दिन 173

मसीही जीवन सरल नहीं है

बुद्धि भजन संहिता 77:1-9
नए करार प्रेरितों के काम 15:1-21
जूना करार 1 राजा 9:10-11:13

परिचय

सुसमाचार का प्रचार करने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी पत्नी उनके पास चार बच्चें छोड़कर, मर गई, जिनमें से एक अंधा था. फिर भी उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करना छोड़ना अस्वीकार कर दिया.

बंदीगृह की कोठरी में उन्होंने अपने सबसे महानतम कार्य को लिखा. यह आत्मिक उत्साह का एक स्त्रोत रहा है और अनगिनत पाठकों के लिए सहायता है. 200 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है, 1678 में पहली बार प्रकाशित होने के बाद यह कभी भी प्रकाशन से बाहर नहीं गई है.

जॉन बुनयान के द्वारा लिखित 'तीर्थयात्री की उन्नति' एक प्रतीक कथा है. यह एक व्यक्ति की कहानी बताती है जिसका नाम 'क्रिश्चन' है, जो अपने गाँव से स्वर्गीय शहर में यात्रा करता है. रास्ते में वह बहुत सी कठिनाईयों, चुनौतियों और अवरोधों का सामना करते हैं, फिर भी वह अंत तक वफादार बने रहते हैं.

एक मसीह जीवन सरल नहीं है. आप रास्ते में बहुत सी कठिनाईयों का सामना करेंगे. लेकिन इससे आपको रास्ते से हटाना नहीं चाहिए. वास्वत में, जैसे ही आप यीशु के नजदीक बने रहकर कठिन समयों से गुजरते हैं, वैसे ही आप और अधिक मजबूत होंगे, बुद्धिमान बनेंगे और अधिक मसीह- के जैसा बनेंगे.

बुद्धि

भजन संहिता 77:1-9

यदूतून राग पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक पद।

77मैं सहायता पाने के लिये परमेश्वर को पुकारूँगा।
 हे परमेश्वर, मैं तेरी विनती करता हूँ, तू मेरी सुन ले!
2 हे मेरे स्वामी, मुझ पर जब दु:ख पड़ता है, मैं तेरी शरण में आता हूँ।
 मैं सारी रात तुझ तक पहुँचने में जुझा हूँ।
 मेरा मन चैन पाने को नहीं माना।
3 मैं परमेश्वर का मनन करता हूँ, और मैं जतन करता रहता हूँ कि मैं उससे बात करूँ और बता दूँ कि मुझे कैसा लग रहा है।
 किन्तु हाय मैं ऐसा नहीं कर पाता।
4 तू मुझे सोने नहीं देगा।
 मैंने जतन किया है कि मैं कुछ कह डालूँ, किन्तु मैं बहुत घबराया था।
5 मैं अतीत की बातें सोचते रहा।
 बहुत दिनों पहले जो बातें घटित हुई थी उनके विषय में मैं सोचता ही रहा।
6 रात में, मैं निज गीतों के विषय़ में सोचता हूँ।
 मैं अपने आप से बातें करता हूँ, और मैं समझने का यत्न करता हूँ।
7 मुझको यह हैरानी है, “क्या हमारे स्वमी ने हमे सदा के लिये त्यागा है
 क्या वह हमको फिर नहीं चाहेगा
8 क्या परमेश्वर का प्रेम सदा को जाता रहा
 क्या वह हमसे फिर कभी बात करेगा
9 क्या परमेश्वर भूल गया है कि दया क्या होती है
 क्या उसकी करूणा क्रोध में बदल गयी है”

समीक्षा

उदासीः आपको कैसे उत्तर देना चाहिए?

मेरा मित्र लुईगी, एक आशीर्वाद देने वाला भिक्षु है. वह अक्सर अपनी प्रार्थनाओं की शुरुवात, 'शिकायत करने के एक समय' से करते हैं! इस भजन की शुरुवात होती है, भजनसंहिता के लेखक के द्वारा अपनी शिकायतों को परमेश्वर को बताने से.

परमेश्वर के साथ एक संबंध होना, हमें 'उदासी' से नहीं बचाता है (व.2). भजनसंहिता के लेखक, 'सारी रात जाग रहे थे – नींद की एक झपकी भी नहीं' (व.4अ, एम.एस.जी). वह ऐसा महसूस करते हैं जैसे कि परमेश्वर ने उन्हें नकार दिया है और वह कभी भी दोबारा परमेश्वर की कृपादृष्टि का अनुभव नहीं करेंगे (वव.7-9).

भजनसंहिता 77 के आधे भाग में से, हम देखना शुरु करते हैं कि उदासी के लिए कैसे उत्तर देना है. आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि:

  1. परमेश्वर आपकी चिल्लाहटों को सुनते हैं

अ.परमेश्वर को बताईये कि आप कैसा महसूस करते हैः 'मैं परमेश्वर की दोहाई चिल्ला चिल्लाकर दूँगा, मैं परमेश्वर की दोहाई दूँगा, और वह मेरी ओर कान लगाएंगे. संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा' (वव.1-2अ, एम.एस.जी).

  1. परमेश्वर को आपकी ईमानदारी पसंद है

अ.ईमानदार प्रश्न पूछने में एक औपचारिक प्रभाव होता है. परमेश्वर के लोग अपने संदेह कठिनाईयों और उदासी को परमेश्वर के पास लाते हैं और उनसे प्रश्न पूछते हैं. यहाँ तक कि यीशु ने क्रूस पर एक प्रश्न पूछा, भजनसंहिता 22:1 को दोहराते हुएः'मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों त्याग दिया?' (मत्ती 27:46).

परमेश्वर चाहते हैं कि आप उनके साथ वास्तविक बने. वह नहीं चाहते हैं कि आप ढ़ोंग करें कि सबकुछ ठीक है. वह आपके हृदय की चिल्लाहट को सुनना चाहते हैं. यह आपको उनके करीब लाता है, महान उदासी के समयों के बीच में भी.

प्रार्थना

धन्यवाद परमेश्वर क्योंकि आप मेरे हृदय की चिल्लाहट को सुनते हैं. आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे नकारते नहीं है, और आपके वायदे असफल नहीं होते हैं.
नए करार

प्रेरितों के काम 15:1-21

यरूशलेम में एक सभा

15फिर कुछ लोग यहूदिया से आये और भाइयों को शिक्षा देने लगे: “यदि मूसा की विधि के अनुसार तुम्हारा ख़तना नहीं हुआ है तो तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता।” 2 पौलुस और बरनाबास उनसे सहमत नहीं थे, सो उनमें एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। सो पौलुस बरनाबास तथा उनके कुछ और साथियों को इस समस्या के समाधान के लिये प्रेरितों और मुखियाओं के पास यरूशलेम भेजने का निश्चय किया गया।

3 वे कलीसिया के द्वारा भेजे जाकर फीनीके और सामरिया होते हुए सभी भाइयों को अधर्मियों के हृदय परिवर्तन का विस्तार के साथ समाचार सुनाकर उन्हें हर्षित कर रहे थे। 4 फिर जब वे यरूशलेम पहुँचे तो कलीसिया ने, प्रेरितों ने और बुजुर्गों ने उनका स्वागत सत्कार किया। और उन्होंने उनके साथ परमेश्वर ने जो कुछ किया था, वह सब कुछ उन्हें कह सुनाया। 5 इस पर फरीसियों के दल के कुछ विश्वासी खड़े हुए और बोले, “उनका ख़तना अवश्य किया जाना चाहिये और उन्हें आदेश दिया जाना चाहिए कि वे मूसा की व्यवस्था के विधान का पालन करें।”

6 सो इस प्रश्न पर विचार करने के लिये प्रेरित तथा बुजुर्ग लोग परस्पर एकत्र हुए। 7 एक लम्बे चौड़े वाद-विवाद के बाद पतरस खड़ा हुआ और उनसे बोला, “भाइयो! तुम जानते हो कि बहुत दिनों पहले तुममें से प्रभु ने एक चुनाव किया था कि मेरे द्वारा अधर्मी लोग सुसमाचार का संदेश सुनेंगे और विश्वास करेंगे। 8 और अन्तर्यामी परमेश्वर ने हमारे ही समान उन्हें भी पवित्र आत्मा का वरदान देकर, उनके सम्बन्ध में अपना समर्थन दर्शाया था। 9 विश्वास के द्वारा उनके हृदयों को पवित्र करके हमारे और उनके बीच उसने कोई भेद भाव नहीं किया। 10 सो अब शिष्यों की गर्दन पर एक ऐसा जुआ लाद कर जिसे न हम उठा सकते हैं और न हमारे पूर्वज, तुम परमेश्वर को झमेले में क्यों डालते हो? 11 किन्तु हमारा तो यह विश्वास है कि प्रभु यीशु के अनुग्रह से जैसे हमारा उद्धार हुआ है, वैसे ही हमें भरोसा है कि उनका भी उद्धार होगा।”

12 इस पर समूचा दल चुप हो गया और बरनाबास तथा पौलुस को सुनने लगा। वे, ग़ैर यहूदियों के बीच परमेश्वर ने उनके द्वारा दो अद्भुत चिन्ह प्रकट किए और आश्चर्य कर्म किये थे, उनका विवरण दे रहे थे। 13 वे जब बोल चुके तो याकूब कहने लगा, “हे भाइयो, मेरी सुनो। 14 शमौन ने बताया था कि परमेश्वर ने ग़ैर यहूदियों में से कुछ लोगों को अपने नाम के लिये चुनकर सर्वप्रथम कैसे प्रेम प्रकट किया था। 15 नबियों के वचन भी इसका समर्थन करते हैं। जैसा कि लिखा गया है:

16 ‘मैं इसके बाद आऊँगा।
फिर से मैं खड़ा करूँगा
दाऊद के उस घर को जो गिर चुका।
फिर से सँवारूँगा
उसके खण्डहरों को जीर्णोद्धार करूँगा।
17 ताकि जो बचे हैं वे ग़ैर यहूदी
सभी जो अब
मेरे कहलाते हैं,
प्रभु की खोज करें।’

18 ‘यह बात वही प्रभु कहता है जो युगयुग से इन बातों को प्रकट करता रहा है।’

19 “इस प्रकार मेरा यह निर्णय है कि हमें उन लोगों को, जो गैर यहूदी होते हुए भी परमेश्वर की ओर मुड़े हैं, सताना नहीं चाहिये। 20 बल्कि हमें तो उनके पास लिख भेजना चाहिये कि:

मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन तुम्हें नहीं लेना चाहिये।

और व्यभिचार से वचे रहे।

गला घोंट कर मारे गये किसी भी पशु का माँस खाने से बचें और लहू को कभी न खायें।

21 अनादि काल से मूसा की व्यवस्था के विधान का पाठ करने वाले नगर-नगर में पाए जाते रहे हैं। हर सब्त के दिन मूसा की व्यवस्था के विधान का आराधनालयों में पाठ होता रहा है।”

समीक्षा

लड़ाई - झगड़ेः इन्हें कैसे सुलझाएँ?

चर्च में 'वाद-विवाद, 'झगड़े', 'चर्चा' के विषय में कुछ भी आश्चर्यजनक बात नहीं है. यहाँ पर हमने एक 'झगड़े और वाद-विवाद के विषय में पढ़ा' (व.2) एक मसीह के रूप में पूरी तरह से स्वीकारे जाने के लिए क्या आवश्यक है, के विषय में - चर्च के एक सदस्य के रूप में –और उद्धार पाने के लिए (व.1). क्या खतने की आवश्यकता थी? (व.1).

यहाँ पर हम निर्णय लेने के लिए चार-कदमों की प्रक्रिया को देखते हैं. यह आज स्थानीय, राष्ट्रीय और यहाँ तक कि ग्लोबल कलीसिया में झगड़े से निपटने के लिए यह एक आदर्श उदाहरण है.

  1. एक सभा बुलाएं

कुछ लोग आग्रह कर रहें हैं कि सभी का खतना होना चाहिए. पौलुस और बरनबास ने तीव्र रूप से विरोध किया. उन्होंने एक विशेष सभा बुलाई ताकि वाद –विवाद के दोनों पहलुओं को एक साथ रखा जाएँ.

झगड़े से घबराईये मत. जब समझदार लोग जरुरी मामले के विषय में बात करने के लिए एक साथ आते हैं, तो यह स्वाभाविक और फलदायी है कि असहमति होगी. वास्तव में, यही सभा को दिलचस्प बनाता है!

  1. ध्यान दें और बातचीत करें

'बहुत वाद-विवाद हुआ' (व.7, एम.एस.जी). अंत में, दो कारकों ने वाद-विवाद को नियंत्रित किया.

पहला, उनका तर्क आत्मा के अनुभव पर आधारित था. पतरस का पहला विवाद इस बात पर आधारित था कि उन्होंने कुर्नेलियुस के घर में पवित्र आत्मा को क्या करते हुए देखा थाः ' मन के जाँचने वाले परमेश्वर ने उनको भी हमारे समान पवित्र आत्मा देकर उनकी गवाही दी; और विश्वास के द्वारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उन में कुछ भेद न रखा' (वव.8-9). भेद करने का अर्थ होगा परमेश्वर का विरोध करना. इससे उन्होंने निष्कर्ष निकालाः ' हाँ, हमारा यह निश्चय है कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे; उसी रीति से हम भी पाएँगे' (व.11).

दूसरा, उनका तर्क वचनों के प्रमाण पर आधारित था. याकूब बताते हैं कि परमेश्वर का वचन और परमेश्वर का आत्मा एक साथ मेल में हैं: ' इससे भविष्यद्वक्ताओं की बातें भी मिलती हैं' (व.15). वह दिखाते हैं कि वचनों ने पहले ही 'सभी अन्यजातियों के' सम्मिलित होने की बात बता दी है (व.17) और पवित्र आत्मा के अनुभव और वचन के प्रमाण को बताते हैं (वव.19-21). हम सुनिश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर का वचन और परमेश्वर का आत्मा हमेशा सहमति में होंगे. हम इस बात के प्रति सुनिश्चित नहीं हो सकते हैं कि दोनों में से हमारी समझ सही है या नही. जो लोग वाद-विवाद कर रहे थे कि हर एक को खतना करना है, उन्होंने यह वचन के आधार पर किया. पतरस और याकूब ने वचन को अलग नहीं रखा, लेकिन उन्होंने विवाद किया कि उन्होंने गलत समझा है.

  1. एक निर्णय लें

अंत में, उन्होंने निर्णय लिया (व.22). आरंभिक कलीसिया के जीवन में यह एक असाधारण क्षण था. ' तब सारी सभा चुपचाप बरनबास और पौलुस की सुनने लगी, कि परमेश्वर ने उनके द्वारा अन्यजातियों में कैसे बड़े – बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाए' (व.12). यह एक झुनझुना देने वाला क्षण था, जिसने उन्हें चुप कर दिया.

दिन के अंत में निर्णय पर विचार करने की आवश्यकता है. प्रेरित याकूब कहते हैं, 'यह मेरा विचार है' (व.19). निर्णय लेने का कारक यह था कि ' अन्यजातियों में से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं' उनके लिए वे इसे कठिन नहीं बनाना चाहते थे (व.19). सभी लोगों को चर्च में आमंत्रित किया जाता था, उनके पारिवारिक प्रतिष्ठा के बावजूद, यद्पि सभी रीतियों की अनुमति नहीं थी (व.20).

यहाँ पर यह सीख मिलती है कि जो लोग यीशु में अपने विश्वास में बढ़ रहे हैं उनके सामने हमें अनावश्यक अड़चने रखने के विषय में बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता है और हमें चर्च को बहुत ही सँकरे तरीके से परिभाषित करने में सावधान रहने की आवश्यकता है.

  1. निर्णय को बतायें

अ. उन्होंने इसे लिख लिया (व.20). सभा का विवरण केवल एक औपचारिकता नहीं है. निर्णय को लिखना महत्वपूर्ण बात है. तब जैसा कि हम कल देखेंगे, उन्हें बताए जाने की आवश्यकता है (वव.23-29).

प्रार्थना

परमेश्वर हमें बुद्धि दें, जैसे ही हम चर्च में होने वाले झगड़े से निपटते हैं. आपका धन्यवाद क्योंकि आप फिर से अपनी पवित्र आत्मा को चर्च के सभी भागों में ऊँडेल रहे हैं. हमारी सहायता करिए कि हम आपकी तरह व्यवहार करें, 'जिन्होंने हमारे और उनके बीच में कोई भेद नहीं रखा' (व.9).
जूना करार

1 राजा 9:10-11:13

10 यहोवा का मन्दिर और अपना महल बनाने में सुलैमान को बीस वर्ष लगे 11 और बीस वर्ष के बाद राजा सुलैमान ने सोर के राजा हीराम को गलील में बीस नगर दिये। सुलैमान ने राजा हीराम को वे नगर दिये क्योंकि हीराम ने मन्दिर और महल बनाने में सुलैमान की सहायता की। हीराम ने सुलैमान को उतने सारे देवदारु और चीड़ के वृक्ष तथा सोना दिया। जितना उसने चाहा। 12 इसलिये हीराम ने सोर से इन नगरों को देखने के लिये यात्रा की, जिन्हें सुलैमान ने उसे दिये। जब हीराम ने उन नगरों को देखा तो वह प्रसन्न नहीं हुआ। 13 राजा हीराम ने कहा, “मेरे भाई जो नगर तुम ने मुझे दिये हैं वे हैं ही क्या” राजा हीराम ने उस प्रदेश का नाम कबूल प्रदेश रखा और वह क्षेत्र आज भी कबूल कहा जाता है। 14 हीराम ने सुलैमान के पास लगभग नौ हजार पौंड सोना मन्दिर को बनाने में उपयोग करने के लिये भेजा था।

15 राजा सुलैमान ने दासों को अपने मन्दिर और महल बनाने के लिये काम करने के लिये विवश किया। तब राजा सुलैमान ने इन दासों का उपयोग बहुत सी चीजों को बनाने में किया। उसने मिल्लो बनाया। उसने यरूशलेम नगर के चारों ओर चहारदीवारी भी बनाई। तब उसने हासोर, मगिद्दो और गेजेर नगरों को पुन: बनाया।

16 बीते समय में मिस्र का राजा गेजेर नगर के विरुद्ध लड़ा था और उसे जला दिया था। उसने उन कनानी लोगों को मार डाला जो वहाँ रहते थे। सुलैमान ने फिरौन की पुत्री से विवाह किया। इसलिये फिरौन ने उस नगर को सुलैमान के लिये विवाह की भेंट के रूप में दिया। 17 सुलैमान ने उस नगर को पुनः बनाया। सुलैमान ने निचले बथोरेन नगर को भी बनाया। 18 राजा सुलैमान ने जुदैन मरुभूमि में बालात और तामार नगरों को भी बनाया। 19 राजा सुलैमान ने वे नगर भी बनाये जहाँ वह अन्य और चीज़ों का भण्डार बना सकता था और उसने अपने रथों और घोड़ों के लिये भी स्थान बनाये। सुलैमान ने अन्य बहुत सी चीज़ें भी बनाईं जिन्हें वह यरूशलेम, लबानोन और अपने शासित अन्य सभी स्थानों में चाहता था।

20 देश में ऐसे लोग भी थे जो इस्राएली नहीं थे। वे लोग एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी थे। 21 इस्राएली उन लोगों को नष्ट नहीं कर सके थे। किन्तु सुलैमान ने उन्हें दास के रूप में अपने लिये काम करने को विवश किया। वे अभी तक दास हैं। 22 सुलैमान ने किसी ईस्राएली को अपना दास होने के लिये विवश नहीं किया। इस्राएल के लोग सैनिक, राज्य कर्मचारी, अधिकारी, नायक और रथचालक थे। 23 सुलैमान की योजनाओं के साढ़े पाँच सौ पर्यवेक्षक थे। वे उन व्यक्तियों के ऊपर अधिकारी थे जो काम करते थे।

24 फिरौन की पुत्री दाऊद के नगर से वहाँ गई जहाँ सुलैमान ने उसके लिये विशाल महल बनाया। तब सुलैमान ने मिल्लों बनाया।

25 हर वर्ष तीन बार सुलैमान होमबलि और मेलबलि वेदी पर चढ़ाता था। यह वही वेदी थी जिसे सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया था। राजा सुलैमान यहोवा के सामने सुगन्धि भी जलाता था। अत: मन्दिर के लिये आवश्यक चीज़ें दिया करता था।

26 राजा सुलैमान ने एस्योन गेबेर में जहाज भी बनाये। यह नगर एदोम प्रदेश में लाल सागर के तट पर एलोत के पास था। 27 राजा हीराम के पास कुछ ऐसे व्यक्ति थे जो समुद्र के बारे में अच्छा ज्ञान रखते थे। वे व्यक्ति प्राय: जहाज से यात्रा करते थे। राजा हीराम ने उन व्यक्तियों को सुलैमान के नाविक बेड़े में सेवा करने और सुलैमान के व्यक्तियों के साथ काम करने के लिये भेजा। 28 सुलैमान के जहाज ओपोर को गये। वे जहाज एकतीस हजार पाँच सौ पौंड सोना आपोर से सुलैमान के लिये लेकर लौटे।

शीबा की रानी सुलैमान से मिलने आती है

10शीबा की रानी ने सुलैमान के बारे में सुना। अतः वह कठिन प्रशानों से उसकी परीक्षा लेने को आई। 2 उसने सेवकों की विशाल संख्या के साथ यरूशलेम की यात्रा की। अनेक ऊँट मसाले, रत्न, और बहुत सा सोना ढो रहे थे। वह सुलैमान से मिली और उसने उन सब प्रश्नों को पूछा जिन्हें वह सोच सकती थी। 3 सुलैमान ने सभी प्रश्नों के उत्तर दिये। उसका कोई भी प्रश्न उसके उत्तर देने के लिये अत्याधिक कठिन नहीं था। 4 शीबा की रानी ने समझ लिया कि सुलैमान बहुत बुद्धिमान है। उसने उस सुन्दर महल को भी देखा जिसे उसने बनाया था। 5 रानी ने राजा की मेज पर भोजन भी देखा। उसने उसके अधिकारियों को एक साथ मिलते देखा। उसने महल के सेवकों और जिन अच्छे वस्त्रों को उन्होंने पहन रखा था, उन्हें भी देखा। उसने उसकी दावतों और मन्दिर में चढ़ाई गई भेंटों को देखा। उन सभी चीजों ने वास्तव में उसे चकित कर दिया। उसकी साँस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई!

6 इसलिये रानी ने राजा से कहा, “मैंने अपने देश में आपकी बुद्धिमानी और बहुत सी बातों के बारे में सुना जो आपने कीं। वे सभी बातें सत्य हैं! 7 मैं इन बातों में तब तक विश्वास नहीं करती थी जब तक मैं यहाँ नहीं आई और इन चीज़ों को अपनी आँखों से नहीं देखा। अब मैं देखती हूँ कि जितना मैंने सुन रखा था उससे भी अधिक यहाँ है। आपकी बुद्धिमत्ता और सम्पत्ति उससे बहुत अधिक है जितनी लोगों ने मुझको बतायी। 8 आपकी पत्नियाँ और आपके अधिकारी बहुत भाग्यशाली हैं। वे प्रतिदिन आपकी सेवा कर सकते हैं और आपकी बुद्धिमत्तापूर्ण बातें सुन सकते हैं। 9 आपका यहोवा परमेश्वर स्तुति योग्य है! आपको इस्राएल का राजा बनाने में उसे प्रसन्नता हुई। यहोवा परमेश्वर इस्राएल से प्रेम करता है। इसलिये उसने आपको राजा बनाया। आप नियमों का अनुसरण करते हैं और लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं।”

10 तब शीबा की रानी ने राजा को लगभग नौ हजार पौंड सोना दिया। उसने उसे अनेक मसाले और रत्न भी दिये। जितनी मात्रा में शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को मसाले उपहार में दिये, उतनी मात्रा में मसाले फिर कभी इस्राएल देश में नहीं आए। शीबा की रानी ने उससे अधिक मसाले सुलैमान को दिये जितने पहले कभी किसी ने इस्राएल को लाकर दिये थे।

11 हीराम के जहाज ओपोर से सोना ले आए। वे जहाज बहुत अधिक लकड़ी और रत्न भी लाए। 12 सुलैमान ने लकड़ी का उपयोग मन्दिर और महल को सम्भालने के लिये किया। उसने लकड़ी का उपयोग गायकों के लिये वीणा और बीन बनाने में भी किया। अन्य कोई भी व्यक्ति उस प्रकार की लकड़ी इस्राएल में कभी नहीं लाया, और किसी भी व्यक्ति ने तब से उस प्रकार की लकड़ी नहीं देखी।

13 तब राजा सुलैमान ने शीबा की रानी को वे भेंटें दीं जो कोई राजा किसी अन्य देश के शासक को सदैव देता है। तब उसने उसे वह सब दिया जो कुछ भी उसने माँगा। उसके बाद रानी सेवकों सहित अपने देश को वापस लौट गई।

14 राजा सुलैमान प्रति वर्ष लगभग उन्नासी हजार नौ सौ बीस पौंड सोना प्राप्त करता था। 15 व्यापारिक जहाजों से सोना लाये जाने के अतिरिक्त उसने बणिक, व्यापारियों और अरब के रजाओं तथा देश के प्रशासकों से भी सोना प्राप्त किया।

16 राजा सुलैमान ने दो सौ बड़ी ढालें सोने की परतों से बनाईं। हर एक ढाल में लगभग पन्द्रह पौंड सोना लगा था। 17 उसने सोने की पट्टियों की तीन सौ छोटी ढालें भी बनाईं। हर एक ढाल में लगभग चार पौंड सोना लगा था। राजा ने उन्हें उस भवन में रखा जिसे “लबानोन का वन” कहा जाता था।

18 राजा सुलैमान ने एक विशाल हाथी दाँत का सिंहासन भी बनाया। उसने उसे शुद्ध सोने से मढ़ा। 19 सिंहासन पर पहुँचने के लिये उसमें छ: पैड़ियाँ थीं। सिंहासन का पिछला भाग सिरे पर गोल था। कुर्सी के दोनों ओर हत्थे लगे थे और कुर्सी की बगल में दोनों हत्थों के नीचे सिंहों की तस्वीरें बनी थीं। 20 छ: पैड़ियों में से हर एक पर दो सिंह थे। हर एक के सिरे पर एक सिंह था। किसी भी अन्य राज्य में इस प्रकार का कुछ भी नहीं था।

21 सुलैमान के सभी प्याले और गिलास सोने के बने थे और “लबानोन का वन” नामक भवन में सभी अस्त्र—शस्त्र शुद्ध सोने के बने थे। महल में कुछ भी चाँदी का नहीं बना था। सुलैमान के समय में सोना इतना अधिक था कि लोग चाँदी को महत्वपूर्ण नहीं समझते थे।

22 राजा के पास बहुत से व्यापारिक जहाज भी थे जिन्हें वह अन्य देशों से वस्तुओं का व्यापार करने के लिये बाहर भेजता था। ये हीराम के जहाज थे। हर तीसरे वर्ष जहाज सोना, चाँदी, हाथी दाँत और पशु लाते थे।

23 सुलैमान पृथ्वी पर महानतम राजा था। वह सभी राजाओं से अधिक धन्वान और बुद्धिमान था। 24 सर्वत्र लोग राजा सुलैमान को देखना चाहते थे। वे परमेश्वर द्वारा दी गई उसकी बुद्धिमत्ता की बात सुनना चाहते थे। 25 प्रत्येक वर्ष लोग राजा का दर्शन करने आते थे और प्रत्येक व्यक्ति भेंट लाता था। वे सोने—चाँदी के बने बर्तन, कपड़े, अस्त्र—शस्त्र, मसाले, घोड़े और खच्चर लाते थे।

26 अत: सुलैमान के पास अनेक रथ और घोड़े थे। उसके पास चौदह सौ रथ और बारह हजार घोड़े थे। सुलैमान ने इन रथों के लिये विशेष नगर बनाये। अत: रथ उन नगरों में रखे जाते थे। राजा सुलैमान ने रथों में से कुछ को अपने पास यरूशलेम में भी रखा। 27 राजा ने इस्राएल को बहुत सम्पन्न बना दिया। यरूशलेम नगर में चाँदी इतनी सामान्य थी जितनी चट्टानें, देवदारू की लकड़ी और पहाडों पर उगने वाले असंख्य अंजीर के पेड़ सामान्य थे। 28 सुलैमान ने मिस्र और कुएँ से घोड़े मँगाए। उसके व्यापारी उन्हें कुएँ से लाते थे और फिर उन्हें इस्राएल में लाते थे। 29 मिस्र के एक रथ का मूल्य लगभग पन्द्रह पौंड चाँदी था और एक घोड़े का मूल्य पौने चार पौंड चाँदी था। सुलैमान घोड़े और रथ हित्ती और अरामी राजाओं के हाथ बेचता था।

सुलैमान और उसकी बहुत सी पत्नियाँ

11राजा सुलैमान स्त्रियों से प्रेम करता था। वह बहुत सी ऐसी स्त्रियों से प्रेम करता था जो इस्राएल राष्ट्र की नहीं थीं। इनमें फ़िरौन की पुत्री, हित्ती स्त्रियाँ और मोआबी, अम्मोनी, एदोमी और सीदोनी स्त्रियाँ थीं। 2 बीते समय में यहोवा ने इस्राएल के लोगों से कहा था, “तुम्हें अन्य राष्ट्रों की स्त्रियों से विवाह नहीं करना चाहिये। यदि तुम ऐसा करोगे तो वे लोग तुम्हें अपने देवताओं का अनुसरण करने के लिये बाध्य करेंगी।” किन्तु सुलैमान उन स्त्रियों के प्रेम पाश में पड़ा। 3 सुलैमान की सात सौ पत्नियाँ थीं। (ये सभी स्त्रियाँ अन्य राष्ट्रों के प्रमुखों की पुत्रियाँ थीं।) उसके पास तीन सौ दासियाँ भी थीं जो उसकी पत्नियों के समान थीं। उसकी पत्नियों ने उसे परमेश्वर से दूर हटाया। 4 जब सुलैमान बूढ़ा हुआ तो उसकी पत्नियों ने उससे अन्य देवताओं का अनुसरण कराया। सुलैमान ने उसी प्रकार पूरी तरह यहोवा का अनुसरण नहीं किया जिस प्रकार उसके पिता दाऊद ने किया था। 5 सुलैमान ने अशतोरेत की पूजा की। यह सीदोन के लोगों की देवी थी। सुलैमान मिल्कोम की पूजा करता था। यह अम्मोनियों का घृणित देवता था। 6 इस प्रकार सुलैमान ने यहोवा के प्रति अपराध किया। सुलैमान ने यहोवा का अनुसरण पूरी तरह उस प्रकार नहीं किया जिस प्रकार उसके पिता दाऊद ने किया था।

7 सुलैमान ने कमोश की पूजा के लिये स्थान बनाया। कमोश मोआबी लोगों की घृणास्पद देवमूर्ति थी । सुलैमान ने उसके उच्चस्थान को यरूशलेम से लगी पहाड़ी पर बनाया। सुलैमान ने उसी पहाड़ी पर मोलेक का उच्चस्थान भी बनाया। मोलेक अम्मोनी लोगों की घृणास्पद देवमूर्ति थी। 8 तब सुलैमान ने अन्य देशों की अपनी सभी पत्नियों के लिये वही किया। उसकी पत्नियाँ सुगन्धि जलाती थीं और अपने देवताओं को बलि—भेंट करती थीं।

9 सुलैमान यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर का अनुसरण करने से दूर हट गया। अत: यहोवा, सुलैमान पर क्रोधित हुआ। यहोवा सुलैमान के पास दो बार आया जब वह छोटा था। 10 यहोवा ने सुलैमान से कहा कि तुम्हें अन्य देवताओं का अनुसरण नहीं करना चाहिये। किन्तु सुलैमान ने यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया। 11 इसलिये यहोवा ने सुलैमान से कहा, “तुमने मेरे साथ की गई अपनी वाचा को तोड़ना पसन्द किया है। तुमने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया है। अत: मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुमसे तुम्हारा राज्य छीन लूँगा। मैं इसे तुम्हारे सेवकों में से एक को दूँगा। 12 किन्तु मैं तुम्हारे पिता दाऊद से प्रेम करता था। इसलिये जब तक तुम जीवित हो तब तक मैं तुम्हारा राज्य नहीं लूँगा। मैं तब तक प्रतीक्षा करूँगा जब तक तुम्हारा पुत्र राजा नहीं बन जाता । तब मैं उससे इसे लूँगा। 13 तो भी मैं तुम्हारे पुत्र से सारा राज्य नहीं छीनूँगा। मैं उसे एक परिवार समूह पर शासन करने दूँगा। यह मैं दाऊद के लिये करूँगा। वह एक अच्छा सेवक था और यह मैं अपने चुने हुये नगर यरूशलेम के लिये भी करूँगा।”

समीक्षा

फँसाने वाली वस्तुएँ: आपको उन्हें कैसे रोकना चाहिए?

सफलता हमारे लिए असफलता से अधिक खतरनाक हो सकती है. सुलैमान बहुत सफल थे. उन्होंने बहुत सही किया. उनके पास बुद्धि का महान उपहार था और फिर भी, अंत में, वह भटक गए. सुलैमान का जीवन हमें एक चुनौती और एक चेतावनी देता है.

सुलैमान के पास सबकुछ था. बीस वर्षों में, उन्होंने दो महान ईमारतें बनवायी थीः मंदिर और उनका भवन (9:10). शिबा की रानी वह सब देखकर चकित हो गईः 'इसका आधा भी मुझे नहीं बताया गया था; तेरी बुद्धिमानी और कल्याण उस कीर्ति से भी बढ़कर है, जो मैं ने सुनी थी' (10:7, ए.एम.पी.).

उसने पहचाना कि यह केवल परमेश्वर हो सकते हैं:'धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ कि तुझे इस्राएल की राजगद्दी पर विराजमान किया' (व.9, एम.एस.जी).

फिर भी, विडंबना यह थी कि सुलैमान ने एक अच्छा अंत नही किया. उनका 'हृदय पूरी तहर से अपने प्रभु परमेश्वर के लिए समर्पित नहीं था, जैसा कि उनके पिता का हृदय पूरी तरह से समर्पित था...सुलैमान का हृदय परमेश्वर से भटक गया' (11:4,9).

क्या गलत हो गया? इसकी शुरुवात व्यभिचार से हुई. राजा सुलैमान को यौन-संबंध की धुन सवार हो गईः 'उसकी सात सौ रानियाँ, और तीन सौ रखेल हो गई थी –कुल मिलाकर एक हजार औरतें!' (व.3, एम.एस.जी.).

अंत में वह घृणित ईश्वर के पीछे चलने लगेः'अत जब सुलैमान ब़ूढा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया' (4अ, एम.एस.जी). 'इस प्रकार सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और यहोवा के पीछे अपने पिता दाऊद के समान पूरी रीति से न चला' (व.6). उसने परमेश्वर की स्पष्ट आज्ञा के विरोध में काम किया कि राजा 'की बहुत से पत्नियाँ नहीं होनी चाहिए, या उसका मन भटका दिया जाएगा. उसे बहुत सारी चाँदी और सोना इकट्ठा नहीं करना चाहिए' (व्यवस्थाविवरण 17:17).इन फँसाने वाली चीजों ने सुलैमान को भटका दिया.

दाऊद ने समय-समय पर चीजे बिगाड़ दी थी. जब उन्होंने ऐसा किया, तब वह पछताये और परमेश्वर की ओर मुड़े और पूरे हृदय से उनके पीछे चले. सुलैमान कुछ अलग ही दिखाते हैं. सात सौ पत्नियाँ और तीन सौ रखेल एक रात में नही हो गई. सुलैमान के हृदय में अवश्य ही समझौता होगा. परमेश्वर की सभी आशीषों के बावजूद, सुलैमान ने पाप को पलने दिया और अंत में इसने उन्हें बरबाद कर दिया.

सुलैमान की तरह अंत को नकारने के लिए, आपको यीशु के नजदीक रहने और उनकी बातें सुनने की आवश्यकता है. क्योंकि जैसा कि यीशु ने कहा, शिबा की रानी ' वह सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिए पृथ्वी के छोर से आयी; और देखो, यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है' (मत्ती 12:42).

प्रार्थना

परमेश्वर, इस चेतावनी के लिए आपका धन्यवाद. मेरे हृदय को सुरक्षित रखिए. मेरी सहायता करिए कि परमेश्वर के लिए पूरी तरह से समर्पित हो जाऊँ, अपने जीवन के अंत तक पूरी तरह से आपके पीछे चलूं.

पिप्पा भी कहते है

1राजा 11:1-13

कैसे इतना बुद्धिमान व्यक्ति महिलाओं के पीछे इतना मूर्ख बन सकता है? वह आज्ञाकारी भी थे. परमेश्वर ने कहा था कि उन स्थानों में महिलाओं से विवाह न करना. लेकिन सुलैमान ने किया. परमेश्वर ने कहा कि वे उसे भटका देंगी. उन्होंने भटका दिया.

दिन का वचन

1 राजा – 10:9

"धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा! जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ कि तुझे इस्राएल की राजगद्दी पर विराजमान किया: यहोवा इस्राएल से सदा प्रेम रखता है, इस कारण उसने तुझे न्याय और धर्म करने को राजा बना दिया है।"

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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