तरीका भी हो सकता है!

प्रार्थना

परमेश्वर, कृपया आज अपने वचन के द्वारा मुझसे बात कीजिए और मुझे आशा और शांति दीजिए। प्रार्थना करने में मेरी सहायता कीजिए।
नए करार

1 तीमुथियुस 2:1-15

स्त्री-पुरुषों के लिये कुछ नियम

2सबसे पहले मेरा विशेष रूप से यह निवेदन है कि सबके लिये आवेदन, प्रार्थनाएँ, अनुरोध और सब व्यक्तियों की ओर से धन्यवाद दिए जाएँ। 2 शासकों और सभी अधिकारियों को धन्यवाद दिये जाएँ। ताकि हम चैन के साथ शांतिपूर्वक सम्पूर्ण श्रद्धा और परमेश्वर के प्रति सम्मान से पूर्ण जीवन जी सकें। 3 यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला है। यह उत्तम है।

4 वह सभी व्यक्तियों का उद्धार चाहता है और चाहता है कि वे सत्य को पहचाने 5 क्योंकि परमेश्वर एक ही है और मनुष्य तथा परमेश्वर के बीच में मध्यस्थ भी एक ही है। वह स्वयं एक मनुष्य है, मसीह यीशु। 6 उसने सब लोगों के लिये स्वयं को फिरौती के रूप में दे डाला है। इस प्रकार उसने उचित समय परइसकी साक्षी दी। 7 तथा इसी साक्षी का प्रचार करने के लिये मुझे एक प्रचारक और प्रेरित नियुक्त किया गया। (यह मैं सत्य कह रहा हूँ, झूठ नहीं) मुझे विधर्मियों के लियेविश्वास तथा सत्य के उपदेशक के रूप में भी ठहराया गया।

पुरुष एवं महिला के बारे में विशेष निर्देश

8 इसलिए मेरी इच्छा है कि हर कहीं सब पुरुष पवित्र हाथों को उपर उठाकर परमेश्वर के प्रति समर्पित हो बिना किसी क्रोध अथवा मन-मुटाव के प्रार्थना करें।

9 इसी प्रकार स्त्रियों से भी मैं यह चाहता हूँ कि वे सीधी-साधी वेश-भूषा में शालीनता और आत्म-नियन्त्रण के साथ रहें। अपने आप को सजाने सँवारने के लिए वे केशों की वेणियाँ न सजायें तथा सोने, मोतियों और बहुमूल्य वस्त्रों से श्रृंगार न करें 10 बल्कि ऐसी स्त्रियों को जो अपने आप को परमेश्वर की उपासिका मानती है, उनके लिए उचित यह है कि वे स्वयं को उत्तम कार्यों से सजायें।

11 एक स्त्री को चाहिए कि वह शांत भाव से समग्र समर्पण के साथ शिक्षा ग्रहण करे। 12 मैं यह नहीं चाहता कि कोई स्त्री किसी पुरुष को सिखाए पढ़ाये अथवा उस पर शासन करे। बल्कि उसे तो चुपचाप ही रहना चाहिए। 13 क्योंकि आदम को पहले बनाया गया था और तब पीछे हव्वा को। 14 आदम को बहकाया नहीं जा सका था किन्तु स्त्री को बहका लिया गया और वह पाप में पतित हो गयी। 15 किन्तु यदि वे माता के कर्तव्यों को निभाते हुए विश्वास, प्रेम, पवित्रता और परमेश्वर के प्रति समर्पण में बनी रहें तो उद्धार को अवश्य प्राप्त करेंगी।

समीक्षा

निवेदन, प्रार्थना, मध्यस्थता, धन्यवादिता और हाथों का उठाया जाना

आपकी पहली प्राथमिकता क्या है? पौलुस लिखते हैं, ‘ अब मैं सब से पहले यह आग्रह करता हूँ कि विनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद सब मनुष्यों के लिये किए जाएँ’ (व.1, एम.एस.जी)।

क्या आप कभी सरकार या हमारे राजनैतिज्ञो के बारे में शिकायत करते हैं? यदि आप एक अच्छी सरकार चाहते हैं, तो आपको अवश्य ही इसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पौलुस प्रार्थना को प्राथमिकता देते हैं, ‘ राजाओं और सब उँचे पदवालों के निमित्त इसलिये कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ती और गम्भीरता से जीवन बिताए’ (व.2)।

यदि आप ऐसे एक देश में रहते हैं जहाँ पर सरकार स्थिर है, तो परमेश्वर का धन्यवाद दीजिए और प्रार्थना कीजिए कि स्थिरता बनी रहे। विश्व के बहुत से भागों में, लोग अस्थिर सरकार और तानाशाही के कारण कष्ट उठाते हैं। पौलुस प्रेरित की प्रार्थनाओं में नियम का राज्य करना सबसे ऊँची प्राथमिकता थी।

जब सरकार अच्छी और शांतिमय होती है तब यह सुसमाचार को फैलाना आसान बनाती है और बहुतों के लिए संदेश को सुनना सरल बनाती है। ‘ यह हमारे उध्दारकर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता और भाता भी है, जो यह चाहते हैं कि सब मनुष्यों का उध्दार हो, और वे सत्य को भली भाँति पहचान लें ‘ (वव.3-4)। परमेश्वर हर मनुष्य से प्रेम करते हैं। किसी को भी परमेश्वर ने खोने के लिए नियुक्त नहीं किया है। वह चाहते हैं कि सभी का उद्धार हो जाएँ।

यीशु ने हम सभी के लिए जान दी। ‘ जिसने अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया’ (व.6)। यह यीशु के कामों का एक सुंदर सारांश है। उनकी मध्यस्थता और चुकाये गए दाम के द्वारा, सभी के लिए पिता के साथ एक घनिष्ठ संबंध का अनुभव करना एक संभव बात है।

‘हर उस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करो जिसे जानते हो’ (व.1, एम.एस.जी)। इसमें आपका परिवार, मित्र, पड़ोसी और हर वह व्यक्ति शामिल हैं जिसके लिए प्रार्थना करने के लिए पवित्र आत्मा आपको उत्साहित कर रहे हैं।

यह ध्यान देना दिलचस्प बात है कि आशा की जाती थी कि लोग प्रार्थना में अपने हाथों को उठाये। ‘ इसलिये मैं चाहता हूँ कि हर जगह पुरुष, बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करे’ (व.8, एम.एस.जी)। इस बात को हल्के में लिया जाता था कि मसीह, यहूदियों की तरह, प्रार्थना में अपने हाथों को उठाये (व.8)।

यह प्रार्थना का पारंपरिक तरीका था। मैं अक्सर कहता हूँ कि ‘यदि आप एक चर्च में जाएँ और सभी के हाथों को ऊपर उठा हुआ देखें, तो कहे, ‘यह एक पारंपरिक चर्च है जो आराधना के पुराने तरीके का अभ्यास कर रहा है।’ यदि उन सभी के हाथ नीचे उनकी बगल में हैं तो यह भी ठीक है। केवल कहे, ‘यह एक आधुनिक, फैशनेबल चर्च है जो आराधना के नये प्रकार का प्रयोग कर रहा है!’

आज के लेखांश के अंत में समझाने के लिए एक कठिन भाग है (वव.9-15)। इस लेखांश के बहुत से अर्थ बाकी नये नियम के साथ उचित नहीं बैठते हैं, जहाँ पर यह बात स्पष्ट हो कि महिलाओं के लिए चर्च में लीडरशिप की भूमिका थी। पौलुस महिलाओं को प्रेरित और डिकन कहते हैं (रोमियो 16)। वह उनसे आशा करते हैं कि सभा में प्रार्थना करें और भविष्यवाणी करें (1कुरिंथियो 11)।

पौलुस यह भी लिखते हैं कि मसीह ने लिंग के आधार पर राय और फूट को समाप्त कर दिया है – मसीह में ‘ न कोई नर न नारी ‘ (गलातियो 3:28)। यीशु की सेवकाई में हम पढते हैं कि बेतहनी की मरियम यीशु के चरणों के पास बैठी थी। दूसरे शब्दों में, वह एक चेला बनने में और एक शिष्य बनने में पुरुषो के साथ शामिल हो गई थी (लूका 10:38-42)।

पौलुस का मूलभूत मुद्दा है कि आग्रह करें कि महिलाओं को भी सीखने (1तीमुथियुस 2:11) और मसीहों के रूप में अध्ययन करने दिया जाएँ। यह करने के लिए उन्हें दीनता को लगाने की आवश्यकता थी और इसकी कारवाई को न रोकना था। यहाँ पर पौलुस ‘अधिकार’ के लिए जिस शब्द का इस्तेमाल करते हैं वह है (ऑथेंटिन), दूसरी जगह इसका इस्तेमाल क्रूरता या लीडरशिप के धाक जमाने वाले रूप के लिए इस्तेमाल किया गया है – तो शायद से इसका अर्थ मंडली में किसी मामले से है, महिलाओं की लीडरशिप पर सामान्य टिप्पणी के बजाय।

जैसा कि मैसेज अनुवाद इसे बताता है, ‘मैं चाहता हूँ कि महिलाएँ पुरुषों के साथ दीनता में परमेश्वर के सम्मुख आएँ...परमेश्वर के लिए कुछ सुंदर करते हुए और इसे करते हुए सुंदर बनते हुए’ (वव.9-10, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं आज विशेष रूप से अधिकार के स्थान में स्थित मनुष्यों के लिए प्रार्थना करता हूँ कि, नियम का शासन स्थापित होगा और लोग सारी भक्तिमयता और पवित्रता में शांत जीवन जी पायेंगे।
जूना करार

यिर्मयाह 35:1-37:21

रेकाबी परिवार का उत्तम उदाहरण

35जब यहोयाकीम यहूदा का राजा था तब यहोवा का सन्देश यिर्मयाह का मिला। यहोयाकीम राजा योशिय्याह का पुत्र था। यहोवा का सन्देश यह था: 2 “यिर्मयाह, रेकाबी परिवार के पास जाओ। उन्हें यहोवा के मन्दिर के बगल के कमरों में से एक में आने के लिये निमन्त्रित करो। उन्हें पीने के लिये दाखमधु दो।”

3 अत: मैं (यिर्मयाह) याजन्याह से मिलने गया। याजन्याह उस यिर्मयाह नामक एक व्यक्ति का पुत्र था जो हबस्सिन्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था और मैं याजन्याह के सभी भाइयों और पुत्रों से मिला। मैंने पूरे रेकाबी परिवार को एक साथ इकट्ठा किया। 4 तब मैं रेकाबी परिवार को यहोवा के मन्दिर में ले आया। हम लोग उस कमरे में गये जो हानान के पुत्रों का कहा जाता है। हानान यिग्दल्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था। हानान परमेश्वर का व्यक्ति था। वह कमरा उस कमरे से अगला कमरा था जिसमें यहूदा के राजकुमार ठहरते थे। यह शल्लूम के पुत्र मासेयाह के कमरे के ऊपर था। मासेयाह मन्दिर में द्वारपाल था। 5 तब मैंने (यिर्मयाह) रेकाबी परिवार के सामने कुछ प्यालों के साथ दाखमधु से भरे कुछ कटोरे रखे और मैंने उनसे कहा, “थोड़ी दाखमधु पीओ।”

6 किन्तु रेकाबी लोगों ने उत्तर दिया, “हम दाखमधु कभी नहीं पीते। हम इसलिये नहीं पीते क्योंकि हमारे पूर्वज रेकाबी के पुत्र योनादाब ने यह आदेश दिया था: ‘तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को दाखमधु कभी नहीं पीनी चाहिये 7 तुम्हें कभी घर बनाना, पौधे रोपना और अंगूर की बेल नहीं लगानी चाहिये। तुम्हें उनमे से कुछ भी नहीं करना चाहिये। तुम्हें केवल तम्बुओं में रहना चाहिये। यदि तुम ऐसा करोगे तो उस प्रदेश में अधिक समय तक रहोगे जहाँ तुम एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हो।’ 8 इसलिये हम रेकाबी लोग उन सब चीज़ों का पालन करते हैं जिन्हें हमारे पूर्वज योनादाब ने हमें आदेश दिया है। 9 हम दाखमधु कभी नहीं पीते और हमारी पत्नियाँ पुत्र और पुत्रियाँ दाखमधु कभी नहीं पीते। हम रहने के लिये घर कभी नहीं बनाते और हम लोगों के अंगूर के बाग या खेत कभी नहीं होते और हम फसलें कभी नहीं उगाते। 10 हम तम्बूओं में रहे हैं और वह सब माना है जो हमारे पूर्वज योनादाब ने आदेश दिया है। 11 किन्तु जब बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने यहूदा देश पर आक्रमण किया तब हम लोग यरूशलेम को गए। हम लोगों ने आपस में कहा, ‘आओ हम यरूशलेम नगर में शरण लें जिससे हम कसदी और अरामी सेना से बच सकें।’ अत: हम लोग यरूशलेम में ठहर गए।”

12 तब यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला: 13 “इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है: “यिर्मयाह, जाओ यहूदा एवं यरूशलेम के लोगों को यह सन्देश दो: ‘लोगों, तुम्हें सबक सीखना चाहिये और मेरे सन्देश का पालन करना चाहिये।’ यह सन्देश यहोवा का है। 14 ‘रेकाब के पुत्र योनादाब ने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे दाखमधु न पीएं, और उस आदेश का पालन हुआ है। आज तक योनादाब के वंशजों ने अपने पूर्वज के आदेश का पालन किया है। वे दाखमधु नहीं पीते। किन्तु मैं तो यहोवा हूँ और यहूदा के लोगों, मैंने तुम्हें बार बार सन्देश दिया है, किन्तु तुमने उसका पालन नहीं किया। 15 इस्राएल और यहूदा के लोगों, मैंने अपने सेवक नबियों को तुम्हारे पास भेजा। मैंने उन्हें तुम्हारे पास बार बार भेजा। उन नबियों ने तुमसे कहा, “इस्राएल और यहूदा के लोगों, तुम सब को बुरा करना छोड़ देना चाहिये। तुम्हें अच्छा होना चाहिये। अन्य देवताओं का अनुसरण न करो। उन्हें न पूजो, न ही उनकी सेवा करो। यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन करोगे तो तुम उस देश में रहोगे जिसे मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया है।” किन्तु तुम लोगों ने मेरे सन्देश पर ध्यान नहीं दिया। 16 योनादाब के वंशजों ने अपने पूर्वज के आदेश को, जो उसने दिया, माना। किन्तु यहूदा के लोगों ने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया।’

17 “अत: इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है: ‘मैंने कहा कि यहूदा और यरूशलेम के लिये बहुत सी बुरी घटनायें घटेंगी। मैं उन बुरी घटनाओं को शीघ्र ही घटित कराऊँगा। मैंने उन लोगों को समझाया, किन्तु उन्होंने मेरी एक न सुनी। मैंने उन्हें पुकारा, किन्तु उन्होंने उत्तर नहीं दिया।’”

18 तब यिर्मयाह ने रेकाबी परिवार के लोगों से कहा, “इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, ‘तुम लोगों ने अपने पूर्वज योनादाब के आदेश का पालन किया है। तुमने योनादाब की सारी शिक्षाओं का अनुसरण किया है। तुमने वह सब किया है जिसके लिये उसने आदेश दिया था।’ 19 इसलिये इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है: ‘रेकाब के पुत्र योनादाब के वंशजों में से एक ऐसा सदैव होगा जो मेरी सेवा करेगा।’”

राजा यहोयाकीम यिर्मयाह के पत्रकों को जला देता है

36यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यह योशिय्याह के पुत्र यहोयाकीम के यहूदा में राज्यकाल के चौथे वर्ष हुआ। यहोवा का सन्देश यह था: 2 “यिर्मयाह, पत्रक लो और उन सन्देशों को उस पर लिख डालो जिन्हें मैंने तुमसे कहे हैं। मैंने तुमसे इस्राएल और यहूदा के राष्ट्रों एवं सभी राष्ट्रों के बारे में बातें की हैं। जब से योशिय्याह राजा था तब से अब तक मैंने जो सन्देश तुम्हें दिये हैं, उन्हें लिख डालो। 3 संभव है, यहूदा का परिवार यह सुने कि मैं उनके लिये क्या करने की योजना बना रहा हूँ और संभव है वे बुरा काम करना छोड़ दें। यदि वे ऐसा करेंगे तो मैं उन्हें, जो बुरे पाप उन्होंने किये हैं, उसके लिये क्षमा कर दूँगा।”

4 इसलिये यिर्मयाह ने बारुक नामक एक व्यक्ति को बुलाया। बारुक, नेरिय्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था। यिर्मयाह ने उन सन्देशों को कहा जिन्हें यहोवा ने उसे दिया था। जिस समय यिर्मयाह सन्देश दे रहा था उसी समय बारुक उन्हें पत्रक पर लिख रहा था। 5 तब यिर्मयाह ने बारुक से कहा, “मैं यहोवा के मन्दिर में नहीं जा सकता। मुझे वहाँ जाने की आज्ञा नहीं है। 6 इसलिये मैं चाहता हूँ कि तुम यहोवा के मन्दिर में आओ। वहाँ उपवास के दिन जाओ और पत्रक से लोगों को सुनाओ। उन सन्देशों को जिन्हें यहोवा ने तुम्हें दिया और जिनको तुमने पत्रक में लिखा, उन्हें लोगों के सामने पढ़ो। उन सन्देंशों को यहूदा के सभी लोगों के सामने पढ़ो जो अपने रहने के नगरों से यरूशलेम में आएं। 7 शायद वे लोग यहोवा से सहायता की याचना करें। कदाचित् हर एक व्यक्ति बुरा काम करना छोड़ दे। यहोवा ने यह घोषित कर दिया है कि वह उन लोगों पर बहुत क्रोधित है।”

8 अत: नेरिय्याह के पुत्र बारुक ने वह सब किया जिसे यिर्मयाह नबी ने करने को कहा। बारुक ने उस पत्रक को जोर से पढ़ा जिसमें यहोवा के सन्देश लिखे थे। उसने इसे यहोवा के मन्दिर में पढ़ा।

9 यहोयाकीम के राज्यकाल के पाँचवें वर्ष के नवें महीने में एक उपवास घोषित हुआ। यह आज्ञा थी कि यरूशलेम में रहने वाले सभी लोग और यहूदा के नगरों से यरूशलेम में आने वाले लोग यहोवा के सामने उपवास रखेंगे। 10 उस समय बारुक ने उस पत्रक को पढ़ा जिसमें यिर्मयाह के कथन थे। उसने पत्रक को यहोवा के मन्दिर में पढ़ा। बारुक ने पत्रक को उन सभी लोगों के सामने पढ़ा जो यहोवा के मन्दिर में थे। बारुक उस समय ऊपरी आँगन में यमरिया के कमरे में था। वह पत्रक को पढ़ रहा था। वह कमरा मन्दिर के नये द्वार के पास स्थित था। यमरिया शापान का पुत्र था। यमरिया मन्दिर में एक शास्त्री था।

11 मीकायाह नामक एक व्यक्ति ने यहोवा के उन सारे सन्देशों को सुना जिन्हें बारुक ने पत्रक से पढ़ा। मीकायाह उस गमर्याह का पुत्र था जो शापान का पुत्र था। 12 जब मीकायाह ने पत्रक से सन्देश को सुना तो वह राजा के महल में सचिव के कमरे में गया। राजकीय सभी अधिकारी राजमहल में बैठे थे। उन अधिकारियों के नाम ये हैं: सचिव एलीशामा, शमायाह का पुत्र दलायाह, अबबोर का पुत्र एलनातान, शापान का पुत्र गमर्याह, हनन्याह का पुत्र सिदकिय्याह और अन्य सभी राजकीय अधिकारी भी वहाँ थे। 13 मीकायाह ने उन अधिकारियों से वह सब कहा जो उसने बारुक को पत्रक से पढ़ते सुना था।

14 तब उन अधिकारियों ने बारुक के पास यहूदी नामक एक व्यक्ति को भेजा। (यहूदी शेलेम्याह के पुत्र नतन्याह का पुत्र था। शेलेम्याह कूशी का पुत्र था।) यहूदी ने बारुक से कहा, “वह पत्रक तुम लाओ जिसे तुमने पढ़ा और मेरे साथ चलो।”

नेरिय्याह के पुत्र बारुक ने पत्रक को लिया और यहूदी के साथ अधिकारियों के पास गया।

15 तब उन अधिकारियों ने बारुक से कहा, “बैठो और पत्रक को हम लोगों के सामने पढ़ो।”

अत: बारुक ने उस पत्रक को उन्हें सुनाया।

16 उन राजकीय अधिकारियों ने उस पत्रक से सभी सन्देश सुने। तब वे डर गए और एक दूसरे को देखने लगे। उन्होंने बारुक से कहा, “हमें पत्रक के सन्देश के बारे में राजा यहोयाकीम से कहना होगा।”

17 तब अधिकारियों ने बारुक से एक प्रश्न किया। उन्होंने पूछा, “बारुक यह बताओ कि तुमने ये सन्देश कहाँ से पाए जिन्हें तुमने इस पत्रक पर लिखा क्या तुमने उन सन्देशों को लिखा जिन्हें यिर्मयाह ने तुम्हें बताया”

18 बारुक ने उत्तर दिया, “हाँ, यिर्मयाह ने कहा और मैंने सारे सन्देशो को स्याही से इस पत्रक पर लिखा।”

19 तब राजकीय अधिकारियों ने बारुक से कहा, “तुम्हें और यिर्मयाह को कहीं जा कर छिप जाना चाहिये। किसी से न बताओ कि तुम कहाँ छिपे हो।”

20 तब राजकीय अधिकारियों ने शास्त्री एलीशामा कमरे में पत्रक को रखा। वे राजा यहोयाकीम के पास गए और पत्रक के बारे में उसे सब कुछ बताया।

21 अत: राजा यहोयाकीम ने यहूदी को पत्रक को लेने भेजा। यहूदी शास्त्री एलीशामा के कमरे से पत्रक को लाया। तब यहूदी ने राजा और उसके चारों ओर खड़े सभी सेवकों को पत्रक को पढ़ कर सुनाया। 22 यह जिस समय हुआ, नवाँ महीना था, अत: राजा यहोयाकीम शीतकालीन महल — खण्ड में बैठा था। राजा के सामने अंगीठी में आग जल रही थी। 23 यहूदी ने पत्रक से पढ़ना आरम्भ किया। किन्तु जब वह दो या तीन पक्तियाँ पढ़ता, राजा यहोयाकीम पत्रक को पकड़ लेता था। तब वह उन पक्तियों को एक छोटे चाकू से पत्रक में से काट डालता था और उन्हें अंगीठी में फेंक देता था। अन्तत: पूरा पत्रक आग में जला दिया गया 24 जब राजा यहोयाकीम और उसके सेवकों ने पत्रक से सन्देश सुने तो वे डरे नहीं। उन्होंने अपने वस्त्र यह प्रकट करने के लिए नहीं फाड़े कि उन्हें अपने बुरे किये कामों के लिये दु:ख है।

25 एलनातान, दलइया और यिर्मयाह ने राजा यहोयाकीम से पत्रक को न जलाने के लिये बात करने का प्रयत्न किया। किन्तु राजा ने उनकी एक न सुनी 26 और राजा यहोयाकीम ने कुछ व्यक्तियों को आदेश दिया कि वे शास्त्री बारुक और यिर्मयाह नबी को बन्दी बनायें। ये व्यक्ति राजा का एक पुत्र अज्राएल का पुत्र सरायाह और अब्देल का पुत्र शेलेम्याह थे। किन्तु वे व्यक्ति बारुक और यिर्मयाह को न ढूँढ सके क्योंकि यहोवा ने उन्हें छिपा दिया था।

27 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यह तब हुआ जब यहोयाकीम ने यहोवा के उन सभी सन्देशों वाले पत्रक को जला दिया था, जिन्हें यिर्मयाह ने बारुक से कहा था और बारुक ने सन्देशों को पत्रक पर लिखा था। यहोवा का जो सन्देश यिर्मयाह को मिला, वह यह था:

28 “यिर्मयाह, दूसरा पत्रक तैयार करो। इस पर उन सभी सन्देशों को लिखो जो प्रथम पत्रक पर थे। यानि वही पत्रक जिसे यहूदा के राजा यहोयाकीम ने जला दिया था। 29 यिर्मयाह, यहूदा के राजा यहोयाकीम से यह भी कहो, यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘यहोयाकीम तुमने उस पत्रक को जला दिया। तुमने कहा, “यिर्मयाह ने क्यों लिखा कि बाबुल का राजा निश्चय ही आएगा और इस देश को नष्ट करेगा वह क्यों कहता है कि बाबुल का राजा इस देश के लोगों और जानवरों दोनों को नष्ट करेगा” 30 अत: यहूदा के राजा यहोयाकीम के बारे में जो यहोवा कहता है, वह यह है: यहोयाकीम के वंशज दाऊद के राज सिंहासन पर नहीं बैठेंगे। जब यहोयाकीम मरेगा उसे राजा जैसे अन्त्येष्टि नहीं दी जाएगी, अपितु उसका शव भूमि पर फेंक दिया जायेगा। उसका शव दिन की गर्मी में और रात के ठंडे पाले में छोड़ दिया जाएगा। 31 यहोवा अर्थात् मैं यहोयाकीम और उसकी सन्तान को दण्ड दूँगा और मैं उसके अधिकारियों को दण्ड दूँगा। मैं यह करुँगा क्योंकि वे दुष्ट हैं। मैंने उन पर तथा यरूशलेम के सभी निवासियों पर और यहूदा के लोगों पर भयंकर विपत्ति ढाने की प्रतिज्ञा की है। मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन पर सभी बुरी विपत्तियाँ ढाऊँगा क्योंकि उन्होंने मेरी अनसुनी की है।’”

32 तब यिर्मयाह ने दूसरा पत्रक लिया और उसे नेरिय्याह के पुत्र शास्त्री बारुक को दिया। जैसे यिर्मयाह बोलता जाता था वैसे ही बारुक उन्हीं सन्देशों को पत्रक पर लिखता जाता था जो उस पत्रक पर थे जिसे राजा यहोयाकीम ने आग में जला दिया था और उन्हीं सन्देशों की तरह बहुत सी अन्य बातें दूसरे पत्रक में जोड़ी गई।

यिर्मयाह बन्दीगृह में डाला गया

37नबूकदनेस्सर बाबुल का राजा था। नबूकदनेस्सर ने यहोयाकीम के पुत्र यकोन्याह के स्थान पर सिदकिय्याह को यहूदा का राजा नियुक्त किया। सिदकिय्याह राजा योशिय्याह का पुत्र था। 2 किन्तु सिदकिय्याह ने यहोवा के उन सन्देशों पर ध्यान नहीं दिया जिन्हें यहोवा ने यिर्मयाह नबी को उपदेश देने के लिये दिया था और सिदकिय्याह के सेवकों तथा यहूदा के लोगों ने यहोवा के सन्देश पर ध्यान नहीं दिया।

3 राजा सिदकिय्याह ने यहूकल नामक एक व्यक्ति और याजक सपन्याह को यिर्मयाह नबी के पास एक सन्देश लेकर भेजा। यहूकल शेलेम्याह का पुत्र था। याजक सपन्याह मासेयाह का पुत्र था। जो सन्देश वे यिर्मयाह के लिये लाये थे वह यह है: “यिर्मयाह, हमारे परमेश्वर यहोवा से हम लोगों के लिये प्रार्थना करो।”

4 (उस समय तक, यिर्मयाह बन्दीगृह में नहीं डाला गया था, अत: जहाँ कहीं वह जाना चाहता था, जा सकता था। 5 उस समय ही फिरौन की सेना मिस्र से यहूदा को प्रस्थान कर चुकी थी। बाबुल सेना ने पराजित करने के लिये, यरूशलेम नगर के चारों ओर घेरा डाल रखा था। तब उन्होंने मिस्र से उनकी ओर कूच कर चुकी हुई सेना के बारे में सुना था। अत: बाबुल की सेना मिस्र से आने वाली सेना से लड़ने के लिये, यरूशलेम से हट गई थी।)

6 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह नबी को सन्देश मिला: 7 “इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘यहूकल और सपन्याह मैं जानता हूँ कि यहूदा के राजा सिदकिय्याह ने तुम्हें मेरे पास प्रश्न पूछने को भेजा है। राजा सिदकिय्याह को यह उत्तर दो, फिरौन की सेना यहाँ आने और बाबुल की सेना के विरुद्ध तुम्हारी सहायता के लिये मिस्र से कूच कर चुकी है। किन्तु फिरौन की सेना मिस्र लौट जाएगी। 8 उसके बाद बाबुल की सेना यहाँ लौटेगी। यह यरूशलेम पर आक्रमण करेगी। तब बाबुल की वह सेना यरूशलेम पर अधिकार करेगी और उसे जला डालेगी।’ 9 यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘यरूशलेम के लोगों, अपने को मूर्ख मत बनाओ। तुम आपस में यह मत कहो, बाबुल की सेना निश्चय ही, हम लोगों को शान्त छोड़ देगी। वह नहीं छोड़ेगी। 10 यरूशलेम के लोगों, यदि तुम बाबुल की उस सारी सेना को ही क्यों न पराजित कर डालो जो तुम पर आक्रमण कर रही है, तो भी उनके डेरों में कुछ घायल व्यक्ति बच जाएंगे। वे थोड़े घायल व्यक्ति भी अपने डेरों से बाहर निकलेंगे और यरूशलेम को जलाकर राख कर देंगे।’”

11 जब बाबुल सेना ने मिस्र के फिरौन की सेना के साथ युद्ध करने के लिये यरूशलेम को छोड़ा, 12 तब यिर्मयाह यरूशलेम से बिन्यामीन प्रदेश की यात्रा करना चाहता था। वहाँ वह अपने परिवार की कुछ सम्पत्ति के विभाजन में भाग लेने जा रहा था। 13 किन्तु जब यिर्मयाह यरूशलेम के बिन्यामीन द्वार पर पहुँचा तब रक्षकों के अधिकारी कप्तान ने उसे बन्दी बना लिया। कप्तान का नाम यिरिय्याह था। यिरिय्याह शेलेम्याह का पुत्र था। शेलेम्याह हनन्याह का पुत्र था। इस प्रकार कप्तान यिरिय्याह ने यिर्मयाह को बन्दी बनाया और कहा, “यिर्मयाह, तुम हम लोगों को बाबुल पक्ष में मिलने के लिये, छोड़ रहे हो।”

14 यिर्मयाह ने यिरिय्याह से कहा, “यह सच नहीं है। मैं कसदियों के साथ मिलने के लिये नहीं जा रहा हूँ।” किन्तु यिरिय्याह ने यिर्मयाह की एक न सुनी। यिरिय्याह ने यिर्मयाह को बन्दी बनाया और उसे यरूशलेम के राजकीय अधिकारियों के पास ले गया। 15 वे अधिकारी यिर्मयाह पर बहुत क्रोधित थे। उन्होंने यिर्मयाह को पीटने का आदेश दिया। तब उन्होंने यिर्मयाह को बन्दीगृह में डाल दिया। बन्दीगृह योनातान नामक व्यक्ति के घर में था। योनातान यहूदा के राजा का शास्त्री था। योनातान का घर बन्दीगृह बना दिया गया था। 16 उन लोगों ने यिर्मयाह को योनातान के घर की एक कोठरी में रखा। वह कोठरी जमीन के नीचे कूप—गृह थी। यिर्मयाह उसमें लम्बे समय तक रहा।

17 तब राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह को बुलवाया और उसे राजमहल में लाया गया। सिदकिय्याह ने यिर्मयाह से एकान्त में बातें कीं। उसने यिर्मयाह से पूछा, “क्या यहोवा को कोई सन्देश है”

यिर्मयाह ने उत्तर दिया, “हाँ, यहोवा का सन्देश है। सिदकिय्याह, तुम बाबुल के राजा के हाथ में दे दिये जाओगे।” 18 तब यिर्मयाह ने राजा सिदकिय्याह से कहा, “मैंने कौन सा अपराध किया है मैंने कौन सा अपराध तुम्हारे, तुम्हारे अधिकारियों या यरूशलेम के विरुद्ध किया है तुमने मुझे बन्दीगृह में क्यों फेंका 19 राजा सिदकिय्याह, तुम्हारे नबी अब कहाँ है उन नबियों ने तुम्हें झूठा सन्देश दिया। उन्होंने कहा, ‘बाबुल का राजा तुम पर या यहूदा देश पर आक्रमण नहीं करेगा।’ 20 किन्तु अब मेरे यहोवा, यहूदा के राजा, कृपया मेरी सुन। कृपया मेरा निवेदन अपने तक पहुँचने दे। मैं आपसे इतना माँगता हूँ। शास्त्री योनातान के घर मुझे वापस न भेजें। यदि आप मुझे वहाँ भेजेंगे मैं वहीं मर जाऊँगा।”

21 अत: राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह के लिये आँगन में रक्षकों के संरक्षण में रहने का आदेश दिया और उसने यह आदेश दिया कि यिर्मयाह को सड़क पर रोटी बनाने वालों से रोटियाँ दी जानीं चाहिये। यिर्मयाह को तब तक रोटी दी जाती रही जब तक नगर में रोटी समाप्त नहीं हुई। इस प्रकार यिर्मयाह आँगन में रक्षकों के संरक्षण में रहा।

समीक्षा

परमेश्वर की बात सुनना और दूसरों के लिए प्रार्थना करना

क्या आप इस तथ्य के द्वारा निराश होते हैं कि बहुत से लोग परमेश्वर के वचन को सुनने में और उसे मानने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं?

परमेश्वर ने यिर्मयाह से बात की। यिर्मयाह ने कहा कि परमेश्वर ‘ने योशिय्याह के राज्य में उनसे बात करना शुरु किया था’ (36:2)। ‘ बारूक ने यहोवा के सब वचन जो उसने यिर्मयाह से कहे थे यिर्मयाह के मुख से सुनकर पुस्तक में लिख दिए’ (व.4)।

बार-बार ‘परमेश्वर की ओर से यिर्मयाह के पास वचन आये’ (उदाहरण के लिए, आज के लेखांश में 35:1,12;36:1,27; 37:6)। संभव्यत यिर्मयाह ने प्रार्थना करते समय परमेश्वर के वचन को सुना।

यिर्मयाह ने लोगों को चिताया कि परमेश्वर की बात सुने। परमेश्वर ने ‘बार-बार बात की’ (35:14)। उन्होंने कहा, ‘ क्योंकि मैं ने उनको सुनाया पर उन्होंने नहीं सुना, मैं ने उनको बुलाया पर उन्होंने उत्तर न दिया’ (व.17)।

इस तथ्य के बावजूद कि परमेश्वर अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह के द्वारा बातें कर रहे थे, राजा यहोयाकीम ने अपने सलाहकारों की चेतावनी को सुनना मना कर दिया (36:25)। यिर्मयाह ने परिश्रम के साथ परमेश्वर के वचन को पंख और स्याही से कागज पर लिखा था। लेकिन यहोयाकीम, जो ठंडी में अंगीठी के सामने बैठकर आग सेक रहा था, पूरी पुस्तक ली और इसके टुकड़े टुकडे करके जला दिया (व.23)।

अवश्य ही यिर्मयाह को यह सुनकर दुख हुआ होगा कि राजा ने उनके कठिन परिश्रम के साथ क्या किया है। परमेश्वर यिर्मयाह को ‘इसे फिर से लिखने के लिए कहते हैं’ (व.28, एम.एस.जी)। वह व्यक्तिगत नकारे जाने के द्वारा पीछे नहीं हटे। यिर्मयाह की तरह, हमें अवश्य ही निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए तैयार रहना है यहाँ तक कि यदि हमारे संदेश को नकार दिया जाता हैः’इसे फिर से करो।’

विपत्ति आयी, ‘क्योंकि उन्होंने बात नहीं मानी’ (व.31)। जब सिदकिय्याह को राजा बनाया गया, ‘ न तो उसने, न उसके कर्मचारियों ने, और न साधारण लोगों ने यहोवा के वचनो को माना जो उसने यिर्मयाह भविष्यवक्ता के द्वारा कहे थे’ (व.37:2)। उन्होंने यिर्मयाह के साथ बुरा बर्ताव किया और उसके वचन को नकार दिया। तब भी, बात मानने से इनकार करने के बावजूद, अधिकारियों ने यिर्मयाह की प्रार्थना की सामर्थ को पहचाना। राजा सिदकिय्याह ने भविष्यवक्ता यिर्मयाह के पास एक संदेश भेजाः’हमारे निमित्त हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना कर।’ (व.3)।

बाद में उसे गिरफ्तार किया गया, पिटवाया गया और बंदीगृह में डाल दिया गया (वव.14-15)। ‘ यिर्मयाह उस तलघर में जिसमें कई एक कोठरियाँ थीं, रहने लगा’ (व.16)। फिर भी जब उसे कोठरी से निकालकर राजा के पास ले जाया गया और पूछा गया कि, ‘क्या यहोवा की ओर से कोई वचन पहुँचा है?’ (व.17), उनके पास साहस था कि दुबारा से कहे। वह राजा की दया पर थे और फिर भी वह पूरी तरह से निर्भीक थे।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि प्रार्थना में ध्यान से आपके वचन को सुनूं और परिणामों के बावजूद उन्हें बोलने का साहस करुँ।

पिप्पा भी कहते है

यिर्मयाह 37:15

‘ तब हाकिमों ने यिर्मयाह से क्रोधित होकर उसे पिटवाया, और योनातन प्रधान के घर में बन्दी बनाकर डलवा दिया, क्योंकि उन्होंने उसके लिए साधारण बन्दीगृह बना दिया था।’

यिर्मयाह का काम आसान नहीं था –वह यहूदी देश को आने वाले विनाश की चेतावनी देने के लिए बुलाए गए थे। यह प्रचलित नहीं था। लहर के विरूद्ध जाना आसान बात नहीं है। यिर्मयाह एक प्रोत्साहन हैं कि आगे बढ़ते रहे जब चीजें कठिन लगती हो।

दिन का वचन

1 तीमुथियुस 2:1

“अब मैं सब से पहिले यह उपदेश देता हूं, कि बिनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएं।”

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संदर्भ

अलेक्जेंडर व्हाइट (एड), लॅनसेलोट एँद्रियु एण्ड हिस प्रायवेट डिवोशन, (एपोक्रिफिल प्रेस, 2008)

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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