दिन 129

आप जितना बोएंगे उससे कहीं ज्यादा काटेंगे

बुद्धि भजन संहिता 58:1-11
नए करार यूहन्ना 6:1-24
जूना करार न्यायियों 9:1-57

परिचय

वाल्टर निशिओका जानते थे कि हवाइयन होटल में सेवाएं अच्छी थीं, जहाँ उन्होंने बुधवार को ब्रन्च खाया था. लेकिन उन्होंने पाया कि वह कितना अच्छा था जो उन्हें दिया गया था जिसका जिक्र मेनू में भी नहीं था –यह एक वेटर के खुद के गुर्दे थे.

श्रीमान निशिओका, उम्र सत्तर साल, एक स्थानीय व्यवसायी थे. वह गुर्दे की बीमारी से गंभीर रूप से बीमार थे और उन्हें डॉक्टरों ने बताया था कि उन्हें अतिशीघ्र निरोपण की जरूरत है. उन्होंने समान अवयव की आशा ही छोड़ दी थी – जब तक कि एक वेटर, जोस रोकासा, उम्र बावन वर्ष, ने स्वेच्छा से अपना अवयव देना चाहा. निशियोका ने कहा, 'मेरी जिंदगी ज्यादा नहीं बची है और डॉक्टरों ने कहा है कि ऐसी संभावना है कि वे मेल खाता हुआ समान गुर्दा ढूँढ लेंगे. लेकिन यहाँ भले मनुष्य और स्वर्ग से बहुत सारी मदद की वजह से, अब मैं जीवित और स्वस्थ हूँ.'

बावीस वर्षों में श्री निशिकोवा कई बार होटल गए, जोर रोकासा उनके वेटर थे और उन्हें याद है कि वह हमेशा से दयालु और मिलनसार व्यक्ति थे – और उदारता से बक्शीश दिया करते थे. 'बस मैं उनकी मदद करना चाहता था,' उसने कहा. 'हमारी कई सालों की दोस्ती है जिसमें वह दोपहर का खाना खाने आते थे और मैं उन्हें खुश रखने की पूरी कोशिश करता था और इसके बदले वह मेरे प्रति हमेशा अच्छे रहते थे. तो अवश्य ही मैं कहूँगा, "चिंता मत कीजिये – मैं अपना गुर्दा आपको दे सकता हूँ."'

श्री. निशिओका ने उदारता से बोया था और उन्होंने उदारता से काटा!

आज हम देखते हैं कि:

  • तुम जो बोते हो वही काटते हो

  • तुम पहले काटते हो और बाद में बोते हो

  • तुम जितना बोते हो उससे ज्यादा काटते हो

बुद्धि

भजन संहिता 58:1-11

‘नाश मत कर’ धुन पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक भक्ति गीत।

58न्यायाधीशों, तुम पक्षपात रहित नहीं रहे।
 तुम लोगों का न्याय निज निर्णयों में निष्पक्ष नहीं करते हो।
2 नहीं, तुम तो केवल बुरी बातें ही सोचते हो।
 इस देश में तुम हिंसापुर्ण अपराध करते हो।
3 वे दुष्ट लोग जैसे ही पैदा होते हैं, बुरे कामों को करने लग जाते हैं।
 वे पैदा होते ही झूठ बोलने लग जाते हैं।
4 वे उस भयानक साँप और नाग जैसे होते हैं जो सुन नहीं सकता।
 वे दुष्ट जन भी अपने कान सत्य से मूंद लेते हैं।
5 बुरे लोगवैसे ही होते हैं जैसे सपेरों के गीतों को
 या उनके संगीतों को काला नाग नहीं सुन सकता।

6 हे यहोवा! वे लोग ऐसे होते हैं जैसे सिंह।
 इसलिए हे यहोवा, उनके दाँत तोड़।
7 जैसे बहता जल विलुप्त हो जाता है, वैसे ही वे लोग लुप्त हो जायें।
 और जैसे राह की उगी दूब कुचल जाती है, वैसे वे भी कुचल जायें।
8 वे घोंघे के समान हो जो चलने में गल जाते।
 वे उस शिशु से हो जो मरा ही पैदा हुआ, जिसने दिन का प्रकाश कभी नहीं देखा।
9 वे उस बाड़ के काँटों की तरह शीघ्र ही नष्ट हो,
 जो आग पर चढ़ी हाँड़ी गर्माने के लिए शीघ्र जल जाते हैं।

10 जब सज्जन उन लोगों को दण्ड पाते देखता है
 जिन्होंने उसके साथ बुर किया है, वह हर्षित होता है।
 वह अपना पाँव उन दुष्टों के खून में धोयेगा।
11 जब ऐसा होता है, तो लोग कहने लगते है, “सज्जनों को उनका फल निश्चय मिलता है।
 सचमुच परमेश्वर जगत का न्यायकर्ता है!”

समीक्षा

न्याय बोएं

हर साल यौन क्रिया के लिए 8,00,000 से भी ज्यादा (मुख्य रूप से स्त्रीयों और बच्चों) की गैरकानूनी रूप से तस्करी होती है, यह अविश्वसनीय रूप से बुरा व्यापार है. आज के समय में 298 लाख लोग दासत्व में हैं. हम लगभग हर दिन दाईश और बुरी हुकूमत द्वारा किये गए अत्याचारों के बारे में पढ़ते हैं.

भजन के लेखक इस तरह के अन्याय के बारे में लिखते हैं: ' हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धर्म की बात बोलते हो? और हे मनुष्यवंशियों क्या तुम सीधाई से न्याय करते हो?' (व.1).

वह चिल्लाकर कहते हैं कि हे मनुष्यवंशियों तुम सीधाई से न्याय नहीं करते (व.1), जो मन ही मन में कुटिल काम करते हो, और देश भर में उपद्रव करते जाते हो' (व.2). वे दुष्ट लोग हैं जो जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं (व.3). ' वे उस सर्प के समान हैं, जो सुनना नहीं चाहता; और सपेरा कैसी ही निपुणता से क्यों ना मंत्र पढ़े, तब भी उसकी नहीं सुनता' (वव.4ब,5).

किसी भी समाज में लीडरशीप एक कुंजी है. एक लीडर जो अन्याय बोएगा वह भयंकर परिणामों को भुगतेगा. वे विष बोते हैं: ' उन में सर्प का सा विष है' (व.4). वे एक अस्थिर समाज बनाते हैं और अतं में बवंडर दोनों को उड़ा ले जाएगा (व.9). जब ऐसा होगा तब चारों तरफ बड़ी शांति छा जाएगी. उन्होंने वही काटा जो उन्होंने बोया था. ' निश्चय धर्मी के लिये फल है' (व.11अ). जब हम इस सिद्धांत को कार्य करता हुआ देखते हैं, तो हम कहते हैं, 'निश्चय ही परमेश्वर हैं.' (व.11).

अक्सर कटाई, बोए जाने के काफी समय बाद होती है. हालाँकि हमें अंतिम न्याय होने तक इंतजार करना पड़ेगा, यह भजन हमें याद दिलाता है कि निश्चय ही न्याय होगा. परमेश्वर का न्याय एक अच्छी बात है. यह उनके प्रेम से निकलता है. परमेश्वर हम में से हरएक को महत्व देते हैं. आखिरकार अन्याय विजयी नहीं होगा. न्याय प्रबल होगा और धर्मी तब आनंदित होंगे' (व.10).

प्रार्थना

प्रभु, मुझे वह सब करने में मदद कीजिये, ताकि मैं इस दुनिया में न्याय को बो सकूँ. मैं जहाँ भी अन्याय देखूँ उसके विरोध में लड़ने के लिए मेरी मदद कीजिये.
नए करार

यूहन्ना 6:1-24

पाँच हजार से अधिक को भोजन

6इसके बाद यीशु गलील की झील (यानी तिबिरियास) के उस पार चला गया। 2 और उसके पीछे-पीछे एक अपार भीड़ चल दी क्योंकि उन्होंने रोगियों को स्वास्थ्य प्रदान करने में अद्भुत चिन्ह देखे थे। 3 यीशु पहाड़ पर चला गया और वहाँ अपने अनुयायियों के साथ बैठ गया। 4 यहूदियों का फ़सह पर्व निकट था।

5 जब यीशु ने आँख उठाई और देखा कि एक विशाल भीड़ उसकी तरफ़ आ रही है तो उसने फिलिप्पुस से पूछा, “इन सब लोगों को भोजन कराने के लिए रोटी कहाँ से खरीदी जा सकती है?” 6 यीशु ने यह बात उसकी परीक्षा लेने के लिए कही थी क्योंकि वह तो जानता ही था कि वह क्या करने जा रहा है।

7 फिलिप्पुस ने उत्तर दिया, “दो सौ चाँदी के सिक्कों से भी इतनी रोटियाँ नहीं ख़रीदी जा सकती हैं जिनमें से हर आदमी को एक निवाले से थोड़ा भी ज़्यादा मिल सके।”

8 यीशु के एक दूसरे शिष्य शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने कहा, 9 “यहाँ एक छोटे लड़के के पास पाँच जौ की रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं पर इतने सारे लोगों में इतने से क्या होगा।”

10 यीशु ने उत्तर दिया, “लोगों को बैठाओ।” उस स्थान पर अच्छी खासी घास थी इसलिये लोग वहाँ बैठ गये। ये लोग लगभग पाँच हजार पुरुष थे। 11 फिर यीशु ने रोटियाँ लीं और धन्यवाद देने के बाद जो वहाँ बैठे थे उनको परोस दीं। इसी तरह जितनी वे चाहते थे, उतनी मछलियाँ भी उन्हें दे दीं।

12 जब उन के पेट भर गये यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो टुकड़े बचे हैं, उन्हें इकटठा कर लो ताकि कुछ बेकार न जाये।” 13 फिर शिष्यों ने लोगों को परोसी गयी जौ की उन पाँच रोटियों के बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरीं।

14 यीशु के इस आश्चर्यकर्म को देखकर लोग कहने लगे, “निश्चय ही यह व्यक्ति वही नबी है जिसे इस जगत में आना है।”

15 यीशु यह जानकर कि वे लोग आने वाले हैं और उसे ले जाकर राजा बनाना चाहते हैं, अकेला ही पर्वत पर चला गया।

यीशु का पानी पर चलना

16 जब शाम हुई उसके शिष्य झील पर गये 17 और एक नाव में बैठकर वापस झील के पार कफरनहूम की तरफ़ चल पड़े। अँधेरा काफ़ी हो चला था किन्तु यीशु अभी भी उनके पास नहीं लौटा था। 18 तूफ़ानी हवा के कारण झील में लहरें तेज़ होने लगी थीं। 19 जब वे कोई पाँच-छः किलोमीटर आगे निकल गये, उन्होंने देखा कि यीशु झील पर चल रहा है और नाव के पास आ रहा है। इससे वे डर गये। 20 किन्तु यीशु ने उनसे कहा, “यह मैं हूँ, डरो मत।” 21 फिर उन्होंने तत्परता से उसे नाव में चढ़ा लिया, और नाव शीघ्र ही वहाँ पहुँच गयी जहाँ उन्हें जाना था।

यीशु की ढूँढ

22 अगले दिन लोगों की उस भीड़ ने जो झील के उस पार रह गयी थी, देखा कि वहाँ सिर्फ एक नाव थी और अपने चेलों के साथ यीशु उस पर सवार नहीं हुआ था, बल्कि उसके शिष्य ही अकेले रवाना हुए थे। 23 तिबिरियास की कुछ नाव उस स्थान के पास आकर रुकीं, जहाँ उन्होंने प्रभु को धन्यवाद देने के बाद रोटी खायी थी। 24 इस तरह जब उस भीड़ ने देखा कि न तो वहाँ यीशु है और न ही उसके शिष्य, तो वे नावों पर सवार हो गये और यीशु को ढूँढते हुए कफरनहूम की तरफ चल पड़े।

समीक्षा

उदारता से बोएं

अवश्य ही ऐसी बहुत सी बातें हैं जिसे हम यीशु के जीवन से सीख सकते हैं. इनमें से एक सिद्धांत यह है कि जो उदारता से बोते हैं वे उदारता से काटेंगे.

तब यीशु ने अपनी आंखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते हुए देखा, और फिलेप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिये कहां से रोटी मोल लाएं? परन्तु उस ने यह बात उसे परखने के लिये कही' (वव.5-6अ). विश्वास मांसपेशी की तरह है, इसे खींचने पर यह बढ़ता है.

वास्तव में, हालाँकि यीशु ने यह प्रश्न पूछा, फिर भी वह आप जानते थे कि वह क्या करने वाले हैं (व.6ब). यह दर्शाता है कि वह प्रश्न पूछना बिल्कुल सही है जिसका उत्तर आप पहले से ही जानते हैं. (वास्तव में जब मैं एक वकील के रूप में प्रचार कर रहा था, तो मुझे सिर्फ वही प्रश्न पूछने के लिए सिखाया गया था जिसका जवाब मुझे पहले से ही पता हो!)

फिलिप्पियों ने उन्हें उत्तर दिया, 'फिलेप्पुस ने उनको उत्तर दिया, कि दो सौ दीनार की रोटी भी उन के लिये पूरी नहीं होंगी कि उन में से हर एक को थोड़ी थोड़ी मिल जाए..... उसके चेलों में से शिमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उस से कहा, यहां एक लड़का है जिस के पास जौ की पांच रोटी और दो मछिलयां हैं परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं?' (वव.7-9).

इस लड़के की उदारता के कार्य को कभी भुलाया नहीं जा सकता. यीशु बहुत थोड़े में से बहुत ज्यादा करने में सक्षम हैं. उस लड़के के पास जो था उसे उसने उदारता से दिया. यह बहुत ज्यादा नहीं था – यह इस तरह की भीड़ के लिए बाल्टी में एक बूंद के बराबर था.'

मगर, यीशु के हाथों में यह बहुत ज्यादा हो गया. कम से कम 5000 लोगों को खाना खिलाया गया और बहुत सारा बच गया. यीशु ने कहा, 'बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए' (व.12). यदि इसे बाइबल संबंधी की जरूरत है, तो कुछ न फेंके जाने के लिए यहाँ पर बाइबल संबंधी आधार है – यदि अनावश्यक रूप से खाने को फेंका जाए तो यह भयंकर रूप से गलत है.

संसार में भरपूर पैदावार होती है ताकि हरएक जन का पेट भर सके. फिर भी 870 मिलियन लोग (दुनिया की जनसंख्या का प्रत्येक 8 में से एक व्यक्ति) दीर्घकालिक कुपोषण से पीड़ित है. उसी समय, हर साल दुनिया की कुल पैदावार का तीसरा – लगभग 1.3 बिलियन टन - हिस्सा बरबाद या नष्ट हो जाता है. व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक तौर पर हमें यीशु के निर्देश का पालन यथाशीघ्र करना चाहिये: ' कि कुछ फेंका न जाए' (व.12).

आप जो यीशु को देते हैं, वह उसे बहुत ज्यादा बढ़ा देते हैं. प्रेरित पौलुस ने लिखा है, ' जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा, और जो उदारता से देता है वह उदारता से पाएगा' (2कुरिंथिंयों 9:6).

सबसे ज्यादा उदार व्यक्ति बनने का उद्देश्य बनाइये. अपनी धन-संपत्ती, अपने समय और अपने प्रेम के प्रति उदार बनिये. आप परमेश्वर को कुछ नहीं दे सकते. आप उन्हें ज्यादा देंगे उतना ज्यादा पाएंगे और आप अपने जीवन में परमेश्वर की कृपा का उतना ही लाभ उठा पाएंगे.

चमत्कार रूप से पाँच हजार लोगों को खाना खिलाने के तुरंत बाद शिष्यों ने अपने आपको तूफान में पाया (यूहन्ना 6:18). यीशु ने अपने शिष्यों को विश्वास पर आधारित दृश्य चमत्कार से – जिसने उनकी भूख मिटायी थी –उन पर और उनके वचनों पर पूर्ण रूप से भरोसा करने के लिए कहा.

चमत्कारी रूप से, यीशु उनकी तरफ पानी पर चलते हुए आते हैं. परंतु वे डर गए. (व.19). यीशु ने उनसे कहा, 'मैं हूं; डरो मत' (व.20). यीशु के पीछे चलना आसान नहीं है. जीवन में तूफान और अन्य तरह की चुनौतियाँ आती हैं,लेकिन हमारे साथ यीशु की उपस्थिति रूपांतरणीय है.

प्रार्थना

यीशु आपको धन्यवाद कि मैं आपको जो कुछ भी देता हूँ, उसे आप बहुत ज्यादा बढ़ा देते हैं. प्रभु, हर बातों में – धन, संपत्ती, आतिथ्य और समय के साथ उदार बनने में मेरी मदद कीजिये.
जूना करार

न्यायियों 9:1-57

अबीमेलेक राजा बना

9अबीमेलेक यरुब्बाल (गिदोन) का पुत्र था। अबीमेलेक अपने उन मामाओं के पास गया जो शकेम नगर में रहते थे। उसने अपने मामाओं और माँ के परिवार से कहा 2 “शकेम नगर के प्रमुखों से यह प्रश्न पूछो: ‘यरूब्बाल के सत्तर पुत्रों से आप लोगों का शासित होना अच्छा है या किसी एक ही व्यक्ति से शासित होना? याद रखो, मैं तुम्हारा सम्बन्धी हूँ।’”

3 अबीमेलेक के मामाओं ने शकेम के प्रमुखों से बात की और उनसे वह प्रश्न किया। शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक का अनुसरण करने का निश्चय किया। प्रमुखों ने कहा, “आखिरकार वह हमारा भाई है।” 4 इसलिए शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक को सत्तर चाँदी के टुकड़े दिये। वह चाँदी बालबरोत देवता के मन्दिर की थी। अबीमेलेक ने चाँदी का उपयोग कुछ व्यक्तियों को काम पर लगाने के लिये किया। ये व्यक्ति खूँखार और बेकार थे। वे अबीमेलेक के पीछे, जहाँ कहीं वह गया, चलते रहे।

5 अबीमेलेक ओप्रा नगर को गया। ओप्रा उसके पिता का निवास स्थान था। उस नगर में अबीमेलेक ने अपने सत्तर भाईयों की हत्या कर दी। वे सत्तर भाई अबीमेलेक के पिता यरूब्बाल के पुत्र थे। उसने सभी को एक पत्थर पर मारा किन्तु यरुब्बाल का सबसे छोटा पुत्र अबीमेलेक से दूर छिप गया और भाग निकला। सबसे छोटे पुत्र का नाम योताम था।

6 तब शकेम नगर के सभी प्रमुख और बेतमिल्लो के महल के सदस्य एक साथ आए। वे सभी लोग उस पाषाण—स्तम्भ के निकट के बड़े पेड़ के पास इकट्ठे हुए जो शकेम नगर में था और उन्होंने अबीमेलेक को अपना राजा बनाया।

योताम की कथा

7 योताम ने सुना कि शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक को राजा बना दिया है। जब उसने यह सुना तो वह गया और गरिज्जीम पर्वत की चोटी पर खड़ा हुआ। योताम ने लोगों को यह कथा चिल्लाकर सुनाई।

“शकेम के लोगो, मेरी बात सुनो और तब आपकी बात परमेश्वर सुनेगा।

8 “एक दिन पेड़ों ने अपने ऊपर शासन करने के लिए एक राजा चुनने का निर्णय किया। पेड़ों ने जैतून के पेड़ से कहा, ‘तुम हमारे ऊपर राजा बनो।’

9 “किन्तु जैतून के पेड़ ने कहा, ‘मनुष्य और ईश्वर मेरी प्रशंसा मेरे तेल के लिये करते हैं। क्या मैं जाकर केवल अन्य पेड़ों पर सासन करने के लिये अपना तेल बनाना बन्द कर दूँ?’

10 “तब पेड़ों ने अंजीर के पेड़ से कहा, ‘आओ और हमारे राजा बनो।’

11 “किन्तु अंजीर के पेड़ ने उत्तर दिया, ‘क्या मैं केवल जाकर अन्य पेड़ों पर शासन करने के लिये अपने मीठे और अच्छे फल पैदा करने बन्द करदूँ?’

12 “तब पेड़ों ने अंगूर की बेल से कहा, ‘आओ और हमरे राजा बनो।’

13 “किन्तु अंगूर की बेल ने उत्तर दिया, ‘मेरी दाखमधु मनुष्य और ईश्वर दोनों को प्रसन्न करती है। क्या मुझे केवल जाकर पेड़ों पर शासन करने के लिये अपनी दाखमधु पैदा करना बन्द कर देना चाहिए।’

14 “अन्त में पेड़ों ने कटीली झाड़ी से कहा, ‘आओ और हमारे राजा बनो।’

15 “किन्तु कटीली झाड़ी ने पेड़ों से कहा, ‘यदि तुम सचमुच मुझे अपने ऊपर राजा बनाना चाहते हो तो आओ और मेरी छाया में अपनी शरण बनाओ। यदि तुम ऐसा करना नहीं चाहते तो इस कटीली झाड़ी से आग निकलने दो, और उस आग को लबानोन के चीड़ के पेड़ों को भी जला देने दो।’

16 “यदि आप पूरी तरह उस समय ईमानदार थे जब आप लोगों ने अबीमेलेक को राजा बनाया, तो आप लोगों को उससे प्रसन्न होना चाहिए। यदि आप लोगों ने यरुब्बाल और उसके परिवार के लोगों के साथ उचित व्यवहार किया है तो, यह बहुत अच्छा है। यदि आपने यरुब्बाल के साथ वही व्यवहार किया है जो आपको करना चाहिये तो यही अच्छा है। 17 किन्तु तनिक सोचें कि मेरे पिता ने आपके लिये क्या किया है? मेरे पिता आप लोगों के लिये लड़े। उन्होंने अपने जीवन को उस समय खतरे में डाला जब उन्होंने आप लोगों को मिद्यानी लोगों से बचाया। 18 किन्तु अब आप लोग मेरे पिता के परिवार के विरूद्ध हो गए हैं। आप लोगों ने मेरे पिता के सत्तर पुत्रों को एक पत्थर पर मारा है। आप लोगों ने अबीमेलेक को शकेम का राजा बनाया है। वह मेरे पिता की दासी का पुत्र है। आप लोगों ने अबीमेलेक को केवल इसलिए राजा बनाया है कि वह आपका सम्बन्धी है। 19 इसलिये यदि आज आप लोग पूरी तरह यरुब्बाल और उसके परिवार के प्रति ईमानदार रहे हैं, तब अबीमेलेक को अपना राजा मानकर आप प्रसन्न हो सकते हैं और वह भी आप लोगों से प्रसन्न हो सकता है। 20 किन्तु यदि आपने उचित नहीं किया है तो, अबीमेलेक शकेम नगर के सभी प्रमुखों और मिल्लो के महल को नष्ट कर डाले। शकेम नगर के प्रमुख भी अबीमेलेक को नष्ट कर डालें।”

21 योताम यह सब कहने के बाद भाग खड़ा हुआ। वह भागकर बेर नगर मे पहुँचा। योताम उस नगर मे रहता था, क्योंकि वह अपने भाई अबीमेलेक से भयभीत था।

अबीमेलेक शकेम के विरुद्ध युद्ध करता है

22 अबीमेलेक ने इस्राएल के लोगों पर तीन वर्ष तक शासन किया। 23-24 अबीमेलेक ने यरुब्बाल के सत्तर पुत्रों को मार डाला था। वे अबीमेलेक के अपने भाई थे। शकेम नगर के प्रमुखों ने उन पुत्रों को मारने में उसकी सहायता की थी। इसलिए परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के प्रमुखों के बीच झगड़ा उत्पन्न कराया और शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक को नुकसान पहुँचाने के लिये योजना बनाई। 25 शकेम नगर के प्रमुख अबीमेलेक को अब पसन्द नहीं कर रहे थे। उन लोगों ने पहाड़ियों की चोटियों पर से जाने वालों पर आक्रमण करने और उनका सब कुछ लूटने के लिये आदमियों को रखा। अबीमेलेक ने उन आक्रमणों के बारे में पता लगाया।

26 गाल नामक एक व्यक्ति और उसके भाई शकेम नगर को आए। गाल, एबेद नामक व्यक्ति का पुत्र था। शकेम के प्रमुखों ने गाल पर विश्वास और उसका अनुसरण करने का निश्चय किया।

27 एक दिन शकेम के लोग अपने बागों में अंगूर तोड़ने गाए। लोगों ने दाखमधु बनाने के लिये अगूरों को निचोड़ा और तब उन्होंने अपने देवता के मन्दिर पर एक दावत दी। लोगों ने खाया और दाखमधु पी। तब अबीमेलेक को अभिशाप दिया।

28 तब एबेद के पुत्र गाल ने कहा, “हम लोग शकेम के व्यक्ति हैं। हम अबीमेलेक की आज्ञा क्यों मानें ? वह अपने को क्या समझता है? यह ठीक है कि अबीमेलेक यरुब्बाल के पुत्रों में से एक है और अबीमेलेक ने जबूल को अपना अधिकारी बनाया, यह ठीक है? हमें अबीमेलेक की आज्ञा नहीं माननी चाहिए। हमें हमोर के लोगों की आज्ञा माननी चाहिए। (हमोर शकेम का पिता था।) 29 यदि आप मुझे इन लोगों का सेनापति बनाते हैं तो मैं अबीमेलेक से मुक्ति दिला दूँगा। मैं उससे कहूँगा, ‘अपनी सेना को तैयार करो और युद्ध के लिये आओ।’”

30 जबूल शकेम नगर का प्रशासक था। जबूल ने वह सब सुना जो एबेद के पुत्र गाल ने कहा और जबूल बहुत क्रोधित हुआ। 31 जबूल ने अबीमेलेक के पास अरुमा नगर में दूतों को भेजा। सन्देश यह है:

“एबेद का पुत्र गाल और इस के भाई शकेम नगर में आए हैं और तुम्हारे लिये कठिनाई उत्पन्न कर रहे हैं। गाल पूरे नगर को तुम्हारे विरूद्ध कर रहा है। 32 इसलिए अब तुम्हें और तुम्हारे लोगों को रात में उठना चाहिये और नगर के बाहर खेतों में छिपना चाहिये। 33 जब सवेरे सूरज निकले तो नगर पर आक्रमण कर दो। जब वे लोग लड़ने के लिये बाहर आएँ तो तुम उनका जो कर सको, करो।”

34 इसलिए अबिमेलेक और सभी सैनिक रात को उठे और नगर को गए। वे सैनिक चार टुकड़ियों मे बँट गए। वे शकेम नगर के पास छिप गए। 35 एबेद का पुत्र गाल बाहर निकल कर शकेम नगर के फाटक के प्रवेश द्वार पर था। जब गाल वहाँ खड़ा था उसी समय अबीमेलेक और उसके सैनिक अपने छिपने के स्थानों से बाहर आए।

36 गाल ने सैनिकों को देखा। गाल ने जबूल से कहा, “ध्यान दो, पर्वतों से लोग नीचे उतर रहे हैं।”

किन्तु जबूल ने कहा, “तुम केवल पर्वतों की परछाईयाँ देख रहे हो। परछाईयाँ लोगों की तरह दिखाई दे रही हैं।”

37 किन्तु गाल ने फिर कहा, “ध्यान दो प्रदेश की नाभि नामक स्थान से लोग बढ़ रहे हैं, और जादूगर के पेड़ से एक टुकड़ी आ रही है।” 38 तब जबूल ने उससे कहा, “अब तुम्हारी वह बड़ी—बड़ी बातें कहाँ गईं, जो तुम कहते थे, ‘अबीमेलेक कौन होता है, जिसकी अधीनता में हम रहें?’ क्या वे वही लोग नहीं हैं जिनका तुम मजाक उड़ाते थे? जाओ और उनसे लड़ो।”

39 इसलिए गाल शकेम के प्रमुखों को अबीमेलेक से युद्ध करने के लिये ले गया। 40 अबीमेलेक और उसके सैनिकों ने गाल और उसके आदमियों का पीछा किया। गाल के लोग शकेम नगर के फाटक की ओर पीछे भागे। गाल के बहुत से लोग फाटक पर पहुँचने से पहले मार डाले गए।

41 तब अबीमेलेक अरुमा नगर को लौट गया। जबूल ने गाल और उसके भाईयों को शकेम नगर छोड़ने को विवश किया।

42 अगले दिन शकेम के लोग अपने खेतों में काम करने को गए। अबीमेलेक ने उसके बारे में पता लगाया। 43 इसलिए अबीमेलेक ने अपने सैनिकों को तीन टुकड़ियों में बाँटा। वह शकेम के लोगों पर अचानक आक्रमण करना चाहता था। इसलिए उसने अपने आदमियों को खेतों में छिपाया। जब उसने लोगों को नगर से बाहर आते देखा तो वह टूट पड़ा और उन पर आक्रमण कर दिया। 44 अबीमेलेक और उसके लोग शकेम नगर के फाटक के पास दौड़ कर आए। अन्य दो टुकड़ियाँ खेत में लोगों के पास दौड़कर गई और उन्हें मार डाला। 45 अबीमेलेक और उसके सैनिक शकेम नगर के साथ पूरे दिन लड़े। अबीमेलेक और उसके सैनिकों ने शकेम नगर पर अधिकार कर लिया और उस नगर के लोगों को मार डाला। तब अबीमेलेक ने उस नगर को ध्वस्त किया और उस ध्वंस पर नमक फेंकवा दिया।

46 कुछ लोग शकेम की मीनार के पास रहते थे। जब उस स्थान के लोगों ने सुना कि शकेम के साथ क्या हुआ है तब वे सबसे अधिक सुरक्षित उस कमरे में इकट्ठे हो गए जो एलबरीत देवता का मन्दिर था।

47 अबीमेलेक ने सुना कि शकेम की मीनार के सभी प्रमुख एक साथ इकट्ठे हो गए हैं। 48 इसलिए अबीमेलेक और उसके सभी लोग सलमोन पर्वत पर गए। अबीमेलेक ने एक कुल्हाड़ी ली और उसने कुछ शाखाएँ काटीं। उसने उन शाखाओं को अपने कंधों पर रखा। तब उसने अपने साथ के आदमियों से कहा “जल्दी करो, जो मैंने किया है, वही करो।” 49 इसलिए उन लोगों ने शाखाएँ काटीं और अबीमेलेक का अनुसरण किया। उन्होंने शाखाओं की ढेर एलबरीत देवता के मन्दिर के सबसे अधिक सुरक्षित कमरे के साथ लगाई। तब उन्होंने शाखाओं में आग लगा दी और कमरे में लोगों को जला दिया। इस प्रकार लगभग शकेम की मीनार के निवासी एक हजार स्त्री—पुरुष मर गए।

अबीमेलेक की मृत्यु

50 तब अबीमेलेक और उसके साथी तेबेस नगर को गए। अबीमेलेक और उसके साथियों ने तेबेस नगर पर अधिकार कर लिया। 51 किन्तु तेबेस नगर में एक दृढ़ मीनार थी। उस नगर के सभी स्त्री—पुरुष और उस नगर के प्रमुख उस मीनार के पास भागकर पहुँचे। जब नगर के लोग मीनार के भीतर घुस गए तो उन्होंने अपने पीछे मीनार का दरवाजा बन्द कर दिया। तब वे मीनार की छत पर चढ़ गए। 52 अबीमेलेक और उसके साथी मीनार के पास उस पर आक्रमण करने के लिये पहुँचे। अबीमेलेक मीनार की दीवार तक गया। वह मीनार को आग लगाना चाहता था। 53 जब अबीमेलेक द्वार पर खड़ा था, उसी समय एक स्त्री ने एक चक्की का पत्थर उसके सिर पर फेंका। चक्की के पाट ने अबीमेलेक की खोपड़ी को चूर—चूर कर डाला। 54 अबीमेलेक ने शीघ्रता से अपने उस नौकर से कहा जो उसके शस्त्र ले चल रहा था, “अपनी तलवार निकालो और मुझे मार डालो। मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे मार डालो जिससे लोग यह न कहें, कि ‘एक स्त्री ने अबीमेलेक को मार डाला।’” इसलिए नौकर ने अबीमेलेक में अपनी तलवार घुसेड़ दी और अबीमेलेक मर गया। 55 इस्राएल के लोगों ने देखा कि अबीमेलेक मर गया। इसलिए वे सभी अपने घरों को लौट गए।

56 इस प्रकार परमेश्वर ने अबीमेलेक को उसके सभी किये पापों के लिये दण्ड दिया। अबीमेलेक ने अपने सत्तर भाइयों को मारकर अपने पिता के विरूद्ध पाप किया था। 57 परमेश्वर ने शकेम नगर के लोगों को भी उनके द्वारा किये गए पाप का दण्ड दिया। इस प्रकार योताम ने जो कहा, सत्य हुआ। (योताम यरुब्बाल का सबसे छोटा पुत्र था। यरुब्बाल गिदोन था।)

समीक्षा

निष्ठा बोएं

पिछले सालों में मैंने देखा है कि, जिन्होंने निष्ठा बोई है उनके लीडर्स उच्च श्रेणी की ईमानदारी की फसल काटते हैं, जब वे खुद लीडरशिप की अवस्था में पहुँचते हैं. दूसरी तरफ, जो किसी दूसरे की लीडरशिप में आने से इंकार करते हैं, और जो परेशानी पैदा करते हैं, वे निरपवाद रूप से बेईमानी के उसी व्यवहार की फसल काटते हैं, जब वे खुद को लीडरशिप की अवस्था में पाते हैं.

इस लेखांश में हम अबीमेलेक के पिता और उसके भाइयों की अनिष्ठा को देखते हैं. अबीमेलेक ने हिंसा बोई थी. ' अबीमेलेक ने नीच और लुच्चे जन रख लिए, जो उसके पीछे हो लिए... तब उसने अपने भाइयों को जो यरूब्बाल के सत्तर पुत्र थे एक ही पत्थर पर घात किया!' (वव.4-5). परन्तु यरूब्बाल का योताम नाम लहुरा पुत्र छिपकर बच गया.

हम फिर से बाइबल संबंधी इस सिद्धांत को कार्य करता हुआ देखते हैं: ह्म जो बोते हैं वही काटते हैं. अबीमेलेक ने बेईमानी और हिंसा बोई थी. उसने बेईमानी और हिंसा काटी. शुरू में, वह कहूत के साथ शकेम में रहता था (व.2 और नीचे). लेकिन तीन साल बाद शकेम और अबीमेलेक के बीच बुरी भावनाएं जाग उठीं. जिसने अबीमेलेक के विरूद्ध धोखेबाजी से काम किया.

अबीमेलेक ने वही काटा जो उसने बोया था. शकेम के लीडर्स ने उसके पीठ पीछे धोखेबाजी का काम किया. हिंसा जाग उठी: ' सो शकेम के मनुष्य अबीमेलेक का विश्वासघात करने लगे;
24 जिस से यरूब्बाल के सत्तर पुत्रों पर किए हुए उपद्रव का फल भोगा जाए, और उनका खून उनके घात करने वाले उनके भाई अबीमेलेक के सिर पर, और उसके अपने भाइयों के घात करने में उसकी सहायता करने वाले शकेम के मनुष्यों के सिर पर भी हो' (वव.23-24).

अबीमेलेक ने शकेम के लोगों पर कोई भी ईमानदारी नहीं दिखाई. उसे जब भी जरूरत पड़ी, उसने उनका इस्तेमाल किया (व.2). फिर भी उन्हें मार डालने में उसे जरा भी संकोच नहीं हुआ(व.42-49).

आखिरकार, उन सब ने वही काटा जो उन्होंने बोया था, और जल्द ही अबीमेलेक ने लज्जाजनक तरीके से खुद को भी मार दिया (वव.53-54). लेखक इस तरह से लिखते हैं: ' इस प्रकार जो दुष्ट काम अबीमेलेक ने अपने सत्तर भाइयों को घात करके अपने पिता के साथ किया था, उसको परमेश्वर ने उसके सिर पर लौटा दिया;
57 और शकेम के पुरूषों के भी सब दुष्ट काम परमेश्वर ने उनके सिर पर लौटा दिए' (वव.56-57).

प्रार्थना

प्रभु हमारी मदद कीजिये ताकि हम चर्च में, काम की जगह में, अपने परिवारों में और अपनी दोस्ती में एक दूसरे के प्रति ईमानदार रहें. समाज के रूप में सच्चाई, न्याय, उदारता और ईमानदारी बोने में हमारी मदद कीजिये.

पिप्पा भी कहते है

न्यायियों 9:1-57

गिदोन के परिवार (जरूबाबेल) की बरबादी देखना कितना दु:खदायी है. मुझे लगता है उसे ली की द मैरिज बुक और द पैरेन्टिंग बुक पढनी चाहिए थी और उसे अपने जीवन के उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिये था.

दिन का वचन

यूहन्ना 6:20

“यह मैं हूँ, डरो मत।” (यीशु)

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संदर्भ

नोट्स:

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