दिन 234

संपूर्ण हृदय से जीना

बुद्धि भजन संहिता 102:1-11
नए करार 1 कुरिन्थियों 15:1-34
जूना करार 2 इतिहास 16:1-18:27

परिचय

मुझे यह याद है जैसे कि कल ही की बात हो। मैं अपनी कुर्सी पर से उठा और आगे बढ़ा। यह 1974 की बात है। मैं केवल कुछ महीनों पहले मसीही बना था। मैंने जो संदेश दिया था, वह था पूरी तरह से, पूरे हृदय से परमेश्वर के लिए कटिबद्ध हो जाना और अपने पूरे हृदय से उनके पीछे चलना - वह चाहे जहाँ भी ले जाएं।

निश्चित ही, इससे पहले मैं उतार -चढ़ावों से गुजर रहा था, और मेरी असफलताएँ। हम सभी सिद्ध नहीं हैं। मैं अब भी ऐसी चीजें करता हूँ, मैं चाहता हूँ कि ना करूँ। लेकिन मैंने संकल्प लिया है कि अपने पूरे हृदय से परमेश्वर के पीछे चलूंगा और पूरी तरह से उनके प्रति कटिबद्ध रहूँगा।

'अपने पूरे हृदय से' 'पूरी तरह से कटिबद्ध रहने' का अर्थ है 100 प्रतिशत कटिबद्धता। इसका अर्थ है वह करने का प्रयास करना जो परमेश्वर ने आपको करने के लिए बुलाया है। इसका अर्थ है हर बुरी चीज को बाहर निकालना –निर्दयता से ऊँचे स्थानों को तोड़ देना और जीवन के बीच में दूसरे ईश्वरों से छुटकारा पाना।

परमेश्वर उन लोगों को खोज रहे हैं जिनका 'हृदय पूरी तरह से उनके प्रति कटिबद्ध है' (2इतिहास 16:9)। भजनसंहिता के लेखक ने प्रार्थना की, 'मुझे एक स्थिर हृदय दीजिए' (भजनसंहिता 86:11)। पूरी बाईबल में अपने पूरे हृदय से' बहुत सी बार दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, आपको 'अपने पूरे हृदय से' निम्नलिखित चीजें करनी हैं:

परमेश्वर से प्रेम करें (व्यवस्थाविवरण 6:4-5; मत्ती 22:36-38)

परमेश्वर पर भरोसा करना (नीतिवचन 3:5)

परमेश्वर की आज्ञा मानना (भजनसंहिता 119:34,69; 1इतिहास 29:19)

परमेश्वर की स्तुति करना (भजनसंहिता 111:1; 138:1)

आनंद मनाना (सपन्याह 3:14)

परमेश्वर के लिए कार्य करना (नेहम्याह 4:6; कुलुस्सियो 3:23)।

इसी तरह से आप जीवन का आनंद लेते हैं और जीवन की परिपूर्णता में इसका आनंद लेते हैं (यूहन्ना 10:10)। यह प्रेम, भरोसा, आभार, आनंद और अर्थपूर्ण कार्य का एक जीवन है। आज के लेखांश में हम देखते हैं क्यों और कैसे हमें पूरे हृदय से जीना चाहिए।

बुद्धि

भजन संहिता 102:1-11

एक पीड़ित व्यक्ति की उस समय की प्रार्थना। जब वह अपने को टूटा हुआ अनुभव करता है और अपनी वेदनाओं कष्ट यहोवा से कह डालना चाहता है।

102यहोवा मेरी प्रार्थना सुन!
 तू मेरी सहायता के लिये मेरी पुकार सुन।
2 यहोवा जब मैं विपत्ति में होऊँ मुझ से मुख मत मोड़।
 जब मैं सहायता पाने को पुकारूँ तू मेरी सुन ले, मुझे शीघ्र उत्तर दे।

3 मेरा जीवन वैसे बीत रहा जैसा उड़ जाता धुँआ।
 मेरा जीवन ऐसे है जैसे धीरे धीरे बुझती आग।
4 मेरी शक्ति क्षीण हो चुकी है।
 मैं वैसा ही हूँ जैसा सूखी मुरझाती घास।
 अपनी वेदनाओं में मुझे भूख नहीं लगती।
5 निज दु:ख के कारण मेरा भार घट रहा है।
6 मैं अकेला हूँ जैसे कोई एकान्त निर्जन में उल्लू रहता हो।
 मैं अकेला हूँ जैसे कोई पुराने खण्डर भवनों में उल्लू रहता हो।
7 मैं सो नहीं पाता
 मैं उस अकेले पक्षी सा हो गया हूँ, जो धत पर हो।
8 मेरे शत्रु सदा मेरा अपमान करते है,
 और लोग मेरा नाम लेकर मेरी हँसी उड़ाते हैं।
9 मेरा गहरा दु:ख बस मेरा भोजन है।
 मेरे पेयों में मेरे आँसू गिर रहे हैं।
10 क्यों क्योंकि यहोवा तू मुझसे रूठ गया है।
 तूने ही मुझे ऊपर उठाया था, और तूने ही मुझको फेंक दिया। 11 मेरे जीवन का लगभग अंत हो चुका है। वैसे ही जैसे शाम को लम्बी छायाएँ खो जाती है।
 मैं वैसा ही हूँ जैसे सूखी और मुरझाती घास।

समीक्षा

जीवन की संक्षिप्तता

भजनसंहिता के लेखक जानते हैं कि जीवन कितना छोटा हैः'मेरे दिन धुएँ के समान उड़े जाते हैं' (व.3अ), ' मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; और मैं अपने आप घास के समान सूख चला हूँ' (व.11)। उनके पास यह ज्ञान है कि समय बीत रहा है। इस पृथ्वी पर जीवन बहुत छोटा है। हर दिन का लाभ लीजिए।

भजनसंहिता के लेखक कष्ट उठा रहे हैं। वह पुकारते हैं, ' हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुनिए; मेरी दोहाई आप तक पहुँचे! मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा लें; अपना कान मेरी ओर लगाइए; जिस समय मैं पुकारूँ, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन लीजिए' (वव.1-2)।

संकट के बीच में परमेश्वर के प्रति संपूर्ण हृदय से कटिबद्धता का यह एक उल्लेखनीय उदाहरण है। भजनसंहिता के लेखक परमेश्वर की ओर मुड़ना चुनते हैं। वह जानते हैं कि परमेश्वर अनंत हैं (व.12), और उन पर भरोसा किया जा सकता है।

प्रार्थना

परमेश्वर आपका धन्यवाद क्योंकि, मेरा जीवन एक 'शाम की परछाई की तरह है, ' आप अनंत हैं और मैं आप पर भरोसा रख सकता हूँ। मैं अब आपके सामने अपनी परेशानियों को रखता मेरी प्रार्थना को सुनिए। सहायता के लिए मेरी दोहाई आपके पास पहुंच पाए।
नए करार

1 कुरिन्थियों 15:1-34

यीशु का सुसमाचार

15हे भाईयों, अब मैं तुम्हें उस सुसमाचार की याद दिलाना चाहता हूँ जिसे मैंने तुम्हें सुनाया था और तुमने भी जिसे ग्रहण किया था और जिसमें तुम निरन्तर स्थिर बने हुए हो। 2 और जिसके द्वारा तुम्हारा उद्धार भी हो रहा है बशर्ते तुम उन शब्दों को जिनका मैंने तुम्हें आदेश दिया था, अपने में दृढ़ता से थामे रखो। (नहीं तो तुम्हारा विश्वास धारण करना ही बेकार गया।)

3 जो सर्वप्रथम बात मुझे प्राप्त हुई थी, उसे मैंने तुम तक पहुँचा दिया कि शास्त्रों के अनुसार: मसीह हमारे पापों के लिये मरा 4 और उसे दफना दिया गया। और शास्त्र कहता है कि फिर तीसरे दिन उसे जिला कर उठा दिया गया। 5 और फिर वह पतरस के सामने प्रकट हुआ और उसके बाद बारहों प्रेरितों को उसने दर्शन दिये। 6 फिर वह पाँच सौ से भी अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया। उनमें से बहुतेरे आज तक जीवित हैं। यद्यपि कुछ की मृत्यु भी हो चुकी है। 7 इसके बाद वह याकूब के सामने प्रकट हुआ। और तब उसने सभी प्रेरितों को फिर दर्शन दिये। 8 और सब से अंत में उसने मुझे भी दर्शन दिये। मैं तो समय से पूर्व असामान्य जन्मे सतमासे बच्चे जैसा हूँ।

9 क्योंकि मैं तो प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ। यहाँ तक कि मैं तो प्रेरित कहलाने योग्य भी नहीं हू क्योंकि मैं तो परमेश्वर की कलीसिया को सताया करता था। 10 किन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से मैं वैसा बना हूँ जैसा आज हूँ। मुझ पर उसका अनुग्रह बेकार नहीं गया। मैंने तो उन सब से बढ़ चढ़कर परिश्रम किया है। (यद्यपि वह परिश्रम करने वाला मैं नहीं था, बल्कि परमेश्वर का वह अनुग्रह था जो मेरे साथ रहता था।) 11 सो चाहे तुम्हें मैंने उपदेश दिया हो चाहे उन्होंने, हम सब यही उपदेश देते हैं और इसी पर तुमने विश्वास किया है।

हमारा पुनर्जीवन

12 किन्तु जब कि मसीह को मरे हुओं में से पुनरुत्थापित किया गया तो तुममें से कुछ ऐसा क्यों कहते हो कि मृत्यु के बाद फिर से जी उठना सम्भव नहीं है। 13 और यदि मृत्यु के बाद जी उठना है ही नहीं तो फिर मसीह भी मृत्यु के बाद नहीं जिलाया गया। 14 और यदि मसीह को नहीं जिलाया गया तो हमारा उपदेश देना बेकार है और तुम्हारा विश्वास भी बेकार है। 15 और हम भी फिर तो परमेश्वर के बारे में झूठे गवाह ठहरते हैं क्योंकि हमने परमेश्वर के सामने कसम उठा कर यह साक्षी दी है कि उसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया। किन्तु उनके कथन के अनुसार यदि मरे हुए जिलाये नहीं जाते तो फिर परमेश्वर ने मसीह को भी नहीं जिलाया। 16 क्योंकि यदि मरे हुए नहीं जिलाये जाते हैं तो मसीह को भी नहीं जिलाया गया। 17 और यदि मसीह को फिर से जीवित नहीं किया गया है, फिर तो तुम्हारा विश्वास ही निरर्थक है और तुम अभी भी अपने पापों में फँसे हो। 18 हाँ, फिर तो जिन्होंने मसीह के लिए अपने प्राण दे दिये, वे यूँ ही नष्ट हुए। 19 यदि हमने केवल अपने इस भौतिक जीवन के लिये ही यीशु मसीह में अपनी आशा रखी है तब तो हम और सभी लोगों से अधिक अभागे हैं।

20 किन्तु अब वास्तविकता यह है कि मसीह को मरे हुओं में से जिलाया गया है। वह मरे हुओं की फ़सह का पहला फल है। 21 क्योंकि जब एक मनुष्य के द्वारा मृत्यु आयी तो एक मनुष्य के द्वारा ही मृत्यु से पुनर्जीवित हो उठना भी आया। 22 क्योंकि ठीक वैसे ही जैसे आदम के कर्मों के कारण हर किसी के लिए मृत्यु आयी, वैसे ही मसीह के द्वारा सब को फिर से जिला उठाया जायेगा 23 किन्तु हर एक को उसके अपने कर्म के अनुसार सबसे पहले मसीह को, जो फसल का पहला फल है और फिर उसने पुनः आगमन पर उनको, जो मसीह के हैं। 24 इसके बाद जब मसीह सभी शासकों, अधिकारियों, हर प्रकार की शक्तियों का अंत करके राज्य को परम पिता परमेश्वर के हाथों सौंप देगा, तब प्रलय हो जायेगी। 25 किन्तु जब तक परमेश्वर मसीह के शत्रुओं को उसके पैरों तले न कर दे तब तक उसका राज्य करते रहना आवश्यक है। 26 सबसे अंतिम शत्रु के रूप में मृत्यु का नाश किया जायेगा। 27 क्योंकि “परमेश्वर ने हर किसी को मसीह के चरणों के अधीन रखा है।” अब देखो जब शास्त्र कहता है, “सब कुछ” को उसके अधीन कर दिया गया है। तो जिसने “सब कुछ” को उसके चरणों के अधीन किया है, वह स्वयं इससे अलग रहा है। 28 और जब सब कुछ मसीह के अधीन कर दिया गया है, तो यहाँ तक कि स्वयं पुत्र को भी उस परमेश्वर के अधीन कर दिया जायेगा जिसने सब कुछ को मसीह के अधीन कर दिया ताकि हर किसी पर पूरी तरह परमेश्वर का शासन हो।

29 नहीं तो जिन्होंने अपने प्राण दे दिये हैं, उनके कारण जिन्होंने बपतिस्मा लिया है, वे क्या करेंगे। यदि मरे हुए कभी पुनर्जीवित होते ही नहीं तो लोगों को उनके लिये बपतिस्मा दिया ही क्यों जाता है?

30 और हम भी हर घड़ी संकट क्यों झेलते रहते है? 31 भाइयो। तुम्हारे लिए मेरा वह गर्व जिसे मैं हमारे प्रभु यीशु मसीह में स्थित होने के नाते रखता हूँ, उसे साक्षी करके शपथ पूर्वक कहता हूँ कि मैं हर दिन मरता हूँ। 32 यदि मैं इफ्रिसुस में जंगली पशुओं के साथ मानवीय स्तर पर ही लड़ा था तो उससे मुझे क्या मिला। यदि मरे हुए जिलाये नहीं जाते, “तो आओ, खायें, पीएँ (मौज मनायें) क्योंकि कल तो मर ही जाना है।”

33 भटकना बंद करो: “बुरी संगति से अच्छी आदतें नष्ट हो जाती हैं।” 34 होश में आओ, अच्छा जीवन अपनाओ, जैसा कि तुम्हें होना चाहिये। पाप करना बंद करो। कयोंकि तुममें से कुछ तो ऐसे हैं जो परमेश्वर के बारे में कुछ भी नहीं जानते। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि तुम्हें लज्जा आए।

समीक्षा

पुनरुत्थान की सुनिश्चितता

पौलुस हमें बताते हैं कि उनके प्रचार का केंद्र क्या था, और क्यों वह पूरे हृदय से यीशु के पीछे चल रहे थेः' हे भाइयो, अब मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूँ जो पहले सुना चुका हूँ, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिसमें तुम स्थिर भी हो' (व.1)। उसी के द्वारा तुम्हारा उध्दार भी होता है (व.2); दृढ़ता से इसे थामे रहिए।

  1. संदेश

यह बहुत ही सरल संदेश है, ' पवित्रशास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गए, और गाड़े गए, और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठे' (वव.3-4)।

उनकी मृत्यु का एक बड़ा उद्देश्य था। यह 'हमारे पापों के लिए' था। पाप की सामर्थ तोड़ दी गई है। पाप क्षमा किए जा सकते हैं।

जबकि पाप की सामर्थ तोड़ दी गई है, इसकी उपस्थिति हमारे जीवन में बनी रहती है। लेकिन एक दिन, पाप की उपस्थिति भी हटा दी जाएगी।

पुनरुत्थान के कारण आप इस बात के प्रति सुनिश्चित हो सकते हैं। भविष्य के लिए आपकी आशा की यह सुनिश्चितता है।

यीशु मर गए और गाड़े गए। एक दिन आप मर जाएँगे और गाड़े जाएँगे। यीशु मृत्यु में से जी उठे हैं। एक दिन आप भी जी उठेंगे।

  1. प्रमाण

पुनरुत्थान इस विश्व में उस भविष्य का एक चिह्न है जो परमेश्वर के पास आपके लिए है। परमेश्वर ने जो कर दिया है, उसके प्रकाश में पौलुस ने भविष्य के विषय में बतायाः' उन्हें मरे हुओं में से जिलाकर यह बात सब पर प्रमाणित कर दी गई है' (प्रेरितों के काम 17:31)। विश्वास विवेकहीन है। विश्वास पुनरुत्थान की घटना पर आधारित है।

पौलुस पुनरुत्थान के लिए कुछ प्रमाण देते हैं। पहला, वह बताते हैं कि यीशु 'गाड़े गए' और 'पवित्र शास्त्र के अनुसार फिर जी उठे।' यीशु का जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान लिखे गए थे, उनके जन्म से कही पहले।

दूसरा, वह बताते हैं कि मसीह प्रकट हुए पतरस के सामने, बारह के सामने, 500 दूसरे लोगों के सामने, याकूब, सभी प्रेरितों के सामने, और अंत में, पौलुस के सामने (1कुरिंथियो 15:6-8)।

यह एक प्रकटीकरण की अंतिम सूची नहीं है – बल्कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि अच्छी तरह से यह प्रमाणित की गई है। वह दिखाते हैं पुनरुत्थान इतिहास में जड़ पकड़े हुएं हैं,यह वचनो पर आधारित है और अनुभव के द्वारा पुष्टि की गई है।

  1. महत्ता

पुनरुत्थान महत्वपूर्ण है। यदि कोई पुनरुत्थान नहीं होता, तो परिणाम भयानक है। पुनरुत्थान पौलुस के प्रचार का आधार था। इसके बिना 'जो कुछ हमने आपको बताया, वह धुँआ और दर्पण है... a string of barefaced lies' (वव.14अ-15, एम.एस.जी)। क्योंकि इस पर उनका विश्वास आधारित था, इसलिए पुनरुत्थान के बिना 'आपका विश्वास व्यर्थ है' और 'आप अब भी अपने पापों में फँसे हुए हैं' (व.17)। भविष्य की कोई आशा नहीं होगी, ' जो मसीह में सो गए हैं, वे भी नष्ट हुए' (व.18)। असल में, पौलुस बताते हैं कि इसके बिना मसीहत कुछ नहीं हैः'यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्यों से अधिक अभागे हैं' (व.19)।

  1. परिणाम

'परन्तु सचमुच मसीह मुर्दो में से जी उठे हैं, और जो सो गए हैं उनमें वह पहले फल हुए' (व.20, एम.एस.जी)। इसलिए, पुनरुत्थान निश्चित है। एक दिन जो 'मसीह में' हैं वह मृत्यु में से जी उठेंगे। फिर मृत्यु को नष्ट कर दिया जाएगा (व.26)। 'परमेश्वर का नियम पूरी तरह से व्यापक है – एक सिद्ध अंत' (व.28, एम.एस.जी)।

क्योंकि पुनरुत्थान सुनिश्चित है, इसलिए पौलुस लिखते हैं, ' हम भी क्यों हर घड़ी जोखिम में पड़े रहते हैं?' (व.30): ' मैं प्रतिदिन मरता हूँ।' (व.31)। वह 100 प्रतिशत, संपूर्ण हृदय से पूरी तरह से परमेश्वर के लिए कटिबद्ध हैं। यहाँ तक कि उन्होंने इफिसुस में वन – पशुओं से लड़ाई की (व.32)। पुनरुत्थान की सुनिश्चितता के कारण वह अपनी जान का जोखिम उठाने के लिए तैयार थे।

यही कारण है कि पौलुस हमें 'पाप करना बंद' करने के लिए चिताते हैं (व.34)। अक्सर शैतान की चालों की शुरुवात संदेह से होती है। यदि वह हमारे मन में संदेह डाल सकता है, तो अगली चीज होगी कि वह हमें पाप करने के लिए ललचायेगा। एक तरह से, सभी पाप अविश्वास से उद्गम होते हैं।

यीशु का संदेश, उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान अच्छा समाचार है। यह सुसमाचार है। आपको इसे ग्रहण करना है और इस पर विश्वास करना है। आपको इस पर डटे रहना है। आपको दृढ़तापूर्वक इसे पकड़े रहना है। पौलुस की तरह, इसे दूसरें को दे दीजिए।

प्रार्थना

पिता, आपका धन्यवाद क्योंकि यीशु मेरे पापों के लिए मर गए और आपने उसे मरे हुओं में से जिलाया ताकि मैं पूरी तरह से क्षमा पाऊं, मुक्त हो जाऊं, एक दिन मसीह के साथ जिलाया जाऊँ। मेरी सहायता कीजिए कि पौलुस की तरह 'प्रथम महत्वपूर्ण' के रूप में इस संदेश का प्रचार करने में पूरे हृदय से कटिबद्ध रहूँ।
जूना करार

2 इतिहास 16:1-18:27

आसा के अन्तिम वर्ष

16आसा के राज्यकाल के छत्तीसवें वर्ष बाशा ने यहूदा देश पर आक्रमण किया। बाशा इस्राएल का राजा था। वह रामा नगर में गया और इसे एक किले के रूप में बनाया। बाशा ने रामा नगर का उपयोग यहूदा के राजा आसा के पास जाने और उसके पास से लोगों को आने से रोकने के लिये किया। 2 आसाने यहोवा के मन्दिर के कोषागार में रखे हुए चाँदी और सोने को लिया और उसने राजमहल से चाँदी सोना लिया। तब आसा ने बेन्हदद को सन्देश भेजा। बेन्हदद अराम का राजा था और दमिश्क नगर में रहता था। आसा का सन्देश था: 3 “बेन्हदद मेरे और अपने बीच एक सन्धि होने दो। इस सन्धि को वैसे ही होने दो जैसा वह हमारे पिता और तुम्हारे पिता के बीच की गई थी। ध्यान दो, मैं तुम्हारे पास चाँदी सोना भेज रहा हूँ। अब तुम इस्राएल के राजा बाशा के साथ की गई सन्धि को तोड़ दो जिससे वह मुझे मुक्त छोड़ देगा और मुझे परेशान करना बन्द कर देगा।”

4 बेन्हदद ने आसा की बात मान ली। बेन्हदद ने अपनी सेना के सेनापतियों को इस्राएल के नगरों पर आक्रमण करने के लिये भेजा। इन सेनापतियों ने इय्योन, दान और आबेल्मैम नगरों पर आक्रमण किया। उन्होंने नप्ताली देश में उन सभी नगरों पर आक्रमण किया जहाँ खजाने रखे थे। 5 बाशा ने इस्राएल के नगरों पर आक्रमण की बात सुनी। इसलिए उसने रामा में किला बनाने का काम रोक दिया और अपना काम छोड़ दिया। 6 तब राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को इकट्ठा किया। वे रामा नगर को गये और लकड़ी तथा पत्थर उठा लाए जिनका उपयोग बाशा ने किला बनाने के लिये किया था। आसा और यहूदा के लोगों ने पत्थरों और लकड़ी का उपयोग गेवा और मिस्पा नगरों को अधिक मजबूत बनाने के लिये किया।

7 उस समय दृष्टा हनानी यहूदा के राजा आसा के पास आया। हनानी ने उससे कहा, “आसा, तुम सहायता के लिये अराम के राजा पर आश्रित हुए, अपने यहोवा परमेश्वर पर नहीं। तुम्हें यहोवा पर आश्रित रहना चाहिये था। तुम याहोवा पर सहायता के लिये आश्रित नहीं रहे अतः अराम के राजा की सेना तुमसे भाग निकली। 8 कूश और लूबी अति विशाल और शक्तिशाली सेना रखते थे। उनके पास अनेक रथ और सारथी थे। किन्तु आसा, तुम उस विशाल शक्तिशाली सेना को हराने में सहायता के लिये यहोवा पर आश्रित हुए और यहोवा ने तुम्हें उनको हराने दिया। 9 यहोवा की आँखें सारी पृथ्वी पर उन लोगों को देखती फिरती हैं जो उसके प्रति श्रद्धालु हैं जिससे वह उन लोगों को शक्तिशाली बना सके। आसा, तुमने मूर्खतापूर्ण काम किया। इसलिये अब से लेकर आगे तक तुमसे युद्ध होंगे।”

10 आसा हनानी पर उस बात से क्रोधित हुआ जो उसने कहा। आसा इतना क्रोध से पागल हो उठा कि उसने हनानी को बन्दीगृह में डाल दिया। आसा उस समय कुछ लोगों के साथ नीचता और कठोरता का व्यवहार करता था।

11 आसा ने जो कुछ आरम्भ से अन्त तक किया। वह इस्राएल और यहुदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 12 आसा का पैर उसके राज्यकाल के उनतालीसवें वर्ष में रोगग्रस्त हो गया। उसका रोग बहुत बुरा था किन्तु उसने यहोवा से सहायाता नहीं चाही। आसा ने वैद्यों से सहायता चाही। 13 आसा अपने राज्यकाल के इकतालीसवें वर्ष में मरा और इस प्रकार आसा ने अपने पूर्वजों के साथ विश्राम किया। 14 लोगों ने आसा को उसकी अपनी कब्र में दफनाया जिसे उसने स्वयं दाऊद के नगर में बनाया था। लोगों ने उसे एक अन्तिम शैया पर रखा जिस पर सुगन्धित द्रव्य और विभिन्न प्रकार के मिले इत्र रखे थे। लोगों ने आसा का सम्मान करने के लिये आग की महाज्वाला की।

यहूदा का राजा यहोशापात

17आसा के स्थान पर यहोशापात यहूदा का नया राजा हुआ। यहोशापात आसा का पुत्र था। यहोशापात ने यहूदा को शक्तिशाली बनाया जिससे वे इस्राएल के विरुद्ध लड़ सकते थे। 2 उसने यहूदा के उन सभी नगरों में सेना की टुकड़ियाँ रखीं जो किले बना दिये गए थे। यहोशापात ने यहूदा और एप्रैम के उन नगरों में किले बनाए जिन्हें उसके पिता ने अपने अधिकार में किया था।

3 यहोवा यहोशापात के साथ था क्योंकि उसने वे अच्छे काम किये जिन्हें उसके पूर्वज दाऊद ने किया था। यहोशापात ने बाल की मूर्तियों का अनुसरण नहीं किया। 4 यहोशापात ने उस परमेश्वर को खोजा जिसका अनुसरण उसके पूर्वज करते थे। उसने परमेश्वर के आदेशों का पालन किया। वह उस तरह नहीं रहा जैसे इस्राएल के अन्य लोग रहते थे। 5 यहोवा ने यहोशापात को यहूदा का शक्तिशाली राजा बनाया। यहूदा के सभी लोग यहोशापात को भेंट लाए। इस प्रकार यहोशापात के पास बहुत सी सम्पत्ति और सम्मान दोनों थे। 6 यहोशापात का हृदय यहोवा के मार्ग पर चलने में आनन्दित था। उसने उच्च स्थानों और अशेरा के स्तम्भों को यहूदा देश से बाहर किया।

7 यहोशापात ने अपने प्रमुखों को यहूदा के नगरों में उपदेश देने के लिये भेजा। यह यहोशापात के राज्यकाल के तीसरे वर्ष हुआ। वे प्रमुख बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह थे। 8 यहोशापात ने इन प्रमुखों के साथ लेवीवंशियों को भी भेजा। ये लेवीवंशी शमायाह, नतन्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिय्याह और तोबिय्याह थे। यहोशापात ने याजक एलीशामा और यहोराम को भेजा। 9 उन प्रमुखों, लेवीवंशियों और याजकों ने यहूदा में लोगों को शिक्षा दी। उनके पास यहोवा के नियमों की पुस्तक थी। वे यहूदा के सभी नगरों में गये और लोगों को उन्होंने शिक्षा दी।

10 यहूदा के आसपास के नगर यहोवा से डरते थे। यही कारण था कि उन्होंने यहोशापात के विरुद्ध युद्ध नहीं छेड़ा। 11 कुछ पलिश्ती लोग यहोशापात के पास भेंट लाए। वे यहोशापात के पास चाँदी भी लाए क्योंकि वे जानते थे कि वह बहुत शक्तिशाली राजा है। कुछ अरब के लोग यहोशापात के पास रेवड़े लाये। वे उसके पास सात हज़ार सात सौ भेड़ें और सात हज़ार सात सौ बकरियाँ लाए।

12 यहोशापात अधिक से अधिक शक्तिशाली होता गया। उसने किले और भण्डार नगर यहूदा देश में बनाये। 13 उसने बहुत सी सामग्री भण्डार नगरों में रखी और यहोशापात ने यरूशलेम में प्रशिक्षित सैनिक रखे। 14 उन सैनिकों की अपने परिवार समूह में गिनती थी। यरूशलेम के उन सैनिकों की सूची ये हैः

यहूदा के परिवार समूह से ये सेनाध्यक्ष थेः

अदना तीन लाख सैनिकों का सेनाध्यक्ष था।

15 यहोहानान दो लाख अस्सी हज़ार सैनिकों का सेनाध्यक्ष था।

16 अमस्याह दो लाख सैनिकों का सेनाध्यक्ष था। अमस्याह जिक्री का पुत्र था। अमस्याह अपने को यहोवा की सेवा में अर्पित करने में प्रसन्न था।

17 बिन्यामीन के परिवार समूह से ये सेनाध्यक्ष थेः

एलयादा के पास दो लाख सैनिक थे जो धनुष, बाण और ढाल का उपयोग करते थे। एल्यादा एक साहसी सैनिक था।

18 यहोजाबाद के पास एक लाख अस्सी हज़ार व्यक्ति युद्ध के लिये तैयार थे।

19 वे सभी सैनिक यहोशापात की सेवा करते थे। राजा ने पूरे यहूदा देश के किलों में अन्य व्यक्तियों को भी रखा था।

मीकायाह राजा अहाब को चेतावनी देता है

18यहोशापात के पास सम्पत्ति और सम्मान था। उसने राजा अहाब के साथ विवाह द्वारा एक सन्धि की। 2 कुछ वर्ष बाद, यहोशापात शोमरोन नगर में अहाब से मिलने गया। अहाब ने बहुत सी भेड़ों और पशुओं की बलि यहोशापात और उसके साथ के आदमियों के लिये चढ़ाई। अहाब ने यहोशापात को गिलाद के रामोत नगर पर आक्रमण के लिये प्रोत्साहित किया। 3 अहाब ने यहोशापात से कहा, “क्या तुम मेरे साथ गिलाद के रामोत पर आक्रमण करने चलोगे” अहाब इस्राएल का और यहोशापात यहूदा का राजा था। यहोशापात ने अहाब को उत्तर दिया, “मैं तुम्हारी तरह हूँ और हमारे लोग तुम्हारे लोगों की तरह हैं। हम युद्ध में तुम्हारा साथ देंगे।” 4 यहोशापात ने अहाब से यह कहा, “ओओ, पहले हम यहोवा से सन्देश प्राप्त करे।”

5 इसलिए अहाब ने चार सौ नबियों को इकट्ठा किया। अहाब ने उनसे कहा, “क्या हमें गिलाद के रामोत नगर के विरुद्ध युद्ध में जाना चाहिये या नहीं”

नबियों ने अहाब को उत्तर दिया, “जाओ, क्योंकि यहोवा गिलाद के रामोत को तुम्हें पराजित करने देगा।”

6 किन्तु यहोशापात ने कहा, “क्या कोई यहाँ यहोवा का नबी है? हम लोग नबियों में से एक के द्वारा यहोवा से पूछना चाहते हैं।”

7 तब राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, “यहाँ पर अभी एक व्यक्ति है। हम उसके माध्यम से यहोवा से पूछ सकते हैं। किन्तु मैं इस व्यक्ति से घृणा करता हूँ क्योंकि इसने कभी मेरे बारे में यहोवा से कोई अच्छा सन्देश नहीं दिया। इसने सदैव बुरा ही सन्देश मेरे लिये दिया है। इस आदमी का नाम मीकायाह है। यह यिम्ला का पुत्र है।”

किन्तु यहोशापात ने कहा, “अहाब, तुम्हें ऐसा नहीं कहेना चाहिये!”

8 तब इस्राएल के राजा अहाब ने अपने अधिकारियों में से एक को बुलाया ओर कहा, “शीघ्रता करो, यिम्ल के पुत्र मीकायाह को यहाँ लाओ!”

9 इस्राएल के राजा अहाब और यहूदा के राजा यहेशापात ने अपने राजसी वस्त्र पहन रखे थे। वे अपने सिंहासनों पर खलिहन में शोमरोन नगर के सम्मुख द्वार के निकट बैठे थे। वे चार सौ नबी अपना सन्देश दोनों राजाओं के सामने दे रहे थे। 10 सिदकिय्याह कनाना नामक व्यक्ति का पुत्र था। सिदकिय्याह ने लोहे की कुछ सींगे बनाई। सिदकिय्याह ने कहा, “यही है जो यहोवा कहता है: ‘तुम लोग लोहे की सिंगों का उपयोग तब तक अश्शूर के लोगों में घोंपने के लिये करोगे जब तक वे नष्ट न हो जायें।’” 11 सभी नबियों ने वही बात कही। उन्हो ने कहा, “गिलाद के रामेत नगर को जाओ। तुम लोग सफल होंगे और जीतोगे। यहोवा राजा और अश्शूर के लोगों को हराने देगा।”

12 जो दूत मीकायाह को लाने गया था उसने उससे कहा, “मीकायाह, सुनो, सभी नबी एक ही बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि राजा को सफलता मिलेगी। इसलिये वही कहो जो वे कह रहे हैं। तुम भी अच्छी बात कही।”

13 किन्तु मीकायाह ने उत्तर दिया, “यह वैसे ही सत्य है जैसा कि यहोवा शाश्वत है अत: मैं वही कहूँगा जो मेरा परमेश्वर कहता है।”

14 तब मीकायाह राजा अहाब के पास आया। राजा ने उससे कहा, “मीकायाह, क्या हमें युद्ध करने के लिये गिलाद के रामोत नगर को जाना चाहिये या नहीं”

मीकायाह ने कहा, “जाओ औऱ आक्रमण करो। यहोवा तुम्हें उन लोगों को हराने देगा।”

15 राजा अहोब ने मीकायाह से कहा, “कई बार मैंने तुमसे प्रतिज्ञा करवायी थी कि तुम यहोवा के नाम पर मुझे केवल सत्य बताओ!”

16 तब मीकायाह ने कहा, “मैंने इस्राएल के सभी लोगों को पहाड़ों पर बिखरे हुए देखा। वे गड़रिये के बिना भेड़ की तरह थे। यहोवा ने कहा, ‘उनका कोई नेता नही है। हर एक व्यक्ति को सुरक्षित घर लौटने दो।’”

17 इस्राएल के राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, “मैंने कहा था कि मीकायाह मेरे लिए यहोवा से अच्छा सन्देश नही पाएगा। वह मेरे लिए केवल बुरे सन्देश रखता है!”

18 मीकायाह ने कहा, “यहोवा के सन्देश को सुनो: मैंने यहोवा को अपने सिंहासन पर बैठे देखा। स्वर्ग की पूरी सेना उसके चारों ओर खड़ी थी। कुछ उसके दाहिने ओर और कुछ उसके बाँयीं ओर। 19 यहोवा ने कहा, ‘इस्राएल के राजा आहाब को कौन धोखा देगा जिससे वह गिलाद के रामोत के नगर पर आक्रमण करे और वह वहाँ मार दिया जाये’ यहोवा के चारों ओर खड़े विभिन्न लोगों ने विभिन्न उत्तर दिये। 20 तब एक आत्मा आई और वह यहोवा के सामने खड़ी हुई। उस आत्मा ने कहा, ‘मैं अहाब को धोखा दूँगी।’ यहोवा ने आत्मा से पूछा, ‘कैसे?’ 21 उस आत्मा ने उत्तर दिया, ‘मैं बाहर जाऊँगी और अहोब के नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाली आत्मा बनूँगी’ और यहोवा ने कहो, ‘तुम्हें अहाब को धोखा देने में सफलता मिलेगी। इसलिये जाओ और इसे करो।’

22 “अहोब, अब ध्यान दो, यहोवा ने तुम्हारे नबियों के मुँह में झूठ बोलने बाली आत्मा प्रवेश कराई है। यहोवा ने कहा है कि तुम्हारे साथ बुरा घटेगा।”

23 तब सिदकिय्याह मीकायाह के पास गया और उसके मुँह पर मारा। कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने कहा, “मीकायाह, यहोवा की आत्मा मुझे त्याग कर तुझसे वार्तालाप करने कैसे आई?”

24 मीकायाह ने उत्तर दिया, “सिदकिय्याह, तुम उस दिन इसे जानोगे जब तुम एक भीतरी घर में छिपने जाओगे!”

25 तब राजा अहाब ने कहा, “मीकायाह को लो और इसे नगर के प्रशासक आमोन और राजा के पुत्र योआश के पास भेज दो। 26 आमोन और योआश से कहो, ‘राजा यह कहते हैं: मीकायाह को बन्दीगृह में डाल दो। उसे रोटी और पानी के अतिरिक्त तब तक कुछ खाने को न दो जब तक मैं युद्ध से न लौटूँ।’”

27 मीकायाह ने उत्तर दिया, “अहाब, यदि तुम युद्ध से सुरक्षित लौट आते हो तो यहोवा ने मेरे द्वारा नहो कहा है। तुम सभी लोग सुनों और मेरे वचन को याद रखो!”

समीक्षा

परमेश्वर की आँखे

' देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उनकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता करने में वह अपनी सामर्थ दिखाएं' (16:9, एम.एस.जी)।

उस समय हनानी दर्शी यहूदा के राजा आसा के पास जाकर कहने लगा, 'तू ने जो अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नहीं रखा इसलिए तू परेशानी में है (वव.7-9)। ' यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपनी सामर्थ दिखाएं' (व.9)।

जो कुछ आप करते हैं उसे परमेश्वर देखते हैं। वह उन लोगों को खोज रहे हैं जिनका 'हृदय' 'पूरी तरह से उनके प्रति कटिबद्ध हैं'। 'परमेश्वर की नजरे' आपके हृदय में देखती हैं। क्या आप उनके लिए अपने पूरे हृदय से जी रहे हैं?

आसा, जिसने जीवन भर बहुत अच्छा काम किया था, पिछले वर्षों में 'अपनी बीमारी में भी उसने परमेश्वर से सहायता की खोज नहीं की बल्कि केवल वैद्यों से सहायता मांगी' (व.12)। वैद्यो से सहायता माँगने के कारण उनकी आलोचना नहीं की जा रही है। परमेश्वर से सहायता न मांगने के कारण उनकी आलोचना की जा रही है।

उनका पुत्र, यहोशापात का हृदय परमेश्वर के मार्ग पर लगा हुआ था (17:6)। उन्होंने अच्छी शुरुवात की। 'यहोवा यहोशापात के संग रहा, क्योंकि उसने अपने मूलपुरुष दाऊद की प्राचीन चाल का अनुसरण किया और बाल देवताओं की खोज में न लगा, वरन् वह अपने पिता के परमेश्वर की खोज में लगा रहा और उन्ही की आज्ञाओं पर चलता था, और इस्राएल के से काम नहीं करता था। यहोवा के मार्गों पर चलते चलते उसका मन मगन हो गया; फिर उसने यहूदा से उँचे स्थान और अशेरा नामक मूरतें दूर कर दीं।' (वव.3-6, एम.एस.जी)।

इस तथ्य के द्वारा उसकी परीक्षा हुई कि 400 भविष्यवक्ताओं में सभी में 'एक झूठ बोलने वाली आत्मा समा गई थी' (18:21)। केवल इम्ला का पुत्र, मीकायाह ने सच कहा। शैतान धोखा देता है। ऐसे एक युग में जहाँ पर सुनने के लिए आवाजों की कमी नहीं, हमें परमेश्वर की बुद्धि की आवश्यकता है कि धोखे में फँसे नहीं बल्कि सावधानी से उन लोगों की बातें सुनें, जो मीकायाह की तरह कहते हैं, 'यहोवा के जीवन की शपथ, जो कुछ मेरे परमेश्वर कहें वही मैं भी कहूँगा।' (व.13, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि 'आपकी दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उनकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपनी सामर्थ दिखाएं' (16:9)। कृपया, मुझे मजबूत कीजिए जैसे ही मैं अपने पूरे हृदय से आपकी सेवा करने के लिए अपने आपको कटिबद्ध करता हूँ।

पिप्पा भी कहते है

2इतिहास 16:7

' 'तू ने जो अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नहीं रखा वरन् अराम के राजा ही पर भरोसा रखा है ...'

यहाँ तक कि भक्तिमय लीडर्स स्वयं-निर्भर, या गलत चीजों या गलत लोगों पर निर्भर हो सकते हैं। चाहे कितना कठिन हो, हमें सुधार के लिए मुक्त रहने और केवल परमेश्वर पर भरोसा करने की आवश्यकता है।

दिन का वचन

भजन संहिता 102:1-2

“हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे! मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा ले; अपना कान मेरी ओर लगा; जिस समय मैं पुकारूं, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले!”

reader

App

Download the Bible in One Year app for iOS or Android devices and read along each day.

reader

Email

Sign up now to receive Bible in One Year in your inbox each morning. You’ll get one email each day.

Podcast

Subscribe and listen to Bible in One Year delivered to your favourite podcast app everyday.

reader

Website

Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.

संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट ऊ 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी', बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइडऍ बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट ऊ 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट ऊ 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

Bible in One Year

  • Bible in One Year

This website stores data such as cookies to enable necessary site functionality and analytics. Find out more