दिन 130

परमेश्वर आपकी कमजोरी को ताकत में बदल देते हैं

बुद्धि भजन संहिता 59:1-8
नए करार यूहन्ना 6:25-59
जूना करार न्यायियों 10:1-11:40

परिचय

महान क्रिश्चियन लीडर, जॉन स्टॉट, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में एक विश्वविद्यालय मिशन के अवसर पर बोल रहे थे. मिशन की आखिरी रात में, एक संक्रमण के कारण, उनकी आवाज तकरीबन नहीं निकल रही थी.

इसके विपरीत उन्होंने कहने की कोशिश की. इससे पहले अपने कमरे के एक कोने में इंतजार करते हुए उन्होंने धीरे से एक निवेदन किया कि उनके लिए 2 कुरिंथिंयों 12 से 'शरीर में कांटे' वचनों को पढ़ा जाए. पौलुस और यीशु के बीच की बातचीत जीवित हो गई.

स्टॉट (पौलुस): 'मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझ से यह दूर हो जाए.'

यीशु: 'मेरा अनुग्रह तेरे लिए बहुत है, क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है.'

स्टॉट (पौलुस): 'इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे... क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ.'

जब उनकी बारी आई तो वह माइक्रोफोन के द्वारा कर्कश आवाज में सुसमाचार का प्रचार करने लगे, जिसमें वह अपनी आवाज अच्छी तरह से निकाल नहीं पाए या एक तरह से अपने व्यक्तित्व पर जोर नहीं दे सके. परंतु लेकिन हर समय वह परमेश्वर से विनती करते रहे कि उनकी निर्बलता में मसीह की सामर्थ सिद्ध हो जाए.

उसके बाद वह कई बार फिर से ऑस्ट्रेलिया में गए और हरबार किसी न किसी ने उनके पास आकर कहा, 'क्या आपको याद है कि विश्वविद्यालय के बड़े हॉल में आखिरी सभा के समय जब आपकी आवाज चली गई थी? मैं उसी रात मसीह में आया.'

उस व्यक्ति की तरह जो अपनी निर्बलताओं को जानता है, मैंने इसे प्रेरणादायक पाया कि जब मैं कमजोरी महसूस करता हूँ, तब भी मैं अकेला नहीं हूँ. जब आप अपना भरोसा परमेश्वर पर रखते हैं, तो वह आपकी कमजोरी को सामर्थ में बदल देते हैं.

बुद्धि

भजन संहिता 59:1-8

संगीत निर्देशक के लिये ‘नाश मत कर’ धुन पर दाऊद का उस समय का एक भक्ति गीत जब शाऊल ने लोगों को दाऊद के घर पर निगरानी रखते हुए उसे मार डालने की जुगत करने के लिये भेजा था।

59हे परमेश्वर, तू मुझको मेरे शत्रुओं से बचा ले।
 मेरी सहायता उनसे विजयी बनने में कर जो मेरे विरूद्ध में युद्ध करने आये हैं।
2 ऐसे उन लोगों से, तू मुझको बचा ले।

 तू उन हत्यारों से मुझको बचा ले जो बुरे कामों को करते रहते हैं।
3 देख! मेरी घात में बलवान लोग हैं।
 वे मुझे मार डालने की बाट जोह रहे हैं।
 इसलिए नहीं कि मैंने कोई पाप किया अथवा मुझसे कोई अपराध बन पड़ा है।
4 वे मेरे पीछे पड़े हैं, किन्तु मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया है।
 हे यहोवा, आ! तू स्वयं अपने आप देख ले!
5 हे परमेश्वर! इस्राएल के परमेश्वर! तू सर्वशक्ति शाली है।
 तू उठ और उन लोगों को दण्डित कर।
 उन विश्वासघातियों उन दुर्जनों पर किंचित भी दया मत दिखा।

6 वे दुर्जन साँझ के होते ही
 नगर में घुस आते हैं।
 वे लोग गुरर्ते कुत्तों से नगर के बीच में घूमते रहते हैं।
7 तू उनकी धमकियों और अपमानों को सुन।
 वे ऐसी क्रूर बातें कहा करते हैं।
 वे इस बात की चिंता तक नहीं करते कि उनकी कौन सुनता है। 8 हे यहोवा, तू उनका उपहास करके
 उन सभी लोगों को मजाक बना दे।

समीक्षा

विश्वास और विरोध

परेशानी के समय में परमेश्वर आपकी ताकत हैं. परमेश्वर में विश्वास करना, आसान जीवन का नुस्खा नहीं है. वास्तव में, यह बिल्कुल विपरीत है. आपको हर तरह के विरोधियों का सामना करना पड़ सकता है.

दाऊद का जीवन खतरे में था. शाउल ने दाऊद के घर का पता लगाने के लिए लोगों को भेजा था, ताकि उसे मार डाला जाए. वह खुद को, 'शत्रुओं, विद्रोहियों, बुरी युक्तियों, हत्यारों, आततायियों, और घातकों से घिरा हुआ पाता है' (वव.1-4).

फिर भी इन सबके बीच, दाऊद बचाव के लिए प्रार्थना करता है (वव.1-2) और उसे पूरा विश्वास है कि प्रभु उसे छुड़ा सकते हैं, और उसे जरूर छुड़ाएंगे (व.8). इस भजन में बाद में वह परमेश्वर को दो बार पुकारता है: 'हे मेरे बल' (वव. 9,17).

बल्कि वह ऐसा भी कहता है, ' हे यहोवा, मेरा कोई दोष व पाप नहीं है,' (व.3). दाऊद सिद्ध नहीं था (उदाहरण के लिए, 2 शमूएल 11 देखें). फिर भी आपको कभी-कभी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए नहीं कि आपने कुछ गलत किया है, बल्कि इसलिए कि आप कुछ सही कर रहे हैं.

व्यक्तिगत परेशानी के समय मदद के लिए परमेश्वर को पुकारें. ' मुझ से मिलने के लिये जाग उठ और यह देख!' (व.59:4ब). आप अंतरराष्ट्रीय त्रासदी के समय भी मदद के लिए परमेश्वर को पुकार सकते हैं. ठीक अगला वाक्य राष्ट्र के लिए प्रार्थना है (व.5अ). विरोध चाहें किसी भी स्तर का क्यों न हो, छुटकारे, मदद और हस्तक्षेप के लिए परमेश्वर को पुकारें.

प्रार्थना

मेरा बल, संकट और विरोध के समय में आप पर भरोसा करने के लिए मेरी मदद कीजिये. जो आपकी योजनाओं का विरोध करते हैं उनसे हमें बचाइये.
नए करार

यूहन्ना 6:25-59

यीशु, जीवन की रोटी

25 जब उन्होंने यीशु को झील के उस पार पाया तो उससे कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”

26 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे हो कि तुमने आश्चर्यपूर्ण चिन्ह देखे हैं बल्कि इसलिए कि तुमने भर पेट रोटी खायी थी। 27 उस खाने के लिये परिश्रम मत करो जो सड़ जाता है बल्कि उसके लिये जतन करो जो सदा उत्तम बना रहता है और अनन्त जीवन देता है, जिसे तुम्हें मानव-पुत्र देगा। क्योंकि परमपिता परमेश्वर ने अपनी मोहर उसी पर लगायी है।”

28 लोगों ने उससे पूछा, “जिन कामों को परमेश्वर चाहता है, उन्हें करने के लिए हम क्या करें?”

29 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “परमेश्वर जो चाहता है, वह यह है कि जिसे उसने भेजा है उस पर विश्वास करो।”

30 लोगों ने पूछा, “तू कौन से आश्चर्य चिन्ह प्रकट करेगा जिन्हें हम देखें और तुझमें विश्वास करें? तू क्या कार्य करेगा? 31 हमारे पूर्वजों ने रेगिस्तान में मन्ना खाया था जैसा कि पवित्र शास्त्रों में लिखा है। उसने उन्हें खाने के लिए, स्वर्ग से रोटी दी।”

32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ वह मूसा नहीं था जिसने तुम्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी थी बल्कि यह मेरा पिता है जो तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी देता है। 33 वह रोटी जिसे परम पिता देता है वह स्वर्ग से उतरी है और जगत को जीवन देती है।”

34 लोगों ने उससे कहा, “हे प्रभु, अब हमें वह रोटी दे और सदा देता रह।”

35 तब यीशु ने उनसे कहा, “मैं ही वह रोटी हूँ जो जीवन देती है। जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मुझमें विश्वास करता है कभी भी प्यासा नहीं रहेगा। 36 मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ कि तुमने मुझे देख लिया है, फिर भी तुम मुझमें विश्वास नहीं करते। हर वह व्यक्ति जिसे परम पिता ने मुझे सौंपा है, मेरे पास आयेगा। 37 जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं लौटाऊँगा। 38 क्योंकि मैं स्वर्ग से अपनी इच्छा के अनुसार काम करने नहीं आया हूँ बल्कि उसकी इच्छा पूरी करने आया हूँ जिसने मुझे भेजा है। 39 और मुझे भेजने वाले की यही इच्छा है कि मैं जिनको परमेश्वर ने मुझे सौंपा है, उनमें से किसी को भी न खोऊँ और अन्तिम दिन उन सबको जिला दूँ। 40 यही मेरे परम पिता की इच्छा है कि हर वह व्यक्ति जो पुत्र को देखता है और उसमें विश्वास करता है, अनन्त जीवन पाये और अंतिम दिन मैं उसे जिला उठाऊँगा।”

41 इस पर यहूदियों ने यीशु पर बड़बड़ाना शुरू किया क्योंकि वह कहता था, “वह रोटी मैं हूँ जो स्वर्ग से उतरी है।” 42 और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का बेटा यीशु नहीं है, क्या हम इसके माता-पिता को नहीं जानते हैं। फिर यह कैसे कह सकता है, ‘यह स्वर्ग से उतरा है’?”

43 उत्तर में यीशु ने कहा, “आपस में बड़बड़ाना बंद करो, 44 मेरे पास तब तक कोई नहीं आ सकता जब तक मुझे भेजने वाला परम पिता उसे मेरे प्रति आकर्षित न करे। मैं अंतिम दिन उसे पुनर्जीवित करूँगा। 45 नबियों ने लिखा है, ‘और वे सब परमेश्वर के द्वारा सिखाए हुए होंगे।’ हर वह व्यक्ति जो परम पिता की सुनता है और उससेसिखता है मेरे पास आता है। 46 किन्तु वास्तव में परम पिता को सिवाय उसके जिसे उसने भेजा है, किसी ने नहीं देखा। परम पिता को बस उसी ने देखा है।

47 “मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, जो विश्वासी है, वह अनन्त जीवन पाता है। 48 मैं वह रोटी हूँ जो जीवन देती है। 49 तुम्हारे पुरखों ने रेगिस्तान में मन्ना खाया था तो भी वे मर गये। 50 जबकि स्वर्ग से आयी इस रोटी को यदि कोई खाए तो मरेगा नहीं। 51 मैं ही वह जीवित रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है। यदि कोई इस रोटी को खाता है तो वह अमर हो जायेगा। और वह रोटी जिसे मैं दूँगा, मेरा शरीर है। इसी से संसार जीवित रहेगा।”

52 फिर यहूदी लोग आपस में यह कहते हुए बहस करने लगे, “यह अपना शरीर हमें खाने को कैसे दे सकता है?”

53 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का शरीर नहीं खाओगे और उसका लहू नहीं पिओगे तब तक तुममें जीवन नहीं होगा। 54 जो मेरा शरीर खाता रहेगा और मेरा लहू पीता रहेगा, अनन्त जीवन उसी का है। अन्तिम दिन मैं उसे फिर जीवित करूँगा। 55 मेरा शरीर सच्चा भोजन है और मेरा लहू ही सच्चा पेय है। 56 जो मेरे शरीर को खाता रहता है, और लहू को पीता रहता है वह मुझमें ही रहता है, और मैं उसमें।

57 “बिल्कुल वैसे ही जैसे जीवित पिता ने मुझे भेजा है और मैं परम पिता के कारण ही जीवित हूँ, उसी तरह वह जो मुझे खाता रहता है मेरे ही कारण जीवित रहेगा। 58 यही वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरी है। यह वैसी नहीं है जैसी हमारे पूर्वजों ने खायी थी। और बाद में वे मर गये थे। जो इस रोटी को खाता रहेगा, सदा के लिये जीवित रहेगा।”

59 यीशु ने ये बातें कफरनहूम के आराधनालय में उपदेश देते हुए कहीं।

समीक्षा

विश्वास और खोखलापन

यीशु ने विश्वास की केन्द्रीयता के बारे में सिखाया. जब उनसे पूछा गया कि 'परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें? यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो' (वव.28-29).

हमें मुख्य रूप से 'विश्वासी' बुलाया जाता है ना कि 'सफल व्यक्ति'. जिस तरह से हम सफल होते हैं वह विश्वास करने से शुरू होता है.

यीशु कहते हैं, 'मैं जीवन की रोटी हूँ' (व.35). जब हमें शारीरिक रूप से भूख लगती है, तो हम भोजन करते हैं. लेकिन शारीरिक जरूरतों की तरह आपको आत्मिक जरूरत भी पड़ती है यानि एक आत्मिक भूख. यीशु जिस रोटी की बात कर रहे हैं वह वचन है जो देहधारी हुआ, जो उनके सामने एक दोस्त के रूप में प्रस्तुत हुआ. यीशु हमें एक व्यक्तिगत, घनिष्ठ और दिल से दिल के संबंध का प्रस्ताव देते हैं. उनका संपूर्ण व्यक्तित्व हम में से हरएक के लिए एक उपहार है.

यीशु में विश्वास करना, उस खालीपन को भर देता है और उद्देश्य, दृढ़ता और क्षमा के लिए आपकी आत्मिक भूख को मिटा देता है.

  1. उद्देश्य

सांसारिक रोटी पर्याप्त नहीं है. सिर्फ भौतिक चीजें संतुष्ट नहीं कर सकतीं. धन, घर, सफलता बल्कि मानवीय संबंध भी जीवन के लिए हमारे अंतिम उद्देश्य को संतुष्ट नहीं कर सकते.

जो रोटी संतुष्ट कर सकती है, वह 'जीवन की रोटी' है. यह कोई वस्तु नहीं है जो यीशु देते हैं. वह उपहार है और वह दाता हैं. इस बातचीत में 'मैं' या 'मुझे' शब्द पैंतीस बार नजर आता है. 'मैं जीवन की रोटी हूँ. जो कोई मेरे पास आएगा वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो कोई मुझ पर विश्वास करेगा वह कभी प्यासा नहीं होगा' (व.35).

आप अपना विश्वास यीशु पर रखने पर भी आप भौतिक चीजों में या धार्मिक जाल में आसानी से फंस सकते हैं, लेकिन यीशु के साथ संबंध ही हमारी आत्मिक भूख को मिटा सकता है.

अभिव्यक्तियाँ, 'मुझ पर विश्वास करो' (व.29), 'मेरे पास आओ' (व.35), 'पुत्र को देखो' (व.40), 'मेरा मांस खाओ और मेरा लहू पीयो' (व. 53 से आगे) ये सब यीशु के साथ घनिष्ठता से जीने का वर्णन करते हैं.

  1. दृढ़ता

हम सब मरने वाले हैं. मृत्यु एक कड़वा सत्य है. यीशु कहते हैं, यह जीवन का अंत नहीं है. 'मैं जीवन की रोटी हूँ जो स्वर्ग से आयी है. जो कोई इस रोटी को खाएगा..... मैं उसे अंतिम दिनों में फिर से जीवित करूँगा' (वव. 51,54).

यीशु आपको आखिरी दिनों में फिर से जीवित करने का वायदा करते हैं और यह कि आप सदा के लिए जीवित रहेंगे. आप पूर्ण रूप से आश्वस्त हो सकते हैं, कि यीशु के साथ आपका संबंध मृत्य के बाद भी कायम रहेगा.

इस अनंत जीवन के लिए वर्तमान और भविष्य में दोनों आयाम शामिल हैं. ' तब उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया करें' (व.34). यीशु कहते हैं इसे तुरंत पाया जा सकता है (व.35 से आगे). फिर भी उन्होंने स्पष्ट किया कि यह सदा के लिए बनी रहेगी (वव.50-51).

  1. क्षमा

वास्तव में क्षमा हमारी सबसे बड़ी जरूरत है. नास्तिक दार्शनिक मार्गेनिटा लस्की, ने कहा है, 'मुझे मसीहियों के बारे में ईर्ष्या आपको क्षमा मिलने से होती है. ऐसा कोई नहीं है जो मुझे क्षमा कर सके.' हम सब यह जानना चाहते हैं कि हमने जो भी गलती की है उसके लिए हमें क्षमा मिल गई है.

यीशु ने कहा है, ' जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है' (व.51). पापों की क्षमा के लिए उनका लहू बहाया गया. आप जब भी प्रभु भोज में भाग लेते हैं, तो यह आपको याद दिलाता है कि यीशु ने अपना जीवन दिया ताकि हमें क्षमा मिल सके.'

आप यह रोटी कैसे पाएंगे? यीशु कहते हैं, ' मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है। जीवन की रोटी मैं हूँ' (वव.47-48). जबकि हम देखते हैं कि यूहन्ना के सुसमाचार में पवित्र भोज के लिए यीशु की कोई अलग विधि नहीं है, फिर भी यहाँ प्रभु भोज पर यीशु की शिक्षा में हम विश्वास का महत्व देखते हैं.

अन्य चीजों के साथ-साथ, प्रभु भोज एक दृश्य संकेत है जो हमें विश्वास से यीशु को ग्रहण करने में मदद करता है (वव.53-58). यह उस दोस्ती को प्रकट करता है और बढ़ाता है जिसे यीशु आपके साथ रखना चाहते हैं. यह उनके प्रेम का उपहार है और इस बात का संकेत है कि वह सदा सर्वदा आप में निवास करना चाहते हैं.

प्रार्थना

प्रभु आपको धन्यवाद कि, आप में विश्वास रखने के द्वारा मुझे अपने जीवन का स्थायी उद्देश्य, अपने पापों के लिए क्षमा और अनंत जीवन के लिए वायदा मिल गया है. आज आपके साथ घनिष्ठता से चलने में और आपके साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में मेरी मदद कीजिये.
जूना करार

न्यायियों 10:1-11:40

न्यायाधीश तोला

10अबीमेलेक के मरने के बाद इस्राएल के लोगों की रक्षा के लिये परमेश्वर द्वारा दूसरा न्यायाधीश भेजा गया। उस व्यक्ति का नाम तोला था। तोला पुआ नामक व्यक्ति का पुत्र था। पुआ दोदो नामक व्यक्ति का पुत्र था। तोला इस्साकार के परिवार समूह का था। तोला शामीर नगर में रहता था। शामीर नगर एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में था। 2 तोला इस्राएल के लोगों के लिये तेईस वर्ष तक न्यायाधीश रहा। तब तोला मर गया और शामीर नगर में दफनाया गया।

न्यायाधीश याईर

3 तोला के मरने के बाद, परमेश्वर द्वारा एक और न्यायाधीश भेजा गया। उस व्यक्ति का नाम याईर था। याईर गिलाद के क्षेत्र में रहता था। याईर इस्राएल के लोगों के लिये बाईस वर्ष तक न्यायाधीश रहा। 4 याईर के तीस पुत्र थे। वे तीस गधों पर सवार होते थे। वे तीस पुत्र गिलाद क्षेत्र के तीस नगरों की व्यवस्था करते थे। वे नगर “याईर के ग्राम” आज तक कहे जाते हैं। 5 याईर मरा और कामोन नगर मे दफनाया गया।

अम्मोनी लोग इस्राएल के लोगों के विरुद्ध लड़ते हैं

6 यहोवा ने इस्राएल के लोगों को फिर पाप करते हुए देखा। वे बाल एवं अश्तोरेत की मूर्तियों की पूजा करते थे। वे आराम, सीदोन, मोआब, अम्मोन और पलिश्तियों के देवताओं की पूजा करते थे। इस्राएल के लोगों ने यहोवा को छोड़ दिया और उसकी सेवा बन्द कर दी।

7 इसलिए यहोवा इस्राएल के लोगों पर क्रोधित हुआ। यहोवा ने पलिश्तियों और अम्मोनियों को उन्हें पराजित करने दिया। 8 उसी वर्ष उन लोगों ने इस्राएल के उन लोगों को नष्ट किया जो गिलाद क्षेत्र में यरदन नदी के पूर्व रहते थे। यह वही प्रदेश है जहाँ अम्मोनी लोग रह चुके थे। इस्राएल के वे लोग अट्ठारह वर्ष तक कष्ट भोगते रहे। 9 तब अम्मोनी लोग यरदन नदी के पार गए। वे लोग यहूदा, बिन्यामीन और एप्रैम लोगों के विरुद्ध लड़ने गए। अम्मोनी लोगों ने इस्राएल के लोगों पर अनेक विपत्तियाँ ढाईं।

10 इसलिए इस्राएल के लोगों ने यहोवा को रोकर पुकारा, “हम लोगों ने, परमेश्वर, तेरे विरुद्ध पाप किया है। हम लोगों ने अपने परमेश्वर को छोड़ा और बाल की मूर्तियों की पूजा की।”

11 यहोवा ने इस्राएल के लोगों को उत्तर दिया, “तुम लोगों ने मुझे तब रोकर पुकारा जब मिस्री, एमोरी, अम्मोनी तथा पलिश्ती लोगों ने तुम पर प्रहार किये। मैंने तुम्हें इन लोगों से बचाया। 12 तुम लोग तब चिल्लाए जब सीदोन के लोगों, अमालेकियों और मिद्यानियों ने तुम पर प्रहार किया। मैंने उन लोगों से भी तुम्हें बचाया। 13 किन्तु तुमने मुझको छोड़ा है। तुमने अन्य देवताओं की उपासना की है। इसलिए मैंने तुम्हें फिर बचाने से इन्कार किया है। 14 तुम उन देवताओं की पूजा करना पसन्द करते हो। इसलिए उनके पास सहायता के लिये पुकारने जाओ। विपत्ति में पड़ने पर उन देवताओं को रक्षा करने दो।”

15 किन्तु इस्राएल के लोगों ने यहोवा से कहा, “हम लोगों ने पाप किया है। तू हम लोगों के साथ जो चाहता है, कर। किन्तु आज हमारी रक्षा कर।” 16 तब इस्राएल के लोगों ने अपने पास के विदेशी देवताओं को फेंक दिया। उन्होंने फिर से यहोवा की उपासना आरम्भ की। इसलिए जब यहोवा ने उन्हें कष्ट उठाते देखा, तब वह उनके लिए दुःखी हुआ।

यिप्तह प्रमुख चुना गया

17 अम्मोनी लोग युद्ध करने के लिये एक साथ इकट्ठे हुए, उनका डेरा गिलाद क्षेत्र में था। इस्राएल के लोग एक साथ इकट्ठे हुए, उनका डेरा मिस्पा नगर में था। 18 गिलाद क्षेत्र में रहने वाले लोगों के प्रमुखों ने कहा, “अम्मोन के लोगों पर आक्रमण करने में जो व्यक्ति हमारा नेतृत्व करेगा, वही व्यक्ति, उन सभी लोगों का प्रमुख हो जाएगा जो गिलाद क्षेत्र में रहते हैं।”

11यिप्तह गिलाद के परिवार समूह से था। वह एक शक्तिशाली योद्धा था। किन्तु यिप्तह एक वेश्या का पुत्र था। उसका पिता गिलाद नाम का व्यक्ति था। 2 गिलाद की पत्नी के अनेक पुत्र थे। जब वे पुत्र बड़े हुए तो उन्होंने यिप्तह को पसन्द नहीं किया। उन पुत्रों ने यिप्तह को अपने जन्म के नगर को छोड़ने के लिये विवश किया। उन्होंने उससे कहा, “तुम हमारे पिता की सम्पत्ति में से कुछ भी नहीं पा सकते। तुम दूसरी स्त्री के पुत्र हो।” 3 इसलिये यिप्तह अपने भाईयों के कारण दूर चला गया। वह तोब प्रदेश में रहता था। तोब प्रदेश में कुछ उपद्रवी लोग यिप्तह का अनुसरण करने लगे।

4 कुछ समय बाद अम्मोनी लोग इस्राएल के लोगों से लड़े। 5 अम्मोनी लोग इस्राएल के लोगों के विरूद्ध लड़ रहे थे। इसलिये गिलाद प्रदेश के अग्रज(प्रमुख) यिप्तह के पास आए। वे चाहते थे कि यिप्तह तोब प्रदेश को छोड़ दे और गिलाद प्रदेश में लौट आए।

6 प्रमुखों ने यिप्तह से कहा, “आओ, हमारे प्रमुख बनो, जिससे हम लोग अम्मोनियों के साथ लड़ सकें।”

7 किन्तु यिप्तह ने गिलाद प्रदेश के अग्रजों (प्रमुखों) से कहा, “क्या यह सत्य नहीं कि तुम लोग मुझसे घृणा करते हो? तुम लोगों ने मुझे अपने पिता का घर छोड़ने के लिये विवश किया। अत: जब तुम विपत्ति में हो तो मेरे पास क्यों आ रहे हो।?”

8 गिलाद प्रदेश के अग्रजों ने यिप्तह से कहा, “यही कारण है जिससे हम अब तुम्हारे पास आए हैं। कृपया हम लोगों के साथ आओ और अम्मोनी लोगों के विरुद्ध लड़ो। तुम उन सभी लोगों के सेनापति होगे जो गिलाद प्रदेश में रहते हैं।”

9 तब यिप्तह ने गिलाद प्रदेश के अग्रजों से कहा, “यदि तुम लोग चाहते हो कि मैं गिलाद को लौटूँ और अम्मोनी लोगों के विरूद्ध लड़ूँ तो यह बहुत अच्छी बात है। किन्तु यदि यहोवा मुझे विजय पाने में सहायता करे तो मैं तुम्हारा नया प्रमुख बनूँगा।”

10 गिलाद प्रदेश के अग्रजों ने यिप्तह से कहा, “हम लोग जो बातें कर रहे हैं, यहोवा वह सब सुन रहा है। हम लोग यह सब करने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं जो तुम हमें करने को कह रहे हो।”

11 अत: यिप्तह गिलाद के अग्रजों के साथ गया। उन लोगों ने यिप्तह को अपना प्रमुख तथा सेनापति बनाया। यिप्तह ने मिस्पा नगर में यहोवा के सामने अपनी सभी बातें दुहरायीं।

यिप्तह अम्मोनी राजा के पास सन्देश भेजता है

12 यिप्तह ने अम्मोनी राजा के पास दूत भेजा। दूत ने राजा को यह सन्देश दिया: “अम्मोनी और इस्राएल के लोगों के बीच समस्या क्या है? तुम हमारे प्रदेश में लड़ने क्यों आए हो?”

13 अम्मोनी लोगों के राजा ने यिप्तह के दूत से कहा, “हम लोग इस्राएल के लोगों से इसलिए लड़ रहे हैं क्योंकि इस्राएल के लोगों ने हमारी भूमि तब ले ली जब वे मिस्र से आए थे। उन्होंने हमारी भूमि अर्नोन नदी से यब्बोक नदी और वहाँ से यरदन नदी तक ले ली और अब इस्राएल के लोगों से कहो कि वे हमारी भूमि हमें शान्तिपूर्वक वापस दे दें।”

14 अत: यिप्तह का दूत यह सन्देश यिप्तह के पास वापस ले गया। तब यिप्तह ने अम्मोनी लोगों के राजा के पास फिर दूत भेजे। 15 वे यह सन्देश ले गएः

“यप्तह यह कह रहा है। इस्राएल ने मोआब के लोगों या अम्मोन के लोगों की भूमि नहीं ली। 16 जब इस्राएल के लोग मिस्र देश से बाहर आए तो इस्राएल के लोग मरुभूमि में गए थे। इस्राएल के लोग लाल सागर को गए। तब वे उस स्थान पर गए जिसे कादेश कहा जाता है। 17 इस्राएल के लोगों ने एदोम प्रदेश के राजा के पास दूत भेजे थे।। दूतों ने कृपा की याचना की थी। उन्होंने कहा था, ‘इस्राएल के लोगों को अपने प्रदेश से गुजर जाने दो।’ किन्तु एदोम के राजा ने अपने देश से हमें नहीं जाने दिया। हम लोगों ने वही सन्देश मोआब के राजा के पास भेजा। किन्तु मोआब के राजा ने भी अपने प्रदेश से होकर नहीं जाने दिया। इसलिए इस्राएल के लोग कादेश में ठहरे रहे।

18 “तब इस्राएल के लोग मरूभूमि में गए और एदोम प्रदेश तथा मोआब प्रदेश की छोरों के चारों ओर चक्कर काटते रहे। इस्राएल के लोगों ने मोआब प्रदेश के पूर्व की तरफ से यात्रा की । उन्होंने अपना डेरा अर्नोन नदी की दूसरी ओर डाला। उन्होंने मोआब की सीमा को पार नहीं किया। (अर्नोन नदी मोआब के प्रदेश की सीमा थी।)

19 “तब इस्राएल के लोगों ने एमोरी लोगों के राजा सीहोन के पास दूत भेजे। सीहोन हेश्बोन नगर का राजा था। दूतों ने सीहोन से माँग की, ‘इस्राएल के लोगों को अपने प्रदेश से गुजर जाने दो। हम लोग अपने प्रदेश में जाना चाहते हैं। 20 किन्तु एमोरी लोगों के राजा सीहोन ने इस्राएल के लोगों को अपनी सीमा पार नहीं करने दी। सीहोन ने अपने सभी लोगों को इकट्ठा किया और यहस पर अपना डेरा डाला। तब एमोरी लोग इस्राएल के लोगों के साथ लड़े। 21 किन्तु यहोवा इस्राएल के लोगों का परमेश्वर ने, इस्राएल के लोगों की सहायता, सीहोन और उसकी सेना को हराने में की। एमोरी लोगों की सारी भूमि इस्राएल के लोगों की सम्पत्ति बन गई। 22 इस प्रकार इस्राएल के लोगों ने एमोरी लोगों का सारा प्रदेश पाया। यह प्रदेश अर्नोन नदी से यब्बोक नदी तक था। यह प्रदेश मरुभूमि से यरदन नदी तक था।

23 “यह यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर था जिसने एमोरी लोगों को अपना देश छोड़ने के लिये बलपूर्वक विवश किया और यहोवा ने वह प्रदेश इस्राएल के लोगों को दिया। क्या तुम सोचते हो कि तुम इस्राएल के लोगों से यह छुड़वा दोगे? 24 निश्चय ही, तुम उस प्रदेश में रह सकते हो जिसे तुम्हारे देवता कमोश ने तुम्हें दिया है। इसलिए हम लोग उस प्रदेश में रहेंगे, जिसे यहोवा, हमारे परमेश्वर ने हमें दिया है। 25 क्या तुम सिप्पोर नामक व्यक्ति के पुत्र बालाक से अधिक अच्छे हो? वह मोआब प्रदेश का राजा था। क्या उसने इस्राएल के लोगों से बहस की? क्या वह सचमुच इस्राएल के लोगों से लड़ा? 26 इस्राएल के लोग हेश्बोन और उसके चारों ओर के नगरों में तीन सौ वर्ष तक रह चुके हैं। इस्राएल के लोग अरोएर नगर और उसके चारों ओर के नगर में तीन सौ वर्ष तक रह चुके हैं। इस्राएल के लोग अर्नोन नदी के किनारे के सभी नगरों में तीन सौ वर्ष तक रह चुके हैं। तुमने इस समय में, इन नगरों को वापस लेने का प्रयत्न क्यों नहीं किया? 27 इस्राएल के लोगों ने किसी के विरुद्ध कोई पाप नहीं किया है। किन्तु तुम इस्राएल के लोगों के विरुद्ध बहुत बड़ी बुराई कर रहे हो। यहोवा को, जो सच्चा न्यायाधीश है, निश्चय करने दो कि इस्राएल के लोग ठीक रास्ते पर हैं या अम्मोनी लोग।”

28 अम्मोनी लोगों के राजा ने यिप्तह के इस सन्देश को अनसुना किया।

यिप्तह की प्रतिज्ञा

29 तब यहोवा की आत्मा यिप्तह पर उतरी। यिप्तह गिलाद प्रदेश और मनश्शे के प्रदेश से गुज़रा। वह गिलाद प्रदेश में मिस्पे नगर को गया। गिलाद प्रदेश के मिस्पे नगर को पार करता हुआ यिप्तह, अम्मोनी लोगों के प्रदेश में गया।

30 यिप्तह ने यहोवा को वचन दिया। उसने कहा, “यदि तू एमोरी लोगों को मुझे हराने देता है। 31 तो मैं उस पहली चीज़ को तुझे भेंट करूँगा जो मेरी विजय से लौटने के समय मेरे घर से बाहर आएगी। मैं इसे यहोवा को होमबलि के रूप में दूँगा।”

32 तब यिप्तह अम्मोनी लोगों के प्रदेश में गया। यिप्तह अम्मोनी लोगों से लड़ा। यहोवा ने अम्मोनी लोगों को हराने में उसकी सहायता की। 33 उसने उनहें अरोएर नगर से मिन्नीत के क्षेत्र की छोर तक हराया। यिप्तह ने बीस नगरों पर अधिकार किया। उसने अम्मोनी लोगों से आबेलकरामीम नगर तक युद्ध किया। यह अम्मोनी लोगों के लिये बड़ी हार थी। अम्मोनी लोग इस्राएल के लोगों द्वारा हरा दिये गए।

34 यिप्तह मिस्पा को लौटा और अपने घर गया। उसकी पुत्री उससे घर से बाहर मिलने आई। वह एक तम्बूरा बजा रही थी और नाच रही थी। वह उसकी एकलौती पुत्री थी। यिप्तह उस बहुत प्यार करता था। यिप्तह के पास कोई अन्य पुत्री या पुत्र नहीं थे। 35 जब यिप्तह ने देखा कि पहली चीज़ उसकी पुत्री ही थी, जो उसके घर से बाहर आई तब उसने दुःख को अभिव्यक्त करने के लिये अपने वस्त्र फाड़ डाले और यह कहा, “आह! मेरी बेटी तूने मुझे बरबाद कर दिया। तूने मुझे बहुत दुःखी कर दिया! मैंने यहोवा को वचन दिया था, मैं उसे वापस नहीं ले सकता।”

36 तब उसकी पुत्री ने यिप्तह से कहा, “पिता, आपने यहोवा से प्रतिज्ञा की है। अत: वही करें जो आपने करने की प्रतिज्ञा की है। अन्त में यहोवा ने आपके शत्रुओं अम्मोनी लोगों को हराने में सहायता की।”

37 तब उसकी पुत्री ने अपने पिता यिप्तह से कहा, “किन्तु मेरे लिये पहले एक काम करो। दो महीने तक मुझे अकेली रहने दो। मुझे पहाड़ों पर जाने दो। मैं विवाह नहीं करूँगी, मेरा कोई बच्चा नहीं होगा। अत: मुझे और मेरी सहेलियों को एक साथ रोने चिल्लाने दो।”

38 यित्पह ने कहा, “जाओ और वैसा ही करो,” यिप्तह ने उस दो महीने के लिये भेज दिया। यिप्तह की पुत्री और उसकी सहेलियाँ पहाड़ों में रहे। वे उसके लिए रोये—चिल्लाये, क्योंकि वह न तो विवाह करेगी और न ही बच्चे उत्पन्न करेगी।

39 दो महीने के बाद यिप्तह की पुत्री अपने पिता के पास लौटी। यिप्तह ने वही किया जो उसने यहोवा से प्रतिज्ञा की थी। यिप्तह की पुत्री का कभी किसी के साथ कोई शारीरिक सम्बन्ध नहीं रहा। इसलिए इस्राएल में यह रिवाज बन गया। 40 इस्राएल की स्त्रियाँ हर वर्ष गिलाद के यिप्तह की पुत्री को याद करती थीं। स्त्रियाँ यिप्तह की पुत्री के लिये हर एक वर्ष चार दिन तक रोती थीं।

समीक्षा

विश्वास और दोषक्षमता

जब हम परमेश्वर के लोगों की गीत गाने और प्रभु को पुकारने और न्यायियों द्वारा बचाए जाने की गाथा पढ़ते हैं, तब हम पूरी बाइबल की सबसे विचलित करने वाली कहानियों के बारे में पढ़ते हैं.

यिप्तह का उल्लेख एक शूरवीर योद्धा के रूप में किया गया है (11:1). उसकी माँ एक वैश्या थी (व.1). उसके सौतेले भाइयों ने उसे घर से बाहर निकाल दिया था (व.3). उसने अपने आसपास लुच्चे मनुष्य इकठ्ठे कर लिये (व.3). वह एक असाधारण लीडर बन गया. प्रभु का आत्मा उसमें समा गया. और परमेश्वर द्वारा उसका उपयोग अम्मोनियों पर जय पाने के लिए किया गया – 'प्रभु ने उन लोगों को उसके हाथ में कर दिया' (व.32).

मगर यहाँ उसके जीवन में एक घटना घटती है जिसे पढ़ना लगभग असहनीय है. उसने परमेश्वर से वाचा बांधी कि यदि परमेश्वर ने उसे जय दिलाई, तो वह वापस आने पर उसके घर से भी उससे सबसे पहले मिलेगा, वह उसकी बलि देगा. यह उसकी एकलौती बेटी थी. और ऐसा प्रतीत होता है कि, उसने ऐसा किया (वव.29-40).

यह ध्यान देना जरूरी है कि परमेश्वर ने उसे वाचा बांधने के लिए कभी नहीं कहा था. ना ही उसने बलि करने के लिए कहा था. अवश्य ही यह पुराने नियम की शिक्षा के विरूद्ध है, जिसमे बच्चों का बलिदान करना मना है. इस यिप्तह परिस्थिति में यिप्तह ने परमेश्वर की इच्छा जाननी न चाही. यह उसका खुद का घमंड प्रतीत होता है जहाँ उसने अपने मान के बदले अपनी बेटी का जीवन कुर्बान करना ठीक जाना. यह विश्वास के महान लोगों की अशुद्धता की दोषक्षमता को दर्शाता है.

अनेक कमजोरियों के बावजूद, उसका नाम इब्रानियों की पुस्तक में विश्वास के आदर्श उदाहरणों में लिखा गया है जिनकी कमजोरियाँ ताकत में बदल गई थीं (इब्रानियों 11:32-34).

प्रार्थना

प्रभु जिस तरह से आप विश्वास के लोगों का उपयोग करते हैं और हमारी कमजोरियों को ताकत में बदल देते हैं उसके लिए आपको धन्यवाद. आज मुझे विश्वास का जीवन जीने में और यीशु पर विश्वास करने में मदद कीजिये, जो कि 'जीवन की रोटी हैं' (यूहन्ना 6:35).

पिप्पा भी कहते है

यूहन्ना 6:42

क्या यह यूसुफ के पुत्र यीशु नहीं हैं, जिनके माता-पिता को हम जानते हैं?

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पृष्ठभूमि से आए हैं या हमसे दूसरों की क्या अपेक्षाएं हैं या खुद के बारे में हमारी क्या सोच है. महत्वपूर्ण यह है कि परमेश्वर हमें कैसे देखते हैं. हरकोई बहुत ही सुंदर, प्यारा और मूल्यवान है, जितना कि हम जान सकते हैं.

दिन का वचन

यूहन्ना – 6:35

"यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।"

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संदर्भ

नोट्स:

जॉन स्टॉट ने माइकल पी. क्नोवेल्स (ईडी), द फॉली ऑफ प्रीचिंग (एर्डमान्स, 2007) में लिखा है, प. 137-138.

मार्गेनिटा लस्की, ने जॉन स्टॉट के, द कॉन्टेम्परेरी क्रिश्चियन, (इंटरवर्सिटी प्रेस, 1995) में लिखा है, प. 48

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