दिन 110

परमेश्वर पाँच तरीकों से आपका मार्गदर्शन करते हैं

बुद्धि भजन संहिता 48:9-14
नए करार लूका 19:45-20:26
जूना करार व्यवस्था विवरण 31:30-32:52

परिचय

परमेश्वर ने अपने दिमाग में एक उद्देश्य को रखते हुए आपका निर्माण किया। परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं। उनके पास आपके लिए एक निश्चित, अद्वितीय और महिमामयी विधान है। वह आपको मार्गदर्शित करने का वायदा करते हैं।

आपके लिए परमेश्वर का उद्देश्य आपकी गलतियों से अधिक बड़ा है। मैंने अपने जीवन में बहुत सी गलतियाँ की हैं, लेकिन परमेश्वर ने मेरा मार्गदर्शन करना नहीं छोड़ा है।

हमारी गाड़ी में एक जी.पी.एस. है। जब हम गलत मुड़ जाते हैं, यह हमें रास्ता दिखाता है। लेकिन जब तक हम मंजिल पर नहीं पहुँच जाते हैं तब तक यह हार नहीं मानता है। आप इसे नजरअंदाज कर सकते हैं या इसे बंद कर सकते हैं, लेकिन यदि आप इसके पीछे चलेंगे, तो यह आपकी यात्रा को और अधिक आनंददायक और शांतिदायक बनाता है। अंत में, यह कहेगा, 'आप अपनी मंजिल पर पहुँच गए हैं।'

निश्चित ही, यह एक सिद्ध उदाहरण नहीं है। परमेश्वर एक मशीन नहीं है बल्कि एक व्यक्ति हैं जो यात्रा में हमारे साथ हैं। परमेश्वर आपसे बात करना चाहते हैं और उन्होंने आपको मार्गदर्शित करने का वायदा किया है।

पाँच मुख्य तरीके हैं जिनसे परमेश्वर आपको मार्गदर्शित करते हैं (पाँच):

  • वचन की आज्ञा (बाईबल)

  • आत्मा की पुकार (पवित्र आत्मा)

  • संतों की सलाह (चर्च)

  • सामान्य ज्ञान (कारण)

  • परिस्थितियों के चिह्न (विधान)।

आज के हर लेखांश में, पहले हम कुछ सामान्य तरीकों को देखेंगे जिससे परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करते हैं, और फिर इन सभी के निश्चित उदारहणों को देखेंगे।

बुद्धि

भजन संहिता 48:9-14

9 हे परमेश्वर, हम तेरे मन्दिर में तेरी प्रेमपूर्ण करूणा पर मनन करते हैं।
 10 हे परमेश्वर, तू प्रसिद्ध है.
 लोग धरती पर हर कहीं तेरी स्तुति करते हैं।
 हर मनुष्य जानता है कि तू कितना भला है।
11 हे परमेश्वर, तेरे उचित न्याय के कारण सिय्योन पर्वत हर्षित है।
 और यहूदा की नगरियाँ आनन्द मना रही हैं।
12 सिय्योन की परिक्रमा करो। नगरी के दर्शन करो।
 तुम बुर्जो (मीनारों) को गिनो।
13 ऊँचे प्राचीरों को देखो।
 सिय्योन के महलों को सराहो।
 तभी तुम आने वाली पीढ़ी से इसका बखान कर सकोगे।
14 सचमुच हमारा परमेश्वर सदा सर्वदा परमेश्वर रहेगा।
 वह हमको सदा ही राह दिखाएगा। उसका कभी भी अंत नहीं होगा।

समीक्षा

मार्गदर्शन का वायदा

परमेश्वर जीवनभर हमारा मार्गदर्शन करने का वायदा करते हैः 'वह अंत तक हमारे मार्गदर्शक रहेंगे' (व.14)। लेकिन आप इस मार्गदर्शन को कैसे ग्रहण करते हैं?

रहस्य यह है परमेश्वर के साथ एक नजदीकी संबंध। इसमें शामिल है उनकी उपस्थिति में समय बिताना और उनके 'असफल न होने वाले प्रेम' पर मनन करना (व.9)।

  1. संतों की सलाह
  • मार्गदर्शन एक व्यक्ति का कार्य नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि भजनसंहिता के लेखक ने कहा, 'आपके मंदिर में...हम आपके असफल न होने वाले प्रेम पर मनन करते हैं' (व.9)। मंदिर में परमेश्वर के लोग परमेश्वर की आराधना करने के लिए एक साथ आते थे। समुदाय में हमें मार्गदर्शन मिलता है। अपने आपसे, हम वस्तुओं को कभी भी बहुत गलत कर सकते हैं (नीतिवचन 12:15)। परमेश्वर दूसरों से बात कर सकते हैं, और हमसे भी, और इसमें हमेशा बुद्धिमानी होगी कि हम मुख्य निर्णयों के विषय में सलाह लें।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवायद आपके वायदे के लिए आप मेरे मार्गदर्शक हैं और आपके लोगों के समुदाय में आप मेरा मार्गदर्शन करते हैं।
नए करार

लूका 19:45-20:26

यीशु मन्दिर में

45 फिर यीशु ने मन्दिर में प्रवेश किया और जो वहाँ दुकानदारी कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा। 46 उसने उनसे कहा, “लिखा गया है, ‘मेरा घर प्रार्थनागृह होगा।’ किन्तु तुमने इसे ‘डाकुओं का अड्डा बना डाला है।’ ”

47 सो अब तो वह हर दिन मन्दिर में उपदेश देने लगा। प्रमुख याजक, यहूदी धर्मशास्त्री और मुखिया लोग उसे मार डालने की ताक में रहने लगे। 48 किन्तु उन्हें ऐसा कर पाने का कोई अवसर न मिल पाया क्योंकि लोग उसके वचनों को बहुत महत्त्व दिया करते थे।

यीशु से यहूदियों का एक प्रश्न

20एक दिन जब यीशु मन्दिर में लोगों को उपदेश देते हुए सुसमाचार सुना रहा था तो प्रमुख याजक और यहूदी धर्मशास्त्री बुजुर्ग यहूदी नेताओं के साथ उसके पास आये। 2 उन्होंने उससे पूछा, “हमें बता तू यह काम किस अधिकार से कर रहा है? वह कौन है जिसने तुझे यह अधिकार दिया है?”

3 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी तुमसे एक प्रश्न पूछता हूँ, तुम मुझे बताओ 4 यूहन्ना को बपतिस्मा देने का अधिकार स्वर्ग से मिला था या मनुष्य से?”

5 इस पर आपस में विचार विमर्श करते हुए उन्होंने कहा, “यदि हम कहते हैं, ‘स्वर्ग से’ तो यह कहेगा, ‘तो तुम ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 6 और यदि हम कहें, ‘मनुष्य से’ तो सभी लोग हम पर पत्थर बरसायेंगे। क्योंकि वे यह मानते हैं कि यूहन्ना एक नबी था।” 7 सो उन्होंने उत्तर दिया कि वे नहीं जानते कि वह कहाँ से मिला।

8 फिर यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि यह कार्य मैं किस अधिकार से करता हूँ?”

परमेश्वर अपने पुत्र को भेजता है

9 फिर यीशु लोगों से यह दृष्टान्त कथा कहने लगा: “किसी व्यक्ति ने अंगूरों का एक बगीचा लगाकर उसे कुछ किसानों को किराये पर चढ़ा दिया और वह एक लम्बे समय के लिये कहीं चला गया। 10 जब फसल उतारने का समय आया, तो उसने एक सेवक को किसानों के पास भेजा ताकि वे उसे अंगूरों के बगीचे के कुछ फल दे दें। किन्तु किसानों ने उसे मार-पीट कर खाली हाथों लौटा दिया। 11 तो उसने एक दूसरा सेवक वहाँ भेजा। किन्तु उन्होंने उसकी भी पिटाई कर डाली। उन्होंने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया और उसे भी खाली हाथों लौटा दिया। 12 इस पर उसने एक तीसरा सेवक भेजा किन्तु उन्होंने इसको भी घायल करके बाहर धकेल दिया।

13 “तब बगीचे का स्वामी कहने लगा, ‘मुझे क्या करना चाहिये? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा।’ 14 किन्तु किसानों ने जब उसके बेटे को देखा तो आपस में सोच विचार करते हूए वे बोले, ‘यह तो उत्तराधिकारी है, आओ हम इसे मार डालें ताकि उत्तराधिकार हमारा हो जाये।’ 15 और उन्होंने उसे बगीचे से बाहर खदेड़ कर मार डाला।

“तो फिर बगीचे का स्वामी उनके साथ क्या करेगा? 16 वह आयेगा और उन किसानों को मार डालेगा तथा अंगूरों का बगीचा औरों को सौंप देगा।”

उन्होंने जब यह सुना तो वे बोले, “ऐसा कभी न हो।” 17 तब यीशु ने उनकी ओर देखते हुए कहा, “तो फिर यह जो लिखा है उसका अर्थ क्या है:

‘जिस पत्थर को कारीगरों ने बेकार समझ लिया था वही कोने का प्रमुख पत्थर बन गया?’

18 हर कोई जो उस पत्थर पर गिरेगा टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा और जिस पर वह गिरेगा चकना चूर हो जायेगा।”

19 उसी क्षण यहूदी धर्मशास्त्रि और प्रमुख याजक कोई रास्ता ढूँढकर उसे पकड़ लेना चाहते थे क्योंकि वे जान गये थे कि उसने यह दृष्टान्त कथा उनके विरोध में कही है। किन्तु वे लोगों से डरते थे।

यहूदी नेताओं की चाल

20 सो वे सावधानी से उस पर नज़र रखने लगे। उन्होंने ऐसे गुप्तचर भेजे जो ईमानदार होने का ढोंग रचते थे। (ताकि वे उसे उसकी कही किसी बात में फँसा कर राज्यपाल की शक्ति और अधिकार के अधीन कर दें।) 21 सो उन्होंने उससे पूछते हुए कहा, “गुरु, हम जानते हैं कि तू जो उचित है वही कहता है और उसी का उपदेश देता है और न ही तू किसी का पक्ष लेता है। बल्कि तू तो सच्चाई से परमेश्वर के मार्ग की शिक्षा देता है। 22 सो बता कैसर को हमारा कर चुकाना उचित है या नहीं चुकाना?”

23 यीशु उनकी चाल को समझ गया था। सो उसने उनसे कहा, 24 “मुझे एक दीनार दिखाओ, इस पर मूरत और लिखावट किसके हैं?”

उन्होंने कहा, “कैसर के।”

25 इस पर उसने उनसे कहा, “तो फिर जो कैसर का है, उसे कैसर को दो और जो परमेश्वर का है उसे परमेश्वर को दो।”

26 वे उसके उत्तर पर चकित हो कर चुप रह गये और उसने लोगों के सामने जो कुछ कहा था, उस पर उसे पकड़ नहीं पाये।

समीक्षा

मार्गदर्शन का नमूना

जैसा कि जीवन के सभी क्षेत्रों में है, यीशु हमारे आदर्श हैं कि परमेश्वर से मार्गदर्शन को कैसे ग्रहण करना है।

परमेश्वर के मार्गदर्शन के अंतर्गत जीवन जीना, एक परेशानी मुक्त जीवन को नहीं लाता है। यीशु पर नियमित रूप से 'धार्मिक पुलिस' का प्रहार होता था। वह विरोधाभास और उनका सामना करने से भागें नहीं।

सच में, दुष्ट किसानों के दृष्टांत में यीशु दिखते हैं कि परमेश्वर के सेवक परेशानी की अपेक्षा कर सकते हैं। दासों को पीटा गया, खाली हाथ वापस भेज दिया गया, शर्मनाक तरीके से उनके साथ बर्ताव किया गया, उन्हें घायल कर दया गया और बाहर फेंक दिया गया (20:9-12)। जब पुत्र को भेजा गया तब उन्होंने 'उसे मार डाला' (व.15)।

दैवीय मार्गदर्शन ने यीशु को क्रूस पर पहुँचाया। किंतु, इसने उन्हें पुनरुत्थान तक भी पहुँचाया। इसके पीछे परमेश्वर का उद्देश्य और उनकी विजय थी। यीशु ने जो किया वह असफलता दिख रहा था लेकिन यीशु ने अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान में इतिहास के किसी भी दूसरे व्यक्ति की तुलना में सबसे अधिक उपलब्धि प्राप्त की।

निश्चित ही, नये नियम में बहुत कुछ बताया गया है कि कैसे परमेश्वर ने यीशु का मार्गदर्शन किया। आज के लेखांश में हम देखते हैं:

  1. वचन की आज्ञा
  • अत्यधिक सावधानी बरतें कि ऐसी किसी भी स्थिति को नकार दे जिसमें सेवकाई का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जाता है।
  • यीशु उन लोगों को देखते हैं जो आत्मिक गतिविधियों के पीछे पैसा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वह परमेश्वर के वचन के साथ गतिविधी का सामना करते हैं। वह कहते हैं, 'वचन में यह लिखा है कि, मेरा घर प्रार्थना का घर है; तुमने इसे एक धार्मिक बाजार में बदल दिया है' (19:46, एम.एस.जी.)।

परमेश्वर की इच्छा के विषय में यीशु की समझ, सावधानीपूर्वक वचनों के अध्ययन को करने से प्राप्त हुई थी। यह एक मुख्य तरीका है जिससे परमेश्वर हम सभी को मार्गदर्शित करते हैं।

  1. आत्मा की पुकार
  • जब यीशु से उनके अधिकार पर प्रश्न पूछा गया, तब वह 'आत्मिक पुलिस' से यूहन्ना के अधिकार के विषय में प्रश्न पूछते हैं। यीशु बता रहे हैं कि यूहन्ना को उनका अधिकार 'स्वर्ग से' मिला था, यानि की परमेश्वर से। स्पष्ट अर्थ यह है कि यीशु का अधिकार भी 'स्वर्ग से' आया था। यह परमेश्वर के साथ उनके नजदीकी संबंध से आया था।
  • यहाँ तक कि यीशु की शिक्षा में उनके विरोधियों ने इस 'सच्चाई' को माना (20:21)। यीशु कृपा प्राप्त करने या पक्षपात दिखाने की कोशिश नहीं कर रहे थे। वह सच्चाई के द्वारा मार्गदर्शित थे। उन्होंने निभीकतापूर्वक सच्चाई को बताया।
  • यीशु उन लोगों को उनके लिए प्रश्न में उलझा देते हैः क्या हमें पृथ्वी की ताकत को हमारी प्राथमिक निष्ठा को देना चाहिए? मुख्य कारण को वह स्पष्ट करते हैं कि चाहे हम परमेश्वर को हमारी प्राथमिक निष्ठा दें जो हमें देनी चाहिए - चाहे हम अपने आपको उनके राज्य का नागरिक समझे। हमें 'जो केसर का है वह केसर को देना चाहिए, और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को देना चाहिए' (व.25)। वह यीशु के उत्तर से चकित हो गए और चुप रह गए (व.26)।
  • लूका हमें बताते हैं कि यीशु 'पवित्र आत्मा की अगुवाई' में चलते थे (लूका 4:1)। पवित्र आत्मा ने यीशु को उत्तर दिया था। जैसे ही यीशु परमेश्वर के साथ इस करीबी संबंध में चलते थे, वचनों का अध्ययन करते हुए और सत्य को सिखाते हुए, पवित्र आत्मा ('सच्चाई का आत्मा, ' यूहन्ना 15:26) ने उन्हें असाधारण बुद्धि का वचन दिया।

प्रार्थना

पिता, मेरी सहायता कीजिए कि यीशु के उदारहण के पीछे चलूँ, आपके नजदीक रहूं और आपकी आवाज को सुनूँ जैसे ही मैं बाईबल को पढ़ता हूँ और आत्मा की अगुवाई में चलने का प्रयास करता हूँ।
जूना करार

व्यवस्था विवरण 31:30-32:52

मूसा का गीत

30 तब मूसा ने इस्राएल के सभी लोगों को यह गीत सुनाया। वह तब तक नहीं रुका जब तक उसने इसे पूरा न कर लिया:

32“हे गगन, सुन मैं बोलूँगा,
 पृथ्वी मेरे मुख से सुन बात।
2 बरहसेंगे वर्षा सम मेरे उपदेश,
  हिम—बिन्दु सम बहेगी पृथ्वी पर वाणी मेरी,
 कोमल घासों पर वर्षा की मन्द झड़ी सी,
  हरे पौधों पर वर्षा सी।
3 परमेश्वर का नाम सुनाएगी मैं कहूँगा,
 कहो यहोवा महान है।

4 “वह (यहोवा) हमारी चट्टान है —
  उसके सभी कार्य पूर्ण हैं! क्यों?
 क्योंकि उसके सभी मार्ग सत्य हैं!
  वह विश्वसनीय निष्पाप परमेश्वर,
 करता जो उचित और न्याय है।
5 तुम लोगों ने दुर्व्यवहार किया उससे अतः नहीं उसके जन तुम सच्चे।
 आज्ञा भंजक बच्चों से तुम हो,
 तुम एक दुष्ट और भ्रष्ट पीढ़ी हो।
6 चाहिए न वह व्यवहार तुम्हारा यहोवा को,
  तुम मूर्ख और बुद्धिहीन जन हो।
 योहवा परम पिता तुम्हारा है,
  उसने तुमको बनाया, उसने निज जन के दृढ़ बनाया तुमको।

7 “याद करो बीते हुए दिनों को
  सोचो बीती पीढ़ीयों के वर्षों को,
 पूछो वृद्ध पिता से, वही कहेंगे पूछो अपने प्रमुखों से;
  वही कहेंगे।
8 सर्वोच्च परमेश्वर ने राष्ट्रों को
  अपने देश दिए,
 निश्चित यह किया कहाँ ये लोग रहेंगे,
  तब अन्यों का देश दिया इस्राएल—जन को।
9 योहवा की विरासत है उसके लोग;
 याकूब (इस्राएल) यहोवा का अपना है

10 “यहोवा ने याकूब (इस्राएल) को पाया मरू में,
  सप्त, झंझा—स्वरित उजड़ मरुभूमि में
 योहवा ने याकूब को लिया अंक में, रक्षा की उसकी,
  यहोवा ने रक्षा की, मानों वह आँखों की पुतली हो।
11 यहोवा ने फैलाए पर, उठा लिया इस्राएलियों को,
  उस उकाब—सा जो जागा हो अपनी नीड़ में,
 और उड़ता हो अपने बच्चे के ऊपर,
  उनको लाया यहोवा अपने पंखों पर।
12 अकेले यहोवा ले आया याकूब को,
 कोई देवता विदेशी उसके पास न थे।
13 यहोवा ने चढ़ाया याकूब को पृथ्वी के ऊंचे स्थानों पर,
  याकूब ने खेतों की फसलें खायीं,
 यहोवा ने याकूब को पुष्ट किया चट्टानों के मधु से,
  दिया तेल उसको वज्र—चट्टानों से,
14 मक्खन दिया झुण्डों से, दूध दिया रेवड़ों से,
  माँस दिया मेमनों का,
 मेढ़ों का और बाशान जाति के बकरों का अच्छे—से—अच्छा गेहूँ,
  लाल अंगूरी पीने को दी अंगूरों की मादकता।

15 “किन्तु यशूरून मोटा हो, सांड सा लात मारता,
  (वह बड़ा हुआ और भारी भी वह था।)
 अभिजात, सुपोषित छोड़ा उसने अपने कर्ता यहोवा को
  अस्वीकार किया अपने रक्षक शिला परमेश्वर को,
16 ईर्ष्यालु बनाया यहोवा को, अन्य देव पूजा कर! उसके जन ने;
 क्रुद्ध किया परमेश्वर को निज मूर्तियों से जो घृणित थीं परमेश्वर को,
17 बलि दी दानवों को जो सच्चे देव नही उन देवों को बलि दी उसने जिसका उनको ज्ञान नहीं।
 नये—नये थे देवता वे जिन्हें न पूजा
 कभी तुम्हारे पूर्वजों ने,
18 तुमने छोड़ा अपने शैल यहोवा को भुलाया
 तुमने अपने परमेश्वर को, दी जिसने जिन्दगी।

19 “यहोवा ने देखा यह, इन्कार किया जन को अपना कहने से,
 क्रोधित किया उसे उसके पुत्रों और पुत्रियों ने!
20 तब यहोवा ने कहा,
  ‘मैं इनसे मुँह मोडूँगा!
 मैं देख सकूँगा—अन्त होगा क्या उनका।
  क्यों? क्योंकि भ्रष्ट सभी उनकी पीढ़ियाँ हैं।
 वे हैं ऐसी सन्तान जिन्हें विश्वास नहीं है!
21 मूर्तियों की पूजा करके उन्होंने मुझमें ईर्ष्या उत्पन्न की वे मूर्तियाँ ईश्वर नहीं हैं।
  तुच्छ मूर्तियों को पूज कर उन्होंने मुझे क्रुद्ध किया है! अब मैं इस्राएल को बनाऊँगा ईर्ष्यालु।
 मैं उन लोगों का उपयोग करूँगा, जो गठित नहीं हुये हैं राष्ट्र में।
  मैं करूगाँ प्रयोग मूर्ख राष्ट्र का और लोगों से उन पर क्रोध बरसाऊँगा।
22 क्रोध हमारा सुलगा चुका आग कहीं,
  मेरा क्रोध जल रहा निम्नतम शेओल तक,
 मेरा क्रोध नष्ट करता फसल सहित भूमि को,
  मेरा क्रोध लगाता आग पर्वतों की जड़ों में!

23 “‘मैं इस्राएलियों पर विपत्ति लाऊँगा,
 मैं अपने बाण इन पर चलाऊँगा।
24 वे भूखे, क्षीण और दुर्बल होंगे,
  जल जायेंगे जलती गर्मी में वे और होगा भंयकर विनाश भेजूँगा
 मैं वन—पशुओं को भक्षण करने
  उनका धूलि रेंगते विषधर भी उनके संग होंगे,
25 तलवारें सड़कों पर उनको सन्तति मिटा देगी,
  घर के भीतर रहेगा आतंक का राज्य,
 सैनिक मारेंगे युवकों और कुमारियों को
  ये शिशुओं और श्वेतकेशी वृद्धों को मारेंगे,

26 “‘मैं कहूँगा, इस्राएलयों को दूर उड़ाऊँगा।
 विस्मृत करवा दूँगा इस्राएलियों को लोगोंसे!
27 मुझे भय था कि, शत्रु कहेंगे
  उनके क्या इस्राएल के शत्रु कह सकते हैं:
 समझ फेर से हमने जीता है,
  “अपनी शक्ति से,
 यहोवा ने किया नहीं इसको।’”

28 “इस्राएल के शत्रु मूर्ख राष्ट्र हैं
 वे समझ न पाते कुछ भी।
29 यदि शत्रु समझदार होत
 तो इसे समझ पाते,
 और देखते अपना अन्त भविष्य में
30 एक कैसे पीछा करता सहस्र को?
  कैसे दो भगा देते दस सहस्र को?
 यह तब होता जब शैल
  यहोवा देता उनको,
 उनके शत्रुओं को, और परमेश्वर उन्हें
  बेचता गुलामों सा।
31 शैल शत्रुओं को नहीं हमारे शैल यहोवा सदृश
 हमारे शत्रु स्वयं देख सकते इस सत्य को।
32 सदोम और अमोरा की दाखलताओं के समान कड़वे हैं उनके गुच्छे अंगूर के।
 उनके अंगूर विषैले होते हैं उनके अंगूरों के गुच्छे कडवे होते।
33 उनकी दाखमधु साँपों के विष जैसी है और क्रूर कालकूट अस्प नाम का।

34 यहोवा ने कहा, “मैं उस दण्ड से रक्षा करता हूँ।
 मैं अपने वस्तु भण्डार में बन्द किया!’
35 केवल मैं हूँ देने वाला दण्ड मैं ही देता लोगों को अपराधों का बदला,
  जब उनका पग फिसल पड़ेगा अपराधों में,
 क्यों? क्योंकि विपत्ति समय उनका समीप है
  और दण्ड समय उनका दौड़ा आएगा।’

36 “यहोवा न्याय करेगा अपने जन का।
  वे उसके सेवक हैं, वह दयालु होगा।
 वह उसके बल को मिटा देगा
  वह उन सभी स्वतन्त्र
 और दासों को होता देखेगा असहाय।
37 पूछेगा वह तब,
 ‘लोगों के देवता कहाँ हैं?
वह है चट्टान कहाँ, जिसकी शरण गए वे?
38 लोगों के ये देव, बलि की चर्बी खाते थे,
  और पीते थे मदिरा, मदिरा की भेंट की।
 अतः उठें ये देव, मदद करें तेरी करें
  तुम्हारी ये रक्षा!

39 देखो, अब केवल मैं ही परमेश्वर हूँ।
  नहीं अन्य कोई भी परमेश्वर
 मैं ही निश्चय करता लोगों को
  जीवित रखूँ या मारूँ।
 मैं लोगों को दे सकता हूँ चोट
  और ठीक भी रख सकत हूँ।
 और न बचा सकता कोई किसी को मेरी शक्ति के बाहर।
40 आकाश को हाथ उठा मैं वचन देता हूँ।
  यदि यह सत्य है कि मैं शाश्वत हूँ।
 तो यह भी सत्य कि
  सब कुछ होगा यही!
41 मैं तेज करूँगा अपनी बिजली की तलवार।
  उपयोग करूँगा इसका
 मैं शत्रुओं को दण्डित करने को।
  मैं दूँगा वह दण्ड उन्हें जिसके वे पात्र हैं।
42 मेरे शत्रु मारे जाऐंगे, बन्दी होंगे।
  रंग जाएंगे बाण हमारे उनके रक्त से।
 तलवार मेरी पार करेगी उनके सैनिक सिर को।’

43 “होगा हर्षित सब संसार परमेश्वर के लोगों से क्यों?
  क्योंकि वह उनकी करता है सहायता सेवकों के हत्यारों को वह दण्ड दिया करता है।
 देगा वह दण्ड शत्रु को जिसके वे पात्र हैं।
  और वह पवित्र करेगा अपने धरती जन को।”

मूसा लोगों को अपना गीत सिखाता है

44 मूसा आया और इस्राएल के सभी लोगों को सुनने के लिये यह गीत पूरा गाया। नून का पुत्र यहोशू मूसा के साथ था। 45 जब मूसा ने लोगों को यह उपदेश देना समाप्त किया 46 तब उसने उनसे कहा, “तुम्हें निश्चय करना चाहिए कि तुम उन सभी आदेशों को याद रखोगे जिसे मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ और तुम्हें अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि इन व्यवस्था के आदेशों का वे पूरी तरह पालन करें। 47 यह मत समझो कि ये उपदेश महत्वपूर्ण नहीं हैं! ये तुम्हारा जीवन है! इन उपदेशों से तुम उस यरदन नदी के पार के देश में लम्बे समय तक रहोगे जिसे लेने के लिये तुम तैयार हो।”

मूसा नबो पर्वत पर

48 यहोवा ने उसी दिन मूसा से बातें कीं। यहोवा ने कहा, 49 “अबारीम पर्वत पर जाओ। यरीहो नगर से होकर मोआब प्रदेश में नबो पर्वत पर जाओ। तब तुम उस कनान प्रदेश को देख सकते हो जिसे मैं इस्राएल के लोगों को रहने के लिए दे रहा हूँ। 50 तुम उस पर्वत पर मरोगे। तुम वैसे ही अपने उन लोगों से मिलोगे जो मर गए हैं जैसे तुम्हारे भाई हारून होर पर्वत पर मरा और अपने लोगों में मिला। 51 क्यों? क्योंकि जब तुम सीन की मरुभूमि में कादेश के निकट मरीबा के जलाशयों के पास थे तब मेरे विरुद्ध पाप किया था और इस्राएल के लोगों ने उसे वहाँ देखा था। तुमने मेरा सम्मान नहीं किया और तुमने यह लोगों को नहीं दिखाया कि मैं पवित्र हूँ। 52 इसलिए अब तुम अपने सामने उस देश को देख सकते हो किन्तु तुम उस देश में जा नहीं सकते जिसे मैं इस्राएल के लोगों को दे रहा हूँ।”

समीक्षा

मार्गदर्शन के उदाहरण

एक शताब्दी या इससे पहले, इंग्लैंड के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में तूफान में एक जहाज चट्टानों से टकरा गया था। एक पंद्रह वर्षीय नाविक एक चट्टान की ओर सुरक्षित रूप से तैरते हुए पहॅंच गया। वह ऊपर चढ़ गया और रात भर इंतजार करता रहा और अगली सुबह उसे बचा लिया गया। एक रिपोर्टर ने उनसे साक्षात्कार लिया और कहा, 'अवश्य ही आप रात भर उस चट्टान पर काँप रहे होगे।' 'हाँ' , जवान नाविक ने उत्तर दिया, 'डर और ठंड के मारे मैं सारी रात काँपता रहा।' आगे उसने बताया, 'लेकिन चट्टान एक बार भी नहीं हिली।'

जैसे ही मूसा अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचते हैं, वह दर्शाते हैं कि कैसे परमेश्वर ने मूसा का जीवन भर अपने लोगों के लिए मार्गदर्शन किया है और वह उनकी चट्टान बने रहे (32:4अ, 15,18,30,37)। वह आपकी चट्टान हैं। वह मजबूत, स्थिर, निर्भरयोग्य हैं, हमेशा एक से और पूरी तरह से भरोसे के योग्य; उनके पास हमारी तरह 'उतार' और 'चढ़ाव' नहीं है। आप उनके न डगमगाने वाली वफादारी पर भरोसा कर सकते हैं। वह वहाँ पर हमेशा आपके लिए होंगे।

परमेश्वर ना केवल 'चट्टान' हैं, वह 'आपके पिता' भी हैं (व.6ब)।

मूसा ने वर्णन किया कि कैसे परमेश्वर ने पिता के प्रेम के साथ अपने लोगों (इस्त्राएल) का मार्गदर्शन किया और उनका नेतृत्व कियाः 'उसने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजने वालों से भरी हुई मरुभूमि में पाया; उसने उसके चारों ओर रहकर उसकी रक्षा की, और अपनी आँख की पुतली के समान उसकी सुधि रखी। जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर मंडराता है, वैसे ही उसने अपने पंख फैलाकर उसको अपने पैरों पर उठा लिया। यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा' (वव.10 -12अ)।

  1. परिस्थिती के चिह्न
  • वह आगे वर्णन करते हैं कि कैसे परमेश्वर ने उनके विधान में, अपने लोगों की रक्षा की। उन्होंने 'उन्हें भोजन दिया...शहद...तेल...दही और दूध...मेमने और बकरों...उत्तम गेहूँ से पोषित किया (वव.13-14)। सड़क पर उनके साथ परमेश्वर की उपस्थिति के यें विधान अनुसार चिह्न थे।

  • किंतु, यहाँ पर, 'यशूरून'(जिसका अर्थ है 'सत्यनिष्ठ', इस्राएल) के रूप में वर्णन किए गए परमेश्वर के लोगों ने 'परमेश्वर को त्याग दिया जिसने (यीशु) को बनाया और अपने उद्धारकर्ता चट्टान को नकार दिया' (व.15क)। इसी नकार दिए जाने के कारण परमेश्वर ने कहा, 'मैं उनसे अपना मुख छिपा लूँगा' (व.20)।

  • अक्सर, यह पाप है जो हमें परमेश्वर की आवाज को सुनने से रोकता है। पाप तबाही को ला सकता है (वव.23-27)। अब यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान में हमारे पास एक उपचार हैः 'परमेश्वर के पुत्र, यीशु का लहू हमें सारे पापों से शुद्ध करता है...यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब बुराई से शुद्ध करने में सक्षम हैं' (1यूहन्ना 1:7,9)।

  1. सामान्य ज्ञान
  • जब हम गिर जाते हैं, जैसा कि हम सभी गिरते हैं, तब समझदारी यह है कि हम जल्दी से उठ जाएँ। सामान्यत मार्गदर्शन का भाग है समझदारी से काम करना। मूसा की यह शिकायत थीः 'वह जाति युक्तिहीन तो हैं, और इनमें समझ है ही नहीं। भला होता कि ये बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपने अंत का विचार करते!' (व्यवस्थाविवरण 32:28-29)। परमेश्वर ने हमें सोचने वाली जाति बनाया है। वह आपके दिमाग को मार्गदर्शित करते हैं जैसे ही आप परमेश्वर के साथ एक नजदीकी संबंध में चलते हैं। एक सुपर –आत्मिकता को नजरअंदाज कीजिए जो जीवन के हर छोटे मामले में एक आंतरिक आवाज की अपेक्षा करता है।

जब मूसा ये सब वचन कह चुके तब उनके अंतिम निर्देश थे, 'जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूँ उन सब पर अपना अपना मन लगाओ, और उनके अर्थात् इस व्यवस्था की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने बच्चों को दो। क्योंकि यह तुम्हारे लिये व्यर्थ काम नहीं, परंतु तुम्हारा जीवन ही है' (वव.46-47, एम.एस.जी.)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद उन रास्तों के लिए जिनके द्वारा आप मुझे मेरे जीवन में विभिन्न समय पर, और विभिन्न रास्तों से ले आए हैं। आपका धन्यवाद क्योंकि आपने मुझ पर दया की है जब मैंने गलती की थी। मेरी सहायता कीजिए कि मैं आपके सारे वचनों को मन में रखूं और सावधानीपूर्वक उनका पालन करुँ। मेरे विधान तक पहुँचने में मेरी सहायता कीजिए।

पिप्पा भी कहते है

लूका 20:20-26

कुछ समयों पर जब मैं कुछ खरीद रहा हूँ या कोई मरम्मत की गई वस्तु को ले रहा हूँ तब यदि मैं नकद पैसे दूं तो मेरे पास कम कीमत को चुकाने का प्रस्ताव आता था। हो सकता है कि इसके पीछे कोई उचित कारण हो, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वे कर के लिए पैसे को दिखाना नहीं चाहते हैं। यदि यीशु कहते हैं हमें कर चुकाना चाहिए, तो हमें ऐसा करना चाहिए, यह चाहे कितना भी दर्दनाक क्यों ना हो।

दिन का वचन

भजन संहिता – 48:14

"क्योंकि वह परमेश्वर सदा सर्वदा हमारा परमेश्वर है, वह मृत्यु तक हमारी अगुवाई करेगा॥"

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संदर्भ

नोट्स:

नाविक/ चट्टान उदाहरण वाशिंग्टन जार्विस ले लिया गया है, प्रेम और प्रार्थनाओं के साथ, (डेविड आर. गॉडविन प्रकाशन, 2004) पी.286

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

संपादकीय नोट्स

नाविक/ चट्टान उदाहरण वाशिंग्टन सर्विस ले लिया गया है, प्रेम और प्रार्थनाओं के साथ, (डेविड आर. गॉडविन प्रकाशन, 2004) पी.286

एक साल में बाइबल

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