चमत्कारों का परमेश्वर
परिचय
'बारह साल पहले इस दर्द की शुरुवात हुई. रॉयल मरीन में भर्ती होने के बाद यह बहुत ही बुरा हो गया. घुटने के नीचे की लचीली हड्डीपूरी तरह से खराब हो गई थी. पिछले साल और भी बुरा था जब तक और भी नस फट गई थी और घुटने की हड्डीपैंतालिस डिग्री पर मुड़ गई थी. यह एक लंबी और दर्दनाक यात्रा रही है. मैं बहुत देर तक बैठ नही सकती थी या खड़ी नही रह सकती थी. '
'लंबी कहानी को छोटी करते हैं, मैंने परमेश्वर और अल्फा को आजमाने का निर्णय लिया. मैं अल्फा सप्ताह से वापस आयी और बहुत हिचकिचाने के बाद मैं एच.टी.बी में आने के लिए सहमत हुई. मैंने लोगों की गवाहियाँ सुनी और मैं सोच रही थी, 'हाँ, हाँ, हाँ.' जब किसी ने लचीली हड्डीकी परेशानी के बारे में कहा (ज्ञान का एक वचन), तब मैंने लंबी साँस ली जो पहले कभी नहीं ली थी. मैं प्रार्थना करवाने के लिए तैयार थी. मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मेरे घुटने में चल रहे थे. मैंने इसे जाँचने के लिए अपने घुटने नीचे टिका दिए और उल्लेखनीय रूप से कोई दर्द नहीं था. यह चमत्कारी है.
पिछली रात मैं दौड़ने गई...एक लंबे समय के बाद, यह पहली बार था जब मुझे कोई दर्द नहीं हुआ. परमेश्वर सच में हैं.' ऐसा क्युंसि बेलोट ने किया, अल्फा सप्ताह के बाद, एक ईमेल में, जिसका शीर्षक था, 'नये घुटने!!'
परमेश्वर चमत्कारों को करने वालालेपरमेश्वर हैं
भजन संहिता 78:17-31
17 किन्तु लोग परमेश्वर के विरोध में पाप करते रहे।
वे मरूस्थल तक में, परमपरमेश्वर के विरूद्ध हो गए।
18 फिर उन लोगों ने परमेश्वर को परखने का निश्चय किया।
उन्होंने बस अपनी भूख मिटाने के लिये परमेश्वर से भोजन माँगा।
19 परमेश्वर के विरूद्ध वे बतियाने लगे, वे कहने लगे,
“कया मरुभूमि में परमेश्वर हमें खाने को दे सकता है
20 परमेश्वर ने चट्टान पर चोट की और जल का एक रेला बाहर फूट पड़ा।
निश्चय ही वह हमको कुछ रोटी और माँस दे सकता है।”
21 यहोवा ने सुन लिया जो लोगों ने कहा था।
याकूब से परमेश्वर बहुत ही कुपित था।
इस्राएल से परमेश्वर बहुत ही कुपित था।
22 क्यों? क्योंकि लोगों ने उस पर भरोसा नहीं रखा था,
उन्हें भरोसा नहीं था, कि परमेश्वर उन्हें बचा सकता है।
23-24 किन्तु तब भी परमेश्वर ने उन पर बादल को उघाड़ दिया,
उऩके खाने के लिय़े नीचे मन्ना बरसा दिया।
यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे अम्बर के द्वार खुल जाये
और आकाश के कोठे से बाहर अन्न उँडेला हो।
25 लोगों ने वह स्वर्गदूत का भोजन खाया।
उन लोगों को तृप्त करने के लिये परमेश्वर ने भरपूर भोजन भेजा।
26 फिर परमेश्वर ने पूर्व से तीव्र पवन चलाई
और उन पर बटेरे वर्षा जैसे गिरने लगी।
27 तिमान की दिशा से परमेश्वर की महाशक्ति ने एक आँधी उठायी और नीला आकाश काला हो गया
क्योंकि वहाँ अनगिनत पक्षी छाए थे।
28 वे पक्षी ठीक डेरे के बीच में गिरे थे।
वे पक्षी उन लोगों के डेरों के चारों तरफ गिरे थे।
29 उनके पास खाने को भरपूर हो गया,
किन्तु उनकी भूख ने उनसे पाप करवाये।
30 उन्होंने अपनी भूख पर लगाम नहीं लगायी।
सो उन्होंने उन पक्षियों को बिना ही रक्त निकाले, बटेरो को खा लिया।
31 सो उन लोगों पर परमेश्वर अति कुपीत हुआ और उनमें से बहुतों को मार दिया।
उसने बलशाली युवकों तो मृत्यु का ग्रास बना दिया।
समीक्षा
परमेश्वर के प्रावधान के चमत्कार को ग्रहण करें
भजनसंहिता के लेखक मिस्र से लेकर वाचा की भूमि तक परमेश्वर के लोगों की यात्रा के इतिहास को बताते हैं. परमेश्वर के चमत्कारी प्रावधान के बावजूद, वे 'और अधिक पाप करते रहे, ' विद्रोह किया और 'बिगड़े हुए बच्चों की तरह रोने लगे' (वव.17-19, एम.एस.जी).
फिर भी, परमेश्वर ने उनकी सहायता की. परमेश्वर ने 'उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया' (व.24, एम.एस.जी). यह उस आत्मिक भोजन को बताता है जो यीशु देते हैं (यूहन्ना 6:30-35).
इसी तरह से, 'उसने चट्टान पर मार कर जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमड़ चली' (भजनसंहिता 78:20). एक चमत्कारी तरीके से, परमेश्वर ने चट्टान में से पानी दिया. फिर भी, लोगों ने परमेश्वर पर संदेह किया 'क्योंकि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास नहीं किया या उनके छुटकारे पर भरोसा नहीं किया' (व.22). यद्पि चमत्कार अद्भुत है, वे हमेशा लोगों को परमेश्वर में विश्वास नहीं दिलाते हैं.
चट्टान में से पानी का चमत्कार सच में हुआ, लेकिन यह इससे भी अद्भुत वस्तु को बताता था और प्रत्याश करता था. संत पौलुस लिखते हैं, ' और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे जो उनके साथ – साथ चलती थी, और वह चट्टान मसीह था' (1कुरिंथियो 10:4).
यीशु ने कहा, 'जो कोई प्यासा हो वह मेरे पास आये और पीएँ. जो कोई मुझमें विश्वास करता है, जैसा कि वचन ने कहा है, उसमें से जीवित जल की धाराएँ बहेंगी.' इसके द्वारा उनका अर्थ था आत्मा...' (यूहन्ना 7:37-39).
प्रार्थना
प्रेरितों के काम 17:22-18:8
22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के सामने खड़े होकर कहा, “हे एथेंस के लोगो! मैं देख रहा हूँ तुम हर प्रकार से धार्मिक हो। 23 घूमते फिरते तुम्हारी उपासना की वस्तुओं को देखते हुए मुझे एक ऐसी वेदी भी मिली जिस पर लिखा था, ‘अज्ञात परमेश्वर’ के लिये सो तुम बिना जाने ही जिस की उपासना करते हो, मैं तुम्हें उसी का वचन सुनाता हूँ।
24 “परमेश्वर, जिसने इस जगत की और इस जगत के भीतर जो कुछ है, उसकी रचना की वही धरती और आकाश का प्रभु है। वह हाथों से बनाये मन्दिरों में नहीं रहता। 25 उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं है सो मनुष्य के हाथों से उसकी सेवा नहीं हो सकती। वही सब को जीवन, साँसें और अन्य सभी कुछ दिया करता है। 26 एक ही मनुष्य से उसने मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया ताकि वे समूची धरती पर बस जायें और उसी ने लोगों का समय निश्चित कर दिया और उस स्थान की, जहाँ वे रहें सीमाएँ बाँध दीं।
27 “उस का प्रयोजन यह था कि लोग परमेश्वर को खोजें। हो सकता है वे उसे उस तक पहुँच कर पा लें। इतना होने पर भी हममें से किसी से भी वह दूर नहीं हैं: 28 क्योंकि उसी में हम रहते हैं उसी में हमारी गति है और उसी में है हमारा अस्तित्व। इसी प्रकार स्वयं तुम्हारे ही कुछ लेखकों ने भी कहा है, ‘क्योंकि हम उसके ही बच्चे हैं।’
29 “और क्योंकि हम परमेश्वर की संतान हैं इसलिए हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह दिव्य अस्तित्व सोने या चाँदी या पत्थर की बनी मानव कल्पना या कारीगरी से बनी किसी मूर्ति जैसा है। 30 ऐसे अज्ञान के युग की परमेश्वर ने उपेक्षा कर दी है और अब हर कहीं के मनुष्यों को वह मन फिराव ने का आदेश दे रहा है। 31 उसने एक दिन निश्चित किया है जब वह अपने नियुक्त किये गये एक पुरुष के द्वारा न्याय के साथ जगत का निर्णय करेगा। मरे हुओं में से उसे जिलाकर उसने हर किसी को इस बात का प्रमाण दिया है।”
32 जब उन्होंने मरे हुओं में से जी उठने की बात सुनी तो उनमें से कुछ तो उसकी हँसी उड़ाने लगे किन्तु कुछ ने कहा, “हम इस विषय पर तेरा प्रवचन फिर कभी सुनेंगे।” 33 तब पौलुस उन्हें छोड़ कर चल दिया। 34 कुछ लोगों ने विश्वास ग्रहण कर लिया और उसके साथ हो लिये। इनमें अरियुपगुस का सदस्य दियुनुसियुस और दमरिस नामक एक महिला तथा उनके साथ के और लोग भी थे।
पौलुस कुरिन्थियुस में
18इसके बाद पौलुस एथेंस छोड़ कर कुरिन्थियुस चला गया। 2 वहाँ वह पुन्तुस के रहने वाले अक्विला नाम के एक यहूदी से मिला। जो हाल में ही अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इटली से आया था। उन्होंने इटली इसलिए छोड़ी थी कि क्लौदियुस ने सभी यहूदियों को रोम से निकल जाने का आदेश दिया था। सो पौलुस उनसे मिलने गया। 3 और क्योंकि उनका काम धन्धा एक ही था सो वह उन ही के साथ ठहरा और काम करने लगा। व्यवसाय से वे तम्बू बनाने वाले थे।
4 हर सब्त के दिन वह यहूदी आराधनालयों में तर्क-वितर्क करके यहूदियों और यूनानियों को समझाने बुझाने का जतन करता। 5 जब वे मकिदुनिया से सिलास और तिमुथियुस आये तब पौलुस ने अपना सारा समय वचन के प्रचार में लगा रखा था। वह यहूदियों को यह प्रमाणित किया करता था कि यीशु ही मसीह है। 6 सो जब उन्होंने उसका विरोध किया और उससे भला बुरा कहा तो उसने उनके विरोध में अपने कपड़े झाड़ते हुए उनसे कहा, “तुम्हारा खून तुम्हारे ही सिर पड़े। उसका मुझ से कोई सरोकार नहीं है। अब से आगे मैं ग़ैर यहूदियों के पास चला जाऊँगा।”
7 इस तरह पौलुस वहाँ से चल पड़ा और तीतुस यूसतुस नाम के एक व्यक्ति के घर गया। वह परमेश्वर का उपासक था। उसका घर यहूदी आराधनालय से लगा हुआ था। 8 क्रिसपुस ने, जो यहूदी आराधनालय का प्रधान था, अपने समूचे घराने के साथ प्रभु में विश्वास ग्रहण किया। साथ ही उन बहुत से कुरिन्थियों ने जिन्होंने पौलुस का प्रवचन सुना था, विश्वास ग्रहण करके बपतिस्मा लिया।
समीक्षा
यीशु के पुनरुत्थान के चमत्कार में विश्वास करें
संदेश हैः यीशु. जब एतेंस में पौलुस लोगों से उनके स्तर में बाते करना शुरु करते हैं. वह पुराने नियम से शुरुवात नहीं करते हैं, जैसा कि उन्होंने यहूदियों के साथ किया – यह बताते हुए कि यीशु मसीहा हैं. इसके बजाय, वह एक अज्ञात परमेश्वर के प्रति उनकी आराधना से शुरुवात करते हैं (17:23अ), और इसका इस्तेमाल उन्हें यीशु समझाने के लिए करते हैं.
पौलुस का उपदेश उल्लेखनीय रूप से सकारात्मक था. उनके द्वारा मूर्तिपूजा के लिए उन पर दोष लगाने के बजाय, वह कहते हैं, ' इसलिये जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ' (व.23ब). वह परमेश्वर के विषय में तीन चीजें कहते हैः वह निर्माता है (व.24), वह स्वयं-सक्षम है (व.25) और हम सभी को उनकी आवश्यकता है (वव.27-28).
पौलुस आगे उनके एक कवि के अच्छे माने हुए...को दोहराते हैः ' जैसा तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है' (व.28, एम.एस.जी.) मसीहों के पास सत्य पर एकाधिकार नहीं है. परमेश्वर ने सृष्टि में अपने आपको प्रकट किया है और लौकिक स्त्रोतों में हमें उल्लेखनीय अंतर्ज्ञान मिलते हैं.
इतिहास में सबसे महानतम और सबसे महत्वपूर्ण चमत्कार की घोषणा के साथ उनकी बातचीत पराकाष्ठा पर पहुँचती हैः यीशु का पुनरुत्थान (वव.30-31). पौलुस पुनरुत्थान के विषय में ऐतिहासिक प्रमाण रखने का दाँवा करता है. दमस्कुस के रास्ते पर वह जी उठे प्रभु यीशु से मिला था.
महत्व बड़े हैं. मृत्यु यीशु के लिए अंत नहीं था और यह आपके लिए और मेरे लिए अंत नहीं होगा. आप भी फिर से जिलाये जाएँगे. यहाँ पर, पौलुस कहते हैं कि पुनरुत्थान प्रमाण है कि परमेश्वर ने एक दिन तय किया है जब वह विश्व का न्याय करेंगे, उन मनुष्यों के द्वारा जिन्हें उन्होंने नियुक्त किया हैः पौलुस ने लोगों को इस संदेश को उत्तर देने का अवसर दिया.
यीशु और मरे हुओं के जी उठने के विषय में बातचीत को सुनने से लोगों की जो प्रतिक्रिया होती थी, वही प्रतिक्रिया आज हम अनुभव करते हैं.
- कुछ लोग हँसी उड़ाने लगे
अ.' बात सुनकर कुछ तो ठट्ठा करने लगे, और कुछ ने कहा, 'यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे' (व.32अ, एम.एस.जी). आश्चर्य मत करिये यदि कुछ लोगों से आपको यह प्रतिक्रिया मिलती है.
- कुछ लोग रूचि रखते थे
अ.दूसरों ने कहा, ' यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे' (व.32ब, एम.एस.जी). आज बहुत से लोग, जैसा कि वे पहले थे, प्रमाणिक रूप से रुचि लेते हैं लेकिन और अधिक सुनने और मामले पर सोचने के लिए उन्हें समय की आवश्यकता है. अल्फा जैसा उद्देश्य लोगों को यह करने का एक अवसर प्रदान करता है.
- कुछ लोगों ने विश्वास किया
अ.' परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया' (व.34, एम.एस.जी.). उन्होंने तुरंत विश्वास किया. यह असामान्य है लेकिन अद्भुत है जब लोग यीशु को पहली बार ही स्वीकार कर लेते हैं, जब वे उनके विषय में सुनते हैं.
जब पौलुस कुरिंथ में गए, संभवत: उन्होंने यीशु और पुनरुत्थान के इसी संदेश का प्रचार किया. उन्होंने ' वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद – विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था' (18:4). वह उनसे नहीं कह रहा था कि अंधा विश्वास लगाओ. आपका विश्वास विवेकहीन नहीं है. जीवन के तथ्य, यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान विश्वास करने के लिए कारण प्रदान करते हैं. प्रमाण के आधार पर लोगों को आश्वस्त करना संभव बात है. यदि यीशु चमत्कारी रूप से मृत्यु में से जीवित हुए, यह प्रमाण है कि यीशु मसीह हैं (व.5).
एतेंस की तरह, विभिन्न उत्तर मिले. कुछ लोग निंदा कर रहे थे (व.6). लेकिन कुछ ने विश्वास किया - तब आराधनालय के सरदार क्रिसपुस ने अपने सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्थवासी ने सुनकर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया (व.8).
प्रार्थना
1 राजा 18:16-19:21
16 इसलिये ओबद्याह राजा अहाब के पास गया। उसने बताया कि एलिय्याह वहाँ है। राजा अहाब एलिय्याह से मिलने गया।
17 जब अहाब ने एलिय्याह को देखा तो उसने पूछा, “क्या एलिय्याह तुम्ही हो तुम्हीं वह व्यक्ति हो जो इस्राएल पर विपत्ति लाते हो।”
18 एलिय्याह ने उत्तर दिया, “मैंने इस्राएल पर विपत्ति नहीं ढाई। तुमने और तुम्हारे पिता के परिवार ने यह सारी विपत्ति ढाई है। तुमने विपत्ति लानी तब आरम्भ की जब तुमने यहोवा के आदेशों का पालन करना बन्द कर दिया और असत्य देवताओं का अनुसरण आरम्भ किया। 19 अब सारे इस्राएलियों को कर्म्मेल पर्वत पर मुझसे मिलने को कहो। उस स्थान पर बाल के चार सौ पचास नबियों को भी लाओ और असत्य देवी अशेरा के चार सौ नबियों को लाओ रानी ईज़ेबेल उन नबियों का समर्थन करती है।”
20 अत: अहाब ने सभी इस्राएलियों और उन नबियों को कर्म्मेल पर्वत पर बुलाया। 21 एलिय्याह सभी लोगों के पास आया। उसने कहा, “आप लोग कब निर्णय करेंगे कि आपको किसका अनुसरण करना है यदि यहोवा सच्चा परमेश्वर है तो आप लोगों को उसका अनुयायी होना चाहिये। किन्तु यदि बाल सत्य परमेश्वर है तो तुम्हें उसका अनुयायी होना चाहिये।”
लोगों ने कुछ भी नहीं कहा। 22 अत: एलिय्याह ने कहा, “मैं यहाँ यहोवा का एकमात्र नबी हूँ। मैं अकेला हूँ। किन्तु यहाँ बाल के चार सौ पचास नबी हैं। 23 इसलिये दो बैल लाओ। बाल के नबी को एक बैल लेने दो। उन्हें उसे मारने दो और उसके टुकड़े करने दो और तब उन्हें, माँस को लकड़ी पर रखने दो। किन्तु वे आग लगाना आरम्भ न करें। तब मैं वही काम दूसरे बैल को लेकर करूँगा और मैं आग लगाना आरम्भ नहीं करूँगा। 24 बाल के नबी! बाल से प्रार्थना करेंगे और मैं यहोवा से प्रार्थना करुँगा। जो ईश्वर प्रार्थना को स्वीकार करे और अपनी लकड़ी को जलाना आरम्भ कर दे, वही सच्चा परमेश्वर है।”
सभी लोगों ने स्वीकार किया कि यह उचित विचार है।
25 तब एलिय्याह ने बाल के नबियों से कहा, “तुम बड़ी संख्या में हो। अत: तुम लोग पहल करो। एक बैल को चुनो और उसे तैयार करो। किन्तु आग लगाना आरम्भ न करो।”
26 अत: नबियों ने उस बैल को लिया जो उन्हें दिया गया। उन्होंने उसे तैयार किया। उन्होंने दोपहर तक बाल से प्रार्थना की। उन्होंने प्रार्थना की, “बाल, कृपया हमें उत्तर दे!” किन्तु कोई आवाज नहीं आई। किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। नबी उस वेदी के चारों ओर नाचते रहे जिसे उन्होंने बनाया था। किन्तु आग फिर भी नहीं लगी।
27 दोपहर को एलिय्याह ने उनका मजाक उड़ाना आरम्भ किया। एलिय्याह ने कहा, “यदि बाल सचमुच देवता है तो कदाचित् तुम्हें और अधिक जोर से प्रार्थना करनी चाहिये कदाचित् वह सोच रहा हो या कदाचित् वह बहुत व्यस्त हो, या कदाचित वह किसी यात्रा पर निकल गया हो। वह सोता रह सकता है। कदाचित् तुम लोग और अधिक जोर से प्रार्थना करो और जगाओ!” 28 उन्होंने और जोर से प्रार्थना की। उन्होंने अपने को तलवार और भालों से काटा छेदा। (यह उनकी पूजा—पद्धति थी।) उन्होंने अपने को इतना काटा कि उनके ऊपर खून बहने लगा। 29 तीसरा पहर बीता किन्तु तब तक आग नहीं लगी। नबी उन्मत्त रहे जब तक सन्ध्या की बलि—भेंट का समय नहीं आ पहुँचा। किन्तु तब तक भी बाल ने कोई उत्तर नही दिया। कोई अवाज नहीं आई। कोई नहीं सुन रहा था!
30 तब एलिय्याह ने सभी लोगों से कहा, “अब मेरे पास आओ।” अत: सभी लोग एलिय्याह के चारों ओर इकट्ठे हो गए। यहोवा की वेदी उखाड़ दी गई थी। अत: एलिय्याह ने इसे जमाया। 31 एलिय्याह ने बारह पत्थर प्राप्त किए। हर एक बारह परिवार समूहों के लिये एक पत्थर था। इन बारह परिवारों के नाम याकूब के बारह पुत्रों के नाम पर थे। याकूब वह व्यक्ति था जिसे यहोवा ने इस्राएल नाम दिया था। 32 एलिय्याह ने उन पत्थरों का उपयोग यहोवा को सम्मान देने के लिये वेदी के निर्माण में किया। एलिय्याह ने वेदी के चारों ओर एक छोटी खाई खोदी। यह इतनी चौड़ी और इतनी गहरी थी कि इसमें लगभग सात गैलन पानी आ सके। 33 तब एलिय्याह ने वेदी पर लकड़ियाँ रखीं। उसने बैल को टुकड़ों में काटा। उसने टुकड़ों को लकड़ियों पर रखा। 34 तब एलिय्याह ने कहा, “चार घड़ों को पानी से भरो। पानी को माँस के टुकड़ों और लकड़ियों पर डालो।” तब एलिय्याह ने कहा, “यही फिर करो।” तब उसने कहा, “इसे तीसरी बार करो।” 35 पानी वेदी से बाहर बहा और उससे खाई भर गई।
36 यह तीसरे पहर की बलि—भेंट का समय था। अत: एलिय्याह नबी वेदी के पास गया और प्रार्थना की “हे यहोवा इब्राहीम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर! मैं तुझसे याचना करता हूँ कि तू प्रमाणित कर कि तू इस्राएल का परमेश्वर है और प्रमाणित कर कि मैं तेरा सेवक हूँ। इन लोगों के सामने यह प्रकट कर कि तूने यह सब करने का मुझे आदेश दिया है। 37 योहवा मेरी प्रार्थना का उत्तर दे। इन लोगों के सामने यह प्रकट कर कि हे यहोवा तू वास्तव में परमेश्वर है। तब लोग समझेंगे कि तू उन्हें अपने पास ला रहा है।”
38 अत: यहोवा ने नीचे आग भेजी। आग ने बलि, लकड़ी, पत्थरों और वेदी के चारों ओर की भूमि को जला दिया। आग ने खाई का सारा पानी भी सूखा दिया। 39 सभी लोगों ने यह होते देखा। लोग भूमि पर प्रणाम कहने झुके और करने लगे, “यहोवा परमेश्वर है! यहोवा परमेश्वर है!”
40 तब एलिय्याह ने कहा, “बाल के नबियों को पकड़ लो! उनमें से किसी को बच निकलने न दो!” अत: लोगों ने सभी नबियों को पकड़ा। तब एलिय्याह उन सभी को किशोन नाले तक ले गया। उस स्थान पर उसने सभी नबियों को मार डाला।
वर्षा पुन: होती है
41 तब एलिय्याह ने राजा अहाब से कहा, “अब जाओ, खाओ, और पिओ। एक घनघोर वर्षा आ रही है।” 42 अत: राजा अहाब भोजन करने गया। उसी समय एलिय्याह कर्म्मेल पर्वत की चोटी पर चढ़ा। पर्वत की चोटी पर एलिय्याह प्रणाम करने झुका। उसने अपने सिर को अपने घुटनों के बीच में रखा। 43 तब एलिय्याह ने अपने सेवक से कहा, “समुद्र की ओर देखो।”
सेवक उस स्थान तक गया जहाँ से वह समुद्र को देख सके। तब सेवक लौट कर आया और उसने कहा, “मैं ने कुछ नहीं देखा।” एलिय्याह ने उसे पुन: जाने और देखने को कहा। यह सात बार हुआ। 44 सातवीं बार सेवक लौट कर आया और उसने कहा, “मैंने एक छोटा बादल मनुष्य की मुट्ठी के बराबर देखा है। बादल समुद्र से आ रहा था।”
एलिय्याह ने सेवक से कहा, “राजा अहाब के पास जाओ और उससे कहो कि वह अपना रथ तैयार कर ले और अब घर वापस जाये। यदि वह अभी नहीं जायेगा तो वर्षा उसे रोक लेगी।”
45 थोड़े समय के बाद आकाश काले मेघों से ढक गया। तेज हवायें चलने लगीं और घनघोर वर्षा होने लगी। अहाब अपने रथ में बैठा और यिज्रेल को वापस यात्रा करनी आरम्भ की। 46 एलिय्याह के अन्दर यहोवा की शक्ति आई। एलिय्याह ने अपने वस्त्रों को अपनी चारों ओर कसा, जिससे वह दौड़ सके। तब एलिय्याह यिज्रेल तक के पूरे मार्ग पर राजा अहाब से आगे दौड़ता रहा।
सीनै पर्वत पर एलिय्याह
19राजा अहाब ने ईज़ेबेल को वे सभी बातें बताईं जो एलिय्याह ने कीं। अहाब ने उसे बताया कि एलिय्याह ने कैसे सभी नबियों को एक ही तलवार से मौत के घाट उतारा। 2 इसलिये ईज़ेबेल ने एलियाह के पास एक दूत भेजा। ईज़ेबेल ने कहा, “मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस समय से पहले कल मैं तुमको वैसे ही मारूँगी जैसे तुमने नबियों को मारा। यदि मैं सफल नहीं होती तो देवता मुझे मार डालें।”
3 जब एलिय्याह ने यह सुना तो वह डर गया। अत: वह अपनी जान बचाने के लिये भाग गया। वह अपने साथ अपने सेवक को ले गया। वे बेर्शेबा पहुँचे जो यहूदा में है। एलिय्याह ने अपने सेवक को बेर्शेबा में छोड़ा। 4 तब एलिय्याह पूरे दिन मरूभूमि में चला। एलिय्याह एक झाड़ी के नीचे बैठा। उसने मृत्यु की याचना की। एलिय्याह ने कहा, “यहोवा यह मेरे लिये बहुत है मुझे मरने दे। मैं अपने पूर्वजों से अधिक अच्छा नहीं हूँ।”
5 तब एलिय्याह पेड़ के नीचे लेट गया और सो गया। एक स्वर्गदूत एलिय्याह के पास आया और उसने उसका स्पर्श किया। स्वर्गदूत ने कहा, “उठो, खाओ!” 6 एलिय्याह ने देखा कि उसके बहुत निकट कोयले पर पका एक पुआ और पानी भरा घड़ा है। एलिय्याह ने खाया पीया। तब वह फिर सो गया।
7 बाद में, यहोवा का स्वर्गदूत उसके पास फिर आया। स्वर्गदूत ने कहा, “उठो खाओ! यदि तुम ऐसा नहीं करते तो तुम इतने शक्तिशाली नहीं होगे, जिससे तुम लम्बी यात्रा कर सको।” 8 अत: एलिय्याह उठा। उसने खाया, पिया। भोजन ने उसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि वह चालीस दिन और रात यात्रा कर सके। वह होरेब पर्वत तक गया जो परमेश्वर का पर्वत है। 9 वहाँ एलिय्याह एक गुफा में घुसा और सारी रात ठहरा।
तब यहोवा ने एलिय्याह से बातें कीं। यहोवा ने कहा, “एलिय्याह, तुम यहाँ क्यों आए हो”
10 एलिय्याह ने उत्तर दिया, “यहोवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने तेरी सेवा सदैव की है। मैंने तेरी सेवा सर्वोत्तम रुप में सदैव यथासम्भव की है। किन्तु इस्राएल के लोगों ने तेरे साथ की गई वाचा तोड़ी है। उन्होंने तेरी वेदियों को नष्ट किया है। उन्होंने तेरे नबियों को मार डाला है। मैं एकमात्र ऐसा नबी हूँ जो जीवित बचा हूँ और अब वे मुझे मार डालना चाहते हैं!”
11 तब यहोवा ने एलिय्याह से कहा, “जाओ, मेरे सामने पर्वत पर खड़े होओ। मैं तुम्हारे बगल से निकलूँगा।” तब एक प्रचंड आँधी चली। आँधी ने पर्वतों को तोड़ गिराया। इसने यहोवा के सामने विशाल चट्टानों को तोड़ डाला। किन्तु वह आँधी यहोवा नहीं था। उस आँधी के बाद भूकम्प आया। किन्तु वह भूकम्प यहोवा नहीं था। 12 भूकम्प के बाद वहाँ अग्नि थी। किन्तु वह आग यहोवा नहीं थी। आग के बाद वहाँ एक शान्त और मद्धिम स्वर सुनाई पड़ा।
13 जब एलिय्याह ने वह स्वर सुना तो उसने अपने अंगरखे से अपना मुहँ ढक लिया। तब वह गया और गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ। तब एक वाणी ने उससे कहा, “एलिय्याह, यहाँ तुम क्यों हो”
14 एलिय्याह ने उत्तर दिया, “यहोवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने सर्वोत्म यथासम्भव तेरी सेवा की है। किन्तु इस्राएल के लोगों ने तेरे साथ की गई अपनी वाचा तोड़ी है। उन्होंने तेरी वेदियाँ नष्ट कीं। उन्होंने तेरे नबियों को मारा। मैं एकमात्र ऐसा नबी हूँ जो अभी तक जीवित है और अब वे मुझे मार डालने का प्रयत्न कर रहे हैं।”
15 यहोवा ने कहा, “दमिश्क के चारों ओर की मरुभूमि को पहुँचाने वाली सड़क से वापस लौटो। दमिश्क में जाओ और हजाएल का अभिषेक अराम के राजा के रुप में करो। 16 तब निमशी के पुत्र येहू का अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में करो। उसके बाद आबेल महोला के शापात के पुत्र एलीशा का अभिषेक करो। वह तुम्हारे स्थान पर नबी बनेगा। 17 हजाएल अनेक बुरे लोगों को मार डालेगा। येहू किसी को भी मार डालेगा जो हजाएल की तलवार से बच निकलता है। 18 एलिय्याह! इस्राएल में तुम ही एक मात्र विश्वासपात्र व्यक्ति नहीं हो। वे पुरुष बहुत से लोगों को मार डालेंगे, किन्तु उसके बाद भी वहाँ इस्राएल में सात हजार लोग ऐसे होंगे जिन्होंने बाल को कभी प्रणाम नहीं किया। मैं उन सात हजार लोगों को जीवित रहने दूँगा, क्योंकि उन लोगों में से किसी ने कभी बाल की देवमूर्ति को चूमा तक नहीं।”
एलीशा एक नबी बनता है
19 इसलिये एलिय्याह ने उस स्थान को छोड़ा और शापात के पुत्र एलीशा की खोज में निकला। एलीशा बारह एकड़ भूमि में हल चलाता था। एलीशा आखिरी एकड़ को जोत रहा था जब एलिय्याह वहाँ आया। एलिय्याह एलीशा के पास गया। तब एलिय्याह ने अपना अंगरखा एलीशा को पहना दिया। 20 एलीशा ने तुरन्त अपनी बैलों को छोड़ा और एलिय्याह के पीछे दौड़ गया। एलिशा ने कहा, “मुझे अपनी माँ को चूमने दो और पिता से विदा लेने दो। फिर मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”
एलिय्याह ने उत्तर दिया, “यह अच्छा है। जाओ, मैं तुम्हें रोकूँगा नहीं।”
21 तब एलीशा ने अपने परिवार के साथ विशेष भोजन किया। एलीशा गया और अपने बैलों को मार डाला। उसने हल की लकड़ी का उपयोग आग जलाने के लिये किया। तब उसने माँस को पकाया और लोगों में बाँट दिया। लोगों ने माँस खाया। तब एलीशा गया और उसने एलिय्याह का अनुसरण किया। एलीशा एलिय्याह का सहायक बना।
समीक्षा
परमेश्वर से आग के चमत्कार का अनुभव करें
एलिय्याह की मानवीय एजेंसी के द्वारा परमेश्वर ने एक उल्लेखनीय चमत्कार किया. यह वर्णन घटना के दैवीय स्वभाव को बताता है.
हम सभी को निर्णय लेने की आवश्यकता है हम कैसे जीएँगे और हम किसके पीछे जाने वाले हैं. एलिय्याह कहते हैं, 'तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे, यदि यहोवा परमेश्वर हो, तो उसके पीछे हो लो; और यदि बाल हो, तो उसके पीछे हो लो' (18:21, एम.एस.जी).
वह उनके सामने एक परीक्षा रखते हैं और कहते हैं, 'जो परमेश्वर आग के द्वारा उत्तर देगे – वही परमेश्वर हैं' (व.24).
मनुष्य के हाथों द्वारा ईश्वरों की सेवा करना व्यर्थ है. वे चाहे जितना जोर से चिल्लाये, 'परंतु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया' (व.29). लेकिन जब एलिय्याह ने प्रार्थना की तब उसे चिल्लाने की आवश्यकता नहीं पड़ी (व.36). क्योंकि वह जीवित परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे थे.
हर बार जब आप प्रार्थना करते हैं, तब आप एलिय्याह के आत्मविश्वास को रख सकते हैं - यह जानते हुए कि आप भी जीवित परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, जो आपको सुनते हैं और आपके पक्ष में कार्य करेंगे.
हर बार जब हम प्रार्थना करते हैं, 'पवित्र आत्मा, आ', हम परमेश्वर से पिंतेकुस्त के चमत्कार को दोहराने के लिए कह रहे हैं, जब परमेश्वर की आग सभी लोगों पर आयी. हमें चिल्लाने या भावना को उत्साहित करने की आवश्यकता नहीं है – हमें केवल माँगने की आवश्यकता है.
एलिय्याह की प्रार्थना के उत्तर में, परमेश्वर की आग बरसी (व.38). जब सभी लोगों ने इसे देखा तब उन्होंने दंडवत किया और चिल्लाने लगे, 'प्रभु – वह परमेश्वर हैं! प्रभु – वह परमेश्वर हैं!' (व.39).
यह एक अद्भुत चमत्कार था, लेकिन एलिय्याह हमसे अलग नहीं है – वह केवल मनुष्य थे (याकूब 5:17 देखे). इस आत्मिक ऊँचाई के बाद, उन्होंने एक भावनात्मक कमी का अनुभव किया. वह 'थक गये' (1राजा 19:5, एम.एस.जी). वह डर गए, निराश हो गए, उदास हो गए और लगभग आत्महत्या करने वाले थेः 'यह सब बस हुआ परमेश्वर! मेरा जीवन ले लो' (व.4, एम.एस.जी). जब हम बहुत थक जाते हैं, तब हम आसानी से अपने आपको अपमानित, गलत समझे गए और बुरा बर्ताव किए गए, ऐसा महसूस करते हैं. एक अच्छी नींद और थोड़े भोजन के बाद, उन्हें फिर से ऊर्जा मिलती है.
फिर भी, उन्होंने महसूस किया कि केवल वही अकेले बचे हैं (वव.10ब, 14ब) और हर कोई उन्हें पकड़ने के लिए बाहर खड़ा है.
वास्तव में यह सच नहीं था, क्योंकि 'इस्राएल में सात हजार ऐसे लोग थे –जिनके घुटने बाल के सामने नहीं झुके थे' (व.18). लेकिन अपने काम के स्थान पर, अपने परिवार में या अपने पड़ोस में अकेला और एकांत महसूस करना आसान बात है. जब आप एक साथ आते हैं (उदाहरण के लिए रविवार को) आपको याद दिलाया जाता है कि आप अकेले नहीं हैं.
पवित्र आत्मा के तरीके सज्जन हैं. परमेश्वर ने एलिय्याह से बात की. वह एक 'महान और शक्तिशाली हवा में नहीं थे', नाही 'भूकंप में थे, ' नाही एक 'आग' में थे लेकिन एक 'धीमी आवाज' में थे (वव.11-12). हमें अक्सर शोर से दूर होने और एक स्थान खोजने और शांत समय खोजने की आवश्यकता है, ताकि अपनी आत्मा की गहराई से परमेश्वर की धीमी आवाज को सुन पायें.
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
1राजा 19:2
यहाँ तक कि परमेश्वर के महान लोग निराशा के समय से गुजरते हैं. उन सभी झूठे भविष्यवक्ताओं की हत्या के बाद, क्या आपको लगता है कि एलिय्याह किसी भी चीज को ले सकते थे. आत्मिक और भौतिक थकावट के बाद, हमें फिर से भरने की आवश्यकता है. सोने, भोजन, व्यायाम (यद्पि चालीस दिन और चालीस रात चलना बहुत ज्यादा है) के द्वारा एलिय्याह को शक्ति मिली और एक सहायता को लेना (जो अकेलापन उन्होंने महसूस किया था, उससे निपटते हुए). सबसे महत्वपूर्ण रूप से, वह फिर से परमेश्वर की आवाज को उनसे बातें करते हुए सुनते हैं.
दिन का वचन
प्रेरितों के कार्य – 17:27
" कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोल कर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं!"
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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
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