परमेश्वर का अनुग्रही हाथ
परिचय
वूडी ऐलेन के अनुसार, 'जीवन में अस्सी प्रतिशत केवल दिखावा हैं.' अधिकतर जीवन उन परिस्थितियों का समूह हैं जिसमें हम अपने आपको पाते हैं – जो चीजें हमारे साथ होती हैं. उदाहरण के लिए, हमारे माता-पिता, हमारी जैविक रचना, मौसम, ज्यादातर हमारी पढ़ाई और हमारी सरकार, यें सभी चीजें जिनका हम अनुभव करते हैं 'हमारे साथ होती हैं'. ग्रीक व्याकरण में, ये चीजें 'निष्क्रिय प्रकार' में व्यक्त की जाती हैं. किंतु, हम भी वस्तुओं को होने देते हैं. जब मैं एक कार्य का आरंभ करता हूँ और कुछ करता हूँ, तब यह 'सक्रिय प्रकार' में व्यक्त होता हैं.
लेकिन ग्रीक व्याकरण में एक तीसरा प्रकार भी हैं – मध्य प्रकार' . यह ना तो पूरी तरह से सक्रिय हैं ना ही पूरी तरह से निष्क्रिय हैं. जब मैं मध्य प्रकार का इस्तेमाल करता हूँ, तब मैं एक कार्य के परिणाम में भाग ले रहा हूँ.
प्रार्थना मध्य प्रकार में होती हैं. प्रार्थना स्क्रिय तरह से नहीं हो सकती हैं क्योंकि यह एक कार्य नहीं हैं जिसे मैं नियंत्रित करता हूँ. यह प्रार्थना का एक ईश्वर को न मानने वाला पहलू हो सकता हैः जिसमें हम अपने आदेश, मंत्र और अनुष्ठानों द्वारा देवी और देवताओं से कार्य करवाते हैं. प्रार्थना निष्क्रिय तरह की भी नहीं हो सकती, जिसमें मैं निष्क्रियता पूर्वक देवी और देवताओं की इच्छा अवैयक्तिक और भाग्य संबंधी दलदल में फंस जाऊँ. मसीही प्रार्थना में, मैं दूसरे के द्वारा शुरु कार्य में प्रवेश करता हूँ –मेरे बनाने वाले और उद्धारकर्ता प्रभु. तब मैं अपने आपको उनके अनुग्रही कार्य में भाग लेता हुआ पाता हूँ.
एक तरह से, पूरा मसीह जीवन प्रार्थना हैं. हम अपने जीवन में परमेश्वर के अनुग्रही हाथ का स्वागत करते हैं, और परमेश्वर जो इस विश्व में कर रहे हैं उसमें हम भाग लेते हैं. परमेश्वर आपको उनकी योजनाओं में शामिल करते हैं. निश्चित ही, वह अकेले इसे कर सकते हैं, लेकिन वह आपको इसमें शामिल करना चुनते हैं. वह आपको स्वतंत्रता देते हैं, फिर भी वह नियंत्रण रखते हैं.
भजन संहिता 50:1-15
आसाप के भक्ति गीतों में से एक पद।
50ईश्वरों के परमेश्वर यहोवा ने कहा है,
पूर्व से पश्चिम तक धरती के सब मनुष्यों को उसने बुलाया।
2 सिय्योन से परमेश्वर की सुन्दरता प्रकाशित हो रही है।
3 हमारा परमेश्वर आ रहा है, और वह चुप नही रहेगा।
उसके सामने जलती ज्वाला है,
उसको एक बड़ा तूफान घेरे हुए है।
4 हमारा परमेश्वर आकाश और धरती को पुकार कर
अपने निज लोगों को न्याय करने बुलाता है।
5 “मेरे अनुयायियों, मेरे पास जुटों।
मेरे उपासकों आओ हमने आपस में एक वाचा किया है।”
6 परमेश्वर न्यायाधीश है,
आकाश उसकी धार्मिकता को घोषित करता है।
7 परमेश्वर कहता है, “सुनों मेरे भक्तों!
इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हारे विरूद्ध साक्षी दूँगा।
मैं परमेश्वर हूँ, तुम्हारा परमेश्वर।
8 मुझको तुम्हारी बलियों से शिकायत नहीं।
इस्राएल के लोगों, तुम सदा होमबलियाँ मुझे चढ़ाते रहो। तुम मुझे हर दिन अर्पित करो।
9 मैं तेरे घर से कोई बैल नहीं लूँगा।
मैं तेरे पशु गृहों से बकरें नहीं लूँगा।
10 मुझे तुम्हारे उन पशुओं की आवश्यकता नहीं। मैं ही तो वन के सभी पशुओं का स्वामी हूँ।
हजारों पहाड़ों पर जो पशु विचरते हैं, उन सब का मैं स्वामी हूँ।
11 जिन पक्षियों का बसेरा उच्चतम पहाड़ पर है. उन सब को मैं जानता हूँ।
अचलों पर जो भी सचल है वे सब मेरे ही हैं।
12 मैं भूखा नहीं हूँ! यदि मैं भूखा होता, तो भी तुमसे मुझे भोजन नहीं माँगना पड़ता।
मैं जगत का स्वामी हूँ और उसका भी हर वस्तु जो इस जगत में है।
13 मैं बैलों का माँस खाया नहीं करता हूँ।
बकरों का रक्त नहीं पीता।”
14 सचमुच जिस बलि की परमेश्वर को अपेक्षा है, वह तुम्हारी स्तुति है। तुम्हारी मनौतियाँ उसकी सेवा की हैं।
सो परमेश्वर को निज धन्यवाद की भेटें चढ़ाओ। उस सर्वोच्च से जो मनौतियाँ की हैं उसे पूरा करो।
15 “इस्रएल के लोगों, जब तुम पर विपदा पड़े, मेरी प्रार्थना करो,
मैं तुम्हें सहारा दूँगा। तब तुम मेरा मान कर सकोगे।”
समीक्षा
परमेश्वर आपको छुड़ाएंगे
क्या आप अपने जीवन में परेशानी का सामना कर रहे हैं? काम पर कोई स्थिती? एक संबंध? स्वास्थय में परेशानी? आर्थिक चुनौती?
परमेश्वर अपने ब्रह्मांड का पूरा नियंत्रण रखते हैं: 'सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा ने कहा हैं, और उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक पृथ्वी के लोगों को बुलाया हैं' (व.1).
वह सारी वस्तुओं के मालिक हैं. शायद से हम अपनी छोटी सी सड़क और अपनी संपत्ति के लिए लड़ाई करें और संघर्ष उठाए, लेकिन अंत में, परमेश्वर इन सबके मालिक हैं:'क्योंकि वन के सारे जीव-जंतु और हजारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैं' (व.10).
वह मनुष्यों पर निर्भर नहीं हैं:'यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता; क्योंकि जगत और जो कुछ उस में है वह मेरा है' (व.12).
फिर भी, वह अनुग्रहकारी रूप से आपको इसमें शामिल करते हैं.
- परमेश्वर का धन्यवाद हो
- 'परमेश्वर को धन्यवादरूपी-बलिदान चढ़ाए' (व.14अ).
- परमेश्वर को पुकारें
- 'परेशानी के समय में मुझे पुकारना' (व.15अ).
- परमेश्वर का सम्मान करें
- 'मैं तुझे छुड़ाऊँगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा' (व.15ब).
मैं बहुत सी बार भजनसंहिता 50:15 में वापस आया हूँ. मैंने 'परेशानी के समय' परमेश्वर को पुकारा है. बीते समय को याद करके यह देखना अद्भुत बात है कि कितनी बार उनके अनुग्रही हाथ ने मुझे छुड़ाया है.
प्रार्थना
लूका 22:1-38
यीशु की हत्या का षड़यन्त्र
22अब फ़सह नाम का बिना ख़मीर की रोटी का पर्व आने को था। 2 उधर प्रमुख याजक तथा यहूदी धर्मशास्त्री, क्योंकि लोगों से डरते थे इसलिये किसी ऐसे रास्ते की ताक में थे जिससे वे यीशु को मार डालें।
यहूदा का षड़यन्त्र
3 फिर इस्करियोती कहलाने वाले उस यहूदा में, जो उन बारहों में से एक था, शैतान आ समाया। 4 वह प्रमुख याजकों और अधिकारियों के पास गया और उनसे यीशु को वह कैसे पकड़वा सकता है, इस बारे में बातचीत की। 5 वे बहुत प्रसन्न हुए और इसके लिये उसे धन देने को सहमत हो गये। 6 वह भी राज़ी हो गया और वह ऐसे अवसर की ताक में रहने लगा जब भीड़-भाड़ न हो और वह उसे उनके हाथों सौंप दे।
फ़सह की तैयारी
7 फिर बिना ख़मीर की रोटी का वह दिन आया जब फ़सह के मेमने की बली देनी होती है। 8 सो उसने यह कहते हुए पतरस और यहून्ना को भेजा, “जाओ और हमारे लिये फ़सह का भोज तैयार करो ताकि हम उसे खा सकें।”
9 उन्होंने उससे पूछा, “तू हमसे उसकी तैयारी कहाँ चाहता है?”
उसने उनसे कहा, 10 “तुम जैसे ही नगर में प्रवेश करोगे तुम्हें पानी का घड़ा ले जाते हुए एक व्यक्ति मिलेगा, उसके पीछे हो लेना और जिस घर में वह जाये तुम भी चले जाना। 11 और घर के स्वामी से कहना, ‘गुरु ने तुझसे पूछा है कि वह अतिथि-कक्ष कहाँ है जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ फ़सह पर्व का भोजन कर सकूँ।’ 12 फिर वह व्यक्ति तुम्हें सीढ़ियों के ऊपर सजा-सजाया एक बड़ा कमरा दिखायेगा, वहीं तैयारी करना।”
13 वे चल पड़े और वैसा ही पाया जैसा उसने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया।
प्रभु का अन्तिम भोज
14 फिर वह घड़ी आय़ी जब यीशु अपने शिष्यों के साथ भोजन पर बैठा। 15 उसने उनसे कहा, “यातना उठाने से पहले यह फ़सह का भोजन तुम्हारे साथ करने की मेरी प्रबल इच्छा थी। 16 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तक परमेश्वर के राज्य में यह पूरा नहीं हो लेता तब तक मैं इसे दुबारा नहीं खाऊँगा।”
17 फिर उसने कटोरा उठाकर धन्यवाद दिया और कहा, “लो इसे आपस में बाँट लो। 18 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ आज के बाद जब तक परमेश्वर का राज्य नहीं आ जाता मैं कोई भी दाखरस कभी नहीं पिऊँगा।”
19 फिर उसने थोड़ी रोटी ली और धन्यवाद दिया। उसने उसे तोड़ा और उन्हें देते हुए कहा, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी गयी है। मेरी याद में ऐसा ही करना।” 20 ऐसे ही जब वे भोजन कर चुके तो उसने कटोरा उठाया और कहा, “यह प्याला मेरे उस रक्त के रूप में एक नयी वाचा का प्रतीक है जिसे तुम्हारे लिए उँडेला गया है।”
यीशु का विरोधी कौन होगा?
21 “किन्तु देखो, मुझे जो धोखे से पकड़वायेगा, उसका हाथ यहीं मेज़ पर मेरे साथ है। 22 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो मारा ही जायेगा जैसा कि सुनिश्चित है किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति को जिसके द्वारा वह पकड़वाया जाएगा।”
23 इस पर वे आपस में एक दूसरे से प्रश्न करने लगे, “उनमें से वह कौन हो सकता है जो ऐसा करने जा रहा है?”
सेवक बनों
24 फिर उनमें यह बात भी उठी कि उनमें से सबसे बड़ा किसे समझा जाये। 25 किन्तु यीशु ने उनसे कहा, “गैर यहूदियों के राजा उन पर प्रभुत्व रखते हैं और वे जो उन पर अधिकार का प्रयोग करते हैं, ‘स्वयं को लोगों का उपकारक’ कहलवाना चाहते हैं। 26 किन्तु तुम वैसै नहीं हो बल्कि तुममें तो सबसे बड़ा सबसे छोटे जैसा होना चाहिये और जो प्रमुख है उसे सेवक के समान होना चाहिए। 27 क्योंकि बड़ा कौन है: वह जो खाने की मेज़ पर बैठा है या वह जो उसे परोसता है? क्या वही नहीं जो मेज पर है किन्तु तुम्हारे बीच मैं वैसा हूँ जो परोसता है।
28 “किन्तु तुम वे हो जिन्होंने मेरी परिक्षाओं में मेरा साथ दिया है। 29 और मैं तुम्हे वैसे ही एक राज्य दे रहा हूँ जैसे मेरे परम पिता ने इसे मुझे दिया था। 30 ताकि मेरे राज्य में तुम मेरी मेज़ पर खाओ और पिओ और इस्राएल की बारहों जनजातियों का न्याय करते हुए सिंहासनों पर बैठो।
विश्वास बनाये रखो
31 “शमौन, हे शमौन, सुन, तुम सब को गेहूँ की तरह फटकने के लिए शैतान ने चुन लिया है। 32 किन्तु मैंने तुम्हारे लिये प्रार्थना की है कि तुम्हारा विश्वास न डगमगाये और जब तू वापस आये तो तेरे बंधुओं की शक्ति बढ़े।”
33 किन्तु शमौन ने उससे कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे साथ जेल जाने और मरने तक को तैयार हूँ।”
34 फिर यीशु ने कहा, “पतरस, मैं तुझे बताता हूँ कि आज जब तक मुर्गा बाँग नहीं देगा तब तक तू तीन बार मना नहीं कर लेगा कि तू मुझे जानता है।”
यातना झेलने को तैयार रहो
35 फिर यीशु ने अपने शिष्यो से कहा, “मैंने तुम्हें जब बिना बटुए, बिना थैले या बिना चप्पलों के भेजा था तो क्या तुम्हें किसी वस्तु की कमी रही थी?”
उन्होंने कहा, “किसी वस्तु की नहीं।”
36 उसने उनसे कहा, “किन्तु अब जिस किसी के पास भी कोई बटुआ है, वह उसे ले ले और वह थैला भी ले चले। और जिसके पास भी तलवार न हो, वह अपना चोगा तक बेच कर उसे मोल ले ले। 37 क्योंकि मैं तुम्हें बताता हूँ कि शास्त्र का यह लिखा मुझ पर निश्चय ही पूरा होगा:
‘वह एक अपराधी समझा गया था।’
हाँ मेरे सम्बन्ध में लिखी गयी यह बात पूरी होने पर आ रही है।”
38 वे बोले, “हे प्रभु, देख, यहाँ दो तलवारें हैं।”
इस पर उसने उनसे कहा, “बस बहुत है।”
समीक्षा
आपकी प्रार्थनाएँ अंतर पैदा करती हैं
क्या आपको कभी ऐसा प्रलोभन महसूस हुआ कि दूसरों के साथ खुद की तुलना करें?
यह देखना उत्साहित करता है कि यीशु के चेलों ने भी उन चीजों से संघर्ष किया या जिनसे हम संघर्ष करते हैं. चेलों के बीच में विवाद चल रहा था कि हममें से कौन सबसे बड़ा होगा (व.24). हमेशा दूसरों के साथ अपनी तुलना करने का प्रलोभन आता है. यह या तो घमंड उत्पन्न करेगा (यदि हम सोचते हैं कि हम बेहतर कर रहे हैं) या ईर्ष्या, द्वेष और असुरक्षा को उत्पन्न करेगा (यदि हम सोचते हैं कि हम उतना अच्छा नहीं कर रहे हैं).
यीशु बताते हैं कि राज्य के मूल्य विश्व से बिल्कुल विपरीत हैः ' 'अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं. परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन् जो तुम में बड़ा हैं, वह छोटे के समान और जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने...परन्तु मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूँ.' (वव.25-27, एम.एस.जी.).
जैसे ही हम इस नाटक में हर व्यक्ति के द्वारा निभाई गई भूमिका को देखते हैं, तो हम दोबारा से देखते हैं कि बाईबल पूर्वनिर्धारण (अर्थात् परमेश्वर ने पहले से ही सब कुछ निर्धारित किया है) और स्वेच्छा दोनों के विषय में सिखाती है. यह एक रहस्य है जिसे वचन तनाव में पकड़े रखता है और हम सही तरीके से संदेहास्पद होते हैं कि कब कोई मानवीय व्यवस्था इसे समझाने का प्रयास करेगी. इस लेखांश में हम तीन उदाहरणों को देखते हैं कि कैसे यह तनाव काम करता है.
- यहूदा
यहाँ पर हम एक भयानक वर्णन को देखते हैं कि कैसे बुराई काम करती है. कोई भी प्रलोभन से सुरक्षित नहीं है. यहूदा यीशु के चुने हुए बारह लोगों में से एक हैं, फिर भी शैतान उसमें प्रवेश करता है (व.3).
यीशु कहते हैं कि यह पहले से पता था और सच में पूर्वनिर्धारित थाः ' मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया जाता ही है' (व.22अ). लेकिन यह तथ्य कि यह पहले से तय था और पूर्व निर्धारित था, यह यहूदा के उत्तरदायित्व को खत्म नहीं करता हैः 'लेकिन हाय है उस पर जो उसे पकड़वाता है' (व.22ब).
विचित्र बात यह है कि यद्पि 'यह पहले से ठहराया गया है' फिर भी यहूदा एक मुक्त एजेंट हैं. यहूदा की 'इच्छा' इसमें शामिल थी. जब उसे यीशु को पकड़वाने के लिए पैसे दिए गए थे, यहूदा ने ' मान लिया, और अवसर ढूँढ़ने लगा कि जब भीड़ न हो तो उसे उनके हाथ पकड़वा दें' (व.6).
- शिमौन पतरस
वही 'शैतान' जिसने यहूदा में प्रवेश किया था (व.3) वही पतरस को 'गेहूं के समान' फटकना चाहता था (व.31).
पतरस बहुत ही आश्वस्त था कि वह यीशु को नकारेगा नहीः'हे प्रभु, मैं तेरे साथ बंदीगृह जाने, वरन् मरने को भी तैयार हूँ' (व.33). यीशु जानते थे कि पतरस असफल हो जाएगाः 'हे पतरस, मैं तुझ से कहता हूँ कि आज मुर्गा बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि तू मुझे नहीं जानता.' (व.34).
लेकिन आखिरकार उसका विश्वास असफल नहीं हुआ. यीशु ने कहा, ' परन्तु मैं ने तेरे लिये विनती की कि तेरा विश्वास जाता न रहे' (व.32). यह दिखाता है कि पूर्वनिर्धारण और स्वेच्छा के इस असाधारण तनाव के बीच में, प्रार्थना वास्तव में अंतर को पैदा करती है. शायद से क्योंकि और कैसे यह काम करती है, हम कभी न समझ पाएं. किंतु, यीशु का उदाहरण दिखाता है कि इससे सच में अंतर पड़ता है. आपकी प्रार्थना एक अंतर को पैदा करती हैं.
- यीशु
- महत्वपूर्ण रुप से, यीशु के जीवन और मृत्यु में हम पूर्वनिर्धारण और स्वेच्छा के इस तनाव को देखते हैं. यीशु कहते हैं, ' मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया जाता ही है' (व.22अ). वह कहते हैं, 'यह लिखा हैः' वह अपराधियों के साथ गिना गया, ' उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय में लिखी हुई बातें पूरी होने पर हैं' (व.37). इससे अधिक मजबूत कथन नहीं हो सकता हैं कि यीशु की मृत्यु पूर्वनियोजित, पूर्व-योजना की गई और पूर्वनिर्धारित थी. फिर भी यीशु ने अपनी इच्छा से जान दी; उन्होंने मरना चुना. उन्होंने हमारे लिए अपना शरीर दे दिया (व.19).
हम अपने भाग और परमेश्वर के भाग के बीच में संतुलन को देखते हैं. जब कभी हम कम्युनियन लेते हैं तब हम इसे स्मरण करते हैं. यीशु ने कहा, 'यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिए दिया गया है...यह प्याला मेरे लहू में नई वाचा है, जो तुम्हारे लिए ऊँडेला जाता है' (वव.19-20). यह कठिन भाग था – उनके जीवन का बलिदान, जो हमारे लिए दिया गया. हमारा भाग इसका मुकाबला सरल हैः 'इसे मेरे स्मरण में किया करो' (व.19).
प्रार्थना
यहोशू 3:1-5:12
यरदन नदी पर आश्चर्यकर्म
3दूसरे दिन सवेरे यहोशू और इस्राएल के सभी लोग उठे और शित्तीम को उन्होंने छोड़ दिया। उन्होंने यरदन नदी तक यात्रा की । उन्होंने पार करने के पहले यरदन नदी पर डेरे लगाए। 2 तीन दिन बाद प्रमुख लोग डेरों के बीच से होकर निकले। 3 प्रमुखों ने लोगों को आदेश दिये। उन्होंने कहा, “तुम लोग याजक और लेवीवंशियों को अपने परमेश्वर यहोवा के साक्षीपत्र का सन्दूक ले जाते हुए देखोगे। उस समय तुम जहाँ हो, उसे छोड़ोगे और उनके पीछे चलोगे। 4 किन्तु उनके बहुत निकट न रहो। लगभग एक हजार गज दूर उनके पीछे रहो। तुमने पहले इस ओर की यात्रा कभी नहीं की है। इसलिए यदि तुम उनके पीछे चलोगे, तो तुम जानोगे कि तुम्हें कहाँ जाना है।”
5 तब यहोशू ने लोगों से कहा, “अपने को पवित्र करो। कल यहोवा तुम लोगों का उपयोग चमत्कार दिखाने के लिये करेगा।”
6 तब यहोशू ने याजकों से कहा, “साक्षीपत्र के सन्दूक को उठाओ और लोगों से पहले नदी के पार चलो।” इसलिए याजकों ने सन्दूक को उठाया और उसे लोगों के सामने ले गए।
7 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, “आज मैं इस्राएल के लोगों की दृष्टि में तुम्हें महान व्यक्ति बनाना आरम्भ करूँगा। तब लोग जानेंगे कि मैं तुम्हारे साथ वैसे ही हूँ जैसे मैं मूसा के साथ था। 8 याजक साक्षीपत्र का सन्दूक ले चलेंगे। याजकों से यह कहो, ‘यरदन नदी के किनारे तक जाओ और ठीक इसके पहले कि तुम्हारा पैर पानी में पड़े रूक जाओ।’”
9 तब यहोशू ने इस्राएल के लोगों से कहा, “आओ और अपने परमेश्वर यहोवा का आदेश सुनो। 10 यह इस बात का प्रमाण है कि साक्षात् परमेश्वर सचमुच तुम्हारे साथ है। यह इस बात का प्रमाण है कि वह तुम्हारे शत्रु कनान के लोगों हित्तियों, हिव्वियों, परिज्जियों, गिर्गाशियों, एमोरी लोगों तथा यबूसी लोगों को हराएगा और उन्हें उस देश को छोड़ने के लिए विवश करेगा। 11 प्रमाण यहाँ है। सारे संसार के स्वामी के साक्षीपत्र का सन्दूक उस समय तुम्हारे आगे चलेगा जब तुम यरदन नदी को पार करोगे। 12 अपने बीच से बारह व्यक्तियों को चुनो। इस्राएल के बारह परिवार समूहों में से हर एक से एक व्यक्ति चुनो। 13 याजक सारे संसार के स्वामी, यहोवा के सन्दूक को लेकर चलेंगे। वे उस सन्दूक को तुम्हारे सामने यरदन नदी में ले जाएंगे। जब वे पानी में घुसेंगे, तो यरदन के पानी का बहना रूक जायेगा। पानी रूक जाएगा और उस स्थान के पीछे बाँध की तरह खड़ा हो जाएगा।”
14 याजक लोगों के सामने साक्षीपत्र का सन्दूक लेकर चले और लोगों ने यरदन नदी को पार करने के लिए डेरे को छोड़ दिया। 15 (फसल पकने के समय यरदन नदी अपने तटों को डुबा देती है। अत: नदी पूरी तरह भरी हुई थी।) सन्दूक ले चलने वाले याजक नदी के किनारे पहुँचे। उन्होंने पानी में पाँव रखा। 16 और उस समय पानी का बहना बन्द हो गया। पानी उस स्थान के पीछे बांध की तरह खड़ा हो गया। नदी के चढ़ाव की ओर लम्बी दूरी तक पानी लगातार आदाम तक (सारतान के समीप एक नगर ) ऊँचा खड़ा होता चला गया। लोगों ने यरीहो के पास नदी को पार किया। 17 उस जगह की धरती सूख गई याजक यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक को नदी के बीच ले जाकर रूक गये। जब इस्राएल के लोग यरदन नदी को सूखी धरती से होते हुए चल कर पार कर रहे थे, तब याजक वहाँ उनकी प्रतीक्षा में थे।
लोगों को स्मरण दिलाने के लिये शिलायें
4जब सभी लोगों ने यरदन नदी को पार कर लिया तब यहोवा ने यहोशू से कहा, 2 “लोगों में से बारह व्यक्ति चुनों। हर एक परिवार समूह से एक व्यक्ति चुनों। 3 लोगों से कहो कि वे वहाँ नदी में देखें जहाँ याजक खड़े थे। उनसे वहाँ बारह शिलायें ढूँढ निकालने के लिए कहो। उन बारह शिलाओं को अपने साथ ले जाओ। उन बारह शिलाओं को उस स्थान पर रखो जहाँ तुम आज रात ठहरो।”
4 इसलिए यहोशू ने हर एक परिवार समूह से एक व्यक्ति चुना। तब उसने बारह व्यक्तियों को एक साथ बुलाया। 5 यहोशू ने उनसे कहा, “नदी में वहाँ तक जाओ जहाँ तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के पवित्र वाचा का सन्दूक है। तुममें से हर एक को एक शिला की खोज करनी चाहिये। इस्राएल के बारह परिवार समूहों में से हर एक के लिए एक शिला होगी। उस शिला को अपने कंधे पर लाओ। 6 ये शिलायें तुम्हारे बीच चिन्ह होंगी। भविष्य में तुम्हारे बच्चे यह पूछेंगे, ‘इन शिलाओं का क्या महत्व है?’ 7 बच्चों से कहो कि याहोवा ने यरदन नदी में पानी का बहना बन्द कर दिया था। जब यहोवा के साथ साक्षीपत्र के पवित्र सन्दूक ने नदी को पार किया तब पानी का बहना बन्द हो गया। ये शिलायें इस्राएल के लोगों को इस घटना की सदैव याद बनाये रखने में सहायता करेंगी।”
8 इस प्रकार, इस्राएल के लोगों ने यहोशू की आज्ञा मानी। वे यरदन नदी के बीच से बारह शिलायें ले गए। इस्राएल के बारह परिवार समूहों में से हर एक के लिये एक शिला थी। उन्होंने यह वैसे ही किया जैसा यहोवा ने यहोशू को आदेश दिया। वे व्यक्ति शिलाओं को अपने साथ ले गए। तब उन्होंने उन शिलाओं को वहाँ रखा जहाँ उन्होंने अपने डेरे डाले। 9 (यहोशू ने भी यहोवा के पवित्र सन्दूक को ले चलने वाले याजक जहाँ खड़े थे, वहीं यरदन नदी के बीच में बारह शिलायें डाली। वे शिलायें आज भी उस स्थान पर हैं।)
10 यहोवा ने यहोशू को आदेश दिया था कि वह लोगों से कहे कि उन्हें क्या करना है। वे वही बातें थीं, जिन्हें अवश्य कहने के लिये मूसा ने यहोशू से कहा था। इसलिए पवित्र सन्दूक को ले चलने वाले याजक नदी के बीच में तब तक खड़े ही रहे, जब तक ये सभी काम पूरे न हो गए। लोगों ने शीघ्रता की और नदी को पार कर गए। 11 जब लोगों ने नदी को पार कर लिया तब याजक यहोवा का सन्दूक लेकर लोगों के सामने आये।
12 रूबेन के परिवार समूह, गादी तथा मनश्शे परिवार समूह के आधे लोगों ने, मूसा ने उन्हें जो करने को कहा था, किया। इन लोगों ने अन्य लोगों के सामने नदी को पार किया। ये लोग युद्ध के लिये तैयार थे। ये लोग इस्राएल के अन्य लोगों को उस देश को लेने में सहायता करने जा रहे थे, जिसे यहोवा ने उन्हें देने का वचन दिया था। 13 लगभग चालीस हजार सैनिक, जो युद्ध के लिये तैयार थे, यहोवा के सामने से गुजरे। वे यरीहो के मैदान की ओर बढ़ रहे थे।
14 उस दिन यहोवा ने इस्राएल के सभी लोगों की दृष्टि में यहोशू को एक महान व्यक्ति बना दिया। उस समय से आगे लोग यहोशू का सम्मान करने लगे। वे यहोशू का सम्मान जीवन भर वैसे ही करने लगे जैसा मूसा का करते थे।
15 जिस समय सन्दूक ले चलने वाले याजक अभी नदी में ही खड़े थे, यहोवा ने यहोशू से कहा, 16 “याजकों को नदी से बाहर आने का आदेश दो।”
17 इसलिए यहोशू ने याजकों को आदेश दिया। उसने कहा, “यरदन नदी के बाहर आओ।”
18 याजकों ने यहोशू की आज्ञा मानी। वे सन्दूक को अपने साथ लेकर बाहर आए। जब याजकों के पैर ने नदी के दूसरी ओर की भूमि को स्पर्श किया, तब नदी का जल फिर बहने लगा। पानी फिर तटों को वैसे ही डुबाने लगा जैसा इन लोगों द्वारा नदी पार करने के पहले था।
19 लोगों ने यरदन नदी को पहले महीने के दसवें दिन पार किया। लोगों ने यरीहो के पूर्व गिलगाल में डेरा डाला। 20 लोग उन शिलाओं को अपने साथ ले चल रहे थे जिन्हें उन्होंने यरदन नदी से निकाला था और यहोशू ने उन शिलाओं को गिलगाल में स्थापित किया। 21 तब यहोशू ने लोगों से कहा, “भविष्य में तुम्हारे बच्चे अपने माता—पिता से पूछेंगे, ‘इन शिलाओं का क्या महत्व है?’ 22 तुम बच्चों को बताओगे, ‘ये शिलाएं हम लोगों को यह याद दिलाने में सहायता करती हैं कि इस्राएल के लोगों ने किस तरह सूखी भूमि पर से यरदन नदी को पार किया।’ 23 तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने नदी के जल का बहना रोक दिया। नदी तब तक सूखी रही जब तक लोगों ने नदी को पार नहीं कर लिया। यहोवा ने यरदन नदी पर लोगो के लिये वही किया, जो उन्होंने लोगों के लिये लाल सागर पर किया था। याद करो कि यहोवा ने लाल सागर पर पानी का बहना इसलिए रोका था कि लोग उसे पार कर सकें। 24 यहोवा ने यह इसलिए किया कि इस देश के सभी लोग जानें कि यहोवा महान शक्ति रखता है। जिससे लोग सदैव ही यहोवा तुम्हारे परमेश्वर से डरते रहें।”
5इस प्रकार, यहोवा ने यरदन नदी को तब तक सूखी रखा जब तक इस्राएल के लोगों ने उसे पार नहीं कर लिया। यरदन नदी के पश्चिम में रहने वाले एमोरी राजाओं और भूमध्य सागर के तट पर रहने वाले कनानी राजाओं ने इसके विषय में सुना और वे बहुत अधिक भयभीत हो गए। उसके बाद वे इस्राएल के लोगों के विरुद्ध युद्ध में खड़े रहने योग्य साहसी नहीं रह गए।
इस्राएलियों का खतना
2 उस समय, होवा ने यहोशू से कहा, “वज्रप्रस्तर के चाकू बनाओ और इस्राएल के लोगों का खतना फिर करो।”
3 इसलिए यहोशू ने कठोर पत्थर के चाकू बनाए। तब उसने इस्राएल के लोगों का खतना गिबआत हाअरलोत में किया।
4-7 यही कारण है कि यहोशू ने उन सभी पुरुषों का खतना किया, जो इस्राएल के लोगों द्वारा मिस्र छोड़ने के बाद सेना में रहने की आयु के हो गए थे। मरुभूमि में रहते समय उन सैनिकों में से कई ने यहोवा की बात नहीं मानी थी। इसलिए यहोवा ने उन व्यक्तियों को अभिशाप दिया था कि वे “दूध और शहद की नदियों वाले देश” को नहीं देख पाएंगे। यहोवा ने हमारे पूर्वजों को वह देश देने का वचन दिया था, किन्तु इन व्यक्तियों के कारण लोगों को चालीस वर्ष तक मरुभूमि में भटकना पड़ा और इस प्रकार वे सब सैनिक समाप्त हो गए। वे सभी सैनिक नष्ट हो गए, और उनका स्थान उनके पुत्रों ने लिया। किन्तु मिस्र से होने वाली यात्रा में जितने बच्चे मरुभूमि में उत्पन्न हुए थे, उनमें से किसी का भी खतना नहीं हो सका था। इसलिए यहोशू ने उनका खतना किया।
8 यहोशू ने सभी पुरुषों का खतना पूरा किया। वे तब तक डेरे में रहे, जब तक स्वस्थ नहीं हुए।
कनान में पहला फसह पर्व
9 उस समय यहोवा ने यहोशू से कहा, “जब तुम मिस्र में दास थे तब तुम लज्जित थे। किन्तु आज मैंने तुम्हारी वह लज्जा दूर कर दी है।” इसलिए यहोशू ने उस स्थान का नाम गिलगाल रखा और वह स्थान आज भी गिलगाल कहा जाता है।
10 जिस समय इस्राएल के लोग यरीहो के मैदान में गिलगाल के स्थान पर डेरा डाले थे, वे फसह पर्व मना रहे थे। यह महीने के चौदहवें दिन की सन्धया को था। 11 फसह पर्व के बाद, अगले दिन लोगों ने वह भोजन किया जो उस भूमि पर उगाया गया था। उन्होंने अखमीरी रोटी और भुने अन्न खाए। 12 उस दिन जब लोगों ने वह भोजन कर लिया, उसके बाद स्वर्ग से विशेष भोजन आना बन्द हो गया। उसके बाद, इस्राएएल के लोगों ने स्वर्ग से विशेष भोजन न पाया। उसके बाद उन्होंने वही भोजन खाया जो कनान में पैदा किया गया था।
समीक्षा
परमेश्वर अद्भुत कामों को करेंगे
क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर आपके साथ हैं? और यदि परमेश्वर आपके साथ हैं तो आप आने वाली हर चुनौती का सामना कर सकते हैं. परमेश्वर यहोशू से कहते हैं, 'मैं तुम्हारे साथ हूँ जैसा कि मैं मूसा के साथ था' (3:7).
फिर से, हम यहाँ पर हमारे भाग में और परमेश्वर के भाग के बीच में अंतर को देखते हैं.
- अपने आपको तैयार करें.
. परमेश्वर अपने लोगों के लिए चमत्कारी रूप से काम करने वाले थे. लेकिन लोगों को भी एक भूमिका निभानी थी. यहोशू लोगों से अपने आपको तैयार करने के लिए कहते हैं: 'अपने आपको शुद्ध करो. कल परमेश्वर तुम्हारें बीच में चमत्कार करेंगे' (3:5, एम.एस.जी.).
यरदन पार करने की तैयारी में काम को करने के लिए लोगों का चुनाव करने का कार्य भी उन्हें सौंपा गया था (4:1-4).
- परमेश्वर का प्रावधान
- हम दोबारा परमेश्वर के अनुग्रही हाथ को देखते हैं. परमेश्वर ने 'अद्भुत वस्तुएँ की' (3:5). इन अद्भुत कामों में से एक था यरदन को पार करना (यहोशू 3).
परमेश्वर ने यहोशू को महान बनाने का वायदा किया था (व.7). यहोशू ने अपने आपको महान नहीं किया. लेकिन 'उस दिन परमेश्वर ने सभी इस्रालियों के सामने यहोशू को महान बनाया' (4:14).
उन्होंने लोगों की सभी जरूरतें पूरी कीः 'और जिस दिन वे उस देश की उपज में से खाने लगे, उसी दिन सबेरे को मन्ना बंद हो गया; और इस्रालियों को आगे फिर कभी मन्ना नहीं मिला, परंतु उस वर्ष उन्होंने कनान देश की उपज में से खाया.' (5:12). जितनी उनको आवश्यकता थी, परमेश्वर ने वह आवश्यकता पूरी की.
इसने उन्हें भौतिक सुरक्षा और स्वयं-सक्षमता दी, शायद से परमेश्वर में भरोसा न करने से उन्हें बचाया. आपकी सुरक्षा और भरोसे को अवश्य ही केवल परमेश्वर में होना चाहिए. उन्होंने हमेशा से ही पर्याप्त प्रावधान दिया है.
प्रार्थना
पिप्पा भी कहते है
लूका 22:24
'सबसे बड़ा' होने का विषय निरंतर आता रहता है. चेले सामर्थ के लिए लड़ रहे थे. यह बहुत ही अनुचित लगता है जब विपदा आने वाली होती है. उन्हें यीशु से अवश्य ही निर्देश मिल रहे होगे.
इस समय पर शायद से ऐसा नहीं लगता होगा कि उनमें से कोई महान लीडर बनेगा, लेकिन वह बने. यह बात हम सभी को आशा देती है.
दिन का वचन
भजन संहिता – 50:15
"और संकट के दिन मुझे पुकार; मैं तुझे छुड़ाऊंगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा॥"

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संदर्भ
नोट्स:
- पिटरसन, द कंटेम्प्लेटिव पास्टर, पीपी.91-93
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