दिन 152

वॉव!

बुद्धि नीतिवचन 13:20-14:4
नए करार यूहन्ना 20:10-31
जूना करार 2 शमूएल 1:1-2:7

परिचय

जूदा स्मिथ, सीटल, वाशिंगटन से एक प्रसन्न युवा पेंताकुस्त के पासवान हैं. वह उत्त्म प्रचारकों में से एक हैं – खासकर युवा लोगों में से. दूसरों को सुनते समय उनकी पसंदीदा अभिव्यक्ति है 'वॉव!' उनके लिए यह इज्जत आदर और सम्मान की अभिव्यक्ति है.

इक्कीसवी सदी में यूरोप में रहने की अनेक आशीषें हैं. मगर हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ इज्जत, आदर और सम्मान उतना हमत्वपूर्ण नजर नहीं आता जितना कि पहले नजर आता था.

बुद्धि

नीतिवचन 13:20-14:4

20 बुद्धिमान की संगति, व्यक्ति को बुद्धिमान बनाता है।
 किन्तु मूर्खो का साथी नाश हो जाता है।

21 दुर्भाग्य पापियों का पीछा करता रहता है
 किन्तु नेक प्रतिफल में खुशहाली पाते हैं।

22 सज्जन अपने नाती—पोतों को धन सम्पति छोड़ता है
 जबकि पापी का धन धर्मियों के निमित्त संचित होता रहता है।

23 दीन जन का खेत भरपूर फसल देता है,
 किन्तु अन्याय उसे बुहार ले जाता है।

24 जो अपने पुत्र को कभी नहीं दण्डित करता,
 वह अपने पुत्र से प्रेम नहीं रखता है।
 किन्तु जो प्रेम करता निज पुत्र से,
 वह तो उसे यत्न से अनुशासित करता है।

25 धर्मी जन, मन से खाते और पूर्ण तृप्त होते हैं
 किन्तु दुष्ट का पेट तो कभी नहीं भरता है।

14बुद्धिमान स्त्री अपना घर बनाती है किन्तु
 मूर्ख स्त्री अपने ही हाथों से अपना घर उजाड़ देती है।

2 जिसकी राह सीधी—सच्ची हो, आदर के साथ वह यहोवा से डरता है,
 किन्तु वह जिसकी राह कुटिल है, यहोवा से घृणा करता है।

3 मूर्ख की बातें उसकी पीठ पर डँडे पड़वाती है।
 किन्तु बुद्धिमान की वाणी रक्षा करती है।

4 जहाँ बैल नहीं होते, खलिहान खाली रहते हैं,
 बैल के बल पर ही भरपूर फसल होती है।

समीक्षा

आदर

आदर करने की सभ्यता नीतिवचन की पुस्तक में बताई गई है. इस लेखांश में हम तीन उदाहरण देखते हैं:

  1. प्रभु के लिए आदर

'जो सीधाई से चलता वह यहोवा का भय मानने वाला है' (14:2). शब्द 'भय मानना' (एनआईवी) को 'आदर करने' के हिसाब से सबसे अच्छा माना जाता है. प्रभु का आदर करना हमारे बाकी के सभी संबंधों का आदर करने का आरंभिक बिंदु है.

  1. बुद्धिमानों का आदर करना

'बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा' (13:20). ' बुद्धिमान लोग अपने वचनों के द्वारा रक्षा पाते हैं' (14:3). हमारे समय में बुद्धिमानों का महत्व कम होता जा रहा है जो समय के साथ आता है. अक्सर बुद्धिमानी लंबे जीवन के अनुभव से आती है. वृद्ध लोगों में अप्रयुक्त बुद्धि काफी बड़ी मात्रा में है.

  1. घर में आदर

'जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उस को शिक्षा देता है' (13,24). कभी-कभी इस शिक्षा में शाब्दिक व्याख्या का अति-दुरूपयोग किया गया है. नीतिवचन की पुस्तक परिवार में आदर करने की संस्कृति को प्रोत्साहित करती है – जिसमे माता-पिता का आदर करना और बल्कि उन बच्चों का आदर करना भी शामिल है जो अनुशासन से प्रीति रखते हैं.

प्रार्थना

प्रभु, हमें बुद्धि प्राप्त करने और अच्छा पारिवारिक जीवन तथा संयुक्त प्रेम और आदर का आदर्श बनने में हमारी मदद कीजिये.
नए करार

यूहन्ना 20:10-31

मरियम मगदलिनी को यीशु ने दर्शन दिये

10 फिर वे शिष्य अपने घरों को वापस लौट गये। 11 मरियम रोती बिलखती कब्र के बाहर खड़ी थी। रोते-बिलखते वह कब्र में अंदर झाँकने के लिये नीचे झुकी। 12 जहाँ यीशु का शव रखा था वहाँ उसने श्वेत वस्त्र धारण किये, दो स्वर्गदूत, एक सिरहाने और दूसरा पैताने, बैठे देखे।

13 उन्होंने उससे पूछा, “हे स्त्री, तू क्यों विलाप कर रही है?”

उसने उत्तर दिया, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गये हैं और मुझे पता नहीं कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है?” 14 इतना कह कर वह मुड़ी और उसने देखा कि वहाँ यीशु खड़ा है। यद्यपि वह जान नहीं पायी कि वह यीशु था।

15 यीशु ने उससे कहा, “हे स्त्री, तू क्यों रो रही है? तू किसे खोज रही है?”

यह सोचकर कि वह माली है, उसने उससे कहा, “श्रीमान, यदि कहीं तुमने उसे उठाया है तो मुझे बताओ तुमने उसे कहाँ रखा है? मैं उसे ले जाऊँगी।”

16 यीशु ने उससे कहा, “मरियम।”

वह पीछे मुड़ी और इब्रानी में कहा, “रब्बूनी” (अर्थात् “गुरु।”)

17 यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू क्योंकि मैं अभी तक परम पिता के पास ऊपर नहीं गया हूँ। बल्कि मेरे भाईयों के पास जा और उन्हें बता, ‘मैं अपने परम पिता और तुम्हारे परम पिता तथा अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।’”

18 मरियम मग्दलिनी यह कहती हुई शिष्यों के पास आई, “मैंने प्रभु को देखा है, और उसने मुझे ये बातें बताई हैं।”

शिष्यों को दर्शन देना

19 उसी दिन शाम को, जो सप्ताह का पहला दिन था, उसके शिष्य यहूदियों के डर के कारण दरवाज़े बंद किये हुए थे। तभी यीशु वहाँ आकर उनके बीच खड़ा हो गया और उनसे बोला, “तुम्हें शांति मिले।” 20 इतना कह चुकने के बाद उसने उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखाई। शिष्यों ने जब प्रभु को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए।

21 तब यीशु ने उनसे फिर कहा, “तुम्हें शांति मिले। वैसे ही जैसे परम पिता ने मुझे भेजा है, मैं भी तुम्हें भेज रहा हूँ।” 22 यह कह कर उसने उन पर फूँक मारी और उनसे कहा, “पवित्र आत्मा को ग्रहण करो। 23 जिस किसी भी व्यक्ति के पापों को तुम क्षमा करते हो, उन्हें क्षमा मिलती है और जिनके पापों को तुम क्षमा नहीं करते, वे बिना क्षमा पाए रहते हैं।”

यीशु का थोमा को दर्शन देना

24 थोमा जो बारहों में से एक था और दिदिमस अर्थात् जुड़वाँ कहलाता था, जब यीशु आया था तब उनके साथ न था। 25 दूसरे शिष्य उससे कह रहे थे, “हमने प्रभु को देखा है।” किन्तु उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के निशान न देख लूँ और उनमें अपनी उँगली न डाल लूँ तथा उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मुझे विश्वास नहीं होगा।”

26 आठ दिन बाद उसके शिष्य एक बार फिर घर के भीतर थे। और थोमा उनके साथ था। (यद्यपि दरवाज़े पर ताला पड़ा था।) यीशू आया और उनके बीच खड़ा होकर बोला, “तुम्हें शांति मिले।” 27 फिर उसने थोमा से कहा, “हाँ अपनी उँगली डाल और मेरे हाथ देख, अपना हाथ फैला कर मेरे पंजर में डाल। संदेह करना छोड़ और विश्वास कर।”

28 उत्तर देते हुए थोमा बोला, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर।”

29 यीशु ने उससे कहा, “तूने मुझे देखकर, मुझमें विश्वास किया है। किन्तु धन्य वे हैं जो बिना देखे विश्वास रखते हैं।”

यह पुस्तक यूहन्ना ने क्यों लिखी

30 यीशु ने और भी अनेक आश्चर्य चिन्ह अपने अनुयायियों को दर्शाए जो इस पुस्तक में नहीं लिखे हैं। 31 और जो बातें यहाँ लिखी हैं, वे इसलिए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र, मसीह है। और इसलिये कि विश्वास करते हुए उसके नाम से तुम जीवन पाओ।

समीक्षा

श्रद्धायुक्त भय

यीशु सच में मरे मृत्यु में से जी उठे थे. ईस्टर के दिन कब्र सच में खाली पड़ी थी. यीशु के फिर से जी उठने के बाद शिष्य उन से सच में मिले थे. उनका पुनरूत्थान हुआ था. मसीहत के प्रारंभ का सबसे अच्छा ऐतिहासिक स्पष्टीकरण यह है कि यह सत्य है. यीशु आज जीवित हैं!

यूहन्ना, यीशु के पुनरूत्थान के बाद उनके चार बार दिखाई देने की बातों को लिखते हैं – इनमें से पहले तीन इस लेखांश में हैं. इन जगहों पर यीशु का दिखाई देना उनके पुनरूत्थान के कुछ सबूत ही नहीं हैं बल्कि ये उनके पुनरूत्थान के परिणाम भी हैं.

  1. आश्चर्य और श्रद्धायुक्त भय

मरियम को यीशु के दिखाई देने की बात अपरिभाष्य रूप से एक प्रत्यक्ष ख़बर है. संपूर्ण प्राचीन साहित्य में इस प्रकार की कोई घटना नहीं है.

उन दिनों में किसी स्त्री की गवाही उतनी महत्वपूर्ण नहीं मानी जाती थी जितना कि किसी पुरूष की गवाही को महत्वपूर्ण माना जाता था. यदि शिष्यों ने यह मान लिया होता, तो उन्हें मरियम मग्दिलीनी के सामने प्रकट होने के लिए विचार नहीं किया होता.

अपनी विजय को प्रकट करने के लिए यीशु ने विजयी होने का कोई दिखावा नहीं किया. वह मरियम – प्रिय, क्षमा प्राप्त - को विनम्र प्रेम से बगीचे में अकेले दिखाई दिये.

यह स्त्रीयों के प्रति यीशु के व्यापक सम्मान को प्रदर्शित करता है. इस कार्य के द्वारा और धरती पर उनके जीवन में अन्य कार्यों के द्वारा, उन्होंने दुनिया की स्त्रीयों के प्रति व्यवहार की क्रांतिकारी नींव रखी. दु:खद रूप से, 2000 साल बीत गए, और हम अब भी वहीं हैं.

यीशु ने मरियम से यह नहीं पूछा कि वह क्या ढूढ़ रही है. उन्होंने पूछा, 'तू किस को ढूंढ़ती है? ' (व.15).

मरियम की प्रतिक्रिया में आश्चर्य और श्रद्धायुक्त भय था. जब उसे समझा कि यह यीशु हैं, तो उसने इब्रानी में पुकारा "रब्बूनी!" (अर्थात हे गुरू!).

यीशु ने उस से कहा, मुझे मत छू (व.17). बल्कि उसे पुनरूत्थानित यीशु के साथ एक नये, ज्यादा घनिष्ठ संबंध की शुरूवात करनी चाहिये, यीशु उस में और वह यीशु में. (जो कि पवित्र आत्मा के वरदान से पूरा होगा).

  1. आनंद और शांति

दुनिया खुशी और मन की शांति के लिए बेचैन है. आनंद और शांति का सर्वोत्तम स्रोत यीशु के साथ संबंध है.

मरियम चेलों को बताने के लिए दौड़ी कि, 'मैंने प्रभु को देखा है!' (व.18). चेलों के सामने यीशु के प्रकट होने से वे आनंद से भर गए. (व.20). उन्होंने तीन बार कहा, 'तुम्हें शांति मिले!' – एक आंतरिक शांति जो उनकी उपस्थिति से बहती है - (वव.19,21,26).

यीशु में विश्वास, शांति और आनंद लाता है, उन सब में जो उन पर विश्वास करते हैं. यीशु ने थोमा से कहा, ' तू ने तो मुझे देखकर विश्वास किया है, धन्य वे हैं जिन्हों ने बिना देखे विश्वास किया' (व.29).

इस छोटी से मुलाकात में यीशु ने भयभीत और डरे हुए लोगों को प्रेम. आनंद और शांति के समाज में बदल दिया.

  1. उद्देश्य और सामर्थ

यीशु उन्हें उद्देश्य की नई समझ देते हैं: 'जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं' (व.21). पुनरूत्थान, दुनिया के लिए आशा का संदेश है. यीशु मसीह मृत्यु में से जी उठे हैं. कब्र के बाद भी जीवन है. यह धरती पर आपके जीवन को एक संपूर्ण नया अर्थ और उद्देश्य प्रदान करता है. इस संदेश का प्रचार करने के लिए आपको यीशु के द्वारा इस दुनिया में भेजा जा रहा है.

अंत में, यीशु ने उन्हें सामर्थ भी दी. ' उस ने उन पर फूंका और उन से कहा, "पवित्र आत्मा लो। जिन के पाप तुम क्षमा करो वे उन के लिये क्षमा किए गए हैं जिन के तुम रखो, वे रखे गए हैं"' (वव.22-23). पवित्र आत्मा क्षमा करने के लिए आपको सामर्थ और अधिकार देते हैं.

जिस सामर्थ ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया था वही सामर्थ आपके लिए उपलब्ध है. वह आपको अपनी पवित्र आत्मा का सामर्थ और मानव जाति को परमेश्वर की क्षमा का संदेश बताने के लिए अपने वचन की सामर्थ देते हैं. यह संदेश अनंत जीवन लाता है.

  1. आदर और सम्मान

थोमा एक नास्तिक और संशयी व्यक्ति था. मुझे लगता है मैंने भी वही प्रतिक्रिया की होती, जब उसने कहा था कि, 'जब तक मैं उस के हाथों में कीलों के छेद न देख लूं, और कीलों के छेदों में अपनी उंगली न डाल लूं, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूं, तब तक मैं प्रतीति नहीं करूंगा' (व.25).

उसने स्वयं शर्मिंदगी महसूस की होगी जब यीशु ने प्रकट होकर उससे कहा, 'अपनी उंगली यहां लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो' (व.27).

यीशु के जख्म हमेशा के लिए हमेशा उनकी नम्रता और प्रेम पूर्ण क्षमा की प्रतीती दिलाते रहेंगे. थोमा जैसा था यीशु ने उसे वैसे ही अपनाया. वह बिना किसी शिकायत और निंदा के अपनी चुनौती स्वीकार करते हैं.

संदेह होने पर आत्म ग्लानि महसूस मत कीजिये. थोमा की तरह अपने संदेह के बारे में ईमानदार रहें और इन्हें यीशु के पास लाएं. जब यीशु ने उसके संदेह का जवाब दिया, तो थोमा की प्रतिक्रिया इज्जत, सम्मान और श्रद्धापूर्ण आदर की पराकाष्ठा थी. उसने कहा, 'मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!' (व.28). थोमा संदेह के स्थान से, यीशु की दिव्यता के बारे में सभी सुसमाचारों में शायद सबसे दृढ़ कथन कहता है. वह पहला व्यक्ति था जिसने यीशु को देखकर 'परमेश्वर' कहा. वास्तव में उसने 'वॉव!' कहा.

यीशु उससे आगे कहते हैं कि विश्वास करना आशीषों को लाता है (व.29). वास्तव में यह जीवन लाता है. यूहन्ना के सुसमाचार में विश्वास और जीवन साथ-साथ चलते हैं. यह श्रेष्ठता और बहुतायत के जीवन की सच्चाई है (10:10). यह अनंतकाल तक चलता रहता है (3:16).

सुसमाचार लिखने का यूहन्ना पूर्ण उद्देश्य यह था कि आप विश्वास करें कि यीशु ही मसीहा हैं और परमेश्वर के पुत्र हैं और यह विश्वास करने से आप उनके नाम में जीवन पा सकते हैं (20:31). मृत्यु के पहले और मृत्यु के बाद भी जीवन की हमारी आशा का आधार, पुनरूत्थान ही है.

प्रार्थना

यीशु, मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर, आज मैं श्रद्धापूर्ण आदर और सम्मान के साथ आपकी आराधना करता हूँ.
जूना करार

2 शमूएल 1:1-2:7

दाऊद को शाऊल की मृत्यु का पता चलता है

1अमालेकियों को पराजित करने के बाद दाऊद सिकलग लौटा और वहाँ दो दिन ठहरा। यह शाऊल की मृत्यु के बाद हुआ। 2 तीसरे दिन एक युवक सिकलग आया। वह व्यक्ति उस डेरे से आया जहाँ शाऊल था। उस व्यक्ति के वस्त्र फटे थे और उसके सिर पर धूलि थी। वह व्यक्ति दाऊद के पास आया।उसने दाऊद के सामने मूहँ के बल गिरकर दण्डवत् किया।

3 दाऊद ने उस व्यक्ति से पूछा, “तुम कहाँ से आये हो?”

उस व्यक्ति ने दाऊद को उत्तर दिया, “मैं इस्राएलियों के डेरे से बच निकला हूँ”

4 दाऊद ने उस से कहा, “कृपया मुझे यह बताओ कि युद्ध किसने जीता?”

उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “हमारे लोग युद्ध से भाग गए। युद्ध में अनेकों लोग गिरे और मर गये हैं। शाऊल और उसका पुत्र योनातन दोनों मर गये हैं।”

5 दाऊद ने युवक से पूछा, “तूम कैसे जानते हो कि शाऊल और उसका पुत्र योनातन दोनों मर गए हैं?”

6 युवक ने दाऊद से कहा, “मैं गिलबो पर्वत पर था। वहाँ मैंने शाऊल को अपने भाले पर झुकते देखा। पलिश्ती रथ और घुड़सवार उसके निकट से निकट आते जा रहे थे। 7 शाऊल पीछे मुड़ा और उसने मुझे देखा। उसने मुझे पुकारा। मैंने उत्तर दिया, मैं यहाँ हूँ। 8 तब शाऊल ने मुझसे पूछा, ‘तुम कौन हो?’ मैंने उत्तर दिया, ‘मैं अमालेकी हूँ। 9 शाऊल ने कहा, ‘कृपया मुझे मार डालो मैं बुरी तरह घायल हूँ और मैं पहले से ही लगभग मर चुका हूँ।’ 10 इसलिये मैं रूका और उसे मार डाला। वह इतनी बुरी तरह घायल था कि मैं समझ गया कि वह जीवित नहीं रह सकता। तब मैंने उसके सिर से मुकुट और भुजा से बाजूबन्द उतारा और मेरे स्वामी, मैं मुकुट और बाजूबन्द यहाँ आपके लिये लाया हूँ।”

11 तब दाऊद ने अपने वस्त्रों को यह प्रकट करने के लिये फाड़ डाला कि वह बहुत शोक में डूबा है। दाऊद के साथ सभी लोगों ने यही किया। 12 वे बहुत दुःखी थे और रोये। उन्होंने शाम तक कुछ खाया नहीं। वे रोये क्योंकि शाऊल और उसका पुत्र योनातन मर गए थे। दाऊद और उसके लोग यहोवा से उन लोगों के लिये रोये जो मर गये थे, और वे इस्राएल के लिये रोये। वे इसलिये रोये कि शाऊल, उसका पुत्र योनातान और बहुत से इस्राएली युद्ध में मारे गये थे।

दाऊद अमालेकी युवक को मार डालने का आदेश देता है

13 दाऊद ने उस युवक से बातचीत की जिसने शाऊल की मृत्यु की सूचना दी। दाऊद ने पूछा, “तुम कहाँ के निवासी हो?”

युवक ने उत्तर दिया, “मैं एक विदेशी का पुत्र हूँ। मैं अमालेकी हूँ।”

14 दाऊद ने युवक से पूछा, “तुम यहोवा के चुने राजा को मारने से भयभीत क्यों नहीं हुए?”

15-16 तब दाऊद ने अमालेकी युवक से कहा, “तुम स्वयं अपनी मृत्यु के लिये जिम्मेदार हो। तुमने कहा कि तुमने यहोवा के चुने हुये राजा को मार डाला। इसलिये तुम्हारे स्वयं के शब्दों ने तुम्हें अपराधी सिद्ध किया है।” तब दाऊद ने अपने सेवक युवकों में से एक युवक को बुलाया और अमालेकी को मार डालने को कहा! इस्राएली युवक ने अमालेकी को मार डाला।

शाऊल और योनातन के बारे में दाऊद का शोकगीत

17 दाऊद ने शाऊल और उसके पुत्र योनातन के बारे में एक शोकगीत गाय। 18 दाऊद ने अपने व्यक्तियों से इस गीत को यहूदा के लोगों को सिखाने को कहा, “इस शोकगीत को ‘धनुष’ कहा गया है।” यह गीत याशार की पुस्तक में लिखा है।

19 “ओह इस्राएल तुम्हारा सौन्दर्य तुम्हारे पहाड़ों में नष्ट हुआ।
ओह कैसे शक्तिशाली पुरुष धराशायी हो गए!
20 इसे गत में न कहो।
इसे अश्कलोन की गलियों में घोषित न करो।
इससे पलिश्तियों के नगर प्रसन्न होंगे!
खतनारहित उत्सव मनायेंगे।

21 “गिलबो के पर्वत पर
ओस और वर्षा न हो,
उन खेतों से आने वाली
बलि—भेंटें न हों।
शक्तिशाली पुरुषों की ढाल वहाँ गन्दी हुई,
शाऊल की ढाल तेल से चमकाई नहीं गई थी।
22 योनातन के धनुष ने अपने हिस्से के शत्रुओं को मारा,
और शाऊल की तलवार ने अपने हिस्से के शत्रुओं को मारा!
उन्होंने उन व्यक्तियों के खून को छिड़का जो अब मर चुके हैं,
उन्होंने शक्तिशाली व्यक्तियों की चर्बी को नष्ट किया है।

23 “शाऊल और योनातन, एक दूसरे से प्रेम करते थे।
वे एक दूसरे से सुखी रहे जब तक वे जीवित रहे,
शाऊल योनातन मृत्यु में भी साथ रहे!
वे उकाब से तेज भी जाते थे,
वे सिंह से अधिक शक्तिशाली थे।
24 इस्राएल की पुत्रियो, शाऊल के लिये रोओ!
शाऊल ने तुम्हें लाल पहनावे दिये,
शाऊल ने तुम्हारे वस्त्रों पर स्वर्ण आभूषण सजाए हैं।

25 “शक्तिशाली पुरुष युद्ध में काम आए।
योनातन गिल-बो पर्वत पर मरा।
26 मेरे भाई योनातन, मैं तुम्हारे लिये रोता हूँ!
मैंने तुम्हारी मित्रता का सुख इतना पाया,
तुम्हारा प्रेम मेरे प्रति उससे भी अधिक गहरा था,
जितना एक स्त्री का प्रेम होता है।
27 शक्तिशाली पुरुष युद्ध में काम आए,
युद्ध के शस्त्र चले गये हैं।”

दाऊद और उसके लोग हेब्रोन जाते हैं

2बाद में दाऊद ने यहोवा से प्रार्थना की। दाऊद ने कहा, “क्या मुझे यहूदा के किसी नगर में जाना चाहिये?”

यहोवा ने दाऊद से कहा, “जाओ।”

दाऊद ने पूछा, “मुझे, कहाँ जाना चाहिये?”

यहोवा ने उत्तर दिया, “हेब्रोन को।”

2 इसलिये दाऊद वहाँ गया। उसकी दोनों पत्नियाँ उसके साथ गईं। (वे यिज्रेली की अहीनोअम और कर्मेल के नाबाल की विधवा अबीगैल थीं।) 3 दाऊद अपने लोगों और उनके परिवारों को भी लाया। वे हेब्रोन तथा पास के नगर में बस गये।

4 यहूदा के लोग हेब्रोन आये और उन्होंने दाऊद का अभिषेक यहूदा के राजा के रूप में किया। तब उन्होंने दाऊद से कहा, “याबेश गिलाद के लोग ही थे जिन्होंने साऊल को दफनाया।”

5 दाऊद ने याबेश गिलाद के लोगों के पास दूत भेजे। इन दूतों ने याबेश के लोगों को दाऊद का सन्देश दिया “यहोवा तुमको आशीर्वाद दे, क्योंकि तुम लोगों ने अपने स्वामी शाऊल के प्रति, उसकी दग्ध अस्थियों को दफनाकर, दया दिखाई है। 6 यहोवा अब तुम्हारे प्रति दयालु और सच्चा रहेगा। मैं भी तुम्हारे प्रति दयालु रहूँगा क्योंकि तुम लोगों ने शाऊल की दग्ध अस्थियाँ दफनाई हैं। 7 अब शक्तिशाली और वीर बनो, तुम्हारे स्वामी शाऊल मर चुके हैं और यहूदा के परिवार समूह ने अपने राजा के रूप में मेरा अभिषेक किया है।”

समीक्षा

इज्जत करना

शाउल के प्रति दाऊद की प्रतिक्रिया एक अद्भुत उदाहरण है जो हमें नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं उनके प्रति हमें कैसी प्रतिक्रिया करनी चाहिये.

शाउल के प्रति उसकी प्रतिक्रिया बहुत असाधारण थी. उसने अमालेकियों से कहा, जो शाउल को खत्म करने का दावा करते थे, 'तू यहोवा के अभिषिक्त को नाश करने के लिये हाथ बढ़ाने से क्यों नहीं डरा? ' (1:14). अमालेकियों इस उलट फेर से ज्यादा लाभ उठाने की कोशिश करते. वह ऐसा मनुष्य था जिसने दाऊद की कृपा पाने के लिए शाउल से राजसी तमगा हासिल किया था. बहरहाल, इससे उसे कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि दाऊद, शाऊल की इज्जत करता था.

दाऊद ने अपने उत्तम दोस्त योनातन और शाऊल की मृत्यु पर शोक मनाया (वव.19-27). अपने प्रियजनों की मृत्यु पर शोक मनाना एक स्वाभाविक, आवश्यक और स्वास्थ्यकारी प्रतिक्रिया है.

उत्कृष्ट रूप से, दाऊद ने परमेश्वर की इज्जत की. उसने प्रभु से पूछा (2:1). उसने पूछा, 'क्या मैं यहूदा के किसी नगर में जाऊँ?' प्रभु ने कहा, 'हाँ, जा. दाऊद ने फिर पूछा, किस नगर में जाऊँ? प्रभु ने उसे जवाब दिया, 'हेब्रोन में.' दाऊद ने आज्ञा मानी और वह यहूदा के घराने पर अभिषेकित राजा था.

प्रार्थना

प्रभु, लीडरशिप की जिम्मेदारी के लिए आपने जिनका अभिषेक किया है उन सभी से प्रेम करने और उनका आदर करने में मेरी मदद कीजिये, चाहें उन्होंने हमारी मदद की है या नहीं की है. मुझे इज्जत, आदर और सम्मान का जीवन जीने में मेरी मदद कीजिये.

पिप्पा भी कहते है

यूहन्ना 20:10

मुझे बहुत ही अच्छा लगा कि यीशु के पास जितने भी लोग थे उनमें से यीशु ने सबसे पहले मरियम मगदलिनी के सामने प्रकट होने का निर्णय लिया. वह अपने विरिष्ठ शिष्य (या बल्कि अपनी माँ) के पास भी नहीं गए, बल्कि एक ऐसी स्त्री के पास गए जिसका दुनिया में कोई महत्व नहीं था.

दिन का वचन

यूहन्ना – 20:19

"उसी दिन जो सप्ताह का पहिला दिन था, सन्ध्या के समय जब वहां के द्वार जहां चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले।"

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

स्पादकीय नोट्स: 2016-05-24

'मृत्यु के पहले और मृत्यु के बाद भी जीवन की हमारी आशा का आधार पुनरूत्थान है' टॉम राइट, 'पुनरूत्थान के समय क्या हुआ था?' चर्च टाइम्स, (2003)

अब संक्षिप्त व्याख्या : ' मृत्यु के पहले और मृत्यु के बाद भी जीवन की हमारी आशा का आधार, पुनरूत्थान है.'. (कोई स्वीकरण नहीं)

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