अलग बनने का साहस करो
परिचय
मुझे एक बार पास्टर नदरखनी से मिलने और उनसे बातचीत करने का सम्मान मिला। उन्नीस वर्ष की उम्र में यूसुफ नदरखनी मसीह बने। वह एक नियुक्त पास्टर बने और ईरान में एक चर्च चलाने लगे। अब वह अड़तीस वर्ष के हैं और विवाहित हैं और उनके दो बच्चे हैं।
2010 में, उन्हें गिरफ्तार किया गया और मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई ‘धर्मत्याग' के कारण (इस्लाम छोड़कर मसीहत में आने के कारण)। धन्यवाद हो परमेश्वर का कि लगातार अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण, सितंबर 2012 में निर्णय को बदल दिया गया।
मुकदमें के दौरान, पास्टर नदरखनी ने अपने विश्वास को छोड़ने से इनकार कर दिया, मृत्युदंड का सामना करने के बावजूद। उन्होंने न्यायाधीश से कहा, ‘मैं अपने विश्वास और मसीहत में दृढ़ संकल्पित हूँ और इसे छोड़ना नहीं चाहता।’ तब यू.के विदेशी सेक्रेटरी, विलियम हाग्यु ने उनकी साहस की प्रशंसा की। गार्जियन न्यूजपेपर ने उनका वर्णन ‘एक उत्साहित करने वाले साहसी मसीह’ के रूप में किया। आज विश्वभर में बहुत से मसीहों की तरह, पास्टर नदरखनी अब भी अपने विश्वास के लिए सताव का सामना करते हैं।
यीशु हमें सच्ची मानवता का एक चित्र प्रदान करते हैं। उनकी तरह बनने के द्वारा, अलग बनने का साहस करो। उस चीज के पीछे मत जाओ, जो विश्व आपको बताता है कि अच्छा है, बल्कि परमेश्वर के पीछे जाओ, मसीह जैसा बनने के द्वारा।
भजन संहिता 119:17-24
गिमेल्
17 तेरे दास को योग्यता दे
और मैं तेरे नियमों पर चलूँगा।
18 हे यहोवा, मेरी आँख खोल दे और मैं तेरी शिक्षाओं के भीतर देखूँगा।
मैं उन अद्भुत बातों का अध्ययन करूँगा जिन्हें तूने किया है।
19 मैं इस धरती पर एक अनजाना परदेशी हूँ।
हे यहोवा, अपनी शिक्षाओं को मुझसे मत छिपा।
20 मैं हर समय तेरे निर्णयों का
पाठ करना चाहता हूँ।
21 हे यहोवा, तू अहंकारी जन की आलोचना करता है।
उन अहंकारी लोगों पर बुरी बातें घटित होंगी। वे तेरे आदेशों पर चलना नकारते हैं।
22 मुझे लज्जित मत होने दे, और मुझको असमंजस में मत डाल।
मैंने तेरी वाचा का पालन किया है।
23 यहाँ तक कि प्रमुखों ने भी मेरे लिये बुरी बातें की हैं।
किन्तु मैं तो तेरा दास हूँ।
मैं तेरे विधान का पाठ किया करता हूँ।
24 तेरी वाचा मेरा सर्वोत्तम मिस्र है।
यह मुझको अच्छी सलाह दिया करता है।
समीक्षा
पृथ्वी पर एक ‘परदेशी’ बनो
क्या आप कभी महसूस करते हैं काम पर या अपने आस-पड़ोस में आप उन लोगों के साथ मेल नहीं खाते हैं? क्या आपके मूल्य और जीवनशैली थोड़ी अलग लगती है?
भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, ‘ मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ’ (व.19)। पुराने नियम में सभी महान पुरुष और महिलाएँ ‘पृथ्वी पर परदेशी थे’ (इब्रानियो 11:13)। पतरस प्रेरित लिखते हैं, ‘यहाँ पर परदेसियों की तरह जीओ’ (1पतरस 1:17)। भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, परमेश्वर के सेवकों के रूप में वे अपने आस-पास के लोगों से अलग बनने के लिए बुलाए गए थे।
भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं, ‘ मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है’ (119:20)। जैसे ही वचनो को पढते हैं, वह प्रार्थना करते हैं, ‘ मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अदभुत बातें देख सकूँ’ (व.18)। यह करने के लिए महान प्रार्थना है जब आप बाईबल का अध्ययन करते हैं। हम केवल वह समझते हैं जो आत्मा के द्वारा प्रकट होता है।
उनके आस-पास कुछ लोग ‘बुरे पड़ोसी’ हैं जो ‘द्वेषपूर्ण रूप से कानाफूसी करते हैं’ (व.23अ, एम.एस.जी)। दूसरी ओर, परमेश्वर के वचन उनके लिए ‘अच्छे पड़ोसी’ की तरह हैं (व.24, एम.एस.जी)। वह लिखते हैं, ‘ तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा। तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल और मेरे मंत्री हैं’ (वव.23ब -24, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
1 थिस्सलुनीकियों 5:1-28
प्रभु के स्वागत को तैयार रहो
5हे भाईयों, समयों और तिथियों के विषय में तुम्हें लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है 2 क्योंकि तुम स्वयं बहुत अच्छी तरह जानते हो कि जैसे चोर रात में चुपके से चला आता है, वैसे ही प्रभु के फिर से लौटने का दिन भी आ जायेगा। 3 जब लोग कह रहे होंगे कि “सब कुछ शांत और सुरक्षित है” तभी जैसे एक गर्भवती स्त्री को अचानक प्रसव वेदना आ घेरती है वैसे ही उन पर विनाश उतर आयेगा और वे कहीं बच कर भाग नहीं पायेंगे।
4 किन्तु हे भाईयों, तुम अन्धकार के वासी नहीं हो कि तुम पर वह दिन चुपके से चोर की तरह आ जाये। 5 तुम सब तो प्रकाश के पुत्र हो और दिन की संतान हो। हम न तो रात्रि से सम्बन्धित हैं और न ही अन्धेरे से। 6 इसलिए हमें औरों की तरह सोते नहीं रहना चाहिए, बल्कि सावधानी के साथ हमें तो अपने पर नियन्त्रण रखना चाहिए। 7 क्योंकि जो सोते हैं, रात में सोते हैं और जो नशा करते हैं, वे भी रात में ही मदमस्त होते हैं। 8 किन्तु हम तो दिन से सम्बन्धित हैं इसलिए हमें अपने पर काबू रखना चाहिए। आओ विश्वास और प्रेम की झिलम धारण कर लें और उद्धार पाने की आशा को शिरस्त्राण की तरह ओढ़ लें।
9 क्योंकि परमेश्वर ने हमें उसके प्रकोप के लिए नहीं, बल्कि हमारे प्रभु यीशु द्वारा मुक्तिप्राप्त करने के लिए बनाया है। 10 यीशु मसीह ने हमारे लिए प्राण त्याग दिए ताकि चाहे हम सजीव हैं चाहे मृत, जब वह पुनः आए उसके साथ जीवित रहें। 11 इसलिए एक दूसरे को सुख पहुँचाओ और एक दूसरे को आध्यात्मिकरूप से सुदृढ़ बनाते रहो। जैसा कि तुम कर भी रहे हो।
अंतिम निर्देश और अभिवादन
12 हे भाइयों, हमारा तुमसे निवेदन है कि जो लोग तुम्हारे बीच परिश्रम कर रहे हैं और प्रभु में जो तुम्हें राह दिखाते हैं, उनका आदर करते रहो। 13 हमारा तुमसे निवेदन है कि उनके काम के कारण प्रेम के साथ उन्हें पूरा आदर देते रहो।
परस्पर शांति से रहो। 14 हे भाईयों, हमारा तुमसे निवेदन है आलसियों को चेताओ, डरपोकों को प्रोत्साहित करो, दोनों की सहायता में रुचि लो, सब के साथ धीरज रखो। 15 देखते रहो कोई बुराई का बदला बुराई से न दे, बल्कि सब लोग सदा एक दूसरे के साथ भलाई करने का ही जतन करें।
16 सदा प्रसन्न रहो। 17 प्रार्थना करना कभी न छोड़ो। 18 हर परिस्थिति में परमेश्वर का धन्यवाद करो।
19 पवित्र आत्मा के कार्य का दमन मत करते रहो। 20 नबियों के संदेशों को कभी छोटा मत जानो। 21 हर बात की असलियत को परखो, जो उत्तम है, उसे ग्रहण किए रहो 22 और हर प्रकार की बुराई से बचे रहो।
23 शांति का स्रोत परमेश्वर स्वयं तुम्हें पूरी तरह पवित्र करे। पूरी तरह उसको समर्पित हो जाओ और तुम अपने सम्पूर्ण अस्तित्व अर्थात् आत्मा, प्राण और देह को हमारे प्रभु यीशु मसीह के आने तक पूर्णतः दोष रहित बनाए रखो। 24 वह परमेश्वर जिसने तुम्हें बुलाया है, विश्वास के योग्य है। निश्चयपूर्वक वह ऐसा ही करेगा।
25 हे भाईयों! हमारे लिए भी प्रार्थना करो। 26 सब भाईयों का पवित्र चुम्बन से सत्कार करो। 27 तुम्हें प्रभु की शपथ देकर मैं यह आग्रह करता हूँ कि इस पत्र को सब भाइयों को पढ़ कर सुनाया जाए। 28 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारे साथ रहे।
समीक्षा
अलग तरीके से जीओ
हमारे आस-पास के विश्व से अलग बनने के लिए बुलाये जाकर, हमें प्रायोगिक निर्देश दिया गया है कि इसे कैसे करना है। पौलुस लिखते हैं, ‘ हम दूसरों के समान सोते न रहें’ (व.6)। अलग बनने का साहस करो। पौलुस अंतर का वर्णन करने के लिए चार रूपक अलंकार का इस्तेमाल करते हैं:
1. प्रकाश नाकि अंधकार
आस-पास का विश्व अंधकार में जी रहा है (व.4)। अंधकार से दूर मत भागिए, इसके बजाय, इसमें चमको। ‘तुम सभी ज्योति की संतान हो’ (व.5अ)। अंधकार अज्ञानता और पाप को बताता है। आप अंधकार में थे। यीशु आपके जीवन में अपने प्रकाश को चमकाते हैं। आप प्रकाश की संतान हैं। किसी चीज की संतान होने का अर्थ है, उस चीज की विशेषता होना। जब मसीहों को ‘ज्योति की संतान’ कहा जाता है, तो इसका यह अर्थ है कि ‘प्रकाश’ उनकी विशेषता है।
2. दिन नाकि रात
पौलुस लिखते हैं, ‘तुम दिन की संतान हो। तुम रात के नहीं हो’ (व.5)। प्रकाश और अंधकार के विषय पिछले बिंदु की तरह, यह भी ‘प्रभु के दिन’ की बात करता है (व.2)। हम प्रभु के दिन की संतान हैं, यह यीशु के आगमन के उस महान दिन की विजय में सहभागिता और इसकी बाट जोहने के विषय में है।
3. जागते रहो नाकि सोते
पौलुस लिखते हैं, ‘दूसरों की तरह मत बनो, जो सोते हैं...क्योंकि जो सोते हैं, रात में सोते हैं’ (वव.6-7)। वह आगे कहते हैं, ‘ हम चाहे जागते हों चाहे सोते हों, सब मिलकर उसी के साथ जीएँ’ (व.10)। अभी यीशु आपके साथ हैं। स्वयं यीशु ने ध्यान देने और जागते रहने की इस भाषा का इस्तेमाल किया (मत्ती 24:42;25:13)। आत्मिक रूप से मत सो जाईये। प्रभु के आगमन के लिए तैयार रहिये – जागते हुए और ध्यान देते हुए।
4. होश में नाकि नशे में
पौलुस लिखते हैं, ‘सावधान रहे’ (1 थिस्सलुनिकियों 5:8)। इस शब्द का अर्थ है ‘दाखरस से मतवाले।’ दूसरे अलंकार की तरह यह एक भौतिक स्थिति और आत्मिक वास्तविकता के बारे में बताता है। शराबीपन आत्मसंयम की कमी के कारण आता है और वास्तविकता से बचने के लिए इंद्रियों को अतिसेवन करना। अपने जीवन के हर क्षेत्र में आत्मसंयम करने का प्रयास कीजिए। विश्वास, प्रेम और आशा को पहन लें (व.8)।
आपकी जीवनशैली आपके आस-पास के लोगों से पूरी तरह से अलग होनी चाहिए। आपको अपने लीडर्स का सम्मान करना चाहिएः’हे भाइयो, हम तुम से विनती करते हैं कि जो तुम में परिश्रम करते हैं, और प्रभु में तुम्हारे अगुवे हैं, और तुम्हें शिक्षा देते हैं, उनका सम्मान करो। और उनके काम के कारण प्रेम के साथ उनको बहुत ही आदर के योग्य समझो’ (वव.12-13अ, एम.एस.जी)।
आप सम्मान के एक जीवन में बुलाए गए हैं (व.12)। हमेशा लोगों का सम्मान कीजिए। हमेशा शांत रहिये (व.13):’हे भाइयो, हम तुम्हें समझाते हैं कि जो ठीक चाल नहीं चलते उनको समझाओ, कायरों को ढाढ़स दो, निर्बलों को संभालो, सब की ओर सहनशीलता दिखाओ। सावधान! कोई किसी से बुराई के बदले बुराई न करे; पर सदा भलाई करने पर तत्पर रहो, आपस में और सब से भी भलाई ही की चेष्टा करो’ (वव.14-15, एम.एस.जी)। यदि आप लोगों में से सर्वश्रेष्ठ को बाहर निकालना चाहते हैं, तो आपको उनमें सर्वश्रेष्ठ को अवश्य ही देखना चाहिए।
सभी के प्रति नम्र बनो। नम्रता आपके जीवन की एक विशेषता होनी चाहिएः’हमेशा एक दूसरे के प्रति और बाकी सभी के प्रति नम्र बनने की कोशिश करो’ (व.15)। यहाँ तक कि नम्रता के छोटे से कार्य भी बहुत शाक्तिशाली होते हैं क्योंकि वे आपके आस-पास के विश्व को बदल सकते हैं।
आप एक अलग विश्व के नागरिक हैं। आपको एक नई भाषा सीखनी पड़ेगी। यहाँ पर पौलुस जो वर्णन करते हैं वह प्रभावी रूप से एक नई भाषा का व्याकरण हैः’ सदा आनन्दित रहो; निरंतर प्रार्थना करो; हर बात में धन्यवाद करो ‘ (व.16)। प्रार्थना को साँस लेने की तरह होना चाहिए – जो हम निरंतर करते हैं, लेकिन अक्सर अचेतन रूप से। हमेशा शिकायत करने के बजाय, ‘सारी परिस्थितियों को धन्यवाद दो’ – परमेश्वर और दूसरे लोगों के प्रति धन्यवाद देते हुए – छोटी चीजों में और बड़ी चीजों में भी।
‘आत्मा को न बुझाओ। भविष्यवाणियों को तुच्छ न जानो। सब बातों को परखो; जो अच्छी हैं उसे पकड़े रहो। सब प्रकार की बुराई से बचे रहो’ (वव.19-22)।
यह सब एक बहुत ही भयभीत करने वाला विचार लग सकता है। लेकिन आप अकेले नहीं हैं। पौलुस प्रार्थना करते हैं, ‘ शान्ति को परमेश्वर आप ही तुम्हें पूरी रीति से पवित्र करे’ (व.23), और वह आशा और सहायता की घोषणा के साथ समापन करते हैं - ‘ तुम्हारा बुलाने वाला सच्चा है, और वह ऐसा ही करेगा’ (व.25)।
प्रार्थना
यिर्मयाह 25:15-26:24
विश्व के राष्ट्रों के साथ न्याय
15 इस्राएल के परमेशवर यहोवा ने यह सब मुझसे कहा, “यिर्मयाह, यह दाखमधु का प्याला मेरे हाथों से लो। यह मेरे क्रोध का दाखमधु है। मैं तुम्हें विभिन्न राष्ट्रों में भेज रहा हूँ। उन सभी राष्ट्रों को इस प्याले से पिलाओं। 16 वे इस दाखमधु को पीएंगे। तब वे उलटी करेंगे और पागलों सा व्यवहार करेंगे। वे यह उन तलवारों के कारण ऐसा करेंगे जिन्हें मैं उनके विरुद्ध शीघ्र भेजूँगा।”
17 अत: मैंने यहोवा के हाथ से प्याला लिया। मैं उन राष्ट्रों में गया और उन लोगों को उस प्याले से पिलाया। 18 मैंने इस दाखमधु को यरूशलेम और यहूदा के लोगों के लिये ढाला। मैंने यहूदा के राजाओं और प्रमुखों को इस प्याले से पिलाया। मैंने यह इसलिये किया कि वे सूनी मरूभूमि बन जायें। मैंने यह इसलिये किया कि यह स्थान इतनी बुरी तरह से नष्ट हो जाये कि लोग इसके बारे में सीटी बजाएं और इस स्थान को अभिशाप दें और यह हुआ, यहूदा अब उसी तरह का है।
19 मैंने मिस्र के राजा फिरौन को भी प्याले से पिलाया। मैंने उसके अधिकारियों, उसके बड़े प्रमुखों और उसके सभी लोगों को यहोवा के क्रोध के प्याले से पिलाया।
20 मैंने सभी अरबों और उस देश के सभी राजाओं को उस प्याले से पिलाया।
मैंने पलिश्ती देश के सभी राजाओं को उस प्याले से पिलाया। ये अश्कलोन, अज्जा, एक्रोन नगरों और अशदोद नगर के बचे भाग के राजा थे।
21 तब मैंने एदोम, मोआब और अम्मोन के लोगों को उस प्याले से पियाला।
22 मैंने सोर और सीदोन के राजाओं को उस प्याले से पिलाया।
मैंने बहुत दूर से देशों के राजाओं को भी उस प्याले से पिलाया। 23 मैंने ददान, तेमा और बूज के लोगों को उस प्याले से पिलाया। मैंने उन सबको उस प्याले से पिलाया जो अपने गाल के बालों को काटते हैं। 24 मैंने अरब के सभी राजाओं को उस प्याले से पिलाया। ये राजा मरुभूमि में रहते हैं। 25 मैंने जिम्री, एलाम और मादै के सभी राजाओं को उस प्याले से पिलाया। 26 मैंने उत्तर के सभी समीप और दूर के राजाओं को उस प्याले से पिलाया। मैंने एक के बाद दूसरे को पिलाया। मैंने पृथ्वी पर के सभी राज्यों को यहोवा के क्रोध के उस प्याले से पिलाया। किन्तु बाबुल का राजा इन सभी अन्य राष्ट्रों के बाद इस प्याले से पीएगा।
27 “यिर्मयाह, उन राष्ट्रों से कहो कि इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘मेरे क्रोध के इस प्याले को पीओ। उसे पीकर मत्त हो जाओ और उलटियाँ करो। गिर पड़ो और उठो नहीं, क्योंकि तुम्हें मार डालने के लिये मैं तलवार भेज रहा हूँ।’
28 “वे लोग तुम्हारे हाथ से प्याला लेने से इन्कार करेंगे। वे इसे पीने से इन्कार करेंगे। किन्तु तुम उनसे यह कहोगे, ‘सर्वशक्तिमान यहोवा यह बातें बताता है: तुम निश्चय ही इस प्याले से पियोगे। 29 मैं अपने नाम पर पुकारे जाने वाले यरूशलेम नगर पर पहले ही बुरी विपत्तियाँ ढाने जा रहा हूँ। सम्भव है कि तुम लोग सोचो कि तुम्हें दण्ड नहीं मिलेगा। किन्तु तुम गलत सोच रहे हो। तुम्हें दण्ड मिलेगा। मैं पृथ्वी के सभी लोगों पर आक्रमण करने के लिये तलवार मंगाने जा रहा हूँ।’” यह सन्देश यहोवा का है।
30 “यिर्मयाह, तुम उन्हें यह सन्देश दोगे:
‘यहोवा ऊँचे और पवित्र मन्दिर से गर्जना कर रहा है!
यहोवा अपनी चरागाह (लोग) के विरुद्ध चिल्लाकर कह रहा है!
उसकी चिल्लाहट वैसी ही ऊँची है,
जैसे उन लोगों की, जो अंगूरों को दाखमधु बनाने के लिये पैरों से कुचलते हैं।
31 वह चिल्लाहट पृथ्वी के सभी लोगों तक जाती है।
यह चिल्लाहट किस बात के लिये है
यहोवा सभी राष्ट्रों के लोगों को दण्ड दे रहा है।
यहोवा ने अपने तर्कपूर्ण निर्णय लोगों के विरुद्ध दिये।
उसने लोगों के साथ न्याय किया
और वह बुरे लोगों को तलवार के घाट उतार रहा है।’”
यह सन्देश यहोवा का है।
32 सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है:
“एक देश से दूसरे देश तक
शीघ्र ही बरबादी आएगी!
वह शक्तिशाली आँधी की तरह
पृथ्वी के सभी अति दूर के देशों में आएगी!”
33 उन लोगों के शव देश के एक सिरे से दूसरे सिरे को पहुँचेंगे। कोई भी उन मरों के लिये नहीं रोएगा। कोई भी यहोवा द्वारा मारे गये उनके शवों को इकट्ठा नहीं करेगा और दफनायेगा नहीं। वे गोबर की तरह जमीन पर पड़े छोड़ दिये जाएंगे।
34 गडरियों (प्रमुखों), तुम्हें भेड़ों (लोगों) को राह दिखानी चाहिये।
बड़े प्रमुखों, तुम जोर से चिल्लाना आरम्भ करो।
भेड़ों (लोगों) के प्रमुखों, पीड़ा से तड़पते हुए जमीन पर लेटो।
क्यों क्योंकि अब तुम्हारे मृत्यु के घाट उतारे जाने का समय आ गया है।
मैं तुम्हारी भेड़ें को बिखेरुँगा।
वे टूटे घड़े के ठीकरों की तरह चारों ओर बिखेरेंगे।
35 गडेरियों (प्रमुखों) के छिपने के लिये कोई स्थान नहीं होगा।
वे प्रमुख बचकर नहीं निकल पाएंगे।
36 मैं गडेरियों (प्रमुखों) का शोर मचाना सुन रहा हूँ।
मैं भेड़ों (लोगों) के प्रमुखों का रोना सुन रहा हूँ।
यहोवा उनकी चरागाह (देश) को नष्ट कर रहा है।
37 वे शान्त चरागाहें सूनी मरूभूमि सी हैं।
यह हुआ, क्योंकि यहोवा बहुत क्रोधित है।
38 यहोवा अपनी माद छोड़ते हुए सिंह की तरह खतरनाक है।
यहोवा क्रोधित है!
यहोवा का क्रोध उन लोगों को चोट पहुँचाएगा।
उनका देश सूनी मरुभूमि बन जाएगा।
मन्दिर पर यिर्मयाह की शिक्षा
26यहोयाकीम के यहूदा में राज्य करने के प्रथम वर्ष यहोवा का यह सन्देश मिला। यहोयाकीम राजा योशिय्याह का पुत्र था। 2 यहोवा ने कहा, “यिर्मयाह, यहोवा के मन्दिर के आँगन में खड़े होओ। यहूदा के उन सभी लोगों को यह सन्देश दो जो यहोवा के मन्दिर में पूजा करने आ रहे हैं। तुम उनसे वह सब कुछ कहो जो मैं तुमसे कहने को कह रहा हूँ। मेरे सन्देश के किसी भाग को मत छोड़ो। 3 संभव है वे मेरे सन्देश को सुनें और उसके अनुसार चलें। संभव है वे ऐसी बुरी जिन्दगी बिताना छोड़ दें। यदि वे बदल जायें तो मैं उनको दण्ड देने की योजना के विषय में, अपने निर्णय को बदल सकता हूँ। मैं उनको वह दण्ड देने की योजना बना रहा हूँ क्योंकि उन्होंने अनेक बुरे काम किये हैं। 4 तुम उनसे कहोगे, ‘यहोवा जो कहता है, वह यह है: मैंने अपने उपदेश तुम्हें दिये। तुम्हें मेरी आज्ञा का पालन करना चाहिये और मेरे उपदेशों पर चलना चाहिये। 5 तुम्हें मेरे सेवकों की वे बातें सुननी चाहिये जो वे तुमसे कहें। (नबी मेरे सेवक हैं) मैंने नबियों को बार—बार तुम्हारे पास भेजा है किन्तु तुमने उनकी अनसुनी की है। 6 यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करते तो मैं अपने यरूशलेम के मन्दिर को शीलो के पवित्र तम्बू की तरह कर दूँगा। सारे विश्व के लोग अन्य नगरों के लिये विपत्ति माँगने के समय यरूशलेम के बारे में सोचेंगे।’”
7 याजकों, नबियों और सभी लोगों ने यहोवा के मन्दिर में यिर्मयाह को यह सब कहते सुना। 8 यिर्मयाह ने वह सब कुछ कहना पूरा किया जिसे यहोवा ने लोगों से कहने का आदेश दिया था। तब याजकों, नबियों और लोगों ने यिर्मयाह को पकड़ लिया। उन्होंने कहा, “ऐसी भयंकर बात करने के कारण तुम मरोगे। 9 यहोवा के नाम पर ऐसी बातें करने का साहस तुम कैसे करते हो तुम यह कैसे कहने का साहस करते हो कि यह मन्दिर शीलो के मन्दिर की तरह नष्ट होगा तुम यह कहने का साहस कैसे करते हो कि यरूशलेम बिना किसी निवासी के मरुभूमि बनेगा!” सभी लोग यिर्मयाह के चारों ओर यहोवा के मन्दिर में इकट्ठे हो गए।
10 इस प्रकार यहूदा के शासकों ने उन सारी घटनाओं को सुना जो घटित हो रही थीं। अत: वे राजा के महल से बाहर आए। वे यहोवा के मन्दिर को गए। वहाँ वे नये फाटक के प्रवेश के स्थान पर बैठ गए। नया फाटक वह फाटक है जहाँ से यहोवा के मन्दिर को जाते हैं। 11 तब याजकों और नबियों ने शासकों और सभी लोगों से बातें कीं। उन्होंने कहा, “यिर्मयाह मार डाला जाना चाहिये। इसने यरूशलेम के बारे में बुरा कहा है। तुमने उसे वे बातें कहते सुना।”
12 तब यिर्मयाह ने यहूदा के सभी शासकों और अन्य सभी लोगों से बात की। उसने कहा, “यहोवा ने मुझे इस मन्दिर और इस नगर के बारे में बातें कहने के लिये भेजा। जो सब तुमने सुना है वह यहोवा के यहाँ से है। 13 तुम लोगों को अपना जीवन बदलना चाहिये! तुम्हें अच्छे काम करना आरम्भ करना चाहिये। तुम्हें अपने यहोवा परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिये। यदि तुम ऐसा करोगे तो यहोवा अपना इरादा बदल देगा। यहोवा वे बुरी विपत्तियाँ नहीं लायेगा, जिनके घटित होने के बारे में उसने कहा। 14 जहाँ तक मेरी बात है, मैं तुम्हारे वश में हूँ। मेरे साथ वह करो जिसे तुम अच्छा और ठीक समझते हो। 15 किन्तु यदि तुम मुझे मार डालोगे तो एक बात निश्चित समझो। तुम एक निरपराध व्यक्ति को मारने के अपराधी होगे। तुम इस नगर और इसमें जो भी रहते हैं उन्हें भी अपराधी बनाओगे। सच में, यहोवा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। जो सन्देश तुमने सुना है वह, सच में, यहोवा का है।”
16 तब शासक और सभी लोग बोल पड़े। उन लोगों ने याजकों और नबियों से कहा, “यिर्मयाह, नहीं मारा जाना चाहिये। यिर्मयाह ने जो कुछ कहा है वह हमारे यहोवा परमेश्वर की ही वाणी है।”
17 तब अग्रजों (प्रमुखों) में से कुछ खड़े हुए और उन्होंने सब लोगों से बातें कीं। 18 उन्होंने कहा, “मीकायाह नबी मोरसेती नगर का था। मीकायाह उन दिनों नबी था जिन दिनों हिजकिय्याह यहूदा का राजा था। मीकायाह ने यहूदा के सभी लोगों से यह कहा: सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है:
“सिय्योन एक जुता हुआ खेत बनेगा।
यरूशलेम चट्टानों की ढेर होगा।
जिस पहाड़ी पर मन्दिर बना है
उस पर पेड़ उगेंगे।”
19 “हिजकिय्याह यहूदा का राजा था और हिजकिय्याह ने मीकायाह को नहीं मारा। यहूदा के किसी व्यक्ति ने मीकायाह को नहीं मारा। तुम जानते हो हिजकिय्याह यहोवा का सम्मान करता था। वह यहोवा को प्रसन्न करना चाहता था। यहोवा कह चुका था कि वह यहूदा का बुरा करेगा। किन्तु हिजकिय्याह ने यहोवा से प्रार्थना की और यहोवा ने अपना इरादा बदल दिया। यहोवा ने वे बुरी विपत्तियाँ नहीं आने दीं। यदि हम लोग यिर्मयाह को चोट पहुँचायेंगे तो हम लोग अपने ऊपर अनेक विपत्तियाँ बुलाएंगे और वे विपत्तियाँ हम लोगों के अपने दोष के कारण होंगी।”
20 अतीत काल में एक दूसरा व्यक्ति था जो यहोवा के सन्देश का उपदेश देता था। उसका नाम ऊरिय्याह था। वह शमाय्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था। ऊरिय्याह, किर्यत्यारीम नगर का था। ऊरिय्याह ने इस नगर और देश के विरुद्ध वही उपदेश दिया जो यिर्मयाह ने दिया है। 21 राजा यहोयाकीम उसके सेना—अधिकारी और यहूदा के प्रमुखों ने ऊरिय्याह का उपदेश सुना। वे क्रोधित हुए। राजा यहोयाकीम ऊरिय्याह को मार डालना चाहता था। किन्तु ऊरिय्याह को पता लगा कि यहोयाकीम उसे मार डालना चाहता है। ऊरिय्याह डर गया और वह मिस्र देश को भाग निकला। 22 किन्तु यहोयाकीम ने एलनातान नामक एक व्यक्ति तथा कुछ अन्य लोगों को मिस्र भेजा। एलनातान अकबोर नामक व्यक्ति का पुत्र था। 23 वे लोग ऊरिय्याह को मिस्र से वापस ले आये। तब वे लोग ऊरिय्याह को राजा यहोयाकीम के पास ले गए। यहोयाकीम ने ऊरिय्याह को तलवार के घाट उतार देने का आदेश दिया। ऊरिय्याह का शव उस कब्रिस्तान में फेंक दिया गया जहाँ गरीब लोग दफनाये जाते थे।
24 शापान का पुत्र अहीकाम ने यिर्मयाह का समर्थन किया। अत: अहीकाम ने लोगों द्वारा मार डाले जाने से यिर्मयाह को बचा लिया।
समीक्षा
अलग तरीके से बात करिए
लोग हमेशा परमेश्वर के मत को नहीं सुनना चाहते हैं। एक ऐसे समाज में परमेश्वर के मत को बताना साहस की बात है जिसका अपना मत हो, जो शायद से परमेश्वर से बिल्कुल अलग हो।
यिर्मयाह की सेवकाई में महान साहस की आवश्यकता थी। आस-पास के भविष्यवक्ताओं से उन्हे अलग बनने का साहस करने की आवश्यकता थी। वे सभी शांति की भविष्यवाणी कर रहे थे, लेकिन यिर्मयाह जानते थे कि निर्वासन आ रहा है। वह लोगों को आने वाली विपदा की चेतावनी दे रहे थे।
परमेश्वर ने उनसे कहा, ‘ये वचन जिनके विषय उनसे कहने की आज्ञा मैं तुझे देता हूँ कह दे; उनमें से कोई वचन मत रख छोड़। सम्भव है कि वे सुनकर अपनी अपनी बुरी चाल से फिरें’ (26:2-3)।
किंतु, ‘ जब यिर्मयाह सब कुछ जिसे सारी प्रजा से कहने की आज्ञा यहोवा ने दी थी कह चुका, तब याजकों और भविष्यवक्ताओं और सब साधारण लोगों ने यह कहकर उसको पकड़ लिया, ‘निश्चय तुझे प्राणदण्ड मिलेगा’ (व.8)।
फिर से यिर्मयाह का जवाब बहुत ही साहसी था। उसने कहा, ‘ इसलिये अब अपना चालचलन और अपने काम सुधारो, और अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानो; तब यहोवा उस विपत्ति के विषय में जिसकी चर्चा उसने तुम से की है, पछताएगा। ...पर यह निश्चय जानो, कि यदि तुम मुझे मार डालोगे, तो अपने को और इस नगर को और इसके निवासियों को निर्दोष के हत्यारे बनाओगे; क्योंकि सचमुच यहोवा ने मुझे तुम्हारे पास यह सब वचन सुनाने के लिये भेजा है।’ (वव.13-15, एम.एस.जी)।
असल में, यूसुफ नदरखनी की तरह, यिर्मयाह मृत्युदंड से बच गए –लेकिन दोनों मनुष्य परमेश्वर के प्रति सच्चे बने रहने के लिए दाम चुकाने के लिए तैयार थे। शायद से हम उसी दबाव का सामना न करे, लेकिन हमारे आस-पास का विश्वास अक्सर हमें नापसंद करेगा क्योंकि हम अलग हैं। ऐसे विरोध के द्वारा चकित या निराश मत हो – जैसा कि यीशु ने अपने चेलों से कहा, ‘ संसार में तुम्हें क्लेश होता है’। लेकिन, यीशु ने आगे कहा, ‘ ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है’ (यूहन्ना 16:33)।
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
1 थिस्सलुनिकियो 5:10
‘वह हमारे लिये इस कारण मरा कि हम चाहे जागते हों चाहे सोते हों, सब मिलकर उसी के साथ जीएँ।’
यह जानना कितना शांतिदायक है कि चाहे हम जागते या सोते रहे, हम उनके साथ जीएँगे। इस जीवन और अगले जीवन के बीच एक निरंतरता है। जैसा कि हम जानते हैं पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा, लेकिन जो जीवन हम मसीह के साथ जीते हैं वह सर्वदा बना रहेगा।
दिन का वचन
1 थिस्सलुनिकियो 5:16-18
“सदा आनन्दित रहो। निरन्तर प्रार्थना मे लगे रहो। हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।”
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संदर्भ
गार्जियन, इरान मुक्त जीओ – और मर जाओ, ‘ 29 सितंबर 2011
https://www.theguardian.com/commentisfree/2011/sep/29/iran-live-free-die-editorial \[last accessed August 2016\].
टिम मार्शल, स्काय न्युज फॉरन अफेअर एडिअर, गुरुवार 29 सितंबर 2011
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