दिन 133

निराश समयों से कैसे निपटें

बुद्धि भजन संहिता 60:1-4
नए करार यूहन्ना 7:45-8:11
जूना करार न्यायियों 16:1-17:13

परिचय

'मुझे नहीं लगता है कि ऐसे बहुत से स्थान हैं जहाँ पर गोली की आवाज आती है और उड़ता हुआ रॉकेट लगता है, लेकिन हमारे लिए संदेश बहुत सरल हैः यह आशा, प्रकाश और एक भविष्य के विषय में है क्योंकि यह यीशु के विषय में है।'

अल्फा की शिक्षा के बारे में वर्णन करते हुए कॅनोन अंद्रियु व्हाइट, सेंट जॉर्ज, बगदाद के पादरी ने मुझे पत्र में ऐसा लिखा। वे एक निराशाजनक स्थिति में थे। एक से अधिक समय चर्च पर बम फेंका गया था। उनकी सभा में बहुत से लोगों की हत्या कर दी गई थी। कुछ लीडर्स का अपहरण कर लिया गया था। कुछ लोगों के लिए यीशु में विश्वास का अर्थ है लगभग निश्चित मृत्यु। फिर भी ऐसी निराशाजनक स्थिति में, अंद्रियु व्हाइट कह पायें कि यीशु आशा, प्रकाश और एक भविष्य को लाते हैं।

भजनसंहिता में दाऊद 'निराशाजनक समय' के बारे में बताते हैं (भजनसंहिता 60:3)। जीवन में ऐसे समय होते हैं जब सबकुछ गलत होता हुआ दिखाई देता है। हो सकता है कि अभी आप एक निराशाजनक स्थिति का सामना कर रहे हो – शायद से आपके स्वास्थ में, एक टूटे हुए संबंध में, काम पर परेशानी, परिवार में कठिनाईयाँ, आर्थिक परेशानी या इन सब का मिश्रण। निराशाजनक समय में भी आप विश्वास, आशा और प्रेम के तीन महान गुणों को पा सकते हैं।

बुद्धि

भजन संहिता 60:1-4

संगीत निर्देशक के लिये ‘वाचा की कुमुदिनी धुन पर उस समय का दाऊद का एक उपदेश गीत जब दाऊद ने अरमहरैन और अरमसोबा से युद्ध किया तथा जब योआब लौटा और उसने नमक की घाटी में बारह हजार स्वामी सैनिकों को मार डाला।

60हे परमेश्वर, तूने हमको बिसरा दिया।
 तूने हमको विनष्ट कर दिया। तू हम पर कुपित हुआ।
 तू कृपा करके वापस आ।
2 तूने धरती कँपाई और उसे फाड़ दिया।
 हमारा जगत बिखर रहा,
 कृपया तू इसे जोड़।
3 तूने अपने लोगों को बहुत यातनाएँ दी है।
 हम दाखमधु पिये जन जैसे लड़खड़ा रहे और गिर रहे हैं।
4 तूने उन लोगों को ऐसे चिताया, जो तुझको पूजते हैं।
 वे अब अपने शत्रु से बच निकल सकते हैं।

समीक्षा

दिखने वाली हार के बावजूद आशा

कभी – कभी ऐसा लगता है कि परमेश्वर के लोग हार रहे हैं। जबकि विश्व के बहुत से भागों में एक बड़ी क्रांति आ रही है, जैसे कि एशिया; पश्चिमी यूरोप में, उदाहरण के लिए, चर्च में संख्या घट रही थी। चर्च बंद हो रहे थे। मसीह नैतिकताओं अब महत्वपूर्ण नहीं देखा जा रहा था।

परमेश्वर के लोगों के इतिहास में निराशाजनक क्षण होते हैं। यह भजन एक राष्ट्रीय शोक है उनके शत्रुओं की जीत के बाद। परमेश्वर के लोगों ने नकारा गया महसूस किया। दाऊद कहते हैं, 'तूने अपने लोगों को निराशाजनक समय दिखाए हैं' (व.3अ)।

वह एक भूकंप के चित्र का इस्तेमाल करते हैं उस निराशा और अनिश्चितता का वर्णन करने के लिए जिनका उन्होंने सामना कियाः'तू ने भूमि को कँपाया और फाड़ डाला है; उसकी दरारों को भर दे, क्योंकि वह डगमगा रही है' (व.2)। जीवन के सभी क्षेत्रों में गड़बड़ी का वर्णन करने के लिए आज उसी चित्र का इस्तेमाल किया गया है। अर्थव्यवस्था, संस्थाएँ, विवाह और समुदाय की अस्थिरता को अक्सर काँपने और डगमगाने के रूप में देखा जाता है।

फिर भी, एक आशा है। दाऊद लिखते हैं, 'तू ने अपने डरवैयो को झंडा दिया है, कि वह सच्चाई के कारण फहराया जाए' (व.4)। परमेश्वर ने एक स्थान नियुक्त किया है, जहाँ पर उनके लोग परमेश्वर की सुरक्षा में शरण पा सकते हैं और परमेश्वर में निर्भीक हो सकते हैं –³यहाँ तक कि निराशा के समयों में।

प्रार्थना

धन्यवाद परमेश्वर, क्योंकि निराशाजनक समयों में भी, मैं आपकी सुरक्षा में शरण पा सकता हूँ।
नए करार

यूहन्ना 7:45-8:11

यहूदी नेताओं का विश्वास करने से इन्कार

45 इसलिये मन्दिर के सिपाही प्रमुख धर्माधिकारियों और फरीसियों के पास लौट आये। इस पर उनसे पूछा गया, “तुम उसे पकड़कर क्यों नहीं लाये?”

46 सिपाहियों ने जवाब दिया, “कोई भी व्यक्ति आज तक ऐसे नहीं बोला जैसे वह बोलता है।”

47 इस पर फरीसियों ने उनसे कहा, “क्या तुम भी तो भरमा नहीं गये हो? 48 किसी भी यहूदी नेता या फरीसियों ने उसमें विश्वास नहीं किया है। 49 किन्तु ये लोग जिन्हें व्यवस्था के विधान का ज्ञान नहीं है परमेश्वर के अभिशाप के पात्र हैं।”

50 नीकुदेमुस ने जो पहले यीशु के पास गया था उन फरीसियों में से ही एक था उनसे कहा, 51 “हमारी व्यवस्था का विधान किसी को तब तक दोषी नहीं ठहराता जब तक उसकी सुन नहीं लेता और यह पता नहीं लगा लेता कि उसने क्या किया है।”

52 उत्तर में उन्होंने उससे कहा, “क्या तू भी तो गलील का ही नहीं है? शास्त्रों को पढ़ तो तुझे पता चलेगा कि गलील से कोई नबी कभी नहीं आयेगा।”

दुराचारी स्त्री को क्षमा

53 फिर वे सब वहाँ से अपने-अपने घर चले गये।

8और यीशु जैतून पर्वत पर चला गया। 2 अलख सवेरे वह फिर मन्दिर में गया। सभी लोग उसके पास आये। यीशु बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा।

3 तभी यहूदी धर्मशास्त्रि और फ़रीसी लोग व्यभिचार के अपराध में एक स्त्री को वहाँ पकड़ लाये। और उसे लोगों के सामने खड़ा कर दिया। 4 और यीशु से बोले, “हे गुरु, यह स्त्री व्यभिचार करते रंगे हाथों पकड़ी गयी है। 5 मूसा का विधान हमें आज्ञा देता है कि ऐसी स्त्री को पत्थर मारने चाहियें। अब बता तेरा क्या कहना है?”

6 यीशु को जाँचने के लिये यह पूछ रहे थे ताकि उन्हें कोई ऐसा बहाना मिल जाये जिससे उसके विरुद्ध कोई अभियोग लगाया जा सके। किन्तु यीशु नीचे झुका और अपनी उँगली से धरती पर लिखने लगा। 7 क्योंकि वे पूछते ही जा रहे थे इसलिये यीशु सीधा तन कर खड़ा हो गया और उनसे बोला, “तुम में से जो पापी नहीं है वही सबसे पहले इस औरत को पत्थर मारे।” 8 और वह फिर झुककर धरती पर लिखने लगा।

9 जब लोगों ने यह सुना तो सबसे पहले बूढ़े लोग और फिर और भी एक-एक करके वहाँ से खिसकने लगे और इस तरह वहाँ अकेला यीशु ही रह गया। यीशु के सामने वह स्त्री अब भी खड़ी थी। 10 यीशु खड़ा हुआ और उस स्त्री से बोला, “हे स्त्री, वे सब कहाँ गये? क्या तुम्हें किसी ने दोषी नहीं ठहराया?”

11 स्त्री बोली, “हे, महोदय! किसी ने नहीं।”

यीशु ने कहा, “मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूँगा। जाओ और अब फिर कभी पाप मत करना।”

समीक्षा

आरोप के बजाय प्रेम

क्या विवाह के बिना शारीरिक संबंध स्वीकार योग्य है? या यह पाप है? यदि यह पाप है, तो जो शारीरिक पाप करने वालों के प्रति हमारा कैसा बर्ताव होना चाहिए?

यौन-संबंधी नीतिशास्त्र के विषय में वाद-विवाद आज निरंतर हमारे समाचारपत्रों और दूसरी मीडिया के माध्यम को भर देते हैं। यीशु के वचन आज उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि वे 2000 साल पहले थे।

यीशु के वचन बोले गए वचनों में सबसे महानतम वचन हैं, ऐसे वचन जिनकी आप आशा करेंगे कि परमेश्वर कहे। मंदिर के पहरेदारों ने कहा, ' किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें नहीं कीं' (7:46)। (यह बहुत दुख की बात है कि कुछ धार्मिक लीडर उन्हें पहचान नहीं पाये और जो यीशु में विश्वास करते थे उन्हें 'यें लोग' ऐसे कहते थे,व.49)।

यह महिला जो व्यभिचार करते हुए पकड़ी गई थी, उसने अवश्य ही पूरी तरह से निराशाजनक महसूस किया होगा। हार से उदासी आ सकती है। यह नैतिक असफलता से भी आ सकती है। अवश्य ही वह इन दो चीजों का अनुभव कर रही थी – आत्मग्लानि, शर्म से भरी हुई और मृत्यु का डर।

दोष लगाने वालों ने यीशु को एक प्रश्न पूछकर 'फँसाने' की कोशिश की (8:6)। यीशु सबसे अद्भुत, स्मरणीय और विश्व के इतिहास में अक्सर बोले जाने वाला उत्तर देते हैं:'तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे' (व.7)।

यीशु ने उसके व्यभिचार को नजरअंदाज नहीं किया, नाही उन्होंने इसे क्षमा न किए जा सकने वाले पाप के रूप में देखा। उन्होंने दर्शाया कि दूसरों पर दोष लगाना कितना आसान है जबकि अपने स्वयं के हृदय में उसी पाप के द्वारा हम दोषी होते हैं (वव.7-9)। यह हमारे जीवनों के बहुत से क्षेत्रों में लागू हो सकता है। दूसरों की आलोचना करने से पहले, हमें अपने आपसे पूछ लेना चाहिए कि क्या उस क्षेत्र में हम 'पापहीन' हैं, जिसके विषय में हम दूसरे पर दोष लगा रहे हैं।

जब हम दूसरों पर आरोप, या दोष लगाते हैं, हम उनमें वह देख रहे हैं जो हम अपने आपमें देखना अस्वीकार करते हैं।

जैसा कि अक्सर कहा गया है, 'जो लोग काँच से बने घर में रहते हैं उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं मारना चाहिए।' यौन-संबंधी नीतिशास्त्र के विषय में वादविवाद के संदर्भ में, जैसे ही हम अपने हृदय को देखते हैं, तब वहाँ अक्सर आस-पास काँच होता है।

व्यभिचार में पकड़ी गई महिला के वर्णन में, हर दोष लगाने वाले ने यीशु के वचनो पर विश्वास किया और आखिर में वहाँ पर 'केवल यीशु रह गए' (वव.7-9)। यीशु महिला से पूछते हैं, ' क्या किसी ने तुझ पर दण्ड की आज्ञा न दी?' (व 10)। जब वह उत्तर देती है, ' हे प्रभु, किसी ने नहीं' यीशु कहते हैं, ' मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना' (व.11)।

आत्मग्लानि एक भयानक भावना है। आरोप रहने के लिए एक भयानक स्थिति है। यीशु से इन वचनो को सुनना कितना अद्भुत रहा होगाः' मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता' (व.11)। क्योंकि वह पापरहित थे, यीशु ऐसे व्यक्ति थे जो 'पत्थर मारने' की अवस्था में थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

यीशु के वचनो में एक असाधारण संतुलन और लगभग अद्वितीय मिश्रण है – बुद्धि और अनुग्रह, दया और करुणा से भरे। यीशु स्पष्ट नहीं हो पायें कि व्यभिचार पाप है। फिर भी वह उस महिला पर दोष नहीं लगाते हैं। यह नये नियम का संदेश है। अत: अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं (रोमियो 8:1)। क्रूस पर हमारे लिए यीशु की मृत्यु के परिणामस्वरूप, आप और मैं पूरी तरह से क्षमा किए गए हैं, चाहे हम कितने भी गिर गए हो।

फिर भी, यह कारण नहीं है कि आप निरंतर पाप करते रहे। यीशु ने उसके पाप को नजरअंदाज नहीं किया। वह उससे कहते हैं, 'जीवन में पाप मत करना' (व.11)। यीशु हम पर दोष नहीं लगाते हैं। लेकिन वह हमसे कहते हैं, जैसा कि उन्होंने उस महिला से कहा, 'जीवन में पाप मत करो।'

हमेशा की तरह, यीशु के वचन प्रेम और करुणा से उत्साहित हैं। हम उनके उदाहरण के पीछे चलने के लिए बुलाए गए हैं।

दो विपरीत चीजों में पड़ना आसान बात है। या तो हम लोगों पर दोष लगाए या हम पाप को नजरअंदाज कर दें। प्रेम ना तो दोष लगाता है नाही पाप को नजरअंदाज करता है, क्योंकि पाप लोगों को चोट पहुँचाता है। यदि हम यीशु की तरह प्रेम करेंगे, तो हम ना तो पाप को नजरअंदाज करेंगे नाही लोगों पर दोष लगाएँगे, लेकिन प्रेम से लोगों को (अपने आपको भी) चुनौती देंगे कि वे पाप को छोड़ दें।

'क्षमा करने' के लिए ग्रीक शब्द का अर्थ 'स्वतंत्र करना' भी है। पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा यीशु हमें स्वतंत्र करने के लिए आए। हर संबंध में क्षमा करना पड़ता है। यह प्रेम का सार है।

प्रार्थना

परमेश्वर आपका धन्यवाद क्योंकि उन पर कोई दंड की आज्ञा नहीं है जो मसीह यीशु में हैं। आपका धन्यवाद क्योंकि आप मेरे लिए यह संभव बनाने के लिए मरे कि मैं शुद्ध हो जाऊँ, क्षमा पाऊँ और स्वतंत्र हो जाऊँ। मेरी सहायता कीजिए मैं लोगों से उस तरह से प्रेम कर सकूं जैसा कि आपने किया।
जूना करार

न्यायियों 16:1-17:13

शिमशोन अज्जा नगर को जाता है

16एक दिन शिमशोन अज्जा नगर को गया। उसने वहाँ एक वेश्या को देखा। वह उसके साथ रात बिताने के लिये अन्दर गया। 2 किसी ने अज्जा के लोगों से कहा, “शिमशोन यहाँ आया है।” वे उसे जान से मार डालना चाहते थे। इसलिए उन्होंने नगर को घेर लिया। वे छिपे रहे और वे नगर—द्वार के पास छिप गये और सारी रात शिमशोन की प्रतीक्षा किया। वे पूरी रात एकदम चुप रहे। उनहोंने आपस में कहा, “जब सवेरा होगा, हम लोग शिमशोन को मार डालेंगे।”

3 किन्तु शिमशोन वेश्या के साथ आधी रात तक ही रहा। शिमशोन आधी रात में उठा और नगर के फाटक के किवाड़ों को पकड़ लिया और उसने उन्हें खींच कर दीवार से अलग कर दिया। शिमशोन ने किवाड़ों, दो खड़ी चौखटों और अबेड़ों को जो किवाड़ को बन्द करती थी, पकड़ कर अलग उखाड़ लिया। तब शिमशोन ने उन्हें अपने कंधों पर लिया और उस पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो हेब्रोन नगर के समीप है।

शिमशोन और दलीला

4 इसके बाद शिमशोन दलीला नामक एक स्त्री से प्रेम करने लगा। वह सोरेक घाटी की थी।

5 पलिश्ती लोगों के शासक दलीला के पास गए। उन्होंने कहा, “हम जानना चाहते हैं कि शिमशोन उतना अधिक शक्तिशाली कैसे है? उसे फुसलाने की कोशिश करो कि वह अपनी गुप्त बात बता दे। तब हम लोग जान जाएंगे कि उसे कैसे पकड़ें और उसे कैसे बांधें। तब हम लोग उस पर नियन्त्रण कर सकते हैं। यदि तुम ऐसा करोगी तो हम में से हर एक तुमको एक हजार एक सौ शेकेल देगा।”

6 अत: दलीला ने शिमशोन से कहा, “मुझे बताओ कि तुम इतने अधिक शक्तिशाली क्यों हो? तुम्हें कोई कैसे बाँध सकता है और तुम्हें कैसे असहाय कर सकता है?”

7 शिमशोन ने उत्तर दिया, “कोई व्यक्ति मुझे सात नयी धनुष की उन डोरियों से बांध सकता है जो अब तक सूखी न हों। यदि कोई ऐसा करेगा तो मैं अन्य आदमियों की तरह दुर्बल हो जाऊँगा।”

8 तब पलिश्ती के शासक सात नयी धनुष की डोरीयाँ दलीला के लिए लाए। वे डोरियाँ अब तक सूखी नहीं थीं। उसने शिमशोन को उससे बांध दिया। 9 कुछ व्यक्ति दूसरे कमरे में छिपे थे। दलीला ने शिमशोन से कहा, “शिमशोन पलिश्ती के लोग तुम्हें पकड़ने आ रहे हैं।” किन्तु शिमशोन ने धनुष—डोरियों को सरलता से तोड़ दिया। वे दीपक से जली ताँत की राख की तरह टूट गई। इस प्रकार पलिश्ती के लोग शिमशोन की शक्ति का राज न पा सके।

10 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुमने मुझे बेवकूफ बनाया है। तुमने मुझसे झूठ बोला है। कृपया मुझे सच—सच बताओ कि तुम्हें कोई कैसे बांध सकता है।”

11 शिमशोन ने कहा, “कोई व्यक्ति मुझे नयी रस्सियों से बांध सकता है। वे मुझे उन रस्सियों से बांध सकते हैं जिनका उपयोग पहले न हुआ हो। यदि कोई ऐसा करेगा तो मैं इतना कमज़ोर हो जाऊँगा, जितना कोई अन्य व्यक्ति होता है।”

12 इसलिये दलीला ने कुछ नयी रस्सियाँ लीं और शिमोशन को बांध दिया। कुछ व्यक्ति अगले कमरे में छिपे थे। तब दलीला ने उसे आवाज दी, “शिमशोन, पलिश्ती लोग तुम्हें पकड़ने आ रहे हैं।” किन्तु उसने रस्सियों को सरलता से तोड़ दिया। उसने उन्हें धागे की तरह तोड़ डाला।

13 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुमने मुझे बेवकूफ बनाया है। तुमने मुझसे झूठ बोला है। अब तुम मुझे बताओ कि तुम्हें कोई कैसे बांध सकता है।”

उसने कहा, “यदि तुम उस करघे का उपयोग करो जो मेरे सिर के बालों के बटों को एक में बनाए और इसे एक काँटे से कस दे तो मैं इतना कमज़ोर हो जाऊँगा, जितना कोई अन्य व्यक्ति होता है।” तब शिमशोन सोने चला गया। इसलिए दलीला ने करघे का उपयोग उसके सिर के बालों के सात बट बुनने के लिये किया।

14 तब दलीला ने ज़मीन में खेमे की खूँटी गाड़कर, करघे को उससे बांध दिया। फिर उसने शिमशोन को आवाज़ दी, “शिमशोन, पलिश्ती के लोग तुम्हें पकड़ने जा रहे हैं।” शिमशोन ने खेमे की खूँटी करघा तथा ढरकी को उखाड़ दिया।

15 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुम मुझसे कैसे कह सकते हो, ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूँ,’ जबकि तुम मुझ पर विश्वास तक नहीं करते। तुम अपना राज बताने से इन्कार करते हो। यह तीसरी बार तुमने मुझे बेवकूफ बनाया है। तुमने अपनी भीषण शक्ति का राज नहीं बताया है।” 16 वह शिमशोन को दिन पर दिन परेशान करती गई। उसके राज के बारे में उसके पूछने से वह इतना थक गया कि उसे लगा कि वह मरने जा रहा है। 17 इसलिये उसने दलीला को सब कुछ बता दिया। उसने कहा, “मैंने अपने बाल कभी कटवाये नहीं हैं। मैं जन्म के पहले विशेष रूप से परमेश्वर को समर्पित था। यदि कोई मेरे बालों को काट दे तो मेरी शक्ति चली जाएगी। मैं वैसा ही कमज़ोर हो जाऊँगा, जितना कोई अन्य व्यक्ति होता है।”

18 दलीला ने देखा कि शिमशोन ने अपने हृदय की सारी बात कह दी है। उसने पलिश्ती के लोगों के शासकों के पास दूत भेजा। उसने कहा, “फिर वापस लौटो। शिमशोन ने सब कुछ कह दिया है।” अत: पलिश्ती लोगों के शासक दलीला के पास लौटे। वे वह धन साथ लाए जो उन्होंने उसे देने की प्रतिज्ञा की थी।

19 दलीला ने शिमशोन को उस समय सो जाने दिया, जब वह उसकी गोद में सिर रख कर लेटा था। तब उसने एक व्यक्ति को अन्दर बुलाया और शिमशोन के बालों की सात लटों को कटवा दिया। इस प्रकार उसने उसे शक्तिहीन बना दिया। शिमशोन की शक्ति ने उसे छोड़ दिया। 20 तब दलीला ने उसे आवाज दी। “शिमशोन पलिश्ती के लोग तुमको पकड़ने जा रहे हैं।” वह जाग पड़ा और सोचा, “मैं पहले की तरह भाग निकलूँ और अपने को स्वतन्त्र रखूँ।” किन्तु शिमशोन को यह नहीं मालूम था कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है।

21 पलिश्ती के लोगों ने शिमशोन को पकड़ लिया। उन्होंने उसकी आँखें निकाल लीं और उसे अज्जा नगर को ले गए। तब उसे भागने से रोकने के लिए उसके पैरों में उन्होंने बेड़ियाँ डाल दीं। उन्होंने उसे बन्दीगृह में डाल दिया तथा उससे चक्की चलवायी। 22 किन्तु शिमशोन के बाल फिर बढ़ने आरम्भ हो गए।

23 पलिश्ती लोगों के शासक उत्सव मनाने के लिए एक स्थान पर इकट्ठे हुए। वे अपने देवता दागोन को एक बड़ी भेंट चढ़ाने जा रहे थे। उन्होंने कहा, “हम लोगों के देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हराने में सहायता की है।” 24 जब पलिश्ती लोगों ने शिमशोन को देखा तब उन्होंने अपने देवता की प्रशंशा की। उन्होंने कहा,

“इस व्यक्ति ने हमारे लोगों को नष्ट किया!
इस व्यक्ति ने हमारे अनेक लोगों को मारा!
किन्तु हमारे देवता ने हमारे शत्रु को पकड़वाने में
हमारी मदद की!”

25 लोग उत्सव में खुशी मना रहे थे। इसलिए उन्होंने कहा, “शिमशोन को बाहर लाओ। हम उसका मजाक उड़ाना चाहते हैं।” इसलिए वे शिमशोन को बन्दीगृह से बाहर ले आए और उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने शिमशोन को दागोन देवता के मन्दिर के स्तम्भों के बीच खड़ा किया। 26 एक नौकर शिमशोन का हाथ पकड़ा हुआ था। शिमशोन ने उससे कहा, “मुझे वहाँ रखो जहाँ मैं उन स्तम्भों को छू सकूँ, जो इस मन्दिर को ऊपर रोके हुए हैं। मैं उनका सहारा लेना चाहता हूँ।”

27 मन्दिर में स्त्री—पुरूषों की अपार भीड़ थी। पलिश्ती लोगों के सभी शासक वहाँ थे। वहाँ लगभग तीन हज़ार स्त्री—पुरूष मन्दिर की छत पर थे। वे हँस रहे थे और शिमशोन का मज़ाक उड़ा रहे थे। 28 तब शिमशोन ने यहोवा से प्रार्थना की। उसने कहा, “सर्वशक्तिमान यहोवा, मुझे याद कर। परमेश्वर मुझे कृपा कर केवल एक बार और शक्ति दे। मुझे केवल एक यह काम करने दे कि पलिश्तियों को अपनी आँखों के निकालने का बदला चुका दूँ।” 29 तब शिमशोन ने मन्दिर के केन्द्र के दोनों स्तम्भों को पकड़ा। ये दोनों स्तम्भ पूरे मन्दिर को टिकाए हुए थे। उसने दोनों स्तम्भों के बीच में अपने को जमाया। एक स्तम्भ उसकी दांयी ओर तथा दूसरा उसकी बाँयीं ओर था। 30 शिमशोन ने कहा, “इन पलिश्सतों के साथ मुझें मरने दे।” तब उसने अपनी पूरी शक्ति से स्तम्भों को ठेला और मन्दिर शासकों तथा इनमें आए लोगों पर गिर पड़ा। इस प्रकार शिमशोन ने अपने जीवन काल में जितने पलिश्ती लोगों को मारा, उससे कहीं अधिक लोगों को उसने तब मारा, जब वह मरा।

31 शिमशोन के भाईयों और उसके पिता का पूरा परिवार उसके शरीर को लेने गए। वे उसे वापस लाए और उसे उसके पिता मानोह के कब्र में दफनाया। यह कब्र सोरा और एश्ताओल नगरों के बीच है। शिमशोन इस्राएल के लोगों का न्यायाधीश बीस वर्ष तक रहा।

मीका की मूर्तियाँ

17मीका नामक एक व्यक्ति था जो एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में रहता था। 2 मीका ने अपनी माँ से कहा, “क्या तुम्हें चाँदी के ग्यारह सौ सिक्के याद हैं जो तुमसे चुरा लिये गए थे। मैंने तुम्हें उसके बारे में शाप देते सुना। वह चाँदी मेरे पास है। मैंने उसे लिया है।”

उसकी माँ ने कहा, “मेरे पुत्र, तुम्हें यहोवा आशीर्वाद दे।”

3 मीका ने अपनी माँ को ग्यारह सौ सिक्के वापस दिये। तब उसने कहा, “मैं ये सिक्के यहोवा को एक विशेष भेंट के रूप में दूँगी। मैं यह चाँदी अपने पुत्र को दूँगी और वह एक मूर्ती बनाएगा और उसे चाँदी से ढक देगा। इसलिए पुत्र, अब यह चाँदी मैं तुम्हें लौटाती हूँ।”

4 लेकिन मीका ने वह चाँदी अपनी माँ को लौटा दी। अत: उसने दो सौ शेकेल चाँदी लिये और एक सुनार को दे दिया। सुनार ने चाँदी का उपयोग चाँदी से ढकी एक मूर्ति बनाने में किया। मूर्ति मीका के घर में रखी गई। 5 मीका का एक मन्दिर मूर्तियों की पूजा के लिये था। उसने एक एपोद और कुछ घरेलू मूर्तियाँ बनाईं। तब मीका ने अपने पुत्रों में से एक को अपना याजक चुना। 6 (उस समय इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था। इसलिए हर एक व्यक्ति वह करता था जो उसे ठीक जचता था।)

7 एक लेवीवंशी युवक था। वह यहूदा प्रदेश में बेतलेहेम नगर का निवासी था। वह यहूदा के परिवार समूह में रह रहा था। 8 उस युवक ने यहूदा में बेतलेहेम को छोड़ दिया। वह रहने के लिये दूसरी जगह ढूँढ रहा था। जब वह यात्रा कर रहा था, वह मीका के घर आया। मीका का घर एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में था। 9 मीका ने उससे पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?”

युवक ने उत्तर दिया, “मैं उस बेतेलेहम नगर का लेवीवंशी हूँ जो यहूदा प्रदेश में है। मैं रहने के लिये स्थान ढूँढ रहा हूँ।”

10 तब मीका ने उससे कहा, “मेरे साथ रहो। मेरे पिता और मेरे याजक बनो। मैं हर वर्ष तुम्हें दस चाँदी के सिक्के दूँगा। मैं तुम्हें वस्त्र और भोजन भी दूँगा।”

लेवीवंशी ने वह किया जो मीका ने कहा। 11 लेवीवंशी युवक मीका के साथ रहने को तैयार हो गया। युवक मीका के पुत्रों के जैसा हो गया। 12 मीका ने युवक को अपना याजक बनाया। इस प्रकार युवक याजक बन गया और मीका के घर में रहने लगा। 13 मीका ने कहा, “अब मैं समझता हूँ कि यहोवा मेरे प्रति अच्छा होगा। मैं यह इसलिए जानता हूँ कि मैंने लेवीवंशी के परिवार के एक व्यक्ति को याजक रखा है।”

समीक्षा

के बीच में विश्वास

यें निराशाजनक समय थे। एक बात है जो न्यायियों की पुस्तक में बार-बार दोहराई गई हैः'उन दिनों में इस्रालियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक जान पड़ता था वही वह करता था' (17:6)। यह गड़बड़ी का समय था।

ऐसे निराशाजनक समय में परमेश्वर ने शिमशोन जैसे न्यायियों को उठाया। उन्होंने बीस वर्षों तक इस्राएल का न्याय किया (16:31)। वह विश्वास के स्तंभ में से एक थे (इब्रानियों 11:32)।

पवित्र आत्मा के द्वारा अभिषिक्त, परमेश्वर ने शक्तिशाली रूप से उनका इस्तेमाल किया। किंतु, उनकी भी एक कमजोरी थी जिसके कारण उन्होंने व्यभिचार किया (एक वेश्या के साथ सोना, न्यायियों 16:1-3) और धोखा (वव.4-10)। आखिरकार, लगातार आज्ञा का उल्लंघन करने के द्वारा उन्होंने इस हद तक परमेश्वर को अप्रसन्न किया कि 'परमेश्वर...उसके पास से चले गए थे' (व.20)।

शिमशोन ने परमेश्वर से असाधारण सामर्थ को ग्रहण किया। लेकिन यह उसकी आज्ञाकारिता से सीधे जुड़ा हुआ था। परमेश्वर ने उसे बताया था कि अपने बालों को नहीं काटना। जब तक उसने परमेश्वर की आज्ञा मानी, तब तक उसके पास दैवीय सामर्थ थी।

परमेश्वर का एक जन कितना ही महान क्यों न हो, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सामर्थ केवल परमेश्वर की ओर से आती है। यीशु ने कहा, 'मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते हो' (यूहन्ना 15:5, एन.के.जे.व्ही.)। पुरानी विजय पर निर्भर मत रहिये बल्कि परमेश्वर पर निर्भर रहें जिन्होने विजय दी है।

लगातार प्रलोभन के बाद, शिमशोन ने हार मान ली और दलिला को अपनी सामर्थ का राज बता दिया - यद्पि उसे स्पष्ट रूप से पता था कि वह उसका लाभ उठायेगी। उसने उसके बाल काट दिए और शिमशोन की सामर्थ चली गई।

ना केवल समाज अस्तव्यस्त था, लेकिन शिमशोन अपने जीवन में अत्यधिक निराशा के बिंदु पर पहुँच गए थे। वह बंधन में थे, वह अंधे हो गए थे और उन्हें बंदी बनाने वाले उनका तमाशा बनाने वाले थे (न्यायियों 16:21-25)।

उदासी में, शिमशोन ने परमेश्वर से प्रार्थना कीः'हे प्रभु, यहोवा, मेरी सुधि ले; हे परमेश्वर अब की बार मुझे बल दे' (व.28)। और परमेश्वर ने उसकी विश्वास की प्रार्थना सुनी। यहाँ तक कि उनकी सभी असफलताओं के बावजूद। परमेश्वर ने फिर भी शिमशोन के रोने को सुना। इससे अंतर नहीं पड़ता है कि स्थिति क्या है, और इससे अंतर नहीं पड़ता है कि आपने क्या किया है, परमेश्वर के पास वापस आने के लिए अभी बहुत देर नहीं हुई है।

प्रार्थना

प्रभु, आपको धन्यवाद कि मैं आपकी उपस्थिति में शरण पा सकता हूँ और यह कि आप हमेशा मदद के लिए मेरी पुकार को सुनते हैं. प्रभु मदद कीजिये!

पिप्पा भी कहते है

न्यायियों 16:1-17:13

शिमशोन एक असाधारण लीडर थे। वह स्त्रियों में दिलचस्पी रखने वाले एक अनोखे भीमकाय व्यक्ति थे. वह दलिला के प्रेम में पड़ गए। वह एक कठोर महिला थी। वह उस आदमी को पकड़वा देने चाहती थी जो उससे प्रेम करता था। जब उस महिला ने पहले ही तीन बार उसे पकड़वाया था, तो उसने अपना रहस्य उसे क्यों बताया? उसे अवश्य ही समझ जाना चाहिए था कि उस महिला पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। वह भौतिक रूप से बहुत मजबूत थे, लेकिन जब महिला की बात आती थी तब वह कमजोर पड़ जाते थे। एक महिला के कारण गिरने वाले वह एकमात्र महान लीडर नहीं हैं।

दिन का वचन

यूहन्ना – 8:7

" जब वे उस से पूछते रहे, तो उस ने सीधे होकर उन से कहा, कि तुम में जो निष्पाप हो, वही पहिले उस को पत्थर मारे।"

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों में (एनकेजेवी - NKJV) लिखा गया है उसे न्यू किंग जेम्स संस्करण ®. कॉपीराइट © 1982 थोमस नेल्सन द्वारा से लिया गया है. अनुमति द्वारा उपयोग किया गया. सभी अधिकार सुरक्षित.

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