दिन 182

सभी महान लीडर्स की सात विशेषताएँ

बुद्धि भजन संहिता 78:56-72
नए करार प्रेरितों के काम 21:1-26
जूना करार 2 राजा 3:1-4:37

परिचय

एक ऑनलाईन सर्वेक्षण ने उन सभी गुणों की सूची बनाई जो लोग 'सिद्ध पास्टर से'अपेक्षा करते हैं:

वे सिर्फ बारह मिनट प्रचार करें।

वे अट्ठाईस वर्ष के हो, लेकिन तीस वर्षों से प्रचार कर रहे हैं।

वे हर दिन सुबह 8 बजे से लेकर देर रात तक काम करते हैं, लेकिन ध्यान भी रखते हैं।

वे अक्सर पाप की आलोचना करते हैं, लेकिन कभी भी किसी को दुखी नहीं करते हैं।

वे अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छी पुस्तकें खरीदते हैं, एक अच्छी गाड़ी चलाते हैं, उदारतापूर्वक गरीबों को देते हैं और कम वेतन पर काम करते हैं।

वे प्रतिदिन सदस्यों के परिवारों को पंद्रह फोन करते हैं, घर पर और अस्पताल में जाकर लोगों से मिलते हैं, अपना पूरा समय अविश्वासियों को सुसमाचार सुनाने में बिताते हैं और जब कभी उनकी जरुरत होती है, तब उपलब्ध होते हैं।

वे बहुत अच्छे भी दिखते हैं!

निश्चित ही, हम सभी जानते हैं कि एक 'सिद्ध पास्टर' जैसी कोई चीज नहीं है। फिर भी, लोग अपने चर्च लीडर्स से जो ऊँची अपेक्षा रखते हैं, उसके द्वारा भयभीत होकर, 1 जुलाई 2004 को (जब मुझे लंदन में एच.टी.बी में पादरी बनने के लिए कहा गया), तब मैंने उत्साहित और उत्तरदायित्व के द्वारा थोड़ा भयभीत महसूस किया। उस दिन, मैंने एक वर्ष में अपनी बाईबल के मार्जिन में अपनी प्रार्थना लिखीः कि मैं खरे मन से लोगों की चरवाही करुँ और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुवाई करुँ

(भजनसंहिता 78:72)। आज भी मेरी यह प्रार्थना है।

कल के लेखांश में हमने देखा कि कैसे पौलुस ने इफीसियों के लीडर्स से कहा, ' इसलिये अपनी और पूरे झुण्ड की चौकसी करो जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है, कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने लहू से मोल लिया है' (प्रेरितों के काम 20:28)। पोप फ्रांसिस ने चर्च के आत्मिक लीडर्स को चिताया कि 'भेड़ की गंध के साथ रहने वाले चरवाहा बनो'।

एक रखवाली करने वाले का काम है परमेश्वर की भेड़ो का पास्टर बनना, यीशु के उदाहरण के पीछे चलना, जिन्होंने कहा, 'मैं अच्छा चरवाहा हूँ' (यूहन्ना 10:11)। आज के लेखांश में हम सभी महान लीडर्स की सात विशेषताओं को देखते हैं।

बुद्धि

भजन संहिता 78:56-72

56 इतना होने पर भी इस्राएल के लोगों ने परम परमेश्वर को
 परखा और उसको बहुत दु:खी किया।
 वे लोग परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे।
57 इस्राएल के लोग परमेश्वर से भटक कर विमुख हो गये थे।
 वे उसके विरोध में ऐसे ही थे, जैसे उनके पूर्वज थे। वे इतने बुरे थे जैसे मुड़ा धनुष।
58 इस्राएल के लोगों ने ऊँचे पूजा स्थल बनाये और परमेश्वर को कुपित किया।
 उन्होंने देवताओं की मूर्तियाँ बनाई और परमेश्वर को ईर्ष्यालु बनाया।
59 परमेश्वर ने यह सुना और बहुत कुपित हुआ।
 उसने इस्राएल को पूरी तरह नकारा!
60 परमेश्वर ने शिलोह के पवित्र तम्बू को त्याग दिया।
 यह वही तम्बू था जहाँ परमेश्वर लोगों के बीच में रहता था।
61 फिर परमेश्वर ने उसके निज लोगों को दूसरी जातियों को बंदी बनाने दिया।
 परमेश्वर के “सुन्दर रत्न” को शत्रुओं ने छीन लिया।
62 परमेश्वर ने अपने ही लोगों (इस्राएली) पर निज क्रोध प्रकट किया।
 उसने उनको युद्ध में मार दिया।
63 उनके युवक जलकर राख हुए,
 और वे कन्याएँ जो विवाह योग्य थीं, उनके विवाह गीत नहीं गाये गए।
64 याजक मार डाले गए,
 किन्तु उनकी विधवाएँ उनके लिए नहीं रोई।
65 अंत में, हमारा स्वामी उठ बैठा
 जैसे कोई नींद से जागकर उठ बैठता हो।
 या कोई योद्धा दाखमधु के नशे से होश में आया हो।
66 फिर तो परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को मारकर भगा दिया और उन्हें पराजित किया।
 परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को हरा दिया और सदा के लिये अपमानित किया।
67 किन्तु परमेश्वर ने यूसुफ के घराने को त्याग दिया।
 परमेश्वर ने इब्राहीम परिवार को नहीं चुना।
68 परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र को नहीं चुना
 और परमेश्वर ने सिय्योन के पहाड़ को चुना जो उसको प्रिय है।
69 उस ऊँचे पर्वत पर परमेश्वर ने अपना पवित्र मन्दिर बनाया।
 जैसे धरती अडिग है वैसे ही परमेश्वर ने निज पवित्र मन्दिर को सदा बने रहने दिया।
70 परमेश्वर ने दाऊद को अपना विशेष सेवक बनाने में चुना।
 दाऊद तो भेड़ों की देखभाल करता था, किन्तु परमेश्वर उसे उस काम से ले आया।
71 परमेश्वर दाऊद को भेड़ों को रखवाली से ले आया
 और उसने उसे अपने लोगों कि रखवाली का काम सौंपा, याकूब के लोग, यानी इस्राएल के लोग जो परमेश्वर की सम्पती थे।
72 और फिर पवित्र मन से दाऊद ने इस्राएल के लोगों की अगुवाई की।
 उसने उन्हें पूरे विवेक से राह दिखाई।

समीक्षा

विश्वसनीयता और हुनर

महान लीडरशिप दुर्लभ है। जैसे ही हम आज विश्वभर में देखते हैं, ऐसे बहुत से देश नहीं हैं जिनकी अच्छी तरह से अगुवाई की जाती है।

जैसे ही भजनसंहिता के लेखक इब्रानी इतिहास में पीछे देखते हैं, वहाँ पर ज्यादा अच्छी लीडरशिप नहीं थी। यह परमेश्वर के विरोध में बलवे की एक कहानी थीः 'धोखा देने वाले ' बेईमान' (व.57, एम.एस.जी)।

परमेश्वर अपने हृदय के पीछे के मनुष्य को खोज रहे थे। परमेश्वर ने एक चरवाहा की तरह लोगों की अगुवाई कीः 'परंतु अपनी प्रजा को भेड़-बकरियों के समान प्रस्थान कराया, और जंगल में उनकी अगुवाई पशुओं के झुंड की सी की। तब वे उसके चलाने से बेखटके चले, और उनको कुछ भय न हुआ' (वव.52-53, एम.एस.जी)।

आखिर में उन्हें दाऊद मिला, जो कि पुराने नियम में महान (यद्यपि सिद्ध नहीं था) लीडरशिप का एक दुर्लभ उदाहरण थाः'फिर उसे अपने दास दाऊद को चुनकर...कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात् उसके निज भाग इस्राएल की चरवाही करें। और दाऊद ने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुवाई की' (वव.70-72)।

दाऊद के पास एक भौतिक चरवाह होने का अनुभव था। परमेश्वर ने 'उसे भेड़ो की रखवाली करने में से चुन लिया' (व.70)। उन्होंने इन हुनर का इस्तेमाल एक चरवाह बनने के लिए किया, परमेश्वर के लोगों के लीडर और पास्टर के अलंकारिक रूप में भीः

  1. मन की खराई

'खराई' 'कपटीपन' का उल्टा है। शब्द खराई लेटिन इंटिगर से आता है, जिसका अर्थ है 'संपूर्ण'। यह एक अविभाजित जीवन का वर्णन करता है, एक 'संपूर्णता' जो इन गुणों से प्राप्त होती है, जैसेकि ईमानदारी और चरित्र में नियमितता। इसका अर्थ है उन नैतिक मूल्यों, धारणाओं और सिद्धांतों के द्वारा काम करना, जिनका हम दावा करते हैं कि हमारे पास है।

परमेश्वर के लोगों की पास्टर के द्वारा देखभाल अवश्य ही मन की खराई से की जानी चाहिए। यह सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। लोगों ने यीशु के बारे में कहा, 'हम जानते हैं कि आप खरे मनुष्य हैं' (मरकुस 12:14)। बहुत से लीडर्स ने अपनी भूमिका में खराई की महत्ता को दर्शाया हैः

पूर्वी यू.एस. प्रेसीडेंट ऐसनहोवन, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, पश्चिमी यूरोप में एलाइड फोर्स के सुप्रिम कमांडर ने कहा, 'लीडरशिप की सबसे बड़ी गुणवत्ता है नि:संदेह विश्वसनीयता। इसके बिना, कोई सच्ची सफलता संभव नहीं है, चाहे यह...फुटबॉल के क्षेत्र में हो, एक सेना में या एक ऑफिस में।'

  1. हाथ की कुशलता

दाऊद एक कुशल चरवाहा थे। उन्होंने अपनी गुलेल से भेड़ों की रक्षा करना सीख लिया था। महान हुनर के साथ उन्होंने इस्राएल के लोगों की अगुवाई की। लीडरशिप हुनर होते हैं जिन्हें सीखा जाना चाहिए।

हम यह हुनर सीखते हैं, अच्छे उदाहरण को देखने और इसके पीछे चलने से, दूसरों की बुद्धि की बात को सुनने से, उनसे प्रश्न पूछने से जिनकी हम प्रशंसा करते हैं, हमारे सहकर्मियों के साथ सीखते हुए, और इससे अधिक अभ्यास के द्वारा।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता करिए कि हमारे जीवन के सभी क्षेत्र में हम अच्छे चरवाहा बनें, हमारे चर्च, व्यवसाय, समुदाय और संस्कृति में अच्छी तरह से अगुवाई करते हुए। हमारी सहायता करिए कि मन की खराई से पास्टर का कार्य पूरा करें और हाथों की कुशलता से अगुवाई करें।
नए करार

प्रेरितों के काम 21:1-26

पौलुस का यरूशलेम जाना

21फिर उनसे विदा हो कर हम ने सागर में अपनी नाव खोल दी और सीधे रास्ते कोस जा पहुँचे और अगले दिन रोदुस। फिर वहाँ से हम पतरा को चले गये। 2 वहाँ हमने एक जहाज़ लिया जो फिनीके जा रहा था।

3 जब साइप्रस दिखाई पड़ने लगा तो हम उसे बायीं तरफ़ छोड़ कर सीरिया की ओर मुड़ गये क्योंकि जहाज़ को सूर में माल उतारना था सो हम भी वहीं उतर पड़े। 4 वहाँ हमें अनुयायी मिले जिनके साथ हम सात दिन तक ठहरे। उन्होंने आत्मा से प्रेरित होकर पौलुस को यरूशलेम जाने से रोकना चाहा। 5 फिर वहाँ ठहरने का अपना समय पूरा करके हमने विदा ली और अपनी यात्रा पर निकल पड़े। अपनी पत्नियों और बच्चों समेत वे सभी नगर के बाहर तक हमारे साथ आये। फिर वहाँ सागर तट पर हमने घुटनों के बल झुक कर प्रार्थना की। 6 और एक दूसरे से विदा लेकर हम जहाज़ पर चढ़ गये। और वे अपने-अपने घरों को लौट गये।

7 सूर से जल मार्ग द्वारा यात्रा करते हुए हम पतुलिमयिस में उतरे। वहाँ भाईयों का स्वागत सत्कार करते हम उनके साथ एक दिन ठहरे। 8 अगले दिन उन्हें छोड़ कर हम कैसरिया आ गये। और इंजील के प्रचारक फिलिप्पुस के, जो चुने हुए विशेष सात सेवकों में से एक था, घर जा कर उसके साथ ठहरे। 9 उसके चार कुवाँरी बेटियाँ थीं जो भविष्यवाणी किया करती थीं।

10 वहाँ हमारे कुछ दिनों ठहरे रहने के बाद यहूदिया से अगबुस नामक एक नबी आया। 11 हमारे निकट आते हुए उसने पौलुस का कमर बंध उठा कर उससे अपने ही पैर और हाथ बाँध लिये और बोला, “यह है जो पवित्र आत्मा कह रहा है-यानी यरूशलेम में यहूदी लोग, जिसका यह कमर बंध है, उसे ऐसे ही बाँध कर विधर्मियों के हाथों सौंप देंगे।”

12 हमने जब यह सुना तो हमने और वहाँ के लोगों ने उससे यरूशलेम न जाने की प्रार्थना की। 13 इस पर पौलुस ने उत्तर दिया, “इस प्रकार रो-रो कर मेरा दिल तोड़ते हुए यह तुम क्या कर रहे हो? मैं तो यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने के लिये बल्कि प्रभु यीशु मसीह के नाम पर मरने तक को तैयार हूँ।”

14 क्योंकि हम उसे मना नहीं पाये। सो बस इतना कह कर चुप हो गये, “जैसी प्रभु की इच्छा।”

15 इन दिनों के बाद फिर हम तैयारी करके यरूशलेम को चल पड़े। 16 कैसरिया से कुछ शिष्य भी हमारे साथ हो लिये थे। वे हमें साइप्रस के एक व्यक्ति मनासोन के यहाँ ले गये जो एक पुराना शिष्य था। हमें उसी के साथ ठहरना था।

पौलुस की याकूब से भेंट

17 यरूशलेम पहुँचने पर भाईयों ने बड़े उत्साह के साथ हमारा स्वागत सत्कार किया। 18 अगले दिन पौलुस हमारे साथ याकूब से मिलने गया। वहाँ सभी अग्रज उपस्थित थे। 19 पौलुस ने उनका स्वागत सत्कार किया और उन सब कामों के बारे में जो परमेश्वर ने उसके द्वारा विधर्मियों के बीच कराये थे, एक एक करके कह सुनाया।

20 जब उन्होंने यह सुना तो वे परमेश्वर की स्तुति करते हुए उससे बोले, “बंधु तुम तो देख ही रहे हो यहाँ कितने ही हज़ारों यहूदी ऐसे हैं जिन्होंने विश्वास ग्रहण कर लिया है। किन्तु वे सभी व्यवस्था के प्रति अत्यधिक उत्साहित हैं। 21 तेरे विषय में उनसे कहा गया है कि तू विधर्मियों के बीच रहने वाले सभी यहूदियों को मूसा की शिक्षाओं को त्यागने की शिक्षा देता है। और उनसे कहता है कि वे न तो अपने बच्चों का ख़तना करायें और न ही हमारे रीति-रिवाज़ों पर चलें।

22 “सो क्या किया जाये? वे यह तो सुन ही लेंगे कि तू आया हुआ है। 23 इसलिये तू वही कर जो तुझ से हम कह रहे हैं। हमारे साथ चार ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कोई मन्नत मानी है। 24 इन लोगों को ले जा और उनके साथ शुद्धीकरण समारोह में सम्मिलित हो जा। और उनका खर्चा दे दे ताकि वे अपने सिर मुँडवा लें। इससे सब लोग जान जायेंगे कि उन्होंने तेरे बारे में जो सुना है, उसमें कोई सचाई नहीं है बल्कि तू तो स्वयं ही व्यवस्था के अनुसार जीवन जीता है।

25 “जहाँ तक विश्वास ग्रहण करने वाले ग़ैर यहूदियों का प्रश्न है, हमने उन्हें एक पत्र में लिख भेजा है,

‘मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन तुम्हें नहीं लेना चाहिये।

गला घोंट कर मारे गये किसी भी पशु का मांस खाने से बचें और लहू को कभी न खायें।

व्यभिचार से बचे रहो।’”

पौलुस का बंदी होना

26 इस प्रकार पौलुस ने उन लोगों को अपने साथ लिया और उन लोगों के साथ अपने आप को भी अगले दिन शुद्ध कर लिया। फिर वह मन्दिर में गया जहाँ उसने घोषणा की कि शुद्धीकरण के दिन कब पूरे होंगे और हममें से हर एक के लिये चढ़ावा कब चढ़ाया जायेगा।

समीक्षा

प्रेम, सेवा और संवेदनशीलता

मुझे यह बात पसंद है जब विश्वभर से 169 देशों से, जहाँ अल्फा चलता है, लीडर्स अल्फा ग्लोबल वीक के लिए एक साथ आते हैं, शिक्षा, सेवकाई और उत्साह के लिए। जब हर लीडर विवरण के साथ रिपोर्ट देते हैं कि परमेश्वर ने उनकी सेवकाई के द्वारा क्या किया है, तब मुझे इस लेखांश की याद आती है।

यहाँ पर हमने पढ़ा कि कैसे 'पौलुस ने विवरण के साथ कहानी बताई कि उनकी सेवकाई के द्वारा परमेश्वर ने अन्यजातिय लोगों में क्या-क्या काम किये थे। उन्होंने आनंद के साथ सुना और परमेश्वर को महिमा दी। उनके पास भी बताने के लिए कहानी थीः'हे भाई, तू देखता है कि यहूदियों में से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्था के लिये धुन लगाए हैं' (वव.19-20, एम.एस.जी)।

कल हमने देखा कि पौलुस ने इफीसियों के लीडर्स से कहा, 'परमेश्वर के चर्च के चरवाहा बनो' और 'भेड़ो की रखवाली करो' (20:28)। आज, हम इन सभी के उदाहरणों को पूरा होते हुए देखते हैं:

  1. प्रेम

अ. यदि आप लोगों से प्रेम करते हैं तो आप उनके करीब जाएँगे, पोप फ्रांसिस के शब्दों में, आपसे भेड़ की सुगंध आयेगी। पौलुस एक अच्छे चरवाह के एक उदाहरण थे। जहाँ कही वह गए, वह चेलों से मिले (21:4,7)। उन्होंने उनके साथ प्रार्थना की (व.5), वह उनसे इतना प्रेम करते थे कि जब वहाँ से जाने का समय था, तब उन्हें उनसे अपने आपको दूर करना पड़ा (व.1)।

ब.उनके लिए अपने प्रेम में पौलुस ने उन्हें फाड़ने वाले भेड़ियों के विषय में चेतावनी दी (20:29)। तब भी पौलुस उन्हें उत्साहित करने और उनके विश्वास को बढ़ाने के द्वारा उनसे प्रेम करते हैं। ' जो काम परमेश्वर ने उसकी सेवा के द्वारा अन्यजातियों में किए थे, एक – एक करके सब बताए' (21:19)।

  1. सेवा

अ.भविष्यवक्ता अगबुस ने यरूशलेम में होने वाली चीजों के विषय में पौलुस को चेतावनी दी। उन्होंने पौलुस से विनती की कि यरूशलेम में न जाएँ, लेकिन पौलुस ने उत्तर दिया, ' तुम क्या करते हो कि रो – रोकर मेरा दिल तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ' (व.13)।

ब. यीशु ने सेवा करने वाली लीडरशिप का नमूना दिखाया (उदाहरण के लिए मरकुस 10:45 देखे)। पौलसु यीशु के पीछे जाने के लिए इच्छुक थे, 'अच्छा चरवाह (जो) भेड़ो के लिए अपना प्राण देता है' (यूहन्ना 10:11)। जैसा कि ओस्वाल्ड सॅन्डर्स ने लिखा, 'सच्ची लीडरशिप लोगों से कम सेवा प्राप्त करने से नहीं, बल्कि उनके प्रति निस्वार्थ सेवा प्रदान करने से प्राप्त होती है।'

  1. संवेदनशीलता

अ.हम अक्सर पौलुस की आरंभ करने वाली प्रेरणा और निर्भीक कदम के विषय में सोचते हैं; किंतु, उन्होंने यरूशलेम की संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता भी दिखायी। उन्होंने अपने आपको और अपने साथियों को शुद्ध किया, व्यवस्था की रीति के अनुसार, ताकि कोई भी चीज परमेश्वर के कार्य पर से लोगों का ध्यान न हटाने पाये (प्रेरितों के काम 21:24-26)।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता करिए कि आपके लोगों से हम वही प्रेम और देखभाल कर पाये। हमारी सहायता करिए कि भेड़ियों से हम उनकी रक्षा करे। उनके पक्ष में बलिदानों को करने के लिए हमें साहस दीजिए।
जूना करार

2 राजा 3:1-4:37

यहोराम इस्राएल का राजा बना

3अहाब का पुत्र यहोराम इस्राएल में शोमरोन का राजा बना। यहोशापात के अट्ठारहवें वर्ष में यहोराम ने राज्य करना आरम्भ किया। यहोराम बारह वर्ष तक यहूदा का राजा रहा। 2 यहोराम ने वह सब किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। परन्तु यहोराम अपने माता पिता की तरह न था क्योंकि उस ने उस स्तम्भ को दूर कर दिया जो उसके पिता ने बाल की पूजा के लिये बनवाई थी। 3 परन्तु वह नबात के पुत्र यारोबाम के ऐसे पापों को, जैसे उस ने इस्राएल से भी कराये, करता रहा और उन से न फिरा।

मोआब इस्राएल से अलग होता है

4 मेशा मोआब का राजा था। उसके पास बहुत बकरियाँ थीं। मेशा ने एक लाख मेमने और एक लाख भेढ़ों का ऊन इस्राएल के राजा को भेंट किया। 5 किन्तु जब अहाब मरा तब मोआब इस्राएल के राजा के शासन से स्वतन्त्र हो गया।

6 तब राजा यहोराम शोमरोन के बाहर निकला और उसने इस्राएल के सभी पुरुषों को इकट्ठा किया। 7 यहोराम ने यहूदा के राजा यहोशापात के पास सन्देशवाहक भेजे। यहोराम ने कहा, “मोआब का राजा मेरे शासन से स्वतन्त्र हो गया है। क्या तुम मोआब के विरुद्ध युद्ध करने मेरे साथ चलोगे”

यहोशापात ने कहा, “हाँ, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। हम दोनों एक सेना की तरह मिल जायेंगे। मेरे लोग तुम्हारे लोगों जैसे होंगे। मेरे घोड़े तुम्हारे घोड़ों जैसे होंगे।”

एलीशा से तीन राजा सलाह माँगते हैं

8 यहोशापात ने यहोराम से पूछा, “हमें किस रास्ते से चलना चाहिए?”

यहोराम ने उत्तर दिया, “हमें एदोम की मरुभूमि से होकर जाना चाहिए।”

9 इसलिये इस्राएल का राजा यहूदा और एदोम के राजाओं के साथ गया। वे लगभग सात दिन तक चारों ओर घूमते रहे। सेना व उनके पशुओं के लिये पर्याप्त पानी नहीं था। 10 अन्त में इस्राएल के राजा (यहोराम) ने कहा, “ओह, यहोवा ने सत्य ही हम तीनों राजाओं को एक साथ इसलिये बुलाया कि मोआबी हम लोगों को पराजित करें!”

11 किन्तु यहोशापात ने कहा, “निश्चय ही यहोवा के नबियों में से एक यहाँ है। हम लोग नबी से पूछें कि यहोवा हमें क्या करने के लिये कहता है।”

इस्राएल के राजा के सेवकों में से एक ने कहा, “शापात का पुत्र एलीशा यहाँ है। एलीशा, एलिय्याह का सेवक था।”

12 यहोशापात ने कहा, “यहोवा की वाणी एलीशा के पास है।”

अतः इस्राएल का राजा (यहोराम), यहोशापत और एदोम के राजा एलीशा से मिलने गए।

13 एलीशा ने इस्राएल के राजा (यहोराम) से कहा, “तुम मुझ से क्या चाहते हो अपने पिता और अपनी माता के नबियों के पास जाओ।”

इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, “नहीं, हम लोग तुमसे मिलने आए हैं, क्योंकि यहोवा ने हम तीन राजाओं को इसलिये एक साथ यहाँ बुलाया है कि मोआबी हम लोगों को हराएं। हम तुम्हारी सहायता चाहते हैं।”

14 एलीशा ने कहा, “मैं यहूदा के राजा यहोशापात का सम्मान करता हूँ और मैं सर्वशक्तिमान यहोवा की सेवा करता हूँ। उसकी सत्ता निश्चय ही शाश्वत है, मैं यहाँ केवल राजा यहोशापात के कारण आया हूँ। अतः मैं सत्य कहता हूँ: मैं न तो तुम पर दृष्टि डालता और न तुम्हारी परवाह करता, यदि यहूदा का राजा यहोशापात यहाँ न होता। 15 किन्तु अब एक ऐसे व्यक्ति को मेरे पास लाओ जो वीणा बजाता हो।”

जब उस व्यक्ति ने वीणा बजाई तो यहोवा की शक्ति एलीशा पर उतरी। 16 तब एलीशा ने कहा, “यहोवा यह कहता हैः घाटी में गके खोदो। 17 यहोवा यही कहता है: तुम हवा का अनुभव नहीं करोगे, तुम वर्षा भी नहीं देखोगे। किन्तु वह घाटी जल से भर जायेगी। तुम, तुम्हारी गायें तथा अन्य जानवरों को पानी पीने को मिलेगा। 18 यहोवा के लिये यह करना सरल है। वह तुम्हें मोआबियों को भी पराजित करने देगा। 19 तुम हर एक सुदृढ़ नगर और हर एक अच्छे नगर पर आक्रमण करोगे। तुम हर एक अच्छे पेड़ को काट डालोगे। तुम सभी पानी के सोतों को रोक दोगे। तुम हरे खेत, उन पत्थरों से नष्ट करोगे जिन्हें तुम उन पर फेंकोगे।”

20 सवेरे प्रातः कालीन बलि के समय, एदोम से सड़क पर होकर पानी बहने लगा और घाटी भर गई।

21 मोआब के लोगों ने सुना कि राजा लोग उनके विरुद्ध लड़ने आए हैं। इसलिये मोआब के लोगों ने कवच धारण करने के उम्र के सभी पुरुषों को इकट्ठा किया। उन लोगों ने युद्ध के लिये तैयार होकर सीमा पर प्रतीक्षा की। 22 मोआब के लोग भी बहुत सवेरे उठे। उगता हुआ सूरज घाटी में जल पर चमक रहा था और मोआब के लोगों को वह खून की तरह दिखायी दे रहा था। 23 मोआब के लोगों ने कहा, “खून को ध्यान से देखो! राजाओं ने अवश्य ही एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध किया होगा। उन्होंने एक दूसरे को अवश्य नष्ट कर दिया होगा। हम चलें और उनके शवों से कीमती चीज़ों ले लें।”

24 मोआबी लोग इस्राएली डेरे तक आए। किन्तु इस्राएली बाहर निकले और उन्होंने मोआबी सेना पर आक्रमण कर दिया। मोआबी लोग इस्राएलियों के सामने से भाग खड़े हुए। इस्राएली मोआबियों से युद्ध करने उनके प्रदेश में घुस आए। 25 इस्राएलियों ने नगरों को पराजित किया। उन्होंने मोआब के हर एक अच्छे खेत में अपने पत्थर फेंके। उन्होंने सभी पानी के सोतों को रोक दिया और उन्होंने सभी अच्छे पेड़ों को काट डाला। इस्राएली लगातार कीर्हरेशेत तक लड़ते गए। सैनिकों ने कीर्हरेशेत का भी घेरा डाला और उस पर भी आक्रमण किया!

26 मोआब के राजा ने देखा कि युद्ध उसके लिये अत्याधिक प्रबल है। इसलिये उसने तलवारधारी सात सौ पुरुषों को एदोम के राजा का वध करने के लिये सीधे सेना भेद के लिये भेज दिया। किन्तु वे एदोम के राजा तक सेना भेद नहीं कर पाए। 27 तब मोआब के राजा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को लिया जो उसके बाद राजा होता। नगर के चारों ओर की दीवार पर मोआब के राजा ने अपने पुत्र की भेंट होमबलि के रूप में दी। इससे इस्राएल के लोग बहुत घबराये। इसलिये इस्राएल के लोगों ने मोआब के राजा को छोड़ा और अपने देश को लौट गए।

एक नबी की विधवा एलीशा से सहायता माँगती है

4नबियों के समूह में से एक व्यक्ति की पत्नी थी। यह व्यक्ति मर गया। उसकी पत्नी ने एलीशा के सामने अपना दुखड़ा रोया, “मेरा पति तुम्हारे सेवक के समान था। अब मेरा पति मर गया है। तुम जानते हो कि वह यहोवा का सम्मान करता था। किन्तु उस पर एक व्यक्ति का कर्ज था और अब वह व्यक्ति मेरे दो लड़कों को अपना दास बनाने के लिये लेने आ रहा है।”

2 एलीशा ने पूछा, “मैं तुम्हारी सहायता कैसे कर सकता हूँ मुझे बताओ कि तुम्हारे घर में क्या है”

उस स्त्री ने कहा, “मेरे घर में कुछ नहीं। मेरे पास केवल जैतून के तेल का एक घड़ा है।”

3 तब एलीशा ने कहा, “जाओ और अपने सब पड़ोसियों से कटोरे उधार लो। वे खाली होने चाहिये। बहुत से कटोरे उधार लो। 4 तब अपने घर जाओ और दरवाजे बन्द कर लो। केवल तुम और तुम्हारे पुत्र घर में रहेंगे। तब इन सब कटोरों में तेल डालो और उन कटोरों को भरो और एक अलग स्थान पर रखो।”

5 अतः वह स्त्री एलीशा के यहाँ से चली गई, अपने घर पहुँची और दरवाजे बन्द कर लिए। केवल वह और उसके पुत्र घर में थे। उसके पुत्र कटोरे उसके पास लाए और उसने तेल डाला। 6 उसने बहुत से कटोरे भरे। अन्त में उसने अपने पुत्र से कहा, “मेरे पास दूसरा कटोरा लाओ।”

किन्तु सभी प्याले भर चुके थे। पुत्रों में से एक ने उस स्त्री से कहा, “अब कोई कटोरा नहीं रह गया है।” उस समय घड़े का तेल खत्म हो चुका था।

7 तब वह स्त्री आई और उसने परमेश्वर के जन (एलीशा) से यह घटना बताई! एलीशा ने उससे कहा, “जाओ, तेल को बेच दो और अपना कर्ज लौटा दो। जब तुम तेल को बेच चुकोगी और अपना कर्ज लौटा चुकोगी तब तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का गुजारा बची रकम से होगा।”

शूनेम में एक स्त्री एलीशा को कमरा देती है

8 एक दिन एलीशा शूनेम को गया। शूनेम में एक महत्वपूर्ण स्त्री रहती थी। इस स्त्री ने एलीशा से कहा कि वह ठहरे और उसके घर भोजन करे। इसलिये जब भी एलीशा उस स्थान से होकर जाता था तब भोजन करने के लिये वहाँ रूकता था।

9 उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “देखो मैं समझती हूँ कि एलीशा परमेश्वर का जन है। वह सदा हमारे घर होकर जाता है। 10 कृपया हम लोग एक कमरा एलीशा के लिये छत पर बनाएं। इस कमरे में हम एक बिछौना लगा दें। उसमें हम लोग एक मेज, एक कुर्सी और एक दीपाधार रख दें। तब जब वह हमारे यहाँ आए तो वह इस कमरे को अपने रहने के लिये रख सकता है।”

11 एक दिन एलीशा उस स्त्री के घर आया। वह उस कमरे में गया और वहाँ आराम किया। 12 एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ।”

सेवक ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह उसके सामने आ खड़ी हूई। 13 एलीशा ने अपने सेवक से कहा—अब इस स्त्री से कहो, “देखो हम लोगों की देखभाल के लिये तुमने यथासम्भव अच्छा किया है। हम लोग तुम्हारे लिये क्या करें क्या तुम चाहती हो कि हम लोग तुम्हारे लिये राजा या सेना के सेनापती से बात करें”

उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ बहुत अच्छी तरह अपने लोगों में रह रही हूँ।”

14 एलीशा ने गेहजी से कहा, “हम उसके लिये क्या कर सकते हैं”

गेहजी ने कहा, “मैं जानता हूँ कि उसका पुत्र नहीं है और उसका पति बूढ़ा है।”

15 तब एलीशा ने कहा, “उसे बुलाओ।”

अतः गेहजी ने उस स्त्री को बुलाया। वह आई और उसके दरवाजे के पास खड़ी हो गई। 16 एलीशा ने स्त्री से कहा, “अगले बसन्त में इस समय तुम अपने पुत्र को गले से लगा रही होगी।”

उस स्त्री ने कहा, “नहीं महोदय! परमेश्वर के जन, मुझसे झूठ न बोलो।”

शूनेम की स्त्री को पुत्र होता है

17 किन्तु वह स्त्री गर्भवती हुई। उसने अगले बसन्त में एक पुत्र को जन्म दिया, जैसा एलीशा ने कहा था।

18 लड़का बड़ा हुआ। एक दिन वह लड़का खेतों में अपने पिता और फसल काटते हुए पुरुषों को देखने गया। 19 लड़के ने अपने पिता से कहा, “ओह, मेरा सिर! मेरा सिर फटा जा रहा है!”

पिता ने अपने सेवक से कहा, “इसे इसकी माँ के पास ले जाओ!”

20 सेवक उस लड़के को उसकी माँ के पास ले गया। लड़का दोपहर तक अपनी माँ की गोद मैं बैठा। तब वह मर गया।

माँ एलीशा से मिलने जाती है

21 उस स्त्री ने लड़के को परमेश्वर के जन (एलीशा) के बिछौने पर लिटा दिया। तब उसने दरवाजा बन्द किया और बाहर चली गई। 22 उसने अपने पति को बुलाया और कहा, “कृपया मेरे पास सेवकों में से एक तथा गधों में से एक को भेजें। तब मैं परमेश्वर के जन (एलीशा) से मिलने शीघ्रता से जाऊँगी और लौट आऊँगी।”

23 उस स्त्री के पति ने कहा, “तुम आज परमेश्वर के जन (एलीशा) के पास क्यों जाना चाहती हो यह नवचन्द्र या सब्त का दिन नहीं है।”

उसने कहा, “परेशान मत होओ। सब कुछ ठीक होगा।”

24 तब उसने एक गधे पर काठी रखी और अपने सेवक से कहा, “आओ चलें और शीघ्रता करें। धीरे तभी चलो जब मैं कहूँ।”

25 वह स्त्री परमेश्वर के जन (एलीशा) से मिलने कर्म्मेल पर्वत पर गई।

परमेश्वर के जन (एलीशा) ने शूनेमिन स्त्री को दूर से आते देखा। एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “देखो, वह शूनेमिन स्त्री है! 26 कृपया अब दौड़ कर उससे मिलो। उससे पूछो, ‘क्या बुरा घटित हुआ है क्या तुम कुशल से हो क्या तुम्हारा पति कुशल से है क्या बच्चा ठीक है?’” गेहजी ने उस शूनेमिन स्त्री से यही पूछा।

उसने उत्तर दिया, “सब कुशल है।”

27 किन्तु शूनेमिन स्त्री पर्वत पर चढ़कर परमेश्वर के जन (एलीशा) के पास पहुँची। वह प्रणाम करने झुकी और उसने एलीशा के पाँव पकड़ लिये। गेहजी शूनेमिन स्त्री को दूर खींच लेने के लिये निकट आया। किन्तु परमेश्वर के जन (एलीशा) ने गेहजी से कहा, “उसे अकेला छोड़ दो! वह बहुत परेशान है और यहोवा ने इसके बारे में मुझसे नहीं कहा। यहोवा ने यह खबर मुझसे छिपाई।”

28 तब शूनेमिन स्त्री ने कहा, “महोदय, मैंने आपसे पुत्र नहीं माँगा था। मैंने आपसे कहा था, ‘आप मुझे मूर्ख न बनाए!’”

29 तब एलीशा ने गेहजी से कहा, “जाने के लिये तैयार हो जाओ। मेरी टहलने की छड़ी ले लो और जाओ। किसी से बात करने के लिये न रुको। यदि तुम किसी व्यक्ति से मिलो तो उसे नमस्कार भी न कहो। यदि कोई व्यक्ति नमस्कार करे तो तुम उसका उत्तर भी न दो। मेरी टहलने की छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रखो।”

30 किन्तु बच्चे की माँ ने कहा, “जैसा कि यहोवा शाश्वत है और आप जीवित हैं मैं इसको साक्षी कर प्रतिज्ञा करती हूँ कि मैं आपके बिना यहाँ से नहीं जाऊँगी।”

अतः एलीशा उठा और शूनेमिन स्त्री के साथ चल पड़ा।

31 गेहजी शूनेमिन स्त्री के घर, एलीशा और शूनेमिन से पहले पहुँचा। गेहजी ने टहलने की छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रखा। किन्तु बच्चे ने न कोई बात की और न ही कोई ऐसा संकेत दिया जिससे यह लगे कि उसने कुछ सुना है। तब गेहजी एलीशा से मिलने लौटा। गेहजी ने एलीशा से कहा, “बच्चा नहीं जागा!”

शूनेमिन स्त्री का पुत्र पुनःजीवित होता है

32 एलीशा घर में आया और बच्चा अपने बिछौने पर मरा पड़ा था। 33 एलीशा कमरे में आया और उसने दरवाजा बन्द कर लिया। अब एलीशा और वह बच्चा कमरे में अकेले थे। तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की। 34 एलीशा बिछौनो पर गया और बच्चे पर लेटा। एलीशा ने अपना मुख बच्चे के मुख पर रखा। एलीशा ने अपनी आँखें बच्चे की आँखों पर रखीं। एलीशा ने अपने हाथों को बच्चे के हाथों पर रखा। एलीशा ने अपने को बच्चे के ऊपर फैलाया। तब बच्चे का शरीर गर्म हो गया।

35 एलीशा कमरे के बाहर आया और घर में चारों ओर घूमा। तब वह कमरे में लौटा और बच्चे के ऊपर लेट गया। तब बच्चा सात बार छींका और उसने आँखें खोलीं।

36 एलीशा ने गेहजी को बुलाया और कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ!”

गेहजी ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह एलीशा के पास आई। एलीशा ने कहा, “अपने पुत्र को उठा लो।”

37 तब शूनेमिन स्त्री कमरे में गई और एलीशा के चरणों पर झुकी। तब उसने अपने पुत्र को उठाया और वह बाहर गई।

समीक्षा

करुणा और प्रार्थना

इस लेखांश में हम देखते हैं कि क्यों चरवाह का चित्र बाईबल में इतना अधिक प्रचलित था। आस-पास बहुत सी भेड़े थी। 'मोआब का राजा मेशा बहुत सी भेड़-बकरियाँ रखता था, और इस्राएल के राजा को एक लाख बच्चे और एक लाख भेड़ो का ऊन, कर की रीति से दिया करता था' (3:4)।

जिस घटना के विषय में हमने पढ़ा वह बी.सी. के नौवी शताब्दी में हुआ था। यहोराम ने 852 से 841 बी.सी. में राज्य किया। युद्ध के साथ-साथ वहाँ पर इस्राएल में स्पष्ट रूप से घरेलू परेशानियाँ और अन्याय होते थे। इसका एक उदाहरण हम देखते हैं कि कैसे विधवा और उसके बेटों को दास बनाने के लिए ले जाने वाले थे (4:1)।

इस स्थिति में, एलीशा बचाने के लिए आते हैं। एक अच्छे चरवाह के रूप में, वह लोगों से प्रेम करते हैं और उनकी चिंता करते हैं। वह कहते हैं, 'मैं कैसे आपकी सहायता कर सकता हूँ?' (व.2)। वह इस विधवा को अत्यधिक कर्ज के भयानक श्राप से और इसके परिणामस्वरूप मिलने वाले दासत्व से छुड़ाते हैं।

  1. करुणा आगे, एलीशा, यह 'परमेश्वर के पवित्र जन' (व.9) शूनेमवासी महिला पर दया करते हैं जिसे कोई संतान उत्पन्न नहीं हो रही थी। उसने जाना कि परमेश्वर उन लोगों का सम्मान करते हैं जो अतिथी सत्कार करते हैं। वह उससे परमेश्वर का वचन कहते हैं और इसके परिणामस्वरूप, वह गर्भवती हुई (वव.15-17)।

  2. प्रार्थना जब उसका बेटा मर जाता है, तब वह परमेश्वर से प्रार्थना करती है (व.33)। वह एक प्रकार के दैवीय तरीके से अपना मुँह उसके मुँह पर रखकर उसे चेतना में लाते हैं और वह फिर जी उठता है और सात बार छींकता है (वव.34-35)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपके लोगों के लिए हमें वही करुणा दीजिए – विशेषरूप से बहुत कम रखने वाले, गरीब और कष्ट उठाने वालों के लिए। हमारी सहायता करिए कि आपके प्रेम और आपकी चंगाई को लायें। हमारी सहायता करिए कि और अधिक यीशु की तरह बन जाऍं, 'अच्छे चरवाहा' (यूहन्ना 10:11), जो अपनी भेड़ों से प्रेम करते हैं और उनके लिए अपना प्राण देने के लिए तैयार हैं।

पिप्पा भी कहते है

2राजाओं 4:32-35

परमेश्वर एक हृदयस्पर्शी, निराश चिल्लाहट का उत्तर देते हैं।

दिन का वचन

प्रेरितों के काम 21:14

“जब उन से न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए; कि प्रभु की इच्छा पूरी हो॥“

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

2016 नोट्स

2016 में काटा गया कथन; डॉ. हेन्री क्लाउड, विश्वसनीयताः वास्तविकता की मॉंगो को पूरा करने का साहस, (हार्परबिजनेस)

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